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Religion : धार्मिक आयोजन और भगदड़, औरतों पर गिरती गाज

Religion : एक औरत केरल के एक धर्मगुरु के यहां अपनी मानसिक शांति के लिए जाती थीं. उस धर्मगुरु ने अपने दबदबे का इस्तेमाल कर उन का कई दिनों तक शोषण किया. उन औरत के कोई बच्चा नहीं था और वे पेट से भी हो गईं. आज उन के पास उस घिनौने शोषण की निशानी हैं और वे चुपचाप उसे पाल रही हैं. पति बड़े खुश हैं कि बीवी को शादी के 15 साल बाद बच्चा हो गया है.

ऐसे ही एक और जानने वाले हैं, जिन की पत्नी को तो उन के दोस्त एक ऐसे ही बाबाजी के यहां से बेहद बुरी हालत में छुड़वा कर लाए थे. वे भी उस बाबा की बेहद भक्त हुआ करती थीं. पता चला कि बेहद पढ़ेलिखे अलीम जनाब और उन के 2 भाई उन की पत्नी को एक हफ्ते से घर में कैद कर के अपनी इच्छाएं मिटा रहे थे.

ये ज्यादातर ऐसी औरतें हैं जो घरों में कैद रहती हैं, उन के पति भी खूब धर्म भीरु होते हैं या फिर उन के पास पैसा तो है, पर पत्नी के लिए समय नहीं है. ऐसी औरतों को जन्म से घुट्टी में धर्म पिलाया गया होता है. ये भगवान की महिमा सुनसुन कर बड़ी होती हैं.

कई बार ऐसी औरतें मन की शांति के लिए इन महात्माओं के पास जाती हैं, पर उन के आसपास एक अजीब सी भीड़ होती है. यही वजह है कि ऐसी औरतों को महात्माजी बड़े हीरो टाइप लगने लगते हैं.

यकीन मानिए, इन औरतों का तकरीबन 80 फीसदी तबका वह होता है, जो कभी अपने पति के आलावा किसी और मर्द से शायद जिंदगीभर में 2 घंटे ढंग से बात भी नहीं कर पाया होगा. अब मिल जाते हैं एक हीरो के माफिक बाबाजी जो औरतों से घिरे हैं, बड़ा प्यार लुटा रहे हैं, आश्रम में रुकने का आग्रह कर रहे हैं. इन बाबाओं को कहीं न कहीं अच्छे से पता होता हैं की ग्लैमर दिखा कर इन औरतों को कैसे वश में में करना है.

नामचीन बाबाजी रचाते थे रास

वृंदावन के पास एक बेहद नामचीन बाबाजी, जो अब नहीं रहे हैं, बेहद लंबे थे और रोज रात को रास रचाते थे, मतलब कुछ चुनिंदा जवान औरतों को बेसमैंट के एयरकंडीशनर हाल में खूब सजधज कर आने को कहा जाता था. स्वामीजी अपने कपड़े उतार कर इन औरतों के सामने नाचा करते थे.

आप को यकीन नहीं होगा कि करोड़पति धन्ना सेठों की बहुएं सुदूर कोलकाता और उत्तर प्रदेश से आ कर उन के साथ खुद को उन की प्रेमिका के रूप में नाचने के लिए करोड़ों रुपए की बोली लगाती थीं.

3 साल बाद वापस आई लड़कियां

एक गुजराती बाबाजी एक बार उत्तर प्रदेश गए. वहां एक गरीब पुलिस वाले की लड़कियां उन के चक्कर में फंस गईं. तकरीबन 3 साल के बाद जब वे लड़कियां वापस आईं, तो उन को 2-2 लाख रुपए दे कर वापस भेज दिया गया था. दोनों बहनों का रातोंरात चुपचाप कहीं गांव में ब्याह दिया गया. बाद में पता चला कि वे दोनों बहनें सऊदी अरब के हथियारों के एक सौदागर के पानी के जहाज पर रही थीं. दोनों के गर्भाशय तक निकाल लिए गए थे. जब तक भगवान के नाम पर धर्म के ठेकेदारों की दुकाने चलेंगी, तब तक यह शोषण चलता रहेगा और औरतें यों ही उल्लू बन कर इज्जत लुटाती रहेंगी.

क्या आधुनिक युग में जी रहे हैं हम ?

सवाल उठता है कि क्या हम आधुनिक युग में जी रहे हैं? बिलकुल नहीं. अब लोग कहीं घूमने जाते हैं, तो तीर्थ का बहाना बना देते हैं. एक औरत को अगर मसूरी जाना होता था तो वे बोलती थीं कि हरिद्वार जाना है. मनाली जाना होता था, तो वे बोलती थीं कि मणिकर्ण जाना है. मतलब उन को सारे टूरिस्ट प्लेस के पास के तीर्थ स्थानों पर जाना होता था, ताकि वे खुद को धार्मिक कह सकें.

और तो और आप कह दीजिए कि मुझे आज कुछ मन का खाने बाहर जाना है, तो आप को सौ नसीहतें मिल जाएंगी, पर एक बार कह दीजिए कि मंदिर जा रहे हैं, सत्संग जा रहे हैं, तो कोई नहीं रोकेगा.

हाथरस धार्मिक आयोजन के हादसे में सबसे ज्यादा औरतों की हुई थी मौत

हाथरस, उत्तर प्रदेश में एक धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ के बाद जबरदस्त हादसा हो गया. इस में हादसे की ज्यादा शिकार औरतें हुई थीं. पर क्या आप जानते हैं कि क्यों औरतें ही ऐसे मामलों में ज्यादा मरती हैं?

हाथरस में बाबा नारायण साकार हरि भोला के एक सत्संग में मची भगदड़ में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जिस में ज्यादातर औरतें थीं.

जिस देश में जितने बाबा, उस देश में सिस्टम उतना ही खराब

किसी देश मे जितने ज्यादा बाबा हैं, तो समझिए कि सिस्टम उतना ही खराब है. जो राहत सरकार को अपनी जनता को देनी चाहिए, वह लोगों को नहीं मिलती, तो लोग परेशान हो कर बाबाओं के पास जाते हैं. जितना ज्यादा धर्म और अंधविश्वास का बोलबाला उतनी ही बाबागीरी चमकती है. जितनी पढ़ाई लिखाई, डाक्टरी सेवाओं और रोजगार की बदहाली, उतनी ही बाबाओं की चांदी.

देश को मिली आजादी के बाद शहरों और गांवों में जहां ज्ञान और विज्ञान की चर्चा होनी चाहिए थी, लोगों को शिक्षित किया जाना चाहिए था, इस के उलट अंधविश्वासों के प्रचार और प्रवचनों का रेला आ गया है.

औरतों पर तो सब से ज्यादा गाज गिरती है. यही वजह है कि आज जिस तरह से हमारे देश की औरतें फिर से अंधविश्वासों की तरफ लौट रही हैं, महंतोंबाबाओं की तरफ दौड़ रही हैं और प्रवचनों में भीड़ की शोभा बढ़ा रही हैं, उसे देख कर लगता है कि वे शायद 21वीं सदी में नहीं, बल्कि 12वीं या 13वीं सदी में जी रही हैं.

ससुराल में जब औरत को इज्जत और हिफाजत नहीं मिलती, न मायका ही उन्हें सहारा दे पाता है, तब ऊपरवाले की चौखट बचती है और यहां से शुरू होता है धर्म के प्रति विश्वास और अंधविश्वास का चक्कर.

आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के कारनामे

आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के कारनामे देखें. बाबा राम रहीम जैसे ढोंगीपाखंडी साधु कुसूरवार पाए जाने के बावजूद आएदिन पैरोल पर रिहा कर दिए जाते हैं. इस पर हमेशा सवाल उठाए जाते रहे हैं, पर आज इन सवालों को भी पीछे धकेला जा रहा है.

सब से बड़ी त्रासदी है कि धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा को औरतें भी समझ नहीं पातीं और इसे समर्थन देती हैं. धर्म भारत की औरतों की कमजोर नब्ज है. महिलाएं पितृसत्ता की वाहक और शिकार दोनों हैं. धर्म औरत को कब्जे में रखने का उपकरण है. औरत को बचना है और आगे निकलना है तो उसे कट्टरवादी धार्मिक सत्ता को नकारना होगा.

कई गांवों में आज भी है ‘सती मैया’ के मंदिर

आज भी कई गांवों में ‘सती मैया’ के मंदिर हैं, जहां औरतें पूजापाठ करती हुई अपने सुहाग को बनाए रखने और भाग्य का दुख नहीं भोगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं. धार्मिक आचार संहिता ने भाग्य को पूर्व जन्मों का फल बताया है, जिस का कठिन प्रायश्चित औरतें करती हैं. पूजापाठ, व्रतउपवास, मंदिरमूर्तियों के समूचे विधिविधान औरतों के जिम्मे है.

ज्यादातर औरतों की जिंदगी में धर्म उन्हें घर के बाहर निकल कर एकदूसरे से मिलने का मौका देता है, इसलिए वे धार्मिक गतिविधियों के लिए घर से बाहर निकलती हैं, एकदूसरे से मिलती, बतियाती और समय बिताती हैं तो धर्म और पितृसत्ता इसे खतरा नहीं समझता.

पर वे ही औरतें जब सामाजिक सरोकार और खुद से जुड़े मुद्दों को ले कर जुटने लगती हैं, तो इसे धर्म और पितृसत्ता दोनों ही खतरनाक घोषित करते हैं, इसलिए कई औरतें पितृसत्ता पर सवाल तो उठाती हैं, पर धर्म का पूरी ताकत से विरोध नहीं करती हैं.

बाबा लोग उन को भविष्य में होने वाली अनहोनी से काफी डरा देते हैं, जिस से बिना तर्क वे उन के बताए रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाती हैं. धर्मभीरु होने से औरतें बाबाओं के शोषण की शिकार होती हैं. देश में अब भी एक बड़े तबके में लड़कियों की पढ़ाईलिखाई उन की प्राथमिकता में शामिल नहीं है. तालीम की कमी में लड़कियां अकसर ढोंगी बाबाओं के जाल में फंस कर रह जाती हैं.

आज भी लड़की को अकेले घूमने की मनाही है

इस देश में आज भी लड़की को अकेले स्कूल भेजने, सहेली के घर जाने, बाहर घूमने की मनाही है. आज भी ऐसे घरों की कमी नहीं जो लड़की को सिर्फ मंदिर के लिए ही बाहर जाने देते हैं. लड़की बाहर जाए तो घर के किसी मर्द के साथ वरना नहीं. वजह, सुरक्षा की भावना या फिर यह डर कि लड़की किसी से प्यार न कर बैठे.

ऐसे में वही लड़कियां या औरतें जब इन बाबाओं को अपनी समस्याओं के बारे में बताती हैं, तो वे लोग इन का गलत फायदा उठाते हैं. समाज में बदनामी का डर औरतों को हमेशा सच बताने से रोकता है, इसलिए ऐसे लोगों की हिम्मत बढ़ती जाती है, जिस से जन्म होता है आसाराम, राम रहीम, वीरेंद्र देव दीक्षित जैसे लोगों का. वीरेंद्र देव दीक्षित के दिल्ली में बने आश्रम से कई लड़कियों को बड़ी मशक्त के बाद मुक्त कराना संभव हो पाया था. यह घटना कई दिनों तक सुर्खियों में बनी रही थी.

बाबाओं के आश्रम में लड़कों से ज्यादा तादाद लड़कियों की क्यों ?

ऐसा क्यों है कि बाबाओं के आश्रम में लड़कों से ज्यादा तादाद लड़कियों की होती है? इस की मूल वजह है भारतीय सामाजिक संरचना और घर और घर में फैली पितृसत्ता. इस संरचना में लड़के की अहम भूमिका है. लड़कों को सेवाभाव से दूर रखा जाता है, जबकि लड़की में सेवाभाव वाले सारे गुण बचपन से ही भरे जाते ही हैं, इसलिए बाबाओं के आश्रम में लड़कियों को भेज दिया जाता है. वहां बहलाफुसलाकर, बड़े सपने दिखा कर मोक्ष के बहाने सताने का अंतहीन सिलसिला शुरू होता है.

हैरानी की बात यह है कि लड़कियों को ऐसे डरायाधमकाया जाता है कि वे मुंह से कुछ नहीं बोल पाती हैं. कुछ तो इसी पसोपेश में खुदकुशी तक कर लेती हैं. इस से कभीकभार ही इन बाबाओं का सच सामने आ जाता है, पर होता कुछ नहीं है.

Driving Skills : महिलाओं की ड्राइविंग स्किल्स पर क्यों बनते हैं जोक?

Driving Skills : आज महिलाएं बड़ीबड़ी कंपनी संभाल रही हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि महिला गाड़ी का स्टीयरिंग नहीं संभाल सकती हैं. लोगों का मानना है कि अगर महिला सड़क पर गाड़ी ले कर निकली है, तो पक्का किसी का काम तमाम करेंगी. क्या यह सिर्फ लोगों की मैंटेलिटी है या रियलिटी? आइए जानते हैं.

“ड्राइविंग सीट पर बैठ 2 लड़कियों ने मचाया बवाल यूपी पुलिस का जवाब हुआ वायरल”

हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिस में 2 महिलाएं गाड़ी चलाते हुए डांस करती नजर आ रही हैं. उन्हें इस तरह लापरवाही से ड्राइविंग करते हुए देख लोग काफी गुस्सा हो रहे हैं और इस पर पुलिस का भी जवाब आया है. “लड़की गाड़ी चला रही है एक्सीडैंट तो होना ही था” साथ ही सोशल मीडिया पर महिलाओं को उन की इस हरकत पर कोसा भी जा रहा है.

जब ड्राइविंग की बात आती है तो अधिकांश लोगों की यही सोच सामने आती है कि महिलाएं कभी भी अच्छी ड्राइवर नहीं हो सकतीं और लड़कियों/महिलाओं का काम घर संभालना है न कि गाड़ी के ब्रेक.

यही कारण है कि निम्न कुछ आम स्टेटमैंट सड़क पर कोई भी व्हीकल चलाने वाली लगभग हर लड़की को सुनने को मिलते हैं –

‘खुद तो मरेंगी और दूसरों की जान भी लेंगी, पता नहीं कौन इन्हें गाड़ी चलाने को दे देता है.’
‘लड़की चला रही है दूर ही रहो नहीं तो हाथ पैर टूट जाएंगे.’
‘सड़क पर कहीं जाम लग गया तो पक्का ड्राइव करने वाली लड़की ही होगी.’
‘ये देखो, राइट इंडिकेटर दे कर लेफ्ट टर्न ले रही, पक्का कोई लड़की गाड़ी चला रही होगी.’
‘कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि औरतें अच्छी गाड़ी नहीं चलातीं, क्योंकि वे डरपोक होती हैं.’
‘गाड़ी अगर रौंग साइड पर है तो पक्का ड्राइवर महिला ही होगी.’

महिलाओं को ड्राइविंग के रूल्स नहीं पता होते

भले ही आज महिलाएं बड़ीबड़ी कंपनी संभाल रही हैं, चांद पर जा रही हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि महिलाएं गाड़ी का स्टेयरिंग नहीं संभाल सकती हैं. यहां कुछ कारणों पर चर्चा की गई है कि आखिर क्यों औरतों की ड्राइविंग स्किल्स का मजाक बनाया जाता है और इसे कैसे बदला जा सकता है.

गाड़ी चलाते समय भी मल्टीटास्कर

अधिकांश महिलाएं गाड़ी चलाते समय भी मल्टीटास्किंग करती हैं, जैसे फोन पर बात करना, अगर बच्चे साथ हैं तो लगातार पीछे मुड़ कर बच्चों को चिप्स या जूस न गिराने के लिए कहना, अपने ‘गर्लगैंग’ के व्हाट्सएप ग्रुप पर हो रही चैट के मैसेज पर नजर रखना, मेकअप टचअप करना और फिर रियर व्यू मिरर को वापस उसी स्थिति में लाना भूल जाना, अपने मूड के हिसाब से सही गाना ढूंढने के लिए लगातार चैनल बदलना, मेड, मां या टेलर को फोन करना. किसी भी महिला के ये सब निश्चित रूप से रोड और स्टीयरिंग से ध्यान हटाने के लिए पर्याप्त होते हैं, जिस के कारण ही उन की गाड़ी किसी से टकराती है और उन्हें सुनने को मिल जाता है “क्यों देते हो इन्हें गाड़ी चलाने के लिए.”

गियरअप बिल्कुल नहीं…

देखा गया है, अधिकांश महिलाएं दूसरे या तीसरे गियर में गाड़ी चलाती हैं और एक्सीलेटर दबाती रहती हैं और ऐसे में बेचारा इंजन भी अपनी किस्मत को रोता है और दया की भीख मांगता है कि मुझे बक्श दो लेकिन मैडम इस पर ध्यान देने के मूड में नहीं होती हैं.

ब्रेक- कभी भी, कहीं भी

वे बिना कोई सिग्नल दिए या स्पीड कम किए अचानक कहीं भी ब्रेक लगा देती हैं. कई बार उन्हें याद नहीं रहता कि उन्हें किस मोड़ पर टर्न लेना था और वे अचानक कहीं भी टर्न ले लेती हैं.
महिलाओं को उन की ड्राइविंग स्किल्स पर जोक्स का सामना न करना पड़े इस के लिए महिलाओं को ड्राइविंग करते समय निम्न बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए.

* फोन पर बात न करें, फोन ड्राइव करते समय सब से बड़ा डिस्टरैक्शन होता है, सड़क पर से ध्यान हटाने के लिए, इसलिए ड्राइव करते समय फोन कौल्स अटेंड न करें.
* माना कि आज की महिलाओं को घर और औफिस दोनों को देखना पड़ता है और आज शाम को खाने में क्या बनेगा, औफिस में मीटिंग में क्या होगा, बच्चे स्कूल पहुंच गए होंगे. इन सब बातों की चिंता करनी पड़ती है लेकिन कृपया महिलाएं ड्राइव करते समय इन बातों के बारे में न सोचें सिर्फ अपनी ड्राइविंग पर ध्यान दें.
* कुछ महिलाएं इतनी मल्टीटास्कर होती हैं या कहें उन्हें ढेरों काम के बीच जल्दबाजी में घर में खाना खाने का समय नहीं मिलता तो वे बहुत बार एक हाथ से स्टैयरिंग थामे दूसरे हाथ से खाना खाती हैं. ऐसा न करें, एक समय में एक ही काम करें वरना पक्का आप की गाड़ी किसी से भिड़ेगी और आप को सुनने को मिल ही जाएगा ‘खुद तो मरेंगी और दूसरों की जान भी लेंगी पता नहीं कौन इन्हें गाड़ी चलाने को दे देता है.”

• कुछ महिलाएं जल्दबाजी में ट्रैफिक रूल्स की धज्जियां उड़ाते हुए रेडलाइट जंप करने से बाज नहीं आतीं, इसलिए भी साथ में गाड़ी चलाने वालों को मुसीबत का सामना करना पड़ता है और उन के मुंह से निकल ही जाता है “लड़की चला रही है दूर ही रहो नहीं तो हाथ पैर टूट जाएंगे.”
•कई महिलाओं को देखा है वे ओवरकौन्फिडैंस में गाड़ी बहुत तेज स्पीड में चलाती हैं और आसपास वालों की जान से खेलने का काम करती हैं ऐसा हरगिज न करें .

• गाड़ी चलाते हुए महिलाओं का एक और सब से फेवरेट काम होता है अपने मेकअप या लिपस्टिक को टचअप करना जिस के कारण उन्हें साथी पुरुषों ड्राइवर्स के कमेंट्स का सामना करना पड़ता है, आप ही सोचिए सड़क पर गाड़ी चलाते हुए मेकअप टचअप करना भला कहां की समझदारी है.

महिलाएं कृपया सुरक्षित ड्राइव करें, स्मार्ट ड्राइव करें!

हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि महिला चालक पुरुषों की तुलना में कम समय गाड़ियां चलाती हैं. जहां एक पुरुष औसतन 60 फीसदी समय गाड़ी चलाने में बिताता है, वहीं महिलाएं 40 फीसदी समय ही स्टेयरिंग पर बिताती हैं और वे ज्यादा असुरक्षित तरीके से गाड़ी चलाती हैं. महिलाओं के दुर्घटना का शिकार होने का खतरा अधिक रहता है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक महिलाओं को क्रौस रोड, टीजंक्शन और स्लिप रोड पर स्वाभाविक तौर पर गाड़ी चलाने में दिक्कत पेश आती है. शोध में एक अन्य अनोखी बात भी सामने आई है कि पुरुषों की तुलना में ऊंचाई कम होने के कारण महिलाएं आमतौर पर अपनी बाईं ओर से आने वाली गाड़ियों को ठीक नहीं देख पातीं और दुर्घटना कर बैठती हैं.

42 वर्षीय वंदिता इस बारे में कहती हैं कि मेरे पापा ने मुझे कार चलाना सिखाया था और शुरूशुरू जब मैं कालेज गाड़ी ले कर जाती थी तो मेरे दोस्त मेरा मजाक उड़ाते थे. वे कहते थे कि आज कितनों को अस्पताल पहुंचा कर आई हो. शुरुआत में काफी डर लगता था, लोग देखते थे कि लड़की गाड़ी चला रही है तो ओवरटेक करने की कोशिश करते या आगे से जा कर रास्ता रोक लेते, लेकिन मैं ने लोगों की बातों को ध्यान नहीं दिया और आज मुझे गाड़ी चलाते हुए 20 साल हो गए हैं. मैं गाड़ी चलाते समय सिर्फ सड़क पर ध्यान रखती हूं और ट्रैफिक के रूल्स को फौलो करती हूं,फोन पर बात नहीं करती, मेकअप टचअप नहीं करती और मैं ने आज तक कोई एक्सीडैंट नहीं किया.

बिना किसी भेदभाव के हो सेफ ड्राइविंग

कार खरीदने में महिलाओं की बढ़ी हिस्सेदारी ड्राइविंग की बात करें तो अब सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी कार ड्राइव करने में पीछे नहीं हैं. वे लंबे ट्रैवल और अपनी पर्सनल जरुरत के लिए ड्राइविंग करने लगी हैं. ड्राइविंग एक ऐसी स्किल है जो न केवल किसी की आजादी को बढ़ाती है बल्कि आत्मनिर्भर भी बनाती है, जरूरत है बिना किसी भेदभाव के उस स्किल को सही तरह से सीखने और ट्रैफिक रुल्स को फौलो करते हुए अपनी और सब की जान की सुरक्षा करते हुए अपनी अपनी मंजिल पर पहुंचने की फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला.

Romantic Story : एक दूजे के वास्ते – क्यों तूलिका अपने पति के पास लौट आई?

Romantic Story : ‘‘शादी की सालगिरह मुबारक हो तूलिका दी,’’ मेरी भाभी ने मुझे फोन पर मुबारकबाद देते हुए कहा.

‘‘शादी की सालगिरह मुबारक हो बेटा. दामादजी कहां हैं?’’ पापा ने भी फोन पर मुबारकबाद देते हुए पूछा.

‘‘पापा, वे औफिस गए हैं.’’

‘‘ठीक है बेटा, मैं उन से बाद में बात कर लूंगा.’’

मेरी छोटी बहन कनिका और उस के पति परेश सब ने मुझे बधाई दी, पर मेरे पति रवि ने मुझ से ठीक से बात भी नहीं की. आज हमारी शादी की सालगिरह है और रवि को कोई उत्साह ही नहीं है. माना कि उन्हें औफिस में बहुत काम होता है और सुबह जल्दी निकलना पड़ता है, पर शादी की सालगिरह कौन सी रोजरोज आती है.’’

रवि कह कर गए थे, ‘‘तूलिका, आज मैं जल्दी आ जाऊंगा… हम बाहर ही खाना खाएंगे.’’

‘सुबह से शाम हो गई और शाम से रात. रवि अभी तक नहीं आए. हो सकता है मेरे लिए कोई उपहार खरीद रहे हों, इसलिए देरी हो रही है,’ मन ही मन मैं सोच रही थी.

‘‘मां भूख लगी है,’’ मेरी 5 साल की बेटी निया कहने लगी. वह सो न जाए, उस से पहले ही मैं ने उसे कुछ बना कर खिला दिया.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. वे आते ही बोले, ‘‘बहुत थक गया हूं… तूलिका माफ करना लेट हो गया… अचानक मीटिंग हो गई. शादी की सालगिरह मुबारक हो मेरी जान… यह तुम्हारा उपहार… फूलों सी नाजुक बीवी के लिए गुलदस्ता… आज हमारी शादी को 6 साल हो गए और तुम अभी भी पहले जैसी ही लगती हो.’’

पर मैं ने उन की किसी भी बात पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और उन के लाए गुलदस्ते को एक तरफ रख दिया. फिर बोलने लगे, ‘‘आज होटल में बहुत भीड़ थी… तुम्हारी पसंद का सारा खाना पैक करवा लाया हूं. जल्दी से निकालो… जोर की भूख लगी है.’’

‘‘जोर की भूख लगी थी तो बाहर से ही खा कर आ जाते… यह खाना लाने की तकलीफ क्यों की और इस गुलदस्ते पर पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी? आप खा लीजिए… मेरी भूख मर गई… मैं सोने जा रही हूं.’’

‘‘माफी तो मांग ली अब क्या करूं? बौस ने अचानक मीटिंग रख दी तो क्या करता? मुझे भी बुरा लग रहा है… खाना खा लो तूलिका भूखी मत सो,’’ रवि बोले.

कितना कहा पर मैं नहीं मानी और भूखी सो गई. मैं रात भर रोतीसिसकती रही कि किस बेवकूफ से मेरी शादी हो गई… शादी के 6 साल पूरे हो गए पर आज तक कभी मुझे मनचाहा उपहार नहीं दिया. मैं ने सुबह से कितना इंतजार किया, कम से कम होटल में तो खिला ही सकते थे.

आज तक कौन सी बड़ी खुशी दी है मुझे… हर छोटी से छोटी चीज के लिए

तरसती आई हूं. एक मेरी बहन का पति है, जो उसे कितना प्यार करता है. भूख से नींद भी नहीं आ रही थी. सोचा कुछ खा लूं पर मेरा गुस्सा भूख से ज्यादा तेज था. एक गिलास ठंडा पानी पी कर मैं सोने की कोशिश करने लगी पर नींद नहीं आ रही थी. क्या कभी रवि को महसूस नहीं होता कि मैं क्या चाहती हूं? फिर पता नहीं कब मुझे नींद आ गई.

‘‘गुड मौर्निंग मेरी जान…’’ कह रवि ने मुझे पीछे से पकड़ लिया जैसा हमेशा करते हैं. आज रवि की पकड़ से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे बदन पर बिच्छू रेंग रहा हो.

मैं ने उन्हें धक्का देते हुए कहा, ‘‘झूठे प्यार का दिखावा करना बंद कीजिए… इतने भी सीधे और सरल नहीं हैं आप जितना दिखाने की कोशिश करते हैं.’’

‘‘अब जैसा भी हूं तुम्हारा ही हूं. हां, मुझे पता है कल मैं ने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की पर मैं क्या करूं तूलिका नौकरी भी तो जरूरी है. अचानक मीटिंग रख दी बौस ने. अब बौस से जवाबतलब तो नहीं कर सकता न… इसी नौकरी पर तो रोजीरोटी चलती है हमारी,’’ रवि बोले.

‘‘कौन सा महीने का लाख रुपए देती है यह नौकरी? आज तक कौन सी बड़ी खुशी दी है आप ने मुझे? बस दो वक्त की रोटी, तन पर कपड़ा और यह घर. इस के अलावा कुछ भी तो नहीं दिया है,’’ मैं ने गुस्से में कहा.

‘‘बस इन्हीं 3 चीजों की तो जरूरत है हम सब की जिंदगी में… किसीकिसी को तो ये भी नहीं मिलती हैं तूलिका… जो भी हमारे पास है उसी में खुश रहना सीखो. अब छोड़ो यह गुस्सा.. गुस्से में तुम अच्छी नहीं लगती हो.

चलो आज कहीं बाहर घूमने चलेंगे और बाहर ही खाना खाएंगे… तुम कहो तो फिल्म भी देखेंगे… आज छुट्टी का दिन है… यार अब छोड़ो यह गुस्सा.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है दोबारा बोलने की कोशिश भी मत कीजिएगा. पछता रही हूं आप से शादी कर के… पता नहीं क्या देखा था मेरे पापा ने आप में… कितना कुछ ले कर आई थी मैं… सभी कुछ आप के परिवार वालों ने रख लिया. कितने अरमान संजोए आई थी ससुराल में… सब चकनाचूर हो गया. अब मुझे जो भी जरूरत होगी अपने पापा से मांगूंगी. आप से उम्मीद करना ही बेकार है. आप जैसे आदमी को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए,’’ जो मन में आया वह बोले जा रही थी.

‘‘मैं ने पहले ही तुम्हारे पापा से कहा था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरे जीवन का एक संकल्प है, उद्देश्य है और बिना संकल्प जीवन और मृत्यु का भेद समाप्त हो जाता है. क्या बेईमानी से करोड़ों कमा कर या किसी से पैसे मांग कर मैं तुम्हें ज्यादा सुखी रख सकता हूं?

मैं अपने परिवार को अपने बलबूते पर रखना चाहता हूं. मुझे किसी का 1 रुपया भी नहीं लेना है. अपने पापा का भी नहीं. अब तुम्हारे पापा ने दिए औैर मेरे पापा ने लिए तो इस में मैं क्या कर सकता हूं? अभी हमारे घर का लोन कट रहा है इसलिए पैसे की थोड़ी किल्लत है. फिर सब ठीक हो जाएगा तूलिका… मुझे भरोसा है अपनेआप पर कि मैं सारी खुशियां दूंगा तुम्हें एक दिन,’’ रवि बोले.

रवि ने मुझे बहुत मनाने की कोशिश की पर मैं अपने गुस्से पर कायम थी. रविवार की छुट्टी ऐसे ही बीत गई. शाम को निया बाहर घूमने की जिद्द करने लगी. रवि उसे घुमाने ले गए. मुझे भी कितनी बार कहा रवि ने पर मैं नहीं गई.

तभी भाभी का फोन आया. ‘‘भाभी प्रणाम.’’ ‘‘तूलिका, कैसी हैं? आप दोनों को परेशान तो नहीं किया न?’’

‘‘अरे नहीं भाभी.. कहिए न.’’

‘‘कनिका अपने पति के साथ आई हुई है तो पापा चाह रहे थे कि अगर कुछ दिनों के लिए आप सब भी आ जाते तो अच्छा लगता,’’ भाभी ने मुझ से कहा.

‘‘हां भाभी, देखती हूं. वैसे भी आप सब से मिलने का बहुत मन कर रहा है,’’ कह फोन काट कर मैं सोचने लगी कि कितनी खुशहाल है कनिका… कुछ दिन पहले ही सिंगापुर घूम कर आई है अपने पति के साथ और एक मैं…

मैं ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए पापा के पास चली ही जाऊं. कम से कम कुछ दिनों के लिए इस घर के काम से दूर तो रहूंगी और फिर मुझे अपने पति को सबक भी सिखाना था, जो सिर्फ मुझे इस्तेमाल करना जानते हैं.

‘‘मां,’’ कह कर निया मुझ से लिपट गई. कहांकहां घूमी, क्याक्या खाया, सब बताया.

फिर बोली, ‘‘पापा आप के लिए भी आइसक्रीम लाए हैं.’’

‘‘मुझे नहीं खानी है… जाओ बोल दो अपने पापा को कि वही खा लें और यह भी बोलना कि तुम और मैं नाना के घर जाएंगे… टिकट करवा दें.’’

‘‘पापा, हमें नाना के घर जाना है. मां ने बोला है कि टिकट करवा दो,’’ निया बोली.

‘‘आप की मां आप के पापा से गुस्सा हैं, इसलिए पापा को छोड़ कर जाना चाहती हैं. ठीक है मैं टिकट करवा दूंगा,’’ रवि मेरी तरफ देखते हुए बोले.

रवि जब मुझे और निया को ट्रेन में बैठा कर अपना हाथ हिलाने लगे और ट्रेन भी अपनी गति पकड़ने लगी, तो निया पापा पापा कह कर चिल्लाने लगी. रवि का चेहरा उदास हो गया.

वे मुझे ही देखे जा रहे थे. तभी लगा कि आवेग में आ कर कहीं गलती तो नहीं कर रही हूं मायके जाने की? पर ट्रेन की रफ्तार तेज हो चुकी थी. पूरा रास्ता यही सोचती रही कि इतना नहीं बोलना चाहिए था मुझे… सुबह ही हम पटना पहुंच गए.

सब से मिल कर अच्छा लगा. पापा तो बहुत खुश हुए. सब रवि के बारे में पूछने लगे तो मैं ने कह दिया कि उन्हें काम था, इसलिए नहीं आ पाए.’’

यहां आए 4-5 दिन हो गए. रवि रोज सुबह शाम फोन करते. एक रोज कनिका ने पूछ ही लिया कि रवि ने सालगिरह पर मुझे क्या उपहार दिया तो मैं ने हंस कर टाल दिया.

कनिका और परेश हमेशा यही जताने की कोशिश करते कि दोनों में बहुत प्यार है. पापा ने ही दोनों के टिकट करवाए थे, सिंगापुर जाने के लिए. पापा ने रवि से भी पूछा था कि कहीं घूमने जाना हो तो टिकट करवा दूं पर मेरे पति तो राजा हरीशचंद हैं, उन्होंने मना कर दिया.

एक रात पापा और भाभी भैया किसी की शादी में गए थे. निया और मैं कमरे में टैलीविजन देख रहे थे.

‘‘दीदी, मैं ने खाना बना दिया है… मैं अपने घर जा रही हूं,’’ कामवाली कह कर चली गई.

थोड़ी देर बाद निया के खाने का वक्त हो गया. निया सो न जाए यह सोच कर मैं किचन मैं खाना लेने जाने लगी कि तभी कनिका के कमरे से हंसने की और अजीब सी आवाजें आने लगीं.

ये कनिका भी न… कम से कम कमरे का दरवाजा तो लगा लेती. मैं ने सोचा परेश के साथ अभी उसे समय मिला. मैं बुदबुदाई पर जैसे ही मैं किचन से खाना ले कर निकली तो मैं ने देखा कि कनिका तो बाहर से आ रही है.

‘‘कनिका तुम? तो तुम्हारे कमरे में कौन है? तुम कहीं बाहर गई थीं?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां दीदी, मैं पड़ोस की स्वाति भाभी के घर गई थी. कब से बुला रही थीं… देखो न कितनी देर तक बैठा लिया.’’

‘‘कनिका, निया के लिए खाना ले कर मेरे कमरे में आओ न जरा कुछ बातें करनी हैं तुम से,’’ मैं ने हड़बड़ाते हुए कनिका के हाथ में खाने की प्लेट थामते हुए कहा. मुझे लगा कहीं कनिका कुछ ऐसावैसा देख न ले, पर कौन है कमरे में? जैसे ही मैं पलटी देख कर दंग रह गई. सोना अपने ब्लाउज का बटन लगाते हुए कनिका के कमरे से निकल रही थी. उस के  बाल औैर कपड़े अस्तव्यस्त थे. मुझे देखते ही सकपका गई और भाग गई.

परेश का शारीरिक संबंध एक नौकरानी के साथ… छि:…

‘‘ दीदी, निया का खाना ले आई… कुछ बातें करनी थीं आप को मुझ से?’’

उफ, दिमाग से निकल गया कि क्या बातें करनी थीं. सुबह कर लूंगी… अभी तू जा कर आराम कर.’’

‘‘ठीक है दीदी.’’ उफ, क्या समझा था मैं ने परेश को और वह क्या निकला… अब तो परेश से घिन्न आने लगी है… और यह कनिका अपने पति की बड़ाई करते नहीं थकती है.

रवि तो मेरी खुशी में ही अपनी खुशी देखते हैं और मैं ने कितना कुछ सुना दिया उन्हें. आज तक कभी उन्होंने पराई औरत की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा… मुझे रवि की याद सताने लगी. मन हुआ कि अभी फोन लगा कर बात कर लूं.

सुबह जब रवि का फोन नहीं आया तो मैं ने ही फोन लगाया पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. बारबार फोन लगा रही थी पर वे नहीं उठा रहे थे. मेरा मन बहुत बैचेन होने लगा. अब मुझे चिंता भी होने लगी, इसलिए मैं ने उन के औफिस में फोन किया तो रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि  रवि आज औफिस नहीं आए और कल भी जल्दी चले गए थे. उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी.

यह सुन कर मुझे और चिंता होने लगी.

‘‘पापा, रवि की तबीयत ठीक नहीं है. अभी औफिस से पता चला, इसलिए मैं कल की गाड़ी से चली जाऊंगी,’’ मैं ने पापा से कहा.

‘‘कोई चिंता की बात तो नहीं है न? मैं हवाईजहाज की टिकट करवा देता हूं,’’ पापा ने मुझ से कहा.

मैं ने सोचा कि जो बात मेरे पति को नहीं पसंद वह मैं नहीं करूंगी. अत: बोली, ‘‘नहीं पापा मैं ट्रेन से चली जाऊंगी. आप चिंता न करें. वैसे भी पटना से दिल्ली ज्यादा दूर नहीं है.’’

रास्ते भर मैं परेशान रही कि क्या हुआ होगा. ऐसा लग रहा था कि उड़ कर अपने घर पहुंच जाऊं. करीब 7 बजे सुबह हम अपने घर पहुंच गए. मैं बारबार दरवाजा खटखटा रही थी पर रवि दरवाजा नहीं खोल रहे थे. फिर मैं ने घर की दूसरी चाबी से दरवाजा खोला. अंदर गई तो देखा रवि बेसुध सोए थे. उन का बदन बुखार से तप रहा था. मैं ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने रवि को इंजैक्शन दिया. धीरेधीरे उन का बुखार उतरने लगा.

जब उन की आंखें खुलीं तो चौंक कर बोले, ‘‘अरे तुम. मैं ने तुम्हें परेशान नहीं करना चाहा इसलिए बताया नहीं. माफ कर दो कि मायके से जल्दी आना पड़ा,’’ कहते हुए रवि रो पड़ा.

‘‘माफ आप मुझे कर दीजिए. मैं ही गलत थीं,’’ मेरी आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. फिर सोचने लगी कि मैं अपने अरमान उन पर लादती रही. कभी रवि के बारे में नहीं सोचा. कितने सौम्य, शालीन और सुव्यवस्थित किस्म के इनसान हैं मेरे पति. कितना प्यार और समर्पण दिया रवि ने मुझे पर मैं ही अपने पति को पहचान नहीं पाई.

‘‘अब कुछ मत सोचो तूलिका जो हुआ उसे भूल जाओ… हम दोनों एक हैं और कभी अलग नहीं होंगे, यह वादा रहा.’’

मैं ने भी हां में अपना सिर हिला दिया. सच में हम दोनों एकदूजे के वास्ते हैं.

Hindi Story : फूलमती – अपनी मां के सपने को जीती एक बेटी

Hindi Story : नाम से ही कल्पना की जा सकती है कि फूलों की तरह नाजुक सुंदर सी कोई लड़की हो सकती है. नीलम ने उसे पहली बार देखा तो मन ही मन सोचती रह गई कि क्या सोच कर मांबाप ने इस का नाम फूलमती रखा है.

फलसब्जियों के बड़े बाजार में बैठती है फूलमती की मां भूरी. तीखे नैननक्श के साथ जबान भी धारदार है. और क्यों ना हो, आखिर मर्दों के वर्चस्व वाले इस बाजार में भूरी को भी तो अपनी रोटी कमानी है.

आंखों के भूरे रंग की वजह से शायद इस औरत का नाम भूरी रखा गया होगा, अकसर नीलम सोचती. आजकल की लड़कियां और औरतें तो इस रंग के लिए आंखों पर लैंस लगाए फिरती हैं, पर भूरी की तेज तीखी आंखें बेमिसाल हैं. 10 ग्राहकों को एक समय पर सब्जी तौल कर देती है. मजाल है कि किसी का कोई हिसाब चूक जाए या सब्जी गलत चली जाए.

पिछले तकरीबन 7-8 सालों से नीलम उसी से सब्जी खरीदती है. एक तो नीलम का स्कूल इस बाजार के बहुत ही पास है और दूसरा कहीं ना कहीं इस सब्जी वाली भूरी के व्यक्तित्व से प्रभावित थी वो.

छात्राओं के इस एकमात्र स्कूल की वरिष्ठ शिक्षिका है नीलम. हिंदी भाषा के साथ कुछ व्यवहार एवं संस्कार के पाठ भी पढ़ा दिया करती है. हाईस्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां उम्र की उस दहलीज पर खड़ी होती हैं, जहां सारी दुनिया उन्हें अपनी दुश्मन दिखाई देती है. किसी की रोकटोक किशोर मन बरदाश्त नहीं कर पाता. समुद्री ज्वार की तरह संवेगों का उफान रहता है, जो सबकुछ अपने में समेट लेने को लालायित होता है. बधंन में बंध कर रहना, इन तेज लहरों को नापसंद होता है.

नीलम एक परिपक्व साथी की तरह अपनी छात्राओं से व्यवहार करती थी. उस के कड़क नियमों को भी छात्राएं आत्मसात कर लिया करतीं.

भूरी से जब इस सब्जी बाजार में जानपहचान बनी, तब फूलमती सिर्फ 7 साल की थी. अपनी मां के चारों ओर खेलती रहती, कभी चिपक कर बैठ जाती.

‘‘क्या ये तुम्हारी बेटी है?’’ ना जाने क्यों पूछ लिया था नीलम ने.

‘‘हां, मैडमजी. ऐसे क्यों पूछ रही हो?’’ सब्जी झोले में डालती हुई भूरी मानो चिढ़ सी गई.

‘‘नहीं, बस ऐसे ही,’’ झेंपते हुए नीलम ने बात टाल दी, पर मन स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था कि इतनी सुंदर मां की बेटी ऐसी कैसी है? 7 साल में 10-12 की लगने लगी थी, बेतरतीबी से बहती नाक, बालों के जटाजूट और उस की चाल. अजीब सा चलती थी मानो धरती पर अहसान कर रही हो. पूरा भार एक पैर पर फिर आराम से दूसरा उठाती.
कभीकभी नीलम को खुद की सोच पर शर्म आ जाती कि वो एक छोटी सी बच्ची को अपने पैमानों पर क्यों कस रही है?

हर एकदो दिन की आड़ में नीलम सब्जीफल लेने जाती और अब समय के साथसाथ भूरी और फूलमती भी उस से खुलने लगे थे.

‘‘दिनभर साथ में लिए बैठती हो लड़की को, स्कूल क्यों नहीं भेजती?’’ एक दिन नीलम ने भूरी से पूछा था.

‘‘भेजी थी मैडमजी, पर इस का शरीर देखा ना आप ने, बच्चे खूब हंसते हैं और मजाक भी उड़ाते हैं. सब से बड़ी, ऊंची पूरी दिखती है ना, जानवरों का नाम ले कर बुलाते हैं इसे,’’ एक मां की आत्मा का दुख नीलम के हृदय को व्यथित कर गया.

‘‘तो क्या इसे अनपढ़ बना कर रखोगी?’’ नीलम में समाई शिक्षिका जाग गई.

‘‘नहीं मैडम, घर पर पढ़ाने के लिए एक लड़की आती है. कालेज में पढ़ने वाली है शोभा, वही सुबह और रात को इसे पढ़ा देती है,’’ एक लंबी सांस भर कर भूरी बोली, ‘‘पढ़ेगीलिखेगी, तभी तो कुछ कामधंधा संभाल सकेगी ये.’’

‘‘मैं सब लिखती हूं, नाम, मम्मी का नाम, घर का पता, सब सब्जी का नाम…’’ न जाने क्या बताती चली गई थी फूलमती.

‘‘गणित और हिसाबकिताब बिलकुल नहीं आता इस को,’’ भूरी ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं तो आती हूं सब्जी लेने, थोड़ाबहुत सिखा दूंगी,’’ कह कर नीलम चली गई थी.

अगले दिन नीलम ने पहाड़े वाली पुस्तिका, स्लेटकलम सब फूलमती को दिया और दो के पहाड़े से गणित की शुरुआत हुई. लिखलिख के, रट कर वो तैयार रहती थी कि मैडमजी को सही बताएगी तो चौकलेट मिलेगी.

समाजसेवा करने के लिए सिर्फ दिल की जरूरत होती है, बाकी तो अपनेआप जुटता चला जाता है. नीलम की मेहनत रंग लाने लगी थी और फूलमती अब छोटेछोटे गुणाभाग, जोड़घटाना अच्छी तरह सीख गई थी.

भूरी ने भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी, सब्जियों के अलावा अपनी ओर से कोई भी मौसमी फल, नीलम के बच्चों के लिए जरूर थैली में भर देती थी.

गरीब थी, परंतु खुद्दार भी. चाहती थी कि जो मैडमजी उस की बेटी के लिए इतना समय देती है, उस के बच्चों के लिए वह थोड़ा तो कुछ दे सके. नीलम ने भी कभी मना नहीं किया. नीलम भी किसी को अहसान के बोझ तले दबा हुआ देखना पसंद नहीं करती थी.

पिछले 1-2 साल से फूलमती में अंतर आने लगा था. अब वह अपने बालों को संवारनेसजाने लगी थी, हाथपैरों को साफ रखती थी. और हां, नाक भी नहीं बहती थी. हाथ में रूमाल रख कर वह पढ़ती थी.

भूरी के साथसाथ नीलम ने भी अनुभव किया कि ग्राहकों की संख्या बढ़ गई है और लोग एक चीज लेने के लिए ज्यादा समय खड़े रहते थे.

‘‘अब फूलमती बड़ी हो रही है भूरी, क्या इसे साथ में रोज लाना जरूरी है?’’ नीलम ने एक दिन पूछा था.

‘‘कहां छोडूं मैडमजी इस को, घर पर ताला मार कर आती हूं. मैं इसे कैसे अकेले छोडूं?’’ मां की आखों में चिंता तैर रही थी.

‘‘जिंदगीभर आंचल से बांध कर तो नहीं रख सकती तुम. खदु सीखने दो. तुम भी तो अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ ही रही हो ना,’’ नीलम ने समझाया.

बोलते समय नीलम का दिल अपनी बेटी की ओर दौड़ गया, जो फर्स्ट ईयर इंजीनियरिंग के लिए होस्टल में रह रही थी.

‘‘हां मैडमजी, इस की उम्र से बड़े शरीर और नासमझी के कारण ही मैं परेशान हो जाती हूं. मैं ने भी आगे इसे काम सिखाने की सोची है. मेरी मदद करते हुए इस बाजार को समझने लगेगी,’’ भूरी की आंखों में उत्साह का रंग था.

शरीर से बड़ी फूलमती दिल से बिलकुल बच्ची थी. किसी ग्राहक का थैला छुपा देती, किसी के पैसे देते समय हाथ नचाती. भूरी लगातार उसे दुनियादारी और ऊंचनीच समझाया करती. उसे स्कर्ट ठीक पहनने, कुरती और शर्ट की बटनें ठीक से लगाना भी सिखाना पड़ रहा था. धीरेधीरे फूलमती का मन सब्जियों के इस लेनदेन में रमने लगा.

एक फूल के खिलने के पहले भौरों का गुंजार सुनाई देता है, बस ग्राहकों की नजरों से वही अहसास भूरी को होने लगा था.

13-14 साल की, दोहरे कदकाठी की फूलमती का आकर्षण सब को भूरी के सब्जी के ठीहे पर खींच लाता. कभीकभी ग्राहकों के दोहरे अर्थ वाली बातों से तिलमिला कर भूरी भिड़ जाती थी. कितना कठिन होता है, पुरुषों के वर्चस्व वाली जगहों पर किसी स्त्री का निबाह होना और अपनी अगली पीढ़ी को भी तैयार करना.

‘‘फूलमती कोई दूसरा काम कर लेगी भूरी. जरूरी तो नहीं कि सब्जी ही बेचे,’’ नीलम ने सलाह देते हुए कहा.

‘‘स्कूल से तो पढ़ी नहीं है ये मैडमजी. काम कौन देगा इस को? कुछ अपने बूते लिखनापढ़ना जान गई है बस. किसी के घर के अंदर काम करने से अच्छा है कि खुले बाजार में बैठ कर सब्जियों का धंधा करे और फिर मैं भी जीते तक साथ दे सकती हूं,’’ बेटी के भविष्य को संजो रही थी भूरी.

हर आर्थिक स्थिति के मातापिता अपने बच्चों के सुरक्षित और सुंदर भविष्य की चाहत लिए जिंदगी बिता देते हैं.

खुद नीलम स्कूल और घर दोनों संभालती है, अपने दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए उस ने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम किया है.

पिछले कुछ दिनों से तबियत ठीक न होने के कारण नीलम ने स्कूल से छुट्टी ले ली थी. 8-10 दिन बाद स्कूल से लौटते हुए सब्जी मंडी जाने की हिम्मत नहीं हुई उस की, और वह सीधे घर आने लगी.

बस स्टाप के सामने ही भूरी मिल गई और भूरी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी.’’

‘‘अरे, तुम यहां,’’ भूरी को देख कर चौंक गई नीलम.

‘‘आप कैसी हो मैडमजी? 8-10 दिनों से कोई खबर नहीं. मैं तो सोच रही थी कि आजकल में स्कूल जा कर पता करूं,’’ एक ही सांस में बोल गई भूरी. उस का स्नेह उस की आंखों की नमी से छलक रहा था. नीलम का हृदय भीग गया. शरद पूर्णिमा के चंद्रमा से झरते अमृत की तरह, संध्या समय तुलसी चौरे पर जलते दीप की तरह और सागर की खिलखिलाती लहरों की तरह पवित्र भाव था उस की भूरी आंखों में. एक औरत का दूसरी के प्रति निश्छल प्रेम, यही शायद एक अटूट बधंन बन गया था.

‘‘तबियत ठीक नहीं थी मेरी, बुखार से थकान भी लग गई, इसलिए आज स्कूल तो आई, पर सब्जियां लेने नहीं आई,’’ नीलम ने बताया.

‘‘तुम इस समय अपने ठीहे पर नहीं हो, आज बंद रखा है क्या?’’ आश्चर्य से नीलम ने पूछा.

‘‘नहीं मैडमजी, आज फूलमती संभाल रही है और मैं बिजली बिल भरने गई थी,’’ भूरी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘फूलमती को अकेले छोड़ दिया तुम ने,’’ अगला आश्चर्यभरा प्रश्न था नीलम का.

‘‘आओ ना मैडमजी, अपनी शिष्या को देखो कि कैसा काम संभाल रही है. और, नीलम सचमुच भूरी के साथ खींची हुई सब्जी मंडी की ओर चल पड़ी. थोड़ी दूर से दोनों औरतें, एक सधी हुई लड़की को निहारने लगे, जो ग्राहकों से बात करती हुई सब्जी तौल कर, हिसाब से पैसे ले रही थी.

‘‘8-10 दिनों में ऐसा कैसे हो गया भूरी,’’ आश्चर्य पर आश्चर्य हुआ जा रहा था नीलम को.

‘‘जिस दिन आप सब्जी ले कर गईं, उसी शाम को एक आदमी आया. उस ने करीब 500 रुपए की सब्जियां खरीद लीं और बोला, ‘थैली नहीं है. कार में रखवा दो.’ 500 का नोट दे वह दूर खड़ी कार की ओर चला गया.’’

भूरी ने लंबी सांस भर कर अपनी बात फिर शुरू की, ‘‘शाम को ग्राहकों की भीड़ थी, तो मैं ने सब्जियां टोकरी में भर कर फूलमती को उस कार वाले के पीछे भेज दिया.’’

‘‘मैं ने ग्राहक को सब्जी तौल कर दी और सहसा चीखने की आवाज कार की तरफ से आई.’’

भूरी ने अपने स्वर को नियंत्रित करते हुए कहा, ‘‘मैं ठीहा छोड़ कर कार की ओर भागी. आगे देखा तो कार वाला जमीन पर गिरा था और फूलमती उसे लातों से मार रही थी. फूलमती का चेहरा लाल था. वह जोरजोर से बोल रही थी, ‘‘कार में सब्जी रख. बोल कर हाथ लगाया मेरे को, गंदी बात की मेरे से. मार ही दूंगी तेरे को.’’

भूरी की बात सुन कर नीलम की आखें फैल गईं और होंठ भी.

‘‘बस मैडमजी, मेरी तपस्या सफल हो गई. फूलमती को अपना अच्छाबुरा समझ आ गया और उस दिन का उस का वो रूप पूरे बाजार में चर्चा का विषय था.

“कार वाले को मारपीट कर छोड़ दिया सब ने. मैं ही पुलिस में ना जाने की बात रखी. उस दिन से ठीहे पर फूलमती मेरी मदद भी करती है और बीचबीच में अकेले भी काम देखती है.’’

एक मां अपनी बच्ची के सचेतन व्यवहार से सुकून महसूस कर रही थी. नीलम ने भूरी के कंधे पर हाथ रख दिया और दोनों फूलमती की ओर बढ़ चले.

Hindi Kahani : हिम्मती गुलाबो – कैसे उन मनचलों लड़कों को गुलाबो ने सबक सिखाया

Hindi Kahani : गांव में रह कर राजेंद्र खेतीबारी का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी शैलजा, बेटा रोहित व बेटी गुलाबो थी. रोहित गांव के ही प्राइमरी स्कूल में चौथी जमात में पढ़ता था, जबकि उस की बहन गुलाबो इंटरमीडिएट स्कूल में 10वीं जमात की छात्रा थी. परिवार का गुजारा ठीक ढंग से हो जाता था, इसलिए राजेंद्र की इच्छा थी कि उस के दोनों बच्चे अच्छी तरह से पढ़लिख जाएं. गुलाबो अपने नाम के मुताबिक सुंदर व चंचल थी. ऐसा लगता था कि वह संगमरमर की तराशी हुई कोई जीतीजागती मूर्ति हो. वह जब भी साइकिल से स्कूल आतीजाती थी, तो गांव के आवारा, मनचले लड़के उसे देख कर फब्तियां कसते और बेहूदा इशारे करते थे.

गुलाबो इन बातों की जरा भी परवाह नहीं करती थी. वह न केवल हसीन थी, बल्कि पढ़ने में भी हमेशा अव्वल रहती थी. वह स्कूल की सभी सांस्कृतिक व खेलकूद प्रतियोगिताओं में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. वह स्कूल की कबड्डी व जूडोकराटे टीम की भी कप्तान थी. एक दिन जब गुलाबो स्कूल से घर लौट रही थी, तो गांव के जमींदार प्रेमलाल के दबंग बेटे राजू ने जानबूझ कर उस की साइकिल को टक्कर मार दी और उसे नीचे गिरा दिया, फिर उसे खुद ही उठाते हुए बोलने लगा, ‘‘जानेमन, न जाने कब से मैं तुम्हें पकड़ने की…’’ इतना कह कर राजू ने उस के उभारों को छू लिया था.

उस समय राजू की इस हरकत का गुलाबो ने कोई जवाब नहीं दिया था. राजू ने उस की कलाई पकड़ते हुए उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रखते हुए कहा, ‘‘यह मेरी ओर से हमारे पहले मिलन का उपहार है.’’ गुलाबो घर पहुंच गई. उस ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया. उसे पता था कि अगर उस ने इस घटना के बारे में किसी को बताया, तो घर में कुहराम मच जाएगा और फिर उस की मां उस की पढ़ाईलिखाई छुड़वा कर उसे घर पर बिठा देंगी. गुलाबो पूरी रात सो नहीं पाई थी. उसे जमींदार के लड़के पर रहरह कर गुस्सा आ रहा था कि कैसे वह उस के शरीर को छू गया था और उसे सौ रुपए का नोट देते हुए बदतमीजी पर उतर आया था, मानो वह कोई देह धंधेवाली हो.

अब गुलाबो ने मन ही मन यह सोच लिया था कि राजू से हर हाल में बदला लेना है. सुबह जब गुलाबो उठी, तो उस की सुर्ख लाल आंखें देख उस के पिता राजेंद्र कह उठे, ‘‘अरे बेटी, क्या तुम रात को सोई नहीं? देखो कैसी लाललाल आंखें हो रही हैं तुम्हारी.’’

‘‘नहीं पिताजी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो स्कूल के एक टैस्ट की तैयारी कर रही थी, इसलिए रात को देर से सोई थी.’’ स्कूल पहुंचते ही गुलाबो ने खाली समय में अपनी मैडम सरला को चुपके से कल वाली घटना बताई और उन को अपना मकसद बताया कि वह राजू को सबक सिखाना चाहती है कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं.

मैडम सरला ने कहा, ‘‘गुलाबो, तू डर मत. मैं तुम्हारे इस इरादे से बहुत खुश हूं. क्या राजू जैसों ने लड़कियों को अपनी हवस मिटाने का जरीया समझ रखा है कि जब दिल आए, तब अपना दिल बहला लो?’’ अगले दिन रविवार था. गुलाबो ने अपनी मां को बताया था कि वह अपनी मैडम सरला के साथ सुबह शहर जा रही है और शाम तक गांव लौट आएगी. शहर पहुंचते ही मैडम सरला गुलाबो को अपने भाई सौरभ के पास ले गईं. वह पुलिस महकमे में हैडक्लर्क था. उस ने गुलाबो से सारी घटना की जानकारी ली और उस से कहा कि एक दिन वह राजू को खुद बुलाए, फिर उसी दिन उसे फोन कर देना. उस के बाद गांव का कोई भी मनचला किसी लड़की की तरफ आंख भी नहीं उठा पाएगा.

इधर राजू गुलाबो के ही सपनों में खोया रहता था. जब 5-6 दिनों तक उस ने गुलाबो की ओर से उस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं देखी, तो उस की बांछें खिल गईं. उसे लगा कि चिडि़या शिकारी के जाल में फंस गई है. अगले दिन गुलाबो स्कूल से घर लौट रही थी, तो उस ने राजू को अपना पीछा करते हुए पाया. जब राजू की साइकिल उस के करीब आई, तो वह कह उठी, ‘‘अरे राजू, कैसे हो?’’

राजू यह बात सुन कर खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘गुलाबो, मैं ठीक हूं. हां, तू बता कि तू ने उस दिन के बारे में क्या सोचा?’’

‘‘राजू, अपनों से ऐसी बातें नहीं पूछा करते हैं. तुम परसों 4 बजे पार्क में मुझे मिलना. मैं तुम से अपने मन की बहुत सारी बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘सच?’’ राजू खुश हो कर बोल उठा था, ‘‘गुलाबो, चल अब इसी बात पर तू एक प्यारी सी पप्पी दे दे.’’

‘‘नहीं राजू, आज नहीं, क्योंकि पिताजी आज स्कूल की मीटिंग में गए हैं. वे आते ही होंगे. फिर जहां तुम ने इतना इंतजार किया है, वहां चंद घंटे और सही…’’ गुलाबो बनावटी गुस्सा जताते हुए बोल उठी. घर पहुंच कर उस ने पुलिस वाले को सारी बात बता दी थी. राजू पार्क के इर्दगिर्द घूम रहा था. आखिर गुलाबो ने ही तो उसे यहां बुलाया था. उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. जैसे ही गुलाबो पार्क के पास पहुंची, राजू एक शिकारी की तरह उस पर झपट पड़ा. पर गुलाबो ने भी अपनी चप्पल उतार कर उस मजनू की पिटाई करते हुए कहा, ‘‘तेरे घर में मांबहन नहीं है. सौ रुपए दे कर तू गांव की बहूबेटियों की इज्जत से खेलना चाहता है. तू ने मुझे भी ऐसी ही समझ लिया था.’’

‘‘धोखेबाज, पहले तो तुम खुद ही मुझे बुलाती हो, फिर मुकरती हो,’’ लेकिन तभी राजू की घिग्घी बंध गई. सामने कई फोटो पत्रकार व पुलिस वालों को देख कर वह कांप उठा था.

‘‘हां, तो गुलाबो, तुम अब पूरी बात बताओ कि इस गुंडे ने तुम से कैसे गलत बरताव किया था?’’ डीएसपी राधेश्याम ने गुलाबो से पूछा. लोगों की भीड़ बढ़ गई थी. उन्होंने भी लातघूंसों से राजू की खूब पिटाई की. पुलिस वालों ने राजू को कोर्ट में पेश किया और पुलिस रिमांड ले कर उसे छठी का दूध याद दिला दिया. अगले दिन सभी अखबारों में गुलाबो की हिम्मत के ही चर्चे थे. जिला प्रशासन ने गुलाबो को न केवल 10 हजार रुपए का नकद इनाम दिया था, बल्कि उसे कालेज तक मुफ्त पढ़ाई देने की भी सिफारिश की थी. राजू के पिता की पूरे गांव में थूथू हो गई थी. उस ने अपने बेटे की जमानत करवाने में खूब हाथपैर मारे, पर उसे अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिली थी.

गांव के मनचले अब उस को देखते ही रफूचक्कर हो जाते थे. उस का कहना था कि अगर वह इन दरिंदों से डर जाती, तो आज कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहती.

Online Hindi Story : मेरा घर – क्या रुद्र को स्मिता माफ कर पाई?

Online Hindi Story : स्पीच के बाद कुछ लोगों से मिलने के उपरांत स्मिता ने जैसे ही प्लेट उठाई, पीछे से एक धीमी, चिरपरिचित आवाज आई, जिसे वह वर्षों पहले भूल चुकी थी- ‘हैलो स्मिता.’

यह सुनते ही स्मिता चौंक कर मुड़ी, तो सामने रुद्र था. वह बोला, ‘‘कैसी हो स्मिता? अब तो घर लौट आओ, प्लीज.’’

रुद्र को इतने सालों बाद अपने सामने देख स्मिता को ऐसा लगा जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. उस के जख्म फिर हरे हो गए और वह समारोह बीच में ही छोड़ वहां से निकल गई. सारे रास्ते वह विचारों में खोई रही. इतने सालों बाद रुद्र का इस प्रकार उस के समक्ष आना और घर वापस चलने को कहना, उस का मन कंपित हो उठा.

समारोह में सम्मिलित सभी गणमान्य और प्रतिष्ठित लोगों के बीच केवल एक ही नाम की चर्चा थी और वह नाम था स्मिता, जो एक बिजनैस टायकून और ‘फैशन द रिवौल्यूशन’ कंपनी की मालकिन थी. हर कोई उसे देखने और सुनने को आतुर था, क्योंकि आज का यह समारोह स्मिता को सम्मानित करने के लिए आयोजित किया गया था. आज स्मिता को बिजनैस वुमन औफ द ईयर से सम्मानित किया जाना था. सभी की निगाहें स्मिता पर ही टिकी हुई थीं.

स्मिता के सशक्त और भावपूर्ण उद्बोधन के पश्चात भोज का भी प्रावधान रखा गया था, जब रुद्र उसे मिला था.

घर पहुंचते ही वह सीधे अपने कमरे में जा, सारी बत्तियां बुझा आराम कुरसी पर बैठ कर झूलने लगी. वह रुद्र और अपने जीवन के उन पन्नों को पलटने लगी, जिन को वह अपनी जीवनरूपी किताब से हमेशा के लिए फाड़ कर फेंक देना चाहती थी, पर वह ऐसा कर न सकी, क्योंकि इस अध्याय से उसे काव्या जैसे अनमोल मोती की प्राप्ति भी हुई थी, जिस की रोशनी आज भी उस के जीवन को जगमगा रही है.

‘स्मिता, तुम अपनी यह कंपनी ‘फैशन द रिवौल्यूशन’ बंद क्यों नहीं कर देतीं? क्या जरूरत है तुम्हें अपनी यह छोटी सी कंपनी चलाने की जब मेरा खुद का इतना बड़ा बिजनैस है.’’

‘नहीं रुद्र, नहीं, यह कंपनी मेरा सपना है, इसे मैं ने अपनी कड़ी मेहनत से खड़ा किया है और फिर मैं इसे शादी के पहले से रन कर रही हूं और उस वक्त तो तुम्हें इस बात से कोई एतराज भी नहीं था, फिर आज ऐसा क्या हुआ कि तुम मुझे कंपनी बंद करने को कह रहे हो और फिर मैं घर पर बैठ कर करूंगी क्या…?’

‘क्या मतलब, करूंगी क्या? इतनी सारी औरतें घर पर बैठ कर क्या करती हैं? अपना घर संभालती हैं, पूजापाठ करती हैं, किटी पार्टी करती हैं, तुम भी वही करो,’ रुद्र ने गुस्से से कहा.

स्मिता घर पर किसी तरह का कोई झगड़ा नहीं चाहती थी, इसलिए वह शांत भाव से बोली, ‘रुद्र, मैं फैशन डिजाइनिंग में ग्रैजुएट हूं. मुझे पूजापाठ, सत्संग में कोई दिलचस्पी नहीं है और मैं जब घर बहुत अच्छी तरह से संभाल रही हूं, तो फिर मैं अपनी कंपनी क्यों बंद करूं?’

स्मिता के इतना कहते ही रुद्र का गुस्सा ज्वालमुखी की तरह फूट पड़ा और चीखते हुए कहने लगा, ‘तुम इस दुनिया की कोई पहली फैशन डिजाइनिंग में ग्रैजुएट या पढ़ीलिखी औरत नहीं हो. मां को देखो, वे अपने समय की ग्रैजुएट हैं, लेकिन उन्होंने अपना सारा जीवन इस चारदीवारी में पूजापाठ व सत्संग में गुजारा है. कभी इस तरह के प्रपंच में वे नहीं पड़ी हैं और न ही तुम्हारी तरह पापा के संग बातबात पर तर्क करती थीं. ऐसी होती है आदर्श नारी, तुम्हारी तरह बदजबान नहीं,’ कहता हुआ रुद्र चला गया.

स्मिता जड़वत सी खड़ी रही. उस की जबान पर यह बात आ कर ठहर गई कि मां ग्रैजुएट नहीं पोस्ट ग्रैजुएट हैं और वह भी संगीत विश्वविद्यालय से, लेकिन मां ने शादी के बाद गाना तो दूर वे अपने दिल के जज्बात भी कभी किसी से बयां नहीं कर पाईं, क्योंकि हमारा घर, हमारा समाज, पुरुषप्रधान है, जहां एक स्त्री को अपने मन के भावों को व्यक्त करने का कोई अधिकार नहीं. तभी मां ने स्मिता के कंधे पर धीरे से अपना हाथ रखा, तो वह मां के गले लग बिफर कर रो पड़ी.

रिश्तों में विभाजन की सीलन और गंध बढ़ती जा रही थी. रोज रुद्र कोई न कोई बहाना बना कर घर को कुरुक्षेत्र बनाने पर आमादा रहता. स्मिता घर और अपने बिखर रहे रिश्ते को समेटने का असफल प्रयास करने लगी.

अचानक कुछ समय बाद रुद्र में आ रहे परिवर्तन से स्मिता चकित थी. उसे ऐसा महसूस होने लगा कि रुद्र एकाएक उस के प्रति केयरिंग और कुछ बहुत ज्यादा ही कंसंर्ड रहने लगा है, जिस का कारण उस की समझ से परे था.

सहसा एक दिन रुद्र स्मिता को अपनी बांहों के घेरे में लेते हुए कहने लगा, ‘स्मिता, मैं चाहता हूं कि अब हमें 2 से 3 हो जाना चाहिए. अब परिवार को बढ़ाने का समय आ गया है.’

यह सुन स्मिता हैरान रह गई, अपनेआप को रुद्र से अलग करती हुई बोली, ‘रुद्र, इतनी जल्दी क्या है? शादी को अभी केवल सालभर ही तो हुआ है. अभी तो मुझे अपनी कंपनी को विस्तार देने का समय है और मुझे यह मौका भी मिल रहा है. मैं अभी

1-2 साल बच्चे के लिए तैयार नहीं हूं.’

स्मिता के इतना कहते ही रुद्र स्मिता पर बरस पड़ा. रोजरोज के क्लेश से बचने और अपना घर बचाने के लिए स्मिता ने हार मान ली. परिवार बढ़ाने के लिए वह राजी हो गई और फिर काव्या जैसी परी स्मिता की गोद में आ गई, जिस से स्मिता की जिम्मेदारी में बढ़ोतरी के साथ उस की दुनिया खुशियों से भी भर गई.

लेकिन रुद्र के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया, बल्कि अब वह बारबार काव्या और उस की देखभाल को ले कर स्मिता से झगड़ता, उसे अपनी कंपनी बंद करने को कहता, और स्वयं काव्या की जिम्मेदारी संभालने से पीछे हट जाता.

मां यदि कुछ कहतीं या स्मिता का पक्ष लेतीं तो वह मां को भी झिड़क देता. यह देख मां चुप हो जातीं. स्मिता अब समझ चुकी थी कि क्यों रुद्र को परिवार बढ़ाने की जल्दी थी. असल में वह मातृत्व की आड़ में स्मिता की प्रगति पर अंकुश लगाना चाहता था.

स्मिता घर, परिवार और बेटी काव्या के उत्तरदायित्व के साथ ही साथ बिजनैस भी बखूबी संभाल रही थी. व्यापारी वर्ग में स्मिता अपनी पहचान और एक विशेष स्थान बनाने में कामयाब होने लगी थी, जो रुद्र और उस के पुरुषत्व को नागवार गुजरने लगा और एक दिन रुद्र बेवजह अपना फ्रस्ट्रेशन, अपनी नाकामयाबी पर अपने पुरुषत्व और अहम का रंग चढ़ा स्मिता से कहने लगा, ‘अगर तुम्हें कुछ करने का इतना ही शौक है तो छोटीमोटी कोई टाइमपास 9 से 5 बजे वाली जौब क्यों नहीं कर लेतीं? क्या जरूरत है इस कंपनी को चलाने की. और सुनो, कंपनी का नाम ‘द रिवौल्यूशन’ रखने से कोई रिवौल्यूशन नहीं होने वाला, समझीं? यह मेरा घर है और यदि तुम्हें इस घर में रहना है तो मेरे अनुसार रहना होगा, वरना इस घर से निकल जाओ.’

यह सुनते ही स्मिता के सब्र का बांध टूट गया और उस ने आज रुद्र को समझाने की कोई कोशिश नहीं की. उस ने केवल इतना कहा, ‘‘यदि यह घर सिर्फ तुम्हारा है और मुझे इस घर में रहने के लिए कठपुतली की तरह तुम्हारे इशारों पर नाचना होगा तो बेहतर है कि मैं अभी इसी वक्त यह घर छोड़ दूं,’’ इतना कह कर स्मिता ने काव्या के संग उस रात घर छोड़ दिया और मां भी स्मिता के साथ हो लीं.

सारी रात स्मिता अतीत की काली स्याही में डूबी रही. दरवाजे पर हुई आहट से वह यथार्थ में लौटी.

‘‘मैडम, आप की कौफी,’’ स्मिता की मेड ने कहा.

‘‘हूं… यहां रख दो. काव्या और मां जाग गए?’’ स्मिता ने अपनी मेड से पूछा. पूरी रात जागने की वजह से स्मिता की आंखें लाल और स्वर में थोड़ा भारीपन था.

मेड ने बड़े अदब से दोनों हाथों को बांधे और सिर झुका कर जवाब दिया, ‘‘मैडम, मांजी को काफी समय हो चुका जागे. उन के स्टूडैंट्स भी आ गए हैं और मांजी संगीत की क्लास ले रही हैं, और काव्या बेबी सो रही हैं.’’

‘‘ठीक है, तुम जाओ,’’ कह कर स्मिता अपनी कौफी खत्म कर काव्या के कमरे में जा कर वहां सो रही काव्या के सिर और बालों में अपनी उंगलियां फेरती व उस के माथे को चूमती हुई बोली, ‘‘हैप्पी बर्थ डे टू माई डियर स्वीटहार्ट. आज मेरी डौल को उस के एटीन्थ बर्थ डे पर क्या चाहिए.’’

काव्या स्मिता से लिपटती हुई बोली, ‘‘मम्मा… मुझे मेरी कंप्लीट फैमिली चाहिए. मैं चाहती हूं कि पापा भी हमारे साथ रहें.’’

तभी स्मिता का फोन बजा. फोन रुद्र का था. स्मिता के फोन रिसीव करते ही रुद्र बोला, ‘‘आई एम सौरी स्मिता, मैं बहुत अकेला हो गया हूं. तुम सब प्लीज घर लौट आओ.’’

स्मिता ने सौम्य भाव से कहा, ‘‘रुद्र, मैं तुम्हें माफ कर सकती हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है कि मैं तुम्हारे घर आ कर नहीं रहूंगी, तुम्हें मेरे घर आ कर हम सब के साथ रहना होगा.’’

रुद्र खुशीखुशी मान गया और कहने लगा, ‘‘तुम सब के चले जाने के बाद ही मुझे यह एहसास हुआ कि ईंटपत्थरों से बनी इस चारदीवारी में मेरा घर नहीं है, जहां तुम सब हो, जहां मेरा पूरा परिवार रहता है, वही मेरा घर है.’’

Best Hindi Story : किराए की कोख – सुनीता क्यों अपने ही बच्चे से प्यार करने के लिए तरसती थी

Best Hindi Story : पूरे मोहल्ले में सब से खराब माली हालत महेंद्र की ही थी. इस शहर से कोसों दूर एक गांव से 2 साल पहले ही महेंद्र अपनी बीवी सुनीता और 2 बच्चों के साथ इस जगह आ कर बसा था. वह गरीबी दूर करने के लिए गांव से शहर आया था, लेकिन यहां तो उन का खानापीना भी ठीक से नहीं हो पाता था.

महेंद्र एक फैक्टरी में काम करता था और सुनीता घर पर रह कर बच्चों की देखभाल करती थी. बड़ा बेटा 5 साल से ऊपर का हो गया था, लेकिन अभी स्कूल जाना शुरू नहीं हो पाया था.

सुनीता काफी सोचती थी कि बच्चे को किसी अगलबगल के छोटे स्कूल में पढ़ने भेजने लगे, लेकिन चाह कर भी न भेज सकती थी.

जिस महल्ले में सुनीता रहती थी, उस महल्ले में सब मजदूर और कामगार लोग ही रहते थे. ठीक बगल के मकान में रहने वाली एक औरत के साथ सुनीता का उठनाबैठना था.

जब उस को सुनीता की मजबूरी पता लगी, तो उस ने सुनीता को खुद भी काम करने की सलाह दे डाली. उस ने एक घर में उस के लिए काम भी ढूंढ़ दिया.

सुनीता ने जब यह बात महेंद्र को बताई, तो वह थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन सुनीता का सोचना ठीक था, इसलिए वह कुछ कह नहीं सका.

सुनीता उस औरत द्वारा बताए गए घर में काम करने जाने लगी. वह काफी बड़ा घर था. घर में केवल 2 लोग ममता और रमन पतिपत्नी ही थे, जो किसी बड़ी कंपनी में काम करते थे.

दोनों का स्वभाव सुनीता के प्रति बहुत नरम था. ममता तो आएदिन सुनीता को तनख्वाह के अलावा भी कुछ न कुछ चीजें देती ही रहती थी.

रमन और ममता के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, लेकिन घर में एक भी बच्चा नहीं था.

रविवार के दिन ममता और रमन छुट्टी पर थे. काम खत्म कर सुनीता जाने को हुई, तो ममता ने उसे बुला कर अपने पास बिठा लिया. वह सुनीता से उस के परिवार के बारे में पूछती रही.

सुनीता को ममता की बातों में बड़ा अपनापन लगा, तो वह अचानक ही

उस से पूछ बैठी, ‘‘जीजी, आप के कोई बच्चा नहीं हुआ क्या?’’

ममता ने मुसकरा कर सुनीता की तरफ देखा और धीरे से बोली, ‘‘नहीं, लेकिन तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’

सुनीता ने ममता की आवाज को भांप लिया था. वह बोली, ‘‘बस जीजी, ऐसे ही पूछ रही थी. घर में कोई बच्चा न हो, तो अच्छा नहीं लगता न. शायद आप को ऐसा महसूस होता हो.’’

ममता की आंखें उसी पर टिक गई थीं. वह भी शायद इस बात को शिद्दत से महसूस कर रही थी.

ममता बोली, ‘‘तुम सही कहती हो सुनीता. मैं भी इस बात को ले कर चिंता में रहती हूं, लेकिन कर भी क्या सकती हूं? मैं मां नहीं बन सकती, ऐसा डाक्टर कहते हैं…’’

यह कहतेकहते ममता का गला भर्रा गया था. सुनीता भी आगे कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी थी. उस के पास शायद इस बात का कोई हल नहीं था.

ममता और रमन शादी से पहले एक ही कंपनी में काम करते थे, जहां दोनों में मुहब्बत हुई और उस के बाद दोनों ने शादी कर ली. कई साल तक दोनों ने बच्चा पैदा नहीं होने दिया, लेकिन बाद में ममता मां बनने के काबिल ही न रही. इस बात को ले कर दोनों परेशान थे.

सुनीता को ममता के घर काम करते हुए काफी दिन हो गए थे. ममता का मन जब भी होता, वह सुनीता को अपने पास बिठा कर बातें कर लेती थी. पर अब सुनीता ममता से बच्चा न होने या होने को ले कर कोई बात नहीं करती थी. दिन ऐसे ही गुजर रहे थे.

एक दिन ममता ने सुनीता को आवाज दी और उसे साथ ले कर अपने कमरे में पहुंच गई. उस ने सुनीता को अपने पास ही बिठा लिया.

सुनीता अपनी मालकिन ममता के बराबर में बैठने से हिचकती थी, लेकिन ममता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठा ही लिया.

ममता ने सुनीता का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, ‘‘सुनीता, तुम से एक काम आ पड़ा है, अगर तुम कर सको तो कहूं?’’

ममता के लिए सुनीता के दिल में बहुत इज्जत थी, भला वह उस के किसी काम के लिए क्यों मना कर देती. वह बोली, ‘‘जीजी, कैसी बात करती हो? आप कहो तो सही, न करूं तो कहना.’’

ममता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘सुनीता, डाक्टर कहता है कि मैं मां तो बन सकती हूं, लेकिन इस के लिए मुझे किसी दूसरी औरत का सहारा लेना पड़ेगा… अगर तुम चाहो, तो इस काम में मेरी मदद कर सकती हो.’’

ममता की बात सुन कर सुनीता का मुंह खुला का खुला रह गया. उस को यकीन न होता था कि ममता उस से इतने बड़े व्यभिचार के बारे में कह सकती है.

सुनीता साफ मना करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं बेशक गरीब हूं, लेकिन अपने पति के होते किसी मर्द की परछाईं तक को न छुऊंगी. आप इस काम के लिए किसी और को देख लो.’’

ममता हैरत से बोली, ‘‘अरे बावली, तुम से पराया मर्द छूने को कौन कहता है… यह सब वैसा नहीं है, जैसा तुम सोच रही हो. इस में सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा तुम्हें कोई नहीं छुएगा. यह समझो कि तुम सिर्फ अपनी कोख में बच्चे को पालोगी, जबकि सबकुछ मैं और मेरे पति करेंगे.’’

सुनीता की समझ में कुछ न आया था. सोचा कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आदमी औरत को छुए भी नहीं और वह मां बन जाए.

सुनीता को हैरान देख कर ममता बोल पड़ी, ‘‘क्या सोच रही हो सुनीता? तुम चाहो तो मैं सीधे डाक्टर से भी बात करा सकती हूं. जब तुम पूरी तरह संतुष्ट हो जाओ, तब ही तैयार होना.’’

सुनीता हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘जीजी, मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूं… अगर मैं तैयार हो भी जाऊं, तो मेरे पति इस बात के लिए नहीं मानेंगे.’’

ममता हार नहीं मानना चाहती थी. आखिर उस के मन में न जाने कब से मां बनने की चाहत पल रही थी. वह बोली, ‘‘तुम इस बात की चिंता बिलकुल मत करो. मैं खुद घर आ कर तुम्हारे पति से बात करूंगी और इस काम के लिए तुम्हें इतना पैसा दूंगी कि तुम 2 साल भी काम करोगी, तब भी कमा नहीं पाओगी.’’

सुनीता यह सब तो नहीं चाहती थी, लेकिन ममता से मना करने का मन भी नहीं हो रहा था.

काम से लौटने के बाद सुनीता ने अपने पति से सारी बात कह दी. महेंद्र इस बात को सिरे से खारिज करता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं है इन लोगों की बातों में आने की. कल से काम पर भी मत जाना ऐसे लोगों के यहां. ये अमीर लोग होते ही ऐसे हैं.

‘‘मैं तो पहले ही तुम्हें मना करने वाला था, लेकिन तुम ने जिद की तो कुछ न कह सका.’’

सुनीता को ऐसा नहीं लगता था कि ममता दूसरे अमीर लोगों की तरह है. वह उस के स्वभाव को पहले भी परख चुकी थी. वह बोली, ‘‘नहीं, मैं यह बात नहीं मान सकती. ऐसी मालकिन मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल काम है. आप उन को सब लोगों की लाइन में खड़ा

मत करो.’’

महेंद्र कुछ कहता, उस से पहले ही कमरे के दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई, फिर दरवाजा बजाया गया.

सुनीता को ममता के आने का एहसास था. उस ने झट से उठ कर दरवाजा खोला, तो देखा कि सामने ममता खड़ी थी.

सुनीता के हाथपैर फूल गए, खुशी के मारे मुंह से बात न निकली, वह अभी पागलों की तरह ममता को देख ही रही थी कि ममता मुसकराते हुए बोल पड़ी, ‘‘अंदर नहीं बुलाओगी सुनीता?’’

सुनीता तो जैसे नींद से जागी थी.

वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘हांहां जीजी, आओ…’’ यह कहते हुए वह दरवाजे से एक तरफ हटी और महेंद्र से बोली, ‘‘देखोजी, अपने घर आज कौन आया है… ये जीजी हैं, जिन के घर पर मैं काम करने जाती हूं.’’

महेंद्र ने ममता को पहले कभी देखा तो नहीं था, लेकिन अमीर पहनावे और शक्लसूरत को देख कर उसे समझते देर न लगी. उस ने ममता से दुआसलाम की और उठ कर बाहर चल दिया.

ममता ने उसे जाते देखा, तो बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप कहां चल दिए? क्या मेरा आना आप को अच्छा नहीं लगा?’’

महेंद्र यह बात सुन कर हड़बड़ा गया. वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो इसलिए जा रहा था कि आप दोनों आराम से बात कर सको.’’

ममता हंसते हुए बोली, ‘‘लेकिन भैया, मैं तो आप से ही बात करने आई हूं. आप भी हमारे साथ बैठो न.’’

महेंद्र न चाहते हुए भी बैठ गया. ममता का इतना मीठा लहजा देख वह उस का मुरीद हो गया था. उस के दिमाग में अमीरों को ले कर जो सोच थी, वह जाती रही.

सुनीता सामने खड़ी ममता को वहीं बिछी एक चारपाई पर बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘जीजी, मेरे घर में तो आप को बिठाने के लिए ठीक जगह भी नहीं, आप को आज इस चारपाई पर ही बैठना पड़ेगा.’’

ममता मुसकराते हुए बोली, ‘‘सुनीता, प्यार और आदर से बड़ा कोई सम्मान नहीं होता, फिर क्या चारपाई और क्या बैड. आज तो मैं तुम्हारे साथ जमीन पर ही बैठूंगी.’’

इतना कह कर ममता जमीन पर पड़ी एक टाट की बोरी पर ही बैठ गई.

सुनीता ने लाख कहा, लेकिन ममता चारपाई पर न बैठी. हार मान कर सुनीता और महेंद्र भी जमीन पर ही बैठ गए. सुनीता ने नजर तिरछी कर महेंद्र को देखा, फिर इशारों में बोली, ‘‘देख लो, तुम कहते थे कि हर अमीर एकजैसा होता है. अब देख लिया.’’

महेंद्र से आदमी पहचानने में गलती हुई थी.

तभी ममता अचानक बोल पड़ी, ‘‘सुनीता, क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगी अपने घर की?’’

सुनीता के साथसाथ महेंद्र भी खुश हो गया. एक करोड़पति औरत गरीब के घर आ कर जमीन पर बैठ चाय पिलाने की गुजारिश कर रही थी.

सुनीता तो यह सोच कर चाय न बनाती थी कि ममता उस के घर की चाय पीना नहीं चाहेंगी. जब खुद ममता ने कहा, तो वह खुशी से पागल हो उठी,

महेंद्र और सुनीता की इस वक्त ऐसी हालत थी कि ममता इन दोनों से इन की जान भी मांग लेती, तो भी ये लोग मना न करते.

चाय बनी, तो सब लोग चाय पीने लगे. इतने में सुनीता का छोटा बेटा जाग गया. ममता ने उसे देखा तो खुशी से गोद में उठा लिया और उस से बातें करने में मशगूल हो गई.

महेंद्र और सुनीता यह सब देख कर बावले हुए जा रहे थे. उन्हें ममता में एक अमीर औरत की जगह अपने घर की कोई औरत नजर आ रही थी.

थोड़ी देर बाद ममता ने बच्चे को सुनीता के हाथों में दे दिया और महेंद्र की तरफ देख कर बोली, ‘‘भैया, मैं कुछ बात करने आई थी आप से. वैसे, सुनीता ने आप को सबकुछ बता दिया होगा.

‘‘भैया, मैं आप को यकीन दिलाती हूं कि सुनीता को सिर्फ लेडी डाक्टर के अलावा कोई और नहीं छुएगा. यह इस तरह होगा, जैसे कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है और बच्चे अंडों से निकल कर फिर से कोयल के हो जाते हैं, अगर आप…’’

महेंद्र ममता की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा, ‘‘बहनजी, आप जैसा ठीक समझें वैसा करें. जब सुनीता को आप अपना समझती हैं, तो फिर मुझे किसी बात से कोई डर नहीं. इस का बुरा थोड़े ही न सोचेंगी आप.’’

ममता खुशी से उछल पड़ी. सुनीता महेंद्र को मुंह फाड़े देखे जा रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि महेंद्र इतनी जल्दी हां कह सकता है. लेकिन महेंद्र तो इस वक्त किसी और ही फिजा में घूम रहा था. कोई करोड़पति औरत उस के घर आ कर झोली फैला कर उस से कुछ मांग रही थी, फिर भला वह कैसे मना कर देता.

ममता हाथ जोड़ कर महेंद्र से बोली, ‘‘भैया, मैं आप का यह एहसान जिंदगीभर नहीं भूलूंगी,’’ यह कहते हुए ममता ने अपने मिनी बैग से नोटों की एक बड़ी सी गड्डी निकाल कर सुनीता के हाथों में पकड़ा दी और बोली, ‘‘सुनीता, ये पैसे रख लो. अभी और दूंगी. जो इस वक्त मेरे पास थे, वे मैं ले आई.’’

सुनीता ने हाथ में पकड़े नोटों की तरफ देखा और फिर महेंद्र की तरफ देखा. महेंद्र पहले से ही सुनीता के हाथ में रखे नोटों को देख रहा था.

आज से पहले इन दोनों ने कभी इतने रुपए नहीं देखे थे, लेकिन महेंद्र कम से कम ममता से रुपए नहीं लेना चाहता था, वह बोला, ‘‘बहनजी, ये रुपए हम लोग नहीं ले सकते. जब आप हमें इतना मानती हैं, तो ये रुपए किस बात के लिए?’’

ममता ने सधा हुआ जवाब दिया, ‘‘नहीं भैया, ये तो आप को लेने ही पड़ेंगे. भला कोई और यह काम करता, तो वह भी तो रुपए लेता, फिर आप को क्यों न दूं?

‘‘और ये रुपए दे कर मैं कोई एहसान थोड़े ही न कर रही हूं.’’

इस के बाद ममता वहां से चली गई. महेंद्र ने ममता के जाने के बाद रुपए गिने. पूरे एक लाख रुपए थे. महेंद्र और सुनीता दोनों ही आज ममता के अच्छे बरताव से बहुत खुश थे. ऊपर से वे एक लाख रुपए भी दे गईं. ये इतने रुपए थे कि 2 साल तक दोनों काम करते, तो भी इतना पैसा जोड़ न पाते.

दोनों के अंदर आज एक नया जोश था. अब न किसी बात से एतराज था और न किसी बात पर कोई सवाल.

जल्द ही सुनीता को ममता ने डाक्टर के पास ले जा कर सारा काम निबटवा दिया. वह सुनीता के साथ उस के पति महेंद्र को भी ले गई थी, जिस से उस के मन में कोई शक न रहे.

ममता ने अब सुनीता से घर का काम कराना बंद कर दिया था. घर के काम के लिए उस ने एक दूसरी औरत को रख लिया था. सुनीता को खाने के लिए ममता ने मेवा से ले कर हर जरूरी चीज अपने पैसों से ला कर दे दी थी. साथ ही, एक लाख रुपए और भी नकद दे दिए थे.

ममता नियमित रूप से सुनीता को देखने भी आती थी. उस ने महेंद्र और सुनीता से उस के घर चल कर रहने के लिए भी कहा था, लेकिन महेंद्र ने वहां रहने के बजाय अपने घर में ही रहना ठीक समझा.

जिस समय सुनीता अपने पेट में बच्चे को महसूस करने लगी थी, तब से न जाने क्यों उसे वह अपना लगने लगा था. वह उसे सबकुछ जानते हुए भी अपना मान बैठी थी.

जब बच्चा होने को था, तब एक हफ्ता पहले ही सुनीता को अस्पताल में भरती करा दिया गया था. जिस दिन बच्चा हुआ, उस दिन तो ममता सुनीता को छोड़ कर कहीं गई ही न थी. सुनीता को बेटा हुआ था.

ममता ने सुनीता को खुशी से चूम लिया था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन सुनीता को मन में अजीब सा लग रहा था. उस का मन उस बच्चे को अपना मान रहा था.

अस्पताल से निकलने के बाद ममता ने सुनीता को कुछ दिन अपने पास भी रखा था. उस के बाद उस ने सुनीता को और 50 हजार रुपए भी दिए.

सुनीता अपने घर आ गई, लेकिन उस का मन न लगता था. जो बच्चा उस ने अपनी कोख में 9 महीने रखा, आज वह किसी और का हो चुका था. पैसा तो मिला था, लेकिन बच्चा चला गया था.

सुनीता का मन होता था कि बच्चा फिर से उस के पास आ जाए, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता था. उस की कोख किसी और के बच्चे के लिए किराए पर जो थी.

Emotional Story : झांसी की रानी – मां की आंखों में क्यों दर्द झलकता था?

Emotional Story : ‘‘पापा, आप हमेशा झांसी की रानी की तसवीर के साथ दादी का फोटो क्यों रखते हैं?’’ नवेली ने अपने पापा सुप्रतीक से पूछा था.

‘‘तुम्हारी दादी ने भी झांसी की रानी की तरह अपने हकों के लिए तलवार उठाई थी, इसलिए…’’ सुप्रतीक ने कहा. सुप्रतीक का ध्यान मां के फोटो पर ही रहा. चौड़ा सूना माथा, होंठों पर मुसकराहट और भरी हुई पनियल आंखें. मां की आंखों को उस ने हमेशा ऐसे ही डबडबाई हुई ही देखा था. ताउम्र, जो होंठों की मुसकान से हमेशा बेमेल लगती थी. एक बार सुप्रतीक ने देखा था मां की चमकती हुई काजल भरी आंखों को, तब वह 10 साल का रहा होगा. उस दिन वह जब स्कूल से लौटा, तो देखा कि मां अपनी नर्स वाली ड्रेस की जगह चमकती हुई लाल साड़ी पहने हुए थीं और उन के माथे पर थी लाल गोल बिंदी. मां को निहारने में उस ने ध्यान ही नहीं दिया कि कोई आया हुआ है.

‘सुप्रतीक देखो ये तुम्हारे पापा,’ मां ने कहा था.

‘पापा, मेरे पापा,’ कह कर सुप्रतीक ने उन की ओर देखा था. इतने स्मार्ट, सूटबूट पहने हुए उस के पापा. एक पल को उसे अपने सारे दोस्तों के पापा याद आ गए, जिन्हें देख वह कितना तरसा करता था.

‘मेरे पापा तो उन सब से कहीं ज्यादा स्मार्ट दिख रहे हैं…’ कुछ और सोच पाता कि पापा ने उसे बांहों में भींच लिया.

‘ओह, पापा की खुशबू ऐसी होती है…’

सुप्रतीक ने दीवार पर टंगे मांपापा के फोटो की तरफ देखा, जैसे बिना बिंदी मां का चेहरा कुछ और ही दिखता है, वैसे ही शायद मूंछें उगा कर पापा का चेहरा भी बदल गया है. मां जहां फोटो की तुलना में दुबली लगती थीं, वहीं पापा सेहतमंद दिख रहे थे. सुप्रतीक देख रहा था मां की चंचलता, चपलता और वह खिलखिलाहट. हमेशा शांत सी रहने वाली मां का यह रूप देख कर वह खुश हो गया था. कुछ पल को पापा की मौजूदगी भूल कर वह मां को देखने लगा. मां खाना लगाने लगीं. उन्होंने दरी बिछा कर 3 प्लेटें लगाईं.

‘सुधा, बेटे का क्या नाम रखा है?’ पापा ने पूछा था.

‘सुप्रतीक,’ मां ने मुसकराते हुए कहा.

‘यानी अपने नाम ‘सु’ से मिला कर रखा है. मेरे नाम से कुछ नहीं जोड़ा?’ पापा हंसते हुए कह रहे थे.

‘हुं, सुधा और घनश्याम को मिला कर भला क्या नाम बनता?’ सुप्रतीक सोचने लगा.

‘आप यहां होते, तो हम मिल कर नाम सोचते घनश्याम,’ मां ने खाना लगाते हुए कहा था.

‘घनश्याम हा…हा…हा… कितने दिनों के बाद यह नाम सुना. वहां सब मुझे सैम के नाम से जानते हैं. अरे, तुम ने अरवी के पत्ते की सब्जी बनाई है. सालों हो गए हैं बिना खाए,’ पापा ने कहा था. सुप्रतीक ने देखा कि मां के होंठ ‘सैमसैम’ बुदबुदा रहे थे, मानो वे इस नाम की रिहर्सल कर रही हों. सुप्रतीक ने अब तक पापा को फोटो में ही देखा था. मां दिखाती थीं. 2-4 पुराने फोटो. वे बतातीं कि उस के पापा विदेश में रहते हैं. लेकिन कभी पापा की चिट्ठी नहीं आई और न ही वे खुद. फोनतो तब होते ही नहीं थे. मां को उस ने हमेशा बहुत मेहनत करते देखा था. एक अस्पताल में वे नर्स थीं, घरबाहर के सभी काम वे ही करती थीं. जिस दिन मां की रात की ड्यूटी नहीं होती थी, वह देखता कि मां देर रात तक खिड़की के पास खड़ी आसमान को देखती रहती थीं. सुप्रतीक को लगता कि मां शायद रोती भी रहती थीं. उस दिन खाना खाने के बाद देर तक वे तीनों बातें करते रहे थे. सुप्रतीक ने उस पल में मानो जमाने की खुशियां हासिल कर ली थीं. सुबह उठा, तो देखा कि पापा नहीं थे.

‘मां, पापा किधर हैं?’ सुप्रतीक ने हैरानी से पूछा था.

‘तुम्हारे पापा रात में ही होटल चले गए, जहां वे ठहरे हैं.’ मां का चेहरा उतरा हुआ लग रहा था. माथे की लकीरें गहरी दिख रही थीं. आंखों में काजल की जगह फिर पानी था. थोड़ी देर में फिर पापा आ गए, वैसे ही खुशबू से सराबोर और फ्रैश. आते ही उन्होंने सुप्रतीक को सीने से लगा लिया. आज उस ने भी कस कर भींच लिया था उन्हें, कहीं फिर न चले जाएं.

‘पापा, अब आप भी हमारे साथ रहिएगा,’ सुप्रतीक ने कहा था.

‘मैं तुम्हें अपने साथ अमेरिका ले जाऊंगा. हवाईजहाज से. वहीं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा. बड़ा आदमी बनाऊंगा…’ पापा बोल रहे थे. सुप्रतीक उस सुख के बारे में सोचसोच कर खुश हुआ जा रहा था.

‘पर, तुम्हारी मम्मी नहीं जा पाएंगी, वे यहीं रहेंगी. तुम्हारी एक मां वहां पहले से हैं, नैंसी… वे होटल में तुम्हारा इंतजार कर रही हैं,’ पापा को ऐसा बोलते सुन सुप्रतीक जल्दी से हट कर सुधा से सट कर खड़ा हो गया था.

‘मैं कल से ही तुम्हारे आने की वजह समझने की कोशिश कर रही थी. एक पल को मैं सच भी समझने लगी थी कि तुम सुबह के भूले शाम को घर लौटे हो. जब तुम्हारी पत्नी है, तो बच्चे भी होंगे. फिर क्यों मेरे बच्चे को ले जाने की बात कर रहे हो?’ सुधा अब चिल्लाने लगी थी, ‘एक दिन अचानक तुम मुझे छोड़ कर चले गए थे, तब मैं पेट से थी. तुम्हें मालूम था न?

‘एक सुबह अचानक तुम ने मुझ से कहा था कि तुम शाम को अमेरिका जा रहे हो, तुम्हें पढ़ाई करनी है. शादी हुए बमुश्किल कुछ महीने हुए थे. तुम्हारी दहेज की मांग जुटाने में मेरे पिताजी रास्ते पर आ गए थे. लेकिन अमेरिका जाने के बाद तुम ने कभी मुझे चिट्ठी नहीं लिखी. ‘मैं कितना भटकी, कहांकहां नहीं गई कि तुम्हारे बारे में जान सकूं. तुम्हारे परिवार वालों ने मुझे ही गुनाहगार ठहराया. अब क्यों लौटे हो?’ मां अब हांफ रही थीं. सुप्रतीक ने देखा कि पापा घुटनों के बल बैठ कर सिर झुकाए बोलने लगे थे, ‘सुधा, मैं तुम्हारा गुनाहगार हो सकता हूं. सच बात यह है कि मुझे अमेरिका जाने के लिए बहुत सारे रुपयों की जरूरत थी और इसी की खातिर मैं ने शादी की. तुम मुझे जरा भी पसंद नहीं थीं. उस शादी को मैं ने कभी दिल से स्वीकार ही नहीं किया. ‘बाद में मैं ने नैंसी से शादी की और अब तो मैं वहीं का नागरिक हो गया हूं. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद हम मांबाप नहीं बन सके. यह तो मेरा ही खून है. मुझे मेरा बेटा दे दो सुधा…’

अचानक काफी बेचैन लगने लगे थे पापा. ‘देख रहा हूं कि तुम इसे क्या सुख दे रही हो… सीधेसीधे मेरा बेटा मेरे हवाले करो, वरना मुझे उंगली टेढ़ी करनी भी आती है.’ सुप्रतीक देख रहा था उन के बदलते तेवर और गुस्से को. वह सुधा से और चिपट गया. तभी उस के पापा पूरी ताकत से उसे सुधा से अलग कर खींचने लगे. उस की पकड़ ढीली पड़ गई और उस के पापा उसे खींच कर घर से बाहर ले जाने लगे कि अचानक मां रसोई वाली बड़ी सी छुरी हाथ में लिए दौड़ती हुई आईं और पागलों की तरह पापा पर वार करने लगीं. पापा के हाथ से खून की धार निकलने लगी, पर उन्होंने अभी भी सुप्रतीक का हाथ नहीं छोड़ा था. चीखपुकार सुन कर अड़ोसपड़ोस से लोग जुटने लगे थे. किसी ने इस आदमी को देखा नहीं था. लोग गोलबंद होने लगे, पापा की पकड़ जैसे ही ढीली हुई, सुप्रतीक दौड़ कर सुधा से लिपट गया. लाल साड़ी में मां वाकई झांसी की रानी ही लग रही थीं. लाललाल आंखें, गुस्से से फुफकारती सी, बिखरे बाल और मुट्ठी में चाकू. सुप्रतीक ने देखा कि सड़क के उस पार रुकी टैक्सी में एक गोरी सी औरत उस के पापा को सहारा देते हुए बिठा रही थी.

‘‘नवेली, तुम्हारी दादी बहुत बहादुर और हिम्मत वाली थीं,’’ सुप्रतीक ने अपनी बेटी से कहा. सुप्रतीक की निगाहें फिर से मां के फोटो पर टिक गई थीं.

Divorce : अरबोंखरबों के तलाक – जब शादी टूटी तो हुईं अमीरों की जेबें हल्कीं

Divorce :  हाल में भारत समेत दुनियाभर में चर्चित लोगों के तलाक और उस के निपटान में दी जाने वाली एलिमनी रकम खासी चर्चा में रही है. जौनी डेप और एम्बर हर्ड की एलिमनी रकम पर तो लंबीचौड़ी बहस चली. सैलिब्रिटियों के तलाक और एलिमनी पर होहल्ला होता रहता है. पर यहां बात दुनिया के सब से अमीर लोगों के तलाक की जिन कि जेब तलाक लेने के बाद जरुर ढीली हुई.

• बिल और मेलिंडा गेट्स का तलाक सब से ज्यादा चर्चित रहा. 2021 में हुए इस तलाक में मेलिंडा गेट्स को लगभग 66 ख़रब 87 करोड़ 21 लाख रुपए की एलीमनी मिली, जो अब तक की सब से बड़ी रकम है.

• इस से पहले, 2019 में जेफ बेजोस और मैकेंजी बेजोस के तलाक में 38 बिलियन डौलर यानी 33 खरब 43 करोड़ 60 लाख रुपए की एलिमनी तय हुई थी.

• 1999 में एलेक और जोसेलिन विल्डेनस्टीन के तलाक में 3.8 बिलियन डौलर यानी 3,30,16,49,08,740 3 खरब 30 अरब 16 करोड़ 49 लाख रुपये की एलीमनी देनी पड़ी.

• रूपर्ट मर्डोक व अन्ना मर्डोक के तलाक में लगभग 1 खरब 47 अरब 64 करोड़ रुपए की रकम देने की बात सामने आई थी.

• 1997 में क्रेग मैक्को और वेंडी मैक्को के तलाक में भी 460 मिलियन डौलर यानी लगभग 39 अरब 95 करोड़ 30 लाख 24 हजार रुपए की एलिमनी दर्ज की गई.

• भारत में भी 2014 में, उद्योगपति विजय माल्या और उन की पत्नी समीरा के तलाक में 40 मिलियन डौलर यानी आज के हिसाब से 350 करोड़ रुपए की एलिमनी तय हुई थी.

Chhaava : अधूरे इतिहास पर बनी मूवी, विक्की कौशल व रश्मिका की कमजोर एक्टिंग, केवल अक्षय खन्ना में दिखा दम

Chhaava : रेटिंग- 2 स्टार

हमेशा कहा जाता है कि अधूरा ज्ञान सब से ज्यादा खतरनाक होता है और इतिहास को ले कर दिया गया अधूरा सत्य हमेशा विनाशक ही होता है. मगर हमारे फिल्मकार इतिहास को परदे पर सही ढंग से चित्रित न करने का संकल्प ले चुके हैं. छत्रपती शिवाजी महाराज के पुत्र और स्वराज्य की रक्षा के लिए दृढ़संकल्प रहे संभाजी महाराज के जीवन व कृतित्व पर मराठी भाषा में शिवाजी सावंत ने एक उपन्यास ‘छावा’ लिखा था. इसी उपन्यास को आधार बना कर अब फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर हिंदी भाषा में ऐतिहासिक बायोपिक फिल्म ‘छावा’ ले कर आए हैं. जो कि 14 फरवरी से हर सिनेमाघर में रिलीज हो चुकी है.

यह फिल्म वीरता और बलिदान के साथसाथ विश्वासघात के दर्द और स्वराज की निरंतर खोज की कहानी है. कैमरामैन से फिल्म निर्देशक बने लक्ष्मण उतेकर ने 2014 में मराठी फिल्म ‘तपाल’ का निर्देशन किया था. उस के बाद 2017 में मराठी में ही ‘लालबाग ची रानी’ का निर्देशन किया. उस के बाद ‘लुका छिपी’, ‘मिमी’, ‘जरा हटके जरा बच के’ जैसी हिंदी भाषा की फिल्में निर्देशित कीं. और अब लक्ष्मण उतेकर ने पहली बार ‘छावा’ नामक ऐतिहासिक फिल्म का निर्देशन किया है.

हम ने जो इतिहास की किताबें पढ़ी तथा ‘संभाजी पर 6 भाषाओं में प्रकाशित लेखक विश्वास पाटिल की किताब ‘संभाजी’ पर ध्यान दें तो फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर ने अधूरा व कंफ्यूज्ड करने वाला इतिहास परोसते हुए सिर्फ संभाजी की वीरता को ही चित्रित करने पर अपना सारा ध्यान लगाया है.

यूं तो फिल्म के निर्माताओं की तरफ से फिल्म के शुरू होते ही ‘अस्वीकरण’ दिया गया है कि उन्होंने किसी धर्म या इंसान का अपमान करने के लिए कोई चीज नहीं रखी है. पर फिल्म को मनोरंजक बनाने के मकसद से सिनेमाई स्वतंत्रता लेते हुए कुछ फेर बदल किए हैं. यह पहली बार हुआ है जब लंबेचौड़े डिस्क्लेमर/अस्वीकरण को आवाज भी दी गई है, वरना अबतक होता यह था कि निर्माता ‘अस्वीकरण’ परदे पर दे देते थे, जिसे दर्शक पढ़ नहीं पाता था.

पहली बार ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए निर्माता से डिस्क्लेमर को पढ़ कर सुनाने का भी आदेश दे रखा है. पर क्या किसी भी ऐतिहासिक किरदार या घटनाक्रम के साथ ऐसा करना उचित है?

फिल्म की कहानी औरंगजेब (अक्षय खन्ना) के बढ़ते अत्याचारों व छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी के जन्म से शुरू होती है. फिर फिल्म की कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद शुरू होती है. फिर जनवरी 1681 के काल में शुरू होती है, जब मुगल बादशाह औरंगजेब को मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन की खबर मिलती है. औरंगजेब और मुगल राहत महसूस कर रहे थे और खुश थे कि वह आखिरकार दक्खन (दक्कन) के मराठा साम्राज्य पर कब्जा कर सकते हैं. लेकिन तभी छत्रपति संभाजी महाराज उर्फ छावा (विक्की कौशल) मुगल साम्राज्य के सब से कीमती शहर बुरहानपुर पर हमला करते हैं और मुगलों को हराने के साथ ही इस शहर को बरबाद कर यहां की सारी संपत्ति ले कर रायगढ़ चले जाते हैं.

संभाजी, औरंगजेब को दक्खन पर अपनी शैतानी नजर न डालने की चेतावनी देते हैं. यह खबर सुनते ही औरंगजेब आगबबूला हो जाता है और वह अपनी पूरी सेना के साथ संभाजी महाराज के वर्चस्व को खत्म करने के लिए निकल पड़ता है.

इधर 1682 और 1688 तक दोनों पक्षों के बीच कई लड़ाइयां हुईं जबकि मुगल, मराठों के कब्जे वाले किलों पर नियंत्रण चाहते थे, लेकिन वे सफल नहीं हुए. सत्ता में आने के दो साल बाद, संभाजी उर्फ संभुराजे ने प्रभावशाली परिवारों के लगभग 24 सदस्यों को मार डाला. जब उन्हें पता चला कि कुछ लोग उन की हत्या की साजिश रच रहे थे. 1685 तक, मुगलों ने संभाजी को पीछे धकेल दिया था और उन के गढ़ों पर कब्जा कर लिया था.

1 फरवरी, 1689 को, औरंगजेब ने संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई के रिश्तेदारों व संभाजी के दरबार से जुड़े शिर्के और अन्नाजी दत्तो की मदद से धोखे से अपनी फौज के माध्यम से संभाजी को युद्ध के मैदान में गिरफ्तार किया. फिर उन्हें बंदी बना कर भयानक यातनाएं दीं. उन के सभी नाखून उखाड़ दिए गए. दोनों आंखें व जीभ कटवा दी गईं. पर संभाजी ने आह नहीं भरी. औरंगजेब को उन के अंदर दर्द नजर नहीं आया. संभाजी देश और धर्म की रक्षा के लिए मौत का सामना करने में अपनी अविश्वसनीय बहादुरी का परिचय दिया. वह स्वराज्य से समझौता करने को तैयार न हुए. उन्होंने औरंगजेब के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया. अंततः संभाजी की 11 मार्च, 1689 को मृत्यु हो गई.

फिल्म की शुरूआत के संवाद सुनते ही दर्शक कंफ्यूज्ड हो जाता है कि वह ऐतिहासिक फिल्म ‘छावा’ देखने आया है या कोई मैथोलौजिकल फिल्म देखने आया है. संभाजी के जन्म से पहले गीता के श्लोक का हिंदी अनुवाद दोहराया जाता है कि “जबजब अधर्म व अत्याचार बढ़ता है…’’ इस के बाद ही संभाजी का जन्म होता है.

इतना ही नहीं फिल्म में संभाजी को भगवान कृष्ण तक बता दिया गया है. संभाजी के दरबारी कवि ‘कवि कलश’ का तो मानना है कि संभाजी भगवान कृष्ण हैं और वह स्वयं सुदामा हैं. हकीकत यह है कि फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर खुद कंफ्यूज्ड है. एक तरफ वह संभाजी को भगवान कृष्ण भी कहला रहे हैं, तो दूसरी तरफ वह उन की वीरता का प्रदर्शन भी कर रहे हैं. कहानी व पटकथा में काफी झोल है.

फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर इतिहास, ऐतिहासिक तथ्यों और संभाजी के व्यक्तित्व उन की निडरता व वीरता के बीच समुचित सामंजस्य बैठाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. मुगल शासक औरंगजेब एक अति खूबसूरत कोबरा सांप की तरह था, पर ‘छावा’ में औरंगजेब को बहुत ही अजीबोगरीब गेअटप दिया गया है.

इतिहासकार विश्वास पाटिल के शब्दों में कहें तो कई दृश्यों में लक्ष्मण उतेकर का औरंगजेब किसी जामा मस्जिद के सामने भीख मांगने वाला भिखारी नजर आता है. हम ने जो इतिहास के पन्नों में पढ़ा है, उस के अनुसार संभाजी महाराज के अति करीबियों ने ही उन्हें धोखा दिया था, तभी उन्हें औरंगजेब के सिपाही कैद करने में सफल हुए थे. उस के बाद औरंगजेब ने संभाजी को बहुत ही कठोर यातनांए दी थीं. पर संभाजी अपने स्वराज्य के लिए टूटे नहीं थे.

अंततः 11 मार्च 1989 के दिन औरंगजेब ने संभाजी को मौत देते हुए उन के शरीर के कई टुकड़े कर फिकवाते हुए घोषणा करवाई थी कि जो इंसान संभाजी के शरीर के टुकड़ों को एकत्र कर उन का अंतिमसंस्कार करेगा, उस के साथ अच्छा नहीं होगा. लेकिन उस गांव के गायकवाड़ परिवार ने निडर हो कर इस काम को अजाम दिया था. उस के बाद औरंगजेब ने रायगढ़ पर हमला किया.

बाद में संभाजी की पत्नी येसुबाई व संभाजी के बेटे साहू को 29 साल तक बंदी बना कर रखा था. पर फिल्म में संभाजी को कुछ यातनाएं देने के दृश्यों के बाद उन की मौत की बात कह कर फिल्म खत्म हो जाती है. फिल्म में औरंगजेब की बेटी जीनत को जरूरत से ज्यादा तवज्जों दी गई है. संभाजी को क्रूरतम यातनाएं देने का आदेश औरंगजेब देते हैं, पर फिल्मकार ने यह सारे आदेश औरंगजेब की बेटी जीनत से दिलवाए हैं, और उस वक्त औरंगजेब अपनी बेटी के आगे लाचार नजर आते हैं.

फिल्म में युद्ध के ही दृश्यों की भरमार है. बतौर निर्देशक लक्ष्मण उतेकर कुछ जगहों पर काफी निराश करते हैं. जिस तरह से उन्होंने विक्की को संभाजी महाराज के रूप में पेश किया है, उस में कई कमियां हैं. कई जगहों पर विक्की का चीखनाचिल्लाना और उन का गुस्सा बनावटी लगता है. वहीं कुछ सीन ऐसे हैं जिन्हें देख कर आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे. संभाजी जैसा वीर बहुत कम ही हुए हैं. संभाजी ने अपने देश/स्वराज के लिए जो यातना सही, वह दिल दहला लेने वाली हैं. अगर छोटीछोटी बातों पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता तो शायद यह फिल्म परफैक्ट हो सकती थी.

फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर विक्की कौशल के संभाजी के किरदार के अलावा किसी भी अन्य किरदार के साथ न्याय करने में सफल नहीं रहे. येसूबाई का किरदार महज सजावटी गुड़िया के अलावा कुछ नहीं है. फिल्म की गति काफी धीमी है. इसे एडिटिंग टेबल पर कसे जाने की जरूरत थी.

कुछ एक्शन/युद्ध दृश्य जरूर अच्छे बन पड़े हैं. ग%E

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