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Love Story : एक सुहाना सफर – सुरभि को किस बात पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा था

Love Story :  ‘‘हैलो मां, कैसी हो?’’

‘‘मैं अच्छी हूं, संभव, लेकिन तुम कल जरूर आना. प्रौमिस किया है तुम ने. पिछली बार जो किया वैसा मत करना.’’

‘‘हां मां, अब बताया है न. मेरी एक जरूरी मीटिंग है, बाद में फोन करता हूं.’’

फोन रखते ही संभव के दिमाग में खयालों का तूफान उठा. हालांकि वह इतनी जल्दी शादी करना नहीं चाहता था लेकिन घर का एक भी सदस्य उस की बात सम?ाने के लिए तैयार नहीं था. मां की बढ़ती बीमारी के कारण वह उन की इच्छा नकार नहीं सकता था, इसलिए अपनी इच्छा के विपरीत जा कर वह लड़कियां देखने के लिए तैयार हुआ. जैसे ही घड़ी की ओर उस का ध्यान गया, जल्दी सब निबटा कर वह औफिस के लिए चल पड़ा.

शाम वापस आते ही संभव ने पुणे के ट्रैवल का समय देखा और स्टौप पर जा कर खड़ा रहा. ट्रैवल वैसे ही लेट थी. और तो और, उस का स्टौप भी आखिरी था, इसलिए गाड़ी पूरी पैक्ड थी. केवल एक लड़की के बाजू वाली जगह खाली थी. उस ने उस का बैग धीरे से उठा कर नीचे रख दिया और वहां बैठ गया. संभव ने देखा कि वह लड़की सोई हुई थी और उस का पूरा चेहरा रूमाल से ढका था. संभव की नजर ट्रैवल की खिड़की से बाहर गई. पूनम का चांद दिख रहा था. उस धीमी रोशनी में उस लड़की के घने लंबे बाल चमक रहे थे. बाहर की ठंडी हवा से उस के बाल रूमाल का बंधन तोड़ कर संभव के चेहरे को छू रहे थे. पलभर संभव उस स्पर्श से रोमांचित हुआ. लेकिन तुरंत उस ने खुद को संभाला और थोड़ी दूरी बना कर बैठ गया.

दिनभर की थकान के कारण वह भी जल्दी ही सो गया. लेकिन ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया, तब सब मुसाफिर घबरा कर उठ गए. पूछने पर पता चला कि आगे बड़ी दुर्घटना हुई है, इसलिए गाड़ी रुक गई और 5-6 घंटे यातायात शुरू नहीं होगा.

‘‘अरे यार, यह सब आज ही होना था. कल सुबह तक पुणे नहीं पहुंची तो मां जरूर मु?ो डाटेंगी. अब क्या करूं? फोन में नैटवर्क भी नहीं है…’’

संभव बाजू में बैठी लड़की की बकबक सुन रहा था. उस के चेहरे से अब रूमाल हट चुका था. उस के हलके से हिल रहे गुलाबी होंठ, लंबे बालों की एक तरफ से डाली हुई चोटी, माथे पर छोटी सी बिंदी, नैनों का काजल, चांद की रोशनी में उस की गोरी काया काफी निखरी दिख रही थी. कितनी सरल और सुंदर नजर आ रही थी.

उस लड़की का ध्यान संभव की ओर गया. वह लगातार उसे देख रहा था. यह जानने के बाद वह थोड़ा संभल गई. संभव भी थोड़ा औक्वर्ड महसूस कर रहा था. उस ने अपनी नजर दूसरी ओर फेर दी. लेकिन उस की चुलबुलाहट कम नहीं हो रही थी. यह देख कर संभव ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप चिंता न करें. जल्दी ही सफर सुचारु रूप से शुरू होगा. आप को फोन करना है तो आप मेरा फोन इस्तेमाल कर सकती हो, मेरे फोन में नैटवर्क है.’’

उस लड़की ने संभव की ओर देखा. उस के व्यक्तित्व से वह एक सभ्य आदमी लग रहा था और उसे इस वक्त उस के फोन की जरूरत भी थी. संभव से फोन मांग उस ने घर पर फोन घुमाया.

‘‘हैलो मां, मैं सुरभि बोल रही हूं.’’

‘‘यह किस का नंबर है, इतनी रात गए फोन क्यों किया. तुम आ रही हो न कल?’’

‘‘हांहां, मेरा कहा सुन तो लो. मैं पुणे के लिए निकल चुकी हूं. लेकिन यहां आगे एक कार ऐक्सिडैंट हुआ है. ट्रैफिक में फंस चुकी हूं. मैं किसी दूसरे के फोन से आप से बात कर रही हूं. आप चिंता न करें. मैं आती हूं सुबह तक.’’

‘‘ठीक है. अपना खयाल रखना और हां, सुबह वे लोग तुम्हें देखने आएंगे. ज्यादा देर मत करना.’’

सुरभि ने गुस्से में फोन काट दिया. ‘‘मैं यहां उल?ा हूं और इन्हें तो उन मेहमानों की ही पड़ी है.’’ संभव उस की ओर देख रहा था. गुस्से में वह निहायत खूबसूरत नजर आ रही थी, नाम भी उस का कितना खूबसूरत था…सुरभि.

‘‘सौरी, मैं ने अपना गुस्सा आप के फोन पर निकाला,’’ सुरभि की आवाज से संभव ने अपना होश संभाला.

‘‘इट्स ओके, लेकिन आप चिंता मत कीजिए. सुबह तक आप पुणे पहुंच जाओगी. सौरी, मैं ने आप की बातें सुन लीं. बाय द वे, मैं संभव. मैं भी पुणे जा रहा हूं.’’

‘‘मैं सुरभि, आप की बहुत आभारी हूं कि आप के फोन के कारण मैं घर कौल कर सकी.’’ तभी बस में से एक लड़कों का गु्रप सामान ले कर नीचे उतर रहा था. संभव ने उन से पूछा, ‘‘यह क्या, आप सब कहां जा रहे हो?’’

‘‘देखो भैया, हम हरदम इसी रास्ते से सफर करते हैं. यहां हमेशा ट्रैफिक जाम रहता है. यहां 2-3 किलोमीटर पर पगडंडी रास्ता है. आगे छोटीछोटी गाडि़यां मिल जाती हैं पुणे जाने के लिए. उधर जा रहे हैं हम.’’

‘‘लेकिन इतने अंधेरे में, रास्ता महफूज है क्या?’’

‘‘हां, हम कई बार जाते हैं इस रास्ते से और हमारे पास टौर्च भी है.’’

संभव ने सुरभि की ओर देखा. सुरभि सोच में पड़ी थी. उस गु्रप में 2-3 लड़कियां भी थीं. माना कि वह किसी को पहचानती नहीं थी. फिर भी कराटे चैपिंयन होने के कारण, कुछ हुआ तो वह खुद को संभाल सकती थी. वहीं, संभव का बरताव उसे काफी विश्वासभरा लग रहा था. इसलिए उस ने भी तुरंत हामी भर दी. वे दोनों उस ग्रुप के साथ नीचे उतर कर पगडंडी के रास्ते पर चलने लगे.

वे लड़केलड़कियां एक ही कालेज में पढ़ने वाले थे. उन से दोस्ती कर वे दोनों भी साथसाथ चल रहे थे. मोबाइल पर सुरीले गीत चल रहे थे. रास्ता घने जंगल का था. मगर पूनम का चांद उस की शीतल छाया का अस्तित्व महसूस करा रहा था. इसलिए रात इतनी कठिन नहीं लग रही थी. चलतेचलते अचानक सुरभि का पैर एक पत्थर से फिसल गया. वह लुढ़क रही थी कि संभव ने उसे सहारा दिया. पलभर के लिए इस स्पर्श से दोनों के मन में कुछ हलचल मची. कुछ पल वे एकदूसरे की बांहों में थे. मोबाइल पर गाना बज रहा था.

नीलेनीले अंबर पर चांद जब आए,

प्यार बरसाए हम को तरसाए.

ऐसा कोई साथी हो ऐसा कोई प्रेमी हो,

प्यास दिल की बुझा जाए…

उन लड़कों की हंसी से वे होश में आए. सुरभि शरमा कर संभव से दूर हो गई. संभव भी अपनी नजर चुराने लगा.

‘‘इट्स ओके, यार, कभीकभी होता है ऐसा. लेकिन संभल के चलो अब.’’

सुरभि को चलने में दिक्कत हो रही थी. पत्थर से फिसलने से शायद उस के पांव में मोच आ गई थी. वह लंगड़ा कर चल रही थी. संभव ने पूछा, ‘‘सुरभि, तुम्हारे पांव में ज्यादा लगी है क्या, तुम ऐसे लंगड़ा कर क्यों चल रही हो?’’

अभीअभी घटी घटना से सुरभि संभव की नजर से नजर मिलाना टाल रही थी. वह संभव के व्यक्तित्व से तो प्रभावित हुई थी, लेकिन उस का स्पर्श और आंखों की चिंता देख कर वह उस में उलझती जा रही थी. वह घर क्यों जा रही है, यह उसे याद आया. वह आज तक पढ़ाई का कारण बता कर शादी की बात टालती आ रही थी, मगर अब पढ़ाई पूरी होने के बाद वह यह बात टाल नहीं सकती थी, कल उसे इसी कारण घर जाना था.

‘‘सुरभि, क्या कह रहा हूं मैं, तुम्हारा ध्यान कहां है? थोड़ा रुकना चाहती हो क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मैं ठीक हूं. पांव में मोच आई है. लेकिन मैं चल सकती हूं.’’

फिर भी संभव ने उसे सहारा दिया. ‘‘देखो, सुरभि, हमारी पहचान बस कुछ घंटों पहले ही हुई है, लेकिन तुम्हें पुणे तक महफूज ले जाना मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं. तुम कुछ अलग मत सोचो. चलो,’’ संभव का हाथ उस के हाथ में था. क्या था उस स्पर्श में? विश्वास, दोस्ती, चिंता. सुरभि उसे न नहीं कह सकी. हालांकि संभव पहली बार किसी लड़की के साथ ऐसा बरताव कर रहा था, लेकिन सुरभि के बारे में उसे क्या महसूस हो रहा था, यह वह नहीं जानता था. उस की हर अदा, बोलने का स्टाइल, उस के हाथ का कोमल स्पर्श और सब से अहम कि उस का संभव के प्रति विश्वास, इन सब के बारे में वह सोच रहा था.

‘‘संभव, तुम्हें मेरे कारण काफी परेशानी उठानी पड़ रही है.’’

‘‘सुरभि, तुम ऐसा क्यों कह रही हो. ऐसा सोचो कि एक दोस्त दूसरे दोस्त की मदद कर रहा है,’’ वह मुसकराया.

‘‘तुम्हारी यह मुसकराहट किलर है.’’

‘‘क्या?’’

वह क्या बोल गई, यह उस के ध्यान में आते ही उस ने अपनी जबान दांतों तले दबाई. फिर संभव ने हंस कर उस की ओर देखा. कालेज के गु्रप के साथ बाते करतेकरते सफर कब खत्म हुआ, इस का पता ही नहीं चला. वे जंगल से बाहर आ कर एक छोटे रास्ते पर आए. वहां एक छोटा सा होटल था. संभव और सुरभि ने अपना और्डर दिया. सुरभि फ्रैश हो कर हाथपांव धो कर आई. पानी की हलकी बूंदें अभी भी उस के बालों से लिपटी थीं.

‘कितनी खूबसूरत दिखती है यार, इस का हर रूप मुझे दीवाना बना रहा है. लेकिन क्या फायदा, इस मुलाकात के बाद हमारी राहें हमेशा के लिए अलग हो जाएंगी,’ सोचते हुए संभव के चेहरे पर मायूसी छा गई.

‘‘संभव, क्या हुआ? इस चांदनी रात में गर्लफ्रैंड की याद आ रही है क्या?’’

सुरभि के चेहरे के शरारती भाव देख कर संभव के मन से तनहाई के खयाल कहीं गुम हुए.

‘‘नहीं, अरे मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है. आओ, खाना खाते हैं.’’ हालांकि, यह जान सुरभि मन ही मन खुश हुई थी. उस ने उसी खुशी में खाना खत्म किया.

तब तक लड़कों ने गाड़ी बुक कर ली थी. गाड़ी में भी सुरभि संभव के पास ही बैठी थी. यह इस सफर का आखिरी दौर था. गाड़ी शुरू होते ही थकान से सुरभि की गरदन हलके से संभव के कंधे पर लुढ़क गई. संभव भी थका हुआ था. वह ये खूबसूरत पल अपने मन के किसी कोने में स्टोर करना चाहता था.

ड्राइवर ने जैसे ही गाड़ी का ब्रेक लगाया वैसे ही सुरभि जाग गई. उस का स्टौप आया था. सुरभि ने जाते-जाते फिर एक बार संभव का हाथ थामा. ‘‘संभव, यह सफर मैं कभी भी नहीं भूलूंगी. यह हमेशा मेरी खूबसरत स्मृतियों में रहेगा,’’ वह काफी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द उस की जबान पर नहीं आ रहे थे. शब्द कब आंसू बन कर आंखों से छलके, यह वह जान नहीं पाई. संभव भी इसी कशमकश से गुजर रहा था. उस ने उसे धीरे से सहलाया और भविष्य के सफर के लिए शुभकामनाएं दे कर गाड़ी में बैठ गया.

संभव घर पहुंचा. वह मां से कुछ न बोलते हुए जाने की तैयारी करने लगा. मां ने सोचा थका होगा. तय वक्त पर वे लड़की के घर पहुंच गए. संभव का किसी चीज में मन नहीं था. लड़की की मां उस की प्रशंसा कर रही थीं.

‘‘हमारी सुरु बहुत अच्छे दिमाग की है. उस के हाथ का एक अलग टैस्ट है.’’ फलानाफलाना. संभव को इन सब बातों से काफी चिढ़ थी. उस की नजर से सुरभि का चेहरा हट नहीं रहा था. वह सोचने लगा, ‘मां को तो मेरी शादी होने से मतलब है, फिर मैं कहीं से भी सुरभि को ढूंढ़ कर लाऊंगा.’ उस ने अपने मन में ठान लिया और गरदन ऊपर कर के कहा, ‘‘बंद करो यह सब, मु?ो ये शादीवादी नहीं करनी…’’ लेकिन आगे के शब्द वैसे ही होंठों पर रुक गए. क्योंकि सामने चाय की ट्रे ले कर सुरभि खड़ी थी. वह जान गया कि इस घर की सुरु उस की सुरभि ही थी.

‘‘क्या हुआ, संभव? कुछ कहना है क्या तुम्हें?’’ मां की आवाज से उस ने अपने होश संभाले. वह नीचे बैठ गया और बोला, ‘‘मुझे शादी करनी है. लड़की मुझे पसंद है.’’

उस की इस बात से सब हैरान रह गए. लेकिन उन्हें उस से भी ज्यादा खुशी हुई. सुरभि की रातभर रो कर सूजी आंखों में खुशी के आंसू आए थे, लेकिन केवल संभव ही यह देख सका. सब की नजर से छिप कर इन 2 प्रेमी दिलों का मिलन शुरू हुआ था. दोनों एकदूसरे की बांहों में समा जाते हैं. वह कहते हैं न,

दो दिल मिल रहे हैं

मगर चुपकेचुपके

सब को हो रही है

खबर चुपकेचुपके

लेखिका – सुवर्णा पाटिल

Solar से रोशन हो रहा लड़कियों का कैरियर

Solar : सोलर से रोशनी देने वाली लालटेन हो या लैंप, गांव की लड़कियों के जीवन को रोशन कर रहे हैं. लड़के भले ही पढ़ाई न कर रहे हों लेकिन लड़कियों को अब टेबरी और लालटेन की रोशनी से नजात मिल गई है. वे घर के अंदर सोलर की रोशनी में पढ़ाई कर रही हैं. सोलर से रोशनी देने वाले प्रोडक्टस औनलाइन भी खूब मिल रहे हैं. घर के बाहर लगने वाले खंभे भी आ गए हैं जिन को घर की छत और दीवारों पर लगाया जा रहा है. इन की कीमत 12 सौ रुपए से शुरू होती है.

लखनऊ के नंदौली गांव के अरुण सिंह बताते हैं, ‘हम ने खेत में सिंचाई के लिए सोलर पंप लगाया है. उस से हम अपने खेतों के साथ दूसरे के खेतों की भी सिंचाई करते हैं. आटाचक्की लगाई है. यह हमारे रोजगार का भी साधन बन गया है.’ सोलर पर सरकार 50 फीसदी अनुदान दे रही है. सोलर सिस्टम को और सस्ता व उपयोगी बनाने की जरूरत है. इस में इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी की क्वालिटी अच्छी की जाए.

सोलर का सालदरसाल प्रयोग बढ़ता जा रहा है. 2014 में 2.82 गीगावाट से बढ़ कर 2019 में 28 गीगावाट, 2022 में 54 गीगावाट, 2024 में 81 गीगावाट और 2025 में 100 गीगावाट प्रयोग होने लगा है. जैसेजैसे सोलर से बने उत्पाद ज्यादा सस्ते व टिकाऊ और भरोसेमंद होंगे, जनता इन का और प्रयोग करेगी. सोलर पैनल चोरी होने की घटनाएं बढ़ रही हैं, दूसरी तरफ सोलर पैनल जल्दी खराब हो रहे हैं. इस तरफ ध्यान देना जरूरी है.

New Web Series : ‘कन्नेडा’ पंजाबी की ऐसी छवि

New Web Series : रेटिंग – दो स्टार

अब तक किसी न किसी अजेंडा के तहत ही फिल्में बन रही थीं, पर अब अजेंडे के तहत वेब सीरीज भी बनने लगी हैं. लगभग डेढ़ वर्ष पहले हम ने ‘सरिता’ में ही लिखा था कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ और ‘जियो स्टूडियो’ को एक खास मकसद से खड़ा किया गया है. इन के मालिक लगातार नुकसान करते हुए भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं, पर इस की आड़ में देश में चल रहे या पनप रहे दूसरे ओटीटी प्लेटफार्म को खत्म करने का कुचक्र भी रचा जा रहा है. डेढ़ साल बाद आप देख सकते हैं कि डिज्नी प्लस हौटस्टार कहां गया. डिज्नी प्लस हौट स्टार पर ‘जियो’ का कब्जा हो गया है. अब यह ‘जियो स्टार’ हो गया है. इतना ही नहीं अमेजन की क्या हालत है, यह किसी से छिपा नहीं है? तो वहीं नेटफ्लिक्स की भी हालत पतली है. यदि इस पर बहुत गहराई से विचार किया जाए, तो अहसास होगा कि देश कहां जा रहा है. हम आखिर क्या बो रहे हैं. ओटीटी प्लेटफार्म की आड़ में कौन किस तरह के खेल में लिप्त है, यह फिलहाल हमारी समझ से परे बात है.

पिछले कुछ समय से भारत व कनाडा के बीच जो तनातनी बढ़ी है, वह किसी से छिपी नहीं है. कनाडा के प्रधानमंत्री भारतीयों के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं. कनाडा में भारतीय छात्रों को कई तरह से परेशान किया जा रहा है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा में जादातर पंजाबी भारतीय ही रह रहे हैं. पंजाबी छात्र ही वहां ज्यादा गए हैं. तो दूसरी तरफ हमारे अपने ही देश में कंगना रानौत से ले कर कई लोग पंजबी किसानों और पंजाब के निवासियों के खिलाफ आग उगलते हुए ड्रग्स के व्यापारी से ले कर पता नहीं क्या क्या संज्ञा दे रहे हैं.

अब 21 मार्च से मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के स्वामित्व वाले ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो स्टार’ पर चंदन अरोड़ा निर्देशित 8 एपीसोड की वेब सीरीज, जिस की लंबाई लगभग साढ़े चार घंटे है, ‘कन्नेडा’ स्ट्रीम होनी शुरू हुई है. इस सीरीज में रंगभेद व नस्लभेद को कहानी का आधार बनाया गया है, मगर दूसरे एपिसोड से अंत तक यह सीरीज सिर्फ इसी बात का चित्रण करती है कि कनाडा के वैंकुवर शहर में रह रहे सभी अप्रवासी भारतीय पंजाबी हैं,और यह सभी ड्रग्स, ह्यूमन तस्करी के साथसाथ बंदूक, गोली बारी व खूनखराबा में लिप्त हैं.

सीरीज दावा करती है कि यह सीरीज सत्य घटनाक्रम पर आधारित है. इन में वह पंजाबी हैं, जो कि 1984 के दंगे में पंजाब राज्य की धरती के लाल होने पर उज्जवल भविष्य की तलाश में कनाडा के वैंकुवअर शहर पहुंचे थे. इस सीरीज में इस के अलावा भारतीयों के मान सम्मान पर कोई बात नहीं कही गई है. नस्लभेद/ रंगभेद पर भी कोई टिप्पणी नहीं है. तो क्या यह सीरीज पंजाबी भारतीयों को पूरे विश्व के समक्ष बदनाम करने, उन की गलत तस्वीर पेश करने के लिए किसी साजिश के तहत बनायी गई है. इस का जवाब तो दर्शक इस सीरीज को देख कर ही दे सकेगा.

मगर अभी तो इस सीरीज का यह पहला सीजन ही आया है. इस का अगला सीजन जल्द आने वाला है लेकिन इस पर बहस जरुर होनी चाहिए कि क्या इस तरह की सीरीज बननी चाहिए?

कनाडा में सदैव रंगभेद व नस्लभेद के आधार पर भेदभाव होता रहा है और आज भी हो रहा है. सीरीज इसी पर केंद्रित होनी चाहिए थी, मगर सह लेखक व निर्देशक चंदन अरोड़ा सत्य घटनाओं के नाम पर आधारित सीरीज के नाम पर इस सीरीज में पंजाबियों को ड्रग्स के धंधे में लिप्त होने के साथ ही बंदूकों और खूनखराबे वाली जिंदगी का ही चित्रण किया है. इस के अलावा इस सीरीज में कुछ नहीं है.

कन्नेडा वेब सीरीज के नरेटर/ सूत्रधार मोहम्मद जीशान अय्यूब के शब्दों में कहें तो इसे समझने के लिए कनाडा देश को समझना होगा, जहां दो देश बसते हैं. एक गोरों की फर्स्ट वर्ल्ड कंट्री ‘कैनेडा’ और दूसरा थर्ड वर्ल्ड कंट्री से आए प्रवासियों का ‘कन्नेडा’, जिस के निवासियों को सेकंड क्लास सिटीजन समझा जाता था. यह कहानी इसी तबके के एक ऐसे रैपर निर्मल चहल उर्फ निम्मा (परमीश वर्मा) की है, जो कनाडा और कन्नेडा के बीच की दूरी को मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. यह कहानी केवल कनाडा के वेंकुवअर शहर तक ही सीमित है. निर्मल चहल उर्फ निम्मा का अतीत परेशानियों से भरा है. वह संगीत में अपना कैरियर बनाना चाहता है. उस के संगीत को काफी पसंद किया जाता है. वह दलजीत (आदार मलिक) संग मिल कर गीत संगीत बनाता है. दलीजत की बहन हरलीन ( जैस्मीन बाजवा ) से उस का रोमांस भी चल रहा है. वह स्कौलरशिप ले कर पढ़ाई करना चाहता है. इसीलिए स्पोर्टस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा है.

कालेज में वह गोरों के खेल रग्बी में सिलेक्ट होने वाला पहला सांवला लड़का बनता है, मगर गोरे साजिशन उसे ड्रग रखने के जुर्म में फंसा कर टीम से निकाल देते हैं. इस के बाद निम्मा को यकीन हो जाता है कि वह कितनी भी मेहनत कर ले, खुद को सुपीरियर समझने वाले कनाडा वासी उसे वह इज्जत नहीं देंगे. निम्मा निडर, बेबाक, महत्वाकांक्षी है. वह सपने भी बड़े ही देखता है. निम्मा का मानना है कि अगर आप के पास पैसा है तो सब कुछ संभव है. यही वजह है कि जेल से बाहर निकलने के बाद निम्मा कनाडा के ड्रग डीलर सरबजीत सिंह रंधावा (अरुणोदय सिंह) के साथ जुड़ जाता है, फिर उस की मुलाकात राजनेता रंजीत बाजवा (रणवीर शौरी) से होती है, जिस का वरद हस्त सरबजीत सिंह रंधावा पर है. जैसी कि उम्मीद थी, वह अपने सपनों को भूल जाता है और अपनी परिस्थितियों का शिकार बन जाता है. अंततः बुरे काम का बुरा नतीजा ही होना है.

इस पूरी कहानी को वैंकुवअर में कार्यरत एक भारतीय नारकोटिक्स अधिकारी, संजय (मोहम्मद जीशान अय्यूब) द्वारा सुनाया गया है, जो वैंकुवर में एक पुलिस अधिकारी है जो निम्मा व सरबजीत के हर कदम पर नज़र रखने में काफी तेज है. लेकिन जब उस के परिवार के सदस्यों के साथ जटिल गतिशीलता से निपटने की बात आती है तो वह कमज़ोर हो जाता है.

फिल्म एडीटर से निर्देशक बने चंदन अरोड़ा ने खुद ही इस का सह लेखन व संवाद भी लिखे हैं. पर उन्होंने बुरी तरह से निराश किया है. मशहूर फिल्मकार राम गोपाल वर्मा ने चंदन अरोड़ा को 2003 में निर्देशक बनाते हुए फिल्म ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी थी, जि सका बंटाधार करने में चंदन अरोड़ा ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.

इस के बाद 2005 में चंदन अरोड़ा ने असफल फिल्म ‘मैं ,मेरी पत्नी और वह’ का निर्देशन किया था. 2010 में ‘स्ट्राइकर’ का निर्देशन किया था. इस फिल्म ने भी बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था. तब बतौर निर्देशक उन्हें एक भी फिल्म नहीं मिली. अब पूरे 15 साल बाद चंदन अरोड़ा ने वेब सीरीज ‘कन्नेडा’ ले कर आए हैं.

चंदन अरोड़ा ने एक बेहतरीन विषयवस्तु को अपनी वेब सीरीज का आधार बनाया है. इन दिनों विदेशों में जिस तरह से अप्रवासियों के साथ भेदभाव हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं हैं. ‘कन्नेडा’ की कहानी विदेशी धरती पर भारतीयों द्वारा अपना अस्तित्व, अपना सम्मान तलाशने की जिद को दिखाती है. यानी कि सीरीज की शुरूआत तो अच्छी होती है. मगर दूसरे एपिसोड से ही लेखकीय टीम व निर्देशक अलग अजेंडे पर काम करने लगते हैं, जिस के चलते सीरीज व कहानी से ही उन की पकड़ कमजोर पड़ने लगती है. वह किसी भी चरित्र को पूरी गहराई से रचने में सफल नहीं हो पाए. दर्शक समझ ही नहीं पाता कि आखिर लेखक व निर्देशक क्या कहना या बताना चाहता है.

80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत में कनाडा में भारतीय पंजाबी समुदाय अपनी पहचान और नस्लवाद के खिलाफ लड़ रहा था, तो दूसरी तरफ समान अवसर के अधिकार के लिए देश में बढ़ती हिंसा को भी देख रहा था. अफसोस इस सीरीज में चंदन अरोड़ा इसे ठीक से चित्रित करने में बुरी तरह से मात खा गए.

फिल्म में निम्मा का एक संवाद है, ‘मैं उन चीज़ों की तस्करी करता हूं जिन की इजाज़त सरकार नहीं देती, उन की नहीं जिन की इजाज़त ज़मीर नहीं देता है.’ इस से निम्मा को ले कर जो बात उभरती है, वह बाद में अजीब घटनाओं में घिर जाता है. धीरेधीरे निम्मा की मूर्खताएं ही उजागर होती है. यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी का नतीजा है.

इतना ही नहीं ड्रग्स के व्यापार में लिप्त होते हुए भी निम्मा खुद कोकीन आदि का सेवन नहीं करता. पर अचानक सातवें एपिसोड में जिस तरह से निम्मा को कोक-सूंघने वाले गैंगस्टर के रूप में चित्रित किया गया है, वह हास्यास्पद ही नहीं बल्कि निर्देशकीय कमजोरी का प्रतिबिंब है.

निम्मा के गीत जिस तरह से युवा पीढ़ी को निडर बनाने के साथ ही मान सम्मान के बारे में सोचने पर मजबूर करती है, उसे इस सीरीज में एक झलक से ज्यादा महत्व ही नहीं दिया गया.

सीरीज देखते हुए बोरियत तो होती ही है और साथ में हमें यह समझ में आता है कि निर्देशक का सारा ध्यान मूल समस्या की बजाय का सारा ध्यान भारतीय पंजाबियों की छवि को खराब करने, उन्हें अवैध व्यापार, बंदूक और गोली बारी व खूनखराबा का पर्याय साबित करने तक ही रहा. जो कि बहुत गलत है.

रैपर और गैंगस्टर निम्मा के दोनों ही रूपों में परमिश वर्मा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहते हैं. निम्मा के दर्द, गुस्से और महत्वाकांक्षा को परमिश ने अपने अभिनय से सच्चाई के साथ उजागर किया है. खलनायक सरबजीत रंधावा के किरदार में अरुणोदय सिंह इस सीरीज अपने अभिनय से लोगों को अपनी तरफ खींचते हैं, पर अपनेआप को दोहराते भी हैं. राजनेता रंजीत बाजवा के किरदार में रणवीर शौरी ठीक ठाक हैं. यूं तो वह सीरीज में शो पीस के अलावा कुछ नहीं है. हरलीन के किरदार में जैस्मिन बाजवा के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. वैसे जैस्मीन बाजवा को अपने अभिनय पर काफी काम करने की जरुरत है.

निम्मा के दोस्त दलजीत के किरदार में आदार मलिक का अभिनय भी ठीक ठाक ही है. पुलिस अफसर संजय रावत के किरदार में जीशान अयूब कहीं से भी पुलिस वाले नहीं लगते. उन की चाल ढाल भी उन्हें पुलिस अफसर नहीं बताती.

Health Update : जाने गाउट की समस्या का क्या है कारण

Health Update : कई बार ऐसा हुआ कि सुरेश रात को सोतेसोते नींद से जग जाते और अचानक से अंगूठे में असहनीय दर्द की तकलीफ के बारे में बोलने लगते. शुरुआत में तो जब दर्द होता तो आराम के लिए पैनकिलर दवाई खा लेते लेकिन धीरेधीरे यह रोजाना का दर्द होने लगा तब उन्होंने डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि यह मामूली नहीं, बल्कि गाउट का दर्द है.

क्या होता है गाउट

गाउट का दर्द शरीर में यूरिक एसिड के बढ़ने से होता है. इस से जोड़ों, तरल पदार्थों व ऊतकों में क्रिस्टल एकत्रित हो जाते हैं. यह दर्द शरीर के एक हिस्से से शुरू होता है. दर्द अधिकतर रात को सोते समय ही होता है, ऐसा इसलिए क्योंकि सोते समय शरीर का तापमान कम हो जाता है.

शरीर में पानी की कमी व सांसों की गति में गिरावट आने के कारण फेफड़े पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऔक्साइड बाहर नहीं निकाल पाते. जिस कारण जोड़ों में यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा हो जाते हैं जिस से दर्द महसूस होता है और यही दर्द गाउट का दर्द कहलाता है.

लक्षण जानें

यह आमतौर पर अंगूठे से शुरू होता है. इलाज में देरी की जाए तो घुटने, टखने सहित पैर के सभी जोड़ों में परेशानी होने लगती है. इस से अचानक तेज दर्द, लालिमा, जलन और गांठ की समस्या होने लगती है.

कारण

· उच्च प्यूरिनयुक्त भोजन व शराब, मीठे पदार्थ, रेड मीट, सी फूड का अधिक सेवन.
· अगर परिवार में गाउट का इतिहास है तो आनुवंशिकी तौर पर इस की संभावना ज्यादा होती है.
· मधुमेह के रोगियों में इस का खतरा ज्यादा होता है.
· शरीर में पानी की कमी से भी जोड़ों में क्रिस्टल जमा हो जाते हैं.
· हाई बीपी की दवाएं भी यूरिक स्तर को बढ़ाती हैं.
· किडनी द्वारा यूरिक एसिड का कम या अधिक निष्कासन होना.

निदान

– बर्फ की सिंकाई, प्रोटीन, शराब व रेड मीट का सेवन कम करें.
– रोजाना व्यायाम करें, वजन नियंत्रित रखें.
– समस्या होने पर रक्त जांच व अंगूठे का अल्ट्रासाउंड अवश्य कराएं. बिना डाक्टर से परामर्श लिए दवाओं के सेवन से बचें.

Indian Youth : धर्म पंथ के चलते राजनीति से नाउम्मीद होते युवा

Indian Youth : रिपोर्ट चौंकाने वाली कम चिंतित करने वाली ज्यादा है जिस में यह तो बताया गया है कि भारतीय युवा बड़े पैमाने पर राजनीति से दूर हो रहे हैं. लेकिन इस बात का जिक्र या फिक्र रिपोर्ट में नहीं है कि ऐसा किस या किन वजहों के चलते हो रहा है. वाइव यानि वौइस फोर इन्क्लूजन बिलान्गिंग एंड एमपवार्मेंट और प्रोजैक्ट पोटेंशियल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 29 फीसदी युवा राजनीति से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं. 26 फीसदी किसी राजनीतिक दल से जुड़े बिना राजनीतिक चर्चाओं में हिस्सा लेते हैं सिर्फ 11 फीसदी ही किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के मेम्बर हैं.

रिपोर्ट में जोर दे कर यह बात कही गई है कि 81 फीसदी युवाओं में देश भक्ति की जज्बा है.

युवा अगर राजनीति से दूर और नाउम्मीद हो रहे हैं तो इस की एक बड़ी वजह वे धर्मपंथी हैं जो राजनीति को अपने कमंडल में कैद किए हुए हैं. जहां सवाल पूछने और तर्क करने की न तो गुंजाइश होती और न ही इजाजत होती. जबकि ये दोनों ही बातें युवावस्था की पहचान हैं. देश अभीअभी अरबोंखरबों के महाकुम्भ की डुबकियों से फारिग हुआ है. लेकिन इस के बाद जो सामाजिक अवसाद देश भर में पसरा है उस के सब से ज्यादा शिकार वे युवा हो रहे हैं जिन के सामने रोजगार का संकट और अनिश्चित भविष्य मुंह बाए खड़ा है.

कोई युवा यह नहीं पूछ पा रहा कि इस भव्य खर्चीले धार्मिक आयोजन से किसे क्या मिला. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद से इस जिज्ञासा का समाधान किया है लेकिन वह उतना ही बेदम है जितना यह भ्रम कि कुम्भ की डुबकी से मोक्ष मिलता है. किसी भी देश का युवा विपक्ष से ज्यादा सरकार से उम्मीदें रखता है कि वह उन के आने वाले कल के लिए ठोस नीतियां बनाए, रोजगार सृजित करे न कि धर्म कर्म से लबरेज जुमले परोसते ध्यान असल मुद्दों से भटकाए पर बदकिस्मती से हो यही रहा है.

तो ऐसे माहौल में जिस में कब्र पर विवाद और फसाद होते हों, जिस में अदालत बलात्कार की तैयारी की व्याख्या में सर खपा रही हो, ऐसे माहौल में जहां जज के यहां से करोड़ों का केश बरामद होता हो उस में युवाओं से क्या खा कर उम्मीद की जाए कि वे उस राजनीति में दिलचस्पी रखेंगे जो पूरी तरह धर्मपंथियों के शिकंजे में है और उन के लिए कुछ नहीं कर रही. दिक्कत तो यह भी कि विपक्ष भी कोई आश्वासन युवाओं को नहीं दे पा रहा.

देश का युवा हताश और निराश है और डिलेवरीबौय बन कर रात के 2 – 3 बजे तक आंखें फोड़ कर सपने तोड़ कर सामान घरों में डिलीवर कर रहा है.

भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के बाहर रात 4 बजे एक उबर ड्राइवर केशव से इस बारे में सवाल किया गया तो उस ने बेहद तल्ख़ लहजे में कहा, “माफ करें भाईसाहब, मेरा सर ऐसी बातों से फटता है मेरी चिंता और परेशानी ये हैं कि आज बुकिंग कम मिलीं.”

कितना सिमट गया है देश का युवा यह केशव के जवाब से समझ आता है कि वाइव के सर्वे में नया कुछ नहीं है. युवा अब किसी जयप्रकाश नारायण का इंतजार नहीं करता, वह अन्ना हजारे के आंदोलन मंथन से निकले रत्नों का हश्र देख चुका है कि इन धर्मपंथियों ने चालाकी दिखाते हुए उन्हें भी खोटा सिक्का साबित कर दिया. तो क्या युवा वर्ग यह स्वीकार और मान चुका है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी कुछ नहीं करेंगे सिवाय राजनीति के, इसलिए भरोसा उस भगवान पर ही क्यों न रखा जाए जिस के कहीं अतेपते नहीं.

World : क्या दुनिया खत्म होने वाली है?

World : महासागरों में कुछ असामान्य हो रहा है. गहरे समुद्र में अजीबोगरीब जीव सतह पर आ रहे हैं. हाल ही में मैक्सिको के समुद्र तट पर एक दुर्लभ ‘डूम्सडे’ मछली दिखाई दी है. इस मछली को ओरफिश कहा जाता है और यह दक्षिणी बाजा कैलिफोर्निया प्रायद्वीप के तट पर देखी गई है. क्या ये बदलते पर्यावरण के संकेत हैं या किसी बड़ी चीज की चेतावनी?

कहा जाता है कि यह मछली जबजब धरती पर आती है तब अपने साथ तबाही का भंयकर मंजर लाती है. हालांकि, विज्ञान ने इस मान्यता की पुष्टि नहीं की है. इसे सिर्फ संयोग माना जा सकता है.

सब से चर्चित रहस्यों में से एक है ओरफिश का अचानक प्रकट होना. यह एक मायावी, सांप जैसा प्राणी जिसे अकसर आपदा मिथकों से जोड़ा जाता है. यह आशंका फिर से बढ़ गई कि गहरे समुद्र में रहने वाली ये मछलियां भूकंप या सुनामी का संकेत देती हैं.

जापानी लोककथाओं में इन्हें ‘समुद्र देवता के दूत’ के रूप में देखा जाता है. ओरफिश एक गहरे समुद्र का जीव है जो आमतौर पर समुद्र की सतह से सैकड़ों-हजारों फुट नीचे रहता है. यह इंसानों को शायद ही कभी दिखाई देता है.

हालांकि, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि साल 2011 में जापान में आए विनाशकारी सुनामी और 9.0 तीव्रता के भूकंप से कुछ महीने पहले 20 से ज्यादा ओरफिश समुद्र तट पर मृत पाई गई थीं. इसलिए ओरफिश के समुद्र किनारे आने से भूकंप या सुनामी आने की संभावना जताई जा रही है.

वहीं, एंगलर फिश भी वहां दिखाई दे रही हैं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए. वैज्ञानिक इस पर ध्यान दे रहे हैं. यह मछली आमतौर पर 2,000 मीटर अंदर पानी में पाई जाती है. ऐसे में इस का ऊपर आना भी चिंता का विषय बन गया है.

हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि एंगलर फिश सतह के करीब क्यों दिखाई दे रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि महासागर के पानी के गरम होने से उन के प्राकृतिक आवास में बदलाव हो सकता है. ये परिवर्तन गहरे समुद्र में रहने वाली प्रजातियों के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं.

सभी असामान्य घटनाएं एक बड़े कारक की ओर इशारा करती हैं, वह है जलवायु परिवर्तन. जैसेजैसे ग्रह गरम होता है, वैसेवैसे महासागर का इकोसिस्टम बदल रहा है जिसे हम अब देख सकते हैं. बढ़ते तापमान, बदलती धाराएं और बदलते समुद्री आवास यह बता सकते हैं कि गहरे समुद्र के जीव अप्रत्याशित स्थानों पर क्यों दिखाई दे रहे हैं.

Politics : क्या ओबीसी को वानर सेना समझती है भाजपा ?

Politics : मंडल की राजनीति से ले कर पौराणिक कहांनियों तक के उदाहरण बताते हैं कि ओबीसी को इस्तेमाल कर के छोड़ दिया जाता है. राज करने का अधिकार अभी भी राजा का होता है.

भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में अपने संगठन के चुनाव को ले कर हो होहल्ला मचा रही है. वैसे यह चुनाव से अधिक मनोनयन है. इस के जरिए प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है. इस चुनाव के जरिए भाजपा जाति के कार्ड की काट करना चाहती है. ऐसे में एक बार भाजपा ओबीसी को ढाल के रूप में प्रयोग करने की योजना बना रही है. उत्तर प्रदेश को भाजपा प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपने जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी कर दी है. इन 70 नामों में 25 ओबीसी, 6 एससी और 39 जनरल वर्ग के से हैं. जनरल में सब से अधिक 19 ब्राह्मण हैं. 70 नामों से 26 दूसरी बार जिलाध्यक्ष बने हैं. भाजपा ने महिला आरक्षण बिल का बड़ा शोर मचाया. महिला आरक्षण बिल का नाम नारी वंदन अधिनियम रखा लेकिन जब संगठन में हिस्सेदारी का सवाल आया तो 70 में से केवल 5 महिला नेताओं को जगह दी गई.

भाजपा ने उत्तर प्रदेश संगठन को 75 जिलें और 13 महानगर समेत 98 जिले माने जाते हैं. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए 50 जिलों में अध्यक्षों का निर्वाचन होना जरूरी होता है. अब प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम की घोषणा होनी है. भाजपा भविष्य के लाभ को देखते हुए ओबीसी का प्रयोग कर सकती है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा इन को फैसले लेने लायक पद भी देगी या केवल तमाशाई ही बना कर रखेगी.

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य थे. उन की अगुवाई में विधानसभा के चुनाव हुए. 1991 के बाद 2017 में भाजपा को बहुमत मिला. बहुमत हासिल करने के बाद जब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का समय आया तो योगी आदित्यनाथ का नाम आगे कर दिया गया. इस को ले कर भाजपा संगठन में खींचतान बनी हुई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सब से अधिक नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ. जहां उसे केवल 33 सीटें मिलीं और वह समाजवादी पार्टी से पीछे रह गई. इस नुकसान को समझते हुए भाजपा ओबीसी को अधिक महत्व देने का दिखावा कर रही है.

1990 के दशक में चलें तो मंडल कमीशन के दौर में भाजपा ओबीसी का विरोध कर रही थी. मंडल कमीशन का मुकाबला करने के लिए अयोध्या के मंदिर का आंदोलन शुरू कर दिया. ‘मंडल‘ बनाम ‘कमंडल’ की राजनीति ने पिछडों को बहुत नुकसान पहुंचाया था. पिछड़ों की अगुवाई करने वाली सपा और बसपा में तोड़फोड़ कर माया और मुलायम को अलगअलग कर दिया. इसी तरह से बिहार में रामविलास पासवान के साथ किया. उत्तर प्रदेश और बिहार में ओबीसी राजनीति का खत्म कर दिया.

काम निकल जाने के बाद छोड़ देने की पंरपरा

देखा जाय तो यह पंरपरा पुरानी है. रामायण काल में भी राम ने रावण से लड़ने की योजना तैयार की तो वानर सेना तैयार की. एक लाख की वानर सेना ने पगपग पर रावण से लड़ाई में राम का साथ दिया. समुद्र में वह स्थान खोजा जहां से लंका तक पहुंचना सरल था. समुद्र पर पुल बनाने सीता का पता लगाने जैसे काम में वानर सेना का प्रमुख रोल था. रावण की विशाल सेना को वानरों की सेना ने पसीने छुड़ा दिए थे. वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध में वानर सेना की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

रामायण के उत्तर कांड में बताया गया है कि जब लंका से सुग्रीव लौटे तो राम ने उन्हें किष्किन्धा का राजा बनाया. अंगद को युवराज बना दिया. नल नील सुग्रीव के राज्य में मंत्री बने. अयोध्या में जब राम का राज्याभिषेक हुआ तो वानर सेना वहां भी आई थी. राजा बनने के बाद राम ने वानर सेना को अपने दरबार में कोई पद नहीं दिया. इस के बाद वानर सेना वापस चली गई. जिस वानर सेना ने राम का साथ दिया उन को युद्व जितने में मदद की उसे राजा बनने के बाद कुछ नहीं दिया गया.

रामायण ही नहीं महाभारत में भी ऐसे उदाहरण हैं. भीम ने हिडिंबा से विवाह किया था. हिडिंगा राक्षसी थी. भीम और हिडिंबा से घटोत्कच नाम का पुत्र हुआ. जिस को कभी भी पांडव ने स्वीकार नहीं किया. जब कौरव और पांडव के बीच महाभारत का युद्व होने लगा तो कौरव की सेना भारी पड़ने लगी. ऐसे में पांडव को घटोत्कच की जरूरत पड़ी तब उस को भीम के पुत्र के रूप में लड़ाई में शामिल करने को कहा गया. घटोत्कच का पता था कि लड़ाई के मैदान में उस का मुकाबला कर्ण से होगा. वह मारा जाएगा इस के बाद भी घटोत्कच ने लड़ाई लड़ी और मारा गया.

महाभारत में ही दूसरा प्रंसग एकलव्य का है. एकलव्य अर्जुन से भी अधिक श्रेष्ठ धनुर्धारी था. गुरू द्रोणाचार्य यह नहीं चाहते थे कि उन के शिष्य अर्जुन से श्रेष्ठ कोई दूसरा धनुर्धारी हो, इसलिए उन्होने अपनी गुरूदक्षिणा के नाम पर एकलव्य का अंगूठा ही मांग लिया था. जहां भी राजा को राज करने की जरूरत पड़ती है वह घटोत्कच को अपना लेता है और जहां ही उसे बराबरी का हक देने की बात आती है वहां उस को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

मनुस्मृति के दिखाए राह पर चल रहे ओबीसी और एससी

समुद्र मंथन के समय भी ऐसा हुआ. समुद्र मंथन के लिए देवताओं ने राक्षसों का साथ लिया. जब अमृत पीना था तो आपस में बांट लिया और मदिरा राक्षसों के हवाले कर दी. भाजपा पौराणिक कथाओं पर यकीन कर उसी राह पर चलने वाली पार्टी है ऐसे में वह राजनीति में भी इसी तरह का काम कर रही है. जब जरूरत होती है ओबीसी को अपना लेती है और बराबरी का अधिकार देते समय पीछे हट जाती है. भाजपा के ओबीसी या एससी नेता मनुस्मृति के दिखाए रास्ते पर ही चल रहे हैं.

भाजपा संगठन हो या सरकार यह ओबीसी का प्रयोग कर रहे हैं. कमोवेश यही बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के पहले से कहते आ रहे हैं. वह ओबीसी स्तर के सचिवों के नाम पूछते हैं. राहुल गांधी ने अपने चुनावी भाषण में कहा कि देश की सरकार को 90 आईएएस अफसर चलाते हैं. इन में केवल 3 ओबीसी जाति के हैं. ब्यूरोक्रेसी की बात हो या राजनीति की हर जगह पर ओबीसी केवल प्रयोग किए जा रहे हैं. असल में इन को अधिकार नहीं दिए जा रहे है.

भाजपा संगठन को चलाने का काम आरएसएस करता है. वहां केवल मनुस्मृति की दिखाई राह पर चलने वाले लोग हैं. ऐसे में संगठन के पदों पर कितने ही ओबीसी बैठ जाएं उन का महत्व उतना ही है जितना यूपी की सरकार चलाने में केशव प्रसाद मौर्य की.

अगर भाजपा ओबीसी की शुभचिंतक होती तो जातीय गणना कराने को ले कर उस के खिलाफ नहीं होती. देश में 60 फीसदी से अधिक ओबीसी के लोग हैं लेकिन उन को ब्राहमण राज के आधीन काम करना पड रहा है. जातीय गणना से सही तस्वीर सामने आएगी इस कारण भाजपा उस को सामने लाने से बच रही है. अपने संगठन में नाममात्र के पदों पर ओबीसी को आगे कर के जातीय गणना के मसले को टालना चाहती है.

Motivational : अनुशासन, उत्साह, आत्मीयता उत्पादकता की कुंजी

Motivational : यदि व्यक्ति अनुशासित और व्यवस्थित है तो वह बेहतर उत्पादक होने के साथसाथ सफल भी होता है. उस में नेतृत्व क्षमता भी होती है और वह ज्यादा भरोसेमंद होता है.

हर काम एक खास चीज की मांग करता है. उस का नाम है अनुशासन और समर्पण. अपने भीतर आत्मअनुशासन को जाग्रत कर के कोई काम करने का संकल्प करना चाहिए. आत्मअनुशासन अर्थात अपने बिखरे हुए विचारों को एक तरफ लगा देना. आत्मअनुशासन से काम का आरंभ इतना अच्छा हो जाता है कि सफलता तय हो जाती है. एकाग्रता इतनी फलदायक है कि इसे धारण करते ही काम में निखार आने लगता है. एकाग्रता को हम बाजार से नहीं खरीद सकते. यह हम को अपने संकल्प से अपनी इच्छाशक्ति से विकसित करनी होती है. एकाग्रता से आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और आत्मनियंत्रण भी प्राप्त हो जाते हैं.

सकारात्मक चिंतन जरूरी

स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए हैं. वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गए. कलाकार उन्हें अपने स्टूडियो में ले गया और मूर्तियां दिखाने लगा. दिखातेदिखाते एक मूर्ति के सामने आया बोला, ‘यह मेरी नई रचना है.’ इतना कह कर उस ने उस पर से गीला कपड़ा हटाया. फिर मूर्ति को ध्यान से देखा.

उस की निगाह उस पर जमी रही. जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया, ‘इस के कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है.’ उस ने ठीक किया. फिर कुछ कदम दूर जा कर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया. इस तरह एक घंटा निकल गया.

ज्विग चुपचाप खड़ेखड़े देखते रहे. जब मूर्ति से संतोष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया. दरवाजे पर पहुंच कर उस की निगाह पीछे गई तो देखता क्या है कि कोई पीछेपीछे आ रहा है. अरे, यह अजनबी कौन है? उस ने सोचा, घड़ीभर वह उस की ओर ताकता रहा. अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था. वह लज्जा गया, बोला, ‘‘मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना. मैं आप को एकदम भूल ही गया था.’’

ज्विग ने अपनी आत्मकथा में प्रसंग लिखा है, ‘‘उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं में सब से बड़ी क्या और कौन सी कमी थी. शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है जब आदमी अपनी सारी शक्तियां बटोर कर उन को एक ही जगह पर केंद्रित कर देता है.’’

ऐसा भी कहते हैं कि सफलता केवल तब ही मिल पाती है जब हमारे भीतर एक सकारात्मक चिंतन की अविरल धारा चलती है. सकारात्मक विचार अगर स्वभाव में होते हैं तब लक्ष्य साधने में ज्यादा कठिनाई नहीं आती.

उदाहरण के लिए वनवासी एकलव्य की सकारात्मक दूरदृष्टि. उस ने बिना किसी शिकवा और शिकायत के गुरु को साक्षी मान कर धनुर्विद्या सीखनी शुरू कर दी. परिणामस्वरूप वह एक सर्वोत्तम धनुर्धर बना. यह सकारात्मकता विविधरंगी है- कभी उमंग और तरंग, कभी कल्पनाशीलता, कभी उत्साह, कभी आत्मीयता, कभी समाज के लिए अपनापन, मददगार भाव आदि के रूप में परिलक्षित होती रहती है.

मिशन के प्रति समर्पित विनोबा

कई बार अनुशासन या सकारात्मकता शोर मचा कर अभिव्यक्त नहीं होती. शब्दों से परे और भावनाओं से लबरेज यह सकारात्मकता समुचित दृष्टिकोण वालों के लिए दर्शनीय, मोहक और मौन होती है.

हजारों शब्दों की जगह यही मौन सबकुछ कह देता है. अगर सही विचार हों तो इस अद्भुत सकारात्मक भाव की एक झलक में पूरा जीवन दिख जाता है. एक सफल और संतुष्ट जीवन जो सकारात्मक है वह जीवन के अंधकार में भी उजाला, पराजय में जय और प्रसन्नता तथा अच्छी गति की तरफ ही देखता है और उसे पा भी लेता है. इसे महर्षि विनोबा भावे के जीवन से कुछ इस तरह समझ सकते हैं.

10 साल तक विनोबाजी सारे देश में पैदल घूमते रहे. वे प्यार से उन लोगों से जमीन लेते जिन के पास थी और प्यार से उन्हें दे देते थे जिन के पास नहीं थी. विनोबाजी के पेट में अल्सर था. वह कभीकभी बड़ा दर्द करता था. उन्हें बड़ी हैरानी होती थी पर उन की यात्रा नहीं रुकती थी. एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डाक्टरों ने उन की जांच की. अच्छी तरह से देखभाल कर के उन्होंने विनोबाजी से कहा, ‘‘आप की हालत गंभीर है. आप 8 महीने आराम करें.’’

विनोबाजी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हालत अच्छी नहीं है तो आप ने 4 महीने क्यों छोड़ दिए? अरे, आप को कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करो.’’ डाक्टरों ने कहा, ‘‘आप पैदल चलना छोड़ दें.’’

विनोबाजी ने उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे पेट में दर्द है, पैरों में नहीं.’’ विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नहीं की. लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होंने जवाब दे दिया, ‘‘सूर्य कभी नहीं रुकता, नदी कभी नहीं ठहरती, उसी अखंड गति से मेरी यात्रा चलेगी.’’

उन की इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर उन्हें कोई 45 लाख एकड़ भूमि मिल गई. यह अनुशासन है ही इतना चमत्कारी कि इस से आत्मरुचि, आत्मनियंत्रण, स्वावलंबन भी उत्पन्न होते हैं.

रचनात्मक बनाता अनुशासन

अनुशासन का अभ्यास हम को रचनात्मक, आनंददायक और उत्पादक जीवन जीने के योग्य बनाता है. अनुशासन से हम समय प्रबंधन की कला भी सीख लेते हैं. समय प्रबंधन हम को किसी भी चुनौती को समझने तथा उस से निबटने में दक्ष व कुशल बनाता है. कुल मिला कर अनुशासन हमारी भीतरी ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है जो हम को जीवन में बेहद आगे ले जा सकता है.

Hindi Kahani : उस रात – क्या सलोनी और राकेश की शादी हुई?

Hindi Kahani : राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं.

2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे

2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे.

बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

Best Romantic Story : जीत – मंजरी और पीयूष की बेपनाह मुहब्बत

Best Romantic Story : वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को छेड़ रहे थे. बारबार लटें उस के गालों पर आ कर झूल जातीं, जिन्हें वह बहुत ही प्यार से पीछे कर देता. ऐसा करते हुए जब उस के हाथ उस के गालों को छूते तो वह सिहर उठती. कुछ कहने को उस के होंठ थरथराते तो वह हौले से उन पर अपनी उंगली रख देता. गुलाबी होंठ और गुलाबी हो जाते और चेहरे पर लालिमा की अनगिनत परतें उभर आतीं.

मात्र छुअन कितनी मदहोश कर सकती है. वह धीरे से मुसकराई. पेड़ से कुछ पत्तियां गिरीं और उस के सिर पर आ कर इस तरह बैठ गईं मानो इस से बेहतर कोमल कालीन कहीं नहीं मिलेगा. उस ने फूंक मार कर उन्हें उड़ा दिया जैसे उन लहराते गेसुओं को छूने का हक सिर्फ उस का ही हो.

वह पेड़ के तन से सट कर खड़ी हो गई और अपनी पलकें मूंद लीं. उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अप्रतिम प्रतिमा, जिस के अंगअंग को बखूबी तराशा गया हो. उसे देख कौन पुरुष होगा जो कामदेव नहीं बन जाएगा. उसे चूमने का मन हो आया. पर रुक गया. बस उसे अपलक देखता रहा. शायद यही प्यार की इंतहा होती है… जिसे चाहते हैं उसे यों ही निहारते रहने का मन करता है. उस के हर पल में डूबे रहने का मन करता है.

‘‘क्या सोच रही हो,’’ उस ने कुछ क्षण बाद पूछा.

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’ वह थोड़ी चौंकी पर पलकें अभी भी मुंदी हुई थीं.

‘‘चलें क्या? रात होने को है. तुम्हें घर छोड़ दूंगा.’’

‘‘मन नहीं कर रहा है तुम्हें छोड़ कर जाने को. बहुत सारी आशंकाओं से घिरा हुआ है मन. तुम्हारे घर वाले इजाजत नहीं देंगे तो क्या होगा?’’

‘‘वे नहीं मानेंगे, यह बात मैं विश्वास से कह सकता हूं. गांव से बेशक आ कर मैं इतना बड़ा अफसर जरूर बन गया हूं और मेरे घर वाले शहर में आ कर रहने लगे हैं, पर मेरे मांबाबूजी की जड़ें अभी भी गांव में ही हैं. कह सकती हो कि रूढि़यों में जकड़े, अपने परिवेश व सोच में बंधे लोग हैं वे. पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बहू को स्वीकारना अभी भी उन के लिए बहुत आसान नहीं है. पर चलो इस चीज को स्वीकार भी कर लें तो भी दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाना… संभव ही नहीं है उन का मानना.’’

‘‘तुम खुल कर कह सकते हो यह बात पीयूष… दूसरी अन्य कोई जाति होती तो भी कुछ संभावना थी… पर मैं तो मायनौरिटी क्लास की हूं… आरक्षण वाली…’’ उस के स्वर में कंपन था और आंखों में नमी तैर रही थी.

‘‘कम औन मंजरी, इस जमाने में ऐसी बातें… वह भी इतनी हाइली ऐजुकेटेड होने के बाद. तुम अपनी योग्यता के बल पर आगे बढ़ी हो. फिलौसफी की लैक्चरर के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती हैं. ऊंची जाति नीची जाति सदियों पहले की बातें हैं. अब तो ये धारणाएं बदल चुकी हैं. नई पीढ़ी इन्हें नहीं मानती…

‘‘पुरानी पीढ़ी को बदलने में ज्यादा समय लगता है. दोष देना गलत होगा उन्हें भी. मान्यताओं, रिवाजों और धर्म के नाम पर न जाने कितनी संकीर्णताएं फैली हुई हैं. पर हमें कोशिश करनी नहीं छोड़नी है. उस के लिए पहले हमें स्वयं को मजबूत करना होगा. स्वयं को हर लड़ाई के लिए तैयार करना होगा.’’

मंजरी ने पीयूष की ओर देखा. ढेर सारा प्यार उस पर उमड़ आया. सही तो कह रहा है वह… पर न जाने क्यों वही बारबार हिम्मत हार जाती है. शायद अपनी निम्न जाति की वजह से या पीयूष की उच्च जाति के कारण. वह भी ब्राह्मण कुल का होने के कारण. बेशक वह जनेऊ धारण नहीं करता. पर उस के घर वालों को अपने उच्च कुल पर अभिमान है और इस में गलत भी कुछ नहीं है.

वह भी तो निम्न जाति की होने के कारण कभीकभी कितनी हीनभावना से भर जाती है. उस के पिता खुद एक बड़े अफसर हैं और भाई भी डाक्टर है. पर फिर भी लोग मौका मिलते ही उन्हें यह याद दिलाना नहीं भूलते कि वे मायनौरिटी क्लास के हैं. उन का पढ़ालिखा होना या समाज में स्टेटस होना कोई माने नहीं रखता. दबी जबान से ही सही वे उस के परिवार के बारे में कुछ न कुछ कहने से चूकते नहीं हैं.

मंजरी ने पेड़ के तने को छुआ. काश, वह सेब का पेड़ होता तो जमाने को यह तो कह सकते थे कि सेब खाने के बाद उन दोनों के अंदर भावनाएं उमड़ीं और वे एकदूसरे में समा गए. खैर, सेब का पेड़ अगर दोनों ढूंढ़ने जाते तो बहुत वक्त लग जाता, शहर जो कंक्रीट में तबदील हो रहे हैं. उस में हरियाली की थोड़ीबहुत छटा ही बची रही, यही काफी है.

उस ने अपने विश्वास को संबल देने के लिए पीयूष के हाथों पर अपनी पकड़ और कस ली और उस की आंखों में झांका जैसे तसल्ली कर लेना चाहती हो कि वह हमेशा उस का साथ देगा.

इस समय दोनों की आंखों में प्रेम का अथाह समुद्र लहरा रहा था. उन्होंने मानों एकदूसरे को आंखों ही आंखों में कोई वचन सा दिया. अपने रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगाई और आलिंगनबद्ध हो गए. यह भी सच था कि पीयूष मंजरी को चाह कर भी आश्वस्त नहीं कर पा रहा था कि वह अपने घर वालों को मना लेगा. हां, खुद उस का हमेशा बना रहने का विश्वास जरूर दे सकता था.

मंजरी को उस के घर के बाहर छोड़ कर बोझिल मन से वह अपने घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में कई बार कार दूसरे वाहनों से टकरातेटकराते बची. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे घर में इस बारे में बताए. वह अपने मांबाबूजी को दोष नहीं दे रहा था. उस ने भी तो जब परंपराओं और आस्थाओं की गठरी का बोझ उठाए आज से 10 वर्ष पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कदम रखा था तब कहां सोचा था कि उस की जिंदगी इतनी बदल जाएगी और सड़ीगली परंपराओं की गठरी को उतार फेंकने में वह सफल हो पाएगा… शायद मंजरी से मिलने के बाद ऐसा करने की हिम्मत जुटा पाया था.

जातिभेद किसी दीवार की तरह समाज में खड़े हैं और शिक्षित वर्ग तक उस दीवार को अपनी सुलझी हुई सोच और बौद्धिकता के हथौड़े से तोड़ पाने में असमर्थ है. अपनी विवशता पर हालांकि यह वर्ग बहुत झुंझलाता भी है… पीयूष को स्वयं पर बहुत झुंझलाहट हुई.

‘‘क्या बात है बेटा, कोई परेशानी है क्या?’’ मां ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘बस ऐसे ही,’’ उस ने बात टालने की कोशिश की.

‘‘कुछ लड़कियों के फोटो तेरे कमरे में रखे हैं. देख ले.’’

‘‘मैं आप से कह चुका हूं कि मैं शादी नहीं करना चाहता,’’ पीयूष को लगा कि उस की झुंझलाहट चरम सीमा पर पहुंच रही है.

‘‘तू किसी को पसंद करता है तो बता दे,’’ बाबूजी ने सीधेसीधे सवाल फेंका. अनुभव की पैनी नजर शायद उस के दिल की बात समझ गई थी.

‘‘है तो पर आप उसे अपनाएंगे नहीं और मैं आप लोगों की मरजी के बिना अपनी गृहस्थी नहीं बसाना चाहता. मुझे लायक बनाने में आप ने कितने कष्ट उठाए हैं और मैं नहीं चाहता कि आप लोगों को दुख पहुंचे.’’

‘‘तेरे सुख और खुशी से बढ़ कर और कोई चीज हमारे लिए माने नहीं रखती है. लड़की क्या दूसरी जाति की है जो तू इतना हिचक रहा है बताने में?’’ बाबूजी ने यह बात पूछ पीयूष की मुश्किल को जैसे आसान कर दिया.

‘‘हां.’’

उस का जवाब सुन मां का चेहरा उतर गया. आंखों में आंसू तैरने लगे. बाबूजी अभी चिल्लाएंगे यह सोच कर वह अपने कमरे की ओर जाने के लिए मुड़ा ही था कि बोले, ‘‘किस जाति की?’’

‘‘बाबूजी वह बहुत पढ़ीलिखी है. लैक्चरर है और उस के घर में भी सब हाइली क्वालीफाइड हैं. जाति महत्त्व नहीं रखती, पर एकदूसरे को समझना ज्यादा जरूरी है,’’ बहुत हिम्मत कर वह बोला.

‘‘बहुत माने रखती है जाति वरना क्यों बनती ऐसी सामाजिक व्यवस्था. भारत में जाति सीमा को लांघना 2 राष्ट्रों की सीमाओं को लांघना है. अभी सुबह के अखबार में पढ़ रहा था कि पंजाब में एक युवक ने अपनी शादी के महज 1 हफ्ते बाद केवल इस कारण आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे शादी के बाद पता चला कि उस की पत्नी दलित जाति की है. उस की शादी एक बिचौलिए के माध्यम से हुई थी. इस बात का खुलासा तब हुआ जब वह अपनी ससुराल गया. दलित पत्नी पा कर वह आत्मग्लानि और अपराधबोध से इस कदर व्यथित हो गया कि ससुराल से लौट कर उस ने आत्महत्या कर ली. तुम भी कहीं प्यार के चक्कर में पड़ कर कोई गलत कदम मत उठा लेना.’’

बाबूजी की बात सुन पीयूष को अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती महसूस हुई. मंजरी ने जब यह सुना तो उदास हो गई.

पीयूष बोला, ‘‘एक आइडिया आया है. मैं अपनी कुलीग के रूप में तुम्हें उन से मिलवाता हूं. तुम से मिल कर उन्हें अवश्य ही अच्छा लगेगा. फिर देखते हैं उन का रिएक्शन. रूढि़यां हावी होती हैं या तुम्हारे संस्कार व सोच.’’

मंजरी ने मना कर दिया. वह नहीं चाहती थी कि उस का अपमान हो. उस के बाद से मंजरी अपनेआप में इतनी सिमट गई कि उस ने पीयूष से मिलना तक कम कर दिया. संडे को अपने डिप्रैशन से बाहर आने के लिए वह शौपिंग करने मौल चली गई. एक महिला जो ऐस्कलेटर पर पांव रखने की कोशिश कर रही थी, वह घबराहट में उस पर ही गिर गई. मंजरी उन के पीछे ही थी. उस ने झट से उन्हें उठाया और हाथ पकड़ कर उन्हें नीचे उतार लाई.

‘‘आप कहें तो मैं आप को घर छोड़ सकती हूं. आप की सांस भी फूल रही है.’’

‘‘बेटा, तुम्हें कष्ट तो होगा पर छोड़ दोगी तो अच्छा होगा. मुझे दमा है. मैं अकेली आती नहीं पर घर में सब इस बात का मजाक उड़ाते हैं. इसलिए चली आई.’’

घर पर मंजरी को देख पीयूष बुरी तरह चौंक गया. पर मंजरी ने उसे इशारा किया कि

वह न बताए कि वे एकदूसरे को जानते हैं. पीयूष की मां तो बस उस के गुण ही गाए जा रही थीं. बहुत जल्द ही वह उन के साथ घुलमिल गई. पीयूष की बहन ने तो फौरन नंबर भी ऐक्सचेंज कर लिए. जबतब वे व्हाट्सऐप पर चैट करने लगीं. मां ने कहा कि वह उसे घर पर आने के लिए कहे. इस तरह मंजरी के कदम उस आंगन में पड़ने लगे, जहां वह हमेशा के लिए आना चाहती थी.

पीयूष इस बात से हैरान था कि जाति को ले कर इतने कट्टर रहने वाले उस के मातापिता ने एक बार भी उस की जाति के बारे में नहीं पूछा. शायद अनुमान लगा लिया होगा कि उस जैसी लड़की उच्च कुल की ही होगी. उस के पिता व भाई के बारे में जान कर भी उन्हें तसल्ली हो गई थी.

मंजरी को लगा कि उस दिन पीयूष ने ठीक ही कहा था कि हमें कोशिश करनी नहीं छोड़नी है. उस के लिए पहले हमें स्वयं को मजबूत करना होगा. स्वयं को हर लड़ाई के लिए तैयार करना होगा. पीयूष जब उस के साथ है तो उसे भी लगातार कोशिश करते रहना होगा. मांबाबूजी का दिल जीत कर ही वह अपनी और पीयूष दोनों की लड़ाई जीत सकती है.

हालांकि जब भी वह पीयूष के घर जाती थी तो यही कोशिश करती थी कि उन की रसोई में न जाए. उसे डर था कि सचाई जानने के बाद अवश्य ही मां को लगेगा कि उस ने उन का धर्म भ्रष्ट कर दिया है. एक सकुचाहट व संकोच सदा उस पर हावी रहता था. पर दिल के किसी कोने में एक आशा जाग गई थी जिस की वजह से वह उन के बुलाने पर वहां चली जाती थी.

कई बार उस ने अपनी जाति के बारे में बताना चाहा पर पीयूष ने यह कह कर मना कर दिया कि जब मांबाबूजी तुम्हें गुणों की वजह से पसंद करने लगे हैं तो क्यों बेकार में इस बात को उठाना. सही वक्त आने पर उन्हें बता देंगे.

‘‘तुझे मंजरी कैसी लगती है?’’ एक दिन मां के मुंह से यह सुन पीयूष हैरान रह गया.

‘‘अच्छी है.’’

‘‘बस अच्छी है, अरे बहुत अच्छी है. तू कहे तो इस से तेरे रिश्ते की बात चलाऊं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो मां. पता नहीं कौन जाति की है. दलित हुई तो…’’ पीयूष ने जानबूझ कर कहा. वह उन्हें टटोलना चाह रहा था.

‘‘फालतू मत बोल… अगर हुई भी तो भी बहू बना लूंगी,’’ मां ने कहा. पर उन्हें क्या पता था कि उन का मजाक उन पर ही भारी पड़ेगा.

‘‘ठीक है फिर मैं उस से शादी करने को तैयार हूं. उस के पापा को कल ही बुला लेते हैं.’’

‘‘यानी… कहीं यह वही लड़की तो नहीं जिस से तू प्यार करता है,’’ बाबूजी सशंकित हो उठे थे.

‘‘मुझे तो मंजरी दीदी बहुत पसंद हैं मां,’’ बेटी की बात सुन मां हलके से मुसकराईं.

मंजरी नीची जाति की कैसे हो सकती है… उन से पहचानने में कैसे भूल हो गई. पर वह तो कितनी सुशील, संस्कारी और बड़ों की इज्जत करने वाली लड़की है. बहुत सारी ब्राह्मण लड़कियां देखी थीं, पर कितनी अकड़ थी. बदमिजाज… कुछ ने तो कह दिया कि शादी के बाद अलग रहेंगी. कुछ के बाप ने दहेज दे कर पीयूष को खरीदने की कोशिश की और कहा कि उसे घरजमाई बन कर रहना होगा.

‘‘क्या सोच रही हो पीयूष की मां?’’ बाबूजी के चेहरे पर तनाव की रेखाएं नहीं थीं जैसे वे इस रिश्ते को स्वीकारने की राह पर अपना पहला कदम रख चुके हों.

‘‘क्या हमारे बदलने का समय आ गया है? आखिर कब तक दलित बुद्धिजीवी अपनी

जातीय पीड़ा को सहेंगे? हमें उन्हें उन की पीड़ा से मुक्त करना ही होगा. तभी तो वे खुल कर

सांस ले पाएंगे. हमारी बिरादरी में हमारी थूथू होगी. पर बेटे की खुशी की खातिर मैं यह भी सह लूंगी.’’

पीयूष अभी तक अचंभित था. रूढि़यों को मंजरी के व्यवहार ने परास्त कर दिया था.

‘‘सोच क्या रहा है खड़ेखड़े, चल मंजरी को फोन कर और कह कि मैं उस से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘मां, तुम कितनी अच्छी हो, मैं अभी भाभी को व्हाट्सऐप पर मैसेज कर सरप्राइज देती हूं,’’ पीयूष की बहन ने चहकते हुए कहा.

वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को इस बार भी छेड़ रहे थे. उसे अपलक निहारतेनिहारते उसे चूमने का मन हो आया. पर इस बार वह रुका नहीं. उस ने उस के गालों को हलके से चूम लिया. मंजरी शरमा गई. अपनी सारी आशंकाओं को उतार फेंक वह पीयूष की बांहों में समा गई. उसे उस का प्यार व सम्मान दोनों मिल गए थे. पीयूष को लगा कि वह जैसे कोई बहुत बड़ी लड़ाई जीत गया है.

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