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Top 10 Diwali Health And Food Tips in Hindi : टॉप 10 हेल्थ एंड फूड टिप्स इन हिंदी

Health and food recipe: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं सरिता कि top 10 health and food recipe in hindi 2021. जिसमें हम आपको बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे त्योहार के समय में आप अपने हेल्थ का ध्यान रखें तथा इसके साथ ही आप स्वादिष्ट भोजन का भी आनंद लें.

  1. Diwali 2021: इस बार दीवाली पर कैसे रहें फिट

 

फिट रहना सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है और कोई भी इससे कोई भी समझौता करना नहीं चाहता है. आप चाहे  जितना व्यस्त हों, त्योहारों से घिरे हों पर फिटनेस से समझौता नहीं करना चाहिए. यहां कुछ ऐसे तरीके बताए जा रहे हैं जिससे आपको दीवाली के त्योहारी मौसम में भी फिट रहने में मदद मिलेगी. इस बारे में बता रहे हैं क्लिनिक ऐप्प के सीईओ, श्री सतकाम दिव्य.

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2. Diwali 2021 : संतुलित आहार हैल्दी त्योहार

अकसर लोग त्योहार में खानेपीने में संतुलन नहीं रखते हैं, इस कारण त्योहार खत्म होते ही बीमार पड़ जाते हैं. अगर कुछ मामूली बातों का आप ध्यान रख लें तो हैल्दी त्योहार मना सकते हैं. दीवाली पर फिट रहने के साथ एंजौय करने के लिए संतुलित आहार लेना बहुत जरूरी है. अकसर देखा जाता है कि लोग त्योहार में स्नैक्स, ड्राईफ्रूट और मिठाइयां ही खाते रहते हैं, ऐसा बिल्कुल न करें. इस से वजन बढ़ जाता है और आप की खूबसूरती छूमंतर हो जाती है. यह आप के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है.

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3. Diwali 2021: दीवाली की थाली- घोलें रिश्तों में मिठास

दीवाली के डिनर के लिए जब खाने का मैन्यू तैयार हो तो इस बात का ध्यान रखें कि सब की पसंद का खाना हो. हर घर में कुछ न कुछ अलग टाइप की डिश जरूर बनती है जो एक तरह से परिवार की पारंपरिक डिश होती है. इस तरह की डिश को कभी मां या दादी बनाती थीं. ऐसी डिश को मैन्यू में जरूर शामिल करें. इस से बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. इस तरह की डिश के साथ बचपन की कोई न कोई कहानी जरूर जुड़ी होती है. जब यह डिश डिनर में होगी तो आपस में पुराने दिनों की यादें ताजा होंगी जो पुराने समय के रिश्तों की ताजगी को उजागर करने में सहायक होंगी. अगर आपस में कोई मनमुटाव होगा तो वह भी दूर हो जाएगा.

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4. Diwali 2021: घर पर बनाएं मोहन थाल, टेस्टी और आसान रेसिपी

mohan thal recpie in hindi

 

सबसे पहले बेसन को एक कटोरे में रखें. अब एक नॉन स्टिक पैन गरम करके उसमें 1 1/2 बड़े चम्मच घी और दो बड़े चम्मच दूध डालकर हल्का  गरम कर लें.इस मिश्रण को बेसन में डालें और  मिलाकर ब्रेडक्म्रब्स जैसे बना लें. एक थाली पर थोड़ा सा घी लगा लें. केसर को एक बड़ा चम्मच गुनगुने दूध में दस मिनट के लिये भिगोकर रखें दें. बचा हुआ घी एक नॉन स्टिक पैन में गरम करें, उसमें बेसन का मिश्रण डालें और मध्यम आंच पर महक आने तक और तब तक भूनते रहे जब तक सुनहरा न हो जाए.

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5. Diwali 2021: चुटकियों में बनाएं स्वादिष्ट समोसे

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एक कटोरी में सभी चीजों को डाल कर अच्छी तरह से मिक्स करें. अब इसे नरम मुलायम आटे की तरह गूंथ लें.एक कटोरे में सारी सामग्रियों को डालकर अच्छी तरह से मिक्स कर दें.एक कटोरी में 30 ग्राम मैदा लेकर उसमें 60 मिली लीटर पानी डाल कर अच्छे से मिक्स करें.अब गुंथे आटे का थोड़ा हिस्सा लेकर उसकी लोई बनाकर बेलें.इसे काटकर 2 से 3 मिनट तक तवे पर सेंकें. अब इसे समोसे के आकार में रोल करके इसमें तैयार किया हुआ मिश्रण डालकर किनारों पर तैयार किया गया मैदे का पेस्ट लगाकर बंद कर दें.

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6.Diwali 2021: मार्बल रसमलाई और गोल्डन ओरियो बूंदी केक से करें मुंह मीठा

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दूध काढ़ते हुए जब आधा रह जाए तो 2 चम्मच ठंडे दूध में कस्टर्ड पाउडर घोल कर उबलते दूध में डाल दें. दूध गाढ़ा होने लगे तो उस में केसर, चीनी और इलायची पाउडर डाल कर 2 उबाल आने तक पकाएं. दूध को फ्रिज में खूब ठंडा होने तक रखें. मार्बल केक की स्लाइसें एक ट्रे में रखें. गाढ़ी मलाई को अच्छी तरह फेंट लें.

कुछ स्लाइसों पर यह मलाई लगाएं  और 2-3 स्लाइसों को उन के ऊपर रख कर सैंडविच जैसा बना लें. इन्हें मनचाहे आकार में काट लें. कटोरियों में गाढ़ा किया दूध डालें. मार्बल केक के तैयार टुकड़े ऊपर डालें. मार्बल रसमलाई खाने के लिए तैयार है.

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7.Diwali 2021: कैसे मनाएं ईकोफ्रैंडली दीवाली

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20 वर्षीय प्रभात बहुत खुश था. दीवाली का त्योहार उसे काफी अच्छा लगता था. प्रभात के कालेज में समझाया जा रहा था कि दीवाली पर पटाखे नहीं चलाने चाहिए. प्रभात को इन बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था. अपने घर वालों से जिद कर के प्रभात ने पटाखे और फुलझडि़यां खरीद ली थीं. उस ने दीवाली पर अपने रिश्तेदारों को भी बुलाया था. सब ने तय किया कि आज महल्ले में खूब धमाल मचाएंगे. उस के कुछ साथी तो तेज आवाज वाले बमपटाखे भी लाने वाले थे. शाम होते ही महल्ले के सभी लड़के एक जगह आ गए. प्रभात के घर की छत काफी बड़ी थी, इसलिए सभी वहीं पर आ गए. प्रभात और उस के साथियों का धमाल शुरू हो गया. पटाखों का धुआं चारों ओर फैलने लगा था.

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8. Diwali 2021: इस आसान तरीके से बनाएं बादाम की बर्फी

कई बार घर पर रहते हुए आपको कुछ मीठा खाने को मन करता है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं बादाम  की बर्फी   आसानी से घर पर कैसे बनाएं .

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9. Diwali 2021 : इस दीवाली ऐसे करें घर तैयार

इस दीवाली आप भी करें अपने घर की कुछ खास तैयारी ताकि जब रिश्तेदार या मेहमान आप के घर आएं तो साजसज्जा व तैयारियों को देख कर तारीफ करते न थकें. अगर आप को समझ नहीं आ रहा है कि कहां से इस की शुरुआत करें तो चिंता की कोई बात नहीं. हम आप को बता रहे हैं दीवाली पर घर की तैयारी के लिए कुछ खास बातें, जिन से आप अपने घर को सजा सकती हैं और अपने परिवार वालों व रिश्तेदारों के साथ दीवाली का भरपूर आनंद उठा सकती हैं.

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10. Diwali 2021: शक्कर- टेस्ट में अच्छी, हेल्थ के लिए खराब

sugar for health

खाने की हर चीज में मिठास उस के स्वाद को बढ़ाती है. खाने की करीबकरीब सभी चीजों में मिठास होती है. किसी में मिठास कम होती है तो किसी में ज्यादा. इस मिठास को नैचुरल शुगर कहते हैं. शुगर दरअसल कार्बोहाइड्रेट का एक हिस्सा होती है. जब यह शरीर को जरूरत से ज्यादा मिलती है तो शरीर में यह कार्बोहाइड्रेट के रूप में इकट्ठी हो जाती है. बाद में यही वसा यानी फैट बन जाता है.

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Harper Collins के सब्सक्रिप्शन प्रोगाम संग अपने बच्चे को रखें एक कदम आगे

हमारे पिछले आर्टिकल में आपने पढ़ा कि बच्चों के विकास के लिए पढ़ना कितना जरूरी है, लेकिन बच्चों के लिए सही किताबों को चुनना आसान नहीं है वो भी तब, जब हर जगह कोरोना का कहर हो. ऐसे में कितना अच्छा हो कि हम घर बैठे ही ऑनलाइन किताबे खरीद ले और किताबे घर तक आ जाएं.

मौजूदा समय में पैरेंट्स की इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए Harper Collins Publisher लाया है एक अनोखा सब्सक्रिप्शन प्रोगाम. जहां आप अपनी जरूरतों और बजट के हिसाब से सब्सक्रिप्शन ले सकते हैं.

आइए जानते हैं इसके बारे में…

कैसे काम करता है सब्सक्रिप्शन प्रोगाम?

1. सबसे पहले https://harpercollins.co.in/icanread/ पर लॉग इन करें और चेक करें कि आपके बच्चे के लिए कौन सा लेवल सही रहेगा.

2. आपके लिए हर लेवल के सैंपल चैप्टर उपलब्ध कराए गए है ताकि आप समझ सकें कि आपके बच्चे के मौजूदा रीडिंग लेवल के आधार पर कौन सा सबसे अच्छा काम करेगा. नीचे एक उदाहरण में आप इसे समझ सकते हैं…

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3. आप अपने बच्चे के लेवल के लिए उपलब्ध कुछ पुस्तकों को भी देख सकते हैं

4. एक बार जब आप लेवल सेलेक्ट कर लें तो अपनी पसंद का सब्सक्रिप्शन पैक चुन लें. हर लेवल के लिए 3 महीने, 6 महीने और 12 महीने का पैक उपलब्ध हैं. लेवल 3 का 3 महीने और 6 महीने का पैक है. आपके ट्रांजेक्शन को पूरा करने के लिए आपको पेमेंट पेज पर भेज दिया जाएगा.

सब्सक्रिप्शन के बाद आपको क्या मिलेगा?

1. पहला पैक जो हम आपको भेजेंगे उसमें आपके बच्चे के लिए नोटपैड, पेंसिल और एक्टिविटी शीट जैसे गिफ्ट्स होंगे. इसके साथ ही आपको मिलेगी 100 टिप्स वाली एक बुकलेट जिससे आप जान पाएंगे कि बच्चे में पढ़ने के लिए दिलचस्पी कैसे बरकरार रखें.

2. हर महीने हम आपको आपके चुने हुए लेवल के हिसाब से तीन किताबें भेजेंगे.

3. हर 6 महीने के पैक के साथ आपको मिलेगी 1000 रुपये की किताबें और हर 12 महीने के पैक के साथ मिलेगी 2500 रुपये की किताबें.

4. हर 12 माह वाला पैक ऑटोमैटिकली अगले लेवल को फ्री अपग्रेड करने की सुविधा के साथ आएगा जो आपके बच्चे के पढ़ने की क्षमता व गति को बनाए रखेगा.

हर लेवल के लिए सब्सक्रिप्शन पैक्स

3 months:
3 books per month and welcome kit @INR 1,418

6 months:
3 books per month, welcome kit and free books worth INR 1000 @INR 2678

12 months:
3 books per month, welcome kit and free books worth INR 2500 @INR 5040

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Harper Collins के साथ दीजिए अपने बच्चों को एक खास तोहफा

फेस्टिवल सीजन की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में हर किसी को इंतजार होगा कुछ खास तोहफों का खासकर बच्चों को. जी हां, दीवाली हो या कोई और फेस्टिवल इन खास मौकों का इंतजार सबसे ज्यादा बच्चे ही करते हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद होती है स्पेशल गिफ्ट्स की और पैरेंट्स अपने बच्चों के लिए एक से बढ़कर एक तोहफे भी लेते हैं. इसलिए इस दीवाली आप अपने बच्चों को दीजिए कुछ नया सीखने और पढ़ने का तोहफा क्योंकि एक बच्चे के लाइफ में सबसे अहम चीज है, उसकी सीखने की क्षमता.

जो वह सीखेगा, वह उसे पढ़ने में सक्षम होगा और ऐसे में सबसे जरूरी है बच्चे का खुश होने के लिए पढ़ना. पढ़ाई के कारण ही हम एक-दूसरे से जुड़ पाते हैं. जैसे- सुनना, बोलना और लिखने का शौक रखना. ये सब पढ़ाई के कारण ही संभव है. इससे हमारी क्रिएटिविटी का भी पता चलता है.

आखिर क्यों जरूरी है पढ़ना-

  • बच्चों को पढ़ने के लिए जरूर प्रोत्साहित करें, पढ़ाई के कारण ही बच्चों की रोजमर्रा की जिंदगी आसान बनेगी.
  • बच्चों की पढ़ाई को लेकर हमेशा पॉजिटिव रहें और उनकी मदद करें. इससे आपका अपने बच्चों के साथ स्ट्रॉन्ग कम्युनिकेशन बना रहेगा और उनके पढ़ने और सीखने की इच्छाशक्ति भी बढ़ती रहेगी.

इसके लिए Harper Collins Publisher India ने की है एक खास शुरुआत जिसका नाम है I Can Read! ये बच्चों (बिगनिंग रीडर्स) की रीडिंग जर्नी का सबसे अहम  हिस्सा है. हर किताब को अवॉर्ड विनिंग राइटर्स और इलिस्टेटेर ने बहुत सावधानी और सोच समझ कर तैयार किया है. आप पाएंगे कि हर किताब आपके बच्चे को खुद से पढ़ने के लिए हर कदम पर मददगार साबित हो रही है और उन्हें इंडिपेंडेर रीडर बना रही है.

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I Can Read! कैसे करता है बच्चों की मदद?

I Can Read! सीरीज की सभी किताबे उनके रीडिंग्स लेवल के आधार पर तैयार किए गए है.

फर्स्ट लेवल उन पैरेंट्स के लिए आदर्श है जो अपने बच्चों को किताबें पढ़कर सुनाते हैं. जब तक कोई बच्चा तीसरे लेवल तक पहुंचता है तब तक उसे खुद से पढ़ने में सक्षम हो जाना चाहिए.

यहां पर हम आपको बता रहे हैं उन विभिन्न चरणों के बारे में जिनसे गुजरकर आपका बच्चा एक इंडिपेंडेट रीडर बनेगा…..

  • My First Shared Reading
  • Level 1 – Beginning Reading
  • Level 2 – Reading With Help
  • Level 3 – Reading Alone

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इन चरणों के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़िए ये आर्टिकल–  Harper Collins के सब्सक्रिप्शन प्रोगाम संग अपने बच्चे को रखें एक कदम आगे

ज्यादा जानकारी के लिए क्लिक करें-

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Diwali 2021 : दीयों की चमक – भाग 2

“मैं क्या करूं. तेरी जान को रोऊं. जब देखो सिर पर सवार रहता है. दो मिनट की चैन नहीं. कभी यह तो कभी वह. महीनेभर मैं खटतीपिटती रहती हूं, उस की कोई कीमत नहीं. तेरे पापा को क्या, महीने में एक दिन  लाड़चाव लगाना रहता है. और तू, उन्हीं का माला  जपता  रहता है. सब की नजरों में मैं खटकती हूं. अब इस चप्पल को भी कब का बैर था मुझ से. इसे अभी ही टूटना था. मुझ से चला नहीं जाता,” रमा बिफर उठी. मुन्ना सहम गया. उस ने मां की पांव की ओर देखा, “सच्ची मम्मी, इन टूटी चप्पलों में कैसे चलेंगी?”

चप्पल मम्मी के गोरे पैरों का सहारा भर थीं वरना वह कब की  घिस चुकी थीं- बदरंग, पुरानी…

मुन्ना की आंखों के समक्ष मामियों की ऊंची एड़ी की मौडर्न, चमचमाती जूतियों का जोड़ा घूम गया. कितनी जोड़ी होंगी उन के पास. जब वे उन्हें धारण कर खटखटाती चलती हैं, कितनी स्मार्ट लगती हैं, किसी फिल्म तारिका जैसी. और उस की मम्मी, घरबाहर यही एक जोड़ी चप्पल… और आज वह भी टूट गया.

मुन्ना उदास हो गया. उस का बालसुलभ मन इन विसंगतियों को समझ नहीं सका. रमा किसी प्रकार अपना पैर संभालसंभाल मंजिल तक पहुंची. सामने खड़े अवध उसे एकटक देख रहे थे. नज़रें मिलते ही उन्होंने आंखें  झुका लीं.

कितने स्मार्ट लग रहे हैं अवध. लगता है नया सूट सिलवाया है- रौयल ब्लू पर लाल टाई, कार भी न‌ई खरीदी है. अरे वाह, क्षणभर के लिए ही सही उस की आंखें चमक उठीं.

मुन्ना पापा को देखते ही दौड़ पड़ा, “बाय मम्मी.”

“बाय.”

“पापा, न‌ई गाड़ी किस की है?” पापा को पा कर मुन्ना  सारे जग को भूल जाता है, शायद मां को भी.

“तुम्हारी है. तुम्हें कार की सवारी पसंद है न.”

“सच्ची, मेरे लिए, मेरी है,” उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

पिछले सप्ताह वह मामा के कार में ताकझांक कर रहा था. उसे मामा के बेटे ने हाथ पकड़  कर ढकेल दिया था.

“मैं भी गाड़ी में बैठूंगा,” मुन्ने का मन कार से निकलने का नहीं कर रहा था.

मामा का  बेटा उसे परास्त करने का तरीका सोच ही रहा था, उसी समय बड़ी मामी सजीधजी कहीं जाने के लिए निकली. मुन्ने को कार में ढिठाई करते देख सुलग पड़ी, “पहले घर, अब कार. सब में इस को हिस्सा चाहिए. इन मांबेटा ने जीना दूभर कर दिया है, सांप का बेटा संपोला.”

मामी की कटुक्तियां  वह समझा या नहीं, लेकिन इतना अवश्य समझ गया कि इस खूबसूरत कार पर उस का कोई अधिकार नहीं है.

उसे, उस की मम्मी, उस के पापा से कोई प्यार नहीं करता. उस ने कार से उतरने में ही अपनी भलाई समझी. अभी जा कर मम्मी से सब की शिकायत करता हूं.

लेकिन मम्मी है कहां? वह रसोई में शाम की पार्टी की तैयारी में जुटी थी. बड़े मामा का प्रमोशन हुआ था और उन के शादी की सालगिरह भी थी. सभी व्यस्त थे, खरीदारी, घर की सजावट, रंगरोगन में. फ़ालतू तो वह और उस की मम्मी.

वह मम्मी के पास जा पहुंचा. आग की लपटों में मम्मी का गोरा रंग  ताम्ब‌ई हो रहा था. वह एक के बाद एक स्वादिष्ठ व्यंजन बनाने में हलकान हो रही थी. इस स्थिति में उन्हें परेशान करना सही नहीं.

“मम्मी, एक ले लूं.” लाल सुर्ख कचौड़ी की खुशबू उसे सदैव आकर्षित करती है.

मम्मी ने उंगली के इशारे से मना किया. उस के बढ़ते हाथ रुक गए.

“पूजा के बाद मिलेगा न, मम्मी?”

“हां मेरे लाल,” मम्मी ने लाड़ले को सीने से लगा लिया. मां का शरीर कितना गरम है. सीने में उबलते हुए जज़्बात चक्षु से भाप बन निकलने लगे.

“मेरा राजा बेटा, अपना होमवर्क करो. मैं थोड़ी देर में आती हूं.” वह जानता है मम्मी रात्रि के 12 बजे से पहले नहीं आने वाली. तब तक  वह  दुबक कर सो जाएगा.

मम्मी पार्टी समाप्त होने पर बचाखुचा काम समेटेंगी. 2 निवाले खाएंगी या ‘भूख नहीं है,’ कह कर छुट्टी पा लेंगी.  उसे एकबार मम्मी ने इसी तरह किसी पार्टी में एक मिठाई खाने के लिए दे दी थी. उस दिन कितना शोर मचा था. यों अपने बेटे को कुछ खाने के लिए देना दोनों मामियों को  कितना नागवार गुजरा था. उस दिन से मम्मी ने जैसे कसम खा ली थी. न कुछ उठा कर बेटे को देती थीं न खुद लेती थीं. अपने ही मांबाप के घर में; अपने लोगों के बीच दोनों मांबेटे किरकिरी बने हुए हैं.

सिर्फ मांग में सिंदूर पड़ जाने से, एक बच्चे की मां बन जाने से कोई इतना पराया हो जाता है. यही भाभियां रमा की एक‌एक अदा पर नयोछावर होती थीं. उस को खिलानेपिलाने में आगे रहती थीं. उन्हीं की नजरों में वह ऐसा गिर चुकी है.

“मम्मी, देखो, न‌ई गाड़ी मेरे लिए. तुम भी चलो, खूब घूमेंगे, पिकनिक पर जाएंगे. अपने दोस्तों को भी ले जाऊंगा,” मुन्ना खुशी से बावला हो रहा था.

अवध अपने बेटे का चमकता मुखड़ा निरेख रहे थे और रमा, बापबेटे के इस मिलन को किस प्रकार ले- हंसे या रोए. हंसना वह भूल चुकी है और रोना…इस आदमी के सामने जो उस के बेटे का बाप है.

संपादकीय

सुप्रीम कोर्ट ने यह तो कह दिया कि किसान सडक़ों को रोक कर अपना आंदोलन नहीं कर सकते पर उन्हें यह नहीं बताया कि सारे देश में आखिर जिसे भी सरकार से नाराजगी हो जाए कहां? सारे देश में पुलिस और प्रशासन ने इस तरह से मैदानों, चौराहों, खाली सडक़ों की नाकाबंदी कर रखी है कि कहीं भी सरकारी कुर्सी की जगह धरने प्रदर्शन की जगह बची नहीं है.

सारी दुनिया में सडक़ों पर ही आंदोलन होते रहे हैं. हमेशा सत्ता का बदलाव सडक़ों से हुआ है. जिन सडक़ों के बारे में सत्ता के पाखंडिय़ों का प्यार आजकल उमड़ रहा है वे ही इन पर कांवड यात्रा, महा यात्रा, रथ यात्रा, रात्रि जागरण, कथा कराते रहे हैं. सडक़ों पर बने मंदिर सारे देश में आफत हैं जो हर रोज फैलते हैं, खिसकते नहीं है. सरकार और सुप्रीम कोर्ट को नहीं देख रहे, किसान दिख रहे हैं.

किसानों से सरकार को चिढ़ यह है कि आज का किसान हमारे पुराणों के हिसाब से शूद्र है और वह किसी भी हक को नहीं रख सकता. उस का काम तो पैरों के पास बैठ कर सेवा करना है या उस गुरू के कहने पर अंगूठा काट देना है जिसने शिक्षा भी नहीं दी. वह शूद्र आज पांडित्य के भरोसे बनी सरकार को आंखें दिखाए यह किसी को मंजूर नहीं. न सरकारे थे, न मीडिया को न सुप्रीम कोर्ट को क्योंकि इन सब में तो ऊंची जातियों के लोग बैठे हैं जिनकी आत्मा ने पिछले जन्मों में ऋ षियों-मुनियों की सेवा करके आज ऊंची जातियों में जन्म लिया है.

सरकार और सुप्रीम कोर्ट तो कहती है कि हर जने (जिसका अर्थ हर काम करने वाले को) क्या करते रहना चाहिए, फल की ङ्क्षचता नहीं करनी चाहिए अब कर्म होगा तो फल किसी के हाथ तो लगेगा. पूरी गीता छान मारो कहीं नहीं मिलेेगा कि कर्म का फल जाएगा किसे और क्यों. कर्म का फल तो कर्म करने वाले को मिलना चाहिए, अनाज का दाम किसान को मिलना चाहिए, साहूकार को नहीं. गीता के पाठ को नए कृषि कानूनों में पिरोने की चाल को समझ कर किसान अगर आंदोलन कर रहे हैं तो गलत न नहीं है.

प्रोटेस्ट का हक ही लोकतंत्र की जान है पर प्रोटेस्ट की सोचने वालों को गिरफ्तार कर लेना, प्लाङ्क्षनग करने वाले पर मुकदमा चला देना, उसे मैदान, सडक़ न देना आज सरकार का हथियार बन गया है जिसे किसान तोडऩे में लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट बिलकुल सही है जब कहती है कि प्रोटेस्ट का हक है पर बिलकुल गलत है जब कहती है कि सडक़ों पर प्रोटेस्ट नहीं हो सकती. प्रोटेस्ट तो वहीं होगा जहां से सरकार को दिखे, जहां सरकार की कुर्सी हो. किसान विरान रण के कच्छ में जाकर तो अपना धरना प्रदर्शन नहीं कर सकते जहां मीलों तक न पेड़ है, न मकान न सरकारी नेता, न सरकारी की कुर्सी.

Diwali 2021: कुछ इस तरह बनाएं फैस्टिवल पार्टी मैन्यू जाे हो हैल्दी और टेस्टी भी

फैस्टिवल की बात जब होती है तो पार्टी बेहद खास हो जाती है. पार्टी में डांस, मस्ती और रोमांच के साथ ही साथ बेहद जरूरी होता है खाने के मैन्यू का चुनाव करना. युवा खाने में बहुत चूजी होते हैं ़उन्हें साधारण खाना पसंद नहीं आता. वे फास्टफूड, चाइनीज, पास्ता और आइसक्रीम की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं ़कई बार होटलों में बना यह खाना हैल्थ के लिहाज से अच्छा नहीं होता. युवाओं की सेहत के लिए ये हानिकारक होते हैं. ऐसे में खाने के मैन्यू का चुनाव करना बेहद अहम है. पार्टी का यह फूड मैन्यू हैल्दी और टैस्टी होना चाहिए साथ ही साथ, यह दिखने में भी अच्छा हो. यूथ इस बात को पसंद करते हैं कि उन का मैन्यू दिखने में भी आकर्षक हो. युवाओं में एक यह धारणा होती है कि जो हैल्दी फूड होता है वह टैस्टी नहीं होता है. इस धारणा को बदलने की जरूरत है. आज के दौर में खानपान को ले कर इतने बदलाव हो रहे हैं कि टैस्टी खाने को भी हैल्दी बनाया जा सकता है.

न्यूट्रीवैल इंडिया की डा. सुरभि जैन कहती हैं, ‘‘यूथ को पार्टी का मैन्यू तय करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह हैल्दी और  टेस्टी तो हो ही, देखने में भी अच्छा हो. आज के समय में सलाद का प्रयोग बहुत अच्छा होता है. फैस्टिवल सीजन में कई तरह की हरी सब्जियां मिलती हैं. इन का प्रयोग किया जा सकता है. सौफ्टडिं्रक में फ्रैश जूस का प्रयोग अच्छा रहता है. कोल्डड्रिंक और बोतलबंद जूस में चीनी का प्रयोग अधिक रहता है, ऐसे में इन का प्रयोग सावधानी से करें.

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‘‘हनी मिक्स ड्रिंक बनाए जा सकते हैं. कई तरह के ड्रिंक बादाम, मेवा से भी मिला कर तैयार किए जा सकते हैं. आजकल के खाने में मिलावट के साथ स्वच्छ तेल का प्रयोग नहीं किया जाता. होटलों में कई बार एक ही औयल का प्रयोग किया जाता है. यह औयल सेहत के लिए बहुत खतरनाक होता है. मैन्यू के साथ जरूरी है कि खाना बनाने वाले उपकरण का चुनाव सावधानी से हो.’’

वैलकम ड्रिंक में हो मेवा का प्रयोग

किसी भी पार्टी में खाने की शुरुआत वैलकम ड्रिंक से होती है. यूथ की पार्टी का वैलकम ड्रिंक कुछ खास होना चाहिए. कोल्डड्रिंक और डब्बाबंद जूस तो बेहद सरल सा मैन्यू हो जाता है. यह देखने में कुछ खास नहीं होता. हैल्दी भी उतना नहीं होता है फैस्टिवल के दिनों में मौसम जाडे़ का होता है. ऐसे में मेवा से तैयार डिं्रक बेहद जरूरी होता है. यह युवाओं की सेहत के लिए उपयोगी भी होगा. वैलकम ड्रिंक में मौकटेल्स को युवा खूब पसंद करने लगे हैं. जरूरी यह होता है कि इस को बहुत अच्छी तरह से पेश किया जाए. फ्रै श लाइम सोडा, शिकंजी के साथ रूहअफ्जा, मैंगो और स्ट्राबैरी से तैयार वैलकम ड्रिंक बहुत अच्छे होते हैं.’’

इवैंट और्गेनाइजर दिशा संधू कहती हैं,‘‘फैस्टिवल सीजन में मौसम बदल रहा होता है, ऐसे में यूथ को हैल्दी वैलकम ड्रिंक का प्रयोग करना चाहिए. मौकटेल्स अब ऐसे तैयार होने लगे हैं जो देखने में भी बहुत अच्छे लगते हैं. इन को पेश करने का तरीका भी बेहद खास होता है. इस को देखने से ही मन खुश हो जाता है.

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‘‘आज के समय में पार्टी की फोटोग्राफी बेहद खास होती है, ऐसे में इस में परोसे जाने वाले वैलकम ड्रिंक का अच्छा दिखना जरूरी होता है. कोल्डड्रिंक या जूस के मुकाबले मौकटेल्स ज्यादा हैल्दी, टैस्टी होने के बाद साथसाथ खूबसूरत भी दिखते हैं. ये अलगअलग टैस्ट के होते हैं. मौकटेल्स को तैयार करने में खाने वाले कलर की जगह पर नैचुरल खाने की चीजों के इस्तेमाल से उसे कलरफुल बनाया जाए ़जैसे केसर के प्रयोग से मौकटेल्स को कलर दिया जा सकता है. यह हैल्थ को नुकसान नहीं देता है.’’

स्टार्टर हो खास

मैन्यू में वैलकम ड्रिंक के बाद सब से खास होता है स्टार्टर फूड. यह कुछ तीखाचटपटा होना चाहिए जिस से खाने की भूख न खत्म हो. खाने वाले का स्वाद बढ़ जाए ़युवाओं को स्टार्टर फूड में साउथ इंडियन डिश के साथ चाइनीज डिश बेहद पसंद आती है. इस के साथ ही, चटपटी चाट भी पसंद आती है. पापड़ी चाट, ढोकला, भेलपूरी युवा खूब पसंद करते हैं.

डायटीशियन तान्या साहनी कहती हैं, ‘‘युवाओं में स्टार्टर फूड मेन कोर्स से ज्यादा पसंद किया जाता है ़कटलेट, स्प्रिंगरोल, हनी पोटैटो को तैयार करते समय अच्छे किस्म का औयल प्रयोग किया जाए. बेहतर होगा कि औलिव औयल का प्रयोग हो. यह सेहत के लिए खास होता है. भेलपूरी और ढोकला दोनों में ही औयल का प्रयोग नहीं होता है. ये सब से अहम होते हैं.’’

फैस्टिवल सीजन में तरहतरह की सब्जियां बाजार में होती है. ऐसे में इन से तैयार सूप भी बहुत उपयोगी होते हैं. सूप में कई तरह की सब्जियां होती हैं जो सेहत के लिए लाभकारी होती हैं. इन का टेस्ट भी अच्छा होता है.

तान्या कहती हैं, ‘‘स्टार्टर फूड का चुनाव सही तरह से करना चाहिए. सूप इन में सब से बेहतर होता है. सूप खाने की भूख को बढ़ाने के साथ ही साथ खाने को सही तरह से डाइजैस्ट भी करता है. युवाओं को अपनी पसंद के अनुसार इन को तैयार कराना चाहिए. थोडे़बहुत बदलाव के बाद हैल्दी सूप को टैस्टी बनाया जा सकता है. इस में पसंद के अनुसार फ्रूट्स का भी प्रयोग किया जा सकता है. विंटर के इस फैस्टिवल सीजन में कई तरह के टेस्टी फू्रट्स मिलने लगते हैं. यह भी अलग किस्म के होते हैं. फ्रूट्स चाट भी पसंद की जाती है.’’

मेन कोर्स में पनीर पहली पसंद

पार्टी की शान उस का खाना होता है. ऐसे में खाना स्वादिष्ठ होना जरूरी है. खाने में शाकाहारी पसंदीदा डिश होती है. कुछ युवाओं को नौनवेज भी पसंद आता है. इवैंट और्गेनाइजर स्वाति दीक्षित का मानना है, ‘‘डिश का चुनाव ऐसा होना चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की पसंद का हो. ऐसे में पनीर की डिश सब से खास होती है. मशरूम से तैयार डिश खाने में हैवी हो जाती है, ऐसे में यह यूथ को कम पसंद आती है. पनीर में कढ़ाईपनीर सब से खास होता है. फ्राई सब्जियां जैसे भरवां बैगन, करेला और टमाटर भी यूथ पसंद करते हैं. ग्रेवी वाली सब्जी के साथ ड्राई सब्जी भी जरूरी होती है. बहुत सारे युवाओं को आलूजीरा फ्राई सब से अच्छा लगता है. तंदूरी रोटी के साथ जीरा राइस भी पसंद आता है.’’

खाने के बाद स्वीट डिश में यूथ को सब से पसंद आइसक्रीम आती है. मिठाई बहुत कम लोग खाना पसंद करते हैं. युवाओं की पार्टी का मैन्यू पूरी तरह से बैलेंस्ड होना चाहिए. जिस से वे पार्टी को ऐंजौए कर सकें.

दीयों की चमक

Diwali 2021 : दीवाली धमाका

दीवाली पर क्या किया जाए, आजकल यही विचारविमर्श चल रहा था.

विनय एक दिन दिल्ली में अपने औफिस से लौटा तो उस की खुशी का ठिकाना न था. पत्नी रीना के कारण पूछने पर उस ने उत्साहित स्वर में बताया, ‘‘बैस्ट परफौर्मर का अवार्ड मिला है मुझे, फ्रांस स्थित हैडऔफिस में तुम्हारे साथ जाने का मौका मिल रहा है. बस, एक प्रौब्लम है कि राहुल को नहीं ले जा सकते.’’

रीना बहुत खुश हो गई थी पर प्रौब्लम सुनते ही उस का जोश ठंडा हो गया, बोली, ‘‘ओह, अब क्या करें, यह मौका तो मैं नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘राहुल को अपने मम्मीपापा के पास छोड़ देना. वे भी यहीं दिल्ली में ही तो हैं.’’

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‘‘नहीं विनय, मम्मी बीमार चल रही हैं. वे इसे नहीं संभाल पाएंगी. भैयाभाभी दोनों वर्किंग हैं. इसलिए इसे वहां नहीं छोड़ सकती. एक आइडिया है, लखनऊ से अपने मम्मीपापा को बुला लो दीवाली पर, वे यहीं रहेंगे तो राहुल का टाइम आसपास के बच्चों के साथ खेलने में बीत जाएगा. कंपनी भेज रही है, यह मौका छोड़ना बेवकूफी ही होगी. वाह, तो इस बार की दीवाली फ्रांस में, मैं कभी सोच नहीं सकती थी. अभी बात कर लो उन से, आने के लिए कह दो.’’

विनय ने फोन पर अपने पिता गौतम को पूरी बात बताई. उन्होंने इतना ही कहा, ‘‘देखेेंगे.’’

विनय झुंझलाया, ‘‘इस में देखना क्या है, राहुल को आप के पास छोड़ कर ही जा सकते हैं.’’

गौतम ने फोन रख कर अपनी पत्नी सुधा को पूरी बात बताई. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

विनय की सारी तैयारियां रखी रह गई थीं. मातापिता का कोई अतापता न था. इस बात की चिंता भी थी पर ज्यादा गम इस बात का था कि विदेश जाने का मौका हाथ से निकल गया था. मुंबई में रह रही बहन भी परेशान थी, कहा हैं मातापिता. विनय पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने की सोच रहा था.

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दरअसल, विनय को दीवाली के 3 दिन पहले निकलना था. कुछ दिनों से वह तैयारियों में ही व्यस्त था. पिता से आने के लिए कहने के बाद से उस ने दोबारा फोन नहीं किया था. रीना ने कहा, ‘‘फोन पर उन के आने की डेट तो पूछो, अभी तक उन्होंने बताया ही नहीं, 2 दिन रह गए हैं जाने में.’’

विनय ने पिता को फोन मिलाया. फोन बंद था. उस ने मां का फोन मिलाया, वह भी बंद था. वह बारबार ट्राई करता रहा, फोन बंद ही मिले.

वह परेशान हुआ. रीना भी घबरा गई, ‘‘जल्दी पता करो. हमारा तो जाने का टाइम आ गया है. सब तैयारियां हो गई हैं.’’

विनय ने कहा, ‘‘दीदी से पूछता हूं.’’

माया ने भी कहा, ‘‘एक हफ्ते से बात नहीं हुई है.’’

अब विनय और माया बारबार फोन मिलाते रहे. मातापिता के आसपड़ोस का कोई नंबर दोनों के पास नहीं था.

दीवाली आई और चली भी गई. न विनय ही विदेश जा पाया न रीना, 3 और लोगों को भी पत्नी के साथ अवार्ड लेने के लिए जाना था, वे गए भी. रीना ने चीखचिल्ला कर अब विनय का जीना दूभर कर दिया. विनय को गंभीर बीमारी का बहाना कर छुट्टी लेनी पड़ी.

उधर, लखनऊ में कुछ दिन पहले ही विनय के मातापिता सुधा और गौतम परेशान थे कि विनय ने दीवाली के लिए कोई बात नहीं की कि दोनों आएं और पोते के साथ दीवाली मनाएं.

‘‘विनय ने अभी तक नहीं बताया था कि वह यहां लखनऊ आएगा या हमें दिल्ली बुलाएगा, टिकट भी तो करवाने होते हैं,’’ विनय की मां सुधा ने कहा था.

गौतम ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘न उसे आना है न बुलाना है, आज तक अपने बेटे को समझ नहीं पाईं तुम या सचाई का सामना नहीं करना चाहतीं? 5 साल से वह हमारे प्रति अपने सब कर्तव्य भूल कर अपनी दुनिया में मस्त है. अब तुम ध्यान हटा ही लो अपने बच्चों की तरफ से. सोच लो, हम दोनों ही हैं एकदूसरे का सहारा. और कोई नहीं.’’

‘‘हां, ठीक कह रहे हो. माला से पूछूं क्या? अगर वह दीवाली पर आ जाए तो घर में कुछ रौनक हो जाएगी.’’

‘‘अपनी तसल्ली के लिए पूछ कर देख लो. पर मैं जानता हूं, वह नहीं आएगी. उस की अपनी घरगृहस्थी है, कामकाजी है. कहां टाइम होता है उस के पास? और मुंबई से यहां लखनऊ आ कर उस के बच्चे बोर होने लगते हैं. पिछली बार देखा नहीं था, उन्हें संभालने में तुम्हारे होश उड़ गए थे.

‘‘सुधा, बेटा हो या बेटी, दोनों अपनी दुनिया में मगन हैं. कभीकभार जो उन से फोन पर बात होती है, बस, उसी में खुश हो जाया करो. और मैं हूं न. उन बुजुर्गों की जरा सोचो जो बिलकुल अकेले रह जाते हैं. सारा जीवन मेहनत ही की है. अब बातबात पर खून जलाने का मन नहीं करता. जीवन के आखिरी पड़ाव को हंसीखुशी, शांति से जिएंगे, किसी से कोई उम्मीद रखे बिना.’’

तभी पड़ोस के रजत दंपती, जिन से पुरानी जानपहचान थी, आ गए थे. रजत और गौतम साथ ही रिटायर हुए थे. अब खाली समय मिलजुल कर, घूम कर साथ ही बिताते थे. उन के दोनों बेटे विदेश में कार्यरत थे. रजत की पत्नी मंजू ने कहा, ‘‘आप लोगों का नाश्ता हो गया?’’

सुधा ने कहा, ‘‘नहीं, अभी तो कुछ नहीं बनाया.’’

‘‘वैरी गुड, मेरा भी मूड नहीं हुआ बनाने का. चलो बाहर थोड़ी सैर करेंगे, फिर नाश्ता करते हुए आएंगे.’’

सुधा हंसी, ‘‘सुबहसुबह?’’

‘‘और क्या, नाश्ता तो सुबह ही होता है न,’’ मंजू के इस मजाक पर चारों ने ठहाका लगाया और घूमने निकल पड़े. सुबह के 9 बज रहे थे. वे चारों एक पार्क में टहलते रहे. फिर आते हुए एक जगह रुक कर चारों ने नाश्ता किया. बातें, हंसीमजाक, सुखदुख बांट कर के जब तक सुधा घर आई उस का मन काफी हलका हो गया था. गौतम और सुधा फिर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए.

गौतम एक प्राइवेट कंपनी के जीएम पद से रिटायर हुए थे. आर्थिक रूप से स्थिति अच्छी थी. वे भावनात्मक रूप से पत्नी को उदास देखते तो उन का मन दुखी हो जाता. पर यह तो घरघर की कहानी थी. वे जानते थे कि त्योहार पर सुधा बच्चों का साथ चाहती है. रोज शाम को दोनों 1-2 घंटे के लिए सोसायटी के क्लबहाउस जाते थे. उन की उम्र का 12-13 लोगों का ग्रुप होता था. काफी समय अच्छा गुजर जाता था. किसी को भी कोई जरूरत होती थी, पूरा ग्रुप हाजिर रहता था. सब की एक जैसी स्थिति थी. लगभग एक जैसा रुटीन और एक जैसी सोच. अब तो यह ग्रुप एक परिवार की तरह हो गया था. राजीव रंजन तो कई बार कहते थे, ‘‘कौन कहता है हम अकेले हैं, इतना बड़ा परिवार तो है यह हमारा.’’

बातोंबातों में उन सब ने बाहर घूमने की योजना बना डाली. बुकिंग हुई. सूटकेस तैयार हुए. वीजा लिया गया. दीवाली की बात अब छूमंतर हो गई.

दीवाली के 7वें दिन विनय ने पिता को एक बार फिर फोन ट्राई किया तो घंटी बज उठी. विनय चौंका. गौतम ने फोन उठाया तो विनय ने सवालों, तानों की बौछार कर दी. गौतम ने आराम से जवाब दिया, ‘‘हम लोग 10 रोज के लिए आस्ट्रेलिया गए थे.’’

विनय को जैसे करंट लगा, ‘‘क्या? कैसे? किस के साथ?’’

‘‘अपनी सोसायटी के ग्रुप के साथ.’’

‘‘पर आप को बताना चाहिए था न, मेरा सारा प्रोग्राम खराब हो गया, क्या जरूरत थी आप को जाने की?’’

‘‘तुम ही तो कहते हो कि हमें अपने जीने का ढंग बदलना चाहिए. हमें लाइफ ऐंजौय करनी चाहिए. और तुम कौन सा हमारे बारे में सोच कर हमें बुला रहे थे, तुम्हारा अपना ही स्वार्थ तो था.’’

विनय की बोलती बंद थी, फोन रख कर सिर पकड़ कर बैठा रह गया. यह दीवाली धमाका जबरदस्त था.

Diwali 2021 : उपहार स्नेह या दिखावा

उपहार ऐसा शब्द है जिसे सुन हम आज भी उत्साहित हो जाते हैं. बचपन में जब हमारे सगेसंबंधी दीवाली में हमारे लिए पटाखे, खिलौने व कपड़े लाया करते थे तो हम खुशी से झूम उठते थे. आज फर्क मात्र बच्चों की तरह खुशी जाहिर न करने का है.

वहीं, जब हम किसी दोस्त व सगेसंबंधियों के लिए तोहफे खरीदते हैं तो यही उम्मीद करते हैं कि वे बहुत खुश होंगे. पर कभीकभी यही तोहफे रिश्तों में खटास भी ले आते हैं. आखिर जब उपहार रिश्तों में स्नेह के प्रतीक हैं तो यह कड़वाहट कैसे और क्यों घोल जाते हैं? स्नेह आजकल दिखावे की जगह लेता जा रहा है जिस से न सिर्फ पैसों की बरबादी होती है बल्कि यह दिखावा रिश्तों की मिठास को भी खत्म करता जा रहा है.

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बोझ न बनने दें

उपहार देना व लेना हर स्थान का चलन है परंतु कभीकभी यह प्रथा रिश्तों पर बोझ भी बन जाती है. ऋचा की सहेली सलोनी तो बहुत ही स्नेही लड़की है परंतु जब भी वह ऋचा के घर आती है, ऋचा व बच्चों के लिए खूब महंगेमहंगे तोहफे ले आती है. शुरूशुरू में ऋचा ने उसे समझाया कि हर बार तोहफा ले कर आने की जरूरत नहीं है और विशेषकर इतने महंगे तोहफे तो वह कतई न लाए. लेकिन सलोनी उस की एक न सुनती.

सलोनी सदैव यही दलील देती कि वह बच्चों की मौसी है और बच्चों को उपहार देने का उस का पूरा हक है. ऋचा जानती थी कि सलोनी और उस की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का फर्क था परंतु फिर भी उस ने हमेशा यही सोचा कि दोस्ती में इन सब बातों के लिए कोई जगह नहीं होती है परंतु अब उसे सलोनी का इतने महंगे तोहफे लाना बोझ लगने लगा.

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वह जानती थी कि चाह कर भी वह इतना सबकुछ सलोनी के बच्चों को कभी नहीं दे सकती थी. हालांकि सलोनी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि ऋचा उस के बच्चों के लिए उपहार लाए या नहीं, उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. ऋचा के पति मोहित भी अब ऋचा से यही कहते कि हम उन की बराबरी के नहीं हैं, इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम सलोनी से थोड़ी दूरी बना कर ही रहो.

कई बार बचपन में हम लोगों ने यह देखा होगा कि जब घर में हमारे कोई रिश्तेदार आते थे तो चाहे घर की स्थिति कैसी भी हो, उन के लिए नए कपड़े जरूर खरीदे जाते थे. फिर चाहे उन्हें इस की जरूरत हो या न हो. उपहार देना या लेना कतई गलत नहीं है. उपहार देना तो स्नेह प्रकट करने का एक रूप है.

याद कीजिए जब हम बच्चे थे तब हमें भी उपहार कितना पसंद आता था और बचपन में ही क्यों, उपहार तो आज भी हम सब को पसंद आता है. परंतु जब तक ये उपहार दिल व स्नेह से दिए जाएं तब तक ही इन की सार्थकता सही अर्थों में होती है.

बहुत महंगे उपहार दे कर आप किसी पर बोझ ही डाल रही हैं. महंगे उपहार दे कर अथवा कोई ऐसा उपहार दे कर जिस की सामने वाले को कोई जरूरत न हो, हम दिखावा ही करते हैं. उपहार स्नेह से दें, न कि दिखावे के लिए.

अवसर व उपयोगिता का रखें ध्यान

हम अब भी किसी दोस्त या रिश्तेदार के लिए उपहार खरीदें तो यह जरूर जान लें कि उसे किस तरह की चीजों से लगाव है. मान लीजिए किसी व्यक्ति को किताबों में रुचि है तो आप उपहारस्वरूप उसे उस की पसंद की किताबें दे सकती हैं.

यह जरूरी नहीं कि उपहार महंगे ही खरीदें जाएं. यदि आप का रिश्तेदार या मित्र सिर्फ महंगे तोहफों की ही कद्र करता है तो बेहतर यही होगा कि आप ऐसे लोगों से थोड़ी दूरी बना कर ही रखें क्योंकि आप का सच्चा मित्र आप की व आप की सोच की कद्र करेगा, आप के महंगे दिखावे में दिए गए उपहारों की नहीं.

यदि आप पैसा खर्च कर अपने बच्चे के जन्मदिन के अवसर पर कुछ खास करना ही चाहती हैं तो आप गरीब व जरूरतमंद बच्चों को छोटेछोटे उपहार दे कर या उन की जरूरत के हिसाब से चीजें खरीद कर दे सकती हैं. ऐसा करने से आप के बच्चे जिंदगी की वास्तविकता से अवगत होंगे व उन के मन में सहानुभूति की भावना जागेगी व आगे चल कर वे भी आप की ही तरह गरीब व जरूरतमंद इंसान की अवश्य मदद करना चाहेंगे.

उपहार देते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप का दिया हुआ उपहार अवसर के अनुकूल हो. जैसे, बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर बच्चों की उम्र और उन की रुचि को ध्यान में रखते हुए ही तोहफे खरीदें. उपहार देते वक्त अवसर और उपयोगिता का सदैव ध्यान रखना चाहिए.

आप ने यह कई बार देखा होगा कि जब कुछ लोग किसी अमीर रिश्तेदार व दोस्त से मिलने जाते हैं तो उन की कोशिश यही रहती है कि हम उन की हैसियत के हिसाब से उन के लिए महंगे गिफ्ट ले जाएं. जबकि जब वे किसी गरीब रिश्तेदार व दोस्त के घर जाते हैं तब उन के लिए कुछ भी छोटा सा उपहार ले जाते हैं. उन के लिए उपहार खरीदने में वे पैसा और समय बरबाद नहीं करना चाहते. यह गलत है. ऐसा न करें.

याद कीजिए जब आप की नानी व दादी आप के लिए घर से आप की पसंद की मिठाइयां व नमकीन तथा अचार अपने हाथों से बना कर भेजती थीं तब आप को कितनी खुशी होती थी. यह उन के स्नेह का ही प्रतीक था. घर की बनी शुद्घ साफसुथरी चीजों में स्वाद के साथ सेहत का भी भरपूर ध्यान रखा जाता था परंतु आजकल बच्चे सिर्फ बाहरी जंक फूड्स ही खाना पसंद करते हैं. कोई यदि घर की चीजें बना कर भेजता है तो वे उस की कोई कद्र नहीं करते.

आप ने घरपरिवार में अकसर किसी न किसी से यह बात सुनी होगी कि फलां इंसान ने उन्हें कितना सस्ता व घटिया उपहार दिया है, या साड़ी का रंग अच्छा नहीं था, कुरती का डिजाइन पहनने लायक ही नहीं है. खासकर शादीब्याह में कपड़ों का लेनदेन इतना ज्यादा होता है कि अकसर इस तरह की शिकायतें कही व सुनी जाती हैं.

जब हम किसी से तोहफे लेते हैं तो हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमारे कारण उन्हें कोई तकलीफ न हो. न तो किसी से तोहफों की जरूरत से ज्यादा उम्मीद रखें और न ही किसी को जरूरत से अधिक महंगे तोहफे दें. तोहफे स्नेह को दर्शाते हैं. तोहफों की वजह से रिश्तों में यदि कोई खटास आ जाए तो ऐसे तोहफे भला किस काम के?

रिश्तों की मजबूत डोर स्नेह से पिरोएं तोहफों की कीमत से नहीं

यदि कोई आप को स्नेह से कोई तोहफा देता है तो हमेशा उस की कद्र करें. फिर चाहे वह तोहफा कम कीमत का ही क्यों न हो. अनेक लोग अपने प्रियजनों को अपने हाथ से बनाए खिलौने, पर्स, स्वेटर, मूर्तियां, दीये, सजावट वाली मोमबत्तियां, मिठाइयां आदि देना पसंद करते हैं. और यकीनन ये तोहफे अनमोल होते हैं. इन तोहफों में देने वालों का स्नेह व परिश्रम छिपा होता है. इन की हमेशा कद्र करनी चाहिए परंतु विडंबना यह है कि कुछ लोग दिल से दिए गए तोहफों कि कोई कद्र नहीं करते. समय के साथसाथ परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है. समय बदला है, नजरिया बदला है, परंतु स्नेह तो स्नेह ही है. जब आप अपने घर से दूर जाते हैं तब आप की मां कितने स्नेह से आप के लिए घर की बनाई हुई खानेपीने की चीजें देती हैं. ऐसा नहीं है कि वे चीजें आप के शहर में नहीं मिलतीं परंतु यह मां का स्नेह ही तो होता है. इन छोटीमोटी चीजों में जो स्नेह छिपा है वह शायद दिखावे के महंगे तोहफों से कई गुना बड़ा है.

Diwali 2021 : दीयों की चमक – भाग 1

रमा तिलमिला उठी. परिस्थिति ने उसे कठोर व असहिष्णु बना दिया था.

बड़ी भाभी की तीखी बातें नश्तर सी चुभो रही थीं. कैसे इतनी कड़वी बातें कह जाते हैं वे लोग, वह भी मुन्ने के सामने. उन की तीखीकड़वी बातों का मुन्ने के बालमन पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा, यह वे जरा भी नहीं सोचतीं.

क्यों सोचेंगी वे जब मां हो कर वे अपनी नन्ही सी संतान की भलाईबुराई समझ नहीं पाईं, भला उन्हें क्या गरज है.

हां, हां, सारा कुसूर उस का है…  घरपरिवार, भैयाभाभी यहां तक कि मां भी उसे ही दोषी करार देती हैं. सोने सी गृहस्थी तोड़ने की जिम्मेदार उसे ही ठहराया जाता है.
घर टूटा उस का जिसे सभी ने देखा और दिल, हृदय पर जो चोट लगी, उस पर किसी की नजर नहीं ग‌ई.

“बेटी, मर्द को वश में रखना सीख. इस तरह अपना घर छोड़ कर आने से तुम्हारा जीवन कैसे पार लगेगा,” मां के समझाने पर रमा बिफर उठी थी, “मां, किस मर्द की बात करती हो, उस की जो बातबात पर अकड़ता है. अपनी मांबहन के इशारे पर नाचता है या फिर उस की जो शादीशुदा, एक बच्चे का पिता होते हुए भी…छि:..” आगे के शब्द आंसुओं में डूब गए.

“रमा, होश से काम लो. अब तुम अकेली नहीं, एक नन्ही सी जान है तुम्हारे साथ,” मां ने धीरे से कहा.”इसी नन्ही सी जान की खातिर ही अपनी जान नहीं दी मैं ने. नहीं तो किसी कुएंतालाब में कूद जाती.”
“ना बेटी, ऐसी अशुभ बातें मुंह से मत निकालो,” मातृहृदय पिघल उठा.

“तुम्हारे दरवाजे नहीं आती, तुम लोगों के उलाहने नहीं सुनती. मेरे लिए इधर कुआं, उधर खाई है,” रमा रोती जाती, बीचबीच में अपनी वेदना मां के आंचल में डालती जाती.

अभी भी बड़ी भाभी की जबान कैंची की तरह चल रही थी, “दोनों में से एक काम हो- या उस मरदुए की आवभगत की जाए या फिर कोर्ट में केस लड़ा जाए.” “सच में दोनों बातें एकसाथ संभव नहीं लगतीं. उधर कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओ और इधर हंसहंस कर पकवान खिलाओ,” छोटी भाभी भला कब पीछे रहने वाली थी. “ओह, तो एक कप चाय और 2 सूखे बिस्कुट को पकवान कहा जाता है,” परिस्थिति ने रमा को मुंहफट बना दिया था.

“खिलाओ पकवान, कोर्टकचहरी की क्या जरूरत है. एक ओर गालियां देती हो, दुनियाजहान से उस की बुराई करते नहीं थकती और दूसरी ओर उस को एंटरटेन करती हो. दुनिया क्या समझेगी,” बड़ी भाभी, छोटी भाभी एकबार शुरू हो जाती हैं, उन्हें चुप कराना मुश्किल हो जाता है.

उस का कुसूर यही था कि शिष्टाचारवश अपने पति अवध को एक कप चाय बना कर दिया था, साथ में 2 बिस्कुट भी. अवध से उस का  कोर्ट में तलाक का मुकदमा चल रहा है. कोर्ट के आदेश से वह महीने में एकबार अपने 4 वर्षीय बेटे से मिलने आता है. उसे घुमाताफिराता और तय समय पर वापस पहुंचा जाता.

वैसे भी दुखी हृदय, कमजोर काया, दुर्बल पक्ष ले कर कब तक बहस की जा सकती है, रमा रोने लगी.  हैरानपरेशान मुन्ना कभी बिलखती मां को देखता, कभी रणचंडिका बनी दोनों मामियों को. वह किस का पक्ष ले. झगड़ा अकसर उसे ही ले कर होता है. इस तथ्य को वह समझने लगा है. लेकिन क्यों इसे समझ  नहीं पाता. इस घर में और भी बच्चे रहते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं, खाते हैं, खेलते हैं, स्कूल पढ़ने जाते हैं उसी की तरह. लेकिन किसी को ले कर ऐसी लड़ाई नहीं होती, न हायतोबा. किसी की मम्मी उस की मम्मी की तरह नहीं बिसूरती रहती.

मामियां रेशमी साड़ियों में बनसंवर कर अपने पतिबच्चों के साथ सैरसपाटे पर जाती हैं, हंसतीखिलखिलाती.एक उस की मम्मी है…बदरंग कपड़ों, सूखे होंठ, उलझे बाल…किचन में रहेगी या पीछे बालकनी में उदास खड़ी आंखें पोंछती रहेगी.

30 वर्ष की युवावस्था में 60  वर्ष की गंभीरता ओढ़े मम्मी नानी के पास बैठेगी. उन की खुसुरफुसुर मुन्ने के समझ में नहीं आती. कुछ रोनेधोने की ही बात होगी, तभी मम्मी का गला रुंधा रहता है, आवाज फंसीफंसी निकलती है. नानी भी एक ही टौपिक से  ऊबी  हुई प्रतीत होती है, सो मुन्ने को झिड़क देती है, “जा, बाहर खेल, जब देखो मां से चिपका रहता है.”कहां जाएगा मां. इसे कोई साथ नहीं खेलाता,” मम्मी तुनक जाती.

“ढंग से खेलेगा, सभी खेलाएंगे,” नानी उकताई हुई सी बोली.”मां, तुम क्यों नहीं समझतीं. बच्चे इस के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं. बिना कारण मुन्ने से झगड़ते हैं, मारते व चिढ़ाते हैं,” रमा का दबा आक्रोश मुखर हो गया.

नानी चुप रही. रमा का बातबात पर उत्तेजित हो जाना उन्हें नागवार गुजरता है क्योंकि घर में तेजतर्रार बहुएं हैं. मांबेटी का यों  बातें करना दोनों भाभियों को जरा भी नहीं सुहाता.
“आज हमारी खैर नहीं. छोटी, खूब लगाईबुझाई हो रही है.””होने दो दीदी, हम नहीं डरतीं किसी से; अपने पति की कमाई खाती हैं. कोई आंखें उठा कर देखे तो सही, नोच डालूंगी.” बहुओं के तानेतिश्ने से मां घबरा जाती, मन ही मन उस घड़ी को कोसती जब रमा हाथ में अटैची  और गोद में 10 माह का बच्चा लिए उस की देहरी पर आई थी.

5 वर्ष पहले ही कितनी धूमधाम से बिटिया का विवाह किया था. दोनों भाइयों से छोटी, सब की लाडली. पिता थे नहीं.  उन की जगह दोनों भाइयों ने रमा को पूर्ण संरक्षण दिया. दोनों भाभियां भी प्यारदुलार की वर्षा करते नहीं थकती थीं. आज वही भाभियां तलवार की धार बनी उस पर हर घड़ी वार करने के लिए बेचैन रहती हैं.शायद बदली हुई स्थिति  के कारण. रहिमन चुप हो बैठिए देख दिनन के फेर…

आज मुन्ने को कोर्ट के निर्देशानुसार अपने पापा के पास 8 घंटे के लिए जाना था. वह उतावला हो रहा था, “जल्दी, मम्मी जल्दी…”अर्द्धविक्षिप्त सी रमा गिरतेगिरते बची, “ओह, चप्पल टूट गई. इसे भी अभी ही धोखा देना था.” दो कदम चलना दूभर हो गया. पुरानी घिसी हुई चप्पल. वह लाचार इधर‌उधर  देखने लगी.

“मम्मी, जल्दी चलो, पापा आ गए होंगे.” उस की मनोस्थिति से अनजान मुन्ने की बेसब्री बढ़ती जा रही थी.

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