Download App

‘‘स्कैम 1992’’ फेम प्रतीक गांधी की पहली बॉलीवुड फिल्म ‘रावण लीला’ का फर्स्ट लुक हुआ वायरल

वेबसीरीज ‘स्कैम’ फेम अब प्रतीक गांधी की पहली हिंदी फिल्म ‘‘रावण लीला (भवई)‘’ का पहला आकर्षक पोस्टर जारी किया गया, जो कि सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. यह प्रेम कहानी प्रधान फिल्म 1 अक्टूबर 2021 को सिनेमाघरों में पहुंचेगी. इस फिल्म मे प्रतीक गांधी एक दुर्जेय लेकिन शक्तिशाली उपस्थिति को चित्रित करते हुए दिखाई देंगे. इस फिल्म में वह एकदम अलग नजर आएंगे.

सूरत के रहने वाले हैं प्रतीक

सूरत, गुजरात में जन्में प्रतीक गांधी सूरत में पढ़ाई के साथ ही थिएटर कला से जुड़े हुए थे. वह डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन स्कूल में कम ग्रेड के कारण महाराष्ट्र में औद्योगिक इंजीनियरिंग का विकल्प चुना.उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज में इंजीनियर के रूप में काम करना शुरू किया.पर शाम को थिएटर भी करते.

उन्होंने सातारा और पुणे में राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के साथ काम किया और बाद में मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय निगम के लिए भी काम किया.प्रतीक गांधी को फिरोज भगत, अपरा मेहता, विप्रा रावल के साथ एक गुजराती नाटक ‘आ प्यार के पेले पार’ में काम करने का अवसर मिला. यह नाटक व्यावसायिक रूप से सफल रहा. फिर गुजराती रंगमंच पर मनोज शाह के साथ काम किया. तब उन्हें गुजराती फिल्म बे यार (2014) में एक भूमिका मिली जो व्यावसायिक रूप से सफल रही.

प्रतीक गांधी ने ‘‘मेरे पिया गए रंगून’’,‘‘हूं चंद्रकांत बख्शी’’,‘‘अमे बढ़ा साठे तो दूनिया लाइये माथे’ सहित कई सफलतम नाटकों में अभिनय किया. नाटक ‘मोहन का मसाला’ के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी शामिल है. इसमें उन्होंने एक ही दिन में तीन भाषाओं,  अंग्रेजी,  हिंदी और गुजराती में एक मोनोलॉग का प्रदर्शन किया था.

हर्षद मेहता की भूमिका मिली शोहरत 

2016 में गुजराती फिल्म ‘‘रांग साइड राजू’’ से वह लोगों की नजर आ गए. इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ गुजराती फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता था. फिर 2020 में हंसल मेहता निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्कैम 1992’’  में उन्होंने हर्षद मेहता की भूमिका निभाकर जबरदस्त शोहरत बटोरी. इसके बाद उनके पास हिंदी फिल्मों की कतार लग गयी.

बता दें कि हार्दिक गज्जर द्वारा निर्देशित, बैकबेंचर पिक्चर्स के सहयोग से धवल जयंतीलाल गड़ा, अक्षय जयंतीलाल गड़ा, पार्थ गज्जर और हार्दिक गज्जर फिल्मों द्वारा निर्मित डॉ. जयंतीलाल गड़ा (पेन) द्वारा प्रस्तुत की जा रही है.

अब कोई नाता नहीं

लेखक- ताराचंद मकसाने 

“मुझे माफ करना, अतुल. मैं ने तुम्हारा बहुत अपमान किया है, तिरस्कार किया है और कई बार तुम्हारा मजाक भी उड़ाया है. मगर आज जब मुझे अपने बेटे की सब से ज्यादा जरूरत थी तब तुम ही मेरे करीब थे. अगर आज तुम न होते तो न जाने मेरा क्या हाल होता. मैं शायद इस दुनिया में न होता. अतुल बेटा, हम दोनों तो बिलकुल अकेले पड़ गए थे. अब तो मुझे सुमित को अपना बेटा कहने में भी शर्म आ रही है. उसे विदेश क्या भेजा, वह विदेशी हो कर रह गया, मांबाप को भी भूल गया. अब मेरा उस से कोई नाता नहीं,” यह कहते हुए कांता प्रसाद फफकफफक कर रो पड़े, उन्होंने अतुल को खींच कर गले लगा लिया.

अतुल की आंखें भी नम हो गईं., वह अतीत की यादों में खो गया. अतुल के पिता रमाकांत की एक छोटी सी मैडिकल शौप थी जो सरकारी अस्पताल के सामने थी. परिवार की आर्थिक स्थिति विकट होने से अतुल ज्यादा पढ़ नहीं पाया था. कक्षा 12 वीं उत्तीर्ण करने के बाद उस ने फार्मेसी में डिप्लोमा किया और अपने पिता के साथ दुकान में उन का हाथ बंटाने लगा.

ये भी पढ़ें- मर्यादा : आखिर क्या हुआ निशा के साथ

एक ही शहर में दोनों भाइयों का परिवार रहता था मगर रिश्तों में मधुरता नहीं थी. कांता प्रसाद और छोटे भाई राम प्रसाद के बीच अमीरीगरीबी की दीवार दिनबदिन ऊंची होती जा रही थी. दोनों भाइयों के बीच एक बार पैसों के लेनदेन को ले कर अनबन हो गई थी जिस के कारण उन के बीच कई सालों से बोलचाल बंद थी. होलीदीवाली जैसे त्योहारों पर महज औपचारिकता निभाते हुए उन के बीच मुलाकात होती थी.

अतुल के ताऊजी कांता प्रसाद एक प्राइवेट बैंक में मैंनेजर थे जो अपने इकलौते बेटे सुमित की पढ़ाई के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे थे. सुमित शहर की सब से महंगे और मशहूर पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. जब कभी अतुल उन से बैंक में या घर पर मिलने जाता था तब वे उस का मजाक उड़ाते हुए कहते थे–

‘अरे अतुल, एक बार कालेज का तो मुंह देख लेता. अभी 20-22 का हुआ नहीं कि दुकानदारी करने बैठ गया. कालेजलाइफ कब एंजौय करेगा? तेरा बाप क्या पैसा साथ ले कर जाएगा?’

ये भी पढ़ें अब कोई नाता नहीं

‘नहीं ताऊजी, ऐसी बात नहीं है. मेरी भी आगे पढ़ने की इच्छा है और पापा भी मुझे पढ़ाना चाहते हैं पर मैं अपने घर की आर्थिक स्थिति से अच्छी तरह से अवगत हूं. मैं ने ही उन्हें मना कर दिया कि मुझे आगे नहीं पढ़ना है. निशा और दिशा को पहले पढ़ानालिखाना है ताकि वे पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं जिस से उन के विवाह में अड़चन न आए. एक बार उन के हाथ पीले हो जाएं तो मम्मीपापा की चिंता मिट जाएगी. वे दोनों आएदिन निशा और दिशा की चिंता करते हैं. आजकल के लड़के पढ़ीलिखी और नौकरी करने वाली लड़कियां ही ज्यादा पसंद करते हैं. ताऊजी, आप को तो पता ही है कि हमारी मैडिकल शौप से ज्यादा आमदनी नहीं होती. सरकारी अस्पताल के सामने मैडिकल की पचासों दुकानें हैं. कंपीटिशन बहुत बढ़ गया है. फिर आजकल औनलाइन का भी जमाना है. मेरा क्या है, मैं निशा और दिशा की विदाई के बाद भी प्राइवेटली कालेज कर लूंगा पर अभी परिवार की जिम्मेदारी निभाना जरूरी है.’

अतुल ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा तो कांता प्रसाद को बड़ा ताज्जुब हुआ कि अतुल खेलनेकूदने की उम्र में इतनी समझदारी व जिम्मेदारी की बातें करने लग गया है. और एक उन का बेटा सुमित जो अतुल की ही उम्र का है मगर उस पर अभी भी बचपना और अल्हड़पन सवार था, वह घूमनेफिरने और मौजमस्ती में ही मशगूल है. कांता प्रसाद के पास रुपएपैसों की कमी न थी. उन के बैंक के कई अधिकारियों के बेटे विदेशों में पढ़ रहे थे, सो  कांता प्रसाद ने भी सुमित को विदेश भेजने के सपने संजो कर रखे थे.

वक्त बीत रहा था. सुमीत इंजीनियरिंग में बीई करने के बाद एमएस के लिए आस्ट्रेलिया चला गया. इसी बीच कांता प्रसाद बैंक से सेवानिवृत हो गए. पत्नी रमा के साथ आराम की जिंदगी बसर कर रहे थे. सुमित के लिए विवाह के ढेरों प्रस्ताव आने शुरू हो गए थे. अपना इकलौता बेटा विदेश में है, यह सोच कर ही कांता प्रसाद मन ही मन फूले न समाते थे. अब तो वे ज़मीन से दो कदम ऊपर ही चलने लगे थे. जब भी कोई रिश्तेदार या दोस्त मिलता तो वे सुमित की तारीफ में कसीदे पढ़ने लग जाते. कुछ दिन तक तो परिवार के सदस्य और यारदोस्त उन का यह रिकौर्ड सुनते रहे मगर धीरेधीरे उन्हें जब बोरियत होने लगी तो वे उन से कन्नी काटने लगे.

वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था. सुमित को आस्ट्रेलिया जा कर 3 साल का वक्त हो गया था. एक दिन सुमित ने बताया कि उस ने एमएस की डिग्री हासिल कर ली है और वह अब यूएस जा रहा है जहां उसे एक मल्टीनैशनल कंपनी में मोटे पैकेज की नौकरी भी मिल गई है. कांता प्रसाद के लिए यह बेशक बहुत ही बड़ी खुशी की बात थी.

कांता प्रसाद और रमा अभी खुशी के इस नशे में चूर थे कि एक दिन सुमित ने बताया कि उस ने अपनी ही कंपनी में नौकरी करने वाली एक फ्रांसीसी लड़की एडेला से शादी कर ली है. सुमित के विवाह को ले कर सपनों के खूबसूरत संसार में खोए हुए कांता प्रसाद और रमा बहुत ही जल्दी यथार्थ के धरातल पर धराशायी हो गए. अब तो दोनों अपने घर में ही बंद हो कर रह गए. लड़की वालों के फोन आने पर ‘अभी नहीं, अभी नहीं’ कह कर टालते रहे. कांता प्रसाद और रमा ने सुमित के विवाह की बात छिपाने की बहुत कोशिश की मगर जिस तरह प्यार और खांसी छिपाए नहीं छिपती, उसी तरह सुमित के विदेशी लड़की से विवाह करने की बात उन के करीबी रिश्तेदारों के बीच बहुत ही जल्दी फैल गई. परिणास्वरूप रिश्तेदारों एवं करीबी लोगों ने उन से किनारा करना शुरू कर दिया.

उधर, सुमित दिनबदिन अपने काम में इतना मसरूफ हो गया था कि वह महीनों तक अपने मातापिता को फोन नहीं कर पाता था. यहां से कांता प्रसाद और रमा फोन करते तो वह कभी काम में व्यस्त बता कर या मीटिंग में है, कह कर फोन काट देता था. अब तो कांता प्रसाद और रमा बिलकुल अकेले पड़ गए थे. छोटीमोटी बीमारी होने पर उन्हें पड़ोसियों का सहारा लेना पड़ता था. मगर हर बार यह मुमकिन नहीं था कि जब उन्हें जरूरत पड़े तब पड़ोसी उन की सेवा में हाजिर हो जाएं. इसी बीच देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने कहर ढाना शुरू कर दिया. लौकडाऊन के कारण कामवाली बाई यशोदा ने आना बंद कर दिया और घरेलू नौकर किशन अपने गांव चला गया. लोग अपनेअपने घरों में बंद हो गए. रमा को दमे की शिकायत थी, तो कांता प्रसाद डायबेटिक थे. चिंता और तनाव ने दोनों को और अधिक बीमार बना दिया था. सुमित इस संकट की घड़ी में व्हाट्सऐप पर ‘टेक केयर, बाहर बिलकुल मत जाना, और जाना पड़ जाए तो मास्क पहन कर जाना, सैनिटाइजर का उपयोग करते रहना, बारबार साबुन से हाथ धोते रहना, सोशल दूरी बनाए रखना’ जैसे महज औपचारिक संदेश नियमित रूप से भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता था.

एक दिन रात में कांता प्रसाद को तेज बुखार आया. उन्हें लगा, मौसम बदलने से आया होगा. घर में ही दवा खा ली. मगर बुखार न उतरा. 2 दिनों बाद उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी और मुंह का स्वाद चला गया. तब रमा को पता चला कि ये तो कोरोना के लक्षण हैं. रात में करीब 1 बजे उन्होंने अतुल को फोन किया और सारी बात बताई. अतुल और उस के पिता ने तुरंत भागदौड़ शुरू कर दी. अतुल ने एक सामाजिक संस्था के यहां से एम्ब्युलैंस मंगवाई और अपने पिता के साथ कांता प्रसाद के घर के लिए रवाना हो गया. बीच रास्ते में अतुल अस्पतालों में बैड की उपलब्धता के लिए लगातार फोन कर रहा था. दोतीन अस्पतालों से नकारात्मक उत्तर मिला, मगर एक अस्पताल में एक बैड मिल गया. अतुल ने कांता प्रसाद को फोन कर के अस्पताल जाने के लिए तैयार रहने के लिए कहा. रात करीब 2 बजे कांता प्रसाद को एक अस्पताल के कोरोना वार्ड में एडमिट कर दिया और ट्रीटमैंट चालू हो गया.

रमा की आंखों में छिपा हुआ नीर आंसुओं का रूप धारण कर उस के गालों को भिगोने लगा जिसे देख अतुल ने कहा–

‘ताईजी, प्लीज आंसू न बहाओ. अब चिंता की बात नहीं है. यह शहर का बहुत अच्छा अस्पताल है. ताऊजी जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगे. ताईजी, अब आप हमारे घर चलो. ताऊजी के ठीक होने तक आप हमारे ही घर पर रहना. अस्पताल में कोरोना मरीज के रिश्तेदारों को ठहरने की अनुमति नहीं है.’

रमा का कंठ रुंध गया था. वह बोल नहीं पा रही थी. खामोशी से अतुल के साथ रवाना हो गई.

कांता प्रसाद का औक्सीजन लैवल कम हो जाने से कुछ दिनों तक उन्हें वैंटिलेटर पर रखा गया. फिर उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. डाक्टरों ने बताया कि समय पर बैड मिल जाने से उन की जान बच गई है. कुछ ही दिनों के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई. कांता प्रसाद मन ही मन सोच रहे थे कि आज अतुल उन की सहायता के लिए दौड़ कर न आता तो न जाने उन का क्या हाल होता. इस कोरोना महामारी ने आज इंसान को इंसान से दूर कर दिया है. कोरोना का नाम सुनते ही अपने लोग ही दूरियां बना लेते हैं. ऐसे में अतुल और राम प्रसाद ने अपनी जान की परवा किए बगैर उन की हर संभव सहायता की थी. बुरे वक्त में अतुल ही उन के काम आया था, उन के अपने बेटे सुमित ने तो उन से अब महज औपचारिक रिश्ता बना कर रखा था. वे मन ही मन सोचने लगे कि अब उस से तो नाता रखना बेकार है.

अतुल के साथसाथ कांता प्रसाद भी अतीत की यादों से वर्तमान में लौटे. वे अभी भी अतुल को अपने गले से लगाए हुए थे. अतुल ने अपने आप को उन से अलग करते हुए कहा–

“ताऊजी, पुरानी बातों को छोड़ दीजिए, मैं तो आप के बेटे के समान हूं. क्या पिता अपने बेटे को डांटताफटकारता नहीं है. फिर आप तो मेरे बड़े पापा हैं. मुझे आप की बातों का कभी बुरा नहीं लगा. अब आप अतीत की कटु यादों को बिसरा दो और अपनी तबीयत का ध्यान रखो. अपनी मैडिकल की दुकान होने से कई बार अस्पतालों में जाना पड़ता है, इसी कारण कुछेक डाक्टरों से मेरी पहचान हो गई है. इसलिए आप को बैड मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और आप का समय पर इलाज हो गया. अब आप को डाक्टरों ने सख्त आराम की हिदायत दी है.“

बाद में वह ताईजी की ओर मुखातिब होते हुए बोला–

“ताईजी, अब आप ताऊजी के पास ही बैठी रहोगी और इन का पूरा ध्यान रखोगी, साथ ही, अपना भी ध्यान रखोगी. अब आप की उम्र हो गई है, सो आप दोनों को आराम करना चाहिए. अब आप दोनों को किसी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. अभी कुछ ही देर में दिशा और निशा यहां पर आ रही हैं. वे किचन संभाल लेंगी और घर का सारा काम भी वे दोनों कर लेंगी.“

अभी अतुल ने अपनी बात समाप्त भी नहीं की कि राम प्रसाद ने अपनी पत्नी सरला और दोनों बेटियों के साथ घर में प्रवेश किया.

राम प्रसाद भीतर आते ही कांता प्रसाद के पैर छूने के लिए आगे बढ़े तो कांता प्रसाद ने उन्हें अपने गले से लगा लिया. दोनों की आंखों से गंगाजमुना बहने लगी. एक लंबे अरसे से दोनों के मन में जमा सारा मैल पलभर में आंसुओं में बह गया.

दोनों भाइयों को वर्षों बाद गले मिलते देख परिवार के अन्य सदस्यों की आंखें भी पनीली हो गईं. निशा और दिशा सभी के लिए चायनाश्ता बनाने के लिए रसोई घर की ओर मुड़ गई. बैठक में कुछ देर तक निस्तब्धता छायी रही जिसे अतुल ने भंग करते हुए कहा–

“ताऊजी, एक बात कहूं, कोरोना महामारी ने लोगों के बीच दूरियां जरूर बढ़ाई हैं पर हमारे लिए कोरोना लकी साबित हुआ है क्योंकि इस ने 2 परिवारों की दूरियां मिटाई हैं.” यह कहते हुए वह जोर से हंसने लगा, अतुल की हंसी ने गमगीन माहौल को खुशनुमा बना दिया.

कांता प्रसाद और राम प्रसाद की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी. कांता प्रसाद ने अतुल को इशारे से अपने करीब बुलाया और अपने पास बैठाते हुए कहा–

“अतुल बेटा, एक बात ध्यान से सुनना, सरकारी अस्पताल के सामने मैं ने अपनी एक दुकान बनवारीलाल को किराए पर दे रखी है न, वह इस महीने की 30 तारीख को खाली कर रहा है. अब तुम इस दुकान में शिफ्ट हो जाना, आज से यह दुकान तुम्हारी है, समझे. मैं जल्दी ही वकील से यह दुकान तुम्हारे नाम करवाने के लिए बात कर लूंगा.”

अतुल बीच में बोल पड़ा–

“नहीं ताऊजी, मेरी अपनी दुकान अच्छी चल रही है. प्लीज, आप ऐसा न करें.”

“अरे अतुल, मुझे पता है, तेरी दुकान कितनी अच्छी चलती है, एक कोने में तेरी छोटी सी दुकान है और अस्पताल से बहुत दूर भी. बस, तू मेरी बात मान ले. अपने ताऊजी से बहस न कर,” कांता प्रसाद ने मुसकराते हुए अतुल को डांट दिया.

“भाईसाहब, आप ऐसा न करें, दुकान भले ही चलाने के लिए हमें किराए पर दे दें पर इसे अतुल के नाम पर न करें, सुमित…”

राम प्रसाद भविष्य का विचार करते हुए सुझाव देने लगे तो कांता प्रसाद किंचित आवेश में बीच में बोल पड़े, “अरे रामू, यह मेरी प्रौपर्टी है, मैं चाहे जिसे दे दूं. सुमित से अब हम कोई नाता नहीं रखना नहीं चाहते हैं. अब वह हमारा नहीं रहा. सुमित ने तो अपनी अलग दुनिया बसा ली है. उसे हम दोनों की कोई जरूरत नहीं है. अब तो अतुल ही हमारा बेटा है.”

कांता प्रसाद की आंखें फिर छलक गईं. राम प्रसाद ने इस समय बात को और आगे बढ़ाना उचित न समझा.

कुछ ही देर में निशा और दिशा किचन से नाश्ता ले कर बाहर आ गईं. रमा ने निशा और दिशा को अपने पास बैठाया. दोनों रमा के दाएंबाएं बैठ गईं. रमा ने दोनों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा–

“ये जुड़वां बहनें जब छोटी थीं तब दोनों छिपकली की तरह मुझ से चिपकी रहती थीं. रात को सरला बेचारी सो नहीं पाती थी. तब मैं एक को अपने पास सुलाती थी. इन का पालनपोषण करना सरला के लिए तार पर कसरत करने के समान था. देखो, अब ये कितनी बड़ी हो गई हैं.” यह कहते हुए रमा निशा और दिशा का माथा चूमने लगी, फिर कांता प्रसाद की ओर मुखातिब होते हुए बोली–

“आप ने बहुत बातें कर लीं जी, अब मेरी बात भी सुन लो. मैं ने निशा और दिशा का कन्यादान करने का निर्णय लिया है. इन दोनों के विवाह का संपूर्ण खर्च मैं करूंगी. अतुल इन्हें जितना पढ़ना है, पढ़ने देना और अगर तुम प्राइवेटली आगे पढ़ना चाहो तो पढ़ सकते हो. अब तुम्हें और तुम्हारे मम्मीपापा को निशा-दिशा की चिंता करने की जरूरत नहीं है.“

“रमा, तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मैं भी यही कहने वाला था. हम तो बेटी के लिए तरस रहे थे. ये अपनी ही तो बेटियां हैं.”

कांता प्रसाद ने उत्साहित होते हुए कहा तो उन का चेहरा खुशी से चमक उठा मगर उन की बातें सुन कर राम प्रसाद और मूकदर्शक बन कर बैठी सरला की आंखों से आंसुओं की धारा धीरेधीरे बहने लग गई. माहौल फिर गंभीर बन रहा था,  इस बार निशा ने माहौल को हलकाफुलका करते हुए कहा–

“आप सब तो बस बातें करने में ही मशगूल हो गए हैं. चाय की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है. देखो, यह ठंडी हो गई है. मैं फिर से गरम कर के लाती हूं.“ यह कहते हुए निशा उठी तो उस के साथसाथ दिशा भी खड़ी हो गई. दिशा ने सभी के सामने रखी नाश्ते की खाली प्लेटें उठाईं तो निशा ने ठंडी चाय से भरे कप उठाए. फिर दोनों किचन की ओर मुड़ गईं जिन्हें कांता प्रसाद और रमा अपनी नज़रों से ओझल हो जाने तक डबडबाई आंखों से देखते रहे.

बीज बम से लौटेगी धरती की हरियाली

लेखक- वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

कोरोना जैसी महामारी की दूसरी लहर से हमारे देश में मौतों का जो आंकड़ा सामने आया  है, वह चिंता का विषय  है. दूसरी लहर में होने वाली मौतें औक्सीजन की कमी की वजह से हुई हैं. गांवदेहात भी इस महामारी से प्रभावित तो हुए, परंतु अच्छे पर्यावरण और पेड़पौधों की अधिकता के चलते मौतें ज्यादा नहीं हुईं. कोरोना जैसी बीमारी ने हमें सचेत कर दिया है कि हम सरकार के भरोसे न रह कर अपनी सेहत का ध्यान खुद रखें. अच्छी सेहत के लिए हम अपने आसपास का वातावरण साफ और स्वच्छ रखें. जितना हो सके, पेड़ लगाएं.

मध्य प्रदेश के मंडला जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में इन दिनों वृक्षारोपण को बढ़ाने के लिए एक नया प्रयोग किया जा रहा है. यहां के वैज्ञानिक और कर्मचारी बीज बम बनाने में जुटे हुए हैं. बम का नाम सुन कर हम भले ही घबरा जाते हों, लेकिन यह बम प्रकृति को हराभरा करने के लिए तैयार किया जा  रहा है. मानसून सीजन में इस बीज बम को  सिर्फ जमीन पर फेंकना होगा और बस तैयार हो जाएंगे पौधे.

मंडला कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डा. विशाल मेश्राम बताते हैं कि वह बीज, मिट्टी, पानी और खाद को मिला कर जो गोले बना रहे हैं, ये कोई आम मिट्टी के गोले नहीं हैं, बल्कि बीज बम हैं.

दरअसल, लगातार घट रहे वनों के क्षेत्रफल और इस के चलते हो रहे वातावरण में बदलाव को देखते हुए वृक्षारोपण की सलाह दुनिया के सभी पर्यावरण विशेषज्ञ दे रहे हैं.

वैसे तो हर साल मानसून के दौरान वृक्षारोपण होते हैं, लेकिन उन में से कितने पौधे पेड़ बन पाते हैं, यह बात सभी अच्छी तरह जानते हैं. इस समस्या को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा इन दिनों बड़ी संख्या में बीज बम बना रहे हैं.

इन बीज बमों को सीड बौल और अर्थ बौल भी कहते हैं. वर्मी कंपोस्ट खाद, खेत की मिट्टी की मदद से ऐसी बौल बनाई हैं, जिन में किसी भी पेड़ के 2 बीज रखे गए हैं. खासकर इस में सामुदायिक वानिकी के तहत आने वाले वृक्ष के बीज जैसे नीम, हर्रा, बहेड़ा, जामुन, आंवला जैसे दीर्घकालिक पेड़ों को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग किया जा रहा है.

कैसे होगा बम का प्रयोग

मानसून के मौसम में 2 से 3 बरसात के बाद किसी भी ऐसे स्थान पर, जहां वृक्षारोपण करना है, वहां फेंकना है. इस के बाद ये बौल बाकी का काम खुद कर देंगे. पानी मिलते ही इस बौल के बीज अंकुरित हो जाएंगे और इस की केंचुआ खाद और मिट्टी इन्हें बड़े होने में मदद करेगी.

इतना ही नहीं, यदि आप घर में इन्हें लगाना चाहते हैं, तो केवल इसे उस जगह रख दीजिए, जहां आप पौधा लगाना चाहते हैं. यह वृक्षारोपण का सब से आसान तरीका है और नर्सरी में बीज लगाने, पौधे की देखरेख करने और फिर बाद में गड्ढे खोद कर रोपने से लोगों को राहत दिलाएगी.

वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विशाल मेश्राम बताते हैं कि इस का नाम बीज बम इसलिए दिया गया है, क्योंकि हर अटपटे नाम के पीछे यही लौजिक होता है कि इस से आकर्षण पैदा हो.

यदि अटपटा नाम नहीं होता, तो लोग कभी भी आकर्षित नहीं होते. जब लोग आकर्षित होते हैं, तो जानने की कोशिश करते हैं कि यह क्या है. इस वजह से लोगों में जिज्ञासा पैदा होती है.

विकास की अंधी दौड़ के कारण वन लगातार घटते जा रहे हैं. हमें वृक्ष बढ़ाने की जरूरत है, जो औक्सीजन हमें प्राकृतिक रूप से मिलती थी, वह मिलती रहे. वर्षा भी अनियमित हो रही है, इस से उत्पादन की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है. इसलिए बीज बम बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

बीज बम बनाना भी काफी आसान है. इस के लिए खेत की मिट्टी की आवश्यकता है. खेत की मिट्टी, पानी और खाद मिला कर गोले तैयार किए जाते हैं. इन गोलों में बीज डाल दिए जाते हैं.

यह 2 तरीके से काम करता है. इसे या तो  फेंका जाता है या फिर जहां वृक्षारोपण करना है, वहां इस को रख दिया जाता है. मानसून आने के पश्चात जब इस में नमी होगी, उस से बीजों का अंकुरण होगा और पौधे तैयार हो जाएंगे. पौधारोपण की इस नई तकनीक को जानने के लिए लोगों में रुचि पैदा हो रही है.

Contact Point Headache: क्या है कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द

कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द एक प्रकार से सब माइग्रेन है. इस के चलते सिर में भयंकर दर्द होता है, जिस से मरीजों को असहनीय और लंबे समय तक रहने वाली पीड़ा का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा इस दर्द की वजह से चेहरे के एक सीमित हिस्से में घाव या पीड़ा का भी अनुभव होता है. आमतौर पर मरीज सालों तक इस माइग्रेन पर ध्यान न दे कर इलाज नहीं कराते हैं.

सामान्यता लोग इस समस्या के लिए न्यूरोलौजिस्ट, डैंटिस्ट, स्पैशलिस्ट आदि के पास जाने की सलाह देते हैं, हालांकि कोई भी इस पीड़ा की असली वजह का पता नहीं लगा सकता है. यहां तक कि दर्द निवारक, संक्रमण रोधी एजेंट भी इस दर्द में आप को बहुत आराम नहीं पहुंचा सकते हैं. ईएनटी विशेषज्ञ द्वारा इस का विश्लेषण किया जा सकता है. वही इस का कारण बता सकता है और आप की मदद कर सकता है.

आमतौर पर कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द का एक इतिहास होता है, जिस में बाद में अन्य कारण भी शामिल हो सकते हैं जैसे आमतौर पर यह दर्द ऊपरी श्वसन संदूषण के कारण होता है. यह दर्द चेहरे के एक तरफ सीमित क्षेत्र में होता है. यह पीड़ा ऊपरी दांतों और मुंह के ऊपरी भाग तक सीमित रहती है. सिरदर्द के निर्धारण के लिए सर्दीखांसी की दवा अच्छा काम करती है, मगर ऐसा संयोग से होता है.

दर्द शुरू करने वाले कारक

शीत लहर,

हाइपोग्लेसिमिया,

भावनात्मक सदमा,

अत्यधिक चाय या कौफी का सेवन,

नींद की कमी,

असंतुलित खानपान.

कारण

वास्तव में नाक के भीतर एक जगह होती है जहां एक शिरा (तंत्रिका) 2 हिस्सों के बीच पैक होती है. यह बहुत हद तक पैर के कटिस्नायुशूल जैसा होता है, मगर यह नाक और चेहरे के बीच होता है, जो शिरा 2 हिस्सों से घिरी होती है, वह या तो सामने से बंद शिरा होती है जोकि ट्राइजैमिनल शिरा के आंख वाले भाग की शाखा होती है या उन शिराओं में से एक होती है, जो स्पेनोप्लेटाइन केंद्र को अलग करती हैं.

इस कारण से पीड़ा उन हिस्सों में होती है जहां ये शिराएं दबी होती हैं. नाक की साइड प्रोफाइल में दोनों शिराएं पाई जाती हैं. दोनों शिराएं उस झिल्ली के भीतर होती हैं, जो नाक के दाएं और बाएं हिस्से को अलग करती हैं और नाक के आगे के हिस्से में स्थित होती हैं. पैट्रीगोपलेटाइन केंद्र इस से आगे मुंह और ऊपरी दांतों में जाता है.

अगर सभी चीजों पर विचार करें, तो ऊपरी दांतों और मसूड़ों में दर्द या मुंह के ऊपरी हिस्से में परेशानी के साथ कौंटैक्ट पौइंट माइग्रेन का अनुभव करने वाले मरीजों के स्पेनोप्लेटाइन केंद्र में शिकायत होती है, हालांकि सामने की एथमौइस शिरा में ऐसा नहीं होता है.

नाक के भीतर मौजूद गिल्टी पार्टी जोकि लगातार शिरा पर दबाव डालती है, एक झिल्ली होती है, जो नाक के किनारे पर गड्ढा या उभार सा बना देती है. इसे नाक के भीतर गोखरू की तरह समझें. झिल्ली एक विभाजक होती है, जो प्रिविलिज और नाक के बाएं दबाव को विभाजित करती है. उसे सीधा होना चाहिए. फिर भी जब इस में विसंगति आती है, तो यह एक साइड में सिकुड़ सकती है. अत्यधिक गंभीर स्थिति में यह क्षैतिज नैजल विभाजक में जा सकती है, जहां केंद्र और सर्पिल के कारण पिनपौइंट दिमागी दर्द होता है.

झिल्ली के अलावा अन्य संरचनाएं भी हैं, जो कभीकभी शिराओं पर दबाव बनाती हैं, जिस से कौंटैक्ट पौइंट दिमागी दर्द हो सकता है. इस में कोंच बुलोसा केंद्रीय सर्पिल से प्रवाहित वायु या अनियमित स्थिर सर्पिल की समस्या शामिल है. सर्पिल नाक के भीतर की विशिष्ट संरचना होती है, जो नाक में जाने वाली हवा को गरम और नम करती है.

उपचार

कौंटैक्ट पौइंट माइग्रेन शुरू करने वाले ये कारण संरचना से संबंधित हैं, इसलिए ऐसी कोई गोली या नैजल शौवर नही है जो इस समस्या का आसानी से समाधान कर दे, बिलकुल उसी तरह जैसे टूटी हड्डी को सिर्फ दवा खा कर ठीक नहीं किया जा सकता है. नैजल स्प्लैश और सर्दीखांसी की दवा से थोड़ी राहत मिल सकती है (कुछ घंटों से 1-2 दिन तक) क्योंकि ये सौल्यूशन उस सूजन को कम कर देते हैं, जो जगह बनाने और शिरा के दबाव को कम करने से रोकती है जैसे ही म्यूसोकल सूजन फिर से बढ़ती है, दर्द शुरू हो जाता है.

दर्द का जड़ से उपचार करने का मानक तरीका सर्जरी है, जिस में शिरा पर दबाव डालने वाली संरचनाओं को ठीक किया जाता है. इस सर्जरी में झिल्ली को ठीक करना या सैप्टल गोड को अपरूट किया जाता है. असामान्य स्थिति में सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है. इस का उद्देश्य नाक में जितनी संभव हो सके उतनी जगह बनाना है, जिस से शिरा पर दबाव न पड़े और म्यूसोकल सूजन न हो.

असाधारण मामलों में कुछ अन्य चीजें भी हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है जैसे इन्फ्यूजन, हालांकि इस से भी कुछ समय के लिए ही राहत मिलती है (सब कुछ ठीक रहने पर कुछ महीने, आमतौर पर कुछ सप्ताह). इस से होने वाली राहत अस्थाई होने के कारण अब हम इस विकल्प की अनुशंसा नहीं करते हैं.

– डा. शिखा शर्मा डोरल, डीएनबी, सीनियर कंसल्टैंट ईएनटी सर्जन, प्राइमस सुपरस्पेश्यलिटी हौस्पिटल, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली

स्टफ्ड मसाला इडली बनाने का आसान तरीका

इडली वैसे तो साउथ इंडियन डिश है लेकिन पूरे भारत में लोग इसे पूरे चाव से खाते हैं. इडली लगभग देश और विदेशों में रहने वाले भारतीय लोगों को पसंद आता है. आइए जानत हैं इंडली बनाने का तरीका.

सामग्री−

400 ग्राम इडली बैटर

चार उबले आलू

आठ से दस करीपत्ता

दो हरी मिर्च बारीक कटी

एक प्याज कटा हुआ

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं यम्मी सोया मंचूरियन

हरा धनिया कटा हुआ

एक छोटा चम्मच अदरक लहसुन पेस्ट

दो टेबलस्पून कुकिंग ऑयल

हल्दी पाउडर

नमक स्वादानुसार

ये भी पढ़ें- घर पर आसानी से ऐसे बनाएं वेज बर्गर

विधि

स्टफ्ड मसाला इडली बनाने के लिए सबसे पहले आलू को मैश करके या फिर कद्दूकस करें. इसके बाद एक पैन गर्म करें और उसमें ऑयल डालें. जब ऑयल गर्म हो जाए तो इसमें करीपत्ता डालें. इसके बाद इसमें प्याज डालकर दो मिनट के लिए फ्राई करें. अदरक−लहसुन पेस्ट डालकर मिक्स करें. अब इसमें हल्दी व नमक डालकर मिलाएं. आखिरी में इसमें कद्दूकस किए हुए आलू डालकर  लो फलेम पर करीबन एक मिनट के लिए पकाएं. लास्ट में कट्टा हुआ धनिया पत्ता मिलाएं.

ये भी पढ़ें- कद्दू का रायता

इसके बाद आप इडली पॉट लें और उसमें एक गिलास पानी डालकर इडली पॉट को कवर करें. पानी को हाई फ्लेम पर गर्म होने दें. वहीं दूसरी ओर, इडली बैटर में थोड़ा सा नमक डालकर मिक्स करें. अब हाथों पर हल्का सा ऑयल लगाएं और थोड़ा सा आलू का मिश्रण लेकर छोटी−छोटी टिक्की बनाएं. इसी तरह सारे मिश्रण की टिक्की तैयार कर लें.

अब इडली टे लेकर उसमें थोड़ा सा ऑयल लगाकर उसे चिकना कर लें. इसके बाद हर खांचे में थोड़ा−थोड़ा इडली का बैटर डालें. इसके ऊपर तैयार टिक्की डालें और फिर ऊपर से थोड़ा सा बैटर और डालें. इसी तरह सारे खांचों में बैटर और टिक्की डालें. इडली पॉट गर्म होने दें.

गाकर मीडियम फ्लेम पर करीबन 15 मिनट के लिए इडली को पकने दें. आखिरी में गैस बंद करें और इडली के खांचे को थोड़ा ठंडा होने दें. चाकू की मदद से चेक करें अगर इडली बन गई है तो उसे सर्व करें. .

जब कोई युवती पहली बार सेक्स करती है तो बहुत दर्द होता है, क्या यह सच है?

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवती हूं. मैं ने सुना है कि जब भी कोई युवती किसी युवक से पहली बार शारीरिक संबंध स्थापित करती है, तो बहुत दर्द होता है. क्या यह सच है और ऐसा क्यों होता है?

जवाब

कुंआरी युवतियों के यौनांग में एक पतली सी झिल्ली होती है, जिसे कौमार्य झिल्ली कहते हैं. जब कोई युवती पहली बार संबंध बनाती है तो वह झिल्ली फट जाती है, जिस से थोड़ा सा रक्तस्राव और हलका सा दर्द होता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

ये भी पढ़ें…

पहले मिलन को कुछ इस तरह से बनाएं यादगार

अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास: वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग: पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

प्यार भरा उपहार: पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए आप एकदूसरे के लिए गिफ्ट भी खरीद सकते हैं. जो आप दोनों का पर्सनलाइज्ड फोटो फ्रेम, की रिंग या सैक्सी इनरवियर भी हो सकता है. ऐसा कर के आप माहौल को रोमांटिक और उत्तेजक बना सकती हैं.

खुल कर बात करें: पहले मिलन को रोमांचक और यादगार बनाने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करें. अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें. अपने मन में उठ रहे सवालों के हल पूछें. एकदूसरे की पसंदनापसंद पूछें. जितना हो सके पौजिटिव रहने की कोशिश करें.

सैक्स सुरक्षा: संबंध बनाने से पहले सैक्सुअल सुरक्षा की पूरी तैयारी कीजिए. सैक्सुअल प्लेजर को ऐंजौय करने से पहले सैक्स प्रीकौशंस पर ध्यान दें. आप का जीवनसाथी कंडोम का प्रयोग कर सकता है. इस से अनचाही प्रैगनैंसी का डर भी नहीं रहेगा और आप यौन रोगों से भी बच जाएंगी.

सैक्स के दौरान

 – सैक्सी पलों की शुरुआत सैक्सी फूड जैसे स्ट्राबैरी, अंगूर या चौकलेट से करें.

– ज्यादा इंतजार न कराएं.

– मिलन के दौरान कोई भी ऐसी बात न करें जो एकदूसरे का मूड खराब करे या एकदूसरे को आहत करे. इस दौरान वर्जिनिटी या पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के बारे में कोई बात न करें.

– संबंध के दौरान कल्पनाओं को एक तरफ रख दें. पोर्न मूवी की तुलना खुद से या पार्टनर से न करें और वास्तविकता के धरातल पर एकदूसरे को खुश करने की कोशिश करें.

– बैडरूम में बैड पर जाने से पहले अगर आप घर में या होटल के रूम में अकेली हों तो थोड़ी सी मस्ती, थोड़ी सी शरारत आप काउच पर भी कर सकती हैं. ऐसी शरारतों से पहले सैक्स का रोमांच और बढ़ जाएगा.

– सैक्स संबंध के दौरान उंगलियों से छेड़खानी करें. पार्टनर के शरीर के उत्तेजित करने वाले अंगों को सहलाएं और मिलन को चरमसीमा पर ले जा कर पहले मिलन को यादगार बनाएं.

– मिलन से पहले फोरप्ले करें. पार्टनर को किस करें. उस के खास अंगों पर आप की प्यार भरी छुअन सैक्स प्लेजर को बढ़ाने में मदद करेगी.

– सैक्स के दौरान सैक्सी टौक करें. चाहें तो सैक्सुअल फैंटेसीज का सहारा ले सकती हैं. ऐसा करने से आप दोनों सैक्स को ज्यादा ऐंजौय कर पाएंगे. लेकिन ध्यान रहे सैक्सुअल फैंटेसीज को पूरा के लिए पार्टनर पर दबाव न डालें.

– संयम रखें. यह पहले मिलन के दौरान सब से ज्यादा ध्यान रखने वाली बात है, क्योंकि पहले मिलन में किसी भी तरह की जल्दबाजी न केवल आप के लिए नुकसानदेह होगी, बल्कि आप की पहली सैक्स नाइट को भी खराब कर सकती है.

सैक्स के दौरान बातें करते हुए सहज रह कर संबंध बनाएं. तभी आप पहले मिलन को यादगार बना पाएंगे. संबंध के दौरान एकदूसरे के साथ आई कौंटैक्ट बनाएं. ऐसा करने से पार्टनर को लगेगा कि आप संबंध को ऐंजौय कर रहे हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

Top 10 Best Raksha Bandhan Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट रक्षाबंधन कहानियां हिंदी में

Top 10 Best Raksha Bandhan Story in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे रक्षा बंधन की खास कहानियां, जिसमें आप भाई- बहन के प्यार की अनोखा बंधन को दिखाएंगे, इस आर्टिकल में आपको 10 रक्षा बंधन की खास कहानियां को दिखाएंगे. जिससे आप भी अपने रक्षा बंधन को यादगार बना सकते हैं.

  1. Raksha Bandhan 2021 : सौगात- नमिता को किस बात की सबसे ज्यादा खुशी थी?

raksha bandhan 2021

लिफाफा नाम सुन कर एकबारगी उस के जेहन में तरहतरह के भाव पनपने लगे. फिर वह लिफाफे पर अंकित भेजने वाले के नाम को देख अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पाई. वहीं खडे़खड़े उस ने लिफाफा खोला, जो उस के चचेरे भाई सुजीत ने भेजा था. लिफाफे के अंदर का कार्ड जितना खूबसूरत था, उस पर दर्ज पता उतने ही सुंदर अक्षरों में लिखा गया था. सुजीत ने अपने पुत्र मयंक की शादी में आने के लिए उन्हें आमंत्रित किया था. शादी का कार्ड नमिता की ढेर सारी स्मृतियों को ताजा कर गया. वह तेज कदमों से बढ़ी और बरामदे में रखी कुरसी पर बैठ गई. फिर लिफाफे से कार्ड निकाल कर पढ़ने लगी. एकदो बार नहीं, उस ने कई बार कार्ड को पढ़ा. उस ने कार्ड को लिफाफे में रखना चाहा, उसे आभास हुआ कि लिफाफे के अंदर और कुछ भी है. उस ने लिफाफे के कोने में सिमटे एक छोटे से पुरजे को निकाला.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

2.Raksha Bandhan Special: सत्य असत्य

raksha bandhan 2021

कर्ण के एक असत्य ने सब के लिए परेशानी खड़ी कर दी. जहां इसी की वजह से हुई निशा के पिता की मौत ने उसे झकझोर कर रख दिया, वहीं खुद कर्ण पछतावे की आग में सुलगता रहा. पर निशा से क्या उसे कभी माफी मिल सकी?घर की तामीर चाहे जैसी हो, इस में रोने की कुछ जगह रखना.’ कागज पर लिखी चंद पंक्तियां निशा के हाथ में देख मैं हंस पड़ी, ‘‘घर में रोने की जगह क्यों चाहिए?’’‘‘तो क्या रोने के लिए घर से बाहर जाना चाहिए?’’ निशा ने हंस कर कहा.‘‘अरे भई, क्या बिना रोए जीवन नहीं काटा जा सकता?’’

‘‘रोना भी तो जीवन का एक अनिवार्य अंग है. गीता, अगर हंसना चाहती हो तो रोने का अर्थ भी समझो. अगर मीठा पसंद है तो कड़वाहट को भी सदा याद रखो. जीत की खुशी से मन भरा पड़ा है तो यह मत भूलो, हारने वाला भी कम महत्त्व नहीं रखता. वह अगर हारता नहीं तो दूसरा जीतता कैसे?’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

3.Raksha Bandhan 2021 : अकाल्पनिक

rakha bandhan special

एक रोज कंप्यूटर चेयरटेबल खरीदते  हुए शोरूम में बड़े आकर्षक  डबलबैड नजर आए. मम्मीपापा के कमरे में थे तो सिरहाने वाले पलंग मगर दोनों के बीच में छोटी मेज पर टेबललैंप और पत्रिकाएं वगैरा रखी रहती थीं. क्यों न मम्मीपापा के लिए आजकल के फैशन का डबलबैड और साइड टेबल खरीद ले. लेकिन डिजाइन पसंद करना मुश्किल हो गया. सो, उस ने मम्मीपापा को दिखाना बेहतर समझा. डबलबैड के ब्रोशर देखते ही गीता बौखला गई, ‘‘हमें हमारे पुराने पलंग ही पसंद हैं, हमें डबलवबल बैड नहीं चाहिए.’’‘‘मगर मुझे तो घर में स्टाइलिश फर्नीचर चाहिए. आप लोग अपनी पसंद नहीं बताते तो न सही, मैं अपनी पसंद का बैडरूम सैट ले आऊंगा,’’ मयंक ने दृढ़स्वर में कहा.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

3. Raksha Bandhan 2021 : मुंहबोली बहनें- रोहन ने क्यों दी रिश्ता खत्म करने की धमकी?

rakshabandhan 2021

ताईजी, खाना तो आप रोहन भैया को ही खिलाइए, मैं तो आज उन का खून पी कर ही अपना पेट भरूंगी,’’ कह कर मैं धड़धड़ाती हुई रोहन भैया के कमरे में घुस गई.

‘‘अरे मम्मा, आप ने इस भूखी शेरनी को मेरे कमरे में क्यों भेज दिया? यह तो लगता है मुझे कच्चा ही चबाने आई है,’’ मेरे तेवर और हावभाव देख कर रोहन भैया पलंग और कुरसी लांघते हुए भाग कर किचन में ताईजी की बगल में आ खड़े हुए. रोहन और सोनाली की लड़ाई की वजह जानने के लिए कल्कि करें यहां.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

4. Raksha Bandhan 2021 : खैरू की बलि- छोटी बहन के जन्म से घर में सन्नाटा क्यों छा गया

raksha bandhan special

जितने दिन पापा घर में रहे हर दिन त्योहार की तरह बीता. चूल्हे की आग से तपती कंचनवर्णा मां के चेहरे पर जरा भी शिकन न दिखाई देती. वह बड़ी फुर्ती से पापा की पसंद के व्यंजन बनाती रहतीं. दोपहर के 2-3 बजे पापा गांव से दूर घूमने निकल पड़ते. कभी हम बहनें भी उन के साथ चल देतीं. गोल, चमकीले, चौकोर पत्थरों के ऊपर जब कभी हम सुस्ताने बैठतीं तो पापा भी बैठ जाते. पापा ध्यान दिलाते, ‘देखो बच्चो, कितना सुंदर लग रहा है यह सब. खूबसूरत पहाड़, स्लेटी रंग के पत्थरों से ढकी छतें कितनी प्यारी हैं.’तब जा कर कहीं हमें पहाड़ों की सुंदरता का एहसास होता. पहाड़ी खेतों के बीच चलतेचलते सांझ हो जाती और फिर अंधेरा छाने लगता. मैं पापा को याद दिलाती कि अब हमें वापस चलना चाहिए. तारों की छांव में हम वापस मुड़ते. पहाड़ी ढलान पर चलना सहज नहीं होता, ऊपर तारों की चादर फैली हुई और नीचे कलकल करती पहाड़ी नदी. पापा बिना कठिनाई के कदम बढ़ाते साथ ही हमें ऊंचीनीची, संकरी जगहों पर हाथ पकड़ कर रास्ता तय करवाते.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

5. Raksha Bandhan 2021 : अनमोल रिश्ता-रंजना को संजय से क्या दिक्कत थी?

rakshabandhan 2021

 

मैं अपने मातापिता की एकलौती संतान थी और 12वीं में पढ़ती थी. पिताजी रेलवे में टीटीई के पद पर कार्यरत थे. इस कारण अकसर बाहर ही रहते. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण हम ने डिसाइड किया कि घर का एक कमरा किराए पर दे दिया जाए. बहुत सोचविचार कर पापा ने 2 स्टूडैंट्स जो ग्रैजुएशन करने के बाद आईएएस की तैयारी करने केरल से दिल्ली आए हुए थे, को कमरा किराए पर दे दिया. जब वे हमारे यहां रहने आए तो आपसी परिचय के बाद उन्होंने मुझे कहा, ‘पढ़ाई के सिलसिले में कभी जरूरत हो तो कहिएगा.’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

6. Raksha Bandhan 2021 : ऐसा क्या हुआ कि अमित का बड़े भाई के प्रति नजरिया बदल गया

rakhi special

रवि घर में घुसता हुआ बोला, ‘‘मां, आज फिर अमित आवारा लड़कों के साथ घूम रहा था. मैं ने इसे उन के साथ जाने से मना किया तो यह नाराज हो गया. मैं ने इसे कईर् बार कहा है कि वे अच्छे लड़के नहीं हैं, जैसी संगत होगी वैसी रंगत आएगी. संभल जाओ, इस बार तुम्हारे 10वीं के पेपर हैं, 2 महीने बचे हैं. अब भी साल भर की तरह मटरगश्ती में रहोगे तो अच्छे अंक कैसे आएंगे?’’

‘‘हां, तू तो जैसे बड़े अच्छे अंक लाया था न 10वीं में. मनचाहा सब्जैक्ट भी नहीं ले सका. तुझ से तो अच्छे ही अंक लाता हूं कम पढ़ने पर भी. बड़ा बनता है, बड़ा भाई,’’ अमित ने नाराजगी जताई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

7. Rakhi Special 2021 : अल्पना

मैं अमेरिका में ही था. तभी अल्पना की शादी हो गई थी. यह खबर मुझे अपनी मां से मिली थी. मां बाबा थे तब तक अल्पना और उस के परिवार की कुछ न कुछ खबर मिलती रहती थी… 7-8 साल पहले मां का और फिर बाबा का देहांत हो जाने के बाद कभी इतने करीबी रहने वाले अल्पना के परिवार से मानों मेरा संबंध ही टूट गया था. आजकल सचमुच जीवन इतना फास्ट हो गया है कि जो वर्तमान में चल रहा है बस उसी के बारे में हम सोच सकते हैं… बस उसी से जुड़े रहते हैं… कभीकभार भूतकाल इस तरह अल्पना के रूप में सामने आ जाता है तभी हम भूतकाल के बारे में सोचने लगते हैं.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

8. Raksha Bandhan 2021 : एक छोटी सी गलतफहमी – समीर अपनी बहन के बारे में क्या जाकर हैरान हुआ

rakhi special

मलयेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में कई देशों की टीमें आई थीं. वहीं पर दीदी की मुलाकात अनुपम से हुई जो किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी का रिश्तेदार था और उस के साथ ही क्वालालम्पुर आया था. दोनों की मुलाकात काफी दिलचस्प थी. दिन में दोनों एकसाथ कौफी पीने जाया करते थे. चेहरे के नैननक्श अपने जैसे होने के कारण दोनों ने एकदूसरे से बात करने में दिलचस्पी दिखाई. धीरेधीरे दोनों ने ही महसूस किया कि उन में दोस्ती के अलावा कुछ और भी है. इसी तरह 7 दिन की मुलाकात में ही उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. दीदी जब लौट कर आईं तो कुछ बदलीबदली सी थीं. मां की अनुभवी आंखों को समझते देर न लगी कि दीदी के मन में कुछ उथलपुथल मची है. मां के थोड़े से प्रयासों से पता चला कि दीदी जिसे चाहती हैं वह पाकिस्तानी हिंदू है. यद्यपि लड़का पाकिस्तान में इंजीनियर है पर वह पाकिस्तान से बाहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में है. कुल मिला कर लड़का किसी भी तरफ से अनदेखा करने योग्य न था. बस, उस का पाकिस्तानी होना ही सब के लिए चुभने वाली बात थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

9. Raksha Bandhan 2021: साहिल ने कैसे निभाया अपने भाई होने का फर्ज

raksha bandhan 2021

साहिल अपनी अम्मी की बातें सुन कर मुसकराता और कहता, ‘‘हां अम्मी, मैं अपना पूरा खयाल रखूंगा और खाना भी ठीक समय पर खा लिया करूंगा. वैसे भी अम्मी अब मैं बड़ा हो गया हूं और मुझे  अपना खयाल रखना आता है.’’

साहिल को इंटरव्यू देने जयपुर जाना था. उस के दिल में जयपुर घूमने की चाहत थी, इसलिए वह 10-15 दिन जयपुर में रहना चाहता था. सारा सामान पैक कर के साहिल अपनी अम्मी से विदा ले कर चल पड़ा.

अम्मी ने साहिल को ले कर बहुत सारे ख्वाब देखे थे. जब साहिल 8 साल का था, तब उस के अब्बा बब्बन मियां का इंतकाल हो गया था. साहिल की अम्मी पर तो जैसे बिजली गिर गई थी. उन के दिल में जीने की कोई तमन्ना ही नहीं थी, लेकिन साहिल को देख कर वे ऐसा न कर सकीं.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

10. Raksha Bandhan 2021 : कच्चे धागे- आशा के साथ कौन सी कहानी उस की भाभी ने दोहराई

rakha bandhan 2021

‘तुम सोच रही होगी कि इतने सालों बाद कैसे तुम्हें चिट्ठी लिख रही हूं. सच कहूं तो तुम से संवाद स्थापित करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी. किस मुंह से तुम्हें चिट्ठी लिखती. जो कुछ भी मैं ने तुम्हारे साथ किया है, वह तो अक्षम्य है, पर तुम्हारा सरल हृदय तो सागर की तरह विशाल है. तुम उस में मेरा यह अक्षम्य अपराध अवश्य समेट लोगी, यही सोच कर लिखने की धृष्टता कर रही हूं. ‘मेरा हृदय अपने किए पर हमेशा मुझे कचोटता रहता है. सोचती हूं, अनजाने ही छोटे से स्वार्थ के वशीभूत हो कर अपनी ही कितनी बड़ी हानि की जिम्मेदार बनी. इन सालों में अकेले रह कर समझ पाई कि सारे नातेरिश्तों का सुंदर समन्वय ही जीवन को परिपूर्णता व सार्थकता प्रदान करता है और इन्हीं मधुर संबंधों में ही जीवन की परितृप्ति है.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अज्ञातवास – भाग 3 : अर्चना किसे कहानी सुनाना चाहती थी ?

लेखक-एस भाग्यम शर्मा

“यह बात नहीं है नीरा. आज से 40 साल पहले की बात सोच. हम तो साधारण मध्यवर्गीय लोग बहुत ज्यादा डरते हैं. तुझे तो पता ही है. मैं ने गलती की, उस की सजा मुझे मिलनी चाहिए.”

“अरी पागल, तूने कोई गलती नहीं की, मनुष्य को जैसे भूख लगती है, ऐसे ही इस उम्र में शरीर की भूख होती है. कामशक्ति को भी शांत करना जरूरी है. इस शारीरिक भूख को भी यदि तरीके से शांत न किया जाए तो कई मनोवैज्ञानिक व शारीरिक परेशानियां हो जाती हैं. तुम 35 साल की हो गई थीं. तुम्हारी शादी नहीं हो रही थी. उसी समय तुम्हारी भेंट एक आकर्षक व्यक्तित्व से मिलना, उस का भी तुम्हारी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक बात थी. तुम ने जो कदम उठाया वह गलत था, यह तो मैं नहीं कहूंगी. इस उम्र में गलती हो सकती है, उसे सुधारना चाहिए था. गलती मनुष्य से ही होती है. फिर आगे क्या हुआ, यह बताओ?”

“बेटा पढ़ लिया. बेटा होशियार था. सब ने मदद की. मैं भी वहीं पर नौकरी करती थी. पर बहुत ही कम रुपयों पर. मजबूरी का नाम महात्मा गांधी. खानापीना फ्री था ही, हाथखर्ची हो जाती थी.”

“पर बताओ तूने किसी से संबंध क्यों नहीं रखा?””भैया ने मना कर दिया था न, तुम किसी से संपर्क नहीं रखोगी? मुझे उन की बात रखनी थी न. बदनामी का मुझे भी डर था.”

“भैया ने तुम्हारी सुध नहीं ली?””नहीं, ऐसी बात नहीं. भैया तो मेरी राजीखुशी का समाचार पूछते रहते थे. जबतब रुपए भी भेजते थे.”

“तुम से मिलने कोई नहीं आया?”एक बार भैया आए थे और एक बार भाभी आई थीं. पर मेरा समय ही ख़राब रहा कि भैया और भाभी दोनों ही बहुत जल्दी एक साल के अंदर ही गुजर गए. एक बार बड़ा भतीजा आया था, उसी समय मैं ने उस को नंबर दे दिया था. तभी तो इतने दिन बाद तुम्हें मेरा नंबर मिल गया. यह मेरा अहो भाग्य.”

“तुम अज्ञातवास में रहीं. मैं ने सुना, रामायण में एक प्रसंग आता है कि अहल्या को भी इसी तरह अज्ञातवास में रहना पड़ा. खुद ही खेती करती, फसल उगाती, उसे स्वयं अकेले काटती और स्वयं ही बना कर खातीपीती रही. जैसे लोगों ने फैला दिया अहल्या पत्थर की शिला नहीं थी, उस ने तो कठोर अज्ञातवास ही सहन किया था. जिसे तुम भुगत रही हो. सचमुच में अज्ञातवास में रहना बहुत ही कष्टकारक है. खाना, कपड़ा और मकान जितना जरूरी है, हमें अपने लोग, हमारी पहचान इस की भी बहुत जरूरत है. इस के बिना रह कर तुम ने कितना कष्ट महसूस किया होगा, मैं सोच सकती हूं. इस  लौकडाउन  में तो हर कोई तुम्हारी तकलीफ को महसूस कर सकता है. परंतु इस समय तो इंटरनैट, मोबाइल सबकुछ है, उस समय तुम ने अपना समय कैसे काटा होगा?”

“नीरा, अब तो मेरा समय निकल गया. अब तो मेरी कइयों से दोस्ती हो गई. जो गलती हो गई, उस का फल भुगत लिया.””बारबार गलती मत कर, अर्चना. मुझे एक बात का दुख है कि तू समाज से अपने हक के लिए लड़ी नहीं. जिस आदमी ने तुझे धोखा दिया वह  आराम से रह रहा है. तू तो उस के बारे में नहीं जानती पर उस ने तो शादी भी कर ली होगी, बीवीबच्चे भी होंगे उस के! वह तो आदमी है, उस के सात खून माफ हैं? हम स्त्रियों की कोख है और हम मोह वश बच्चे को भी छोड़ना नहीं चाहतीं. यही हमारी कमजोरी है और हम बदनामी से डरते हैं.”

“अब क्या हो सकता है नीरा, जो बीत गई सो बीत गई.””अब तू वहां क्यों रह रही है? तेरा बेटा तो अब कमाने लगा, विदेश में रहता है.”

“जैसे ही मेरा बेटा कमाने लगा, मैं ने मकान ले लिया और हम  सुविधापूर्वक रहने लगे. बेटे की शादी भी हो गई. बहू आ गई और 2 बच्चे भी हो गए. फिर उसे एक अच्छा औफर मिला, तो वह विदेश चला गया.”

“तू क्यों नहीं गई?””मैं ने 3 बार वीजा के लिए अप्लाई किया था. पर अफसोस मुझे नहीं मिला. मैं वहीं रहती रही. फिर मुझे लगा, इस उम्र में अकेले रहना मुश्किल है. तब मैं सारे सामान को जरूरतमंद गरीबों में बांट कर यहां सेवा करने के लिए आ गई. मेरे बेटे ने बहुत मना किया. मुझे देखने वाला कोई नहीं है. कल कोई हारीबीमारी हो, तो कौन ध्यान रखेगा? यहां लोग तो हैं. मैं ने इन लोगों से रिक्वैस्ट की. ये लोग मान गए. पहले कुछ रुपए देने की बात हुई थी पर ये लोग मुकर गए, कहने लगे कि तुम्हारा बेटा कमाता है. खैर, खानापीनारहना फ्री है. और खर्चे के लिए बेटा भेज देता है.”

“यह जिंदगी तुझे रास आ गई?””रास आए न आए, क्या कर सकते हैं?  एक बात सुन, मेरी भोपाल जाने की इच्छा हो रही है. हम दोनों चलें.”

“अर्चना, बड़ा आश्चर्य… अभी भी तेरे मन में एक कोने में सब से मिलने की इच्छा हो रही है? अब कितनी मुश्किल है? हम दोनों 77 साल के हो गए. इस समय जाना ठीक नहीं है. अभी तो कोरोना है. मेरे घर वाले भी नहीं भेजेंगे. एक चेंज के लिए कभी हो सका, तो चलेंगे. अभी अपनी फोटो भेज. मैं भी अपनी भेजती हूं.”

“मेरे पास तो स्मार्टफोन नहीं है. बेटे ने ले कर देने के लिए कहा था पर मैं ने ही मना कर दिया. खैर, कोई बात नहीं, प्रिया के मोबाइल से भेज दूंगी. उस का नंबर तुम्हें दूंगी. तुम उस में भेज देना. प्लीज, मुझे फोन करते रहना. क्या मैं तुम्हें फोन कभी भी कर सकती हूं?”

“जरूर, तू ऐसे क्यों बोली, मुझे बहुत रोना आ रहा है? तू इतनी दयनीय कैसे बन गई? तुम कैसी थीं और कैसी हो गईं? यार, तुम्हारी क्या हालत हो गई!”

“नीरा, 60 साल बाद मुझे जो खुशी मिली, उस को कैसे भूल जाऊंगी. अब मैं सही हो जाऊंगी, देख, मरने के पहले किसी को यह कहानी सुनाना चाहती थी. तुम्हें सुना दिया. मैं हलकी हो गई. गुडबाय, फिर मिलेंगे.”

“गुडबाय, गुडनाइट” कह कर मैं ने फोन रख दिया.अपनी सहेली के मिलने की खुशी मनाऊं या उस की बरबादी पर रोऊं? कुछ समझ में नहीं आ रहा. हमारा समाज आखिर कब बदलेगा…

संपादकीय

अगर देश में माहमारी, गरीबी मंहगाई, बेरोजगारी के बावजूद लोग चुप हैं तो इसलिए कि सरकार का खुफिया तंत्र हर ऐसे जने पर नजर रख रहा है जो सच को समाने ला सकता है. इजराइल की एक कंपनी एनएसओ ने एक सौफ्टवेयर बनाया है जो सिर्फ एक ब्लैंक काल कर के किसी के टेलिफोन में डाला जा सकता है और फिर उस का कैमरा भी चालू हो जाएगा और मैसेज भी सौफ्टवेयर के जरिए उस इजरायली कंपनी के हाथों में होंगे.

भारत सरकार चाहे इंकार कर रही है पर विदेशी खोजी पत्रकारों ने पता लगाया है कि……..जैसे देशों ने इस सौफ्टवेयर को खरीदा है और भारत में 400 लोगों का फोन अब टैप हो रहा है. इस का अभास इन सब लोगों को है पर कोई सुबूत अब तक नहीं था और इसी अहसास की वजह से ये सरकार की पोलपट्टी खोल नहीं रहे थे कि अपने जैसे लोगों को कैसे ढूंढ़े और कैसे जनता के दर्द की बात का जगजाहिर करें.

ये भी पढ़ें- पाकिस्तानी औरतें

सरकार इस सौफ्टवेयर से राहुल गांधी, उस के साथियों, बहुत से पत्रकारों, अपने ही मंत्रियों की हरकतों पर नजर रख रही है और वे कुछ तैयारी करे उस से पहले गिरफ्तारी न करें तो भी कुछ न कुछ दबाव डाल देती. जनता के दर्द की आवाज बंद हो कर रह जाती. टीवी और समाचारपत्रों में काम करने वालों को एहसास रहा है और वे इसलिए कोविड से पहले और उस के दौरान जनता के दर्द को छिपा गए.

यह जरूर है कि बहुत से लोग चुप इसलिए है कि वे जातिगत भेदभाव बनाए रखने वाली सैंकड़ों सालों में बनी सरकार को टिकाए रखना चाहते हैं जो धर्म के धंधे को भी बढ़ावा देती है और जन्म से जिन्हें ऊंचा माना गया है, उन्हें ऊंचा रखने के नियम कानून बनाए जा रही है. वे पेगेसस जैसे सौफ्टवेयर को तो पौराणिक दिव्य ज्ञान का सा मानते हैं और उस की तारीफ करते हैं.

लोकतंत्र में सरकार के खिलाफ मिलबैठ कर योजना बनाने का हक हरेक को है. इस तरह की भारत सरकार से किसी तरह की स्वीकरोक्ति की आशा तो नहीं है कि वह अपने ही नागरिकों को भय की निगाह से देखती है और उन पर विदेशी दुश्मनों की तरह की सी नजर रखती है पर यह कार्य विपक्ष का है कि वह इस बात को चुनावी मुद्दा बनाए. सरकार के पास ङ्क्षहदूमुसलिम कार्ड का तुरूप का पता है जो वह हर मौके पर इस्तेमाल करती है पर यह कला विपक्ष को सीखनी होगी कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सरकार से रक्षा करने की जिम्मेदारी उसी की है.

ये भी पढ़ें- टोकियो ओलंपिक       

देश का पैसा देश के नागरिकों की गुप्चरी पर नहीं लगाया जा सकता. भारत सरकार, चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवादियों का अपनी गुप्चरी से पिछले 50-60 साल में बिगाड नहीं पाई. असली देशद्रोह तो यह निकम्मापन है. जिन के हाथ में देश की कमान है वे अ अगर अपने नागरिकों को दुश्मन समझने लगें और असली दुश्मनों से लेनदेन करने लगें तो इसे देशभक्ति नहीं कहा जा सकता.

यह न भूलें कि पेगेसस का सौफ्टवेयर यदि उतना कामयाब है कि वह किसी के भी मोबाइल में घुस सकता है तो और दुनिया के कितने ही प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों पर नजर रख रहा है तो भारत के नेता बचे होंगे, यह गलतफहमी न पालें. ऐसी कंपनी को पैसा देने वाला अपने खिलाफ भी गुप्चरी को बड़ावा दे रहा है, यह पक्का है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें