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रिश्तों का अल्पविराम : भाग 3

अपने घर की बालकनी में नूपुर हाथ में चाय का प्याला लिए मधुर की मेल खोल कर पढ़ने लगी –

“मेरी अपनी नूपुर, आज मन अनायास ही कई वर्ष पीछे लुढ़क गया. याद है हमारी पहली मुलाकात? रैगिंग के उन क्षणों में बेचारगी भरा तुम्हारा कंपकंपाता चेहरा, डर से सफेद पड़ा रंग और प्रकंपी स्वर ने मुझे अपनी ओर ऐसा आकर्षित किया कि कोमल संवेदनाओं के उन रेशमी तारों की गिरफ्त से मैं आज भी स्वयं को छुड़ा न पाया.

“फिर हमारा प्रेम यों परवान चढ़ा कि सब को हम से ईर्ष्या होती थी. याद है न, कैसे सब हम दोनों में कभी गलतफहमी तो कभी फूट डालने की कोशिशें किया करते थे. आज अगर दिलीप मिल जाए तो साले की टांग तोड़ दूं. कैसे उस ने तुम्हारी सहेली के लिए मेरे नाम से प्रेमपत्र लिख कर तुम्हें दिखाया था. वो तो हमारा एकदूसरे पर अटूट विश्वास था कि लिखावट मिलतीजुलती होते हुए भी तुम ने मुझ पर शक नहीं किया. आज सोचता हूं तो हंसी आती है कि अपने ही दोस्त टांगखिंचाई का कोई अवसर नहीं चूकते थे.”

मेल को आगे पढ़ती नूपुर को अचानक समय का आभास हुआ. संजीव का ड्राइवर आता होगा लंच का बैग लेने.मेल को अधूरा छोड़ वह रसोईघर में संजीव के लिए खाना पकाने चली गई. मधुर के पठन में किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं थी. आज वह अपने स्टाफ की नजरों से दूर बैठ कर नूपुर की मेल जो पढ़ रहा था.

“वह दिन मैं आज भी नहीं भूल सकती, जब तुम्हें मेरे घर मेरे पापा से मेरा हाथ मांगने आना था. तुम नहीं आए. मैं ने कितनी मिन्नतों से मांपापा को तुम से मिलने को राजी किया था. तुम्हारे दबंगई व्यक्तित्व के किस्से मेरे कुछ कहने से पहले ही उन तक पहुंच चुके थे. उन्हें मुझ पर संदेह हो चुका था. मेरा तुम से मिलना उन्हें कतई पसंद न था. उस पर हमारी शादी… ये तो उन के लिए वज्रपात समान था. हमारे घरों में तब लड़कियां अपनी पसंद का वर कहां चुनती थीं. अच्छी लड़कियां तो वही कहलाती थीं, जो नीचे सिर किए, नीची दृष्टि से बस बड़ों की आज्ञा का पालन करती रहें. कितनी मनुहारों के पश्चात वे बेमन से तुम से मिलने को तैयार हुए थे.

“सोचो, मेरी क्या स्थिति हुई होगी, जब ऐसे में तुम नहीं आए. मां ने मुझे कितनी खरीखोटी सुनाई थी. पापा ने यह कहते हुए भी अपना क्षोभ व्यक्त कर दिया था. “उस शाम पापा की बातें सुन कर अपनी सूजी हुई आंखों को मूंद कर मैं ने सिर झुकाते हुए निर्णय ले लिया था. तुम्हारे कारण मेरी अपने परिवार के समक्ष इतनी बेइज्जती हुई थी कि मेरा तुम्हारे प्रति बिफरना स्वाभाविक था.

“काश, तब आज की तरह हाथ में मोबाइल होता तो झट पता कर लेती कि क्या कारण था, जो तुम उस शाम नहीं आए थे. लेकिन जो परिस्थिति थी, उस के मुताबिक चलने को विवश मुझे अपने घर वालों के समक्ष हथियार डालने पड़े थे. तुम्हारे उस गैरजिम्मेदाराना व्यवहार से चिढ़ कर मैं परिवार की इच्छा के आगे झुक गई. और फिर वही हुआ, जो ऐसी परिस्थितियों में अकसर होता है – घर वालों ने आननफानन मेरा विवाह संजीव से करवा दिया. वो तो मेरा समय अच्छा था, जो संजीव के रूप में एक संवेदनशील, प्यार करने वाला और मुझे समझने वाला जीवनसाथी मिला.

“मैं जानती हूं कि संजीव की प्रशंसा को तुम उसी प्रकार लोगे, जिस तरह मैं तुम्हारी पत्नी के प्रति तुम्हारे प्रेम और दायित्व को समझती हूं. “विवाहोपरांत मैं अपने जीवन में खो चुकी थी. तुम्हें याद करती थी, किंतु फिर भी लगभग भुला चुकी थी. समझती थी कि एक अध्याय था, जो अधूरा ही छूट गया. यदि तुम मुझे एक बार फिर न मिलते तो संभवतः मैं पूर्ण जीवन तुम्हारे प्रति गलतफहमी पाले रहती कि तुम ने मुझे धोखा दिया. मेरा मन अकसर मुझे सालता कि जिस से मैं ने पहला प्रेम किया, उस ने बिना कुछ कहेसुने मुझे बीच मंझधार में छोड़ दिया. मेरा क्या हुआ, उसे इस बात की भी चिंता नहीं हुई.”

“मधुर सर, आप यहां बैठे हैं? मैं ने आप को सारे औफिस में ढूंढ़ा,” अपनी सेक्रेटरी की आवाज पर मधुर मेल को बीच में ही छोड़ चौंक गया. “सर, दस मिनट में आप की मीटिंग है मैनेजमेंट के साथ.” “याद है मुझे”, अपनी बात ढकते हुए मधुर बोला. मेल को बंद कर अब उसे मीटिंग में जाना पड़ा.

ड्राइवर लंच ले कर जा चुका था. नूपुर अब फिर मेल पढ़ने बैठ गई.  “मैं सोच भी नहीं सकता कि उस शाम तुम पर क्या गुजरी होगी, जब वादाखिलाफी करते हुए मैं तुम्हारे घर नहीं पहुंचा था. मेरी गलती थी, सरासर. तुम्हें पता है कि मेरा स्वभाव कितना दबंगई हुआ करता था. किस मुंह से तुम्हारे घर वालों से मिलता, किस आधार पर तुम्हारा हाथ मांगता. मैं ने सोचा कि पहले कुछ बन जाऊं, ताकि सिर ऊंचा कर के तुम्हारा रिश्ता मांग सकूं. पर कितना बेवकूफ था मैं, जो तुम्हें भी असली कारण नहीं बताया. तुम्हें अंधेरे में रखने की सजा भुगती. जब कुछ महीनों बाद तुम्हारे घर पहुंचा और ज्ञात हुआ कि तुम्हारा विवाह हो चुका है. अगले कितने महीने मैं ने देवदास बन कर काटे. फिर मेरी मां ने जबरदस्ती मेरी शादी करवा दी. लेकिन शुभा को पत्नी के रूप में पा कर मैं पूरी तरह संतुष्ट हुआ. बेशक, वह एक अच्छी जीवनसंगिनी बनी.

“शादी हो गई, जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया, मगर तुम्हें भुला पाना कठिन रहा. शुभा के साथ स्नेहिल क्षणों में भी आंख मूंदता तो तुम्हें सामने पाता. स्मृतियों के शिकंजों से मुक्ति सरल नहीं होती. तभी तो सोशल मीडिया के जमाने में अपना अकाउंट बनाते ही मैं ने सब से पहले तुम्हें खोजना जारी रखा. जिस दिन तुम मुझे मिल गईं, उस दिन को भुला पाना संभव नहीं. तभी तो हर साल हम दोनों उस दिन को संग मनाते हैं.”

सही लिखा मधुर ने, नूपुर सोचने लगी. उस के अपने मन में भी न जाने कितनी बार ये खयाल आया कि यदि कभी मार्क जुकरबर्ग से कह सकी तो जरूर कहेगी कि उसे हम जैसे प्रेमियों की अनेकोंनेक दुआएं मिलेंगी, जो उस के कारण एक बार फिर जीवन के दूसरे मोड़ पर मिल सके. मधुर ने नूपुर को खोज निकाला था और सारी गलतफहमियां दूर कर दी थीं. नूपुर आगे पढ़ने लगी…

“शुक्र है जिंदगी ने एक बार फिर मुझे तुम से मिला दिया. कहने को अब हम दोनों शादीशुदा हैं, हमारी अपनी गृहस्थियां, अपनी जिम्मेदारियां हैं, पर फिर भी एकदूसरे को पा कर ही हम पूर्ण हो सके.

“याद है तुम्हें जब हम दोनों इतने वर्षों के अंतराल के पश्चात एक बार फिर एकदूसरे के समक्ष आए थे. तुम्हें अपने पसंदीदा हरे रंग के अंगरखा सूट में देखते ही मैं समझ गया था कि तुम्हारे दिल में मैं अब भी जिंदा हूं. चाहे साल गुजर गए, चाहे हमारे जीवनसाथी बदल गए, हम अलगअलग जिम्मेदारियों में गुंथ गए, पर हमारे मन एकदूसरे के करीब अब भी अटके हुए हैं. मैं भी तो तुम्हारी पसंद का कुरतापाजामा पहन कर आया था. याद था मुझे कि तुम्हें मर्दों पर शर्टपैंट की जगह भारतीय परिधान कितने भाते थे. फिर प्यार के हाथों मजबूर हो कर हम ने अपने सभी बंधनों को दरकिनार कर डाला. कितना सुकून मिला था एकदूसरे की बांहों में खो कर – न समाज की चिंता, न परिवार का होश. लगा था मानो असली जीवन अब आरंभ हुआ, जवानी ने एक बार फिर अंगड़ाई ली. इस बार हमारा साथ पहले से अधिक उन्मादी था – हमें किसी को अपने संबंधों के लिए राजी करने की विवशता नहीं, हम किसी से स्वीकृति लेने को बाध्य न हुए. ये अनुभूति विलग रही. बस, एकदूजे के प्रेम की अपरिमित पराकाष्ठा के जादू में लिपटा हमारा अलौकिक संसार, जो भले ही सीमित समय के लिए सृजित होता, परंतु उस में घूमते हुए हम दोनों अपनी सुधबुध भुला देते. और उस का रसास्वादन करने से हमें कोई रोक नहीं सकता.

“मैं तो यह सोच कर ही विचलित हो उठता हूं कि हम दोनों एक ही शहर में थे और इतने वर्षों तक एकदूसरे से जुदा रहे. पर अब दिल ने स्वीकार लिया कि आइंदा तुम से जुदाई नहीं होगी, कभी नहीं.”मधुर अपनी मेल में जुदाई की हर संभावना को सिरे से नकार रहा था, किंतु क्या यह अब भी संभव है?

मधुर की मेल पढ़ते हुए नूपुर को वह वाकिया याद हो आया, जब वह तैयार हो कर नियत होटल में मधुर से मिलने पहुंची थी. उस दिन वह घर के प्रति निश्चिंत थी – संजीव अपनी फैक्टरी के सिलसिले में देर रात लौटने वाला था और तेज अपने कालेज से बाहर गया हुआ था. मधुर से मिलन के स्वप्न संजोए नूपुर अपने अधरों पर स्मितरेखा लिए होटल में प्रवेश कर रही थी कि उस की नजर अंदर बैठे संजीव पर पड़ गई… “ये यहां कैसे?”

हतप्रभ अवस्था में अस्फुट शब्द उस के मुंह से निकले. उफ, किस प्रकार संजीव की दृष्टि बचा कर वह वहां से निकली थी. कभी किसी वेटर की ओट ले कर तो कभी किसी खंबे के पीछे छुप कर – जब तक बाहर न निकल गई, सांस अटकी रही थी उस की. इतने जोखिम उठा कर भी उस ने मधुर से रिश्ता इतने सालों तक निभाए रखा. एक कारण मधुर से प्रेम तो था ही. साथ ही, संजीव के साथ अपनी गृहस्थी में पसर गई एकरसता, जिस से मधुर का साथ एक नूतन ऊर्जा का संचार कर देता. इस रिश्ते में न तो कोई अपेक्षा थी और न ही जोरजबरदस्ती. ये केवल एक फ्रेश फील देता आया था.

परंतु उस दिन पकड़े जाने के डर ने नूपुर के होश उड़ा दिए थे. फिर अगले कुछ हफ्ते वह मधुर से मिलने जाने की हिम्मत न कर सकी. और इसी कारण मधुर कितना बेचैन हो उठा था. लगभग हर दिन उस से मिलने की जिद ठाने वह कभी उसे मिलने बुलाता, तो कभी स्वयं उस के घर आ धमकने की बात कह देता. नूपुर के वे दिन कितने कठिन रहे – एक ओर पति के समक्ष पोल खुलने का भय, तो दूसरी ओर प्रेमी की तरफ से निरंतर बनता दबाव.

“तुम क्या जानो, मर्द जो ठहरे. मैं एक औरत हूं, ऐसे अचानक यों ही उठ कर नहीं चल सकती तुम से मिलने को,” कई बार दोनों की तकरार भी हो गई थी इस चक्कर में. “कहीं संजीव को मुझ पर संदेह हो गया तो क्या उत्तर दूंगी उन्हें? तुम्हारी पत्नी शायद तुम्हारे बहाने स्वीकार ले, हो सकता है सचाई जानने के बावजूद तुम्हें क्षमा भी कर दे. हमारे समाज में पुरुषों का बहक जाना स्वीकार्य है, सदा से. क्योंकि तब भी दोषारोपण पत्नी पर ही होता है कि वह अपने पति को खुश नहीं रख सकी, अपने रिश्ते में रोक नहीं पाई. परंतु एक स्त्री के लिए बहक जाने की कोई माफी नहीं. वह केवल कुलटा और व्यभिचारिणी के रूप में दंडित की जाती है,” वे पल याद कर नूपुर का स्वाद कसैला हो गया. प्रेमी की बांहों में जो आनंदप्राप्ति होती आई थी, वह अचानक एक चोरी सी प्रतीत होने लगी. जरा सी लापरवाही से जीवन को होम होते देर नहीं लगेगी, यह बात उस की समझ में आ गई थी. उस पर वयःसंधि की इस उम्र में उसे प्रेमी के स्पर्श से अधिक भावनात्मक साथ व दुलार की अपेक्षा थी. अपनी उंगली अतीत के किस्सों से छुड़ा कर नूपुर मधुर की मेल को आगे पढ़ने लगी.

उधर मधुर भी अब मीटिंग से फारिग हो पुनः नूपुर की मेल विंडो पर लौट आया.“मधुर, याद है एक बार मैं संजीव के सामने पड़तेपड़ते बची थी. कुछ वैसा कटु अनुभव एक बार फिर मेरे सामने आ खड़ा हुआ. पिछले हफ्ते मैं अपना फोन देख रही थी, जिस में तुम्हारी और मेरी एक तसवीर थी. वही जो हम ने बगीचे में घूमते हुए अनायास ही क्लिक कर ली थी. तभी किचन में कुकर की सीटी बजी और मैं फोन टेबल पर छोड़ कर रसोईघर में चली गई. पता नहीं, कब संजीव वहां आ गए और हमारी तसवीर देखते हुए पूछने लगे, “ये कौन हैं?”

उन की निनिर्मेश दृष्टि ने मेरे पैरों के नीचे की जमीन हिला दी. मैं ने सप्रयास अपनी नजरों को झुकने नहीं दिया. कहीं संजीव को मुझ पर संदेह हो जाता. यदि वो समझ जाते कि मैं अपनी चोरी पकड़े जाने से घबरा गई हूं तो क्या होता. पूरी ढिठाई से मैं ने झूठ कह दिया कि तुम मेरी सहेली के पति हो. फिर मुझे एक लंबी कहानी रचनी पड़ी कि मेरी सहेली को हम दोनों की शक्लों में इतनी समानता लगती है मानो हम भाईबहन हों. और यही मिलान करने के लिए एक तसवीर ले डाली.

संजीव ने कुछ कहा नहीं, किंतु उन की संदेहभरी दृष्टि को झेलना मेरे बस में नहीं. उम्र साथ बिताने पर रिश्ते संवादों के मोहताज नहीं रहते. मन की तरंगें इतनी प्रबल हो जाती हैं कि एकदूजे के समीप पहुंच जाती हैं. मुझे लगता है, वह मेरे बहानों से संतुष्ट नहीं हुए. तभी तो इतने चाव से साग खाने वाले संजीव ने उस रात भोजन में मेरे हाथों का बनाया साग बस छू कर छोड़ दिया.

आज भी सोचती हूं तो कांप जाती हूं. यह बात तो तुम मानोगे कि हम दोनों अपने इस रिश्ते के लिए अपनी शादियां, अपनी गृहस्थियां और अपने बच्चों की जिंदगियों से खेलना नहीं चाहते. इस साथ की सुंदरता इसी में है कि यह दबाढका रहे.

हमारे साथ ने जो खूबसूरत स्मृतियों के तानेबाने बुने, मैं जीवनपर्यंत उन्हीं के साए में रहना चाहती हूं. तुम्हें याद कर के सदा मुसकराना चाहती हूं. मैं नहीं चाहती कि हमारे रिश्ते के कारण हमारी जिंदगियां बरबाद हो जाएं और फिर हम एकदूसरे पर दोष मढ़ते फिरें. इस रिश्ते की मिठास को मैं कसैला नहीं करना चाहती. इसलिए मौके की नजाकत समझते हुए स्पष्ट रूपेण कह रही हूं कि अभी इस रिश्ते को अल्पविराम लगाना ही श्रेयस्कर रहेगा. जो खुशी हमें एकदूसरे से दोबारा मिल कर हुई थी, अब समय के साथ वो एक तनाव में बदलती जा रही है कि कहीं पकड़े न जाएं. जब नहीं मिल पाते, तब एकदूसरे से शिकायतें भी शादीशुदा जिंदगी जैसी होती जाती हैं. यह रिश्ता अपेक्षाओं से मुक्त रहे तभी तक अच्छा है. लेकिन मुझे लगने लगा है कि अब शुरुआत जैसी ताजगी नहीं रही रिश्ते में. अब एक तरीके से ये डबल मैरिज हो गई है. इसलिए मैं ने यह निर्णय लिया है कि फिलहाल एकदूसरे से अलग होने में ही भलाई है.

“हां, एक वादा करती हूं कि अगर आगे कभी मौका मिला तो जरूर मिलेंगे, पर अभी अलविदा.”नूपुर की ईमेल पढ़ने के बाद मधुर को एक सुकून मिला. क्योंकि उस ने भी तो नूपुर को यही लिख भेजा था कि उस का स्थानांतरण हो रहा है. ऐसे में दूसरे शहर से सब की नजरों से छुपतेछुपाते लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप कायम रखना कहां संभव होगा. इसलिए फिलहाल इस रिश्ते को अल्पविराम लगाने में ही दोनों की भलाई है. न इस रिश्ते की ओर कोई जवाबदेही रहेगी और न इसे निभाते जाने का तनाव.

मधुर की मेल को अंत तक पढ़ कर नूपुर के चेहरे पर भी एक मुसकराहट उभर आई. जितना साथ था, सुंदर था. अब इस की चुइंगगम बनाने से लाभ नहीं हानि होगी. यकायक उस के दिमाग में साहिर लुधियानवी की पंक्तियां घूम गईं -‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिउसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा…’

दिल को छू देने वाली कहानी है फिल्म ‘रिक्शावाला’ की

समीक्षाः

फिल्म ‘ रिक्शावाल : दिल को छू लेने वाली फिल्म..’’

रेटिंग: तीनस्टार

निर्माता:अरित्रा दास,शर्बानी मुखजी,
निर्देशकः रामकमलमुखर्जी
कलाकारः अविनाश द्विवेदी, संगीता सिन्हा, कस्तूरी चक्रवर्ती
कैमरामैन: मधुरापालित
अवधिः 48 मिनट
ओटीटीप्लेटफार्म:बिगबैंग एम्यूजमेंट

कलकत्ता में सौ वर्ष से भी अधिक समय से हाथ से खींचे जाने वाले दोपहिए रिक्षा चल रहे हैं.इनमें से ज्यादातर रिक्षा वाला बिहारी,पूर्वी उत्तर प्रदेश या उड़ीसा का गरीब इंसान ही होता है.इस रिक्षावाला के हालात पर अतीत में 1953 में महान फिल्मकार बिमल रॉय ने उत्कृष्ट फिल्म‘‘दो बीघा जमीन’’ और 1992 मेें रिक्षा वाला की भूमिका में स्व.ओमपुरी को लेकर विदेशी फिल्मकार रोलैंड जो फनेफिल्म ‘‘द सिटी ऑफ ज्वॉय’’का निर्माण किया था.अब इन दोनों फिल्मकारों को श्रृद्धांजलि देते हुए फिल्मकार रामकमल मुखर्जी ऐसे ही रिक्षा वाला की व्यथा व पीड़ा का चित्रण करने वाली फिल्म‘‘रिक्षावाला’’लेकर आए हैं,जो कि कई अंतरराष्ट्रीय  फिल्म समारोहो में पुरस्कृत हो चुकी है.अब यह फिल्म 30 जून से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘बिग बैंग एम्यूजमेट’

हो रही है.रिक्षा कोलकत्ता का सौ साल पुराना पारंपरिक दो पहिया वाहन है,जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित किया हुआ है,मगर यह आज भी कोलकत्ता शहर की गलियों में अपनी आखिरी सांसें ले रहा है.फिल्म ‘रिक्षावाला’कोलकत्ता शहर को जीवित रखने वाले दो पहिया वाहन के माध्यम से पथ, प्रेम और मानवीय बंधन का चित्रण करती है.

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कहानीः
कहानी के केंद्रमें एक बुजुर्ग रिक्षा चालक धनी राम(ओमप्रकाष लाढ़ा )का परिवार है.उनके परिवार पत्नी के अलावा बेटा मनोज यादव(अविनाष द्विवेदी,)व बेटी चुटकी(तितली) है.धनीराम ने घर बनाने व रिक्षा खरीदने के लिए चंडीबाबू(विक्रमजीत )से कर्जले रखा है और हर दिन थोड़ी थोड़ी रकम वापस करते रहते हैं.बेटा मनोज यादव बी काम की पढ़ाई कर रहा है.उसने टैगोर वगैरह को पढ़ा है.मनोज यादव को एक बंगाली लड़की चुमकी(कस्तूरी चटर्जी)से प्यार है.चुमकी के पिता समझते हैं कि

मनोज यादव के पिता बिजनेस मैन है. इधर धनीराम के पैर में चोट लग जाती है और वह बिस्तर पर पहुॅच जाते हैं.घर में दवा के लिए भी पैसे नही है.मनोज एक अच्छी नौकरी की तलाश में है,पर बिना सिफारिश नौकरी कहां मिलती है.मनोज,चुमकी के पिता से अच्छी नौकरी लगने के बाद ही मिलना चाहता है.इधर पिता धनीराम की तबियत ज्यादा खराब हो जाती है.घर के बिगड़े हालात के चलते मनोज यादव को अपने पिता का रिक्षा चलाना पड़ता है.धनी राम का हर दिन का एक ग्राहक है,जहां वह तृषा(बेबी अंगीरा बनर्जी)की माॅं अनुराधा बनर्जी(संगीता सिन्हा)को रिक्षा में बैठाकर स्कूल ले जाता है और फिर स्कूल से तृषा व अनुराधा बनर्जी को वापस लेकर आता है, जिसके लिए मासिक रकम मिलती है.अब मनोज यादव यह काम करने लगता है.

मनोज के शरीर सौष्ठव  पर अनुराधा मोहित हो जाती हैं.अनुराधा, मनोज से कहती है कि घर के अंदर उपर आओ और पैसे ले जाओ.पर मनोज उनकी बात का मतलब समझ जाता है और कहता है कि कल पैसे लेकर आइएगा,कल ले लॅंूगा.इधर अनुराधा,धनीराम को फोन करके बता देती है कि उनका बेटा पैसे लेने के लिए उपर नही आया.वहीं चंडीबाबू अपना पैसा मांगने आते हैं और चुटकी को जिस निगाह से देखते हैं,वह मनोज को पसंद नहीं आता.मनोज की माॅं कहती है कि उसे बनर्जी के घर के अंदर जाकर पैसे ले आना चाहिए था.

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दूसरे दिन फिर अनुराधा पैसे लेने के लिए उपर चलने को कहती है.मनोज उपर जाता है.अनुराधा से पैसे लेता है और अनुराधा के अपनी साड़ी का पल्लू गिराने पर वह उसका पल्लू फिर से उसके कंधे पर रख देता है.अनुराधा अपनी तकलीफ बयंा करती है कि व्यापार में व्यस्त होते हुए बनर्जी ने चार वर्ष से उसे छुआ नही है.क्या उसकी अपनी इच्छा नही होती?उस वक्त मनोज पैसे लेकर वापस आजा ता है.

रास्ते में चंडीबाबू मिलकर उससे पैसे ले लेतेहैं.चुमकी के पिता,मनोज यादव को रिक्षा चलाते देखकर सच जान जते हैं.एक चाय की दुकान पर कुछ बुजुर्ग बंगाली बिहारी,उड़िया व मारवाड़ियांे को लेकर अपषब्द कहता है,तब मनोज उन्हे बताता है कि उसने क्या पढ़ा है और यह भी कि वह शारीरिक मेहनत कर सकते हैं.मगर दिमाग दार बंगाली शारीरिक मेहनत नही कर सकते.रिक्षा नही खींच सकते.लेकिन चंडीबाबू का कर्ज उतारने व घर के हालात के चलते मनोज में  एक बदलाव आता है.उसे अपना जमीर बेचना ही पड़ता है.

निर्देषनः
कभी अंग्रेजी फिल्म पत्रिकाओं के संपादक व लेखक रहे रामकमल मुखर्जी की बतौर निर्देषक ‘‘रिक्षावाला’’ तीसरी फिल्म है.उनकी पिछली दो फिल्मों की ही तरह यह फिल्म भी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कृत हो चुकी है.फिल्म बंगला और हिंदी भाषा मिश्रित है,लेकिन सब टाइटल्स अंग्रेजी में हैं.
जहां तक निर्देषन कौशल का सवाल है,तो राम कमल मुखर्जी बधाई केे पात्र हैं.उन्होने बड़ी संजीदगी के साथ इस संवेदनशील विषयवस्तु वाली फिल्म के हर दृष्य को गढ़ा है.कहानीकार व निर्देषक रामकमलमुखर्जी की सबसे बड़ी खूबी यह  है कि उन्होंने धीरे से मगर सामाजिक बुराइयों पर करारा तमाचा भी जड़ा है.

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एक तरफ उन्होंने दो पहिए रिक्षा वाला की बेबसी, दर्द, मजबूरी को उकेरा हैं,तो वहीं यह सवाल भी बड़ी खूबी से उठाया है कि कई दशकों से कोलकता में रह रहे बिहारी या उड़िया अभी भी इस महानगर में हाषिए पर क्यों हैं?फिल्म का संवाद ‘‘बंगाली के पास दिमाग है,पर वह शारीरिक मेहनत नही कर सकते’’ बहुत कुछ  कह जाता है.इतना ही नही निर्देशक ने बड़ी खूबी से अमीर महिलाओं के मेहनत कर रिक्षावाला जैसे पर पुरूषों की तरफ आकर्षण की वजह पर इशारा करते हुए कुछ सवाल उठाए हैं,जिन पर हर किसी को सोचना होगा.

कैमरा मैन मधुरा पालि तभी बधाई की पात्र हैं.

अभिनयः
एक युवा उच्च  शिक्षित आम युवक की भांति प्रेम व नौकरी के खूबसूरत सपने देख रहे मनोज यादव को जिन हालात में रिक्षवाला बनना पड़ता है,उसे अविनाश द्विवेदी ने जीवंतता प्रदान करने में सफल रहे हैं.अविनाश  ने मनोज यादव की अच्छी सिफारिश न हो पाने के चलते अच्छी नौकरी न पाने की बेबसी व दर्द,अपने बीमार पिता व घर के खराब हालात के चलते जमीर मारकर मजबूरन एक अमीर विवाहिता संग शारीरिक संबंध बनाने की पीड़ा भी उनके चेहरे के भाव प्रकट करते हैं.अनुराधा बनर्जी के किरदार मेें संगीता सिन्हा का अभिनय भी ठीक है.छोटे किरदार में कस्तूरी चक्रवर्ती अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. अन्य सहयोगी कलाकार अपनी अपनी जगह सही हैं.

“सस्ता गोल्ड” बेचने वालों से कैसे बचें!

ऐसे में अगर कोई आपको सोना अर्थात गोल्ड सस्ते में देने की बात कहे तो आप 100% उस पर निछावर हो जाएंगे, आप यह नहीं देखेंगे कि आखिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस चीज का दाम तय होता है, वह चीज आपको कम कीमत में कोई कैसे दे सकता है?दरअसल , यह लालच है. और यही लालच आपको ठगने और लूटने का माध्यम बन जाती है. रायपुर में सोना सस्ते दाम में दिलाने के नाम पर अलग-अलग व्यक्तियों से लाखों रुपयों की धोखाधड़ी करने वाली 5 महिला आरोपियो को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है. बताया गया है कि सभी महिला आरोपियों ने बैंक में बंधक सोने को सस्ते में दिलवाने का झांसा दिया. महिलाएं महिलाओं को बहुत अच्छी तरीके से समझा पाते हैं और विश्वास दिला करते लूटने की यह घटना अपने आप में एक अजीब घटना घटित हुई है. इसमें एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो लोगो से तकरीबन लाखों रुपये से अधिक की राशि की ठगी की गई है. एक शिकार सुनीता साहू ने ऐसे ही हालातों में ठगे जाने के बाद थाने में पहुँच लिखित शिकायत दर्ज करवाई थी.

सीआइए स्टाफ का जप्त “सोना”

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इसी तरह एक अन्य घटनाक्रम में राहुल नामक व्यक्ति को उसके परिचित ने सोने का लालच देकर ठग लिया घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है ठग ने कहा कि सीआइए स्टाफ ने करीब 19 किलो सोना पकड़ा है! इस सोने को वह एक करोड़ रुपये में दिलवा देगा! इसके लिए राहुल 40 लाख रुपये एडवांस दे दो. उसने शर्त रखी कि तीन किलो सोना उसे देना होगा. राहुल ने उसे 40 लाख रुपये दे दिए और सोना मिलने के बाद तीन किलो उसे देने की बात भी मान ली. पैसा लेने के बाद आरोपी ठग दर्पण ने सोना लेकर आने की बात कही . फिर उसने फिल्मी स्टाइल में कहा- वह सोना लेकर आ रहा था, इसी दौरान सेल टैक्स ने रेड कर दी. उसने घबराकर राहुल का नाम भी लिया है. यदि सोना छुड़वाना है और नाम निकलवाना है, तो 25 लाख रुपये देने होंगे. इस दौरान आरोपित ने किसी गगन नाम के व्यक्ति को अफसर बताते हुए राहुल की बात भी कराई थी. घबराकर उसे यह पैसा दे दिया. कुछ दिनों बाद आरोपित दर्पण ने फिर कहा कि सोना छुड़वा लिया है.अब यह सोना बिलासपुर में सीआइए स्टाफ की किसी महिला कर्मी के पास है. इसके लिए उस महिला को 20 लाख रुपये देने होंगे. बुरी तरह जाल में फंसे होने की वजह से राहुल ने फिर उसे 20 लाख रुपये दिए…! पुलिस के अनुसार आरोपी ने उससे कुल एक करोड़ 35 लाख रुपये की ठगी की है .

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पढ़ें लिखे,भोले भाले

इस तरह पूरी तरह बर्बाद हो जाने के बाद राहुल को होश आया मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. हम यह बताना चाहते हैं समाज में बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो पढ़ लिख लेते हैं मगर छोटी छोटी लालचों में आकर के अपने जमा पूंजी को लूटा बैठते हैं ठगे जाते हैं. आए दिन इस तरह की घटनाएं अखबारों में सुर्खियां बटोरती है लोग पढ़ते हैं और फिर भूल जाते हैं यह गांठ बांध लें की किसी भी हालत में लालच नहीं करेंगे अगर आप यह ठान ले की लालच बुरी बला तो आप कभी भी ठगे नहीं जाएंगे. पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के मुताबिक इन दिनों ठगी की अनेक कहते हैं पुलिस में आ रही हैं सोशल मीडिया के विस्तार के बाद ठगी के मामलों में और भी वृद्धि हुई है जबकि सोशल मीडिया से जागरूकता का प्रचार प्रसार करना चाहिए था दरअसल इसका कारण लालच है हमने यह देखा है कि पढ़े-लिखे लोग भी छोटी-छोटी लालच में फंसकर अपने लाखों रुपए लूटा बैठते हैं.

रणबीर कपूर के साथ काम कर चुकी हैं टीवी शो ‘आपकी नजरों ने समझा’ की ‘नंदिनी’

इन दिनों सोनाली जाफर निर्मित ‘‘स्टारप्लस’’के सीरियल ‘‘आपकी नजरों ने समझा’’में मुख्य भूमिका निभाते हुए शोहरत बटोर रही अदाकारा ऋचा राठौर ने 2015 में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के साथ इम्तियाज अली निर्देशित फिल्म‘‘तमाशा’’में अभिनय कर चुकी हैं.

मूलतः शिमला निवासी और इंजीनियरिंग की छात्रा ऋचा राठौर ने कभी नहीं सोचा था कि वह अभिनय करने के लिए एक दिन मुंबई जाएंगी. लेकिन नियति ने उन्हे अभिनेत्री बना दिया.खुद ऋचा राठौर बताती हैं-“अभिनय का सिलसिला इम्तियाज अली की फिल्म ‘तमाशा’से शुरू हुआ. मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रही थी,जब इम्तियाज अली की टीम हमारे कॉलेज में ऑडीशन लेने आयी थी.फिल्म की शूटिंग शिमला में ही हो रही थी.इसलिए हंसी में मैंने भी ऑडीशन दिया और मुझे एक छोटा सा किरदार निभाने का ऑफर मिल गया,जिसे मैंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया. मैंने टीम के साथ एक हफ्ते तक शूटिंग की और अपने आसपास जो कुछ हो रहा था, उससे मैं हैरान थी.तीन दिन के अंदर मुझे अहसास हुआ कि मुझे तो अभिनय को ही कैरियर बनाना है.’’

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वह आगे बताती हैं- ‘‘इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैने नौकरी कर ली.लेकिन अभिनेत्री बनने का ख्याल मेरेे दिमाग में कहीं न कहीं था.फिर एक दिन मेरे पास सीरियल‘कुमकुम भाग्य’के लिए ऑडीशन देने के लिए फोन आया.फिर मैं मुंबई आ गयी.मैने कई टीवी सीरियल में कुछ छोटे किरदारनिभाए औरआखिरकारमुझे ‘आपकीनजरों ने समझा’ मेंपहलीबारमुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला.’’

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शिमला से मुंबई आकर खुद को स्थापित करना काफी कठिन रहा.इस पर वह कहती हैं-यूं तो मैं मेट्रो शहरों में रही हूं,लेकिन मुंबई शहर का जीवन बिल्कुल अलग है.शुरूआत में मेरे लिए भी यह आसान नहीं था,लेकिन मैं कामयाब रही.अब मुझे मुंबई की गति में काम करने की आदत हो गयी है.हाल ही में कोरोना महामारी व लाॅकडाउन की वजह से मैं अपने घर शिमला में थी,तो वहां लोगों को देखकर मुझे वास्तव में अहसास हुआ कि इस तरह की जगहों पर लोग कितनी धीमी जिंदगी जीते हैं.‘‘

बॉलीवुड सिंगर अनुराधा पौडवाल ने दिखाई दरियादिली, लोगों की भलाई के लिए किया ये काम

गायिका अनुराधा पौडवाल और लायंस इंटरनेशनल क्लब, दोनों ही हमेशा से स्वास्थ्य और सामाजिक मुद्दों को लेकर काम करते नजर रहे हैं.इन्होंने पर्याप्त चिकित्सा बुनियादी ढांचे की उपलब्धता की भी ईमानदारी से वकालत की.अनुराधा पौड़वाल ने हाल ही में लायंस इंटरनेशनल क्लब के साथ मिलकर अपनी एनजीओ ‘‘सूर्योदय फाउंडेशन‘‘ के माध्यम से जेजे अस्पताल को 36 लाख रूपए की लागत की कार्डियक एम्बुलेंस दान में दी है.इतना ही नही अनुराधा पोड़वाल ने लायंस क्लब इंटरनेशनल के सामाजिक कार्यक्रमों को बढ़ाने में योगदान देने के मकसद से अपने गायन के कार्यक्रम भी करने वाली हैं.

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सर्वविदित है कि लायंस इंटरनेशनल क्लब वैश्विक स्तर पर कई कारणों से जुड़ा हुआ है.बच्चों की शिक्षा, महिला अधिकार, पर्यावरण शिक्षा से लेकर और भी बहुत कुछ काम कर रहा है.अब अनुराधा पोड़वाल संग लायंस इंटरनेशनल क्लब का एक साथ तालमेल निश्चित रूप से लोगों के जीवन बचाने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है.

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गायिका अनुराधा पौडवाल का कहना है-‘‘एम्बुलेंस की न उपलब्धता के कारण लोग अपनी जान गंवाते हैं.ऐसे कई मामले सामने आए हैं,जहां समय पर एम्बुलेंस न मिलने से मरीज अस्पताल तक ही नहीं पहुंचपाए.मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए हर पल महत्वपूर्ण होता है. जेजे अस्पताल ने हमसे संपर्क किया और हमने कार्डियक एम्बुलेंस उपहार में देने का फैसला किया.मैं लायंस क्लब इंटरनेशनल का आभार प्रकट करती हूँ,जिन्होंने इसने काम मैं आगे आकर हमारी मदत की.भावनाजी और श्रीगुप्ता, लायंस क्लब के गवर्नर और भरत जी गोराडिया को विशेष धन्यवाद, जिन्होंने सूर्योदय की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’’

 

केंद्र के राहत पैकेज का अधिकतम लाभ ले – मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड की दूसरी लहर के मद्देनजर जिस राहत पैकेज की घोषणा की है, उसका उत्तरप्रदेश को अधिकतम लाभ मिलना चाहिए. ऐसी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है. उन्होंने संबंधित विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ( अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव) को निर्देश दिया है कि वह यथाशीघ्र अपने विभाग की कार्ययोजना बनाकर केंद्र को भेजें ताकि राहत पैकेज के तहत जो पैसा प्रदेश को मिलना है,वह शीघ्र मिले. कार्ययोजना बनाने के साथ इस बाबत लगातार केंद्र के संपर्क में रहें.

मालूम हो कि केंद्रीय वित्तमंत्री ने सोमवार को कोविड की दूसरी लहर से सर्वाधिक प्रभावित सेक्टर्स और लोगों के लिए राहत पैकेज (रिलीफ मेजर्स ) की घोषणा की थी.

इसमें वैश्विक महामारी कोरोना से प्रभावित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपए की गारंटी स्कीम के तहत 50 हजार करोड़ की लोन गारंटी योजना स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए और बाकी अन्य सेक्टर्स के लिए है. स्वास्थ्य सेक्टर्स के तहत जो पैसा मिलना है उसे इस क्षेत्र की बुनियादी संरचना को और मजबूत किया जाएगा. फोकस मेट्रोपोलिटन शहरों की जगह अपेक्षाकृत कम सुविधाओं वाले छोटे शहर होंगे. मालूम हो कि प्रदेश की योगी सरकार पहले से ही इस क्षेत्र में काम कर रही है. उसकी मंशा हर जिले में मेडिकल कॉलेज और राजधानी लखनऊ समेत गोरखपुर,वाराणसी, आगरा और कानपुर आदि में पीपीपी मॉडल पर सुपर स्पेसिएलिटी हॉस्पिटल बनाने की है. पैकेज से मिले पैसे से जो काम चल रहे हैं उनकी गति और तेज हो जाएगी और कुछ नए काम भी शुरू हो सकेंगे.

भगवान श्रीराम, कृष्ण की धरती होने के साथ अपनी विविधता के कारण उत्तरप्रदेश में हर तरह के पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. प्रदेश सरकार इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए काम भी कर रही है. हालांकि कोरोना की वजह से यह सेक्टर भी बुरी तरह प्रभावित रहा. इस सेक्टर में जान डालने के लिए भी राहत पैकेज में कई घोषणाएं की गई हैं. मसलन 31 मार्च 2022 तक मुफ्त पर्यटक वीजा दिया जाएगा. इसमें पहले 5 लाख पर्यटकों को टूरिस्ट को वीजा शुल्क नहीं देना होगा.

11 हजार पंजीकृत टूरिस्ट गाइड का मदद दी जाएगी,टूर एजेंसियों को 11 लाख रुपये तक का गारंटी फ्री कर्ज मिलेगा.

आत्मनिर्भर भारत योजना की मियाद 31 मार्च 2022 बढ़ा दी गई है. एक लाख एक हजार करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी योजना,    1.50 लाख करोड़ की अतिरिक्त क्रेडिट गारंटी योजना भी घोषित की गई है. पूर्व में ऐसी योजनाओं का सर्वाधिक सर्वाधिक लाभ प्रदेश को मिला है. आगे भी ऐसा हो इसका प्रयास सरकार करेगी.

गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत महामारी के दौरान कोई भूख न रहे, इसलिए दिवाली यानी नवंबर तक 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज मिलता रहेगा. इस पर कुल दो लाख करोड़ तक का खर्च होगा.

सब संस्कारों की बात है- भाग 2 : मोहन कुमार से प्रिया को क्या दिक्कत थी

लेखिका -कविता वर्मा          

प्रिया ने मुनीश को समझाने की बहुत कोशिश की, उसे घर वालों के विश्वास और उन के मानसम्मान की दुहाई दी, समाज के नियमों से बंधी ऊंचनीच समझाई. लेकिन मुनीश पर तो जैसे भूत सवार था. वह हर हाल में इस न्यू ईयर पार्टी में प्रिया के साथ जाना चाहता था. कलीग्स के सामने पोजिशन का सवाल बन गई थी यह पार्टी उस के लिए. बहुत सारी बातचीत, डिस्कशन के बाद भी जब प्रिया नहीं मानी तब उस ने अंतिम अस्त्र फेंका, “तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है.” अचानक हुए इस प्रहार से प्रिया अचकचा गई. लेकिन उस के पास इस का कोई स्पष्ट उत्तर न था.

उस का दिल कहता कि मुनीश कतई गलत नहीं कर सकता लेकिन दिमाग कहता यही सोच कर हजारोंलाखों लड़कियां अपने प्रेमियों पर भरोसा करती हैं और धोखा खाती हैं. प्रिया रोज अखबार, इंटरनैट पर ऐसे किस्से पढ़ती थी और आश्चर्य करती थी कि कैसे पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा, शादीशुदा, बालबच्चेदार लड़कियांऔरतें इस तरह आंखें बंद कर भरोसा करती हैं. आखिरकार, प्रिया को भी फैसला करना पड़ा, फैसला क्या करना पड़ा बल्कि झुकना पड़ा, मुनीश की बात मानना पड़ा. पता नहीं यह मुनीश ने खुद के लिए जो विश्वास दिलाया था उस का नतीजा था, उस की खुद की भावुकता से उपजा भरोसा था या उस के रूठने व उसे खो देने का डर था कि प्रिया मान गई.  उस ने किसी को कुछ नहीं बताया न अपने घरवालों को न सहेलियों को न ही औफिस के साथियों को. बस, मन के एक कोने में धुकधुकी लिए हुए कभी दिमाग को समझाते, कभी दिल पर भरोसा करते वह मुनीश के साथ चली गई.

अलीबाग के खूबसूरत बीच पर समुद्र की लहरों के बीच पैरों के नीचे से फिसलती रेत से लड़खड़ाती प्रिया मुनीश की मजबूत बांहों का सहारा पा कर खुद को एक अनूठी दुनिया में पा रही थी. अपनी कमर के इर्दगिर्द मुनीश की बांहों के साथ वे दोनों कब लो टाइड के साथ समुद्र के अंदर तक चले गए, पता ही न चला. वे दोनों भी तो एकदूसरे में गहरे तक खोए थे. कितने घंटे बीत गए थे, बाकी लोग बाहर जा चुके थे. सभी अपनेआप में खोए थे तो उन के बारे में कौन सोचता.

जब हाई टाइड की लहरों के थपेड़ों ने उन्हें चेताया, तब किनारे पर बने रैस्तरां की दूरी देख कर उन दोनों को अपनी स्थिति का एहसास हुआ. किनारे पर कुछ लोगों ने आवाज लगा कर उन्हें आगाह किया. लहरें तेज होती जा रही थीं जो कुछ ही देर में सिर से ऊपर जाने लगीं. प्रिया को तैरना नहीं आता था, वह बुरी तरह घबरा गई. लेकिन मुनीश ने उस का हाथ नहीं छोड़ा. वह उसे अपने आगे किए तेज लहर पर तैरता रहा. उस ने तेज लहरों के थपेड़े अपनी पीठ पर झेल लिए ताकि प्रिया को उन से चोट न लगे, वह उन से घबराए न. इस घटना ने प्रिया का मुनीश पर विश्वास पुख्ता किया.

सभी जोड़ों के लिए एकएक रूम बुक था, मुनीश और प्रिया के लिए भी. हाई टाइड से घबराए उन दोनों ने तब इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया. नहा कर तैयार होने तक वे क्या अनहोनी हो सकती थी, इस की आशंका से कांपते एकदूसरे को तसल्ली देते रहे. दिन में खाना खा कर दोनों ही सो गए ताकि शाम की पार्टी के लिए तरोताजा रहें.

नए साल की अगवानी करते और फिर खातेपीते एकदूसरे की बांहों में डांस करते करीब ढाई बजे वे अपने कमरे में पहुंचे. गुडनाइट करने के पहले मुनीश के कलीग ने आंखों से इशारा करते जब तिरछी चितवन से अपनी पत्नी को देखा तो प्रिया और मुनीश बुरी तरह झेंप गए. कमरे में आ कर एक बार फिर प्रिया का विश्वास डगमगा गया. वह पानी लाने के बहाने बाहर का एक चक्कर लगा आई जहां वह सो सके. वहां एक खुले हौल के सिवा कुछ नहीं था जहां पार्टी का बचा खाना, ड्रिंक्स, प्लेट, गिलास, बैलून, रिबन यहांवहां लुढ़क रहे थे. कमरों के बीच एक कौरीडोर था जो पीछे किचन में खुलता था और उस में होटल के वेटर हो सकते थे. इस से ज्यादा सुरक्षित तो वह मुनीश  के साथ कमरे में है, उस ने सोचा और वह वापस कमरे में आ गई. तब तक मुनीश उस की कशमकश समझ कर कपड़े बदल कर चादर तान कर लेट गया था. प्रिया को आया देख बोला, “प्रिया, परेशान मत हो, विश्वास करो मेरा, दरवाजा बंद करो और सो जाओ.” प्रिया जब तक कपड़े बदल कर आई, मुनीश के खर्राटे कमरे में गूंज रहे थे.

“जो लड़की शादी के पहले किसी पराए लड़के के साथ एक कमरे में रात बिता सकती है, उस के संस्कारों के बारे में बात करना ही बेकार है. आप खुद ही सोचिए भाईसाहब, क्या आप ऐसी किसी लड़की को अपने घर की बहू बनाना पसंद करेंगे?” मुनीश के पापा की इस बात पर कमरे में सन्नाटा छा गया.

प्रिया को समझ नहीं आया कि उन्हें उस के और मुनीश के साथ बाहर जाने और एक कमरे में रुकने की बात आखिर पता कैसे चली? जरूर मुनीश ने ही बताया होगा लेकिन क्यों, क्या वह भी ऐसा ही सोचता है? नए साल की पार्टी से आने के बाद प्रिया पर एक अपराधबोध सा हावी होने लगा था. इस समय में न जाने कितनी ही बार उस के मन में आशंकाओं ने सिर उठाया. न जाने कितनी बार अकेले में उस ने मुनीश पर अपने भरोसे को टटोला. हालांकि दुनिया की नजरों में जो गलत था वह हो चुका था लेकिन यह सिर्फ वह और मुनीश जानते थे कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था.

सब संस्कारों की बात है- भाग 1 : मोहन कुमार से प्रिया को क्या दिक्कत थी

लेखिका -कविता वर्मा          

“सब संस्कारों की बात है.” कमरे में मोहन कुमार का गर्वभरा स्वर गूंज उठा जिस ने वहां उपस्थित आधे लोगों के चेहरे पर गर्वमिश्रित मुसकान फेर दी. उन्हीं में से कुछ की गरदन थोड़ी और तन गई और कुछ ने अपने संस्कार दर्शाने के लिए सिर पर रखे पल्लू को थोड़ा आगे खींच कर सीने पर कुछ और चढ़ा कर तिरछी मुसकान को कानों तक खींच लिया. वहीं. उसी कमरे में उपस्थित कुछ लोगों के चेहरे उन के संस्कार की छड़ी के प्रहार से उतर गए. होंठों पर चुप्पी के ताले जड़ गए, गरदन झुक गई, कुछ आंखों में इस प्रहार की तिलमिलाहट से आंसू तैर आए जिन्हें छिपाने के लिए उन्होंने गरदन और नीची कर के उन्हें धीरे से पोंछ लिया.

प्रिया अंदर कमरे में बैठी इस बात से तिलमिला गई. उस की मठ्ठियां भिंच गईं, जबड़े कस गए, आंखों में अंगार उभर आए. उस का मन हुआ कि वह जोर से चीखे, बाहर बैठ कर शब्दों के प्रहार करने वालों से चीखचीख कर कहे कि उस के संस्कारों में कोई खराबी नहीं है, उस ने कोई पाप नहीं किया है, उस ने सिर्फ प्यार किया है, प्यार पर विश्वास किया है और उस विश्वास ने भी उस से कोई छल नहीं किया. ‘क्या वाकई उस के साथ कोई छल नहीं हुआ या पहले नहीं हुआ था, अब हो रहा है…’ एकाएक वह सोच में पड़ गई.

बाहर चायनाश्ते की प्लेटप्यालियों की खनखनाहट शुरू हो गई थी, इस से बातचीत को कुछ विराम मिला. इसी ने प्रिया को फिर सभी बातें दोहराने का मौका दिया.

2 वर्षों से वह और मुनीश साथ हैं. एक ही बिल्डिंग में औफिस होने के कारण लिफ्ट कौरिडोर, कैंटीन में एकदूसरे के आमनेसामने पड़ते रहे. न जाने कितने दिनों, महीनों तक लिफ्ट में खड़ी भीड़ के हिस्से बने अजनबी ही बने रहे. यों तो मुंबई में कौन ध्यान देता है कि लिफ्ट में बगल में कौन खड़ा है या कौन किस फ्लोर पर चढ़उतर रहा है? लिफ्ट है तो लोग चढ़ेंगे भी और उतरेंगे भी. न कोई चढ़ने वालों के चेहरे देखता है और न उतरने वालों के फ्लोर. वहां तो बगल में कौन खड़ा है, यह भी कोई नहीं देखता. अपने कानों में मोबाइल की लीड लगाए नजरें मोबाइल में गड़ाए एक उचटती सी नजर दरवाजे के ऊपर डिस्प्ले होने वाले फ्लोर नंबर पर डाल कर फिर अपने मोबाइल में कैद हो जाते हैं. लेकिन न जाने किस आकर्षण से उन दोनों ने एकदूसरे पर ध्यान देना शुरू कर दिया था.

सुबह प्रिया लिफ्ट के पास पहुंचती तो देखती वह लंबा स्मार्ट लड़का लिफ्ट के बाहर खड़ा है जैसे किसी के आने का इंतजार कर रहा है. कभी वह दौड़ती आती कि लिफ्ट पकड़ ले लेकिन पकड़ नहीं पाती और देखती कि वह लड़का वहीं खड़ा है. पहले लगा कि शायद उसे भी देर हो गई, फिर समझ आया कि वह किसी का इंतज़ार कर रहा है. कुछ दिनों बाद प्रिया ने देखा कि अपने औफिस के 10वें फ्लोर पर उतरने के बजाय वह प्रिया के औफिस के 14वें फ्लोर तक साथ जा कर लिफ्ट से बाहर आता है. शुरूशुरू में तो सोचा शायद किसी से मिलने के लिए आया हो लेकिन जब उस ने मुनीश को उस के औफिस की ओर मुंह कर के खड़े मोबाइल में कुछ देखने का अभिनय करते चुपके से उसे देखते हुए पाया तो एक गुलाबी सी सिहरन उस के अंदर दौड़ गई.

वह 14वें फ्लोर पर लिफ्ट से बाहर आता, प्रिया को जाते हुए देखता और जब लिफ्ट 18वें  फ्लोर से वापस नीचे आती तब उस से 10वें फ्लोर पर अपने औफिस जाता. कभीकभी लिफ्ट वापसी में इतनी भरी होती कि उसे जगह ही न मिलती लेकिन वह इत्मीनान से उस कौरिडोर को देखता जहां से हो कर प्रिया अभी गई है. जैसे प्रिया अभी भी वहीं है और वह उसे जाते हुए देख रहा है. उस की इठलाती चाल उस के सैंडल की ठकठक उस के परफ्यूम की खुशबू से बना उस का अक्स कौरिडोर में ठिठक सा गया है. धीरेधीरे मुसकानों के आदानप्रदान के साथ हेलोहाय से शुरू हुआ सफर साथ में कौफी पीने, लंच करने से ले कर मूवी व शौपिंग और घंटों की बातचीत तक पहुंच गया.

उस साल का हर दिन अनोखापन लिए नया होता था. दोनों एकदूसरे की अदाओं, आदतों और व्यवहार में हर दिन कुछ नया पाते, वह उनके मन को भाता और उन में यह विश्वास भरता कि एक अच्छे साथी में यही गुण होने चाहिए.

बाहर से प्लेटप्यालियों की खनक बंद हो गई थी. बातचीत फिर शुरू होना चाहती थी. “भाई साहब, दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं, एक ही शहर में एक ही बिल्डिंग में जौब करते हैं. सो यह संबंध दोनों के लिए अच्छा होगा और बच्चे जिस में खुश रहें उस में ही हमारी खुशी है,” यह प्रिया के पापा की आवाज थी. उन दोनों ने जब एकसाथ अपने भविष्य को देखना शुरू किया था तब यह भी सोचा था, साथसाथ घर से निकलेंगे एकसाथ लोकल से आएंगे, मुनीश उसे 14वें फ्लोर पर छोड़ेगा, फिर 10वें फ्लोर पर अपने औफिस जाएगा.

प्रिया पूछती, ‘शादी के बाद तुम मेरे फ्लोर तक आना बंद तो नहीं कर दोगे न?” मुनीश शरारत से उस की आंखों में झांकता और कहता, “मैं तो सोच रहा हूं कि तुम्हारे फ्लोर के औफिस में ही आ जाऊं.’

‘न बाबा, तुम अपने औफिस में ही ठीक हो, थोड़ी दूरी प्यार के लिए जरूरी होती है,’ प्रिया कहती. समय बीतने के साथ एकदूसरे से यह दूरी असहनीय होने लगी थी. दोनों में से किसी ने भी एकदूसरे से कुछ कहा नहीं, शायद, वे आश्वस्त थे कि वे एकदूसरे के दिल की बात जानते हैं.

मुनीश के कलीग्स ने न्यू ईयर पार्टी के लिए अलीबाग जाने का कार्यक्रम बनाया. यह कपल पार्टी थी, सिर्फ शादीशुदा जोड़े ही शामिल हो सकते थे. मुनीश के दोस्त इन दोनों की दोस्ती के बारे में जान गए थे. उन्होंने मुनीश को भी साथ चलने को कहा. मुनीश ने प्रिया से पूछा तो वह हिचकिचाई. मुंबई में रहते उसे 2 वर्षों से ज्यादा हो गए थे. लगभग एक साल से दोनों दोस्ती की राह पर आगे बढ़ चुके थे. लेकिन मन में कहीं कसबाई संस्कार, संकोच और मर्यादा की दीवारें खड़ी थीं. इस तरह शादी से पहले किसी के साथ एक कमरे में रात बिताना उस का मन स्वीकार नहीं कर रहा था. अभी तो उन लोगों ने एकदूसरे से ही खुल कर बात नहीं की, अपने घर वालों को भी कुछ नहीं बताया. अभी तो दोनों के सपने उन की पलकों में ही मुंदे थे जिन्हें खुद से खुल कर भी उन्होंने कभी नहीं कहा.
                                                                                                           

सलमान खान, नेटफ्लिक्स, यश राज फिल्मस और फिल्म  प्रोड्यूसर्स गिल्ड ने एफडब्लूआईसीई के सदस्यों की मदद के लिए बढ़ाए कदम

फिल्म और टीवी इंडस्ट्री  में कोरोना महामारी और लाॅकडाउन के चलते अभी भी तमाम वर्करों के समक्ष आर्थिक संकट और दो वक्त की रोटी का गंभीर संकट बना हुआ है.ऐसेमें एक बार फिर अभिनेता सलमान खान ने अपनी तरफ से हाथ बढ़ाते हुए दरियादिली के साथ ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलाइज’’के 25 हजार जरुरतमंद सदस्यों को पंद्रह-पंद्रह सौ रूपए की आर्थिक मदद सीधे उनके खाते में उनकी प्रोडक्षन कंपनी द्वारा पहुंचाई गई.सभी को पता है कि पिछली कोरोना लहर में भी सलमान खान ने अपनी तरफ से इसी तरह की दरियादिली दिखाते हुए धन राशि के साथ रायान के पैकेट भिजवाए थे.

इतना ही नही इस बार ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ ने भी फिल्म और टीवी प्रोड्यूसर गिल्ड की ओर से सिद्धार्थ राय कपूर और मनीष गोस्वामी के जरिए फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉयज (एफडब्लूआईसीआई) के 7500 सदस्यों को पांच पांच हजार रुपए की आर्थिक मदद की है.यह मदद एफडब्लूआईसीई के जरुरतमंद सदस्यों के खाते में सीधे ट्रांसफर की गई है.

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मनीष गोस्वामी और सिद्धार्थ राॅय कपूर के नेतृत्व में फिल्म और टीवी प्रोड्यूसर गिल्ड ने एफडब्लूआईसीई के सदस्यों के लिए जून के प्रथम सप्ताह में 5000 कोवीशिल्ड वैक्सिन के डोज दे चुकी है.तो वहीं ‘‘यशराज फाउंडेशन’ के तहत यशराज फिल्म्स के आदित्य चोपड़ा ने भी ‘फेडरेशनऑफ वेस्टर्नइंडिया सिने एम्पलॉयज (एफडब्लूआईसीई) के सदस्यों के लिए टीकाकरण का अभियान शुरू किया,

जो अब भी जारी है.‘यशराज फाउंडेशन’की ओर से टीकाकरण के अलावा एफडब्लू आईसीआई के सेवा निवृत सदस्यों को भी आर्थिक मदद और हजारों जरुरतमंद तक नीषियानों को उनके घर तक राशन के पैकेट पहुंचाए गए.

एफडब्लूआईसीई के अध्यक्ष बी.एन. तिवारी, जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे और ट्रेजरा रगं गेश्वरलाल श्रीवास्तव तथा मुख्य सलाहकार अशोक पंडित एवं शरद शेलार ने इसके लिए सलमान खान, यशराज फाउंडेशन तथा यश राज फिल्म्स के आदित्य चोपड़ा और यशराज फिल्म्स के ही अक्षय वदानी, नेटफ्लिक्स तथा फिल्म और टीवी प्रोड्यूसर गिल्ड के सिद्धार्थ राय कपूर तथा मनीष गोस्वामीका एक पत्र लिखकर आभार माना है.

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एफडब्लूआईसीई के अध्यक्ष बी एन तिवारी ने कहा है-‘‘ हमारी टीम सदस्यों के टीकाकरण में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.न केवल एफडब्लूआईसीई के सदस्य बल्कि उनके  जीवनसाथी भी उन टीकों का उपयोग कर सकते हैं.यदि एक परिवार में अधिक सदस्य टीकाकरण करवाते हैं, तभी कोरोना की खतरनाक कड़ी टूटेगी.’’

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एफडब्लूआईसीई के जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे ने कहा है-‘‘ जल्द से जल्द टीका लगवाने के लिए मनोरंजन उद्योग को पूर्णकार्यबल की आवश्यकता है.तभी उद्योग फिर से पटरी पर आ सकेगा. हम यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि हम आने वाले दिनों में कम से कम समय में अधिक से अधिक लोगों को कवर करें.’’

यूपी में ‘विशेष स्वच्छता अभियान’ से लगेगी मौसमी बीमारियों पर लगाम

बरसात के बाद होने वाली मौसमी बीमारियों पर शिकंजा कसने के लिये निगरानी समितियों ने स्वच्छता को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है. कोरोना की दूसरी लहर पर जीत हासिल करने में निगरानी समितियां बड़ा हथियार साबित हुई हैं. उनके माध्यम से राज्य सरकार 17.25 करोड़ लोगों तक पहुंच चुकी है. इस उपलब्धि को देखते हुए एक बार फिर से 63148 निगरानी समितियों के 04 लाख से अधिक सदस्यों को गांव और शहरी निकायों में गली-कूचों तक सफाई का कार्य तेजी से कराने की देखरेख में लगाया गया है.

बरसात से पहले की तैयारियां

सरकार की ओर से प्रदेश में शनिवार और रविवार को विशेष सफाई अभियान चलाए जा रहे हैं. नाले-नालियों की स्वच्छता पर जोर देने के साथ बरसात में जलभराव की समस्या को दूर किया जा रहा है. मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिये लगातार सेनेटाइजेशन और फॉगिंग कराई जा रही है. मोहल्ला निगरानी समितियों को भी इस काम में जुटाया गया है.

स्वच्छ भारत से स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार करने में जुटी योगी सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर पर अन्य प्रदेशों से पहले जीत हासिल की है. अब तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए उसने तैयारियां पूरी कर ली है. इसके लिये गांव-गांव और शहरों में विशेष सफाई अभियान शुरू किये हैं. ग्राम पंचायतों में सफाई पर विशेष जोर दिया जा रहा है. इसके लिये प्रदेश के कुल 58189 ग्राम पंचायतों और 97499 राजस्व ग्रामों में विशेष स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है. 52916 सफाईकर्मी इस कार्य में जुटे हैं. यूपी में  पिछले एक दिन में 31156 राजस्व ग्रामों में सफाई हुई. 15396 राजस्व गांवों में सेनेटाइजेशन और 4787 में फॉगिंग की गए. प्रदेश के सभी नगर निगमों, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में कुल 12016 मोहल्ला निगरानी समितियों के 64175 सदस्य स्वच्छता अभियानों में जुटे हैं. उनकी देखरेख में नगरीय निकायों में कुल 1378 बड़े नालों, 5219 मझोले नाले और 12410 छोटे नालों की सफाई का काम पूरा कर लिया गया है.

निगरानी समितियां बनी

बीमारी से बचाव के लिये गांव-गांव गठित निगरानी समितियों के सदस्य प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचकर उनको मौसमी व मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिये स्वच्छता और सामाजिक दूरी के महत्व बता रहे हैं. हाथों को साबुन से धोना और मास्क पहनने की आदत लोगों में डालने के लिये जागरूक कर रहे हैं.

योगी सरकार ने बीमारी से रोकथाम के लिये ग्रामीण इलाकों में विशेष स्वच्छता अभियान चला रखा है. बड़े स्तर पर ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता अभियान चलाने वाला यूपी देश का पहला राज्य बना है. बरसात से पहले संक्रामक बीमारियों को रोकने में सरकार के प्रयास का बड़ा असर हुआ है.

गौरतलब है कि योगी सरकार की ओर से गांव-गांव तक बिछाए गये निगरानी समितियों के जाल से काफी अच्छे परिणाम सामने आए हैं. इतनी तेज रफ्तार से बीमारी की रोकथाम करने में लिये योगी सरकार के शानदार कोविड प्रबंधन को पूरी दुनिया में प्रशंसा मिली है. डब्ल्यूएचओ भी सरकार के प्रयासों की तारीफ कर चुका है. यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर बीमारी पर तेज गति से नियंत्रण करने के लिये यूपी सरकार की सराहना की है.

 फ्रंट लाइन वर्कर्स को दिया गया टीका-कवर

प्रदेश में बीमारियों से बचाव के लिये स्वच्छता अभियान में जुटे 86770 फ्रंट लाइन वर्कर्स व अन्य अधिकारी व कर्मचारियों को कोरोना से बचाव के लिये टीकाकरण की पहली डोज लग चुकी है. जबकि 66190 सफाई श्रमिकों को दूसरी डोज दी गई है. 26399 अन्य निकाय कार्मिकों को प्रथम डोज व 20991 कार्मिकों को दूसरी डोज का वैक्सीनेशन किया जा चुका है. राज्य सरकार के निर्देश पर सभी स्थानीय निकायों में सफाई कर्मचारियों एवं फ्रंट लाइन वर्कर्स के लिये ग्लब्स, मास्क और सेनेटाईजर भी दिये जा रहे हैं.

कोरोना की दूसरी लहर पर जीत हासिल करने में निभाई बड़ी भूमिका

कोरोना के खिलाफ योगी सरकार के ‘ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट’ रणनीति को मजबूती देने में निगरानी समितियों ने बड़ा योगदान दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर बीमारी को रोकने के लिये प्रदेश में  निगरानी समितियों का गठन किया गया. समितियों से जुड़े चार लाख से अधिक सदस्यों ने घर-घर दस्तक देकर न सिर्फ लोगों को जागरूक करने का काम किया बल्कि कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को मेडिकल  किट भी उपलब्ध कराई. इतनी बड़ी संख्या में निगरानी समितियों की तैनाती करने वाला यूपी देश का पहला राज्य बना. समिति के सदस्यों को प्रत्येक व्यक्ति में बीमारी के लक्षणों की पहचान का काम किया.

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