लेखिका- डॉ क्षमा चतुर्वेदी
पुष्पा की सारी दलीलें 1-1 कर के व्यर्थ हो गई थीं. सुरेशजी अडिग थे कि उन्हें तो आश्रम जाना ही है, चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए.
‘‘अगर ऐसा ही है और तुम्हारा जाने का मन नहीं है तो मैं अकेला ही चला जाऊंगा," अपना अंतिम हथियार फेंकते हुए उन्होंने कह ही दिया था.
पुष्पा फिर चुप रह गई. पति का स्वास्थ ठीक रहता नहीं है फिर अब उम्र भी ऐसी नहीं ही कि अकेले यात्रा कर सकें, तो फिर उन्हें अकेला कैसे भेज दें, वहां कुछ हो गया तो कौन संभालेगा इन्हें? आखिरकार, जब कुछ कहते नहीं बना तो उस ने साथ जाने की हामी भर ही दी थी.
‘‘ठीक है, अब तैयारी करो। मैं तो अपना सामान पहले ही जमा चुका हूं,’’ सुरेशजी ने फिर बात खत्म कर दी थी.
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पुष्पा की सारी दलीलें 1-1 कर के व्यर्थ हो गई थीं. सुरेशजी अडिग थे कि उन्हें तो आश्रम जाना ही है, चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए.
‘‘अगर ऐसा ही है और तुम्हारा जाने का मन नहीं है तो मैं अकेला ही चला जाऊंगा," अपना अंतिम हथियार फेंकते हुए उन्होंने कह ही दिया था.
पुष्पा फिर चुप रह गई. पति का स्वास्थ ठीक रहता नहीं है फिर अब उम्र भी ऐसी नहीं ही कि अकेले यात्रा कर सकें, तो फिर उन्हें अकेला कैसे भेज दें, वहां कुछ हो गया तो कौन संभालेगा इन्हें? आखिरकार, जब कुछ कहते नहीं बना तो उस ने साथ जाने की हामी भर ही दी थी.