नीति तो उन की आंखों में संतुष्टि देख कर ही स्वयं को धन्य समझ लेती थी. हालांकि उस का भी दिल चाहता कि कभी तो सासूमां प्यार के दो बोल नीति के लिए भी बोल दें. कभी तो सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख कर दिल से दुआएं दें. पर ऐसा हो न पाता.
वैसे, सुमित्रा का दिल तो सचमुच आशीर्वाद देने लगा था अब नीति को. परंतु सासबहू के रिश्ते के बीच कठोरता की जो दीवार सुमित्रा ने खुद ही खींच दी थी, वह अब चाह कर भी उसे गिरा नहीं पा रही थीं. नीति प्रारंभ में प्रयास करती भी थी, परंतु जब सफल नहीं हो सकी तो उस ने इसे नियति मान लिया था, क्योंकि यह सुमित्रा का स्वभाव तो हरगिज नहीं कहा जा सकता था. स्वभाव तो तब होता न, जब सब के साथ वह ऐसा ही व्यवहार करतीं. पर वह तो केवल नीति के साथ कठोरता का आवरण चढ़ा कर रखती थीं.
दिनेशजी और राधिका वापस आए तो राधिका नीति को अपने द्वारा की गई शौपिंग दिखाने को ले कर बहुत उत्साहित थी. दिनेशजी के पास भी सुमित्रा को बताने के लिए दुनियाभर की बातें थीं, परंतु सुमित्रा के पास कहने को उन दोनों से भी कहीं अधिक कुछ था. जब सुमित्रा ने सब हाल सुनाया तो दिनेशजी भी हतप्रभ रह गए कि कैसे उन की छोटी सी कोमल सी बहू ने सबकुछ संभाला होगा.
सुमित्रा ने सबकुछ विस्तार से बताया कि कैसे नीति ने पूरे सप्ताह की छुट्टी ले कर इस समस्या के समाधान के साथ सुमित्रा को भी तनावमुक्त रखने की पूरी चेष्टा की. “और भाभी की प्रेजेंटेशन का क्या हुआ? वह भी तो इसी हफ्ते थी?” राधिका ने पूछा “प्रेजेंटेशन…? नीति ने तो कुछ नहीं बताया,” सुमित्रा बोलीं.
“उन का तो प्रमोशन भी उसी के आधार पर होने वाला था. कितनी उत्साहित थीं वह इसे ले कर.” इतने में नीति चाय के साथ हाजिर हो गई और हंस कर बोली, “प्रमोशन का क्या है, कुछ दिनों बाद हो ही जाएगा. नौकरी परिवार से बढ़ कर तो नहीं है न? अभी मां को और घर को मेरी जरूरत ज्यादा थी.” सुमित्रा का जी चाहा कि बहू को गले लगा लें, पर उसी दीवार ने फिर रोक दिया, जो उन की स्वयं की खींची हुई थी.
शाम को कांता मिलने आई, तो वही पुराना राग अलापने लगी. दिनेशजी से बोली, “आ गए आप लोग. सुमित्रा कितनी परेशान हुई पीछे से. कितना कहा नीति से कि भाईसाहब को फोन कर दो. पर आजकल बहुएं सुनती कब हैं किसी की.”
परंतु आज सुमित्रा फौरन बोलीं, “जब आजकल की बहुएं हमारी पीढ़ी से अच्छे निर्णय लेने की क्षमता रखती हैं, तो हमें भी हर बात में अपनी नहीं चलानी चाहिए न कांता? मेरी बहू तो लाखों में एक है और ये उस ने पूरी तरह सिद्ध कर दिया है. सर्वगुण संपन्न है वह, घर और बाहर दोनों जगह की जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाना जानती है. मुझे अपनी बहू पर गर्व है कांता.”
सुमित्रा ने पहली बार खुले दिल से नीति की प्रशंसा सब के सामने की. कांता अपना सा मुंह ले कर रह गई. तभी अचानक नीति कमरे में आई और सुमित्रा के गले में बांहें डाल कर बोली, “सचमुच गर्व है तो मुझ से भी कहिए न…? मेरे तो कान तरस गए थे आप के मुंह से अपने लिए कुछ अच्छा सुनने के लिए. लगता था, आप का दिल कभी जीत ही नहीं पाऊंगी.”
सुमित्रा ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, “सच कह रही हो बेटा. पता नहीं, हम सास लोग बहू की प्रशंसा में इतनी कंजूसी क्यों करती हैं? एक ओर तो हम पढ़ीलिखी आधुनिक बहू चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर उन की तुलना अपने जमाने से करने लगते हैं. छोटी से छोटी कमियां ढूंढते हैं. मैं तो हमेशा खुद को सर्वगुण संपन्न समझती थी. अब समझी कि आज के युग में सर्वगुण संपन्न की परिभाषा भी बदल गई है. उन परिस्थितियों में तो मेरे हाथपैर ही फूल गए थे, जिन में तुम ने इतने साहस का परिचय दिया. तुम न होती तो पता नहीं मेरा क्या होता.”
दिनेशजी और राधिका आज बहुत खुश थे. राधिका से तो खुशी संभाले नहीं संभली तो उस ने सुमित को फोन लगा दिया. आज कांता के चेहरे पर ईर्ष्या के भाव सुमित्रा स्पष्ट पढ़ पा रही थीं. जब सहन नहीं हुआ तो कांता विदा ले कर ही चली गई.