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नया केबिनेट भाजपा,संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अग्नि परीक्षा

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के कैबिनेट विस्तार की जिस तरह छीछालेदर हो रही है वह अभूतपूर्व कही जा सकती है, एक ही सवाल का जवाब प्रधानमंत्री मोदी दे दें कि देश बड़ा है या सत्ता!

नरेंद्र दामोदरदास मोदी का बहुप्रतीक्षित कैबिनेट विस्तार जिस आलोचना का सबब बना है वह अपने आप में ऐतिहासिक है सिर्फ और सिर्फ आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर कैबिनेट का विस्तार यह बता गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और भाजपा सत्ता के लिए कितनी बड़ी सत्ता पिपासु है. सिर्फ अपनी छवि और कुर्सी के बचाव के कारण कैबिनेट का कुछ इस तरह विस्तार किया गया कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी पुनः सत्तासीन हो सके.

दरअसल, विकास की जो बातें देशवासियों को आए दिन लोगों को लुभावने लच्छेदार भाषणों मीठी चुपड़ी बातों का सच अब सामने आ रहा है. नरेंद्र दामोदरदास मोदी की एक धरोहर थी आप याद करिए- “गुजरात मॉडल” का एक भ्रम जाल फैला कर के 2014 के चुनाव में भाजपा ने मोदी को आगे रख कर के अपनी चुनावी नैया पार लगाई थी और जैसे-जैसे समय बीतता चला गया अब गुजरात मॉडल पीछे रह गया है. वह सारी बातें अब कोई नहीं करता जिनके आधार पर देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता चुना था. अब जब लगभग 7 वर्ष पूर्ण हो गए हैं और मोदी ने बहु प्रतिक्षित कैबिनेट विस्तार किया तो एक बार पुनः यह सच सामने आ गया की किस तरह 56 इंच का दावा करने वाला प्रधानमंत्री ताश के पत्तों की तरह मंत्रियों को फेंट देता है अपने पुराने दिन के लोगों को बाहर का रास्ता दिखा देना, यह दर्शाता है कि नरेंद्र दामोदर मोदी ने कोरोनावायरस कोविड 19 काल के समय में हुई अपनी गलतियों को अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों पर थोप दिया है.

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भयग्रस्त मोदी की
ऐसा प्रतीत होता है मानो नरेंद्र दामोदरदास मोदी पद किसी अज्ञात भय का साया है और यह भय उनके लंबे चौड़े केबिनेट निर्माण में बारंबार झलक‌ रहा है चाहे उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर बिहार की, गुजरात की हो या फिर पश्चिम बंगाल की हर कहीं अपनी खामियों को छुपाने ढकने के लिए मोहरों को शपथ दिलाई गई है और अपेक्षा की जा रही है कि अब वह कुछ ऐसा करें कि मोदी सरकार की लाज बच‌ सके. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कोरोना कॉविड 19 के समय सरकार की जो किरकिरी हुई है उसे इस नवीन मंत्रिमंडल की आभा मंडल के द्वारा छुपाने का प्रयास किया गया है.

यह सारा देश जानता है कि जिस तरह 2020 के मार्च महीने में लाक डाउन लगाने के पश्चात मोदी सक्रिय थे वैसा 2021 में दूसरी लहर के समय में नहीं थे. दूसरी लहर की मारक क्षमता के सामने मोदी सरकार विवश दिखाई दे रही थी. ऑक्सीजन की कमी , बेड की कमी हॉस्पिटल में लोगों की भीड़ तथा श्मशान घाट में लोगों की लाशें और केंद्र सरकार का मौन!

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ऐसे समय में देश की उच्चतम न्यायालय ने मानो बागडोर संभाल ली और अभी भी हाल ही में देश की उच्चतम न्यायालय द्वारा कोरोना कोविड 19 से मृत लोगों को मुआवजा देना होगा यह आदेश, यह जतला रहा है कि केंद्र सरकार किस तरह कमजोर हुई है. और इन्हीं सब बातों के परिपेक्ष्य में नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण कैबिनेट को उलटफेर करके पुराने दिग्गजों को सेट करके और नए लोगों को जोड़कर यह दिखाने का प्रयास किया है कि वे एक सक्षम और कुशल नेतृत्व देने वाले प्रधानमंत्री हैं.

मोदी का संदेश क्या है?
लाख टके का सवाल यही है कि आखिर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का संदेश क्या है. नवीनतम वृहदकायय मंत्रिमंडल निर्माण के पीछे उनकी मंशा क्या है. यह जानना इसलिए जरूरी है कि देश किस दिशा में जा रहा है यह इस कदम से समझ में आ सकता है.भाजपा जिस तरीके से हिंदुत्व का राग अलापती है और सत्ता के अपने चरम समय में आज आदिवासी, हरिजन और ओबीसी कार्ड खेल रही है तो यह सच्चाई सामने आ जाती है कि मोदी अब वैसे सक्षम नहीं रहे जैसे कि 2014 में थे.

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मोदी को आज के समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जैसे कांग्रेसियों और रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस जैसों की आवश्यकता है जो उन्हें या तो आगामी चुनाव में उबार कर ले जाएंगे या फिर डूबा भी सकते हैं. मंत्रिमंडल केबिनेट का यह विस्तार एक तरह से संघ परिवार भाजपा और नरेंद्र मोदी की अग्नि परीक्षा है.

Dilip Kumar के अंतिम संस्कार के बाद Saira Bano ने किया पहला Tweet, लिखी ये बात

बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार दिलीप कुमार ने 7 जुलाई की सुबह इस दुनिया को अलविदा कह दिया, जिसके बाद से पूरी इंडस्ट्री में उनके जाने से  उदासी छाई हुई है.दिलीप कुमार लंबे समय से बीमार चल रहे थें और वह मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली.

दिलीप कुमार को 7 जुलाई को राजकीय सम्मान के साथ मुंबई के सांताक्रुज कब्रिस्ता में दफनाया गया, जहां उनके अंतिम दर्शक के लिए बॉलीवुड कि मशहूर हस्तियां मौजूद थी, इसके साथ ही महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे भी वहां मौजूद थें.

इससे पहले उद्धव ठाकरे दिलीप कुमार के घर पहुंचकर सायरा बानो को अपना दुख साझा किया. वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने भी 7 जुलाई की सुबह सायरा बानो को फोन करके उन्हें सात्वना दी और दिलीप कुमार के आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की.

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जिस समय दिलीप कुमार को दफनाया जा रहा था, उस समय सायरा बानो कब्रिस्तान में ही मौजूद थी, देर रात को दिलीप कुमार के ट्विटर हैंडल से ट्विट करके सायरा बानो ने पीएम मोदी और सीएम उद्धव ठाकरे का धन्यवाद किया है.

सायरा बानो ने ट्विट कर लिखा है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे का धन्यवाद जिन्होंने दिलीप साहब का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ करवाया.

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इसके साथ स्पेशल थैंक्स सायरा बानो ने पीएम मोदी को देते हुए कहा कि धन्यवाद पीएम मोदी जी  जो आपने सुबह फोन करके हमें सात्वना दिया.

बता दें कि दिलीप कुमार को भारतीय सिनेमा का पितामह कहा जाता था, उन्होंने 60 साल के फिल्मी कैरियर में करीब 63 फिल्मों में काम किया है, जिसे लोग खूब ज्यादा पसंद करते हैं.

Romantic Story: गिरफ्त-अचानक मनीषा के जिंदगी में किस तरह का तूफान आया- भाग 3

‘‘मैं बेंगलुरु आ रही हूं, तुम से तुम्हारे औफिस में ही मिलूंगी.’’

‘‘अच्छा, पर…’’

‘‘पहुंच कर बात करते हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया था.

एकाएक यह कदम उठा कर उस ने ठीक भी किया है या नहीं, यह वह अब तक समझ नहीं, पा रही थी, पर जो भी हो फ्लाइट का टिकट तो बुक हो ही चुका है, पर बेंगलुरु में ठहरेगी कहां. एकाएक उसे अपनी सहेली विशु याद आ गई. हां, विशु बेंगलुरु में ही तो जौब कर रही है. उसे फोन लगाया, ‘‘अरे मनीषा, व्हाट्स सरप्राइज…पर तू अचानक…’’ विशु भी चौंक गई थी.

‘‘बस, ऐसे ही, औफिस का एक काम था, तो सोचा कि तेरे ही पास ठहर जाऊंगी, तुम वहीं हो न.’’

‘‘हां, हूं तो बेंगलुरु में, पर अभी किसी काम से मुंबई आई हुई हूं, कोई बात नहीं, मां है वहां, तू घर पर ही रुकना. तू पहले भी तो मां से मिल चुकी है, तो उन्हें भी अच्छा लगेगा. मुझे तो अभी हफ्ताभर मुंबई में ही रुकना है.’’

‘‘ठीक है, मैं आती हूं, वहां पहुंच कर तुझे फोन करूंगी.’’

फिर उस ने मां को अजमेर फोन कर के कह दिया कि अभी छुट्टी मिल नहीं पा रही है, 2 दिनों बाद आ पाऊंगी.

बेंगलुरु पहुंचतेपहुंचते शाम हो गई थी. सुशांत औफिस में ही उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘अचानक कैसे प्रोग्राम बन गया,’’ उसे देखते ही सुशांत बोला था.

मनीषा ने किसी प्रकार अपने गुस्से पर काबू रखा और कहा, ‘‘बस…शादी नहीं हो रही तो क्या, दोस्त तो हम हैं ही, सोचा कि मिल कर बात कर लेती हूं कि आखिर वजह क्या है शादी टालने की, फिर मुझे कुछ काम भी था बेंगलुरु में तो वह भी हो जाएगा.’’ आधा सच, आधा झूठ बोल कर उस ने बात खत्म की.

‘‘हांहां, चलो, पहले कहीं चल कर चायकौफी पीते हैं, तुम थकी हुई होगी.’’ कौफी शौप में कौफी पी कर बाहर निकले तो सुशांत ने कहा, ‘‘मैं ने शोभा को भी फोन कर दिया था तो वह घर पर हमारा इंतजार कर रही है, पहले घर चलें.’’

‘शोभा…पहले इस शोभा को ही देखा जाए,’ वह मन ही मन सोचते हुए मनीषा ने कहा, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो,’’ कहते हुए मनीषा के शब्द भी लड़खड़ा गए थे.

औफिस घर के पास ही था, घर के बाहर लौन में शोभा इंतजार करती मिली उन दोनों का.

‘‘आइए, आइए,’’ गेट पर खड़ी महिला को देख कर मनीषा चौंकी, तो यह है शोभा, यह तो

40-45 साल की होगी, हां, बनावशृंगार कर के खुद को चुस्त बना रखा है, पर यह सुशांत की फ्रैंड कैसे बनी, उस का दिमाग फिर चकराने लगा था.

‘‘मनीषा, यह है शोभा, बहुत खयाल रखती है मेरा, बेंगलुरु जैसे शहर में एक तरह से इस पर ही निर्भर हो गया हूं मैं.’’

‘‘हांहां, अंदर तो चलो,’’ शोभा कह रही थी. अंदर सीधे वह डाइनिंग टेबल पर ही ले गई. कौफीनाश्ता तैयार था. शोभा ने बातचीत भी शुरू की, ‘‘मनीषा, असल में सुशांत काफी परेशान थे कि तुम्हें कैसे मना करें शादी के लिए, क्योंकि तैयारी तो सब हो चुकी होगी, पर अभी शादी के लिए सुशांत खुद को तैयार नहीं कर पा रहे थे. तो मैं ने ही इन से कहा कि तुम मनीषा से बात कर लो, वह सुलझी हुई लड़की है. तुम्हारी प्रौब्लम जरूर समझेगी. असल में ये तुम्हारी सारी बातें मुझे बताते रहते थे तो मैं भी तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जान गई थी,’’ कह कर शोभा थोड़ी मुसकराई.

मनीषा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला और फिर बोली, ‘‘शोभाजी, मैं बस 2 दिनों के लिए आई हूं और अपनी एक फ्रैंड के यहां रुकी हूं. मैं चाहती हूं कि मैं और सुशांत बाहर जा कर कुछ बात कर लें, अगर आप चाहें तो.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, खाना खा कर जाना, खाना तैयार है.’’ फिर शोभा ने सुशांत की तरफ देखा था, ‘‘तुम्हारी पसंद की चिकनबिरयानी बनाई है, अगर मनीषा को नौनवेज से परहेज हो तो कुछ और…’’

‘‘नहीं नहीं, हम लोग बाहर ही खा लेंगे, चलते हैं,’’ कह कर मनीषा उठ गई तो सुशांत को भी खड़ा होना पड़ा. उधर, मनीषा सोच रही थी कि सुशांत तो कहता था कि वह तो नौनवेज खाता ही नहीं है, फिर… पर हां, यह तो समझ में आ ही गया कि अच्छा खाना खिला कर सुशांत को फुसलाया जा रहा है.

शोभा का मुंह उतर गया था, पर मनीषा सुशांत को ले कर बाहर आ गई. ‘‘कहां चलें?’’ सुशांत ने मनीषा से पूछा.

‘‘कहीं भी, तुम तो इतने समय से बेंगलुरु में रह रहे हो, तुम्हें तो पता ही होगा कि कहां अच्छे रैस्तरां हैं. वैसे, अभी मुझे खाने की कोई इच्छा नहीं है, इसलिए पहले कहीं गार्डन में बैठते हैं.’’

कुछ देर पास में बगीचे में पड़ी बैंच पर ही दोनों बैठ गए.

मनीषा ने ही बात शुरू की, ‘‘हां, अब बताओ, क्या कह रहे थे तुम शोभाजी के बारे में.’’

फिर सुशांत ने जो कुछ बताया, मनीषा चुपचाप सुनती रही. पता चला कि शोभा के पति विदेश में हैं. यहां वह अपने 2 बच्चों के साथ रह रही है. बच्चे पढ़ रहे हैं. सुशांत से शोभाजी को बहुत सहारा है. सुशांत उस की आर्थिक मदद भी कर रहा है. बातों ही बातों में मनीषा समझ गई थी कि सुशांत से काफी पैसा शोभाजी ने उधार भी ले रखा है. इसलिए सोच रही होगी कि ऐसे मुरगे को आसानी से कैसे जाने दें.

‘‘बहुत खयाल रखती है शोभा मेरा,’’ सुशांत बारबार यही कह रहा था.

‘‘देखो सुशांत, हो सकता कि शोभाजी जैसा बढि़या खाना मैं तुम्हें बना कर न खिला सकूं, पर फिर भी कोशिश करूंगी.’’मनीषा ने मजाक किया तो सुशांत चौंक गया, ‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ सुशांत ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘पुणे वाली जौब के लिए अप्लाई कर दिया था न तुम ने?’’

‘‘वह…मैं कर ही रहा था पर शोभा ने मना कर दिया कि अभी रहने दो.’’

‘‘हां, क्योंकि अभी शोभाजी को तुम्हारी जरूरत है,’’ न चाहते हुए भी मनीषा के मुंह से निकल ही गया. सुशांत अवाक था.

उधर, मनीषा कहे जा रही थी, ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा, पर एक बात जरूर कहूंगी कि शोभाजी कभी भी तुम्हें बेंगलुरु से बाहर नहीं जाने देंगी, क्योंकि तुम जरूरत हो उन की. तुम्हारा इतना पैसा उन के बच्चों की पढ़ाई पर लगा है. अब तुम्हें जो करना है करो. अगर सोच सको तो शोभाजी के बारे में न सोच कर अपना हित सोचो. शोभाजी का क्या, उन्हें और पेइंगगैस्ट मिल जाएंगे. बेंगलुरु में तो ऐसे बहुत लोग होंगे.’’

सुशांत एकदम चुप था.

‘‘चलो, अब खाना खाते हैं, फिर मुझे मेरी फ्रैंड के यहां छोड़ देना,’’ मनीषा ने बात खत्म की.

‘‘अभी तो तुम रुकोगी?’’

‘‘हां, कल शाम को मिलते हैं, फिर रात को मेरी फ्लाइट है, बस जो कुछ मैं ने कहा है, उस पर विचार करना. अब तक मनीषा ने अपनेआप को काफी संयत कर लिया था. उसे जो कहना था कह दिया. अब सुशांत जो चाहे करे पर वह इतना कमजोर इंसान होगा, इस की उस ने कल्पना नहीं की थी.’’

दूसरे दिन सुशांत सुबह ही उसे लेने आ गया था, ‘‘मैं तो रातभर सो ही नहीं पाया मनीषा, और आज औफिस से मैं ने छुट्टी ले ली है. आज पूरा दिन मैं तुम्हारे साथ ही बिताऊंगा और हां, रात को ही पुणे की पोस्ट के लिए भी मैं ने अप्लाई कर दिया है.’’

उस की बातें सुन कर मनीषा भी आश्चर्यचकित थी.

फिर रास्ते में ही सुशांत ने कहा, ‘‘मैं रातभर तुम्हारी बातों पर ही विचार करता रहा. शायद तुम ठीक ही कह रही हो. मैं आज मां से भी बात करता हूं. शादी की तारीख वही रहने दो…’’

‘‘नहीं सुशांत,’’ मनीषा ने उसे रोक दिया.

‘‘इतनी जल्दी भी नहीं है. तुम खूब सोचो और पुणे जा कर फिर मुझ से बात करना, अभी तो मैं भी शादी की डेट आगे बढ़ा रही हूं. जब तुम अपने भविष्य के बारे में सुनिश्चित हो जाओ, तभी हम बात करेंगे शादी की.’’

‘‘पर मनीषा…मैं…’’

‘‘हां, हम बात तो करते रहेंगे न, आखिर दोस्त तो हम हैं ही. कुछ जरूरत हो तो पूछ लेना मुझ से.’’

पूरा दिन सुशांत के साथ ही गुजरा, एअरपोर्ट पहुंच कर फिर उस ने कहा था, ‘‘तुम मेरा इंतजार तो करोगी न…’’

‘‘हां, क्यों नहीं…’’ कह कर मनीषा हंस पड़ी थी.

प्लेन के टेकऔफ करते ही वह अपनेआप को हलका महसूस कर रही थी. भविष्य में जो भी हो, पर फिलहाल शोभाजी की गिरफ्त से तो उस ने सुशांत को आजाद करा ही दिया.

गिद्ध

मॉनसून में लीजिए भरवां कुलचा और राजमा काठी रोल का मजा

माॉनसू में अगर आपको कुछ अलग खाने का मन कर रहा है तो भरवां कुलचा और राजमा काठी आपके लिए बेहतर ऑप्शन है.

 

1. भरवां कुलचा

सामग्री  

कुलचे, 1/2 कप हंगकर्ड, 1/2 कप घर का बना पनीर, 1/2 कप कद्दूकस की हुई गाजर, 2-2 बड़े चम्मच लालहरीपीली शिमला मिर्च बारीक कटी (अथवा कोई एक शिमला मिर्च या बंदगोभी ले लें), 2 बारीक कटी हरीमिर्च, 1 छोटा चम्मच अदरक कद्दूकस की हुई, 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूर्ण, 1 बड़ा चम्मच बारीक कटा हरा धनियानमक स्वादानुसार और बड़ा चम्मच मक्खन.

विधि
हंगकर्ड में उपरोक्त लिखी सभी सामग्री अच्छी तरह मिला लें. कुलचे की ऊपरी सतह पर ब्रश से मक्खन लगा दें. एक कुलचे पर हंगकर्ड वाला मिश्रण रखें और दूसरे कुलचे से ढक दें. ग्रिल्ड टोस्टर में कुलचे रख कर ग्रिल करें. इन्हें काट कर सौस या चटनी के साथ सर्व करें.

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राजमा काठी रोल
 
सामग्री

भरावन : 150 ग्राम उबला व मोटामोटा मसला हुआ राजमा, 1 छोटा चम्मच बारीक कटा अदरक, 1 छोटा चम्मच कटा लहसुन, 2 बड़े चम्मच बारीक कटा प्याज, 2 बड़े चम्मच टोमैटो सौसनमक स्वादानुसार.

रोटी के लिए : 1/2 कप आटा, 1/2 कप बारीक कतरा सोया, 1/2 छोटा चम्मच नमक, 2 छोटे चम्मच घी मोयन के लिए और काठी सेंकने के लिए बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल.

विधि

आटे में नमकमोयन का घी व सोया डाल कर रोटी की तरह आटा गूंध कर रख लें. तेल गरम कर के प्याजअदरकलहसुन भूनें. फिर मसला हुआ राजमाटोमैटो सौस डाल दें. मिश्रण को सुखा लें व इस में हरा धनिया बुरक दें. आटे की लोई बना कर बेलें व तवे पर कच्चीपक्की उलटपलट कर सेंकें.
हर रोटी पर थोड़ा सा मिश्रण रखें और रोटी रोल करें और सेंकें. चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

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3 गोभी कोरमा

सामग्री
250 ग्राम फूलगोभी के कटे फूल, 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर, 1/2-1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडरदेगीमिर्च पाउडर, 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 1/2 कप प्याज कद्दूकस किया हुआ, 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर, 3 बडे़ चम्मच टमाटर प्यूरी, 1 बड़ा चम्मच बारीक कटा हरा धनियानमक स्वादानुसार, 1 बड़ा चम्मच भुनी खरबूजे की गिरी.

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विधि

फूलगोभी को उबलते पानी में मिनट डाल कर पकाएं व पानी से निथार कर रखें. तेल गरम कर के प्याजअदरकलहसुन डालें व मिनट भूनें. फिर सूखे मसाले व टमाटर प्यूरी डाल कर भूनें. इस में फूलगोभी डालें मिनट पकाएं. फिर एक कप उबलता पानी गोभी में डाल दें व मिनट पकाएं. सर्विंग बाउल में पलटें. हरे धनिया व खरबूजे की गिरी से सजा कर सर्व करें.

Family Drama :गिद्ध -भाग 2

‘‘आंटी चाय,’’ यह सुन कर दोनों की बातों को विराम लग गया. सामने भगवती की भतीजी चाय का जग और गिलास थामे खड़ी थी.

दोनों हड़बड़ा कर उठ गईं. वे चाय पीने से इनकार कर अपने घरों को चल पड़ीं.

दोनों पड़ोसिनों के जाते ही घरवाले सक्रिय हो गए.

‘‘जरा इधर आइए,’’ उषा, दीनानाथ की पत्नी, ने उन्हें अंदर के कमरे में चलने को कहा.

उन्होंने एक नजर पुराण श्रोताओं पर डाली, फिर उठ कर अंदर अपनी मां के कमरे में आ गए. अंदर बक्सा, अलमारी व दूसरी चीजें उलटीसीधी बिखरी हुई थीं.

‘‘यह क्या है?’’ वे गुस्से से तमतमाए.

‘‘बड़की जिज्जी संग ये दोनों मिल कर अलमारी खोल कर साड़ी, रुपया खोजती रहीं. फिर अपना मनपसंद सामान उठा कर ले गईं.’’

‘‘दीदी, अम्मा के पास एक जोड़ी कंगन, एक जोड़ी कान के टौप्स, हार और चांदी की करधनी थी, जिन में से करधनी तो कल हमें मिल गई. बाकी जेवर बड़की जिज्जी उठा ले गई हैं,’’ यह संध्या थी, उषा की देवरानी.

‘‘तुम ने करधनी कैसे ले ली? जब सास बीमार थीं तब तो झांकने भी न आईं,’’ उषा उलझ पड़ी.

‘‘उस से क्या होता है? अम्मा के सामान पर सब का हक है,’’ संध्या गुर्राई.

‘‘सेवा के समय हक नहीं था, मेवा के समय सब को अपना हक याद आ रहा है,’’ उषा चिल्ला पड़ी.

‘‘क्या पता? तुम क्याक्या पहले ही ले चुकी हो?’’ संध्या क्रोधित हो उठी.

दोनों को झगड़ता देख दीनानाथ बीचबचाव करते हुए बोले, ‘‘बाहरी कमरे में बिरादरी जमा है. अंदर तुम लोगों को झगड़ते शर्म नहीं आती. मैं इस कमरे में ताला जड़ देता हूं. तेरहवीं निबट जाने दो, फिर खोलेंगे.’’

‘‘हां, क्यों नहीं? सैयां भए कोतवाल अब डर काहे का, चाबी जब अपनी अंटी में ही खोंस लोगे तो रातबिरात कुछ भी हड़प लोगे,’’ संध्या जब भी मुंह खोलती है, जहर ही उगलती है.

‘‘तुम दोनों को जो करना है करो, मुझे बीच में मत घसीटो,’’ यह कह कर दीनानाथ उलटेपांव बैठकी में लौट गए.

उन दोनों के बीच बड़ी बहू किरण कूद पड़ी, ‘‘हम बड़ी हैं. पहले हमारा हक है. फिर तुम दोनों का. ये जिज्जी को क्या पड़ी है मायके में आ कर दखल देने की?’’

‘‘क्या पता? वह तो सब से तेज निकलीं. जब तक हम तुलसी बटोरने गए, उतनी देर में जिज्जी अम्मा के बदन और अलमारी दोनों में हाथ साफ कर गईं,’’ उषा बोली.

‘‘तुम दोनों आपस में बंदर की तरह लड़ती रही हो, इसी का वे हमेशा बिल्ली की तरह फायदा उठाती रहीं. वे तो हमेशा से अम्मा को भड़का कर, अपना माल बटोर कर चल देती थीं. तुम दोनों के घर बैठ बुराई कर, मालपुए उड़ाने में लगी रहीं. अब देखो, तुम दोनों की नाक के नीचे से जेवर उठा ले गईं. तुम अब भी आपस में ही भिड़ी हो,’’ किरण डपट कर बोली.

‘‘जब तुम इतनी सयानी थी तो पहले क्यों नहीं बोली?’’ संध्या गुस्से से बोली.

‘‘क्या कहें? तुम लोग अपने को किसी से कम समझती हो क्या? कुछ बोलो तो बुरे बनो. जब किसी को कुछ सुनना ही नहीं था तो कहें किस से? हम ने तो जिज्जी को कभी मुंह लगाया ही नहीं, इसी से हमें बदनाम करती रहीं वे. करते रहो क्या फर्क पड़ गया? तुम दोनों तो उन की खूब सेवा में लगी रहीं, तो तुम्हें कौन सा मैडल पहना गईं.’’

‘‘अम्मा तुम से हमेशा नाराज क्यों रहती थीं?’’ उषा ने पूछा.

‘‘हम जिज्जी की हरकतों पर अपनी शादी के पहले दिन से ही नजर रखे हुए थे. जब ससुरजी चल बसे, तब मुश्किल से 6 महीने हुए थे हमारे विवाह को. तब भी बड़की जिज्जी शोक के समय अम्मा के बक्से पर नजर रखे बैठी रहीं. 6 महीने बाद जब अम्मा को जेवर का होश आया तो पता चला नथ, मांगटीका, मंगलसूत्र, पायल, बिछिया सब जिज्जी उठा ले गई हैं.’’

‘‘ऐसे कैसे उठा ले गईं?’’ संध्या बोली.

‘‘यही अम्मा ने पूछा तो बोल पड़ीं, ‘अब तो पिताजी रहे नहीं, तुम अब ये सुहागचिन्ह पहन नहीं सकतीं, इसे मैं अपनी बिटिया की शादी में उसे नानी की तरफ से दे दूंगी. तुम्हारा नाम भी हो जाएगा.’ हम वहीं खड़े थे. हम से बोलीं, ‘जाओ, चाय बना लाओ बढि़या सी.’ हमारी पीठ पीछे अम्मा को भड़का कर बोलीं, ‘बड़ी मनहूस बहू है तुम्हारी, आते ही ससुर को खा गई.’ बस, उस दिन से अम्मा ने मन में गांठ बांध ली, जो वो जीतेजी खोल न पाईं.’’

‘‘अब क्या फायदा इन सब बातों का? इस कमरे में भी ताला डालो या न डालो, जिज्जी तो पहले ही डकैती डाल कर चलती बनीं. जरा बाहर जा कर देखो, लोगों के आगे कैसे रोनेधोने का नाटक कर रही हैं,’’ संध्या तिलमिलाई.

बड़की जिज्जी से जुड़े ये शब्द बाहर बैठकी में  बैठी बड़की के कानों से टकरा रहे थे. वे सोच रही थीं, कब गरुड़पुराण की कथा को पंडितजी विराम दें और वे लपक कर बहुओं के बीच उन को धमकाने पहुंच जाएं.

बड़की ने चोर नजरों से रुक्मणि और लीला पर नजर डाली. उसे लगा कहीं अंदर की आवाजें इन्होंने तो नहीं सुन लीं. वे दोनों कथा की समाप्ति पर जैसे ही उठ खड़ी हुईं, वह लपक कर उन के पास पहुंच गई.

‘‘‘अरे, बैठो न चाची, तुम्हें देख कर अम्मा की याद ताजा हो जाती है. आप दोनों तो अम्मा की खास सहेलियां रही हो. बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ यह कह कर बड़की ने उन्हें जबरदस्ती बैठने पर मजबूर कर दिया.

‘‘सुन बिटिया, हम तेरे कहने से कुछ देर बैठ जाती हैं, मगर चाय नहीं पिएंगी,’’ मृतक परिवार में तेरहवीं से पहले वे जलपान का परहेज करने के लिहाज से बोलीं.

‘‘अच्छा रुको, मैं फल काट कर लाती हूं,’’ उस ने एक नजर अपने भाई के सामने रखे, रिवाजानुसार लोगों द्वारा लाए, फलों के ढेर की तरफ देख कर कहा.

‘‘अरे, बैठ न तू भी, अब 2 दिनों बाद तेरहवीं हो जाएगी. फिर हम यहां बैठने तो आएंगे नहीं. भगवती की याद खींच लाती है. इसीलिए रोज ही चले आते हैं,’’ लीला ने बड़की का हाथ पकड़ कर बैठा लिया.

बड़की ने इधरउधर ताका, उसे अपनी भाभियां नजर नहीं आईं. बैठकी से भी सभी उठ कर बाहर चले गए थे. सिर्फ बड़ा भाई कोने में जलते दीपक की लौ ठीक करने में लगा हुआ था. फिर अपने जमीन में लगे बिस्तर में दुबक गया. उसे तेरहवीं तक अपनी निर्धारित जगह में रहने का निर्देश मिला था.

बड़की उन दोनों महिलाओं के पास सरक आई और कहने लगी, ‘‘अब आप से क्या छिपा है चाची. इन बहूबेटों की वजह से मेरी मां का जीवन कितना दुश्वार हो गया था. यह भाई, जो अभी बगुलाभगत बना बैठा है, पूरा जोरू का गुलाम है. अपनी औरत से पूछे बिना लघुशंका भी न जाए. इस की औरत बिलकुल बर्र है. ऐसा शब्दबाण छोड़ती है कि बर्र का डंक भी फीका हो. अम्मा को तो वर्षों हो गए इन से अबोला किए हुए.’’

मैं एक लड़की से प्रेम करता हूं, हम दोनों अकसर एकांत में चुंबन आदि करते हैं, अब वह इस के लिए मना करती है, क्या करूं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय युवक हूं. एक लड़की से प्रेम करता हूं. हम दोनों अकसर एकांत में चुंबन आदि करते हैं. उसे मैं ने कई बार चुंबन किया है. कभी उस ने एतराज नहीं किया पर पिछली बार जब मैं ने उसे देर तक चुंबन किया, तो उस के बाद से वह इस के लिए मना करती है. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि उसे अचानक क्या हो गया है?

जवाब

आप की प्रेमिका को पहले आप के चुंबन आदि करने से आपत्ति नहीं थी, पर पिछली बार आप के लौंग किस करने के बाद से उस ने इस के लिए मना कर दिया है, तो संभवतया आप की सांस में किसी प्रकार की दुर्गंध है, जिस की ओर पहले उस का ध्यान नहीं गया. इस बार देर तक चुंबन करने से उसे इस का एहसास हुआ. इसीलिए वह आप को चुंबन के लिए मना कर रही है. आप किसी माउथ फ्रैशनर का इस्तेमाल करें, इस से आप को मुंह की दुर्गंध से छुटकारा मिल जाएगा और आप की गर्लफ्रैंड आप से दूर नहीं भागेगी.

 

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दो राहें : पूनम के साथ वह कौन से रास्ते पर चल पड़ा

लेखक- जय प्रकाश श्रीवास्तव

वसन्त खाडिलकर पटेल रोड पर चला जा रहा था. एक ही विचार उसके मस्तिष्क में कौंध रहा था कि किसी भी तरह से उसे इस अपमान का बदला लेना है, परंन्तु क्यो? एका एक उसके मस्तिष्क में यह प्रश्न कौंध गया.वह ठिठक गया , अरे ये क्या सोचने लगा वह , पूनम का करता कसूर ?”नहीं आखिर पूनम ने ही तो उसे बुलाया,उसका ही अपराध है “, लेकिन वह इतना नीचे क्यो गिरा ,; वह फिर से सोचने लगा.इस तरह सभी घटनाएं उसके सामने स्पष्ट होने लगी. एलीट पार्क में बैठे हुए वह फिर सिगरेट के छल्ले बना रहा था; आज से दो वर्ष पहले वह इसी स्थान पर पूनम से मिला था.

“आजकल तुम इतना खोए क्यो रहते हो ”

” ‌‌‌  कुछ नही ” ‌‌‌वह बुदबुदाता

” पर मुझसे ‌‌‌क्या छिपाना ”

” नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ”

वह मुस्कराई और दोनों पटेल रोड पर चल पड़े. फिर एक कैफे में बैठ कर दोनों ने काफी पी. और हंसते हुए उठकर चलने लगे, पर फिर एक बार मौन दोनों ‌‌‌के बीच था.तभी एकाएक रमेश, पूनम का पुराना मित्र दिखा “हेलो पूनम ”

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“हेलो रमेश”

“अरे भाई तुम तो दूज की चांद हो गयी हो पूनम , दिखाई ही नहीं देती ”

“नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है मेरी तबियत ठीक नहीं रहती” पूनम ने कहा

“अरे तो मुझे खबर क्यो नही दिया ” रमेश बोला “अरे नहीं अब ठीक हूं ” पूनम ने बात को खत्म करने ‌की कोशिश की.

“अच्छा तो यही है आपके——–“रमेश ने बसन्त की ओर इशारा करते हुए कहा”अरे नहीं ये तो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं ” पूनम ने बसन्त की ओर कनखियो से देखते हुए कहा.

“चलो ठीक है वरना मैं भी सोचूं इतना बेमेल तो नहीं ही होना चाहिए “रमेश ने हंसते हुए कहा.

“और———–” आगे बसन्त सुन न पाया क्योंकि वह पूनम से अलग हो कर दूसरी तरफ़ चला गया था.उसका मन विद्वेष ‌‌‌से भर गया” ये पूनम भी ‌‌‌क्याहै; जहरीली फूल,—तो क्या‌उसे मुझसे प्रेम नहीं है,मात्र दिखावा करती है, उसे सिर्फ धन से प्यार है” इसी तरह सोचते हुए वह चलता रहा, कि फिर उसे ऐसा लगने लगा कि शायद वह कुछ ग़लत सोच रहा है, आखिर इसमें पूनम का करता कसूर, उसने अपने आप से प्रश्न किया.”नहीं नहीं, पूनम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे ही ‌‌‌प्रेम करती है ,—तब दोष किसका? उसका –”

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” हां यही ठीक है ‌‌‌इसी तरह से उधेड़बुन में सोचते हुए ‌‌‌कब घर आगया पता ही नहीं चला. तभी नौकर ने खाना लगा दिया उसे खाने में तनिक भी स्वाद नहीं आ रहा ‌था , उसके दिमाग में रह रह कर रमेश केकहे शब्द गूंज रहे थे.इसके लिए वह खुद को जिम्मेदार मान रहा था.तनाव से उसके मस्तिष्क की शिराओं में दर्द होने लगा था. उसे लगा कि अब वह आगे कुछ भी सोचने की स्थति में नहीं है अब वह सोने की तैयारी कर रहा था तभी अचानक दरवाजे की ‌‌‌‌‌‌‌‌‌घंटी बज उठी उसने सोचा कि इतनी रात में कौन हो सकता है फिर भी उसने दरवाजा खोला तो देखा कि पूनम ‌‌‌सामने खड़ी थी. “तुम !”आश्चर्य से उसने कहा

“हां मैं “पूनम ने कहा ” तुम इतनी ‌‌‌रात में, लौट जाओ मेरे जख्मों पर नमक न लगाओ “” नहीं मैं तुमसे क्षमा मांगने आती हूं” पूनम ने विनम्रता से कहा ” नहीं, नहीं पूनम , तुम मुझे माफ़ कर दो ‌‌‌मेरी औकात ही नहीं मेरी वजह से तुम्हें नीचा दिखाना पड़ा “उसने कातर स्वर में कहा ‌

“ऐसा क्यो ,क्या तुम नहीं चाहते कि समाज में मेरा कोई स्थान न हो ?””ऐसा नहीं है पूनम ,तुम एक ऐसे पिता की‌ बेटी हो जो सिर्फ पैसे वाले ही‌नही है उनका समाज में बहुत बड़ा स्थान है और मैं एक बिन बाप मां का अनाथ कोई भी

कुछ कह सकता है।”बसन्त ने कटाक्षपूर्ण तरीके से कहा”अच्छा,तो क्या मुझे इस रात में थोड़ी सी जगह भी न दोगे .जगह तो मेरा सब कुछ है लेकिन मेरा समाज मुझे इसकी इजाजत नहीं देता है और मैं अनाथ हूं मुझे अपनी हैसियत का अंदाजा हो चुका है.”बसन्त ने बेबसी में कहा

” कुछ लोग कहें कहते रहे, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ” पूनम ने चेयर पर‌बैठते हुए कहा.”हो सकता है कि तुम्हें कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं हो पर मेरे साथ ऐसा नहीं है “बसन्त ने लगभग हारकर कहा

“ठीक है, मैं जा रही हूं पर एक बात याद रखना ,मैं निर्दोष हूं और तुमने मुझे समझने में बहुत भूल की है” पूनम चली आती ,बसन्त अवाक सा तकता रहता रह गया.

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न जाने कब तक वह सोया रहता अगर नौकर उसे न जगाता ,आंख खुली तो उसनेे पाया कि नौकर उसे जगा रहा था”, मालिक अभी अभी एक आदमी यह ख़त दे गया है.

बसन्तअवाक सा ख़त पढ़ने लगा, “मेरे देवता, मेरे सर्वस्व,

आशा है आपको रात भर सुख की नींद आती होगी,मैं कल कुछ आपसे कहने आती थी, क्योंकि मुझे ‌‌‌‌कल ऐसा लगा‌कि प्यार दुनियाका वह  अनमोल सच है जिसके लिए कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता. नारी समाज के लिए एक खिलौना है जिसके बारे में पुरुषों ने कभी यह सोचा ही नहीं कि नारी के अंदर भावनाओं का एक सागर होता है लेकिन हया और बहुत कुछ ऐसा भी होता है कि वह खुद को जाहिर नही‌कर‌पाती संवेदनाओं को भी भीतर ही भीतर मरना पड़ता है.मैं सारी दुनियां छोड़ कर आयीथी यह बताने‌ की कोशिश कर रही थी कि‌रमेश एक‌गुन्डा किस्म आदमी है उसने मेरे पिता को ब्लेकमेल कर के मुझसे जबरदस्ती शादी करना चाहता है मैं इस जीवन में सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करती हूं लेकिन आपने मुझे ठुकराया अब मेरे जीवित रहने का कोई मतलब‌ही नहीं है.मैं जा रही हूं यह पत्र जब तक आप तक पहुंचेगा तब तक मैं जा चुकी होगी अनन्त की ओर

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आपकी पूनम

पत्र आंसुओं से भीग चुका था. बसन्त पागलों की तरह पूनम के घर की ओर भागा जैसे उड़ते हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश कर रहा हो.

“बेटा बड़ी देर कर दी आने में, पूनम ने तुम्हारा बहुत इंतजार किया अब तो सब खत्म हो गया.” पूनम के पिता ने रोते हुए कहा ।बसन्त की पथराई आंखें अनन्त मे‌ पूनम को ढूंढ रही थी.

Romantic Story: दिल की दहलीज पर-भाग 4

रात बहुत हो चुकी थी. सब लोग जा कर सो गए. लेकिन अथर्व अपने बैड पर जाग रहा था कि इस सचाई को सब के सामने किस तरह लाया जाए, क्योंकि वह जानता था कि उन दोनों ने पूर्ण निष्ठा से एकदूसरे से शादी की है और अनुराधा इस मामले में पूर्णतया निर्दोष है.

सुबह होते ही उस ने अपने मातापिता को अपने रूम में बुलाया और कहा, ‘‘मैं आप को एक सचाई बताना चाहता हूं. मुझे विश्वास है कि आप सचाई जानने के बाद हमें माफ करेंगे.

‘‘बाबूजी, हमारी शादी पक्की होने की खुशी में मेरे मित्रों ने मुझ से पार्टी मांगी और मैं ने उन्हें सहर्ष पार्टी दी थी. पार्टी में मजे लेने के हिसाब से किसी मित्र ने मेरे और अनुराधा के शरबत में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. पार्र्टी खत्म होने के बाद सब मित्र अपनेअपने घर चले गए. इस के बाद हम दोनों को नशे की खुमारी चढ़ने लगी और इसी नशे में हम दोनों अपना आपा खो बैठे और उस समय जो नहीं करना था, वह कर बैठे. इस घटना के करीब 3 माह बाद ही हमारी शादी हुई. मुझे आप को यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि आप दोनों दादादादी बनने वाले हैं. लेकिन आप से एक विनती है कि अभी इस खुशी को आप अपने तक ही सीमित रखें. जब वक्त आएगा, तब यह बात हम सब को बताएंगे.’’

गांव के भोलेभाले मातापिता ने उस की इस बात को खुशीखुशी मान लिया. उस के मातापिता के जाने के बाद अनुराधा बोली, ‘‘आखिर, तुम मेरे लिए कितनी बार झूठ बोलोगे?’’

‘‘यदि किसी एक झूठ से किसी को नया जीवन मिलता हो तो वह झूठ सौ सच से श्रेष्ठ है, समझीं? फिर इस में उस जीव का क्या दोष जो अभी जन्मा तक नहीं है?’’

जब अनुराधा ने यह बात अथर्व के मुंह से सुनी तो वह मन ही मन बहुत खुश हुई. सोचने लगी कि उसे ऐसा समझदार जीवनसाथी मिला है जो केवल उस की सुंदरता पर आकर्षित नहीं है, बल्कि उस की भावनाओं को भी समझता है.

Family Drama :गिद्ध -भाग 1

घर की बुजुर्ग महिला भगवती की मृत्यु हुए 20 घंटे से ज्यादा बीत चुके थे. बिरादरी के सभी लोगों के इकट्ठा होने का इंतजार करने में पहले ही एक दिन निकल चुका था. जब भी कोई नया आता, नए सिरे से रोनाधोना शुरू हो जाता. फिर खुसुरफुसर शुरू हो जाती. एक तरफ महल्ले वालों का जमावड़ा लगा था, दूसरी तरफ गांवबिरादरी के लोग जमा थे. केवल घर के सदस्य ही अलगअलग छितरे पड़े थे. वे एकदूसरे से आंख चुराना चाहते थे.

‘‘मृत्यु तो सुबह 8 बजे ही हो गई थी, पर महल्ले में 12 बजे खबर फैली,’’ पड़ोसिन रुक्मणि बोली.

‘‘भगवती अपने बहूबेटों से अलग रहती थीं. जब कभी दूसरों से मिलतीं तो अकसर कहतीं, ‘जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा. अपने कामों को खुद भुगतेंगे, मुझे क्या मेरा गुजारा हो रहा है. मन आया तो पकाया, नहीं तो दूधफल खा कर पड़े रहे,’’’ दूसरी पड़ोसिन लीला बोली.

‘‘बेचारी बहुत दुखी महिला थीं, चलो मुक्ति पा गईं,’’ रुक्मणि ने कहा तो लीला बोली, ‘‘हां, मुझ से भी कहती थीं कि पूरी जिंदगी एकएक पैसा जोड़ने में अपनी हड्डियां गला दीं. आज इसी धन को ले कर बेटी, बेटे सभी का आपस में झगड़ा है. सभी को दूसरों की थाली में घी ज्यादा दिखता है. सोच रही हूं, किसी वृद्धाश्रम में एक कमरा ले कर पड़ी रहूं.’’

सब लोग मृतदेह को बाहर ले आए. कपड़े में लपेटते समय बड़ी बेटी उठ कर आगे आई तो पड़ोसिन रुक्मणि ने उसे रोक दिया, ‘‘न, केवल बहुएं ही इस कार्य को करेंगी, बेटियां नहीं. जाओ, कैंची और एक चादर ले कर आओ.’’

चादर की ओट ले कर बहुएं कपड़े काट कर उतारने लगीं तो चादर का एक छोर पकड़े दूसरी पड़ोसिन लीला से रहा न गया. उस ने कहा, ‘‘पहले इन के जेवर तो निकाल लो.’’

चादर का दूसरा छोर पकड़े रुक्मणि बोली, ‘‘जेवर तो लगता है पहले ही उतार लिए, क्यों बड़ी बहू?’’

‘‘हम क्या जानें? यहां तो बड़की जिज्जी की मरजी चलती है. मां के मरते ही पहले गहनों पर ही झपटीं,’’ बड़ी बहू दोटूक बात करती हैं, न किसी बड़े का लिहाज, न समय का.

लीला ने रुक्मणि को इशारों से चुप रहने को कहा. उन दोनों को इस घर के सारे राज पता थे. जरा सी तीली दिखाई नहीं कि बम फट पड़ेगा. आरोपप्रत्यारोप लगने शुरू होंगे और अर्थी ले जाने का काम एक तरफ धरा रह जाएगा, कोर्टकचहरी भी यहीं हो जाएगी.

अर्थी विदा हो गई, आंगन से सभी पुरुष सदस्य जा चुके थे. घर की बहुएं साफसफाई में लग गईं. लीला और रुक्मणि आंगन के एक कोने में पड़ी कुरसियों पर बैठ गईं. लीला अपने आसुंओं को पोंछ कर बोली, ‘‘भगवती मुझ से हमेशा कहती थीं, ‘क्यों किराए के घर में रहती है, अपना घर बना ले. मैं ने भी तो किसी तरह एक कमरे का मकान जोड़ा था. फिर धीरेधीरे कमरे जुड़ते गए और इतना बड़ा घर बन गया.’’’

‘‘हां, मुझे भी समझाती रहती थीं कि तेरे पास घर तो है मगर कुछ पैसे जमा कर और गहने बनवा ले. वक्तबेवक्त यही धन काम आता है,’’ रुक्मणि बोली.

‘‘लगता है यही सब अपने बच्चों के दिमाग में भी भरती रहीं. तभी तो एकएक पैसे के पीछे इन के घर में उठापटक होती रहती है,’’ लीला बोली.

‘‘हां, सही कह रही हो तुम. याद है पिछले महीने जब पानी की टंकी का पंप खराब हो गया था तो इन के बड़े बेटे ने पानी का टैंकर मंगवाया. जब इन्होंने अपनी कामवाली को उस टैंकर का पानी लेने भेजा तो बहू ने साफ मना कर दिया. अपनी दोनों टंकी फुल करवा लीं और उसे टका सा जवाब दे दिया कि ‘हम ने अपने पैसों से पानी मंगाया है, कोई खैरात नहीं है.’ उस दिन यह सब बताते हुए भगवती रो पड़ी थीं,’’ रुक्मणि बोली.

लीला तुरंत बोल पड़ी, ‘‘मैं ने भी कहा था कि चलो जैसे भी हैं, तुम्हारे बच्चे हैं. क्यों इस बुढ़ापे में अकेले खटती हो, साथ में रहो.’’ इस पर भगवती ने बताया, ‘जब बेटों के साथ में रहती थी, तब भी दूध, फल, सब्जी, दालें अपनी तरफ से मंगा कर रखती थी. फिर भी किसी मेहमान को अपने मन से भोजन करने को नहीं कह सकती थी. एक दिन सिलबट्टे पर मसाला पीस रही थी तो मझली ने टोक दिया. मैं ने जरा सा डपटा तो बट्टा उठा कर मुझ पे तान दिया. उस दिन से मैं ने अपनी रसोई ही अलग कर ली. जब अपने रुपयों का ही खाना है तो क्यों न चैन से खाऊं.’’’

लीला ने आगे कहा, ‘‘मैं ने तो यह सब सुन कर एक दिन कह दिया, ‘भगवती, देख मैं ने भले ही घर नहीं बनाया मगर अपनी जवानी में मनपसंद खाया भी और पहना भी. बच्चों के लिए जायदाद नहीं जोड़ी बल्कि बच्चों को उच्चशिक्षा दी है. अब वे शहरों में अपना कमाखा रहे हैं. आपस में दोनों भाइयों के प्रेमसंबंध बने हुए हैं. हमें तो पैंशन मिलती ही है. जब तक हाथपैर चलते हैं, यहीं रहेंगे. जब परेशानी होगी, उन के पास चले जाएंगे. तुम्हारे घर में तो यही जोड़ी हुई संपत्ति बच्चों के बीच झगड़े की जड़ बन गई है.’’’

‘‘यह सुन कर भगवती बोल पड़ी थी, ‘तुम ठीक कहती हो लीला बहन, लगता है मेरी परवरिश में ही कुछ कमी रह गई है जो इन्हें विरासत में संपत्ति तो मिली, पर संस्कार नहीं मिले.’’’

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