जीवन के हर पड़ाव पर पौष्टिकता की जरूरतें बदलती रहती हैं. उस में से एक पड़ाव है बुढ़ापा. उम्र के साथ पौष्टिकता की विशेष जरूरतें और समस्याएं आती रहती हैं. उम्र के साथ कई बदलाव भी आते हैं जैसे कि शरीर के आकार में बदलाव, शारीरिक गतिविधियों में कमी और खानपान में कम रुचि आदि. ये सब बदलाव उम्रदराज लोगों को आवश्यक पौष्टिकता प्रदान करने में रुकावट बनते हैं. शरीर में यह बदलाव धीरेधीरे अपनेआप आते हैं और अकसर हमें इन के बारे में पता नहीं होता. बढ़ती उम्र में अच्छी और संतुलित खुराक लेने से औस्टियोपोरोसिस, हाई ब्लडप्रैशर, दिल के रोग और कई किस्म के कैंसर होने का खतरा टल जाता है. लेकिन फिर भी बुढ़ापे में पौष्टिकता की जरूरतों को प्राथमिकता जरूर देनी चाहिए.

बढ़ती उम्र और कुपोषण

अध्ययन के मुताबिक, बुढ़ापे में सब से बड़ी समस्या कुपोषण की होती है. कुपोषण की वजह से मौत की दर में वृद्धि, अस्पतालों में ज्यादा समय बिताना और ज्यादा जटिलताएं होती हैं. इस के साथ ही संक्रमण, एनीमिया, त्वचा की समस्याएं, कमजोरी, चक्कर आना और रक्त में इलैक्ट्रोलाइट असंतुलन होता है.

कुपोषण 2 तरह का होता है : ज्यादा पोषण या कम पोषण. जब आवश्यक आहार नहीं लिया जाता तो इसे कम पौष्टिकता कहा जाता है. इस की वजह से वजन कम होना और उस की वजह से अन्य समस्याएं हो सकती हैं. अत्यधिक वजन कम हो जाए तो उसे वास्ंिटग या केशेक्सिया कहा जाता है. बुजुर्ग जिन्हें रूमेटाइड आर्थ्राइटिस, हार्ट फेल, कैंसर, अंगों का काम करना बंद करना आदि समस्याएं हों, उन में वजन की भारी कमी हो सकती है. लैप्टिन और घ्रेलिन हार्मोंस में उम्र के साथ बढ़ोतरी हो सकती है. इस से भूख मर जाती है जो कम पोषण की वजह बनता है.

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कई बार उम्र के साथ लोगों की शारीरिक गतिविधियां तो कम हो जाती हैं लेकिन उन के खाने की आदत जवानी वाली ही रहती है. इस वजह से ज्यादा पोषण हो जाता है. वजन बढ़ने से दिल के रोग, आर्थ्राइटिस और डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है. ज्यादा आहार लेने के बावजूद उन को उचित पोषण नहीं मिलता.

बुढ़ापे में कुपोषण के कारण

  • –       कोई बीमारी जिस की वजह से खाने की किस्में या मात्रा बढ़ जाती है.
  • –       दिन में 2 बार से कम खाना.
  • –       फलों, सब्जियों और दूध के उत्पाद कम खाना.
  • –       शराब का सेवन.
  • –       दांतों की समस्याएं.
  • –       वित्तीय हालात.
  • –       अकेले खाना, जिस से खाने में दिलचस्पी कम होना.
  • –       दवाएं.
  • –       पकाने, राशन खरीदने या अपनेआप खाने की समस्याएं.

अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 65 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले बड़ी संख्या में दोनों में से किसी तरह के कुपोषण से पीडि़त होते हैं. 10 में से 1 को कम पोषण की आवश्यकता होती है. कई उम्रदराज लोग हैं जो एक वक्त का खाना छोड़ देते हैं. अस्पताल में भरती होने की वजह से 60 प्रतिशत बुजुर्गों में कम पोषण की संभावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.

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वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों में कुपोषण की समस्या 85 प्रतिशत तक है. 65 वर्ष से ज्यादा के एकतिहाई लोग जरूरत से ज्यादा खाते हैं. इस वजह से उन में ज्यादा पोषण की समस्या होती है. मोटापा और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां आम हैं, जो कि बढ़ती उम्र के साथ आने वाले शारीरिक बदलाव की वजह से बढ़ जाती हैं.

कुपोषण के बुढ़ापे पर प्रभाव

बुजुर्गों द्वारा आहार में फैट के ज्यादा सेवन से कोलोन का कैंसर, पैंक्रियाज और प्रोस्टेट की समस्या हो सकती है. असंतुलित खानपान से ब्लडप्रैशर, ब्लड लिपिड में बढ़ोतरी, ग्लूकोज को पचाने की क्षमता में कमी के चलते कोरोनरी हार्ट डिजीज हो सकती हैं.

आहार से जुड़ी अन्य बीमारियों में कार्डियोवैस्कुलर और सेरेब्रोवैस्कुलर विकार, डायबिटीज और औस्टियोपोरोसिस भी शामिल हैं. माइक्रो पोषक तत्त्व हमें सेहतमंद और छूत के रोगों से बचाने में मदद करते हैं. बुजुर्गों में कम खाने या एकजैसा खाना लगातार खाते रहने से माइक्रो पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है. उम्र बढ़ने के साथ रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिस से समस्याएं और बढ़ जाती हैं.

बदलाव का समय

डब्लूएचओ के मुताबिक, पौष्टिकता के दिशानिर्देश तय करने का समय आ गया है जिस का प्रयोग सरकारें अपने देश में पौष्टिकता की कमियों को पूरा करने में कर सकेंगी. बुजुर्गों में भी दवाइयां आखिरी विकल्प होनी चाहिए. एक अध्ययन के मुताबिक, ब्लडप्रैशर 6 एमएमएचजी कम करने से स्ट्रोक की संभावना 40 प्रतिशत और दिल के दौरे की 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है. वहीं, ब्लड कोलैस्ट्रौल में 10 प्रतिशत की कमी दिल के कोरोनरी रोगों में 30 प्रतिशत कमी ले आती है. खानपान में बदलाव से कार्डियोवैस्कुलर विकारों का खतरा कम किया जा सकता है.

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हम सब को बुढ़ापे की ओर बढ़ना है. यह हमारे हाथ में है कि हम बुढ़ापा गौरव से ले कर आएं या नहीं. औद्योगिक देशों में बुढ़ापा बड़ी चुनौती माना जाता है. अगर समय रहते उचित सावधानियां न बरती जाएं तो औसतन उम्र में वृद्धि से लोगों को अपने जीवन का ज्यादा समय बीमारियों में गुजारना पड़ सकता है.

रोज व्यायाम करना सभी के लिए जरूरी है. सैर करना, स्थिर व्यायाम, बागबानी आदि ऐसी गतिविधियां हैं जो ऊर्जा को संचारित करती हैं और मांसपेशियों व जोड़ों को कार्यरत बनाए रखती हैं. इस से पाचनतंत्र भी ठीक रहता है. उम्रदराज लोगों के लिए विशेष कसरतें होती हैं जो उन्हें तंदुरुस्त भी रखती हैं और गिरने से भी बचाती हैं. साथ ही, केवल पौष्टिकता से ही बुजुर्गों की देखभाल न करें बल्कि प्यार, दुलार व रिश्तों की गरमाहट के साथ उन का खयाल रखें.

(डा. एम उदया कुमार माइया, लेखक पोर्टियो के मैडिकल डायरैक्टर हैं.)     

क्या करें

  • –       कम सैचुरेटेड फैट और ट्रांसफैट चौकलेट, कुकीज, चिप्स, पैस्ट्रीज आदि ऐसी चीजें हैं जिन्हें बिलकुल नहीं खाना चाहिए.
  • –       शरीर में पानी की मात्रा, पाचन और रक्त का घनत्व बनाए रखने के लिए पानी पीते रहें.
  • –       मीठे के शौकीन दही के साथ ताजा फल और संपूर्ण अनाज वाले फल खा सकते हैं.
  • –       उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा नमक वाले आहार न लें.

पौष्टिक तत्त्वों वाले आहार लेना बेहद आवश्यक है. उम्र बढ़ने के साथ पौष्टिकता का संतुलन बनाए रखना जरूरी है. जख्मों और टूटी हड्डी के ठीक होने और ऐसी अन्य समस्याओं के मौके पर अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है.

तंतुओं की सघनता बनाए रखने, मांसपेशियों की मजबूती और रोगप्रतिरोधक क्षमता को कायम रखने के लिए आहारीय प्रोटीन लेते रहना चाहिए. उम्र बढ़ने से फ्रैंडली (गुड) बैक्टीरिया पाचनतंत्र से कम हो जाते हैं. इस से पाचनतंत्र के संक्रमण और गड़बडि़यों की समस्या हो सकती है. इसलिए वृद्धावस्था के दौरान आहार में सेहतमंद बैक्टीरिया वाले तत्त्व शामिल किए जाने चाहिए.

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