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Diwali 2021 : दीवाली धमाका

दीवाली पर क्या किया जाए, आजकल यही विचारविमर्श चल रहा था.

विनय एक दिन दिल्ली में अपने औफिस से लौटा तो उस की खुशी का ठिकाना न था. पत्नी रीना के कारण पूछने पर उस ने उत्साहित स्वर में बताया, ‘‘बैस्ट परफौर्मर का अवार्ड मिला है मुझे, फ्रांस स्थित हैडऔफिस में तुम्हारे साथ जाने का मौका मिल रहा है. बस, एक प्रौब्लम है कि राहुल को नहीं ले जा सकते.’’

रीना बहुत खुश हो गई थी पर प्रौब्लम सुनते ही उस का जोश ठंडा हो गया, बोली, ‘‘ओह, अब क्या करें, यह मौका तो मैं नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘राहुल को अपने मम्मीपापा के पास छोड़ देना. वे भी यहीं दिल्ली में ही तो हैं.’’

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‘‘नहीं विनय, मम्मी बीमार चल रही हैं. वे इसे नहीं संभाल पाएंगी. भैयाभाभी दोनों वर्किंग हैं. इसलिए इसे वहां नहीं छोड़ सकती. एक आइडिया है, लखनऊ से अपने मम्मीपापा को बुला लो दीवाली पर, वे यहीं रहेंगे तो राहुल का टाइम आसपास के बच्चों के साथ खेलने में बीत जाएगा. कंपनी भेज रही है, यह मौका छोड़ना बेवकूफी ही होगी. वाह, तो इस बार की दीवाली फ्रांस में, मैं कभी सोच नहीं सकती थी. अभी बात कर लो उन से, आने के लिए कह दो.’’

विनय ने फोन पर अपने पिता गौतम को पूरी बात बताई. उन्होंने इतना ही कहा, ‘‘देखेेंगे.’’

विनय झुंझलाया, ‘‘इस में देखना क्या है, राहुल को आप के पास छोड़ कर ही जा सकते हैं.’’

गौतम ने फोन रख कर अपनी पत्नी सुधा को पूरी बात बताई. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

विनय की सारी तैयारियां रखी रह गई थीं. मातापिता का कोई अतापता न था. इस बात की चिंता भी थी पर ज्यादा गम इस बात का था कि विदेश जाने का मौका हाथ से निकल गया था. मुंबई में रह रही बहन भी परेशान थी, कहा हैं मातापिता. विनय पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने की सोच रहा था.

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दरअसल, विनय को दीवाली के 3 दिन पहले निकलना था. कुछ दिनों से वह तैयारियों में ही व्यस्त था. पिता से आने के लिए कहने के बाद से उस ने दोबारा फोन नहीं किया था. रीना ने कहा, ‘‘फोन पर उन के आने की डेट तो पूछो, अभी तक उन्होंने बताया ही नहीं, 2 दिन रह गए हैं जाने में.’’

विनय ने पिता को फोन मिलाया. फोन बंद था. उस ने मां का फोन मिलाया, वह भी बंद था. वह बारबार ट्राई करता रहा, फोन बंद ही मिले.

वह परेशान हुआ. रीना भी घबरा गई, ‘‘जल्दी पता करो. हमारा तो जाने का टाइम आ गया है. सब तैयारियां हो गई हैं.’’

विनय ने कहा, ‘‘दीदी से पूछता हूं.’’

माया ने भी कहा, ‘‘एक हफ्ते से बात नहीं हुई है.’’

अब विनय और माया बारबार फोन मिलाते रहे. मातापिता के आसपड़ोस का कोई नंबर दोनों के पास नहीं था.

दीवाली आई और चली भी गई. न विनय ही विदेश जा पाया न रीना, 3 और लोगों को भी पत्नी के साथ अवार्ड लेने के लिए जाना था, वे गए भी. रीना ने चीखचिल्ला कर अब विनय का जीना दूभर कर दिया. विनय को गंभीर बीमारी का बहाना कर छुट्टी लेनी पड़ी.

उधर, लखनऊ में कुछ दिन पहले ही विनय के मातापिता सुधा और गौतम परेशान थे कि विनय ने दीवाली के लिए कोई बात नहीं की कि दोनों आएं और पोते के साथ दीवाली मनाएं.

‘‘विनय ने अभी तक नहीं बताया था कि वह यहां लखनऊ आएगा या हमें दिल्ली बुलाएगा, टिकट भी तो करवाने होते हैं,’’ विनय की मां सुधा ने कहा था.

गौतम ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘न उसे आना है न बुलाना है, आज तक अपने बेटे को समझ नहीं पाईं तुम या सचाई का सामना नहीं करना चाहतीं? 5 साल से वह हमारे प्रति अपने सब कर्तव्य भूल कर अपनी दुनिया में मस्त है. अब तुम ध्यान हटा ही लो अपने बच्चों की तरफ से. सोच लो, हम दोनों ही हैं एकदूसरे का सहारा. और कोई नहीं.’’

‘‘हां, ठीक कह रहे हो. माला से पूछूं क्या? अगर वह दीवाली पर आ जाए तो घर में कुछ रौनक हो जाएगी.’’

‘‘अपनी तसल्ली के लिए पूछ कर देख लो. पर मैं जानता हूं, वह नहीं आएगी. उस की अपनी घरगृहस्थी है, कामकाजी है. कहां टाइम होता है उस के पास? और मुंबई से यहां लखनऊ आ कर उस के बच्चे बोर होने लगते हैं. पिछली बार देखा नहीं था, उन्हें संभालने में तुम्हारे होश उड़ गए थे.

‘‘सुधा, बेटा हो या बेटी, दोनों अपनी दुनिया में मगन हैं. कभीकभार जो उन से फोन पर बात होती है, बस, उसी में खुश हो जाया करो. और मैं हूं न. उन बुजुर्गों की जरा सोचो जो बिलकुल अकेले रह जाते हैं. सारा जीवन मेहनत ही की है. अब बातबात पर खून जलाने का मन नहीं करता. जीवन के आखिरी पड़ाव को हंसीखुशी, शांति से जिएंगे, किसी से कोई उम्मीद रखे बिना.’’

तभी पड़ोस के रजत दंपती, जिन से पुरानी जानपहचान थी, आ गए थे. रजत और गौतम साथ ही रिटायर हुए थे. अब खाली समय मिलजुल कर, घूम कर साथ ही बिताते थे. उन के दोनों बेटे विदेश में कार्यरत थे. रजत की पत्नी मंजू ने कहा, ‘‘आप लोगों का नाश्ता हो गया?’’

सुधा ने कहा, ‘‘नहीं, अभी तो कुछ नहीं बनाया.’’

‘‘वैरी गुड, मेरा भी मूड नहीं हुआ बनाने का. चलो बाहर थोड़ी सैर करेंगे, फिर नाश्ता करते हुए आएंगे.’’

सुधा हंसी, ‘‘सुबहसुबह?’’

‘‘और क्या, नाश्ता तो सुबह ही होता है न,’’ मंजू के इस मजाक पर चारों ने ठहाका लगाया और घूमने निकल पड़े. सुबह के 9 बज रहे थे. वे चारों एक पार्क में टहलते रहे. फिर आते हुए एक जगह रुक कर चारों ने नाश्ता किया. बातें, हंसीमजाक, सुखदुख बांट कर के जब तक सुधा घर आई उस का मन काफी हलका हो गया था. गौतम और सुधा फिर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए.

गौतम एक प्राइवेट कंपनी के जीएम पद से रिटायर हुए थे. आर्थिक रूप से स्थिति अच्छी थी. वे भावनात्मक रूप से पत्नी को उदास देखते तो उन का मन दुखी हो जाता. पर यह तो घरघर की कहानी थी. वे जानते थे कि त्योहार पर सुधा बच्चों का साथ चाहती है. रोज शाम को दोनों 1-2 घंटे के लिए सोसायटी के क्लबहाउस जाते थे. उन की उम्र का 12-13 लोगों का ग्रुप होता था. काफी समय अच्छा गुजर जाता था. किसी को भी कोई जरूरत होती थी, पूरा ग्रुप हाजिर रहता था. सब की एक जैसी स्थिति थी. लगभग एक जैसा रुटीन और एक जैसी सोच. अब तो यह ग्रुप एक परिवार की तरह हो गया था. राजीव रंजन तो कई बार कहते थे, ‘‘कौन कहता है हम अकेले हैं, इतना बड़ा परिवार तो है यह हमारा.’’

बातोंबातों में उन सब ने बाहर घूमने की योजना बना डाली. बुकिंग हुई. सूटकेस तैयार हुए. वीजा लिया गया. दीवाली की बात अब छूमंतर हो गई.

दीवाली के 7वें दिन विनय ने पिता को एक बार फिर फोन ट्राई किया तो घंटी बज उठी. विनय चौंका. गौतम ने फोन उठाया तो विनय ने सवालों, तानों की बौछार कर दी. गौतम ने आराम से जवाब दिया, ‘‘हम लोग 10 रोज के लिए आस्ट्रेलिया गए थे.’’

विनय को जैसे करंट लगा, ‘‘क्या? कैसे? किस के साथ?’’

‘‘अपनी सोसायटी के ग्रुप के साथ.’’

‘‘पर आप को बताना चाहिए था न, मेरा सारा प्रोग्राम खराब हो गया, क्या जरूरत थी आप को जाने की?’’

‘‘तुम ही तो कहते हो कि हमें अपने जीने का ढंग बदलना चाहिए. हमें लाइफ ऐंजौय करनी चाहिए. और तुम कौन सा हमारे बारे में सोच कर हमें बुला रहे थे, तुम्हारा अपना ही स्वार्थ तो था.’’

विनय की बोलती बंद थी, फोन रख कर सिर पकड़ कर बैठा रह गया. यह दीवाली धमाका जबरदस्त था.

Diwali 2021 : उपहार स्नेह या दिखावा

उपहार ऐसा शब्द है जिसे सुन हम आज भी उत्साहित हो जाते हैं. बचपन में जब हमारे सगेसंबंधी दीवाली में हमारे लिए पटाखे, खिलौने व कपड़े लाया करते थे तो हम खुशी से झूम उठते थे. आज फर्क मात्र बच्चों की तरह खुशी जाहिर न करने का है.

वहीं, जब हम किसी दोस्त व सगेसंबंधियों के लिए तोहफे खरीदते हैं तो यही उम्मीद करते हैं कि वे बहुत खुश होंगे. पर कभीकभी यही तोहफे रिश्तों में खटास भी ले आते हैं. आखिर जब उपहार रिश्तों में स्नेह के प्रतीक हैं तो यह कड़वाहट कैसे और क्यों घोल जाते हैं? स्नेह आजकल दिखावे की जगह लेता जा रहा है जिस से न सिर्फ पैसों की बरबादी होती है बल्कि यह दिखावा रिश्तों की मिठास को भी खत्म करता जा रहा है.

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बोझ न बनने दें

उपहार देना व लेना हर स्थान का चलन है परंतु कभीकभी यह प्रथा रिश्तों पर बोझ भी बन जाती है. ऋचा की सहेली सलोनी तो बहुत ही स्नेही लड़की है परंतु जब भी वह ऋचा के घर आती है, ऋचा व बच्चों के लिए खूब महंगेमहंगे तोहफे ले आती है. शुरूशुरू में ऋचा ने उसे समझाया कि हर बार तोहफा ले कर आने की जरूरत नहीं है और विशेषकर इतने महंगे तोहफे तो वह कतई न लाए. लेकिन सलोनी उस की एक न सुनती.

सलोनी सदैव यही दलील देती कि वह बच्चों की मौसी है और बच्चों को उपहार देने का उस का पूरा हक है. ऋचा जानती थी कि सलोनी और उस की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का फर्क था परंतु फिर भी उस ने हमेशा यही सोचा कि दोस्ती में इन सब बातों के लिए कोई जगह नहीं होती है परंतु अब उसे सलोनी का इतने महंगे तोहफे लाना बोझ लगने लगा.

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वह जानती थी कि चाह कर भी वह इतना सबकुछ सलोनी के बच्चों को कभी नहीं दे सकती थी. हालांकि सलोनी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि ऋचा उस के बच्चों के लिए उपहार लाए या नहीं, उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. ऋचा के पति मोहित भी अब ऋचा से यही कहते कि हम उन की बराबरी के नहीं हैं, इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम सलोनी से थोड़ी दूरी बना कर ही रहो.

कई बार बचपन में हम लोगों ने यह देखा होगा कि जब घर में हमारे कोई रिश्तेदार आते थे तो चाहे घर की स्थिति कैसी भी हो, उन के लिए नए कपड़े जरूर खरीदे जाते थे. फिर चाहे उन्हें इस की जरूरत हो या न हो. उपहार देना या लेना कतई गलत नहीं है. उपहार देना तो स्नेह प्रकट करने का एक रूप है.

याद कीजिए जब हम बच्चे थे तब हमें भी उपहार कितना पसंद आता था और बचपन में ही क्यों, उपहार तो आज भी हम सब को पसंद आता है. परंतु जब तक ये उपहार दिल व स्नेह से दिए जाएं तब तक ही इन की सार्थकता सही अर्थों में होती है.

बहुत महंगे उपहार दे कर आप किसी पर बोझ ही डाल रही हैं. महंगे उपहार दे कर अथवा कोई ऐसा उपहार दे कर जिस की सामने वाले को कोई जरूरत न हो, हम दिखावा ही करते हैं. उपहार स्नेह से दें, न कि दिखावे के लिए.

अवसर व उपयोगिता का रखें ध्यान

हम अब भी किसी दोस्त या रिश्तेदार के लिए उपहार खरीदें तो यह जरूर जान लें कि उसे किस तरह की चीजों से लगाव है. मान लीजिए किसी व्यक्ति को किताबों में रुचि है तो आप उपहारस्वरूप उसे उस की पसंद की किताबें दे सकती हैं.

यह जरूरी नहीं कि उपहार महंगे ही खरीदें जाएं. यदि आप का रिश्तेदार या मित्र सिर्फ महंगे तोहफों की ही कद्र करता है तो बेहतर यही होगा कि आप ऐसे लोगों से थोड़ी दूरी बना कर ही रखें क्योंकि आप का सच्चा मित्र आप की व आप की सोच की कद्र करेगा, आप के महंगे दिखावे में दिए गए उपहारों की नहीं.

यदि आप पैसा खर्च कर अपने बच्चे के जन्मदिन के अवसर पर कुछ खास करना ही चाहती हैं तो आप गरीब व जरूरतमंद बच्चों को छोटेछोटे उपहार दे कर या उन की जरूरत के हिसाब से चीजें खरीद कर दे सकती हैं. ऐसा करने से आप के बच्चे जिंदगी की वास्तविकता से अवगत होंगे व उन के मन में सहानुभूति की भावना जागेगी व आगे चल कर वे भी आप की ही तरह गरीब व जरूरतमंद इंसान की अवश्य मदद करना चाहेंगे.

उपहार देते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप का दिया हुआ उपहार अवसर के अनुकूल हो. जैसे, बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर बच्चों की उम्र और उन की रुचि को ध्यान में रखते हुए ही तोहफे खरीदें. उपहार देते वक्त अवसर और उपयोगिता का सदैव ध्यान रखना चाहिए.

आप ने यह कई बार देखा होगा कि जब कुछ लोग किसी अमीर रिश्तेदार व दोस्त से मिलने जाते हैं तो उन की कोशिश यही रहती है कि हम उन की हैसियत के हिसाब से उन के लिए महंगे गिफ्ट ले जाएं. जबकि जब वे किसी गरीब रिश्तेदार व दोस्त के घर जाते हैं तब उन के लिए कुछ भी छोटा सा उपहार ले जाते हैं. उन के लिए उपहार खरीदने में वे पैसा और समय बरबाद नहीं करना चाहते. यह गलत है. ऐसा न करें.

याद कीजिए जब आप की नानी व दादी आप के लिए घर से आप की पसंद की मिठाइयां व नमकीन तथा अचार अपने हाथों से बना कर भेजती थीं तब आप को कितनी खुशी होती थी. यह उन के स्नेह का ही प्रतीक था. घर की बनी शुद्घ साफसुथरी चीजों में स्वाद के साथ सेहत का भी भरपूर ध्यान रखा जाता था परंतु आजकल बच्चे सिर्फ बाहरी जंक फूड्स ही खाना पसंद करते हैं. कोई यदि घर की चीजें बना कर भेजता है तो वे उस की कोई कद्र नहीं करते.

आप ने घरपरिवार में अकसर किसी न किसी से यह बात सुनी होगी कि फलां इंसान ने उन्हें कितना सस्ता व घटिया उपहार दिया है, या साड़ी का रंग अच्छा नहीं था, कुरती का डिजाइन पहनने लायक ही नहीं है. खासकर शादीब्याह में कपड़ों का लेनदेन इतना ज्यादा होता है कि अकसर इस तरह की शिकायतें कही व सुनी जाती हैं.

जब हम किसी से तोहफे लेते हैं तो हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमारे कारण उन्हें कोई तकलीफ न हो. न तो किसी से तोहफों की जरूरत से ज्यादा उम्मीद रखें और न ही किसी को जरूरत से अधिक महंगे तोहफे दें. तोहफे स्नेह को दर्शाते हैं. तोहफों की वजह से रिश्तों में यदि कोई खटास आ जाए तो ऐसे तोहफे भला किस काम के?

रिश्तों की मजबूत डोर स्नेह से पिरोएं तोहफों की कीमत से नहीं

यदि कोई आप को स्नेह से कोई तोहफा देता है तो हमेशा उस की कद्र करें. फिर चाहे वह तोहफा कम कीमत का ही क्यों न हो. अनेक लोग अपने प्रियजनों को अपने हाथ से बनाए खिलौने, पर्स, स्वेटर, मूर्तियां, दीये, सजावट वाली मोमबत्तियां, मिठाइयां आदि देना पसंद करते हैं. और यकीनन ये तोहफे अनमोल होते हैं. इन तोहफों में देने वालों का स्नेह व परिश्रम छिपा होता है. इन की हमेशा कद्र करनी चाहिए परंतु विडंबना यह है कि कुछ लोग दिल से दिए गए तोहफों कि कोई कद्र नहीं करते. समय के साथसाथ परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है. समय बदला है, नजरिया बदला है, परंतु स्नेह तो स्नेह ही है. जब आप अपने घर से दूर जाते हैं तब आप की मां कितने स्नेह से आप के लिए घर की बनाई हुई खानेपीने की चीजें देती हैं. ऐसा नहीं है कि वे चीजें आप के शहर में नहीं मिलतीं परंतु यह मां का स्नेह ही तो होता है. इन छोटीमोटी चीजों में जो स्नेह छिपा है वह शायद दिखावे के महंगे तोहफों से कई गुना बड़ा है.

Diwali 2021 : दीयों की चमक – भाग 1

रमा तिलमिला उठी. परिस्थिति ने उसे कठोर व असहिष्णु बना दिया था.

बड़ी भाभी की तीखी बातें नश्तर सी चुभो रही थीं. कैसे इतनी कड़वी बातें कह जाते हैं वे लोग, वह भी मुन्ने के सामने. उन की तीखीकड़वी बातों का मुन्ने के बालमन पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा, यह वे जरा भी नहीं सोचतीं.

क्यों सोचेंगी वे जब मां हो कर वे अपनी नन्ही सी संतान की भलाईबुराई समझ नहीं पाईं, भला उन्हें क्या गरज है.

हां, हां, सारा कुसूर उस का है…  घरपरिवार, भैयाभाभी यहां तक कि मां भी उसे ही दोषी करार देती हैं. सोने सी गृहस्थी तोड़ने की जिम्मेदार उसे ही ठहराया जाता है.
घर टूटा उस का जिसे सभी ने देखा और दिल, हृदय पर जो चोट लगी, उस पर किसी की नजर नहीं ग‌ई.

“बेटी, मर्द को वश में रखना सीख. इस तरह अपना घर छोड़ कर आने से तुम्हारा जीवन कैसे पार लगेगा,” मां के समझाने पर रमा बिफर उठी थी, “मां, किस मर्द की बात करती हो, उस की जो बातबात पर अकड़ता है. अपनी मांबहन के इशारे पर नाचता है या फिर उस की जो शादीशुदा, एक बच्चे का पिता होते हुए भी…छि:..” आगे के शब्द आंसुओं में डूब गए.

“रमा, होश से काम लो. अब तुम अकेली नहीं, एक नन्ही सी जान है तुम्हारे साथ,” मां ने धीरे से कहा.”इसी नन्ही सी जान की खातिर ही अपनी जान नहीं दी मैं ने. नहीं तो किसी कुएंतालाब में कूद जाती.”
“ना बेटी, ऐसी अशुभ बातें मुंह से मत निकालो,” मातृहृदय पिघल उठा.

“तुम्हारे दरवाजे नहीं आती, तुम लोगों के उलाहने नहीं सुनती. मेरे लिए इधर कुआं, उधर खाई है,” रमा रोती जाती, बीचबीच में अपनी वेदना मां के आंचल में डालती जाती.

अभी भी बड़ी भाभी की जबान कैंची की तरह चल रही थी, “दोनों में से एक काम हो- या उस मरदुए की आवभगत की जाए या फिर कोर्ट में केस लड़ा जाए.” “सच में दोनों बातें एकसाथ संभव नहीं लगतीं. उधर कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओ और इधर हंसहंस कर पकवान खिलाओ,” छोटी भाभी भला कब पीछे रहने वाली थी. “ओह, तो एक कप चाय और 2 सूखे बिस्कुट को पकवान कहा जाता है,” परिस्थिति ने रमा को मुंहफट बना दिया था.

“खिलाओ पकवान, कोर्टकचहरी की क्या जरूरत है. एक ओर गालियां देती हो, दुनियाजहान से उस की बुराई करते नहीं थकती और दूसरी ओर उस को एंटरटेन करती हो. दुनिया क्या समझेगी,” बड़ी भाभी, छोटी भाभी एकबार शुरू हो जाती हैं, उन्हें चुप कराना मुश्किल हो जाता है.

उस का कुसूर यही था कि शिष्टाचारवश अपने पति अवध को एक कप चाय बना कर दिया था, साथ में 2 बिस्कुट भी. अवध से उस का  कोर्ट में तलाक का मुकदमा चल रहा है. कोर्ट के आदेश से वह महीने में एकबार अपने 4 वर्षीय बेटे से मिलने आता है. उसे घुमाताफिराता और तय समय पर वापस पहुंचा जाता.

वैसे भी दुखी हृदय, कमजोर काया, दुर्बल पक्ष ले कर कब तक बहस की जा सकती है, रमा रोने लगी.  हैरानपरेशान मुन्ना कभी बिलखती मां को देखता, कभी रणचंडिका बनी दोनों मामियों को. वह किस का पक्ष ले. झगड़ा अकसर उसे ही ले कर होता है. इस तथ्य को वह समझने लगा है. लेकिन क्यों इसे समझ  नहीं पाता. इस घर में और भी बच्चे रहते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं, खाते हैं, खेलते हैं, स्कूल पढ़ने जाते हैं उसी की तरह. लेकिन किसी को ले कर ऐसी लड़ाई नहीं होती, न हायतोबा. किसी की मम्मी उस की मम्मी की तरह नहीं बिसूरती रहती.

मामियां रेशमी साड़ियों में बनसंवर कर अपने पतिबच्चों के साथ सैरसपाटे पर जाती हैं, हंसतीखिलखिलाती.एक उस की मम्मी है…बदरंग कपड़ों, सूखे होंठ, उलझे बाल…किचन में रहेगी या पीछे बालकनी में उदास खड़ी आंखें पोंछती रहेगी.

30 वर्ष की युवावस्था में 60  वर्ष की गंभीरता ओढ़े मम्मी नानी के पास बैठेगी. उन की खुसुरफुसुर मुन्ने के समझ में नहीं आती. कुछ रोनेधोने की ही बात होगी, तभी मम्मी का गला रुंधा रहता है, आवाज फंसीफंसी निकलती है. नानी भी एक ही टौपिक से  ऊबी  हुई प्रतीत होती है, सो मुन्ने को झिड़क देती है, “जा, बाहर खेल, जब देखो मां से चिपका रहता है.”कहां जाएगा मां. इसे कोई साथ नहीं खेलाता,” मम्मी तुनक जाती.

“ढंग से खेलेगा, सभी खेलाएंगे,” नानी उकताई हुई सी बोली.”मां, तुम क्यों नहीं समझतीं. बच्चे इस के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं. बिना कारण मुन्ने से झगड़ते हैं, मारते व चिढ़ाते हैं,” रमा का दबा आक्रोश मुखर हो गया.

नानी चुप रही. रमा का बातबात पर उत्तेजित हो जाना उन्हें नागवार गुजरता है क्योंकि घर में तेजतर्रार बहुएं हैं. मांबेटी का यों  बातें करना दोनों भाभियों को जरा भी नहीं सुहाता.
“आज हमारी खैर नहीं. छोटी, खूब लगाईबुझाई हो रही है.””होने दो दीदी, हम नहीं डरतीं किसी से; अपने पति की कमाई खाती हैं. कोई आंखें उठा कर देखे तो सही, नोच डालूंगी.” बहुओं के तानेतिश्ने से मां घबरा जाती, मन ही मन उस घड़ी को कोसती जब रमा हाथ में अटैची  और गोद में 10 माह का बच्चा लिए उस की देहरी पर आई थी.

5 वर्ष पहले ही कितनी धूमधाम से बिटिया का विवाह किया था. दोनों भाइयों से छोटी, सब की लाडली. पिता थे नहीं.  उन की जगह दोनों भाइयों ने रमा को पूर्ण संरक्षण दिया. दोनों भाभियां भी प्यारदुलार की वर्षा करते नहीं थकती थीं. आज वही भाभियां तलवार की धार बनी उस पर हर घड़ी वार करने के लिए बेचैन रहती हैं.शायद बदली हुई स्थिति  के कारण. रहिमन चुप हो बैठिए देख दिनन के फेर…

आज मुन्ने को कोर्ट के निर्देशानुसार अपने पापा के पास 8 घंटे के लिए जाना था. वह उतावला हो रहा था, “जल्दी, मम्मी जल्दी…”अर्द्धविक्षिप्त सी रमा गिरतेगिरते बची, “ओह, चप्पल टूट गई. इसे भी अभी ही धोखा देना था.” दो कदम चलना दूभर हो गया. पुरानी घिसी हुई चप्पल. वह लाचार इधर‌उधर  देखने लगी.

“मम्मी, जल्दी चलो, पापा आ गए होंगे.” उस की मनोस्थिति से अनजान मुन्ने की बेसब्री बढ़ती जा रही थी.

पेगासस कांड : सुप्रीम कोर्ट ने बनाई जांच कमेटी 

भारत में पेगासस जासूसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक एक्सपर्ट जांच कमेटी का गठन किया है. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आर.वी. रवींद्रन इसके अध्यक्ष बनाए गए हैं. गौरतलब है कि पेगासस स्पाइवेयर के उपयोग की बात केंद्र सरकार ने आज तक न मानी है और न ही इससे इनकार किया है. सरकार ने अब तक यह साफ नहीं किया है कि उसने पेगासस खरीदा और इसका उपयोग किया या नहीं. वह कोर्ट के सामने बार-बार केवल उन प्रक्रियाओं का हवाला दे रही है, जिसके जरिये देश में संदिग्ध लोगों के फोन टेप किए जा सकते हैं और इंटरनेट आधारित सेवाओं पर नजर रखी जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार के इस बर्ताव को देखते हुए जांच का आदेश दिया है. इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने इससे आम नागरिकों के भी प्रभावित होने की आशंका पर चिंता व्यक्त की है.

पेगासस जासूसी कांड के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच कमेटी के बाद भी कई प्रश्न अनुत्तरित हैं. मसलन, क्या सरकार नागरिकों की जासूसी कर सकती है? क्या इसके लिए कानून हैं? यह इंटरसेप्शन क्या है, जिसे पारंपरिक तौर पर पहले से करने की बात सरकार कह रही है?

दरअसल ऐसे व्यक्तियों या समूहों जिन पर गैरकानूनी या देश-विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का संदेह हो, उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इंटरसेप्ट करने की अनुमति सरकार को कानूनी तौर पर हासिल है. इसके लिए 10 एजेंसियां अधिकृत हैं.

आईटी कानून, 2000 की धारा 69 केंद्र या राज्य सरकार को किसी भी कंप्यूटर या मोबाइल डिवाइस में सृजित, स्टोर, प्रसारित और उस डिवाइस तक पहुंचे संदेश की निगरानी, उसे इंटरसेप्ट और डिक्रिप्ट करने का अधिकार देती है. ऐसा देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, अन्य देशों से दोस्ताना संबंध व जन व्यवस्था और संज्ञेय अपराधों को रोकने के लिए किया जाता है.

बिना अनुमति नहीं कर सकते इंटरसेप्शन

आईटी कानून के अनुसार इंटरसेप्शन के लिए एजेंसियों को तय प्रक्रिया के तहत अनुमति लेनी होती है. यह अनुमति हर मामले के अनुसार अलग-अलग ली जाती है, पहले से व्यापक निगरानी की अनुमति नहीं होती. केंद्रीय स्तर पर कैबिनेट सचिव और राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी कमेटी यह अनुमति देती है. अनुमति दो महीने के लिए होती है, लेकिन जरूरत होने पर अवधि बढ़ाई जा सकती है, पर यह छह महीने से ज़्यादा नहीं होती है.

जासूसी नहीं कर सकती सरकार

आईटी  कानून की यह शक्ति सिर्फ इंटरसेप्ट करने की है. अगर किसी के खिलाफ अपराध या गैरकानूनी गतिविधियों का शक हो तो पूर्व अनुमति से सरकारी जांच एजेंसियां उसके सूचना माध्यमों को इंटरसेप्ट कर सकती हैं. सरकार किसी के फोन में स्पाइवेयर डलवा कर जासूसी नहीं करवा सकती. जबकि पेगासस जासूसी में लोगों के फोन व अन्य डिवाइस में स्पाइवेयर डालने के आरोप हैं.

अगर केंद्र सरकार यह कहती है कि उसने किसी भी नागरिक के फोन में पेगासस स्पाइवेयर नहीं डाला तो यह नई चिंता की बात है कि फिर ऐसा किसने किया? गौरतलब है कि 50 हज़ार नंबरों के एक बड़े डेटा बेस के लीक की पड़ताल द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट, द वायर, फ़्रंटलाइन, रेडियो फ़्रांस जैसे 16 मीडिया संस्थानों के पत्रकारों ने की थी. इस मामले में बड़े नेता, केंद्रीय जांच एजेंसियों के अफसर, वित्त व्यवस्था से जुड़े अधिकारी, मंत्री, जज, वकील और पत्रकारों के मोबाइल फ़ोन हैक करके उनकी जासूसी के गंभीर आरोप हैं. यदि यह काम विदेशी शक्तियों द्वारा किया जा रहा है तो इससे राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को बड़ा ख़तरा है. ऐसे में खुद केंद्र सरकार को बेतरह चिंतित नज़र आना चाहिए था, जो कि वह कभी नहीं दिखी. आईटी क़ानून के अनुसार ऐसे मामले तो साइबर आतंकवाद अपराध के दायरे में आते हैं. मगर मोदी सरकार जिस तरीके से पूरे मामले को शुरू से ही हलके में ले रही है उससे उसकी नीयत और कथनी-करनी पर शक ही उत्पन्न होता है.

गैर सरकारी एजेंसी को नहीं बेच सकते पेगासस : इजराइल 

भारत में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन ये साफ़ कर चुके हैं कि पेगासस स्पाइवेयर बनाने वाली इजराइल की कंपनी एनएसओ इसे किसी गैर-सरकारी एजेंसी को नहीं बेच सकती है. सिर्फ किसी देश की सरकार ही उससे यह सॉफ्टवेयर खरीद सकती है.

नाओर के मुताबिक़ एनएसओ एक निजी इजराइली कंपनी है. उसे और उस जैसी सभी कंपनियों को उत्पाद निर्यात करने के लिए लाइसेंस लेना होता है. इजराइल यह लाइसेंस केवल सरकारों को उत्पाद बेचने के लिए देता है. यह अनिवार्य है. नाओर का कहना है कि भारत में जो हुआ और जो हो रहा है, वह भारत का अंदरूनी मसला है.

विपक्ष सरकार पर हावी 

विपक्ष लम्बे समय से इस मुड़े पर बहस और जांच की मांग कर रहा है और उसने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या पेगासस सॉफ्टवेयर सरकार ने खरीदा था? पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है. राहुल ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा कि वो बताए कि इसका डेटा किस-किस के पास गया है.

गौरतलब है कि कांग्रेस ने पिछले संसद सत्र में भी ये मामला उठाया था. उसने पूछा था कि इसे किसने खरीदा था, किस-किस के फोन टैप किए गए थे और किन-किन पर इसका इस्तेमाल हुआ? क्या इसका डाटा प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को मिल रहा था?

राहुल ने कहा, ‘सरकार ने कुछ न कुछ गलत काम जरूर किया है, अन्यथा सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए. अगर जवाब नहीं दे रहे हैं तो इसका मतलब है कि कुछ न कुछ छुपाया जा रहा है. हमें खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले का संज्ञान लिया है. हमें उम्मीद है कि सच अब सामने आएगा. हम इस मामले को दोबारा संसद में उठाएंगे. हमारी कोशिश इस पर संसद में बहस कराने की होगी.’

कमेटी के लिए राह कठिन है 

पेगासस मामले में कमेटी गठित होने के आठ हफ़्ते के बाद इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई होगी. आठ हफ्ते में कमेटी सुप्रीम कोर्ट को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपेगी. कमेटी के सामने जांच के दौरान सबसे अहम सवाल ये होगा कि कि केंद्र या किसी राज्य सरकार ने पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं?

सरकार इस मामले पर कोई स्पष्ट जवाब देने को न तो संसद में तैयार है और ना ही सुप्रीम कोर्ट में. तो ऐसे में कमेटी को यह स्पष्ट जानकारी सरकार से कैसे मिलेगी? जांच कमेटी के पास भी सिर्फ बयान दर्ज करने और रिपोर्ट देने का ही अधिकार है.

ये बात गौर करने वाली है कि इजराइल के भारत के साथ बहुत नजदीकी संबंध हैं, खासकर 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से. इजराइल ने भारत के पुलिसकर्मियों और सुरक्षा एजेंटों को ट्रेनिंग भी दी है. साथ ही दोनों देश खुफिया जानकारियां भी साझा करते हैं. भारत इजराइल की रक्षा तकनीक का बड़ा खरीददार भी है. वहां की रक्षा कंपनियां भारत में उत्पादन भी कर रही हैं. इजराइल की तकनीक का भारत में सुरक्षा व्यवस्था में इस्तेमाल किया जाता है, ऐसे में बहुत संभव है कि इसमें से कुछ तकनीक का देश के भीतर भी इस्तेमाल हो रहा है. मगर सवाल ये है कि क्या सरकार, खुफिया एजेंसियां और गृह मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच कमेटी को सहयोग करेगा और किस हद तक जानकारियां मुहैया कराएगा या राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल का हवाला देकर जानकारियां छुपा ली जाएंगी.

सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई जांच कमेटी को अपनी अंतिम रिपोर्ट देने के लिए कोई तय समय सीमा नहीं दी गई है, आठ हफ़्तों में सुनवाई होगी और लेकिन कमेटी के लिए किसी नतीजे पर इतनी जल्दी पहुंचना मुमकिन नहीं होगा. बहुत समय के बाद अगर कोई लंबी चौड़ी रिपोर्ट आती है, तब तक ये मामला बेमानी हो जाएगा.

पिछली कमेटियों के उदाहरण सामने हैं 

गौरतलब है कि समय-समय पर गंभीर मामलों की पड़ताल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई कमेटियां बनायीं, मगर कोई भी नतीजे तक नहीं पहुंच पायी. जिन कुछ कमेटियों ने अपनी रिपोर्ट और सिफारिशें दीं भी तो वे सिफारिशें कभी लागू नहीं हुईं.

याद होगा कि सीबीआई डायरेक्टर के विवाद के समय सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठे थे. तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायिक व्यवस्था को खतरे में डालने के आपराधिक साजिश की जांच के लिए पूर्व जज पटनायक कमेटी का गठन किया था, जो आज तक किसी तर्कसंगत नतीजे पर नहीं पहुंची है.

कृषि क़ानून के बारे में भी सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है. आंध्र प्रदेश में बलात्कार के अभियुक्तों की पुलिस एनकाउंटर में मौत के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की जांच  कमेटी का कार्यकाल कई बार बढ़ाया जा चुका है. इस पृष्ठभूमि में पेगासस जांच कमेटी से सार्थक निष्कर्ष की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

अन्य देशों में भी जारी है जांच 

उल्लेखनीय है कि पेगासस और दूसरे जासूसी सॉफ्टवेयर से जुड़ी जांच मैक्सिको, फ्रांस और खुद इजराइल में भी चल रही हैं, लेकिन वहां भी अब तक इन जांचों का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है. दरअसल जासूसी सॉफ्टवेयर की जांच बेहद जटिल है. इसमें जांचकर्ताओं को ये साबित करना होगा कि सरकार की एजेंसी ने सॉफ्टवेयर खरीदा और उसका आम नागरिकों के खिलाफ गैर जरूरी इस्तेमाल किया गया. इसमें कई चुनौतियां हैं.

मैक्सिको में मामला ठप्प 

2016 में सबसे पहले मैक्सिको में पेगासस की जांच शुरू हुई थी. वहां इस पर करीब 16 करोड़ डॉलर की राशि अब तक खर्च हो चुकी है, लेकिन यह साफ नहीं हो सका है कि देश में किस पैमाने पर जासूसी हुई और कुल कितना पैसा इस पर खर्च हुआ. जांच के 4 साल बाद भी ना तो कोई गिरफ्तारी हुई है और ना ही किसी को पद गंवाना पड़ा है. इसको लेकर मैक्सिको को जांच में इजराइल की तरफ से भी कोई सहयोग नहीं मिला. मैक्सिको की जांच दिशाहीन हो गई और बीते 4 सालों में कुछ हासिल नहीं कर सकी.

जानकारों का कहना है कि इजराइल किसी भी जांच में सहयोग नहीं करेगा. ना ही भारत में शुरू हुई जांच में और ना ही किसी और देश में चल रही जांच में. इजराइल ने अपने इतिहास में सिर्फ एक बार 1980 के दशक में अमेरिका के साथ ईरान-कोंट्रा स्कैंडल की जांच में ही सहयोग किया है. इसके अलावा वह कभी भी किसी विदेशी जांच में शामिल नहीं हुआ.

फ्रांस भी फिसड्डी साबित हुआ 

फ्रांस में इमैनुएल मैक्रों सरकार के 5 मंत्रियों के अलावा कई पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी पेगासस सॉफ्टवेयर के निशाने पर थे. उनके फोन में पेगासस मिलने की बात सामने आने के बाद इजराइल और फ्रांस के बीच राजनयिक संकट पैदा हो गया था. फ्रांस में इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाली संस्था मीडियापार के फाउंडर एडवी प्लेनेल और उनकी सहयोगी पत्रकार लीनाग ब्रेडॉ के नाम भी पेगासस के निशाने पर थे. उनकी शिकायत पर फ्रांस में पेगासस जासूसी की आपराधिक जांच शुरू हुई. उल्लेखनीय है कि मीडियापार ने ही भारत के साथ हुए रफाल विमान समझौते में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था. फ्रांस में जांच तो शुरू हो गई, लेकिन अभी तक एजेंसियां किस हद तक पहुंची हैं, वहां के नागरिकों को इसका कुछ पता नहीं चल रहा है. दूसरी तरफ पता चला है कि फ्रांस सरकार इजराइल के साथ कुछ गुप्त समझौतों में उलझी हुई है.

कहा जा रहा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के एक शीर्ष सलाहकार ने इजराइली सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से पेगासस को लेकर गुप्त बातचीत की है. जिसके बाद फ्रांस और इजराइल के बीच एक समझौता हुआ है और यह तय हुआ है कि फ्रांस के मोबाइल नंबरों को इजराइल में निर्मित जासूसी सॉफ्टवेयर से टारगेट नहीं किया जाएगा.

हालांकि यह बात सामने आने के बाद विपक्ष वहाँ सरकार पर हमलावर है. विपक्ष का आरोप है कि फ्रांस के राष्ट्रपति निगरानी की समस्या के समाधान के बजाय इजराइल की सरकार से समझौता करने में लगे हैं. जबकि फ्रांस की जनता चाहती है कि इजराइल ये गारंटी दे कि एनएसओ सिस्टम फ्रांस के नंबरों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. लेकिन इजराइल ऐसी कोई गारंटी देने को तैयार नहीं है. सरकार के साथ हुआ उसका गुप्त समझौता क्या है और किसके लिए है, ये अभी तक जनता के सामने नहीं आया है.

डर का सच

बेहद खूबसूरत, स्मार्ट, आधुनिक, एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर मिहिका आजकल लौकडाउन के चलते वर्क फ्रोम होम ही कर रही थी.

मुंबई के अपने सुंदर से फ्लैट में वह अकेली रहती थी. 38 साल की अविवाहिता मिहिका लाइफ को अपनी शर्तों पर जी कर खुश थी, संतुष्ट थी. अपनी हेल्थ, फिगर का खूब ध्यान रखती, सुंदर थी ही. देखने में वह 25-30 साल की ही लगती. आजकल औफिस के काम के साथसाथ वह माइग्रेंट मजदूरों के लिए भी बहुतकुछ कर रही थी.

सिर्फ जरूरी चीजों की दुकानें ही खुली थीं. काफी सामानों की तो होम डिलीवरी हो ही रही थी.

एक दिन वह यों ही कार निकाल कर सोसाइटी से बाहर निकली. यह भी लग रहा था कि कार खड़ेखड़े बेकार ही न हो जाए.

सोसाइटी से कुछ दूर गांधी नगर था, जहां मजदूरों की बस्ती थी, वहीं आसपास उसे गरीब बच्चे मुंह लटकाए दिख गए.

 

स्वभाव से बेहद कोमल मिहिका उसी समय ग्रोसरी स्टोर गई, कई फूड पैकेट्स बनवाए और सीधे गांधी नगर पहुंच गई. बच्चों को आवाज दी, तो बच्चे भागे आए, उन के पीछेपीछे कई बड़े भी आ गए.

भूख, गरीबी से क्लांत चेहरे देख मिहिका ने उसी दिन से एक फैसला ले लिया. अब उस ने ग्रोसरी वाले को फोन किया, “नरेश भाई, जैसे पैकेट्स आज मैं ने लिए हैं, ऐसे रोज 50 पैकेट्स तैयार कर के मेरे फ्लैट पर पहुंचा देना.‘’

”जी मैडम, जरूर. बड़ी नेकी का काम करेंगी.”

अब यह रोज का नियम हो गया. औफिस का काम खत्म होने के बाद मिहिका कार निकालती, खुशीखुशी मजदूरों की बस्ती में जा कर खाना बांट कर आती. इस में उसे एक असीम खुशी मिलने लगी.

बस्ती में उस की कार का हौर्न सुन कर लोग रोड पर आ कर खड़े हो जाते, कभी उन के लिए खूब सब्जियां भी खरीद कर ले जाती. गरीबी, महामारी के सताए मजदूर काफी संख्या में तो मुंबई से जा चुके थे, पर ये जो रह गए थे, उन के लिए मिहिका काफीकुछ करने लगी थी. वैसे भी वह घर में अकेली ही रहती थी. आजकल उस की मेड भी नहीं आ रही थी. अपने काम करते हुए उस का दिन तो व्यस्त बीतता. शाम को वह गांधी नगर निकल जाती.

वह आजादखयाल लड़की थी. उस ने शादी की नहीं थी. खूब अच्छा खाती, कमाती, लाइफ को भरपूर एंजौय करने वाली थी.

उस दिन जैसे ही घर पहुंच कर नहा कर बाहर निकली, तभी रजत का फोन आ गया, ”कहां हो मिहिका? किधर गायब हो? कोई हालचाल नहीं, फोन नहीं ?”

 

”हां यार, थोड़ा बिजी हो गई.”

”कहां…?”

”ऐसे ही. बताओ, कब आ रहे हो? कल डिनर करो मेरे साथ.”

”नहीं यार, डिनर कहां कर सकता हूं, आजकल घर में ही तो बंद हैं, बाहर निकलूंगा तो सीमा पूछेगी कि कहां खा कर आए,” कहते हुए रजत हंसा, ”होटल भी बंद हैं, कोई बहाना नहीं चलने वाला.”

”यह तो है. आना है तो बहाना तो सोचना ही पड़ेगा.”

”ठीक है, यही बोल कर निकलूंगा कि थोड़ा टहल कर आता हूं. यह तो अच्छा है कि तुम्हारी बराबर की सोसाइटी में ही रहता हूं, पैदल भी आ सकता हूं.‘’

मिहिका ने हंसते हुए कहा, ”सीमा को किसी दिन पता चल जाए कि लौकडाउन में भी उस का पति अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने गया है तो क्या होगा?”

”अरे यार, अच्छाअच्छा बोलो, आता हूं.”

रजत मिहिका का कलीग है. मिहिका और उस की दोस्ती 2 महीने पहले ही हुई थी. कोविड के चक्कर में जब सब वर्क फ्रोम होम कर रहे थे, तभी चैट करतेकरते दोनों खुलते चले गए.

मिहिका को हंसी आती कि वह तो अनमैरिड है, ये विवाहित पुरुषों को क्या हो जाता है कि उस के एक इशारे पर उस की तरफ खिंचे चले आते हैं, अच्छीभली पत्नियों के होते हुए उसे देख कर दीवाने बने घूमते हैं.

खैर, रजत पहला विवाहित पुरुष तो है नहीं, जो उस की जिंदगी में आया हो.

मिहिका अच्छी कुक थी, उस ने सोचा, रजत खाना तो खाएगा नहीं, बीवी को जवाब देना होगा. थोड़ा सा पास्ता बना लेती हूं, जब भी वह औफिस पास्ता बना कर ले गई है, रजत ने शौक से खाया है.

रजत तय समय पर आया. आते ही किसी दीवाने की तरह मिहिका को बांहों में भर उसे जी भर कर प्यार किया. मिहिका ने उस की बांहों में खुद को सौंप दिया. कुछ समय दोनों एकदूसरे में खोए रहे, फिर दोनों ने बेड पर ही लेटेलेटे ढेरों बातें की.

रजत ने कहा, “यार, जल्दी नहीं आ पाऊंगा. सीमा आज भी निकलने नहीं दे रही थी.”

”ठीक है, कोई दिक्कत नहीं.”

”मुझे याद करती हो?”

”हां, करती तो हूं.”

”आजकल घर में ही रहना हो रहा है, बोर होती हो?”

मिहिका हंसी, ”अरे नहीं, बोर तो मैं कभी नहीं होती.”

रजत हैरान हुआ, पर चुप रहा. थोड़ी देर में वह चला गया, तो मिहिका लेटेलेटे ही बहुत सी बातों के बारे में सोचने लगी. उसे सचमुच रजत से ऐसा लगाव नहीं था कि उस से मिलना नहीं हो पाएगा तो वह उदास हो जाएगी. रजत उसे अच्छा लगा था. शांत, हंसमुख सा रजत उसे पहली नजर में ही अच्छा लगा था और उस के खुद के चुम्बकीय व्यक्तित्व से बचना किसी पुरुष के लिए आसान नहीं होता. वह जानती है यह बात, इस बात को उस ने हमेशा एंजौय किया है.

पिछले साल इसी सोसाइटी की इसी बिल्डिंग में रहने वाले अनिल से उस की लिफ्ट में कई बार बातचीत हुई तो मिहिका उस से खुलने लगी. वह बैचलर था.

मिहिका ने उसे अपने फ्लैट में कौफी के लिए इनवाइट किया तो दोस्ती कुछ और बढ़ी थी, इतनी कि दोनों ने 6 महीने खुल कर एंजौय किया, साथसाथ खूब घूमे, कभी लोनावाला निकल जाते, कभी माथेरान, वीकेंड का मतलब ही मौजमस्ती हो गया था. फिर उस का ट्रांसफर दिल्ली हो गया. दोनों अच्छे दोस्तों की तरह प्यार से ही अलग हुए.
अब तो उस की शादी भी होने वाली थी. जब अनिल ने उसे फोन पर बताया कि वह पेरेंट्स की पसंद की लड़की से शादी कर रहा है, तो मिहिका बहुत हंसी थी और वह झेंपता रह गया था.

मिहिका का वही रूटीन शुरू हो गया था. औफिस और गांधी नगर जा कर मजदूरों के लिए कुछ करना. वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट और सुखी थी.

एक दिन वह कार निकाल ही रही थी कि सोसाइटी के चेयरमैन जो वहीं वाचमैन को किसी बात पर डांट रहे थे, दिलकश मुसकराहट से मिहिका को हेलो बोलते हुए कह रहे थे, ”अरे, इस लौकडाउन में भी आप रोज कहां घूम रही हैं?”

मिहिका को चेयरमैन मिस्टर श्रीनिवासन हमेशा एक सौम्य पुरुष लगते, ऊपर से उन की स्माइल मिहिका को बहुत पसंद थी. उन की एक ही बेटी थी, जो बाहर पढ़ती थी. मिहिका ने कहा, ”गांधी नगर जाती हूं, मिस्टर श्रीनिवासन. आप चलना चाहेंगे वहां…”

”क्या करने…?”

”फ्री हों तो आइए, आप को घुमा कर लाती हूं.”

श्रीनिवासन ने सकुचाते हुए कहा, ”फिर कभी.”

मिहिका हंसते हुए चली गई. पर वह बहुत हैरान हुई, जब सोसाइटी के अंदर घुसते हुए उस ने देखा, श्रीनिवासन उस की बिल्डिंग के बाहर टहल रहे हैं. वह मन ही मन मुसकराई.

मिहिका ने जैसे ही कार पार्क की, श्रीनिवासन उस की ओर लपके, पूछने लगे, “आप को लौकडाउन में कोई परेशानी तो नहीं हो रही है?”

”जी नहीं, थैंक यू.”

श्रीनिवासन वहां खड़े रहे, तो मिहिका ने पूछा, “आप का भी आजकल वर्क फ्रोम होम चल रहा है?”

”हां, पर काफी बोर हो रहा हूं, लौकडाउन के समय मेरी पत्नी अपनी मां को देखने दिल्ली गई हुई थी, वह अब तक नहीं लौट पाई है.”

”ओह्ह, वैरी सैड. मैं आप के लिए कुछ कर सकती हूं?”

श्रीनिवासन मुसकराते हुए बोले, “फिलहाल एक कप चाय पिलाएंगी?”

”जरूर, बस मुझे इतना टाइम दीजिए कि मैं फ्रेश हो जाऊं. बाहर से आई हूं न.”

”हां… हां, मैं थोड़ी देर में आता हूं.”

मिहिका नहाधो कर जैसे ही फ्री हुई, उस की डोर बेल बजी. मिहिका ने उन का मुसकरा कर स्वागत किया. मिहिका ने एंट्री पर ही सैनिटाइजर रखा हुआ था. श्रीनिवासन ने हाथ सेनिटाइज किए. वे पहली बार उस के घर आए. घर पर एक नजर डालते हुए वे बोले, “वाह, आप ने तो घर को बहुत अच्छा रखा हुआ है. कमाल का साफसुथरा घर है, जबकि मेड भी नहीं है.”

”जी, थैंक्स.”

”आप मुझे श्री ही कहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा. मेरे दोस्त मुझे श्री ही कहते हैं. उन्हें मेरा नाम बड़ा लगता है,” कहते हुए वे प्यारी हंसी हंसे. मिहिका ने उन की काफी तारीफ सुनी थी. उसे वे पसंद थे. उम्र 40 से 45 के बीच ही होगी, पर काफी स्मार्ट और सभ्य थे.

मिहिका 2 कप चाय बना लाई. श्री को काफी नालेज थी. वे मिहिका की वहां रखी बुक्स के बारे में काफी बातें करते रहे. मिहिका को उन के पढ़ने के शौक पर खुशी हुई. वह खुद खूब पढ़ती थी.

श्री के साथ बैठेबैठे मिहिका को भी टाइम का पता ही नहीं चला. वे जाने लगे तो मिहिका ने उन्हें फिर आने के लिए कहा.

3-4 दिन में वह एक बार शाम को वहां आने लगे. चाय कभीकभी खाना भी खा कर जाने लगे और यह दोस्ती बढ़तेबढ़ते धीरेधीरे सारी सीमाएं भी पार कर ही गईं.

वैसे तो इस टाइम सोसाइटी में सब अपनेअपने घर में बंद थे. न कोई किसी से मिल रहा था, न एकदूसरे के घर जा रहा था. श्री सब से चोरीचोरी धीरेधीरे मिहिका के फ्लैट में चले जाते. दोनों इस नए बने रिश्ते में खोए ही थे कि धीरेधीरे फ्लाइट्स आनेजाने लगीं, तो एक दिन उन्होंने बताया, “मिहिका, अब मेरी पत्नी किसी दिन भी आने वाली है. इस तरह तो जल्दीजल्दी नहीं, पर मैं आता रहूंगा.”

”ठीक है, जब आप का मन करे, आ जाना.”

श्री अपनी पत्नी इंदु के आने के बाद भी चोरीचोरी 1-2 बार तो आए, पर एक ही सोसाइटी में ये दिल्लगी उन की गृहस्थी को नुकसान पहुंचा सकती थी, इसलिए बहुत कम तभी ही आ पाते, जब इंदु किसी काम से बाहर गई होती.

मिहिका का मजदूरों की बस्ती में जाना जारी था. ऐसे ही दिनों में वह एक दिन सो कर उठी, तो उस के पूरे शरीर में दर्द था, खूब तेज जुकाम और बुखार से उस की हालत खराब होने लगी, तो उस ने श्री को फोन किया. इस बार श्री उलझे से आए, बोले, “क्या हुआ?”

”मेरी तबियत काफी खराब हो रही है, श्री. मुझे डाक्टर के पास ले जा सकते हो?”

”हां, ठीक है, चलो. मैं बस इंदु को फोन कर के बता दूं.”

”क्या कहोगे उन्हें?”

”मैं सोसाइटी का चेयरमैन तो हूं ही. कह दूंगा कि इस टाइम मेरी ड्यूटी है तुम्हें ले जाना. तुम अकेली हो.”

मिहिका से उठा ही नहीं जा रहा था. बड़ी मुश्किल से वह श्री की कार तक गई. अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था.

मिहिका को बुखार तेज था, इसलिए अस्पताल में एडमिट कर लिया गया. श्री मिहिका के ही कहने पर उसे अस्पताल छोड़ घर आ गए.

मिहिका ने ही वहीं कुछ दूर रहने वाली अपनी फ्रेंड आरती को आने के लिए कह दिया था. आरती और वह एक ही औफिस में थीं और अच्छी फ्रेंड्स भी थीं.

आरती के पति विजय और उस की एक बेटी मिंटी मिहिका को एक फैमिली मेंबर ही समझते थे.

आरती तुरंत अस्पताल पहुंच गई. मिहिका की हालत ठीक नहीं थी उसे दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया. आरती लगातार उस के साथ थी, पर यहां वह रुक नहीं सकती थी. इस की अनुमति नहीं मिली तो वह बहुत परेशान हो गई.

मिहिका ने ही उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया. यह अस्पताल भी अच्छा था. मिहिका की देखरेख अच्छी तरह से हो रही थी. उस का बुखार उतरा. आरती लगातार उस के टच में थी.

एक हफ्ते बाद मिहिका ने डाक्टर से कहा, ”मैं घर पर अकेली ही रहती हूं. अगर मेरी रिपोर्ट अब नेगेटिव आ जाए तो क्या मैं घर जा सकती हूं?”

”थोड़ा टाइम और लगेगा, फिर रिपोर्ट देख कर भेज देंगे.”

मिहिका ने रजत और श्री को भी मैसेज में अपनी हालत के बारे में बता दिया था. दोनों के यह सोच कर होश उड़ गए कि वे एक कोरोना पौजिटिव के साथ समय बिता कर आए हैं.

कुछ दिन और बीते. मिहिका काफी ठीक हुई, फिर कोविड का टेस्ट हुआ. इस बार रिपोर्ट नेगेटिव आई तो उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

आरती को मिहिका ने सख्ती से दूर रहने के लिए कहा हुआ था, फिर भी उस के बारबार मना करने पर भी आरती ही अपनी कार से उसे उस की बिल्डिंग के पास छोड़ कर गई.

मिहिका को घर आ कर भी क्वारंटीन रहना था. आरती ने उस की हर जरूरत की चीज के लिए होम डिलीवरी की व्यवस्था कर दी थी.

मिहिका बहुत ही हिम्मती थी. वह इन हालात में जरा भी नहीं घबराई. उस के पेरेंट्स उस के जौब लगते ही एक एक्सीडेंट में दुनिया छोड़ गए थे, तब से वह अकेली ही जी रही थी. वह खूब उतारचढ़ाव देख चुकी थी.

घर आ कर मिहिका बहुत कमजोरी का अनुभव कर रही थी. वह फ्रेश हो कर लेटी ही थी कि श्री का फोन आया. उस के हेलो कहते ही शुरू हो गया, ”मिहिका, क्या बताऊं, कोरोना तुम्हें हुआ है, नींद मेरी उड़ गई है. मैं ने तो तुम्हारे साथ बहुत टाइम बिताया है इधर. मुझे कहीं कुछ न हो जाए, मैं तो वैसे भी ब्लड प्रेशर का मरीज हूं, बहुत डर लग रहा है. क्या बताऊं, एक छींक भी आती है तो डर जाता हूं.”

मिहिका बड़े धैर्य से श्री का डर सुनती रही. उस ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी. हां, हूं कर के उस ने फोन रख दिया.

अगले दिन ही रजत का फोन आ गया. उस की भी हालत खराब थी, ”यार, क्या बताऊं, तुम्हें यह कैसे हो गया? डर लग रहा है कि कहीं मैं भी इस की चपेट में न आ जाऊं? तुम्हें कहां से हो गया होगा?”

”कुछ कह नहीं सकती… शायद माइग्रेंट मजदूरों की बस्ती में जा कर हुआ हो.’’

”क्या…? तुम वहां क्यों जा रही थी?”

”उन्हें कुछ देने.‘’

”तुम ने मुझे बताया नहीं.”

”जरूरत नहीं समझी. अरे, वैसे भी मैं हर जगह तो तुम्हें बता कर जाऊं, ऐसा तो कुछ नहीं हमारे बीच.”

रजत उस की साफगोई पर चुप रह गया. बस एक ठंडी सांस ले कर उस ने इतना ही कहा, “मिहिका, बहुत डर लग रहा है कि कहीं मैं भी कोरोना की चपेट में न आ जाऊं, घर में मां हैं, छोटे बच्चे हैं… क्या कर सकते हैं अब? खैर, टेक केयर.”

मिहिका का कोविड का केस सोसाइटी का पहला केस था. पूरी सोसाइटी को चिंता होने लगी. मिहिका की बिल्डिंग की एंट्री पर नगरपालिका वाले एक बैनर भी लटका गए कि इस बिल्डिंग में कोरोना का केस है, सब दूर रहें, ध्यान रखा जाए.

मिहिका ने सोसाइटी में ही टिफिन सर्विस वाली महिला से रिक्वेस्ट की थी कि वह उस के लिए खाना भिजवाती रहे. वैसे तो वह इस लौकडाउन में खुद ही बना रही थी, पर औफिस जाने के समय उस ने इस महिला से कई बार खाना मंगवाया था. आरती उस की चिंता में बराबर उस का हालचाल लेती रही.

मिहिका अब कुछ ठीक महसूस कर रही थी, पर जिस तरह से रजत और श्री डर रहे थे, वह आराम करती हुई यही सोच रही थी कि बेचारे, इन्हें मौजमस्ती महंगी न पड़ जाए. वह तो अब ठीक है, पर दोनों के डर से भरे मैसेज पढ़पढ़ कर उसे हंसी आ जाती. वे अपने इस डर का सच किसी से शेयर नहीं कर सकते थे. उसी से ही सुबहशाम अपनाअपना डर बांट रहे थे, डर का सच वही जानती थी और इस सच पर मुसकराए जा रही थी.

Anupamaa ने सुनाई वनराज को जमकर खरीखोटी, फैंस ने ऐसे जाहिर की खुशी

स्टारप्लस का सुपरहिट सीरियल अनुपमा में लगातार नए-नए  चेंज देखने को मिल रहा है, बीते दिनों इस सीरियल में कई अलग- अलग तरह के ड्रामे देखने को मिल रहे हैं. इन दिनों अनुपमा के घर वाले उसके कैरेक्टर पर सवाल खड़े करते दिख रहे हैं.

अनुपमा के आत्मसम्मान पर वनराज और बा ने  कीचड़ उछाला है, जो अनुपमा बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. जिस वजह से अनुपमा अपना घर छोड़कर जाने लगेगी.

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अनुपमा अपने आत्मसम्मान के लिए सभी लोग से लड़ लेगी, और उनका जवाब भी देगी, अनुपमा का यह रूप देखकर फैंस काफी ज्यादा खुश हो जाएंगे. अनुपमा के इस फैसले को लोग लगातार सराह रहे हैं.

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अनुपमा के इस फैसले के बाद से लोग लगातार ट्विट कर रहे हैं. इस एपिसोड को देखने के बाद सोशल मीडिया पर लगातार अनुपमा की तारीफ हो रही है. अनुपमा के इस फैसले की सराहना हर कोई करता हुआ नजर आ रहा है.

एक फैन  ने लिखा है कि इस सीन में तो रूपाली गांगूली छा गई हैं, तो वहीं एक ने लिखा की आखिरकर अपने पूर्व पति को औकात दिखा ही दिया, तो एक ने लिखा कि अनुपमा को यह बहुत पहले कर देना चाहिए था. खैर देर से ही सही समझ तो आया.

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कुछ फैंस अनुपमा को नए जिंदगी के लिए बधाई देते नजर आ रहे हैं, वहीं फैंस को इस बात का इंतजार है कि आखिरकर अनुपमा का अगला कदम क्या होगा. अनुपमा को समझ आ जाएगा अनुज कपाड़िया का प्यार और इंतजार या फिर अनुपमा पूरी जिंदगी रहेगी अकेली.

Bigg Boss 15 : कैप्टेंसी टास्क में अकेले सब पर भारी पड़े प्रतीक सहजपाल, फैंस ने दी शाबाशी

बिग बॉस में बीते दिन कैप्टेंसी के टास्क को लेकर लोग आपस में भीड़ गए थें, ऐसे में आपसी सहमति से भीड़े घरवालों के लिस्ट में प्रतीक सेहजपाल की जिद्द ने पूरे टास्क को पलटकर रख दिया है.

बिग बॉस ने कैप्ट चुनने का अधिकार घर वालों को ही दिया था, जिसमें विशाल कोटियाल और जयभानुशाली को कैप्टन पद के लिए चुना गया, यह काम लगभग पूरा होने ही वाला था कि प्रतीक सेहजपाल जिद्द पर अड़ जाते हैं, और खुद को कैप्टेंसी के लिए सहमति करते हैं.

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जिसे लेकर आपस में खूब ज्यादा झगड़ा होता है और यह काम बन नहीं पाता है, जिससे नाराज होकर बिग बॉस इस टास्क को रद्द करते हैं और हफ्ते भर के लिए घरवालों को कोई नया कैप्टन नहीं मिलता है.

प्रतीक सेहजपाल के इस जिद्द और तेवर से घरवाले काफी ज्यादा नाराज हैं, उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आखिरकर उसने यह हरकत क्यों कि है.

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वहीं सोशल मीडिया पर प्रतीक सहजपाल को लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं कुछ लोगों का कहना है कि प्रतीक अपनी जगह पर सही हैं तो वहीं कुछ लोग प्रतीक की खूब तारीफ करते हुए भी नजर आ रहे हैं. इससे पहले भी घर में प्रतीक की लड़ाई कई सारे लोगों से हो चुकी है. जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रतीक अपने मन की करते हैं. किसी की सुनते नहीं है.

Diwali 2021 : घर पर बनाएं मटर की गुजिया, मेहमान को चाय के साथ करे सर्व

वैसे तो आपने अभी तक मीठी गुजिया खाई होगी लेकिन आज हम आपको कुछ चटपटी नमकीन गुजिया बनाना बता रही हूं. जो मटर से बनती है.

सामग्री :
मैदा- 1-1/2 कप
सूजी- 3 चम्मच
नमक- 1/2 चम्मच
घी- 3 चम्मच
पानी- आवश्यकतानुसार
भरावन के लिए
उबला मटर- 2 कप
कद्दूकस किया पनीर- 1/2 कप
कद्दूकस किया नारियल- 1/2 कप

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कटी मिर्च- 2
भुना जीरा- 2 चम्मच
हींग- 1/2 चम्मच
अजवाइन- 2 चम्मच
बारीक कटी धनिया पत्ती- 1/2 कप
बारीक कटी पुदीना पत्ती- 4 चम्मच
नीबू का रस- 1 चम्मच
नमक- स्वादानुसार
तेल- आवश्यकतानुसार

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विधि :

-एक बरतन में मैदा, सूजी, नमक और घी डालकर अच्छी तरह से मिलाएं. आवश्यकतानुसार पानी की मदद से गूंद लें. गूंदे हुए मिश्रण को ढककर आधे घंटे के लिए छोड़ दें.

-मिक्सर-ग्राइंडर में नारियल, हरी मिर्च, धनिया पत्ती, पुदीना पत्ती और जीरा डालकर पीस लें. पीसने के लिए पानी का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करें. मटर से पानी पूरी तरह से निकाल लें.
-एक बरतन में मटर, पनीर, नारियल वाला मिश्रण, अजवाइन, नमक और नीबू का रस डालकर अच्छी तरह से मिलाएं. कड़ाही में तेल गर्म करें.

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-आटे की छोटी-सी लोई काटें और हल्का-सा तेल का इस्तेमाल करते हुए पूरी बेल लें. बेलने के लिए सूखे आटे का इस्तेमाल नहीं करें.

-पूरी के बीच में थोड़ा-सा मटर वाला मिश्रण डालें. पूरी को बीच से आधे चांद के आकार में मोड़ दें. किनारों को अच्छी तरह सील कर दें. सारे आटे से ऐसे ही मटर गुजिया तैयार करें. गर्म तेल में डालें व सुनहरा होने तक तल लें. गर्मागर्म सर्व करें.

377- भाग 2 : क्या अपने प्यार को पा सके वासु और शर्लिन

‘वासु, अब जो है यही है. इसे बदला नहीं जा सकता. हम अपने आचरण को बदल सकते हैं, पर किसी की सोच को नहीं. और फिर उन सब ने तो यह सोच बना ही रखी है कि तुम्हें नहीं स्वीकारना, फिर भी तुम?’

शार्लिन के शब्दों में मानो यथार्थ छिपा हो, जैसे बंद कमरों में नीली रोशनी फैल गई हो. बिस्तर की सलवटों की तह को पूर्ववत करता वह खिड़की से बाहर झांकने लगा. कमरे में चुप्पी, पर अंतर्मन में गहरा द्वंद्व. खिड़की से बाहर पक्षियों का झुंड पंक्तिबद्ध इधर से उधर दौड़ रहा है, बिना किसी ठौर के यहां से वहां. बादलों के बड़े पठार छोटे खंडों को मिटाते आगे बढ़ रहे हैं. कुछ भी एकसमान नहीं पहले सा.

फोन की घंटी सुनता हुआ शार्लिन फोन उठाता है, ‘हेलो…’ ‘शार्लिन ‘यस, आप कौन…? ‘शार्लिन, मैं वासु का फादर.’ आवाज पहचानने की कोशिश करते हुए शार्लिन ने कहा, ‘ओ अंकल, आप…’ ‘गुड मार्निंग.’ ‘हां, बोलिए ना…’

‘क्या वासु से बात करना चाहेंगे?’ वासु मुंह हिला कर मना कर देता है. शार्लिन उस के चेहरे को देखते हुए कहता है, ‘हां अंकल, मैं वासु को मैसेज देता हूं. ‘यस… यस, आप को फोन करने के लिए बोलता हूं.’

‘हां… ओके’ ‘यस, औल इज ओके.’ ‘जी,’ फोन कट करते हुए वासु के कंधे पर हाथ रखता हुआ पुनः पूछता है, ‘बताओ, क्या हुआ इस बार?’ ‘क्यों नहीं, तुम्हारे फोन पर फोन किया उन्होंने.’ ‘मुझे लग रहा है, वो गुस्से में थे. किसी वकील वगैरह की बात उन के मुंह पर…’

‘खैर छोड़ो, तुम बताओ कि क्या हुआ?’ शार्लिन ने जोर देते हुए पूछा, ‘क्या कह रहे हो? किसी वकील की बात कर रहे थे?’ मैं अभी फोन करता हूं ‘ठहरो…’ वासु रुको, पहले मुझे बताओ कि क्या बात बढ़ गई थी कुछ ज्यादा ही.

‘हां शार्लिन. वो बोलते हैं कि तुम हमारी कम्युनिटी के नहीं हो, इसलिए तुम मेरे परिवार का हिस्सा भी नहीं हो. तुम गे हो और तुम हमजैसे नहीं हो, इसलिए तुम्हाराहमारा अब कोई लिंक नहीं.’ शार्लिन गंभीरता तोड़ते हुए बोला, ‘मतलब, हम इनसान नहीं हैं क्या…? हमारे अंदर दिल नहीं, कोई जज्बात नहीं. वे वकील की बात कर रहे थे? क्या यही बात थी?’

‘मतलब, अब वे हमें जेल भिजवाएंगे. चूंकि हम उन जैसे नहीं. और क्योंकि हम गे हैं केवल इसलिए. उन जनाब को इतना नहीं मालूम शायद कि हम आजाद देश के बाशिंदे हैं. हम भी वकील कर सकते हैं और अपने अधिकारों से उन्हें अवगत करवा देंगे.’

‘वही तो…’ वासु चुप्पी तोड़ता हुआ बोला. ‘वो मुझे दादाजी की संपत्ति में से बेदखल कर रहे हैं और बोलते हैं कि मैं उस परिवार का हिस्सा ही नहीं हूं. अब चूंकि मैं एक गे हूं, तो मेरा उन की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं… ‘शार्लिन, प्लीज वकील साहब को फोन लगाओ. मैं तो कहता हूं कि एक बार आज मिल ही लेते हैं उन से.’ शार्लिन चुप हो कर कुछ सोचने लगता है. ‘तुम क्या सोच रहे हो शार्लिन?’

‘अब क्या हम अच्छे से जी भी नहीं सकते?’ ‘बचपन से 12-13 साल जब हम उन के साथ थे, तब सबकुछ उन्हें सही लगता था. हम पर नाज करते थे. रोज नए खिलौने, कपड़े, मिठाइयां आदि देते थे, पर जैसे ही हमारे गे होने का पता चला तो उन सब लोगों ने हमें ऐसे दूर कर दिया, जैसे दूध से मक्खी दूर की जाती है.

शार्लिन एक कुशल वक्ता की भांति बोलता रहता है ‘हम क्या बीमार हैं? अपराधी हैं? बलात्कारी हैं? या सड़कों पर नंगे घूमते हैं… या दूसरों को तंग करते हैं… हमें भी तो जीने का हक है दूसरों की तरह… पर, शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं. ‘हम भी वकील के सहारे अपना हक ले सकते हैं और वो लोग सब हंस कर देंगे. कहे देता हूं वासु घबराओ नहीं तुम.

‘अगर तुम्हारा बाप न होता, तो अभी ही बता देता, पर… इन को जितनी इज्जत दो, उतना ही हमें बेइज्जत करते हैं. सब साले छोटी सोच वाले हैं. जिसे देखो हमें बेइज्जत करने पर तुला है. और अब तो अपने घर वाले ही.’सामने खूंटी पर लटके तौलिए को समेटता शार्लिन चुप होता है, पलभर तौलिए को हाथ में ले कर देखता है और फिर बाथरूम की ओर बढ़ते वासु को कहता है ‘मैं शाम को अमरकांतजी से मिलता हूं.’

‘कौन अमरकांत…?’ वासु रोकते हुए पूछता है.’अरे वही अपने वकील साहब, जो पहले भी हम लोगों के लिए लड़ थे, जब मकान मालिक हमें घर छोड़ने के लिए बाध्य कर रहे थे…? भूल गए क्या?”ओह, अच्छा. उन का नाम अमरकांत है… सौरी, मेरे दिमाग से नाम फिसल गया था.”बिलकुल, मैं भी शाम को आ जाता हूं वासु,’ शार्लिन को देखते हुए बोलता है.

शार्लिन पलभर में बाथरूम में घुस जाता है. बाथरूम के शावर से निकलती छींटें बाहर के सूनेपन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. वासु बाहर चुप है और अंदर बाथरूम में शार्लिन. बीच में केवल एक दीवार है और दीवार के उस पार शावर और सन्नाटा तोड़ती बूंदें.

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