आज एक पार्टी तो कल दूसरी पार्टी. नेता हर उस पार्टी में शामिल होकर अपनी कुर्सी पक्की करना चाहते है जिसकी हवा चल रही होती है. ऐसे नेताओं की लिस्ट लंबी है. चुनाव के समय ऐसे नेताओं को दलबदल तेजी से चलता है. जिस दल के साथ पीढियों का रिश्ता होता है उससे संबंध खत्म करने में कोई समय नहीं लगता. जिस पार्टी को छोडते है वहां ‘दम घुट रहा था’ और जिस पार्टी वहां ‘खुली हवा में सांस’ ले रहे है. एक लाइन से कम के बयान से सालों साल के रिष्ते खत्म हो जाते है. ऐसे नेताओं की कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं होती है. यह केवल सत्ता और कुर्सी चाहते है. अपने लिये भी और फिर अपने परिवार के लिये भी नहीं.
ऐसे नेताओ की अनगिनत कहानी है. जो बडे परिवारों के आतें है जिनको एक पार्टी सब कुछ देती है वह भी पार्टी छोड देते है. ऐसे नेताओं में एक प्रमुख नाम रीता बहुगुणा जोशी का भी है. रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा और कमला बहुगुणा की बेटी है. हेमवती नंदन बहुगुणा दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके अलावा केन्द्र सरकार में पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्वरक मंत्री भी थे.
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हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड के बुघाणी गांव के रहने वाले थे. राजनीतिक तथा समाज सेवक हेमवती नंदन बहुगुणा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की. 1952 में हेमवती नंदन बहुगुणा पहली बार विधान सभा सदस्य बने. कांग्रेस पार्टी में भी खास पदों पर रहे. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे. 1973 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 1975 में दूसरी बार भी मुख्यमंत्री रहे. केन्द्र सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे.
बेटी ने बढाई पिता की राजनीति: रीता बहुगुणा जोशी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्ययुगीन और आधुनिक इतिहास में प्रोफेसर भी हैं. उनके पति पीसी जोशी मकैनिकल इंजीनियर है. बेटा मंयक जोशी है. रीता बहुगुणा जोशी भी लेखक भी हैं. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने से पहले दो इतिहास की किताबें लिखीं. 1985 में इलाहाबाद के मेयर का चुनाव जीत कर राजनीति में प्रवेश किया. 2003 में कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी को अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया.
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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद करीब रहती थी. कांग्रेस ने बहुगुणा परिवार को पूरा मान सम्मान दिया. रीता बहुगुणा जोशी के भाई विजय बहुगुणा को कांग्रेस ने 2012 से 2014 तक 2 साल उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनाया था. 2007 में रीता बहुगुणा जोशी को उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया. 2009 उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए रीता जोशी को मुरादाबाद जेल भेजा गया था. इसके बाद उनके घर हमला भी हुआ. घर जलाया गया. 2012 के विधानसभा चुनाव में रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार के रूप चुनाव लडा और लखनऊ कैंट क्षेत्र से विधायक चुनी गई.
कांग्रेस छोड पकडा भाजपा का साथ: 24 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद 20 अक्टूबर 2016 को रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस छोड कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं. 2017 में वह उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजधानी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर पहले विधायक बनी और फिर योगी सरकार में कल्याण, परिवार और बाल कल्याण मंत्री व पर्यटन मंत्री विभाग में कैबिनेट मंत्री बनी. रीता बहुगुणा जोशी 2019 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से चुनाव जीत कर सांसद बनी.
रीता बहुगुणा जोशी को उम्मीद थी कि उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी जायेगी. इसकी वजह यह थी कि भाजपा ने रीता बहुगुणा जोशी को योगी सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दिलाकर इलाहाबाद से लोकसभा की चुनाव लडाया था. रीता बहुगुणा जोशी चुनाव जीत गई इसके बाद भी उनको केन्द्रीय सरकार में जगह नहीं दी गई. उनके जूनियर लोगों अनुप्रिया पटेल और कौशल किशोर तक को केन्द्र में मंत्री बना दिया गया.
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रीता बहुगुणा जोशी की ख़ामोशी की एक वजह यह भी है कि वह अपने बेटे मंयक जोशी को राजनीति में स्थापित करना चाहती है. इसके लिये वह चाहती है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया जाये. भाजपा टिकट दे. कुछ दिन पहले भाजपा में जीतेन्द्र सिंह को षामिल किया था. जिनका नाम रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने में आरोपी के रूप में मुकदमें में है. रीता बहुगुणा जोशी के विरोध के बाद जीतेन्द्र सिंह को भाजपा पार्टी हटाया गया.