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सर्वगुण संपन्न – भाग 3 : सास-बहू की दिलचस्प कहानी

नीति तो उन की आंखों में संतुष्टि देख कर ही स्वयं को धन्य समझ लेती थी. हालांकि उस का भी दिल चाहता कि कभी तो सासूमां प्यार के दो बोल नीति के लिए भी बोल दें. कभी तो सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख कर दिल से दुआएं दें. पर ऐसा हो न पाता.

वैसे, सुमित्रा का दिल तो सचमुच आशीर्वाद देने लगा था अब नीति को. परंतु सासबहू के रिश्ते के बीच कठोरता की जो दीवार सुमित्रा ने खुद ही खींच दी थी, वह अब चाह कर भी उसे गिरा नहीं पा रही थीं. नीति प्रारंभ में प्रयास करती भी थी, परंतु जब सफल नहीं हो सकी तो उस ने इसे नियति मान लिया था, क्योंकि यह सुमित्रा का स्वभाव तो हरगिज नहीं कहा जा सकता था. स्वभाव तो तब होता न, जब सब के साथ वह ऐसा ही व्यवहार करतीं. पर वह तो केवल नीति के साथ कठोरता का आवरण चढ़ा कर रखती थीं.

दिनेशजी और राधिका वापस आए तो राधिका नीति को अपने द्वारा की गई शौपिंग दिखाने को ले कर बहुत उत्साहित थी. दिनेशजी के पास भी सुमित्रा को बताने के लिए दुनियाभर की बातें थीं, परंतु सुमित्रा के पास कहने को उन दोनों से भी कहीं अधिक कुछ था. जब सुमित्रा ने सब हाल सुनाया तो दिनेशजी भी हतप्रभ रह गए कि कैसे उन की छोटी सी कोमल सी बहू ने सबकुछ संभाला होगा.

सुमित्रा ने सबकुछ विस्तार से बताया कि कैसे नीति ने पूरे सप्ताह की छुट्टी ले कर इस समस्या के समाधान के साथ सुमित्रा को भी तनावमुक्त रखने की पूरी चेष्टा की. “और भाभी की प्रेजेंटेशन का क्या हुआ? वह भी तो इसी हफ्ते थी?” राधिका ने पूछा “प्रेजेंटेशन…? नीति ने तो कुछ नहीं बताया,” सुमित्रा बोलीं.

“उन का तो प्रमोशन भी उसी के आधार पर होने वाला था. कितनी उत्साहित थीं वह इसे ले कर.” इतने में नीति चाय के साथ हाजिर हो गई और हंस कर बोली, “प्रमोशन का क्या है, कुछ दिनों बाद हो ही जाएगा. नौकरी परिवार से बढ़ कर तो नहीं है न? अभी मां को और घर को मेरी जरूरत ज्यादा थी.” सुमित्रा का जी चाहा कि बहू को गले लगा लें, पर उसी दीवार ने फिर रोक दिया, जो उन की स्वयं की खींची हुई थी.

शाम को कांता मिलने आई, तो वही पुराना राग अलापने लगी. दिनेशजी से बोली, “आ गए आप लोग. सुमित्रा कितनी परेशान हुई पीछे से. कितना कहा नीति से कि भाईसाहब को फोन कर दो. पर आजकल बहुएं सुनती कब हैं किसी की.”

परंतु आज सुमित्रा फौरन बोलीं, “जब आजकल की बहुएं हमारी पीढ़ी से अच्छे निर्णय लेने की क्षमता रखती हैं, तो हमें भी हर बात में अपनी नहीं चलानी चाहिए न कांता? मेरी बहू तो लाखों में एक है और ये उस ने पूरी तरह सिद्ध कर दिया है. सर्वगुण संपन्न है वह, घर और बाहर दोनों जगह की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाना जानती है. मुझे अपनी बहू पर गर्व है कांता.”

सुमित्रा ने पहली बार खुले दिल से नीति की प्रशंसा सब के सामने की. कांता अपना सा मुंह ले कर रह गई. तभी अचानक नीति कमरे में आई और सुमित्रा के गले में बांहें डाल कर बोली, “सचमुच गर्व है तो मुझ से भी कहिए न…? मेरे तो कान तरस गए थे आप के मुंह से अपने लिए कुछ अच्छा सुनने के लिए. लगता था, आप का दिल कभी जीत ही नहीं पाऊंगी.”

सुमित्रा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, “सच कह रही हो बेटा. पता नहीं, हम सास लोग बहू की प्रशंसा में इतनी कंजूसी क्यों करती हैं? एक ओर तो हम पढ़ीलिखी आधुनिक बहू चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर उन की तुलना अपने जमाने से करने लगते हैं. छोटी से छोटी कमियां ढूंढते हैं. मैं तो हमेशा खुद को सर्वगुण संपन्न समझती थी. अब समझी कि आज के युग में सर्वगुण संपन्न की परिभाषा भी बदल गई है. उन परिस्थितियों में तो मेरे हाथपैर ही फूल गए थे, जिन में तुम ने इतने साहस का परिचय दिया. तुम न होती तो पता नहीं मेरा क्या होता.”

दिनेशजी और राधिका आज बहुत खुश थे. राधिका से तो खुशी संभाले नहीं संभली तो उस ने सुमित को फोन लगा दिया. आज कांता के चेहरे पर ईर्ष्या के भाव सुमित्रा स्पष्ट पढ़ पा रही थीं. जब सहन नहीं हुआ तो कांता विदा ले कर ही चली गई.

बेटे की चाह

मुरथल : ढाबों पर विदेशी कालगर्ल्स का धंधा

लेखक- नितिन शर्मा ‘सबरंगी’

सौजन्य-सत्यकथा

जब आप दिल्ली से करनाल जाने वाले जीटी हाईवे पर जाएंगे तो सोनीपत के नजदीक मुरथल में
हाईवे के किनारे जगमगाते व सजे हुए अनेक ढाबे दिखाई देंगे. रात में तो इन ढाबों की रौनक देखने लायक होती है. इन ढाबों के परांठों का स्वाद भारत भर में मशहूर है. तभी तो रात में इन ढाबों की पार्किंग में सैकड़ों गाडि़यां खड़ी रहती हैं. दूरदूर से लोग मुरथल के परांठों का स्वाद लेने आते हैं. एक तरह से इन ढाबों की वजह से मुरथल की भारत भर में पहचान बनी हुई है.

इन्हें भले ही ढाबा कहते हैं लेकिन ये किसी आधुनिक होटल से कम नहीं हैं, लेकिन पैसे कमाने के लालच में कुछ लोगों ने ढाबों की परिभाषा ही बदल दी है. इन ढाबों पर ग्राहकों को मौजमस्ती कराने के लिए कालगर्ल भी बुलाई जाने लगी हैं. जिस से ग्राहकों के खाने के देशी और विदेशी देह का सुख भी मिल सके. अनैतिक देह व्यापार का धंधा भी खूब फलफूल रहा था. 7 जुलाई, 2021 की रात के तकरीबन 8 बजे का वक्त था, जब ढाबे रंगबिरंगी रोशनी से नहाए हुए थे. ढाबों के बाहर वाहनों की कतारें लगी थीं. तभी एक कार एक ढाबे के बाहर आ कर रुकी. उस में से 2 लोग उतरे. पहले उन्होंने अपनी खोजी नजरों से ढाबे का मुआयना किया और फिर आराम से टहलते हुए सीधे काउंटर पर पहुंचे.

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काउंटर पर मौजूद मैनेजर ने एक नजर उन पर डालते हुए पूछा, ‘‘कहिए सर, क्या सेवा कर सकता हूं आप की?’’ ‘‘हमें स्पैशल परांठे चाहिए.’’ उस ने कुरसियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.‘प्लीज आप बैठ कर मेन्यू देख कर और्डर कीजिए, अभी भिजवाता हूं.’’ मैनेजर बोला.‘‘हमें खाने के नहीं, इस्तेमाल करने वाले परांठे चाहिए.’’ उन की बात सुन कर काउंटर पर बैठा व्यक्ति एक पल के लिए सकपका गया, लेकिन दूसरे ही पल उन दोनों को गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’ ‘‘हम ने ऐसी तो कोई बात की नहीं, जो आप समझ न सको. आप के एक पुराने ग्राहक ने ही हमें यह जगह बताई थी, इस भरोसे पर आज मनोरंजन के इरादे से यहां चले आए.’’ आगंतुक ने राजदाराना अंदाज में कहा.

तभी मैनेजर मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह समझ गया, यह बात है तो आप को पहले बताना चाहिए था. दरअसल, बात यह है सर कि पुलिस का भी चक्कर रहता है, इसलिए अंजान लोगों के साथ संभल कर बात करनी पड़ती है हमें. वैसे आप को किस तरह का परांठा चाहिए?’’ ‘‘हमें एकदम बढि़या चाहिए, जो दिल खुश हो जाए.’’ एक व्यक्ति बोला. ‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा कि हमारे पास देशीविदेशी दोनों तरह के हैं. अब मरजी आप की है, आप जो भी पसंद करें. सर्विस में भी आप को कोई शिकायत नहीं मिलेगी.

‘‘हमारे कई रेग्युलर कस्टमर हैं, जो हमारी शानदार सर्विस से हमेशा खुश रहते हैं. ऐसा करता हूं, मैं आप को फोटो दिखा देता हूं, आप पसंद कर लीजिए.’’ कहने के साथ ही उस ने अपना मोबाइल उन के सामने कर दिया और एकएक कर के फोटो दिखाने लगा. उस के पास कई सुंदर लड़कियों के अदाओं के साथ खिंचे फोटोग्राफ थे. इन में विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. वास्तव में वह परांठों की नहीं, बल्कि कालगर्ल के बारे में बात कर रहे थे. ‘‘विदेशी का इंतजाम कैसे करोगे?’’

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‘‘सर, आप सिर्फ पसंद कीजिए, इंतजाम हमारे कमरों में पहले से है, फिलहाल कुछ लड़कियां आई हुई हैं.’’ उस ने कहा. आगंतुक ने उन में से एक लड़की को पसंद किया और उस का रेट तय करने के बाद एक 500 का नोट उस की तरफ बढ़ाया, ‘‘ठीक है यह आप एडवांस रख लीजिए, हमारा एक दोस्त भी मस्ती के लिए आने वाला है.’’ कहने के साथ ही आगंतुक ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को काल कर के कहा, ‘‘दोस्त, जल्दी आ जाओ बढि़या इंतजाम हो गया है.’’ उस के फोन किए अभी 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि तभी पुलिस की गाडि़यां वहां आ कर रुकीं. पुलिसकर्मी दनदनाते हुए उस ढाबे में आ गए और मैनेजर को हिरासत में लेने के बाद कमरों की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

काउंटर पर बैठा व्यक्ति व अन्य लोग यह सब देख कर सकपका गए, जबकि 2 आगंतुक जो मैनेजर से बातचीत कर रहे थे, वे मंदमंद मुसकरा रहे थे. वास्तव में वह कोई और नहीं, बल्कि पुलिस के नकली ग्राहक थे. सटीक जानकारी होने के बाद ही पुलिस ने रेड की काररवाई की थी. पुलिस जब कमरों में पहुंची तो हैरान रह गई. कमरों में कई लड़कियां मौजूद थीं, जो पुलिस को देख कर अपना मुंह छिपाने लगीं.
महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें कमरे में ही अपनी निगरानी में ले लिया. सभी लड़कियां हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगीं, ‘‘हमें छोड़ दीजिए प्लीज, वरना हमारी बहुत बदनामी होगी.’’

‘‘क्यों, यह सब खयाल तुम लोगों को पहले नहीं आया.’’ महिला पुलिसकर्मी ने कहा. ‘‘गलती हो गई अब कभी नहीं आएंगे.’’ कई लड़कियां गिड़गिड़ाते हुए बोलीं, लेकिन पुलिसकर्मियों ने उन की गुहार को नजरंदाज कर दिया. एक पुलिस अधिकारी ने अधीनस्थों को निर्देश दिया, ‘‘तुम लोग इन को यहीं रखो, कोई भी यहां से जाने न पाए, हम बाकी जगह को चैक करते हैं.’’ इस के बाद पुलिस ने अन्य 2 ढाबों पर भी रेड की. दरअसल, यह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उड़नदस्ता टीम थी, जिस का नेतृत्व डीएसपी अजीत सिंह कर रहे थे. टीम में सोनीपत की एसडीएम शशि वसुंधरा को भी शामिल किया गया था.

स्पैशल टीम को सूचना मिल रही थी कि मुरथल के कुछ ढाबों पर देह व्यापार, जुएसट्टे व नशे का धंधा जोरों पर चल रहा है. सूचना को पुख्ता करना जरूरी था. इसलिए टीम ने पहले 2 लोगों को नकली ग्राहक बना कर वहां भेजा था. जब उन की बातचीत में सब कुछ साफ हो गया तो उन का इशारा मिलने पर काररवाई की. पुलिस टीम ने वहां स्थित हैप्पी ढाबा, राजा ढाबा व होटल वेस्ट ढाबों पर रेड की. इस काररवाई में 12 लड़कियों व 5 युवकों को देह व्यापार में जबकि 9 लोगों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया. वे महफिल सजा कर जुआ खेल रहे थे.

वे सभी अच्छे परिवारों से थे, इसलिए उन्होंने पुलिस पर रौब गालिब करने की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस उन के प्रभाव में नहीं आई. 9 जुआरियों से पुलिस ने एक लाख 63 हजार रुपए भी बरामद किए.
जिस्मफरोशी के आरोप में गिरफ्तार लोगों में 3 विदेशी लड़कियां भी शामिल थीं. इन में एक लड़की उज्बेकिस्तान, दूसरी तुर्की व तीसरी रूस की रहने वाली थी. बाकी 9 लड़कियां दिल्ली निवासी थीं. गिरफ्तार किए गए युवक सोनीपत, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के थे.

पुलिस ने सभी लोगों के मोबाइल व नकदी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस की इस काररवाई से ढाबों पर भगदड़ मच गई. पुलिस ने सभी आरोपियों को कस्टडी में ले कर पुलिस वैन में बैठाया और उन्हें ले कर मुरथल थाने पहुंची. वहां आरोपियों से पूछताछ की तो ढाबों पर चलने वाले अनैतिक धंधे की ऐसी परतें खुलीं, जिस पर हर कोई सोचने पर मजबूत हो जाए. क्योंकि ढाबों पर यह सब होता होगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो.

ढाबों पर अमूमन लोग खाना खाने के लिए ही आते हैं, क्योंकि ढाबे इसी काम के लिए बने होते हैं, लेकिन मुरथल के ढाबों की बात अलग है. उन्होंने जीटी करनाल हाइवे किनारे बने ढाबों की छवि को नया रूप दिया. नाम भले ही ढाबा रखा गया, लेकिन उन्हें आधुनिक होटल का रूप दिया गया. होटल की तरह ढाबों में रूम तक बनाए गए थे. ग्राहकों को खाने के साथसाथ रुकने की सुविधा भी दी जाने लगी. ढाबों की ख्याति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एनसीआर सहित दूरदूर से लोग यहां परांठों का स्वाद लेने आते हैं.

मुरथल के ढाबों के ज्यादातर मालिक खुद हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने ढाबे बनाने के बाद वह दूसरे लोगों को किराए पर दे दिए. यानी ढाबे के चलने न चलने से उन का कोई मतलब नहीं होता, उन्हें तो बस महीने में किराए की रकम चाहिए होती है. वैसे तो ये ढाबे इतने मशहूर हैं कि उन पर न तो कमाई की कमी है और न ही ग्राहकों की, लेकिन कुछ ढाबे वालों को इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई, उन्होंने लालच में अपने काम को चमकाने में चारचांद लगाने शुरू कर दिए. ढाबे वाले वह काम भी कराने लगे जो नैतिक नहीं थे. इन में जुआ, सट्टा या नशा ही नहीं, बल्कि देह व्यापार भी शामिल हो गया. ऐसे लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि ढाबों की छवि पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा. ऐसे ढाबों पर देह व्यापार का धंधा संगठित तरीके से चलाया जाने लगा.

ढाबे वालों से ऐसी लड़कियों के संपर्क हो गए, जो पैसे कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थीं. वहां पर ऐसी लड़कियों को सप्ताह 10 दिन के हिसाब से एकमुश्त रकम दे कर बुलाया जाता था. उन की बुकिंग का काम ढाबा संचालक व उन से जुड़े दलाल करते थे. ग्राहकों से वह खुद तयशुदा रकम लेते थे, जिस में कालगर्ल का हिस्सा नहीं होता था. एकमुश्त रकम लेने के बाद कालगर्ल को उस व्यक्ति के इशारों पर काम करना होता था, जो उन्हें लाता था. लड़कियोें के ठहरने व खाने का खर्च भी उन्हें ही उठाना होता था.

कहते हैं कि गलत काम गुपचुप तेजी से चलता है. ढाबों का देह व्यापार भी कुछ इस तरह चला कि लड़कियां वहां शिफ्टों में काम करती थीं. इन में दिल्ली और उस के आसपास के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल व कोलकाता की लड़कियां भी शामिल होती थीं. जो विदेशी लड़कियां पकड़ी गईं, वैसे तो वे टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं, लेकिन देह व्यापार में भी जुट गई थीं. उन के संपर्क कई ऐसे दलालों से थे, जो उन के लिए ग्राहक ढूंढते थे. तयशुदा कमीशन ले कर दलाल उन्हें ग्राहकों को परोसते थे. देह के धंधे में लिप्त ढाबे वाले औन डिमांड विदेशी लड़कियां बुलाते थे. विदेशी लड़कियों को इतनी कमाई होती थी कि वह ऐसी जगहों पर आनेजाने के लिए अपने साथ पेमेंट पर गाइड भी रखती थीं. गाइड भी उन के लिए ग्राहक ढूंढने में मदद करते थे.

अमूमन कोई भी व्यक्ति सोचता है कि ढाबे तो सिर्फ खाने के लिए होते हैं, इसलिए किसी को शक नहीं होता था कि वहां के कमरों के अंदर क्या कुछ चलता है. इस बात का भी ढाबे वाले जम कर फायदा उठा रहे थे. उन्हें लगता था कि जल्दी से उन पर कोई शक भी नहीं करेगा. ढाबों पर देह व्यापार के लिए नए ग्राहकों को जोड़ने का काम भी उन्हें औफर दे कर चलता था. ऐसे लोगों को बताया जाता था कि उन के यहां खाने के साथ शबाब का भी इंतजाम है, जो लोग इच्छुक होते थे, उन्हें लड़कियां परोस दी जाती थीं. इसी तरह चेन बनती रही.

देह व्यापार के लिए वाट्सऐप का भी इस्तेमाल किया जाता था. पुलिस से बचने के लिए नेटवर्क से जुड़े लोग वाट्सऐप के जरिए ही बातें किया करते थे और उसी से फोटो भेज कर लड़कियां पसंद कराई जाती थीं.
कई बार लड़कियों को औन डिमांड बुलाया जाता था. विदेशी लड़कियां ज्यादातर औन डिमांड आती थीं. जैसे ही उन्हें फोन किया जाता था, वे टैक्सी से कुछ देर में वहां पहुंच जाती थीं. पुलिस ने पकड़े गए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के अगले दिन अदालत में पेश किया. जुए के आरोप में पकड़े गए 9 लोगों व स्थानीय लड़कियों को तो जमानत मिल गई, जबकि तीनोें विदेशी लड़कियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

हैरानी की बात यह थी ढाबों से मुरथल थाने की दूरी करीब एक किलोमीटर थी, ऐसे में पुलिस की नाक के नीचे ही देह का धंधा आबाद था.मामला खुलने पर स्थानीय पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई. भला यह कैसे संभव था कि ढाबों पर जुआ, सट्टा व देह व्यापार होता हो और पुलिस को पता तक न हो.
लापरवाही सामने आने पर सोनीपत के एसपी जश्नदीप सिंह रंधावा ने इसे बेहद गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी अरुण कुमार को तुरंत लाइन हाजिर करते हुए उन के विरुद्ध विभागीय जांच के आदेश दे दिए.
सुखवीर सिंह को मुरथल थाने का नया प्रभारी बनाया गया. दूसरी तरफ ढाबों की छवि को ले कर मुरथल ढाबा एसोसिएशन के पदाधिकारी भी चिंतित हो गए. ढाबा संचालक अमरीक सिंह, देवेंद्र कादियान आदि का मानना है कि कुछ लोगों की करतूत की वजह से कारोबार प्रभावित हो सकता है.

इसलिए एसोसिएशन ने बैठक कर के तय किया कि उन के द्वारा निगरानी कर के गलत काम करने वालों को बेनकाब किया जाएगा. ऐसे लोग वहां ढाबा संचालन नहीं कर सकेंगे. जल्द ही वह ढाबा संचालन की गाइडलाइन तैयार कर के उस का पालन कराएंगे.

बेटे की चाह : भाग 2

‘‘जब भी मैं बुलाऊं, तब मेरे बताए टाइम पर मुझ से मिलने आ जाना,’’ रसीली ने शरारती मुसकान से कहा. मंगलू रसीली जैसी औरत के न्योते पर मन ही मन खुश हो रहा था और फिर उस के द्वारा पैदा होने वाला एक बेटा उस की मर्दानगी के अहंकार को पोषित भी कर देगा, यह सब सोच कर वह फूला न समाता था.

मंगलू और रसीली अपनी इसी चर्चा में ही मगन थे कि अचानक वहां पर फौजी शमशेर सिंह आ पहुंचा और रसीली के भरे बदन को ताकने लगा. फौजी को देख मंगलू बिना कुछ बोले अपने रास्ते चला गया और रसीली भी तेज कदमों से अपने घर की ओर भाग गई.

आज खेत से लौटते समय अंधेरा सा होने लगा था. आकाश में काले बादल भी आ गए थे. अचानक से बारिश होने लगी. पास में ही रसीली का घर था. मंगलू ने सोचा कि जब तक बारिश हो रही है, कुछ देर जा कर पनाह ले लूं.

रसीली के ससुर खापी कर सो गए थे. रसीली ने काली साड़ी पहन रखी थी, जिस में से उस का गोरा बदन झलक रहा था और उस पर बारिश की बूंदें रसीली के आकर्षण को और बढ़ा रही थीं. रसीली को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी और वह मंगलू से जा कर चिपक गई.

मंगलू और रसीली के बीच अब कोई परदा न रहा. रसीली की जवानी में मस्त मंगलू बारबार एक लड़के का बाप बनने की सोच से और उत्साहित हो उठता था, जो रसीली को और भी रोमांचित कर जाता था.

बाहर की बारिश थम चुकी थी और 2 जिस्मों का तूफान भी. दोनों की झिझक भी खत्म हो गई थी. उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, वे दोनों जम कर मस्ती करते, पर रसीली बहुत चालाक औरत थी. वह गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती थी, जिस के चलते उसे बच्चा नहीं ठहरता था. वह तो बस मंगलू में अपने अकेलेपन और मौजमस्ती का इलाज ढूंढ़ रही थी.

जब कुछ महीने बीत चले और रसीली ने बच्चा ठहरने की खबर नहीं सुनाई तो मंगलू ने उस से कहा, ‘‘सुन रसीली… महीनों से मैं तुम्हारे घर आ रहा हूं और अनेक बार हम ने जिस्मानी संबंध बनाए हैं, पर अभी तक तुझे बच्चा क्यों नहीं ठहरा?’’

‘‘अरे, अब तुम 40 साल के हो गए हो. अब तुम में 25 साल के मर्द वाली रवानी तो रही नहीं, गांव के और गबरू जवान लड़कों को देखो, जमीन में पैर मार दें तो पानी निकल आए. अब तुम अपनी लटकी शक्ल देख लो. लगता है, 60 साल के हो गए हो.

‘‘अरे, जरा बादाम घोटो, जरा बदन बनाओ, लड़का पैदा करना आसान है क्या…?’’

जब रसीली ने कई बार इस तरह मजाक किया तो मंगलू का मन रसीली से पूरी तरह हटता चला गया. उस ने समझ लिया था कि रसीली एक खूंटे से बंधी रहने वाली गाय नहीं है, बल्कि उसे तो अपनी मस्ती के लिए नएनए आशिक चाहिए.

मन में ऐसा खयाल आते ही मंगलू सीधा गांव के बीच बने पीपल देवता के चबूतरे पर पहुंचा और माफी मांगी कि अब वह फिर कभी रसीली की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखेगा.

जब चबूतरे से मंगलू नीचे उतरा तो अपने सामने फौजी को खड़ा देख चौंक गया.

‘‘नमस्ते फौजी साहब.’’

‘‘नमस्ते… अरे भाई, पीपल देवता से क्या मांग रहे हो? तुम्हारे गांव के बाहर एक बहुत बड़े तांत्रिक आ कर ठहरे हुए हैं, जो हाथ देख कर ही किसी का भी आगापीछा सब बता देते हैं और बदले में कुछ लेते भी नहीं. जाओ, उन से जा कर मिल लो. हो सकता है कि तुम्हारा कल्याण भी उन के हाथों हो ही जाए,’’ फौजी ने अपना ज्ञान बांटा.

मंगलू अंदर से टूटा हुआ था और जब इनसान अंदर से टूटा होता है तो धर्म और तांत्रिकों में उस की दिलचस्पी अपनेआप ही बढ़ जाती है.

मंगलू तांत्रिक से जा कर मिला और जब वापस आया तो उस के चेहरे पर खुशी की हलकी सी रेखा साफ देखी जा सकती थी.

शायद उस तांत्रिक ने मंगलू को खुश रहने की कोई तरकीब बता दी थी, तभी तो वह अपनी पत्नी पर भी बातबात में चिल्लाता नहीं था.

पर मंगलू की यह खुशी ज्यादा दिन तक न रह पाई. एक दिन जब वह शाम ढले घर वापस आया तो उस की पत्नी रोरो कर हलकान हुई जाती थी.

‘‘अरे, क्या हुआ? क्यों रोए जा रही हो?’’

‘‘अरे रमिया के पापा, रमिया को तुम्हारे पास खाना देने को भेजा था. अब शाम होने को आई, पर अभी तक वह लौट कर नहीं आई है. सयानी लड़की है. कहीं कोई ऊंचनीच हो गई तो हम जमाने को क्या मुंह दिखाएंगे.’’

‘‘क्या कहा… रमिया घर नहीं लौटी… अभी जा कर देखता हूं,’’ कह कर मंगलू घर से बाहर निकल गया.

कुछ घंटे बाद पसीना पोंछता हुआ मंगलू अपना मुंह लटका कर वापस आ गया और अपनी पत्नी सरोज से बोला, ‘‘रमिया की मां, लगता है कि रमिया हम लोगों को छोड़ कर कहीं चली गई है. मैं सरपंचजी से भी मिला और गांव के बाकी लोगों को भी इकट्ठा किया और हम सब लोगों ने पूरे गांव में रमिया को ढूंढ़ा, पर रमिया नहीं मिली.’’

रमिया के घर छोड़ कर जाने वाली बात उस की मां को हजम नहीं हो रही थी, पर उस के पास इन बातों को मान लेने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था.

‘‘जब से फौजी ने गांव में आ कर कोठी बनवाई है, तभी से गांव में अजीब हादसे हो रहे हैं,’’ काकी बोल रही थी.

‘‘हां, देखने में भी तो फौजी कितना डरावना लगता है,’’ गांव की दूसरी औरत कह उठी.

‘‘पर सवाल यह है कि रमिया को आसमान खा गया या जमीन निगल गई,’’ बन्नो भाभी बोली.

‘‘मंगलू के खेत में जाते समय किनारे पर जो भुतही तलैया पड़ती है न, उस में कई कुंआरे भूत रहते हैं. हो न हो, उन्हीं कुंआरे भूतों ने रमिया का अपहरण कर लिया है और वे अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करते होंगे,’’ सिबली की शक भरी आवाज आई.

‘‘अरे, मैं तो कहती हूं कि मंगलू से रमिया का ब्याह करते बन नहीं रहा था और फिर रमिया का चक्कर भी तो सरजू के साथ चल ही रहा था न. हो न हो, वह सरजू के साथ भाग गई है,’’ दया की अम्मां बोल रही थी.

रमिया की मां अपनी बेटी के गांव से गायब हो जाने से अंदर तक टूट भी गई थी और कहीं न कहीं उसे भी भुतही तलैया के भूतों पर ही शक था.

एक दिन रमिया की मां ने अपनी दूसरी बेटी श्यामा की कमर की करधन में 2 छोटी घंटियां बांध दी थीं, जिन के बजने से छुनछुन की आवाज आती थी.

‘‘कहते हैं कि कमर में लोहा बंधा हो तो भूत पास में नहीं आते और तुझे भी तो स्कूल आनाजाना रहता ही है, इसलिए ये लोहे की घंटियां तेरी हिफाजत के लिए हैं और फिर ये मुझे तेरी मौजूदगी का अहसास भी देती रहेंगी.’’

बदले में श्यामा सिर्फ मुसकरा दी.

अभी रमिया को गायब हुए 6 महीने भी न बीते थे कि जब एक दिन श्यामा स्कूल गई तो फिर लौट कर नहीं आई.

मंगलू की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. मंगलू भी एक कोने में मुंह छुपाए बैठा था.

गांव के लोग आजा रहे थे और बातें बना रहे थे, हमदर्दी दिखा रहे थे.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आएगा जेनरेशन लीप, नायरा की जगह लेगी ये एक्ट्रेस

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है इन दिनों लगातार सुर्खियों में बना हुआ है, शो की टीआरपी को बढ़ाने के लिए इस सीरियल मेें लगातार परिवर्तन किए जा रहे हैं. अब सीरियल से खबर ये आ रही है कि इस सीरियल से मोहसिन खान और शिवांगी जोशी के किरदार को खत्म किया जा रहा है.

मेकर्स इस सीरियल में नए पीढ़ी कि कहानी को शुरू करने जा रहे हैं. तो अब यह साफ हो चुका है कि कार्तिक और सीरत की कहानी को जल्द खत्म किया जाएगा, सीरत जल्द ही मां बन जाएगी और उनका बच्चा इस दुनिया में कदम रखेगा, वैसे ही इस सीरियल की कहानी में लंबा गैप लिया जाएगा,

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इसके बाद से कहानी में नए किरदार के साथ शुरुआत कि जाएगी, मेकर्स इस शो की कहानी को पूरी तरह से बदलने की तैयारी में हैं तो इस सीरियल में फैश एक्टर की एंट्री करवाना चाहते हैं. जैसे अनुपमा में अनूज की एंट्री हुई थी वैसे ही इनकी भी एंट्री करवाना चाहते हैं.

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अब देखना यह है कि फैंस पहले कि तरह नए किरदार को उतना ज्यादा प्यार दे पाते हैं या नहीं , इस किरदार के लिए फैंस के अंदर अभी से उत्साह देखने को मिल रहा है. इस किरदार के लिए कुछ नए चेहरे का सेलेक्शन भी हो चुका है.

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खैर अब देखना यह है कि फैंस इस सीरियल के नए चेहरे को पहले जितना प्यार दे पाते हैं या नहीं , सभी किरदार को अपनी एक्टिंग के दम पर जगह बनाी होगी,तभी फैंस उसे प्यार दे पाएंगे.

पति राज कुंद्रा को 60 दिन बाद मिली जमानत तो शिल्पा शेट्टी ने किया ये पोस्ट

बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति को पोर्न मामले में 20 सितंबर को जमानत मिल गई है,  कोर्ट ने 50 हजार के मुचलके पर जमानत दे दी है. जेल से 60 दिन बाद राज कुंद्रा बाहर आएं हैं. जिन्हें अभी लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी है.

शिल्पा शेट्टी ने अपने इंस्टाग्राम पर एक मैसेज शेयर किया है जिसमें उन्होंने लिखा है कि वह पति राज कुंद्रा के साथ उनके लड़ाई में साथ खड़ी रहेंगी. हालांकि शिल्पा ने पति की जमानत को पहली जीत मान ली है.

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शिल्पा शेट्टी ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर लिखा है कि लंबे तूफान के बाद सुनहरी सुबह आता है, जिसमें उन्होंने इंद्रधनुष का फोटो लगाया है.

मंबई पुलिस ने राजकुंद्रा को पोर्न फिल्म बनाने के मामले में गिरफ्तार किया था, जबकी भारत में पोर्न फिल्मों का निर्माण गैरकानूनी है. राज कुंद्रा पोर्न फिल्मों की शूटिंग करवाते थें और उन्हें इंटरनेट के माध्यम से विदेशों में भेजते थे. वहां उनका बिजनेस पार्टनर फिल्म को एडिट करके एप पर डालता था.

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इस बिजनेस से राज कुंद्रा ने करोड़ों का मुनाफा कमाया, जब पुलिस को राज का व्हाट्सअप चैट मिला तो उसमें मुनाफे कि बात की गई थी.

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हालांकि जब शिल्पा शेट्टी से इस बारे में बात किया गया तो उन्होंने कहा कि मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था कि राज क्या करते हैं और क्या नहीं कर रहे हैं. इस तरह के काम . उन्होंने कहा कि वह इतनी ज्यादा बिजी रहती थी कि उन्हें राज के बारे में जानने का वक्त नहीं मिला. और ना ही राज ने उन्हें इस बिजनेस के बारे में कभी बताया.

पंजाब में दलित मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश में होगा कांग्रेस को लाभ

कांग्रेस ने पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर से इस्तीफा लेकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया है. चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बने है. चरणजीत सिंह चन्नी अमरिंदर सरकार में तकनीकी शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री थे. 58 साल के चन्नी अमरिंदर सिंह के प्रबल विरोधी रहे है. चन्नी 3 बार विधायक बन चुके है. 2007 में  वह निर्दलीय विधायक बने थे. इसक बाद 2012 और 2017 में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. चन्नी ने अपन कैरियर की शरूआत पिता के टैंट कारोबार से की थी. इसके बाद वह पार्षद का चुनाव लडे. वहां से विधायक बने. 2015-16 में वह विधानसभा मेें विपक्ष के नेता बने. पंजाब की राजनीति में चन्नी ने अपनी जगह बनाई. अपनी मेहनत से वह पंजाब के मुख्यमंत्री की कुुर्सी पर बैठने में सफल हुये. आज वह पंजाब में कांग्रेस का चेहरा बन गये है.

पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित वोटर है. देश में सबसे अधिक दलित आबादी पंजाब में है. बाबा साहब अम्बेडकर के बाद सबसे प्रमुख दलित चिंतक और नेता कांशीराम पंजाब के ही रहने वाले थे. पंजाब के विधानसभा चुनाव में दलित सबसे प्रमुख फैक्टर है. दलितों के वोट पाने के लिये आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी अपने समीकरण तलाश रहे थे. अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी तालमेल किया है. ऐसे में कांग्रेस ने दलित जाति के चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित वोट अपनी तरफ करने के लिये मास्टर स्ट्रोक मार दिया है. कांग्रेस को इसका लाभ पंजाब चुनाव में तो मिलेगा ही इसका असर उत्तर प्रदेश चुनाव पर भी पडेगा.

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पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनो ही प्रदेशो के विधानसभा चुनाव 2022 में है. पंजाब में 79 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ कांग्रेस में बगावत चल रही थी. ऐसे में कांग्रेस अगर उनकी अगुवाई में चुनाव लडती तो हार जाती. इसके अलावा कैप्टन अमरिंदर उम्र के जिस मोड पर है वहां अब आगे उनको ले जाना संभव नहीं था. ऐसे में कांग्रेस ने 58 साल के चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पंजाब कांग्रेस में युवा राजनीति की शुरूआत की है. उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर गुटबाजी को जवाब दे चुकी है. पंजाब की राजनीति का असर उत्तर प्रदेश  पर पडता है. इसकी प्रमुख वजह यह है कि बडी संख्या पंजाब के मूल निवासी उत्तर प्रदेश में रहते है. खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से लगी तराई बेल्ट में यह संख्या सबसे अधिक है. चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में भी दलित सिख कांग्रेस की तरफदारी करेगे.

उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति: 1977 तक दलितों ने पूरी तरह से कांग्रेस का साथ दिया था. इंदिरा गांधी का ध्यान भी दलित वोटर की तरफ था. इंदिरा ने इस वर्ग के लिये ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था. इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी कमजोर पडने लगी. ऐसेे मंे 1980 के बाद दलित आन्दोलन आगे बढने लगा. यही पर बहुजन समाज पार्टी का उदय हुआ. इसके लिये जिस तरह के नारे और अलगाववाद की बातें कही गई उससे दलित कांग्रेस से अलग होने लगा. दलित आन्दोलन प्रभावी होकर आगे बढने लगा और कांग्रेस कमजोर होने लगी. 1988 के बाद कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हो गई.

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कांग्रेस के टूटने से बसपा मजबूत होने लगी. 1993 में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई. 1995, 1997 और 2003 में भाजपा के सहयोग से मायावती मुख्यमंत्री रही. 2007 में मायावती की बसपा ने बहुमत से सरकार बनाई. इसके बाद स दलित वर्ग का मोह बसपा से भंग होना शुरू हुआ. धीरेधीरे दलित बिरादरी का रूझान वापस कांग्रेस की तरफ होने लगा. कांग्रेस की तरफ से पहली बार दलितांे का एक संदेश देने का काम किया गया है कि वह अपन पुराने वोटर को भूली नहीं है. ऐसे में अब पंजाब के बाद अगर कांग्रेस उत्तर प्रदेश  में दलित चेहरे को सामने लाकर काम करेगी तो उसे चुनाव में लाभ होगा.

अपर कास्ट, दलित और मुसलिम कांग्रेस का पुराना कम्बीनेशन रहा है. ऐसे में दलित-मुसलिम के साथ आने से कांग्रेस का आधार फिर से मजबूत होगा और उसको चुनावी लाभ होगा. राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार विमल पाठक कहते है ‘कांग्रेस और बसपा दोनो का एक दूसरे पर सीधा प्रभाव है. जैसे जैसे बसपा मजबूत होती गई कांग्रेस कमजोर पडती गई. अब जैसे जैसे बसपा कमजोर होगी कांग्रेस को दलित वर्ग का समर्थन मिलेगा तो कांग्रेस मजबूत होती जायेगी. पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलित कार्ड खेला है उसका असर उत्तर प्रदेश में होगा. अगर कांग्रेस ने यहां दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने की पहल कर दी तो कांग्रेस को लाभ जरूर मिलेगा.’

चुनावों में दलितों का प्रभाव: उत्तर प्रदेश में करीब 22 फीसदी दलित वोटर है. उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा क्षेत्रों में से 84 सीटे एससी के लिये आरक्षित है. यह सीटे जिस पार्टी की तरफ जाती है वह बहुमत से सरकार बनाने में सफल हो जाता है. 2007 मे 84 मे से 62 सीट बसपा को मिली थी. बसपा को बहुमत मिला मायावती मुख्यमंत्री बन गई. 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 58 सीट मिली सपा को बहुमत मिला अखिलश यादव मुख्यमंत्री बन गये. 2017 में भाजपा को 69 सीटे मिली तो भाजपा को बहुमत मिला और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गये. ऐसे में दलित वोट की ताकत साफतौर पर समझ आती है.

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84 विधानसभा की रिजर्व सीटों के अलावा 165 सीटें ऐसी है जहां एससी जीत और हार के फैसले को तय करता है. कांग्रेस से अलग होने के बाद कुछ समय के लिये एससी बसपा के साथ रहा लेकिन उसे बसपा का साथ भी रास नहीं आ रहा. वह सपा और भाजपा तक में गया पर उसे ‘घर जैसा माहौल’ नहीं मिला. कांग्रेस के पक्ष में आकर उसे घर जैसा माहौल लग रहा है. ऐसे में अगर कांग्रेस को उत्तर प्रदेष के विधानसभा चुनाव में दलित वोटर का साथ मिला तो विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस मजबूत होकर उभरगी.

कांग्रेस नेता सदफ जफर कहती है ‘कांग्रेस ऐसी पार्टी है जहां हर जाति और धर्म के लोग खुलकर सांस ले पाते है. ऐसे में वह हर तरफ से निराश होकर कांग्रेस की तरफ वापस आ रहे है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ताकतवर होकर वापस आयेगी. समाज के हर वर्ग का साथ कांग्रेस को मिल रहा है. कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी के आने के बाद यूपी में कांग्रेस के प्रति जनता में भरोसा बढा है. पंजाब में दलित चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद दलित वर्ग में उत्साह है.’

अदा… साहिल की : भाग 3

यास्मीन को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ था. सदमा इतना बड़ा लगा था कि रिपोर्ट पढ़ने और देखने तक की जरूरत नहीं समझी उस ने. आंसुओं का सैलाब आंखों में था और दिल डूबा जाता था. पर भला अब रोने से क्या फायदा होने वाला था.

अम्मीअब्बू की खुशियां भी नदारद सी हो गई थीं, आंखों में जो सपने टिमटिमा रहे थे, वे कहीं बुझ गए थे और घर का माहौल एकदम मुरदा हो गया था. कोई किसी से बात तक नहीं करता था.

फजल अकसर संजीदा हो कर एक बच्चे की बात सामने रखते और कहते थे कि अम्मीअब्बू को कितना शौक है छोटे बच्चे खिलाने का, पर…

इन सब बातों के बाद भी फजल ने यास्मीन का ध्यान रखना नहीं छोड़ा. वे रोज रात को गरम दूध और खजूर जरूर उसे खिलाते. पर हां, वे खुद में ही सिमट गए थे और गमजदा भी रहते थे. अम्मीअब्बू भी हमेशा गुमसुम से रहते थे.

यास्मीन को फजल बातोंबातों में ही ये एहसास करा देते कि खुद फजल तो पाकसाफ है, पर कमी तो यास्मीन में ही है. पर, यास्मीन को कुछ बातें समझ आतीं कुछ नहीं भी समझ आतीं, पर वह इतना जरूर समझ गई थी कि वह बांझ है और उस को अब फजल पर बोझ नहीं बनना चाहिए.

और धीरेधीरे वह समय भी आ गया, जब यास्मीन ने खुद ही अपने तलाक की बात फजल से कह दी, ‘‘मैं जानती हूं कि आप के बिना मैं रह नहीं पाऊंगी और मेरा वजूद भी आप के बिना अधूरा है, पर इस घर को भी एक वारिस की जरूरत है और वह मैं आप को देने में नाकाम रही हूं, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप मुझे तलाक दे दें और दूसरा निकाह कर लें.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रही हो यास्मीन… मैं तो तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा चाहता हूं… और फिर मैं तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊंगा,’’ फजल ने कहा.

‘‘नहीं… सब धीरेधीरे हो जाएगा. बस, आप मुझे तलाक दे दें और दूसरा निकाह कर के इस घर को एक वारिस दें… मैं तो अपनी जिंदगी किसी तरह काट लूंगी,’’ यास्मीन ने कहा.

‘‘अरे, तुम समझती नहीं हो… कोर्टकचहरी के चक्कर, भला हम किसी वकील को बताएंगे कि तुम मां नहीं बन सकती तो तुम्हारी कितनी बदनामी होगी. और न जाने कैसेकैसे सवालात पूछे जाएंगे,’’ फजल ने चिंता जताई.

‘‘नहीं… मैं अपने तलाक का आधार आपसी मनमुटाव का होना दिखाऊंगी, न कि मेरा बांझ होना…’’ एक झटके

में यास्मीन ने समस्या का हल बता

दिया था.

यास्मीन ने जो कहा, वह कर भी दिखाया और आननफानन में अपने आपसी रिश्तों में उठापटक को आधार दिखा कर यास्मीन ने तलाक ले लिया और उसी शहर में अपने मायके में रहने चली गई. जिंदगी में अपनेआप को बिजी रखने के लिए उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और खाली वक्त में बच्चों को ट्यूशन भी देने लगी.

फजल के परिवार को वारिस चाहिए था, इसलिए फजल ने भी दूसरा निकाह कर लिया और अपनी दूसरी बेगम शाजिया के साथ खुशीखुशी रहने लगा.

‘‘शाजिया सुनो, आज मैं ने अपने दोस्तों को शाम के खाने पर बुलाया है… ऐसा करना कि कुछ अच्छा सा बना लेना,’’ फजल ने औफिस से निकलते हुए कहा.

‘‘जी…बिलकुल आप को सब तैयार मिलेगा,’’ शाजिया ने हामी भरी. शाम को फजल के 2 दोस्त उस के घर आए, जिस में से एक तो वकील शाहिद था और दूसरा दोस्त वही डाक्टर था, जिस

के अस्पताल में यास्मीन का चैकअप हुआ था.

दोस्तों से फजल ने अपनी बीवी शाजिया को भी मिलवाया. खानेपीने के बाद हंसीमजाक का दौर चलने लग गया. ऐसा लग रहा था कि तीनों दोस्त कितने दिनों के बाद मिले हैं.

‘‘इसलिए कहते हैं कि दोस्तों की जमात में वकील और डाक्टर जैसे लोग जरूर होने चाहिए… भला शाहिद ने मुझे वो कीमती राय नहीं दी होती और तुम ने वे बच्चे न पैदा हो सकने वाली झूठी रिपोर्ट नहीं बनाई होती तो भला मैं कैसे यास्मीन से छुटकारा पाता… मान गए भाई तुम लोगों के शातिर दिमाग को… हा… हा… हा.’’

किचन से ड्राइंगरूम की तरफ जब शाजिया प्लेट में मीठा ले कर जा रही थी, तब ये सारी बातें उस ने अपने कानों से सुन लीं. ऐसी बातें सुन कर सन्न रह गई थी शाजिया.

‘‘मुझे पाने के लिए पहली बीवी को एक योजना के तहत तलाक दिया गया… आप ने तो मुझे बताया था कि यास्मीन के ताल्लुकात किसी गैरमर्द के साथ थे, इसीलिए आप ने उसे तलाक दे दिया… पर सचाई तो कुछ और ही है,’’ रात को बिस्तर पर शाजिया ने फजल से सीधा सवाल किया.

पहले तो बहुत देर तक फजल चुप्पी साधे रहे, पर जब बारबार शाजिया ने पूछा, तो उन्हें बोलना ही पड़ा, ‘‘हां… अब तुम जानना ही चाहती हो तो सुनो कि मैं ने तुम्हें पाने के लिए कितने पापड़ बेले हैं, तुम्हें क्या पता… सब से पहले तो मैं यास्मीन को दूध में बच्चा न होने वाली दवा देता रहा, डाक्टर दोस्त से उस की बांझ होने की फर्जी रिपोर्ट बनवाई और आंखों में आंसू ला कर सारी कहानी यास्मीन को बताई…

‘‘बस, फिर क्या था, बेचारी ने तलाक करवाने में खुद मेरी मदद की और चुपचाप मेरी जिंदगी से चली गई,’’ वे बेशर्मों की तरह कहे जा रहे थे.

‘‘आप ने एक बेगुनाह को सताया… यह आप ने सही नहीं किया. फजल, हमें इस की सजा मिलेगी,’’ शाजिया की आंखों में खौफ था और फजल के लिए नफरत.

पर अब किया क्या जा सकता था शाजिया से निकाह करने के लिए एक घिनौना खेल बनाया था फजल ने और शाजिया भी अपनेआप को जिम्मेदार मान रही थी.

अच्छा वक्त बहुत जल्दी गुजरता है तो बुरा वक्त बहुत धीरेधीरे… कुछ ऐसा ही शाजिया और यास्मीन के भी साथ रहा था.

अब फजल और शाजिया की शादी के भी 3 साल गुजर गए थे, पर शाजिया को अब भी बच्चे की खुशी नहीं मिल पाई थी. जब शाजिया की जांच कराई गई, तो रिपोर्ट में जो आया, उस ने सब को चौंका दिया.

शाजिया के गर्भाशय में कैंसर बन चुका था और जिस से नजात पाने के लिए बच्चेदानी को हटा देना ही एकमात्र उपाय था, जिस का सीधा सा मतलब था कि फजल और शाजिया को बिना औलाद के ही बाकी की तमाम जिंदगी काटनी पड़ेगी.

‘‘ओह, यह है कुदरत का कानून, उस की लाठी में आवाज नहीं होती है,’’ कह कर माथे को ठोंक लिया था शाजिया ने. फजल भी अब क्या कर सकते थे, पर उन्हें अब भी अपने किए का कोई पछतावा नहीं था.

शाजिया ने अपने गम के साथ जीना भी सीख लिया, उस ने अम्मीअब्बू को भी बता दिया कि वे उस से किसी वारिस की उम्मीद नहीं करें. अगर वारिस चाहिए भी तो एक बार फिर से फजल का तलाक करवाएं और किसी दूसरी लड़की के साथ निकाह करवाएं, पर फजल शाजिया को छोड़ने को कतई राजी नहीं हुए.

एक दिन शाजिया परेशान थी, तो उस ने फजल से उसे किसी पार्क में ले चलने की फरमाइश की.

दोनों पार्क में घुसे ही थे कि सामने से यास्मीन आती हुई दिखाई दी. शाजिया ने यास्मीन की तसवीर देख रखी थी, इसलिए उसे पहचान गई और आगे बढ़ कर उस से मिली.

फजल उस से मिलने में आनाकानी कर रहे थे, पर शाजिया जबरदस्ती कर उन्हें वहां ले गई.

‘‘यास्मीन… फजल को तुम जानती ही हो… और मैं इन की दूसरी बीवी शाजिया हूं… कैसी हो तुम?’’ शाजिया

ने कहा.

‘‘जी, मैं बहुत अच्छी हूं… और एक अच्छी जिंदगी बसर कर रही हूं… इन से तलाक लेने के बाद मैं जौब करने लगी और मेरी दोस्त हया ये मानने को तैयार नहीं थी कि मैं बांझ हूं और इसीलिए उस ने मेरी जांचें दोबारा करवाईं.

‘‘इन  जांचों में यह निकल कर सामने आया कि कोई मुझे जानबूझ कर ऐसी दवा दिए जा रहा था, जिस से मुझे बच्चा न हो सके,’’ यास्मीन पलभर को ठहर कर फजल की ओर देखने लगी, तो फजल नजरें नहीं मिला सके.

‘‘फिर मेरी जिंदगी में साहिल आए और मेरा हाथ मांगा. मेरे सामने एक लंबी जिंदगी थी, तो हम लोगों ने निकाह कर लिया…’’ और फिर यास्मीन ने सामने से आते हुए एक आदमी की तरफ इशारा किया, जो उसे देख कर मुसकरा रहा था और उस की गोद में एक छोटा बच्चा

भी था.

‘‘ये हैं साहिल… और यह है हम दोनों की बेटी… अदा…’’ इतना कह कर साहिल और यास्मीन पार्क से बाहर

जाने लगे.

फजल अब भी वहीं पर खड़े थे, ठगे हुए से…

अदा… साहिल की : भाग 2

लेखक-नीरज कुमार मिश्रा

यास्मीन को आज इस गुलाबजामुन की मिठास से भी ज्यादा मीठी तो फजल की बातें लग रही थीं, क्योंकि वे इतना प्यार जो जता रहे थे यास्मीन से. चलो देर आए दुरुस्त आए, यास्मीन मन ही मन फजल के बदले बरताव से बहुत खुश हो रही थी.

रात को जब सारा काम निबट गया और अम्मीअब्बू भी सोने चले गए, तो फजल खुद उठा और किचन में जा कर एक गिलास गरम दूध ले आया और यास्मीन को देते हुए बोला, ‘‘औफिस में साथ काम करने वाले कादिर भाई ने दुबई से खजूर ला कर दिए हैं और बोला है कि इन्हें रोज खाने से चेहरे पर नूर और बदन में ताकत बनी रहती है. तुम ने अपनी शक्ल नहीं देखी कि कैसी बदरंग हो गई हो. आज से रोज ये खजूर एक गिलास गरम दूध के साथ लेने हैं तुम्हें.  फिर देखो, कैसे खिल कर आएगा तुम्हारा रंग.’’

फजल अपने हाथों से यास्मीन को दूध पिलाने लगा. दूध पीतेपीते ही छलछला आई थीं यास्मीन की आंखें. वह सोच रही थी कि उस के शौहर उस का ध्यान नहीं रखते, पर वे तो बहुत प्यार करने वाले इनसान निकले. शायद वह ही गलत थी.

‘मैं ने सुना है कि जब मर्द लोग बाहर के काम में परेशान होते हैं तो उस का असर उन की निजी जिंदगी पर भी पड़ता है. हो सकता है कि फजल भी बाहर के काम से परेशान हों, तभी तो वे सही बरताव नहीं कर रहे थे,’ अभी यास्मीन यही सब सोच ही रही थी कि फजल ने उस के लबों को चूम लिया. यास्मीन शरमा गई और उस ने अपनी पलकें नीची कर लीं.

फजल ने भी अपनी बांहों का मजबूत घेरा यास्मीन के इर्दगिर्द डाल दिया और दोनों जवानी के दरिया में बह कर किनारे लगने की कोशिश करने लगे. उस दिन से 2 दिलों के साथ ही 2 जिस्मों की दूरियां भी कम होने लगीं, यास्मीन को अहसास होने लगा था कि अब फजल भी उसे प्यार करने लगे हैं.

अब तो आएदिन फजल कुछ न कुछ तोहफे देते, घुमाने भी ले जाते और जी भर कर प्यार करते. इन सब बातों के अलावा वे यास्मीन को अपने हाथों से गरम दूध और खजूर खिलाना नहीं भूलते थे.

‘‘पता है यास्मीन, अब मैं चाहता हूं कि जल्दी से तुम एक बच्ची को जन्म दो, जो एकदम तुम्हारे जैसी प्यारी हो, एकदम तुम्हारे जैसी गोरी… फूल सी नाजुक,’’ फजल आजकल अकसर बच्ची की फरमाइश करने लगे थे.

‘कितनी गलत थी मैं…’ यास्मीन बैठे हुए सोच रही थी और फिर उस ने अपनी खुशी बांटने के लिए अपनी सहेली हया को फोन लगाया. ‘कैसी हो यास्मीन, मैं कुछ दिनों से तुम्हें फोन नहीं कर पाई, क्योंकि थोड़ा बिजी थी. इस के लिए मैं माफी चाहती हूं,’ हया ने कहा.

‘‘ऐसी भी कोई बात नहीं है, जो तू इतना फील कर रही है, बस तुझ से यह बांटना चाहती हूं कि मेरी जिंदगी में अब सब ठीक हो गया है. सासससुर तो पहले से ही मुझे मानते थे और अब तो मेरे शौहर ने भी मेरा ध्यान रखना शुरू कर दिया है.

‘‘जब भी वे आते हैं मेरे लिए कुछ न कुछ ले कर आते हैं और अब तो प्यार भरी बातें भी करने लगे हैं,’’ चहक रही थी यास्मीन. ‘यानी, अब तुम जल्दी ही अम्मी बनने की खुशखबरी देने वाली हो,’ हया ने चुटकी ली.

‘‘वह भी बन जाऊंगी और जब बनूंगी तो सब से पहले तुझे ही बताऊंगी. अब तो मेरी अम्मी सास भी मुझ से बातोंबातों में एक औलाद की फरमाइश करने लगी हैं,’’ यास्मीन ने कहा.

‘तब फिर देर किस बात की है, फौरन ही खुशखबरी सुना डाल हम सब को. मुझे भी इंतजार रहेगा,’ हया ने कहा. पर जिस खुशी का सब को इंतजार था, वह खुशी नहीं मिल पा रही थी यानी दोनों के बीच एक बच्चा नहीं आ पा रहा था.

इन खुशियों के बीच शादी को एक साल गुजर गया था और खुशी तो उस दिन और भी बढ़ गई जब एक दिन अचानक फजल औफिस से दोपहर में ही घर आ गया. उस के हाथ में यास्मीन के लिए जूस था. अपने हाथों से जूस पिलाया था फजल ने और वह भी जबरदस्ती कर के. सच कहा जाए तो अपनी किस्मत पर फूली नहीं समा रही थी यास्मीन.

पर यास्मीन की खुशी ज्यादा समय तक नहीं रह पाई थी, क्योंकि जूस पीने के कुछ देर बाद ही यास्मीन को उलटियां शुरू हो गईं, घर में अम्मीअब्बू तो उलटियों से कुछ और अंदाजा लगाने लगे और खुशियां मनाने में जुट गए, पर यास्मीन की उलटियां रुक नहीं रही थीं.

फजल और अब्बूअम्मी तुरंत ही यास्मीन को अस्पताल ले कर भागे. डाक्टर भी फजल का दोस्त ही था, उस ने कुछ खून की जांचें करवाईं और कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, बस जरा सी कमजोरी है. उस ने फजल से कहा कि इन की कुछ जांचों की रिपोर्ट शाम तक आ जाएगी, तभी मैं आगे के इलाज के बारे में कुछ बता पाऊंगा.

फजल यास्मीन को ले कर घर चले आए और यास्मीन को आराम करने को कहा और खुद भी शाम होने का इंतजार करने लगे. शाम को जब फजल रिपोर्ट ले कर वापस आए, तो उन के चेहरे पर बारह बज रहे थे.

‘‘आप रिपोर्ट ले आए… क्या है इस रिपोर्ट में?’’ यास्मीन ने उत्सुकता से पूछा. पर फिर भी फजल मुंह लटकाए बैठे रहे. यास्मीन का तो जैसे कलेजा ही मुंह को आ रहा था कि न जाने ऐसी क्या बात है, जो फजल का मुंह इतना लटका हुआ है.

काफी पूछने के बाद ही फजल ने कुछ बोला, ‘‘दरअसल, जब तुम अस्पताल में थीं, तभी अम्मी ने डाक्टर से कहा कि वे जल्दी से दादी बनने की खबर सुनना चाह रही हैं… तो डाक्टर ने कहा कि यह केस वैसा नहीं है, जैसा आप समझ रही हैं, बल्कि यह केस तो बदहजमी और अपच का है, लेकिन फिर भी अम्मी के बारबार कहने पर डाक्टर ने तुम्हारे शरीर की दूसरी जांचें भी कीं, जिन की रिपोर्ट मैं ले कर आया हूं. इस में यह लिखा है कि तुम कभी मां नहीं बन सकतीं…’’ फूटफूट कर रोने लगे थे फजल.

 

 

अदा… साहिल की : भाग 1

लेखक-नीरज कुमार मिश्रा

फजल और यास्मीन की शादी को पूरे 2 महीने हो चुके थे, पर इन 2 महीनों में शायद ही कोई वह लमहा आया हो, जब फजल ने यास्मीन से प्यार से बात की हो या उस का हाथ थामा हो, वे तो बिस्तर पर भी दूरियां बनाए रखते. शाम ढले जब औफिस से घर लौटते, तो उन के चेहरे पर जमाने भर का गम और दुनियाभर की बेरुखी छाई होती, गोया पूरी कायनात की चिंता उन के ही सिरमाथे पर हो.

यास्मीन ने कई बार पूछने की कोशिश भी की कि क्या कोई परेशानी है, पर सब फजुल था. फजल तो बात ही नहीं करते थे. यास्मीन आज के जमाने की लड़की जरूर थी, पर जब निकाह हुआ था, तब से उस ने अपनेआप को ससुराल के रंग में ही रंग लिया था. जैसा उस के सासससुर, पति चाहते, वह वैसा ही काम करती थी. बाकी सब तो उस से सामान्य ही थे, पर उस के शौहर का मिजाज ही उस से नहीं मिलता था.

यह बात यास्मीन ने अपनी सब से करीबी सहेली हया से शेयर की तो हया ने कहा, ‘‘यास्मीन, अब तुम शादीशुदा हो कर भी मुझ से ऐसी बच्चों जैसी बातें मत करो…‘‘अरे भई… अगर तुम्हारे शौहर तुम से नाराज चल रहे हैं, तो तुम्हारे पास तो हजार अदाएं होनी चाहिए उन को रिझाने की… मसलन, उन की पसंद का इत्र लगा कर उन के करीब जा, औफिस में कई बार फोन कर… या अगर मुमकिन हो तो एकाध बार वीडियो काल भी कर सकती है, और रात को जब वे आएं तो एक मुसकराहट से उन को खुश किया कर. और हां… जब रात में वे बिस्तर पर आएं तो…’’

‘‘चल बेशर्म कहीं की… नाम क्या है तेरा… पर जरा भी हयाशर्म नहीं है तुम को…’’ शरमा उठी यास्मीन के गाल गुलाबी हो गए.‘‘ऐ मैडम, मैं कोई ऐसीवैसी बात नहीं बोलने जा रही हूं. मेरा मतलब तो सिर्फ इतना है कि जब वे रात को बिस्तर पर आएं तो उन्हें खूब रूमानी शायरी सुनाया कर, या फिर इश्कमुहब्बत वाले बढि़या अफसाने सुनाया कर, फिर देख तेरे वे तुझ पर कितना फिदा हो जाते हैं… यार, यही सब तरीके हैं… अब कोई ममोले मियां का सुरमा तो है नहीं मेरे पास, जो मैं तुम्हें दे दूं और तू उसे आंखों में भर कर उन को रिझा ले.’

पर ये सारे नुसखे वे थे, जो यास्मीन आज से पहले ही आजमा चुकी थी, पर फिर भी फजल के बरताव में कोई फर्क नहीं पड़ा था.उधर फजल भी अपनी शादी से बिलकुल खुश नहीं थे, इसलिए उन्होंने भी अपनी परेशानी अपने दोस्त शाहिद से बांटी, जो पेशे से वकील भी था.

फजल ने बताया, ‘‘यार भाई शाहिद, मैं अपनी शादी से बिलकुल भी खुश नहीं हूं और इसलिए मैं अपनी बीवी से अच्छा बरताव भी नहीं कर पाता हूं. मैं आगे नहीं जानता कि मेरे साथ क्या होगा?’’‘‘क्या मतलब… तेरी बीवी खूबसूरत नहीं है क्या?’’ शाहिद का वाजिब सा सवाल था.

‘‘नहीं यार, वह तो खैर बहुत खूबसूरत है और घर का काम भी बखूबी जानती है, पर मैं उसे देखते ही चिढ़ जाता हूं और नौर्मल नहीं हो पाता,’’ फजल ने अपनी परेशानी बताई.‘‘बड़ी अजीब बात है, जब तेरी बीवी सब काम जानती है, खूबसूरत भी है, फिर तेरी परेशानी है कहां पर?’’

‘‘यार शाहिद, अब तुम से क्या छुपाना, मैं किसी दूसरी लड़की से प्यार करता हूं.’’अब चौंकने की बारी शाहिद की थी.‘‘मतलब… इश्क किसी और से फरमा रहे हो… तो फिर शादी किसी और से क्यों की?’’ शाहिद ने पूछा.‘‘अरे यार… बस यों समझ लो कि घर वालों की वजह से मुझे करनी पड़ी… पर अब बताओ कि आगे क्या करूं मैं? और एक बात तो पक्की है कि मैं यास्मीन के साथ तो निबाह नहीं कर पाऊंगा,’’ फजल ने मेज को अपनी मुट्ठी से दबाते हुए कहा.

‘‘एक बार फिर से सोच ले… कहीं तुझे पछताना न पड़े,’’ शाहिद ने फजल को राय देते हुए कहा.‘‘नहीं यार, मैं कई बार सोच चुका हूं, पर मुझे लगता है कि मैं यास्मीन के साथ तो नहीं रह पाऊंगा,’’ फजल ने कहा.‘‘तो फिर एक ही रास्ता है तेरे पास… तू यास्मीन को तलाक दे दे और अपनी महबूबा से शादी कर ले और फिर आराम की जिंदगी जी,’’ शाहिद ने कहा.

‘‘हां, पर तलाक की कोई ठोस वजह भी तो होनी चाहिए. और फिर हमारी शादी को हुए अभी बहुत कम समय ही हुआ है तो इतनी जल्दी तलाक… कैसे हो पाएगा ये सब?’’ कहते हुए फजल परेशान हो उठा.‘‘अरे, जब तू ने मुझे दोस्त माना है तो वह सब मुझ पर छोड़ दे और जैसे मैं कहता हूं वैसा करता जा… फिर देख सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी,’’ शाहिद ने कहा और फिर एक प्लान फजल को बताया, जिसे सुन कर फजल की आंखों में नई रोशनी सी जागने लगी.

शाम को जब फजल घर लौटा, तो उस के चेहरे पर मुसकराहट थी और वह आतेआते सीधा अपने कमरे में पहुंच गया, जहां यास्मीन गुमसुम सी बैठी हुई थी.‘‘क्या बात है… हमारी बेगम की तबीयत कुछ नासाज चल रही है क्या?’’ बड़ी ही नरम आवाज में फजल ने यास्मीन से पूछा.‘‘न, नहीं तो… तबीयत तो एकदम ठीक है… वो बस यों ही… बैठ गई थी,’’ यास्मीन चौंक गई थी.

‘‘अच्छा ये लो… गुलाबजामुन खाओ,’’ फजल ने गुलाबजामुन की थैली यास्मीन की तरफ बढ़ाते हुए कहा.‘‘गुलाबजामुन…?’’‘‘हां… मुझे याद है कि तुम्हें गुलाबजामुन बहुत पसंद हैं… मैं आते वक्त रास्ते में दुकान पर रुका और पैक करवा लिए तुम्हारे लिए,’’ फजल ने प्यार दिखाया.

‘‘हां तो अम्मी और अब्बू को भी दे कर आती हूं,’’ यास्मीन बाहर की ओर जाने लगी, तो फजल ने उस की कमर में हाथ डाल कर उसे पकड़ लिया और उस की जुल्फों की महक लेते हुए बोला, ‘‘अम्मीअब्बू के लिए मैं कुछ और लाया था. वह मैं उन्हें दे आया हूं. ये तो खास तुम्हारे लिए हैं मेरी जान,’’ फजल ने रूमानी अंदाज में कहा.

 

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