मानसून के मौसम में अकसर लोग जल्द ही संक्रमण, बुखार, खांसी, जुकाम की चपेट में आ जाते हैं. हेपेटाइटिस ए के संक्रमण की संभावना भी इस मौसम में बहुत अधिक होती है. हेपेटाइटिस ए यकृत का विकार है जो दूषित भोजन या पानी के सेवन के कारण होता है. चूंकि मानसून के मौसम में पानी के गंदा होने की संभावना बहुत अधिक होती है, ऐसे में हेपेटाइटिस ए के अधिक मामले इस मौसम में देखने में आते हैं.

हेपेटाइटिस ए का वायरस आमतौर पर सक्रिय होने में 14-28 दिनों का समय लेता है. हेपेटाइटिस ए संक्रमण का सब से आम लक्षण है पीलिया यानी आंखों, त्वचा का पीला पड़ना, बुखार, भूख की कमी, कमजोरी, डायरिया और उलटी. 6 साल या अधिक उम्र के बच्चों में लक्षण अधिक गंभीर होते हैं. पीलिया से पीडि़त 70 फीसदी मामले इसी आयुवर्ग में पाए जाते हैं.

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जिन बच्चों और वयस्कों को हेपेटाइटिस ए के लिए वैक्सीन दी जा चुकी हो, उन में संक्रमण होने की संभावना बहुत कम होती है. जिन लोगों को वैक्सीन नहीं दी गई है, वे लोग जिन के आसपास का वातावरण साफ नहीं होता और वे लोग जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं, उन में संक्रमण की संभावना अधिक होती है.

हेपेटाइटिस ए संक्रमण का उपचार एवं रोकथाम

आप का यकृत हेपेटाइटिस ए संक्रमण से पीडि़त है तो इस के लिए कोई उपचार या दवाएं नहीं है. इस के उपचार का एकमात्र तरीका है शरीर से संक्रमण को पूरी तरह से ठीक करना. यह प्रक्रिया काफी धीमी हो सकती है और इस में एक महीने का समय लग सकता है. संक्रमित व्यक्ति के लिए उचित पोषण व तरल पदार्थों के सेवन का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कुपोषण के कारण व्यक्ति उलटी और डायरिया से पीडि़त हो सकता है.

वैक्सीनेशन यानी टीके के रूप में रोकथाम की जा सकती है, जिस से आप अपनेआप को हेपेटाइटिस ए वायरस से सुरक्षित रख सकते हैं. लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन की एक खुराक देने के बाद लगभग हर व्यक्ति में एंटीबौडी बनते हैं जो एक माह के अंदर वायरस से लड़ते हैं और दीर्घकालिक प्रतिरक्षा देते हैं. वास्तव में वैक्सीनेशन के 2 सप्ताह के अंदर अचानक वायरस के संपर्क में आना भी प्रतिरक्षा को सुनिश्चित करता है. दुनियाभर में लाखों लोगों को वैक्सीन दी जाती है और इस के कोई साइडइफैक्ट नहीं हैं. इन दिनों वैक्सीन का एक उन्नत रूप उपलब्ध है जिसे वेन्स में दी जाने वाली पारंपरिक 2 खुराकों के बजाय सबक्युटेनिअस को एक खुराक के रूप में दिया जाता है. जिस में अपेक्षाकृत कम दर्द होता है.

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अगर वयस्क हेपेटाइटिस ए वायरस से पीडि़त हैं तो लक्षण अधिक गंभीर हो सकते हैं और रोग के घातक परिणाम हो सकते हैं. मानसून शुरू होने से पहले उचित टीकाकरण के द्वारा अपनेआप को और अपने बच्चों को हेपेटाइटिस ए से बचाएं. उचित साफसफाई का ध्यान रखने, भोजन को पकाने से पहले अच्छी तरह धोने, उबला पानी पीने और वैक्सीनेशन से आप अपनेआप को हेपेटाइटिस ए संक्रमण से बचा सकते हैं.

वायरल फीवर का शिकंजा

बारिश ने बेशक तेज गरमी से लोगों को राहत दी है परंतु कई तरह की बीमारियों का खतरा भी बढ़ाया है. झमाझम बारिश ने तेजी से लोगों को वायरल इन्फ्लुएजा की चपेट में लिया है.

इस के अलावा बढ़ता प्रदूषण भी वायरस के तेजी से फैलने के पीछे एक कारण माना जा सकता है. बढ़ती नमी और गिरते तापमान के साथ वातावरण में मौजूद प्रदूषण के छोटेछोटे कण के साथ ये वायरस वातावरण की निचली सतह में धरती से 5 फुट की ऊंचाई तक मौजूद रहते हैं और आसानी से सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.

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कैसे होता है वायरल फीवर

यह वायरस सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है और हमारी श्वसन प्रणाली के प्राथमिक अंगों जैसे नाक, गला पर हमला करता है जिस के कारण गले में खराश, जुकाम आदि होते हैं. हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति उस वायरस को नष्ट करने की कोशिश करती है जिस कारण हमारे शरीर का तापमान बढ़ता है. इसे ही वायरल बुखार कहा जाता है. वायरल बुखार संक्रमित व्यक्ति के छींकने और खांसने से हवा में फैलने वाले वायरस के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है. इस के अलावा मौसम में आए बदलाव के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है जिस के चलते लोग आसानी से इस की चपेट में आ जाते हैं. इन्फ्लुएंजा के वायरस खांसने व छींकने के जरिए 2 से 3 मीटर की दूरी तक के व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं.

लक्षण

–  अचानक तेज बुखार आना.

–  सिर और बदन दर्द होना.

–  छींकें आना.

–  नाक और आंख से पानी निकलना.

–  गले में खराश.

–  भूख खत्म होना.

वायरल बुखार का इलाज

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के अनुकूल 3-4 दिनों में खुद ही ठीक हो जाता है, परंतु बुखार तेज हो तो उसे कम करने की दवाएं जैसा पैरासिटामोल, कालपोल दी जाती हैं. बुखार से राहत पाने के लिए रोगी को ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए और अनावश्यक दवाओं, विशेषरूप से एंटीबायोटिक दवाएं नहीं लेनी चाहिए. बुखार के कारण शरीर के तापमान में उतारचढ़ाव के कारण रोगी को अत्यधिक पसीना आता है, जिस के कारण रोगी को निर्जलीकरण की समस्या हो सकती है. रोगी को अधिक मात्रा में तरल पदार्थ पीने के साथ भाप लेना और नमक के गरम पानी के गरारे करने की हिदायत दी जाती है. रोगी को अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थ लेना चाहिए.

वैसे वायरल फीवर किसी भी आयुवर्ग के शख्स को हो सकता है परंतु छोटे बच्चों, बुजुर्ग एवं वे रोगी जिन को श्वास, मधुमेह, किडनी या हृदय संबंधी समस्या है, को होने का खतरा ज्यादा रहता है.

सावधानी

बुखार 102 डिगरी तक है और रोगी को कोई और परेशानी नहीं हैं तो उस की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं. परंतु बुखार अगर 102 डिगरी से अधिक बढ़ जाए तो मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें. पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए. अगर इस से ज्यादा तापमान है या बुखार 3 दिन से अधिक समय तक रहे, तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें

ध्यान रखें

–       इन दिनों भीड़भाड़ वाली जगहों पर हो सके तो जाना कम करें और अगर जाना हो तो मुंह और नाक पर साफ कपड़ा या रूमाल रखें.

–       अगर परिवार में किसी सदस्य को वायरल बुखार है तो साफसफाई का पूरा खयाल रखें.

–       मरीज को वायरल है तो उस से थोड़ी दूरी बनाए रखें और उस के द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें.

–       छींकने से पहले नाक और मुंह पर रूमाल या टिश्यू पेपर रखें.

–       सूप, जूस, हलदी का दूध, गुनगुने पानी आदि का सेवन करें.

–       तेज बुखार होने पर भी खाना न छोड़ें. तरल पदार्थों का सेवन करते रहें, ताकि शरीर की ताकत बनी रहे.

–       तुलसी के 8-10 पत्तों का रस शहद के साथ मिला कर लें या 10 पत्तों को आधा लिटर पानी में उबालें, जब आधा हो जाए तो पिएं.

–       वायरल बुखार उतर जाने के बाद भी अकसर देखा जाता है कि रोगी को कमजोरी और थकावट रहती है, इसलिए विटामिन बी और सी का अधिक सेवन करें और पौष्टिक आहार लें.

डा. नितिन शाह और डा. एस के मुंद्रा.

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