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मैं इस रिश्ते से खुश नहीं हूं, क्या मेरी जिंदगी ऐसी ही चलेगी कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?

सवाल

मैं 35 वर्षीया विवाहित महिला हूं. मेरे 2 बच्चे हैं, बेटी 14 वर्ष की और बेटा 7 वर्ष का है. पति की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी है. वे अच्छा कमाते हैं परंतु कंजूस हैं. बच्चों को कहीं खाना खिलाने या घुमाने नहीं ले जाते, कहीं खिलाने का प्लान बने भी तो घर पर ही उन्हें सब खिला कर ले कर जाते हैं ताकि बाहर जाएं तो पेट भरा होने पर कुछ खाएं नहीं.

दिक्कत यह है कि मेरे साथ उन का बरताव ऐसा है कि वे मेरी और बच्चों की जरूरतें पूरी कर रहे हैं. लेकिन पतिपत्नी का जो रिश्ता होना चाहिए, इमोशनल और समझदारी का, वह हमारा नहीं है. मैं इस रिश्ते से खुश नहीं हूं. क्या मेरी जिंदगी ऐसी ही चलेगी. कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?

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जवाब

35 वर्ष की उम्र समझौता कर जीने के लिए बहुत छोटी है. आप के सामने आप के बच्चे हैं जिन के प्रति आप की कुछ जिम्मेदारियां हैं. आप पहले पूरी ईमानदारी से इन जिम्मेदारियों को निभाएं. आप का कहना है कि बच्चों की जरूरतें और आप की जरूरतें वे पूरी कर रहे हैं. यह अच्छी बात है. पर आप दोनों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं, इस का कारण जानने की कोशिश करें. हमेशा पत्नी ही सही हो, जरूरी नहीं. आप पहले अपनी कमियों को ढूंढ़ने का प्रयास करें कि आखिर क्यों वे आप से कटेकटे रहते हैं. खुशनुमा माहौल रखने के लिए आप को उन्हें खुश रखना पड़ेगा. घर में भी आप बनठन कर रहें. कभीकभी पति को छेड़ें और सैक्स में अरुचि न दिखाएं.

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उन के मतलब की बातचीत करतेकरते आप अपनी समस्या को उन के सामने रखें और बातों को सीरियस न बनाएं. उन्हें प्यार से समझाने का प्रयास करें. उन्हें बताएं कि इस का असर बच्चों पर पड़ सकता है. आप की समस्या का समाधान आपसी बातचीत से ही हो सकता है. वैसे कंजूसी बुरी आदत नहीं, फुजूलखर्ची है. कंजूस तो पैसा अपने बच्चों के लिए जोड़ कर जाता है जिस पर बाद में बच्चे गर्व करते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

पैरों के दर्द से आखिर कैसे पाएं छुटकारा, जानें यहां

आप ने अकसर अपने मित्रों, पड़ोसियों व रिश्तेदारों को पैरों में दर्द होने की शिकायत करते सुना होगा. कुछ लोगों के पैरों में दर्द चलने से शुरू हो जाता है. जब वे चलना बंद कर देते हैं तो विश्रामावस्था में पैरों से दर्द गायब हो जाता है और दोबारा चलने से फिर वही दर्द उभरता है. कभीकभी बुजुर्ग लोग अकसर पैरों में दर्द होने की शिकायत करते हैं.

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन के पैरों में दर्द चलने से कम हो जाता है पर लेटने पर दर्द की तीव्रता बढ़ जाती है. अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं या धूम्रपान, सिगरेट, बीड़ी व हुक्का के आदी हैं या फिर तंबाकू और उस से बने पदार्थों जैसे जर्दायुक्त पान मसाला, खैनी, चैनी, मैनपुरी या जाफरानी पत्ती के आदी हैं और साथ ही साथ पैरों में दर्द को ले कर परेशान हैं तो होशियार हो जाइए, वरना देरसवेर पैर गंवाने पड़ सकते हैं.

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अकसर लोगों को यह भ्रम रहता है कि मधुमेह का पैरों से कोई संबंध नहीं है, मधुमेह का रोग सिर्फ हृदय से संबंधित है. उसी तरह से धूम्रपान के आदी लोग यह  समझते हैं कि धूम्रपान से सिर्फ फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है और कैंसर हो सकता है. पर लोग यह नहीं जानते कि धूम्रपान के आदी व तंबाकू के व्यसनी लोगों में पैरों में गैंगरीन होने का खतरा हमेशा मंडराता रहता है. डायबिटीज का मरीज अगर धूम्रपान भी करता है या तंबाकू का सेवन करता है तो वह वही कहावत हो गई, ‘करेला वो भी नीम चढ़ा.’ मधुमेह व धूम्रपान दोनों मिल कर पैरों का सत्यानाश कर देते हैं. इसलिए, टांगों व पैरों को स्वस्थ व क्रियाशील रखने के लिए इन दोनों पर अंकुश रखना अत्यंत आवश्यक है.

पैरों में दर्द क्यों

अपने देश में पैरों में दर्द होने का सब से बड़ा कारण टांगों की रक्त धमनियों की बीमारी है. ये रक्त धमनियां पैरों को औक्सीजनयुक्त शुद्ध खून की सप्लाई करती हैं जिस से पैर अपना कार्य सुचारु रूप से कर सकें और आवश्यकता पड़ने पर शुद्ध खून की ज्यादा मात्रा पैरों को उपलब्ध करा सकें. पर जब ये रक्त धमनियां किसी वजह से शुद्घ रक्त की आवश्यक मात्रा टांगों को नहीं पहुंचा पाती हैं तो टांगों में चलने से दर्द शुरू हो जाता है, क्योंकि चलने से या पैरों का व्यायाम करने से शुद्ध औक्सीजन की मांग अचानक बढ़ जाती है जो रुग्ण धमनी पूरा नहीं कर पाती है.

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डायबिटीज व धूम्रपान टांगों में दर्द के बड़े कारण

पैरों की रक्त धमनी के ठीक से काम न करने के कई कारण होते हैं, जैसे मधुमेह रोग जिस में रक्त धमनी की दीवारों पर लगातार चरबी व कैल्शियम जमा होने लगता है जिस से रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है. रक्त धमनी के बीमार होने का दूसरा कारण धूम्रपान व तंबाकू का सेवन है. तंबाकू में एक रासायनिक तत्त्व निकोटिन पाया जाता है जो धमनी की छोटीछोटी शाखाओं में सिकुड़न ला देता है और पैर को जाने वाले रक्त प्रवाह को काफी हद तक कम कर देता है. अगर डायबिटीज व धूम्रपान के मरीज को पैर में दर्द होना शुरू हो जाए तो बिना किसी देरी के वैस्क्युलर का कार्डियो वैस्क्युलर विशेषज्ञ से परामर्श लें और रक्त धमनी की जांच करवाएं.

वेन्स का रोग भी पैरों में दर्द का कारण

पैरों में दर्द उभरने का दूसरा मुख्य कारण वेन्स यानी शिरा का रोग है. जब टांगों को रक्त धमनियों द्वारा पहुंचाया गया शुद्ध खून औक्सीजन देने के बाद अशुद्घ हो जाता है तो यही वेन्स दोबारा से उस अशुद्ध खून को फेफड़े तक पहुंचाने का काम करती हैं या फिर दूसरे शब्दों में कहें तो पैरों में ड्रैनेज सिस्टम का निर्माण करती हैं.

जब किसी वजह से ये वेन्स खून को टांगों से ऊपर फेफड़े की तरफ नहीं पहुंचा पाती हैं तो ये अशुद्ध खून टांगों व पैरों में इकट्ठा होना शुरू हो जाता है और जब इन शिराओं के रोग से पीडि़त मरीज चलता है तो इकट्ठे हुए अशुद्ध खून की मात्रा और बढ़ जाने की वजह से पैरों में दर्द व थकान शुरू हो जाती है. इन शिराओं के रोगों में सब से बड़ा कारण सीवीआई यानी क्रोनिक वेन्स इन्सफीशिएंसी का रोग है. इस रोग में अशुद्ध खून ऊपर की ओर चढ़ता तो है लेकिन शिराओं के अंदर स्थित कपाटों के कमजोर होने की वजह से चढ़े हुए खून की कुछ मात्रा फिर से नीचे आ जाती है और यही कारण है कि इकट्ठे हुए अशुद्ध खून की मात्रा बढ़ जाने का.

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वेरिकोस वेन्स भी पैरों में दर्द पैदा कर सकती हैं

पैरों में दर्द होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण टांगों की वेरिकोस वेन्स हैं. वेरिकोस वेन्स आज के आधुनिक युग में टांगों पर कहर बरपा रही हैं. जैसेजैसे विलासिता और आरामतलबी के नएनए रास्ते ढूंढ़े जा रहे हैं. वैसेवैसे टांगों में वेरिकोस वेन्स विविध रूपों में प्रकट हो रही हैं. इस की शुरुआत नीले रंग वाली मकड़ी के जालेनुमा रूप में शुरू होती है. ये मकड़ी के जाले शुरुआती दिनों में जांघ पर या घुटने के पीछे पाए जाते हैं. अगर समय पर सावधानी न बरती गई तो उचित परामर्श के अभाव में ये विकराल रूप धारण कर लेती हैं और अंत में इस की परिणति टांगों में गहरे काले निशान व लाइलाज घाव के रूप में होती है. अगर ज्यादा देर बैठने से पैर दर्द व भारीपन महसूस होने लगता है और पैरों में नीले रंग की नसें दिखने लगें तो तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श ले लें.

शिराओं में खून का जमाव

पैरों में दर्द होने का तीसरा कारण शिराओं यानी वेन्स के अंदर खून के कतरे जमा हो जाना है, जिस की वजह से शिराओं का काफी हिस्सा पूरी तरह से बंद हो जाता है, रक्त के ऊपर चढ़ने की क्रिया बाधित हो जाती है. भारतीयों में लापरवाही की वजह से ये खून के कतरे स्थायी रूप से शिराओं में अपना डेरा बना लेते हैं और पैरों में बराबर दर्द बना रहता है. ऐसी परिस्थितियों में टांगों व पैरों में दर्द तो बना ही रहता है, साथसाथ टांगों व पैरों में सूजन भी आ जाती है. इसलिए टांगों के दर्द से पीडि़त मरीज हाथ पर हाथ धर कर न बैठें और समय रहते किसी जनरल सर्जन या हड्डी विशेषज्ञ के बजाय किसी वैस्क्युलर व कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन को दिखाएं.

कभीकभी वृद्धावस्था में पैरों की मांसपेशियों में अकड़न यानी क्रैम्स होते हैं जो विशेषतया रात के समय उभरते हैं और टांगों में दर्द होता है. कभीकभी घुटने में औस्टियो आर्थ्राइटिस या घुटने की झिल्ली में सूजन यानी साइनोवाइटिस की वजह से भी चलने में टांगों में दर्द होता है.

टांगों में दर्द होने पर कहां जाएं

टांगों में दर्द होने पर किसी जनरल सर्जन या हड्डी विशेषज्ञ के बजाय किसी वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लें और उन की निगरानी में रक्त धमनियों या शिराओं की जांच कराएं. इन की जांचों के लिए डौपलर स्टडी, एमआर वीनोग्राम, एमआरआर्टिरियोग्राफी व एंजियोग्राफी, डिजिटल सब्ट्रैक्शन एंजियोग्राफी की जरूरत पड़ती है. इसलिए ऐसे किसी अस्पताल में जाएं जहां किसी वैस्क्युलर सर्जन की चौबीसों घंटे उपलब्धता हो व इन सब जांचों की सुविधा हो, क्योंकि इन सब जांचों के आधार पर ही इलाज की सही दिशा तय होती है.

पैरों में दर्द के लिए अगर रुग्ण धमनियां जिम्मेदार हैं तो पैरों में रक्त प्रवाह को फिर बहाल करने के लिए कई सारी विधाओं का सहारा लेना पड़ता है, जैसे धमनी पुनर्निर्माण, धमनी बाईपास व एंजियोप्लास्टी, स्टेटिंग. अगर टांग में दर्द का कारण शिराओं का रोग है तो वौल्व पुनर्निर्माण, धमनी बाईपास व एंजियोप्लास्टी, स्टेटिंग. अगर टांग में दर्द का कारण शिराओं का रोग है तो वौल्व पुनर्निर्माण व वेन्स बाईपास सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. शिराओं के रोग में ज्यादातर मामलों में अन्य तरकीबें, जैसे क्रमित दबाव जुराबें, न्यूमेटिक कौंप्रैशन डिवाइस व कुछ विशेष व्यायाम व आसन लाभदायक होते हैं.

नजरिया – भाग 3 : यशस्वी हर रिश्ते के लिए इंकार क्यों करती थी

दोनों के बीच बहुत अच्छी सूझबूझ थी. आज दोपहर में राम लाल को देख कर मैडम ने पूछा, “कैसे हो राम लाल?“ “ठीक हूं मैडम. “ “बेटी के रिश्ते की बात कहीं पक्की हुई? तुम कह रहे थे कि एक हफ्ते बाद बताऊंगा. पर, तुम तो जल्दी चले आए.“

“काम जल्दी हो गया था. मैं लड़के वालों से मिल कर आ गया हूं. वे लोग बहुत अच्छे हैं. उन्होंने शादी में किसी चीज की मांग नहीं रखी. बस शादी का इंतजाम ठीक  चाहते हैं.“ “यह तो बहुत अच्छी बात है. बेटी की शादी कर के तुम भी गंगा नहा जाओगे.“

“आप की नजर रही तो वह भी ठीक से निबट जाएगी.“ “शादी के लिए तुम्हें रुपयों की जरूरत होगी.“ “जी मैडम. मैं उसी के लिए आप के पास आया हूं. वह चट मंगनी और पट ब्याह चाहते हैं. उन की हैसियत  के अनुसार शादी करने के लिए मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है.“

“उस की तुम चिंता न करना. अभी दे दूं 5 लाख रुपए.“ “आप से आश्वासन मिल गया तो मैं कल ही उन से रिश्ता पक्का करने की बात कह देता हूं. रुपयों की वजह से मैं उन्हें तारीख नहीं दे पाया था. मैं रुपए कुछ दिन बाद ले लूंगा.“

“अच्छे काम में देरी नहीं करनी चाहिए. और भी जरूरत पड़े तो बेहिचक कहना. तुम्हारी बेटी हमारी बेटी समान है.“ रुपयों की व्यवस्था हो जाने पर राम लाल खुशीखुशी घर लौट आया था. मैडम ने हमेशा की तरह इस बार भी मदद के लिए हाथ बढ़ा दिया था. घर आ कर राम लाल आराम से कुरसी पर पसर गया.

“कब बुला रहे हो उन्हें?“ “कल फोन पर बात कर लूंगा. अब देर किस बात की. वे जब चाहें तब शादी की तारीख निश्चित कर सकते हैं. बस एक बार यशस्वी लड़के से मिल ले. कहीं उस ने लड़के में फिर कोई कमी निकाल दी, तो मुश्किल हो जाएगी.“

“मैं उसे समझा दूंगी. तुम चिंता मत करो. वह ऐसा कुछ नहीं करेगी. जब घरबार, लड़का सबकुछ अच्छा है तो भला वह क्यों इनकार करेगी. उसे और क्या चाहिए? “हमारा घर भी तो मामूली  ही है. वे लोग इतने अच्छे हैं. वहां उसे किसी चीज की कमी नहीं होगी,“ रमा बोली.

शाम को यशस्वी काम से आने के बाद अम्मां के साथ किचन में हाथ बंटा रही थी. रमा ने बात छेड़ी, “तुम्हें देखने के लिए लड़के वाले बहुत जल्दी आने वाले हैं.“ “कब…?“ यशस्वी ने घबरा कर पूछा.

“एक हफ्ते बाद. इस बार जतिन में कोई कमी मत निकाल देना. हमारे देखने से सबकुछ बहुत अच्छा है और मुझे उम्मीद है कि तुम्हें भी वह पसंद आएगा. “अपने बाबूजी की उम्र का खयाल रखना. इस उम्र में भी उन्होंने आज तक तुम्हारी इच्छा की खातिर कितने लड़के देखे हैं, फिर भी कभी हार नहीं मानी. तुम भी उन का मान रख लेना.“

“अम्मां, तुम ठीक कहती हो. मुझे लड़का पसंद आ जाएगा, तो फिर एतराज वाली कोई बात ही न रहेगी. उसे भी तो मैं पसंद आनी चाहिए.“ “तुम दोनों एकदूसरे से बातचीत कर के अपना मन  बना लेना. हम चाहते हैं कि तुम्हारी शादी जल्दी से जल्दी हो जाए.“ “जी,“ कह कर यशस्वी ने बात वहीं खत्म कर दी और रोटी बनाने में बिजी हो गई.

राम लाल ने दूसरे दिन ही उन्हें फोन कर रविवार के दिन देहरादून आने का निमंत्रण दे दिया. अपनी ओर से उस ने एक अच्छे होटल में उन के ठहरने और फंक्शन का सारा इंतजाम कर दिया था. रविवार को दोनों परिवार एकदूसरे से अच्छे से मिले. राम लाल ने परिवार के सदस्यों के अलावा किसी और को नहीं बुलाया था. लड़की की ओर से कुल 10 लोग आए थे. जतिन और यशस्वी ने एकदूसरे से काफी देर बात की. इस बार वह जतिन में कोई कमी न निकाल सकी और उस ने  शादी की स्वीकृति दे दी.

लड़के और लड़की की सहमति पर दोनों पक्षों में तुरंत रोका कर एक महीने बाद शादी की तारीख निश्चित कर दी. दोनों ही पक्ष एकदूसरे से मिल कर बहुत खुश थे. यशस्वी के दोनों भाइयों रवि और विशाल को भी जतिन बहुत पसंद आया था. ऐसे परिवार की तो वे कल्पना ही करते थे जैसा परिवार राम लाल ने अपनी बेटी यशस्वी के लिए चुना था.

शाम को वे सब रामलाल का घर देखने भी आए थे. घर छोटा, लेकिन व्यवस्थित था. एक रात होटल में रह कर वे दूसरे दिन वापस लौट गए थे. पंडितजी ने विधिविधान से रोके की रस्म पूरी कर दी थी. पंडितजी ने राम लाल को सलाह दी, “अगले महीने बिटिया की शादी का मुहूर्त है. यह समय उस के लिए भारी है. अब तुम्हें बिटिया को घर पर ही रहने की सलाह देनी होगी.“

“आप ठीक कहते हैं पंडितजी. मैं उसे नौकरी छोड़ने के लिए कह दूंगा,“ राम लाल हाथ जोड़ कर बोले. उन के लिए पंडितजी की कही बात पत्थर की लकीर होती. राम लाल उसी दिन से शादी की तैयारी में लग गए. उस ने सब से पहले वेडिंग प्वाइंट बुक किया और उस के बाद हलवाई से बात कर उसे बयाना दे दिया. बाकी और भी काम निबटा कर राम लाल घर की सफाई में जुट गए. समय कम था और काम ज्यादा. बेटी की शादी राम लाल को नई ऊर्जा दे रही थी. वे सब पूरे मनोयोग से इसी तैयारी में लगे हुए थे.

इफको फूलपुर: किसानों के स्वामित्व वाला एक संगठन

भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी उर्वरक निर्माण में इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) अग्रणी है. भारत में यूरिया और फास्फेटिक उर्वरकों के निर्माण में इस के 5 संयंत्र लगे हुए हैं. इफको भारत में लगभग 32 फीसदी फास्फेटिक और 21 फीसदी नाइट्रोजन उर्वरकों की मांग में अपना योगदान देता है. चूंकि कोविड-19 पूरी दुनिया में खाद्य सुरक्षा को चुनौती दे रहा है, इसलिए इफको ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए इस अवधि के दौरान इस के संयंत्र पूरी तरह से चालू रहें.

इफको ने अपने कर्मचारियों को सैनिटाइजर, साबुन और मास्क की नियमित आपूर्ति प्रदान की है और अपनी सभी विनिर्माण इकाइयों, बिक्री बिंदुओं, गोदामों और सोसाइटियों में सामाजिक दूरी को लागू किया है. इस के अलावा इफको, फूलपुर ने स्थानीय प्रशासन की मदद से कर्मचारियों और ठेके पर काम करने वालों के लिए टाउनशिप में टीकाकरण शिविरों का आयोजन किया है. इफको के प्रबंध निदेशक डा. यूएस अवस्थी ने हमेशा समुदाय के कल्याण के लिए अधिकतम संभव सीमा तक योगदान दिया है और उसी भावना के साथ उन्होंने अपनी परिचालन इकाइयों में 4 औक्सीजन संयंत्र लगाने का फैसला किया है.

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इफको, फूलपुर में औक्सीजन संयंत्र का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है और बहुत जल्द इसे चालू कर दिया जाएगा. पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बावजूद फूलपुर संयंत्र सावधानीपूर्वक योजना के साथ चालू था और इस इकाई ने लगभग 17.70 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन और प्रेषण किया है. फूलपुर-1 और फूलपूर-2 दोनों इकाइयों में वार्षिक टर्नअराउंड मार्च/अप्रैल 2021 के महीनों में पूरा कर लिया गया है और चालू वित्त वर्ष में अब तक 4.53 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन कर चुका है. साल 1981 में अपनी स्थापना के बाद से इफको की फूलपुर इकाई ने 456 लाख मीट्रिक टन से अधिक यूरिया उर्वरक का उत्पादन किया?है. इफको, फूलपुर यूनिट ने उत्पादन, ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा के क्षेत्र में हर साल विभिन्न संस्थानों से कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते हैं. 2020-21 में निम्नलिखित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं:

* ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई), विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार 2020 में प्रथम पुरस्कार.

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* नाइट्रोजन उर्वरक श्रेणी में एफएआई सर्वश्रेष्ठ उत्पादन प्रदर्शन पुरस्कार 2020 के लिए उपविजेता ट्रौफी. * भारतीय उद्योग परिसंघ यानी सीआईआई, हैदराबाद द्वारा क्रमश: फूलपुर-1 और फूलपुर-2 के लिए ‘उत्कृष्ट ऊर्जा कुशल इकाई’ और ‘ऊर्जा कुशल इकाई’ पुरस्कार.

* ग्रीनटेक फाउंडेशन द्वारा ‘ग्रीनटेक पर्यावरण पुरस्कार 2020’ और ‘ग्रीनटेक सुरक्षा पुरस्कार 2020’ के विजेता. इफको की फूलपुर इकाई ने 1385 किलोवाट की क्षमता वाला सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया?है, जिस का वातावरण में कार्बनडाईऔक्साइड उत्सर्जन में कमी पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है. अप्रैलजुलाई 2021 की अवधि के दौरान कुल सौर ऊर्जा उत्पादन 6.44 लाख ्यङ्खद्ध यूनिट है, जो 450.8 टन ष्टहृ२ उत्सर्जन में कमी के बराबर है. इफको, फूलपुर इकाई यूरिया उत्पादन के अलावा सहकारी ग्रामीण विकास ट्रस्ट (कार्डेट) के माध्यम से कृषक समुदाय की सेवाओं में लगी हुई है जिस में उस ने मोतीलाल नेहरू किसान प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की है,

जो उन्नत कृषि पद्धतियों के क्षेत्र में किसानों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित कर रहा है. कृषि विस्तार कार्यक्रम जैसे, संतुलित उर्वरक कार्यक्रम, मृदा परीक्षण और बीज उपचार, पशु चिकित्सा जांच शिविर, पशुपालन और मछलीपालन अभियान भी आयोजित किए जाते हैं और किसानों को अपनी उत्पादकता और सामाजिकआर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए नई कृषि तकनीकों को सीखने और लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

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कार्डेट जैव उर्वरक का तरल रूपों में भी उत्पादन करता है, जो पूरे देश में बेचे जाते हैं. स्थानीय किसानों को लाभ देने के क्रम में कार्डेट आसपास के किसानों से नीम के बीज खरीद रहा?है और इफको द्वारा नीम कोटिंग यूरिया के उत्पादन के लिए नीम के तेल का उत्पादन कर रहा है. इफको, फूलपुर इकाई एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आईआरडीपी), महिला चेतना क्लब और ओम कल्याण समिति के माध्यम से आसपास के गांवों और स्कूलों में विभिन्न सामुदायिक विकास कार्यक्रम/कल्याण कार्यक्रम चला रही है.

इन कार्यक्रमों में स्वच्छता सुविधाओं की स्थापना, हैंडपंप की स्थापना, कंबल/शौल का वितरण, मुफ्त स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन, स्कूल वरदी का वितरण, कक्षाओं का निर्माण, युवाओं को कारीगर प्रशिक्षण आदि शामिल हैं. इस महामारी के समय में इफको फूलपुर इकाई आगे आई और आसपास के ग्रामीणों और प्रवासी मजदूरों को भोजन के पैकेट, सैनिटाइजर और फेस मास्क के वितरण जैसी सभी सहायता प्रदान की.

एक संगठन, जो किसानों के स्वामित्व में है, विशेष रूप से अच्छी गुणवत्ता वाले उर्वरकों का उत्पादन कर के, कृषि उत्पादन बढ़ाने और सुरक्षित, स्वस्थ और पर्यावरण के अनुकूल वातावरण बनाने के लिए सेवाएं प्रदान कर के राष्ट्र और किसानों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है. किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से इफको पिछले 5 दशकों से लगातार किसानों की बेहतरी की दिशा में काम कर रहा है.

बेहद काम के हैं खुश रहने के ये 11 टिप्स

पत्नी कामकाजी हो या होममेकर घर को सुचारु रूप से चलाने में उस का योगदान कमतर नहीं होता. लेकिन विश्वास, समझदारी व समानता के बीच संतुलन बिगड़ने पर आप के बीच गलतफहमी पैदा हो सकती है और फिर कभी न खत्म होने वाली तूतू, मैंमैं. यहां हम चर्चा करने जा रहे हैं उन बातों की, जिन से दूर रह कर आप अपना दांपत्य जीवन सुखी रख सकती हैं.

जब एक लड़की शादी के बाद एक नए घर, नए माहौल और नए लोगों से रूबरू होती है, तो उसे बहुत सारी बातों का खयाल रखना पड़ता है. मसलन, खुद को नए माहौल में ढालना, वहां के लोगों की आदतों, रीतिरिवाजों, कायदेकानूनों, खानपान आदि को समझना. उन की दिनचर्या के मुताबिक खुद की दिनचर्या निर्धारित करना. उन की जरूरतों का ध्यान रखना वगैरहवगैरह. मगर सब से अधिक सावधानी उसे पति के साथ अपने मधुर संबंध विकसित करते वक्त बरतनी पड़ती है. पतिपत्नी के बीच रिश्ता विश्वास व समझदारी से चलता है और आज के आधुनिक समाज में एक और शब्द समानता भी जुड़ चुका है.

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आप हमेशा सही नहीं हैं:

कुछ युवतियों को यह गलतफहमी होती है कि वे जो करती हैं या कहती हैं वह हमेशा सही होता है. यदि पति किसी काम को कुछ अलग तरीके से करते हैं और आप उस काम को अपने तरीके से करने के लिए मजबूर कर रही हैं, तो आप को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. आप के पति या परिवार के अन्य सदस्यों की सोच और तरीका आप से भिन्न हो कर भी सही हो सकता है. आप को धैर्य रख कर उसे देखना व समझना चाहिए.

बाल की खाल न निकालें:

देखा गया है कि अविवाहित जोड़े एकदूसरे से ढेर सारे सवालजवाब करते हैं और घंटों बतियाते रहते हैं बिना बोर हुए, बिना थके. मगर शादीशुदा जिंदगी में आमतौर पर ऐसा नहीं होता. आप के ढेरों सवाल और किसी मैटर में बाल की खाल निकालना आप के साथी को बैड फीलिंग दे सकता है. अत: याद रखें कि अब न तो आप उन की गर्लफ्रैंड हैं और न ही वे आप के बौयफ्रैंड.

साथी के साथ को दें प्राथमिकता:

कभी पति के सामने रहते परिवार के अन्य सदस्यों को पति से आगे न रखें. अगर आप ऐसा करती हैं, तो आप अनजाने में ही सही अपनी खुशहाल जिंदगी में सूनापन भर रही होती हैं. मान लीजिए आप के पति ने आज आप के साथ मूवी देखने जाने का प्लान बनाया है और आज ही आप की मां आप को फोन कर के शौपिंग मौल में आने को कहती हैं. अगर आप अपने पति को सौरी डार्लिंग बोल कर अपनी मां के पास शौपिंग मौल चली जाती हैं, तो यह पति को बुरा लगेगा. उन के मन में तो यही आएगा कि आप की जिंदगी में उन की अहमियत दूसरे नंबर पर है. यदि आप अपनी मां को सौरी बोल कर फिर कभी आने को कह दें तो आप की मां से आप के रिश्ते में कोई कमी नहीं आएगी.

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दूसरों के सामने पति की इंसल्ट न करें:

दूसरों के सामने अपने पार्टनर की गलतियां बताना असल में उन की इंसल्ट करना है. ऐसा कर के आप अपने पति को कमतर आंक रही हैं. यदि आप अपने पति की बात बीच में ही काट रही हैं, तो आप उन्हें यह मैसेज दे रही हैं कि आप को उन की कही बातों की कोई परवाह नहीं है.

धमकी न दें:

पतिपत्नी के बीच थोड़ीबहुत नोकझोंक तो होती रहती है और इस से प्यार कम भी नहीं होता, बल्कि रूठनेमनाने के बाद प्यार और गहरा होता है. मगर इस नोकझोंक को आप बहस का मुद्दा बना धमकी पर उतर आएं तो अच्छा न होगा. आप ने छोटी सी बात पर ही अपने पति को अलग हो जाने की धमकी दे दी तो आप का प्यार गहरा होने के बजाय खत्म होने लगेगा.

शर्मिंदा न करें:

कभीकभी कई बातें ऐसी हो जाती हैं जब कमी आप के पार्टनर की होती है. मगर ऐसे में एक समझदार बीवी चाहे तो अपने पति को शर्मिंदगी से बचा सकती है. मान लीजिए आप कार की ड्राइविंग सीट पर हैं और किसी ऐसे रैस्टोरैंट में खाने जा रही हैं, जहां आप के पति अपने दोस्तों के साथ कई बार जा चुके हैं. काफी देर हो गई, लेकिन आप के पति को रैस्टोरैंट की सही लोकेशन याद नहीं आ रही. ऐसी स्थिति में पति पर झल्लाने या चिल्लाने से आप के पति शर्मिंदा तो होंगे ही, साथ ही आप का डिनर भी खराब होगा. अच्छा यह होगा कि आप कहें अगर वह रैस्टोरैंट नहीं मिल रहा तो मुझे एक और रैस्टोरैंट का पता है जहां हम डिनर कर सकते हैं.

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पति की इज्जत करें:

कुछ पत्नियों को यह कहते सुना जाता है कि मैं अपने पति की इज्जत तब करूंगी जब वह इस लायक हो जाएगा. ऐसा कर के आप अनजाने में अपने पति को आप की इज्जत न करने की सलाह दे रही हैं. याद रखें यदि आप पति से प्यार और रिस्पैक्ट से बात करती हैं, तो आप के पति को भी आप से प्यार और इज्जत से बात करने के लिए सोचना ही पड़ेगा.

एक बात को बारबार न दोहराएं:

किसी काम को ले कर उन्हें उस की याद बारबार न दिलाएं जैसेकि उन की दवा, डाइट, जीवन बीमा की किस्त या घर के किसी और काम की. ऐसा करने से आप उन की पत्नी कम और मालकिन ज्यादा लगेंगी.

पति को काम की सूची न बताएं:

पत्नियां पति के लिए हमेशा काम की लंबी सूची तैयार रखती हैं. आज यह कर देना, कल यह कर देना, उस तारीख को यह ले कर आना आदि. ऐसा कर के वे पति को यह एहसास करा रही होती हैं कि वे दांपत्य जीवन को सुचारु रूप से चलाने में असफल हो रहे हैं और हमेशा काम का बोझ बना रहता है.

अपने घरेलू काम की गिनती न करें:

अकसर पत्नियां पति के आते ही अपनी दिनचर्या को डिटेल में पति को बताने लगती हैं कि आज मैं ने यह काम किया, यह चीज बनाई, यहां गई, ऐसा किया और काम करतेकरते थक गई. ऐसा कर के औफिस से थकहार कर आए पति को आप अपनी भी थकान दे रही होती हैं.

विवाद का निबटारा करें खुद:

अगर कभी आप के बीच कोई विवाद हो जाए तो उसे खुद ही सुलझाएं. किसी तीसरे को अपनी निजी जिंदगी में कतई शामिल न होने दें.

अदा… साहिल की

अनुपमा ने सेट पर मनाया बा का जन्मदिन, सोशल मीडिया पर फैंस ने दी बधाई

सीरियल अनुपमा में नजर आ रही अदाकारा रूपाली गांगुली बीते दिन अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट शेयर कि हैं. जिसमें वह अपनी ऑनस्क्रीन बा  अल्पना बुच का जन्मदिन मना रही हैं.

उन्होंने एक शानदार वीडियो शेयर किया है जिसमें वह सीरियल के बाकी सितारों के साथ मस्ती करती नजर आ रही हैं. इस पोस्ट को शेयर करते हुए रूपाली गांगुली ने बा को बर्थ डे विश किया है. जिसमें टीम के बाकी सभी सदस्य भी मौजूद नजर आ रहे हैं.

रूपाली गांगुली का यह पोस्ट लोगों को खूब पसंद आ रहा है. फैंस इस पोस्ट पर लगातार लाइक और कमेंट करते नजर आ रहे हैं.  बता दें कि रूपाली गांगुली अपने सीरियल अनुपमा से फैंस के बीच काफी ज्यादा मशहूर हो गई हैं. इस सीरियल को लगभग हर कोई देखना पसंद करता है. लोगों के दिलों पर इस सीरियल से रूपाली राज करने लगी हैं.

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अनकी एक्टिंग की तारीफ लगभग हर कोई करता नजर आता है. रूपाली गांगूली अपने इस किरदार से करीब लंबे समय बाद एक्टिंग की दुनिया में वापसी की हैं. जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं. रूपाली गांगुली के इस किरदार के लिए कई लोगों का सेलेक्शन हुआ था लेकिन बाद में उन्हें ही फाइनल किया गया. जिसे आज दर्शक भी देखना पसंद करते हैं.

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अगर निजी जिंदगी की बात करे तो रूपाली गांगुली सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं. उन्हें लोगों के साथ अपनी फोटो को शेयर करना अच्छा लगता है. रूपाली गांगुली  आए दिन अपने पर्सनल लाइफ को लेकर भी चर्चा में बनी रहती हैं.

शिवराज सिंह: मोदी का भय – कुरसी से प्रीति

बीती 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 71वें जन्मदिन पर देशभर के और मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख अखबारों में साढ़े 3 पृष्ठों के विज्ञापन छपे थे, इन में से 2 राज्य सरकार के थे.
पहले विज्ञापन में नरेंद्र मोदी के रूआबदार फोटो के ऊपर बड़ेबड़े लाल अक्षरों में लिखा था, ‘आप के सपने को संकल्प बना कर आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर’. फिर संक्षिप्त 2 पैराग्राफ की गद्य रामायण मोदीजी का गुणगान करती हुई थी कि माननीय श्री नरेंद्र मोदीजी का गुजरात के मुख्यमंत्री से ले कर भारत के प्रधानमंत्री तक का 20 वर्ष का कार्यकाल जनकल्याण व सुराज की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुआ है. इन अखबारों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित दूसरे दिग्गज भाजपाइयों के लेख भी छापे, जिन में नरेंद्र मोदी की तारीफों में कसीदे गढ़े गए थे.

दूसरे पृष्ठ के विज्ञापन में शिवराज सिंह फोटो में जबरन मुसकराने की कोशिश करते ऐलान कर रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर उन्हीं की प्रेरणा से मध्य प्रदेश में 17 सितंबर से 7 अक्तूबर तक जनकल्याण और सुराज अभियान मनाया जाएगा, जिस में यहयह और वहवह कार्य अमुकअमुक तारीखों में किए जाएंगे.

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अभियानों की इस तारीखवार लिस्ट को देख कर सियासी और गैरसियासी हलकों में हंसीमजाक में कहा यह गया कि चलो शिवराज सिंहजी 7 अक्तूबर तक तो सेफ हैं, इस के बाद जो होगा देखा जाएगा.

ठीक इसी दिन एक प्रमुख दैनिक अखबार में मुखपृष्ठ पर एक खबर प्रकाशित हुई थी कि विजय रूपाणी के सारे मंत्री बाहर, अन्य राज्यों में भी यह संभव.

इस समाचार में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के हवाले से इशारा किया गया था कि भाजपा गुजरात के अभिनव ‘प्रयोग’ को अन्य राज्यों में भी आजमा सकती है. गुजरात प्रयोगशाला नहीं, बल्कि ‘प्रेरणा’ है (यानी प्रयोग को दोहराना ही प्रेरणा होता है).

देश के इस नंबर वन अखबार के दफ्तरों पर पिछले दिनों ताबड़तोड़ छापे सनसनीखेज ढंग से पड़े थे मानो वाकई में अरबोंखरबों रुपयों का घोटाला हुआ हो, लेकिन एकदिवसीय हल्ले के बाद बात खोदा पहाड़ और निकला चूहा जैसे आईगई हो गई.

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कुछ लोगों ने समझ लिया कि ऐसे छापे एक खास मकसद से डाले जाते हैं, जो मीडिया संस्थान सरकार का विरोध करता है उसे यों ही तंग किया जाता है, जबकि कुछ का खयाल था कि इस मामले में भी ‘डील’ हो गई.
गौरतलब बात यह कि इस अखबार का सरकारी विज्ञापनों ने बहिष्कार सा किया हुआ है इसलिए 17 सितंबर को आम राय यह बनी कि चूंकि उस को ये 3 पेज के विज्ञापन नहीं मिले या उस ने नहीं लिए इसलिए उस ने भूपेंद्र यादव का बयान छाप कर शिवराज सिंह से हिसाब चुकता करने की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया कि अब वे भी जाने वाले हैं.

प्रदेशों के पंचक –

यह खबर उक्त अखबार में न भी छपती तो भी आजकल सभी शिवराज सिंह को इतनी सहानुभूति से देखते हैं कि वे बेचारे असहज हो उठते हैं.

भाजपा आलाकमान ने एक हैरतंगेज फैसला लेते हुए पहले तो गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को उन्हीं की मरजी से चलता किया, फिर पूरे घर के बल्ब बदल डालूंगा की तर्ज पर पूरा मंत्रिमंडल ही बदल डाला. नया मुख्यमंत्री भी बनाया, तो एक नएनवेले से चेहरे को, जो पहली दफा विधायक बना था. नए तमाम मंत्री भी पहली बार के विधायक हैं. इस प्रयोग से अब बचेखुचे भाजपाई मुख्यमंत्री सकते में हैं कि 3 राज्यों के तो मुख्यमंत्री बदल दिए गए, अब कहीं हमारा नंबर तो नहीं.

यह शुरुआत जिस का प्रेरणा शब्द से दूरदूर तक कोई शाब्दिक संबंध भी नहीं कर्नाटक से हुई थी, जब बीती 26 जुलाई को अपनी सरकार के 2 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने राज्यपाल थावरचंद गहलौत को धन्यवाद नहीं बल्कि अपना इस्तीफा दिया था.

इस मौके पर अपनी पीड़ा और व्यथा को उन्होंने भक्ति की चादर से ढकते हुए कहा था, ‘मैं दुखी हो कर इस्तीफा नहीं दे रहा हूं. मैं खुशीखुशी ऐसा कर रहा हूं. मैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे जनता की सेवा का मौका दिया.’

इस भावुक वक्तव्य से बरबस ही त्रेता युग के वानर राजा बालि की याद हो आती है, जिसे राम ने छल से मारा था. वाल्मीकि ने अपनी रामायण में मरते हुए बालि के मुंह से राम से ये सवाल करवाए हैं –
– मैं तो सुग्रीव से युद्ध में तल्लीन था और आप की तरफ पीठ कर के लड़ रहा था तो मुझे मार कर आप को क्या मिला?
– आप तो मर्यादा पुरषोत्तम कहलाते हैं. मैं अधर्मी नहीं हूं, फिर आप ने मेरा वध क्यों किया?
– आप के इस कृत्य ने एक निर्दोष को सजा दी है, आप का लक्ष्य है वध करना, फिर वह चाहे न्यायसंगत हो या न हो, और
– आप ने उस पर बाण चलाया, जो आप से युद्ध ही नहीं कर रहा था. यह कहां तक न्यायसंगत है?

बालि के इन और ऐसे कुछ और सवालों का कोई तार्किक जवाब या पाठकों की जिज्ञासा दूर करने में वाल्मीकि ने तो कोई खास कोशिश नहीं की, लेकिन तुलसीदास ने रामचरित मानस में राम के मुंह से कहलवाया –
‘अनुज वधु भगिनी सुत नारी. सुनु सठ कन्या सम ए चारी,
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकई जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई.’

अर्थात – हे मूर्ख सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या – ये चारों समान हैं. इन्हें जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं लगता है. (किष्किन्धा कांड)

साफ दिख रहा है कि राम को महिमामंडित करने की गरज से तुलसीदास ने रिश्तों, न्याय और नैतिकता की नई परिभाषा गढ़ दी, जिस से राम जो भी कहें और करें, वह एक आदर्श के रूप में स्थापित हो जाए, नहीं तो हर कोई जानता है कि बालि की बुरी नजर सुग्रीव की पत्नी रूमा पर थी. दोनों में दुश्मनी की वजह उस को ही माना गया है. बालि की पत्नी तारा अप्सराओं जैसी सुंदर और विदुषी भी थी, जिस ने राम की बाबत उसे आगाह भी किया था. मरने के बाद उस ने सुग्रीव से शादी कर ली थी या वैराग्य धारण कर लिया था, इसे ले कर कई विरोधाभास हैं, लेकिन इस प्रसंग से और मंदोदरीविभीषण की शादी से यह तो स्पष्ट हुआ था कि बड़े भाई की पत्नी तो भोग्या हो सकती है, लेकिन छोटे भाई की पत्नी पूज्या है. यह अति तुलसीदास और अब आज के मोदी कथावाचक ही कर सकते हैं. दोनों का मकसद राम को सही साबित करना है. यही थ्योरी मुख्यमंत्रियों को बदले जाने के मामले में लागू हो रही है कि गलत वे ही हैं.

भाजपा का तो एजेंडा ही नरेंद्र मोदी को इतना महिमामंडित कर देना है कि कोई उन के सहीगलत फैसलों पर न तो उंगली उठाए और न ही कोई तर्क करे. जैसे बालि ने राम के हाथों मरने पर खुद को तरना बताया था, ठीक वैसे ही आज के येदियुरप्पा सरीखे बालि कर रहे हैं. वे तुलसी के राम से कोई सवाल नहीं करते कि हे नाथ, मुझे क्यों हटाया और वसवराज बोम्मई को क्यों सीएम की कुरसी पर बैठाया, उलटे वे तो सियासी तौर पर इसे मोक्ष मानते हैं. अब यह और बात है कि येदियुरप्पा अपनी नई कर्नाटक यात्रा को ले कर मोदीशाह का सिरदर्द बन रहे हैं. अभी तक बोम्मई और उन में कोई बैर नहीं था, लेकिन अब होने लगा है.

कर्नाटक का मामला शांति से यानी बिना टूटफूट के सुलझ गया तो आलाकमान ने नजरें दूसरे राज्यों पर गड़ा दीं, जिस का नतीजा था बीती 14 सितंबर को जब भाजपा आलाकमान द्वारा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का अचानक दिल्ली तलब किया जाना, जिस से लोग और चौंके थे कि अभी तो गुजरात का मामला भी पूरी तरह नहीं सुलटा है और एक और मुख्यमंत्री को बुला लिया गया. जयराम ठाकुर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को बुके भेंट कर शिमला वापस लौट गए.

सियासी हलकों में हैरानी इस बात को ले कर थी कि वे 2 दिन पहले ही दिल्ली से लौटे थे. दोनों में क्या बात हुई, यह तो वे दोनों ही जानें, लेकिन शिवराज सिंह की घबराहट बेवजह नहीं है, जिस पर भूपेंद्र सिंह के इशारे ने तो उन की नींद उड़ा दी है.

17 सितंबर को वे बेहद बौखलाए हुए थे, लेकिन खुद को यथासंभव शांत दिखाने की कोशिश कर रहे थे. उन के बोले हर दूसरे वाक्य में नरेंद्र मोदी का नाम और काम वैसे ही आ रहा था, जैसे हनुमान के मुंह से रामराम निकलता रहता था. इस दिन उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ इतनी मात्रा में कर डाली, जितनी कि रामचरित मानस में तुलसीदास ने भी राम की नहीं की होगी. मसलन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में नए भारत का निर्माण हो रहा है, उन के नेतृत्व में मुझे कई आयामों को नजदीक से अनुभव करने का मौका मिला. आज मोदीजी के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत पुनः समृद्धशाली, शक्तिशाली, वैभवशाली, संपन्न और सशक्त होने का गौरव प्राप्त कर रहा है और विकास के प्रकाश को संपूर्ण भारत में पहुंचाने के यज्ञ में मध्य प्रदेश भी कदम से कदम मिला कर चल रहा है वगैरह…

इस मोदी चालीसा का पाठ करने के ठीक बाद उन्होंने भाजपा कार्यालय में मोदी की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा कि सरकार चलाने वालो, सावधान हो जाओ. पीएम की तरह मैं न खाऊंगा, न खाने दूंगा. मोदीजी मेन औफ आइडियाज और विजिनरी लीडर हैं. इस से सिद्ध हो गया कि महान मोदी की चापलूसी शिवराज सिंह से ज्यादा और बेहतर कोई नहीं कर सकता, इसलिए वे बने रहेंगे और उन के हटने की चर्चाएं कोरी गप हैं. यही भाजपा का वह धार्मिक एजेंडा है, जिस के तहत वह मोदी को राम सरीखा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही, फिर इस के लिए और कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बलि चढ़ाना उसे मंजूर है.

यों तो हर किसी ने नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, जिन में से अधिकांश ने राजनीतिक शिष्टाचार निभाया, लेकिन जिन मुख्यमंत्रियों पर कभी भी हटाए जाने की तलवार लटक रही है, वे कुछ ज्यादा ही भयभीत नजर आए. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा कि जिन मुद्दों पर पहले हम दूसरे देशों की तरफ देखते थे, आज आप ने उन कमियों को दूर कर देश को नई पहचान दी है. पूरी दुनिया ने तकनीक, चिकित्सा, शिक्षा और रक्षा के क्षेत्र में देश की प्रगति देखी है. मध्य प्रदेश की तर्ज पर हरियाणा में भी 20 दिवसीय जनसंपर्क अभियान सेवा और समर्पण के नाम से शुरू हो गया यानी 20 दिनों तक के लिए मनोहरलाल खट्टर भी सेफ हो गए.

जयराम ठाकुर ने इन दोनों से दौड़ में बराबरी की कोशिश में देवीदेवताओं से कामनाएं करते हुए नरेंद्र मोदी की तारीफ में लगभग वही शब्द कहे जो हर किसी ने घुमाफिरा कर कहे थे. मसलन, उन का गौरवशाली नेतृत्व… आत्मनिर्भर भारत की नींव रखने वाले… परिश्रमी, ईमानदार और दृढ़ संकल्प वाले…

मोदी… मोदी के माने

बात अकेले जन्मदिन की और सिर्फ मुख्यमंत्रियों की नहीं है, मोदी की चापलूसी का न तो कोई मौका होता है और न ही मौसम, लेकिन एक दस्तूर जरूर है, जिसे फेरबदल में हटाए गए दिग्गज केंद्रीय मंत्रियों रविशंकर प्रसाद, हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल, संतोष गंगवार और प्रकाश जावडेकर के चलता कर देने के बाद भी मोदीमोदी करते निभाते रहते हैं. प्रकाश जावडेकर ने तो मोदी के जन्मदिन पर अंगरेजी अखबारों में उन को महिमामंडित करते एक लेख भी छपवा दिया. यह क्या है आस्था या डर, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि यह सिर्फ और सिर्फ डर है, जिस की अपनी वजहें भी हैं.

गुजरात में विजय रूपाणी को हटा कर भूपेंद्र पटेल को लाने का मतलब क्या है. असल में न तो यह कर्नाटक की तरह जातिगत समीकरण साधने की कोशिश है और न ही इस के पीछे दूसरे कोई कारण हैं, जो राजनीतिक पंडित तरहतरह से गिना रहे हैं. नरेंद्र मोदी सिर्फ यह दिखाने की असफल कोशिश कर रहे हैं कि जो कुछ उन के जन्मदिन पर उन की लीलाओं के बारे में कहा गया और हर कभी कहा जाता है वह गलत नहीं है और इस के लिए वे कुछ भी कल्पनीयअकल्पनीय करने और हर योग्यअयोग्य को हटाने का जोखिम उठा सकते हैं, जिस से जनता खुश और वे सलामत रहें.

जब उन्हें यह समझ आया कि जनता केंद्रीय मंत्रियों को हटाए जाने से खुश नहीं हुई तो उन्होंने उत्तराखंड के बाद गुजरात से मुख्यमंत्रियों की छंटाईसफाई शुरू कर दी, क्योंकि वे केंद्रीय मंत्रियों के मुकाबले सीधे जवाबदेह होते हैं. आसानी से मान लिया गया कि विजय रूपाणी कोरोना सहित दूसरे कई मसलों पर नाकाम रहे थे, इसलिए उन्हें हटा दिया गया. यही बात कल को अगर हटाए गए तो शिवराज सिंह चौहान, मनोहरलाल खट्टर और जयराम सिंह ठाकुर सहित त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लब देव और गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के बारे में भी कही जा सकती है.

यह मूल्यांकन जनता या भाजपा की प्रदेश इकाई तो दूर की बात है पूरा भाजपा आलाकमान भी नहीं करता, बल्कि खुद नरेंद्र मोदी करते हैं और करते रहेंगे, जो लाख जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को कोसते रहें, लेकिन राजनीतिक ‘प्रेरणा’ इन्हीं से ले रहे हैं, जिन की तूती कांग्रेस में आजादी के बाद से आज भी सोनिया और राहुल गांधी जैसे वारिसों की शक्ल में बोल रही है. ये सभी सिरे से असुरक्षित रहे हैं.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा रबर स्टाम्प बन कर रह गए हैं, जिन का काम डेढ़ इंची मुसकान के साथ यह बताना भर रह गया है कि आज पार्टी में इसे शामिल किया गया और उसे हटाया गया.

इंदिरा गांधी को जबजब भी लगा कि जनता नाराज और नाखुश हो रही है तो उन्होंने कोई नया शिगूफा छेड़ दिया या किसी बड़े कांग्रेसी नेता को बाहर जाने को मजबूर कर दिया, जिस से फौरीतौर पर चर्चा हुई और हल्ला भी मचा कि कुछ हो रहा है. इस चालाकी में तब मीडिया उसी तरह उन के साथ होता था, जैसे आज नरेंद्र मोदी के साथ है. तब इंदिरा गांधी के इस मूड से कांग्रेसी डरे रहते थे तो आज भाजपाई नरेंद्र मोदी से डरे हुए हैं. अगर वे न डरे होते तो इतनी प्रीति वह भी न दिखाते. इस डर की व्याख्या दिग्गज और नरेंद्र मोदी से अपेक्षाकृत कम डरने और कम लिहाज करने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गुजरात के फेरबदल के तुरंत बाद राजस्थान सरकार के एक वेबिनार में बड़े सटीक और बिंदास तरीके से की थी, ‘नानक दुखिया सब संसार…’ नेता दुखी रहते हैं. विधायक इसलिए दुखी हैं कि वे मंत्री नहीं बन पा रहे हैं, मंत्री इसलिए दुखी हैं कि उन्हें अच्छा विभाग नहीं मिल पा रहा है, जिन मंत्रियों को अच्छा विभाग मिला, वे इसलिए दुखी हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और मुख्यमंत्री इसलिए दुखी रहते हैं कि उन्हें पता नहीं रहता कि वे कब तक पद पर रहेंगे. इस तरह के दुखों पर बुद्ध के बाद गुरुनानक ने बहुत सोचसमझ कर कहा था कि नानक दुखिया सब संसार.

अपने दौर के मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी के एक ब्लौग का हवाला देते हुए नितिन गडकरी ने यह भी जोड़ा था कि जो राज्यों में काम के नहीं थे उन्हें दिल्ली भेज दिया, जो दिल्ली में काम के नहीं थे उन्हें राज्यपाल बना दिया और जो वहां भी काम के न थे उन्हें राजदूत बना दिया.

ये बातें तब कही गई थीं, जब गुजरात यानी भूपेंद्र पटेल मंत्रिमंडल बना नहीं था. अगर उस के बाद कही जातीं तो तय है गडकरी कहते, जो किसी काम के नहीं थे उन्हें मंत्री और मुख्यमंत्री तक बना दिया गया. गौरतलब है कि गुजरात के 24 मंत्रियों में से 12 मंत्रियों ने कालेज का मुंह भी नहीं देखा. इन में से भी तीन 12वीं, पांच 10वीं , तीन 8वीं पास हैं. एक मंत्रीजी तो सिर्फ चौथी क्लास तक ही पढ़े हैं. 2 मंत्री अंडरग्रेजुएट हैं. केवल 9 ही ग्रेजुएट हैं. यहां मकसद उन की काबिलीयत पर उंगली उठाना न हो कर शरद जोशी के व्यंग्य और नितिन गडकरी के कटाक्ष को साल 2021 के हालात में समझना है कि कैसा नया भारत गढ़ा जा रहा है.

गुजरात नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश है. लिहाजा, पूरे मंत्री बदले जाने के इस अनूठे ‘प्रयोग’ पर कोई चूं भी नहीं कर पा रहा. शिवराज सिंह जैसे भाजपाई मुख्यमंत्रियों का डर इसी बात को ले कर है कि अगर कल को वे भी चलता कर दिए गए तो पत्ता भी नहीं हिलने वाला, उलटे प्रचार यह होगा कि वे कोरोना पर असफल थे, राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ रहा था, खुद पार्टी के कुछ बड़े नेता उन से असंतुष्ट थे आदि. यह सब कहा नहीं जाएगा, बल्कि कहा जाने लगा है, इसलिए वे दुखी हैं और डरे हुए भी हैं.

लेकिन उस से भी बड़ा दुख यह कि अब जाएं तो जाएं कहां. भाजपा में चारों तरफ मोदी ही मोदी हैं, इसलिए उन्हें मोदी भजन में ही सुरक्षा दिख रही है, ठीक वैसे ही जैसे आम भक्तों को भगवान में दिखती है. जिन्हें रटा दिया गया है कि वह ही दुख देता है और पूजाअर्चना करने पर उन्हें दूर भी कर देता है, इसलिए यह मत पूछो कि हे प्रभु मुझे कष्ट क्यों दिए, बल्कि यह प्रार्थना करो कि दे दिए तो दे दिए, अब मैं पापी तुम्हारी शरण में हूं इन्हें दूर करो. यही शिवराज सिंह और उन जैसे मुख्यमंत्री कर रहे हैं कि भक्ति इतनी करो कि ठुकराए जाने के बाद भी मन में कोई गिल्ट न रहे और भक्ति कहीं अभक्ति में न बदल जाए.

प्रसंगवश एक दिलचस्प बात यह जान लेना भी जरूरी है कि मोदी को भगवान बनाया भी इन्हीं मुख्यमंत्रियों और नेताओं ने है.

साल 2013 और 14 की शुरुआत में शिवराज सिंह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में मोदी की बराबरी से थे, लेकिन अब वे भी उन्हें अवतार कहने लगे हैं, तो उन पर और उन जैसों की हीनता पर तरस आना स्वाभाविक बात है.

नितिन गडकरी ने एक और ज्ञान की बात यह कही थी कि वे चूंकि भविष्य की चिंता नहीं करते इसलिए खुश रहते हैं. अब शिवराज सिंह जैसों को भविष्य की चिंता खाए जा रही है तो वे दुखी हो रहे हैं और इस दुख को दूर करने के लिए भी भक्ति से मोदी को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं. मोदी किस से खुश हुए और किस से नहीं, यह भी जल्द ही साफ हो जाना है.

इधर दीदी की लीला-

पश्चिम बंगाल में तमाम टोटकों के बाद भी मोदी लीला नहीं चली तो वहां टीएमसी छोड़ कर भाजपा में गए छोटेबड़े नेता वापस ममता दीदी के पैरों में लोट लगाते नजर आ रहे हैं मानो चूहे अपने बिल की तरफ लौट रहे हों.

यह सिलसिला 2 मई के बाद ही शुरू हो गया था, जो अभी भी जारी है. इन में ताजा और बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो का है, जिन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत ही भाजपा से की थी.

राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके इस गायक का बीती 18 सितंबर को हृदय परिवर्तन हुआ और वह सांसारिक दुनिया की अहमियत समझते हुए मोदीमोदी की जगह दीदीदीदी करते नजर आए.

2 बार आसनसोल से सांसद रहने के बाद भी बाबुल सुप्रियो विधानसभा चुनाव हार गए थे. बकौल बाबुल सुप्रियो, ‘वे जनता की सेवा करना चाहते हैं, जो अब टीएमसी में रह कर ही संभव है, क्योंकि पश्चिम बंगाल की जनता ने दीदी में भरोसा जताया है.’

पश्चिम बंगाल में कितने छोटेबड़े नेता भाजपा छोड़ घर वापसी कर चुके हैं. यह खेत में टिड्डी गिनने जैसी बात है, फिर भी साफसाफ दिख रहा है कि झुंड काफी बड़ा है, जिसे देख कर लगता ऐसा भी है कि जितने भाजपा में गए नहीं थे, उस से ज्यादा घर वापस हो रहे हैं. इन में एक बड़ा नाम भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय का भी है, जो कोई 4 साल भाजपा में रहने के बाद बीती 11 जून को ही अपने बेटे शुभ्रांशु राय सहित टीएमसी में वापस आए थे. इस के बाद भाजपा को एक और झटका तब लगा था, जब 30 अगस्त को विष्णुपुर से उस के टिकट पर जीते विधायक तन्मय घोष भी टीएमसी में शामिल हो गए थे. इस के 4 दिन बाद ही कालियागंज सीट से जीते सोमेन राय भी दीदी के पांव छूते उन में निष्ठा जताते आ गए.

इधर बाबुल सुप्रियो के जाने से नफानुकसान का हिसाबकिताब भाजपाई मुनीम लगा भी नहीं पाए थे कि वर्धमान ईस्ट से सांसद सुनील मंडल ने भी टीएमसी में रीएडमिशन लेते हुए जता दिया कि भाजपा इस राज्य से खत्म सी हो चुकी है और 2024 के चुनाव में उस की हालत 2014 के चुनाव से भी बदतर हो सकती है.

सुनील मंडल ने अप्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि एक व्यक्ति के कारण कई लोग भाजपा छोड़ रहे हैं. मैं नाम नहीं ले सकता. मुझे उस नाम से नफरत है. अभी तो कई और लोग भी टीएमसी में आएंगे.

कोलकाता का तृणमूल भवन इन दिनों ऐसे ही घर वापसी और नया घर ढूंढ रहे नेताओं से आबाद है, जो पूरी तरह भाजपा और मोदी से निराश हैं. शक्ति के ये उपासक अब रामनाम छोड़ कर चंडी पाठ ममता बनर्जी की तरह कर रहे हैं.

जून के महीने में आसनसोल के 3,000 नेता टीएमसी में वापस आए थे. इस के 2 दिन पहले ही बीरभूम में सैकड़ों भाजपाई हो गए कार्यकर्ता टीएमसी में वापस आ गए थे. इस के भी एक दिन पहले हुगली में भी सैकड़ों मुंह लटका कर दीदी के खेमें में वापस आए थे और टीएमसी की इस शर्त को मंजूर करते आए थे कि वे अब कभी भाजपा में नहीं जाएंगे और अगर गए भी तो सिर झुका कर कोई भी सजा उन्हें मंजूर होगी. कई तो पश्ताचाप प्रदर्शित करते हुगली के खानाकुल में सिर मुंडवा कर भाजपा को जय रामजी की बोल आए थे. यह सिलसिला यों ही चलता रहा तो भाजपा में उंगलियों पर गिनने लायक ही नेता बचेंगे.

इन का गुनाह, सजा उन को

पश्चिम बंगाल का नजारा देख नरेंद्र मोदी और उन के लक्ष्मण अमित शाह भी इंदिरा गांधी की तरह घबराए हुए हैं, क्योंकि कांग्रेस भी कभी इसी तरह टूटना शुरू हुई थी. दूसरे कोरोना कहर के बाद देशभर के लोग सरकार से नाखुश हैं. पिछले एक सवा साल से कुछ भक्तों को छोड़ रोजगार, महंगाई और स्वास्थ्य सहित शिक्षा सेवाओं और नीतियों को ले कर लोग सोचने और सवाल पूछने भी लगे हैं. उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में इन सवालों के कोई संतोषजनक जवाब सरकार के पास नहीं. लिहाजा, भाजपा की हालत खस्ता है, जिस की हर मुमकिन कोशिश कराहती निरीह जनता को राम, धर्म और जातियों में उलझाए रखने की है, लेकिन इस में भी पश्चिम बंगाल का नतीजा और बाद के हालात आड़े आ रहे हैं.

इसलिए अब मुख्यमंत्रियों को बदलने से यह जताने की कोशिश की जा रही है कि नाकाम केंद्र सरकार नहीं बल्कि राज्य सरकारें हैं. इस में भी एक बड़ी दिक्कत उत्तर प्रदेश में अंदरूनी तौर पर उठता यह सवाल है कि फिर योगी आदित्यनाथ को क्यों नहीं बदला गया. क्या गंगा में बहती लाशें कामयाबी का प्रतीक थीं या वहां बेरोजगारी कम या खत्म हो गई है या फिर महंगाई की मार नहीं पड़ रही है. इन और ऐसे दर्जनों सवालों का जवाब राम, अयोध्या या मथुराकाशी तो कतई सभी के लिए नहीं हैं. 10 फीसदी सवर्णों को छोड़ कोई इस से संतुष्ट नहीं.

इस से भी अहम दूसरी बात यह है कि वर्ष 2024 के मद्देनजर मोदीशाह अपने वर्चस्व के लिए कोई जोखिम और चुनौती नहीं चाहते हैं, इसलिए नए और नातजरबेकार मुख्यमंत्रियों को मौका दे कर एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं. पहला यह कि भाजपा की दूसरी पंक्ति को इतना डरा दो कि कोई सिर ही न उठाए और दूसरा यह कि हम ने तो बदलाव जनता के भले के लिए किए थे, इसलिए इन नयों को एक मौका और राज्य चुनावों में दिया जाए, जिस से ये खुद को साबित कर सकें. यह तो इन का ट्रेनिंग पीरियड था.

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