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Potassium & Magnesium : केला, आलू, पालक देखकर मुंह बनाना भूल जाओगे

Potassium & Magnesium

श्रीप्रकाश

शरीर के स्वास्थ्य के लिए कुछ मिनरल्स (Potassium & Magnesium) बहुत जरूरी होते हैं. विटामिन्स और कैल्शियम के बारे में औसतन लोग कुछ न कुछ जानते हैं. पोटैशियम और मैग्नीशियम भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी हैं और इन के बारे में अकसर लोगों को ज्यादा पता नहीं होता है.

पोटैशियम : पोटैशियम ऐसा मिनरल है जो शरीर की सामान्य क्रिया के लिए जरूरी है. यह मांसपेशियों के सुचारु रूप से कार्य करने में सहायक होता है. यह  सेल्स को पोषक तत्त्व प्राप्त करने में मदद करता है. यह हाई ब्लडप्रैशर यानी हाइपरटैंशन कंट्रोल करता है. शरीर में पोटैशियम लैवल मेंटेन करना हृदय के सेल्स के लिए बहुत जरूरी है.

शरीर में पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया रोग कहते हैं.

हाइपोक्लेमिया के सिम्प्टम्स : पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया  कहते हैं. साधारणतया संतुलित भोजन लेते रहने से पोटैशियम की कमी की संभावना नहीं रहती है. अस्थायी रूप से पोटैशियम  की कमी के चलते हो सकता है आप को कोई सिम्प्टम न दिखे पर लंबे समय तक इस की कमी के लक्षण आप महसूस कर सकते हैं. इस के मुख्य

लक्षण हैं– थकावट  कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज और एरिथ्मिया (असामान्य हार्ट बीट).

हाइपोक्लेमिया का कारण : शरीर के पाचनतंत्र से हो कर जब पोटैशियम शरीर से ज्यादा बाहर निकल जाता है तब इस की कमी से  हाइपोक्लेमिया  हो जाता है, जैसे दस्त, उलटी, किडनी या एड्रेनल ग्लैंड्स के ठीक से नहीं काम करने से कुछ दवा लेने पर यूरिन ज्यादा आता हो (डाइयुरेटिक), पसीना ज्यादा आना, फौलिक एसिड की कमी, अस्थमा की दवा, कब्ज की दवा और एंटीबायोटिक के सेवन से खून में कीटोन (एसिड) ज्यादा होने से, मैग्नीशियम की कमी और तंबाकू के सेवन से.

डायग्नोसिस या टैस्ट : शरीर में पोटैशियम के स्तर की जांच के लिए आमतौर पर डाक्टर ब्लड टैस्ट कराते हैं.  ब्लड में सीरम पोटैशियम कौन्सेंट्रेशन
3. 5 mmol/L – 5.1 mmol/L सामान्य माना जाता है. 3. 5 mmol/L से कम होने पर इसे  हाइपोक्लेमिया कहा जाता है और 2.5 mmol/L से कम होना घातक माना जाता है.

डाक्टर यूरिन टैस्ट भी करा सकते हैं ताकि पता लगा सकें कि यूरिन के रास्ते कितना पोटैशियम शरीर से बाहर निकल रहा है. डाक्टर आप की मैडिकल हिस्ट्री पूछेंगे कि कहीं दस्त या उलटी की शिकायत तो नहीं है. पोटैशियम का असर ब्लडप्रैशर पर भी पड़ता है जिस का गंभीर असर हृदय की रिदम पर भी पड़ता है. इसलिए डाक्टर ईसीजी भी करा सकते हैं.

उपचार : हाइपोक्लेमिया के उपचार के लिए डाक्टर पोटैशियम सप्लिमैंट्स, जो आमतौर पर टेबलेट के रूप में आता है, लेने की सलाह देते हैं. पोटैशियम की अत्यधिक कमी की स्थिति में टेबलेट से  हाइपोक्लेमिया में सुधार न होने से या  हाइपोक्लेमिया के कारण असामान्य हृदय रिदम होने की स्थिति में इस का इंजैक्शन लेना पड़ सकता है. डाक्टर ब्लड में पोटैशियम के स्तर पर नजर रखते हैं क्योंकि इस की अधिकता से हाइपोक्लेमिया होता है जो और भी खतरनाक होता है. शरीर में Potassium का एक डेलिकेट (नाजुक) लैवल मेंटेन करना पड़ता है.

कितना POTASSIUM जरूरी

14 साल या उस से बड़ी उम्र वालों को 4,700 एमजी (मिलीग्राम) प्रतिदिन पोटैशियम की आवश्यकता होती है-

6 महीने तक के बच्चे के लिए 400 एमजी.

7-12 महीने तक के बच्चे के लिए 700 एमजी.

1-3 साल तक के बच्चे के लिए  3,000  एमजी.

4-8 साल तक के बच्चे के लिए  3,800 एमजी.

9-13 साल तक के बच्चे के लिए 4,500 एमजी.

ब्रैस्ट फीडिंग महिला के लिए 5,100 एमजी पोटैशियम प्रतिदिन चाहिए. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में हाइपोक्लेमिया की संभावना ज्यादा होती है.

पोटैशियम के स्रोत : पोटैशियम प्राकृतिक रूप से हमारे खाद्य पदार्थों में मिलता है, जैसे केला, आलू, एवाकाडो, तरबूज, सनफ्लौवर बीज, पालक, किशमिश, टमाटर, औरेंज जूस आदि में.

हाइपोक्लेमिया में रिस्क : अमेरिका के नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इन्फौर्मेशन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. केल्ड केल्डसन के अनुसार, दुनिया में प्रतिवर्ष  करीब 30 लाख लोग दिल की बीमारी से मरते हैं. इन में बहुत लोग तत्काल ट्रिगर के फलस्वरूप मौत के शिकार होते हैं. हृदय के सेल्स में अशांत और असामान्य पोटैशियम लैवल भी इस ट्रिगर का कारण होता है. 7-17 फीसदी दिल के रोगियों में हाइपोक्लेमिया पाया गया है. हृदय और हाइपरटैंशन रोग से अस्पताल में भरती 20 फीसदी रोगियों में और वाटर पिल्स या डाइयुरेटिक (ब्लडप्रैशर की दवा) 3 लेने वाले 40 फीसदी रोगियों में पोटैशियम की कमी पाई गई है. इस से हृदय का रिदम अशांत होता है. हाइपोक्लेमिया में अचानक हार्ट फेल होने की संभावना दस गुना ज्यादा होती है. इस के अतिरिक्त पोटैशियम की कमी से हाइपरटैंशन, बीएमआई में कमी, दस्त, मांसपेशियों में कै्रम्प, अल्कोहल की आदत और किडनी  की बीमारी हो सकती  है.

जब शरीर में POTASSIUM अधिक हो

हाइपरक्लेमिया : शरीर में पोटैशियम की अधिकता को हाइपरक्लेमिया कहते हैं. इस के चलते हार्ट के रिदम पर प्रतिकूल असर पड़ता है और यह जानलेवा भी हो सकता है. इस के अलावा मिचली या उलटी, मांसपेशियों में कमजोरी, नसों की बीमारी-   झन  झनाहट, दम फूलने की शिकायत हो सकती है.

कारण : साधारणतया हमारी किडनी यदि सुचारु रूप से काम करती है तब अतिरिक्त पोटैशियम को यह मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल फेंकती है पर जब किडनी ठीक से काम नहीं करती तब ब्लड में पोटैशियम लैवल बढ़ जाता है और  हाइपरक्लेमिया हो जाता है. एड्रेनल गलनाड में एल्डेस्टेरौन नामक एक हार्मोन होता है जो किडनी को पोटैशियम हटाने का संकेत देता है.

इस के अतिरिक्त भोजन में पोटैशियम की मात्रा अधिक होने से  हाइपरक्लेमिया हो सकता है. हाइपरक्लेमिया के अन्य कारण हैं-

हेमोलिसिस- रेड ब्लड सेल्स का ब्रेकडाउन (विघटन).

रैब्डोमायोलिसिस- मसल टिश्यू का ब्रेक डाउन और जलने के कारण टिश्यू की समस्या.

अनियंत्रित डायबिटीज- डायबिटीज का नियंत्रण में न होना.

एचआईवी- एचआईवी बीमारी का होना.

किडनी और ब्लडप्रैशर आदि रोगों की कुछ दवाएं, एनएसएआईडी इन्फ्लेमेशन की दवा, कुछ एंटीबायोटिक्स और  हर्बल सप्लीमैंट्स जेनसिंग आदि के चलते भी पोटैशियम की मात्रा अधिक हो सकती है जिस से हाइपरक्लेमिया हो सकता है.

सिम्प्टम्स : ब्रेन सेल्स को भी पोटैशियम की जरूरत होती है. इस के द्वारा ब्रेन सेल्स आपस में संवाद करते हैं और दूरस्थ सेल्स से भी संवाद करते हैं. पोटैशियम का स्तर अनियंत्रित होने से हार्मोन असंतुलन, लुपस, किडनी की बीमारी होती है.

डायग्नोसिस या टैस्ट : शरीर में पोटैशियम के स्तर की जांच के लिए आमतौर पर डाक्टर ब्लड टैस्ट कराते हैं.  ब्लड में सीरम पोटैशियम कौन्सेंट्रेशन  3. 5 mmol/L – 5.1 mmol/L सामान्य माना जाता है. 5.1 mmol/L से ज्यादा होने पर इसे हाइपरक्लेमिया कहा जाता है  और 6.5 से ज्यादा खतरनाक व जानलेवा हो सकता है.

डाक्टर यूरिन टैस्ट भी करा सकते हैं ताकि पता लगा सकें कि पेशाब के रास्ते पोटैशियम शरीर से बाहर जा रहा है या नहीं. डाक्टर आप की मैडिकल हिस्ट्री पूछेंगे और आप के हृदय की रिदम चैक कर सकते हैं. पोटैशियम का असर ब्लडप्रैशर पर भी पड़ता है जिस का गंभीर असर हृदय पर पड़ता है. इसलिए डाक्टर ईसीजी भी करा सकते हैं हालांकि  हाइपरक्लेमिया के सभी मरीजों में रिदम पर असर होना जरूरी नहीं है.

उपचार : हाइपरक्लेमिया  के उपचार में डाक्टर लो पोटैशियम भोजन की सलाह दे सकते हैं, आप की कोई दवा बंद कर सकते हैं या दवाओं में कुछ बदलाव कर सकते हैं, वाटर पिल्स (डाइयुरेटिक) दे सकते हैं ताकि एक्स्ट्रा पोटैशियम पेशाब से बाहर निकल जाए, किडनी के इलाज की दवा या डायलिसिस की सलाह, पोटैशियम बाइंडर दवाएं दे सकते हैं. पोटैशियम लैवल अत्यधिक होने पर  इमरजैंसी की स्थिति में इंजैक्शन द्वारा दवा दी जा सकती है.

हाइपरक्लेमिया में रिस्क : हाइपरक्लेमिया के चलते हृदय रिदम में गंभीर बदलाव आने से जान का खतरा होता है. इस के चलते अत्यधिक कमजोरी हो सकती है और लकवा मार सकता है.

मैग्नीशियम (Magnesium)

हमारे शरीर को समुचित मात्रा में मैग्नीशियम भी आवश्यक है. यह हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है. इस के अतिरिक्त यह हृदय, मांसपेशियों और नसों के लिए भी जरूरी है. यह शरीर की ऊर्जा को कंट्रोल करता है और साथ में ब्लडशुगर, ब्लडप्रैशर आदि को मेंटेन करने में मदद करता है. मैग्नीशियम शरीर के लिए एक इलैक्ट्रोलाइट है जो खून में रह कर शरीर में बिजली संचालन करता है.

साधारणतया संतुलित भोजन लेते रहने से मैग्नीशियम की कमी की संभावना नहीं रहती है. अस्थायी रूप से मैग्नीशियम की कमी के चलते हो सकता है आप को कोई सिम्प्टम न दिखे पर लंबे समय तक इस की कमी के लक्षण आप महसूस कर सकते हैं. इस का बहुत कम या बहुत ज्यादा होना दोनों हानिकारक है.

Magnesium की कमी का कारण : स्वस्थ मनुष्य के ब्लड में मैग्नीशियम की उचित मात्रा मेंटेन रहती है. हमारे किडनी और पाचनतंत्र दोनों मिल कर खुद निश्चित करते हैं कि भोजन से कितना मैग्नीशियम रखना है और कितना मूत्र से बाहर निकाल फेंकना है. थाइरायड की समस्या, टाइप 2 डायबिटीज, ज्यादा शराब पीने से, किडनी की बीमारी होने से, कब्ज आदि की कुछ दवाओं के असर से और क्रौनिक पाचनतंत्र की बीमारी से शरीर मैग्नीशियम एब्जौर्ब नहीं कर पाता है और इस की कमी हो सकती है.

Magnesium टैस्ट: डाक्टर आप के स्वास्थ्य की हिस्ट्री जानना चाहेंगे, जैसे डायबिटीज, थाइरायड या प्रैग्नैंसी की प्रौब्लम आदि लो मैग्नीशियम के संकेत हो सकते हैं. इन के अतिरिक्त हाल में हुई किसी सर्जरी से भी मैग्नीशियम की कमी हो सकती है. मैग्नीशियम का स्तर बढ़ने की संभावना कम होती है. किडनी खराब रहने से और कुछ दवाओं के इस्तेमाल से ऐसा हो सकता है. यह बहुत खतरनाक है और इस से हार्ट फेल्योर हो सकता है.

मैग्नीशियम लैवल की जांच के लिए आमतौर पर ब्लड और यूरिन टैस्ट किए जाते हैं. ब्लड में सीरम मैग्नीशियम कौन्सैन्ट्रेशन लैवल 1.7-2.3 एमजी सामान्य होता है. 1.2 एमजी लैवल बहुत खतरनाक होता है.

ब्लड टैस्ट से मैग्नीशियम की सही जानकारी नहीं भी मिल सकती क्योंकि ज्यादातर मैग्नीशियम हड्डियों में स्टोर रहता है. इस के अलावा रैड ब्लड सैल्स में मैग्नीशियम टैस्ट, सैल्स में मैग्नीशियम लैवल का टैस्ट, ब्लड में मैग्नीशियम दे कर फिर यूरिन टैस्ट करना ताकि यूरिन से निकलने वाले मैग्नीशियम का पता चले.

लो मैग्नीशियम के सिंप्टम्स : पाचन शक्ति में कमी, अनिद्रा, मिचली या उलटी और कमजोरी. इस की ज्यादा कमी से मसल कै्रम्प, सीजर या ट्रेमर (शरीर का अनियंत्रित शेक करना), सिरदर्द, कमजोर हड्डी, औस्टियोपोरोसिस और हृदय गति रुकने से अचानक मौत भी हो सकती है. इस के चलते पोटैशियम और कैल्शियम की कमी भी हो सकती है.

Magnesium की प्रतिदिन जरूरत

1-3 साल  80 एमजी.

4-8  साल  130 एमजी.

9-13 साल 240 एमजी.

महिला

14-18  साल 360 एमजी.

19 साल से ज्यादा 310-320 एमजी.

प्रैग्नैंट और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को ज्यादा मैग्नीशियम की जरूरत होती है, यह उन की उम्र पर भी निर्भर करता है. प्रैग्नैंसी में 350-400 एमजी और ब्रेस्टफीडिंग में 310-360 एमजी की जरूरत होती है.

पुरुष

14-18  साल 410 एमजी.

19-30 साल से ज्यादा 400 एमजी.

31 साल से ज्यादा – 420 एमजी.

टैस्ट कराने के बाद डाक्टर सही उपचार की सलाह देंगे.

हाइपोमैगनेसेमिया या लो मैग्नीशियम का उपचार : लो मैग्नीशियम में नैचुरल खाद्य सामग्रियों से इस की भरपाई की जा सकती है- केला, आलू, पीनट बटर, बादाम, काजू आदि नट्स, बीन्स, पालक, होल ग्रेन फूड, दूध, बौटल्ड वाटर, मछली, ब्रेकफास्ट सीरियल आदि.

मैग्नीशियम के ओवरडोज से दस्त, मिचली, सिरदर्द, लो ब्लडप्रैशर, मसल्स की कमजोरी, थकावट, पेट फूलना जानलेवा हो सकता है. इस से हार्ट फेल, लकवा या कोमा में जाने की आशंका भी रहती है.

हाइपरमैगनेसेमिया या Magnesium ज्यादा होने से उपचार : 2.6 एमजी या अधिक मैग्नीशियम सीरम कौन्सैन्ट्रेशन होना हाइपरमैगनेसेमिया माना जाता है. इस की संभावना बहुत कम होती है पर कभी  मैग्नीशियम का ओवरडोज लेने से ऐसी स्थिति हो सकती है. 7-12 एमजी या अधिक होना बहुत खतरनाक होता है. इस में हार्ट, लंग्स डैमेज और लकवा हो सकता है. ऐसे में सांस लेने के उपकरण की सहायता लेनी पड़ सकती है, कैल्शियम ग्लुकोनेट या कैल्शियम क्लोराइड का इंजैक्शन, डायलेसिस या स्टमक पंपिंग (गैस्ट्रिक लावेज) किया जा सकता है. मामूली ओवरडोज में कब्ज और एसिडिटी की दवा व मैग्नीशियम सप्लीमैंट, यदि आप ले रहे हैं तो बंद करना पड़ता है.

 

 

Hindi Kahaniyan : प्रेम की सीमा

Hindi Kahaniyan : वे नए शहर में आए हैं. निशा खुश दिख रही है. कारण एक आवासीय सोसायटी में उन्हें एक छोटा सा फ्लैट भी जल्दी मिल गया था. निशा और पीर मोहम्मद पहले दिल्ली में रहते थे, जहां पीर एक छोटे से कारखाने में पार्टटाइम अकाउंटैंट की नौकरी में था. इसी तरह वह 1-2 और दुकानों में अकाउंट्स का काम देखता था. लेकिन कोरोनाकाल में वह काफी परेशानियों से गुजरा था. पीर मोहम्मद ने भी उस दौरान व्हाट्सऐप ग्रुप बना कर कुछ जरूरतमंदों की सहायता की थी. लोगों को राशन दिलाने में भी लगा रहा, लेकिन कोरोना का दूसरा वर्ष अप्रैल माह और भी भयावह था.

वजीर ए आजम के भाषण से मुल्क में इतनी आत्मनिर्भरता फैल चुकी थी, जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी रक्षा स्वयं करता दिखा, जहां अपनी जान की रक्षा स्वयं के कंधों पर थी. लोगों की मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा था. कोरोना रोकथाम का पहले साल का लौकडाउन कम भयावह न था. सड़कों पर लोग अपने परिवार के साथ मीलों पैदल चल रह रहे थे. सांसद, विधायक, पार्षद सब नदारद दिखे थे. तब पीर मोहम्मद ने अपने मित्र पैगंबर अली से कहा था,”भाई साहब, बस स्टैंड, बिजली के खंभों, चौराहों पर जो आएदिन बड़ेबड़े फ्लैक्स लगा कर लोगों को ईद, बकरीद, दीवाली, होली, रक्षाबंधन, क्रिसमस, बुधपूर्णिमा, डा.अंबेडकर जयंती की मुबारकबाद देते थे आखिर अब वे सभी कहां चले गए? मंदिर और मसजिद के नाम पर चंदा लेने वाले नहीं दिखते, जो सुबहसुबह गलियों में मंदिर निर्माण के लिए चंदा इक्कठा करते घूमते थे? ऐसे जुझारू नेता और स्वयंसेवक सामाजिक कार्यकर्ता आखिर कहां हैं इस वक्त?”

तब पैगंबर अली ने कहा था, “भाई, लगता है, सब कोरोना वायरस से निबट गए.”

मुल्क में औक्सीजन, बैड, दवाइयों के कारण लोग मर रहे थे, जिस से श्मशान और कब्रिस्तान में लंबीलंबी लाइनें लग रही थीं. हालात यह था कि श्मशान में अधजली बौडी पड़ी रहती थीं क्योंकि लोगों के पास साधन न थे, न थीं लकड़ियां. ऐसी स्थितियां लोगों को विचलित कर देती थीं. बहुतेरे मृत शरीर गंगा नदी के रेत में दफन दिख रहे थे जिन्हें जानवर खा रहे थे. बहुत भयानक मंजर. ऐसी खबरें देख कर निशा बहुत दुखी होती थी. घबराहट होता था उस के मन में.
पीर मोहम्मद जब भी फोन उठाते कोई न कोई अप्रिय घटना उसे व्हाट्सऐप से मिल ही जाती थी. अब तो उसे अपना फोन उठाने में भी डर लगने लगा था.

अप्रैल में ही पीर मोहम्मद के बहुत करीब फादर जौय का इंतकाल हो गया था. पीर मोहम्मद को उन से एक लगाव सा था. जब पीर मोहम्मद दिल्ली में था तो फादर जौय ने उस के बच्चे के स्कूल ऐडमिशन में उस की मदद की थी. फादर जौय की कोरोना से मौत की खबर सुन कर पीर मोहम्मद बहुत रोया था.

अप्रैल तक पूरे मुल्क में करोना से 2 लाख से ज्यादा लोग मर चुके थे. मई 2022 में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा कि भारत में कोरोना से 47 लाख लोगों की मौत हुई है.

पीर मोहम्मद निशा से कहता, “समाज कितना असंवेदनशील हो गया है, तभी तो हम इन मौतों को रुपए की गिनती से देख रहे हैं. ₹2 लाख कम हो सकते हैं, लेकिन 2 लाख लोगों का मर जाना बहुत भयावह है. इन दोनों में बहुत अंतर है. कोरोना बहुत बड़ी त्रासदी बना. इस से लड़ने में हमारा सिस्टम पूरी तरह नाकाम दिख रहा है. क्या इस सिस्टम की जवाबदेही नहीं है? इस सरकार की जवाबदेही नहीं है?

जब सरकार पूरे मुल्क में लौकडाउन लगा सकती है, तो संसाधनों की उपलब्धता क्यों नहीं कर सकती? कोरोना ने दिखाया है कि हमारी सरकार और हम लोगों की नैतिकता बिलकुल समाप्त हो चुकी है. एक सांसद जिन को 1 महीने में लगभग ₹2 लाख से अधिक वेतन मिलता है, तो आखिर किसलिए? दूसरी तरफ सत्ता आंदोलनकारियों को जेलों में ठूंस चुकी थी. सरकार तानाशाही तरीके से कोरोनाकाल में ही 3 नए कृषि कानून को ले आई थी. कोरोनाकाल में ही किसान आंदोलन में सक्रिय हो गए, क्योंकि यह उन के लिए जीने और मरने की बात थी.

भारतीय समाज से लोककल्याणकारी व्यवस्था का लगभग अंत होता सा दिखा. यह तो नवउदारवाद है जहां सरकारी नीति में पूंजीपतियों जैसी सोच हावी हो जाना. जहां सरकार कहे कि हम ने मुफ्त में कोरोना के टीके लगाए हैं.

निशा और पीर मोहम्मद के लिए यह शहर तो नया था. आसपास के घरों की कुछ महिलाओं से निशा की हायहैलो तो हो ही चुकी है जबकि समाज में एक सोशल डिस्टैंस नामक तत्त्व स्थापित हो चुका था. वैसे सामाजिक दूरियां तो पहले भी थीं पर उन में कुछ कानूनी अंकुश था. लेकिन अब तो स्वस्थ्यतौर पर लोग एकदूसरे से दूरी रख सकते हैं. यहां पीर मोहम्मद को कुछ बेहतर नौकरी मिल गई थी. बेचारे ने बड़ी मेहनत की थी, लेकिन उम्र तेजी से भागता है. उस ने तो सरकारी नौकरी प्राप्त करने की बहुत दिनों तक आशा की थी. इस नए शहर में उन्होंने अपने बेटे बबलू का ऐडमिशन वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में करा दिया था.

निशा यहां खुश इसलिए भी थी क्योंकि लगभग 8 वर्षों बाद उसे अपना एक फ्लैट मिला था जिसे वह अपना तो कह ही सकती थी. वैसे, वह किराए पर भी खुश थी, लेकिन अपने स्वयं के फ्लैट की बात ही अलग होती है. निशा किराए के घर को भी चमका कर रखती थी. पहले वाली मकानमालकिन कहती कि अरे, पीर मोहम्मद, तेरी बींदणी बहुत अच्छी है. साफसफाई पर ज्यादा ध्यान देती है. निशा पीर मोहम्मद के प्रति एक समर्पित और शिक्षित गृहिणी थी. शादी के 9 वर्ष होने वाले थे, लेकिन निशा के चेहरे की त्वचा आज भी 24 की ही लगती थी. अब तो उस का बेटा बबलू भी 7 वर्ष का हो चुका है.

चूंकि अब वे नए शहर में आए हैं, पीर मोहम्मद की नौकरी पहले से कुछ बेहतर जरूर थी. निशा को पार्क और पेड़पौधे बड़े प्रिय लगते. वह अकसर सोचती थी कि अपना घर होने पर बागवानी करेगी. लेकिन उस ने अपने नए फ्लैट को काफी अच्छे से सजा दिया था. अब नियमित तो नहीं, लेकिन एक रोज छोड़ कर सोसायटी से कुछ दूर एक बहुत बड़े सिटी पार्क में बबलू को ले कर जाती. बबलू खुश होता. उस को दौड़नेकूदने का एक बड़ा सा स्पेस मिल जाता था. निशा के साथ कभीकभी सोसायटी की कुछ महिलाएं भी साथ जाती थीं. लेकिन उन में एक सामाजिक दूरी रहती थी. एक तो कोरोना और दूसरा धार्मिक और जातीयता का क्योंकि एक महिला ने निशा से उस के धर्म के बारे में पूछा था, तब निशा ने कहा था हम मुसलमान हैं.

एक दूसरी मुसलिम महिला ने उस से उस की धार्मिक जाति भी पूछी, तब निशा ने उसे बताया था कि हम ‘शाह’ हैं, तब उस ने उसे कमतर दृष्टि से देखा था. निशा सोचती है कि हिंदू वर्ग में मुसलमानों के नाम से भेदभाव है. लेकिन मुसलिम समुदाय में भी क्या जाति को ले कर भेद नहीं है? निशा सोचती है कि क्या पसमांदा मुसलमान दोहरी मार के शिकार नहीं हैं?

उस दिन से सोसाइटी में और भी सोशल डिस्टैंस बढ़ गया था. वैसे, कोई न कोई महिला पार्क में घूमते जाते वक्त दिख ही जाती. कुछ का साथ न सही, दूसरी तरफ कोरोनाकाल में पार्क में भीड़ भी कम ही दिखती थी.

एक रोज निशा बबलू को ले कर पार्क गई थी. बबलू अन्य बच्चों के साथ लुकाछिपी खेलने लगा. कुछ बच्चों की मांएं आवश्यक काम होने की वजह से घर चली गईं. लेकिन बबलू घर चलने को तैयार नहीं था. वह कहता, “मम्मी, खेलो न…”

निशा ने कहा, “ठीक है, छिप जाओ.” इस तरह वह खेलने लगी.

जब निशा की दोबारा बारी आई और वह बबलू को खोजने लगी, तो पता नहीं कहां जा कर छिप गया, मिल ही नहीं रहा था.

बबलू कहां हो…बबलू…बबलू… लेकिन कहीं से कोई आवाज ही नहीं आई. शाम ढलने लगी थी. निशा ने देखा कि बगल में एक पार्क और है, जो कुछ छोटा है और जिस में बंदर, शेर, हिरन, भालू की आकृति भी बनी हुई थी. निशा सोचने लगी कि क्या पता उस के अंदर तो नहीं चला गया है. निशा ने उस छोटे पार्क में जा कर आवाज लगाई “बबलू… बबलू…” लेकिन कुछ पता नहीं.

अब उसे बहुत घबराहट होने लगी थी. सोचने लगी कि पीर मोहम्मद को फोन करूं या न करूं. पीर मोहम्मद तो काफी गुस्सा होंगे और वह रोने लगी क्योंकि पार्क भी खाली हो रहा था. वैसे ही उस में कम लोग थे. पार्क में सन्नाटा पसर रहा था जहां कुछ देर पहले कुछ शोरगुल और बच्चों की किलकारियां वातावरण में गूंज रही थीं, वहीं शाम ढलने को थी. लाइटें कुछ कुछ दूरी पर थीं. एक बड़ी ऊंची लाइट भी थी पर पार्क में सन्नाटा पसर गया था.

निशा ने सब जानवरों की आकृतियों के पास जा कर देखा, लेकिन बबलू नहीं मिला. अब वह रोने लगी. तभी पीछे से किसी आदमी ने आवाज दी कि क्या हुआ मैडम? निशा ने उसे बताया कि मैं अपने बेटे बबलू को खोज रही हूं, जो उस बड़े पार्क में खेल रहा था, मिल ही नहीं रहा है.

उस आदमी ने कहा,”आप उसे वहीं खोजें. बच्चा बाहर तो नहीं गया होगा.”

वह निशा के साथ बड़े पार्क में गया. निशा ने देखा कि बबलू बेंच पर बैठा रो रहा है. उधर से एक सुरक्षाकर्मी भी आता दिखा. निशा बबलू को देख कर जोरजोर से रोने लगी थी. उस ने उसे चूमा और सीने से लगा लिया था,”कहां चला गया था?”

बबलू ने कहा, “मैं तो यहीं था,” वह भी हिचकियां लेले कर रो रहा था.

“मैं तो हाइड ऐंड सिक खेल रह था,” बबलू पता नहीं क्यों अकेले में बातें किया करता है. निशा अकसर यह बात पीर मोहम्मद से पूछती थी. बबलू ने उसी पार्क में एक कुआं दिखाया जो लगभग 4 फुट ऊंचे ईंटों से घेरा गया था और लोहे के ग्रिल से ढंका हुआ था ताकि कोई बच्चा उस में न गिर जाए और न कोई उस पर चढ़ पाए. बबलू उस कुएं के पीछे छिप गया था.

निशा ने कहा,”बेटा, ऐसा नहीं करते. अकेले बच्चों को राक्षस ले जाता है. जब मम्मी आवाज लगा रही थी तो क्या आप ने सुना नहीं?”

“नहीं मम्मी, मैं तो हाइड ऐंड सिक खेल रहा था.”

इस के बाद निशा बबलू को ले कर पार्क से बाहर आई. साथ में वह आदमी भी आया था. उस की उम्र लगभग 40 की होगी. निशा ने उस से कहा,”आप का एहसान है, मुझे तो उस समय कुछ समझ ही नहीं आ रहा था आखिर मैं करूं तो क्या? एक तो नया शहर है. पता नहीं क्या उलटासीधा दिमाग में घूमने लगा था.”

व्यक्ति ने कहा, “आप नए हैं यहां?”

“जी…” निशा ने उसे बताया कि वह सैक्टर-बी में नई बनी सोसायटी में रहती है.

निशा ने उसे अपना फोन नंबर भी दिया. वह कुछ आगे बढ़ गई तभी उसे याद आया कि अरे, मैं ने तो उन का नाम भी नहीं पूछा.

उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वह आदमी जा रहा था. उस ने आवाज लगाई और जब उस ने देखा तो निशा ने उस को हाथ हिलाया. वह ज्यादा दूर नहीं गया था. वह उस के पास आया तो निशा बोली,”सौरी, मैं ने तो आप का नाम ही नहीं पूछा, क्या नाम है आप का?”

“सरफराज खान.”

पीर मोहम्मद घर पहुंच चुका था. वह निशा पर कोई पाबंदी नहीं चाहता था. दूसरी बात यह भी थी कि वह घर से ज्यादा निकलती भी नहीं थी. दिल्ली शहर में जब वे रहते थे तो वहां उन के कुछ रिश्तेदार भी रहते थे. अगर निशा उन के घर जाती तो जाने से पहले वह पीर मोहम्मद को बता देती थी. औफिस से आने के बाद पीर मोहम्मद अगर सिंक में किचन के जूठे बरतन देखता तो उसे साफ कर देता था. चाय भी बना कर पी लेता था. आज जब निशा नहीं आई थी तो वह समझ गया था कि कुछ काम होगा उसे, क्योंकि निशा ने उन्हें बता दिया था कि वह बबलू को पार्क में ले जा रही है. निशा एक जिम्मेदार औरत है.

दरअसल, वह अपनी उम्र से ज्यादा समझदार हो गई थी. शादी कर के आई तो उस के कम खर्चे को ले कर पीर मोहम्मद अकसर दुखी भी हो जाता था. जब कभी दोनों बाजार जाते तो वह अपने लिए कुछ न खरीदती. पीर मोहम्मद उसे बारबार कहता कि कुछ तो खरीद लो, लेकिन वह नहीं खरीदती. पीर मोहम्मद को अंदर से रोने जैसा भाव हो जाता था.

निशा ने उसे देख कर कहा,”कब आए?”

“थोड़ी देर हुआ है. क्यों बबलू, आज तो मजा आया होगा?”

निशा ने कहा, “आप ने कुछ लिया?”

“हां, चाय बनाई थी, लेकिन तुम तो जानती हो कि तुम्हारे हाथ की चाय पीए बगैर लगता ही नहीं है कि चाय पी है.”

निशा और पीर मोहम्मद का विवाह अरैंज्ड से लव मैरिज बन गया था. जब दोनों की शादी की बात चली तो दोनों ने एकदूसरे से मिले बगैर ही शादी कर ली. पीर मोहम्मद और निशा का एकदूसरे से फोन पर बातचीत से ही बहुत लगाव हो गया था. इतना लगाव कि उन्होंने एकदूसरे को देखना भी मुनासिब नहीं समझा था. पीर मोहम्मद के साथ रहतेरहते निशा के सालों गुजर गए थे. इन वर्षों में निशा ने पीर मोहम्मद से कुछ डिमांड न की, क्योंकि वह पीर मोहम्मद की माली हालात को अच्छी तरह समझती थी. दूसरी तरफ वह बहुत संकोची थी. उसे लगता कि कोई उस बात को बोल न दे. कोई ताना न मार दे. वह किसी बात को ले कर गंभीर हो जाती है. वह किसी भी बात को बहुत जल्दी दिल पर लगा लेती. बहुत संवेदनशील रहती थी वह.
साल 2 साल में कभी कपड़े खरीद लिए नहीं तो कोई डिमांड नहीं. कहीं घूमना भी नहीं जाना होता.

निशा को याद है जब उस की शादी हुई थी, तो पीर मोहम्मद ने कहा था कि वह उसे आगरा ले कर जाएगा, लेकिन उस के पास इतने पैसे ही नहीं हुए कि ले कर जाए. 3 महीने बाद वह अपने मायके चली गई थी. जब वापस आई तो 1 साल के बाद पीर मोहम्मद उसे घुमाने ले गया था. उस समय निशा 2 महीने से पेट से थी. पीर मोहम्मद दहेज तो नहीं लेना चाहता था, लेकिन सामाजिक रूढ़ियों में वह दवाब में आ गया था. उस के अंदर भी कुछ दहेज को ले कर एक लालच समा गया था था फिर भी अपनी तरफ से कुछ भी डिमांड नहीं कर सका. लेकिन शादी के बाद उस ने निशा के मातापिता को सरेआम बेइज्जत किया, पारिवारिक व सामाजिक रूढ़ियों के दबाव में क्योंकि कोई कितना भी आदर्शवादी बने, लेकिन इस व्यवस्था से निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसा नहीं है कि लोग नहीं निकले हैं. पीर मोहम्मद परिवर्तनवादी प्रक्रिया में जरूर था. सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस ने कुछ मांगा भी नहीं था, लेकिन घर वालों की तानाकशी के प्रभाव में आ ही गया था. लेकिन वह एक अच्छा इंसान है जो केयर तो करता है लेकिन उस में व्यक्ति को पहचानने की समझ नहीं. वह निशा से कहता कि किसी चीज की आवश्यकता है तो उसे कह दे. लेकिन निशा कहती कि जैसे मैं आप की दिल की बात समझ जाती हूं तो आप क्यों नहीं समझ पाते? यह दोनों का बहुत बड़ा विरोधाभाष लगता है.

शादी के बाद बाद वे 2-3 बार ही लोकल घूमने गए थे. इतने सालों में वे पीर मोहम्मद के साथ 2 बार ही सिनेमा देखने गई थी. लेकिन निशा पीर मोहम्मद को बहुत प्यार करती थी जबकि पीर मोहम्मद उस से उतना प्यार नहीं करता था. लेकिन वह उस के बगैर रह भी नहीं सकता था. जब निशा उस से नाराज हो जाती या बात करना बंद कर देती तब पीर मोहम्मद बैचन हो जाता.

प्यार बिलकुल अंधा होता है, जो व्यक्ति उस के अंदर उस में समाहित हो जाता है उस से निकलना एक सच्चे और संवेदनशील व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता है. शादी से पहले एक बार फोन पर पीर मोहम्मद ने निशा से कहा था, “इस बार जब तुम्हारे पापामम्मी आए तो अपना फोटो जरूर भेज देना.”

लेकिन जब उस के मम्मीपापा आए, तो फोटो नहीं ले कर आए थे. इस पर पीर मोहम्मद ने निशा से अपनी नाराजगी जाहिर की थी. सच्चा प्यार वही कर सकता है, जो संवेदनशील है. देश, अपने और समाज के प्रति इस के विपरीत कोई नहीं. प्यार किसी की जान नहीं लेता. प्यार न ही किसी के शरीर का भूखा होता है. प्यार तो समर्पण है एकदूसरे के लिए. प्यार किसी के प्रति इर्ष्या भी नहीं है. अगर कोई किसी को प्यार करता तो वह उस को दुख नहीं दे सकता. न उस को हानि पहुंचा सकता है. प्यार किसी का रूपरंग भी नहीं देखता है, लेकिन इस को जीवन में ढाल लेना ही जीवन को समझ लेना होता है. इसी प्रकार समाज और देश है. इस के प्रति सच्चा समर्पण किसी व्यक्ति को किसी भी स्तर से दुखी न करना है.

लेकिन जब शादी में पीर मोहम्मद ने निशा को पहली बार देखा तो उसे लगा कि कैसी लड़की से शादी हो रही है, इस के तो सिर के बाल झङ गए हैं. निशा अपने बालों को सामने से ढंक कर रखती थी, जोकि उस पर बहुत भद्दा लगता था. शुरू में निशा में पीर मोहम्मद को कुछ विशेष आकर्षण नहीं दिखा था. लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि शादी हो चुकी थी. अब वह उस के बंधन में बंध चुका था, अगर वह उस को पहले देख लेता तो शायद शादी न करता. लेकिन वह उस से बेहद प्रेम करने लगा था, निशा उस से ज्यादा प्रेम करती थी.

पीर मोहम्मद को स्त्रियों के घने बाल बहुत अच्छे लगते थे. अपनी शादी के बाद वह सोचता है चि क्या उपाय करें, जिस से निशा के बाल घने हो जाएं. तब वस बाजार से अपनी हैसियत के अनुसार बाल घने और गंजापन दूर करने के लिए तरहतरह के तेल खरीद कर लाने लगा. उस के सिर पर मलिश भी करता. वह मालिश करता तो निशा को बुरा लगता था. लेकिन पीर मोहम्मद ने उसे बता दिया था कि उसे घने बाल अच्छे लगते हैं और छोटे बौब कट जैसे.

एक बात और थी कि पीर मोहम्मद भी कोई बहुत विशेष न था. लेकिन समाज हमेशा सुंदर बहू की कामना करता है चाहे लड़का कैसा भी हो. लेकिन निशा दब्बू लड़की नहीं थी. यह चाहत तो पीर मोहम्मद में थी. पर निशा सुंदर थी. दूसरी बात यह भी थी कि निशा उसे बहुत खराखरा सुना भी देती थी, उस के फुजूलखर्ची जोकि वह नहीं करता था लेकिन अनावश्यक कोई सामान मंगा ले आना. अपने खर्चे को ताक पर रख कर दूसरों को दे देना. पीर मोहम्मद दिखावटी भी था.

एक दिन निशा ने उस से कहा,”तुम्हारे साथ इतने वर्ष हो गए कभी कुछ डिमांड न की. क्या तुम बच्चे की ख्वाहिश भी पूरी नहीं कर सकते हो?”

लेकिन अब दोनों की स्थितियां बदल चुकी थीं. अब पीर मोहम्मद के पास पहले से बेहतर नौकरी थी. पीर अब 40 का हो गया था और निशा 34 की, लेकिन सचाई तो यह भी थी कि निशा ने उस के साथ बहुत समझौता किया था. पीर मोहम्मद एक अच्छा इंसान तो था लेकिन उस में शुरूशुरू में मेल ईगो भी था, कुछ घमंडी भी, जबकि उस के पास कुछ न था. पर उस ने अपने मेल ईगो धीरेधीरे समाप्त कर लिया.

निशा जब पार्क से आई, तो बबलू को ले कर बाथरूम में चली गई थी, क्योंकि भारत में जब से कोरोना फैला, लोगों में एक दूरी सी बन गई. अब सोशल डिस्टैंस ज्यादा ही हो गया है. हाथ धोना, मुंह धोना, कपड़े बदलना… खासकर बाहर से आने के बाद तो यह एक नियमित दिनचर्या है. निशा सोचती कि क्या यह सामाजिक दूरी पहले कम थी, जो कोरोना की आड़ में और ज्यादा हुई है? मुसलमानों से मिलनेजुलने में खासतौर पर शहरी वर्ग में एक संशय पहले ही था जो अब ज्यादा बढ़ गया है. सीएए और एनसीआर के विरोध के बाद खासतौर पर मुसलिम मोहल्लों को मुल्क विरोधी गतिविधियों के तौर पर जानना कुछ लोगों की मनोस्थिति थी जबकि कोरोना को रोकने का उपाय सरकार ढूंढ़ नहीं पा रही थी.

जल्दीजल्दी बबलू के हाथमुंह धो कर बाथरूम से निशा ने उसे बाहर भेज दिया था और पीर मोहम्मद ने उसे दूसरे कपड़े पहना दिए थे. अब बबलू उस के साथ खेलने लगा था.

कुछ देर के बाद निशा पीर मोहम्मद के लिए चाय ले कर आई. वह बबलू के साथ खेल रहा था. बबलू को दूध और कुछ बिस्कुट दिए थे. दोनों चाय पीने लगे, तब निशा ने पीर मोहम्मद को पार्क वाली घटना बताई कि बबलू कैसे गुम हो गया था, गुम क्या उस की शरारत थी.

एक आदमी ने मदद की, सहयोग किया खोजने में. इस पर पीर मोहम्मद गुस्सा हुआ, लेकिन जल्दी ही शांत हो गया क्योंकि वह जानता था कि उस का गुस्सा निशा के सामने नहीं चल सकता. चलेगा तो उसे ही सौरी बोलना पड़ेगा नहीं तो निशा गुमशुम हो जाएगी. घर का सब काम करेगी लेकिन उस से पहले जैसा व्यवहार नहीं करेगी. निशा ने अपने को पहले से बहुत बदल लिया है फिर पीर मोहम्मद उस को समझ ही चुका था.

उस ने कहा “देखो यार, नया शहर है, हम किसी को ज्यादा जानते नहीं हैं. तुम ने मुझे फोन क्यों नहीं किया?”

निशा ने कहा, “मैं काफी डर गई थी और कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.”

“चलो, कोई बात नहीं, अब खुश हो जाओ. क्या नाम था उस आदमी का?”

“सरफराज खान….”

“छुट्टी वाले दिन उस को खाने पर बुलाना. मेरे पास तो उस का फोन नंबर भी नहीं है,” पीर मोहम्मद ने कहा.

2 दिन के बाद सरफराज ने निशा को फोन किया और मिलने की इच्छा जाहिर की. निशा संकोच करते हुए उसे टाल न सकी, क्योंकि उस दिन का एहसान था. निशा ने उसे अगले दिन मिलने की बात कही. कहा कि वह सुबह बच्चे को स्कूल वैन तक छोड़ने आती है, उस के बाद मिलेगी. क्योंकि वह भी सैक्टर-बी में ही रहता था. निशा बबलू को छोड़ने के बाद उस से मिली. सरफराज बहुत खुश हुआ और वह उस के लिए चाय बना कर भी लाया. निशा ने देखा कि उस के फ्लैट में बहुत सी पैंटिंग थी. निशा ने पूछा,”क्या आप आर्टिस्ट हैं?”

उस ने कहा,”जी, पहले मैं विदेश में रहता था अब फिर कुछ वर्षों से यहां हूं. वहां कुछ व्यापर भी करता था. उस ने निशा की भी पैंटिंग दिखाई जो उस ने बनाई थी, जब उस के आंखों में आंसू आ गए थे जो बहुत आकर्षित कर रह था. निशा की बड़ीबड़ी आंखें जो बिलकुल दूध की भांति सफेद दिखती थी, अपनी सचाई को बखान कर रही थी. निशा ने जब वे पैंटिंग्स देखी तो बहुत ज्यादा खुश हुई.

निशा ने उस से पूछा,’यह कब की पैंटिंग हैं?”

उस ने कहा,”जब आप बबलू को खोज रही थीं और आप के आंखों में आंसू थे तब मैं ने फोटो लिया था.”

निशा ने कहा,”आप ने कब फोटो ले ली.”

उस ने कहा, “उसी शाम को. हम तो कलाकार हैं, चेहरा देख कर याद कर लेते हैं फिर भी फोटो ले लेते हैं ताकि कुछ गलत न हो. मैं एक फोटोग्राफर भी हूं.”

निशा ने कल्पना भी न की थी कि कोई व्यक्ति उस की इतनी अच्छी पैंटिंग बनाएगा. अब चाय खत्म हो चुकी थी.

सरफराज ने पूछा,”चाय कैसी लगी?”

निशा ने कहा, “पैंटिंग के मुकाबले तो बिलकुल रद्दी थी. सही बता रही हूं. मैं झूठी तारीफ नहीं करती.”

“फिर तो आप की हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.”

“क्यों नहीं?”

“कभी हमारे घर आएं. पीर मोहम्मद भी आप से मिलना चाहते हैं?”

“लेकिन मुझे तो अभी पीनी है. प्लीज…प्लीज…”

निशा ने समय देखा, अभी सुबह के 9 बजे थे. बबलू की स्कूल वैन तो दोपहर 1 बजे आती है. सरफराज के आग्रह में बहुत आकर्षण था. उस में एक अनुरोध था, निशा मना नहीं कर पाई.

निशा को लगा कि यह ऐसे कह रहा है जैसे कल यह यहां नहीं होगा. निशा ने उस से पूछा, “आप अकेले रहते हैं?”

उस ने कहा, “जी, अब कोई नहीं करीबी हैं, मगर नाम के.”

निशा ने उस की ओर देखा. उस ने कहा,” चलिए, मैं आप को अपना किचन दिखता हूं,” फिर उस ने निशा को दूध, चीनी और चायपत्ती दी.

निशा ने उस से कहा, “आप के पास अदरक नहीं है क्या?”

उस ने कहा,”नहीं.”

“अदरक से स्वाद बढ़ जाता है,” निशा ने कहा.

चाय पीने के बाद सरफराज ने कहा,”अद्भुत, ऐसी चाय मैं ने अपने जीवन में आज तक नहीं पी है.”

निशा ने सरफराज से कहा, “कोरोना महामारी के पहले वर्ष हम दिल्ली में थे. बहुत बुरा दौर था. सब्जी वाले, फल वाले गलीगली भटकते थे. पीर मोहम्मद बगैर राशनकार्ड धारक जोकि राशन कूपन प्राप्त करने की प्रतीक्षा में रहते, उन्हें राशन दिलाने में लगे रहते थे. बहुत चिंतित रहते थे कि उन्हें कैसे राशन मिले?”

सरफराज ने कहा,”जी, यहां भी यही हाल था. पुलिस वाले सब्जी बाजार और थोक मंडी में लोगों को पीटते. उस दौरान मैं ने बहुत सी फोटो ली हैं. लोगों की कुछ सहायता की. लेकिन सरकार नाकाम दिखी. इस सैक्टर-बी कालोनी को जब आप पार करेंगी तो एक लेबर चौक है, वहां के दिहाड़ी मजदूर बदहाल एवं परेशान थे. सस्ती दरों में सब्जी भी बिक रही थी. कुछ राशन दुकानदार फायदा भी उठा रहे थे. इस महामारी में गरीब ज्यादा परेशान और बदहाल था, दूसरी तरफ भक्त कह रहे थे सरकार सभी जमातियों के पिछवाड़े को लाल कर देगी. खैर, सब मुद्दों को छोङ कर, जनता थाली उत्सव के बाद, कोरोना दीपोत्सव…”

निशा ने कहा, “क्या मूर्खता चरम पर नहीं पहुंच गई है? लेकिन सरकार संविदा में कार्यरत लोग, बेरोजगार दिव्यांग और दृष्टिबाधितों के लिए कुछ नहीं करती दिखी. बहुत से लोगों के हिसाब से कोरोना वायरस, मुसलिम आतंकवादियों ने भारत के खिलाफ एक साजिश रची थी, जो हिंदुओं को खत्म कर देना चाहते थे और भारत में तबाही फैलाना चाहते थे. इसलिए उन का मानना था कि उन्हें मुसलमानों से संपर्क नहीं रखना चाहिए. ऐसी बातें गांवों, कसबों में सांप्रदायिक तत्त्वों द्वारा फैलाई जा रही थीं, जिस सें मीडिया ने अहम भूमिका अदा की थी.”

एक दिन लोकल मार्केट में पीर मोहम्मद और निशा की मुलाकात सरफराज से हुई. निशा ने पीर मोहम्मद को बताया कि यही हैं सरफराज, जो उस दिन बबलू को खोजने में मदद की थी.”

तभी पीर मोहम्मद ने कहा,”कल रविवार है. शाम को आइए न खाना साथ खाएं.”

रविवार को सरफराज निशा के घर पर आया. पीर मोहम्मद ने उस का खुले दिल से स्वागत किया. उस ने पीर मोहम्मद को बताया कि यह शहर उस के लिए पुराना है, लेकिन मैं अब बिलकुल अकेला रह गया हूं. हमारा घर इसी शहर में था और दशकों पहले मम्मीपापा का इंतकाल हो चुका है. कुछ रिलेटिव हैं, लेकिन वे दूरदूर रहते हैं. कुछ दूसरे शहर में हैं. पहले मैं कनाडा में रहता था, अब यही हूं. वहां से आने के बाद ही मैं ने यहां फ्लैट लिया था. जब से यहां हूं नहीं तो कुछ दिनों में ही बहुत दूर चला जाऊंगा.”

पीर मोहम्मद ने पूछा,”मतलब कहां?”

“कनाडा, और कहां…”

उस रोज सरफराज निशा की पैंटिंग भी ले कर आया था, जिसे देख कर पीर मोहम्मद भी बहुत खुश हुआ,”अरे जनाब, आप तो मकबूल फिदा हुसैन जैसे कलाकार हैं. क्या पैंटिंग बनाई है. इस में जीवंतता है. ऐसा लगता है कि कब बोल पड़ेगी पैंटिंग.”

इस के बाद सरफराज जब भी उधर से गुजरता वह उस से मिल लेता था.
निशा बबलू को जब स्कूल छोड़ने जाती तो सरफराज फोन कर देता. निशा उस के घर चली जाती. जब निशा सरफराज के घर जाती तो उस की डिमांड रहती की चाय बना कर पिला दे. अब तो सरफराज ने अदरक भी खरीद कर रख ली थी.

निशा सोचती कि आखिर वह उस की बात मना क्यों नहीं कर पाती है. निशा के न मना करने का कारण यह भी था कि सरफराज छोटी उम्र में ही अनाथ हो चुका था. दूसरी बात यह भी थी कि निशा को उस से कुछ लगाव सा हो गया था. कोई था ही नहीं उस का इस दुनिया में जिस से वह अपने दिल की बात कह सके.

निशा जब उस के घर जाती तो वह कुछ नई पैंटिंग्स दिखाता. कुछ फोटो दिखाता. उस रोज निशा को जब उस ने फोन किया और घर आने की बात कही तो निशा ने मना कर दिया था. निशा ने उस से कहा था कि दूसरे दिन देखेगी. मगर फिर दूसरे दिन निशा उस के घर गई.

सरफराज ने अपनी आदतानुसार चाय पीने की ख्वाहिश जाहिर की. निशा जब चाय बना कर लाई तो उस रोज सरफराज ने उस को उपहारस्वरूप झुमके देने की ख्वाहिश जाहिर की. निशा ने कहा कि यह क्या है? इस का मतलब यह नहीं है कि मैं आप को चाय बना कर दे रही हूं या आप से बात कर ले रही हूं, तो आप मुझे यह सब देंगे. लेकिन वह बहुत रिक्वैस्ट करने लगा कि उसे पहन ले. यह उस की आखिरी इच्छा है.

निशा ने कहा,”मैं इसे नहीं लूंगी लेकिन पहन लेती हूं, आप की खुशी के लिए. वैसे, आप की आखिरी इच्छा क्या है?”

सरफराज बोला,”यही कि कलपरसों मैं कनाडा जा सकता हूं.”

निशा को उस के इस व्यवहार से बहुत आश्चर्य हो रहा था और अपनेआप पर गुस्सा भी. पर सरफराज का अनुरोध वह टाल न पाई थी.

जब निशा वे झुमके पहन कर आई तो सरफराज बहुत खुश दिख रहा था, जैसे उस की अंतिम इच्छा पूरी हो गई हो. वे झुमके निशा पर बहुत खिल रहे थे.

निशा ने सरफराज से कहा, “खुश…”

वह चाहता था कि वह निशा की फोटो इस झुमके के साथ बनाए. इस के लिए उस ने निशा की फोटो ली. निशा का रंग सावंला जरूर था, लेकिन चेहरे पर बहुत चमक और तेज था. लगता ही नहीं था कि निशा एक बच्चे की मां है.

निशा ने पूछा,”आप मेरी फोटो क्यों बनाना चाहते हैं? अरे आप अभी तो जवान हैं, शादी क्यों नहीं कर लेते? मैं आप के लिए कोई अच्छी सी लड़की देखती हूं.”

सरफराज ने कहा,”नहीं, अब बहुत देर हो चुकी है. मतलब कि अब कौन शादी करेगा?”

झुमके के संदर्भ में निशा झेंप जरूर गई थी. उसे कुछ समझ नहीं आया था कि आखिर यह है क्या? दोस्ती का अर्थ यह तो नहीं होता. लेकिन दोस्ती का अर्थ बहुत कुछ भी होता है.
निशा ने कहा,”अब मुझे चलना चाहिए,” वह झुमके निकालने के लिए हाथ ऊपर उठाई तो सरफराज ने कहा,”नहीं, यह आप के लिए ही हैं.”

“क्यों?”

“आप अच्छी लगती हैं मुझे,” सरफराज ने कहा.

सरफराज ने कहा,”एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानोगी?”

“क्या?”

“मुझे आप से प्यार हो गया है, पता ही नहीं चला आप कब दिल के करीब आ गईं? कहते हैं न कि प्यार तो प्यार है, जो किसी बंधन में नहीं बंधा होता. मुझे पता है आप शादीशुदा हैं फिर भी आप से प्यार हो गया है.”

निशा का गुस्सा फूट पड़ा,”आखिर यह क्या है? मैं जिसे केवल दोस्त समझती हूं, जिस का दुनिया में कोई नहीं है. कुछ साथ एक सहानुभूति का दे रही थी. उसे अपना समझ कर चाय बना दे रही हूं, तो इस का आशय यह नहीं होना चाहिए. आइंदा आप मुझ से न मिलें और न ही मैं आप से मिलूंगी. हद है…अजीब आदमी हैं.”

निशा उस के दरवाजे से बाहर निकल चुकी थी. वह अपने घर आ चुकी थी लेकिन उसे सरफराज से कुछ लगाव तो जरूर हो गया था. निशा ने यह बात पीर मोहम्मद को नहीं बताई. वह जानती है कि पीर मोहम्मद भले ही खुले विचारों का है फिर भी वह जानती थी कि किसी भी पुरुष को यह बुरा लगेगा क्योंकि मेल ईगो भी तो कुछ चीज होता है. लेकिन 2 रोज बाद सरफराज ने निशा को फोन किया. उस ने मिलने की इच्छा जाहिर की. उस ने कहा कि वह अब यहां से जा रहा है फिर कभी वापस नहीं आएगा.

निशा मिलने से पहले हिचकी लेकिन उस रोज गुस्से से वहां निकल आई थी, जो झुमके उस ने पहनी थी उसे वापस करना था इसलिए वह सरफराज से मिलने उस के घर जा पहुंची.

जब निशा सरफराज से मिली तो उस ने उस दिन के लिए माफी मांगी.
उस ने कहा, “क्या करे वह, उस के वश में नहीं रहा. क्या आप मुझे अपने हाथ की चाय नहीं पिलाएंगी?”

निशा ने संकोच करते हुए कहा,”आखिरी बार.”

उस ने कहा,”बिलकुल, आखिरी बार.”

निशा ने चाय बना कर सरफराज को दी. निशा ने झुमके निकाल कर उस के टेबल पर रख दिए.

उस ने कहा,”प्लीज, इसे तो ले लीजिए. एक यादगार रहेगा, जरूरी नहीं है कि अब मैं कभी मिलूंगा. निशानी के तौर पर रख लीजिए.”

निशा उस की तरफ देख रही थी. उस ने निशा के हाथ में झुमके रखे और निशा के माथे पर किस कर दिया. तभी निशा ने उसे झटका दिया. सरफराज ने फिर निशा के माथे को किस किया.

निशा को उस का किस और उस के पकड़ने में एक ऐसा आकर्षण लगा कि वह उस के कंट्रोल में कब चली गई उसे पता ही नहीं चला और वे एकदूसरे में समाहित हो गए. ऐसा लग रहा था कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हों. जैसे निशा को एक सच्चे प्रेमी और सरफराज को एक प्रेमिका की तलाश थी. दोनों अब एकदूसरे के प्रति समर्पित दिख रहे थे.

सुबह के 12 बजने वाले थे. 1 बजे बबलू को स्कूल से भी लाना था. वह जल्द से जल्द वहां से निकली. उसे दरवाजे तक छोड़ने भी आया था सरफराज.

निशा उसे भूल नहीं पा रही थी. वह अंदर से बहुत परेशान थी, सोच रही थी कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? निशा इस बात पर हैरान थी कि सरफराज कैसे उस की दिल की बात को समझ लेता था, जो पीर मोहम्मद आज तक न समझ सका. क्या यह आसान है एक स्त्री के लिए? वह पूरी रात सोचती रही.

3-4 दिन गुजर गए न सरफराज का फोन आया और न ही निशा ने उस को फोन किया था. चौथे दिन निशा स्वयं सरफराज के घर गई तो देखा दरवाजा बंद था. कुछ देर वह वहीं खड़ी रही. वह घंटी बजा रही थी कि तभी बगल से एक औरत आई. उस ने कहा,”सरफराजजी ने इस फ्लैट की चाबी दी थी, उन्होंने कहा था कि निशा नाम की कोई आएगी तो उन्हें यह चाबी दे देना. क्या आप का नाम निशा है?”

निशा ने कहा, “जी.”

“सरफराज कब गए कनाडा?”

उस ने कहा, “पता नहीं.”

निशा फ्लैट खोल कर सरफराज के घर में घुसी. घर में कुछ अधूरी पैंटिंग थी, उसे वहां एक खत भी मिला. लिखा था :

“अजीज निशा,

“जब खत आप को मिलेगा, शायद मैं इस दुनिया में न रहूं. आप से मिल कर जीने की चाह बढ़ गई थी, जिस से मैं कुछ महीने और जीवित रहा. मैं ने तो आप को पार्क में देखा था, आप को देख कर ही प्रेम हो गया था. आप की बड़ीबड़ी आंखें. उन आखों में सचाई, बात करने का तरीका. आप के अपनत्व ने मुझे आप की ओर आकर्षित कर दिया था. मेरा इलाज सिटी अस्पताल में चल रहा था. मैं ने आप को बताया नहीं, उस के लिए माफी. मुझे कैंसर है, अब मेरे पास समय नहीं बचा है. डाक्टर हर बार कुछ महीने का समय बताते थे. लगता है, वह समय पूरा हो गया है.”

घर आने पर निशा ने पीर मोहम्मद को अपने साथ घटित और सरफराज के साथ शारीरिक संबंध वाली बात सचाई के साथ बता दी थी. उस ने सोचा था कि पीर मोहम्मद उसे छोड़ देगा. सब सुन कर पीर मोहम्मद सिटी अस्पताल पहुंचा फिर उस के कुछ रिश्तेदारों का पता किया. फोन कर के बताया की सरफराज अब नहीं रहे. लेकिन उन्होंने अपनी असमर्थता बताई. बाद में पीर मोहम्मद ने लोकल लोगों के साथ मिल कर उस का सुपुर्देखाक करवाया. फिर वह घर आया और पहले दिन तो उस ने निशा से बात न की, दूसरे दिन कुछ देर सोचता रहा पीर मोहम्मद, फिर उस ने निशा से कहा,”चलो, कोई नहीं, इसे एक सपना समझ कर भूल जाओ. मैं तुम से बैगर बात किए रह ही नहीं सकता.”

पीर मोहम्मद ने निशा से कहा, “दूसरी तरफ जब एक पुरुष किसी औरत के साथ शारीरिक संबंध बना लेता है, किसी दूसरी महिला को प्राप्त करने के बारे में सोच सकता है या किसी के प्रति आकर्षित हो सकता है तो महिला क्यों नहीं हो सकती? मैं इसे कोई अपराध नहीं है मानता कि तुम ने कुछ गलत किया. यह तुम्हारे वश में था ही नहीं.

“एक मरते हुए व्यक्ति में प्यार की एक तड़प थी. एक बात मैं कहूं, सच में वह तुम से मुझ से कहीं अधिक प्यार करता था वह. किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बन जाना एक स्वाभाविक घटना है. यह जरूरी नहीं है कि औरत इस बंधन में बंधे. पर यह जरूर है कि तुम सरफराज को भूल जाओ, लेकिन तुम्हारा शरीर उसे कभी नहीं भूल पाएगा, ऐसा मुझे लगता है.”

Donald Trump : खब्ती के हाथ में अमेरिका

Donald Trump :  अमेरिका में अवैध रूप से घुसे इमीग्रैंट्स का मुद्दा डोनाल्ड ट्रंप ठीक उसी तरह उछाल रहे हैं जैसे भारत में मौजूद बंगलादेशियों के मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी ने उठाया था. ट्रंप मिलिट्री लगा कर, आपात स्थिति घोषित कर साढ़े 4 लाख लोगों को निकालने की घोषणा कर चुके हैं और Donald Trump के मंत्री टौम होमन का कहना है कि अवैध घुसपैठियों के साथ अगर उन के अमेरिका में पैदा हुए नाबालिग बच्चों को भी निकालना पड़ा तो वे हिचकेंगे नहीं चाहे बच्चे अमेरिकी नागरिक क्यों न हों.

 

भारतीय नागरिक संशोधन कानून, नैशनल रजिस्टर फौर सिटिजनशिप जैसी भारतीय घोषणाओं की तरह ट्रंप अमेरिका में गोरों के राज को मजबूत करना चाहते हैं. इस से अर्थव्यवस्था और समाज में खलबली मच सकती है लेकिन इस से उन के कट्टरवादी वोट पक्के होंगे, यह तय है.

 

जब भी किसी देश ने ‘हम’ और ‘वे’ की बात करनी शुरू की है, उस का पतन हुआ है. वहां दहशत और लूट का माहौल बना है. वहां ‘हम’ वालों के गैंग बन गए और उन्होंने दूसरों को न केवल खदेड़ना शुरू कर दिया, अपनों को डराना भी शुरू कर दिया कि चाहे अपने कितने ही असहमत हों, मुंह न खोलें क्योंकि विध्वंस करने को तैयार गैंग के 10-20 लोग सीधेसादे हजारदोहजार लोगों की बस्तियों को डराने व धमकाने में सफल रहते हैं.

Donald Trump के गैंग्स के असल निशाने पर वे अवैध घुसपैठिए हैं जिन में ज्यादा दक्षिणी अमेरिका के हैं, काफी भारत के हैं, कुछ मिडिल ईस्ट के हैं, कुछ काले अफ्रीका के हैं. ट्रंप के गैंग्स के निशाने पर वे सभी काले भी हैं जो सदियों पहले अफ्रीका से गुलामों की तरह अमेरिका जबरन लाए गए थे. वे दक्षिणी अमेरिकी मिश्रित खून के लेटिनो हैं जो 200 वर्षों से लगातार अमेरिका आ रहे हैं और पूरी तरह अमेरिकी नागरिकता पा चुके हैं.

 

इन से भी ज्यादा निशाने पर वे औरतें हैं जो इन्हीं कट्टरों के घरों में मांओं, पत्नियों, बहनों, दादियों की तरह रहती हैं. चर्च ने हमेशा औरतों को पुरुषों का सेवक माना है और ट्रंप का व्यक्तिगत व्यवहार हमेशा औरतों को अपना मनोरंजन का खिलौना मानता रहा है. जब अमेरिकी मिलिट्री, पुलिस, अदालतें मनमानी करेंगी तो वे इन औरतों को भी लपेटे में ले लेंगी. अभी से इन्होंने कहना शुरू कर दिया है, यह ‘माई बौडी माई चौइस नहीं चलेगा’, ‘योर बौडी, माई चौइस.’

 

डोमैस्टिक वौयलैंस, वेश्यावृत्ति, गोरी औरतों की खरीदफरोख्त वाइल्ड वैस्ट अमेरिका के काऊ बौयस की निशानी रही है. यह अब फिर उभरेगी. चर्च का नेतृत्व साथ में है ही. बाइबिल के उपदेश भरे पड़े हैं जिन में औरतों की जगह रसोई और बच्चों को पालने की है. ट्रंप के मागा समर्थक गैंग इस विषभरे पानी को हर घर को पिलाएंगे, कम से कम कोशिश तो करेंगे ही, यह पक्का है.

 

अमेरिकी अब भी क्या कमजोर हैं कि एक चुनाव में 2-3 फीसदी वोट ज्यादा पा कर चर्च की चलने लगेगी? इस में शक है. अमेरिका में आजाद विचारों, सब तरह के लोगों के साथ रहना, गन हाथों में होने के बावजूद शब्दों का महत्त्व ज्यादा होना अभी छूमंतर नहीं हुआ है. डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अमेरिका को पूरी तरह नष्ट कर पाएंगे, ऐसा मुश्किल है, हालांकि, दुनिया में ऐसे उदाहरण हैं जहां एक खब्ती शासक ने लाखों को मरवा दिया, देश को काले अंधकार में अकेले ही धकेल दिया. हैरत यह भी कि जब तक वह खब्ती शासक सत्ता में रहा, ‘महान’ माना गया

Story Telling : गंदी नजर

Story Telling : शाम का समय था. राशि दी का फोन आ रहा था. यह देख कर हिना की खुशी का ठिकाना न रहा. वह समझ गई कि जरूर कोई खास बात होगी, जिस की वजह से उन्होंने इस समय फोन किया वरना वह रोज रात 10 बजे फोन करती है.

‘‘हैलो दी, कैसी हो? आज आप ने इस वक्त फोन कर दिया.’’ ‘‘क्या बताऊं, मुझ से सब्र नहीं हो रहा था.’’ ‘‘ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘ईशा का रिश्ता पक्का हो गया है. बस, चट मंगनी पट ब्याह होना है. आज से ठीक 10 दिनों बाद सगाई है और उस के अगले दिन ही शादी है. तुम सब को आना है.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है, दी. मैं जरूर आऊंगी.’’‘‘मैं तेरी ही बात नहीं कर रही हूं, बल्कि राजीव, अनन्या और विनय को भी आना है.’’‘‘राजीव की मैं कह नहीं सकती. विनय के अगले महीने इम्तिहान हैं. एक को उस के साथ घर पर रहना होगा. मैं और अनन्या जरूर आएंगे, यह तो पक्का है. कुछ दामाद के बारे में भी बताओ,’’ हिना ने कहा तो राशि दी फोन पर उसे सारी बातें विस्तार से बताने लगीं. बातें करते हुए दोनों को एक घंटा हो गया था, तभी अनन्या ने आवाज लगाई,

‘‘मम्मी, बाहर कोई आया है आप से मिलने.’’‘‘अच्छा दी, बाद में बात करती हूं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया. खुशी के मारे उस के पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे.राशि दी ईशा के रिश्ते को ले कर कब से परेशान थीं. इतना पढ़लिखने के बाद भी उस के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. अब ऊपर वाले ने उन की सुन ली थी और ?ाट से उस का रिश्ता तय हो गया था. लड़का मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर था. अच्छाखासा परिवार था. वहां कोई कमी नहीं थी.

हिना ने खुशखबरी अनन्या और राजीव को भी सुना दी.‘‘मम्मी, ईशा दी की शादी में मजा आ जाएगा. मैं पूरे एक हफ्ते वहीं रहूंगी,’’ अनन्या बोली.‘‘यह क्या कह रही है? शादी के माहौल में इतने दिन कैसे रहा जा सकता है?’’‘‘मम्मी, यही तो मौका होता है सब से मिलने का. शादी में हमारे सारे कजिन आएंगे. वैसे, उन से व्हाट्सऐप पर चैट हो जाती है लेकिन आमनेसामने बात करने का मजा ही कुछ और है.’’

‘‘यह सब छोड़ो, पहले शादी के लिए ड्रैस तैयार करवानी है. समय बहुत कम है.’’‘‘आप ठीक कह रही हैं मम्मी. हम कल ही बाजार जा कर सब से पहले अपने लिए ड्रैस तैयार करवा लेते हैं, बाकी काम तो होते रहेंगे,’’ अनन्या बोली.मांबेटी दोनों ही शादी की तैयारी में उसी दिन से जुट गई थीं.

हिना को अब इस से आगे कुछ सू?ा ही नहीं रहा था. राजीव बोले, ‘‘हिना, मैं एक दिन के लिए ही शादी में आ सकता हूं, उस से ज्यादा नहीं. बेटे के इम्तिहान सिर पर हैं. मैं इस समय इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकता.’’‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे. मैं तो अनन्या के साथ 2 दिन पहले ही चली जाऊंगी. आप को अभी से बता देती हूं.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी, वह करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं बोलूंगा. मैं ने अपनी दिक्कत तुम्हें बता दी है, बाकी उन लोगों से तुम खुद ही निबट लेना.’’एक हफ्ता कब गुजर गया, पता ही नहीं लगा. अब शादी में केवल 3 दिन रह गए थे.

अगले दिन हिना और अनन्या को शादी में राशि दी के घर जाना था. अनन्या बोली, ‘‘मम्मी, आप ने स्कूल से कितने दिन की छुट्टी ली है?’’‘‘3 दिन और क्या…? बीच में एक दिन इतवार है. कुल मिला कर 4 दिन हो जाएंगे.’’‘‘आप चली आना, मैं तो वहीं रुकूंगी,’’ अनन्या बोली, तो हिना ने उसे घूर कर देखा. वह जानती थी कि मम्मी किसी भी कीमत पर उसे अकेले नहीं छोड़ेंगी और अपने साथ ही वापस ले आएंगी.

बचपन से वह यही सब देखती आई थी. मम्मी जहां कहीं भी जाती हैं, उसे अपने साथ ले कर जाती हैं. कहीं छोड़ने की नौबत आती तो बहाना बना कर टाल देतीं.पता नहीं क्यों मम्मी बेटी को किसी के भी घर पर अकेले छोड़ने में बहुत डरती थीं. इतना ही नहीं, घर पर कोई मेहमान आता तो वे उन की हर सुविधा का खयाल रखतीं. रात में कोई प्रोग्राम हो तो वे अनन्या के शामिल होने पर पहले ही एतराज जता देती थीं.

मम्मी का रुख देख कर अनन्या ने अब कुछ कहना ही छोड़ दिया था.अलीगढ़ से आगरा का केवल 2 घंटे का रास्ता था. वे टैक्सी से वहां पहुंच गए थे. उन्हें देख कर राशि दी बहुत खुश हुईं.‘‘हिना, तेरे आ जाने से मेरी हिम्मत बहुत बढ़ गई है, नहीं तो मैं बड़ा नर्वस हो रही थी. घर पर पहलीपहली शादी है, इसीलिए मुझे थोड़ा डर लग रहा है.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है दी. हम मिलजुल कर काम करेंगे तो सबकुछ अच्छे से निबट जाएगा.’’‘‘हां, यह बात तो है. लड़के वालों की कोई डिमांड नहीं है. वे बहुत शरीफ लोग हैं. इसी वजह से मुझे और ज्यादा हिचक हो रही है. हम अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. भले ही वे अपने मुंह से कुछ नहीं कह रहे.’’काफी देर तक वे बातें करती रहीं. अनन्या ईशा के पास आ गई और बोली, ‘‘कैसे हैं हमारे जीजू?’’

‘‘तुम खुद ही देख लेना.’’‘‘वह तो मैं देख लूंगी. तुम भी तो कुछ बताओ.’’‘‘मुझे तो वे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत सुलझे हुए हैं. वे किसी से ज्यादा बात नहीं करते.’’‘‘अभी बात करने में डरते होंगे. धीरेधीरे तुम से और हम से भी उन की खूब बातें होने लगेंगी और कौनकौन आ रहा है?’’ अनन्या ईशा को चिढ़ाते हुए बोली.‘‘सब आ रहे हैं. मामा के दोनों बेटे और बूआ की दोनों लड़कियां कल  तक पहुंच जाएंगे. तुम्हारे आने से घर  में शादी के माहौल की शुरुआत हो  गई है.’’बातें करते हुए रात हो गई थी. हिना ने कहा, ‘‘दी, मेरे लिए अलग कमरे की व्यवस्था कर देना.’’

तुझे कहने की जरूरत नहीं है. मैं जानती हूं कि तू क्या चाहती है? मैं ने तेरे लिए पहले से ही व्यवस्था कर दी है. तुम और अनन्या ऊपर के कमरे में आराम से रहना.’’‘‘थैंक्यू दी,’’ कह कर हिना अनन्या के साथ वहां आ गई. उन्होंने अच्छे से अपना सामान व्यवस्थित कर लिया. हिना ने हमेशा की तरह यहां आ कर अनन्या को ढेर सारी नसीहतें दे डालीं.

तुझे क्या हो गया है हिना? कैसी बातें कर रही है. शेखर सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’‘‘सोचता है तो सोचने दो. मुझे किसी की परवा नहीं है,’’ इतना कह कर उस ने बीच के दरवाजे पर कुंडी चढ़ा दी. हिना को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ कहने पर भी मम्मी आंखें मूंदें थीं और उस के इशारे नहीं समझ रही थीं. हिना सबकुछ जानते हुए भी चुप थी, इसीलिए उस की हिम्मत ज्यादा बढ़ गई.

बीच का दरवाजा बंद हो जाने से शेखर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. एक बच्चे का पिता होने के बावजूद उस की गंदी नजर अपनी बूआ की बेटी हिना पर पता नहीं कब से लगी थी. अकसर वह उस के लिए गिफ्ट ले आता और उस के साथ खुल कर बातें करता. उसे याद आ रहा था कि वे उसे अजीब तरीके से छूते.

‘‘अगर वह उन के बहकावे में आ जाती तो…’’ यह सोच कर वह सिहर गई. लोकलाज के कारण उसे पता नहीं क्या कुछ झेलना पड़ता. मम्मी अपने भतीजे पर कभी शक तक नहीं कर सकीं. अब शेखर को खुद वहां रहना अखरने लगा था. हिना की निगाहों में उठने वाली नफरत को झेलने में वह समर्थ नहीं था. उस ने इस बीच कई बार उस से बात करने की कोशिश की. उस के पास आते ही वह चुपचाप वहां से उठ कर चली जाती.

हफ्तेभर बाद शेखर अपने पापा के घर चला गया था. इस घटना से हिना ने महसूस किया कि बाहर वालों से ज्यादा अपने लोग खतरनाक होते हैं. रिश्तों की आड़ में क्या कुछ कर गुजरते हैं, इस का किसी को एहसास तक नहीं होता. वे जानते हैं कि अपनों को बदनामी से बचाने व झूठी शान के लिए इस समाज में औरत की आवाज हर हाल में दबा दी जाएगी.

हिना की शादी के 2 साल बाद अनन्या पैदा हुई. उस ने सोच लिया था कि वह अपनी बेटी को दुश्मनों से बचा कर रखेगी. वह बचपन से उसे एक रात के लिए भी किसी रिश्तेदार के घर अकेला न छोड़ती. कई बार बड़े भैया ने कहा भी, लेकिन हिना कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती. अनन्या को यह बात समझ आने लगी थी. वह कई मौकों पर मम्मी का विरोध भी करती. घर पर अकसर मेहमान आते. हिना उन का पूरा खयाल रखती, लेकिन बेटी की सुरक्षा के लिए कोई रिस्क न उठाती.

उस ने गैस्टरूम घर की छत पर अलग से बना रखा था, जिस से उन का वक्तबेवक्त उस के परिवार से कोई संपर्क न रहे. खानापीना खिला कर वह मेहमानों को गैस्टरूम में टिका देती. पता नहीं, उस की अंदर की दहशत ने उसे कितना हिला कर रख दिया था. नजदीकी रिश्तों के प्रति उस की आस्था ही खत्म हो गई थी. उसे लगता, रिश्ते की आड़ में छिपे हुए भेडि़ए कभी भी अपने ऊपर की रिश्ते की चादर सरका कर अपने असल रूप में आ उस की बेटी पर हमला कर सकते हैं.

बहुत देर तक उसे अतीत में तैरते हुए नींद नहीं आ रही थी. अगली सुबह वह समय से उठ गई, लेकिन अनन्या देर तक सोती रही. उस ने उसे उठाना उचित न समझ. शादी की रात भी हिना की नजरें शादी की रस्मों के बीच उस पर ही लगी रहीं. रात के 3 बजे फेरे खत्म हो गए और उस के बाद वह अनन्या के साथ कमरे में आ गई.

विदाई के समय सभी भावुक हो गए थे. 8 बजे ईशा की विदाई हो गई. घर सूना हो गया था. दोपहर तक अधिकांश मेहमान जाने लगे थे. सिद्धार्थ उस से और दी से मिलने आया, ‘‘अच्छा बूआ, चलता हूं.’’  ‘‘इतनी जल्दी क्या है? 1-2 दिन और रुक जाते,’’ राशि बोली. ‘‘जिस काम के लिए आए थे, वह पूरा हो गया. घर जा कर पढ़ाई भी करनी है.’’

अनन्या अभी 1-2 दिन और मौसी के पास रुकना चाहती थी, लेकिन मम्मी की वजह से कहने में हिचक रही थी. राशि दी खुद ही बोली, ‘‘ईशा के जाने के बाद घर खाली हो गया है. हिना, अनन्या को कुछ दिन यहां छोड़ दे.’’  ‘‘नहीं दी, इस के पापा नाराज होंगे. हम फिर आ जाएंगे. यहां से अलीगढ़ है ही कितना दूर. जब तुम कहोगी तभी ईशा और दामादजी से मिलने चले आएंगे.’’अगले दिन वह बेटी के साथ घर वापस जा रही थी. अनन्या के मन में कई सवाल थे, लेकिन वह मम्मी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.

हिना जानती थी कि अनन्या मम्मी के व्यवहार से नाखुश है, लेकिन वह मजबूर थी. वह अपनी मम्मी की तरह रिश्तों की छांव में आंख मूंद कर निश्चिंत हो कर नहीं रह सकती थी. शुक्र था, जवानी में खुद सचेत रहने के कारण वह अपने को बचा पाई थी, नहीं तो उस के साथ कुछ भी बुरा घट सकता था. वह अपनी बेटी को ऐसी परिस्थितियों से दूर रखना चाहती थी.

बाहर वाला कुछ गलत कर बैठे तो उस के विरुद्ध शोर मचाना आसान होता है, लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कितना हौसला चाहिए, इस की अनन्या कल्पना भी नहीं कर सकती. बेटी चाहे लाख नाराज होती रहे, उसे इस की परवा नहीं. उसे तो केवल भेडि़ए को रोकने की परवा है. अपनेपन की आड़ में वे सबकुछ लूट कर ले जाते हैं और लुटने वाला उन के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता. खुद घर वाले उस की आवाज को दबा देते हैं.

‘‘अभी उसे कुछ समझना बेकार है. धीरेधीरे अपने अनुभव से उसे बहुतकुछ पता चल जाएगा. तब उसे अपनी मम्मी की यह बात अच्छे से समझ आ जाएगी,’’ यह सोच कर वह थोड़ी आश्वस्त हो गई और अनन्या की नाराजगी को नजरअंदाज कर उस से सहज हो कर बातें करने लगी.

 

Hindi Drama : यादों के झरोखे से

Hindi Drama :दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे. मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.

Emotional Drama : पाक बीबी नयनतारा

Emotional Drama : जव्वाद शाह के खानदान में किसी लड़की का निकाह बिरादरी से बाहर करने की सख्त मनाही थी. इस की कई वजहें थीं लेकिन मूल यह थी कि इसे वे अपनी शान के खिलाफ मानते थे. नयनतारा इसे अच्छे से भुगत चुकी थी. अब बारी गेतीआरा की थी. क्या नयनतारा की तरह ही गेतीआरा की इच्छाओं की बलि चढ़ा दी गई? जागीरदार जव्वाद शाह की हवेली में आज खूब चहलपहल थी. करीबी रिश्तेदर, दोस्त सभी जमा थे. उन का बेटा फव्वाद शाह पढ़ने के लिए इंग्लैंड जा रहा था. शानदार दावत रखी थी. जव्वाद शाह सिंध के पुश्तैनी रईस थे, कई एकड़ जमीनों के मालिक और समद शाह के इकलौते बेटे. उन की 2 बहनें थीं.

बड़ी बहन की शादी मामू के बेटे से कर दी गई थी और उसे उस का शरई हिस्सा दे दिया गया था. छोटी बहन नयनतारा उन्हीं के साथ रहती थी. बाकी की सारी जायदाद जव्वाद शाह के नाम थी. बड़ी बहन मामू के यहां इसलिए ब्याही गई थी कि जमीन खानदान में ही जाएगी. जागीरदार लोग जमीनजायदाद, खानदान से बाहर जाना कतई पसंद नहीं करते. इस के लिए खूनखराबा तक हो जाता है.

जव्वाद शाह के 3 बच्चे थे. 2 बेटियां गेतीआरा और गुलआरा और बेटा फव्वाद शाह जिस ने इस साल ग्रेजुएशन किया था और कानून पढ़ने के लिए लंदन जा रहा था. दोनों बड़ी बहनें कीमती कपड़े पहने बड़ी हसीन लग रही थीं.

घर में खूब रौनक लगी थी. मुंशी करीम अली ने सारा कामकाज संभाल रखा था. फंक्शन का इंतजाम उन के बेटे अजमत अली ने संभाल रखा था, जोकि एमबीबीएस कर के कसबे के अस्पताल में ही डाक्टर था. जव्वाद शाह के घर के बहुत से बाहरी काम उस के जिम्मे लगे हुए थे.

आज सवेरे से ही वह हवेली में था और बड़ी मीठीमीठी नजरों से गेतीआरा को देख रहा था. सामने हुस्न था, दिल में सच्ची मोहब्बत के जज्बात थे, जो आंखों से बयान हो रहे थे. गेतीआरा का चेहरा शर्म से गुलनार हुआ जा रहा था. परदा, अदब, रुतबा और अदब की दीवारें इतनी ऊंची थीं कि गेतीआरा की उसे निगाह उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. अजमत दूरदूर से ही हुस्न का नजारा कर रहा था.

छोटी बहन गुलआरा भाई के आसपास मंडरा रही थी. उस ने भाई के कान में कुछ कहा और फव्वाद उठ कर उस का हाथ थामे हवेली से जुड़े हुए हिस्से की तरफ चला गया. यह पोर्शन हवेली में ही था पर अलगथलग बना था. बड़ा सा बरामदा, शानदार ड्राइंगरूम उस के बाद नयनतारा का कमरा था. जोकि कीमती फर्नीचर से सजा हुआ था. बड़े से पलंग पर सफेद कपड़ों में नयनतारा बैठी हुई तस्बीह पढ़ रही थी.

‘फूफीबीबी सलाम’ कह कर दोनों भाईबहन फूफी के गले लग गए. नयनतारा ने बहुत प्यार से दोनों की पेशानी चूमी और उन से बातें करने लगी. पूरा कमरा सफेद चादरों और सफेद परदों से ढका हुआ था. माहौल में हलकी सी लोबान की खुशबू फैली हुई थी. कहीं से भी खुली हवा, खुला आसमान और चमकते सूरज का गुजर न था. ठंडा पुरसुकून कमरा.

नयनतारा सफेद कपड़े ही पहनती थी. पेशानी तक सिर ढका रहता था. हाथों में हीरों की चूडि़यां, कानों में हीरों के टौप्स, निगाहें नीचे ?ाकी हुईं, धीमी आवाज में बातें करती किसी संगमरमर के बुत की तरह मालूम होती थी. उस का सब मर्दों से परदा रहता था. कभीकभार भाई जव्वाद शाह इतिला कर के बहन से मिलने आते थे. भतीजा फव्वाद अकसर ही उस के पास आता रहता था. उस के अलावा किसी गैरमर्द की परछाईं पड़ना भी गुनाह था. एक उस की खास नौकरानी रशीदा थी. वही हवेली से उन का खाना वगैरह ले कर आती थी और उन की खिदमत करती थी.

नयनतारा जव्वाद शाह की छोटी बहन थी. जब वह जवान हुई तो उस की खूबसूरती के चर्चे दूरदूर तक फैल गए. गुलाबी रंग, बड़ीबड़ी शरबती आंखें, कमर तक लहराती काली जुल्फें. जो एक नजर डाले, देखता ही रह जाए. हुस्न के साथ दौलत, रुतबा, खानदान और इज्जत- किसी चीज की कमी न थी. एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे थे पर जव्वाद शाह के वालिद समद शाह ने हर रिश्ते को बेरुखी से इनकार कर दिया और अच्छी तरह से सब को सम?ा दिया.

‘‘हमारे खानदान में बिरादरी से बाहर लड़की देने का रिवाज नहीं है. हमारे सैयदों के खून में मिलावट आ जाएगी. हम अपने ही रिश्तेदारों में बेटी दे सकते हैं, बाहर नहीं देते. भाई या बहन या कजिन की आलौद को लड़की दे सकते हैं. हम खानदान के बाहर लड़की दे कर अपनी नस्ल खराब नहीं कर सकते.’’ बदनसीबी से उन के भाई या बहन के यहां नयनतारा के जोड़ का कोई लड़का न था.

जव्वाद शाह के दोस्त कर्नल हमीद के बेटे निसार लंदन से बैरिस्टर का कोर्स कर के वापस आए. जव्वाद शाह ने उन की शानदार दावत का इंतजाम किया. निसार ऊंचे पूरे खूबसूरत मर्द थे. इल्म व सम?ादारी की दौलत से मालामाल. दावत में उन की मुलाकात नयनतारा से हुई. दोनों में बातचीत भी हुई. बैरिस्टर निसार एक नजर में ही नयनतारा पर आशिक हो गए और एक फैसला कर लिया कि शादी करेंगे तो नयनआरा से ही करेंगे वरना सारी उम्र कुंआरे रहेंगे.

दिल की मांगें भी अजीब ही होती हैं. अंदाज भी निराले हैं उस के. जो वह चाहता है उसे पाना जिंदगी का मकसद बन जाता है. उन्होंने अपनी मरजी कर्नल हमीद को बताई. कर्नल हमीद बेहद खुश हुए. वे भी खानदानी व अमीर लोग थे. कर्नल हमीद अपने बेटे का रिश्ता ले कर जव्वाद शाह के यहां गए और बहुत चाहत से उन की बहन नयनतारा का हाथ मांगा.

जव्वाद शाह ने उन की अच्छी खातिर की पर नयनतारा का रिश्ता देने से साफ इनकार कर दिया, कहा कि हमारे यहां खानदान से बाहर लड़की देने का रिवाज नहीं है. कर्नल साहब ने बड़ी मिन्नतें कीं पर जव्वाद शाह टस से मस न हुए. वे लोग मायूस और नाकाम लौट आए.

नयनतारा को भी बैरिस्टर निसार बहुत पसंद आए थे. पढ़ालिखा, चाहने वाला हमसफर हर किसी की ख्वाहिश हो सकती है. उस के दिल में भी मोहब्बत के जज्बात उभर आए. लगातार 3-4 महीने तक कर्नल हमीद चक्कर लगाते रहे. तरहतरह की दलीलें दीं पर जव्वाद शाह ने रस्मोरिवाज, रिवायतों की दुहाई दे कर अपने इनकार को नहीं बदला.

यह सब देखसुन कर नयनतारा ने अम्माजी से कहा, ‘अम्माजी, रिश्ता अच्छा है, निसार पढ़ालिखा व सुल?ा हुआ इंसान है, खानदान भी अच्छा है. फिर अब्बा और भाई इस रिश्ते का विरोध क्यों कर रहे हैं? आप उन्हें बता दीजिए कि यह रिश्ता मु?ो मंजूर है, इसलिए निसार का रिश्ता कुबूल कर लें.’

मासूम नयनतारा यह नहीं जानती कि इस रिवायत, खानदान और रुतबे के पीछे जायदाद का मसला था. समद शाह और जव्वाद शाह नहीं चाहते थे कि उन की जमीनजायदाद खानदान से बाहर जाए, क्योंकि इसलाम में बहन का शरई हक हिस्से के रूप में देना जरूरी है और शरई हक में अच्छीखासी जमीन नयनतारा को देनी पड़ती, जो खानदान से बाहर चली जाती और एक खयाल यह भी था कि सैयद खून में मिलावट आ जाएगी. इसलिए खानदान में शादी करने का रिवाज एक रिवायत बन गया जिसे इन जमीनजायदाद वालों ने बड़ी मजबूती से पकड़ लिया और इस के लिए अपने पीरों को खुश कर के एक गैरइंसानी तरीका ढूंढ़ निकाला.

इस तरीके के पीछे जागीरदारों की जमीन की हवस और खुदगर्जी शामिल थी. आखिर में हमीद साहब ने अपने एक मिनिस्टर दोस्त के जरिए जव्वाद शाह पर दबाव डलवाया. इस का भी कुछ असर न हुआ. इस बार बेइज्जत कर के इनकार कर दिया गया. अब की बार नयनतारा ने भी निसार के हक में आवाज उठाई तो जव्वाद शाह को लगा, खतरा सिर पर मंडरा रहा है. नयनतारा के दिल में भी मोहब्बत की आग भड़क उठी है. समद शाह और जव्वाद शाह गुस्से से भड़क उठे. लगा, कहीं नयनतारा बगावत न कर बैठे, उसे निसार का साथ हासिल है.

सब प्लानिंग में लग गए. उन के पीरसाहब भी आए. 4 दिनों बाद जव्वाद शाह ने खानदानभर में ऐलान कर दिया कि नयनतारा का रिश्ता तय हो गया. अगले जुम्मे को उस का निकाह है. सारे लोग ताज्जुब में पड़ गए कि इतनी जल्दी लड़का भी मिल गया और शादी भी तय कर दी.

सभी जानने की कोशिश में लगे थे कि आखिर कहां शादी हो रही थी. नयनतारा की शादी को सुन कर निसार के दिल पर खंजर चल गए. करीबी रिश्तेदारों को असलियत पता थी. जुम्मे की शाम को पूरा खानदान व मेहमान जमा हो गए. निसार भी दिल पर पत्थर रख कर शादी में पहुंचे. वहां बाकायदा नयनतारा का निकाह कुरान शरीफ से कर दिया गया. अब नयनतारा पाक बीबी थी, उस को हवेली के एक अलग पोर्शन में परदे में बिठा दिया गया. अब उस की शादी किसी और से नहीं हो सकती थी, कोई गैरमर्द उस से नहीं मिल सकता था.

वह अब ‘पाक बीबी’ बन कर जिंदगी गुजारेगी. दुनिया व दुनियादारी से उस का कोई ताल्लुक न होगा. जब उस की शादी कुरान शरीफ से की गई, वह सिर्फ  19 साल की थी. वह बहुत रोई थी, गिड़गिड़ाई थी कि उस की शादी कुरान शरीफ से न की जाए.

उस ने इनकार की धमकी भी दी पर बाप और भाई ने खुद को गोली मार कर मर जाने की धमकी दी. बेटी मांबाप की मोहब्बत के आगे मजबूर हो जाती है. लाख पढ़ीलिखी सही, पर बाप की इल्तजा और बेबसी ठुकरा न सकी और कुरान शरीफ से शादी करने पर राजी हो गई. इस तरह खानदान, इज्जत व रुतबे की दुहाई दे कर एक मासूम लड़की को तिलतिल मरने के लिए छोड़ दिया गया.

पीरसाहब ने भी उसे खुदा की राह में खुद को कुरबान करने की नसीहत दी? नयनतारा की शादी कुरान शरीफ से हो ही गई. आज इस बात को 10 साल गुजर चुके थे. वह 10 साल से तनहाई का अजाब काट रही है. सारे जवान जज्बात, रेशमी ख्वाब और पुरशबाब हुस्न पाक बीबी के नाम पर दफन कर दिए गए.

उस के पास कसबे की औरतें अपने दुखदर्द व मसले ले कर आती हैं. वह उन्हें सलाह देती है, बीवी होने के फर्ज सही तरीके से निबाहने की नसीहत देती है. वह, जिस की शादी मर्द से नहीं हुई, जिसे शादीशुदा जिंदगी का कोई तजरबा नहीं है, शादीशुदा महिलाओं को खुशहाल शादीशुदा जिंदगी जीने का फलसफा सम?ाती है, यह कैसा मजाक है?

नयनतारा की कुरान से शादी के एक साल बाद ही समद शाह पर फालिज का असर हो गया. 3 साल बिस्तर पर टांगें रगड़ते रहे. नयनतारा का नाम सुनते ही रोने लगते. अब शायद अपने किए पर पछता रहे थे. पर अब तो जबान भी बंद हो चुकी थी. मरने से पहले बेटी से मिलने ले जाया गया, हाथ जोड़ कर बस, आंसू बहाते रहे और फिर खत्म हो गए, कुछ कह न सके.

गुलआरा और फव्वाद को फूफी से बड़ी मोहब्बत थी. अकसर उन के पास आते और उन्हें देख कर बेचैन हो जाते. वे लोग भी सड़ीगली रिवायतों व दस्तूर के आगे मजबूर थे. फव्वाद शाह के लंदन जाने के बाद हवेली में सन्नाटा खिंच गया. गुलआरा मैट्रिक का एग्जाम दे रही थी और गेतीआरा प्राइवेट बीए कर रही थी. यह अच्छा था कि जव्वाद शाह ने लड़कियों को तालीम से नहीं रोका.

वक्त अपनी रफ्तार से गुजर रहा था कि जव्वाद शाह को सीवियर हार्टअटैक हुआ. मजबूरी में डा. अजमत का हवेली में रोज का आनाजाना हो गया और यह मजबूरी 2 तड़पते दिलों के लिए खुशगवार हवा का ?ांका साबित हुई. अजमत और गेतीआरा की रोज ही मुलाकात हो जाती, कभीकभी बात करने का मौका भी मिल जाता. जव्वाद शाह को कंपलीट आराम की सलाह दी गई थी.

मुंशी करीम अली ने जमीनजायदाद के साथसाथ घर के कामकाज भी संभाल लिए थे. इलाज व दवा लाने की पूरी जिम्मेदारी अजमत अली पर थी. मजबूरी का पौधा जितना तेजी से बढ़ रहा था, मुहब्बत के फूल उतने ही ?ाम कर निकल रहे थे.

जव्वाद शाह को मौत की आहट सुनाई दे रही थी. वे बड़ी बेचैनी से फव्वाद शाह का इंतजार कर रहे थे. उन्हें गेतीआरा की फिक्र सता रही थी. कुछकुछ अंदाज उन्हें भी हो रहा था कि अजमत का बारबार आना, पूरी तवज्जुह से उन का इलाज करना, हर खिदमत के लिए तैयार रहना कहीं कोई गुल न खिला दे. उन्हें बेटे के आने के बाद पहला काम गेतीआरा की शादी करना था. फव्वाद एक साल बाद कानून की डिग्री ले कर लौट आया. उन्होंने फौरन मुंशी करीम अली से जमीन के सारे काम ले कर बेटे को सौंप दिए कि बारबार मुंशीजी को हवेली में आना न पड़े.

फव्वाद नई नस्ल का पढ़ालिखा नौजवान था. उस ने सारे जायदाद के काम मुंशीजी को वापस सौंप दिए, जो सुधार उसे जरूरी लगे उस ने उसे करना शुरू कर दिया. जो गरीब किसानों की घर व जमीनें थोड़ीथोड़ी रकम के एवज में जव्वाद शाह के पास गिरवी रखी थीं, वह सारा कर्ज माफ कर के उस ने गरीबों की जमीनें उन्हें लौटा दीं. कसबे में अपनी जमीन पर एक अच्छे अस्पताल की बुनियाद रखी. लड़कियों का हाईस्कूल खोलने की मुहिम शुरू कर दी. लाखों रुपया जो तिजोरी में सड़गल रहा था उस का सदुपयोग शुरू कर दिया.

मुंशी करीम अली पूरी तरह फव्वाद के साथ थे. नई नस्ल के नौजवान अच्छे कामों में उस का पूरा सहयोग कर रहे थे. जव्वाद शाह काफी कमजोर हो गए थे. इस लायक नहीं थे कि जायदाद या हिसाबकिताब देखते. सारा कुछ फव्वाद शाह के हाथ में था. उस का इरादा कसबे में नई रोशनी लाने का था. पैसे, दिमाग व तकनीक की कमी न थी. नई पीढ़ी साथ थी ही.

 

ADANI, Adani और अडानी

ADANI: हम भारतवासी ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों के लोग खुलेआम विश्वास करते हैं कि ‘समर्थ को दोष नहीं गुसाईं’. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परम मित्र व भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी पर भारतीय नेताओं, अफसरों, मंत्रियों को 2,000 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का अमेरिका की जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया है तो यह न सम  झें कि गौतम अडानी (Gautam Adani) या उन के परिवार या अफसरों का कुछ बिगड़ेगा. बस, वकीलों पर कुछ सौ करोड़ रुपए खर्च जरूर होंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. मालूम हो कि यह आरोप अमेरिका में मौजूद अडानी की एक कंपनी पर अमेरिकी जांच एजेंसियों ने लगाया है.

 

इस खुलासे के बाद एक रोज तो स्टौक मार्केट में अडानी के शेयर गिरे पर दूसरे दिन संभल गए जो साफ करता है कि आम अमीर को अडानी के गोरखधंधों से कोई परेशानी नहीं है और उसे पूरा, पक्का, दृढ़, हिमालय जैसा विश्वास है कि एकदो लैंडस्लाइडों का मतलब यह नहीं है कि जो ‘अडानी हिमालय’ भारत के आधिकारिक शक्तिशाली नेता नरेंद्र मोदी की ठोस जमीन पर खड़ा है, वह कहीं जाने वाला नहीं है.

 

नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी का साथ पुराना है. वैसे, हर नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री किसी न किसी उद्योगपति को पाले रखता है और न महात्मा गांधी, न जवाहरलाल नेहरू, न सरदार वल्लभभाई पटेल, न इंदिरा गांधी या बीसियों मुख्यमंत्री और सैकड़ों सांसद इस से परे हैं और न आने वाले होंगे.

 

नेताओं को उद्योगपति तो पालने ही होते हैं क्योंकि नेतागीरी मुफ्त में नहीं चलती. घर के खर्च, कपड़ों, खाने, घूमनेफिरने सब में खर्च होता है. कोई समाज नेताओं को इतनी तनख्वाह नहीं देता जितनी उन की आवश्यकता होती है.

 

वही समाज जो मंदिरों में अपने मतलब को सिद्ध करवाने व   झूठे आश्वासन या भरोसे पर भरभर के पैसे देता है, वह नेताओं से लेता है पर सीधे देते हुए कतराता है. नेताओं के घर के सामने पांचसात ताले लगे गुल्लकें नहीं रखे होते हैं जिन में आने वाले अपनी श्रद्धा से पैसे डाल सकें पर हर मंदिर, चर्च, मसजिद, गुरुद्वारे में ये दिख जाएंगे. आमतौर पर तो एक नहीं बल्कि आठ से दस हुंडियां, अलमारियां, दानपात्र, डोनेशन बौक्स वहां रखे होते हैं.

 

नेताओं को पैसा तो उद्योगपति देता है पर वह मुफ्त में नहीं देता. वह जानता है कि उसे कुछ मिलने वाला है. सरदार वल्लभभाई पटेल की महान प्रशंसा करने वाली एक किताब ‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’ में लेखक हिंडोल सेनगुप्ता उद्योगपति जी डी बिड़ला की आत्मकथा का एक प्रसंग उद्धृत करता है- ‘‘मु  झे टैलीग्राम मिलता था, ‘कम इमीडिएटली’ (तुरंत आओ) और जब मैं आता तो वे (पटेल) बताते कि मु  झे क्या करना है. आखिरकार बात जमा (पैसा) करने पर ही आ जाती थी. मैं ने एक बार पटेल को बताया भी कि गांधी ने कहा था, ‘मैं सरदार का पैसा इकट्ठा करना पसंद नहीं करता.’ इस पर पटेल का उत्तर था, यह उस की (गांधी) चिंता नहीं है. गांधी महात्मा है, मैं नहीं. मु  झे काम करना है.

 

जब आजादी से पहले, सत्ता में न होने के बावजूद, नेताओं का यह हाल था तो आज दशकों से सत्ता में काबिज नरेंद्र मोदी जिन को गुजरात से सब से ज्यादा पैसा मिलता है, वहीं के गौतम अडानी (ADANI)  अगर कोई छोटामोटा कांड कर रहे हों तो कोई दूसरा उन का क्या बिगाड़ सकता है. इतिहास गवाह है कि न ब्रिटिश शासकों ने घनश्याम दास बिड़ला का कुछ बिगाड़ा, आजादी के बाद न नेहरू या इंदिरा ने.

 

इसी तरह अमेरिकी अदालत गौतम अडानी का कुछ बिगाड़ सकेगी, इस में संदेह है. पटरी पर दुकान लगाने वाले से पुलिस वाले को पूरा हफ्ता न मिले तो वह उसे 8 दिन तक जेल में बिना कागज तैयार किए रख सकता है, किसी मेहुल चौकसी, किसी ललित मोदी, किसी नीरव मोदी, किसी विजय माल्या, किसी नए पटेल का कोई नहीं बिगाड़ सकता. नेता तो आतेजाते रहते हैं. जिन 4 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अडानी ग्रुप (ADANI) से अमेरिकी अदालत के अनुसार रिश्वत ली भी, उन में से 3 को विदा किया जा चुका है. एक बाकी है. कौन जाने कि राजनीतिक विदाई के पीछे यही रिश्वत कांड था जो उस समय जांच के दायरे में था जब चुनाव हो रहे थे.

 

जनता से आग्रह है कि वह इस मामले में चुप रहे. उसे अपने पुराणों की कहानियां पढ़नी चाहिए जिन में राजा जनता से पैसा वसूल कर यज्ञ कराते थे और ऋषियों, मुनियों को यज्ञ के बाद भरपूर सोना, गाएं, वस्त्र, दास, दासियां देते थे. आज ऋषि भी समर्थ है, राजा भी, अडानी भी (ADANI) . इन सब का कोई दोष नहीं है.

 

Inner Beauty : तीखे नैननक्श नहीं Smartness बनाता है ‘सबसे हटके’

Inner Beauty : “अरे, ये आप की बेटी है? आप का रंग तो बहुत साफ है ! इस के नैननक्श और रंग आप जैसे बिल्कुल नहीं हैं. शायद आपने बचपन में इसे उबटन नहीं लगाया…”

पड़ोस वाली आंटी की बात सुन कर 17 साल की रिया अपनी मौम की तरफ देखने लगी. रिया की मौम और रिया की आंखोंआंखों में बात हुई और दोनों मुसकरा दिए और पड़ोसन को कुछ समझ नहीं आया और वह खिसिया कर वहां से चली गई !

दरअसल, रिया की मौम ने रिया को बचपन से यह बात सिखाई थी कि अगर आप को दुनिया और अपनी नज़रों में खूबसूरत  बनना है तो रंग, नाकनक्श और फिगर से ज्यादा अंदर की खूबसूरती निखारनी चाहिए. अपनी पर्सनालिटी पर ध्यान देना चाहिए और लोगों की बाहरी सुंदरता (inner Beauty) के पैमाने के तराजू में खुद को नहीं तोलना चाहिए. यही कारण था कि रिया को पड़ोस वाली आंटी की बात का कोई फर्क नहीं पड़ा.

आमतौर पर हमारे समाज में जब लड़कियों की खूबसूरती की बात आती है तो लोग रंग, नाकनक्शर और फिगर की बात करते हैं. उन्हें बचपन से ही सिखाया जाता है कि तुम्हारे लिए खूबसूरत दिखना जरूरी है. लोग उन्हें क्यों नहीं सिखाते कि यदि आप शिक्षित नहीं हैं आप में आत्मविश्वास नहीं है आप में इंसानियत नहीं है तो उस सुंदरता का कोई मोल नहीं है.

सुंदरता से जरूरी Inner Beauty 

बाहरी खूबसूरती (inner Beauty) के साथ दिल की खूबसूरती यानी इनर ब्यूरटी बहुत मायने रखती है. कोई भी भले ही दिखने में चाहे कितना ही खूबसूरत हो लेकिन उस के अंदर इंसानियत, आत्मविश्वास, अपने आसपास के लोगों के प्रति प्याोर और दुलार नहीं है वह भरोसेमंद नहीं है तो बाहरी खूबसूरती किसी को अपनी ओर अट्रैक्ट नहीं कर पाएगी.

व्यवहार की Beauty

बाहरी सुंदरता (Inner Beauty) से ज्यादा जरूरी यह है कि आप का लोगों के साथ व्यवहार कैसा है, उन के लिए आप की सोच कैसी है. लोगों के साथ सही तरीके से बात करने वाले, अच्छे से व्यवहार करने वाले को लोग पसंद करते हैं क्योंकि सुंदरता सिर्फ चेहरे से नहीं बल्कि व्यवहार से भी होती है.
कोई भी लड़की दिखने में चाहे कितनी ही गुड लुकिंग क्यों न हो लेकिन वह सैल्फिश हो हमेशा खुद के बारे में सोचती हो, किसी की परवाह न करती हो तो ऐसी लड़की को कोई पसंद नहीं करेगा लेकिन अगर वहीं अगर वह खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचती हो, खुद को भूल कर सब की मदद करने की कोशिश करती हो, उस के अंदर इंसानियत हो तो उस के पीछे पूरी दुनिया खड़ी रहती है और उस के आसपास के लोग उस की इज्जउत करते हैं.
इसी तरह अगर किसी के मन में सभी के लिए प्याेर या दुलार का भाव हो तो यकीन मानिए वह लड़की हर दिल पर राज कर सकती है.

इंटेलिजेंस और आत्मविश्वास

आत्म विश्वापस किसी की भी पर्सनैलिटी को कई गुना निखारने में मदद करता है. आप ही सोचिए आप के सामने दो लड़कियां हैं, एक सिर्फ दिखने में अच्छी है लेकिन उसे अपने काम की कोई समझ या जानकारी नहीं है, वह अपनी बात सही से प्रेजेंट नहीं कर पाती वहीं दूसरी ओर एक लड़की है जो दिखने में भले ही साधारण हो लेकिन उसे अपने काम की पूरी नौलेज है, वह आपनी बात को सही तरीके से कौन्फिडेंटली प्रेजेंट कर पाती है तो आप पक्का दूसरी लड़की से ही इंप्रेस होंगे.

जिंदादिली

कोई भी लड़की सुंदर है लेकिन वह एरोगेंट है किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती ,चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं तो आप भी बताइए क्या आप उसे पसंद करेंगे? वहीं एक साधारण दिखने वाली लड़की जो लोगों के साथ काफी गर्मजोशी से खुश हो कर मिलती है और लोगों के साथ उस का व्यवहार अच्छाम है तो यकीन मानिए यहां भी आप की चौइस दूसरी लड़की ही होगी.

स्मार्ट दिखना है अधिक जरूरी

खूबसूरती से ज्यादा जरूरी है किसी का भी स्मार्ट दिखना. कोई भी अगर कितना भी खूबसूरत हो लेकिन उसे ड्रैसिंग सेंस सही नहीँ हो, उसे किसी सिचुएशन को हैंडल करना नहीं आता हो, वह छोटीछोटी बात में पैनिक कर जाती हो, मेंटली स्ट्रौंग न हो, लोगों से बात करते समय आई कान्टेक्ट न करता हो, आप का बौडी पोस्चर सही न हो तो उसे कोई पसंद नहीं करेगा क्योंकि सिर्फ बाहरी खूबसूरती(inner Beauty)  किसी काम की नहीं, अगर कोई स्मार्ट न हो.

स्मार्ट और अट्रैक्टिव दिखने के तरीके

अट्रैक्टिव और स्पैशल दिखने के लिए कुछ बातों को, कुछ खास आदतों को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बना कर, पर्सनैलिटी में शामिल कर के आप खुद को आसानी से निखार सकती हैं. लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं.

सेल्फ केयर रूटीन

भरपूर नींद लेने से ले कर डेली वर्कआउट और साफसफाई का सैल्फ केयर फार्मूला फौलो कर के पर्सनैलिटी में निखार लाया जा सकता है.

काम में एक्टिव रवैया

घर और औफिस के कामों में ढीलाढाला रवैया रखने की बजाय एक्टिव रेस्पोन्सिव और एनर्जेटिक रवैया रख कर अपने सैल्फ कान्फिडेंस को बूस्ट किया जा सकता है, आसपास के लोगों को इंप्रेस किया जा सकता है.

विनम्रता और शिष्टता

बाहरी खूबसूरती (Beauty) में निखार की जगह अपने साथ रहने वाले लोगों के साथ विनम्रता और शिष्टता से पेश आना सहानुभूति रखना, लोगों की ज्यादा से ज्यादा मदद करना किसी की भी पर्सनैलिटी को अट्रैक्टिव बनाएगा.

पौजिटिव एटीट्यूड

हर बात में निराशा, लोगों में कमियां ढूंढने के रवैये की जगह पौजिटिव एटीट्यूड की मदद से भी व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है. ऐसे में हमेशा खुद की स्ट्रेंथ पर फोकस कर के और हर चीज को पौजिटिव सोच के साथ देख कर पर्सनैलिटी में निखार लाया जा सकता है.

रिश्तों और काम में ईमानदारी

कोई भी लड़की घर बाहर, औफिस में अपने काम, रिश्तों के प्रति ईमानदार और औनेस्ट एटीट्यूड फौलो कर के खुद को अट्रैक्टिव बना सकती हैं. ऐसा कर के वह दूसरों को आसानी से इंप्रेस कर सकती है और लोगों के सामने अपनी पौजिटिव इमेज भी बरकरार रख सकती है.

Neighbours : पड़ोसी है पहरेदार तो काहे का डर

Neighbours :  पड़ोसी ही हैं जिन की जरूरत हर छोटीबड़ी चीजों में पड़ ही जाती है. एक पल के रिश्तेदारों से भले संबंध बिगड़ जाएं पर पड़ोसियों से बिगाड़ कर हरगिज न रखें.

पहले के जमाने में जहां लोग आसपड़ोस में रहने वाले लोगों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखते थे. महल्ले में पड़ोसियों (Neighbours) का जमावड़ा लगता था वो अब नजर नहीँ आता. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों की ज़िंदगी अपने तक ही सीमित होती जा रही है. अब तो आलम यह है कि बड़े शहरों में लोगों को ये भी नहीं पता कि उन के पड़ोसी कौन हैं. लोग भूल रहे हैं कि पड़ोसी से अच्छी जानपहचान, नजदीकियां और बेहतरीन रिश्ते जिंदगी के तनाव को कम कर के खुशियों को बढ़ाने का काम कर सकते हैं.

दरअसल, पड़ोसी ही हमारे सुखदुख के साथी होते हैं. कभी भी अचानक ज़रूरत पड़ने पर पड़ोस में रहने वाले लोग ही आप की मदद के लिए आते हैं. कुछ समय पहले जब मुझे और मेरी बेटी को वायरल फीवर हुआ तब दो दिन तक मेरे लिए बिस्तर से उठ पाना भी मुश्किल था. उस समय मेरी पड़ोसन ही थी, जिन्होंने मेरे और मेरी बेटी के लिए खाना बनाया और ठीक होने तक हमारी देखभाल की. इसीलिए कहते हैं कि पड़ोसी से हमेशा अपने रिश्ते को मजबूत बना कर रखना चाहिए.

घर में कोई बीमार है और डाक्टर के पास ले जाने वाला नहीं है तो पड़ोसी से अच्छे रिश्ते होने पर वे मदद कर सकते हैं. इस के अलावा बच्चों की देखभाल, मार्केट से सामान मंगाना, और भी छोटेमोटे काम में पड़ोसी से मदद ले सकते हैं. जमेटो, ब्लिंकइट के भरोसे रहने की बजाय पड़ोसी के घर चाय पीने चले जाएं. पड़ोसियों को इन्वाइट करें, जरूरत न हो तब भी धनिया, नींबू मांग लें और उन के साथ एक मजबूत रिश्ता बनाएं. आप चाहें तो अपने पड़ोसी के साथ मार्निंग वाक का रूटीन भी बना सकते हैं.

भविष्य की जरूरत के लिए आज रिश्ता बनाएं

यह न सोचें कि आज पड़ोसी से कोई काम नहीं है या उन की जरूरत नहीं है तो आज उन से रिश्ता बनाने की जरूरत नहीं है, जब जरूरत पड़ेगी तब मदद मांग लेंगे. भविष्य की जरूरत के लिए आज से अभी से तैयारी शुरु करें. क्योंकि जरूरी नहीं जब आप को जरूरत होगी तब आप को पड़ोसी से मनचाही मदद मिल जाएगी.

Neighbours लंच-डिनर प्लान करें

बिजी लाइफस्टाइल के चलते अकसर लोगों का कई दिनों तक पड़ोसियों (Neighbours ) से आमनासामना नहीं हो पाता है. ऐसे में कुछ समय निकाल कर आप उन के घर जा सकते हैं. उन्हें अच्छी तरह से जाननेसमझने के लिए आप उन्हें घर पर लंच या डिनर के लिए भी बुला सकते हैं और उन से अच्छे रिश्ते बनाने की शुरुआत कर सकते हैं. इस से आप को पड़ोसी के साथ अच्छा समय गुजारने का मौका मिलेगा और आप उन के व्यवहार और कल्चर को भी अच्छी तरह से समझ सकेंगे.

रिश्तों में गलतफहमी न होने दें

पड़ोसियों (Neighbours )  के साथ अपने रिश्तों में कभी कोई गलतफहमी न होने दें. इस से आप के और पड़ोसी के बीच में रिश्तों में दरार आ सकती है. अगर उन से किसी बात पर शिकायत हो या उन की कोई बात गलत लगने पर आप उन से उस विषय में बात कर के गलतफहमी और गिलेशिकवे दूर कर सकते हैं. इस से उन के साथ आप के रिश्तों में मिठास बनी रहेगी.

इस के अलावा निम्न तरीके अपना कर भी आप पड़ोसियों के साथ रिश्ते मजबूत और मधुर बना सकते हैं.

– पड़ोसियों से जब भी मिलें मुसकराते हुए मिलें. देख कर मुंह न फेरें. उन के साथसाथ उन के घरपरिवार के हालचाल के बारे में भी पूछें.
– आप के घर में कोई भी फंक्शन हो, तो उन्हें बुलाएं और आप भी उन के इवेंट्स में शामिल होने की कोशिश करें. इवेंट्स में जो भी मदद हो सके करें.
– जब तक पड़ोसी खुद आप से सलाह या मदद न मांगे, उन के पर्सनल मामलों में दखल देने की कोशिश न करें और न ही यह जानने की कोशिश करें कि उन के घर-परिवार में क्या चल रहा है.
– अगर पड़ोसी (Neighbours )  ने आप के साथ कुछ पर्सनल चीज़ें शेयर की हैं तो उसे खुद तक ही सीमित रखें, न कि दूसरे लोगों से शेयर कर उन का विश्वास तोड़ने की गलती करें.
– पड़ोसी से रिश्ते मजबूत बनाए रखने के लिए भूल कर भी एक पड़ोसी की तुलना दूसरे पड़ोसी (Neighbours ) से न करें और साथ ही एकदूसरे की चुगली करने से भी बचें. इस से न सिर्फ आप के पड़ोसी की नजर में आप की इमेज खराब होगी बल्कि आप की उन से लड़ाई भी हो सकती है.
– देर रात तक जोर से म्यूजिक चलाना, कौमन एरिया को गंदा रखना, पार्किंग के लिए लड़ाई झगड़ा करना जैसे काम न करें. इस से पड़ोसियों को परेशानी हो सकती है.
– अगर आप लंबे समय के लिए बाहर जा रहे हैं, तो पड़ोसियों (Neighbours) के बता कर जाएं जिस से आप की गैरमौजूदगी में वे आप के घर का ध्यान रख सकें. इसी तरह उन के घर से बाहर जाने पर आप भी उन के घर की देखभाल करें.
– जरूरत की कोई चीज़ मांगने पर मना न करें. अगर आपने कोई खास डिश बनाई है, तो उसे उन के साथ शेयर करें. इस से रिश्तों में मिठास आती है.
– कभी भी अपने परिवार, धन-दौलत और प्रोफैशन के बारे में बढचढ़ कर बातें न करें और न ही उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करें. ऐसा करने से वे आप को घमंडी और शानची समझेंगे.
– हमेशा सिर्फ मदद मांगने के लिए ही पड़ोसियों का दरवाजा न खटखटाएं. कभीकभी हल्कीफुल्की बातचीत करने के लिए हालचाल जानने के लिए भी बात करें. ऐसा करने से भी रिश्तों में ताजगी आती है.
– त्योहारों, पड़ोसियों के बर्थडे, एनिवर्सरी आदि मौकों पर उन्हें विश करें और जैसा लें दें हो एक दूसरे को गिफ्ट दें.
– पड़ोसियों की गैरमौजूदगी में उन से फोन पर सलाह कर के उन का कोरियर आदि रिसीव करें और उसे संभाल कर रखें.

 

Family Ki Kahani : संस्कारी बहू

मुझे गुमसुम और उदास देख कर मां ने कहा, ‘‘क्या बात है, रति, तू इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठी है? कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया. दोनों ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या?’’

‘‘नहीं, मां, रोज रोज क्या बात करें.’’

‘‘कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे, सब व्यर्थ हो गई. यदि मनोज के दादाजी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को 15 दिन हो चुके होते. वह काफी बूढ़े थे. तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी पर तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी विचारों के हैं. कहते हैं कि साए नहीं हैं. अब तो 5-6 महीने बाद ही शादी होगी.

‘‘हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई. शादी के कार्ड बंट चुके थे. फंक्शन हाल को, कैटरर्स को, सजावट करने वालों को, और भी कई लोगों को एडवांस पेमेंट कर चुके थे. 6 महीने शादी सरकाने से अच्छाखासा नुकसान हो गया है.’’

‘‘इसी बात से तो मनोज बहुत डिस्टर्ब है, मां. पर कुछ कह नहीं पाता.’’

‘‘बेटा, हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनों के एहसास को समझ सकते हैं, पर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. मैं ने तो तेरी सास से कहा भी था कि साए नहीं हैं तो क्या हुआ, अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं…अब हमें शादी कर देनी चाहिए.

‘‘मेरा इतना कहना था कि वह तो भड़क गईं और कहने लगीं, आप के लिए सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में भरोसा करते हैं. हमारा इकलौता बेटा है, हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई वहम पैदा नहीं करना चाहते.’’

रति सोचने लगी कि मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती हैं और मैं भी क्या करूं, मम्मी को कैसे बताऊं कि मनोज क्या चाहता है.

नर्सरी से इंटर तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. किंतु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी. इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में दाखिला ले लिया था. कालिज अलग होने पर भी हम दोनों छुट्टियों में कुछ समय साथ बिताते थे. बीच में फोन पर बातचीत भी कर लेते थे. कंप्यूटर पर चैट हो जाती थी.

एम.एससी. में आते ही मम्मीपापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी. मैं ने कहा भी कि मम्मी, एम.एससी. के बाद शादी करना पर उन का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है.

शादी की चर्चा शुरू होते ही मनोज की छवि मेरी आंखों में तैर गई थी. यों हम दोनों एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनों ने एकदूसरे से नहीं किए थे. साथ मिल कर भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का खयाल आना, क्या इसे प्यार समझूं. क्या मनोज भी यही चाहता है, कैसे जानूं उस के दिल की बात.

मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘इतनी जल्दी शादी कर लोगी, अभी तो तुम्हें 2 वर्ष एम.एससी. करने में ही लगेंगे,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोला था, ‘‘सीधेसीधे बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी…पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम 2-3 वर्ष लगेंगे.’’

प्रसन्नता की एक लहर तनमन को छू गई थी, ‘‘सच कहूं मनोज, जब मम्मी ने शादी की बात की तो एकदम से मुझे तुम याद आ गए थे…क्या यही प्यार है?’’

‘‘मैं समझता हूं यही प्यार है. देखो, जो बात अब तक नहीं कह सका था, तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुंह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला.’’

‘‘अब जब हम दोनों एकदूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा.’’

‘‘सोचना ही नहीं होगा रति, तुम्हें अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए मनाना भी होगा.’’

‘‘क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे?’’

‘‘देखो, अभी तो मेरा इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही है…उस की भी परीक्षा देनी है. वैसे हो सकता है इस साल किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाए क्योंकि कालिज में बहुत सी कंपनियां आती हैं और जौब आफर करती हैं. अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूंगा और जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूंगा.’’

प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था. अब इस का जिक्र अपनेअपने घर में करना जरूरी हो गया था.

मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं, ‘‘वह अपनी जाति का नहीं है…यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिलकुल नहीं मानेंगे. क्या मनोज के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘अभी तो इस बारे में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते. फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कंपनी में जौब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कंपनी ज्वाइन कर लेगा. उस के बाद ही वह अपने मम्मीपापा से बात करेगा.’’

‘‘क्या जरूरी है कि वह मान ही जाएंगे?’’

‘‘मम्मी, मुझे पहले आप की इजाजत चाहिए.’’

‘‘यह फैसला मैं अकेले कैसे ले सकती हूं…तुम्हारे पापा से बात करनी होगी…उन से बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी. यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी?’’

‘‘करना क्या है मम्मी, शादी होगी तो आप के आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी.’’

इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को एक बड़ी कंपनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीबकरीब तय था कि भविष्य मेें कभी भी कंपनी उसे यू.एस. भेज सकती है. मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी.

मैं ने मम्मी को जैसेतैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किंतु मनोज की मम्मी इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं. इस फैसले से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उस के घर में पापा से ज्यादा उस की मम्मी की चलती है. ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था…मनोज ने भी अपने घर में ऐलान कर दिया था कि शादी करूंगा तो रति से वरना किसी से नहीं.

आखिर मनोज के बहनबहनोई ने अपनी तरह से मम्मी को समझाया था, ‘‘मम्मी, आप की यह जिद मनोज को आप से दूर कर देगी, आजकल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें. आज के ही अखबार में समाचार है कि मातापिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमीप्रेमिका ने आत्महत्या कर ली…वह दोनों बालिग हैं. मनोज अच्छा कमा रहा है. वह चाहता तो अदालत में शादी कर सकता था पर उस ने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है. अब फैसला आप को करना है.’’

मनोज के पिता ने कहा था, ‘‘बेटा, मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं है…लड़की पढ़ीलिखी है, सुंदर है, अच्छे परिवार की है… और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है. बस, हमारी जाति की नहीं है तो क्या हुआ पर तुम्हारी मम्मी को कौन समझाए.’’

‘‘जब सब तैयार हैं तो मैं ही उस की दुश्मन हूं क्या…मैं ही बुरी क्यों बनूं? मैं भी तैयार हूं.’’

मम्मी का इरादा फिर बदले इस से पहले ही मंगनी की रस्म पूरी कर दी गई थी. तय हुआ था कि मेरी एम.एससी. पूरी होते ही शादी हो जाएगी.

मंगनी हुए 1 साल हो चुका था. शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी. मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनों अब तक हनीमून मना कर कुल्लूमनाली, शिमला से लौट चुके होते और 3 महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती.

पर अब 6-7 महीने तक साए नहीं हैं अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज की मम्मी ने कहा है. पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है. इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हां, यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती.

पर मैं क्या करूं. माना कि उस के भी कुछ जजबात हैं. 4-5 वर्षों से हम दोस्तों की तरह मिलते रहे हैं, प्रेमियों की तरह साथसाथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे हैं किंतु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा. यद्यपि उस का बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी कर लेता पर मेरा फाइनल साल था इसलिए वह मन मसोस कर रह गया.

प्रतीक्षा की लंबी घडि़यां हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे. हम दोनों बेताबी से शादी के दिन का इंतजार करते रहे. दूरी सहन नहीं होती थी. साथ रहने व एक हो जाने की इच्छा बलवती होती जाती थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सपनों के रंगीन समुंदर में गोते लगाते दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे. शादी के 10 दिन पहले हम ने मिलना भी बंद कर दिया था कि अब एकदूसरे को दूल्हादुलहन के रूप में ही देखेंगे पर विवाह के 7 दिन पहले बाबाजी की मौत हमारे सपनों के महल को धराशायी कर गई.

बाबाजी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था, ‘‘बाबाजी को भी अभी ही जाना था. हमारे बीच फिर अंतहीन मरुस्थल का विस्तार है. लगता है, अब अकेले ही अमेरिका जाना पडे़गा. तुम से मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है.’’

तेरहवीं के बाद हम दोनों गार्डन में मिले थे. वह बहुत भावुक हो रहा था, ‘‘रति, तुम से दूरी अब सहन नहीं होती. मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊं, जहां हमारे बीच न समाज हो, न परंपराएं हों, न ये रीतिरिवाज हों. 2 प्रेमियों के मिलन में समाज के कायदे- कानून की इतनी ऊंची बाड़ खड़ी कर रखी है कि उन की सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाए. चलो, रति, हम कहीं भाग चलें…मैं तुम्हारा निकट सान्निध्य चाहता हूं. इतना बड़ा शहर है, चलो, किसी होटल में कुछ घंटे साथ बिताते हैं.’’

जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था. एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखा को अब मिटा दें किंतु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना विवाह यह सब ठीक नहीं. वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बारबार सिर उठाएगी, ‘‘नहीं, यह ठीक नहीं.’’

‘‘क्या ठीक नहीं, रति. क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं? पतिपत्नी तो हमें बनना ही है. मेरा मन आज जिद पर आया है, मैं भटक सकता हूं, रति, मुझे संभाल लो,’’ गार्डन के एकांत झुटपुटे में उस ने बांहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था. मैं ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उस का आवेग कुछ शांत हो किंतु मनोज की गहरीगहरी सांसें और अधिक समा जाने की चाह मुझे भी बहकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘अपने को संभालो, मनोज. यह भी कोई जगह है बहकने की? मैं भी कोई पत्थर नहीं, इनसान हूं…कुछ दिन अपने को और संभालो.’’

‘‘इतने दिन से अपने को संभाल ही तो रहा हूं.’’

‘‘जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है. स्थायी समाधान के लिए अब हाथपैर मारने होंगे. चलो, बहुत जोर से भूख लगी है, एक गरमागरम कौफी के साथ कुछ खिला दो, फिर इस बारे में कुछ मिल कर सोचते हैं.’’

रेस्टोरेंट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की, ‘‘मनोज, तुम्हें अब एक ही काम करना है… किसी तरह अपने मातापिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं. आखिर वे हमारे शुभचिंतक हैं, तुम ने उन से एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिए न टाल कर अभी कर दें.’’

‘‘नहीं, यह तो नहीं कहा.’’

‘‘तो अब कह दो. कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने में हरेक को कुछ हिचक होती है. अपनी इंटरकास्ट मैरिज के लिए आखिर वह तैयार हो गए न. तुम देखना बिना सायों के शादी करने को भी वह जरूर मान जाएंगे.’’

मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी, ‘‘तुम ठीक कह रही हो रति, यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई? खाने के बाद तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं. कोर्ट मैरिज की डेट भी तो पास आ गई है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूंगा.’’

‘‘ठीक है, अब मैरिज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे.’’

‘‘मेरे आज के व्यवहार से डर गईं क्या? इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वह भी नहीं है?’’

‘‘चलो, फोन करने की इजाजत दे देते हैं.’’

रजिस्ट्रार के आफिस में मैरिज की फार्र्मेलिटी पूरी होने के बाद हम दोनों अपने परिवार के साथ बाहर आए तो मनोज के जीजाजी ने कहा, ‘‘मनोज, अब तुम दोनों की शादी पर कानून की मुहर लग गई है. रति अब तुम्हारी हुई.’’

‘‘ऐ जमाई बाबू, ये इंडिया है, वह तो वीजा के लिए यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नहीं मानते. हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी,’’ मेरी मम्मी ने कहा.

‘‘वह तो मजाक की बात थी, मम्मी, अब आप लोग घर चलें. मैं तो इन दोनों से पार्टी ले कर ही आऊंगा.’’

होटल में खाने का आर्डर देने के बाद मनोज ने अपने जीजाजी से पूछा, ‘‘जीजाजी, मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुंची या नहीं?’’

‘‘साले साहब, क्यों चिंता करते हो. हम दोनों हैं न तुम्हारे साथ. अमेरिका आप दोनों साथ ही जाओगे. मैं ने अभी बात नहीं की है, मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था. आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आप की बहन ने ली है. इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूंगा.’’

‘‘हां, भैया, मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूंगी.’’

‘‘हां, तू कोशिश कर ले, न माने तो मेरा नाम ले कर कह देना, ‘आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जाएंगे.’’’

‘‘वाह भैया, आज तुम सचमुच बड़े हो गए हो.’’

‘‘आफ्टर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूं.’’

‘‘ओके, भैया, अब हम लोग चलेंगे, आप लोगों का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘कुछ देर घूमघाम कर पहले रति को उस के घर छोडूंगा फिर अपने घर जाऊंगा.’’

मेरे गले में बांहें डालते हुए मनोज ने शरारत से देखा, ‘‘हां, रति, अब क्या कहती हो, तुम्हारे संस्कार मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं?’’

आंखें नचाते हुए मैं चहकी, ‘‘अब तुम नाइंटी परसेंट मेरे पति हो.’’

‘‘यानी टैन परसेंट की अब भी कमी रह गई है…अभी और इंतजार करना पडे़गा?’’

‘‘उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज…पर अब मैं तुम्हारी हूं.’’

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