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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने की महिलाओं के कपड़ों पर अभद्र टिप्पणी

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान एक बार फिर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करने पर विवादों में फंस गए हैं. इमरान ख़ान ने ये इंटरव्यू ‘एचबीओ एक्सिओस’ को दिया. इंटरव्यू कर रहे जोनाथन स्वॉन ने जब इमरान ख़ान से पाकिस्तान में बलात्कार पीड़िता को ही कसूरवार ठहराए जाने के चलन के बारे में सवाल पूछा. तो इस पर इमरान ख़ान ने जवाब देते हुए कहा कि “अगर कोई महिला बहुत कम कपड़े पहनती है, तो इसका असर मर्द पर पड़ेगा.”

इमरान खान की इस घटिया टिप्पणी ने दुनियाभर की आलोचनाओं को न्यौता दिया है और अब सोशल मीडिया पर आक्रोश फैल गया है. जोनाथन स्वॉन ने इमरान ख़ान से इस इंटरव्यू में पर्दा और रेप पीड़ितों पर उनके पुराने बयानों को लेकर सफ़ाई मांगी तो उन्होंने कहा कि “यह सभी बेहूदा बातें हैं मैंने सिर्फ़ पर्दा के विचार पर बात की थी. हमारे यहां न ही डिस्को हैं और न ही यहां नाइट क्लब हैं. यह बिलकुल अलग समाज है जहां पर जीने का अलग तरीक़ा है. अगर आप यहां पर प्रलोभन बढ़ाएंगे और युवाओं को कहीं जाने का मौक़ा नहीं होगा तो इसके कुछ न कुछ परिणाम होंगे.”

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इसके बाद जोनाथन स्वॉन ने इमरान से पूछा कि क्या वो महिलाओं के कपड़े पहनने को लेकर यह बात कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा, “अगर यहां पर महिलाएं बहुत छोटे कपड़े पहनती हैं तो इसका असर ज़रूर पुरुषों पर पड़ेगा जब तक कि वो रोबोट न हों.”

इमरान ख़ान से जब ये पूछा गया कि क्या वो यह कह रहे हैं कि कपड़े यौन हिंसा को बढ़ावा देते हैं तो उन्होंने कहा कि यह इस चीज़ पर निर्भर करता है कि आप किस समाज में रहते हैं, अगर किसी ने किसी चीज़ को नहीं देखा है तो इसका उस पर प्रभाव ज़रूर पड़ेगा.

जोनाथन ने इमरान से यह भी पूछ लिया कि जब आप क्रिकेट स्टार थे तो आपकी प्लेबॉय की छवि थी इस पर उन्होंने कहा कि ‘यह मेरी बात नहीं बल्कि मेरे समाज की बात है. मैं अपने समाज के बार में सोचता हूं कि वो कैसे व्यवहार करे जब हम यौन अपराधों के बारे में सुनते हैं तो हम चर्चाएं करते हैं कि इसको कैसे समाप्त करना है.’

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इसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का ये इंटरव्यू तुरंत सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बन गया हैं, जिससे इमरान ख़ान के इस बयान के बाद विपक्षी नेता, पत्रकार और आम लोग सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना कर रहे हैं.

इंटरनेशनल कमिशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की साउथ एशिया की कानूनी सलाहकार रीमा ओमर ने ट्वीट कर कहा है, ‘प्रधानमंत्री इमरान खान का पाकिस्तान में यौन हिंसा के कारणों पर आया बयान बेहद निराशाजनक है जिसमें एकबार फिर उन्होंने पीड़ित को ही दोषी ठहराया है. यह साफ तौर पर घटिया है.’

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पाकिस्तान में आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि देश में हर दिन कम से कम 11 बलात्कार की घटनाएं सामने आती हैं, पिछले छह वर्षों में 22,000 से अधिक मामले पुलिस में दर्ज किए गए हैं. हालांकि जियो न्यूज के अनुसार, केवल 77 आरोपियों को ही दोषी ठहराया गया है, जो कुल आंकड़े का 0.3 प्रतिशत है.

ये रिश्ता क्या कहलाता है : सीरत को बदनाम करने की कोशिश करेगा नरेन्द्र, कार्तिक बदल देगा प्लान

स्टार प्लस का सुपरहिट धारावाहिक ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों दर्शकों को अलग तरह का ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. अब सभी को यह पता चल चुका है कि सीरत के दिल में रणवीर के लिए नहीं बल्कि कार्तिक के लिए प्यार है.

इस बात की भनक कार्तिक को भी हो चुका है और रणवीर के पिता नरेन्द्र चौहान को भी इस बात की भनक लग गई है. जिसके बाद वह इस बात का फायदा उठाकर सीरत को बदनाम करने कि कोशिश करेगा.

वहीं कार्तिक उसकी प्लानिंग में पानी फेरने के लिए तैयार रहेगा. इस सीरियल में अब तक के एपिसोड में आपने देखा होगा कि नरेन्द्र चौहान सीरत को गोयनका हाउस बुलाएगा जहां वह उसे सभी परिवार वालों के सामने नीचा दिखाने की कोशिश करेगा.

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जबकी सीरत गोयनका हाउस पहुंचने के बाद अपने मुंह पर ताला लगा लेती है. जिसके बाद से नरेन्द्र की प्लानिंग वहीं से फेल होनी शुरू हो जाती है.

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आने वाले एपिसोड़ में आप देखेंगे कि सीरत को कार्तिक का साथ मिलेगा, जिसके बाद वह इमोशनल हो जाएगी और अपने मन की बात कार्तिक से कह देगी. कही- न कही इस बात का अंदाजा कार्तिक को बहुत पहले से था कि सीरत के दिल में उसके लिए कुछ तो चल रहा है.

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अब इस सीरियल में यह देखना है कि सीरत औऱ कार्तिक की सच्चाई रणवीर से कितने दिनों तक छुपी रहती है. वही रणवीर के पापा हर वक्त इन दोनों के खिलाफ कुछ न कुछ प्लानिंग करते रह रहे हैं. जिससे वह सफल भी हो सकते हैं. क्या रणवीर सच्चाई जानने के बाद सीरत से नफरत करने लगेगा यह आपको अगले एपिसोड में पता चलेगा.

KKK 11: Rohit shetty को मिल चुके हैं टॉप 3 फाइनलिस्ट, जानें किसके हाथ होगी ट्रॉफी

खतरों के खिलाड़ी सबसे लोकप्रिय एचवेंचर्स स्पोर्ट्स रियलिटी शोज है. जिसे देखना फैंस खूब पसंद करते हैं. इस शो के होस्ट रोहित शेट्टी है. इन दिनों इस शो की शूटिंग साउथ  अफ्रिका के केपटाउन में हो रही है. कई मशहूर हस्तियां इसकी शूटिंग के लिए केपटाउन गई हुई है.

जिसकी ताजा जानकारी में पता चला है कि इस शोज के टॉप 3 फाइनलिस्ट मिल चुके हैं. जिनके नाम है विशाल आदित्या सिंह, राहुल वैद्य औऱ वरुण सूद बाकी सभी कंटेस्टेंट एलिमिनेट होने के बाद से घर वापस आ गए हैं.

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एक रिपोर्ट में इस बात को कहा गया है कि शो के विनर को टॉप 2 में से चुना जाएगा. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि शो के सेमीफाइनलिस्ट में राहुल वैद्य, वरुण सूद, दिव्यांका त्रिपाठी और विशाल आदित्या सिंह थें. जिसके बाद बाद में अर्जुन और दिव्यांका को एलिमिनेट कर दिया गया.

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इस शोज की सबसे छोटी कंटेस्टेंट अनुष्का सेन को शूटिंग के दौरान कोरोना हो गया था जिसके बाद होम कोरेंटाइन थी. फिलहाल खबर है कि सभी एलिमिनेट हुए कंटेस्टेंट अपने घर वापस आ गए हैं. इस शोज को देखने वाले फैंस को इंतजार है कि कौन बनेगा विनर . वैसे खबर यह है कि इस शो को जुलाई के दूसरे सप्ताह से टीवी पर प्रसारित किया जाएगा.

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इस शोज के प्रोमो को लोगों ने खूब सारा प्यार दिया है. उम्मीद है कि इस शोज को भी इतना ही ज्यादा पसंद किया जाएगा.

सिद्धार्थ की वापसी -भाग 3 : सुमित और तृप्ति शादी के बाद भी खुश क्यों नहीं थें

लेखिका- शकुंतला शर्मा

तभी मां उस के पास बैठ बोली थीं. ‘कहो, मां.’ ‘ऐसे कब तब चलेगा? न किसी से कुछ कहतीसुनती हो, न हंसतीबोलती हो. तुम्हारे पिताजी जहां भी विवाह की बात चलाते हैं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती हो. लगता है, तुम्हारे मन को तो सुमित के अलावा कोई भाता ही नहीं.’ ‘उस का नाम मत लो, मां. उस ने मुझे धोखा दिया है,’ तृप्ति क्रोधित स्वर में बोली थी. ‘नहीं बेटी, धोखा तो तब होता जब वह बिना कुछ बताए तुम से विवाह कर लेता. सच पूछो तो मैं उस की साफगोई से बहुत प्रभावित हूं. उस में संबंधों की नाजुक डोर को संभालने की क्षमता है. जरा सोचो, जो व्यक्ति अपने नन्हे से बच्चे से इस तरह जुड़ा है,

भविष्य में तुम्हें किस तरह रखेगा. मेरा मतलब है यदि तुम उस से विवाह करने का निर्णय लो तो…’ तृप्ति की मां ने बात आगे बढ़ाई थी. आखिरकार, तृप्ति को कुछ समझ आया था, सो उस ने मां से हां कह दी थी. तृप्ति ने तो केवल स्वीकृति दी थी, बाकी बातचीत तो उस के पिता और बड़े भाई ने की थी. वे तो उझानी जा कर सुमित के मातापिता और सिद्धार्थ से भी मिल आए थे. इस तरह वह सुमित की पत्नी बन कर उस के घर में आ गई थी. अब तो स्वयं उस का 4 वर्ष का बेटा मयूर था. सिद्धार्थ की बात इन 7 वर्षों में न उस ने की, न सुमित ने उठाई, फिर अचानक उस का सिद्धार्थ को ले कर इस तरह बेचैन हो उठना? तृप्ति की समझ में कुछ नहीं आया था. इतने वर्षों से तो वह दादादादी के साथ आराम से रह रहा था, फिर अब अचानक क्या हो गया? तभी द्वार पर आहट हुई थी और तृप्ति ने मुड़ कर देखा था.

द्वार खोला तो बाहर सुमित का चचेरा भाई रघु खड़ा था. ‘‘अरे रघु भैया, आप? आइए न, अंदर आइए,’’ तृप्ति ने स्वागत करते हुए कहा. ‘‘अब आओ न, द्वार के पीछे छिपे क्यों खड़े हो बेटे? कोई कुछ नहीं कहेगा,’’ कहते हुए रघु ने किसी को पुकारा. ‘‘कौन है वहां?’’ तृप्ति ने पूछा. ‘‘अपना सिद्धू है, भाभी. उझानी में किसी की नहीं सुनता है, दिनभर बाहर खेलता रहता है. पिछली बार ताऊजी ने सुमित भैया से भी कहा था कि अब उन से नहीं संभलता, पालपोस कर बड़ा कर दिया, अब तो आप लोग संभाल लीजिए. बेचारा, बिना मां का बच्चा है. गुस्सा भी आए तो इस पर हाथ नहीं उठता,’’ रघु उसे ले कर अंदर आते हुए कह रहा था. खापी कर रघु चला गया था. पर सिद्धार्थ भौचक्का सा घर की हर वस्तु को छू कर देख रहा था. सुमित पास की दुकान से मयूर को साथ ले कर कुछ खरीदने गया था.

पता नहीं, कहां रह गया. तृप्ति सोच ही रही थी कि मयूर के गुनगुनाने के दूर से आते स्वर से ही उस ने सुमित के कदमों की आहट पहचान ली थी. ‘‘अरे, सिद्धू,’’ सिद्धार्थ पर नजर पड़ते ही सुमित चौंक गया था. वह फिर बोला, ‘‘यह यहां कैसे आया?’’ ‘‘रघु आया था छोड़ने,’’ तृप्ति बोली थी. ‘‘कुछ दिन इसे यहीं रहने दो. मैं इस के लिए कुछ और प्रबंध करने का प्रयत्न कर रहा हूं. मेरे मित्र सुंदर बाबू इसे गोद लेने को भी तैयार हैं, पर मेरा ही मन नहीं माना,’’ सुमित ने मानो सफाई दी थी. ‘‘अब और शर्मिंदा मत करो, सुमित. तुम्हारी पत्नी हूं. तुम्हारा दुख तो मुझे बहुत पहले ही समझ लेना चाहिए था, पर अब तो मुझे भूल सुधारने का अवसर दो. अब सिद्धार्थ यहीं रहेगा. आज जब रघु ने उसे बिना मां का बच्चा कहा तो मेरा मन भर आया,’’ तृप्ति ने कहा तो सुमित छोटे बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगा. सुमित को सांत्वना देते हुए पहली बार तृप्ति को लगा कि उन के बीच की अनकही दूरी सदा के लिए खत्म हो गई है. अब सुमित सही अर्थों में उस का हो गया है.

 

 

महुए की खुशबू-भाग 2

लेखक-निरंजन धुलेकर

चाय की तलब बड़ी ज़ोर से उठ रही थी. पास खड़े एक बुजुर्ग से इच्छा बताई और वे पता नहीं कहां से एक पीतल के लोटे में चाय भर लाए और बहुत आग्रह से ग्रहण करने को कहने लगे.

उन से बोला कि मुझे स्कूल ले चलो, तो वे बड़ी खुशी से चल पड़े. छोटा सा गांव एकमुश्त ही दिख गया. दो मिनट बाद ही वे बोले, ‘जेई है तुमाओ इस्कूल.’  मुझे कुछ समझ नहीं आया कि किस घर की तरफ इशारा किया.  वे और आगे बढ़े. दो झोपड़ियों के बीच से रास्ता था जो आगे हाते में खुल गया. खपरैल वाले 2 जीर्णशीर्ण कमरे में दरवाज़े थे जिन में पल्ले नहीं थे. खिड़कियों के नाम पर दीवार में छेद भर थे. आगे बरामदा था. न तो वहां पेड़ था न ही हैंडपंप और न ही कोई घंटा लटका था.

“प्राइ…री पाठ ..ला , ..टका पु ..” पीले बैकग्राउंड पर काले रंग से पहले कभी पूरा नाम लिखा गया होगा, पर अब इतना ही बचा था. वक़्त के साथ कुछ अक्षर मिट गए, कुछ शायद बजट की भेंट चढ़ गए. क्लासरूम में कटीफटी दरियां पड़ी थीं. दीवार पर ब्लैकबोर्ड था ज़रूर, पर उस का काला रंग दीवार का सफेद चूना खा गया था. अब यह ब्लैक एंड व्हाइट बोर्ड बन गया था.

एक कमरे पर ताला था, शायद, औफिस होगा. बुजुर्ग ने गर्व से कहा, “देखो माटसाब, कितेक नीक है जे इस्कूल बीसबाइस बच्चा आत पढबे ख़ातिर. दुई माटसाब और हैं. अब आप तीसरे हो गए. आराम से कट जे इते.”

11 बज रहे थे, गरमी तेज़ थी और स्कूल में सन्नाटा पसरा था. तभी एक कुत्ता क्लास से निकल कर मुझे घूरने लगा और अनजान देख गुर्राने भी लगा. बुजुर्ग के पत्थर उठाने की ऐक्टिंग करते ही वह भाग गया, अनुभवी था.

“चाचा, बाकी स्टाफ़ कहां हैं, बुलवाइए ज़रा, मुझे रिपोर्ट करना है ड्यूटी पर.” मुझे यह वातावरण असहनीय लग रहा था, पाठशाला ऐसी भी हो सकती है. इस बीच बुजुर्ग हंस कर बोले, “आइए मेरे साथ, आप को गांव दिखाते हैं.”  मैं बेमन से चल पड़ा.

कुछ खुले में आ कर उन्होंने उंगली से इशारा किया और मैं ने उस दिशा में देखा, खेतों में कटाईमड़ाई चल रही थी. सारा गांव ही वहां जमा था. लोगलुगाई, बड़ेबूढ़े. गांव इस समय बहुत व्यस्त था. यह भी पता चला कि दोनों सहशिक्षक भी इसी भीड़ का हिस्सा थे.

मैं ढूंढ रहा था कि स्कूल के बच्चे कहां थे. बुजुर्ग से पूछा, तो उन का जवाब सुन कर चकित रह गया. वे बोले, “बच्चे महुआ बीनने गए हैं. गांव के जमींदार के हाते में महुआ के कई पेड़ इस समय फूलों से लदे पड़े थे. सवेरे से फूलों की बिछायत बिछ जाती है और बच्चे उन्हीं पेड़ों के नीचे काम पर लग जाते हैं.”

यह भी  बताया गया कि उन पेड़ों के मालिक-जमींदार  ऊंची जाति के थे. गांव का कोई आदमी हाते में घुसने की भी हिम्मत नहीं कर सकता था. फूल उठाना तो दूर की बात. फिर बच्चे कैसे घुस आते थे? मेरा प्रश्न जायज था. पता चला कि जमींदार का मानस कहता है कि बच्चों की जाति नहीं होती, यानी, वे पवित्र होते हैं.

जमींदार की कोई औलाद नहीं थी शायद, इसलिए उस की भावनाओं ने धर्म को अपने हिसाब से परिभाषित कर दिया था. अंतिम सवाल था कि बच्चे महुए का करेंगे क्या? बुजुर्गवार ने मेरी यह जिज्ञासा भी शांत कर दी, “माटसाब, महुआ की शराब भट्टी लगी है गांव के बाहर. बच्चे  फूल बीन कर निहोरे को दे आते हैं और वह उस की देसी शराब खींचता है. बदले में, बच्चों को रेवड़ी मिलती है.”  मतलब वे यह भी बता गए कि गांव में नशेड़ियों की कमी नहीं थी, जो मेरे लिए एक और बुरी खबर भी थी.

गरीबी में यह नशा मिल जाए, तो घर, बकरी, खेत बिकवा दे, बच्चो की पढ़ाईलिखाई का नंबर तो बाद में आता. मुझे कुछ सोचता देख बुजुर्ग मुसकराए, “वह तो सुधा बहन जी लगी हैं गांव सुधारने में, वरना यह गांव तो कब का शराब की भट्ठी में जल, डूब जाता.”

सुधा बहनजी…मेरे चेहरे पर प्रश्न देख वे बोले, “माटसाब, यह समझिए कि ऊपर वाले ने ही बहनजी को भेजा. वखत पर हम मिलवा देंगे नहीं तो वे खुद्दई फेरा मारती रहती हैं. हो सकता है आप के आने की ख़बर उन को मिल भी चुकी हो. आसपास के गांवों के लोगलुगाई उन्हें ख़ूब जानते व मानते हैं.”  मुझे लगा जैसे गांव में कोई तो एक चेतनापुंज था.

बहनजी आसपास की  होंगी और खबर लग गई, मतलब, उन का अपना सूचनातंत्र भी विकसित लग रहा था और उन की अपनी एक साख भी गांव में थी, यह भी स्पष्ट हो गया था.

इतनी भद्दर जगह में गांव के लोगों की भलाई के लिए सोचने वाली बहनजी से मिल कर अपने स्कूल के लिए क्याक्या किया जा सकता है, मैं इन विचारों में खोया हुआ उस कमरे पर आ गया जिस में मेरा सामान रखवा दिया गया था. एकडेढ़ दिन की रोटी, अचार, सब्ज़ी का राशन साथ लाया था, वह काम आ गया.

मालिक मकान ने खुले में खटिया डाल कर गद्दा फैला दिया था और पास एक घड़ा व कुल्हड़ भी धर दिया था. गरमी की रातों में तारोंभरा खुला आकाश, चांद, टूटते तारे और स्पुतनिक को आतेजाते देखना मेरे लिए स्वप्निल अनुभव था. चारों तरफ़ से कभी सियार, तो कभी गीदड़ व उल्लू, तो कभी न जाने किस पशु की आवाज़ मेरे कानों में पड़ती रहीं और मैं ठीक से सो नहीं पाया. एक कहावत सुनी थी कि गांव की सुबह और शाम जितनी चित्ताकर्षक होती है उतनी ही दोपहर और रात डरावनी. उस कहावत को सच होते देख रहा था.

महुए की खुशबू-भाग 1

लेखक- निरंजन धुलेकर

पोस्टमैन ने हाथ में पकड़ा दिया एक भूरा लिफ़ाफ़ा. तीसचालीस साल पहले इसे सरकारी डाक माना जाता था. लिफ़ाफ़ा किस दफ़्तर से आया? कोने में एक शब्द ‘प्रेषक’ लिखा दिखाई दे रहा था. आगे कुछ लिखा तो है पर अस्पष्ट है.

सरकारी मोहर ऐसी ही होती थी. उस के मजमून से ही भेजने वाले दफ्तर का पता चलता. उत्सुकता से लिफ़ाफ़ा खोला औऱ खुशी से उछल पड़ा.

सुदूर गांव की प्राइमरी पाठशाला में मुझे शिक्षक की नियुक्ति और तैनाती देने की बाबत आदेश था और अब भूरा सरकारी लिफ़ाफ़ा मुझे रंगीन नज़र आने लगा.

‘गांव की पाठशाला…’ एक पाठ था बचपन में. साथ में अनेक चित्र दिए थे उस पाठशाला के ताकि  शहर के बच्चों को पाठ की वस्तुस्थिति सचित्र दिखाई जा सके. वे सभी चित्र अब मेरी आंखों के सामने आ गए…

साफसुथरा स्कूल.  छोटा सा मैदान. उस में खेलतेदौड़ते बच्चे. 2 झूले भी, जिन पर बालकबालिकाएं झूलती दिख रही होतीं. वहीं सामने लाइन से बने खपरैल वाले क्लास के 4 कमरे, अंदर जूट की लंबीलंबी रंगीन टाटपट्टियां. ऊपर घनी छांव डालते नीम और आम के पेड़. ध्यान से देखने पर एकदो चिड़िया भी बैठी दिख गईं डाल पर. एक क्लास तो पेड़ के नीचे ही लगी थी.

तिपाये पर ब्लैकबोर्ड था. मोटे चश्मे में सदरी डाले माटसाब पढ़ा रहे थे.स्कूल का घंटा पेड़ की एक डाल से ही लटका था जिसे एक सफेद टोपी लगाए चपरासी बजा रहा होता. ईंटों पर रखा मटका और पानी पीती एक बच्ची.

कक्षा के दरवाज़े से अंदर दिखतेपढ़ाते गुरुजी और ध्यान लगा कर पढ़ते बच्चे. कमीजनिक्कर में लड़के और लाल रिबन लगाए बच्चियां, सब गुलगोथने और लाललाल गाल वाले प्यारेप्यारे.

दूर पीछे  गांव के खेत, तालाब और झोपड़ियां दिख रही थीं, जिनके आगे भैंसगाय हरा चारा खा रही होतीं. गांव की तरफ़ एक सड़क मोड़ ले कर आती दिख रही थी. आकाश में सफ़ेद कपास के जैसे उड़ते बादल और साथ में एक पक्षियों की टोली.

शायद हवा पुरवाई चल रही होगी, पर तसवीरों में पता नहीं चलता हवा के रुख का. सरकारी किताब थी, इसलिए सबकुछ ठीकठाक ही नहीं, अत्यंत मनमोहक दिखाना मजबूरी थी चित्रकार की शायद. असलियत दिखा कर भूखे थोड़े ही मरना था.

गांव के स्कूल की वही पुरानी किताबी तसवीरें मन में उतारे मैं बस में बैठ गया. गांव में रहनेखाने का क्या होगा, अख़बार मिलेगा या नहीं, कितने बच्चे होंगे, सहशिक्षक, प्रिंसिपल, क्लर्क,  चपरासी  आदि सोचते हुए मेरा सिर सीट पर टिक गया था.

‘ए बाबू साहब, मटकापुर आय गवा, उतरो,’  कंडक्टर ने कंधा पकड़ कर उठाया. मेरे एक बक्सा, झोला और होल्डाल ले कर सड़क पर टिकते  ही बस धुआंधूल उड़ाती आगे निकल गई.मेरे साथ ही एक सवारी और उतरी थी, एक महिला, उस के साथ 2 बच्चे. उन्हें लेने 2 मर्द साइकिलों से आए थे. एक साइकिल पर बच्चे और दूसरी पर पीछे वह महिला बैठ गई.

मुझे ऐसा आभास हुआ कि महिला साथ आए पुरुष को मेरी तरफ़ इशारा कर के कुछ बता रही थी. पुरुष ने एक उचटती सी नज़र मुझ पर मारी, सिर हिलाया और साइकिल पर बैठ कर पैडल मारता चल दिया.

‘होगा कुछ,’ मैं ने मन ही मन सोचा और रूमाल से चेहरा पोंछ कर चारों तरफ नज़र दौड़ाई. दूरदूर तक गांव का कोई निशान नहीं था. इकलौती  पगडंडी सड़क से उतर कर खेतों की तरफ जाती सी लगी. मैं उसी पर बढ़ लिया और मुझे चित्र की ग्रामीण सड़क याद आ गई. पता नहीं वह कौन सा गांव था, यह वाला तो पक्का नहीं था.

कभी इतना बोझा मैं ने उठाया नहीं था. ऊपर से मंज़िल और रास्ते की लंबाई भी अज्ञात थी व दिशा अनिश्चित. तभी सामने से गमछा डाले एक आदमी साइकिल पर आता दिखाई दिया. मैं कुछ कहता, इस के पहले ही वह खुद पास आ गया, साइकिल से उतरा और सवाल दाग दिया, ‘कौन हो, कौन गांव जाए का है?’ गांव में आप को परिचय देना नहीं पड़ता, आप से लिया जाता है.

रास्तेभर में मेरा पूरा नाम, जाति, जिला, पिताजी, बच्चे, परिवार आदि की पूरी जानकारी साइकिल वाले को ट्रांसफर हो चुकी थी. बीसपचीस कच्चे और दोतीन मकान पक्के यानी छत पक्की वाले दिखने लगे. मेरी पोस्टिंग वाला गांव आ चुका था- मटकापुर.

यह वह तसवीर वाला गांव नहीं ही था.  समझ आने लगा कि चित्रकार के रंगों का गांव हक़ीक़त से कितना अलग होता है. वह कभी मटकापुर आया नहीं होगा. कूची भी झूठ बोलती है. गांव के स्कूल का नया ‘मास्टर’ आया है, यह ख़बर जंगल की आग बन गांव में फ़ैलने लगी. बड़ेबूढ़े जुटने लगे. कौन हैं, कौन गांव, जिला, पूरा नाम, जाति सब बारबार पूछा और बताया जा रहा था.

मेरे नाम का महत्त्व नाम के साथ दी गई अनावश्यक  जानकारी के आधार पर ही लगाया जाने लगा. किसी को समझ आया, कुछ सिर हिला रहे थे, ‘पता नहीं को है, किते से आए.’ ख़ैर, मैं जो भी था, प्रारंभिक आवभगत में कमी नहीं हुई. गांव में जो व्यक्ति मेरी बिरादरी के सब से क़रीब साबित हुए, उन का ही धर्म बन गया मुझे आश्रय देने का. खाना हुआ और सोने के लिए खटिया डाल दी गई.

मैं अनजाने में और घोर अनिच्छा से पहले ही दिन गांव के लोगों के एक धड़े में जा बैठा था. गांव मे न्यूट्रल कुछ नहीं होता. हर आदमी होता है इस तरफ का या दूसरी तरफ  या ऊंचा या नीचा. चुनो या न चुनो. एक पाले की मोहर तो लग ही जाएगी, मतलब  लगा दी जाएगी आप की शख्सियत के लिफ़ाफ़े पर.

यह मोहर सरकारी वाली नहीं, सामाजिक होती है जो दूर से ही दिख जाती है. इस का छापा जन्मभर का होता है.

Crime Story: पति की कातिल

सौजन्या- मनोहर कहानियां

उस दिन जून 2020 की 6 तारीख थी. सुबह होने पर प्रियंका की आंखें खुलीं तो खिड़की से आती तेज रोशनी उसकी आंखों में लगी. पिंकी ने आंखें बंद कर लीं, फिर आंखों को मलते हुए जम्हाई ले कर बैड पर उठ कर बैठ गई.

कुछ देर वह अलसाई सी बैठी रही, फिर मुंह घुमा कर बैड के दूसरे किनारे की ओर देखा तो पति चंदन वहां नहीं था.

शायद आज जल्दी उठ गया, बाहर होगा, सोच कर वह बैड से उठी और पैरों में चप्पल पहन कर बैडरूम से बाहर निकल आई.

जैसे ही वह बाहर आई तो बाहर का दृश्य देख कर सन्न रह गई. चंदन नायलौन की रस्सी से मुख्यद्वार की लोहे की चौखट से लटका था. यह देख पिंकी के मुंह से चीख निकल गई. चीखते हुए वह बाहर की तरफ भागी और पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने आ कर देखा तो सब अपनेअपने कयास लगाने लगे. चंदन रेलवे में नौकरी करता था और पत्नी के साथ रहता था.

यह मामला सोनभद्र जिले के थाना कोतवाली राबर्ट्सगंज क्षेत्र के बिचपई गांव का था. किसी ने सुबह 8 बजे राबर्ट्सगंज कोतवाली को घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चंदन की उम्र 34-35 वर्ष रही होगी. वह दरवाजे की लोहे की चौखट से नायलोन की रस्सी से लटका हुआ था. उस के पैर जमीन को छू रहे थे, घुटने मुड़े हुए थे.

देखने से लग रहा था जैसे चंदन ने आत्महत्या की हो, लेकिन पैर जमीन पर लगे होने से थोड़ा संदेह भी था कि क्या वाकई चंदन ने आत्महत्या की है या किसी ने उस की हत्या कर के आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है.

इंसपेक्टर मिश्रा के दिमाग में ऐसी ही बातें उमड़घुमड़ रही थीं. फिर मिश्राजी ने सोचा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सारी हकीकत सामने आ जाएगी. उन्होंने सिर को झटका और सोचों के भंवर से बाहर आए.

उन्होंने पास में बैठी मृतक चंदन की पत्नी पिंकी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में खाना खा कर दोनों साथ बैड पर सोए थे. सुबह उस की आंख खुली तो चंदन बैड पर नहीं था. वह बाहर आई तो चंदन को इस हालत में चौखट से लटकते हुए पाया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने उस से और विस्तृत पूछताछ की तो पता चला वह चंदन के साथ जिस मकान में रह रही थी, वह पिंकी के पिता परमेश्वर भारती का था. वह खुद बीजपुर में रहते हैं. पिंकी और चंदन के दोनों बच्चे भी अपने नाना के पास रह रहे थे. पतिपत्नी के अलावा उस मकान में कोई नहीं रहता था.

चंदन बिचपई से 25 किमी दूर मदैनिया गांव का निवासी था, जो करमा थाना क्षेत्र में आता था. घटना की सूचना करमा थाने को दी गई, वहां से यह खबर चंदन के परिवार तक पहुंचा दी गई.

इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और कोतवाली लौट आए. 2 घंटे बाद चंदन का भाई अपने गांव से राबर्ट्सगंज कोतवाली पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर मिश्रा को एक लिखित तहरीर दी, जिस में उस ने चंदन की हत्या का आरोप उस की पत्नी पिंकी उर्फ प्रियंका, ससुर परमेश्वर भारती, सास चमेली, साले पिंटू और पड़ोसी कृष्णा चौहान पर लगाया था. भाई ने तहरीर में कृष्णा से पिंकी के संबंध होने का जिक्र किया था.

तहरीर देख कर इंसपेक्टर मिश्रा चौंके. उन के मन का संदेह सच होता दिखने लगा. लाश की स्थिति देख कर उन्हें पहले ही चंदन के आत्महत्या पर संदेह था. पति की मौत पर पिंकी भी उतनी दुखी नहीं लग रही थी, उस का चीखनाचिल्लाना नाटक सा लग रहा था.

खैर, अब इंसपेक्टर मिश्रा को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने का इंतजार था. शाम को जब रिपोर्ट आई तो उस में चंदन की हत्या किए जाने की पुष्टि हो गई.

इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने चंदन की लिखित तहरीर के आधार पर पिंकी, कृष्णा चौहान, परमेश्वर भारती, चमेली और पिंटू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने केस की जांच शुरू करते हुए कृष्णा चौहान उर्फ किशन के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. बिचपई में वह पिंकी के घर के पड़ोस में अपनी मां के साथ किराए पर रहता था.

जांच के दौरान पूछताछ में यह भी पता चला कि कृष्णा का पिंकी के घर काफी आनाजाना था. वह घर से गायब भी था. पिंकी और कृष्णा की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस से भी दोनों के संबंधों की पुष्टि हो गई. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा किशन उर्फ कृष्णा की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गए.

11 जून को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर राबर्ट्सगंज के रोडवेज बस स्टैंड से किशन और प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया. भेद खुल जाने की आशंका से प्रियंका किशन के साथ कहीं भाग जाने की फिराक में थी, लेकिन पकड़ी गई.

कोतवाली ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने चंदन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या करने के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी—

उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के थाना करमा क्षेत्र के मदैनिया गांव में शंकर भारती रहते थे. वह रेलवे में थे. उन के परिवार में पत्नी कबूतरी के अलावा एक बेटी राजकुमारी और 2 बेटे चंद्रशेखर व चंदन थे.

उन्होंने सब से बड़ी बेटी राजकुमारी का विवाह समय रहते कर दिया था. बेटों में चंद्रशेखर बड़ा था. वह किसी के यहां कार ड्राइवर की नौकरी करता था. सब से छोटे चंदन ने बीए तक पढ़ाई की थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि 2002 में शंकर भारती की मृत्यु हो गई.

मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो आपसी सहमति से चंदन का नाम दिया गया. 2004 में चंदन रेलवे में भरती हो गया. वर्तमान में वह चुर्क में बतौर केबिनमैन कार्यरत था. रेलवे में नौकरी लगते ही चंदन के लिए रिश्ते आने लगे.

एनटीपीसी में इंजीनियर परमेश्वर भारती बीजपुर में रहते थे. परिवार में पत्नी चमेली और एक बेटी पिंकी उर्फ प्रियंका व 2 बेटे थे पिंटू और रिंकू.

पिंकी सब से बड़ी थी. उस ने बीए कर रखा था. परमेश्वर को चंदन के बारे में पता चला तो उन्होंने उस के बारे में जानकारी हासिल की. उस समय करमा थाने के जो इंसपेक्टर थे, वह परमेश्वर के रिश्तेदार थे. परमेश्वर ने उन से बात की तो उन्होंने पता करके परमेश्वर को बताया कि लड़का बहुत अच्छा और सीधासादा है. उस में कोई ऐब भी नहीं है, सरकारी नौकरी में है. फिर रिश्ता तय हुआ और 2005 में चंदन और पिंकी का विवाह हो गया.

पिंकी खबसूरत और पढ़ीलिखी थी. वह अच्छे खातेपीते परिवार से ताल्लुक रखती थी. विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल आई तो वहां का मकान और रहनसहन उसे अच्छा नहीं लगा. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.

शादी के बाद पिंकी चंदन से जिद करने लगी कि वह बिचपई में रहे. बिचपई में पिंकी के पिता का एक मकान खाली पड़ा था. पिंकी ने उस में चंदन के साथ रहने की बात अपने पिता परमेश्वर से कर ली थी.

चंदन को मानना पड़ा

आए दिन पिंकी चंदन से बिचपई चल कर रहने की जिद करती. चंदन अपने परिवार के साथ रहना चाहता था, इसलिए पिंकी की बात पर ध्यान नहीं देता था. अपनी बात न मानते देख पिंकी बीवियों वाले हथकंडे अपनाने लगी. उस से नाराज हो कर बोलना बंद कर देती, खाना नहीं खाती थी. इस पर चंदन समझाता तो उस की बात सुनती तक नहीं थी. आखिर चंदन को उस की जिद के आगे झुकना ही पड़ा.

वह पिंकी के साथ बिचपई में अपने ससुर परमेश्वर के मकान में रहने लगा. कालांतर में प्रियंका 2 बेटों अमन और नमन की मां बनी. स्कूल जाने लायक तो प्रियंका ने उन्हें नाना परमेश्वर के पास भेज दिया.

चंदन कभीकभी शराब पी लेता था. पीने पर पिंकी कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पिंकी भी चंदन के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी. वह ज्यादातर मायके का ही गुणगान करती रहती थी.

चंदन अपने घरवालों से बात करता या उन की तारीफ करने लगता तो पिंकी के तनबदन में आग लग जाती थी. पत्नी के रूखे व्यवहार के कारण चंदन ज्यादा शराब पीने लगा था. शराब पीने के बाद दोनों में झगड़ा जरूर होता था.

किशन उर्फ कृष्णा चौहान फुलाइच तरवा आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता रामत चौहान ने 2 शादियां की थीं. रामत चौहान पहली पत्नी और उस की 2 बेटियों के साथ आजमगढ़ में रह रहा था. किशन उस की दूसरी पत्नी रमा का बेटा था.

कृष्णा अपनी मां के साथ डेढ़ साल से पिंकी के घर के पड़ोस में किराए पर रह रहा था. वह अपराधी प्रवृत्ति का था. राबर्ट्सगंज कोतवाली में उस पर 2019 में धारा 457/380/411 के तहत मुकदमा भी दर्ज था. 29 साल का किशन अविवाहित था.

पड़ोस में रहते हुए उस की नजर पिंकी पर गई तो उस की खूबसूरती देख कर किशन उस की ओर आकर्षित हो गया. चंदन ड्यूटी पर रहता था, प्रियंका घर में अकेली होती थी.

पड़ोसी होने के नाते पिंकी और किशन एकदूसरे को जानते  थे, पर अभी तक बात नहीं हुई थी. दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ती, तो जल्दी नहीं हटती थी.

एक दिन किशन सुबहसुबह पिंकी के घर पहुंच गया. हमेशा की तरह पिंकी उस समय भी अकेली थी. दरवाजा खटखटाने पर पिंकी ने दरवाजा खोला तो किशन को खडे़ पाया और मुंह से निकला, ‘‘अरे आप…’’

‘‘जी, मैं आप का पड़ोसी किशन.’’

‘‘जानती हूं आप को, बताने की जरूरत नहीं.’’ पिंकी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘अरे अंदर आइए, बाहर क्यों खड़े हैं.’’

औपचारिकतावश पिंकी ने कहा तो किशन बोला, ‘‘चाय बनाने जा रहा था तो देखा चीनी नहीं है. अभी दुकानें भी नहीं खुली हैं. फिर सोचा पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है, इसलिए आप के पास चला आया. इस बहाने आप से परिचय भी हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा किया. अब मैं खुद आप को चाय बना कर पिलाती हूं. उस के बाद आप चीनी भी ले जाइएगा.’’ कह कर पिंकी ने उसे कुरसी पर बैठाया और खुद चाय बनाने किचन में चली गई.

कामी नजर

किशन जिस जगह कुरसी पर बैठा था, ठीक उसी के सामने किचन थी. किशन चाय बनाती पिंकी को पीछे से ताड़ रहा था. पिंकी के शरीर की बेहतरीन बनावट उस की आंखों में प्यास जगा रही थी. इसी बीच पिंकी ने पलट कर उस की ओर देखा तो उसे अपनी ओर देखते पाया. एकाएक दोनों की आंखें मिलीं तो होंठ खिल उठे. चाय के कप टे्र में रख कर पिंकी किचन से बाहर आई और टे्र मेज पर रख कर किशन को चाय देते हुए पूछा, ‘‘आप लोग कुछ समय पहले यहां रहने आए हैं, इस से पहले कहां रहते थे?’’

‘‘भाभी, मैं पहले आजमगढ़ में रहता था. वहां मेरे पिता रहते हैं. यहां मैं अपनी मां के साथ रहता हूं.’’

फिर चाय का घूंट भरते हुए किशन पिंकी की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘वाह, आप चाय बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ तारीफ सुन कर पिंकी खुशी से बोली.

चाय पीतेपीते उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी ली. पिंकी को किशन से बात करना बहुत अच्छा लग रहा था. उस की बातें और बात करने का ढंग अलग ही था. काफी देर तक बातें करने के बाद किशन वहां से चला गया.

इस के बाद तो दोनों के बीच हर रोज बातें होने लगीं. किशन किसी न किसी बहाने से पिंकी के पास पहुंच जाता. पिंकी भी जान गई थी कि किशन उस से मिलने और बातें करने के लिए बहानों का सहारा लेता है. इसलिए एक दिन उस ने किशन से कह दिया कि उसे मिलने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं है. वह ऐसे भी मिलने आ सकता है.

किशन खुश हो गया कि अब उसे बहाने नहीं बनाने पड़ेंगे. अब जब देखो किशन पिंकी के पास ही नजर आने लगा. घर के कामों में भी उस की मदद करने लगा. साथ में काम करतेकरते हंसीमजाक करते कब समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता. चंदन के घर आने से पहले ही किशन वहां से चला आता था.

कुछ ही दिनों में दोनों काफी घुलमिल गए. दोनों को एकदूसरे के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था. किशन तो जानता था कि वह पिंकी को जी जान से चाहने लगा है. लेकिन अब पिंकी को भी एहसास होने लगा कि किशन चुपके से आ कर किस तरह उस की जिंदगी बन गया, उस के दिलोदिमाग पर छा गया.

पिंकी के दिमाग में सिर्फ उस की बातें ही घूमती रहती थीं. किशन पिंकी के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि वह भी उस की ओर खिंचने लगी. जब प्यार का एहसास हुआ तो वह भी किशन से मजाक कर के लिपटनेचिपटने लगी. पिंकी का ऐसा करना किशन के लिए शुभ संकेत था कि वह उस की होने के लिए बेताब है.

एक दिन दोनों पासपास बैठे किशन की लाई आइसक्रीम खा रहे थे. किशन ने अपनी आइसक्रीम खाई तो उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे उसे आइसक्रीम अच्छी न लगी हो. फिर उस ने पिंकी की आइसक्रीम की ओर देखा और तेजी से उस का हाथ पकड़ कर उस की आइसक्रीम की एक बाइट खा ली.

किशन की इस हरकत पर पिंकी भौंचक्की रह गई. फिर शरारती अंदाज में उस की पीठ पर प्यार से धौल जमाने लगी. उस के इस अंदाज से किशन हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘आप की आइसक्रीम सच में बहुत मीठी है.’’

पिंकी उस से नाराज होने की बात कह कर चुपचाप बैठ गई तो किशन की नजर पिंकी के पिंक लिप्स पर गई, जहां कुछ आइसक्रीम लगी हुई थी. उसे शरारत सूझी, वह अपने चेहरे को पिंकी के चेहरे के पास ले गया और उस के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उस के पिंक लिप्स को अपने होंठों से चाट लिया.

इस शरारत से पिंकी अचंभित रह गई, लेकिन इस शरारत ने उस के शरीर में आग भरने का काम किया. किशन भी अपने आप को नहीं रोक पाया. वह बराबर पिंकी के लिप्स को चूमने लगा तो पिंकी ने मस्त हो कर आंखें मूंद लीं. इस के बाद तो उन के बीच वही हुआ जो अकसर उन्माद के क्षणों में होता है. दोनों बहके तो ऐसे फिसले कि अपनी इच्छा पूरी करने के बाद ही अलग हुए.

उन के बीच एक बार जो अनैतिक रिश्ता बना तो वह बारबार दोहराया जाने लगा. लेकिन ऐसे रिश्ते की सच्चाई अधिक दिनों तक छिपी नहीं रह पाती. एक दिन चंदन ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद किशन तो वहां से चला गया, लेकिन चंदन ने पिंकी को जम कर पीटा. साथ ही आगे से ऐसी नापाक हरकत न करने की हिदायत दी.

पिंकी के इस गलत कदम से चंदन परेशान रहने लगा. उस की अपने भाई चंद्रशेखर से बात होती रहती थी. उस ने भाई को भी पिंकी के किशन से अवैध संबंध के बारे में बता दिया.

दूसरी ओर पिंकी पर चंदन द्वारा की गई पिटाई और हिदायत का कोई असर नहीं हुआ. वैसे भी चंदन हर वक्त घर पर रह नहीं सकता था. इस के अलावा घर में पिंकी पर नजर रखने वाला कोई नहीं था. पिंकी पहले की तरह ही किशन के साथ रंगरलियां मनाती रही. वह चाहती थी कि उस के और किशन के रिश्ते पर कोई तर्कवितर्क न करे.

5/6 जून की रात किशन और पिंकी रंगरलियां मना रहे थे कि रात 12 बजे चंदन घर लौट आया. उस ने पिंकी और किशन को एक साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो वह उन से झगड़ने लगा. इस पर किशन ने पिंकी से कहा कि आज इस का काम खत्म कर देते हैं.

पिंकी भी उस की बात से सहमत थी, इसलिए उस का साथ देने लगी. वह घर में पड़ी नायलोन की रस्सी उठा लाई. दोनों ने मिल कर रस्सी से चंदन का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

चंदन की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को नायलोन की रस्सी से बांध कर घर की लोहे की चौखट से लटका दिया, जिस से यह लगे कि चंदन ने आत्महत्या की है. इस के बाद किशन वहां से चला गया.

सुबह जब पुलिस आई तो पिंकी ने उस के आत्महत्या कर लेने की बात ही बताई. लेकिन उन दोनों की चाल काम न आई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व चंद्रशेखर से पूछताछ पर आधारित

Jasmin Bhasin ने फादर्स डे पर अपने मम्मी पापा को गिफ्ट किया मुंबई में घर, पढ़ें खबर

बिग बॉस 14 में हिस्सा लेने के बाद अदाकारा जैस्मिन भसीन के फैन फलॉविंग पहले से ज्यादा बढ़ गई है. जिसके बाद से बिग बॉस के घर से बाहर होने के बाद भी वह लगातार अपने काम में व्यस्त रहती हैं. इन दिनों भी वह अपने कई सारे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं.

बीते कुछ समय में जैस्मिन भसीन ने कई सारे म्यूजिक वीडियोज में भी काम किया है. जिसे लोगों ने खूब पसंद किया. जैस्मिन भसीन ने फादर्स डे के खास मौके पर अपने मम्मी-पापा को एक घर मंबई में गिफ्ट किया है. जहां वह उन दोनों के साथ में रह सकेगी.

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इस बात का खुलासा जैस्मिन भसीन ने खुद एक रिपोर्ट में किया है. जिसमें उन्होंने कहा है कि मेरी मां का कोरोना अब ठीक हो गया है. जब मेरी मां को कोरोना हुआ था तब मैंने अपने पापा से प्रोमिश किया था कि अब वह उन्हें अकेले नहीं छोड़ेगी. जिसके बाद से मैंने मुंबई में घर लेने का फैसला लिया.

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अब हम तीनों साथ में रहेंगे, आगे उन्होंने कहा कि जब मेरी मां बीमार हुई थी उस वक्त मैंं बहुत ज्यादा डर गई थी. कई रात मैं जागकर काटी हूं, जिसके बाद से मुझे अंदाजा हो गया था कि परिवार के बिना सबकुछ अधूरा है.

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आज मैं जो कुछ भी हूं अपने मां -बाप की वजह से हूं, इसलिए मैं अब उनके बिना रहना मुश्किल है. मैं जब उनके साथ रहूंगी तो मुझे काफी ज्यादा सपोर्ट मिलेगा.

जैस्मिन भसीन के इस फैसले की तारीफ सोशल मीडिया पर उनके फैंस जमकर कर रहे हैं.

21 जून को होगी डिजिटल प्रतियोगिताएं

. कोरोना के कारण इस बार सातवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस  पर डिजिटल माध्यम से कार्यक्रम किए जाएंगे. उत्तर प्रदेश में  इस बार योग दिवस को लेकर जोर-शोर से तैयारी अपने अंतिम चरणों में हैं. ‘योग के साथ रहें, घर पर रहें’ ये योग दिवस की थीम घर पर रहने का संदेश देती नजर आ रही है. इस बार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मनाए जाने वाले दिवस में ‘योगी संग योगा’ को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. सभी दफ्तर, संस्थान और आमजन ‘आयुष कवच एप’ से जुड़कर योग करेंगे. इस दौरान विभिन्न माध्यमों से प्रसारण भी किया जाएगा, जिसे देखकर लोग घर से भी योग कर सकेंगे. इसके साथ प्रतियोगिताओं के जरिए चयनित प्रतिभागी को पुरस्कृत भी किया जाएगा.

 यूपी में हर उम्र के लोगों को योग से जोड़ने की पहल

योगी सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए लोगों को योग से जोड़ने की पूरी तैयारी की है. जिसमें हर आयु वर्ग को जोड़ने की नायाब पहल की है. इसके लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाएगा. आयुष कवच एप से 20 लाख से अधिक लोगों को जोड़ा गया है. इसके अलावा 185 योग वेलनेस सेंटर पर 11 मई से ऑनलाइन ट्रेनिंग भी शुरू कर दी गई थी.

 विभिन्न प्रतियोगिताओं का होगा आयोजन

सातवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर योग दिवस चैलेंज के तहत ‘योग वीडियो प्रतियोगिता’, ‘योग कला प्रतियोगिता’ तथा ‘योग क्विज प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जाएगा. ‘योग वीडियो प्रतियोगिता’ के तहत राज्य व जिला स्तर पर प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे. प्रतियोगिता के तहत महिला, पुरुष और योग पेशेवर की तीन पुरस्कार श्रेणियां होंगी. प्रत्येक श्रेणी में पांच वर्ष से 18 वर्ष के बच्चे, 18 वर्ष से 40 वर्ष के युवा, 40 वर्ष से 60 वर्ष के वयस्क और 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिक सम्मिलित हो सकेंगे. प्रतियोगिता के तहत राज्य स्तर पर हर श्रेणी के प्रत्येक वर्ग में कम से कम 500 तथा जिला स्तर पर 50 प्रतिभागियों का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक है.

 भारतीय संस्कृति, विरासत पर आधारित होगी प्रतियोगिता

‘योग कला प्रतियोगिता’ के तहत योग तथा भारतीय सांस्कृतिक विरासत पर एक पेंटिंग, पोस्टर या स्केच बनाकर ऑनलाइन जमा करना होगा. सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक कला को नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.  चयनित कला कृति को सार्वजनिक पोर्टल पर प्रकाशित किया जाएगा. ‘योग क्विज प्रतियोगिता’ 21 जून को ऑनलाइन आयोजित की जाएगी. प्रतिभागियों को 50 वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर देने के लिए 30 मिनट का समय दिया जाएगा. सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को प्रशस्ति-पत्र एवं नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. प्रतियोगिता योग, पर्यावरण एवं वर्तमान परिवेश में रोगों के उपचार में घरेलू औषधियों के उपयोग पर आधारित होगी.

धर्म और भ्रम में डूबा कोरोना इलाज- भाग 2: रामदेव के बयान से शर्मसार भारत

लेखक-भारत भूषण श्रीवास्तव और शैलेंद्र सिंह

कोरोनिल दवा के प्रचार में केंद्र सरकार के 2 मंत्री उस के लौंच के समय रामदेव के साथ मंच पर थे. वैसे ‘केरोनिल’ नाम का एक कंपाउंड चेन्नई की एक कंपनी 20 साल से ज्यादा समय से बना रही है पर वह इंडस्ट्रियल क्लीनर है, दवा नहीं. वह कंपनी ट्रेडमार्क को ले कर विवाद में है. मद्रास उच्च न्यायलय ने फिलहाल बिना अंतरिम राहत दिए उक्त कंपनी के मामले को दूसरी बैंच को भेज दिया है. उस मामले में पतंजलि ने स्वीकार किया कि 14 जून, 2020 को स्वामी रामदेव, जोकि ट्रस्टी हैं, ने दावा किया था कि कोरोना वायरस का क्योर कोरोनिल मैडिसिन के इन्वैंशन के साथ पा लिया गया है. रामदेव का यह दावा अब धूल खा रहा है.

पतंजलि ने स्वयं बाद में कहा कि कोरोना वायरस के उपचार की जगह इसे सिर्फ इम्यूनिटी बूस्टर की तरह इस्तेमाल किया जाए. फरवरी 21 में दिए गए पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड बनाम अरुद्रा इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के मामले में न्यायालयों के समक्ष बहुत सी चीजें साफ हुईं. इस बीच पतंजलि ने जो ‘दिव्य कोरोनिल’ दवा बनाई है उसे कोविड-19 की सहायक दवा और इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में आयुष मंत्रालय से मान्यता मिल गई. हालांकि, बाद में यह बात सही साबित नहीं हुई. इस पर विवाद खड़ा हुआ. तब बड़ी चतुराई और सरकार के प्रभाव से कोरोनिल को दवा की कैटेगरी से बाहर कर दिया गया और कोरोनिल को फूड सप्लीमैंट की कैटेगरी में डाल दिया गया.

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विदेशों में कोरोनिल को ले कर टैस्ट हुए और कई देशों ने माना कि इस में साधारण इम्यूनिटी बढ़ाने का भी गुण नहीं है. महाराष्ट्र जैसे देश के कई राज्यों ने अपने यहां कोरोनिल के बेचने पर रोक लगा रखी है. वहीं, भाजपाशासित कई राज्य ऐसे हैं जहां कोरोनिल बिक रही है. हरियाणा में तो राज्य सरकार के साथ मिल कर पतंजलि 50 फीसदी दाम पर कोरोनिल जनता को उपलब्ध करा रही है यानी खुले और फुटकर बाजार में यह दोगुने दाम पर बेची जा रही है. बता दें कि रामदेव हरियाणा के ब्रैंड एम्बेसडर भी हैं.

जब कोरोनिल की सचाई सामने आई तो बौखलाए रामदेव ने जवाब में एलोपैथी और उस के डाक्टरों का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. लेकिन आपदा कानून लागू होने के बाद भी केंद्र सरकार ने रामदेव के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं किया क्योंकि वह अपने इस चुनावी प्रचारक को मुसीबत में नहीं डालना चाहती. हिंदुत्व सुरक्षा कवच पहन रामदेव की विवादित कोरोनिल धड़ल्ले से बिकती रही. पढ़ेलिखे लोग इसे इम्यूनिटी बूस्टर की तरह लेते रहे हैं और अधपढ़े वैक्सीन की तरह कोविड के इलाज के लिए. दोनों ही कोविड की मार के शिकार हुए हैं.

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‘‘सब औक्सीजनऔक्सीजन कर रहे हैं. पूरे ब्रह्मांड में औक्सीजन भरी पड़ी है. अपने शरीर में जितनी चाहो औक्सीजन भर लो. अस्पतालअस्पताल घूमते हैं. मरने वालों में उन की संख्या अधिक है जो अस्पताल गए. एलोपैथी मूर्खतापूर्ण विज्ञान है. एलोपैथी दवाएं लेने के बाद भी लाखों लोग मर गए.’’ बाबा रामदेव का यह बयान पूरी दुनिया में आलोचना का विषय बन गया. भारत में इडियन मैडिकल एसोसिएशन ने आपत्ति दर्ज कराई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन के पत्र लिखने के बाद रामदेव ने एक बयान जारी कर अपनी बात को वापस लेने की बात कही.

इसी बीच, एलोपैथी और डाक्टरों का मजाक उड़ाते हुए रामदेव का दूसरा वीडियो वायरल हो गया. इस में रामदेव अपने साथ योग कर रहे लोगों से कहते हैं, ‘‘तीसरा बोला मु?ो डाक्टर बनना है टर… टर… टर… टर… टर… टर बनना है… डाक्टर… एक हजार डाक्टर तो कोरोना की डबल वैक्सीन लगाने के बाद मर गए… कितने..? एक हजार डाक्टर… कल का समाचार है. अपनेआप को नहीं बचा पाए वे. कैसी डाक्टरी.’’ रामदेव इस वीडियो में आगे कहते हैं, ‘‘डाक्टर बनना है तो स्वामी रामदेव जैसा बन जिस के पास कोई डिग्री नहीं है और सब का डाक्टर है… विदाउट एनी डिग्री, विद डिविनिटी, विद डिग्निटी… आई एम अ डाक्टर.’’

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जब रामदेव के बयानों की आलोचना होने लगी तो रामदेव अपने दोनों बयानों पर खेद प्रकट करने के बजाय एलोपैथी को कठघरे में खड़ा करते हुए 25 सवाल पूछने लगे. इस संबंध में इडियन मैडिकल एसोसिएशन को पत्र लिखा. यह पत्र मीडिया में वायरल कर दिया गया. ये सवाल ठीक वैसे ही हैं जैसे पोंगापंथियों के सवाल रहते हैं. इन में आयुर्वेद को सब से भरोसे का बताने का काम किया गया. धार्मिक शैली में सवाल के जवाब में सवाल पूछने का काम किया गया. आईएमए इन सवालों के जवाब तार्किक रूप से देने की तैयारी कर रहा है. हालांकि, मूर्खतापूर्ण आरोपों का जवाब ट्रौलजीवियों ने भी नहीं दिया था. आईएमए के महासचिव डाक्टर जयेश एम लेले 25 सवाल रामदेव को भेजने वाले हैं.

जब देश के प्रधानमंत्री डाक्टरों और एलोपैथी के योगदान की भरपूर सराहना और तारीफ कर रहे हों तो रामदेव को एलोपैथी व उस के डाक्टरों की आलोचना करने का साहस अपनेआप मिल ही गया सम?ा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पत्र लिखने के बाद भी रामदेव की तरफ से हमले पर हमले जारी रहे.

रामदेव का साथ देने के लिए पतंजलि के दूसरे प्रमुख आचार्य बालकृष्ण ने ट्विटर पर सारे मसले को भारतीय संस्कृति पर हमला बताते हुए कहा, ‘‘सारे देश को ईसाई धर्म में तबदील करने के षड्यंत्र के तहत बाबा रामदेव को टारगेट किया जा रहा है और योग तथा आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है.’’ इस बचकाने लेकिन पूर्वाग्रही बयान में इशारा सोनिया गांधी की तरफ ही है जिस का मकसद बेवजह का बवंडर खड़ा करना था. देश में ऐसे अंधभक्तों की कमी नहीं है जो वायरस को चीन का षड्यंत्र मानते हैं और वैक्सीन को ईसाई साजिश.

भारत में डाक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मैडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए का कहना है कि इस के पहले भी रामदेव स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में डाक्टरों को ‘हत्यारा’ बता चुके हैं. जबकि सब को पता है कि योगगुरु और उन के सहयोगी बालकृष्ण बीमारी के समय एलोपैथी का उपचार लेते रहे हैं और अब बड़े पैमाने पर जनता को गुमराह करने के लिए वे ?ाठे और निराधार आरोप लगा रहे हैं ताकि वे अपनी अवैध व अस्वीकृत दवाओं को बेच सकें.

आईएमए इस लड़ाई को लड़ना चाहता है पर केंद्र सरकार के रुख को देखते हुए वह मुखर हो कर अपना विरोध दर्ज नहीं करा पा रहा है. आईएमए जानता है कि उसे सरकार की हां में हां मिलानी पड़ेगी ही. भारत में इस तरह की संस्थाएं सरकार समर्थित व्यक्ति की आलोचना एक सीमा तक ही कर सकती हैं. यहां तो सुप्रीम कोर्ट भी तुषार मेहता के इशारे को सम?ा कर मामले को सुनता है.

रामदेव की हिम्मत और बदजबानी करने का कारण भी है. उन्हें मालूम है कि वे मोदी सरकार से कुछ भी मांग व हासिल कर सकते हैं. उन के पास अंधभक्तों का एक बड़ा तबका है जो उन के कहने पर भाजपा को वोट देता है. इसीलिए वे किसी को कुछ भी कह देते हैं फिर चाहे पढ़ेलिखे डाक्टर ही क्यों न हों. उन के कहने पर ही 25 सितंबर, 2018 को सीजीएचएस के निदेशक डा. अतुल प्रकाश ने पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार-दिल्ली मार्ग, को सीजीएचएस का एम्पैनल्ड अस्पताल मान लिया. और इस से संबंधित औफिस मैमोरंडम में पतंजलि योगपीठ के किसी आवेदन तक का जिक्र नहीं है. यह औफिस मैमोरंडम सरकारी अस्पतालों के चीफ मैडिकल अफसरों को भेजा गया जहां अभी तक एमबीबीएस की पढ़़ाई कर के ही नौकरी मिलती है.

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