Writer- मनोज शर्मा

जैसे शरद पूर्णिमा की ठंडी रात में आसमान सितारों से भरा रहता और हर सितारा मानों चांद के इर्दगिर्द रहता है, उसी तरह सारी क्लास में भी ऐसा लगता था जैसे सब डिंपल की ओर ही आकृष्ट रहते हैं. यों चांद का तसव्वुर कौन नहीं चाहता... उस की उजली चांदनी में सब के चेहरे उजले और आनंद से लबरेज दिखाई देते हैं. हर सितारा चांद के करीब रहना चाहता है क्योंकि चांद होता ही प्यारा है।

डिंपल का नाम ही डिंपल नहीं बल्कि उस के कपोलों पर भी जब भी वह चहकती है नर्म डिंपल वहां उभर आते हैं. उस के बालों में बंधा वह सुर्ख रिबन दूर तक चमकता है जैसे कोई भंवरा किसी महकते फूल पर मधु के लिए उमड़ा हुआ हो. तारीफ सुनना किसे नहीं भाता और फिर जब भी कोई प्रेमवश डिंपल के लिए कोई 2 शब्द कह दे तो फिर तो डिंपल की सुंदरत में चार चांद लग जाते हैं. यह उम्र का तकाजा है या कुछ और पर कुछ भी हो इस का भी अपना ही नशा है बिलकुल अलग बिलकुल जुदा.

सुबह की नर्म धूप जैसे ही डिंपल के चेहरे पर गिरी वह पलंग पर उठ कर बैठ गई. आज इतवार है यानी कि आज की छुट्टी किताबों से और कक्षाओं से. वह तकिए पर उलटा लेट कर अपनी टांगों को बारीबारी से हिलाने लगी. कल रात का सपना अभी भी उस के जेहन में तैर रहा है कि वह रोहन के साथ सब से अलग स्कूल पिकनिक पर है. कितनी खुश है वह इस नई जिंदगी से, जहां वह है और केवल रोहन है. रोहन उस के नर्म हाथों को थामे हुए है. पिंक ड्रैस में वह बहुत खूबसूरत दिखाई दे रही है. वह एक चबूतरे पर बैठी है और रोहन ने मुसकराते हुए एक लाल गुलाब उसे औफर किया है। वह प्यार से उस गुलाब को ले लेती है और उस फूल को अपनी जुल्फों में लगाने के लिए कहती है. वे दोनों एकदूसरे का हाथ थामे लालपीले फूलों से खिले बगीचे में दूर कहीं चलते जा रहे हैं, ऐसी नई जगह जहां वे आज पहली ही बार आए हैं.

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