लेखिका-ज्योति मिश्रा
वह जनवरी की सर्द सुबह थी जब मैं ने पहली बार पीजी गर्ल्स होस्टल में प्रवेश किया था. वहां का मनोहारी वातावरण देख मन प्रफुल्लित हो गया. होस्टल के मुख्यद्वार के बाहर एक तरफ आम का बगीचा, खजूर और जामुन के पेड़ थे तो दूसरी तरफ बड़ेबड़े कैंपस वाले प्रोफैसर्स क्वार्टर. बीच में फूलों के खूबसूरत गार्डन के बीच 2 गर्ल्स होस्टल थे. एक तरफ साइंस होस्टल और दूसरी तरफ आर्ट्स होस्टल. गेट के अंदर पांव रखते ही लाल-लाल गुलाब, गेंदे, सूरजमुखी के फूलों की महक और रंगत ने मेरा इस तरह स्वागत किया कि पहली बार नए होस्टल में आने की मेरी सारी घबराहट उड़नछू हो गई.
सुबह के 11बज रहे थे लेकिन कुहासे की वजह से ऐसा लग रहा था मानो सूरज की किरणें अभीअभी बादलों की रजाई से निकल कर अलसाई नजरों से हौलेहौले धरती पर उतर रही हों. ओस की बूंदों से नहाई हरीभरी, नर्म, मखमली दूब पर चलते हुए मैं ने आर्ट्स होस्टल की तरफ अपना रुख किया. सामने गार्डन में 2 लड़कियां बैठी चाय पी रही थीं. एक बिलकुल दूधिया गोरीचिट्टी, लंबे वालों वाली बहुत सुंदर सी लड़की और दूसरी हलकी सांवली, छोटेछोटे घुंघराले बालों वाली लंबी, दुबलीपतली व बहुत आकर्षक सी लड़की.
मैं ने उन दोनों के करीब जा कर पूछा, ‘रागिनी सिंह, साइकोलौजी डिपार्टमैंट, फिफ्थ ईयर किस तरफ रहती हैं?’ गोरी वाली लड़की ने इशारा किया, इधर और घुंघराले बालों वाली लड़की ने कहा, ‘मैं ही हूं. कहो, क्या बात है?’
मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘मैं, अनामिका शर्मा, इतिहास डिपार्टमैंट से हूं. मैं ने यहां ऐडमिशन लिया है. जब तक सीनियर्स रूम खाली नहीं कर देतीं, तब तक मुझ से होस्टल वार्डन ने इंतजार करने को कहा था. लेकिन मुझे रोज 40 किलोमीटर दूर से आ कर क्लास करने में तकलीफ होती थी, इसलिए मुझे मेरे क्लासमेट और आप के पड़ोसी संजीव सिंह ने आप के पास भेजा है. उस की बड़ी बहन फाइनल ईयर में हैं, लेकिन वे इस साल इम्तिहान नहीं दे पाएंगी और होस्टल छोड़ रही हैं. इसलिए रूम न. 101 की चाबी उस ने मुझे दी है और कहा है कि मैं उस की बहन का जरूरी सामान आप के हवाले कर के इस रूम में शिफ्ट हो जाऊं.’ मैं ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी की.