लेखक-नीरज कुमार मिश्र 

सियाली के मम्मीपापा का तलाक क्या हुआ, वह एक आजाद चिडि़या हो गई, जो कहीं भी उड़ान भरने के लिए अपनी मरजी की मालकिन थी. अब वह खुल कर जीना चाहती थी, मगर यह इतना आसान नहीं था. रविवार के दिन की शुरुआत भी मम्मी व पापा के आपसी झगड़ों की कड़वी आवाजों से हुई. सियाली अभी अपने कमरे में सो ही रही थी, चिकचिक सुन कर उस ने चादर सिर पर ओढ़ ली. आवाज पहले से कम तो हुई पर अब भी कानों से टकरा रही थी. सियाली मन ही मन कुढ़ कर रह गई थी. पास पड़े मोबाइल को टटोल कर उस में ईअरफोन लगा कर बड्स को कानों में कस कर ठूंस लिया और वौल्यूम को फुल कर दिया.

18 वर्षीया सियाली के लिए यह नई बात नहीं थी. उस के मम्मीपापा आएदिन झगड़ते रहते थे, जिस का सीधा कारण था उन दोनों के संबंधों में खटास का होना, ऐसी खटास जो एक बार जीवन में आ जाए तो उस की परिणति आपसी रिश्तों के खात्मे से होती है. सियाली के मम्मीपापा प्रकाश और निहारिका के संबंधों में यह खटास एक दिन में नहीं आई, बल्कि, यह तो एक मध्यवर्गीय परिवार के कामकाजी दंपती के आपसी सामंजस्य बिगड़ने के कारण धीरेधीरे आई एक आम समस्या थी. सियाली का पिता अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. उस का शक करना जायज था क्योंकि निहारिका का अपने औफिसकर्मी के साथ संबंध चल रहा था. पतिपत्नी की हिंसा और शक समानुपाती थे. जितना शक गहरा हुआ उतना ही प्रकाश की हिंसा बढ़ती गई और परिणामस्वरूप परपुरुष के साथ निहारिका का प्रेम बढ़ता गया. ‘जब दोनों साथ नहीं रह सकते तो तलाक क्यों नहीं दे देते एकदूसरे को?’ सियाली झुं झला कर मन ही मन बोली.

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