हिमानी जब स्कूल से घर लौटती है, उस के अंदर घर आने की कोई उमंग नहीं होती. उस की फ्रैंड्स उस से पूछती हैं कि क्या उस की मम्मी उसे बस स्टौप पर लेने आती हैं? तो वह मायूस हो कर कोई जवाब नहीं देती है. उसे पता होता है कि वह अकेले ही बस स्टौप से घर जाएगी. घर के दरवाजे पर लगा ताला मुंह चिढ़ाता मिलेगा. वह रोज स्कूल से घर आ कर दरवाजे पर लगा ताला खोलती है. कपड़े बदल कर माइक्रोवेव में रखे खाने को खुद ही गरम कर के खाती है और शाम होने का इंतजार करती है, जब उस के मम्मीपापा औफिस से घर वापस आएंगे.

ऐसा सिर्फ हिमानी के साथ ही नहीं होता है, प्रतिदिन हजारों बच्चों के साथ होता है जब वे स्कूल से लौटते हैं. खाली घर उन का स्वागत करता है. उस घर में उन से बोलने वाला कोई नहीं होता. घर में बच्चों को विपरीत परिस्थितियों में भी अकेले रहना पड़ता है. जो मांएं नौकरी नहीं करतीं वे भी किसी काम से कहीं जाने पर बच्चों को घर में अकेला छोड़ देती हैं. कई अभिभावक बच्चों को घर पर अकेले छोड़ कर बाजार से खरीदारी या अपने छोटेबड़े काम करने या किसी समारोह आदि में चले जाते हैं. एक अनुमान के अनुसार, लगभग 40 प्रतिशत बच्चों को किसी न किसी समय अकेले रहना पड़ता है. इन बच्चों को ‘लैच की’ बच्चे कहा जाता है. ऐसा घर के बाहर या उन के गले में लटकी चाबी की वजह से कहा जाता है.

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