प्रमुख रूप से पीला तना बेधक आक्रमण करता है. इस कीट के प्रौढ़ लंबे, पीले या सफेद रंग होते हैं. कीट की सूंडि़यां पीले या मटमैले रंग की होती हैं, जो तने को छेद कर अंदर ही अंदर खाती रहती हैं. इस के प्रकोप से पौधे का मध्य तना सूख जाता है, जिसे ‘मृत गोभ’ कहते हैं. बाद के आक्रमण से धान की बाली बिना दाने वाली निकलती हैं. बाली वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूख कर सफेद हो जाती हैं और दाने नहीं बनते हैं. ऐसी बालियां ऊपर से खींचने पर आसानी से खिंच जाती हैं, जिसे ‘सफेद बाली’ कहते हैं.

इस कीट का आर्थिक हानि स्तर 5-10 फीसदी मृत केंद्र या सफेद बाली प्रति वर्गमीटर आंकी गई है. प्रबंधन * पौध की 1.5-2.0 इंच ऊपरी पत्तियों को काट कर रोपाई करें, जिस से कीट द्वारा दिए गए अंडे नष्ट हो जाते हैं. * फसल पर तना बेधक और पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप होने पर ट्राइकोग्रामा जपोनिकम नामक परजीवी (ट्राइकोकार्ड) के 1.0-1.5 लाख अंडे प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.

* तना बेधक कीट के लिए प्रतिरोधक प्रजातियों जैसे: रत्ना, पंत धान-6, सुधा, वीएल-206 को उगाएं. * 5 फीसदी नीम के तेल का छिड़काव करना चाहिए.

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* खेत में 20 गंध पास प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट किया जा सकता है.

* 5 फीसदी सूखी बालियां दिखाई देने पर कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 फीसदी दानेदार दवा 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर पानी लगा दें या फिब्रोनिल 5 फीसदी एससी की 400-600 मिलीलिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी के साथ सरफेक्टेंट 500 मिलीलिटर घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. पत्ती लपेटक इस का प्रकोप अगस्तसितंबर माह में अधिक होता है. इस कीट के कारण खेत में मुड़ी हुई, बेलनाकार पत्तियां दिखाई देने लगती हैं जिन के अंदर सूंड़ी पत्ती के हरे भाग को खाती रहती हैं. प्रभावित खेत में धान की पत्तियां सफेद और झुलसी हुई दिखाई देती हैं. कीट की इल्लियां (सूंड़ी) अंडों से निकलने के कुछ समय बाद इधरउधर विचरण कर अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बना कर पत्ती के किनारों को मोड़ लेती हैं और वहां रहते हुए पत्ती को खुरचखुरच कर खाती रहती हैं. कीट के पनपने के लिए तापमान 25-30 डिगरी सैल्सियस और हवा में नमी 83-90 फीसदी उपयुक्त दशा है.

* खेत में जगहजगह प्रकाश प्रपंच लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट कर दें.

* 2 ट्राइकोकार्ड्स प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतराल पर 4-5 बार खेत में जगहजगह पर समान दूरी पर लगाएं.

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* अधिक प्रकोप होने की दशा में एसीफेंट 50 एसपी की 700 ग्राम या फिप्रोनिल 5 एसपी की 600 मिलीलिटर या ट्राइजोफास 40 ईसी 400 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. दीमक दीमक लगभग सभी फसलों में नुकसान पहुंचाता है. दीमक के परिवार में राजा, रानी श्रमिक व सैनिक सहित चार सदस्य मौजूद रहते हैं. परिवार में रानी की संख्या केवल एक होती है, जो बच्चे देने का काम करती है. दीमक का प्रकोप बलुई मिट्टी वाले और असिंचित क्षेत्रों में अधिक होता है. दीमक उन सभी चीजों को आमतौर नुकसान पहुंचाता है, जिन में सेल्यूलोज पाया जाता है. ये जड़ और तने को खा कर सुखा देते हैं. इस तरह के सूखे हुए पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है.

प्रबंधन

* गरमी में एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे, जिस से हानिकारक कवक, जीवाणु, कटुआ कीट की सूंडि़यां और सभी प्यूपे व अन्य कीटों की विभिन्न अवस्थाएं, जो जमीन के अंदर सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं, जमीन के ऊपर आने से तेज धूप की गरमी के कारण और चिडि़यों के द्वारा नष्ट कर दी जाती हैं.

* कच्चे गोबर को खेत में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इस से दीमक का प्रकोप अधिक बढ़ता है.

* सिंचाई की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए.

* दीमक के घरों को नष्ट कर रानी को मार देना चाहिए.

* ब्यूवेरिया बेसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 30 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला दें.

* खड़ी फसल में अधिक प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 2-3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-20 किलोग्राम बालू में मिला कर उचित नमी पर सायंकाल में बुरकाव करें. धान के फुदके धान में अकसर 2 तरह के फुदके ज्यादा आक्रमण करते हैं.

पहला उजली पीठ वाला फुदका (डब्ल्यूबीपीएच) और दूसरा भूरा फुदका (बीपीएच). भूरे फुदके के प्रौढ़ भूरे रंग के होते हैं, जिन की लंबाई तकरीबन 3.5-4.5 मिलीमीटर तक होती है. इस कीट के नन्हे फुदके और प्रौढ़ दोनों ही पौधों की कोशिकाओं का रस चूसते हैं, जिस से पौधा पीला पड़ जाता है. इस के अधिक आक्रमण की दशा में फुदका झुलसा या हार्पर बर्न जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. शुरुआत में ये फसल के किसी एक स्थान से शुरू हो कर पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस के अलावा ये कीटग्रासी स्टंट नाम के विषाणु रोग को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

प्रबंधन

* लीफ हापर और प्लांट हापर के नियंत्रण में लाइकोसा प्रजाति की मकड़ी अधिक कारगर होती है. इसलिए खेत में मकड़ी की संख्या बढ़ाने के लिए मेंड़ पर जगहजगह धान की पुआल के गट्ठर डाल देने चाहिए. इस तकनीक का उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया, जिस से कीट व रोगनाशी रसायनों के प्रयोग तथा लागत में कमी आई और उपज में वृद्धि हुई.

* कीट का प्रकोप होने की दशा में यूरिया का खड़ी फसल में छिड़काव बंद कर दें.

* फसल में मित्र कीटों और मकडि़यों का संरक्षण करना चाहिए.

* कीटों का अधिक प्रकोप होने पर थायोमेथोक्जाम 300 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. धान का हिस्पा यह काले रंग का कीट होता है. इस के शरीर पर छोटछोटे कांटेनुमा रोएं होते हैं. इस की लंबाई 5 मिलीमीटर तक होती है. इस के गिडार और वयस्क दोनों पत्तियों को खुरच कर उस के हरे भाग को खाते हैं, जिस से पत्तियां सूख जाती हैं.

प्रबंधन

* रोपाई के पहले पौध के शिरों को थोड़ा काट दें. उस के बाद रोपाई करें.

* झुंड में 1-2 कीट प्रति झुंड दिखाई देने पर फ्रिवोनिल 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से या मैथोमिल 2.0 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. गंधी बग इस का वयस्क लगभग 15 मिमी. लंबा और हरेभूरे से गहरे भूरे रंग का होता है. इस कीट की पहचान इस से आने वाली दुर्गंध द्वारा आसानी से की जा सकती है. इस कीट के नवजात और प्रौढ़ दोनों ही दुग्धावस्था में बालियों से दूध को चूसते रहते हैं, जिस से बालियों में दाने नहीं बन पाते हैं. रस चूसने वाले बिंदु पर दानों में भूरा दाग बन जाता है और दाने खोखले रह जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए खेतों के किनारों से खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए, क्योंकि ये कीट इन पर पलते हैं और दूधिया दाने बनने की अवस्था में ही फसल पर आक्रमण करते हैं.

प्रबंधन

* खेत की मेंड़ों पर उगी हुई घासों की सफाई करें.

* 5 फीसदी नीम के सत का खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए.

* कीट का प्रकोप 1 बग/ झुंड से अधिक होने पर इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

धान की रोपाई में काफी लागत और मजदूरों की कमी के चलते किसानों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फायदा कम ले पाते हैं. लागत कम करने के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग काफी उपयोगी है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रो.

रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि धान की सीधी बोआई वाली एक मशीन वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है, जिसे पैडी ड्रम सीडर कहते हैं. प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि जो किसान किसी वजह से धान की नर्सरी नहीं डाल पाए हैं, वे धान की कम अवधि की प्रजाति की बोआई सीधे ड्रम सीडर से कर सकते हैं. यह बहुत ही सस्ती और आसान तकनीक है. इस की बनावट बिलकुल आसान है. उन्होंने कहा कि यह मशीन मानवचालित है.

6 किलोग्राम वजन व 170 सैंटीमीटर लंबी यह मशीन है. बीज भरने के लिए 4 से 6 प्लास्टिक के खोखले ड्रम लगे रहते हैं, जो एक बेलन पर बंधे रहते हैं. ड्रम में 2 पंक्तियों पर 9 मिलीमीटर व्यास के छेद बने होते हैं. ड्रम की एक परिधि में बराबर की दूरी पर कुल 15 छेद होते हैं. 50 फीसदी छेद बंद रहते हैं. बीज का गिराव गुरुत्वाकर्षण के कारण इन्हीं छेदों के द्वारा होता है. बेलन के दोनों किनारों पर पहिए लगे होते हैं.

इन का व्यास 60 सैंटीमीटर होता है, ताकि ड्रम पर्याप्त ऊंचाई पर रहे. मशीन को खींचने के लिए एक हत्था लगा रहता है. आधे छेद बंद रहने पर मशीन द्वारा सूखा बीज दर 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता है. पूरे छेद खुले होने पर 55 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. प्रत्येक ड्रम के लिए अलगअलग ढक्कन बना होता है, जिस में बीज भरा जाता है.

मशीन में पूर्व अंकुरित धान का बीज प्रयोग में लाते हैं. बोआई के समय लेव लगे हुए समतल खेत में 2 से 2.5 इंच पानी होना आवश्यक है. एक दिन में ड्रम सीडर से 1 से 1.40 हेक्टेयर खेत में बोआई की जाती है. ड्रम सीडर की उपयोगिता धान की रोपाई न करने से बढ़ जाती है. इस में नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

20 सैंटीमीटर की दूरी पर पंक्तिबद्ध बीज का जमाव होता है, जिस से फसल का विकास अच्छा होता है और निराई व अन्य क्रियाओं में सुगमता होती है. वहीं फसल सुरक्षा पर कम खर्च आता है. फसल 10 से 15 दिन पहले पक जाती है, जिस से अगली फसल गेहूं की बोआई समय पर संभव होती है और उस का उत्पादन अच्छा मिलता है. पहली सिंचाई 3-4 दिन बाद हलकी व धीरेधीरे शाम के समय करें.

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