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Rahul vaidya और Disha Parmar की शादी में नागिन डांस करेंगे अली गोनी, video viral

राहुल वैद्य और दिशा परमार जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाले हैं,  कुछ वक्त पहले ही राहुल और दिशा ने इस बात का ऐलान किया है कि वह 16 जुलाई को शादी करने वाले हैं.

इस शादी में उनके परिवार से कुछ गिने चुने लोग ही शामिल होगें, इन दिनों राहुल वैद्य कि शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी है. इस शादी को लेकर राहुल वैद्य के जिगरी यार अली गोनी इस शादी को लेकर काफी ज्यादा उत्साहित हैं.

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हाल ही में अली गोनी डांस रिहर्सल करते नजर आएं थें, अली गोनी राहुल वैद्य की शादी में किसी तरह का कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. शायद यही  वजह है कि अली गोनी ने अभी से डांस रिहर्सल करना शुरू कर दिया है.

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इसी बीच अली गोनी ने मीडिया के साथ अपनी खुशियां भी बांटी है जिसमें उन्होंने कहा है कि मैं दिशा और राहुल के शादी से बहुत ज्यादा खुश हूं, इन दोनों की शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी है. और मैं खुश भी क्यों न हूं मेरे यार की जो शादी है. राहुल वैद्य की शादी में मैं बहुत ज्यादा नाचने वाला हूं.

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अली गोनी के इस बयान पर फैंस बहुत ज्यादा एक्साइटेड है, अली गोनी का यह बयान फैंस को काफी ज्यादा खुश कर दिया है. अली गोनी ने कुछ समय पहले राहल वैद्य औऱ दिशा परमार को शादी की बधाई दी थी, जिस तस्वीर में दिशा और राहुल पोज देते नजर आएं थे. वैसे राहुल और दिशा की जोड़ी फैंस को काफी ज्यादा पसंद आती है.

सब्जी का उत्पादन बना आय का साधन

लेखक-डा. मनोज कुमार पांडेय, फसल सुरक्षा विशेषज्ञ, डा. एके चतुर्वेदी, उद्यान विशेषज्ञ

भदोही जनपद के विकासखंड डीध के शेरपुर पिंडरा गांव के निवासी संदीप कुमार गौड़, पिता स्वर्गीय नगेंद्र बहादुर गौड़, उम्र 42 वर्ष, गणित से परास्नातक हैं और कोचिंग चलाते हैं, लेकिन पिछले सालभर से ज्यादा समय से लौकडाउन होने के कारण कोचिंग बंद है, इसलिए घरपरिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है. संदीप के परिवार के लोग पहले से चले आ रहे धान और गेहूं की खेती किया करते थे, लेकिन उस से घर के खर्चे, बच्चों की पढ़ाई का खर्चा वगैरह निकालना संभव नहीं रहा.

कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां, भदोही के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डा. मनोज कुमार पांडेय ने बताया कि संदीप कुमार गौड़ एक दिन कृषि विज्ञान केंद्र पर आए और उन्होंने अपनी खेती से आय बढ़ाने की चर्चा की. इस दौरान संदीप को सब्जियों की वैज्ञानिक खेती के बारे में बताया गया और प्रेरित किया गया. इस से प्रभावित हो कर उन्होंने अपने खेतों की तारबंदी करा कर सब्जी की खेती करना शुरू कर दिया. केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ डा. एके चतुर्वेदी ने परवल की खेती, खरबूज, तरबूजा, बजरबट्टू (लोबिया), ककड़ी आदि की खेती के बारे में विस्तार से प्रशिक्षित किया.

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संदीप गौड़ 15 बीघा (10 एकड़) में सब्जियों की खेती करते हैं, जिस में अभी उन के 10 बीघा में सब्जियां लगी हुई हैं. इस में मुख्य रूप से परवल 5 बीघा, ककड़ी 1 बीघा, खरबूज 1 बीघा, बजरबट्टू 1.5 बीघा और तरबूजा 1.5 बीघा में लगा हुआ है. परवल की खेती पिछले सितंबरअक्तूबर, 2020 से कर रहे हैं, जिस में उन्हें अच्छी आमदनी का अनुमान है. इन्होंने पिछले वर्ष गाजीपुर जा कर 60,000 रुपए की परवल की लतर लाए थे और अपने खेतों में लगा दिया था. अभी इन के खेत से हर तीसरे दिन 1.5 क्विंटल परवल निकल रहा है, जो कि बाजार में 30 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रहा है. इस से संदीप को लग रहा है कि परवल से अच्छी आमदनी होगी और जिन लोगों ने गंगा नदी के किनारे परवल लगाया है, उस से ज्यादा दिनों तक इन का परवल चलेगा,

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क्योंकि जुलाई के महीने में बरसात होने से नदी में पानी भर जाने से वहां का लगा हुआ परवल खत्म हो जाता है, जबकि इन का सितंबरअक्तूबर माह तक चलेगा. साथ ही, जो लोग नदी के किनारे पर लगाते हैं, वे हर वर्ष परवल की लतर लगाते हैं, क्योंकि बाढ़ से परवल की लतर गल जाती है. लेकिन इन की खेत में लगी परवल के साथ ऐसा नहीं होगा और यही परवल अगले वर्ष भी चलेगा. उम्मीद यह भी है कि सितंबर, 2021 में कुछ लतर भी बेच लेंगे. इस तरह एक बीघा परवल से 70,000 से 80,000 रुपए की आमदनी हो रही हैं. सब्जियों की सिंचाई के लिए अपने खेत में रेन गन लगा रखा है, जिस से पानी कम लगता है, समय की बचत होती है, साथ ही साथ पौधों की बढ़वार भी अच्छी हो जाती है. रेन गन से सिंचाई करने पर ऊबड़खाबड़ खेत होने पर सभी जगह पानी समान मात्रा में पहुंच जाता है.

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इस में ज्यादा गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, क्योंकि मिट्टी बैठती नहीं है. साथ ही, सब्जियों में लगने वाली जड़ व तना गलन की बीमारी भी कम लगती है. कृषि विज्ञान केंद्र, बेजवां, भदोही की टीम बराबर इन के खेत का भ्रमण करती रहती है और समय के अनुसार सुझाव देती है, ताकि खेत में लगी सब्जियों को कीट और बीमारियों से सुरक्षा हो सके. इस समय जो सब्जियां लगी हैं, उस में मुख्य रूप से जड़ गलन, तना गलन, डाउनी मिल्ड्यू, धब्बा रोग, फल सड़न आदि रोग और कद्दू का लाल कीड़ा, फल मक्खी आदि प्रमुख कीट लगते हैं, जिस से बचाव के उपाय बताए जाते हैं. संदीप के खेत में लगी सब्जियों को देखने के लिए गांव और अगलबगल के लोग आते रहते हैं और संदीप कुमार गौड़ से जानकारी ले कर प्रेरणा लेते हैं. इस क्षेत्र के कई किसानों ने प्रेरित हो कर सब्जियों की खेती करना शुरू कर दिया है और बराबर राय लेते रहते हैं.

संपादकीय

सरकारी आंकड़ों का भरोसा इस देश में कोई नहीं करता और इसलिए जब श्रम मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान 5,15,363 श्रमिक ही अपने घरों को लौटे तो संबद्ध संसदीय समिति ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया. उन्होंने अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा तो है पर जिस तरह सरकारी काम चलता है, यह कभी पता चलेगा ही नहीं. अधिकारी आराम से कह सकते हैं कि जिस ने अपने को पंजीकृत कराया वे तो उसी को मिलेंगे.

दूसरी शहर के दौरान चूंकि रेलें और बसें चलती रही थीं, मजदूरों को पैदल घरों को नहीं लौटना पड़ा था. वे रेलों में भर कर गए थे और कोविड भी साथ उपहार में ले गए थे. उन के द्वारा फैलाया गया कोविड सिर्फ खांसी और सांस की बिमारी की तरह दिखा और उसी में कितने मरे पता नहीं चल पाएगा पर जो आंकड़े अफसर दे रहे हैं वे पत्थर की लकीर बन गए हैं.

मजदूरों को आज भी भाग्य का शिकार मानने की जो आदत हमारी सरकार में है, यह ही हमारी दुर्गति का कारण है. हमारे मजदूर जब भी देश से बाहर जाते हैं जहां वे धर्म व जाति के चुंगल से निकल जाते हैं वे भरभर कर कमाने लगते हैं. जिसे विदेशी मुद्रा के भंडार पर देश बैठा है और जिस के बल पर हथियारों से ले कर पटेल की मूॢत को इंपोर्ट किया जाता है, वह इन मजदूरों द्वारा पेट काट कर विदेश से भेजा गए पैसे के कारण है. देश को 90 अरब डौलर (लगभग 63 लाख करोड़ रुपए) इन मजदूरों से विदेशी मुद्रा से मिलता है जिन की गिनती करने में हमारे अफसरों को हिचकिचाहट होती है.

अगर दूसरी लहर में गांवों में लौटे मजदूरों की सही गिनती बताई जाएगी तो पूछा जाएगा कि क्या इन का टैस्ट हुआ था? जाहिर है लाखों का टैस्ट न तो करना आसान था न किसी की मंशा थी. दूसरी लहर ने जिस बुरी तरह से देश को लपेटा था उसका एक बड़ा कारण जनता का बेमतलब में इधर से उधर जाना था जिस में पश्चिमी बंगाल के चुनाव और कुंभ शामिल हैं. अगर मजदूर लाखों में गांवों में पहुंचे तो लाखों तीर्थ यात्रि व भाजपा चुनाव प्रचारक चुनाव क्षेत्रों से अपनेअपने घरों में कोविड को लिए पहुंचे थे.

सही आंकड़े हरेक की पोल खोलते हैं और अफसरों को यह मालूम है कि आंकड़ों को छिपाना और बढ़ाचढ़ा कर पेश करना कितना आसान है क्योंकि कोई चैक नहीं कर सकता. मजदूरों का आज देश में फिर कोई हित देखने वाला नहीं बचा है, पहले लगा था कि वोट के अधिकार के कारण मजदूर अपने नेता चुन कर भेज करेंगे. पर अब जाति और धर्म का परदा उन की आंखों पर चढ़ा दिया गया है और उन्हें अपनी हालत तक की ङ्क्षचता नहीं रह गई है.

मजदूर देश की अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी हैं और उन के बिना हमारा आधाअधूरा औद्योगिकरण भी मिट जाएगा और भयंकर बेरोजारी फैल जाएगी. लेकिन गिनती ही न करो तो एक चंगा है.

Romantic Story: बस एक बार आ जाओ

प्यार का एहसास अपनेआप में अनूठा होता है. मन में किसी को पाने की, किसी को बांहों में बांधने की चाहत उमड़ने लगती है, कोई बहुत अच्छा और अपना सा लगने लगता है और दिल उसे पूरी शिद्दत से पाना चाहता है, फिर कोई भी बंधन, कोई भी दीवार माने नहीं रखती, पर कुछ मजबूरियां इंसान से उस का प्यार छीन लेती हैं, लेकिन वह प्यार दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है. हां सुमि, तुम्हारे प्यार ने भी मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ी है. हमें बिछड़े 10 वर्ष बीत गए हैं, पर आज भी बीता हुआ समय सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता है.

सुमि, तुम कहां हो. मैं आज भी तुम्हारी राहों में पलकें बिछाए बैठा हूं, यह जानते हुए भी कि तुम पराई हो चुकी हो, अपने पति तथा बच्चों के साथ सुखद जीवन व्यतीत कर रही हो और फिर मैं ने ही तो तुम से कहा था, सुमि, कि य-पि यह रात हम कभी नहीं भूलेंगे फिर भी अब कभी मिलेंगे नहीं. और तुम ने मेरी बात का सम्मान किया. जानती हो बचपन से ही मैं तुम्हारे प्रति एक लगाव महसूस करता था बिना यह सम झे कि ऐसा क्यों है. शायद उम्र में परिपक्वता नहीं आई थी, लेकिन तुम्हारा मेरे घर आना, मु झे देखते ही एक अजीब पीड़ा से भर उठना, मु झे बहुत अच्छा लगता था.

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तुम्हारी लजीली पलकें  झुकी होती थीं, ‘अनु है?’ तुम्हारे लरजते होंठों से निकलता, मु झे ऐसा लगता था जैसे वीणा के हजारों तार एकसाथ  झंकृत हो रहे हों और अनु को पा कर तुम उस के साथ दूसरे कमरे में चली जाती थीं.’

‘भैया, सुमि आप को बहुत पसंद करती है,’ अनु ने मु झे छेड़ा.

‘अच्छा, पागल लड़की फिल्में बहुत देखती है न, उसी से प्रभावित होगी,’ और मैं ने अनु की बात को हंसी में उड़ा दिया, पर अनजाने में ही सोचने पर मजबूर हो गया कि यह प्यारव्यार क्या होता है सम झ नहीं पाता था, शायद लड़कियों को यह एहसास जल्दी हो जाता है. शायद युवकों के मुकाबले वे जल्दी युवा हो जाती हैं और प्यार की परिभाषा को बखूबी सम झने लगती हैं. ‘संभल ऐ दिल तड़पने और तड़पाने से क्या होगा. जहां बसना नहीं मुमकिन, वहां जाने से क्या होगा…’

यह गजल तुम अनु को सुना रही थी, मु झे भी बहुत अच्छा लगा था और उसी दिन अनु की बात की सत्यता सम झ में आई और जब मतलब सम झ में आने लगा तब ऐसा महसूस हुआ कि तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है. कैशौर अपना दामन छुड़ा चुका था और मैं ने युवावस्था में कदम रखा और जब तुम्हें देखते ही अजीब मीठीमीठी सी अनुभूति होने लगी थी. दरवाजे के खटकते ही तुम्हारे आने का एहसास होता और मेरा दिल बल्लियों उछलने लगता था. कभी मु झे महसूस होता था कि तुम अपलक मु झे देख रही हो और जब मैं अपनी नजरें तुम्हारी ओर घुमाता तो तुम दूसरी तरफ देखने लगती थी, तुम्हारा जानबू झ कर मु झे अनदेखा करना मेरे प्यार को और बढ़ावा देता था. सोचता था कि तुम से कह दूं, पर तुम्हें सामने पा कर मेरी जीभ तालु से चिपक जाती थी और मैं कुछ भी नहीं कह पाता था कि तभी एक दिन अनु ने बताया कि तुम्हारा विवाह होने वाला है. लड़का डाक्टर है और दिल्ली में ही है. शादी दिल्ली से ही होगी. मैं आसमान से जमीन पर आ गिरा.

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यह क्या हुआ, प्यार शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया, ऐसा कैसे हो सकता है, क्या आरंभ और अंत भी कभी एकसाथ हो सकते हैं. हां शायद, क्योंकि मेरे साथ तो ऐसा ही हो रहा था. मेरा मैडिकल का थर्ड ईयर था, डाक्टर बनने में 2 वर्ष शेष थे. कैसे तुम्हें अपने घर में बसाने की तुम्हारी तमन्ना पूरी करूंगा. अप्रत्यक्ष रूप से ही तुम ने मेरे घर में बसने की इच्छा जाहिर कर दी थी, मैं विवश हो गया था.  दिसंबर के महीने में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. इसी माह तुम्हारा ब्याह होने वाला था. मेरी रातों की नींद और दिन का चैन दोनों ही जुदा हो चले थे. तुम चली जाओगी यह सोचते ही हृदय चीत्कार करने लगता था, ऐसी ही एक कड़कड़ाती ठंड की रात को कुहरा घना हो रहा था. मैं अपने कमरे से तुम्हारे घर की ओर टकटकी लगाए देख रहा था. आंसू थे कि पलकों तक आआ कर लौट रहे थे. मैं ने अपना मन बहुत कड़ा किया हुआ था कि तभी एक आहट सुनाई दी, पलट कर देखा तो सामने तुम थी. खुद को शौल में सिर से लपेटे हुए. मैं तड़प कर उठा और तुम्हें अपनी बांहों में भर लिया. तुम्हारी आवाज कंपकंपा रही थी.

‘मैं ने आप को बहुत प्यार किया, बचपन से ही आप के सपने देखे, लेकिन अब मैं दूर जा रही हूं. आप से बहुत दूर हमेशाहमेशा के लिए. आखिरी बार आप से मिलने आई हूं,’ कह कर तुम मेरे सीने से लगी हुई थी.

सुमि, कुछ मत कहो. मु झे इस प्यार को महसूस करने दो,’ मैं ने कांपते स्वर में कहा.

‘नहीं, आज मैं अपनेआप को समर्पित करने आई हूं, मैं खुद को आप के चरणों में अर्पित करने आई हूं क्योंकि मेरे आराध्य तो आप ही हैं, अपने प्यार के इस प्रथम पुष्प को मैं आप को ही अर्पित करना चाहती हूं, मेरे दोस्त, इसे स्वीकार करो,’ तुम्हारी आवाज भीगीभीगी सी थी, मैं ने अपनी बांहों का बंधन और मजबूत कर लिया. बहुत देर तक हम एकदूसरे से लिपटे यों ही खड़े रहे. चांदनी बरस रही थी और हम शबनमी बारिश में न जाने कब तक भीगते रहे कि तभी मैं एक  झटके से अलग हो गया. तुम कामना भरी दृष्टि से मु झे देख रही थी, मानो कोई अभिसारिका, अभिसार की आशा से आई हो. नहींनहीं सुमि, यह गलत है. मेरा तुम पर कोई हक नहीं है, तुम्हारे तनमन पर अब केवल तुम्हारे पति का अधिकार है, तुम्हारी पवित्रता में कोई दाग लगे यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता हूं. हम आत्मिक रूप से एकदूसरे को समर्पित हैं, जो शारीरिक समर्पण से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, तुम मु झे, मैं तुम्हें समर्पित हूं.

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हम जीवन में कहीं भी रहें इस रात को कभी नहीं भूलेंगे. चलो, तुम्हें घर तक छोड़ दूं, किसी ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी. तुम कातर दृष्टि से मु झे देख रही थी. तुम्हारे वस्त्र अस्तव्यस्त हो रहे थे, शौल जमीन पर गिरा हुआ था, तुम मेरे कंधों से लगी बिलखबिलख कर रो रही थी. चलो सुमि, रात गहरा रही है और मैं ने तुम्हारे होंठों को चूम लिया. तुम्हें शौल में लपेट कर नीचे लाया. तुम अमरलता बनी मु झ से लिपटी हुई चल रही थी. तुम्हारा पूरा बदन कांप रहा था और जब मैं ने तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ा तब तुम ने कांपते स्वर में कहा, ‘विकास, पुरुष का प्रथम स्पर्श मैं आप से चाहती थी. मैं वह सब आप से अनुभव करना चाहती थी जो मु झे विवाह के बाद मेरे पति, सार्थक से मिलेगा, लेकिन आप ने मु झे गिरने से बचा लिया. मैं आप को कभी नहीं भूल पाऊंगी और यही कामना करती हूं कि जीवन के किसी भी मोड़ पर हम कभी न मिलें, और तुम चली गईं.

10 वर्ष का अरसा बीत चला है, आज भी तुम्हारी याद में मन तड़प उठता है. जाड़े की रातों में जब कुहरा घना हो रहा होता है, चांदनी धूमिल होती है और शबनमी बारिश हो रही होती है तब तुम एक अदृश्य साया सी बन कर मेरे पास आ जाती हो. हृदय से एक पुकार उठती है. ‘सुमि, तुम कहां हो, क्या कभी नहीं मिलोगी?’

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नहीं, तुम तड़पो, ताउम्र तड़पो,’ ऐसा लगता है जैसे तुम आसपास ही खड़ी मु झे अंगूठा दिखा रही हो. सुमि, मैं अनजाने में तुम्हें पुकार उठता हूं और मेरी आवाज दीवारों से टकरा कर वापस लौट आती है, क्या मैं अपना पहला प्यार कभी भूल सकूंगा?

Family Story : अंतिम पड़ाव का सुख-भाग 2

समय यों ही गुजरता गया. सुमन रोज आती थी. वह घर के सदस्य जैसी थी. मैं ने फिर कभी उस की मां का जिक्र उस के सामने नहीं छेड़ा. थोड़े ही दिनों में वह मुझ से भी काफी घुलमिल गई. मेरे वापस जाने में एक सप्ताह बाकी था. एक दिन मैं ने सोचा कि कुछ खरीदारी कर लूं. मैं शीबा से बोली, ‘चलो, आज बाजार चलते हैं. मुझे कुछ सामान खरीदना है.’

शीबा टैलीविजन देखने में मग्न थी. वह बोली, ‘दीदी, अभी बहुत बढि़या आर्ट फिल्म आ रही है. तुम सुमन को साथ ले जाओ.’

‘जब तुम ही चलने को तैयार नहीं हो तो सुमन कैसे जाएगी. वह भी तो फिल्म देखेगी,’ मैं नाराज होते हुए बोली.

‘नहीं दीदी, मैं चलती हूं,’ सुमन बोली, ‘मुझे आर्ट फिल्में पसंद नहीं. इन में सिर्फ समस्याएं दिखाई जाती हैं, जिन्हें सभी जानते हैं. कोई समाधान बताए तो बात बने.’

शीबा उस की पीठ पर एक मुक्का जमाते हुए बोली, ‘तुझे अच्छी नहीं लगतीं तो ज्यादा बुराई मत कर.’

हम दोनों 4 बजे तक खरीदारी करती रहीं. जब हम लौट रही थीं तो सुमन बोली, ‘दीदी, मेरे घर चलो न.’

‘अभी?’ मैं घड़ी देखते हुए बोली, ‘कल चलूंगी.’

‘नहीं, अभी चलिए न,’ वह जिद सी करती हुई बोली.

‘अच्छा, चलो,’ मैं उस के साथ चल पड़ी.

घर पहुंच कर उस ने अपनी भाभी से मेरा परिचय कराया. उस का नाम लता था. वह भी सुंदर थी, साथ ही सलीकेदार व्यवहार के कारण कुछ ही क्षणों में मुझ से घुलमिल गई.

मैं पूछना तो नहीं चाहती थी, पर रहा न गया. इसीलिए उस की भाभी से पूछ बैठी, ‘मौसीजी कहां हैं?’

‘वे बाजार गई हुई हैं,’ लता मुसकराती हुई बोली.

इतने में दरवाजे की घंटी बजी. लता एक झटके के साथ खुशीखुशी उठ खड़ी हुई. ‘शायद वे आ गए’ इतना कह कर वह दरवाजा खोलने चली गई.

‘रेखा, तुम?’ अपना नाम सुन कर सामने देखा.

‘सुधीर, तुम?’ सामने सुधीर को देख हैरान हो गई.

‘ये मेरे भैया हैं,’ सुमन परिचय कराते हुए बोली, ‘और सुधीर भैया, ये शीबा की बड़ी बहन हैं.’

‘तो तुम मेरी पड़ोसिन हो?’ सुधीर लता को ब्रीफकेस थमाते हुए बोला.

‘मैं नहीं, तुम मेरे पड़ोसी हो, क्योंकि बाद में तुम आए

हो. हम तो पहले से ही यहां रहते हैं.’

‘पर मैं ने सुना था, तुम्हारी शादी हो गईर् है और विदेश चली गई हो,’ सुधीर सोफे पर बैठता हुआ बोला.

‘जी हां, आप ने ठीक सुना. अभी महीनेभर से पीहर आईर् हुई हूं. पर, तुम्हें मेरे बारे में कैसे मालूम?’

‘भई, हम तो सभी दोस्तों के बारे में खबर रखते हैं. स्वार्थी तो लड़कियां होती हैं. जहां अपना सुख देखती हैं, वहीं चली जाती हैं. यहां तक कि मांबाप को भी छोड़ देती हैं.’

‘अच्छाअच्छा, अब चुप हो. लड़कियों की अपनी मजबूरियां होती हैं.’

‘हां भई, सारी मजबूरियां तो औरतों की ही होती हैं.’

‘बाप रे, आप लोगों ने तो लड़ना शुरू कर दिया,’ लता बोली, ‘आप लोग एकदूसरे को कैसे जानते हैं?’

‘हम दोनों एक ही कालेज में पढ़े हुए हैं,’ सुधीर उत्तर देते हुए बोला.

इतने में एक शख्स के आने से सुमन बोली, ‘दीदी, आप बातें करिए, मेरे तो टीचर आ गए. मैं पढ़ने जा रही हूं.’

मैं ने सिर हिला कर उसे स्वीकृति दे दी. फिर लता की ओर मुखातिब होते हुए बोली, ‘जानती हो, हम बिना झगड़े एक दिन भी नहीं बिता पाते थे.’

‘तुम्हारा अन्न जो हजम नहीं होता था,’ सुधीर हंसते हुए बोला.

‘पर तुम यहां कैसे?’

‘तुम तो जानती ही हो, मैं होस्टल में रह कर यहां पढ़ाई कर रहा था. बीकौम के बाद मैं ने सीए करना शुरू कर दिया. साथ ही एक बैंक में नौकरी भी

मिल गई. बस, मैं ने सब को यहीं बुलवा लिया. हमारी शादी को भी अभी 6 महीने ही हुए हैं. अब मुझे क्या मालूम था कि मैं तुम्हारे ही पड़ोस में रह रहा हूं.’

‘लता, मालूम है, सब सुधीर को ‘मां का भक्त’ कह कर पुकारते थे,’ मैं

उस की ओर देखते हुए बोली, ‘यह हमेशा कहता था कि मां जैसी ही पत्नी मुझे मिले.’

‘पर मैं तो उन जैसी नहीं हूं,’ लता ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा.

मुझे अपने ऊपर ही गुस्सा आया कि उस की मां के बारे में क्यों वार्त्तालाप छेड़ दिया.

लेकिन सुधीर ने बात संभालते हुए कहा, ‘तुम ने मेरी मां को देखा है?’

‘हां, एक दिन छत पर देखा था,’ मैं सामान्य स्वर में बोली.

‘तो यह उन की तरह ही सुंदर है कि नहीं.’

‘हां, है तो,’ मैं ने कहा.

लता अपनी तारीफ सुन शरमा गई.

‘इसे भी मां ने ही पसंद किया था, वरना तुम तो जानती ही हो, मेरी पसंद कैसी है,’ सुधीर हंसते हुए बोला.

‘हांहां, जानती हूं. तुम्हारी पसंद एकदम घटिया है.’

‘घटिया है, तभी तो तुम मेरी दोस्त बनीं,’ सुधीर ने चुटकी लेते हुए कहा.

‘क्या मतलब?’ मैं चीखते हुए बोली.

‘भई, आप लोग तो बहुत झगड़ते हैं. अब आराम से बैठ कर बातें करिए, मैं नाश्ता ले कर आती हूं,’ कहते हुए लता रसोई की तरफ चल दी.

लता के जाने के बाद सुधीर नम्रतापूर्वक बोला, ‘तुम लता की बातों का बुरा मत मानना. वह बहुत अच्छी है, पर कभीकभी अपना विवेक खो बैठती है. लेकिन इस में इस का कोई कुसूर नहीं है. परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हो गई हैं कि…’

‘क्या बात है, सुधीर, तुम रुक क्यों गए?’

‘तुम ने मां के बारे में कभी कुछ सुना है?’ सुधीर हौले से बोला.

‘हां, सुना तो है,’ मैं नजरें नीची करती हुई बोली, ‘पर विश्वास नहीं हो रहा. तुम तो उन की बहुत तारीफ करते रहते थे कि कितने कष्टों से तुम्हें पालापोसा है.’

अंतिम पड़ाव का सुख

Romantic Story: दिल की दहलीज पर-भाग 3

‘‘अथर्वजी, मैं अमित से प्यार करती थी. वह मेरा क्लासमेट था. हम अकसर सिनेमा और पार्टियां में साथसाथ जाया करते थे. हम एकदूसरे के बहुत क्लोज हो गए थे. वह बहुत पैसे वाला था. उस के मातापिता ने उस की शादी एक बड़े व्यापारी परिवार में पक्की कर दी. यह बात उस ने मुझ से छिपा कर रखी. लेकिन एक सोर्स से यह बात मुझ तक आ गई. एक दिन दोपहर में मैं ने उसे अपनी सहेली के रूम पर बुलाया और कहा, ‘अमित, तुम्हारी शादी की बात पक्की हो गई और यह बात तुम ने मुझे बताना तक उचित नहीं समझा?’

‘‘उस ने झूठी सफाई देते हुए कहा, ‘यार, दिमाग तो मेरा भी गरम हो गया था इस बात से. चलो पहले कुछ सौफ्ट ड्रिंक लेते हैं, फिर आगे बात करते हैं.’ मैं 2 गिलास में शरबत बना कर ले आई. तभी उस ने मुझ से कहा, ‘यार अनु, एक गिलास पानी पिला दो, फिर यह शरबत लेते हैं.’ मैं पानी ले कर आई. उस ने पानी पिया और उस के बाद हम ने शरबत पिया. आप को सच बताती हूं, शरबत पीते ही मुझे चक्कर आने लगे और कुछ ही देर बाद मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा और मैं होश खो बैठी. उस के बाद उस ने मेरे साथ रेप किया और मेरे होश में आने के पहले वह वहां से खिसक गया.

‘‘जब मैं होश में आई और मैं ने अपने अस्तव्यस्त कपड़ों की तरफ देखा तो मुझे यह समझने में बिलकुल भी देर नहीं लगी कि जब मैं पानी लेने अंदर गई, तब उस ने मेरे शरबत में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया जिस से वह मेरी बेहोशी का फायदा उठा सके. इस के पूर्व कि मेरी सहेली विश्वविद्यालय से वापस आती, मैं उस के रूम से निकल गई.

‘‘हताशा व घबराहट के बीच ही अपने घर लौटी, और मैं ने ब्लेड से अपने हाथ की नस काट ली. अब आप बताइए कि मैं अपने मामाजी को बताती तो क्या बताती कि मैं उन के विश्वास को किसी के हाथों लुटा आई हूं? मैं उन के पास रह कर पढ़ाई कर रही थी और वे मुझ पर पूर्ण विश्वास करते थे कि अनु के कदम कभी भी डगमगा नहीं सकते. इस के बाद की कहानी आप को मालूम ही है.’’

‘‘अनुराधा, तुम्हारे जीवन की सचाई जानने के बाद अब मेरा इरादा और भी पक्का हो गया कि मैं शादी तुम से ही करूंगा.’

Family Story : अंतिम पड़ाव का सुख-भाग 1

सुधीर का पत्र न जाने मैं ने कितनी बार पढ़ा होगा. हर बार एक सुखद सुकून का एहसास हो रहा था. फिर अपने वतन से आए पत्र की महक कुछ अलग ही होती है.

भारत से दूर अमेरिका में बसे मुझे करीब 3 साल हो गए. पत्र पढ़ने के बाद मुझे एक साल पहले की घटना याद आ गई जब मैं विवाह के बाद पहली बार भारत अपने पीहर गई थी. सप्ताहभर तो लोगों से मिलनाजुलना ही चलता रहा. रिश्तेदार मुझ से मिलने आते, पर मुझे सादे लिबास में देख कर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते, ‘अरे, तुम तो पहले जैसी ही हो.’

तमाम रिश्तेदारों को आश्चर्य होता कि विदेश जाने के बाद भी मुझ में फर्क क्यों नहीं आया. मैं उन की बातों पर हंस पड़ती, क्या विदेश जाने से अपनी सभ्यता को कोई भूल जाता है. जहां जन्म हुआ हो, वहां के संस्कार तो कभी मिट ही नहीं सकते. अपनी मिट्टी की महक मेरे मन में इतनी अधिक समाई हुई थी कि अमेरिका में रहते हुए भी कभी भारत को पलभर भी न भुला पाई.

जब मेलमुलाकातों का सिलसिला कुछ कम हुआ तो एक शाम मैं छत पर टहलने चली गई. हर घर को मैं बड़े गौर से देख रही थी, कहीं कुछ बदलाव नहीं हुआ था. तभी मैं सामने के घर से एक अपरिचित महिला को कपड़े उतारते हुए देखने लगी. इतने में मां भी छत पर आ गईं. मैं उस महिला को देखती हुई उन से पूछ बैठी, ‘सुरेशजी के घर में मेहमान आए हैं क्या?’

‘अब तुम तो 2 साल बाद लौटी हो. तुम्हें इधर की क्या खबर?’ मां कपड़े उतारती हुई बोलीं, ‘सुरेशजी तो सालभर पहले ही यह मकान खाली कर चुके हैं. नए लोग आ बसे हैं. इन की लड़की सुमन हर रोज शीबा के पास आती है. शीबा की अच्छी दोस्ती है. रोज शाम को दोनों मिलती हैं. कभी वह आ जाती है तो कभी शीबा उस के घर चली जाती है,’ फिर वे मेरी ओर देख कर बोलीं, ‘अब नीचे चलो, मैं चाय बना देती हूं.’

‘थोड़ी देर में आती हूं,’ कहते हुए मैं छत पर टहलने लगी.

शीबा मेरी छोटी बहन का नाम है, उसी ने मेरा सुमन से परिचय कराया था. मेरी दृष्टि उस औरत पर ही टिकी रही. उस की उम्र 37-38 वर्ष के करीब होगी, पर सुंदरता अभी भी लाजवाब थी. देखने में अपनी उम्र से वह काफी छोटी लग रही थी. मैं तो उस की लड़की को नजर में रख कर अनुमान लगा रही थी कि जब उस की बेटी बीए में पढ़ रही है तो उस की उम्र यही होनी चाहिए. शायद यह औरत विधवा थी, तभी तो न माथे पर बिंदिया थी, न मांग में सिंदूर और न ही गले में मंगलसूत्र.

तभी पक्षियों का एक झुंड मेरे ऊपर से गुजरा. सुबह के थकेहारे पक्षी अपनेअपने घोंसलों की ओर जा रहे थे. आसमान साफ नजर आ रहा था. तभी मैं ने देखा, एक विमान धुएं की लकीर छोड़ता उड़ा जा रहा है. बच्चे अपनीअपनी पतंगों को वापस खींच रहे थे. सूर्य भी धीरेधीरे डूबता जा रहा था.

मां की आवाज सुन कर मैं सीढि़यां उतरने लगी. नीचे हाल में शीबा और सुमन टीवी देखते हुए पकौड़े खा रही थीं. मैं सुमन की ओर देखते हुए बोली, ‘तुम्हारी मां बहुत खूबसूरत हैं.’

‘हां, हैं, तो,’ सुमन ने बोझिल स्वर में कहा.

थोड़ी देर सुमन बैठी रही. शीबा की बातों का भी वह अनमने ढंग से उत्तर देती रही. कुछ क्षणों के बाद वह शीबा से बोली, ‘मैं घर जा रही हूं.’

शीबा ने उसे रोकने की कोशिश न की. उस के जाने के बाद मैं शीबा से पूछ बैठी, ‘क्या बात है, सुमन बुझीबुझी सी क्यों हो गई?’

‘तुम ने उस का मूड जो खराब कर दिया,’ शीबा ने उत्तर दिया.

‘मैं ने क्या कहा? मैं ने तो उस की मां की तारीफ ही की थी.’

‘तभी तो…’

‘क्या मतलब? अपनी मां की तारीफ से भी कोईर् नाराज होता है क्या?’

‘तुम अगर मां को कुछ नहीं बताओ तो मैं उस की मां के बारे में कुछ बताऊं,’ शीबा मेरे पास आ कर फुसफुसाते हुए बोली.

‘हांहां, बोलो,’ मैं अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पा रही थी.

‘दरअसल, उस की मां का किसी से चक्कर है,’ शीबा हौले से बोली, ‘तुम मां को मत बताना, वरना वे मुझे सुमन से मिलने नहीं देंगी.’

‘मैं कुछ नहीं बताऊंगी. बेफिक्र रहो. पर यह बेसिरपैर की बातें मेरे सामने मत किया करो,’ मैं नाराज होते हुए बोली.

‘मैं सच कह रही हूं. सुमन ने खुद मुझे बताया था.’

‘अच्छा, क्या बताया था?’

‘यही कि उस की मां जब मंदिर जाती हैं तो 2 घंटे तक वापस नहीं आतीं और एक अधेड़ व्यक्ति से बातें करती रहती हैं.’

‘तुम ने कभी देखा है?’

‘मैं ने तो नहीं देखा, पर वही बता रही थी.’

‘और कौनकौन हैं उस के घर में?’

‘एक भाई है, जिस की शादी हो चुकी है. सब इसी घर में साथ रहते हैं.’

फिर मैं ने और अधिक बात बढ़ाना उचित न समझा. सोचा, हर घर में कुछ न कुछ घटित होता ही रहता है.

Family Story :सपनों की आंधी -भाग 3

घर पहुंचते ही तीनों बेटे भागे आए. सब से छोटा मिट्ठू मां से लिपट गया.

‘ओफ, एक मिनट भी चैन नहीं. यह घर नहीं मानो मुसीबत है,’ सुभा  झुं झला उठी, ‘लेखा की बेटियों को देखो, कितनी सुघड़ हैं. और एक ये हैं हमारे साहबजादे, निरे लंगूर.’

मां का इस तरह  झुं झलाना रोमी को हैरानी में डाल गया. पापा के पास जा कर धीमे से फुसफुसा कर बोला, ‘मम्मी को क्या हुआ है, पापा?’

‘कुछ नहीं, बेटा, मम्मी थक गई हैं. संजू कहां है?’ बीच वाले बेटे को न देख सुशांत ने पूछा.

‘वह दादी के साथ सो गया है,’ रोमी बोला.

और दोनों बेटों को साथ लिए सुशांत अपने कमरे में चले गए. सुभा की इस मनोस्थिति में उसे कुछ देर अकेले छोड़ देने का उन का इरादा था. सुबह तक सो कर वह स्वस्थ हो लेगी.

किंतु सुभा की आंखों में नींद ही कहां थी. सपने न जाने उस के साथ कैसी आंखमिचौली खेल रहे थे. उसे लगता था जैसे उस का अपना बचपन साकार हो कर उस की बंद आंखों में समा गया है. छत पर उस के साथ खेलती लेखा,  झूला  झूलती लेखा, पेड़ पर चढ़ी लेखा, न जाने कितने रूप लिए थे लेखा ने. और अपने हर रूप में लेखा मानो उसे ही पुकार रही थी, ‘तुम कहां हो जिज्जी, कहां हो तुम?’

और इस तरह सारी रात सुभा करवटें बदलती रही.

किंतु दूसरे दिन सुबह जब वह उठी तो अपेक्षाकृत शांत थी. रोज की तरह चाय का प्याला अपनी सास को देने उन के कमरे में गई तो उन्होंने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास ही बैठा लिया और प्यार से पूछा, ‘कैसी है तेरी बहन?’

सुभा का दिल किया कि अपनी सास के गले लग जाए, जिन्होंने सदा ही मां बन कर अपनी ममता की छांव में उसे रखा है. और एक लेखा की सास हैं कि अपनी जलीकटी बातों और रूखे व्यवहार से उस का यह हाल कर दिया है.

सुशांत तैयार हो कर औफिस के लिए निकलने लगे तो सुभा ने पूछा, ‘मैं लेखा से फोन पर बात कर लूं?’

‘करो न, इस में पूछना क्या है?’ फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘शाम को करना, मैं भी बात कर लूंगा. इस समय लेखा को मानसिक संबल की जरूरत है, इसलिए जब तक उस के बच्चा नहीं हो जाता, तुम हर दूसरेतीसरे दिन उस से बात करती रहो.’

सुशांत का यह उदार व्यवहार सुभा को अंदर तक छू गया. काश, लेखा को भी ऐसी ही ससुराल मिली होती, उस के भोले मासूम हृदय को सम झने वाला पति मिला होता, उस की भावनाओं का आदर करने वाली सास मिली होती तो आज लेखा इस तरह टूट न गई होती.

अब हर सप्ताह 2-3 बार सुभा लेखा को फोन कर लेती और जितनी बार सुभा लेखा को फोन करती वह यही कहती, ‘जिज्जी, इस बार बेटा हो जाए तो मु झे मुक्ति मिले.’

धड़कते दिल से सुभा प्रसव की निर्धारित तिथि की प्रतीक्षा कर रही थी किंतु जब उस तिथि से भी 4-5 दिन ऊपर हो गए तो सुभा ने फोन मिलाया. पता चला कि प्रसव तो हो चुका और इस बार भी बेटी ही हुई है. यह जान कर सुभा का सिर चकराने लगा. उस के सारे मनसूबे धरे के धरे रह गए. उस ने सोचा था कि लेखा के इस बार बेटा हुआ तो वह उस की सास, पति एवं बच्चों के लिए भी खूब सारा सामान ले कर उस के घर जाएगी. अपने तीनों बेटों को भी साथ ले जाएगी. लेकिन मन की सब मन में ही धरी रह गई. अब तो लेखा का सामना करने का भी उस में साहस नहीं था.

फिर एक दिन लेखा की बड़ी बेटी निकिता का फोन आया. उस ने बताया कि मां के पांव में गैंग्रीन हो गया है और डाक्टर उन के दाएं पांव का अंगूठा काटने को कह रहे हैं. मां ने रोरो कर अपना बुरा हाल कर लिया है. मौसी, आप कब आएंगी?

निकिता की बातें सुन कर सुभा कांप उठी. सुशांत से सलाह ली तो वे बोले, ‘मैं यदि तुम्हें वहां ले कर चलूं भी तो हम कर क्या पाएंगे. तय तो सबकुछ नरेश या डाक्टर ही करेंगे. तुम लेखा से फोन पर बात कर के उसे सम झाओ कि डाक्टर का कहना माने.’

सुभा ने फोन मिलाया तो फोन पर लेखा रोती हुई बोली, ‘अब मेरी जीने की इच्छा नहीं है, जिज्जी.’

‘पागल है क्या?’ सुभा ने डांटा, ‘अपनी दुधमुंही बच्ची की तो सोच.’

‘क्या सोचूं, उसे तो नरेश ने हाथ तक नहीं लगाया.’

‘इसीलिए तो उस बच्ची को तेरी जरूरत और ज्यादा है,’ सुभा ने फिर सम झाया.

‘नहीं, जिज्जी, नहीं. अब और कुछ सहने की ताकत मु झ में नहीं है,’  इतना कह कर लेखा ने फोन काट दिया.

सुभा ने बहुत सम झा कर लेखा की दोनों बेटियों को पत्र लिखा कि मम्मी को सम झाओ, डाक्टर का कहना माने और उत्तर की प्रतीक्षा करती रही. काफी दिनों तक जब कोई खत नहीं आया तो सुभा ने फोन किया. फोन पर निकिता ही आई. रोते हुए उस ने बताया कि कल डाक्टरों ने औपरेशन कर के लेखा की टांग घुटने से नीचे काट दी है.

उस के बाद 2 दिनों तक सुभा कमरे में अपनेआप को बंद कर के बस, रोती रही. सुशांत ने बहुत सम झाया. यह भी कहा कि चलो, सहारनपुर चल कर उसे देख आएं, लेकिन सुभा का एक ही उत्तर था, ‘मु झ में उस का सामना करने का साहस नहीं है. उस को इस बेबसी की हालत में देखने के बाद तो शायद मैं कभी सो भी नहीं सकूंगी.’

दिल ही दिल में सुभा को कहीं  यह लग गया था कि अब लेखा बचेगी नहीं. यह आघात  झेलना उस के लिए कठिन होगा.

अंत में वही हुआ जिस का सुभा को डर था. उस औपरेशन के बाद 2 महीने भी लेखा जी न पाई. अपनी 15 साल की बेटी के हाथों में नन्ही दुधमुंही बच्ची को सौंप उस ने सदा के लिए आंखें बंद कर लीं. किस तरह बिलख रही होंगी उस की दोनों बड़ी बेटियां, यह कल्पना ही सुभा के लिए असहनीय हो रही थी. सुशांत ने लाख कहा लेकिन सुभा किसी तरह भी जाने को राजी नहीं हुई. एक ही उत्तर बारबार देती. ‘सुशांत, मैं उस की बेटियों का सामना नहीं कर सकती. तुम चले जाओ.’

हार कर सुशांत अकेले ही गए थे.

वहां से वापस आ कर सुशांत ने जब लेखा की बिखरी गृहस्थी का हाल सुभा को बताया तो वह पत्थर की तरह जड़ हो कर सब सुनती रही. कोई भी प्रतिक्रिया उस की ओर से नहीं हुई. किंतु रात में जब सब लोग सो रहे थे तो वह अचानक चीख मार कर उठ बैठी और बाहर को यह कहती हुई भागी कि देखोदेखो, लेखा आ गई. दरवाजा खोलो सुशांत. दरवाजा खोलो.

दोनों हाथों से दरवाजा पीटती सुभा को बड़ी कठिनाई से सुशांत ने ला कर बिस्तर पर लिटाया और नींद की  गोली दे कर सुलाया. उस के बाद से आज तक उस का यही हाल है कि  रातों को चौंक कर उठती है और ‘लेखालेखा’ पुकारती हुई बाहर की ओर भागती है.

सुशांत भरसक सुभा का ध्यान रखते हैं. डाक्टरों का कहना है कि समय ही इस घाव को भरेगा किंतु तब तक सुशांत को अतिशय प्रेम और सहृदयता से अपनी पत्नी को संभालना है. और सुशांत को विश्वास है कि एक न एक दिन सुभा इस मोहजाल से मुक्त हो कर स्वाभाविक जिंदगी जी सकेगी.

 

 

Vidhu Vinod Chopra के भाई Vir Chopra का कोरोना से हुआ निधन

देश में कोरोना महामारी कम होने का नाम ही हीं ले रहा है, ऐसे में हमें इस बीमारी में अपने साथ-साथ अपनों का भी ख्याल रखना पड़ता है. इस महामारी ने कई परिवारों के सदस्यों को छीन लिया है, जिससे परिवार वालों को लिए यह समय काफी ज्यादा मुश्किल भरा लग रहा है.

कुछ ऐसा ही हुआ है फिल्म डॉयरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा के साथ उनके भाई वीर चोपड़ा की निधन कोरोना महामारी की वजह से हो गया है. पिछले 21 दिनों तक वह अस्पताल में भर्ती थे, जिसके बाद से वह अपनी जिंदगी के जंग को हार गए.

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खबर ये भी है कि वह कोरोना महामारी के दौरान ही मालदीव गए थे, जहां से आने के बाद वह संक्रमित हो गए थे, जिसके बाद भाई विनोद ने उनका साथ कही नहीं छोड़ा आखिरी सांस तक वह अपने भाई का साथ देते रहे.

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वीर हर पल अपने भाई के साथ रहते थे, उन्होंने साथ में मिलकर कई फिल्मों में काम किया था, जैसे मुन्ना भाई एमबीबीएस,3 इडियट्स, लगे रहो मुन्ना भाई के अलावा और भी कई फिल्मों को प्रॉड्यूस किया था, जिसे देखना लोग खूब ज्यादा पसंद करते हैं.

बॉलीवुड के सभी लोग विधु के परिवार को सांत्वना दे रहे हैं , इस मुश्किल वक्त में, विधु का नाम एक क्रिएटिव प्रॉड्यूसर के रूप में लिया जाता है.

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विधू के अलावा बॉलीवुड के कई सारे ऐसी फैमली है जिन्होंने अपनों को खोया है इस कोरोना महामारी में, लगातार बढ़ते इस बीमारी ने कुछ लोगों के मन में डर तो पैदा कर दिया है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बिना डरे घूम रहे हैं.

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