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‘चार्ली चैप्लिन द्वितीय’’के नाम से मशहूर अभिनेता राजन कुमार बने ‘‘पहचान लाइव फाउंडेशन‘‘के राष्ट्रीय अम्बेसडर

बाॅलीवुड में अभिनेता राजन कुमार का अपना एक अलग मुकाम है. उन्हे काॅमेडी में महारत हासिल है. राजन कुमार फिल्मों व धारावाहिकों में अभिनय करने के साथ ‘शहर मसीहा’नामक फीचर फिल्म का निर्माण व उसमें अभिनय कर चुके हैं.सामाजिक संदेश पर कएक दर्जन से अधिक लघु फिल्में भी बनायी हैं.लेकिन पूरे विश्व में राजन कुमार की पहचान ‘‘चार्ली चैप्लिन द्वितीय’’केरूप में होती है.वह चार्ली चैप्लिन की वेशभूषा पहनकर लाइव स्टेज शोज करने के अलावा भारत वर्ष के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर भी काम करते रहते हैं.उनका नाम ‘लिम्का वल्र्ड रिकार्ड’में भी दर्ज है.

पर वह अभिनय के साथ साथ समाज सेवा के कई कार्य करते रहते हैं.उन्होने बिहार के मुंगेर जिले के विकास के लिए काफी काम किया है.गतवर्ष से अब तक कोरोनाकाल, लॉकडाउन और बाढ़ की स्थिति के दौरान भी राजन कुमार कई लोगों के लिए मसीहा बनकर उभरे.

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राजन कुमार के सामाजिक कार्यो व उनके सिनेमा जगत में योगदान को देखते हुए अब तक उन्हे सौ पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.अभी कुछ दिन पहले ही उन्हें ‘‘भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान लीडरशीप पुरस्कार’’समारोह में ‘‘ग्लोबल हीरो अवार्ड’’से सम्मानित किया गया था.और अब राजन कुमार को ‘‘पहचान लाइव फाउंडेशन‘‘का राष्ट्रीय अम्बेसडर के रूप में नियुक्त किया गया.

अब तक वह इस एनजीओ के लिए बिहार आइकॉन के रूप में काम कर रहे थे, मगर अब वह राष्ट्रीय अम्बेसडर के तौर पर काम करेंगे.राजन कुमार पहचान लाइव फाउंडेशन (पीएलएफ) से जुड़कर खुद को भाग्यशाली मान रहे हैं, साथ ही उन्हें अपने ऊपर एक सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास भी हो रहा है.

राजन कुमार ने ‘पहचानलाइवफॉउंडेशन’ का शुक्रिया अदा करते हुए कहा-‘‘यह एनजीओ बहुत अच्छा काम कर रहा है.इसे अभी काफी बेहतर काम करना है.अब मुझे राष्ट्रीय अम्बेसेडर के रुप में काम करने की जिम्मेदारी मिली है.मैंने अफसाना परवीन और पूरी टीम से वादा किया है कि पहचान को मैं एक नई पहचान दूंगा.’’

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इस अवसर पर पहचान फाउंडेशन की अफसाना परवीन ने कहा-‘‘राजन कुमार पिछले 3 वर्षों से हमारे साथ ‘बिहार आइकॉन’के रूप में जुड़कर काम कर रहे हैं, लेकिन अब वह राष्ट्रीय नेशनल आइकॉन के रूप में हमारे साथ जुड़ गए हैं .ऊम्मीद है कि इनके जुड़ने से जरूरतमंदों तक हमें पहुंचने में आसानी होगी.’’

‘पहचान लाइव फाउंडेशन’की संस्थापक अध्यक्ष अफसाना परवीन ने बताया-‘‘राजन कुमार एक बॉलीवुड अभिनेता हैं.‘शहर मसीहा नहीं’,‘नमस्ते बिहार’सहित कई फिल्मों के वह हीरो हैं.इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया केआइकॉन हैं.चार्ली चैप्लिन 2 के रूप में सारी दुनिया मे मशहूर हैं.

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गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हैं.उन्होंने कोरोना काल में हमारे एनजीओ के साथ मिलकर काफी काम किया है. उनके इन्ही काम को देखकर हमने राजन कुमार को पहचान लाइव फाउंडेशन कानेशनल आइकॉन नियुक्त किया है.  हमें उम्मीद है कि ब्रांड एम्बेसडर राजन कुमार आगे और भी लोगों तक पहुंचेंगे और जरूरतमंदों की पुकार सुनकर उन्हें हेल्प करेंगे.‘‘

 

KBC 13 : 25 लाख के सवाल पर आकर अटक गया यह कंटेस्टेंट, जानें क्या था सवाल

टीवी  दुनिया का सबसे लोकप्रिय क्वीज शो कौन बनगा करोड़पति  13वें सीजन की शुरुआत हो चुकी है, इस साल के शो में कई नए तरह के बदलाव देखने को मिले हैं. और शो के होस्ट अमिताभ बच्चन ने इस शो की शुरुआत बेहद ही ज्यादा गर्मजोशी के साथ किया है.

इस सीजन के पहले कंटेस्टेंट ज्ञानराज बने जिन्होंने 3 लाख 20 हजार रूपये जीते, जिसके बाद से दूसरा नं डॉक्टर नेहा का आया जिन्होंने गेम को शानदार तरीके से खेला और 25 लाख रूपये तक पहुंच गई. लेकिन यहां आकर वह अटक गई और उन्होंने गेम को क्विट करना सही समझा.

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नेहा अपने आखिरी सवाल के जवाब को लेकर काफी ज्यादा कन्फयूज थी, इसलिए उन्होंने रिस्क लेना सही नहीं समझा, और उन्होंने गेम को खत्म करने का फैसला लिया, वैसे नेेहा ने जीतनी देर भी खेला था, सही गेम था.

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उस वक्त नेहा के पास कोई लाइफलाइन भी नहीं बची थी, शायद इसलिए नेहा ने गेम को क्विट करना ही सही समझा.

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डॉ नेहा 12 लाख 50 हजार की धनराशी जीतकर वापस घर गई, इससे पहले हॉटसीट पर बैठे ज्ञानराज ने 12 लाख 50 हजार रूपया जीता था , लेकिन उनके एक गलत जवाब से उनके 6 लाख रूपये कम हो गए और वह 12 नहीं 6 लाख रूपये लेकर वापस घर आएं.

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इस बार शो में कोरोना का प्रभाव देखते हुए आडियंस को सोशल डिस्टेंस के साथ बैठाया गया था, शो देखने वाले को साफ पता चल रहा था, कि शो में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा है.

मिलावटी दूध पीने से हो सकती हैं कैंसर, लीवर और किडनी डैमेज जैसी खतरनाक बीमारियां

दूध सेहत के लिए कितना फायदेमंद है ये सभी जानते हैं. रोज एक ग्लास दूध पीने से कई तरह की स्वास्थ समस्याएं दूर हो जाती हैं और शरीर को बहुत तरह के पोषक तत्व मिल जाते हैं. पर क्या आपको पता है कि दूध से आपके शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग खराब हो सकते हैं. जी हां, अगर आप मिलावटी दूध पी रहें हैं तो कुछ सालों में आपको किडनी, लीवर संबंधी परेशानियां आ सकती हैं.

खतरे को समझिए

जानकारों की माने तो लगातार दो सालों तक मिलावटी दूध पीते रहने से इंटेस्टाइन, लीवर या किडनी डैमेज जैसी खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के हालिया अध्ययन में इस बात सामने आई है कि भारत में बिकने वाला करीब 10 प्रतिशत दूध हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. इस 10 प्रतिशत में 40 प्रतिशत मात्रा पैकेज्ड मिल्क की है जो हर रोज हमारे इस्तेमाल में आते हैं.

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आपको बता दें कि जो 10 फीसदी दूध खराब होते हैं वो दूषित होते हैं. इसमें यूरिया, वेजिटेबल औयल, ग्लूकोज और अमोनियम सल्फेट जैसे तत्व मिलाए जाते हैं. ये मिलावट हमारे सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है. दूषित या कहें कि कंटामिनेटेड मिल्क से होने वाले नुकसानों पर जानकारों की काफी अलग राय है. जानकारों की माने तो कॉन्टैमिनेटेड दूध से होने वाला नुकसान इस बात पर निर्भर करता है कि कंटामिनेशन कैसा है. अगर दूध में बैक्टीरियल कंटामिनेशन है तो आपको फूड प्वाइजनिंग, पेट दर्द, डायरिया, इंटेस्टाइन इंफेक्शन, टाइफाइड, उल्टी, लूज मोशन जैसे इंफेक्शन होने का डर होता है.

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कौन सी परेशानियां हो सकती हैं?

दूध में मिलावट से होने वाली परेशानियों में हाथों में झनझनाहट या जोड़ों में दर्द प्रमुख है. वहीं अगर आपके दूध में केमिकल्स की मिलावट है या पैकिंग संबंधी गड़बड़ियां हैं तो इसका आपकी सेहत पर लंबे समय तक बुरा असर देखने को मिल सकता है. अगर आप दो साल से ज्यादा समय तक इस तरह का दूध पी रहे हैं तो आपको इंटेस्टाइन, लीवर या किडनी डैमेज जैसी खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं. वहीं अगर आप करीब 10 साल तक इस मिल्क प्रोडक्ट को ले रहे हैं तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने की संभावना हो सकती है.

मजाक : इति कराग्रे वसति

लेखक- रामविलास जांगिड़

भई जब से देश में विदेशी व्हाट्सऐप आया है तब से देशी ज्ञान की यहां खूब ठेलाठेली हो रही है. हर काम बिना व्हाट्सऐप के मुश्किल हो चला है. अब तो दुनिया जाए भाड़ में, अपने को तो व्हाट्सऐप ही चाहिए भाई… व्हाट्सऐप के मालिक फेसबुक को प्रणाम करता हूं. सभी देशप्रेमी सुबह उठते ही विदेशी व्हाट्सऐप पर स्वदेशी राग आत्मनिर्भर गाते हैं. सभी सरकारी औफिसर अपना औफिस इसी व्हाट्सऐप पर सजाते हैं. तरहतरह के सरकारी ग्रुप व्हाट्सऐप पर सरकार का झुन झुना बजाते हैं. ग्रुप के भीतर ग्रुप, ग्रुप के बाहर ग्रुप, ग्रुप के अंदर ग्रुप, ग्रुप ही ग्रुप… सरकारी आज्ञा, आदेश, नियम, निर्देश, योजना, क्रियान्विति, मौनिटरिंग, मूल्यांकन आदि का पचड़ा व्हाट्सऐप ग्रुप का सच्चा अखाड़ा है.

मैसेज, औडियो, वीडियो, फोटो सबकुछ. कटपेस्टफौरवर्ड. कटिंगपेस्टिंगफौरवर्डिंग. यानी सरकारी खेल चालू है. टीचर व्हाट्सऐप ग्रुप पर पढ़ा रहा है और विद्यार्थी ग्रुप में कहीं पार्टी मना रहा है. अफसर व्हाट्सऐप पर कुरकुरी रिश्वत खा रहा है और नेता व्हाट्सऐप से कुरसी पर नजरें जमा रहा है. कार्यालय व्हाट्सऐप पर जारी है और प्रेमीप्रेमिका को व्हाट्सऐप की बीमारी है. काकी व्हाट्सऐप पर चूडि़यां खनका रही है और भैंस लिपस्टिक की नई शेड व्हाट्सऐप पर चिपका रही है. सारे देवता व्हाट्सऐप पर फूलों की बरसात कर रहे हैं और सारे पीरपैगंबर व्हाट्सऐप पर प्रेमगीत गा रहे हैं. पीरपंडितगण गला फाड़ रहे हैं. ‘कराग्रे वसति व्हाट्सऐपा, कर मध्य फेसबुकाया, कर मूले ट्विटरो हस्त बंधने मोबाइलाया.’ तेल की कीमतें कितनी ही ऊपर आसमान चढ़ा दो पर व्हाट्सऐप मत छीनना. कोरोना में कितनी ही लाशों को श्मशान पहुंचा दो मगर व्हाट्सऐप मत छीनना.

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आज शेर और बकरी एक ही तालाब पर पानी पीते हैं, उस तालाब का नाम है व्हाट्सऐप. नेता और डाकू अपना सम्मेलन एकसाथ करते हैं, जगह का नाम है व्हाट्सऐप. चोर और साहूकार एक जगह मंडी लगाए बैठे हैं, मंडी सजी है व्हाट्सऐप. अगर कोई सरकार व्हाट्सऐप बंद कर दे तो सरकार उसी क्षण गिर जाएगी. अगर कोई प्रेमी व्हाट्सऐप बंद कर दे तो प्रेमिका उसी क्षण मर जाएगी. हलवाई व्हाट्सऐप न खोले तो उस के पकौड़े हवा हो जाएंगे. कब्रिस्तान में भूतों को व्हाट्सऐप न मिले तो वे खफा हो जाएंगे. व्हाट्सऐप बिना कवि सारी कविताएं भूल कर मूंगफली बेचने के धंधे में उतर जाएंगे.

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व्हाट्सऐप बिना सारे बादल बिन बरसात किए यों ही छितर जाएंगे. गुड्डू को नाश्ते में, अफसर को लंच में और बीवी को डिनर में सिर्फ व्हाट्सऐप चाहिए. व्हाट्सऐप के जरिए खनखनाती गरमी में सावन की बरसात लाइए. चादर ओढ़ रात ढाई बजे जापानी कन्या संग प्रेमगीत गाइए. हो गई सुबह तो बाबा कोरोना के लाइव दर्शन पाइए. डिजिटली घंटेघडि़याल बजाइए. मु झे बहुत डर लग रहा है. हे व्हाट्सऐप देव, अगर किसी रात आप बंद हो गए तो हमारी सरकार का क्या होगा, हमारे अफसरों का क्या होगा, सरकारी कार्यालय तो बंद ही हो जाएंगे. हमारे कामकाज का क्या होगा, हमारी प्रेमिकाओं को क्या होगा? हे व्हाट्सऐप देव, प्लीज, धोखा मत देना. सकल पदार्थ है जग माहीं, बिन व्हाट्सऐप कुछ पावत नाहीं. व्हाट्सऐप बिना चैन कहां रे… सोना नहीं, चांदी नहीं, व्हाट्सऐप तो मिला, अरे व्हाट्सऐप कर दे रे…

अपने घर में – भाग 3 : जब बेटे की जगह सास ने दिया बहू का साथ

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. सागर के जीवन में अब कुछ नहीं बचा था. श्वेता कई सालों से औफिस के किसी कलीग के साथ अफेयर चला रही थी. इधर सागर अब और भी ज्यादा शराब में डूबा रहने लगा था. छोटीछोटी बात पर वह मां पर भी बरस जाता. कमला देवी का दिल कई दफा करता कि सबकुछ छोड़ कर चली जाए. पर बेटे का मोह कहीं न कहीं आड़े आ जाता. जितनी देर श्वेता और सागर घर में रहते, झगड़े होते रहते. कमला देवी का घर में दम घुटता. उन की उम्र भी अब काफी हो चुकी थी. वे करीब 80 साल की थीं. उन से अब ज्यादा दौड़भाग नहीं हो पाती. नीरजा के पास भी वे कईकई दिन बाद जा पातीं.

एक दिन उन्हें अपने पेट में दर्द महसूस हुआ. यह दर्द बारबार होने लगा. एक दिन कमला देवी ने बेटे से इस का जिक्र किया तो बेटे ने उपेक्षा से कहा, “अरे मां, तुम ने कुछ उलटासीधा खा लिया होगा. वैसे भी, इस उम्र में खाना मुश्किल से ही पचता है.”

“पर बेटा, यह दर्द कई दिनों से हो रहा है.”

“कुछ नहीं मां, बस, गैस का दर्द होगा. तू अजवायन फांक ले,” कह कर सागर औफिस के लिए निकल गया.

अगले दिन भी दर्द की वजह से कमला देवी ने खाना नहीं खाया. पर सागर को कोई परवा न थी. दोतीन दिनों बाद जब कमला देवी से रहा नहीं गया तो उन्होंने फोन पर बहू नीरजा को यह बात बताई. नीरजा एकदम से घबरा गई. वह उस समय औफिस में थी, तुरंत बोली, “मम्मी, मैं अभी औफिस से छुट्टी ले कर आती हूं. आप को डाक्टर को दिखा दूंगी.”़

“अरे बेटा, औफिस छोड़ कर क्यों आ रही है? कल दिखा देना.”

“नहीं मम्मी, कल शनिवार है और वे डाक्टर शनिवार को नहीं बैठते. मैं अभी आ रही हूं.”

एक घंटे के अंदर नीरजा आई और उन्हें हौस्पिटल ले कर गई. बेटे और बहू के व्यवहार में अंतर देख कर उन का दिल भर आया. डाक्टर ने ऊपरी जांच के बाद कुछ और टैस्ट कराने को लिख दिए. नीरजा ने फटाफट सारे टैस्ट कराए और जो बात निकल कर सामने आई वह किसी ने सोचा भी नहीं था. कमला देवी को पेट का कैंसर था. डाक्टर ने साफसाफ बताया कि कैंसर अभी ज्यादा फैला नहीं है. पर इस उम्र में औपरेशन कराना ठीक नहीं रहेगा. कीमोथेरैपी और रेडिएशन से इलाज किया जा सकता है.

नीरजा ने तुरंत अपने औफिस में 15 दिनों की छुट्टी की अरजी डाल दी और सास की तीमारदारी में जुट गई. मिनी ने भी अपने संपर्कों के द्वारा दादी का बेहतर इलाज कराना शुरू किया. कीमोथेरैपी लंबी चलनी थी, सो, नीरजा ने औफिस जौइन कर लिया. मगर उस ने कभी सास को अकेला नहीं छोड़ा. उस की दोनों बेटियों ने भी पूरा सहयोग दिया.

सागर एक दोबार मां से मिलने आया, पर कुछ मदद की इच्छा भी नहीं जताई. नीरजा सास को कुछ दिनों के लिए अपने घर ले आई और दिल से सेवासुश्रुषा करती रही. अब कमला देवी की तबीयत में काफी सुधार था.

एक दिन उन्होंने नीरजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटी, मैं चाहती हूं कि तू उस घर में वापस चले.”

नीरजा ने हैरानी से सास की ओर देखते हुए कहा, “आप यह क्या कह रही हैं मम्मी? आप जानती हो न, अब मैं सागर के साथ कभी नहीं रह सकती. कुछ भी हो जाए, मैं उसे माफ नहीं कर सकती.”

“पर बेटा, मैं ने कब कहा कि तुझे सागर के साथ रहना होगा. मैं तो बस यही चाहती हूं कि तू अपने उस घर में वापस चले.”

“पर वह घर मेरा कहां है मम्मी? वह तो सागर और श्वेता का घर है. मैं उन के साथ… यह संभव नहीं मम्मी.”

“बेटा, वह घर सागर का नहीं. तू भूल रही है. वह घर तेरे ददिया ससुर ने मेरे नाम किया था. उस दोमंजिले, खूबसूरत, बड़े से घर को बहुत प्यार से बनवाया था उन्होंने और अब उस घर को मैं तेरे नाम करना चाहती हूं.”

“नहीं मम्मी, इस की कोई जरूरत नहीं है. सागर को रहने दो उस घर में. मैं अपने किराए के घर में ही खुश हूं.”

“तू खुश है, पर मैं खुश नहीं, बेटा. मुझे अपने घर में रहने की इच्छा हो रही है. पर अपने बेटे के साथ नहीं बल्कि तेरे साथ. मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं, मुझे उस घर में ले चल. वहीँ, मेरी सेवा करना. उसी घर में मेरी पोतियों की बरात आएगी. मेरा यह सपना सच हो जाने दे, बेटा.”

नीरजा की आंखें भीग गईं. वह सास के गले लग कर रोने लगी. सास ने उसे चुप कराया और सागर को फोन लगाया, “बेटा, तू अपना कोई और ठिकाना ढूंढ ले. मेरा घर खाली कर दे.”

“यह तू क्या कह रही है मां? घर खाली कर दूं? पर क्यों?”

“क्योंकि अब उस में मैं, नीरजा और अपनी पोतियों के साथ रहूंगी.”

“अच्छा, तो नीरजा ने कान भरे हैं. भड़काया है तुम्हें.”

“नहीं सागर, नीरजा ने कुछ नहीं कहा. यह तो मेरा कहना है. सालों तुझे उस घर में रखा, अब नीरजा को रखना चाहती हूं. तुझे बुरा क्यों लग रहा है? यह तो होना ही था. इंसान जैसा करता है वैसा ही भरता है न बेटे. तुम दोनों पतिपत्नी तब तक अपने लिए कोई किराए का घर ढूंढ लो. और हां, थोड़ा जल्दी करना. इस रविवार मुझे नीरजा और पोतियों के साथ अपने घर में शिफ्ट होना है बेटे. ”

अपना फैसला सुना कर कमला देवी ने फोन काट दिया और नीरजा की तरफ देख कर मुसकरा पड़ीं.

 

दस्तक – भाग 2 : नेहा किस बात को लेकर गहरी सोच में डूबी थी

लेखिका- सुधा थपलियाल

“मम्मी, आप मेरा साथ नहीं दोगी, तो कौन देगा?” रमा के कंधे पर सिर रख एक उम्मीद से नेहा बोली.    नेहा के स्पर्श से क्रोध से तनी आंखों में आंसुओं की जलधारा बहने लगी.

 

“मम्मी, प्लीज, फिर से शुरू मत हो जाना,” खीझती हुई नेहा बोली. “कितना परेशान करेगी हमें?””ऐसा तो नहीं कि मैं ने कोशिश नहीं की? आप के बताए 3 लड़कों से मिली थी, लेकिन…”  “क्या कमी थी उन लड़कों में. हम दीप्ति से पहले तेरी शादी करना चाहते थे,” आंसुओं से लबालब हो आई आंख़ों को पोंछती हुई रमा बोली.

 

“मैं शिवम…” “खबरदार जो उस का नाम लिया,” रमा की तेज आवाज सुन पापा और छुटकी अपनेअपने कमरे से बाहर आ गए. “देखा इस को, अभी भी इस के सिर से उस लड़के का भूत नहीं निकला,” पति को देख रमा जोर से बोली.

अब तो नेहा भी आवेश में आ गई, गुस्से से पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई. चुपचाप बिस्तर पर जा कर लेट गई. फोन की घंटी बजी, देखा शिवम का फोन था. शिवम का फोन बारबार आ कर बजता रहा.  नेहा फोन को बजते देखती रही. ‘क्या कहे शिवम से?’ कितना मुश्किल है अपनों से लड़ना. कौन कहता है कि समाज बदल रहा है, दृष्टिकोण बदल रहा है, परम्पराएं बदल रही हैं. कुछ नहीं बदला, अभी भी लोग उसी युग में जी रहे हैं. ठाकुर की लड़की का विवाह एक साहू लड़के से- असंभव. लड़के के गुण  उस की जाति में खो गए. यह है बदलाव?

ऐसा नहीं कि शिवम कोई अपरिचित था उन के लिए. नेहा और शिवम के पापा सिर्फ पड़ोसी ही नहीं, बिजनैस पार्टनर भी हैं. आर्थिक रूप से देखा जाए, तो शिवम के पापा का पलड़ा भारी है. देखने में सुदर्शन, पढ़ाई में मेधावी, खेल में अव्वल, स्वभाव से विनम्र शिवम का नाम हर समय उन के घर में गूंजा करता था. नेहा के मम्मीपापा जब तब उन तीनों बहनों पर तंज कसते रहते थे- शिवम को देखो…शिवम ये…शिवम वो…

उस दिन जा कर नेहा के मातापिता की जबान बंद हुई जब नेहा ने भी शिवम के साथ नैशनल इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी वारंगल, तेलांगाना का एक्जाम पास किया. दोनों परिवारों में खुशियां छा गईं. घर से दूर दोनों के मातापिता एकसाथ उन को छोड़ने वारंगल गए थे.

उस अंजान जगह, अंजान परिवेश में अपनी बेटी के लिए नेहा के मातापिता को शिवम ही एकमात्र सहारा नजर आ रहा था.  रमा के अवरुध कंठ से निकल गया था, “शिवम बेटा, नेहा का ख़याल रखना.”

घर से पहली बार बाहर निकले दोनों के लिए उस अंजाने माहौल में रहना सरल न था. छोटे से कसबे से निकले दोनों तेलंगाना राज्य के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक शहर वारंगल में आ कर अजीब से एहसास से भर गए. इंस्टिट्यूट का विशाल परिसर, भिन्नभिन्न राज्यों से आए बच्चों के बीच में वे दोनों और अपने में सिमट गए. भाषा, खाना, पढ़ाई का दबाव, इंस्टिट्यूट के कड़े अनुशासन से घबरा गए दोनों. कई बार तो घर वापस जाने का विचार उन के जेहन में उतरा. बहुत समय लगा उन को वहां के परिवेश में ढलने में. जानते तो दोनों एकदूसरे को बचपन से थे लेकिन करीब से पहचानने का अवसर दिया इंस्टिट्यूट ने. कितने ही ऐसे क्षण आए जब वे कमजोर पड़े, कभी शारीरिक रूप से तो कभी भावनात्मक रूप से. उन कमजोर पलों में एकदूसरे की ताकत बन कर उभरे दोनों. आहिस्ताआहिस्ता प्यार दोनों के बीच कब चुपके से अपनी उपस्थिति दर्ज करा गया, उन्हें पता ही न चला. एक अनकही सी रूमानियत उन पर छाने लगी. प्यार के सतरंगी एहसास में दोनों डूबने लगे. एकदूसरे की फ़िक्र करने के साथ, एकसाथ वक्त गुजारने की ख्वाहिश बढ़ने लगी.

कोर्स खत्म होने और नौकरी लगने तक वे ताउम्र एकसाथ रहने के निर्णय पर पहुंच गए. यह भी एक संजोग था कि नौकरी दोनों को एक कंपनी में, एक ही शहर में मिल गई. कोर्स पूरा होते ही दोनों हैदराबाद आ गए. एकदूसरे के बिना वे कितने अधूरे हैं, इस का एहसास तब और शिद्दत से महसूस हुआ जब कंपनी ने एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में शिवम को मुम्बई भेज दिया. वही औफिस था, वही फ्लैट और वही शहर. लेकिन नेहा के लिए सब जगह एक शून्यता व्याप्त हो गई थी.

 

‘शिवम, कब वापस आओगे?’ एक दिन उदास स्वर में नेहा ने फोन पर कहा. ‘पता नहीं, बहुत काम है. लगता है दोतीन महीने मुझे और रहना पड़ेगा मुम्बई में.’ शिवम की बातें सुन नेहा का दिल डूबने लगा. किसी की इंतजारी में समय कितना बड़ा लगने लगता है. दोतीन महीने, दोतीन साल के बराबर लगने लगे. 4 महीने बाद जब शिवम प्रोजैक्ट पूरा होने पर वापस आया, तो नेहा को ऐसा लगा मानो उस की जिंदगी वापस आ गई हो.

‘नेहा, मैं ने तुम्हें बहुत मिस किया मुम्बई में. मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता,’ शिवम ने नेहा को आगोश में लेते हुए कहा. शिवम की बातों ने नेहा को और भी बेचैन कर दिया. दिल में असंख्य तार झंकृत हो गए. ‘क्या मम्मीपापा तैयार होंगे शिवम के साथ मेरी शादी के लिए?’ इस विचार ने नेहा के दिमाग को क्षंणाश के लिए उद्वेलित कर दिया.

 

‘नहीं, मैं शिवम के बिना नहीं रह सकती, बिलकुल नहीं,’ विचारों को मस्तिष्क से धलेकते हुए वह  शिवम से कस कर लिपट गई.  मातापिता की तरफ से  विवाह का दबाव तो नौकरी के चंद महीनों बाद ही नेहा पर पड़ने लगा था.‘मम्मी, अभी मेरी नौकरी लगी है, अभी कैसे शादी कर लूं?’ जब भी मम्मी विवाह के विषय में बात करती, नेहा का यही उत्तर रहता.

 

ऐसा करतेकरते 2 साल हो गए और वक्त के साथ विवाह का दबाव भी बढ़ता गया.

फ्रेम – भाग 3 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया?

उस दिन की शाम तो अच्छी तरह कट गई पर पूरे हफ्ते पिछली घटना उस के अचेतन मन पर छाई रही. अमृता ने बहुत कोशिश की पर वह इसे हटा नहीं पाई थी. जब वह ऐसी मानसिकता के भंवर में उल झी घूम ही रही थी उसी समय सुषमा उस से मिलने चली आई थी. औपचारिकता खत्म होने के बाद कौफी के प्यालों के साथ जब बात शुरू हुई तो बातों को यहां तक आना ही था. सो, बातें यहां चली आईं. सारी बातें सुन कर सुषमा पूछ बैठी, ‘‘जब तुम राजेशजी को इतना पसंद करती हो तो तुम उन से शादी क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘शादी क्यों…?’’ अमृता उल झने के तेवर में पूछ बैठी.

‘‘साथ के लिए.’’

‘‘आप को अपना नौकर भी अच्छा लग सकता है पर उस से तो कोई शादी की बात नहीं करता. मेरी सम झ से शादी के लिए शारीरिक आकर्षण बहुत जरूरी है. संतानोंत्पत्ति की इच्छा भी जरूरी है, आर्थिक आवलंबन भी एक मजबूत कड़ी है और तब समाज की भूमिका की जरूरत पड़ती है. पर अब मेरी उम्र में तो कोई शारीरिक आर्कषण बच नहीं गया है. बच्चा अब मैं पैदा कर नहीं सकती, आर्थिक आवलंबन के लिए मेरी पैंशन ही काफी है. फिर शादी क्यों?’’

‘‘अच्छे से समय काटने के लिए सम झ लो.’’

‘‘सुषमा तुम भी मेरी उम्र की हो. तुम सम झ सकती हो कि शादी के शुरुआती दिनों में अगर शरीर का आकर्षण न रहता तो एडजस्टमैंट कितना कठिन होता. इस के अलावा मां बन जाना एक अलग आर्कषण का विषय रहता है. उम्र कम रहती है, तो आप के व्यक्तित्व में बदलाव की गुंजाइश भी रहती है, आप की सोच बदल सकती है, आप का आकार बदल सकता है पर इस उम्र तक आतेआते सबकुछ अपना आकार ले चुका होता है. इस में बदलाव की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है.’’

‘‘पर बदलाव की बात कहां आती है, तुम्हें राजेशजी अच्छे लगते हैं.’’

‘‘एक फैज अहमद फैज की गजल है, ‘मु झ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग, और भी दुख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा. राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा…’ और फिर मैं राजेशजी का एक ही पक्ष जानती हूं वे बातें अच्छी करते हैं. इस के अलावा मैं उन के बारे में कुछ भी नहीं जानती, मसलन उन की रुचियां क्या हैं, रिश्तों की गंभीरता उन की नजर में क्या है आदि मैं नहीं जानती. तब, बस, एक छोटे से रिश्ते के सहारे एक इतने अनावश्यक रिश्ते से मैं अपने को क्यों बांध लूं, क्या यह बेवकूफी नहीं होगी?’’

अमृता सांस लेने के लिए रुकी, फिर कहा, ‘‘राजेशजी की बात छोड़ो, मैं अपनी बात कहती हूं, मेरे बिस्तर का तकिया भी कोई दूसरी जगह रखे तो मैं चिढ़ जाती हूं. वर्षों से मैं अपनी चीजें अपनी जगह रखने की आदी हो गई  हूं. ऐसे में दिनरात दूसरे का दखल न  पटा तो…?’’

‘‘तो तुम्हारे पास दूसरा रास्ता क्या है?’’

‘‘क्यों, मैं जैसी रहती आई हूं वैसे ही रहूंगी. हम एक अच्छे दोस्त की तरह क्यों नहीं रह सकते. बस, केवल इसलिए न कि राजेशजी मर्द हैं और मैं औरत. पर इस उम्र तक आतेआते हम केवल इंसान ही बचे, न औरत न मर्द. और 2 इंसानों को एकदूसरे की हरदम जरूरत पड़ती है. अगर यह नहीं होता तो जंगल से होता हुआ समाज का यह सफर यहां तक न पहुंचता.’’

‘‘लोग बुरा कहेंगे तो?’’

‘‘अब युग बदल गया है सुषमा. अब नए लड़के लिवइन के रिश्ते बिना शादी के जीने लगे हैं. उन्हें कानूनी संरक्षण भी प्राप्त है. हम तो 60 के ऊपर के लोग हैं. हमारी तो बस इतनी ही मांग है कि समय अच्छी तरह से कट जाए और एक की गर्दिश में दूसरा खड़ा हो जाए. वह भी इसलिए क्योंकि आधुनिक भारत में न तो समाज और न सरकार गर्दिश में खड़ी होती है.’’

‘‘पर लोग तो कहेंगे,’’ सुषमा अब जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘कब तक?’’

‘‘जब तक उन की इच्छा होगी.’’

अभी अमृता सुषमा को छोड़ने के लिए खड़ी ही हुई थी कि उस की नजर सीता पर पड़ी. उस ने इशारे से जानना चाहा कि उस के असमय आने का क्या कारण है, ‘‘कुछ नहीं  मेमसाहब, बाद में बताऊंगी.’’

‘‘अरे, ये अपनी ही हैं.  बता क्या बात है?’’

‘‘वो नए फ्लैट में जो नया जोड़ा आया है न, उन के यहां आज मारपीट हुई है. साहब का किसी और औरत के साथ और मेमसाहब को किसी और से मोहब्बत है.’’

अमृता ने एक गहरी सांस लेते हुए सुषमा की तरफ देखा जैसे वे कहना चाहती हों, ‘देखा, बातों का विषय. अब मैं नहीं, कोई और हो गया है समाज के फ्रेम में. एक ही तसवीर हमेशा जकड़ी नहीं रहती. तसवीरें बदलती रहती हैं. आज एक, तो कल दूसरी. बस, थोड़े समय का यह खेल होता है. शायद, अमृता यह बात खुद को भी सम झाना चाहती थी.

दस्तक – भाग 1 : नेहा किस बात को लेकर गहरी सोच में डूबी थी

लेखिका- सुधा थपलियाल

 

गहरी सोच में डूबी नेहा ने कौफी के मग को एकटक घूरते हुआ कहा, “एक बार और कोशिश करती हूं.”

 

“3 वर्षों से यही तो कर रही हो,” संजीदगी से शिवम बोला.

 

“यह, आखिरी बार,” नेहा के स्वर में एक दृढ़ता थी.

 

वीकैंड पर नेहा निकल पड़ी अपने घर कानपुर के पास एक कसबे के लिए. एयरपोर्ट छोड़ने शिवम भी गया. पूरे रास्ते दोनों कार में चुप बैठे अपने दिलोदिमाग में चल रही उथलपुथल से बातें करते रहे. हैदराबाद एयरपोर्ट पर परेशान सी नेहा को आश्वस्त करने के लिए शिवम ने हलके से उस का हाथ दबाया. नेहा ने उस की ओर देखा और बिना कुछ बोले ट्रौली को धकेलते हुए एयरपोर्ट के अंदर चली गई. बोर्डिंग पास ले नेहा सिक्योरिटी की औपचारिकता को पूरा कर, सिक्योरिटी लौउंज में आ बोर्डिंग का इंतजार करने लगी.

 

दिलोदिमाग में अनवरत एक द्वंद्व चल रहा था. अनेक भाव आजा रहे थे, जो मन को मथ रहे थे. ‘नहीं, अब और नही.’ एक पल यह विचार दृढ़ता से दस्तक दे रहा था, तो अगले ही पल आशंका अपने पांव जमाने लग जाती. दिमाग के हाथों कमजोर हो दिल प्रश्न करने लग जाता, ‘क्या यह ठीक होगा?’ कशमकश इतनी बढ़ गई कि सीट पर बैठना मुश्किल हो गया. बेचैनी से इधरउधर चक्कर काटने लगी, तभी बोर्डिंग की सूचना घोषित हुई और सभी गेट की ओर चले दिए.

 

कानपुर एयरपोर्ट से टैक्सी से घर जाते हुए भी विचारों ने साथ न छोड़ा. बिना किसी सूचना के घर जा रही थी. जैसे ही टैक्सी मुख्य सड़क से घर की लेन की ओर मुड़ी, नेहा का दिल जोरों से धड़कने लगा. टैक्सी से बाहर निकली ही थी कि शिवम के पापा बगल के कपूर अंकल के गेट से बाहर निकलते दिखाई दिए. वह बच के निकलना चाहती थी कि अनायास ही अंकल की नजर नेहा पर पड़ गई.

 

“अरे बेटा, कैसे आई?” 10 दिनों पहले ही नेहा, दीप्ति की शादी में शामिल हो वापस हैदराबाद गई थी, इसलिए थोड़ा अचंभित होते हुए शिवम के पापा बोले.

 

“बस अंकल, ऐसे ही,” मस्तिष्क में उमड़ रहे झंझावातों को थामते हुए नेहा उन के पैरों में झुक गई.

 

आशीर्वादों की झड़ी लग गई.

 

नेहा से 8 साल छोटी और सब की लाड़ली बहन छुटकी ने बालकनी से अपनी दीदी को गेट से अंदर आते देखा, तो सुखद आश्चर्य से भर गई. तेजी से सीढ़ियों से उतर नेहा से लिपट गई.

 

नेहा ने प्यार से छुटकी को अपनी आगोश में ले लिया. मम्मीपापा नेहा को अपने सामने देख खुश कम, हैरान ज्यादा हुए. पापा को प्रणाम कर नेहा जोर से मम्मी के गले लग गई. बीती कुछ घटनाओं को स्मरण कर रमा, नेहा का यह रूप देख क्षणभर के लिए विस्मित हो गई. दादी के पैर छुए, तो उन्होंने स्नेह से नेहा को गले लगा लिया. लंच के बाद शाम की चाय का समय भी हो गया. शिवम के सामने जो साहस वह दिखा रही थी, वह मम्मीपापा के सामने पस्त होने लगा. रात में चारों खाना खा ही रहे थे कि हनीमून पर मालदीव गई नेहा से 2 साल छोटी बहन दीप्ति की वीडियोकौल आ गई मम्मी के फोन पर.

 

छुटकी ने मम्मी के हाथ से फोन ले खुशी से चिल्लाती हुई बोली, “हाय दी, कैसा है मालदीव? दिन में कौल करतीं तो हम भी वहां की सुंदरता को देखते. जीजू कहां हैं?”

 

“क्या कहना है साली साहिबा को, अपने जीजू से…?” वैभव को देख छुटकी उछल गई.

 

बातूनी छुटकी फोन छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी. तीनों की चुहलबाली, हंसीठहाके जब खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे, तो मम्मी ने टोक दिया.

 

“हमें भी दीप्ति और वैभव से बात करने दे.”

 

“अच्छा, दी-जीजू, बायबाय, मेरे लिए पर्ल, सी-शेल्स से बना नेकलेस जरूर लाना वहां से.”

 

“जो आज्ञा, साली जी.”

 

“प्रणाम मम्मी,” मम्मी को फोन पर देख दोनों के मुंह से निकला.

 

“चिरंजीव, सदा खुश रहो,” दोनों को साथ देख मम्मी का चेहरा खिल गया, “कैसे हो? कैसा लग रहा रहा वहां पर?”

 

“मम्मी, बहुत सुंदर जगह है. समुद्र का नीला पानी, सफेद रेतीले बीच और चारों ओर कुदरत का इतना खूबसूरत नजारा, मैं ने पहले कहीं नहीं देखा,” दीप्ति धाराप्रवाह बोले चले जा रही थी.

 

मंत्रमुग्ध रमा ने दोनों को ढेर सारा आशीर्वाद देने के बाद फोन पापा को पकड़ा दिया.

 

“प्रणाम पापा.”

 

“चिरंजीव.”

 

थोड़ी देर उन के हालचाल पूछ पापा ने कहा, “ये लो अपनी दीदी से बात करो. हैदराबाद से आज ही दिन में पहुंची है.”

 

नेहा को घर पर देख दीप्ति चौंक गई. खुशियों से ओतप्रोत, सहज गति से चल रहा वार्त्तालाप एकाएक भारी हो गया. बातचीत ने औपचारिकता का आवरण ओढ़ लिया. नेहा ने फोन पर जल्दी ही दोनों को बाय कह वातावरण को बोझिल होने से बचा लिया. फोन बंद कर नेहा की नजर एकाएक टेबल पर खाने को समटते मम्मी के चेहरे पर तनाव की उभरती रेखाओं पर पड़ी.

 

“मैं कुछ मदद करूं?”

 

“नहीं,” रूखा सा उत्तर दे मम्मी और कस कर टेबल साफ करने लगी.

 

“दीदी, आओ न, देखो, छोटी दीदी और जीजाजी ने मालदीव की ढेर सारी पिक्स भेजी हैं,” हाथ में मोबाइल पकड़े, खुशी से उछलती छुटकी नेहा को खींचने लगी अपने कमरे की ओर.

 

“एक्जाम सिर पर और इसे मस्ती सूझ रही है, जा जा कर पढ़ाई कर,” गुस्से से मम्मी चिल्लाई.

 

छुटकी सकपकाते हुए कमरे में चली गई.

 

“मेरा गुस्सा उस पर क्यों निकाल रही हो,” नेहा का धैर्य अब जवाब देने लगा.

 

रमा ने कुछ नहीं कहा. काम समेट कर टीवी के सामने सोफे पर बैठ गई. चेहरा अभी भी खिंचा हुआ था. विकलता रिमोट से टीवी के चैनल पर चैनल बदलने से स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी. नेहा कुछ देर तक मम्मी के चेहरे पर उभर आए उतारचढ़ाव को तोलती रही, फिर चुपचाप उन के पास आ कर बैठ गई.

सलाह लेना जरूरी : क्या पत्नी का मान रख पाया रोहित?

लेखिका- शिखा गुप्ता

घंटी बजी तो मैं खीज उठी. आज सुबह से कई बार घंटी बज चुकी थी, कभी दरवाजे की तो कभी टेलीफोन की. इस चक्कर में काम निबटातेनिबटाते 12 बज गए. सोचा था टीवी के आगे बैठ कर इतमीनान से नाश्ता करूंगी. बाद में मूड हुआ तो जी भर कर सोऊंगी या फिर रोहिणी को बुला कर उस के साथ गप्पें मारूंगी, मगर लगता है आज आराम नहीं कर पाऊंगी.

दरवाजा खोला तो रोहिणी को देख मेरी बांछें खिल गईं. रोहिणी मेरी ओर ध्यान दिए बगैर अंदर सोफे पर जा पसरी.

‘‘कुछ परेशान लग रही हो, भाई साहब से झगड़ा हो गया है क्या?’’ उस का उतरा चेहरा देख मैं ने उसे छेड़ा.

‘‘देखा, मैं भी तो यही कहती हूं, मगर इन्हें मेरी परवाह ही कब रही है. मुफ्त की नौकरानी है घर चलाने को और क्या चाहिए? मैं जीऊं या मरूं, उन्हें क्या?’’ रोहिणी की बात का सिरपैर मुझे समझ नहीं आया. कुरेदने पर उसी ने खुलासा किया, ‘‘2 साल की पहचान है, मगर तुम ने देखते ही समझ लिया कि मैं परेशान हूं. एक हमारे पति महोदय हैं, 10 साल से रातदिन का साथ है, फिर भी मेरे मन की बात उन की समझ में नहीं आती.’’

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‘‘तो तुम ही बता दो न,’’ मेरे इतना कहते ही रोहिणी ने तुनक कर कहा, ‘‘हर बार मैं ही क्यों बोलूं, उन्हें भी तो कुछ समझना चाहिए. आखिर मैं भी तो उन के मन की बात बिना कहे जान जाती हूं.’’

रोहिणी की फुफकार ने मुझे पैतरा बदलने पर मजबूर कर दिया, ‘‘बात तो सही है, लेकिन इन सब का इलाज क्या है? तुम कहोेगी नहीं, बिना कहे वे समझेंगे नहीं तो फिर समस्या कैसे सुलझेगी?’’

‘‘जब मैं ही नहीं रहूंगी तो समस्या अपनेआप सुलझ जाएगी,’’ वह अब रोने का मूड बनाती नजर आ रही थी.

‘‘तुम कहां जा रही हो?’’ मैं ने उसे टटोलने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘डूब मरूंगी कहीं किसी नदीनाले में. मर जाऊंगी, तभी मेरी अहमियत समझेंगे,’’ उस की आंखों से मोटेमोटे आंसुओं की बरसात होने लगी.

‘‘यह तो कोई समाधान नहीं है और फिर लाश न मिली तो भाई साहब यह भी सोच सकते हैं कि तू किसी के साथ भाग गई. मैं बदनाम महिला की सहेली नहीं कहलाना चाहती.’’

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‘‘सोचने दो, जो चाहें सोचें,’’ कहने को तो वह कह गई, मगर फिर संभल कर बोली, ‘‘बात तो सही है. ऐसे तो बड़ी बदनामी हो जाएगी. फांसी लगा लेती हूं. कितने ही लोग फांसी लगा कर मरते हैं.’’

‘‘पर एक मुश्किल है,’’ मैं ने उस का ध्यान खींचा, ‘‘फांसी लगाने पर जीभ और आंखें बाहर निकल आती हैं और चेहरा बड़ा भयानक हो जाता है, सोच लो.’’

बिना मेकअप किए तो रोहिणी काम वाली के सामने भी नहीं आती. ऐसे में चेहरा भयानक हो जाने की कल्पना ने उस के हाथपांव ढीले कर दिए. बोली, ‘‘फांसी के लिए गांठ बनानी तो मुझे आती ही नहीं, कुछ और सोचना पड़ेगा,’’ फिर अचानक चहक कर बोली, ‘‘तेरे पास चूहे मारने वाली दवा है न. सुना है आत्महत्या के लिए बड़ी कारगर दवा है. वही ठीक रहेगी.’’

‘‘वैसे तो तेरी मदद करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर सोच ले. उसे खा कर चूहे कैसे पानी के लिए तड़पते हैं. तू पानी के बिना तो रह लेगी न?’’ उस की सेहत इस बात की गवाह थी कि भूखप्यास को झेल पाना उस के बूते की बात नहीं.

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रोहिणी ने कातर दृष्टि से मुझे देखा, मानो पूछ रही हो, ‘‘तो अब क्या करूं?’’

‘‘छत से कूदना या फिर नींद की ढेर सारी गोलियां खा कर सोए रहना भी विकल्प हो सकते हैं,’’ मुश्किल वक्त में मैं रोहिणी की मदद करने से पीछे नहीं हट सकती थी.

‘‘ऊफ, छत से कूद कर हड्डियां तो तुड़वाई जा सकती हैं, पर मरने की कोई गारंटी नहीं और गोली खाते ही मुझे उलटी हो जाती है,’’ रोहिणी हताश हो गई.

हर तरकीब किसी न किसी मुद्दे पर आ कर फेल होती जा रही थी. आत्महत्या करना इतना मुश्किल होता है, यह तो कभी सोचा ही न था. दोपहर के भोजन पर हम ने नए सिरे से आत्महत्या की संभावनाओं पर विचार करना शुरू किया तो हताशा में रोहिणी की आंखें फिर बरस पड़ीं. मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा, परेशान मत हो.’’

रोहिणी ने छक कर खाना खाया. बाद में 2 गुलाबजामुन और आइसक्रीम भी ली वरना उस बेचारी को तो भूख भी नहीं थी. मेरी जिद ने ही उसे खाने पर मेरा साथ देने को मजबूर किया था.

चाय के दूसरे दौर तक पहुंचतेपहुंचते मुझे विश्वास हो गया कि आत्महत्या के प्रचलित तरीकों से रोहिणी का भला नहीं होने वाला. समस्या से निबटने के लिए नवीन दृष्टिकोण की जरूरत थी. बातोंबातों में मैं ने रोहिणी के मन की बात जानने की कोशिश की, जिस को कहेसुने बिना ही उस के पति को समझना चाहिए था.

बहुत टालमटोल के बाद झिझकते हुए उस ने जो बताया उस का सार यह था कि 2 दिन बाद उसे भाई के साले की बेटी की शादी में जाना था और उस के पास लेटैस्ट डिजाइन की कोई साड़ी नहीं थी. इसलिए 4 माह बाद आने वाले अपने जन्मदिन का गिफ्ट उसे ऐडवांस में चाहिए था ताकि शादी में पति की हैसियत के अनुरूप बनसंवर कर जा सके और मायके में बड़े यत्न से बनाई गई पति की इज्जत की साख बचा सके.

मुझे उस के पति पर क्रोध आने लगा. वैसे तो बड़े पत्नीभक्त बने फिरते हैं, पर पत्नी के मन की बात भी नहीं समझ सकते. अरे, शादीब्याह पर तो सभी नए कपड़े पहनते हैं. रोहिणी तो फिर भी अनावश्यक खर्च बचाने के लिए अपने गिफ्ट से ही काम चलाने को तैयार है. लोग तनख्वाह का ऐडवांस मांगते झिझकते हैं, यहां तो गिफ्ट के ऐडवांस का सवाल है. भला एक सभ्य, सुसंस्कृत महिला मुंह खोल कर कैसे कहेगी? पति को ही समझना चाहिए न.

‘‘अगर मैं बातोंबातों में भाई साहब को तेरे मन की बात समझा दूं तो कैसा रहे?’’ अचानक आए इस खयाल से मैं उत्साहित हो उठी. असल में अपनी प्यारी सहेली को उस के पति की लापरवाही के कारण खो देने का डर मुझे भी सता रहा था.

एक पल के लिए खिल कर उस का चेहरा फिर मुरझा गया और बोली, ‘‘उन्हें फिर भी न समझ आई तो?’’

मैं अभी ‘तो’ का जवाब ढूंढ़ ही रही थी कि टेलीफोन घनघना उठा. फोन पर रोहिणी के पति की घबराई हुई आवाज ने मुझे चौंका दिया.

‘‘रोहिणी मेरे पास बैठी है. हां, हां, वह एकदम ठीक है,’’ मैं ने उन की घबराहट दूर करने की कोशिश की.

‘‘मैं तुरंत आ रहा हूं,’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया. कुछ पल भी न बीते थे कि दरवाजे की घंटी बज उठी.

दरवाजा खोला तो रोहिणी के पति सामने खड़े थे. रोहित भी आते दिखाई दे गए. इसलिए मैं चाय का पानी चढ़ाने रसोई में चली गई और रोहित हाथमुंह धो कर रोहिणी के पति से बतियाने लगे.

रोहिणी की समस्या के निदान हेतु मैं बातों का रुख सही दिशा में कैसे मोड़ूं, इसी पसोपेश में थी कि रोहिणी ने पति के ब्रीफकेस में से एक पैकेट निकाल कर खोला. कुंदन और जरी के खूबसूरत काम वाली शिफोन की साड़ी को उस ने बड़े प्यार से उठा कर अपने ऊपर लगाया और पूछा, ‘‘कैसी लग रही है? ठीक तो है न?’’

‘‘इस पर तो किसी का भी मन मचल जाए. बहुत ही खूबसूरत है,’’ मेरी निगाहें साड़ी पर ही चिपक गई थीं.

‘‘पूरे ढाई हजार की है. कल शोकेस में लगी देखी थी. इन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली, तभी मुझे बिना बताए खरीद लाए,’’ रोहिणी की चहचहाट में गर्व की झलक साफ थी.

एक यह है, पति को रातदिन उंगलियों पर नचाती है, फिर भी मुंह खोलने से पहले ही पति मनचाही वस्तु दिलवा देते हैं. एक मैं हूं, रातदिन खटती हूं, फिर भी कोई पूछने वाला नहीं. एक तनख्वाह क्या ला कर दे देते हैं, सोचते हैं सारी जिम्मेदारी पूरी हो गई. साड़ी तो क्या कभी एक रूमाल तक ला कर नहीं दिया. तंग आ गई हूं मैं इन की लापरवाहियों से. किसी दिन नदीनाले में कूद कर जान दे दूंगी, तभी अक्ल आएगी, मेरे मन का घड़ा फूट कर आंखों के रास्ते बाहर आने को बेताब हो उठा. लगता है अब अपनी आत्महत्या के लिए रोहिणी से दोबारा सलाहमशवरा करना होगा.

 

मर्यादा : आखिर क्या हुआ निशा के साथ

लेखिका- VInita Rahurikar

देर रात गए घर के सारे कामों से फुरसत मिलने पर जब रोहिणी अपने कमरे में जाने लगी तभी उसे याद आया कि वह छत से सूखे हुए कपड़े लाना तो भूल ही गई है. बारिश का मौसम था. आसमान साफ था तो उस ने कपड़ों के अलावा घर भर की चादरें भी धो कर छत पर सुखाने डाल दी थीं. थकान की वजह से एक बार तो मन हुआ कि सुबह ले आऊंगी, लेकिन फिर ध्यान आया कि अगर रात में कहीं बारिश हो गई तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी. फिर रोहिणी छत पर चली गई.

वह कपड़े उठा ही रही थी कि छत के कोने से उसे किसी के बात करने की धीमीधीमी आवाज सुनाई दी. रोहिणी आवाज की दिशा में बढ़ी. दायीं ओर के कमरे के सामने वाली छत पर मुंडेर से सट कर खड़ा हुआ कोई फोन पर धीमी आवाज में बातें कर रहा था. बीचबीच में हंसने की आवाज भी आ रही थी. बातें करने वाले की रोहिणी की ओर पीठ थी इसलिए उसे रोहिणी के आने का आभास नहीं हुआ, मगर रोहिणी समझ गई कि यह कौन है.

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रोहिणी 3-4 महीनों से निशा के रंगढंग देख रही थी. वह हर समय मोबाइल से चिपकी या तो बातें करती रहती या मैसेज भेजती रहती. कालेज से आ कर वह कमरे में घुस कर बातें करती रहती और रात का खाना खाने के बाद जैसे ही मोबाइल की रिंग बजती वह छत पर भाग जाती और फिर घंटे भर बाद वापस आती.

रोहिणी के पूछने पर बहाना बना देती कि सहेली का फोन था या पढ़ाई के बारे में बातें कर रही थी. लेकिन रोहिणी इतनी नादान नहीं है कि वह सच न समझ पाए. वह अच्छी तरह जानती थी कि निशा फोन पर लड़कों से बातें करती है. वह भी एक लड़के से नहीं कई लड़कों से.

‘‘निशा इतनी रात गए यहां अंधेरे में क्या कर रही हो? चलो नीचे चलो,’’ रोहिणी की कठोर आवाज सुन कर निशा ने चौंक कर पीछे देखा.

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‘‘चल यार, मैं तुझे बाद में काल करती हूं बाय,’’ कह कर निशा ने फोन काट दिया और बिना रोहिणी की ओर देखे नीचे जाने लगी.

‘‘तुम तो एकडेढ़ घंटा पहले छत पर आई थीं निशा, तब से यहीं हो? किस से बातें कर रही थीं इतनी देर तक?’’ रोहिणी ने डपट कर पूछा.

निशा बिफर कर बोली, ‘‘अब आप को क्या अपने हर फोन काल की जानकारी देनी पड़ेगी चाची? आप क्यों हर समय मेरी पहरेदारी करती रहती हैं? किस ने कहा है आप से? मेरा दोस्त है उस से बातें कर रही थी.’’

‘‘निशा, बड़ों से बातें करने की भी तमीज नहीं रही अब तुम्हें. मैं तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हें टोकती हूं,’’ रोहिणी गुस्से से बोली.

‘‘मेरा भलाबुरा सोचने के लिए मेरी मां हैं. सच तो यह है कि आप मुझ से जलती हैं. आप की बेटी मेरे जितनी सुंदर नहीं है. उस का मेरे जैसा बड़ा सर्कल नहीं है, दोस्त नहीं हैं. इसीलिए मेरे फोन काल से आप को जलन होती है,’’ निशा कठोर स्वर में बोल कर बुदबुदाती हुई नीचे चली गई.

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कपड़ों को हाथ में लिए हुए रोहिणी स्तब्ध सी खड़ी रह गई. उस की गोद में पली लड़की उसे ही उलटासीधा सुना गई.

रोहिणी की बेटी ऋचा निशा से कई गुना सुंदर है, लेकिन हर समय सादगी से रहती है और पढ़ाई में लगी रहती है.

रोहिणी बचपन से ही उसे समझती आई है और ऋचा ने बचपन से ले कर आज तक उस की बताई बात का पालन किया है. वह अपने आसपास फालतू भीड़ इकट्ठा करने में विश्वास नहीं करती. तभी तो हर साल स्कूल और कालेज में टौप करती आई है.

लेकिन निशा संस्कार और गुणों पर ध्यान न दे कर हर समय दोस्तों व सहेलियों से घिरे रहना पसंद करती है. तारीफ पाने के लिए लेटैस्ट फैशन के कपड़े, मेकअप बस यही उस का प्रिय शगल है और इसी में वह अपनी सफलता समझती है. तभी तो ऋचा से 2 साल बड़ी होने के बावजूद भी उसी की क्लास में है.

नीचे जा कर रोहिणी ने ऋचा के कमरे में झांक कर देखा. ऋचा पढ़ रही थी, क्योंकि वह पी.एस.सी. की तैयारी कर रही थी. रोहिणी ने अंदर जा कर उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अपने कमरे में आ गई.

‘जिंदगी में हर बात का एक नियत समय होता है. समय निकल जाने के बाद सिवा पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता. इसलिए जीवन में अपने लक्ष्य और प्राथमिकताएं तय कर लेना और उन्हीं के अनुसार प्रयत्न करना,’ यही समझाया था रोहिणी ने ऋचा को हमेशा. और उसे खुशी थी कि उस की बेटी ने जीवन का ध्येय चुनने में समझदारी दिखाई है. पूरी उम्मीद है कि ऋचा अपने लक्ष्य प्राप्ति में अवश्य सफल होगी.

अगले दिन ऋचा और निशा के कालेज जाने के बाद रोहिणी ने अपनी जेठानी से बोली कि निशा आजकल रोज घंटों फोन पर अलगअलग लड़कों से बातें करती है. आप जरा उसे समझाइए. लेकिन बदले में जेठानी का जवाब सुन कर वह अवाक रह गई.

‘‘करने दे रे, यही तो दिन हैं उस के हंसनेखेलने के. बाद में तो उसे हमारी तरह शादी की चक्की में ही पिसना है. बस बातें ही तो कर रही है न और वैसे भी सभी लड़के एक से एक अमीर खानदान से हैं.’’

रोहिणी को समझते देर नहीं लगी कि जेठानी की मनशा क्या है. वैसे भी उन्होंने निशा को ऐसे ढांचे में ही ढाला है कि अमीर खानदान में शादी कर के ऐश से रहना ही उस का एकमात्र ध्येय है. अमीर परिवार के इतने लड़कों में से वह एक मुरगा तो फांस ही लेगी.

रोहिणी को जेठानी की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन उस ने समझ लिया कि उन से और निशा से कुछ भी कहनासुनना बेकार है. वह ऋचा को उन दोनों से भरसक दूर रखने का प्रयत्न करती. वह नहीं चाहती थी कि ऋचा का ध्यान इन बातों पर जाए.

कई महीनों तक रोहिणी ऋचा की पढ़ाई को ले कर व्यस्त रही. उस ने निशा को टोकना छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान ऋचा पर केंद्रित कर लिया. आखिर बेटी के भविष्य का सवाल है. रोहिणी अच्छी तरह समझती थी कि बेटी को अच्छे संस्कार दे कर बड़ा करना और बुरी सोहबत से बचा कर रखना एक मां का फर्ज होता है.

एक दिन रोहिणी ने निशा के हाथ में बहुत महंगा मोबाइल देखा तो उस का माथा ठनका. निशा और उस की मां की आपसी बातचीत से पता चला कि कुछ दिन पहले किसी हिमेश नामक लड़के से निशा की दोस्ती हुई है और उसी ने निशा को यह मोबाइल उपहार में दिया है.

जेठानी रोहिणी की ओर कटाक्ष कर के कहने लगीं कि लड़का आई.ए.एस. है. खानदान भी बहुत ऊंचा और अमीर है. निशा की तो लौटरी खुल गई. अब तो यह सरकारी अफसर की पत्नी बनेगी.

रोहिणी को इस बात पर बड़ी चिंता हुई. कुछ ही दिनों की दोस्ती पर कोई किसी पर इतना पैसा खर्च कर सकता है, यह बात उस के गले नहीं उतर रही थी.

उस ने अपने पति नीरज से बात की तो नीरज ने कहा, ‘‘मैं भी धीरज भैया को कह चुका हूं, लेकिन तुम तो जानती हो, वे भाभी और बेटी के सामने खामोश रहते हैं. तुम जबरन तनाव मत पालो. ऋचा पर ध्यान दो.

जब उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता नहीं है तो हम क्यों करें? समझाना हमारा काम था हम ने कर दिया.’’

रोहिणी को नीरज की बात ठीक लगी. उस ने तो निशा को भी अपनी बेटी समान ही समझा, पर अब जब मांबेटी दोनों अपने आगे किसी को कुछ समझती ही नहीं तो वह भी क्या करे.

अगले कुछ महीनों में तो निशा अकसर हिमेश के साथ घूमने जाने लगी. कई बार रात में पार्टियां अटैंड कर के देर से घर आती. उस के कपड़ों से महंगे विदेशी परफ्यूम की खुशबू आती.

कपड़े दिन पर दिन कीमती होते जा रहे थे. रोहिणी ने कभी ऋचा और निशा में भेद नहीं किया था, इसलिए उस के भविष्य के बारे में सोच कर उस के मन में भय की लहर दौड़ जाती. पर वह मन मसोस कर मर्यादा का अंशअंश टूटना देखती रहती. घर में 2 विपरीत धाराएं बह रही थीं.

ऋचा सारे समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती और निशा सारे समय हिमेश के साथ अपने सुनहरे भविष्य के सपनों में खोई रहती. उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. उस के सुंदर दिखने के उपायों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी. वह ऋचा और रोहिणी को ऐसी हेय दृष्टि से देखती थी मानो हिमेश का सारा पैसा और पद उसी का हो.

ऋचा के बी.ए. फाइनल और पी.एस.सी. प्रिलिम्स के इम्तिहान हो गए, लेकिन आखिरी पेपर दे कर आने के तुरंत बाद ही वह अन्य परीक्षा की तैयारियों में जुट गई. उस की दृढ़ता और विश्वास देख कर रोहिणी और नीरज भी आश्वस्त थे कि वह पी.एस.सी. की परीक्षा में जरूर सफल हो जाएगी.

और वह दिन भी आ गया जब रोहिणी और नीरज के चेहरे खिल गए. उन के संस्कार जीत गए. ऋचा की मेहनत सफल हो गई. वह प्रिलिम्स परीक्षा पास कर गई और साथ ही बी.ए. में पूरे विश्वविद्यालय में अव्वल रही.

लेकिन इस खुशी के मौके पर घर में एक तनावपूर्ण घटना घट गई. निशा रात में हिमेश के साथ उस की बर्थडे पार्टी में गई. घर में वह यही बात कह कर गई कि हिमेश ने बहुत से फ्रैंड्स को होटल में इन्वाइट किया है. खानापीना होगा और वह 11 बजे तक घर वापस आ जाएगी. लेकिन जब 12 बजे तक निशा घर नहीं आई तो घर में चिंता होने लगी. वह मोबाइल भी रिसीव नहीं कर रही थी. रात के 2 बजे तक उस की सारी सहेलियों के घर पर फोन किया जा चुका था पर उन में से किसी को भी हिमेश ने आमंत्रित नहीं किया था. जिस होटल का नाम निशा ने बताया था नीरज वहां गया तो पता चला कि ऐसी कोई बर्थडे पार्टी वहां थी ही नहीं.

गंभीर दुर्घटना की आशंका से सब का दिल धड़कने लगा. रोहिणी जेठानी को तसल्ली दे रही थी पर उन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. वे रोहिणी से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. सुबह 4 बजे जब वे लोग पुलिस में रिपोर्ट करने की सोच रहे थे कि तभी एक गाड़ी तेजी से आ कर दरवाजे पर रुकी और तेजी से चली गई. कुछ ही पलों बाद निशा अस्तव्यस्त और बुरी हालत में घर आई और फूटफूट कर रोने लगी.

उस की कहानी सुन कर धीरज और उस की पत्नी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. रोहिणी और नीरज अफसोस से भर उठे.

बर्थडे पार्टी का बहाना बना कर हिमेश निशा को एक दोस्त के फार्म हाउस में ले गया. वहां उस के कुछ अधिकारी आए हुए थे. उसने निशा से उन्हें खुश करने को कहा. मना करने पर वह गुस्से से चिल्लाया कि महंगे उपहार मैं ने मुफ्त में नहीं दिए. तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी. उपहार लेते समय तो हाथ बढ़ा कर सब बटोर लिया और अब ढोंग कर रही हो. और फिर पता नहीं उस ने निशा को क्या पिला दिया कि उस के हाथपांव बेदम हो गए और फिर…

कहां तो निशा उस की पत्नी बनने का सपना देख रही थी और हिमेश ने उसे क्या बना दिया. हिमेश ने धमकी दी थी कि किसी को बताया तो…

रोहिणी सोचने लगी अगर मर्यादा का पहला अंश भंग करने से पहले ही निशा सचेत हो जाती तो आज अपनी मर्यादा खो कर न आती.

निशा के कानों में रोहिणी के शब्द गूंज रहे थे, जो उन्होंने एक बार उस से कहे थे कि मर्यादा भंग करते जाने का साहस ही हम में एकबारगी सारी सीमाएं तोड़ डालने का दुस्साहस भर देता है.

वाकई एकएक कदम बिना सोचेसमझे अनजानी राह पर कदम बढ़ाती वह आज गड्ढे में गिर गई थी.

 

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