तनु के ऐसा कहते ही राहुल उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘उस ने कहा था, ‘मैं अब तक अपनी ही परिक्रमा कर के खुद को अपने अंकुश से बाहर महसूस करती रही. आप ने निर्विकार भाव से छू कर, मु झे जिंदा होने का एहसास दिला कर, मेरी कोख में पलते मेरे बच्चे के लिए संघर्ष करने की शक्ति का संचार किया है, यही आशीष ले कर जा रही हूं,’ यह सुन कर मैं निश्ंिचत हो गया था.’’
था. पता नहीं क्यों3 माह पहले जब राहुल अहमदाबाद गया था तब शकुन से हुई मुलाकात के दौरान पता चला कि शकुन को पीलिया हो गया शकुन के मन में भय समा गया था कि वह अधिक दिन नहीं जी सकेगी. राहुल ने उसे आश्वस्त किया भी था कि वह अंकिता को अपनी अमानत सम झ, संरक्षित कर के उस का हक उसे दिलाने का यत्न करेगा.
सबकुछ सुनने के बाद तनु ने निश्चयात्मक स्वर में कहा, ‘‘आप जितनी जल्दी हो सके, अंकिता को ले कर आ जाओ.’’
यह सुन कर राहुल उसे अपलक निहारता रहा, फिर प्यार से बोला, ‘‘मु झ पर शक कर के गलती के लिए प्रायश्चित्त करने का तुम्हारे मन में खयाल तो नहीं आ गया? क्योंकि गलती का एहसास होने पर तुम खुद को सजा देती हो. तनु, हम प्रकाश के मातापिता से मिल कर, अंकिता की जिम्मेदारी उन्हें सौंप कर उसे उस का हक भी दिला सकते हैं, तब तक तो तुम उसे संभाल सकती हो न?’’
यह सुन कर तनु के चेहरे पर चमक आ गई. उस ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘शकुन की बेटी को अपनाने का निर्णय मेरी गलती का प्रायश्चित्त या सजा नहीं है, बल्कि अंकिता की जिंदगी को समाज के किसी अंधेरे कोने में खो जाने से बचाने के लिए है. मैं नहीं चाहती कि उस की मां की तरह उस का भी बचपन कड़वाहट, अकेलेपन और खामोशी से गुजरे, क्योंकि शकुन के आखिरी खत के मुताबिक प्रकाश के मातापिता अंकिता को अपनाने के पक्ष में इसलिए नहीं हैं क्योंकि वह वंशवारिस नहीं है, वह एक लड़की है.’’