यह कहानी है साल 2026 की, जब पौपुलेशन कंट्रोल लॉ लागू हो चुका है. डाक्टर सीमा के क्लीनिक में बैठी विभूति अपनी बारी आने का इंतजार कर रही थी. उस बारी का इंतजार, जिसे वह खुद नहीं चाहती थी कि कभी आए. पति विशेष के साथ बैठी विभूति बहुत दुखी और परेशान थी और इस वक्त खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थी. वह यहां अपना ऐबौर्शन करवाने आई थी. अपनी उस बच्ची को मारने आई थी, जो अपने नन्हे कदमों से उस की जिंदगी के द्वार पर दस्तक दे रही थी. जैसे उस से कह रही हो कि मां, मुझे बचा लो. मेरा दोष क्या है? कम से कम इतना ही बता दो?

विभूति की आंखों से ढलकते आंसू उस की बेबसी को बयां कर रहे थे. ऐसा नहीं कि किसी ने विभूति को यहां आने के लिए मजबूर किया था या फिर उस का पति उसे या अपनी आने वाली बच्ची को प्यार नहीं करता था. नहीं ऐसा तो बिलकुल भी नहीं था. तो फिर वह यहां क्यों थी, यह जानने के लिए हमें जरा फ्लैश बैक में जाना होगा…

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विभूति को आज भी याद है 6 साल पहले का वह समय, जब विशेष और वह दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. वे पहली बार औफिस में ही मिले थे. विशेष विभूति का सीनियर था और विभूति उसे रिपोर्ट करती थी. कामकाजी संबंध कब दोस्ती और फिर धीरेधीरे प्यार में बदल गया, उन्हें इस का जरा भी एहसास नहीं हुआ. उन के प्यार से दोनों के परिवार वालों को कोई आपत्ति नहीं थी. 2021 में दोनों परिवारों की सहमति से उन की शादी हो गई थी. 1 साल बाद जब विभूति प्रैगनैंट हुई तो कुछ वजहों से उसे पूरी प्रैगनैंसी के दौरान बैडरैस्ट बताया गया और उसे नौकरी छोड़नी पड़ी. अब परिवार की सारी आर्थिक जिम्मेदारी विशेष के कंधों पर आ गई.

इधर विभूति की डिलीवरी का टाइम नजदीक आ रहा था, उधर विशेष भी अपनी बढ़ती हुई जिम्मेदारियों को समझते हुए बेहतर नौकरी की तलाश कर रहा था.

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दिसंबर 2022 में जब मायरा का जन्म हुआ तो न सिर्फ विशेष और विभूति ने ही बल्कि उस के सासससुर और ननद ने भी खुली बांहों से नन्ही मायरा का स्वागत किया था. उसी समय पौपुलेशन कंट्रोल ला के चलते विशेष को बिजली विभाग में अच्छी नौकरी मिल गई और क्योंकि मायरा लड़की थी, तो उसे कई बैनिफिट्स भी मिल गए थे. उन की गृहस्थी की गाड़ी पहली बार बिना हिचकोलों के चल निकली थी.

सारा परिवार पौपुलेशन कंट्रोल ला की सराहना कर रहा था और सरकार की दूरदर्शिता की दाद दे रहा था. इस बात को अभी 3 साल भी नहीं बीते थे कि इसी ला का दूसरा पहलू विभूति और विशेष की जिंदगी पर गाज बन कर गिरा.

मायरा के 3 साल की होते ही सासूमां ने विभूति को दूसरा बच्चा पैदा करने के बारे में समझाना शुरू कर दिया. विभूति भी अपनी मायरा को एक भाई या बहन देना चाहती थी, इसलिए इस सलाह को सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. 1 साल पहले जब सुबहसुबह विभूति ने सासूमां को अपने प्रैगनैंट होने की खबर सुनाई, तो सासूमां ने उसे गले से लगाते हुए कहा,”बहुतबहुत मुबारक हो बहू। इस बार हमें पोते का मुंह दिखा दे, ताकि हम भी निश्चिंत हो जाएं कि कोई हमारा वंश चलने वाला भी है.”

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“लेकिन मम्मा, यह कैसे पता चल सकता है? यह तो वक्त ही बताएगा न कि बेटा होगा या बेटी?”

अब सासूमां के तेवर बदले और वह बोली,”देखो विभूति, तुम जानती हो कि विशु मेरा इकलौता बेटा है. फिर 2 से ज्यादा बच्चे पैदा करने की इजाजत तो पौपुलेशन कंट्रोल ला देता नहीं है. इसलिए इस बार तो बेटा ही चाहिए. रही बात बच्चे का सैक्स टेस्ट करवाने की, तो तुझे पता ही है कि तेरी ननद सीमा गायनोकोलौजिस्ट है, वह कब काम आएगी,” सासुमां ने चारो ओर से किलेबंदी करते हुए कहा.

“लेकिन मम्मा, यह तो गैर कानूनी है न,” विभूति ने दबी आवाज में कहा.

“हां पता है. सारे कानून मानने का ठेका हम ने ही ले रखा है क्या,” फिर विभूति की ओर देख कर बोलीं,”ठीक है, ठीक है. क्या और कैसे करना है वह सीमा संभाल लेगी. मैं उस से बात कर लूंगी. तू चिंता मत कर.”

“पर मम्मा…” विभूति की बात बीच में ही काट कर सासूजी बोलीं,”पर क्या विभूति, पर क्या? क्या तुम नहीं जानतीं कि तीसरा बच्चा पैदा करने से विशु की परमोशन रुक जाएगी. जो भी बैनिफिट्स मिलते हैं सब बंद हो जाएंगे. और तो और बच्चों की पढ़ाईलिखाई, परिवार की मैडिकल सैक्युरिटी सब पर पानी फिर जाएगा. फिर तुझे पता है कि विशु घर का अकेला कमाने वाला है. उस की इस आधीअधूरी नौकरी से घर कैसे चलेगा?”

विभूति का खुशी से खिला चेहरा मुरझा गया. इस खुशी का यह पक्ष तो उस ने सोचा ही नहीं था. उसे कहां पता था कि यह कानून उस की कोख पर पहरा लगाएगा? उस की ममता पर इस क्रूरता से प्रहार करेगा?

विभूति एक पढ़ीलिखी औरत थी. अपनी भावनाओं पर हुए इस वार से वह तिलमिला उठी. वह इस देश के कर्णधारों से पूछना चाहती थी कि अब क्या हमें घरपरिवार के फैसले भी सरकार से पूछ कर लेने होंगे? माना कि बढ़ती हुई जनसंख्या तरक्की की राह का सब से बड़ा रोड़ा है. माना कि पौपुलेशन कंट्रोल करना बहुत जरूरी है. लेकिन किस कीमत पर? औरतों की समस्याओं को बढ़ा कर? समाज में लड़कियों की संख्या घटा कर और अपने कल को एक और बड़ी समस्या दे कर? गैरकानूनी ऐबौर्शन को बढ़ावा दे कर यानी एक कानून को निभाने के लिए दूसरा तोड़ना ही पड़ेगा? 1 समस्या को सुलझाने के लिए क्या 2 और समस्याओं को जन्म देना ठीक होगा? क्या देश के विकास का मार्ग मांओं की कोख से हो कर गुजरना जरूरी है?

जिन बच्चों को हम अच्छा भविष्य न दे सकें, उन्हे दुनिया में नहीं लाना चाहिए, यह बात तो हम भी जानते हैं. फिर उसे नौकरी, तरक्की आदि से जोड़ कर, दोनों ही क्षेत्रों को गड़बड़ाने की क्या जरूरत है? इस की बजाय यदि शिक्षा का सहारा लिया जाए तो बेहतर न होगा? जनता में अपना भलाबुरा समझने की सहूलत दे कर भी तो समझाया जा सकता है. परिवार नियोजित करने की जहां जरूरत है, वहां उस के साधनों को मुहैया करवाएं। उन्हें इस के लिए शिक्षित करें नकि जो समझ चुके हैं उन का जीना मुश्किल करें. फिर इतना बड़ा डिसिजन रातोरात ले कर उसे जनता पर लादना, सिवाय राजनीति के और क्या हो सकता है?

यह पौपुलेशन आज या कल में तो बढ़ी नहीं है. फिर चुनावों के पहले ही इस का समाधान क्यों अचानक याद आ गया? वह भी ऐसा समाधान… इन्हीं सब दिमागी जद्दोजेहद से जूझती विभूति पिछले 1 साल में आज तीसरी बार इस क्लीनिक में बैठी थी. तभी उस का नाम पुकारा गया.

दोपहर तक टूटीथकी और चूसे हुए आम जैसी निचुड़ी विभूति अपने घर पहुंची और तकिए में मुंह दबाए उस दिन को कोसती रही, जिस दिन यह कानून बना था. इस कानून ने उस से उस की ममता, इंसानियत और सुकून सब छीन लिया था. वह अपनी बेबसी पर आंसू बहा रही थी, तभी मायरा अपनी गुड़िया को गोद में लिए उस के कमरे में आई और अपनी बांहें उस के गले में डाल कर अपनी तोतली बोली में बोली,”मम्मा, आप ले आए छोता बेबी? कहां है? मुजे उछ के छात खेलना है.”

विभूति अपने जिन आंसूओं को अपनी नन्ही कली से छिपा रही थी, वे और भी तेजी से बह निकले. फिर वह खुद को संभालते हुए बोली,”बेटा, बेबी तो डाक्टर अंकल के पास है, बाद में आएगा।”

मायरा अपने नन्हे हाथों से विभूति के आंसू पोंछते हुए बोली,”मम्मा, इतने बले हो कर रोते थोली हैं. बेबी दाक्टर अंकल के पाछ है, तो कल ले आना,” कह कर वह अपनी गुड़िया से खेलने लगी.

उधर विशु भी विभूति की हालत देख कर बहुत उदास था. वह एक पढ़ालिखा इंसान था और समझता था कि बच्चे का सैक्स सिलैक्ट करना हमारे हाथ में नहीं है. फिर जो किसी के भी बस में नहीं है उस के लिए विभूति को हर बार प्रताङित करना और इसी दर्द से विभूति के साथ खुद के लिए भी गुजरना आसान नहीं था। पर क्या करे? उस की बेटा पाने की चाह उतनी बलवती नहीं थी जितनी नौकरी बचाने और घरपरिवार को पालने की मजबूरी. वह जानता था कि अगर उसे 3 बच्चों का भविष्य बनाना है, तो वह बना सकता है, लेकिन बिना नौकरी के नहीं. फिर इतनी अच्छी नौकरी आसानी से कहां मिलती है.

इधर मां की वंश चलाने और पित्तरों को तर्पण करने वाली अंधविश्वास भरी बातों का भी वह पूरी तरह तिरस्कार नहीं कर पाता था. बेटा होगा या बेटी, यह उम्मीद वह बिना चांस लिए छोड़े भी तो कैसे? लेकिन कानून की कठोरता और विभूति की हालत देख कर इस बार उस ने विभूति को आश्वासन दिया था कि इस स्थिति में वह विभूति को फिर कभी नहीं लाएगा. यही बात बताने वह मां के पास गया, लेकिन वह कुछ कहता उस से पहले ही मां बोलीं,”बेटा, मुझे नहीं लगता कि इस बहू से हमें पोते का सुख मिलेगा.”

“मां, आप कहना क्या चाहती हैं?” विशेष ने हैरानी से पूछा.

“बेटा, वह जो मेरी सहेली है न, सरला आंटी…”

“हां, तो…” विशेष झल्लाया.

“उस ने तो अपने बेटे को तलाक दिलवा कर उस की दूसरी शादी करवा दी. पहली बहू को बेटा नहीं हो रहा था न.”

“मां, आप भी हद करती हो, आप ने यह सोचा भी कैसे?” वह कुछ और कहता लेकिन तभी उस की नजर किचन की ओर जाती विभूति पर पड़ी. उस की आंखों का दर्द बता रहा था कि वह मां की बात सुन चुकी थी.

विशेष अब मां की बात बीच में छोड़ कर विभूति के पास गया और उसे अपने आलिंगन में ले कर अपने प्यार का विश्वास दिलाते हुए बोला,”तुम्हें मुझ पर विश्वास है न?”

विभूति ने सिसकियों के बीच गरदन हां में हिला दी.

“बस, तो फिर अब कोई कुछ भी कहे.”

विभूति को ढाढ़स बंधा कर विशेष औफिस के लिए निकल गया. उस ने औफिस से आधे दिन की छुट्टी ली थी. लंच के बाद जब वह औफिस पहुंचा तो उस के सहकर्मी ने बताया,”विशेष, बौस तुम्हें पूछ रहे थे, जरा गुस्से में भी लग रहे थे. तुम जरा जा कर उन से मिल लो.”

“ठीक है,” विशेष ने कहा और बौस के कमरे की ओर चल दिया.

विशेष ने जैसे ही बौस के कमरे में प्रवेश किया, वे जरा तल्ख लहजे में बोले,”विशेष, वह नए कनैक्शन वाली फाइल, जो आज सुबह मेरी टेबल पर होनी चाहिए थी, अभी तक गायब है. मैं ने तुम्हें कल ही बताया था कि आज बोर्ड मीटिंग में मुझे उस की जरूरत है.”

“सर, मेरा तो आज हाफ डे था, लेकिन मैं मिस्टर विजय को बता कर गया था. वैसे भी न्यू कनैक्शन से संबंधित काम तो मिस्टर विजय को ही सौंपे गए हैं न?”

“वही मिस्टर विजय, जो नए आए हैं?” सर ने पूछा.

“यस सर.”

“लेकिन वह तो कह रहे हैं कि इस काम का उन्हें कोई तजरबा ही नहीं है.”

“लेकिन सर, ऐसा कैसे हो सकता है? उन्हें तो इसी काम के लिए हायर किया गया था. यदि ऐसा है तो फिर उन्हें यह पोस्ट कैसे मिल गई?

“वह इसलिए क्योंकि उन की एक ही बेटी है.”

“क्या? इस बात का भला इस नौकरी से क्या संबंध?”

“लेकिन, इस कानून से तो है न? एक ही बेटी वाले लोगों को सरकारी नौकरी देने की वकालत इस कानून का हिस्सा है।”

विशेष असमंजस की स्थिति में खड़ा सोच रहा था कि क्या देश के नेताओं का यह फैसला ठीक है? आज से 4 साल पहले विशेष जिस कानून के गुण गा रहा था, आज वही कानून जीवन के किसी भी मोरचे पर सही साबित नहीं हो रहा था. एक ओर घर में विभूति की हालत, तो दूसरी ओर यहां औफिस की स्थिति। सभी मिल कर जैसे कह रहे थे, “पौपुलेशन कंट्रोल ला गो बैक.”

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