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Kumkum Bhaya : 2 साल के लीप के बाद इतने बदल गए हैं सभी किरदार

जी टीवी के सीरियल कुमकुम भाग्य में 2 साल का लीप आ चुका है. जिसके बाद सब कुछ दर्शकों को पहले से अलग देखने को मिल रहे हैं. इसकी झलक कुछ वक्त पहले रिलीज हुए प्रोमो में दिखाया जा चुका है. इस शो के सभी किरदारों का लुक बदल गया है.

लीप के बाद से प्रज्ञा एक बिजनेस वूमन बन गई है, जिसके बाद से इसके तेवर में काफी ज्यादा बदलाव नजर  आ रहा है, चश्मा में नजर आने वाली प्रज्ञा अब स्टाइलिश वुमन बन गई है.

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वहीं प्रज्ञा का अभि यानि अभिषेक मेहरा लीप के बाद से पूरी तरह बर्बाद हो गया है. वह लग्जरी लाइफ से हटकर चॉल में रहना शुरू कर दिया है. वह मवाली गुंडे की तरह दर -दर की ठोकरे खा रहा है.

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लीप के बाद से रणवीर की जिंदगी भी पूरी तरह से बदल गई है, वह अपनी पत्नी प्राची के साथ रहना शुरू कर दिया है, 2 साल में रणवीर भी पूरी तरह बदल गया है.

सब पर अपना हुक्म चलाने वाली आलिया भी गरीब होने चुकी है और वह अपनी लाइफ स्टाइल एक चॉल में बिता रही है. जिससे उसके लुक में बहुत ज्यादा परिवर्तन आ गया है.

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रेहा कि जिंदगी भी बाकी किरदारों की तरह पलट चुकी  है. वह भी काफी अलग अंदाज में नजर आ रही है. वहीं प्राची अपनी गृहस्थी में व्यस्थ हो गई है और वह अपने पति के साथ खुशहाल जिंदगी बिता रही है.

एक से बढ़कर एक कपड़े पहनने वाली तनु अब सादे लिबास में नजर आएगी, उसकी हालत देखकर सभी को तरस आ रहा है.

तीसरी लहर से बचाव के लिए  प्रो-एक्टिव नीति

प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाने के बाद योगी सरकार ने तीसरी लहर से निपटने के लिए चक्रव्यूह तैयार कर लिया है. राज्यस्तरीय स्वास्थ्य परामर्श समिति ने तीसरी लहर को ध्यान में रख्रते हुए अपनी रिर्पोट यूपी सरकार को सौंप दी है. प्रदेशवासियों को कोरोना की तीसरी लहर से बचाने के लिए सरकार ने हर जिले की सुरक्षा के लिए चक्रव्यूह तैयार कर लिया है. मुख्यमंत्री यागी आदित्यनाथ ने महामारी से बचाव और इलाज के संबंध में राज्यस्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ परामर्श समिति की संस्तुतियों पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिए हैं.

कोरोना संक्रमण की संभावित तीसरी लहर और संचारी रोगों पर नियंत्रण के लिए सभी जिलों में पूरी सक्रियता से सरकार ने प्रयास शुरू कर दिए हैं. तीसरी लहर से निपटने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वच्छता, सैनिटाइजेशन, पीकू नीकू और मेडिकल मेडिसिन किट इस चक्रव्यूह का हिस्सा बनाया है. प्रदेश में युद्ध्स्तर पर पीकू नीकू की स्थापना और मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण की व्यव्स्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है. जून के अंत तक प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज में 100 बेड वाले पीकू नीकू और सीएचसी और पीएचसी में 50 नए बेड की व्यवस्था कर दी जाएगी.

27 जून से घर-घर वितरित की जाएंगी दवाएं

कोरोना की तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों की स्वास्थ्य, सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से घर-घर मेडिकल किट वितरण का विशेष अभियान शुरू किया है. जिसके तहत 27 जून से दवाएं घर-घर वितरित की जाएंगी. गांव से लेकर शहर तक प्रत्येक गली-कूचे और घर-घर तक पहुंच बनाने वाली निगरानी समितियों ने सरकार की योजनाओं का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है. यही कारण भी है कि सरकार ने मेडिकल किट वितरण की जिम्मेदारी भी निगरानी समिति के सदस्यों को सौंपी है. तीसरी लहर का डट कर मुकाबला करने के लिए प्रदेश की 3011 पीएचसी और 855 सीएचसी को सभी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया गया है. मेडिकल-किट में उपलब्ध दवाईयां कोविड-19 के लक्षणों से बचाव के साथ 18 साल से कम उम्र के बच्चों का मौसमी बीमारियों से भी बचाएंगी. तीसरी लहर से बचाव के लिए सरकार ने प्रदेश में 75000 निगरानी समितियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल मेडिसिन किट के वितरण को गति देने के लिए 60 हजार से अधिक निगरानी समितियों के चार लाख से अधिक सदस्यों को लगाया गया है.

प्रत्येक जरूरतमंद तक पहुंचेगी योगी सरकार की मदद

कोरोना प्रबंधन में निगरानी समितियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है. ऐसे में अब तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने इन समितियों  को विशेष जिम्मेदारी सौंपी है. गांवों में भ्रमण करते समय निगरानी समितियां यह भी सुनिश्चित करेंगी कि कोई जरूरतममंद राशन से वंचित न रहे.

तीसरी लहर से बचाव के लिए अपनाई जा रही प्रो-एक्टिव नीति

प्रदेश में विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के संबंध में योगी सरकार प्रो-एक्टिव नीति अपना रही है. सभी मेडिकल कॉलेजों में पीआईसीयू और एनआईसीयू की स्थापना को तेजी से पूरा किया जा रहा है.

यूपी के इतिहास में गेहूं की सबसे बड़ी खरीद

योगी सरकार ने गेहूं खरीद में सबसे बड़ा रिकार्ड बनाया है. 4 साल में राज्‍य सरकार 33 लाख से अधिक किसानों से 162.71 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद कर चुकी है. इस साल अप्रैल माह से शुरू हुई खरीद में राज्य सरकार ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. कुल 1288461 किसानों से 56.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई है. किसानों को 10019.56 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. जो अखिलेश सरकार के वर्ष 2016-17 में 7.97 लाख मीट्रिक टन खरीद के मुकाबले लगभग 8 गुना ज्‍यादा है.

राज्‍य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक रबी विपणन वर्ष 2017-18 में 800646 किसानों से 36.99 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई . 2018-19 में 52.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद कर 11,27195 किसानों को भुगतान किया. 2019-20 में 37.04 लाख मीट्रिक टन और 2020-21 में 35.76 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद की गई. वहीं सपा सरकार में वर्ष 2015-16 में 403141 किसानों से 22.67 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया. 2016-17 में केवल 7.97 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद की गई. 2013-14 में सबसे कम केवल 6.83 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई.

चार सालों में किसानों को उनके एक-एक दाने का भुगतान करने वाली राज्य सरकार ने 2017-18 में 6011.15 करोड़, 2018-19 में 9231.99 करोड़, 2019-20 में 6889.15 करोड़ और 2020-21 में 6885.16 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. जबकि अखिलेश सरकार में वर्ष 2012-13 में 6504.45 करोड़, 2013-14 में 921.96 करोड़, 2014-15 में 879.23 करोड़, 2015-16 में 3287.26 करोड़ और 2016-17 में 1215.77 करोड़ रुपये का भुगतान किसानों को किया गया.

धान खरीद में भी पिछली सरकार को छोड़ा मीलों दूर

धान खरीद में भी पिछली सरकारों के मुकाबले योगी सरकार ने नई उपलब्धियां हासिल की हैं. खरीफ की फसल में वर्ष 2020-21 में 66.84 लाख मीट्रिक टन धान खरीद कर 13 लाख से अधिक किसानों को 12438.70 करोड़ रुपये भुगतान किया.  2019-20 में 706549 किसानों से 56.57 मीट्रिक टन खरीद की गई. 2018-19 में 684013 किसानों से 48.25 मीट्रिक टन और 2017-18 में 492038 किसानों से 42.90 मीट्रिक टन धान खरीदा गया. धान खरीद में पिछली सरकारों को पीछे छोड़ते हुए चार सालों में योगी सरकार ने किसानों को सर्वाधिक लाभ देने का काम किया. सपा सरकार में वर्ष 2012-13 में 299044 किसानों से 17.79 लाख मीट्रिक टन धान खरीद की थी. 2013-14 में 123476 किसानों से 9.07 लाख मीट्रिक टन, 2014-15 में 196044 किसानों से 18.18 लाख मीट्रिक टन, 2015-16 में 433635 किसानों से 43.43 लाख मीट्रिक टन धान खरीद ही कर पाई थी. राज्य सरकार ने जहां चार साल के कार्यकाल में 3188529 किसानों को 37825.66 करोड़ रुपये का भुगतान किया. वहीं अखिलेश सरकार 05 सालों में केवल 1487519 किसानों को 17190.85 करोड़ रुपये ही भुगतान कर पाई थी.

Food processing: खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में संभावनाएं असीम, लेकिन मंजिल है दूर

लेखक-अरविंद कुमार सिंह

कृषि प्रधान भारत में आजादी के बाद सभी सरकारें खेतीबारी को अपेक्षित महत्त्व देती रही हैं. लेकिन कृषि उत्पादन बढ़ने के बाद भी किसानों का आर्थिक पक्ष वैसा मजबूत नहीं हो पाया, जो अपेक्षित था. इसी नाते समयसमय पर तमाम आंदोलन हुए. कृषि क्षेत्र की मजबूती के लिए कई उपाय विभिन्न मौकों पर तलाशे गए, जिस में खाद्य प्रसंस्करण सुविधाओं का विकास भी शामिल है. भारत में खाद्य प्रसंस्करण को विशेष महत्त्व देते हुए तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जुलाई, 1988 में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की स्थापना की. उसी के बाद से भारत में इस क्षेत्र को महत्त्व मिलना आरंभ हुआ.

बाद में इसे 15 अक्तूबर, 1999 को इस की हैसियत मंत्रालय से कृषि मंत्रालय के विभाग की बना दी गई लेकिन जब इस का काफी विरोध हुआ तो सरकार ने 6 सितंबर, 2001 को फिर से मंत्रालय बना दिया गया. लेकिन इस क्षेत्र को अपेक्षित संसाधन न मिलने के कारण अभी भी किसानों के सामने कई समस्याएं हैं और सभी क्षेत्रों में फसल कटाई के बाद काफी बरबादी देखने को मिलती है. इस समय भारत दूध, घी, दालों, अदरक, केला, अमरूद, पपीता और आमों के उत्पादन में विश्व में पहले नंबर पर है, वहीं धान, गेहूं और कई फलसब्जियों के मामले में दूसरे नंबर पर है.

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इस नाते अगर खाद्य प्रसंस्करण को ठीक से गति मिले, तो हम न केवल दुनिया की अग्रणी शक्ति बन सकते हैं, बल्कि इस से किसानों की आय बढ़ने में भी काफी मदद मिल सकती है. खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के तहत विभिन्न कृषि उत्पादों की प्रोसैसिंग और रेफ्रीजरेशन आता है. इस में अनाज, फल और सब्जियों, दुग्ध उत्पाद, पशु और पोल्ट्री उत्पादों के साथ मछली आदि भी शामिल हैं. अनाजों की मिलिंग उद्योग भी इसी के तहत ही आता है. भारत असिंचित भूमि के मामले में विश्व में 10वें नंबर पर और सिंचित भूमि में 5वें नंबर पर है. भारत को दुनिया की तकरीबन सभी तरह की जलवायु, सूर्य के प्रकाश की लंबी अवधि और अच्छी बारिश का सुयोग है, जो पूरे साल खेती के लिए आदर्श है.

भारत के पास सब से अधिक पशुधन है. बकरी और भेड़ के मामले में भी यह दूसरे नंबर पर है. कम लागत के साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अपेक्षाकृत अधिक संख्या में लोगों को रोजीरोटी दे रहा है और किसानों के लिए भी मददगार है. गैरपंजीकृत मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों में 14.18 फीसदी रोजगार इसी क्षेत्र में है. समग्र रूप से इस उद्योग में 19.33 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी, 2020 के मुताबिक, 2018-19 में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का जीवीए या सकल मूल्य वर्धन 2.08 लाख करोड़ रुपए था. यह कृषि क्षेत्र के जीवीए का तकरीबन 11.11 फीसदी था. संसद की कृषि संबंधी स्थायी समिति पिछले काफी समय से इस क्षेत्र पर खास गौर करती रही है. इस समिति का नेतृत्व 2014-15 से भाजपा ने अपने हाथों में ले रखा है, जबकि पहले अधिकतर विपक्षी सांसद इस के अध्यक्ष रहे. 16वीं लोकसभा में बिहार से भाजपा सांसद हुक्मदेव नारायण यादव इस के अध्यक्ष थे,

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जबकि 2019 से कर्नाटक के सांसद पर्वतगौड़ा चंदनगौड़ा गद्दीगौदर के पास इस का नेतृत्व है. दिसंबर, 2014 में समिति ने कहा था कि देश के सामने एक प्रमुख समस्या उन की उपज का लाभकारी मूल्य मिलने की है. अधिक उत्पादकता एक प्रगतिशील कृषि क्षेत्र का आवश्यक घटक है. लेकिन मूल्यवर्धन सुनिश्चित करता है कि बरबादी कम हो और गुणवत्ता के उत्पाद बाजार पहुंचे. एक सशक्त और गतिशील खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि के विविधीकरण और वाणिज्यीकरण में अहम भूमिका निभाता है और उत्पादों की सैल्फ लाइफ बढ़ाने के साथ रोजगार के अवसर देता है. स्वाभाविक है कि इस से किसानों की आय भी बढ़ती है. इस बीच समिति ने लगातार इस पर ध्यान दिया और कई अहम सु झाव दिए, लेकिन कुल मिला कर तसवीर बहुत उत्साहजनक नहीं है. हाल ही में स्थायी समिति ने खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की अनुदान मांगों की समीक्षा में कई मुद्दों पर गौर किया. मंत्रालय ने 2021-22 के दौरान 3490.07 करोड़ रुपए की मांग की थी, लेकिन उसे वित्त मंत्रालय से केवल 1308.66 करोड़ रुपए का आवंटन मिला. मंत्रालय को 2018-19 में एक हजार करोड़ रुपए का आवंटन हुआ,

लेकिन खर्च 719.17 करोड़ रुपए हुए, वहीं 2019-20 में 1042.79 करोड़ रुपए आवंटन की तुलना में खर्च 845.54 करोड़ रहा. 2020-21 में आवंटन 1247.42 करोड़ रुपए था, लेकिन 15 जनवरी, 2021 तक कुल खर्च 668.16 करोड़ रुपए ही हुआ था. समिति ने मौजूदा आवंटन को बेहद कम माना, लेकिन इस बात पर भी असंतोष जताया कि जो आवंटन हो रहा है, मंत्रालय उस का उपयोग नहीं कर पा रहा है. समिति के समक्ष मंत्रालय ने माना कि भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर कोविड-19 का प्रतिकूल असर लौकडाउन के पहले चरण में बुरी तरह पड़ा था. लेकिन चूंकि इस संकट में भी कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन ही देश में सब से बेहतरीन रहा. इस कारण तसवीर बदली.

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खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से निर्यात काफी बढ़ा. समिति के समक्ष खाद्य प्रसंस्करण सचिव ने यह दावा भी किया कि ठेका खेती और आवश्यक वस्तु कानून में संशोधन से इस के सामने नई संभावनाएं बनी हैं, लेकिन किसान संगठन इसे खारिज करते हैं. खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की सब से अहम योजना मैगा फूड पार्क रही है. इस के तहत खेत से बाजार तक आधुनिक आधारभूत ढांचा विकसित किया जाना था. प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों की स्थापना से ले कर कई योजनाएं इस में शामिल रही हैं. लेकिन 2017 में एक नई योजना 100 एग्रो प्रोसैसिंग क्लस्टर्स की स्थापना को अधिक महत्त्व दिया गया. प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के तहत इसे साकार करने की तैयारी की गई, लेकिन बाद में लक्ष्य 100 से घटा कर 75 कर दिया गया और इस क्षेत्र का आवंटन 750 करोड़ रुपए से घटा कर 562.50 करोड़ रुपए कर दिया गया. एक क्लस्टर में कम से कम पांच खाद्य प्रसंस्करण इकाई होंगे. प्रति क्लस्टर न्यूनतम निवेश 25 करोड़ रुपए होगा.

सरकार की सोच है कि इस से फसल कटाई के बाद की हानियों को कम करने में मदद मिलेगी. इस मंत्रालय के तहत एक नई योजना आपरेशन ग्रींस 2018-19 के बजट में 500 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ आरंभ की गई. इस के दायरे में टमाटर, आलू और प्याज की सुरक्षा रही है, जिस से बाजार में इन की कीमतें कम हों तो किसानों की मदद हो सके. लेकिन यह बुरी तरह फेल रही. इस के तहत 2018-19 से 2020-21 के दौरान 327 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया, जिसे संशोधित कर 268.23 करोड़ रुपए किया गया, लेकिन कुल खर्च महज 29.91 करोड़ रुपए रहा. योजना में बाद में तमाम हेरफेर भी किए गए हैं, लेकिन इसे जिस इरादे से शुरू किया गया था, उस से वह काफी दूर है. अलबत्ता, जून, 2020 के दौरान एक नई योजना प्रधानमंत्री एफएमई (प्रधानमंत्री माइक्रो फूड प्रोसैसिंग एंटरप्राइजेज) शुरू की गई. इस के तहत 10,000 करोड़ रुपए की लागत से साल 2020 से 2025 के बीच साकार करना है. इस से 2 लाख इकाइयों को क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी के तहत फायदा पहुंचाने का विचार है.

योजना के तहत इस में आधुनिकीकरण कराने वाली इकाइयों के शामिल होने का रास्ता भी खोला गया है. लेकिन संसदीय समिति ने माना है कि इस के लिए बहुत सीमित धन आवंटन किया गया है. समिति ने 2021-22 में 2,300 करोड़ रुपए आवंटित करने की सिफारिश की है. इसी तरह ‘एक जिला एक उत्पाद’ नई योजना का लक्ष्य बड़ा है, लेकिन इस की आरंभिक तैयारियां अभी चल रही हैं और इस के लिए 103.83 करोड़ रुपए की राशि 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दी गई है.

संसदीय समिति ने अपनी 2019-20 और 2020-21 की रिपोर्ट पर सरकारी कार्यवाही रिपोर्ट में इस बात पर असंतोष जताया था कि 39 मैगा फूड पार्क परियोजनाओं में केवल 11 ही पूरे हो सके और मंत्रालय इस में सफल नहीं रहा. राज्य सरकारों का सक्रिय सहयोग इस में बाधा रहा. समिति की राय में इस मामले में सिंगल विंडो व्यवस्था होनी चाहिए और इस दिशा में जरूरी कदम उठे. मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड, पंजाब, ओडिशा, राजस्थान, बिहार, उत्तराखंड ने सिंगल विंडो सिस्टम भी बना दिया. मैगा फूड पार्कों के असर पर एक कंसल्टेंसी एजेंसी केपीएमजी को 7 जनवरी, 2020 को एक परियोजना सौंपी गई थी, लेकिन कोविड 19 के नाते उस की रिपोर्ट में देरी हुई.

Best Of Sarita Stories: सूखा पत्ता- पराए मर्द के चक्कर में क्या हुआ संगीता का हाल?

6 महीने पहले ही रवि की शादी पड़ोस के एक गांव में रहने वाले रघुवर की बेटी संगीता से हुई थी. उस के पिता मास्टर दयाराम ने खुशी के इस मौके पर पूरे गांव को भोज दिया था. अब से पहले गांव में इतनी धूमधाम से किसी की शादी नहीं हुई थी. मास्टर दयाराम दहेज के लोभी नहीं थे, तभी तो उन्होंने रघुवर जैसे रोज कमानेखाने वाले की बेटी से अपने एकलौते बेटे की शादी की थी. उन्हें तो लड़की से मतलब था और संगीता में वे सारे गुण थे, जो मास्टरजी चाहते थे. ढ़ाई के बाद जब रवि की कहीं नौकरी नहीं लगी, तो मास्टर दयाराम ने उस के लिए शहर में मोबाइल फोन की दुकान खुलवा दी. शहर गांव से ज्यादा दूर नहीं था. रवि मोटरसाइकिल से शहर आनाजाना करता था.

शादी से पहले संगीता का अपने गांव के एक लड़के मनोज के साथ जिस्मानी रिश्ता था. गांव वालों ने उन दोनों को एक बार रात के समय रामदयाल के खलिहान में सैक्स संबंध बनाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. गांव में बैठक हुई थी. दोनों को आइंदा ऐसी गलती न करने की सलाह दे कर छोड़ दिया गया था. संगीता के मांबाप गरीब थे. 2 बड़ी लड़कियों की शादी कर के उन की कमर पहले ही टूट हुई थी. उन की जिंदगी की गाड़ी किसी तरह चल रही थी. ऐसे में जब मास्टर दयाराम के बेटे रवि का संगीता के लिए रिश्ता आया, तो उन्हें अपनी बेटी की किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ था. उन्हें डर था कि कहीं गांव वाले मनोज वाली बात मास्टर दयाराम को न बता दें, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

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वही बहू अब मनोज के साथ घर से भाग गई थी. रवि को फोन कर के बुलाया गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की बीवी किसी गैर मर्द के साथ भाग सकती है, उस की नाक कटवा सकती है.

‘‘थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाए,’’ बिरादरी के मुखिया ने सलाह दी.

‘‘नहीं मुखियाजी…’’ मास्टर दयाराम ने कहा, ‘‘मैं रिपोर्ट दर्ज कराने के हक में नहीं हूं. रिपोर्ट दर्ज कराने से क्या होगा? अगर पुलिस उसे ढूंढ़ कर ले भी आई, तो मैं उसे स्वीकार कैसे कर पाऊंगा.

‘‘गलती शायद हमारी भी रही होगी. मेरे घर में उसे किसी चीज की कमी रही होगी, तभी तो वह सबकुछ ठुकरा कर चली गई. वह जिस के साथ भागी है, उसी के साथ रहे. मुझे अब उस से कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘रवि से एक बार पूछ लो.’’

‘‘नहीं मुखियाजी, मेरा फैसला ही रवि का फैसला है.’’

शहर आ कर संगीता और मनोज किराए का मकान ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे. संगीता पैसे और गहने ले कर भागी थी, इसलिए उन्हें खर्चे की चिंता न थी. वे खूब घूमते, खूब खाते और रातभर खूब मस्ती करते. सुबह के तकरीबन 9 बज रहे थे. मनोज खाट पर लेटा हुआ था… तभी संगीता नहा कर लौटी. उस के बाल खुले हुए थे. उस ने छाती तक लहंगा बांध रखा था. मनोज उसे ध्यान से देख रहा था. साड़ी पहनने के लिए संगीता ने जैसे ही नाड़ा खोला, लहंगा हाथ से फिसल कर नीचे गिर गया. संगीता का बदन मनोज को बेचैन कर गया. उस ने तुरंत संगीता को अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी. वह उसे खाट पर ले आया. ‘‘अरे… छोड़ो न. क्या करते हो? रातभर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ संगीता कसमसाई.

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‘‘तुम चीज ही ऐसी हो जानेमन कि जितना प्यार करो, उतना ही कम लगता है,’’ मनोज ने लाड़ में कहा.

संगीता समझ गई कि विरोध करना बेकार है, खुद को सौंपने में ही समझदारी है. वह बोली, ‘‘अरे, दरवाजा तो बंद कर लो. कोई आ जाएगा.’’ ‘‘इस वक्त कोई नहीं आएगा जानेमन. मकान मालकिन लक्ष्मी सेठजी के घर बरतन मांजने गई है. रही बात उस के पति कुंदन की, तो वह 10 बजे से पहले कभी घर आता नहीं. बैठा होगा किसी पान के ठेले पर. अब बेकार में वक्त बरबाद मत कर,’’ कह कर मनोज ने फिर एक सैकंड की देर नहीं की. वे प्रेमलीला में इतने मगन थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर आंगन से कुंदन की प्यासी निगाहें उन्हें देख रही थीं. दूसरे दिन कुंदन समय से पहले ही घर आ गया. जब से उस ने संगीता को मनोज के साथ बिस्तर पर मस्ती करते देखा था, तभी से उस की लार टपक रही थी. उस की बीवी लक्ष्मी मोटी और बदसूरत औरत थी. ‘‘मनोज नहीं है क्या भाभीजी?’’ मौका देख कर कुंदन संगीता के पास आ कर बोला.

‘‘नहीं, वह काम ढूंढ़ने गया है.’’

‘‘एक बात बोलूं भाभीजी… तुम बड़ी खूबसूरत हो.’’

संगीता कुछ नहीं बोली.

‘‘तुम जितनी खूबसूरत हो, तुम्हारी प्यार करने की अदा भी उतनी ही खूबसूरत है. कल मैं ने तुम्हें देखा, जब तुम खुल कर मनोज भैया को प्यार दे रही थीं…’’ कह कर उस ने संगीता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे भी एक बार खुश कर दो. कसम तुम्हारी जवानी की, किराए का एक पैसा नहीं लूंगा.’’

‘‘पागल हो गए हो क्या?’’ संगीता ने अपना हाथ छुड़ाया, पर पूरी तरह नहीं.

‘‘पागल तो नहीं हुआ हूं, लेकिन अगर तुम ने खुश नहीं किया तो पागल जरूर हो जाऊंगा,’’ कह कर उस ने संगीता को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘छोड़ो मुझे, नहीं तो शोर मचा दूंगी,’’ संगीता ने नकली विरोध किया.

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‘‘शोर मचाओगी, तो तुम्हारा ही नुकसान होगा. शादीशुदा हो कर पराए मर्द के साथ भागी हो. पुलिस तुम्हें ढूंढ़ रही है. बस, खबर देने की देर है.’’ संगीता तैयार होने वाली ही थी कि अचानक किसी के आने की आहट हुई. शायद मनोज था. कुंदन बौखला कर चला गया. मनोज को शक हुआ, पर कुंदन को कुछ कहने के बजाय उस ने उस का मकान ही खाली कर दिया. उन के पैसे खत्म हो रहे थे. महंगा मकान लेना अब उन के बस में नहीं था. इस बार उन्हें छोटी सी खोली मिली. वह गंगाबाई की खोली थी. गंगाबाई चावल की मिल में काम करने जाती थी. उस का पति एक नंबर का शराबी था. उस के कोई बच्चा नहीं था.

मनोज और संगीता जवानी के खूब मजे तो ले रहे थे, पर इस बीच मनोज ने यह खयाल जरूर रखा कि संगीता पेट से न होने पाए. पैसे खत्म हो गए थे. अब गहने बेचने की जरूरत थी. सुनार ने औनेपौने भाव में उस के गहने खरीद लिए. मनोज को कपड़े की दुकान में काम मिला था, पर किसी बात को ले कर सेठजी के साथ उस का झगड़ा हो गया और उन्होंने उसे दुकान से निकाल दिया. उस के बाद तो जैसे उस ने काम पर न जाने की कसम ही खा ली थी. संगीता काम करने को कहती, तो वह भड़क जाता था. संगीता गंगाबाई के कहने पर उस के साथ चावल की मिल में जाने लगी. सेठजी संगीता से खूब काम लेते, पर गंगाबाई को आराम ही आराम था. वजह पूछने पर गंगाबाई ने बताया कि उस का सेठ एक नंबर का औरतखोर है. जो भी नई औरत काम पर आती है, वह उसे परेशान करता है. अगर तुम्हें भी आराम चाहिए, तो तुम भी सेठजी को खुश कर दो.

‘‘इस का मतलब गंगाबाई तुम भी…’’ संगीता ने हैरानी से कहा.

‘‘पैसों के लिए इनसान को समझौता करना पड़ता है. वैसे भी मेरा पति ठहरा एक नंबर का शराबी. उसे तो खुद का होश नहीं रहता, मेरा क्या खयाल करेगा. उस से न सही, सेठ से सही…’’

संगीता को गंगाबाई की बात में दम नजर आया. वह पराए मर्द के प्यार के चक्कर में भागी थी, तो किसी के भी साथ सोने में क्या हर्ज? अब सेठ किसी भी बहाने से संगीता को अपने कमरे में बुलाता और अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूम लेता. संगीता को यह सब अच्छा न लगता. उस के दिलोदिमाग पर मनोज का नशा छाया हुआ था. वह सोचती कि काश, सेठ की जगह मनोज होता. पर अब तो वह लाचार थी. उस ने समझौता कर लिया था. कई बार वह और गंगाबाई दोनों सेठ को मिल कर खुश करती थीं. फिर भी उन्हें पैसे थोड़े ही मिलते. सेठ ऐयाश था, पर कंजूस भी. एक दिन मनोज बिना बताए कहीं चला गया. संगीता उस का इंतजार करती रही, पर वह नहीं आया. जिस के लिए उस ने ऐशोआराम की दुनिया ठुकराई, जिस के लिए उस ने बदनामी झेली, वही मनोज उसे छोड़ कर चला गया था.

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संगीता पुरानी यादों में खो गई. मनोज संगीता के भैया नोहर का जिगरी दोस्त था. उस का ज्यादातर समय नोहर के घर पर ही बीतता था. वे दोनों राजमिस्त्री का काम करते थे. छुट्टी के दिन जीभर कर शराब पीते और संगीता के घर मुरगे की दावत चलती. मनोज की बातबात में खिलखिला कर हंसने की आदत थी. उस की इसी हंसी ने संगीता पर जादू कर दिया था. दोनों के दिल में कब प्यार पनपा, पता ही नहीं चला. संगीता 12वीं जमात तक पढ़ चुकी थी. उस के मांबाप तो उस की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद छुड़ाना चाहते थे, पर संगीता के मामा ने जोर दे कर कहा था कि भांजी बड़ी खूबसूरत है. 12वीं जमात तक पढ़ लेगी, तो किसी अच्छे घर से रिश्ता आ जाएगा. पढ़ाई के बाद संगीता दिनभर घर में रहती थी. उस का काम घर का खाना बनाना, साफसफाई करना और बरतन मांजना था. मांबाप और भैया काम पर चले जाते थे. नोहर से बड़ी 2 और बहनें थीं, जो ब्याह कर ससुराल चली गई थीं.

एक दिन मनोज नशे की हालत में नोहर के घर पहुंच गया. दोपहर का समय था. संगीता घर पर अकेली थी. मनोज को इस तरह घर में आया देख संगीता के दिल की धड़कन तेज हो गई. उन्होंने इस मौके को गंवाना ठीक नहीं समझा और एकदूसरे के हो गए. इस के बाद उन्हें जब भी समय मिलता, एक हो जाते. एक दिन नोहर ने उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया. घर में खूब हंगामा हुआ, लेकिन इज्जत जाने के डर से संगीता के मांबाप ने चुप रहने में ही भलाई समझी, पर मनोज और नोहर की दोस्ती टूट गई  संगीता और मनोज मिलने के बहाने ढूंढ़ने लगे, पर मिलना इतना आसान नहीं था. एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया और वे दोनों रामदयाल के खलिहान में पहुंच गए. वे दोनों अभी दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में समाए हुए थे कि गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें पकड़ लिया.

समय गुजरा और एक दिन मास्टर दयाराम ने अपने बेटे रवि के लिए संगीता का हाथ मांग लिया. दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. संगीता ससुराल आ गई, पर उस का मन अभी भी मनोज के लिए बेचैन था. पति के घर की सुखसुविधाएं उसे रास नहीं आती थीं. दोनों के बीच मोबाइल फोन से बातचीत होने लगी. संगीता की सास जब अपने गांव गईं, तो उस ने मनोज को फोन कर के बुला लिया और वे दोनों चुपके से निकल भागे. अब संगीता पछतावे की आग में झुलस रही थी. उसे अपनी करनी पर गुस्सा आ रहा था. गरमी का मौसम था. रात के तकरीबन 10 बज रहे थे. उसे ससुराल की याद आ गई. ससुराल में होती, तो वह कूलर की हवा में चैन की नींद सो रही होती. पर उस ने तो अपने लिए गड्ढा खोद लिया था.

उसे रवि की याद आ गई. कितना अच्छा था उस का पति. किसी चीज की कमी नहीं होने दी उसे. पर बदले में क्या दिया… दुखदर्द, बेवफाई. संगीता सोचने लगी कि क्या रवि उसे माफ कर देगा? हांहां, जरूर माफ कर देगा. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह पैर पकड़ कर माफी मांग लेगी. बहुत दयालु है वह. संगीता ने अपनी पुरानी दुनिया में लौटने का मन बना लिया. ‘‘गंगाबाई, मैं अपने घर वापस जा रही हूं. किराए का कितना पैसा हुआ है, बता दो?’’ संगीता ने कहा.

‘‘संगीता, मैं ने तुम्हें हमेशा छोटी बहन की तरह माना है. मैं तेरी परेशानी जानती हूं. ऐसे में मैं तुम से पैसे कैसे ले सकती हूं. मैं भी चाहती हूं कि तू अपनी पुरानी दुनिया में लौट जा. मेरा आशीर्वाद है कि तू हमेशा सुखी रहे.’’ मन में विश्वास और दिल के एक कोने में डर ले कर जब संगीता बस से उतरी, तो उस का दिल जोर से धड़क रहा था. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे पहचाने, इसलिए उस ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया था. जैसे ही वह घर के पास पहुंची, उस के पांव ठिठक गए. रवि ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया तो… उस ने उस दोमंजिला पक्के मकान पर एक नजर डाली. लगा जैसे अभीअभी रंगरोगन किया गया हो. जरूर कोई मांगलिक कार्यक्रम वगैरह हुआ होगा.

‘‘बहू…’’ तभी संगीता के कान में किसी औरत की आवाज गूंजी. वह आवाज उस की सास की थी. उस का दिल उछला. सासू मां ने उसे घूंघट में भी पहचान लिया था. वह दौड़ कर सासू मां के पैरों में गिरने को हुई, लेकिन इस से पहले ही उस की सारी खुशियां पलभर में गम में बदल गईं.

‘‘बहू, रवि को ठीक से पकड़ कर बैठो, नहीं तो गिर जाओगी.’’

संगीता ने देखा, रवि मोटरसाइकिल पर सवार था और पीछे एक औरत बैठी हुई थी. संगीता को यह देख कर धक्का लगा. इस का मतलब रवि ने दूसरी शादी कर ली. उस का इंतजार भी नहीं किया. इस से पहले कि वह कुछ सोच पाती, मोटरसाइकिल फर्राटे से उस के बगल से हो कर निकल गई. संगीता ने उन्हें देखा. वे दोनों बहुत खुश नजर आ रहे थे. तभी वहां एक साइकिल सवार गुजरा. संगीता ने उसे रोका, ‘‘चाचा, अभी रवि के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर गई वह औरत कौन है?’’

‘‘अरे, उसे नहीं जानती बेटी? लगता है कि इस गांव में पहली बार आई हो. वह तो रवि बाबू की नईनवेली दुलहन है.’’

‘‘नईनवेली दुलहन?’’

‘‘हां बेटी, वह रवि बाबू की दूसरी पत्नी है. पहली पत्नी बड़ी चरित्रहीन निकली. अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई. वह बड़ी बेहया थी. इतने अच्छे परिवार को ठोकर मार कर भागी है. कभी सुखी नहीं रह पाएगी,’’ इतना कह कर वह साइकिल सवार आगे बढ़ गया. संगीता को लगा, उस के पैर तले की जमीन खिसक रही है और वह उस में धंसती चली जा रही है. अब उस से एक पल भी वहां रहा नहीं गया. जिस दुनिया में लौटी थी, वहां का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो चुका था. उसे चारों तरफ अंधेरा नजर आने लगा था. तभी संगीता को अंधेरे में उम्मीद की किरण नजर आने लगी… अपना मायका. सारी दुनिया भले ही उसे ठुकरा दे, पर मायका कभी नहीं ठुकरा सकता. भारी मन लिए वह मायके के लिए निकल पड़ी. किवाड़ बंद था. संगीता ने दस्तक दी. मां ने किवाड़ खोला.

‘‘मां…’’ वह जैसे ही दौड़ कर मां से लिपटने को हुई, पर मां के इन शब्दों ने उसे रोक दिया, ‘‘अब यहां क्या लेने आई है?’’

‘‘मां, मैं यहां हमेशा के लिए रहने आई हूं.’’

‘‘हमारी नाक कटा कर भी तुझे चैन नहीं मिला, जो बची इज्जत भी नीलाम करने आई है. यह दरवाजा अब तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो चुका है.’’

‘‘नहीं मां….’’ वह रोने लगी, ‘‘ऐसा मत कहो.’’

‘‘तू हम सब के लिए मर चुकी है. अच्छा यह है कि तू कहीं और चली जा,’’ कह कर मां ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिया.

संगीता किवाड़ पीटने लगी और बोली, ‘‘दरवाजा खोलो मां… दरवाजा खोलो मां…’’ पर मां ने दरवाजा नहीं खोला. भीतर मां रो रही थी और बाहर बेटी. संगीता को लगा, जैसे उस का वजूद ही खत्म हो चुका है. उस की हालत पेड़ से गिरे सूखे पत्ते जैसी हो गई है, जिसे बरबादी की तेज हवा उड़ा ले जा रही है. दूर, बहुत दूर. इस सब के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी. उस से अब और आगे बढ़ा नहीं गया. वह दरवाजे के सामने सिर पकड़ कर बैठ गई और सिसकने लगी. अब गंगाबाई के पास लौटने और सेठ को खुश रखने के अलावा कोई चारा नहीं था… पर कब तक?

क़तरा-क़तरा जीने दो : भाग 2

लेखिका-ज्योति मिश्रा 

रागिनी का बर्थडे हो या और कोई विशेष दिन, जब भी रागिनी याद करती, उस के भइयू हाजिर हो जाते. फिर सुबह से शाम तक दोनों होस्टल से बाहर जा कर साथ घूमते, शौपिंग करते, खानावाना खा कर वापस  आते. रागिनी के पिता के अतिरिक्त  भइयू का नाम अभिवाहक के रूप  में होस्टल के रजिस्टर में दर्ज था. इसलिए उन के साथ होस्टल से बाहर जाने में किसी तरह की कोई आपत्ति न होती थी. कभीकभी रागिनी अपने  लोकल गार्जियन, अपनी रिश्ते की बूआ, के घर भी रात में ठहर जाती और दूसरे दिन उस के भइयू उसे पहुंचा दिया करते थे.

एक दिन रागिनी ने बताया, ‘मुंबई में मेरी कजिन सिस्टर सुगंधा की शादी है. सुगंधा की बैंक में नईनई नौकरी लगी है. अब  नेवी में जौब करने वाले लड़के से उस की शादी है.’ रागिनी ने मुझे अपना एक पुराना फोटो अलबम दिखाया जिस में 3 बच्चियां और  उन के मम्मी डैडी हैं. रागिनी ने कहा, ‘बड़ी वाली सुगंधा दीदी हैं  और ये घुंघराले बालों में 4 साल की मैं हूं और  दूसरी मेरी हमउम्र नंदा है.’

तसवीर देख कर मैं चौंक गई, ‘छोटी वाली नंदा तो बिलकुल तुम्हारी जुड़वां लग रही है रागिनी? और ये घुंघराले बालों वाली आंटी  बिलकुल जैसी तुम अभी हो वैसी ही दिखती हैं.’रागिनी के मुंह से अचानक निकला, ‘हां, मम्मी हैं न.’ फिर  उस ने कहा, ‘ये मेरी मौसी हैं. इन्हें मैं मौसी मम्मी कहती हूं. और ये दोनों मेरी मौसेरी बहनें हैं. छोटी वाली नंदा अभी सीए की पढ़ाई कर रही है. मौसाजी मुंबई में एक प्राइवेट कंपनी  में जौब करते हैं. जब मैं छोटी थी, तब मौसाजी छोटे पद पर थे लेकिन अब तो ये बड़ी कंपनी के बड़े अधिकारी बन गए हैं. बड़ा घर  और बड़ी गाड़ियां हैं इन के पास. घर में नौकरचाकर लगे हैं.

‘सुगंधा दीदी और नंदा सब आजादी से रहते हैं. उन पर किसी तरह की  कोई बंदिश नहीं. सुगंधा दीदी ने अपनी मरजी से पहले अपनी पढ़ाई पूरी की, अपने पैरों पर खड़ी हुईं और  अब  उन की ही पसंद के लड़के से मौसामौसी उन की शादी कर रहे हैं. महानगर में रहने से  उन के रहनसहन का स्तर हम से ऊंचा है और सोच भी खुली है.’ मैं ने देखा यह कहती हुई रागिनी थोड़ी भावुक हो गई. उस की आंखों मे हलकी सी नमी आ गई. मैं ने पूछा, ‘और तुम इन के पास जाती हो?’

उस ने कहा, ‘हां, बचपन में गई थी, अब नहीं जा पाती. अम्माबाउजी मेरे ऊपर ही आश्रित हैं न,  इसलिए. मैं ही उन की देखभाल करती हूं. बीए तक की पढ़ाई तो मैं ने अपने शहर में की, इसलिए  उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन पीजी की पढ़ाई मेरे शहर में संभव नहीं थी,  इसलिए मुझे यहां होस्टल आना पड़ा. अम्मा की उम्र हो गई है, अब वे घर के काम बिलकुल नहीं कर सकतीं लेकिन  भइयू और गुड्डन ने कहा है कि मैं वहां की चिंता न करूं. वे लोग मेरे न रहने पर उन लोगों का ख़याल रखेंगे.

यहां  आ कर पढ़ना ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. मुंबई जाना या सुगंधा दीदी की तरह अपने निर्णय लेना मेरे लिए संभव नहीं है.’मुझे महसूस हुआ  रागिनी अपनी कजिन बहनों के जीवनस्तर  और स्थिति से कहीं न कहीं स्वयं की तुलना कर के दुखी हो रही है. स्वाभाविक ही तो है. कहां रागिनी की अम्माबाबूजी और कहां ये लोग.

मुझे रागिनी की अम्मा याद  आ गईं…ठेठ गांव की बुजुर्ग महिला जो रागिनी की मां से ज्यादा दादीमां नजर आती थीं और धोतीकुरता पहने सीधेसादे  बाऊजी जो पिता से ज्यादा दादाजी. कभीकभी वे लोग डाक्टर, दवाई या किसी काम से इस शहर में आते  तो  रागिनी से मिलने होस्टल आया करते थे. तब  ज्यादा समय रागिनी के घर पर न रहने से होने वाली दिक्कतों की बात वे किया करते थे. रागिनी खुद को  अपराधी सा मानते हुए बारबार समझाती रहती- ‘छुट्टी होते ही आ जाएंगे अम्मा, कुछ दिनों की बात है. हम भइयू से कहेंगे, तुम लोगों को कोई परेशानी न होने पाए.’

उस की अम्मा दिल से आशीर्वाद की झड़ी लगा देतीं…‘प्रकृति उसे सदा बनाए रखे. कोई जन्म का लड़का है मेरातुम्हारा भइयू. वह न रहता, तो कब की हमारी  जान निकल जाती.  घरबाहर एक किए रहता है. कभी अपनी मां से  हमारे लिए खाना बनवा कर ले आता है, कभी गुड्डन, बिट्टन को भेज देता है, जाओ, अम्मा की मदद कर दो. तुम्हारे बाउजी का बाहर का सारा काम बेचारा वही तो देखता है.

‘इसलिए तो मैं और तुम्हारे बाऊजी चाहते हैं, तुम्हारी शादी जल्दी से जल्दी आनंद के साथ हो जाए. हम लोगों की अब उम्र हो गई. पता नहीं कब बुलावा आ जाए. अपनी आंखों के सामने तुम्हारी शादी देख लूं, तो चैन से मर पाऊंगी. आनंद के पिता से मैं ने कह दिया है, हमारा बेटाबेटी सबकुछ रागिनी ही है. जब तक जिंदा हैं हम लोग, रागिनी और  आनंद हमारी आंखों के सामने रहें, बस. हमारा क्या, अब  चार दिन की हमारी जिंदगी है, फिर गांव की जमीन, खेत, घर सब हमारे बाद रागिनी  और  आनंद को ही संभालना है.  सुगंधा की शादी हो जाए, तो तुम्हारी शादी कर के मैं और तुम्हारे बाऊजी  तीरथ पर निकलना चाहते  हैं.’

रागिनी ने धीरे से कहा, ‘अम्मा, काहे हड़बड़ा रही हो? मुझे पढ़ाई तो पूरी करने दो. मैं भी पहले सुगंधा दीदी की तरह  अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं.’ बाबूजी ने रागिनी को देख कर  थोड़े कड़े शब्दों में कहा,  ‘देख  बउवा, तुम्हारी यहां आ कर पढ़ाई करने की जिद मैं ने मान ली. लेकिन  आगे अब शादी के बाद जो मरजी आए, करना. हम नहीं रोकेंगे. लेकिन सुगंधा की बराबरी में तुम्हें हम 30 साल की उम्र तक कुंआरी नहीं रख सकते. वह बड़े शहर में रहती है. उस की बात  और है.

‘यहां गांव, समाज में लोग दस तरह की बातें करते हैं. मेरी समाज में प्रतिष्ठा है.  प्रतिष्ठा के लिए हम ठाकुर लोग जान दे भी देते हैं और जान ले भी लेते हैं. इसलिए कुछ ऊंचनीच हो, उस के पहले जरूरी है  तुम्हारी शादी हो जाए. तुम्हारे ससुराल वाले चाहें तो करना नौकरीचाकरी.’ रागिनी ने बेबसी से बाऊजी की तरफ देखा. उस की आंखें छलक आईं, तो  अम्मा ने रागिनी को दुलारते हुए कहा, ‘मन से पढ़ाई करो, बउवा और परीक्षा दे कर घर आ जाओ. पैसारुपया, सुखसाधन  सब है घर पे, लेकिन तुम्हारे बिना कुछ अच्छा  नहीं लगता. हमारा सहारा तू ही है बउवा.’

क़तरा-क़तरा जीने दो

लेखिका-ज्योति मिश्रा 

कतरा-कतरा जीने दो : भाग 1

लेखिका-ज्योति मिश्रा 

वह जनवरी की सर्द सुबह थी जब मैं ने पहली बार पीजी गर्ल्स होस्टल में प्रवेश किया था. वहां का मनोहारी वातावरण देख मन प्रफुल्लित हो गया. होस्टल के मुख्यद्वार के बाहर  एक तरफ  आम का बगीचा, खजूर और जामुन  के पेड़ थे तो दूसरी तरफ बड़ेबड़े कैंपस  वाले प्रोफैसर्स क्वार्टर. बीच में फूलों के खूबसूरत गार्डन के बीच 2 गर्ल्स होस्टल थे. एक तरफ साइंस होस्टल और दूसरी  तरफ आर्ट्स होस्टल. गेट के अंदर पांव रखते ही लाल-लाल गुलाब, गेंदे, सूरजमुखी के फूलों की महक और रंगत  ने मेरा इस तरह स्वागत किया कि पहली बार नए  होस्टल में आने  की मेरी  सारी घबराहट  उड़नछू हो गई.

सुबह के 11बज रहे  थे लेकिन कुहासे  की वजह से ऐसा लग रहा था मानो सूरज की किरणें अभीअभी बादलों की रजाई से निकल कर  अलसाई नजरों से हौलेहौले धरती पर उतर रही हों. ओस की बूंदों से नहाई हरीभरी, नर्म, मखमली दूब पर चलते हुए मैं ने  आर्ट्स होस्टल की तरफ  अपना रुख किया. सामने गार्डन में 2 लड़कियां बैठी चाय पी रही थीं. एक बिलकुल दूधिया गोरीचिट्टी, लंबे वालों वाली बहुत सुंदर सी लड़की और दूसरी हलकी सांवली, छोटेछोटे घुंघराले बालों वाली लंबी, दुबलीपतली व  बहुत आकर्षक सी लड़की.

मैं ने उन दोनों के करीब जा कर पूछा, ‘रागिनी सिंह,  साइकोलौजी  डिपार्टमैंट, फिफ्थ ईयर किस तरफ रहती हैं?’ गोरी वाली लड़की ने इशारा किया, इधर और घुंघराले बालों वाली लड़की ने  कहा, ‘मैं ही हूं. कहो, क्या बात है?’

मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘मैं, अनामिका शर्मा,  इतिहास डिपार्टमैंट से हूं. मैं ने यहां ऐडमिशन लिया है.   जब तक सीनियर्स रूम खाली नहीं कर देतीं, तब तक मुझ से होस्टल वार्डन ने इंतजार करने को कहा था. लेकिन मुझे रोज 40 किलोमीटर दूर से  आ कर क्लास करने में तकलीफ होती थी, इसलिए  मुझे मेरे क्लासमेट और  आप के पड़ोसी संजीव सिंह ने आप के पास भेजा है. उस की बड़ी बहन फाइनल ईयर में हैं, लेकिन वे इस साल  इम्तिहान नहीं दे पाएंगी और होस्टल छोड़ रही हैं. इसलिए रूम न. 101 की चाबी उस ने मुझे दी है और कहा है कि मैं  उस की बहन का जरूरी सामान आप के हवाले कर के इस रूम में  शिफ्ट हो जाऊं.’ मैं ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी की.

रागिनी ने चौंक कर कहा, ‘रूम न. 101? अरे वाह भाई  संजीव, मुझे नहीं दिलवाया. होस्टल का सब से शानदार कमरा तुम्हें दिलवा दिया.’ रागिनी का चेहरा थोड़ी देर को बुझ गया लेकिन अगले ही पल वह मेरा सामान पकड़ कर मुझे मेरे कमरे में शिफ्ट करवाने में उत्साह से लग गई.

दरअसल, होस्टल में फिफ्थ ईयर वाले स्टूडैंट्स के लिए  डबलबैड के कमरे नीचे के फ्लोर में थे और  सिक्स ईयर में ऊपर के फ्लोर में सिंगलबैड रूम था. मेरा कमरा ऊपर के फ्लोर में बालकनी के बिलकुल सामने था जहां बैठ कर होस्टल में आनेजाने वाले सभी लोग दिखाई देते थे. साथ ही, होस्टल के गार्डन का नजारा,  फूलों की खुश्बू, तलाब और आम के पेड़ से आती  ठंडी हवा व कोयल की कूक का खूब आनंद  मिलता था. इसलिए अपनेअपने डिपार्टमैंट से आने के बाद  ज्यादातर लड़कियां शाम ढलते ही मेरे कमरे के बाहर बनी विशाल बालकनी में कुरसी डाल कर बैठ जातीं व खूब मजाकमस्ती किया करती थीं. रागिनी और उस की सहेलियों के झुंड का हिस्सा बनने में मुझे देर नहीं लगी.

जल्दी ही रागिनी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. एक तो संजीव मेरा क्लासमेट  था,  और  दूसरे, रागिनी से उस के घरेलू संबंध थे. इस वजह से हमारा परिचय प्रगाढ़ हो गया था. इस के अतिरिक्त  उसे मेरे रूम के सामने की बालकनी बहुत पसंद थी और  मेरी  चाय पीने की आदत. चाय रागिनी को भी बहुत पसंद थी लेकिन हमारे होस्टल के मैस में चाय मिलने का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए यह तय हुआ कि मेरे रूम में सुबहशाम की चाय बना करेगी और हम दोनों साथ पिया करेंगी. सुबह की चाय हमेशा वह ही बनाया करती थी और शाम की मैं.

दरअसल,  मेरी सुबह देर से उठने की आदत थी. मैं 8-9 बजे तक  सोया करती थी  और इतनी देर में  रागिनी नहाधो कर तैयार हो कर मेरे साथ चाय पीने को चली आया करती. पूरे अधिकार व बड़े प्यार से मेरे कमरे में आ कर मेरे बालों को कभी झकझोर कर, कभी सहला कर मुझे उठाती, और मां की तरह कहती, ‘चलो उठो, सुबह हो गई. जाओ तो जल्दी से ब्रश कर के आओ, तब तक मैं  तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’

मेरे फ्रैश हो कर आने तक वह बड़ी तरतीब से मेरा बिस्तर, मेरी किताबें सही करती, स्टोव जला कर बढ़िया चाय बनाती और बाहर बालकनी में चेयर निकाल कर मेरे आने का इंतजार करती. मुझे उस के इस अपनत्व और  परवा पर बड़ा आश्चर्य होता. 2 दिनों के परिचय में भला किसी अजनबी का कोई  इस हद तक कैसे ख़याल रख सकता है. मैं ने एकाध बार  उस से कहा- ‘रागिनी, मुझे लगता है जैसे  तुम पिछले जन्म की मेरी मां हो. क्यों करती हो मेरी इतनी परवा?’

रागिनी अपने माथे पर झूलती  घुंघराले बालों की लटों को झटक कर कहती- ‘क्योंकि  तुम  एकदम मेरे भइयू की तरह हो. वैसे ही सिर पर तकिया रख कर सोती हो. मेरी एकएक बात ध्यान से सुनती हो. एकदम  वैसे ही  बात करती हो जैसे मेरा भइयू कहता है.’

‘बउवा, तू तो मेरी मां से भी ज्यादा मां है रे. रोज सुबह से शाम तक मेरा इतना ख़याल तो मेरी मां भी नहीं रखती.’ ‘घर पर भी मैं बहुत सवेरे उठती हूं. अम्माबाऊजी को सुबह का चायनाश्ता दे कर भइयू को उठाना और चाय बना कर पिलाना मेरी आदत है. वह अपना बिस्तर  और किताबें तुम्हारी ही तरह  कभी सही नहीं करता. सब मैं करती हूं.’

मैं ने एक बार पूछा… ‘भइयू तुम्हारा भैया है, रागिनी?  रागिनी ने उदास हो कर कहा- ‘नहीं, मेरा कोई भाई नहीं. अम्मा, बाऊजी और मैं घर के पुराने वाले  हिस्से में रहते हैं. बाहर नए 4 कमरे बाऊजी ने बनवाए थे,  उसी में किराए में भइयू, उस की बहनें गुड्डन, बिट्टन और  आंटीअंकल रहते हैं. वे लोग मेरे बचपन के समय से हमारे  घर में रह रहे हैं और हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं. गुड्डन, बिट्टन मेरी सहेलियां हैं, वे लोग अपने बड़े भाई  आशीष भैया को भइयू कहती हैं, तो मेरा भी वह भइयू बन गया. अम्मा, बाऊजी मुझे बउवा कहते हैं तो भइयू की मैं बउवा बन गई.’

रागिनी की हर बात में भइयू का जिक्र रहता. वह पढ़ाई में बहुत ही होशियार थी. जब भी कोई उस के अच्छे मार्क्स या सुंदर हैंडराइटिंग की बात करता, वह झट से कहती- ‘यह तो भइयू की वजह से है. बचपन से मुझे भइयू ने पढ़ाया है. मेरे नोट्स वही तैयार करता है और मेरी राइटिंग उन की राइटिंग देखदेख कर  ऐसी बनी है.’

धर्म और भ्रम में डूबा रामदेव का कोरोना इलाज: भाग 3

लेखक-भारत भूषण श्रीवास्तव और शैलेंद्र सिंह

पतंजलि ने बेहद सधे शब्दों में धर्म और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग कर के कोरोनिल को कोराना की रामबाण दवा बताया. पतंजलि ने अपने लिखित विवरण में बताया कि पंतजलि रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने क्लीनिकल केस स्टडी तथा रेंडमाइज्डप्लेसिबो कंट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल (आरसीटी) करने के साथ औषधि अनुसंधान के सभी प्रोटोकौल का अनुपालन करते हुए कोरोना के रोगियों के लिए आयुर्वेदिक औषधि की खोज की है. सवाल है, जब कोरोनिल आयुर्वेदिक दवा है जिस का फार्मूला पहले से ग्रंथों में है तो आखिर क्यों रिसर्च एलोपैथिक दवा से करने का दावा किया गया? दावा तो यहां तक किया गया कि अनुसंधान के दौरान कोरोना पौजिटिव एसिम्टोमैटिक, माइल्ड एवं मौडरेट रोगी 3 से 7 दिनों में नैगेटिव हो गए.

अपनी बात के समर्थन में पंतजलि ने लिखा कि इन औषधियों की क्लीनिकल केस स्टडी दिल्ली, अहमदाबाद और मेरठ आदि शहरों से ले कर देश के विभिन्न शहरों में की गई. रेंडमाइज्डप्लेसिबो कंट्रोल्ड क्लीनिकल ट्रायल (आरसीटी) को नैशनल इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल सांइस एंड रिसर्च (निम्स यूनिवर्सिटी), जयपुर में किया गया. पतंजलि ने बताया कि कोरोनिल कोरोना के रोगियों पर विश्व में आयुर्वेदिक औषधियों का पहला सफल क्लीनिकल ट्रायल है.

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पतंजलि ने कहा कि यह औषधि मनुष्य के फेफड़ों से ले कर बाकी शरीर में कोरोना के संक्रमण की चेन को तोड़ने का काम करती है. कोरोना वायरस के कारण होने वाली दूसरी बीमारियों पर भी यह दवा असर करती है. यह हमारे शरीर की ऊर्जा को जाग्रत करती है. पतंजलि ने केवल क्लीनिकल ट्रायल तक ही बात को सीमित नहीं रखा. धर्म और राष्ट्रवाद का तड़का लगाने के लिए उस ने कहा, ‘‘हमारे पूर्वज ऋषियों के ज्ञान से यह दवा बनाई गई है.’’ इस की वजह यह थी कि लोग पूर्वज और ऋषियों के नाम पर कोरोनिल पर कोई सवाल न करें. ये सब बातें तो आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं जो दिव्य दृष्टि से लिखे गए हैं.

एक तरफ रामदेव कहते हैं कि एलोपैथी एक नाटक और तमाशा है तो दूसरी ओर अपने ही ट्रस्ट के इनकम टैक्स मामले, जिस का निर्णय अपीलिएट ट्रिब्यूनल ने 9 फरवरी, 2017 को दिया था, के बारे में कहते हैं कि ट्रस्ट का उद्देश्य ‘प्राणायाम’ को मुफ्त दवा के रूप में ‘मौडर्न मैडिकल साइंस’ के ‘पैरामीटर्स’ के मापदंडों के आधार पर रिसर्च कर के उपलब्ध कराना है.

इसी मामले में वे दावा करते हैं कि आयुर्वेद, सर्जरी, एलोपैथी का सम्मिश्रण करना ट्रस्ट का उद्देश्य है. एलोपेथी को मूर्खों की साइंस बताने वाले रामदेव के संस्थानों में शर्ली टेलेस जैसे एलोपैथी डाक्टरों की बहैसियत डायरैक्टर भरती उन के दोहरेपन की मिसाल नहीं तो और क्या है.  असल में उन की दवाइयां एलोपैथी के फार्मूले व मानकों पर ही बनती हैं.

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रामदेव को बताना चाहिए कि यह दुर्लभ ज्ञान किस ग्रंथ में कहां वर्णित है जिस से भारत अपनी शक्ति और संस्कृति से दुनियाभर को बता पाए कि हमारे ऋषिमुनि हजारों साल पहले ही कोरोना वायरस और उस की दवा को खोज चुके थे. चूंकि ऐसा कुछ है ही नहीं, इसलिए यह ?ाठैला बाबा बगलें ?ांकता नजर आएगा. वह जवाब में कहेगा कि आप बताओ कि कोविशील्ड की रिसर्च रिपोर्ट कहां है? चूंकि कोविशील्ड

 पेटेंटेड दवा है, इसलिए कंपनी उस की जांचपरख में रिपोर्ट तो शेयर करेगी नहीं. सो, वाक्युद्ध में आप हार जाएंगे.

एक तरफ योग से कोरोना के उपचार का दावा किया जा रहा है और दूसरी तरफ इसी मामले में कहा गया कि पतंजलि के अनुसार योग के 8 पहलू हैं :यज्ञ, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहरा, धरना, ध्यान व समाधि. यह सम?ा से परे है कि इन सब का जब दूरदूर तक कोविड की बीमारी से संबंध नहीं है तो रामदेव और उन जैसों धर्म समर्थक कैसे एलोपैथी को गालियां दे सकते हैं जो मंचों पर खुलेआम दी गईं.

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गौरतलब है कि विद्यापीठ ने आयुर्वेद आचार्य बालकृष्ण की पुस्तक ‘योग इन सिनर्जी विद मैडिकल साइंस’ का हवाला देते हुए कहा कि योग के क्लीनिकल असर की जांच वैज्ञानिक पैमानों पर क्वालीफाइड डाक्टरों (निसंदेह एलोपैथी डाक्टरों) के निरीक्षण में की गई और योग से लाभ हुआ, यह साबित भी हुआ. ऐसे में यह कहा जाना स्वाभाविक है कि यदि मैडिकल साइंस, एलोपैथी, डाक्टर, वैज्ञानिक निरर्थक हैं तो उन्हें इन की जांच की जरूरत ही क्यों पड़ी थी.

कई दावे करने के बाद पतंजलि ने अंत में यह भी कहा कि किसी भी आपात स्थिति में आकस्मिक अवस्था में श्वसन से अधिक कठिनाई आदि की हालत में भारत सरकार द्वारा निर्धारित चिकित्सा विधि का पालन करें. अगर पतंजलि को कोरोनिल पर इतना भरोसा था तो फिर रोगियों को दूसरी चिकित्सा में जाने के लिए क्यों कहा गया? इस का मतलब साफ है कि कोरोनिल पर पतंजलि को ही भरोसा नहीं. वह कोरोना के इलाज के नाम पर आपदा में अवसर तलाश रही थी.

विवादों में घिरी कोरोनिल दवा

पतंजलि की कोरोनिल दवा के क्लीनिकल ट्रायल करने का दावा तब गलत साबित हो गया जब क्लीनिकल ट्रायल करने वाले निम्स विश्वविद्यालय के मालिक और चेयरमैन बी एस तोमर ने कहा कि उन के अस्पतालों में कोरोना की दवा का कोई भी क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया गया है. तोमर ने कहा, ‘‘हम ने कोरोना के मरीजों को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी दिया था. इस संबंध में अभी मैं कुछ नहीं कह सकता कि योगगुरु रामदेव ने इसे कोरोना का शतप्रतिशत इलाज करने वाली दवा कैसे बता दिया. इस के बारे में सिर्फ रामदेव ही बता सकते हैं.’’

निम्स विश्वविद्यालय ने सीटीआरआई से 20 मई को औषधियों की इम्युनिटी टैस्ंिटग के लिए इजाजत ली थी. इस के बाद निम्स में इन औषधियों का ट्रायल भी शुरू किया गया था. 23 मई से शुरू हुए ट्रायल के एक महीने बाद ही 23 जून को योगगुरु रामदेव के साथ मिल कर दवा लौंच कर दी गई. यह मामला जब तूल पकड़ने लगा है तो निम्स के चेयरमैन ने कहा था, ‘हमारी फाइंडिंग अभी 2 दिनों पहले ही आई थी. योगगुरु रामदेव ने कोरोनिल दवा कैसे बनाई है, यह तो वही जानते हैं. इस बारे में मैं कुछ भी नहीं कह सकता हूं.’

यही नहीं, कोरोना वायरस के संक्रमण को पूरी तरह से खत्म करने का दावा करने वाले योगगुरु रामदेव की दवा कोरोनिल पर आयुष मंत्रालय ने रोक लगा दी थी. इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए पतंजलि से दवा का टैस्ट सैंपल, लाइसैंस आदि की पूरी जानकारी भी मांगी गई थी, जिस के जवाब में पतंजलि ने कहा था कि इस दवाई को कोरोना वायरस से पीडि़त किसी गंभीर मरीज पर टैस्ट नहीं किया गया है, कम लक्षण वाले मरीजों पर टैस्ट किया गया था. पतंजलि के मालिक बाबा रामदेव का प्रभाव केंद्र और उत्तराखंड की सरकारों पर भी था, इस कारण से उन के खिलाफ किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की गई.

एलोपैथी पर विवाद

पतंजलि की कोरोनिल दवा पर जब विवाद उठे और उस को दवा का दर्जा हासिल नहीं हुआ तो भी रामदेव ने अपने राजनीतिक प्रभाव से कोरोनिल को बाजार में बेचना जारी रखा. रामदेव ने बड़ीबड़ी बातें कर के जनता को बहकाने का काम किया. इस तरह का काम एलोपैथी के डाक्टर नहीं कर सकते. शिक्षित पर अंधविश्वासी और कम पढ़ीलिखी मूर्ख व दकियानूसी जनता रामदेव बिरादरी के नीमहकीमों के पास जाना शुरू कर देती है, जो उन के मर्ज को बढ़ा देते हैं. ऐसे नीमहकीमों की बकबक करने पर रोक लगनी चाहिए. यह काम कानून नहीं, बल्कि मीडिया और जनता खुद करे.

हकीकत में रामदेव एलोपैथी को आयुर्वेद का जामा पहना कर भुना रहे हैं ठीक वैसे ही जैसे कसबाई नीमहकीम बुखार आने पर मरीज को पैरासिटामोल की गोली पीस कर खिला देते हैं. बुखार उतरने पर लोग आयुर्वेद की जयजयकार करने लगते हैं लेकिन यह नहीं जान पाते कि वे एलोपैथी की दवा से ठीक हुए हैं. भोपाल के एक कैमिस्ट का कहना है कि गांवदेहातों के वैद्य थोक में दस्त, उलटी, दर्द जैसी सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए एलोपैथी की दवाएं ले जा कर आयुर्वेद के नाम पर उन की पुडि़या बना कर ऊंचे दामों में बेचते हैं. रामदेव यही काम बहुत बड़े पैमाने पर कर रहे हैं और खिसियाहट व अपराधबोध जब सिर पर सवार होता है तो वे एलोपैथी को कोसने लगते हैं.

देखा जाए तो आयुर्वेद प्लेसिबो यानी एक प्रभावहीन चिकित्सा पद्धति है जिस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. इस में मरीज को लाभ होने का भ्रम होता है लेकिन वास्तव में होता नहीं है और अगर होता भी है तो इस की वजह कोई और होती है. एलोपैथी पर सवाल उठाते रामदेव इसी तर्ज पर लोगों के दिमाग में यह बात भरने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर वे ठीक हुए तो इस की वजह उन की कोरोना और आयुर्वेदिक दवाएं हैं और मरे तो इस की वजह एलोपैथिक दवाइयां हैं.

साबरमती नदी के पानी में मिला कोरोनावायरस

कोरोना को लेकर हर दिन कुछ नए खुलासे हो रहे हैं. अब एक ऐसा ही मामला गुजरात में आया है. गुजरात के अहमदाबाद शहर की लाइफलाइन कहे जाने वाली साबरमती नदी में कोरोना वायरस के मिलने की पुष्टि हो गई है. इस खबर से पूरे राज्य में हड़कंप मचा हुआ है. कुछ समय पहले गुजरात के अहमदाबाद के बीचों-बीच से निकलने वाली साबरमती नदी से जांच के लिए सैंपल लिए गए थे, जिसमें 25 फीसदी में कोरोना संक्रमण मिला है. इसके साथ ही साबरमती नदी के अलावा अहमदाबाद के दो बड़े तालाबों कांकरिया और चंदोला में भी कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए हैं.

प्राकृतिक जल में कोरोना के लक्षण मिलने से चिंता बढ़ी
साबरमती से पहले गंगा नदी से जुड़े अलग-अलग सीवेज में भी कोरोना वायरस पाया गया था, लेकिन अब प्राकृतिक जल में इस तरह कोरोना के लक्षण मिलने से चिंता बढ़ी है. इन सभी सैंपल में वायरस की मौजूदगी काफी अधिक बताई गई है. पिछले चार महीनों में तीनों स्रोतों के 16 सैंपल लिए गए, जिनमें से 5 सैंपल पॉजिटिव पाए गए हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि देश की सभी प्राकृतिक जल स्रोत की जांच होनी चाहिए, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर में वायरस के कई गंभीर म्यूटेशन भी देखने मिले हैं.

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देश के 8 संस्थानों ने किया रिसर्च
आईआईटी गांधीनगर समेत देश की 8 संस्थाओं ने मिलकर यह रिसर्च की है. इसमें दिल्ली के JNU स्कूल ऑफ एन्वॉयरनमेंटल साइंसेज के रिसर्चर भी शामिल हैं. असम के गुवाहाटी क्षेत्र में भारू नदी से लिया गया एक सैंपल भी पॉजिटिव पाया गया है. सीवेज के सैंपल लेकर की गई जांच के दौरान नदी-तालाबों तक कोरोना वायरस पहुंचने की जानकारी मिली है.

इस रिसर्च को लेकर आईआईटी गांधीनगर के पृथ्वी और विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मनीष ने बताया कि पानी के यह सैंपल नदी से तीन सितंबर से 29 दिसंबर, 2020 तक हर सप्ताह लिए गए थे. सैंपल लेने के बाद इसमें जांच की गई तो कोरोना वायरस के संक्रमित जीवाणु पाए गए. मनीष कुमार के मुताबिक, साबरमती नदी से 694, कांकरिया तालाब से 549 और चंदोला तालाब से 402 सैंपल लेकर उसकी जांच की गई. इन सैंपल में ही कोरोना वायरस पाया गया है.

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बीजेपी एमएलए ने लिखा सीएम शिवराज को पत्र

गुजरात में नदियों में कोरोना वायरस मिलने से एमपी में भी चिंता फैल गयी है. इंदौर विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दो से बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है. उन्होंने नर्मदा समेत प्रदेश के प्रमुख जल स्रोतों की जांच करवाने की मांग की है. मेंदोला ने अपने पत्र में लिखा कि मेरा आग्रह है कि आईआईटी और दूसरे शोध संस्थानों से प्रदेश के विभिन्न स्थानों से नर्मदा नदी और पानी के अन्य सभी प्रमुख स्रोतों की जांच करवाएं. जल स्रोत संक्रमण से बच सकें इसके लिए विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर जागरण अभियान की रूपरेखा बनाई जाए.

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