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क्यों जंजाल बन जाती है बुजुर्गों की देखभाल?

बात 1 जुलाई की है. रात को लगभग 11 बजे एक महंगी कार विदिशा के हरि वृद्धाश्रम में आ कर रुकी. उस में से एक सुंदर लेकिन हैरानपरेशान महिला एक बुजुर्ग को ले कर उतरी. महिला का नाम नेहा और साथ उतरे उस के पिता जिन का नाम महेश तिवारी है. भोपाल निवासी 87 वर्षीय महेश तिवारी समाज कल्याण विभाग से रिटायर्ड प्रथम श्रेणी अधिकारी हैं. उन की पैंशन ही करीब 40 हजार रुपए महीना बनती है. भोपाल के पौश शाहपुरा इलाके में उन का अपना बड़ा सा मकान है. नेहा ने वृद्धाश्रम के संचालक दंपती वेदप्रकाश शर्मा और इंदिरा शर्मा से गिड़गिड़ाते अंदाज में आग्रह किया कि उस का बेटा बीमार है जिस की देखभाल के लिए वह कुछ दिनों के लिए पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ना चाहती है. अपने हालात सामान्य होते ही वह पिता को ले जाएगी.

वेदप्रकाश शर्मा द्वारा आवश्यक पूछताछ करने पर उस ने बताया कि उस के पिता एक सामान्य वृद्ध हैं और उन्हें कोई क्रिटिकल बीमारी नहीं है. आश्रम में जगह खाली थी और इंदिरा व वेद को नेहा से हमदर्दी भी हो आई थी, इसलिए उन्होंने तुरंत औपचारिकताएं पूरी करते महेश तिवारी को भरती कर लिया. टीवी सीरियल सी कहानी लेकिन महेश तिवारी सामान्य वृद्ध नहीं निकले जैसा कि नेहा ने बताया था. वे एक हिंसक वृद्ध निकले, जिस ने देखते ही देखते इस वृद्धाश्रम की शांत जिंदगी में खासा तहलका और उपद्रव मचा दिया. शुरू के दोतीन दिन सामान्य रहने के बाद उन्होंने आश्रम के दूसरे वृद्धों को भद्दी गलियां देनी शुरू कर दीं. हद तो तब हो गई जब उन्होंने दूसरे वृद्धों सहित स्टाफ के सदस्यों की पिटाई भी करनी शुरू कर दी. वेदप्रकाश महेश तिवारी का यह रौद्र रूप देख घबरा उठे जो स्वाभाविक बात भी थी क्योंकि वे बिलकुल विक्षिप्तों जैसी हरकतें कर रहे थे. आश्रम के बुजुर्गों ने इस पर एतराज जताया और स्टाफ के 2 कर्मचारियों ने तो आश्रम आना ही बंद कर दिया.

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वेदप्रकाश ने नेहा को फोन किया और उन्हें उन के पिता की करतूतें बताईं. लेकिन नेहा उन्हें लेने नहीं आई तो उन का माथा ठनका क्योंकि हरि वृद्धाश्रम को उन्होंने 15 साल की कड़ी मेहनत व लगन से नाम और मुकाम दिया है. ऐसा पहली बार हो रहा था कि आश्रम में रह रहे बुजुर्ग इस नए मेहमान के बरताव को ले कर दहशत में आ गए थे लेकिन कहीं और वे जा नहीं सकते थे क्योंकि अब यही उन का यह आखिरी सहारा था. पिता द्वारा दूसरे बूढ़ों की कुटाई करते और गालियां बकते वीडियो भी वेदप्रकाश ने नेहा को भेजे लेकिन उस ने विदिशा आ कर पिता को वापस ले जाने से साफ इनकार कर दिया. जब उसे यह बताते दबाव बनाया गया कि ऐसे क्रिटिकल बूढ़ों को सामान्य वृद्धाश्रम में नहीं रखा जा सकता, उन के लिए विशेष प्रबंध करना होगा और यह सरासर धोखाधड़ी है, तो नेहा इस बात पर राजी हो गई कि ठीक है, आप ही पापा को भोपाल छोड़ जाइए. इस बाबत उस ने अपने घर का पता भी दे दिया. वेदप्रकाश ने सोचा कि चलो पिंड छूटा और 16 जुलाई को उन्होंने कार द्वारा आश्रम की टीम के साथ महेश तिवारी को भोपाल रवाना कर दिया. भोपाल में दिए गए पते पर यह टीम पहुंची तो घर पर ताला ?ाल रहा था. नेहा भी आधार कार्ड पर दिए अपने पते पर नहीं मिली.

अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर पता चला कि यह मकान है तो इन्हीं तिवारीजी के नाम लेकिन मुद्दत से खाली पड़ा है. उन की बेटी कहीं और रहती है. और जानकारी ली तो यह बात भी सामने आई कि इस के पहले महेश तिवारी अपने बेटे के साथ रहते थे जो अब मुंबई शिफ्ट हो गया है. नेहा ने भाई से कानूनी लड़ाई लड़ कर पिता की सेवा और संपत्ति का हक हासिल किया था. वह अविवाहित है और उस ने बच्चा गोद लिया हुआ है. आश्रम टीम अब सकते में थी क्योंकि इस महाभारत के श्रवण से उन का मकसद हल नहीं हो रहा था. थकहार कर उन्होंने शाहपुरा थाने की शरण ली और बताया कि किस तरह धोखा दे कर दिमागी तौर पर बीमार बुजुर्ग को उन के पल्ले बांध दिया गया है. लेकिन पुलिस वालों ने हाथ खड़े कर दिए कि हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते. इस टीम ने पुलिस वालों को यह भी बताया कि ‘मातापिता भरण पोषण कानून 2005’ के तहत वृद्ध मातापिता की देखभाल करना संतान की जिम्मेदारी है जो उन की पैंशन भी ले रही है और जायदाद का भी इस्तेमाल कर रही है.

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पर तमाम ज्ञान और दलीलें देने के बाद भी बात नहीं बनी तो यह टीम महेश तिवारी को वापस विदिशा ले गई. तिवारीजी को वापस आया देख आश्रम के बूढ़े फिर दहशत से भर उठे लेकिन असल आफत वेदप्रकाश और इंदिरा की थी जो इस हिंसक वृद्ध को न तो निगल सकते थे और न उगल सकते थे की तर्ज पर न तो रखने का जोखिम उठा सकते थे और न ही यों भगा सकते थे. यानी एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. इन दोनों को डर इस बात का था कि कहीं इस बुजुर्ग के हाथों कुछ उलटासुलटा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. भोपाल से उन्हें यह भी पता चला था कि नेहा का अपना अलग रसूख है और उस के हाथ बहुत लंबे हैं. लेकिन कुछ तो करना ही था, इसलिए वेदप्रकाश ने भोपाल में पुलिस के आला अफसरों को अपनी परेशानी बताई तो आखिरकार 21 जुलाई को महेश तिवारी को नेहा के एक दोस्त के जरिए सुपुर्द कर भोपाल भेज दिया गया.

इस पूरी फिल्मी सी कहानी की वीडियो रिकार्डिंग कर चुके वेदप्रकाश का कहना है, ‘‘अगर हमारे आश्रम में ऐसे क्रिटिकल बूढ़ों को रखने की व्यवस्था होती तो हम जरूर उन्हें रखते और अगर वे सामान्य होते तो भी हम इस बात को हजम कर लेते कि कोई औलाद ?ाठ बोल कर पिता को हमारे यहां छोड़ गई. यह हमारे लिए कोई नई बात नहीं है पहले भी नेहा जैसी कई संतानें ऐसा कर चुकी हैं लेकिन यह मामला गंभीर था, इसलिए हम कोई रिस्क नहीं ले सकते थे.’’ परेशानियां ही परेशानियां जो वृद्ध सामान्य हैं लेकिन बातबात में दखलंदाजी कर दूसरी कई ऊटपटांग हरकतों से बेटेबेटियों और खासतौर से बहुओं का चैन से जीना मुहाल कर देते हैं, उन की क्या अब जरूरत है कि उन के बारे में भी चर्चा की जाए जबकि उन की सारी वाजिब जरूरतें पूरी कर दी जाती हैं? इस सवाल का सटीक और तार्किक जवाब न तो वेदप्रकाश दे पाए और न ही कोई दूसरा दे सकता.

आदर्शों, संस्कृति, नैतिकता और धर्म का उपदेश हर कोई थोप सकता है और थोपता ही है कि कुछ भी हो, मांबाप कैसे भी हों उन की सेवा और देखभाल करना संतानों की महती जिम्मेदारी है. इस प्रतिनिधि ने जब भोपाल में कुछ ऐसे लोगों से बात की जिन के यहां वृद्ध मांबाप थे तो कई हैरतअंगेज बातें सामने आईं. पेश हैं यहां उन के चुनिंदा अंश जो यह सोचने को मजबूर करते हैं कि अभिभावकों की सेवासुश्रूषा के मामले में मुंह खोल कर युवाओं को दोषी ठहरा देना जितना आसान काम है उस से ज्यादा कहीं मुश्किल उन की परेशानियों व तनाव को सम?ा पाना है. (आग्रह पर गोपनीयता की दृष्टि से नाम बदल दिए गए हैं). 37 वर्षीय गौरव बैंक कर्मी हैं और भोपाल की एक रिहायशी कालोनी में रहते हैं. मकान बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है उस में 2 बैडरूम और एक हौल है. एक कमरे में उन के 68 वर्षीय रिटायर्ड पापा रहते हैं. जिंदगीभर सरकारी नौकरी करते रहे गौरव के पापा को किशोरावस्था से ही तंबाकू खाने की बुरी लत है. इस के नुकसानों पर चर्चा करने के बाद गौरव बताते हैं, ‘‘अब 2 साल से अशक्तता के चलते वे अपने कमरे से बाहर नहीं निकल पाते लेकिन तंबाकू नियमित खाते हैं और कमरे में ही थूकते रहते हैं. सम?ाने का कोई असर उन पर नहीं होता. ज्यादा कहो तो दयनीय चेहरा बनाते कहते हैं, ‘‘तू तो मु?ो कहीं जंगल या वृद्धाश्रम में छोड़ आ.’’ गौरव की पत्नी नेहा ससुर की देखभाल करती है जो सुबहशाम ससुर के कमरे की पीक साफ करतेकरते स्वाभाविक तौर पर खी?ा जाती है.

यह काम कोई नौकर करने को तैयार नहीं होता. यह रोज की परेशानी है. नेहा और गौरव बताते हैं, ‘‘आप या कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि हमारी हालत क्या हो जाती होगी. पापा जानतेसम?ाते हैं कि हम उन्हें खुद से दूर नहीं करेंगे, इसलिए इमोशनल ब्लैकमेलिंग करते रहते हैं. कमरे में दोदो पीकदान रखे होने के बाद वे पीक दीवारों और फर्श पर थूकते हैं. हम उन की सेवा और देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ते और इस बाबत हमें किसी का सर्टिफिकेट भी नहीं चाहिए, पर उन की थूकने की आदत से हम पर क्या गुजरती है, सम?ाना और सम?ाना दोनों मुश्किल काम है.’’ कई बार आधी रात को उठ कर गौरव को पिता को देखने जाना पड़ता है. इस का गौरव को मलाल नहीं और इस बात का भी नहीं कि उन्हें बहुत से सुख पिता की वजह से छोड़ने पड़ते हैं. नेहा की इच्छा है कि एकाध बार केरल या कश्मीर नहीं, तो पचमढ़ी या मांडू कहीं तो घूमने जाया जाए लेकिन ससुर की हालत देखते वह इस इच्छा का गला घोंट लेती है कि फिर इन की देखभाल कौन करेगा. यही पिता बेटेबहू की एक सलीके की बात मानने को तैयार नहीं तो इन दोनों पर तरस और सहानुभूति हो आना भी कुदरती बात है.

उन का 8 साल का बेटा भी दादाजी की गंदगी देख उन के कमरे में नहीं जाता. ऐसी ही कहानी 42 वर्षीय योगिता की है जो एक सरकारी कालेज में असिस्टैंट प्रौफेसर हैं. योगिता बुजुर्ग मां की देखभाल के चलते शादी नहीं कर पाईं. अब से कोई 12 साल पहले अमरावती से नौकरी करने बैतूल आईं तो साथ देने मां भी आ गईं. योगिता मां के ?ागड़ालू स्वभाव को ले कर परेशान हैं जो नौकरों से भी हर कभी ?ागड़ती हैं और पड़ोसियों से भी. 5 साल पहले ट्रांसफर पर वे भोपाल आईं तो उम्मीद बंधी कि बड़े शहर में आ कर शायद मां का स्वभाव बदल जाए लेकिन यह खुशफहमी ही साबित हुई. मां ने यहां भी बेवजह लड़ना?ागड़ना नहीं छोड़ा. ‘‘बहुत शर्मिंदगी होती है,’’ योगिता बताती हैं, ‘‘मां को सम?ाने से कोई फायदा नहीं होता क्योंकि उन्हें तो कलह करने की आदत पड़ गई है. अब तो पड़ोसियों ने शिकायत करना ही बंद कर दिया है. मेरे सामाजिक संपर्क, मेलमिलाप सब बंद हैं. दिनरात मां के स्वभाव की चिंता लगी रहती है.

क्लासरूम में पढ़ाते हुए भी ध्यान घर पर ही रहता है कि मां आज न जाने किस पड़ोसी पर गरजबरस रही होंगी.’’ योगिता की चिंता अपनी जगह वाजिब है कि कभी कोई इमरजैंसी पड़ी तो कोई पड़ोसी सहयोग न करेगा. सारे रिश्तेदार नागपुर की तरफ हैं और अब उन्हें भी कोई खास सरोकार नहीं रह गया है. जिस मां के लिए घर नहीं बसाया, वही मां ?ागड़ालू स्वभाव की हो तो योगिता और नेहा में कोई खास फर्क नहीं रह जाता, सिवा इस के कि एक के पिता घोषित तौर पर हिंसक थे और एक की मां अभी घोषित तौर पर नहीं हैं. खुद योगिता हाई ब्लडप्रैशर की गिरफ्त में आ गई हैं और अब खुद के भविष्य को ले कर तनाव में रहने लगी हैं. जैन समुदाय के एक बड़े कारोबारी 28 वर्षीय निशंक के बुजुर्ग पिता विकट के जिद्दी हैं, जिन्हें घर के हर काम में दखल देना ही रहता है. सब्जीभाजी की खरीद से ले कर कारोबार तक के लेनदेन की जानकारी उन्हें रोज चाहिए रहती है. बकौल निशंक, यह एक गैरजरूरी बात है कि कोई बुजुर्ग रोजरोज यह तय करे कि आज सब्जी यही बनेगी, नहीं तो खाना नहीं खाऊंगा.

आजकल कारोबार का सारा हिसाबकिताब और लेनदेन कंप्यूटर से होता है, जिस की जानकारी पिता को नहीं है. उन्हें रोज प्रिंट निकाल कर देने पड़ते हैं. न दो, तो घर में महाभारत शुरू हो जाती है. एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पैकेज पर काम कर रहे 27 वर्षीय अभिषेक की शादी को 4 साल ही हुए हैं. 68 साल की हो चलीं उन की मां ऊंचा सुनती हैं लेकिन उन्हें हर बात सुननी ही रहती है. अभिषेक कहते हैं, ‘‘आप को शायद यह परेशानी नहीं लगेगी कि कोई मिलने वाला या यारदोस्त सपत्नीक आ जाता है तो मम्मी तुरंत ड्राइंगरूम में पहुंच जाती हैं और बारबार बीच में टोकती हैं. उन्हें हर बात जोर से बोल कर बतानी पड़ती है. ‘‘घर में हम पतिपत्नी बात करें तो भी वे दखल देती हैं. कई बार उन्हें लगता है कि हम उन के ऊंचा सुनने का मजाक बना रहे हैं, जिस पर वे गुस्सा हो जाती हैं और कुछ दिन बात ही नहीं करतीं. इस से हमें बुरा लगता है, गिल्ट फील होता है लेकिन क्या करें, सम?ा नहीं आता.’’

गायब होते अधेड़ इन और ऐसी समस्याओं का कोई इलाज है ही नहीं, सिवा इस के कि ज्यादा परेशान करने वाले बुजुर्गों को वृद्धाश्रम छोड़ दिया जाए जोकि आमतौर पर हर कोई नहीं करता क्योंकि उन में मांबाप के प्रति जिम्मेदारी का भाव है और सामाजिक दबाव भी है कि लोग क्या कहेंगे. दूसरा तरीका सब से आसान और प्रचलित है कि युवा अपनी इच्छाओं व जरूरतों को किनारे करते सेवा करते जाएं. वेदप्रकाश बताते हैं कि उन के आश्रम में आने वाले कोई 80 फीसदी बुजुर्ग खुद की हरकतों के चलते आश्रम में छोड़ दिए जाते हैं. ये वे वृद्ध हैं जो उम्र के अहंकार और जिद्दी स्वभाव के शिकार हैं. उन की अपनी धार्मिक और दूसरी मान्यताएं हैं जिन के चलते बच्चों के साथ उन का रहना दूभर हो जाता है. यह पीढ़ी युद्ध बिलकुल भी नया नहीं है लेकिन बदलते वक्त के साथ वृद्ध खुद बिलकुल भी नहीं बदलना चाहते. एक अहम वजह परिवारों की बदलती बनावट और संरचना का भी है जिस के तहत घरों में अब 2 ही पीढि़यां बहुतायत से दिखती हैं, पहली पीढ़ी युवा है और दूसरी वृद्ध.

बीच की पीढ़ी यानी अधेड़ों की संख्या कम हो रही है. पुरानी परिवार व्यवस्था जो 25-30 साल पहले तक नजर आती थी उस में अधेड़ वृद्धों और अतिवृद्धों की देखभाल व सेवा की जिम्मेदारी संभाल लेते थे, जिस से युवाओं को राहत और आजादी मिल जाती थी और वे खुल कर जी पाते थे. यह 3 पीढि़यों का एक अघोषित सम?ाता था जिस में सभी को सहूलियत थी. अब लोग ज्यादा फिट रहने लगे हैं कि आप एक 60 साल के व्यक्ति को बूढ़ा नहीं कह सकते क्योंकि वह एकदम फिट और चुस्तदुरुस्त रहता है. उस के खयालात भी ज्यादा पोंगापंथ वाले नहीं होते. यहां तक कोई परेशानी परिवारों में खड़ी नहीं होती. परेशानी उस वक्त खड़ी होती है जब 40 साल तक के लोगों को 65 पार के बूढ़ों की देखभाल की जिम्मेदारी उठानी पड़ जाती है. अगर वे ?ाक्की और जिद्दी हों, जो आमतौर पर होते ही हैं, तो मामला उल?ाने लगता है. अधिकतर बूढ़े युवाओं से तालमेल बैठाने की कोशिश ही नहीं करते. इंदिरा शर्मा बताती हैं, ‘‘वे बहुत पजैसिव होते हैं और असमर्थ व अशक्त होते हुए भी घर की सत्ता के सारे सूत्र अपने हाथ में रखना चाहते हैं. चूंकि इस का संचालन नहीं कर पाते,

इसलिए धीरेधीरे चिड़चिड़े होतेहोते कब भार बन जाते हैं, यह किसी को पता नहीं चलता और जब चलता है तब तक बात काफी बिगड़ चुकी होती है.’’ अब चूंकि अधेड़ कहीं से आयात नहीं किए जा सकते, इसलिए जिम्मेदारी उन युवाओं को उठानी पड़ती है जो कैरियर के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं या कर चुके होते हैं और जिंदगी का यह हिस्सा अपनी मरजी से गुजारना चाहते हैं, तो कोई गुनाह नहीं करते. अकसर गुनाह दरअसल, बुजुर्ग करते हैं जिस की सजा युवाओं को भुगतनी पड़ती है जिन से यह उम्मीद की जाती है कि वे बूढ़ों को, जैसे भी हो, ?ोलें यहां तक कि अपनी आजादी और प्राइवेसी भी गिरवी रख दें. सभी सम?ों वास्तविकता होता भी यही है लेकिन कोफ्त उस वक्त होती है जब दिनोंदिन बढ़ती और गंभीर होती इस समस्या पर एकतरफा सोचा जाता है. वृद्धाश्रम कोई जेल नहीं हैं जहां जाने से बुजुर्गों को कोई सजा मिलती हो, बल्कि यह तो एक अच्छी सुविधा है जहां बूढ़े जिंदगी की शाम और बेहतर ढंग से गुजार सकते हैं. बदलाव के इस दौर में वृद्धावस्था से अतिवृद्धावस्था में दाखिल हो रहे ज्यादातर लोग खुद अलग रहना चाहते हैं. लेकिन ऐसे सम?ादार बुजुर्गों की संख्या अभी 30 फीसदी भी नहीं है.

ये वे वृद्ध हैं जो बिना किसी कुंठा और पूर्वाग्रह के हालात को सम?ाते किसी पर न तो भार बनना चाहते और न ही अपने बच्चों की आजादी छीनना चाहते हैं. इन्हें सम?ादार और आधुनिक बुजुर्ग कहा जा सकता है जो युवाओं से मित्रवत पेश आते हैं और खुद की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक सेहत के अलावा दूसरी परिस्थितियों को सम?ा उन से सम?ाता कर लेने की बुद्धिमानी दिखाते हैं. ये बच्चों को बातबात में टोकते नहीं हैं कि कहां जा रहे हो? कब तक आओगे? मेरी दवा का क्या हुआ? अपनी अनदेखी का ?ाठा दोष भी उन्हें नहीं देते. समस्या वे बूढ़े हैं जिन का जिक्र ऊपर किया गया है. यहां भी यह देखने में आता है कि अधिकतर लोग अपनी वृद्धावस्था के बारे में कोई योजना नहीं बनाते खासतौर से वे जिन के पास बहुत ज्यादा पैसा नहीं है. पैंशनभोगी और आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर वृद्धों की तो जैसेतैसे कट जाती है लेकिन परेशानी उन वृद्धों को ज्यादा होती है जो पूरी तरह यानी हर स्तर पर संतानों पर निर्भर होते हैं. इसीलिए इन का शोषण और उपेक्षा ज्यादा होने लगती है क्योंकि बाद की जिंदगी के ये दूसरों के मुहताज पूरी तरह हो जाते हैं.

वेदप्रकाश बताते हैं कि उन के आश्रम में ऐसे बुजुर्गों की तादाद ज्यादा है जिन्होंने अपने बुढ़ापे के बारे में कभी सोचा ही नहीं और बच्चों के लिए बगैर कुछ ज्यादा किएधरे उन से रिश्ते के नाम पर रिटर्न ज्यादा चाहते हैं. असल समस्या है युवाओं से उन के शोषण की हद तक उम्मीदें पाल लेना और उन्हें बातबात पर मांबाप की महत्ता बताना. इस पर एनआईटी रायपुर के एक प्रौफेसर हरेंद्र विक्रोल कहते हैं, ‘‘बात को उलट कर भी देखा जाना चाहिए कि मांबाप के तुम पर कई एहसान हैं, यह बात गलत है क्योंकि उन्होंने हमारे प्रति वही जिम्मेदारी निभाई थी जो आज हम अपने बच्चों के प्रति निभा रहे हैं. उपकार और कर्तव्य जैसे शब्दों का वजन आज का युवा नहीं उठा सकता क्योंकि ये फुजूल संदर्भ में इस्तेमाल किए जाते हैं. तुक की बात तो यह है कि यथासंभव बूढ़ों के प्रति भी जिम्मेदारी निभाई जाए और जब वजह कोई भी हो, न निभे तो उसे छोड़ देना ही बेहतर और सुकून वाला काम है.’’ जाहिर है असल त्याग वे युवा पेश कर रहे हैं जिन के अभी खेलनेखाने, मौजमस्ती और आजादी से जीने के दिन हैं. उन से यह सब अगर बुजुर्ग अपनी बेजा हरकतों, जिद और अहम के चलते छीनते हैं तो यह उन के साथ ज्यादती ही कही जाएगी.

भारत भूमि युगे युगे : संन्यासी बाबुल

संन्यासी बाबुल एक प्राइवेट बैंक की नौकरी से जिंदगी का सफर शुरू करने वाले बाबुल सुप्रियो के गले का जादू जब दुनिया के सामने आया तो देखते ही देखते वे स्टार बन गए.

कोलकाता और पश्चिम बंगाल से बाहर भी उन्हें दौलत व शोहरत दोनों मिलीं. लेकिन साल 2014 में उन्हें लगा कि संगीत और कला से इतर भी एक मायावी दुनिया और दर्शन है जिस का मकसद हिंदुत्व है तो वे भाजपा के टिकट पर आसनसोल सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ बैठे. जीतने का इनाम उन्हें केंद्र में मंत्री पद की शक्ल में भगवा खेमे ने दिया, लेकिन विधानसभा चुनाव में टालीगंज सीट से उन्हें अप्रत्याशित हार मिली. जिस से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ कि बंगाल के लोग बेकार के ढकोसले व कट्टरवाद नहीं चाहते.

लिहाजा, उन्होंने संन्यास की घोषणा कर दी. अब जल्द ही सामने आ जाना है कि यह त्याग कहीं और ज्यादा भोग के लालच में तो नहीं किया गया. अब्बा या पापा उत्तर प्रदेश में अब कुछ नहीं होना सिवा चुनाव के. इस का मतलब यह नहीं कि अभी तक वहां कुछ हुआ था. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद को बड़ा हिंदू कह कर योगी आदित्यनाथ की दुखती रग पर हाथ रख दिया है, जिन की नजर में कोई पिछड़ा, दलित हिंदू नहीं हो सकता और मुसलमानों का हिमायती तो कतई नहीं हो सकता, जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी थीं जिन के चंडीपाठ ने भाजपा को धूल चटा दी थी. उत्तर प्रदेश अखिलेश के लिए एकदम आसान नहीं है. लेकिन चुनावी आगाज उन का सटीक है. जिस से बौखला कर योगी ने मुलायम सिंह यादव को उन का अब्बा कहते भाजपाई एजेंडा सामने रख दिया कि उन की तरफ से मुद्दा राममंदिर ही होगा क्योंकि उन के पास गिनाने को ठोस कुछ है ही नहीं.

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अब भगवा गैंग अगर चुनावी लड़ाई को धर्म, हिंदुत्व और मंदिर के इर्दगिर्द समेटेगी तो उसे नुकसान बंगाल जैसा भुगतना पड़ सकता है. मेनका और ताड़का ताड़का एक यक्ष सुकेतु की पुत्री थी जो सुंदर और विदुषी थी. उस में हजार हाथियों का बल भी था. इस ताड़का से सारे ऋषिमुनि, खासतौर से सफेद दाढ़ी वाले विश्वामित्र, कांपते थे क्योंकि वह उन्हें यज्ञहवन नहीं करने देती थी. वजह यह थी कि इन कर्मकांडों में पेड़ बहुतायत से कटते थे जिस से पर्यावरण प्रभावित होता था और निरीह पशुओं की बलि भी दी जाती थी. श्रेष्ठियों ने राम से ताड़का को मरवा डाला और फिर खूब मनमानी की. उसे बदनाम करने के लिए उसे बदसूरत और राक्षसी कहा गया. अब भगवा गैंग की मेनका बनी मुंहफट व उद्दंड अभिनेत्री कंगना रानौत ने ममता बनर्जी को ताड़का कह डाला, जिस पर एतराज की कोई बात नहीं, क्योंकि ममता, मोदी-शाह-भागवत के यज्ञ में बड़ा अड़ंगा हैं और लाख कोशिशों व साजिशों के बाद भी मतदाताओं ने उन्हें ही असली और भेदभावरहित शासक माना.

रूपसी कंगना का पौराणिक ज्ञान श्रुतिस्मृति पर ही आधारित है जो ताड़का की ताकत नहीं जानती कि वह सूरत नहीं, बल्कि सीरत है. मीनाक्षी ने दिखाया आईना उम्मीद की जा रही थी कि जम्मूकश्मीर से धारा 370 बेअसर होने के बाद वहां सरकार कश्मीरी पंडितों के पांव पूज कर बसाने ले जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो देशभर में फैले कश्मीरी पंडितों का भ्रम टूट रहा है जिसे चूरचूर करते हाल ही में मंत्री बनाई गईं नई दिल्ली की तेजतर्रार सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा, ‘पंडित खुद घाटी में वापस नहीं जाना चाहते तो हम क्या कर सकते हैं.’ इतना ही नहीं, उन्होंने कश्मीरी पंडितों की तुलना कोरोनाकाल के भगोड़ों से भी कर दी.

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इस पर खूब बवंडर मचा और भाजपा व आरएसएस भी सकते में आ गए कि मीनाक्षी को दीक्षित और संस्कारित करने में कहां चूक हो गई. अब जो भी हो, मीनाक्षी ने बिना किसी डर व पूर्वाग्रह के हकीकत बयान कर दी है जिस के लिए शाबाशी की हकदार तो वे हैं.

खो गई गन्ने की मिठास

लेेखक-नीरज कुमार मिश्रा

उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाके में बसा खीरी जिला गन्ने की फसल के लिए प्रसिद्ध है. इस जिले में कुलमिला कर 9 चीनी मिलें हैं. ये सारी चीनी मिलें अपने लिए गन्ना पेराई और चीनी उत्पादन का अलगअलग लक्ष्य रखती हैं. मसलन, गोला चीनी मिल ने 110 लाख क्विंटल गन्ना पेराई का लक्ष्य रखा और उसे पूरा कर 16.80 लाख क्विंटल चीनी की पैदावार की और अन्य मिलें भी अपने लिए गन्ना पेराई और चीनी उत्पादन का अलगअलग लक्ष्य रखती हैं. खीरी जिले में चीनी का इतना अच्छा उत्पादन इसलिए भी हो पाता है, क्योंकि गन्ने की फसल के लिए लाल ज्वालामुखी मिट्टी और नदियों की जलोढ़ मिट्टी की जरूरत होती है. जिले में शारदा, मोहना, सुहेली आदि नदियों के होने से यहां की मिट्टी गन्ने के लिए उपयुक्त बनी रहती है और इसीलिए खीरी जिले में गन्ने की फसल की बहुतायत है.

खेत में खड़ी गन्ने या ईख की फसल आंखों को तो बहुत सुकून देती है, पर इसे बोने वाले किसानों का चैन और सुकून आजकल खोया हुआ है, क्योंकि ये चीनी मिलें किसानों की फसल ले लेती हैं, पर उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिलता है. इन चीनी मिलों पर किसानों का हजारों रुपया बाकी है. समय पर भुगतान न मिल पाने के कारण किसान का आत्मविश्वास मर जाता है और फिर वह अपनी फसल आसपास बने छोटेमोटे क्रैशर पर औनेपौने दाम पर बेचने को मजबूर हो जाता है. उसे एक क्विंटल गन्ने की कीमत पर तकरीबन 60 से 70 रुपए का नुकसान हो जाता है, पर उसे भुगतान तुरंत ही हो जाता है. गांव त्रिलोकपुर के एक किसान शिवराज का कहना है, ‘‘अरे साहब, हम कोई बड़े किसान तो हैं नहीं, जो 5-6 लाख रुपए खेत में फंसा कर रखें. हम तो खेती जीवनयापन के लिए करते हैं और इस में भी हमें पैसा नहीं मिले तो क्या फायदा ऐसी खेती से.’’ किसान शिवराज की तरह और भी बहुत से ऐसे किसान हैं, जो गन्ने का भुगतान न मिल पाने से परेशान हैं. गांव बो?ावा के रणबीर सिंह से पूछा गया कि जब तुम लोगों को समय पर भुगतान नहीं मिलता है, तो फिर गन्ना ही क्यों बोए जा रहे हो… किसी और फसल की खेती क्यों नहीं करते हो? रणबीर सिंह ने बताया कि तराई का इलाका होने के चलते यहां पर बाढ़ आने की संभावना लगातार बनी रहती है, कभीकभार थोड़ाबहुत पानी आता है, तो गन्ना इस थोड़े पानी की मार सह जाता है, जबकि कोई और फसल इस थोड़े पानी में पूरी तरह खत्म ही हो जाएगी. इसी गांव के शत्रोहन लाल बताते हैं कि गन्ने की फसल उगाने में कोई बवाल नहीं है.

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एक बार गन्ना खड़ा हो जाए, तो फिर ज्यादा चिंता नहीं और जब तक गन्ना तैयार होता है तब तक किसान कोई और काम देख सकता है और अन्य फसलों को उगाने में चोरी होने का भी खतरा है, जबकि गन्ने की फसल में बड़ी चोरी का खतरा नहीं होता. हालांकि गन्ने को बोने से ले कर मिल तक पहुंचाने में एक लंबी प्रक्रिया लगती है और भुगतान भी नहीं मिलता, इसलिए गन्ने की फसल को नकदी फसल कतई नहीं कहा जा सकता. चीनी मिलों से किसानों का भुगतान नहीं करने के कारण खीरी जिले के बहुत से किसान नकदी फसल की ओर आकर्षित हो रहे हैं और नकदी फसल में सब से पहली पसंद आजकल केले की खेती बनी हुई है. गन्ने की खेती का भुगतान न होने से परेशान हो कर खजुआ गांव के महेंद्र सिंह मेहरा ने केले की खेती शुरू कर दी. उन्होंने अपने 50 बीघा खेत में केले की पौध लगाई. केले की पौध लगाने का समय जूनजुलाई होता है और एक एकड़ में तकरीबन सवा लाख रुपए का खर्चा कर के उन्होंने 6-6 फुट के अंतर पर पौध लगाई और लगभग 15 महीने जम कर मेहनत की और पौधों का ध्यान रखा.

उन की मेहनत रंग लाई. जब मंडी से व्यापारी सीधा उन के खेत पर पहुंचा और फसल खेत से ही उठा ली और तुरंत भुगतान भी कर दिया. महेंद्र सिंह मेहरा ने बताया कि उन्हें गन्ने की फसल से तो फायदा हुआ ही है, वहीं केले की फसल में भी मुनाफा हुआ है. एक बार केले के पौधे को लगाने के बाद ये 5 साल तक फल देता रहता है. केले को बेचने के लिए उन्हें किसी दूसरी जगह जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. खीरी जिले के ही बिजुआ गांव के किसानों का ?ाकाव भी केले की खेती की तरफ हो गया है. चूंकि केले की खेती नकदी फसल है, जिस से किसानों को तुरंत पैसा मिलता है. इस गांव के किसान केले की खेती से लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. इस इलाके के केले बरेली तक में पहुंचाए जाते हैं. इस खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होने की वजह से किसानों को केले की खेती बहुत भा रही है. महेंद्र सिंह बताते हैं कि अगर एक बीघे में केले की खेती करते हैं, तो 50 हजार रुपए के आसपास लागत आती है

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और 2 लाख रुपए तक की बचत हो जाती है. संजीव बताते हैं कि बाकी फसलों के मुकाबले केले की खेती में जोखिम कम है. खास बात यह है कि खीरी में जो केले की खेती हो रही है, वह जैविक है. यहां के किसान गोबर के खाद का इस्तेमाल करते हैं. केले की कटाई के बाद जो भी इस का कचरा बचता है, उसे खेत से बाहर नहीं फेंका जाता है, उसे खेत में ही खाद के रूप में तबदील कर दिया जाता है और ये खेत की उपज क्षमता को बढ़ाता है. खीरी जिले के किसान के लिए केले की फसल और नई तकनीक को अपनाना तो अच्छी बात है, पर अच्छा तो ये होगा कि किसान नई फसल को पलायन कर के और मजबूरीवश न अपनाएं, बल्कि नई फसलों के द्वारा अपनी खेती को बेहतर करने की नीयत से अपनाएं तो और भी अच्छा होगा. पर ऐसा तब ही संभव होगा, जब मिल मालिक किसानों को समय पर पूरा भुगतान करेंगे. ऐसा करने के लिए सरकार को भी दखल देना होगा, पर फिलहाल तो ऐसा कुछ होता नहीं दिखता. लिहाजा, किसानों का गन्ने की फसल को छोड़ कर किसी अन्य वैकल्पिक खेती की तरफ ध्यान जाना स्वाभाविक ही लगता है.

Satyakatha : रजनी को भाया प्रेमी

लेखक-मुकेश तिवारी

रजनी उर्फ कुंजावती अपने भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं बल्कि कदकाठी से भी ठीकठाक
थी. इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी. उस का परिवार उत्तर प्रदेश के शहर इटावा में रहता था. उस के पिता किसान थे. जैसे ही वह जवान हुई तो उस के मातापिता उस के लिए योग्य वर की तलाश में लग गए.

उन्हें इस बात का डर था कि कहीं रजनी के कदम बहक गए तो उन की इज्जत पर दाग लग जाएगा. उन्होंने रजनी की शादी के लिए ग्वालियर जिले के महाराजपुरा कस्बे के गांव गुठीना में रहने वाले सुलतान माहौर को पसंद कर लिया. फिर जल्द ही उन्होंने उस की शादी सुलतान के साथ कर दी. रजनी सुंदर तो थी ही, दुलहन बनने के बाद उस की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया. रजनी जैसी सुंदर पत्नी पा कर सुलतान बेहद खुश था. दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चलने लगी. समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा और रजनी 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन कुछ दिनों बाद आर्थिक परेशानियों ने परिवार की खुशी पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया.

शादी से पहले सुलतान छोटामोटा काम कर के गुजरबसर कर लेता था, लेकिन 3 बच्चों का बाप बन जाने से घर के खर्चे भी बढ़ गए थे. वहीं रजनी की बढ़ती ख्वाहिशों ने उस के खर्चों में काफी इजाफा कर दिया था.
आर्थिक परेशानी से उबरने के लिए वह एक शोरूम में रात के समय चौकीदारी भी करने लग गया था. इस दौरान उसे शराब पीने की भी लत लग गई, जिस की वजह से वह पैसे शराबखोरी में उड़ा देता था. इस के चलते घर की माली हालत डांवाडोल होने लगी थी. यहां तक कि उस ने कई लोगों से कर्ज ले लिया था.

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उधर जब से कोविड के कारण लौकडाउन लगा, तब से सुलतान की मजदूरी और चौकीदारी का काम भी छूट गया था. इस के बावजूद वह लोगों से पैसा उधार ले कर शराब पी लेता था और हद तो तब हो गई जब अपनी पत्नी रजनी उर्फ कुंजावती को शराब के नशे में जराजरा सी बात पर पीटना शुरू कर देता था.
पति की ये आदतें रजनी को काफी सालती थीं. सुलतान के पड़ोस में अजीत उर्फ छोटू कोरी रहता था. वह रजनी को भाभी कहता था, इसलिए दोनों में हंसीमजाक होता रहता था. रजनी को अजीत से मजाक करने में किसी तरह का संकोच नहीं होता था. एक दिन दोनों हंसीमजाक कर रहे थे तो रजनी ने कहा, ‘‘देवरजी, कब तक इस तरह हंसीमजाक कर के दिन काटोगे? कहीं से घरवाली ले आओ.’’

‘‘भाभी, घरवाली मिलती तो जरूर ले आता. जब तक कोई नहीं मिल रही आप से हंसीमजाक कर संतोष करना पड़ रहा है.’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘जब तक घरवाली नहीं मिल रही तो इधरउधर से जुगाड़ कर लो.’’ रजनी ने बिना किसी हिचकिचाहट के अजीत की आंखों में आंखें डाल कर कहा.
‘‘कौन फिक्र करता है भाभी भूखे आदमी की. जिस का पेट भरा रहता है, उसे ही हर कोई पूछता है,’’ अजीत ने शरमाते हुए कहा. ‘‘क्या तुम ने कभी किसी से अपनी परेशानी का जिक्र कर के देखा है?’’
‘‘कोई फायदा नहीं भाभी, लोग मेरी हंसी ही उड़ाएंगे.’’ वह बोला.

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‘‘अजीत, जब तक तुम किसी से कहोगे नहीं, कोई तुम्हारी मदद कैसे करेगा?’’ रजनी ने कहा.
‘‘भाभी, अगर आप से कहूं तो क्या आप मेरी मदद करना पसंद करेंगी? भलाबुरा कहते हुए गालियां जरूर देंगी,’’ अजीत ने रजनी के चेहरे पर नजरें गड़ा कर कहा. रजनी ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘एक बार कह कर तो देखो. अरे, मैं तुम्हारी मुंहबोली भाभी हूं अजीत, भला पड़ोसी पड़ोसी की मदद नहीं करेगा तो क्या बाहर वाला मदद करने आएगा.’’

अब इस से भी ज्यादा रजनी क्या कहती. अजीत इतना भी नासमझ नहीं था कि वह रजनी की बात का मतलब न समझ पाता. ‘‘जरूर भाभी, मौका मिलने पर कह दूंगा.’’ वह मुसकराते हुए बोला. संयोग से अगले दिन अजीत को पता चला कि सुलतान किसी काम से बाहर गया है. उस दिन अजीत का मन अपने काम में नहीं लगा रहा था. दिन भर उसे रजनी की याद सताती रही. शाम होने पर घर आने पर वह रजनी की एक झलक देखने को बेचैन हो उठा.

रजनी भी पति की गैरमौजूदगी में अजीत को रिझाने के लिए जैसे ही सजसंवर कर दरवाजे पर आई तो उस की नजर अजीत पर पड़ी. अजीत भी रजनी को देख कर बिना वक्त जाया किए उस के घर पर जा पहुंचा.
अजीत को अचानक इस तरह आया देख कर रजनी ने हंसते हुए कहा, ‘‘देवरजी, आज आप अपने काम से जल्दी लौट आए?’’‘‘क्या बताऊं भाभी, आज मेरा मन काम में जरा भी नहीं लगा.’’ ‘‘क्यों?’’ रजनी ने आश्चर्य से पूछा.‘‘सच बताऊं?’’

‘‘हां, मुझे तो सचसच बताओ.’’ ‘‘भाभी, जब से तुम्हें और तुम्हारी सुंदरता को देखा है, मेरा मन किसी काम में लगता ही नहीं है. आप सच में बेहद खूबसूरत है.’’ ‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कदर ही न हो,’’ रजनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा. ‘‘क्या भैया तुम्हारी कोई कदर नहीं करते भाभी?’’
‘‘सब कुछ जानते हुए भी अनजान मत बनो, तुम तो जानते हो कि मेरे वो रात में चौकीदारी करते हैं, सो रात को घर से बाहर रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें कैसे गुजरती हैं, वो तो मुझे ही पता है.’’ ‘‘भाभीजी, जिस स्थिति से आप गुजर रही हैं, ठीक वही स्थिति मेरी है. मैं भी रात भर करवटें बदलता रहता हूं. अगर आप मेरा साथ दें तो हम दोनों की समस्या खत्म हो सकती है,’’ यह कहते हुए अजीत ने रजनी को अपनी बांहों में भर लिया.

पुरुष सुख से वंचित रजनी चाहती तो यही थी, मगर उस ने हावभाव बदलते हुए बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे. बच्चे देख लेंगे.’’‘‘बच्चे तो अपनी मौसी के बच्चों के साथ बाहर खेल रहे हैं. भाभी, आप ने तो मेरा सुखचैन सब छीन रखा है,’’ अजीत ने कहा. ‘‘नहीं अजीत, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’ वह बनावटी बोली. ‘‘नहीं भाभी, अब यह संभव नहीं है. कोई बेवकूफ ही होगा जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने नजदीक पहुंच कर पीछे हटेगा,’’ इतना कह कर अजीत ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखाने के लिए रजनी न…न…न करती रही, जबकि वह स्वयं अजीत के जिस्म से बेल की तरह लिपटी जा
रही थी. इस के बाद वह पल भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी. एक बार मर्यादा मिटी तो यह सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, इच्छाएं पूरी कर लेते. दोनों पड़ोस में रहते थे, इसलिए उन्हें मिलने में कोई परेशानी भी नहीं होती थी. रजनी अब कुछ ज्यादा ही खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस का प्रेमी मौका मिलने पर बिस्तर पर धमाल मचाने आ जाता था.

अब उस की आर्थिक परेशानी भी दूर हो गई थी. रजनी खर्चे के लिए अजीत से जब भी रुपए मांगती, वह बिना नानुकुर के चुपचाप निकाल कर रजनी के हाथ पर रख देता था. रजनी और अजीत के बीच अवैध संबंध बने तो उन की बातचीत और हंसीमजाक का लहजा बदल गया. अब दोनों एकदूसरे का खयाल भी कुछ ज्यादा ही रखने लगे थे, इसलिए आसपड़ोस वालों को शक होने लगा. लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे. नतीजा यह निकला कि इस बात की जानकारी सुलतान को भी हो गई. सुलतान ने लोगों की बातों पर विश्वास न कर के खुद सच्चाई का पता लगाने का निश्चय किया.

वह जानता था कि यदि इस बारे में पत्नी से पूछताछ करेगा तो वह सच बात बताएगी नहीं, बल्कि होशियार हो जाएगी. सच पता लगाने के लिए वह एक दिन बाहर जाने के बहाने घर से निकला और छिप कर रजनी और अजीत पर नजर रखने लगा.

एक दिन दोपहर के समय उस ने रजनी और अजीत को रंगेहाथों पकड़ लिया. गुस्से में उस ने रजनी की जम कर पिटाई कर दी. रजनी के पास सफाई देने को कुछ नहीं था, इसलिए वह भविष्य में कभी ऐसा न करने की कसम खाते हुए माफी मांगने लगी. गुस्से में सुलतान ने अजीत को भी कई थप्पड़ जड़ दिए. साथ ही चेतावनी दी कि आज के बाद वह उस के घर के आसपास भी दिखाई दिया तो ठीक नहीं होगा.
रजनी सुलतान की सिर्फ पत्नी ही नहीं, उस के 3 बच्चों की मां भी थी, इसलिए बच्चों के भविष्य की फिक्र करते हुए उस ने दोबारा ऐसी गलती न करने की चेतावनी दे कर उसे माफ कर दिया.

यह बात सच है कि जिस महिला का पैर एक बार बहक चुका हो, उसे संभालना मुश्किल होता है. यही हाल रजनी का भी था. कुछ दिनों तक अपनी कामोत्तेजना पर जैसेतैसे काबू रखने के बाद वह फिर चोरीछिपे अजीत से मिलने लगी. इस का पता सुलतान को चला तो उस ने रजनी को काफी बुराभला कहा. इस के बाद रजनी का अजीत से मेलजोल कुछ कम हो गया, लेकिन बंद नहीं हुआ. जब मिलने में परेशानी होने लगी तो एक दिन रजनी ने अजीत से कहा, ‘‘मुझ से तुम्हारी दूरी बरदाश्त नहीं होती. अब मैं सुलतान के साथ नहीं रहना चाहती.’’

‘‘अगर ऐसा है तो उसे ठिकाने लगा देते हैं. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. वह शराब पीता ही है, खाना खा कर बेसुध हो जाता है, इसलिए उस की हत्या करना भी आसान है.’’ इसी के साथ दोनों ने सुलतान की हत्या की योजना बना ली. 5 जून, 2021 की रात सुलतान शराब पी कर बेसुध सो गया. सोने से कुछ समय पहले ही उस ने रजनी के साथ मारपीट की थी. पति के सोने के बाद रजनी ने प्रेमी अजीत को फोन कर के बुला लिया. मगर जैसे ही अजीत आया सुलतान की नींद खुल गई.

रजनी और अजीत ने सुलतान को पकड़ा और उस के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अजीत काफी डर गया तो वह अपने घर भाग गया, मगर रजनी कशमकश में फंस गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? आखिर उस का मन नहीं माना तो वह घर के पास में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यहां पर रजनी की मां भी आई हुई थी. उस ने हिचकियां लेले कर रोते हुए बहन और मां को बताया कि उस के पति ने आत्महत्या कर ली है.

इन लोगों को रजनी की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. शायद इसी वजह से एक बार तो लगा कि वह फूटफूट कर रो पड़ेगी, लेकिन किसी तरह खुद को संभालते हुए आखिर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आप लोगों को मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है?’’ बाद में यह बात पूरे मोहल्ले में फैल गई. सुबह होते ही गंधर्व सिंह ने महाराजपुरा थानाप्रभारी प्रशांत यादव को फोन कर इस घटना की सूचना दे दी. थानाप्रभारी प्रशांत यादव ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया. बात सिर्फ आत्महत्या कर लेने भर तक सीमित नहीं थी, बल्कि इस से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि गुठीना जैसे छोटे से गांव में इस तरह की घटना घट गई और किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी प्रशांत यादव एसआई जितेंद्र मवाई के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चलने से पहले उन्होंने इस की सूचना सीएसपी रवि भदौरिया को भी दे दी थी.प्रशांत यादव घटनास्थल का निरीक्षण शुरू करने वाले थे कि सीएसपी भदौरिया भी आ पहुंचे. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी आई थी.
फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो सीएसपी लौट गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी प्रशांत यादव ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटा कर सुलतान की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.रजनी और उस के प्रेमी ने जिस रस्सी से फंदा बना कर सुलतान का गला घोंटा था, वह भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले ली. उस के बाद थानाप्रभारी ने गंधर्व सिंह की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

थानाप्रभारी इस केस की जांच में जुट गए. उन्होंने इस बारे में मृतक की पत्नी रजनी से पूछताछ की. थाने पहुंचते ही रजनी डर गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपने प्रेमी अजीत के साथ मिल कर पति को ठिकाने लगाया था. पुलिस ने 6 जून, 2021 को ही रजनी के प्रेमी अजीत को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने ही सुलतान की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया.

इस के बाद दोनों ने सुलतान की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह परपुरुष की बांहों में सुख तलाशने वाली औरत के अविवेक का नतीजा थी. पूछताछ और सारे साक्ष्य जुटाने के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. रजनी के साथ उस का 3 वर्षीय सब से छोटा बेटा भी जेल गया है.

रजनी ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन बन गई. उस के साथ उस का पे्रमी भी. जो सोच कर उन दोनों ने सुलतान की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो, क्योंकि यह तय है कि दोनों को सुलतान की हत्या के अपराध में सजा होगी.

अपने घर में

अपने घर में – भाग 2 : जब बेटे की जगह सास ने दिया बहू का साथ

नीरजा ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली थी. सैटरडे, संडे उस की छुट्टी होती थी. उस दिन कमला देवी जरूर आतीं. उस के और अपनी पोतियों के साथ समय बितातीं. उन की हर समस्या का हल निकालतीं और फिर शाम तक अपने घर लौट जातीं.

इधर, दूसरी शादी के बाद जब भी सागर ने मिनी और गुड़िया से मिलना चाहा, तो मिनी ने साफ इनकार कर दिया. अब उसे अपने पापा से बात करना भी पसंद नहीं था. उस ने पापा के बिना जीना सीख लिया था और गुड़िया को भी सिखा दिया था. वह उस पापा को कभी माफ नहीं कर पाई जिस ने उस की सीधीसादी मां को छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ली थी.

वक्त इसी तरह निकलता गया. नई शादी से सागर को कोई संतान नहीं हुई थी. दिनोंदिन श्वेता के नखरे बढ़ते जा रहे थे. सागर का जीना मुहाल हो गया था. दोनों के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. श्वेता अकसर घर से बाहर निकल जाती. सागर भी देररात शराब पी कर घर लौटता.

कमला देवी यह सब देखसमझ रही थीं. पर वह अपने बेटे के स्वार्थी रवैये से भी अच्छी तरह परिचित थीं, इसलिए उन्हें बेटे पर तरस नहीं बल्कि गुस्सा आता था. कमला देवी को अकसर वह समय याद आता जब पति से तलाक के बाद उन की जिंदगी का एक ही मकसद था और वह था सागर को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना. इस के लिए उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगा दी थी. स्कूलटीचर की नौकरी करते हुए बेटे को ऊंची शिक्षा दिलाई, काबिल बनाया. मगर अब एहसास होने लगा था कि कितना भी काबिल बना लिया, वह रहा तो अपने बाप का बेटा ही जो बाप की तरह ही शराबी, स्वार्थी और बददिमाग निकला.

इधर कमला द्वारा नीरजा को अपनाने और हर जगह उस की तारीफ किए जाने की वजह से नातेरिश्तेदारों का व्यवहार भी नीरजा के प्रति काफी अच्छा बना रहा. सागर के चचेरेममेरे भाईबहनों के घर कोई भी आयोजन होता तो नीरजा और उस की बेटियों को परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य की तरह आमंत्रित किया जाता और उन की पूरी आवभगत की जाती. यही नहीं, सागर के विवाहित दोस्त भी नीरजा को अवश्य बुलाते. यह सब देख कर सागर और श्वेता भुनभुनाते हुए घर लौटते.

श्वेता चिढ़ कर कहती, “देख लो तुम्हारी रिश्तेदारी में हर जगह अभी भी मुझ से ज्यादा नीरजा की पूछ होती है. लगता है जैसे मैं जबर्दस्ती पहुंच गई हूं. तुम्हारी मां भी जब देखो, नीरजा और उस की बेटियों से ही चिपकी रहती हैं.”

सागर समझाने के लिहाज से कहता, “बुरा तो मुझे भी लगता है पर क्या करूं श्वेता? नीरजा के साथ मेरी बेटियां भी हैं न. बस, इसीलिए चुप रह जाता हूं.”

एक दिन तो हद ही हो गई. सागर के एक दोस्त के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. आयोजन बहुत शानदार रखा गया था. सागर के सभी दोस्त वहां मौजूद थे. सागर ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. उसे नीरजा कहीं भी नजर नहीं आई. सागर ने चैन की सांस लेते हुए श्वेता को कुहनी मारी और बोला, “शुक्र है, आज नीरजा नहीं है.”

श्वेता मुसकरा कर बच्चे को गिफ्ट देने लगी. तभी दरवाजे से नीरजा और उस की दोनों बेटियों ने प्रवेश किया. नीरजा ने खूबसूरत सी बनारसी साड़ी पहन रखी थी और बाल खुले छोड़े थे. उस के आकर्षक व्यक्तित्व ने सब का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. श्वेता जलभुन गई और सागर पर अपना गुस्सा निकालने लगी.

कुछ देर बाद जब पार्टी उफान पर थी तो सागर किनारे खड़े अपने दोस्तों के ग्रुप को जौन करता हुआ बोला, ‘यार, यह थोड़ा अजीब लगता है कि तुम लोग अब तक हर आयोजन में नीरजा को जरूर बुला लेते हो. तुम लोग जानते हो न, कि मैं नीरजा से अलग हो चुका हूं. अब उसे बुलाने की क्या जरूरत?”

एक दोस्त गुस्से में बोला, “क्या बात कह दी यार, तू अलग हुआ है भाभी से. पर हम तो अलग नहीं हुए न. उन से हमारा जो रिश्ता था वह तो रहेगा ही न.”

“पर क्यों रहेगा? जब वह मेरी पत्नी ही नहीं, तो तुम लोगों की भाभी कैसे हो गई?” सागर ने गुस्से में कहा तो एक दोस्त हंसता हुआ बोला, “ठीक है यार, भाभी नहीं तो दोस्त ही सही. यही मान ले कि अब एक दोस्त की हैसियत से हम सब उन्हें बुलाएंगे. रही बात तेरी, तो ठीक है. तेरी वर्तमान बीवी यानी श्वेता को भी हम न्योता भेज दिया करेंगे, मगर नीरजा को नहीं छोड़ेंगे. समझा?”

इस बात पर काफी देर तक उन के बीच तूतू मैंमैं होती रही. श्वेता पास खड़ी सबकुछ सुन रही थी. अंदर ही अंदर उसे नीरजा पर गुस्सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था जैसे नीरजा उस की खुशियों के आगे आ कर खड़ी हो जाती है. सागर और उस के बीच कहीं न कहीं नीरजा अब भी मौजूद है. घर लौटते समय भी पूरे रास्ते श्वेता हमेशा की तरह सागर से लड़तीझगड़ती रही.

एक दिन शनिवार को जब कमला देवी बहू और पोती के साथ थीं, तो दोपहर में उछलतीकूदती मिनी घर में घुसी. आते ही उस ने मां और दादी के पैर छुए. नीरजा ने खुशी की वजह पूछी, तो मिनी खुशी से चिल्लाई, “मम्मा मैडिकल एंट्रेंस टैस्ट में मेरे बहुत अच्छे नंबर आए हैं और मुझे यहां के सब से बेहतरीन मैडिकल कालेज में दाखिला मिल रहा है.”

“सच बेटी?” दादी ने खुशी से पोती को गले लगा लिया.

मगर नीरजा थोड़ी उदास स्वर में बोली, “बेटा, यहां दाखिले में और उस के बाद पढ़ाई में कुल खर्च लगभग कितना आएगा?”

अब मिनी भी सीरियस हो गई थी. सोचते हुए उस ने कहा, “मम्मा, मेरे खयाल से लगभग दोढाई लाख रुपए तो लग ही जाएंगे. इस से ज्यादा भी लग सकते हैं.”

“पर बेटा, इतने रुपए मैं कहां से लाऊंगी?”

“मम्मा, मेरी शादी वाली जो एफडी आप ने रखी है न, बस, उसे तोड़ दो.”

“पागल है क्या? नहीं नीरजा, तू वैसा कुछ नहीं करेगी. पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊंगी मिनी, ” कमला देवी ने कहा.

“पर कैसे मम्मी? आप के पास इतने रुपए कहां से आएंगे?”

“बेटा, मैं ने अपनी नौकरी के दौरान कुछ रुपए बचा कर अलग रखे थे. वे रुपए मैं ने कभी सागर को भी नहीं दिए. अब उन्हें अपनी मिनी के मैडिकल की पढ़ाई के लिए खर्च करूंगी. इस का अलग ही सुख होगा.”

“नहीं मम्मी, उन्हें आप न निकालें. वैसे भी, इस उम्र में आप को पैसे अपने पास रखने चाहिए. कल को सागर ने कुछ गलत व्यवहार किया या बिजनैस डुबो दिया तो आप…?”

“अरे नहीं बेटा. जिस के पास तेरे जैसी बेटी और इतनी प्यारी पोतियां हैं उसे क्या चिंता? और फिर मेरी पोती डाक्टर बनेगी. इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है?

अगले दिन ही कमला देवी ने पोती की पढ़ाई के लिए रुपयों का इंतजाम कर दिया.

अपने घर में – भाग 1 : जब बेटे की जगह सास ने दिया बहू का साथ

लंच के समय स्कूल के गैस्टरूम में बैठा सागर बेसब्री से अपनी दोनों बेटियों का इंतजार कर रहा था. आज वह उन्हें अपनी होने वाली पत्नी श्वेता से मिलवाना चाहता था. कल वह श्वेता से शादी करने वाला था.

वह श्वेता की तरफ प्यारभरी नजरों से देखने लगा. उसे श्वेता बहुत ही सुलझी हुई और खूबसूरत लगती थी. श्वेता के लंबे स्ट्रेट बाल, आंखों में शरारत, दूध सा गोरा रंग और चालढाल तथा बातव्यवहार में झलकता आत्मविश्वास. श्वेता के आगे नीरजा उसे बहुत साधारण लगती थी. वह एक घरेलू महिला थी.

नीरजा से सागर की अर्रेंज मैरिज हुई थी. शुरूशुरू में सागर नीरजा से भी प्यार करता था. पर सागर की महत्त्वाकांक्षाएं काफी ऊंची थीं. उस ने अपने कैरियर में तेजी से छलांग मारी. वह आगे बढ़ता गया और नीरजा पीछे छूटती गई.

सागर ने शहर बदला, नौकरी बदली और इस के साथ ही उस की पसंद भी बदल गई. नई कंपनी में उसे श्वेता का साथ मिला. तब उसे समझ आया कि उसे तो एक बला की खूबसूरत लड़की अपना जीवनसाथी बनाने को आतुर है और कहां वह गंवार( उस की नजरों में) नीरजा के साथ बंधा पड़ा है. बस, यहीं से उस का रवैया नीरजा के प्रति बदल गया था और एक साल के अंदर ही उस ने खुद को नीरजा से आजाद कर लिया था. पर वह अपनी दोनों बेटियों के मोह से आजाद नहीं हो सका था. दोनों बेटियों में अभी भी उस की जान बसती थी.

उस ने श्वेता को अपने बारे में सबकुछ बता दिया था और अब दोनों कोर्ट मैरिज कर हमेशा के लिए एकदूसरे के होने वाले थे. पर इस से पहले श्वेता ने ही इच्छा जताई थी कि वह उस की बेटियों से मिलना चाहती है. इसलिए आज दोनों बच्चियों से मिलने उन के स्कूल आए थे. सागर अकसर स्कूल में ही अपनी बेटियों से मिला करता था.

तभी 4 नन्हीनन्ही आंखों ने दरवाजे से अंदर झांका, तो सागर दौड़ कर उन के पास पहुंचा और उन्हें सीने से लगा लिया. 10 साल की मिनी थोड़ी समझदार हो चुकी थी. जब कि 6 साल की गुड़िया अभी नादान थी. सागर ने उन दोनों को श्वेता से मिलवाते हुए कहा, “देखो बच्चो, आज मैं आप को किन से मिलवाने वाला हूं?”

“ये कौन हैं, इन के बाल कितने सुंदर है?” गुड़िया ने पूछा तो सागर ने गर्व से श्वेता की तरफ देखा और बोला, “बेटी, ये आप की मम्मी हैं. कल से यर आप की नई मम्मी कहलाएंगी. कल ये आप के पापा की पत्नी बन जाएंगी.”

श्वेता ने प्यार से बच्चों की तरफ हाथ बढ़ाया, तो थोड़ा पीछे हटती हुई गुड़िया ने पूछा, “पर पापा, हमारी मम्मी तो हमारे पास ही हैं. फिर नई मम्मी की क्या जरूरत?”

“पर बेटा, ये मम्मी ज्यादा अच्छी हैं. है न?”

“नो, नैवर. पापा, हमें नई मम्मी की कोई जरूरत नहीं. हमारी मम्मी बहुत अच्छी हैं. एंड यू नो पापा…” मिनी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

“क्या बेटी, बताओ…”

“यू नो, आई हेट यू. आई हेट यू फौर दिस.” यह कह कर रोती हुई मिनी ने गुड़िया का हाथ थामा और तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.

श्वेता ने जल्दी से अपने बढ़े हुए हाथों को पीछे कर लिया. अपमान और क्षोभ से उस का चेहरा लाल हो उठा था. सागर की आंखें भी पलभर में उदास हो गईं. उसे लगा जैसे उस के दिल का एक बड़ा टुकड़ा आज टूट गया है. उस ने श्वेता की तरफ देखा और फिर आ कर निढाल सा कुरसी पर बैठ गया. उस ने सोचा भी नहीं था कि उस की अपनी बेटी उस से नफरत करने लगेगी.

श्वेता ने रूखी आवाज में कहा, “चलो सागर, यहां रुक कर कोई फायदा नहीं. तुम्हारी बेटियां मुझे नहीं अपनाएंगी. लगता है तुम्हारी पत्नी ने पहले से ही उन के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया है.”

सागर ने कुछ भी नहीं कहा. दोनों चुपचाप वापस चले गए.

इधर, नीरजा ने जब सुना कि उस का सागर दूसरी शादी करने वाला है तो वह और भी टूट गई. उस ने तुरंत अपनी सास कमला देवी को फोन लगाया, “मम्मी, कल आप का बेटा नई बहू ले कर आ रहा है. मुबारक हो, आप की जिंदगी में एक बार फिर बहू का सुख वापस आने वाला है.”

“चुप कर नीरजा, तेरे सिवा मेरी न कोई बहू है और न कभी होगी. मैं शरीर से भले ही यहां हूं पर मेरा दिल अब भी तेरे और तेरी दोनों बच्चियों के पास ही है. तू मेरी बेटी से बढ़ कर है. तेरी जगह कोई नहीं ले सकता, समझी पगली. और जानती है, तू मेरी बेटी कब बनी थी?”

“कब मम्मी?”

“उस रात जब मुझे तेज बुखार था. सागर ने मेरी तरफ देखा भी नहीं. पर तूने रातभर जाग कर मुझे ठंडी पट्टियां लगाई थीं. मेरी सेवा की थी. उसी रात मैं ने तुझे अपनी बेटी मान लिया था.”

“मम्मी, आप की जैसी मां पा कर मैं धन्य हो गई. आज मेरी मां जिंदा होतीं तो वे भी आप का प्यार देख कर…,” कहतेकहते वह रोने लगी तो सास ने टोका, “देख बेटी, मुझे मां कहा है न, फिर रोनेधोने की क्या जरूरत? हमेशा मुसकराती रह मेरी बच्ची. अपने बेटे पर तो मेरा काबू नहीं पर दुनिया की और किसी भी मुसीबत को तेरे पास भी नहीं फटकने दूंगी. जानती है यह बात?”

“जी मम्मी?”

“जब मेरे पति ने मुझे तलाक दिया था तब मेरे पास कोई नहीं था. मैं उन से कोई सवाल भी नहीं कर सकी थी. तेरे गम को मैं समझ सकती हूं. तलाक के बाद औरत मन से बिलकुल अकेली रह जाती है. पर तू जरा भी चिंता न कर. तेरे साथ हमेशा तेरी यह मां रहेगी तेरा मानसिक संबल बन कर.”

सास की बातें सुन रोतेरोते भी नीरजा के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. सास की बातों से उसे बहुत सुकून मिला. आज वह अकेली नहीं, बल्कि सास का सपोर्ट उस के साथ था.

नीरजा के अपने मांबाप पहले ही गुजर चुके थे. एक भाई था जो मुंबई में सैटल था. 3 बहने थीं जिन का घर इसी शहर में था. पर चारों भाईबहनों ने उस से कन्नी काट ली थी. ऐसे में तलाक के बाद उस का और उस की दोनों बच्चियों का संबल उस की सास ही थी और यह उस के लिए बहुत बड़ा सहारा था. जब भी वह परेशान होती या अकेला महसूस करती तो सास से बात कर लेती.

दलबदल का खेल जनता की आंखों में धूल झोकते नेता 

आज एक पार्टी तो कल दूसरी पार्टी. नेता हर उस पार्टी में  शामिल होकर अपनी कुर्सी पक्की करना चाहते है जिसकी हवा चल रही होती है. ऐसे नेताओं की लिस्ट लंबी है. चुनाव के समय ऐसे नेताओं को दलबदल तेजी से चलता है. जिस दल के साथ पीढियों का रिश्ता होता है उससे संबंध खत्म करने में कोई समय नहीं लगता. जिस पार्टी को छोडते है वहां ‘दम घुट रहा था’ और जिस पार्टी वहां ‘खुली हवा में सांस’ ले रहे है. एक लाइन से कम के बयान से सालों साल के रिष्ते खत्म हो जाते है. ऐसे नेताओं की कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं होती है. यह केवल सत्ता और कुर्सी चाहते है. अपने लिये भी और फिर अपने परिवार के लिये भी नहीं.

ऐसे नेताओ की अनगिनत कहानी है. जो बडे परिवारों के आतें है जिनको एक पार्टी सब कुछ देती है वह भी पार्टी छोड देते है. ऐसे नेताओं में एक प्रमुख नाम रीता बहुगुणा जोशी का भी है. रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और कमला बहुगुणा की बेटी है. हेमवती नंदन बहुगुणा दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके अलावा केन्द्र सरकार में पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्वरक मंत्री भी थे.

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हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड के बुघाणी गांव के रहने वाले थे. राजनीतिक तथा समाज सेवक हेमवती नंदन बहुगुणा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की. 1952 में हेमवती नंदन बहुगुणा पहली बार विधान सभा सदस्य बने. कांग्रेस पार्टी में भी खास पदों पर रहे. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे. 1973 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 1975 में दूसरी बार भी मुख्यमंत्री रहे. केन्द्र सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे.

बेटी ने बढाई पिता की राजनीति: रीता बहुगुणा जोशी  इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास में प्रोफेसर भी हैं. उनके पति पीसी जोशी मकैनिकल इंजीनियर है. बेटा मंयक जोशी  है. रीता बहुगुणा जोशी भी लेखक भी हैं. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने से पहले दो इतिहास की किताबें लिखीं. 1985 में इलाहाबाद के मेयर का चुनाव जीत कर राजनीति में प्रवेश किया. 2003 में कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया.

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद करीब रहती थी. कांग्रेस ने बहुगुणा परिवार को पूरा मान सम्मान दिया. रीता बहुगुणा जोशी  के भाई विजय बहुगुणा को कांग्रेस ने 2012 से 2014 तक 2 साल उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाया था. 2007 में रीता बहुगुणा जोशी  को उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया. 2009 उत्तर प्रदेश  की मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए रीता जोशी को मुरादाबाद जेल भेजा गया था. इसके बाद उनके घर हमला भी हुआ. घर जलाया गया. 2012 के विधानसभा चुनाव में रीता बहुगुणा जोशी  कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार के रूप चुनाव लडा और लखनऊ कैंट क्षेत्र से विधायक चुनी गई.

कांग्रेस छोड पकडा भाजपा का साथ: 24 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद 20 अक्टूबर 2016 को रीता बहुगुणा जोशी  कांग्रेस छोड कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं. 2017 में वह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजधानी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर पहले विधायक बनी और फिर योगी सरकार में कल्याण, परिवार और बाल कल्याण मंत्री व पर्यटन मंत्री विभाग में कैबिनेट मंत्री बनी. रीता बहुगुणा जोशी 2019 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से चुनाव जीत कर सांसद बनी.
रीता बहुगुणा जोशी  को उम्मीद थी कि उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी जायेगी. इसकी वजह यह थी कि भाजपा ने रीता बहुगुणा जोशी  को योगी सरकार के मंत्री  पद से इस्तीफा  दिलाकर इलाहाबाद से लोकसभा की चुनाव लडाया था. रीता बहुगुणा जोशी चुनाव जीत गई इसके बाद भी उनको केन्द्रीय सरकार में जगह नहीं दी गई. उनके जूनियर लोगों अनुप्रिया पटेल और कौशल किशोर तक को केन्द्र में मंत्री बना दिया गया.

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रीता बहुगुणा जोशी की ख़ामोशी की एक वजह यह भी है कि वह अपने बेटे मंयक जोशी  को राजनीति में स्थापित करना चाहती है. इसके लिये वह चाहती है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया जाये. भाजपा टिकट दे. कुछ दिन पहले भाजपा में जीतेन्द्र सिंह को षामिल किया था. जिनका नाम रीता बहुगुणा जोशी  का घर जलाने में आरोपी के रूप में मुकदमें में है. रीता बहुगुणा जोशी  के विरोध के बाद जीतेन्द्र सिंह को भाजपा पार्टी हटाया गया.

40 साल की उम्र में मां बनी TV एक्ट्रेस Kishwer Merchant, शेयर की बेटे की फोटो

टीवी सीरियल अदाकारा किश्वर मार्चेंट ने आखिरकर अपने फैंस को खुशखबरी सुना दी है कि वह पेरेंट्स बन चुके हैं. इस खबर के जानने के बाद से फैंस लगातार उन्हें सोशल मीडिया पर बधाई दे रहे हैं. टीवी अदाकारा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने पति सुयश राय के साथ फोटो शेयर कि है जिसमें नन्हें मेहमान भी नजर आ रहे हैं.

उन्होंने तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि बेबी रॉय का स्वागत है यह एक बेटा है सुकिश का, फोटो शेयर करते ही एक्ट्रेस के चाहने वालों की भीड़ उमड़ गई है. सभी उन्हें बधाइयां देनी शुरू कर दिए हैं.

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वहीं एक्ट्रेस उर्वशी ढ़ोलकिया ने तुरंत कमेंट करके न्यू मॉम डैड को इस बच्चे के लिए बधाई दिया है, अर्जुन बिजलानी और रोहन मेहरा ने भी उन्हें कमेंट करके बधाई दी है. यह प्यारी सी तस्वीर फैंस को काफी ज्यादा पसंद आ रही है.

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अदाकारा किश्वर मार्चेंट ने बेबी के वेलकम पर कई सारे फोटो शूट करवाएं थें, एक्ट्रेस अपनी पहली प्रेग्नेंसी को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड थीं,  वह मदरहुड को लेकर अपनी जर्नी को सोशल मीडिया पर भी शेयर करती रहती थीं.

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एक्ट्रेस ने कई सारे प्री डिलीवरी की फोटो शूट करवाएं थें, जिसे फैंस ने खूब सारा प्यार दिया था, पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान अदाकारा लाइम लाइट में रही थीं, जिसे फैंस ने भी खूब सराहा था, अब यह कपल परेंट्स बनकर काफी ज्यादा खुश है.

 

जानें सोनू सूद किस राज्य की नई शिक्षा पहल का चेहरा बने

इन दिनों फिल्म व टीवी जगत की जुड़ी हस्तियों को हर सरकार व सरकार के उपक्रम,यहां तक कि चुनाव आयोग भी अपने साथ जोड़कर उन्हे ब्रांड अम्बेसेडर बना ने में ही लगा हुआ है. ऐसे में भला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और  उप मुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया कैसे पीछे रह जाते.

उन्होने ‘कोविड 19’में लोगों की मदद का बीड़ा उठाते रहे फिल्म अभिनेता सोनू सूद से मुलाकात कर नई ‘देश के मेंटर्स‘ पहल पर चर्चा की, जिसे दिल्ली सरकार लॉन्च करने के लिए तैयार है.
यह कार्यक्रम दिल्ली सरकार के स्कूलों के छात्रों को एक मेंटर खोजने में मदद करेगा,जो उनकी  क्षमता को खोजने व विस्तार देने में मदद करेगा.

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इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले छात्रो के सवालों के जवाब देने का काममेंटर करेंगे.
दिल्ली सरकार को अभिनेता सोनू सूद के रूप में देश का मेंटर मिल गया है,जो इस कार्यक्रम के ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए सहमत हो गए हैं.देश के मेंटर पहल के चेहरे के रूप में, सोनू सूद ने देशभर के नागरिकों से अपील की है कि वह आगे  बढ़ें और बच्चों की शिक्षा का समर्थन करें और देश को एक उज्ज्वल कल की ओर ले जाएं.

ज्ञातब्य है कि ‘‘कोविड-19’’ महामारी के दौरान सोनू सूद ने उन सभी की मदद करने का प्रयास किया,जो लोग भी उनके पास मदद की गुहार लेकर पहुॅचे.परिणामतः अब पूरा देश सोनूसूद को उनके मानवीय कार्यों के लिए पहचानने लगा है.सोनूसूद का ‘सूद चैरिटी फाउंडेशन’हजारों योग्य छात्रों को उनके शैक्षिक और व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर रहा है.फिर चाहे वह वित्तीय सहायता के माध्यम से हो या छात्रों को पेशेवर करियर के लिए तैयार करने के अपने प्रयासों के माध्यम से.उनकी निरंतर स्कूली शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए फाउंडेशन ने उन बच्चों को वित्तीय सहायता को भी प्राथमिकता दी है, जिन्होंने घातक महामारी के कारण माता-पिता/ अभिभावक को खोया है.

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शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली सरकार के काम की प्रशंसा करते हुए सोनू सूद ने कहा-“मैं पिछले एक वर्ष के दौरान दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हुए बदलाव से प्रभावित हूं. सभी बच्चों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, चाहे वह अमीर हो या गरीब, देश के उज्जवल भविष्य की कुंजी है. हमें एक साथ आने और राष्ट्र निर्माण के लिए अपने हिस्से का काम करने की जरूरत है.मैं भारत के युवाओं सेदेश के में टर्स का हिस्सा बनने का आग्रह करता हूं.‘‘

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