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मेरे ऑफिस में एक दोस्त है जिससे मेरी मित्रता अच्छी है, लेकिन मेरी पत्नी बहुत शक करती है मुझपर क्या करूं?

सवाल

मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं. हमारा रिश्ता हमेशा से ठीक रहा है लेकिन हम कभी एकदूसरे से दोस्त बन कर बात नहीं कर सके. मेरी औफिस में एक दोस्त है जिस से मेरी घनिष्ठ मित्रता है. मेरी पत्नी को अब उस के बारे में पता चला तो अचानक वह मुझ पर शक करने लगी जबकि ऐसा कुछ है ही नहीं. मेरे और मेरी दोस्त के बीच दोस्ती से ज्यादा कुछ भी नहीं है जबकि मेरी पत्नी यह मानने को तैयार नहीं है. उस के इस तरह शक करने से मैं बुरी तरह आहत हुआ हूं और अब मुझे अपनी पत्नी से बात करना भी अच्छा नहीं लगता. पता नहीं क्यों लेकिन मुझे उस की हर बात से चिढ़ होने लगी है. मुझे इस शादी से निकलने का मन करने लगा है.

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जवाब

किसी एक झगड़े या कहें गलतफहमी के चलते आप अपने रिश्ते को खत्म करने की बात कर रहे हैं तो यह भला कैसे सही होगा. माना आप की पत्नी ने आप को समझने की कोशिश नहीं की लेकिन आप तो अपनी पत्नी को समझने की कोशिश कर सकते हैं. जब आप उन की परेशानी समझ जाएंगे तभी आप उन्हें अपनी बात समझा सकते हैं. उन्हें आप की दोस्ती से शिकायत है तो आप उन्हें क्लीयर बताइए कि बात क्या है. आप का उन से चिढ़ना या उन से बात न करने का मन होना निरर्थक है. आप खुद को उन की जगह रख कर देखेंगे तो शायद आप को उन की बात समझ में आएगी. यह मसला बैठ कर बात करने से सुलझ सकता है. इसे इतना उलझा कर रिश्ता तोड़ने की संभावना तक मत पहुंचिए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

KBC में हिस्सा लेना रेलवे कर्मचारी को पड़ा भारी, रुक गया 3 साल का इंन्क्रीमेंट

टीवी दुनिया का मशहूर शो कौन बनेगा करोड़पति लोगों को खूब एंटरटेन कर रहा है. इस साल का सीजन कई नए बदलावों के साथ शुरू हुआ है.जिसे देखना दर्शक काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

वैसे तो इस शो में आकर लोग अपनी किस्मत को चमकाते हैं लेकिन एक कंटेस्टेंट ऐसा भी आया है जो शो में आने के बाद से मुसीबत में पड़ गया है.

हाल ही में शो में कोटा रेल मंडल के स्थानीय खरीद अनुभाग के कार्यालय अधीकक्षक देश बंधु पांडे हॉट सीट पर बैठे नजर आएं, लेकिन हॉट सीट पर बैठना उनके लिए इतना भारी पड़ेगा उन्होंने सोचा नहीं था.

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दरअसल, रेलवे में काम करने और हॉट सीट पर जाकर गेेम खेलने की वजह से सरकारी कर्मचारी होने की वजह से रेलवे ने उन्हें सजा दी है. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि रेलवे कर्मचारी की इस गलती की वजह से उनका 3 साल तक इंन्क्रीमेंट रोक दिया गया है.

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हालांकि इस फैसले के बाद से कई सारे कर्मचारी इसके विरोध में हैं लेकिन इस बात का असर अब रेलवे पर नहीं पड़ रहा है. रेलवे अपना काम अपने तरीके से करती रह रही है.

वही कुछ रेलवे कर्चारियों का कहना है कि देशबंधु पांडे के साथ ये सही नहीं हुआ है वह रेलवे के खिलाफ आवाज उठाएंगे. मजदूर संघ के लोग उनके लिए न्याय की लड़ाई लड़ेंगे.

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बता दें कि देशबंधु कौन बनेगा करोड़पति से अपना 3 लाख 20 हजार रूपये लेकर गए, जबकी सवाल उनसे 6 लाख रूपये का पूछा गया था.

खैर अब देखना यह है कि देशबंधु अपने कैरियर की लड़ाई में आगे बढ़ पाते हैं या नहीं.

यूपी में कोई नहीं रहेगा बेघर

लखनऊ . “अपना घर” का सपना संजोने वालों के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ अवसर यादगार हो गया. खास मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे के 02 लाख 853 लोगों को घर बनाने के लिए ₹1341.17 करोड़ की धनराशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजी. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने वर्ष 2022 तक “सबको आवास” का संकल्प दोहराते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में अब तक 40 लाख शहरी गरीबों के ‘घर’ का सपना पूरा हुआ है. यह काम तेजी से जारी है.

उन्होंने कहा कि प्रदेश में कोई भी परिवार बेघर नहीं रहेगा मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित इस वर्चुअल कार्यक्रम में सूबे के 650 से अधिक नगरीय निकायों से 50 हजार से अधिक लोग जुड़े थे. कार्यक्रम में पीएम आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत 98,234 लोगों को पहली क़िस्त, 34,369 को दूसरी और 68,250 लाभार्थियों को तीसरी क़िस्त मिली. सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में धनराशि भेजते हुए सीएम ने कहा कि एक समय था कि जब एक प्रधानमंत्री कहते थे कि वो दिल्ली से ₹100 भेजते हैं और आम आदमी को ₹15 मिलता है, लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी ने तकनीक की मदद से ऐसी व्यवस्था कर दी है, जिससे ₹100 के ₹100 लाभार्थी को मिल रहा है.

आवास के लिए पैसे चाहिए या व्यवसाय के लिए लोन, अगर आप अर्हता पूरी करते हैं तो बिना सिफारिश, बिना घूस, पूरी मदद मिलनी तय है. और अब तो बैंक जाने की भी जरूरत नहीं, गांव-गांव में बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट-सखी तैनात हैं.

पीएम आवास और स्वनिधि योजना में यूपी है नम्बर 01

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री से बातचीत करते हुए पीएम आवास और स्वनिधि योजना के लाभार्थियों ने भी बताया कि उन्हें कहीं भी किसी को भी घूस-सिफारिश को जरूरत नहीं पड़ी. मुख्यमंत्री ने कहा, पिछले साढ़े 04 साल में हमारी सरकार ने करीब 40 लाख लोगों को आवास उपलब्ध करवाए हैं. 2017 से पहले पीएम आवास योजना में यूपी का कोई स्थान नहीं था. 25 वें-27 वें नम्बर पर था. 2017 में सरकार आने के बाद पीएम आवास हो या स्वनिधि, यूपी सबमें नम्बर एक है. योगी ने कहा कि आज ठेले-खोमचे वाले व्यवसायियों को व्यापार के लिए पैसा मुहैया कराया जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी से पहले कभी किसी ने भी स्ट्रीट वेंडर के हितों के बारे में नहीं सोचा. महिला स्वावलम्बन के लिहाज से स्वयं सहायता समूहों के कार्यों की सराहना की. कार्यक्रम में नगर विकास मंत्री आशुतोष टण्डन और राज्य मंत्री महेश गुप्ता ने भी अपने विचार रखे.

“घर ही नहीं, शौचालय, बिजली, राशन और मुफ्त इलाज भी मिला योगी जी”

वर्चुअली आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री से बातचीत करते हुए पीएम आवास योजना और स्वनिधि योजना के लाभार्थियों ने सीएम को धन्यवाद दिया. प्रयागराज की सुशीला हों, मीरजापुर की निर्मला या फिर झांसी की रेशमा, सबने बारी-बारी से सीएम को बताया कि उन्हें आवास के लिए धनराशि पाने में कहीं भी न तो घूस देना पड़ा न ही सिफारिश करनी पड़ी.

बाराबंकी की मंजू ने बताया कि आज उन्हें आवास की तीसरी क़िस्त मिली है. इससे पहले उन्हें मुफ्त बिजली और गैस कनेक्शन मिला,जनधन खाता खुला, आज महीने में दो बार राशन मिल रहा है. उन्होंने बताया कि उनके बच्चों की पढ़ाई भी फ्री में हो रही है. वहीं स्वनिधि योजना से लाभ लेकर आगरा शिल्पग्राम में चाय का ठेला लगाने वाले पवन और काशी में सब्ज़ी की दुकान लगाने वाली शीला देवी ने स्वनिधि योजना के माध्यम से मिले, रुपयों से उनके व्यापार में हुई बढ़ोतरी के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी को धन्यवाद दिया.

ललितपुर के ओम प्रकाश ने बताया कि बीते 30 साल से कभी किसी सरकार ने उन्हें कुछ न दिया, आज सब मिल रहा है. मुख्यमंत्री ने ओमप्रकाश के मूक बघिर बेटे के इलाज के लिए सभी जरूरी प्रबंध के निर्देश भी दिए.

बॉक्स : प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) : अब तक

– स्वीकृत आवासों की संख्या (सभी घटकों सहित)- 17,15,816

– प्रारम्भ आवासों की संख्या (सभी घटकों सहित)- 8,65,174

– 2007 से 2017 तक मात्र 2.50 लाख आवास पूर्ण

– 2017 से आज तक 8.65 लाख आवास पूर्ण

– वर्ष 2019 के पीएमएवाई अवार्ड अन्तर्गत नगर पालिका परिषद श्रेणी में नगर पालिका परिषद मिर्जापुर को पूरे देश में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु प्रथम स्थान प्राप्त

– वर्ष 2019 के पीएमएवाई अवार्ड अन्तर्गत नगर पंचायत श्रेणी में नगर पचायत मलीहाबाद को प्रथम एवं हरिहरपुर को तृतीय स्थान प्राप्त

– उत्तर प्रदेश राज्य पूरे देश में डीबीटी द्वारा फन्ड ट्रान्सफर में पहले स्थान पर.

– देश में स्वीकृत 06 लाइट हाउस प्रोजेक्ट में से 01 लाइट प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में स्वीकृत.

उतरन – भाग 3 : पुनर्विवाह के बाद क्या हुआ रूपा के साथ?

‘‘आप फिर से मेरे कमरे में आ गईं? एक बात हमेशा याद रखिए कि आप सिर्फ पापा की पत्नी हैं, मेरी मम्मी नहीं. मेरी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता. कोई भी नहीं.’’

स्तब्ध रह गई थी रूपा. रात का सुनहरा सपना ताश के पत्तों की तरह बिखरता नजर आ रहा था उसे. लगभग दौड़ती हुई वह कमरे से बाहर निकल गई.

ऊपर से सब कुछ सामान्य दिख रहा था, पर समय के साथ रचित में भी बदलाव आने लगा. दिनभर औफिस और घर के काम से थक कर चूर हो जाने के बावजूद रात में बिस्तर पर नींद का नामोनिशान तक नहीं. रचित से भी वो अब कुछ नहीं कहती. बस अपनी एक बात उसे अचंभित कर जाती थी. जिस घुटन और प्रताड़ना के विरुद्ध वह महीनों लड़ी, वह घुटन और प्रताड़ना अब उसे उतना विचलित नहीं करती थी. समय और उम्र समझौता करना सिखा देता है शायद.

आज सुबह से मन उद्विग्न हो रहा था बारबार. रहरह कर दिल में एक अजीब सी टीस महसूस हो रही थी. जैसेतैसे काम खत्म कर के चाय पीने बैठी ही थी कि दीया के होस्टल से फोन आ गया. चकोर को चांद मिल जाने खुशी मिल गई हो जैसे.

लेकिन यह क्या, मोबाइल से बात करते हुए उस के चेहरे पर दर्द का प्रहार महसूस कर सकता था कोई भी. कुछ देर के लिए तो वह मोबाइल लिए हतप्रभ सी बैठी रही. फिर अचानक बदहवास सी उठी और निकल गई बस स्टैंड की ओर.

होस्टल के गेट पर पहुंची तो काफी भीड़ दिखी. अनहोनी की आशंका उस के दिलोदिमाग को आतंकित करने लगी. अंदर जा कर देखा तो बेटी को जमीन पर लिटाया गया था. बेसब्री के साथ पास में बैठ गई और बड़े प्यार से पुकारी,

‘‘दीया बेटे.’’

कोई जवाब नहीं…

शरीर पकड़ कर हिलाया.

रूपा को तो जैसे करंट लग गया हो. इतना ठंडा और अकड़ा हुआ क्यों लग रहा है दीया का बदन. तो क्या?

नहीं…

ऐसा कैसे हो सकता है?

क्यों…?

किंतु अशांत धड़कता दिल आश्वस्त नहीं हो पा रहा था. वह निर्निमेष भाव से अपनी प्यारी परी को देखे जा रही थी. वही मोहक चेहरा…

तभी किसी ने उस के हाथों में एक कागज का टुकड़ा थमा दिया. यह कह कर कि आप की बेटी ने आप के नाम पत्र लिखा है.

डबडबाई आंखों से पत्र पढ़ने लगी-

‘दुनिया की सब से प्यारी ममा…’

आप को खूब सारा प्यार

आप को खूब सारी खुशियां मिले. सौरी ममा, मैं आप से मिले बगैर जा रही हूं. ये दुनिया बहुत खराब है ममा. तुम्हारे तलाक और शादी को ले कर बहुत गंदीगंदी बातें करते थे स्कूल के स्टूडैंट्स. कहते थे तेरी मां… छोड़ न मां.

मैं जानती हूं तुम्हारे बारे में.

लेकिन मां, मैं तंग आ गई थी उन के तानों से.

तुझ से नहीं बताया कि तू इतनी खुश है, परेशान हो जाओगी ये सब जान कर. मां, अब मुझे कोई परेशान नहीं करेगा. और तुम भी शांति से रह पाओगी.

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हमेशा खुश रहना मां.

‘-तुम्हारी परी दीया.’

वह अपनेआप को रोक नहीं पाई. अचेत हो कर लुढ़क गई रूपा. पर उस अर्ध चेतनावस्था में भी वह मंदमंद मुसकरा रही थी.

वह अचानक उठ कर बैठ गई और खूब जोर से हंस पड़ी. उसे लगा वह तो न नए पति और उस के बच्चे की बन पाई न ही अपनी वाली को संभाल पाई. मां बनने की इतनी बड़ी कीमत देनी होगी इस का अंदाजा नहीं था.

दिल चिथड़े कर डालने वाली हंसी…

अगला दिन…

दुनिया के लिए एक सामान्य दिन जैसा ही सवेरा था.

सिवाय रूपा के…

सिर्फ मुआवजे से नहीं पलते अनाथ बच्चे

लेखक- हेमंत कुमार

तकरीबन 2.4 लाख बच्चे कोविड-19 महामारी के चलते अनाथ हो गए. कई राज्य और केंद्रशासित सरकारों ने अनाथ हुए बच्चों के पक्ष में सराहनीय कदम उठाए लेकिन क्या उन बच्चों को केवल आर्थिक सहायता की जरूरत है या फिर… कुछ दिनों पहले यों ही मेरी नजर बालकनी से सामने के पेड़ पर बने एक चिडि़या के घोंसले पर पड़ी. मैं ने देखा कि घोंसले में कुछ चूजे चिल्लाचिल्ला कर गरदन उचकाए घोंसले से बाहर किसी की राह देख रहे थे कि तभी एक चिडि़या अपने मुंह में अपनी क्षमतानुसार कहीं से दाने भर कर लाई और अपने भूखे बच्चों की चोंच में अपनी चोंच से रखने लगी. शायद वह काम उस चिडि़या के अलावा और किसी के बस का नहीं. अपने बच्चों को कितना व कैसे खिलाना है,

यह शायद उस चिडि़या से बेहतर कोई नहीं जानता था. पर, अब वह चिडि़या कुछ दिनों से गायब थी. मैं ने उसे 2 दिनों से घोंसले पर आते नहीं देखा. हो सकता है वह चल बसी हो. उस के बच्चे 2 दिनों से गरदन उचकाए, टकटकी लगाए अपनी मां की राह देख रहे थे. उन की कराहती आवाज सुन मैं ने कई बार उन के घोंसले में दाना रखा परंतु वह दाना खाना कहां जानते थे. अब मैं उन की मां की तरह दाना उन की चोंच में तो नहीं रख सकता था, सो, मैं ने खूब सोचविचार कर उन बच्चों को उठा कर दूसरी चिडि़या के घोंसले में दूसरे चूजों के साथ रख दिया और अब मैं यह देख काफी खुश था कि अब उन का भी भरणपोषण बाकी बच्चों के साथ हो रहा है. उन चूजों को नया जीवन मिलता देख सोचा कि यह अनुभव यहां सा?ा किया जाए क्योंकि आज उन चूजों की जगह हमारे देश के मासूम बच्चे और उस चिडि़या की जगह उन मासूम बच्चों के पालक, महामानवतुल्य उन के मातापिता हैं.

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कोविड-19 की दूसरी लहर मौत का दूसरा नाम साबित हुई है. जो भी इस नाम से जुड़े, सम?ा उस चिडि़या की तरह दोबारा लौट न सके. आज भारत में लाखों बच्चों ने मातापिता को काल के गाल में समाते देखा और कुछ तो उन चूजों की तरह अपने मातापिता को आखिरी बार देख भी न सके. किसी भी व्यक्ति के संसार को अलविदा कहने का समाचार दूसरों के लिए उतना दुखद नहीं जितना कि उस व्यक्ति के परिवारजनों के लिए. संसार की कोई दौलत उन व्यक्तियों के जख्मों को नहीं भर सकती जिन का कोई अपना उन्हें अचानक, बेवजह छोड़ कर चल बसा हो. लाखों की संख्या में हंसतेखेलते परिवार उजड़ गए. लाखों बच्चे अनाथ हुए. किसी ने अपने पिता को खोया तो किसी ने मां को. और तो और, ज्यादा ही नियति के मारे ने दोनों को. यह सुनना जितना हमारे लिए कष्टदायक है उस से कहीं ज्यादा उन बच्चों के लिए है जो इस प्रकार की कटु परिस्थितियों से गुजर रहे हैं. न जाने कितने ही बच्चों के ऊपर से बेहद ही कच्ची उम्र में अपने मातापिता का साया उठ गया. उत्तर प्रदेश में हरिशचंद्र घाट पर एक लड़की अपने पिता की चिता को अग्नि दे कर उस ही चिता में कूद अपने पिता संग जल कर राख हो गई. दूसरों का यह कह देना बहुत आसान है कि जीवन में हार मानना समाधान नहीं, परंतु ये सारी बातें परिस्थितियों के आगे नहीं टिक पातीं. उस लड़की के बारे में मालूम पड़ा कि उस का इस संसार में अपने पिता के अलावा कोई न था.

ऐसे में उसे जो रास्ता दिखा, उस ने वह किया. दिल्ली में एक काफी छोटा बच्चा काफी देर तक अस्पताल में कोरोना से जू?ा रहे अपने पिता का समाचार लेने के लिए उन को फोन लगाता रहा. मगर अफसोस, तब तक उस के पिता पीपीई किट में पैक कर दिए गए थे. सोचिए उस लड़की जो पिता की जलती चिता में कूद गई, के समान न जाने कितने ही अनाथ बच्चे होंगे जिन के मनमस्तिक में इस प्रकार के रास्ते सू?ा रहे होंगे. हालांकि, कई राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने सम्माननीय प्रयास करते हुए अपने यहां अनाथ हुए बच्चों की शिक्षा का व्यय उठाने की जिम्मेदारी ली, तो किसी ने पैंशन की सुविधा भी उपलब्ध कराई. माना कि जीवन में ये रुपए उन बच्चों का दुख कम नहीं कर सकते परंतु इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि इंसान को अपनों के बाद सब से ज्यादा जरूरत रुपयों की ही होती है. परंतु उन्हें इस वक्त रुपयों से भी ज्यादा कुछ चाहिए तो वह है किसी की छत्रछाया. आज की तारीख में हजारों बच्चे शेल्टर होम और अनाथ आश्रम में पहुंचा दिए गए हैं.

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बहुतों के तो परिजन भी किसी प्रकार की जिम्मेदारी लेने से बचते दिख रहे हैं. सब से बड़ी मुसीबतों के पहाड़ तो उन बच्चों पर टूटे जो एकल परिवार में रहा करते थे. कुछ दशकों पहले सकल परिवार हुआ करते थे. सकल परिवारों की एक बड़ी खासीयत यह थी कि इंसान को दुख की घड़ी में किसी बाहरी इंसान की सहायता की आवश्यकता नहीं होती थी. बड़े से बड़े सुखदुख के दिन परिवार में सब के साथ मिलजुल कर बीत जाया करते थे. मां के बीमार होने पर काकी खाना दे दिया करती थी. नींद न आने पर दादा के साथ सो जाया करते थे. चचेरे भाइयों के कारण दोस्तों की जरूरत न पड़ती थी. परंतु आधुनिकीकरण के इस बहाव में चट्टानरूपी सकल परिवार टूटटूट कर एकल परिवारों में परिवर्तित होते चले गए. क्या करें, किस ने सोचा था कि जीवन में ऐसे भी दिन आएंगे परंतु अब उन्हीं एकल परिवार के बच्चों के कोविड संक्रमित मातापिता को बच्चों को संक्रमण से दूर रखने के लिए शेल्टर होम और चाइल्ड हैल्प केयर का सहारा लेना पड़ रहा है. यह घड़ी इंसान की इंसानियत से पहचान करवाने की है.

हम केवल चाइल्ड केयर सैंटर, सेवा संस्थानों और सरकार के भत्ते के भरोसे ही इन बच्चों को नहीं छोड़ सकते. इस घड़ी में ज्यादा से ज्यादा समृद्ध लोगों को अपना दिल खोल इन बेसहारा बच्चों के लिए सहारा बन कर आगे आना चाहिए. न जाने कितने ही एनजीओज को कोरोनाकाल में निधि के अभाव में बंद होना पड़ा और जो बचे हैं वे भी किसी तरह केवल चल ही रहे हैं. ऐसे में भारत में ऐसे कई दंपती हैं जो आर्थिकरूप से सबल होने के कारण किसी भी अनाथ बच्चे को गोद लेने में कहीं से भी अक्षम नहीं. हाथ थामने वाला हाथ भी जरूरी देश में पहले भी बच्चों को गोद लिया जा रहा था परंतु अब इस प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता है. केवल रुपयों से ही दुनिया चल सकती तो मातापिता जैसी अमूल्य चीज अस्तित्व में न होती. किसी भी व्यक्ति के विकास में उचित मार्गदर्शन होना बहुत माने रखता है.

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माना कि इस महामारी में नवजात से ले कर वयस्क तक हर तरह के लोगों ने अपने सिर से मातापिता का साया खोया है. ऐसे में इन नवजात बच्चों को दोबारा से अपने सिर पर मातृत्वभाव से हाथ फेरने वाले किसी हाथ की आवश्यकता है. इस घड़ी में इन बेसहारा बच्चों को केवल एनजीओ और चाइल्ड शैल्टर होम के भरोसे छोड़ देना संवेदनहीनता की मिसाल कहलाएगी. इन बिन मांबाप के बच्चों का भविष्य अंधकूप से बचाना केवल सजग नागरिकों के हाथों में है. आज किसी भी बच्चे को कानूनी प्रक्रिया द्वारा गोद लिया जा सकता है परंतु मजबूरी का फायदा उठाने वाले मौकापरस्त लोगों ने इस विषम परिस्थिति को भी मौका सम?ा अपना सिक्का आजमाया और पिछले कई दिनों में पुलिस सूत्रों द्वारा चाइल्ड ट्रैफिकिंग (बच्चा तस्करी) जैसे मामले काफी बढ़ने की खबर सामने आई है. ऐसी परिस्थिति में बेसहारा बच्चों और बेहद ही छोटे नासम?ा बच्चों को अभिभावकों के अभाव में अगवा कर उन की तस्करी का काम जोरों पर है. ऐसे में अब केवल देश के समृद्ध लोगों के हाथों में ही इन बेसहारा बच्चों की डोर थमी है. यही समय है कि बांहें फैला कर इन बच्चों को गले लगाया जाए और किसी का जीवन संवारा जाए.

फ्रेम – भाग 2 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया?

‘‘रिटायरमैंट के बाद न चाहते  हुए भी जिंदगी की शाम तो  आ ही जाती है. किसी को शरीर पर पहले, किसी को मन पर पहले, पर शाम का धुंधलका अपने जीवन का अंग तो बन ही जाता है.’’

‘‘मैं ने अभी तक तो महसूस नहीं किया था पर अब… थोड़ीथोड़ी दिक्कत होने लगी है. दरअसल, मेरी असली समस्या है अकेलापन,’’ इतना कह कर अमृता अचानक चुप हो गई. उसे लगा कि एक अजनबी से वह अपनी व्यक्तिगत बातें क्यों कर रही है. फिर उस ने बात बदलने के लिए पूछा, ‘‘आप रहते कहां हैं?’’

‘‘इंदिरारानगर में.’’

‘‘मैं भी तो वहीं रहती हूं. आप का मकान नंबर?’’

‘‘44.’’

‘‘वही कहूं आप का चेहरा पहचानापहचाना सा क्यों लग रहा है. दरअसल, मैं भी वहीं रहती हूं गंगा एपार्टमैंट के एक फ्लैट में. अकसर आप को सड़क पर आतेजाते देखा होगा, इसीलिए पहचानापहचाना सा लगा. वैसे इस घर में आए मु झे अभी 6 ही महीने हुए हैं.’’

काफी देर तक इधरउधर, राजनीति आदि पर बातें होती रहीं. अचानक उसे सीता को समय देने की याद आई. वह उठती हुई बोली, ‘‘आप के पास अपनी सवारी है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘आइए, मैं आप को घर छोड़ दूं.’’

उतरते समय अमृता ने उन का नाम पूछा, ‘‘अरे इतनी बातें हो गईं, मैं ने न अपना नाम बताया, न आप से नाम पूछा. मेरा नाम अमृता है.’’

‘‘मैं राजेश, पर आप भी उतरिए एक कप चाय हो जाए.’’

‘‘फिर कभी, अभी मैं ने एक आदमी को बुलाया है.’’

अमृता घर पहुंची तो सीता को इंतजार करते पाया. ताला खोलने के बाद जो काम का सिलसिला शुरू हुआ वह बहुत देर तक चलता रहा और वह सुबह की सारी बातें भूल गई थी. पर शाम को चाय ले कर बैठी तो उसे सारी बातें याद आईं. उसे आश्चर्य हुआ कि 2 घंटे कितने आराम से बीत गए थे. समय काटना ही तो उस के जीवन की सब से बड़ी परेशानी थी और वह परेशानी इतनी आसानी से…?

धीरेधीरे उस की ओर राजेशजी की घनिष्ठता बढ़ती गई. अमृता ने महसूस किया कि उस की और राजेशजी की रुचियां मिलतीजुलती हैं. बगीचे का रखरखाव दोनों की रुचियों का मुख्य केंद्र था. आध्यात्म पर अकसर वे बहस किया करते थे. अमृता को धार्मिक औपचारिकताओं पर विश्वास नहीं के बराबर था. पंडित, मंत्र, उपवास आदि पर उस का विश्वास नहीं था. वहीं राजेश यह मानते थे कि ये सारी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं, केवल उन को सम झाने और करने का ढंग गलत है. राजेशजी किताबें बहुत पढ़ते थे. इतिहास उन का प्रिय विषय था. चाहे भाषा का इतिहास हो, संस्कृति का या साहित्य का, वे पढ़ते ही रहते थे.

एक दिन शाम को चाय पीते हुए

राजेशजी बताने लगे, ‘‘जानती हैं अमृताजी, 7 बुद्ध हुए हैं और ये अंतिम बुद्ध, जिन्हें हम गौतम बुद्ध कहते हैं, ईसा से 500 वर्ष पूर्व हुए थे. अभी जो खुदाई हो रही है उस में 7 बुद्ध की मूर्तियों वाले स्तूप मिल रहे हैं…’’

अमृता मंत्रमुग्ध चुपचाप सुनती रही. उसे आश्चर्य हुआ कि वह खुद नहीं जानती थी कि ऐसे शुष्क विषय भी उसे इतना सम्मोहित कर सकते हैं. यह विषय का सम्मोहन था या राजेशजी के बोलने के ढंग का. वह थोड़ी उल झ सी गई. फिलहाल उस का रिश्ता इतना करीबी का जरूर हो गया था कि शाम की चाय वे एकदूसरे के यहां पिएं, एकदूसरे के बीमार पढ़ने पर पूरी ईमानदारी से तीमारदारी करें.

उन दोनों की करीबी पर समाज अब चौकन्ना हो चला था. समाज की प्रतिक्रियाएं हवा में उड़तेउड़ते उन तक पहुंचने लगी थीं. अपनी ही बिल्ंिडग के किसी समारोह में लोगों की आंखों में अमृता पढ़ चुकी थी कि समाज इस रिश्ते को किस तरह से लेता है. अमृता के दबंग व्यक्तित्व को देखते हुए अभी आंखों की भाषा जबान पर तो नहीं आ पाई थी पर कामवालियों के माध्यम से सुनसुन कर उस को इस की गंभीरता का एहसास तो हो ही गया था.

एक दिन शाम की चाय पीते राजेशजी कुछ ज्यादा ही चुप थे. जब उन की चुप्पी अखरी, तो अमृता ने पूछ ही लिया, ‘‘कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘है भी और नहीं भी. वे सुभाषजी हैं न. कल एक पार्टी में मिले थे. वे एकांत में ले जा कर मु झ से पूछने लगे कि मैं आप से शादी क्यों नहीं कर लेता. अब आप ही बताइए इस बेहूदे प्रश्न का मैं क्या जवाब देता.’’

‘‘कह देते कि, बस, आप के आदेश का इंतजार था,’’ यह कह कर अमृता जोरों से हंस पड़ी. बात हंसी में उड़ गई. पर हफ्ता भी नहीं बीता था, अपनी ही बिल्ंिडग के गृहप्रवेश की एक पार्टी में चुलबुली फैशनपरस्त गरिमा ने उस से पूछ ही लिया था, ‘‘मैडम, सुना है आप शादी करने जा रही हैं, मेरी बधाई स्वीकार कीजिए.’’

‘‘मैं तो आज पहली बार सुन रही हूं.  इस पर कभी सोचा नहीं. पर कभी  अगर सोचा तो आप से बधाई लेना  नहीं भूलूंगी.’’

उचित जवाब दे देने के बाद भी अमृता अपनी खी झ से उबर नहीं पाई. आसपास खड़ी महिलाओं की आंखों में छिपी व्यंग्य की खुशी को नकारना जब उसे कठिन जान पड़ने लगा तो वह पेट की तकलीफ का बहाना बना मेजबान से छुट्टी मांग घर चली आई.

दूसरे दिन शाम की चाय पीते हुए राजेशजी बहुत खुश नजर आ रहे थे.  अमृता से नहीं रहा गया, तो वे पूछ ही बैठी, ‘‘आज आप बहुत खुश हैं राजेशजी?’’

‘‘हां, आज मैं बहुत खुश हूं. मु झे एक ऐसी किताब हाथ लगी है कि मु झे लगने लगा है कि अगर मैं चाहूं तो अपना भविष्य अपने अनुकूल बना सकता हूं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है पर कैसे?’’

‘‘केवल अपनी बात को अपने अचेतन मन तक पहुंचाना है और पहुंचाने के लिए उसे बारबार दोहराना है और खासकर सोने से पहले जब चेतन मन की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ जाती है तब जरूर दोहराना है.’’

‘‘किताब का नाम?’’

‘‘पावर औफ अनकौनशियस माइंड.’’

उस की उस दिन की शाम उसी किताब के बारे में सुनते हुए बीती थी. राजेशजी बहुत अच्छे वक्ता थे. उन के बोलने की शैली कुछकुछ कथावाचक जैसी हुआ करती थी जो श्रोता को अपनी गिरफ्त में कैद कर लेती थी. उस दिन उन्होंने सम झाया कि अपने मन को समरस, स्वस्थ, शांत और प्रसन्न रखने की कोशिश कीजिए. आप कोशिश कर के अपने अंदर शांति, प्रसन्नता, अच्छाई और समृद्धि का संकल्परूपी बीज बोना शुरू कीजिए तब देखिए कि चमत्कार क्या होता है, कैसे असंभव संभव हो जाता है, मन की खेती कैसे लहलहा उठती है.’’

कीवी एक जरूरी फल

लेखक- पूनम पांडे

कीवी एक ऐसा बहुगुणी फल है, जो हर मौसम में हर जगह आसानी से मिल भी रहा है और पूरी दुनिया में अपनी विशेषताओं के लिए खास फल रूपी औषधि भी बन रहा है. कीवी सिर के बालों से ले कर पैर के तलवे तक शरीर के हर भाग को भरपूर पोषण देता है. जहां यह बालों को घना और सेहतमंद बनाता है, वहीं दिल, लिवर, आंत और पैरों की थकान तक को कम करता है. कीवी दरअसल चाइनीज गूजबैरी है, जो अब संसार के हर कोने में ‘कीवी फल’ के नाम से प्रसिद्ध है. कीवी फल उत्पादन के लिहाज से भी इतना लाभदायक है कि किसानों के लिए यह एक नकदी फल बनता जा रहा है. कीवी फल की खेती हिमालय के मध्यवर्ती, निचले पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों और मैदानी क्षत्रों में, जहां सिंचाई की सुविधा हो, सफलतापूर्वक की जा सकती है. अंगूर की बेलों की तरह ही इस की बेलें बढ़ती हैं.

कीवी फल भूरे रंग का, लंबूतरा, मुरगी के अंडे के आकार का होता है. छिलके पर बारीक रोएं हाते हैं, जो फल पकने पर रगड़ कर उतारे जा सकते हैं. कीवी फल का गूदा हलके हरे रंग का होता है. इस में काले रंग के छोटेछोटे बीज होते हैं. इस का स्वाद खट्ठामीठा होता है. कीवी फल को ताजा फल के रूप में या सलाद के रूप में खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह पोषक तत्त्वों और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. इस में विटामिन बी और सी और खनिज जैसे फास्फोरस, पोटाश व कैल्शियम की अधिक मात्रा होती है. डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, खून में हीमोग्लोबिन की कमी होने पर खासतौर पर मरीज को 2 कीवी प्रतिदिन खाने की डाक्टर सलाह देते हैं. कीवी फल भारत के लिए दशकों तक विदेशी रहा, फिर कुछ बागबानी विशेषज्ञों की भरपूर कोशिश से भारत में साल 1960 में सर्वप्रथम बैंगलुरू में लगाया गया था, लेकिन बैंगलुरू की जलवायु में पर्याप्त ठंडक न मिल पाने के कारण कीवी उत्पादन में जरा भी सफलता नहीं मिली. इस के 3 साल बाद 1963 में राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय संस्थान के शिमला स्थित केंद्र फागली में कीवी की 7 प्रजातियों के पौधे आयातित कर के लगाए गए, जहां पर कीवी के इन पौधों से सफल उत्पादन प्राप्त किया गया.

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उत्तराखंड में 90 के दशक में भारत इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा, टिहरी गढ़वाल में इटली के वैज्ञानिकों की देखरेख में इटली से आयातित कीवी की विभिन्न प्रजातियों के तकरीबन 100 पौधों का रोपण किया गया, जिन से कीवी का अच्छा उत्पादन आज भी मिल रहा है. कुमाऊं गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश में छोटे किसान कीवी उत्पादन से बहुत बढि़या मुनाफा ले रहे हैं. राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन, फागली, शिमला, हिमाचल प्रदेश से कीवी की विभिन्न प्रजातियों के पौधे मंगा कर प्रयोग के लिए, राज्य के विभिन्न उद्यान शोध केंद्रों जैसे चौवटिया रानीखेत, चकरौता (देहरादून), गैना/अंचोली (पिथौरागढ़), डुंडा (उत्तरकाशी) आदि स्थानों में लगाए गए, जिन से उत्साहवर्धक कीवी की उपज मिल रही है. राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, भवाली, नैनीताल में भी 90 के दशक से कीवी उत्पादन पर निरंतर शोध का काम हो रहा है.

इतना ही नहीं, सरकारी कार्यशाला लगा कर लोगों को लोन भी दिया जा रहा है कि वह कम से कम जगह में भी सफलतापूर्वक कीवी का बगीचा विकसित करें. राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो पर्याप्त संख्या में कीवी फल पौधों का उत्पादन भी करता है. इस केंद्र के सहयोग से भवाली के आसपास के क्षेत्रों में कीवी के कुछ बाग भी विकसित हुए हैं. राज्य में कीवी बागबानी की सफलता को देखते हुए कई उद्यानपतियों ने बागबानी बोर्ड व उद्यान विभाग की सहायता से कीवी के बाग विकसित किए हैं. कीवी फल की खेती के लिए हलकी उपोष्ण और शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. इस के पौधों को वर्षा की अधिक आवश्यकता नहीं होती. इस के पौधे सर्दी के मौसम में अधिक पैदावार देते हैं.

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अधिक गरमी या तेज हवा इस के पौधों के लिए नुकसानदायक होती है. इस के पौधों को अंकुरित होने के लिए 10-20 डिगरी के आसपास तापमान की जरूरत होती है, जबकि गरमियों में अधिकतम 30-35 डिगरी तापमान को इस के पौधे सहन कर सकते हैं. इस के पौधों पर फल बनने के दौरान उन्हें 5 से 10 डिगरी तापमान तकरीबन100 से 200 घंटों तक मिलना जरूरी होता है. कीवी फल की वैसे तो दुनियाभर में 100 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन भारत में इस की कुछ ही किस्मों को उगाया जाता है, जिन्हें बीजारोपण, नर्सरी में सिलसिलेवार पौधे तैयार कर के, कलम या ग्राफ्टिंग के माध्यम से भी विकसित किया जाता है. कीवी फल के पौधे खेत में लगाने के 4 साल बाद शानदार पैदावार देना शुरू करते हैं.

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इस दौरान इस के पौधों के बीच खाली बची जमीन में औषधीय, मसाला और कम समय में तैयार होने वाली सब्जियों को उगा कर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं, जिस से इस के उत्पादक को आर्थिक परेशानियों का सामना भी नहीं करना पड़ेगा और उन्हें खेत से पैदावार भी मिलती रहेगी. आमतौर पर बैगन, मिर्च, टमाटर, सदाबहार पालक, करेला आदि इस के बगीचे में आराम से फलफूल जाते हैं और दोगुना मुनाफा भी होता है. सामान्य देखरेख और सामान्य सिंचाई के बाद यह इतना फल देता है कि मात्र 20 पौधे कीवी के लगा कर किसान इस से सालाना 2-3 लाख रुपए कमा सकता है.

फ्रेम – भाग 1 : पति के मौत के बाद अमृता के जीवन में क्या बदलाव आया?

अमृताजी ने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला ही था कि सामने से सीता ने आवाज दी, ‘‘मेमसाहब, हम आ गए हैं.’’उसे थोड़ी उल झन हुई कि क्या करे क्या न करे, दरअसल, मैडिटेशन क्लास जाने का उस का पहला ही दिन था. पहले वह गुरुजी को घर ही बुला लिया करती थी, लेकिन सुषमा हफ्तों से उसे सम झा रही थी कि क्लास में जाने के क्याक्या फायदे हैं. उस के अनुसार, क्लास में सब लोगों की सोच एक ही तरह की रहती है तो बातें करना आसान हो जाता है. फिर आप को खुद अपनी गलती सुधारने का मौका भी मिल जाता है. एक हलकी प्रतिस्पर्धा रहने पर आप जल्दी सीखते हैं.

सुषमा की बातों में सचाई थी. घर में तो गुरुजी के आने पर ही तैयारी शुरू करती. कुछ समय तो उसी में निकल जाता, कभीकभी कुछ आलस में भी और सब से बड़ी बात यह थी कि घर में वह अपने प्रिंसिपलशिप का चोला उतार गुरुजी को सहजता से गुरु स्वीकार नहीं कर पाती थी. सारी बातें सोचतेसोचते उस ने फैसला किया था कि वह भी क्लास जौइन करेगी. गुरुजी से बात कर के सवेरे के समय में क्लास जाने की बात तय भी हो गई थी. पर वह सीता से कहना भूल गई थी, इसलिए आज जब वह जा रही थी तब, ‘‘ऐसा करो सीता, आज तुम 2 घंटे के बाद आ जाओ, फिर हम तय करेंगे कि कल से हम क्या करेंगे.’’

क्लास पहुंची तो उसे थोड़ी सी मानसिक समस्या हुई. 30-35 साल के अधिकतर लोगों के बीच उस का 65 साल का होना उसे कुछ भारी पड़ने लगा था और सब से भारी पड़ने लगा उस का अपना व्यवहार, उस का अपना आदेश देने वाला व्यक्तित्व. वह करीबन 10 साल एक स्कूल के प्रिंसिपल के पद पर रही और इन 10 सालों में आदेश देना उस के व्यक्तित्व का अंग बन चुका था. ऐसे में परिस्थितियों से सम झौता असंभव नहीं तो कठिन जरूर हो गया था.

ऐसा नहीं कि उस ने पहले काम नहीं किया था. वह शादी के पहले अपने मायके के शहर में स्कूल टीचर थी. उस के पिता ने शादी में यह शर्त भी रखी थी कि लड़की नौकरी करना चाहेगी तो आप उसे मना नहीं कीजिएगा. अमृता दबंग बाप की दबंग बेटी थी. उस का कभी पापा से टकराव भी होता था मां को ले कर. उस का भाई तो मां की तरह का सीधासाधा इंसान था. पर वह पापा द्वारा मां पर की हुई ज्यादतियों पर सीधे लड़ जाती थी. पापा कहा भी करते थे, ‘पता नहीं यह ससुराल में कैसे रहेगी.’

‘मां की तरह तो हरगिज नहीं पापा,’ वह फौरन जवाब देती. पापा भी हंस कर कहते, ‘तुम मेरी पत्नी को बहकाया मत करो,’ फिर बात हंसी में उड़ जाती.

ससुराल में केवल 2 ही व्यक्ति थे, एक पति और एक सास. दोनों ही बहुत सीधेसादे. उसे ससुराल के शहर के एक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति केवल सीधेसादे ही नहीं, सहज और दिलचस्प इंसान भी थे. सकारात्मकता उन में कूटकूट कर भरी हुई थी. उन की पुशतैनी कपड़े की दुकान थी. पिताजी के गुजरने के बाद वे ही दुकान के सर्वेसर्वा थे, इसलिए वे सुबह के 9 बजे से रात के 9 बजे तक वहीं उल झे रहते थे. हां, इतवार जरूर खुशनुमा होता था दोनों छुट्टी पर जो रहते थे और उस दिन के खुशनुमा एहसास में हफ्ता अच्छी तरह बीत जाता था. शुरू के दिनों में अमृता को न घूम पाने की कसक जरूर रहती थी पर बाद में उस ने उस का रास्ता भी निकाल लिया था. कभी स्कूल के साथ ट्रिप पर कभी दोस्तों के साथ घूमफिर आती थी. अम्मा के कारण बच्चे भी उस के घूमने में बाधक नहीं बनते थे.

घर चलाना, बच्चे पालना उस का जिम्मा कभी नहीं रहा. ये सारे काम अम्मा ही करती थीं. वह कभीकभी सोचती जरूर थी कि वह अम्मा के उपकारों का बदला कैसे चुकाएगी. फिर यह कह कर खुद को तसल्ली दे लेती थी कि उन का बुढ़ापा आएगा तो वह जीभर सेवा कर देगी. पर उन्होंने इस का भी अवसर नहीं दिया, एक रात सोईं तो सोई रह गईं.

उस समय तक बच्चे बड़े हो चुके थे. उन का साथ अब केवल छुट्टियों में ही मिल पाता था और वह भी कुछ ही साल. उन की पढ़ाई खत्म हुई तो नौकरी और नौकरी को ले कर विदेश गए तो वहीं के हो कर रह गए. दोनों लड़कों ने वहीं शादी कर ली. एक ने तो कम से कम गुजराती चुना, दूसरे ने तो सीधे जरमन लड़की से शादी कर ली. इसलिए बहुओं से उस का रिश्ता पनपा ही नहीं. बस, रस्मीतौर पर फोन पर संपर्क करने के अलावा कोई रिश्ता नहीं था. चूंकि बहुओं से वह कोई रिश्ता नही पनपा पाई, इसलिए बेटों से भी रिश्ता सूखता गया.

इस बीच उस के जीवन में 2 बड़ी घटनाएं घटीं- पति की आकास्मिक मृत्यु और खुद का उसी स्कूल में प्रिंसिपल हो जाना.  बच्चे बाप के मरने पर आए, उस को साथ चलने के लिए कहने की औपचारिकता भी निभाई. उस ने भी रिटायरमैंट के बाद कह कर  औपचारिकता का जवाब औपचारिकता से दे दिया. बस, उस के बाद मिलने के सूखे वादे ही उस की ममता की  झोली में गिरते रहे. वह भी बिना किसी भावुकता के इस की आदी होती चली गई. यानी, उस की जिंदगी का निचोड़ यह था कि उसे कभी रिश्तों में सम झौता करने कि जरूरत ही नहीं पड़ी थी.

रिटायरमैंट के बाद सारा परिदृश्य ही बदल गया. पति के मरने के बाद अभी तक वह स्कूल के ही प्रिंसिपल क्वार्टर में रहती थी, इसलिए वहां से मिलने वाली सारी सुविधाओं की वह आदी हो गई थी. पर फिर से फ्लैट में आ कर रहना, वहां की परेशानियों से रूबरू होना उस को बहुत भारी पड़ने लगा था. क्वार्टर में किसी दाई या चपरासी की मजाल थी कि उस का कहा न सुने. पर यहां दाई, माली, धोबी, सब अपने मन की ही करते और उसे सम झौता करना ही पड़ता था. पर सब से अधिक जो उस पर भारी पड़ता था वह था उस का अपना अकेलापन. व्यस्त जिंदगी के बीच वह अपना कोई शौक पनपा नहीं पाई थी. पढ़ने की तो आदत थी पर उपन्यास या कहानी नहीं. काम की अधिकता या फिर कर्मठ व्यक्तित्व होने के कारण मोबाइल से समय काटने की आदत वह अपने अंदर पनपा ही नहीं पाई थी. परिचितों के दायरे को भी उस ने सीमित ही रखा था. बस, एक दोस्त के नाम पर सुषमा थी. वह शिक्षिका वाले दिनों की एकमात्र सहेली थी, जिस से वह निसंकोच हो कर अपनी समस्या बांटती थी. एक दिन अपने ही घर में कौफी पीतेपीते उस ने पूछा था, ‘सुषमा, आखिर वह समय कैसे काटे?’

‘किसी संस्था से जुड़ जाओ,’ सुषमा के यह कहने के पहले ही वह कई संस्थाओं का दरवाजा खटखटा चुकी थी. पर हर जगह उसे काम से ज्यादा दिखावा या फिर पैसे कि लूटखसोट ही देखने को मिली थी. जिंदगीभर ईमानदारी से काम करने वाली अमृता की ये बातें, गले से नीचे नहीं उतर पाई थीं. सुषमा से की इन्हीं बहसों के बीच मैडिटेशन सीखने का विचार आया था क्योंकि मन तो मन, अब कभीकभी शरीर भी विद्रोह करने लगा था. इसलिए सुषमा का दिया यह प्रस्ताव उसे पसंद आया था और थोड़ी मेहनत कर गुरु भी खोज लिया था पर बाद में क्लास जाना ही तय हुआ था.

इसलिए पहले दिन मैडिटेशन क्लास में उसे सबकुछ विचित्र सा लगा. थोड़ी ऊब, थोड़ी निराशा सी हुई. दूसरे दिन बड़ी अनिच्छा से उस का क्लास जाना हुआ था. लेकिन प्रैक्टिस करने के बाद फूलती सांस को सामान्य बनाने के लिए  जब वह कुरसी पर बैठी तो उस ने देखा कि उसी की उम्र का एक आदमी बगल वाली कुरसी पर बैठा उस से कुछ पूछ रहा है.

‘‘आप का पहला दिन है क्या?’’ ‘‘हां,’’ अपनी सांसों पर नियंत्रण रख कर मुश्किल से वह यह कह पाई. ‘‘मैं तो पिछले साल से आ रहा हूं. मैं सेना से रिटायर्ड हुआ हूं, इसलिए मैडिटेशन मेरे लिए शौक नहीं, जरूरत है.’’‘‘मैं रिटायर्ड प्रिंसिपल हूं. मु झे शरीर के लिए कम, मन के लिए मैडिटेशन की ज्यादा जरूरत है.’’

 

Dance Deewane 3 : माधुरी दीक्षित को याद आई 1,2,3 गाने की शूटिंग, सेट पर सुनाई दास्तां

बॉलीवुड सुपर स्टार माधुुरी दीक्षित इन दिनों डांस दीवाने 3 में बतौर जज नजर आ रही हैं. इस शो में कुछ दिनों पहले मशहूर गायिका आलका यागनिक और कुमार सानू की बतौर गेस्ट एंट्री हुई थी. जिसके बाद सभी कंटेस्टेंट ने इनके गाने पर धमाकेदार परफॉर्मेंस दिया था.

कंटेस्टेंट पापाया और अंतरा ने माधुरी दीक्षित के सुपरहिट गाने 1,2,3 पर परफॉर्म किया, जिसके बाद माधुरी दीक्षित खुशी से झूम उठी. इस डांस के बाद माधुरी दीक्षित को अपने पुराने दिन याद आ गए और वह फ्लैशबैक में चली गई.

उन्होंनेे स्टेज पर मौजूद सभी लोगों को अपने गाने की शूटिंग के बारे में बताया , जिसमें उन्होंने बताया कि इस गाने की शूटिंग के दौरान उन्हें कितनी ज्यादा मेहनत करनी पड़ी थी. माधुरी दीक्षित ने जावेद अख्तर को गाने के थीम के बारे में बताया था कि गाने में प्रेमिका अपनेे प्रेमी के इंतजार में है और आने के दिन गीन रही है.

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उनके पास गाने के बोल नहीं थें तो उन्होंने गीतकार को 1,2,3 बोलकर गाने की धुन सुनाई, उसी समय गीतकार जावेद अख्तर ने 1,2,3 सुनकर पूरा गाना तैयार कर दिया.

वहीं इस गाने को सिंगर आलका यागनिक ने गाया था, तो उन्होंने भी इस गाने से जुड़ी याद को साझा किया, अलका ने बताया कि जिस वक्त मुझे पहली बार माधुरी से मिलवाया गया तो वह बिल्कुल हल्की -फल्की शर्माई सी नाजुक सी लड़की लग रही थी, उन्हें इस बात की हैरानी थी, कि उन्हें इस बोल्ड गाने पर डांस करना होगा. मगर बाद में जब गाना रिलीज हुआ तो स्क्रिन पर माधुरी दीक्षित ने आग लगा दिया था.

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और यह गाना उस समय का सुपर हिट गाना हुआ था, इस गाना से माधुरी दीक्षित को अलग पहचान मिली थी.

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