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‘निर्भया-एक पहल’ 75,000 महिलाओं के लिए जागरूकता कार्यक्रम

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी कल 29 सितम्बर, 2021 को यहां मिशन शक्ति के अन्तर्गत ‘निर्भया-एक पहल’ कार्यक्रम का शुभारम्भ करेंगे. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी द्वारा ‘एक जनपद, एक उत्पाद योजना’ के विशेष आवरण तथा विशेष विरूपण का विमोचन भी किया जाएगा.

‘निर्भया-एक पहल’ कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश के सभी 75 जनपदों मेें प्रति जनपद 1,000 महिलाओं का एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम तथा 03 दिवसीय कौशल क्षमता विकास प्रशिक्षण संचालित किया जाएगा. 75,000 महिलाओं को इस कार्यक्रम के माध्यम से लाभान्वित किया जाएगा.

प्रदेश के सभी 75 जनपदों में कल सम्बन्धित जनपद के ओ0डी0ओ0पी0 उत्पाद के सम्बन्ध में भारतीय डाक विभाग के सहयोग से एक विशेष कवर तथा विशेष विरूपण का अनावरण एवं विमोचन किया जाएगा. इस प्रकार, एक ही दिवस और समय पर प्रदेश में 75 विशेष आवरण जारी किए जाएंगे. यह सभी आवरण देश के विभिन्न डाक घरों में भेजे जाएंगे, जिससे प्रदेश के ओ0डी0ओ0पी0 उत्पादों को व्यापक राष्ट्रीय पहचान मिलेगी.

राजनीतिक मुद्दा: जातीय जनगणना- क्या एकजुट होंगे पिछड़े

राजनीति में संख्या का सब से अधिक महत्त्व होता है. हर जाति अपनी संख्या को सब से अधिक दिखा कर मजबूत दिखाना चाहती है. ओबीसी जातियों की संख्या सब से ज्यादा है. सब से बड़ा वोटबैंक होने के बाद एकजुटता न होने के कारण उसे अगड़ी, दलित और मुसलिम जातियों के पीछे चलना पड़ता है. इसी कारण उन को संख्या में अधिक होने के बाद भी सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिल पाती है. 1990 के बाद देश की राजनीति पर मंडल कमीशन का असर पड़ा. पिछड़ी जातियों के तमाम क्षत्रप नेता उस दौर में सत्ता का केंद्र भी बने. उस के बाद भी वे एकजुट न रह सके.

ओबीसी जातियों में भी आगे रहने वाली यादव, कुर्मी और पटेल जैसी कुछ जातियों के ही हिस्से में सत्ता की मलाई आई, जिस की वजह से ओबीसी में 2 हिस्से हो गए. ओबीसी में अतिपिछड़ा वर्ग के नाम से एक अलग वर्ग बन गया. इस वर्ग को आगे कर के पिछड़ी जातियों के चुनावी प्रभाव को कम करने का काम किया गया. जिस की वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में पिछड़ी जातियों की अगुआई करने वाले दल कमजोर पड़ गए. वे दूसरे दलों का सहारा लेने को मजबूर होने लगे. पिछड़ों की राजनीति यह बात सम?ा कर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते हैं, ‘‘भाजपा पिछड़ों की राजनीति कर रही है. वोट के लिए मंत्री पद दिए जा रहे हैं.

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जीहुजूरी की जा रही है. यही पिछड़े वर्ग के लोग जब अपना हक मांग रहे हैं तो उन को लाठियों से पीटा जा रहा है.’’ ‘‘भाजपा जातियों को आपस में लड़ा रही है. पिछड़े वर्ग के लोगों को यह कह कर बरगलाया जा रहा है कि पिछड़ों के सारे हक यादव छीन ले जा रहे हैं. हम जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं तो भाजपा इस को स्वीकार नहीं कर रही है, दरअसल, भाजपा को मालूम है कि पिछड़ों की संख्या सब से ज्यादा है. ‘‘पिछड़ी जातियां यह देख कर सत्ता में हिस्सेदारी मांगने लगेंगी. वे भाजपा में अगड़ी विचाराधारा के लोगों के पीछे चलना छोड़ देंगी. जातीय जनगणना से ही दलित और पिछड़ों को सत्ता में हक मिल सकेगा.’’ अखिलेश यादव पिछड़ी जातियों को भरोसा दिलाते हुए कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा की सरकार बनने के बाद जातीय जनगणना कराई जाएगी.’’ बात केवल अखिलेश यादव की नहीं है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे हैं.

नीतीश कुमार ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मांग की है कि जातीय आधार पर जनगणना की जाए. देश में 1931 में जातीय आधार पर जनगणना हुई थी. उसी को आधार मान कर अब तक राजनीति हो रही है. सभी जातियां अपनेअपने अनुसार संख्या को बढ़चढ़ कर दिखा रही हैं. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति का समर्थन करने वाले ब्राह्मण वोटबैंक 13 से 15 प्रतिशत तक बताने लगे हैं, जिस की वजह से ही राजनीतिक दलों में ब्राह्मण वोटबैंक के प्रति दिलचस्पी बढ़ने लगी है. जबकि 1931 की जनगणना के आधार पर अगड़ी जातियों की संख्या 15 प्रतिशत बताई गई थी. आधार बन रहा वीपी सिंह फामूर्ला वरिष्ठ पत्रकार योगेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश के विधानसभा और उस के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को घेरने के लिए पिछड़े वर्ग के नेता मंडल राजनीति को नए सिरे से मजबूत करना चाहते हैं. इस के लिए आधार जातीय जनगणना को बनाया जा रहा है. ‘‘पिछड़े वर्ग के नेताओं को लग रहा है कि पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियां अगर एकजुट हो जाएंगी तो धर्म की राजनीति को हाशिए से बाहर किया जा सकता है.

1989 में उस समय के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राममंदिर राजनीति को मात देने के लिए ही मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया था. उस दौर की राजनीति को ‘मंडल बनाम कमंडल’ का नारा भी दिया गया था.’’ ‘‘लालू प्रसाद यादव की सक्रियता के बाद अंदरखाने पिछड़ी जातियों के नेता एकजुट हो रहे हैं. ये वही नेता हैं जिन्होंने मंडल की राजनीति के सहारे सत्ता हासिल कर भाजपा और अगड़ी जातियों को सत्ता से दूर रखा था. इन में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार प्रमुख हैं. ‘‘मंडल के ये नेता अपनीअपनी जरूरतों और ताकत को बचाने के लिए खेमे बदलते रहे. इन में से कई नेता भाजपा की अगुआई वाले एनडीए के साथ भी रहे. 2014 के बाद भाजपा ने सहयोगी दलों को कमजोर कर अकेले चलने की रणनीति बनाई तो सहयोगी दल भी अपना अलग रास्ता देखने लगे. पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार ने इन दलों में आत्मविश्वास भर दिया.

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अब ये उत्तर प्रदेश में एकजुट हो कर अपनी ताकत को आजमाना चाह रहे हैं.’’ पिछड़ों की एकजुटता बड़़ी चुनौती ‘देशपथ’ दैनिक समाचारपत्र के संपादक अनिल मिश्र कहते हैं, ‘‘यह बात सच है कि देश की राजनीति में सब से बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग का ही है. पिछड़े वर्ग को कमजोर करने के लिए अतिपिछड़ा वर्ग अलग से दिखाया जाने लगा. भाजपा ने इस वर्ग के छोटेछोटे नेताओं को महत्त्व दिया. मौर्य बिरादरी के केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया. पटेल बिरादरी के अपना दल की अनुप्रिया पटेल को केंद्र में मंत्री बनाया. राजभर बिरादरी के नेताओं को महत्त्व दिया. ‘‘यह सच है कि मंडल की राजनीति का सब से बड़ा लाभ पिछड़ी जातियों में यादवों को ही मिला. उस में से भी देखें तो पूरी राजनीति लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के परिवारवाद के आसपास घूमती रही. इस से पिछड़ों में असंतोष को भड़काने का मौका मिला. ‘‘मुलायम और लालू के दौर में पिछड़ी जाति के दूसरी बिरादरी के नेताओं को फिर भी मौका मिलता था. इन के बेटों ने जब पार्टी की कमान संभाली तो पिछड़ा एकता की बात तो जाने दीजिए, ये अपने परिवार में ही एकजुटता कायम नहीं रख पाए.

नेताओं में जो सरल स्वभाव लालू और मुलायम का था वह उन के बेटों में देखने को नहीं मिलता. इन के स्वभाव की आक्रामकता साफतौर पर दिखती है. विपक्ष में रहने के बाद भी इन के स्वभाव में सरलता नहीं दिखती. ‘‘ये नेता भी सत्ता के ही नेताओं की तरह अपनी पसंद के लोगों से ही मिलतेजुलते हैं. अपनी जाति के लोगों को महत्त्व देते हैं. अगर पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों के बीच आपस में संबंध नहीं बने तो कितनी भी जातीय जनगणना हो जाए, लाभ नहीं होगा. संभव है कि यादवों की संख्या कम हो तो पिछड़ी जातियों के बीच उन का ही विरोध शुरू हो जाए.’’

बोल कि लब आजाद हैं तेरे

‘‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ है, समय लिखेगा उन के भी अपराध.’’

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये कालजयी पंक्तियां अन्याय को अनदेखा करने की हमारी उसी आदत की ओर इशारा करती हैं, समाज में हमारी उसी चुप्पी की बात करती हैं जो आजकल हम ने साध रखी है. हम चाहे अपने परिवार की बात करें, देश की करें या समाज की करें, भीष्म की तरह हमारी चुप्पी का दुष्परिणाम देश की तारतार होती व्यवस्था के रूप में दिखाई देने लगा है. फौज में रह चुके मशहूर शायर फैज अहमद ‘फैज’ को अगर बेकुसूर होने पर भी कैद किया गया तो उन की कलम से यही आना ही था जो इन दिनों आप बहुत पढ़ व सुन रहे होंगे. ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे बोल जबां अब तक तेरी है बोल कि सच जिंदा है अब तक बोल जो कुछ कहना है कह ले.’ फैज साहब पर मार्क्सवादी विचारों ने गहरा असर डाला था और उन्होंने कम्युनिस्ट विचारधारा की एलिस से निकाह किया था.

यहीं से उन के लिखे गए शब्दों को मार्क्सवादी और कम्युनिस्ट विचारधारा से जोड़ कर देखा जाने लगा. 1951 में लियाकत अली खान की सरकार के तख्तापलट करने के जुर्म में उन्हें जेल हो गई थी. जेल में उन के लिखने पर पाबंदी लगा दी गई थी और उस पाबंदी के खिलाफ उन की आवाज आग ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे…’ बन कर निकली, जो आजकल खूब सुनी व सुनाई जा रही है. पूरी नज्म में शुरू से आखिर तक फ्रीडम औफ एक्सप्रैशन की ही बात है, एक तरह का बागी रवैया है, ‘बोल कि थोड़ाबहुत वक्त है जिस्म ओ जबां की मौत से पहले.’ कलम के धनी फैज ने जेल में बैठेबैठे भी कैसे जोश की बात की. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ‘बोल…’ नज्म को जेल में नहीं लिखा गया. खैर, बात यहां यह नहीं है कि कहां लिखा गया. बात यह है कि ‘बोल…’ नज्म आज भी कितनी प्रासंगिक है. आज भी जब इस की बात हो रही है तो इस नज्म को सुननेसुनाने वालों को ही गलत ठहरा दिया जा रहा है.

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आजकल जब अभिव्यक्ति की आजादी की बात होती है तो फैज की इस कालजयी रचना को याद किया जाता है. लेकिन इस नज्म का अभिव्यक्ति की आजादी से इतना संबंध नहीं है जितना कि जटिल परिस्थितियों में अपनी चुप्पी तोड़ने की बात इस में हो रही है. आप को लगेगा कि इस में खास बात क्या है, बोलने की ही तो बात हो रही है तो क्या हो गया, जिसे जब बोलना होगा, वह बोल लेगा. पर सच में हम तब बोल रहे हैं जब, जहां हमारा बोलना जरूरी है. कभीकभी किसी बात में चुप रहने को सम?ादारी भी कहा जाता रहा है पर आज के जो हालात हैं, वहां मौन रह कर अन्याय होते देखना और सहना एक बड़ी गलती है जिस का खमियाजा हम औरतें ही ज्यादा भुगतती आई हैं. हमें बचपन से ही सिखायापढ़ाया जाता रहा है कि एक चुप्पी सौ को हराए, एक चुप्पी सौ को सुख दे जाए. यह मान सकते हैं कि एक मूर्ख व्यक्ति के सामने चुप रहना सम?ादारी होती है पर जीवन में हमेशा चुप रह जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं होता है.

कभीकभी हमारे सामने कोई ऐसी ताकत खड़ी होती है जिस के सामने हम चुप रहना ठीक सम?ाते हैं, यहां चुप रहना हमें किसी समस्या से बचने का एक आसान हल लगता है. हो सकता है चुप रह कर हम किसी परेशानी से बच भी जाएं पर ऐसे में हमारा चुप रहना सामने खड़े इंसान को समर्थन दे देता है और वह अपनेआप को और बड़ी ताकत व बड़ा इंसान सम?ाने लगता है. यहीं से शुरुआत होती है हमारे दमन की, हम पर होने वाले जुल्मों की, अत्याचारों की. फिर यह बात यहीं नहीं रुकती. एक सिलसिला शुरू हो जाता है और हम हर अन्याय में न चाहते हुए भी सम्मिलित होते चले जाते हैं जो आगे चल कर परिवार, देश और समाज में एक बड़ी समस्या उत्पन्न कर देता है. तो फिर क्या किया जाए? खुद ही अपने बारे में यह सोचना होगा कि कौन सी बात है जो हमें कोई विरोध करने से रोक लेती है.

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क्या हम सामने वाले की ताकत से डर जाते हैं? या यह हमारे मन में बैठा एक डर है जो हमें चुप्पी नहीं तोड़ने देता और हम महिलाएं दिन ब दिन इस डर में ही अपना जीवन बिताए चली जाती हैं. एक बार मन से डर को निकाल कर चुप्पी तोड़ना बहुत जरूरी है. हम कहां बोल रहे हैं? कहीं तानाशाही के डर से तो कहीं धर्म और परंपराओं के डर से हम चुप नहीं रहते? सरकार की आलोचना पर देशद्रोही कह दिया जाता है, किसी नेता का कार्टून बना देना मुसीबत बन जाता है. पत्रकारों को एक रिपोर्ट के कारण इस्तीफा देना पड़ जाता है, सोशल मीडिया पर ट्रौलिंग शुरू हो जाती है. यह सिर्फ हमारे देश की बात नहीं है, सब जगह ऐसा ही हो रहा है, रूढि़वादी आवाजें कहीं ज्यादा बुलंद होती जा रही हैं. हमें बोलना होगा, हमारी चुप्पी टूटनी चाहिए, हमें अपनी चुप्पी तोड़नी ही होगी.

जिस लड़की को कहा जाए कि उसे पीरियड के समय किचन में नहीं जाना है, वह सवाल उठाए कि क्यों नहीं जाना है? जिसे भीड़ घेर कर मार रही हो, उस भीड़ के सामने बोलना होगा. किसानों के बच्चों के भविष्य के लिए बोलना होगा. जो बच्चे पड़ोस में तेज आवाज में चल रहे लाउडस्पीकर के कारण पढ़ नहीं पा रहे, उन्हें बोलना होगा. किसी सिपाही को घटिया खाना मिलने के खिलाफ बोलिए, देश की रक्षा में खड़े जांबाज को क्यों मिले खराब खाना. फाइलों में घूमते भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना होगा. हर अन्याय, ?ाठ के खिलाफ बोलिए. उदाहरण अनंत हैं. बोलने की आजादी आप को कुदरत ने, संविधान ने दी है. आप बोलिए, बोलने पर सजा मिल सकती है, फिर भी बोलिए. मार्टिन निमोलियर ने अपनी जरमन कविता में चेतावनी दी थी- ‘‘पहले वे समाजवादियों के लिए आए और मैं नहीं बोला क्योंकि मैं समाजवादी नहीं था, फिर वे ट्रेड यूनियन वालों के लिए आए और मैं नहीं बोला क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन वाला नहीं था,

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फिर वे यहूदियों के लिए आए और मैं नहीं बोला क्योंकि मैं यहूदी नहीं था, फिर वे मेरे लिए आए और कोई नहीं बचा था मेरे हक में बोलने के लिए,’’ जो आधुनिक मिडिल क्लास के लोग ऐसे विचारविमर्श से खुद को तटस्थ रखते हैं उन्हें यह सम?ा लेना चाहिए कि उन की यह चुप्पी और उदासीनता उन के बच्चों के लिए अभिशाप बन जाएगी. आज देश में ?ाठ और अफवाहों का बाजार गरम है. ?ाठ की जबरदस्त मार्केटिंग हो रही है. लेकिन सच जिंदा है, सच को जिंदा रखने के लिए चुप्पी तोड़ दीजिए. अगर आप सच नहीं जानते तो सच जानने के लिए बोलिए. मिर्चमसाले खाने और फिल्मों में तो अच्छे लगते हैं पर इतिहास और ?ाठी खबरों में मिर्चमसाला न देखें. आप की सोचने की शक्ति को खत्म कर दिया गया है.

आप, बस, फौरवर्ड और लाइक करने में लगे रहते हैं, आप सच को ढूंढ़ना ही भूल गए हैं. बोलिए, समय कम है. आज हम किस मोड़ पर खड़े हैं, किस तरफ जा रहे हैं. समय सचमुच कम है. पर आप के बोलने के लिए यह थोड़ा समय भी बहुत है. ‘क्यों बोलूं? किसे बोलूं? बोलने से कुछ फायदा है क्या? किसी की कोई सुनता है क्या आजकल? नहीं न? फिर क्या बोलना, छोड़ो…’ ये सब बातें मन से निकाल कर चुप्पी तोड़नी ही होगी. एक चुप्पी टूटेगी तो साथ में सौ और चुप्पी भी टूटेंगी, यह मान कर चलें. इतिहास गवाह है कि पापियों की उद्दंडता ने समाज को उतना नुकसान नहीं पहुंचाया जितना कि सज्जनों के मौन ने पहुंचाया. यदि कोई मूर्ख बोल रहा हो तो बेशक चुप रहिए पर यदि कहीं छल हो रहा हो, अपराध हो रहा हो तो उठिए और विरोध कीजिए. अपने लिए न सही, आने वाली पीढ़ी के लिए बोलिए. वरना, आप का मौन घातक हो सकता है.

मैं दो लड़को से प्यार करती हूं, किससे शादी करूं और किस से नहीं, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती थी और वह भी मुझे उतना ही चाहता था. मगर किसी बात के कारण हमारी बात 2 साल नहीं हो पाई, लेकिन हम दोनों एकदूसरे को नहीं भूल पाए. एक अन्य युवक, जो 2 साल से मुझे प्यार करता है और मैं भी उसे मन ही मन चाहने लगी हूं. लेकिन उसे मैं अपने पहले प्यार की तरह नहीं चाहती हूं. मगर इस युवक से मेरे घर वाले शादी के लिए मान गए हैं. अब जब शादी होने वाली है तो पहले वाला युवक मेरी जिंदगी में दोबारा आ गया है. मैं उस से अब भी प्यार करती हूं और अब वह भी मुझ से शादी करने को कह रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

वास्तव में आप दोनों को ही धोखा दे रही हैं. जिन कारणों से आप का पहले युवक से मनमुटाव हुआ था और 2 साल तक बात नहीं हुई, क्या वे कारण दोबारा उत्पन्न नहीं होंगे? आप अपने पेरैंट्स से बात करें. यह गुड्डेगुड्डी का खेल तो है नहीं कि चलो वह नहीं, तो दूसरा फिट हो जाएगा. सोचसमझ कर ही निर्णय लें.

 

सवाल

मैं 19 साल का हूं और 21 साल की एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं. पर वह लड़की किसी और को चाहती है और उन दोनों की शादी भी होने वाली है. इस बात से मैं बहुत तनाव में रहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

उस लड़की को भूल जाने में ही आप की और सब की भलाई है. जब वह लड़की आप को नहीं चाहती और दूसरे से शादी भी कर रही है तो आप फिल्म ‘डर’ के शाहरुख खान बनने के बजाय फिल्म ‘प्रेम रोग’ के ऋषि कपूर बनें और अपने कैरियर पर ध्यान दें. यह एकतरफा प्यार है. जब कोई लड़की वाकई आप को दिल से चाहने लगेगी तो वह खुद आप को ‘आई लव यू’ बोलते हुए शादी की भी पेशकश करेगी.

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जब दोस्ती में बढ़ जाए Jealousy

दोस्ती में प्यार है तो तकरार भी है. रूठना है तो मनाना भी है. यह सिलसिला तो दोस्तों के बीच चलता ही रहता है. लेकिन कई बार बेहद प्यार और परवा के बावजूद दोस्ती में जलन की भावना पैदा हो जाती है. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? वैसे तो इस के कई कारण हैं, जैसे दोस्तों के बीच किसी तीसरे का आ जाना, पढ़ाई में किसी एक का तेज होना वगैरह. लेकिन इन सब के अलावा एक ऐसा कारण भी है जो दोस्ती में तकरार, ईर्ष्या और जलन जैसी भावनाओं को उत्पन्न कर देता है.

दरअसल, जब 2 दोस्तों के बीच पहनावे या खानेपीने जैसी चीजों में अंतर हो तो यह जलन जैसी भावनाओं को पैदा कर देता है. ऐसा ही कुछ हुआ सुहानी और अनन्या के साथ.

अनन्या और सुहानी 11वीं कक्षा से ही दोस्त हैं. वे एकदूसरे के काफी क्लोज हैं. वैसे तो सुहानी कानपुर से है लेकिन 16 वर्ष की उम्र में वह अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गई थी. सुहानी ने 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई कानपुर से की थी और आगे की पढ़ाई उस ने दिल्ली आ कर पूरी की.

सुहानी और अनन्या की दोस्ती दिल्ली में हुई. दरअसल, जिस कंपनी में अनन्या के पापा काम करते थे उसी कंपनी में सुहानी के पापा की भी नौकरी लग गई थी. एक दिन सुहानी के पापा ने सुहानी के दाखिले के लिए अनन्या के पापा से किसी अच्छे स्कूल के बारे में पूछा, तो उन का कहना था, ‘‘अरे, मेरी बेटी जिस स्कूल में पढ़ती है वह स्कूल तो बहुत अच्छा है. तुम चाहो तो वहां दाखिला करवा सकते हो.’’

सुहानी के पापा और सुहानी जब स्कूल में दाखिले के लिए गए तो उन्हें स्कूल काफी पसंद आया. कुछ दिनों बाद सुहानी स्कूल जाने लगी. इधर सुहानी और अनन्या बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं और उधर दोनों

के पापा में भी अच्छी बौंडिंग हो गई थी. दोनों के परिवार में आनाजाना भी होने लगा था.

सोच में बदलाव रिश्तों में टकराव

सुहानी और अनन्या दोनों के ही परिवार बहुत अच्छे थे, बस अंतर था तो दोनों के परिवारों के रहनसहन में. अनन्या के परिवार वाले बहुत खुले विचारों के थे. वे कभी अनन्या पर किसी प्रकार की रोकटोक नहीं करते थे. अनन्या को अपनी तरह से जिंदगी जीने की आजादी थी. वहीं, दूसरी तरफ सुहानी का परिवार खुले विचारों वाला नहीं था. वे कुछ भी सुहानी के लिए करते तो पूरे परिवार का मशवरा ले कर. जहां एक तरफ अनन्या हर तरह के कपड़े पहना करती थी, वहीं सुहानी सिर्फ जींस, टौप और कुरती ही पहनती. उसे ज्यादा स्टाइलिश और छोटे कपड़े पहनने की आजादी नहीं थी.

स्कूल में अनन्या और सुहानी साथ ही रहा करती थीं. दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. परीक्षा में दोनों साथ में ही पढ़ाई करतीं. अनन्या पढ़ने में एवरेज थी, पर सुहानी क्लास में अव्वल आती थी. हम अकसर देखते हैं कि मांबाप पढ़ाई को ले कर अपने बच्चों की दूसरे बच्चे से तुलना करने लगते हैं लेकिन यहां कभी न अनन्या के मातापिता ने तुलना की न खुद अनन्या ने. बल्कि अनन्या को खुशी मिलती थी सुहानी के अव्वल आने पर. परंतु सुहानी के साथ ऐसा नहीं था. सुहानी के व्यवहार में धीरेधीरे बदलाव दिखने लगा था.

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जब इच्छाएं दबा दी जाती हैं

दोनों की स्कूली पढ़ाई खत्म होने को थी. 12वीं की परीक्षा से पहले स्कूल में फेयरवैल पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस के लिए सभी उत्सुक थे. अनन्या और सुहानी ने उस दिन साड़ी पहनी थी. वैसे तो दोनों ही अच्छी लग रही थीं लेकिन सब की नजर अनन्या पर ज्यादा थी. सुहानी के सामने सब अनन्या की ज्यादा तारीफ कर रहे थे.

अनन्या की साड़ी बेहद खूबसूरत थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन सब से अलग और स्टाइलिश था. सुहानी की साड़ी बहुत सिंपल थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन उस से भी ज्यादा सिंपल. वैसे सुहानी का बहुत मन था बैकलैस ब्लाउज पहनने का लेकिन घरवालों के कारण उस ने अपनी यह इच्छा भी दबा दी थी.

सुहानी उस दिन बहुत शांत हो गई थी. जब भी अन्नया उस के पास आती वह उसे नजरअंदाज करने लग जाती और उस से दूर जा कर खड़ी हो जाती. अनन्या भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर सुहानी को हुआ क्या है. फेयरवैल के बाद सभी घूमने जा रहे थे लेकिन सुहानी पहले ही घर निकल गई थी. सुहानी को न देख कर अनन्या भी घर चली गई.

अनन्या को सुहानी की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था, इसलिए उस ने सुहानी से पहले बात करने की कोशिश भी नहीं की. 2 दिन बाद सुहानी खुद अनन्या के पास आई. अनन्या ने जब गुस्से में पूछा, ‘‘तू उस दिन कहां चली गई थी?’’ तब सुहानी ने कहा, ‘‘उस दिन मेरी तबीयत खराब हो गई थी, इसलिए मैं तुझे बिना बताए चली गई. मैं नहीं चाहती थी कि तेरा फेयरवैल मेरी वजह से खराब हो.’’ यह सुन कर अनन्या ने उसे गले लगा लिया. लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी. उस दिन सुहानी को अनन्या को देख कर जलन हो रही थी.

यह बात सुहानी ने उस वक्त अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दी. दोनों ने 12वीं की परीक्षा दी. जब रिजल्ट आया तो अनन्या अच्छे नंबरों से पास हो गई लेकिन सुहानी ने पूरे स्कूल में टौप किया था. यह सुन कर सभी खुश हुए. अनन्या भी बहुत खुश हुई.

जब तारीफें चुभने लगें

स्कूल के बाद दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला ले लिया. दाखिला लेने के कुछ महीने बाद ही दोनों की दोस्ती में दरार आने लगी. कालेज में अनन्या सारी एक्टिविटीज में हिस्सा लेती थी. इस कारण कालेज में उसे सब जानने लगे थे. उस के कपड़े सब से अलग और स्टाइलिश होते थे. क्लास में सभी उस को बहुत पसंद करते थे. वह कालेज की फैशन सोसाइटी का हिस्सा भी बन गई थी.

सुहानी को सिर्फ पढ़ाई में ध्यान देने को कहा गया था. हालांकि उस का भी बहुत मन होता था पढ़ाई के अलावा भी बाकी एक्टिविटीज में भाग लेने का, लेकिन घर वालों के कारण वह हमेशा अपने कदम पीछे कर लिया करती थी. यही वजह थी जो सुहानी धीरेधीरे अनन्या से दूर होने लगी थी. उस के मन में अनन्या के प्रति ईर्ष्या की भावना आने लगी थी.

स्कूल के फेयरवेल के समय सुहानी को इतना फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, अब उसे अनन्या की यह आजादी चुभने लगी थी. सुहानी अपनी पसंद से न कपड़े पहन सकती थी न कहीं अपनी मरजी से जा सकती थी. वहीं अनन्या के घर वाले उसे पूरा सपोर्ट करते थे. अपने मनपसंद के कपड़े पहनना, घूमनाफिरना, वह सब करती थी. ऐसा नहीं था कि अनन्या की फैमिली सभी चीजों के लिए हां कर देती थी, हां, उसे उस के फैसले, वह क्या पहनना चाहती है, क्या करना चाहती है, यह डिसाइड करने का पूरा हक था.

जलन जब नफरत बन जाए

सुहानी और अनन्या की दोस्ती में काफी बदलाव नजर आने लगा था. अनन्या हमेशा उस के साथ रहती, लेकिन सुहानी उस से दूरियां बनाने में लगी हुई थी. यह बात अन्नया समझ रही थी लेकिन उसे लगा शायद सुहानी पढ़ाई को ले कर परेशान है. मगर आगे कुछ ऐसा हुआ कि दोनों सहेलियां हमेशा के लिए अलग हो गईं. दरअसल, अनन्या को फोटोग्राफी का कोर्स करना था जिस की स्टडी के लिए वह विदेश जाना चाहती थी. जब यह बात उस ने सुहानी को बताई तो सुहानी का कहना था, ‘‘अरे, इतनी दूर क्यों जाना है? यहीं से कर ले. और वैसे भी इस कोर्स का क्या होगा जो तू अभी कर रही है?’’ इस बात पर अनन्या का कहना था, ‘‘यह कोर्स तो मैं ने ऐसे ही जौइन कर लिया था. अच्छा, एक काम कर दे, अपने लैपटौप से इस कालेज का फौर्म भर दे. कल इस की लास्ट डेट है.’’

दोनों फौर्म भरने बैठ गईं. सभी डिटेल्स तो दोनों ने भर दीं लेकिन नैटवर्क प्रौब्लम की वजह से आगे का प्रौसेस नहीं हो पाया. यह देख कर अनन्या ने कहा, ‘‘कोई नहीं, तू आज शाम को दोबारा ट्राई कर लेना, बाकी सब तो हो ही गया है.’’

सुहानी ने भी हां कह दिया. दोनों घर चली गईं. शाम को अन्नया ने फोन पर फौर्म के लिए पूछा तो सुहानी का कहना था, ‘‘मैं ने कोशिश की लेकिन बारबार प्रौसेस फेल हो रहा है. तू चिंता मत कर, मैं कर दूंगी.’’

अगला दिन फौर्म का आखिरी दिन था. जब दोनों अगले दिन कालेज में मिले तो सुहानी ने अनन्या को देखते ही कहा, ‘‘फौर्म का प्रौसेस पूरा हो गया है.’’ यह सुनते ही अनन्या बहुत खुश हुई.

जब अनन्या ने सुहानी से ऐंट्रैंस परीक्षा की डेट पूछी तो वह थोड़ी घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘मैं देख कर बताती हूं, ‘‘ ‘‘तभी अनन्या को याद आया उस के मेल आईडी पर सारी डिटेल्स आ गई होंगी. जब उस ने मेल चैक किया तो कुछ नहीं था. उस ने दोबारा सुहानी से पूछा, ‘‘तूने फौर्म फिल कर दिया था?’’ यह सवाल सुनते ही सुहानी शांत हो गई. दरअसल, सुहानी ने घर जाने के बाद लैपटौप चैक भी नहीं किया था. जब अनन्या ने लैपटौप में चैक किया तो कोई फौर्म फिल करने का प्रौसेस ही नहीं हुआ था.

यह देख कर अनन्या को बहुत अजीब लगा. अनन्या ने जब सुहानी के झूठ बोलने पर सवाल किया तो वह गुस्से में बोलने लगी, ‘‘मेरे पास इतना टाइम नहीं था. तेरी तरह मेरी लाइफ नहीं है. मुझे घर जा कर भी बहुत काम होता है. और वैसे भी तू विदेश जा कर क्या करेगी? तू सारी मौजमस्ती यहां कर ही लेती है. मेरा देख, सिर्फ किताबों में या घर के काम में ही पूरा दिन बीतता है.’’

अनन्या समझ गई कि जिस दोस्त पर वह इतना भरोसा करती थी वह सिर्फ उस से जलती थी. उस ने जानबूझ कर उस का फौर्म फिल नहीं किया.

वैसे आज के समय में जलन की भावना बहुत आम हो गई है. लोग एकदूसरे का काम बिगाड़ने में लगे रहते हैं, चाहे उस से उन को फायदा हो या न हो. लड़कियों में सब से ज्यादा जलन की भावना कपड़ों या फिर खुली छूट की वजह से होती है.

जो हमें नहीं मिलता वह हम किसी दूसरे के पास भी देखना पसंद नहीं करते, जोकि सरासर गलत है. अगर आप को आप की इच्छा के अनुसार जिंदगी में कुछ करना है तो उस के लिए परिवार से बात करें. दूसरों से लड़ने के बजाय परिवार से लड़ना जरूरी है. दूसरों से ईर्ष्या कर उन को तकलीफ पहुंचा कर आप उन सभी से दूर होते चले जाएंगे. यह सब एक दिन आप को सब से अकेला कर देगा और तब पछताने के अलावा आप के पास कुछ नहीं रहेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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पपीते की खास किस्म ‘रेड लेडी’

लेखक-गंगाशरण सैनी 

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित की गई है, जिसे ‘रैड लेडी’ नाम दिया गया है. यह एक संकर किस्म है. इस किस्म की खासीयत यह है कि नर व मादा फूल एक ही पौधे पर होते हैं, लिहाजा हर पौधे से फल मिलने की गारंटी होती है. पपीते की दूसरी किस्मों में नर व मादा फूल अलगअलग पौधों पर लगते हैं, ऐसे में फूल निकलने तक यह पहचानना मुश्किल होता है कि कौन सा पौधा नर है और कौन सा मादा. इस किस्म की एक खासीयत यह भी है कि इस में साधारण पपीते को लगने वाला ‘पपायरिक स्काट वायरस’ नहीं लगता है. यह किस्म सिर्फ 9 महीने में तैयार हो जाती है.

इस किस्म के फलों की भंडारण कूवत भी ज्यादा होती है. पपीते में एंटीऔक्सीडैंट पोषक तत्त्व कैरोटिन, पोटैशियम, मैग्नीशियम, रेशा और विटामिन ए, बी, सी समेत कई दूसरे गुणकारी तत्त्व भी पाए जाते हैं, जो सेहत के लिहाज से बेहद फायदेमंद होते हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तकरीबन 3 सालों की खोज के बाद इसे पंजाब में उगाने के लिए जारी कर दिया. वैसे, इसे हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी उगाया जा सकता है. इस किस्म से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए नीचे बताई गई बातों पर गौर करें : आबोहवा पपीता एक उष्ण कटिबंधीय फल है, परंतु इस की खेती समशीतोष्ण आबोहवा में भी की जा सकती है.

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ज्यादा ठंड से पौधे के विकास पर बुरा असर पड़ता है. इस से फलों की बढ़वार रुक जाती है. फलों के पकने व मिठास बढ़ने के लिए गरम मौसम बेहतर है. मिट्टी पपीते के सफल उत्पादन के लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी होती है. खेत में पानी निकलने का सही इंतजाम होना जरूरी है, क्योंकि पपीते के पौधों की जड़ों व तने के पास पानी भरा रहने से पौधों का तना सड़ने लगता है. इस मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए. खाद व उर्वरक पपीता जल्दी बढ़ने व फल देने वाला पौधा है, जिस के चलते भूमि से काफी मात्रा में पोषक तत्त्व निकल जाते हैं. लिहाजा, अच्छी उपज हासिल करने के लिए 250 ग्राम नाइट्रोजन, 150 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा हर साल देना चाहिए. नाइट्रोजन की मात्रा को 6 भागों में बांट कर पौध रोपण के 2 महीने बाद से हर दूसरे महीने डालना चाहिए. फास्फोरस व पोटाश की आधीआधी मात्रा 2 बार में देनी चाहिए. उर्वरकों को तने से 30 सैंटीमीटर की दूरी पर पौधे के चारों ओर बिखेर कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. फास्फोरस व पोटाश की आधी मात्रा फरवरीमार्च माह में और बाकी बची मात्रा जुलाईअगस्त माह में देनी चाहिए. उर्वरक देने के बाद हलकी सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए.

बोआई पपीते का व्यावसायिक उत्पादन बीजों द्वारा किया जाता है. इस के सफल उत्पादन के लिए यह जरूरी है कि बीज अच्छी क्वालिटी का लिया जाए. बीज के मामले में इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है. * बीज बोने का समय जुलाई से सितंबर और फरवरीमार्च माह होता है.

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* अच्छी किस्म के बीज अच्छे व स्वस्थ फलों से लेने चाहिए. चूंकि यह किस्म संकर प्रजाति की है, लिहाजा हर बार इस का नया बीज ही बोना चाहिए.

* इस किस्म के बीज पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से ही प्राप्त करें.

* बीजों को क्यारियों, लकड़ी के बक्सों, मिट्टी के गमलों व पौलीथिन की थैलियों में बोया जा सकता है.

* क्यारियां जमीन की सतह से 15 सैंटीमीटर ऊंची व 1 मीटर चौड़ी रखें.

* क्यारियों में गोबर की खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट काफी मात्रा में मिलाना चाहिए. पौधों को पद विगलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन के 1:40 के घोल से उपचारित कर लेना चाहिए और बीजों को 0.1 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित कर के बोना चाहिए.

* जब पौधे 8-10 सैंटीमीटर लंबे हो जाएं, तो उन्हें क्यारी से पौलीथिन में स्थानांतरित करें.

* जब पौधे 15 सैंटीमीटर ऊंचे हो जाएं, तब 0.3 फीसदी फफूंदीनाशक घोल का छिड़काव कर देना चाहिए. रोपण अच्छी तरह से तैयार खेत में 2×2 मीटर की दूरी पर 50×50×50 सैंटीमीटर आकार के गड्ढे मई के महीने में खोद कर 15 दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिए, ताकि गड्ढों को अच्छी तरह धूप लग जाए और हानिकारक कीड़ेमकोड़े, रोगाणु वगैरह नष्ट हो जाएं.

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पौधे लगाने के बाद गड्ढे को मिट्टी और गोबर की खाद में 50 ग्राम एल्ड्रिन मिला कर इस प्रकार भरना चाहिए कि वह जमीन से 10-15 सैंटीमीटर ऊंचा रहे. गड्ढों की भराई के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए, जिस से मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए. वैसे, पपीते के पौधे जूनजुलाई या फरवरीमार्च माह में लगाए जाते हैं, पर ज्यादा बारिश व सर्दी वाले इलाकों में सितंबर या फरवरीमार्च माह में लगाने चाहिए. जब तक पौधे अच्छी तरह पनप न जाएं, तब तक रोजाना दोपहर बाद हलकी सिंचाई करनी चाहिए. सिंचाई पपीते के अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई का सही इंतजाम करना बेहद जरूरी है. गरमियों में 6-7 दिनों के अंतर पर और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. बारिश के मौसम में जब लंबे समय तक बरसात न हो, तो सिंचाई की जरूरत पड़ती है. पानी को तने के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए.

इस के लिए तने के पास चारों ओर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रण पपीते के बगीचे में तमाम खरपतवार उग आते हैं, जो जमीन से नमी, पोषक तत्त्व, वायु व प्रकाश वगैरह के लिए पपीते के पौधों से मुकाबला करते हैं, जिस से पौधों की बढ़वार व उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. खरपतवारों से बचाव के लिए जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई करनी चाहिए. बराबर सिंचाई करते रहने से मिट्टी की सतह काफी कठोर हो जाती है, जिस से पौधों की बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है. लिहाजा, 2-3 बार सिंचाई के बाद थालों की हलकी निराईगुड़ाई कर देनी चाहिए. कीट व उन की रोकथाम चैंपा : इस कीट के बच्चे व जवान दोनों ही पौधे के तमाम हिस्सों का रस चूसते हैं और विषाणु रोग फैलाते हैं.

इस की रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलिटर या फास्फोमिडाल 5 मिलीलिटर को 1 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. लाल मकड़ी : इस कीट का हमला पत्तियों व फलों की सतहों पर होता है. इस के प्रकोप से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और बाद में लालभूरे रंग की हो जाती हैं. इस की रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिलीलिटर को 1 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

रोग व उन की रोकथाम पद विगलन : यह रोग पीथियम फ्यूजेरियम नामक फफूंदी के चलते होता है. इस वजह से रोगी पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधा सड़ कर गिर जाता है. इस की उचित रोकथाम के लिए रोग वाले हिस्से को अच्छी तरह से खुरच कर उस पर ब्रासीकोल 2 ग्राम को 1 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

श्याम वर्ण (एंथे्रक्नोज) : इस रोग का असर पत्तियों व फलों पर होता है, जिस से इन की वृद्धि रुक जाती है. इस से फलों के ऊपर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए ब्लाईटाक्स 3 ग्राम को 1 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए. उपज आमतौर पर पपीते की उन्नत किस्मों से प्रति पौधा 35-50 किलोग्राम उपज मिल जाती है, जबकि इस किस्म से 2-3 गुना ज्यादा उपज मिलती है.

सोचा न था : भाग 4

मुझे पता था. ऐसी स्थिति में मां को समझाने में पापा अकेले ही सक्षम थे. उस दिन सवेरे चायनाश्ता और खाना मैं ने ही बनाया.  मम्मी की हालत स्थिर देख पापा ने मुझे पास बुलाया और पूछा, “यूनिवर्सिटी में कितने बजे से क्लासेज हैं तुम्हारे.”

“आजकल फाइनल एग्जाम प्रिपरेशन स्टडी चल रही है. थोड़ी देर से जाऊंगी. कोई जरूरत हो तो न जाऊं.”  नहीं, तुम्हें जब भी जाना हो चली जाना. मैं बैंक जाना चाह रहा था.”“तो हो आइए न आप. पास में ही तो है बैंक की ब्रांच. मैं तब तक मां की देखभाल कर लूंगी.”

पापा बैंक चले गए. जब लौटे तो मैं ऊपर भैया वाले कमरे के अटैच बाथरूम में नहाईधोई, फिर गाउन पहन कर निकली. यूनिवर्सिटी जाने वाले कपड़े पहन कर तैयार हुई. वहीं से मैं ने रितेश को फोन लगा कर पूछा, “आज तो  यूनिवर्सिटी आ रहे हो ना?”

“हां.” उस दिन मैं ने रितेश की पसंद वाली ब्लू कलर की जींस और फालसाई कलर का टौप पहना था. अपने को ड्रेसिंग टेबल के लंबे आईने में कई एंगल से निहार कर खुले लेकिन सेट किए बालों पर एक बार और कंघी फेरती हुई, पैरों में नई बैली पहन कर घर से बाहर निकलने से पहले मैं मां के पास गई और पूछा, “कैसा महसूस कर रही हो मां?”

“मैं अब अच्छा महसूस कर ही नहीं सकती. आशीष मुझ को ऐसा धोखा देगा, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था… अब मैं अपनी सहेली सुजाता को कौन सा मुंह दिखाऊंगी.”

मैं ने कुछ भी बोलना उचित ना समझा. मैं वहां चुपचाप खड़ी रही. लेकिन मां बड़बड़ाती रही, “वो ईसाई लड़की इतनी अपनी हो गई कि मां को छोड़ कर चला गया. अब वो उसे ले कर आया भी तो मैं उसे घर में घुसने नहीं दूंगी. रहे उसी के साथ कहीं भी.”       मुझे लगा कि मैं जितनी देर भी मां के सामने रहूंगी, वे इसी तरह की बातें करती रहेंगी, इसलिए मां के पास से उठ गई.

तभी पापा कमरे में मां के पास आ कर बैठ गए. मैं ने कहा कि पापा, मैं निकलती हूं यूनिवर्सिटी के लिए. अपना यूनिवर्सिटी बैग लिए  मैं बस स्टैंड पहुंची. रितेश अपनी बाइक पर बैठा मेरा ही इंतजार कर रहा था. यूनिवर्सिटी पहुंचने तक मैं ने कल का सारा किस्सा रितेश को बता दिया. पूरा किस्सा सुन कर वह बोला, “तुम्हारे भैया ने स्टेप तो सही लिया, परंतु उसे मां को विश्वास में लेना चाहिए था.”

“तुम मां से अभी मिले नहीं हो. वे कभी भी ये शादी नहीं होने देतीं. वे तो अपनी सहेली की गोद ली हुई बच्ची उर्मिला को अपनी बहू बनाना चाहती थीं. अपनी सहेली से उन्होंने वादा भी कर लिया था.

यूनिवर्सिटी के साइकिल स्टैंड पर बाइक को खड़ी कर रितेश के साथ क्लासरूम की तरफ कदम बढ़ा कर साथ चलते हुए मैं ने उस की हथेली को अपनी हथेली की उंगलियों मे फंसा कर कस के  दबा दिया.

क्लासरूम में पहुंच कर हम हमेशा की तरह अगलबगल बैठ गए. हमारा तीसरा पीरियड खत्म ही हुआ था कि मेरे मोबाइल की   रिंगटोन बज उठी. पापा का फोन था. पता नहीं क्यों मेरा दिल किसी आशंका से कांप उठा. मैं ने तुरंत काल कनेक्ट की. पापा की आवाज थी, “तू जल्दी से घर आ जा. तेरी मां को फिर से अटैक पड़ा है. बेहोश हो गई हैं. लगता है, उन्हें अस्पताल ले जाना होगा.”

मैं ने पूछा कि क्या भैया उन से मिलने आया था? तो वो बोले, नहीं. सुजाता अपनी लड़की को ले कर उन से मिलने चली आई थी. जब उसे पता चला कि तेरी मां को कल भी हार्ट अटैक पड़ा था, तो मैं ने बता दिया कि,

“हमें अंधेरे में रख आशीष ने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली है.”“इस पर सुजाता ने तुम्हारी मां को बहुतकुछ सुना डाला और बगैर कोई सिम्पैथी  दिखाए वापस चली गई. “उस के जाते ही तुम्हारी मां को दौरा पड़ गया. तुम शीघ्र ही आ जाओ. उन्हें अस्पताल ले जाना होगा.”

“ठीक है पापा. मैं पहुंचती हूं,” कह कर जैसे ही मैं रितेश की तरफ मुड़ी और कुछ कहने जा रही थी कि वह  बोला, “सिम्मी, मैं ने सब सुन लिया है. चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं.” स्टैंड से अपनी बाइक उठाने के लिए मेरे साथ चलते हुए ना जाने क्या सोच कर उस ने मुझ से कहा,” सिम्मी, तुम अपने भैया को फोन लगा कर उन्हें इस स्थिति से अवगत कराने के बाद मेरी बात भी उन से करवा दो.”

“लेकिन, रितेश भैया तो तुम्हारे बारे में कुछ जानता ही नहीं है?” “नहीं जानता है, तो इसी बहाने आज परिचय हो जाएगा. तुम उसे फोन तो करो.” मैं ने भैया को फोन मिलाया. एक ही बार रिंगटोन बजने पर भैया ने फोन उठा लिया. तुरंत पूछा, “सिमरन, मां का गुस्सा शांत हुआ?”

“नहीं, बल्कि गुस्सा करने से  उन्हें कल रात हार्ट अटैक पड़ गया था और अभीअभी यूनिवर्सिटी में मेरे पास पापा का फोन आया था कि उन्हें फिर से अटैक पड़ा है और अस्पताल में भरती कराना पड़ेगा.”मेरा फ्रेंड रितेश अपनी बाइक से मुझे घर छोड़ने जा रहा है और वो तुम से कुछ बात करना चाहता है. लो, उस से बात करो.”

कह कर मैं ने रितेश को मोबाइल पकड़ा दिया. रितेश ने कहा, ”आशीष भैया, मां को इस हादसे से निकालने का एक ही तरीका है कि आप जिस अस्पताल की फार्मेसी में काम करते हैं, वहां से किसी अच्छे डाक्टर और मारिया भाभी को ले जा कर घर पर ही इलाज करवाएं. भले ही आप एंबुलेंस लेते जाएं. पर  यही अवसर है, जब नर्स के रूप में मां की सेवा कर के वह उन का दिल जीत सकती हैं और आप को भी  माफ कर सकती हैं.

“बाकी बातें आप से घर पर मिल कर करते हैं. आप शीघ्र ही एंबुलेंस, डाक्टर और मारिया भाभी को ले कर पहुंचिए, मैं सिमरन को ले कर आप के घर आ रहा हूं.” हमारी बाइक और अस्पताल की एंबुलेंस लगभग साथ ही घर के बाहर रुकी. मारिया और भैया उस में से उतर कर मां वाले कमरे में पहुंचे.

मां अपने कमरे में आंखें बंद करे दर्द से कराह रही थीं. आशीष को देख कर पापा को बड़ी राहत मिली. पापा के पैरों में जैसे ही वह झुका, तो नर्स की ड्रेस पहने मारिया भी पापा के पैर छूने बढ़ी. पापा समझ गए कि यही मारिया है. इसी बीच डाक्टर को लिए हुए रितेश मां के पास पहुंच गया. जैसे उस की खुद की मां बीमार पड़ी हो, वह डाक्टर से बोला, “सर, मुझे लगता है कि दिल से ज्यादा मां के मस्तिष्क को झटका लगा है. चिंता ज्यादा करती हैं. वैसे तो आप डाक्टर हैं. मुझ से ज्यादा जानते हैं, परंतु ये दृष्टिकोण मैं ने इसलिए आप के सामने रख दिया कि यदि इन्हें अस्पताल में एडमिट कराना बहुत जरूरी  हो, तभी कराया जाए.”

रितेश डाक्टर से बात कर रहा था और डाक्टर ने मारिया की मदद लेते हुए मां का चेकअप भी शुरू कर दिया.

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