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धमकियां : शेखर किस तरह की लड़की के साथ विवाह करना चाहता था

शहरी मौडर्न लड़की से शादी की चाहत रखने वाले शेखर की शादी जब गांव की रहने वाली सुधा से हुई तो वह बातबात पर तलाक की धमकियां देने लगा, मगर वह इस बात से अनजान था कि उस की ये धमकियां उस पर ही एक दिन भारी पड़ने वाली हैं… शेखरऔर सुधा की मैरिज ऐनिवर्सरी थी और अच्छी बात यह भी हो गई कि शनिवार था तो आराम से सब सैलिब्रेशन के मूड में थे कि यदि पार्टी लेट भी चले तो कोई परेशानी नहीं, क्योंकि संडे रात को देर होने पर महानगरों में औफिस जाने वाले लोगों को मंडे ब्लूज सताते हैं. अनंत और प्रिया ने पार्टी का सब इंतजाम कर लिया था, अंजू और सुधीर से भी बात हो गई थी. वे भी सुबह ही आ रहे थे. प्रोग्राम यह था कि पहले पूरा परिवार एकसाथ घर पर लंच करेगा,

फिर डिनर करने सब बाहर जाएंगे, इस तरह पूरा दिन सब एकसाथ बिताने वाले थे. शेखर और सुधा अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए अति उत्साहित थे. अनंत तो अपनी पत्नी प्रिया और एक बेटी पारुल के साथ उन के साथ ही रहता था. बेटी अंजू अंधेरी में अपने पति सुधीर और बेटे अनुज के साथ रहती थी. मुंबई में होने पर भी मिलनाजुलना जल्दी नहीं हो पाता था. बहूबेटा, बेटीदामाद सब वर्किंग थे. इसलिए जब भी सब एकसाथ मिलते, शेखर और सुधा बहुत खुश होते थे. सब की बौंडिंग बहुत अच्छी थी, सब जब भी मिलते, महफिल खूब जमती, जम कर एकदूसरे की टांग खिंचाई होती. कोई किसी की बात का बुरा न मानता. बच्चों के साथ शेखर और सुधा भी खूब हंसतेहंसाते. 12 बजे अंजू सुधीर और अनुज के साथ आ गई. सब ने एकदूसरे को प्यार से गले लगाया. शेखर और सुधा के साथसाथ अंजू सब के लिए कुछ न कुछ लाई थी.

पारुल और अनुज तो अपने में बिजी हो गए. हंसीमजाक के साथसाथ खाना भी लगता रहा. लंच भी बाहर से और्डर कर लिया गया था, पर प्रिया ने सासससुर के लिए खीर और दहीवड़े उन की पसंद को ध्यान में रख कर खुद बनाए थे, जिन्हें सब ने खूब तारीफ करते हुए खाया. खाना खाते हुए सुधीर ने बहुत सम्मानपूर्वक कहा, ‘‘पापा, आप लोगों की मैरिड लाइफ एक उदाहरण है हमारे लिए, कभी आप लोगों को किसी बात पर बहस करते नहीं देखा. इतनी अच्छी बौंडिंग है आप दोनों की. मेरे मम्मीपापा तो खूब लड़ लेते थे, आप लोगों से बहुत कुछ सीखना चाहिए.’’ फिर जानबू?ा कर अंजू को छेड़ते हुए कहा, ‘‘इसे भी कुछ सिखा दिया होता… बहुत लड़ती है मु?ा से. कई बार तो शुरूशुरू में लगता था कि इस से निभेगी भी या नहीं.’’ अंजू ने प्यार से घूरा, ‘‘बकवास बंद करो, तुम से कभी नहीं लड़ी मैं… ?ाठे.’’ प्रिया ने भी कहा, ‘‘हां, जीजू आप ठीक कह रहे हैं, मम्मीपापा की कमाल की बौंडिंग है,

दोनों एकदूसरे का बहुत ध्यान रखते हैं, बिना कहे ही एकदूसरे के मन की बात जान लेते हैं. यहां तो अनंत को मेरी कोई बात ही याद नहीं रहती. काश, अनंत भी पापा की तरह केयरिंग होता.’’ अनंत से भी रहा नहीं गया, ?ाठमूठ गले में कुछ फंसने की ऐक्टिंग करता हुआ बोला, ‘‘मेरी प्यारी बहन, अंजू, ये हम दोनों भाईबहन क्या सुन रहे हैं, क्यों न आज मम्मीपापा की बहू और दामाद को इस बौंडिंग की सचाई बता दें? हम कब तक ये ताने सुनते रहेंगे?’’ कहताकहता अनंत अंजू को देख कर शरारत से हंस दिया. शेखर ने चौंकते हुए कहा, ‘‘अरे, कैसी सचाई? क्या तुम बच्चों से अपने पेरैंट्स की तारीफ सहन नहीं हो रही?’’ अनंत हंसा. बोला, ‘‘मम्मीपापा तैयार हो जाइए, आप की बहू और आप के दामाद से हम भाईबहन आप की इस बौंडिंग का राज शेयर करने जा रहे हैं,’’ फिर नाटकीय स्वर में अंजू से कहा, ‘‘चल बहन, शुरू हो जा.’’ अंजू ने जोर से हंसते हुए बताना शुरू किया, ‘‘जब हम छोटे थे, हम रोज देखते कि पापामम्मी को हर बात में कहते हैं कि मैं तुम्हारे साथ एक दिन नहीं रह सकता, मेरी अम्मांपिताजी ने मेरे साथ बहुत बुरा किया है कि तुम से मेरी शादी करवा दी,

मेरे जैसे स्मार्ट लड़के के लिए पता नहीं कहां से गंवार लड़की ले कर मेरे साथ बांध दी.’’ यह सुनते ही प्रिया और सुधीर ने चौंकते हुए शेखर और सुधा को देखा, शेखर बहुत शर्मिंदा दिखे और सुधा की आंखों में नमी सी आ गई थी जिसे देख कर शेखर और शर्मिंदा हुए. अनंत ने कहा, ‘‘और एक मजेदार बात यह थी कि हमें रोज लगता कि बस शायद कल मम्मी और पापा अलग हो जाएंगे पर हम अगले दिन देखते कि दोनों अपनेअपने काम में रोज की तरह व्यस्त हैं. सारे रिश्तेदारों को पता था कि दादादादी ने अपनी पसंद की लड़की से पापा की शादी कराई है और पापा को मम्मी पसंद नहीं है. ‘‘हम किसी से भी मिलते, हम से पूछा जाता कि अब भी तुम्हारे पापा को तुम्हारी मम्मी पसंद नहीं है क्या… हमें कुछ सम?ा न आता कि क्या कहें पर सब ही मम्मी की खूब तारीफ करते, सब का कहना था कि मम्मी जैसी लड़की बहुत कम को मिलती है पर पापा घर में हर बातबात पर यही कहते कि उन की लाइफ खराब हो गई है. यह शादी उन की मरजी से नहीं हुई है. उन्हें किसी शहर की मौडर्न लड़की से शादी करनी थी और उन के पेरैंट्स ने अपने गांव की लड़की से उन की शादी करवा दी.

‘हालांकि मम्मी बहुत पढ़ीलिखी हैं पर प्रोफैसर पापा अलग ही दुनिया में जीते और अंजू मम्मीपापा के तलाक के डर के साए में जीते रहे. कभी अनंत मु?ो सम?ाता, तसल्ली देता कि कुछ नहीं होगा, कभी मैं उसे सम?ाती कि अगले दिन तो सब ठीक हो ही जाता है. भई हमारा बचपन और जवानी तो पापा की धमकियों में ही बीत गई. फिर अचानक अनंत जोर से हंसा और कहने लगा, ‘‘धीरेधीरे हम बड़े हो ही गए और सम?ा आ गया कि पापा सिर्फ मम्मी को धमकियां देते हैं, हमारी प्यारी मां को छोड़ना इन के बस की बात नहीं.’’ प्रिया और सुधीर ने शेखर को बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘पापा, वैरी बैड. हम आप को क्या सम?ाते थे, और आप क्या निकले. बेचारे बच्चे आप की धमकियों में जीते रहे और हम आप दोनों की बौंडिंग के फैन होते रहे. क्यों पापा, ये धमकियां क्यों देते रहे?’’ शेखर ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘वैसे अच्छा ही हुआ कि आज तुम लोगों ने बात छेड़ दी, दिन भी अच्छा है आज.’’

उन के इतना कहते ही अंजू ने कहा, ‘‘अच्छा? दिन अच्छा हो गया अब मैरिज ऐनिवर्सरी का… बच्चों को परेशान कर के.’’ ‘‘हां बेटा, दिन बहुत अच्छा आज का जो मु?ो इस दिन सुधा मिली.’’ अब सब ने उन्हें चिढ़ाना शुरू कर दिया, ‘‘रहने दो पापा, हम आप की धमकियां नहीं भूलेंगे.’’ ‘‘सच कहता हूं, मैं गलत था, मैं ने सुधा को सच में तलाक की धमकी दे दे कर बहुत परेशान किया. मैं चाहता था कि मैं बहुत मौडर्न लड़की से शादी करूं, गांव की लड़की मु?ो पसंद नहीं थी. हमेशा शहर में रहने के कारण मु?ो शहरी लड़कियां ही भातीं. जब अम्मांपिताजी ने सुधा की बात की तो मैं ने साफसाफ मना कर दिया पर सुधा के पेरैंट्स की डैथ हो चुकी थी और भाई ने ही हमेशा सुधा की जिम्मेदारी संभाली थी. ‘‘अम्मां को सुधा से बहुत लगाव था. मैं ने तो यहां तक कह दिया था कि मंडप से ही भाग जाऊंगा पर पिताजी के आगे एक न चली और सारा गुस्सा सुधा पर ही उतरता रहा. हमारे 7 भाईबहनों के परिवार को सुधा ने ऐसे अपनाया कि सब मु?ो भूलने लगे. हर मुंह पर सुधा का नाम, सुधा के गुण देख कर सब इस की तारीफ करते न थकते पर मेरा गुस्सा कम होने का नाम ही न लेता. मगर धीरेधीरे मेरे दिल में इस ने ऐसी जगह बना ली कि क्या कहूं. मैं ही इस का सब से बड़ा दीवाना बन गया. ‘‘जब आनंद पैदा हुआ तो सब को लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा पर मैं नहीं सुधरा. सुधा से कहता कि बस यह थोड़ा बड़ा हो जाए तो मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा, फिर 2 साल बाद अंजू हुई तो भी मैं यही कहता रहा कि बस बच्चे बड़े हो जाएं .

तो मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा अगर तुम चाहो तो गांव में अम्मां के साथ रह सकती हो, फिर बच्चे बड़े हो रहे थे तो मेरी बहनों की शादी का नंबर आता रहा. ‘‘सुधा अपनी हर जिम्मेदारी दिल से पूरी करती रही और मेरे दिल में जगह बनाती रही पर मैं इतना बुरा था कि तलाक की धमकियों से बाज न आता, सुधा घर के इतने कामों के साथ अपना पूरा ध्यान पढ़ाईलिखाई में लगाती और इस ने धीरेधीरे अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली और एक दिन एक कालेज में जब इसे जौब भी मिल गई तो मैं पूरी तरह से अपनी हर गलती के लिए इतना शर्मिंदा था कि इस से माफी भी मांगने की मेरी हिम्मत नहीं हुई. ‘‘आज तक मन ही मन इतना शर्मिंदा था कि आज इसलिए इस दिन को अच्छा बता रहा कि आज मैं तुम सब के सामने सुधा से माफी मांगने की हिम्मत कर पा रहा हूं. बच्चों, तुम से भी शर्मिंदा हूं कि मेरी तलाक की धमकियों से तुम्हारा बाल मन आहत होता रहा और मु?ो खबर भी नहीं हुई, सुधा, अनंत और अंजू तुम सब मु?ो आज माफ कर दो.’’ प्रिया ने सुधा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, आप भी कुछ कहिए न?’’ सुधा ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘शुरू में तो एक ?ाटका सा लगा जब पता चला कि मैं इन्हें पसंद नहीं… मातापिता थे नहीं… भाई ने बहुत मन से मेरा विवाह इन के साथ किया था. लगा भाई को बहुत दुख होगा अगर उस से अपना दुख बताऊंगी तो,

इसलिए कभी किसी से शेयर ही नहीं किया कि पति तलाक की धमकी दे रहा है… सोचा समय के साथ शायद सब ठीक हो जाए. और ठीक हुआ भी. ‘‘तुम दोनों के पैदा होने के बाद इन का अलग रूप देखा, तुम दोनों को ये खूब स्नेह देते… कालेज से आते ही तुम दोनों के साथ खूब खेलते… मैं ने यह भी महसूस किया कि मु?ो अपने पेरैंट्स के सामने या उन के आसपास होने पर ये तलाक की धमकियां ज्यादा देते हैं. ‘‘अकेले में इन का व्यवहार कभी खराब भी नहीं रहा. मेरी सारी जरूरतों का हमेशा ध्यान रखते, मैं सम?ाने लगी थी कि ये हम सब को प्यार करते हैं, हमारे बिना नहीं रह सकते. ये धमकियां पूरी तरह से ?ाठी हैं, सिर्फ अपने पेरैंट्स को गुस्सा दिखाने के लिए ज्यादा करते हैं. ‘‘ये अपने पेरैंट्स से इस बात पर नाराज थे कि उन्होंने इन के विवाह के लिए इन की मरजी नहीं पूछी, सीधे अपना फैसला थोप दिया. ‘‘जब मैं ने यह सम?ा लिया तो जीना मुश्किल ही नहीं रहा. पढ़ने का शौक था…

किताबें तो ये ही ला कर दिया करते. पूरा सहयोग किया. तभी तो पी एच डी कर पाई, रातभर बैठ कर पढ़ती तो ये कभी चाय बना कर देते, कभी गरम दूध का गिलास जबरदस्ती पकड़ा देते और अगर अगले दिन अम्मांपिताजी आ जाएं तो तलाक का पुराण शुरू हो जाता, पर मैं इन के मौन प्रेम का स्वाद चख चुकी थी. फिर मु?ा पर कोई धमकी असर न करती,’’ कहतेकहते सुधा हंस दीं. शेखर हैरानी से उन का मुंह देख रहे थे, बोले, ‘‘मतलब तुम्हें जरा भी चिंता नहीं हुई कभी?’’ ‘‘नहीं जनाब, कभी भी नहीं,’’ सुधा मुसकराईं. अनंत और अंजू ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर अनंत बोला, ‘‘ले बहन, और सुनो इन की कहानी. मतलब हम ही बेवकूफ थे जो सारा बचपन डरते रहे कि हाय, मम्मीपापा का तलाक न हो जाए, हमारा क्या होगा. ‘‘हम बच्चे तो कई बार यह बात भी करने बैठ जाते कि पापा के पास कौन रहेगा, मम्मी के पास कौन, हमें तो फिल्मों में देख कोर्ट के सीन याद आते और हम अलग ही प्लानिंग करते. मम्मीपापा बहुत जुल्म किया आप ने बच्चों पर. ये धमकियां हमारे बचपन पर बहुत भारी पड़ी हैं.

’’ शेखर ने अब गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘हां बच्चो, यह मैं मानता हूं कि तुम दोनों के साथ मैं ने अच्छा नहीं किया, मु?ो कभी महसूस ही नहीं हुआ कि मेरे बच्चों के दिलों पर ये धमकियां क्या असर कर रही होंगी… सौरी, बच्चो.’’ अंजू ने चहकते हुए शरारत से कहा, ‘‘वह तो अच्छा है मम्मी ने यह बात एक दिन महसूस कर ली कि आप की तलाक की ये धमकियां हमें डिस्टर्ब करती हैं तो उन्होंने हमें बैठा कर एक दिन सम?ा दिया था कि आप का यह गुस्सा दादादादी को दिखाने का एक नाटक है… कुछ तलाकवलाक कभी नहीं होगा. तब जा कर हम थोड़ा रिलैक्स हुए थे.’’ शेखर अब मुसकराए और फिर नाटकीय स्वर में बोले, ‘‘मतलब मेरी खोखली धमकी का किसी पर भी असर नहीं पड़ रहा था और मैं खुद को तीसमारखां सम?ाता रहा.’’ सुधीर ने प्रिया को देखते हुए कहा, ‘‘प्रिया, अनंत और अंजू कोई धमकी कभी दें तो सीरियसली मत लेना. यार, हमें तो बड़े धमकीबाज ससुर मिले हैं पर यह भी सच है कि आप दोनों की बौंडिंग है तो कमाल… एक सारी उम्र धमकी देता रहा, दूसरा एक कान से सुन कर दूसरे से निकालता रहा… बस बेचारे 2 बच्चे डरते रहे.’’ समवेत हंसी से घर के दरोदीवार चहक रहे थे. शेखर सुधा को मुग्ध नजरों से निहारते रहे.

Heart Disease: दिल संबंधी बीमारियों से इस तरह पाएं जल्द छुटकारा

हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त महिलाओं की गर्भावस्था अधिक जोखिम वाली मानी जाती है. इस दौरान ऐसी महिलाओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है.

अधिक जोखिम वाली गर्भावस्था (हाई ब्लडप्रैशर, गर्भावस्था के दौरान ऐक्लैंसिया) और हार्ट अटैक व स्ट्रोक आने की आशंका बढ़ने (8 से 10) के बीच संबंध पाया गया है. ये आंकड़े सामान्य गर्भावस्था वाली महिलाओं की तुलना में जुटाए गए हैं.

जोखिमभरी गर्भावस्था वाली महिलाओं की पहचान की जानी चाहिए और नियमित तौर पर हाई ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल व डायबिटीज के लिए उन की जांच की जानी चाहिए. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के दिशानिर्देशों के अनुसार, अधिक जोखिम वाली गर्भावस्था के एक साल के भीतर इन महिलाओं की स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए.

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आयरन की कमी से हृदय रोग :

एनीमिया में रक्त में औक्सीजन ले जाने वाली मौलिक्यूल हीमोग्लोबीन का स्तर कम हो जाता है और इस से सीधे हार्ट अटैक हो सकता है या फिर व्यक्ति की हृदय संबंधी बीमारियों की गंभीरता बढ़ सकती है.

विटामिन बी1 की कमी के कारण होने वाले एनीमिया से हार्ट पर सीधे असर हो सकता है जिस से हार्ट फेल भी हो सकता है. हालांकि, तुरंत विटामिन बी1 की डोज देने से इस स्थिति को बदला जा सकता है.

एनीमिया आमतौर पर कंजैस्टिव हार्ट फेल्योर और कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ा देता है. हार्ट फेल होने या एंजाइना की स्थिति में अगर रोगी का हीमोग्लोबीन स्तर 7-8 ग्राम से कम है तो रोगी के लक्षण और प्रोग्नोसिस को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए सुधारा जा सकता है.

हृदय संबंधी बीमारियों के ज्यादातर रोगी जो दवाएं लेते हैं उन में खून को पतला करने वाले तत्त्व होते हैं, जिस से खून की मात्रा कम हो सकती है. एनीमिक रोग में हृदय संबंधी बीमारी का पता चलने पर इन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

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स्वस्थ हृदय के लिए भोजन :

हमेशा से ही मनुष्य को होने वाली बीमारियों को उस के द्वारा खाए जा रहे भोजन से जोड़ा जाता रहा है. आधुनिक युग में लोगों को होने वाली हृदय संबंधी सब से आम बीमारी कोरोनरी आर्टरी डिजीज का भोजन के साथ गहरा रिश्ता है. आधुनिक भोजन में फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है. विशेषतौर पर, सैचुरेटेड फैट का सीधा संबंध कोरोनरी आर्टरी डिजीज से होता है. वहीं दूसरी ओर, फलों और हरी सब्जियों जैसे स्वस्थ भोजन में कई ऐसे तत्त्व पाए जाते हैं जो हृदय की सुरक्षा में प्रभावकारी होते हैं.

कुछ ऐसे भोजन जो स्वस्थ हृदय के लिए सही हैं. जैसे…

  1. हरी सब्जियां,
  2. फल,
  3. अनाज,
  4. पौलीअनसैचुरेटेड औयल जैसे सरसों, औलिव और कनोला,
  5. मछली विशेषकर समुद्री मछली 
  6. नट्स जैसे बादाम, अखरोट इत्यादि.

स्लीप एप्निया :

इस से अचानक कार्डियेक डैथ यानी एससीडी (लक्षण दिखने के 1 घंटे के भीतर मौत) का जोखिम बढ़ जाता है. औब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया यानी ओएसए से एससीडी होने की आशंका 2.5 गुना बढ़ जाती है. ओएसए के दौरान रक्त में बारबार औक्सीजन की कमी (हाइपोक्सिया) होती है. हाइपोक्सिया की इस अवधि के दौरान हृदय में हार्ट रिदम संबंधी विकास उत्पन्न होने लगते हैं. इन रिदम डिस्और्डर में से एक वैंट्रिक्यूलर टैकीकार्डिया/ फाइब्रिलेशन सडन कार्डियेक डैथ के लिए जिम्मेदार होता है.

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ओएसए को कई बार कार्डिएक जोखिम बढ़ाने वाले कारकों जैसे मोटापा, हाइपरटैंशन, डायबिटीज से भी जोड़ा जा सकता है, जिन की वजह से कोरोनरी आर्टरी डिजीज होती हैं. कोरोनरी आर्टरी डिजीज अपनेआप में सडन कार्डिएक डैथ की बड़ी वजह होती हैं. यह भी देखा गया है कि ओएसए और संबंधित बीमारियों का इलाज कराने से एससीडी के मामलों में गिरावट आई है.

हार्ट अटैक के जोखिम कारक :

जोखिम कारक ऐसी क्लीनिकल परिस्थितियां होती हैं जो किसी व्यक्ति या समाज में मौजूद होती हैं, जिन से कोई विशिष्ट बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. हार्ट डिजीज की बात करें तो इस के लिए कई जोखिम कारकों की पहचान की गई है.

जोखिम कारकों के सब से बड़े अध्ययन, जिस में 52 देशों के पुरुषों व महिलाओं समेत 30 हजार से अधिक लोगों ने प्रतिभागिता की, में सामने आया है कि किसी व्यक्ति को हृदय संबंधी बीमारियां होने की मुख्यतया 9 बुनियादी वजहें होती हैं–

  1. टोटल कोलैस्ट्रौल
  2. धूम्रपान
  3. हाइपरटैंशन
  4. डायबिटीज
  5. ऐब्डौमिनल औबेसिटी
  6. मनोवैज्ञानिक
  7. आहार यानी फल व सब्जियां
  8. शारीरिक गतिविधियां
  9. मदिरापान

इन जोखिम कारकों की मौजूदगी के मामले में महिलाएं भी पुरुषों से अलग नहीं होती हैं, सिर्फ इन 2 लिहाज से कि महिलाओं में ट्राइग्लिसराइड्स लिपिड व एस्ट्रोजन और ओरल कंस्ट्रासैप्टिव्स भी भूमिका निभाते हैं. इस के अतिरिक्त कोई अंतर नहीं है.

जिन महिलाओं को मासिकधर्म हो रहा हो, उन्हें इस बीमारी से थोड़ी सुरक्षा रहती है. लेकिन डायबिटीज, हाइपरटैंशन, धूम्रपान और मोटापे जैसी समस्याओं ने इस लाभ को काफी हद तक कम कर दिया है.

साइलैंट हार्ट अटैक : 

करीब 20 से 25 फीसदी मामलों में हार्ट अटैक का सीने में दर्द जैसा सामान्य लक्षण नहीं दिखता, बल्कि इस में सांस लेने में तकलीफ, अचानक कमजोरी महसूस होना, बेहोशी होना इत्यादि लक्षण दिखते हैं. इस वजह से लोगों का ध्यान इस की तरफ नहीं जाता. इस की तरफ ध्यान तभी जाता है जब व्यक्ति फिजीशियन के पास जा कर ईसीजी और अल्ट्रासाउंड कराता है और उस में हार्ट अटैक होने के लक्षण मिलते हैं.

यह सब से ज्यादा डायबिटीज से पीडि़त व्यक्तियों या बुजुर्गों में दिखता है और इसलिए जब इस आबादी में असाधारण लक्षण दिखें तो उन की ध्यानपूर्वक जांच करना बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है. साइलैंट हार्ट अटैक का इलाज भी सीने में दर्द करने वाले सामान्य हार्ट अटैक जैसा ही होता है.

सामान्य गलतफहमियां : 

मौजूदा समय में सब से अधिक मौतों की प्रमुख वजहों में हार्ट अटैक भी शामिल है. इस बीमारी के कारण बड़ी संख्या में होने वाली मौतों को देखते हुए इसे ले कर गई गलत अवधारणाएं भी बन गई हैं.

भारत में हृदय संबंधी बीमारियों को ले कर शीर्ष गलत अवधारणाएं निम्न हैं-

  • यह गैस की बीमारी है, इस का हार्ट अटैक से कोई लेनादेना नहीं है. ईनो, एंटासिड लेने से काम चल जाएगा. हृदय संबंधी बीमारियों के प्रति इसी गलत अवधारणा के कारण रोजाना कई रोगी जान गंवा रहे हैं. कोई भी असाधारण लक्षण महसूस हो, विशेषकर सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, बेहद कमजोरी आदि तो तुरंत फिजीशियन से संपर्क करें.
  • मुझे पता है कि मैं धूम्रपान करता / करती हूं, हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज है लेकिन मुझे हृदय संबंधी बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं तो फिर चिंता की क्या बात, ये परिस्थितियां साइलैंट किलर होती हैं. संभव है कि कई वर्षों तक कोई लक्षण नहीं दिखाई दे लेकिन इन्हें नजरअंदाज करना बाद में जानलेवा साबित हो सकता है.
  • मेरे मातापिता को हृदय संबंधी बीमारियां हैं लेकिन उस के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता है. अगर ऐसा है तो आप को भी हृदय संबंधी बीमारियां होने का जोखिम है. लेकिन आप कुछ कदमों का पालन कर इसे रोक सकते हैं, जैसे धूम्रपान नहीं करें और डायबिटीज, हाइपरटैंशन व कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित करें. साथ ही, स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, स्वस्थ भोजन खाएं और वजन नियंत्रित रखें.
  • हृदय संबंधी बीमारी होने की चिंता करने के लिए मेरी उम्र अभी बहुत कम है. ऐसा ठीक नहीं है क्योंकि आप की कोरोनरी आर्टरीज में फैट इकट्ठा होने की प्रक्रिया बचपन में ही शुरू हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए कदम उठाने भी आप को कम उम्र में ही शुरू कर देने चाहिए.

ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम :

अगर किसी महिला नहीं, बल्कि किसी और वजह से आप का दिल टूटा है तो यह गंभीर समस्या है. यह ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम साबित हो सकता है. आमतौर पर इस की वजह गंभीर तनाव वाली परिस्थितियां, जैसे किसी प्रिय की मृत्यु होना या तलाक इत्यादि होती है. यह हार्ट अटैक जैसा ही होता है और इस से हार्ट फेल भी हो सकता है. इस की कोरोनरी एंजियोग्राम और हृदय का अल्ट्रासाउंड (ईको) से जांच कराएं. यह पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होता है. अच्छी बात यह है कि ज्यादातर मामलों में हृदय कुछ हफ्तों में ही इस से उबर जाता है.

(डा. प्रमोद कुमार, फोर्टिस अस्पताल, दिल्ली, कार्डियोलौजी विभाग प्रमुख.)

साक्षी के बाद

मेरी शादी कुछ दिन पहले टूट गई है, मेरे मंगेतर से लड़ाई भी हुई है, अब मेरे मन में कई तरह के सवाल आ रहे हैं मैं क्या करू?

सवाल

मेरी कुछ दिनों पहले शादी होने वाली थी पर वह टल गई. इस बीच मेरे मंगेतर और मेरे बीच लड़ाइयां शुरू होने लगीं. वह रात-रात भर औनलाइन रहता है लेकिन मुझ से बात नहीं करता, न कभी सामने से मैसेज करता है. मैं उस की होने वाली पत्नी हूं, फिर भी मुझे उस पर अपना कोई हक नहीं लगता. मैं उसे मजबूर तो नहीं कर सकती कि मुझ से बात करे लेकिन उस का मुझ से बात न करना मुझे अखरता है. मेरा उस से बात करने का मन करता है उस का क्यों नहीं करता. मुझे लगता है कि उस की जिंदगी में कोई और लड़की है. मैं, बस, यह जानना चाहती हूं कि क्या यह नौर्मल है या मैं जो सोच रही हूं वही सही हो.

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जवाब

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किसी के औनलाइन रहने का मतलब यह नहीं कि वह किसी और से बात ही कर रहा हो. आप उन की होने वाली पत्नी हैं लेकिन इतना हक तो एक दोस्त को भी होता है कि वह पूछ सके कि सामने वाला बात क्यों नहीं करता. इस बारे में सोचसोच कर घुटने से अच्छा है, आप स्पष्ट पूछ लें कि क्या बात है और यह भी कह दें कि आप चाहती हैं कि वह आप को वक्त दे. कई बार परेशानी इतनी बड़ी होती नहीं है जितनी हम उसे बना लेते हैं. आप को अपने मन की उलझन अपने मंगेतर से बांटनी चाहिए, हो सकता है वह आप से बात करे और आप के सवालों के जवाब दे. और अगर उस के जीवन में कोई और लड़की है तो आप को बात की तह तक जाने की जरूरत है, बेबुनियाद शक करने से कुछ नहीं होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सितंबर महीने में खेती से जुड़े जरूरी काम

हमारे यहां खेतीबारी के नजरिए से सितंबर का महीना यानी हिंदी का भादों महीना काफी खास होता है. इस महीने में धान की फसल में कीट और बीमारियों के नियंत्रण पर खासा ध्यान देना दिया जाता है, क्योंकि धान की अगेती किस्में पकने की अवस्था में पहुंचने लगती हैं. इस के अलावा ज्वार, बाजरा जैसी फसलें भी पक रही होती हैं. खरीफ सीजन में बोई गई दलहनी फसलों जैसे मूंग, उड़द, लोबिया की फसल का इस महीने में पकने का समय होता है. यही वह समय होता है, जब तोरिया, अगेती सरसों और लाही की बोआई की जाती है. रबी सीजन के लिए ली जाने वाली सब्जियों की फसल के लिए इस महीने नर्सरी तैयार करने का भी समय होता है. साथ ही, कई तरह की सब्जियों की सीधी बोआई खेत में की जाती है. इस के अलावा यह बागबानी, पशुपालन, खुंब उत्पादन, चारा फसलों के लिए भी काफी खास होता है. धान की फसल में पूरे सितंबर महीने में किस्मों के हिसाब से बालियां आती हैं.

ऐसी दशा में फसल की खास देखभाल की जरूरत होती है. धान की फसल में 50 से 55 दिन की अवस्था में नाइट्रोजन यानी यूरिया की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग बाली बनने की अवस्था में की जाती है. धान की सुगंधित प्रजातियों में नाइट्रोजन की 15 किलोग्राम मात्रा व अन्य प्रजातियों में 30 किलोग्राम की मात्रा का टौप ड्रैसिंग करनी चाहिए. इस समय यह ध्यान दें कि खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर पानी से अधिक न हो और बालियां निकलने व फूल आते समय पर्याप्त नमी हो. इस दौरान धान की फसल में जीवाणु ?ालसा, भूरी चित्ती, फाल्स स्मट जैसे रोगों का प्रकोप दिखाई पड़ता है. साथ ही, फसल में तना छेदक, धान का पत्ती लपेटक, धान का भूरा फुदका का प्रकोप भी दिखाई पड़ता है. ऐसी दशा में अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा से संपर्क कर उन के द्वारा बताए गए उपाय जरूर करें. जिन किसानों ने मक्का या ज्वार की खेती कर रखी है, अगर उन के क्षेत्र में बारिश अधिक हो रही है, तो उचित जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करें.

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मक्का और ज्वार में दाने बनने की अवस्था में उपयुक्त नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई अवश्य करें. बाजरा की फसल में बोआई के 25 से 30 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 87 से 108 किलोग्राम यूरिया की टौप ड्रैसिंग करें. बाजरा की फसल में अगर कीट का दुष्प्रभाव दिखाई पड़े या दाने की जगह भूरेकाले रंग की सींक आकार की गांठें बन रही हों, जिन्हें सफेद स्क्लेरेशिया कहते हैं या पत्तियों का रंग पीला पड़ रहा हो, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर संपर्क करें. मूंग, उड़द, सोयाबीन, फूल और फली बनते समय नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई अवश्य करें. मूंगफली की फसल में अगर फलियां बननी शुरू हो चुकी हों, तो नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करें. अगर बारिश अधिक हो रही हो, तो मूंगफली की फसल से पानी निकालते रहें. इस महीने में सूरजमुखी की फसल में फूल आते समय या दाने बनते समय खेत में पर्याप्त नमी सुनिश्चित करें. इस फसल को चिडि़या बहुत अधिक नुकसान पहुंचाती हैं. इस से बचने के लिए एकसाथ कई किसान सूरजमुखी की फसल लेते हैं, तो चिडि़या नुकसान कम पहुंचाती हैं.

अगर कम रकबे में सूरजमुखी की फसल ली गई है, तो दानों को चिडि़यों से बचाने के लिए फसल से एक मीटर ऊपर चमकीली पन्नी बांधें. गन्ने की फसल को नुकसान से बचाने के लिए हर हाल में इस महीने में बंधाई का काम पूरा कर लें. फसल को बांधते समय यह ध्यान रखें कि कतार के अंदर गन्ने को डेढ़ मीटर की ऊंचाई पर बांधें. फसल को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए कतार से कतार के गन्ने को बांधें. इस समय यह ध्यान रखें कि गन्ने की पत्तियां न टूटें. अगर गन्ने में पायरिला कीट का प्रकोप दिखाई पड़ता है, तो इस की रोकथाम के लिए फास्फेमिडान 400 मिली या मिथाइल डिमेटान 1.5 लिटर को 1,000 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. गन्ने की फसल में गुरुदासपुर बोरर व शीर्ष बेधक यानी टौप बोरर कीट का प्रकोप दिखाई पड़ने पर क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी की डेढ़ लिटर मात्रा को 800 से 1,000 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. शरदकालीन गन्ने की बोआई करने के लिए सितंबर महीने के दूसरे पखवारे से अक्तूबर के दूसरे पखवारे का समय सब से उचित होता है. जो किसान शरदकालीन गन्ने की बोआई करना चाहते हैं, वे 50 से 60 क्विंटल बीज की मात्रा की बोआई प्रति हेक्टेयर की दर से कर सकते हैं.

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तोरिया और लाही की बोआई के लिए सितंबर महीने का पहला सप्ताह सब से उपयुक्त होता है, क्योंकि सितंबर के पहले सप्ताह में तोरिया की बोआई करने से फसल नवंबर महीने में पक जाती है. ऐसे में तोरिया की फसल के नवंबर महीने में कट जाने से खेत गेहूं की बोआई के लिए खाली हो जाता है. सितंबर महीने में बोई जाने वाली तोरिया की उन्नत किस्मों में टाइप-9, भवानी, टाइप-1, पीटी- 303, जवाहर तोरिया-1, पंत तोरिया- 303, राज विजय तोरिया-3, बस्तर तोरिया- 1, संगम टीएल- 15 वगैरह उचित होती हैं, जबकि सरसों की बोआई के लिए सितंबर महीने का दूसरा पखवारा उचित होता है. इस की उन्नत किस्मों में पूसा तारक, पूसा सरसों- 25, पूसा सरसों- 27, पूसा सरसों- 28, पूसा महक व पूसा अग्रणी प्रमुख मानी जाती हैं. सब्जी की खेती करने वाले किसान सितंबर महीने में टमाटर की संकर प्रजातियों और गोभी की उन्नत किस्मों की नर्सरी डालें. जिन किसानों ने पत्तागोभी की उन्नत किस्मों की नर्सरी डाल रखी है,

वे पौधों की रोपाई 15 सितंबर तक कर सकते हैं, जबकि पछेती किस्मों की रोपाई 15 सितंबर के बाद भी की जा सकती है. जिन किसानों ने शिमला मिर्च की नर्सरी डाल रखी है, वे पौधों के 30 दिन के हो जाने पर खेत में रोपाई का काम पूरा कर लें. फूलगोभी की इंप्रूव्ड जापानी, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी की रोपाई के लिए पूरा सितंबर महीना उपयुक्त होता है. मूली की एशियाई किस्मों जैसे जापानी ह्वाइट, पूसा चेतकी, मूली नंबर-1, कल्यानपुर-1 की बोआई इस महीने करें. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 6 से 8 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. सितंबर महीने में मेथी की अगेती किस्मों की बोआई की जा सकती है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. अगर इस महीने बारिश खत्म हो चुकी हो, तो धनिया की पंत हरीतिमा, आजाद धनिया-1 वगैरह बोई जा सकती है. आलू उत्पादक किसान उन्नत किस्मों जैसे कुफरी अशोका, कुफरी चंद्रमुखी की बोआई 25 सितंबर के बाद से शुरू कर सकते हैं, वहीं पालक की बोआई के लिए किसान उन्नत किस्मों जैसे आलग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पालक नंबर 51-16, वर्जिनिया सेवोय, अर्ली स्मूथ लीफ का चुनाव कर सकते हैं. मटर की अगेती प्रजातियों की बोआई इस महीने के दूसरे सप्ताह से अक्तूबर महीने के दूसरे सप्ताह तक कर सकते हैं. इस की उन्नत प्रजातियों में आजाद मटर-3, काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय, काशी अगेती प्रमुख हैं. सितंबर का महीना फूलों की रोपाई और बोआई के लिहाज से सब से मुफीद माना जाता है.

इस महीने गेंदा, कैलनडुला, विगोनिया, गुलदाउदी, डहेलिया, स्वीट पी, सूरजमुखी, जिनिया, डोगपलावर, कार्नेशन, पोपी, लारकसपुर की रोपाई के लिए क्यारियों को अच्छी तरह से तैयार कर लें. इस महीने रजनीगंधा की कटाई कर के बाजार में समय से भेजते रहें. अगर किसान ने लीची के नए बाग लगाए हैं और एक साल के पौधे हो गए हैं, तो प्रति पौधा 5 किलोग्राम गोबर की या कंपोस्ट खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फास्फेट व 50 ग्राम पोटाश की मात्रा दें. इसी तरह 10 साल से ऊपर के पौधों के लिए 50 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फेट और 500 ग्राम पोटाश की मात्रा दें. अगर पौधों में जिंक की कमी दिखाई पड़ती है, तो जिंक सल्फेट का भी प्रयोग करें. जिन किसानों ने नर्सरी में पपीते के पौध तैयार किए हैं, उन की रोपाई इस महीने कर देनी चाहिए. इस के अलावा जिन किसानों ने केले के पौधों की रोपाई अभी तक नहीं की है, वे इस महीने रोपाई का काम पूरा कर लें. अमरूद के बागों में अगर तना भेदक कीटों का प्रकोप दिखाई पड़े, तो छेद को साफ कर के उस में पैट्रोल से भीगी हुई रूई भर दें. छेदों को चिकनी मिट्टी से भी बंद किया जा सकता है, ताकि कीट मर जाएं. अगर अंगूर की फसल में एंथ्रेक्नोज रोग का प्रकोप दिखाई पड़े, तो बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करें, वहीं चीकू के पौधों को दीमक से बचाने के लिए क्लोरोपाइरीफास 2 मिलीमीटर प्रति लिटर पानी में मिला कर पौधों पर छिड़काव करें. जो किसान आंवले के बाग अगस्त महीने के अंत तक न लगा पाए हों, वे सितंबर महीने के शुरुआती सप्ताह में पौधों की रोपाई का काम पूरा कर लें. आम के पौध की कटाईछंटाई का काम सितंबर महीने में पूरा करें और पेड़ों में जिंक की कमी दिखाई पड़ने पर जिंक की मात्रा अपने नजदीकी उद्यान विशेषज्ञ से संपर्क कर के दें,

वहीं कटहल के फलों की तुड़ाई का काम पूरा कर फलों को समय से मंडी में पहुंचाएं. जो किसान कटहल के पौध तैयार करना चाहते हैं, वह इसी महीने फलों से बीज निकाल कर पौधशाला में पौध तैयार करने के लिए डाल दें. अगर पौधों में मिलीबग कीट का प्रकोप दिखाई पड़े, तो पेड़ पर पौलीथिन लगाएं. लोकाट के नए बाग लगाने का काम सितंबर महीने के अंत तक जरूर पूरा कर लें. इस समय पुराने बागों के पौधे में फूल आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस दशा में किसी भी कीटनाशकों प्रयोग न करें. अगर नीबू या नीबूवर्गीय पौधे में कैंकर रोग का प्रकोप दिखाई पड़े, तो स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 250 मात्रा को 100 लिटर पानी में घोल कर साथ ही नीम की खली 5 किलोग्राम मात्रा को 100 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. जो किसान स्ट्राबेरी की खेती करते हैं,

वे सितंबर महीने से खेतों की तैयारी शुरू कर दें, जिस से अक्तूबर महीने के अंत तक पौधे की रोपाई के लिए खेत पूरी तरह से तैयार रहें. पशुपालक सितंबर महीने में बरसीम की बोआई कर दें, जिस से नवंबर महीने से मई महीने तक तकरीबन 6 कटाई में 300 से 350 क्विंटल चारा मिलता है. पशुपालक अपने पशुओं का टीका समय पर लगवाने की व्यवस्था करें. पशुओं को मुख्य रूप से जो टीका लगाया जाता है, उस में एचएस और बीक्यू का टीका, खुरपकामुंहपका की रोकथाम का टीका प्रमुख है. इस के अलावा नवजात बछड़ों को खीस जरूर दें. दूध निकालते समय साफसफाई का खास खयाल रखें. मुरगीपालक मुरगियों को कैल्शियम की आपूर्ति के लिए सीप का चूरा जरूर दें. साथ ही, पेट के कीड़ों को मारने की दवा दें. मुरगीखाने में 14 से 16 घंटे प्रकाश की व्यवस्था जरूर करें.

टीवी सीरियल‘‘ रक्षाबंधन ’’ फेम अभिनेत्री संचिता बनर्जी हिंदी फिल्मों में क्या नही करना चाहतीं

सिनेमा काफी विकसित हो गया है. अभिनय के कई माध्यम हो गए हैं. थिएटर,फिल्म व टीवी के बाद अब ओटीटी प्लेटफार्म व लघु फिल्में आदि आ गए हैं.लेकिन आज भी बौलीवुड में काम करने का अवसर पाना टेढ़ी खीर ही है. आज भी बौलीवुड में काॅस्टिंग काउच विद्यमान है. माना कि मूलतःकोलकाता निवासी अभिनेत्री संचित बनर्जी एक हिंदी फिल्म ‘रक्तधार’’के अलावा ‘निरहुआ हिंदुस्तानी 2’,‘क्रैकफाइटर’और ‘विवाह’जैसी तीन सफलतम भोजपुरी फिल्मों में अभिनय कर अपना एक अलग मुकाम बना चुकी हैं.और इन दिनों ‘दबंग’टीवी चैनल पर प्रसारित हो रहे नारी उत्थान की बात करने वाले सीरियल ‘‘रक्षाबंधनः रसाल बनी अपने भाई की ढाल’’मेंगंू गी फूली के किरदार में शोहरत बटोर रही हैं.

मगर  पहली हिंदी फिल्म ‘‘रक्तधार’’ में अभिनय करने का अवसर पाने से पहले उन्हे काफी संघर्ष करना पड़ा खुद संचिता बनर्जी बताती हैं-‘‘मुंबई आने से पहले मैं कोलकाता में माॅडलिंग की दुनिया में स्टार बन चुकी थी. मंुबई आने के बाद मैने किशोर नमित कपूर व अतुल माथुर से अभिनय की बारीकियंा भी सीखीं. फिर भी मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा.

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मुझे फिल्मों के आफर मिल रहे थे.मुझे कई बड़े बैनर की फिल्में भी मिली, लेकिन बीच के लोग फंसाते थे.वह कहते थे कि निर्देशक से मिलवा दूंगा, कुछ करो. अपने अभिनय करियर को संवारने के लिए किसी भी गंदी चीज से समझौता नहीं कर सकती थी. मैंने फिल्म निर्माण में पैसे लगाने,को आर्डीनेटर को फार्म भरकर दसबी सहजार रूपए देने से साफ इंकार कर दिया.

मैने किसी के साथ देर रात घूमने जाने से मना कर दिया.

क्योंकि मैं हर सफलता अपनी प्रतिभा के बल पर पाना चाहती थी और आज भी अपनी प्रतिभा के बल ही आगे बढ़ना चाहती हॅूं.मुझे हमेशा अपने टैलेंट पर भरोसा रहा.’’लेकिन पहली हिंदी फिल्म ‘रक्तधार’तो चार वर्ष पहले 2017 में प्रदर्शित हुई थी.

उसके बाद कोई हिंदी फिल्म नहीं की. जबकि भोजपुरी में सात फिल्में कर चुकी हैं.इस पर संचिता बनर्जी ने कहा-‘‘फिल्म‘रक्तधार’के बाद भी मुझे हिंदी फिल्मों के आफर मिले.मगर मैं उन फिल्मों का हिस्सा नही बन सकती ,जिन्हे मैं अपने पााप संग बैठकर न देख सकॅंू

.मैं बीयासी ग्रेड की फिल्मों का भी हिस्सा नही बनना चाहती.

मैं अच्छे कंटेंट वाली फिल्में ही करना पसंद करती हॅूं. मैं हिंदी फिल्मों में काम पानेके लिए फिल्म के निर्माण में पैसा नहीं लगा सकती.

किसी निर्देशक या कलाकार के साथ देर रात कहीं घूमने या चाय पीने नही जा सकती.

मुझे फिल्मी पार्टीयों में जाना भी पसंद नहीं.मैं पहले से ही कह देती हॅूं कि मैं बोल्ड दृश्य नही करने वाली. कहानी की माॅंग हो और उस दृश्य को बहुत ही खूबसूरती व कलात्मक ढंग से फिल्मा ना हो तो मैं कर सकती हॅं. मैं लव मे किंग सीन करने में सहज नही हॅूं.मैं चुंबन दृश्य करने में सहज नही हॅूं.’’

कपिल शर्मा शो में मामा Govinda से नहीं मिलना चाहते Krushna Abhishek , आखिर क्यों

द कपिल शर्मा  शो की एक बार फिर से धाकेदार वापसी पूरी टीम के साथ हो चुकी है,  ऐसे में शो में लगातार सेलिब्रिटी गेस्ट बनकर आ रहे हैं. अब खबर है कि जल्द ही इस शो में गोविंदा अपनी पत्नी सुनीता के साथ आने वाले हैं.

ऐसे खास मौके पर कृष्णा अभिषेक अपने मामा से सेट पर मिल नहीं पाएंगे, इसकी जानकारी उन्होंने खुद सोशल मीडिया के जरिए दिया है कि वह इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म में बहुत ज्यादा बिजी हैं, इसलिए वह कपिल शर्मा शो के लिए भी बहुत मुश्किल से वक्त निकल पा रहे हैं. यहीं वजह है जिस दिन मामा गोविंदा की शो में एंट्री है वह उस दिन सेट पर मौजूद नहीं  रहेंगे.

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जिसके बाद से लगातार लोग कई तरह के सवाल कृष्णा को लेकर कर रहे हैं जबकी वह अपने बिजी शेड्यूल की वजह से सेट पर मौजूद नहीं रहेंगे. इस बात का खुलासा उन्होंने खुद ही किया है.

इस बात से यह भी क्लियर हो जा रहा है कि लोग अपने दिमाग में मामा भांजे को लेकर गलतफहमी ना पाले, दोनों के बीच कुछ भी गड़बड़ नहीं हैं,

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इससे पहले इस शो में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी अपनी फिल्म शेरशाह के प्रोमोशन के लिए आए थें, जहां पर कपिल शर्मा ने हमेशा की तरह इनसे भी खूब सवाल किया, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद भी किया है. कपिल शर्मा के इस को देखना दर्शक काफी ज्यादा पसंद करते हैं. इनकी दोबारा वापसी से काफी लोगों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है.

Sidharth Shukla की मां को अकेला कहने वालों पर बुरी तरह भड़के विकास गुप्ता, कही ये बात

बिग बॉस 13 के विनर और लोकप्रिय एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला ने 2 सितंबर के दिन अंतिम सांस ली थी. जिस पर अभी कुछ लोगों को यकीन कर पाना मुश्किल लग रहा है. सिद्धार्थ शुक्ला का मंबई के ओशिवारा आश्रम में अंतिम संस्कार किया गया.

इस दौरान सिद्धार्थ शुक्ला के बेहद ही करीबी रहे विकास गुप्ता भी वहां मौजूद थें, ऐसे में उन्होंने परिवार को सपोर्ट भी किया.  वहीं विकास ने इस बात पर आलोचना भी कि जब शहनाज गिल को अंतिम संस्कार के समय ले जाया जा रहा था, तब मीडिया वाले लगातार चिल्ला- चिल्ला कर शहनाज गिल से सवाल पूछना चाह रहे थें, जबकि उस वक्त शहनाज गिल की हालात काफी खराब थी, उनके जुंबा पर एक ही शब्द था, सिद्धार्थ .

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ऐसे में अब विकास गुप्ता ने ऐसे हस्तियों पर निशाना साधा है जिन्होंने लगातार सिद्धार्थ शुक्ला की मां की मदद करने की इच्छा जताई, उनकी मां को अकेला बताया है. ऐसे लोगों को विकास गुप्ता ने कहा है कि जो भी सेलिब्रिटी और उनकी पीआर कंपनी सिद्धार्थ की मां को अकेला समझ रही है और उनकी मदद करना चाहती है तो वह ये न भूलें कि उनके पास दो बेटियां औऱ शहनाज गिल हैं अभी. वह जरुरत पड़ने पड़ लोगों को ध्यान रख सकती हैं.

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विकास के इस ट्विट को खूब पसंद किया जा रहा है, लोगों का कहना है कि विकास ने अच्छा कदम उठाया है. वहीं आगे विकास गुप्ता ने लिखा कि कभी कभी कुछ सही के लिए नहीं होता है ऐसे में सिद्धार्थ का यूं चले जाना सही नहीं हुआ, हमें उनके परिवार की मजबूत औऱ हिम्मत के लिए प्रार्थना करना चाहिए.

प्रमुख कीट तना बेधक

प्रमुख रूप से पीला तना बेधक आक्रमण करता है. इस कीट के प्रौढ़ लंबे, पीले या सफेद रंग होते हैं. कीट की सूंडि़यां पीले या मटमैले रंग की होती हैं, जो तने को छेद कर अंदर ही अंदर खाती रहती हैं. इस के प्रकोप से पौधे का मध्य तना सूख जाता है, जिसे ‘मृत गोभ’ कहते हैं. बाद के आक्रमण से धान की बाली बिना दाने वाली निकलती हैं. बाली वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियां सूख कर सफेद हो जाती हैं और दाने नहीं बनते हैं. ऐसी बालियां ऊपर से खींचने पर आसानी से खिंच जाती हैं, जिसे ‘सफेद बाली’ कहते हैं.

इस कीट का आर्थिक हानि स्तर 5-10 फीसदी मृत केंद्र या सफेद बाली प्रति वर्गमीटर आंकी गई है. प्रबंधन * पौध की 1.5-2.0 इंच ऊपरी पत्तियों को काट कर रोपाई करें, जिस से कीट द्वारा दिए गए अंडे नष्ट हो जाते हैं. * फसल पर तना बेधक और पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप होने पर ट्राइकोग्रामा जपोनिकम नामक परजीवी (ट्राइकोकार्ड) के 1.0-1.5 लाख अंडे प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.

* तना बेधक कीट के लिए प्रतिरोधक प्रजातियों जैसे: रत्ना, पंत धान-6, सुधा, वीएल-206 को उगाएं. * 5 फीसदी नीम के तेल का छिड़काव करना चाहिए.

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* खेत में 20 गंध पास प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट किया जा सकता है.

* 5 फीसदी सूखी बालियां दिखाई देने पर कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 फीसदी दानेदार दवा 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर पानी लगा दें या फिब्रोनिल 5 फीसदी एससी की 400-600 मिलीलिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी के साथ सरफेक्टेंट 500 मिलीलिटर घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. पत्ती लपेटक इस का प्रकोप अगस्तसितंबर माह में अधिक होता है. इस कीट के कारण खेत में मुड़ी हुई, बेलनाकार पत्तियां दिखाई देने लगती हैं जिन के अंदर सूंड़ी पत्ती के हरे भाग को खाती रहती हैं. प्रभावित खेत में धान की पत्तियां सफेद और झुलसी हुई दिखाई देती हैं. कीट की इल्लियां (सूंड़ी) अंडों से निकलने के कुछ समय बाद इधरउधर विचरण कर अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बना कर पत्ती के किनारों को मोड़ लेती हैं और वहां रहते हुए पत्ती को खुरचखुरच कर खाती रहती हैं. कीट के पनपने के लिए तापमान 25-30 डिगरी सैल्सियस और हवा में नमी 83-90 फीसदी उपयुक्त दशा है.

* खेत में जगहजगह प्रकाश प्रपंच लगा कर वयस्क कीटों को एकत्र कर नष्ट कर दें.

* 2 ट्राइकोकार्ड्स प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 दिन के अंतराल पर 4-5 बार खेत में जगहजगह पर समान दूरी पर लगाएं.

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* अधिक प्रकोप होने की दशा में एसीफेंट 50 एसपी की 700 ग्राम या फिप्रोनिल 5 एसपी की 600 मिलीलिटर या ट्राइजोफास 40 ईसी 400 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. दीमक दीमक लगभग सभी फसलों में नुकसान पहुंचाता है. दीमक के परिवार में राजा, रानी श्रमिक व सैनिक सहित चार सदस्य मौजूद रहते हैं. परिवार में रानी की संख्या केवल एक होती है, जो बच्चे देने का काम करती है. दीमक का प्रकोप बलुई मिट्टी वाले और असिंचित क्षेत्रों में अधिक होता है. दीमक उन सभी चीजों को आमतौर नुकसान पहुंचाता है, जिन में सेल्यूलोज पाया जाता है. ये जड़ और तने को खा कर सुखा देते हैं. इस तरह के सूखे हुए पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सकता है.

प्रबंधन

* गरमी में एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे, जिस से हानिकारक कवक, जीवाणु, कटुआ कीट की सूंडि़यां और सभी प्यूपे व अन्य कीटों की विभिन्न अवस्थाएं, जो जमीन के अंदर सुषुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं, जमीन के ऊपर आने से तेज धूप की गरमी के कारण और चिडि़यों के द्वारा नष्ट कर दी जाती हैं.

* कच्चे गोबर को खेत में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इस से दीमक का प्रकोप अधिक बढ़ता है.

* सिंचाई की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए.

* दीमक के घरों को नष्ट कर रानी को मार देना चाहिए.

* ब्यूवेरिया बेसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 30 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला दें.

* खड़ी फसल में अधिक प्रकोप होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 2-3 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-20 किलोग्राम बालू में मिला कर उचित नमी पर सायंकाल में बुरकाव करें. धान के फुदके धान में अकसर 2 तरह के फुदके ज्यादा आक्रमण करते हैं.

पहला उजली पीठ वाला फुदका (डब्ल्यूबीपीएच) और दूसरा भूरा फुदका (बीपीएच). भूरे फुदके के प्रौढ़ भूरे रंग के होते हैं, जिन की लंबाई तकरीबन 3.5-4.5 मिलीमीटर तक होती है. इस कीट के नन्हे फुदके और प्रौढ़ दोनों ही पौधों की कोशिकाओं का रस चूसते हैं, जिस से पौधा पीला पड़ जाता है. इस के अधिक आक्रमण की दशा में फुदका झुलसा या हार्पर बर्न जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. शुरुआत में ये फसल के किसी एक स्थान से शुरू हो कर पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस के अलावा ये कीटग्रासी स्टंट नाम के विषाणु रोग को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

प्रबंधन

* लीफ हापर और प्लांट हापर के नियंत्रण में लाइकोसा प्रजाति की मकड़ी अधिक कारगर होती है. इसलिए खेत में मकड़ी की संख्या बढ़ाने के लिए मेंड़ पर जगहजगह धान की पुआल के गट्ठर डाल देने चाहिए. इस तकनीक का उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया, जिस से कीट व रोगनाशी रसायनों के प्रयोग तथा लागत में कमी आई और उपज में वृद्धि हुई.

* कीट का प्रकोप होने की दशा में यूरिया का खड़ी फसल में छिड़काव बंद कर दें.

* फसल में मित्र कीटों और मकडि़यों का संरक्षण करना चाहिए.

* कीटों का अधिक प्रकोप होने पर थायोमेथोक्जाम 300 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर दवा का प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. धान का हिस्पा यह काले रंग का कीट होता है. इस के शरीर पर छोटछोटे कांटेनुमा रोएं होते हैं. इस की लंबाई 5 मिलीमीटर तक होती है. इस के गिडार और वयस्क दोनों पत्तियों को खुरच कर उस के हरे भाग को खाते हैं, जिस से पत्तियां सूख जाती हैं.

प्रबंधन

* रोपाई के पहले पौध के शिरों को थोड़ा काट दें. उस के बाद रोपाई करें.

* झुंड में 1-2 कीट प्रति झुंड दिखाई देने पर फ्रिवोनिल 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से या मैथोमिल 2.0 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. गंधी बग इस का वयस्क लगभग 15 मिमी. लंबा और हरेभूरे से गहरे भूरे रंग का होता है. इस कीट की पहचान इस से आने वाली दुर्गंध द्वारा आसानी से की जा सकती है. इस कीट के नवजात और प्रौढ़ दोनों ही दुग्धावस्था में बालियों से दूध को चूसते रहते हैं, जिस से बालियों में दाने नहीं बन पाते हैं. रस चूसने वाले बिंदु पर दानों में भूरा दाग बन जाता है और दाने खोखले रह जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए खेतों के किनारों से खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए, क्योंकि ये कीट इन पर पलते हैं और दूधिया दाने बनने की अवस्था में ही फसल पर आक्रमण करते हैं.

प्रबंधन

* खेत की मेंड़ों पर उगी हुई घासों की सफाई करें.

* 5 फीसदी नीम के सत का खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए.

* कीट का प्रकोप 1 बग/ झुंड से अधिक होने पर इमिडाक्लोप्रिड 300 मिलीलिटर मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

धान की रोपाई में काफी लागत और मजदूरों की कमी के चलते किसानों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फायदा कम ले पाते हैं. लागत कम करने के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग काफी उपयोगी है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रो.

रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि धान की सीधी बोआई वाली एक मशीन वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है, जिसे पैडी ड्रम सीडर कहते हैं. प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि जो किसान किसी वजह से धान की नर्सरी नहीं डाल पाए हैं, वे धान की कम अवधि की प्रजाति की बोआई सीधे ड्रम सीडर से कर सकते हैं. यह बहुत ही सस्ती और आसान तकनीक है. इस की बनावट बिलकुल आसान है. उन्होंने कहा कि यह मशीन मानवचालित है.

6 किलोग्राम वजन व 170 सैंटीमीटर लंबी यह मशीन है. बीज भरने के लिए 4 से 6 प्लास्टिक के खोखले ड्रम लगे रहते हैं, जो एक बेलन पर बंधे रहते हैं. ड्रम में 2 पंक्तियों पर 9 मिलीमीटर व्यास के छेद बने होते हैं. ड्रम की एक परिधि में बराबर की दूरी पर कुल 15 छेद होते हैं. 50 फीसदी छेद बंद रहते हैं. बीज का गिराव गुरुत्वाकर्षण के कारण इन्हीं छेदों के द्वारा होता है. बेलन के दोनों किनारों पर पहिए लगे होते हैं.

इन का व्यास 60 सैंटीमीटर होता है, ताकि ड्रम पर्याप्त ऊंचाई पर रहे. मशीन को खींचने के लिए एक हत्था लगा रहता है. आधे छेद बंद रहने पर मशीन द्वारा सूखा बीज दर 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता है. पूरे छेद खुले होने पर 55 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. प्रत्येक ड्रम के लिए अलगअलग ढक्कन बना होता है, जिस में बीज भरा जाता है.

मशीन में पूर्व अंकुरित धान का बीज प्रयोग में लाते हैं. बोआई के समय लेव लगे हुए समतल खेत में 2 से 2.5 इंच पानी होना आवश्यक है. एक दिन में ड्रम सीडर से 1 से 1.40 हेक्टेयर खेत में बोआई की जाती है. ड्रम सीडर की उपयोगिता धान की रोपाई न करने से बढ़ जाती है. इस में नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

20 सैंटीमीटर की दूरी पर पंक्तिबद्ध बीज का जमाव होता है, जिस से फसल का विकास अच्छा होता है और निराई व अन्य क्रियाओं में सुगमता होती है. वहीं फसल सुरक्षा पर कम खर्च आता है. फसल 10 से 15 दिन पहले पक जाती है, जिस से अगली फसल गेहूं की बोआई समय पर संभव होती है और उस का उत्पादन अच्छा मिलता है. पहली सिंचाई 3-4 दिन बाद हलकी व धीरेधीरे शाम के समय करें.

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