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कर्तव्य: मीनाक्षी का दिल किस पर आ गया था

लेखका-रमेश चंद्र छबीला

मीनाक्षी का दिल तब अधिक सहम उठा जब उस का एकलौता नन्हा बेटा रमन स्कूल से घर न लौटा. वह घबरा गई और गहरी आशंका से घिर गई कि कहीं रमन को औटो ड्राइवर ने कुछ कर तो नहीं दिया. सोफे पर बैठी मीनाक्षी ने दीवारघड़ी की ओर देखा. 3 बजने वाले थे. उस ने मेज पर रखा समाचारपत्र उठाया और समाचारों पर सरसरी दृष्टि डालने लगी. चोरी, चेन ?पटने, लूटमार, हत्या, अपहरण व बलात्कार के समाचार थे.

2 समाचारों पर उस की दृष्टि रुक गई, ‘12 वर्षीया बालिका से स्कूलवैन ड्राइवर द्वारा बलात्कार, दूसरा समाचार था, स्कूल के औटो ड्राइवर द्वारा 8 वर्षीय बालक का अपहरण, फिरौती न देने पर हत्या.’ पूरा समाचार पढ़ कर सन्न रह गई मीनाक्षी. यह क्या हो रहा है? क्यों बढ़ रहे हैं इतने अपराध? कहीं भी सुरक्षा नहीं रही. इन अपराधियों को तो पुलिस व जेल का बिलकुल भी भय नहीं रहा. पता नहीं क्यों आज इंसान के रूप में ऐसे शैतानों को बच्चियों पर जघन्य अपराध करते हुए जरा भी दया नहीं आती. फिरौती के रूप में लाखों रुपए न मिलने पर मासूम बच्चों की हत्या करते हुए उन का हृदय जरा भी नहीं पसीजता. सोचतेसोचते मीनाक्षी ने घड़ी की ओर देखा. साढ़े 3 बज रहे थे.

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अभी तक रमन स्कूल से नहीं लौटा. स्कूल की छुट्टी तो 3 बजे हो जाती है. घर आने तक आधा घंटा लगता है. अब तक तो रमन को घर आ जाना चाहिए था. मीनाक्षी के पति गिरीश एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक थे. उन का 8 वर्षीय रमन इकलौता बेटा था. रमन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा था. रमन देखने में सुंदर और बहुत प्यारा था दूधिया रंग का. सिर पर मुलायम चमकीले बाल. काली आंखें. मोती से चमकते दांत. जो भी रमन को पहली बार देखता, उस का मन करता था कि देखता ही रहे. वह पढ़ाई में भी बहुत आगे रहता. उस की प्यारीप्यारी बातें सुन कर खूब बातें करने को मन करता था. एक दिन गिरीश ने मीनाक्षी से कहा था, ‘देखो मीनाक्षी, हमें दूसरा बच्चा नहीं पैदा करना है. मैं चाहता हूं कि रमन को खूब पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दूं.’ मीनाक्षी ने भी सहमति के रूप में सिर हिला दिया था.

वह स्वयं भी कंप्यूटर इंजीनियर थी. चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी, परंतु रमन के कुशलतापूर्वक लालनपालन के लिए उस ने नौकरी करने का विचार त्याग दिया था. उसे एक गृहिणी बन कर रहना ही उचित लगा. मीनाक्षी के हृदय की धड़कन बढ़ने लगी. कहां रह गया रमन? सुबह 9 बजे औटोरिकशा में बैठ कर स्कूल जाता है. 5 बच्चे और भी उसी औटो में बैठ कर जाते हैं. रमन सब से पहले औटो में बैठता है और सब से बाद में घर आता है. औटोरिकशा चलाने वाला मोहन लाल पिछले वर्ष से बच्चों को ले जा रहा था. अब 3 दिनों से मोहन लाल बुखार में पड़ा था. उस ने अपने छोटे भाई सोहन लाल को भेज दिया था. कल सोहन लाल औटोरिकशा ले कर आया था. सोहन लाल भी नगर में औटो चलाता है.

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उस ने पूछा था, ‘तुम्हारा भाई मोहन लाल नहीं आया. उस का बुखार ठीक नहीं हुआ क्या? कल उस का फोन आया था कि बुखार हो गया है, इसलिए कुछ दिन छोटा भाई आएगा.’ ‘हां मैडमजी, अभी भाई का बुखार ठीक नहीं हुआ है. आज उसे खून की जांच करानी है. जब तक वह नहीं आता, मैं बच्चों को स्कूल ले जाऊंगा.’ ‘ठीक है, जरा ध्यान से ले जाना.’ उस ने रमन को औटो में बैठाते हुए कहा था. ‘आप चिंता न करें मैडमजी. मैं पहले भी कई बार इन बच्चों को स्कूल ले गया हूं. मु?ो इन बच्चों के घर का पता भी मालूम है. 3 बजे छुट्टी होती है. मैं साढ़े 3 बजे तक घर पर रमन को ले आऊंगा.’ ‘बाय, मम्मा…’ रमन ने मुसकरा कर हाथ हिलाते हुए कहा था. कल 3 बज कर 45 मिनट पर सोहन लाल औटोरिकशा में रमन को ले कर आ गया था. रमन के आ जाने पर उस ने चैन की सांस ली थी.

परंतु आज कहां रह गया रमन? पौने 4 बज रहे थे. उसे आज अपनी मूर्खता पर क्रोध आ रहा था कि उस ने सोहन लाल का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया? न कल लिया और आज भी वह भूल गई थी. मीनाक्षी को ध्यान आया कि सोहन लाल का नंबर तो पिछली बार डायरी में नोट किया था. उस ने डायरी उठा कर ?ाटपट नंबर मिलाया परंतु वह नंबर मौजूद नहीं था. पता नहीं बहुत से लोग नंबर क्यों बदलते रहते हैं? वह ?ां?ाला उठी. उस ने मोहन लाल का नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम्हारा भाई सोहन अभी तक रमन को ले कर नहीं आया है, पता नहीं कहां रह गया? मेरे पास उस का मोबाइल नंबर भी नहीं है. इतनी देर तो नहीं होनी चाहिए थी. मैं ने उसे फोन मिलाया है पर उस का फोन लग नहीं रहा है. स्विचऔफ सुनाई दे रहा है. पता नहीं क्या बात हो सकती है?’’ उधर से मोहन लाल का भी चिंतित स्वर सुनाई दिया.

मीनाक्षी ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘ओह, मु?ो बहुत डर लग रहा है. पता नहीं रमन किस हाल में होगा?’’ ‘‘मैडमजी आप चिंता न करें. रमन बेटा आप के पास पहुंच जाएगा. हो सकता है कहीं जाम में औटो फंस गया हो,’’ मोहन लाल का स्वर था. मीनाक्षी ने रमन की कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे की मम्मी का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘मैं मीनाक्षी बोल रही हूं.’’ ‘‘कहिए मीनाक्षीजी, कैसी हैं आप? 10 तारीख को होटल ग्रीन में किटी पार्टी है.’’ ‘‘हां मालूम है मु?ो. यह बताओ कि आप का बेटा कमल स्कूल से आ गया है क्या?’’ बात काट कर मीनाक्षी ने कहा. ‘‘हांहां, आ गया है. वह तो सवा 3 बजे ही आ गया था पर क्या बात है, आप यह क्यों पूछ रही हैं?’’ ‘‘रमन को ले कर सोहन लाल अभी तक घर नहीं आया है.’’ ‘‘क्या कह रही हो मीनाक्षी? अब तो 4 बजने को हैं. स्कूल से छुट्टी हुए तो एक घंटा हो रहा है. कहां रह गया होगा बेटा? आजकल जमाना बहुत खराब चल रहा है.

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रोजाना अखबारों में बेटीबेटों के बारे में दिल दहला देने वाले समाचार छपते रहते हैं, किस पर कितना विश्वास करें? किसी का क्या पता कि कब मन बदल जाए? दिमाग में कब शैतान घुस जाए? हमारी मजबूरी है कि हम अपने घर के चिरागों को इन जैसे लोगों के साथ भेज देते हैं. आप जल्दी से स्कूल फोन करो. कहीं ऐसा न हो कि रमन आज स्कूल में ही रह गया हो. हमारे और आप के यहां तो एकएक ही बच्चा है? यदि कुछ ऐसावैसा हो गया तो…’’ ‘‘नहीं…’’ और सुन नहीं सकी मीनाक्षी. उस ने एकदम फोन काट दिया. उस का हृदय बुरी तरह धड़क रहा था. उस ने स्कूल का नंबर मिलाया. उधर से हैलो होते ही वह एकदम बोली, ‘मेरा बेटा रमन आप के यहां तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा. स्कूल में तो कोई बच्चा नहीं रह गया है?’ ‘नहीं मैडमजी, यहां कोई बच्चा नहीं है.

स्कूल की 3 बजे छुट्टी हो गई थी. यदि यहां आप का बच्चा होता तो आप को फोन पर सूचना दी जाती. आप का बच्चा कैसे घर पहुंचता है?’ ‘औटोरिकशा में कुछ बच्चे आतेजाते हैं. कल व आज औटो वाले का भाई आया था. औटो वाला मोहन लाल बीमार है.’’ ‘‘ओह… मैडम, आप तुरंत पुलिस को सूचना दीजिए. इतनी देर तक बच्चा घर नहीं पहुंचा तो कुछ गलत हुआ है. कुछ पता नहीं चलता कि इंसान कब शैतान बन जाए.’’ यह सुनते ही मीनाक्षी बुरी तरह घबरा गई. आंखों से आंसू बहने लगे. उस ने गिरीश को फोन मिलाया. ‘‘हैलो,’’ गिरीश की आवाज सुनाई दी. ‘‘रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं पहुंचा,’’ मीनाक्षी ने रोते हुए कांपते स्वर में कहा. ‘‘क्या कह रही हो? रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं लौटा? अब तो 4 से भी ज्यादा बज रहे हैं. छुट्टी तो 3 बजे हो गई होगी. औटो वाले सोहन का नंबर मिलाया?’’ गिरीश का घबराया सा स्वर सुनाई दिया. ‘‘सोहन का नंबर मेरे पास नहीं है. मैं ने उस के भाई को मिलाया था तो वह बोला कि सोहन के फोन का स्विचऔफ है.

स्कूल वालों से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि छुट्टी 3 बजे हो गई थी. अब यहां कोई बच्चा नहीं है. वे कह रहे थे कि किसी भी औटो वाले का क्या विश्वास कि कब मन बदल जाए. पुलिस में सूचना दो.’’ ‘‘मैं अभी पहुंच रहा हूं,’’ गिरीश ने चिंतित हो कर कहा. 10 मिनट में ही गिरीश घर पर पहुंच गया. मीनाक्षी को रोते हुए देख कर सम?ा गया कि रमन अभी तक नहीं आया है. ‘‘क्या सभी बच्चे अपने घर पहुंच गए?’’ ‘‘हां, मैं ने कमल की मम्मी से पूछा था. वह सवा 3 बजे अपने घर पहुंच गया था. मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. मेरे रमन को कुछ हो गया तो मैं भी जान दे दूंगी. पता नहीं वह कमीना मेरे रमन को किस तरह सता रहा होगा,’’ कहते हुए मीनाक्षी फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘मु?ो तो यह औटो वाला सोहन जरा भी अच्छा नहीं लगता. देखने में गुंडा और लफंगा लगता है. जब इस के भाई ने भेज ही दिया तो हम क्या करते, मजबूरी है.

इस के मन में आ गया होगा कि बच्चे को कहीं छिपा दूंगा. 15-20 लाख रुपए मांगूंगा तो 5-7 मिल ही जाएंगे. हो सकता है उस के साथ कोई दूसरा भी मिला हो. देखना अभी इस का फोन आएगा. ‘‘अपने बच्चे के लिए मैं अपने बैंक खाते के सारे रुपए तथा जेवरात दे दूंगी लेकिन रमन को कुछ नहीं होना चाहिए. उस के बिना मैं जीवित नहीं रह पाऊंगी.’’ ‘‘मीनाक्षी, अपनेआप को संभालो. हम पर अचानक यह भयंकर मुसीबत आई है. हमें इस का मुकाबला करना होगा. अब मैं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखाने जा रहा हूं,’’ गिरीश ने कहा और कमरे से बाहर निकला. तभी घर के बाहर औटोरिकशा के रुकने की आवाज आई. देखते ही गिरीश एकदम चीख उठा, ‘‘अबे, कहां मर गया था उल्लू के पट्ठे?’’ औटो की आवाज व गिरीश का चीखना सुन कर मीनाक्षी भी एकदम कमरे से बाहर आई.

रमन औटो से उतर रहा था. सोहन लाल के हाथ पर पट्टी बंधी थी तथा चेहरे पर मारपिटाई के निशान थे. मीनाक्षी ने रमन को गोद में उठा कर इस प्रकार गले लगाया मानो वर्षों बाद मिला हो. गिरीश ने रमन से पूछा, ‘‘बेटे, तुम ठीक हो?’’ ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं पापा, लेकिन अंकल की लोगों ने मारपिटाई की है,’’ रमन ने कहा. गिरीश व मीनाक्षी चौंके. वे दोनों चकित से सोहन लाल के चेहरे की ओर देख रहे थे. गिरीश ने पूछा, ‘‘सोहन लाल, क्या बात हुई. हम तो बहुत परेशान थे कि अभी तक तुम रमन को ले कर क्यों नहीं आए हो.’’ ‘‘परेशान होने की तो बात ही है बाबूजी. रोजाना तो बेटा साढ़े 3 बजे तक घर आ जाता था और आज इतनी देर तक भी नहीं आया, घबराहट तो होनी ही थी.

इस बीच न जाने क्याक्या सोच लिया होगा आप ने.’’ ‘‘हाथ पर चोट कैसे लगी?’’ मीनाक्षी ने पूछा. ‘‘सब बच्चे अपनेअपने घर चले गए थे. मैं इधर ही लौट रहा था तो औटो में पंचर हो गया. आधा घंटा वहां लग गया. गांधी चौक पर जाम लगा हुआ था. मैं औटो दूसरे रास्ते से ले कर जल्दी घर पहुंचना चाहता था. मैं जानता था कि देर हो चुकी है. ‘‘मैं पटेल रोड पर आ रहा था तो सामने से एक बाइक पर 2 युवा स्टंट करते हुए तेजी से आ रहे थे. जो चला रहा था, उस ने कानों में इयरफोन लगा रखा था. सिर पर हैलमैट नहीं था. मैं सम?ा गया कि इन की बाइक औटो से टकरा जाएगी.

जैसे ही मैं ने तेजी से औटो बचाया तो सड़क के किनारे खड़ी किसी नेताजी की कार में जरा सी खरोंच आ गई. ‘‘कार पर पार्टी का ?ांडा लगा था. कार से 3 व्यक्ति उतरे. मैं ने उन के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांगी, पर वे तो सत्ता के नशे में चूर थे. उन्होंने मेरे साथ मारपिटाई शुरू कर दी. एक ने मु?ो धक्का दिया तो मेरा सिर औटो से जा लगा. लोगों ने बीचबचाव कर मु?ो छुड़ा दिया. पास के नर्सिंगहोम में जा कर मैं ने पट्टी कराई और सीधा यहां आ गया. आज तो मोबाइल चार्ज भी नहीं था, इसलिए मेरा फोन भी बंद था,’’ सोहन लाल ने बताया. यह सुन कर गिरीश व मीनाक्षी का क्रोध शांत होता चला गया.

‘‘बाबूजी, आज जो हुआ, उस में मेरा तो कोई दोष नहीं. बस, हालात ही ऐसे बनते चले गए कि देर होती चली गई,’’ सोहन लाल बोला. मीनाक्षी के हृदय में दया व सहानुभूति की लहर दौड़ने लगी. वह बोली, ‘‘सोहन लाल तुम्हारा दोष जरा भी नहीं है. तुम्हें तो चोट भी लग गई है.’’ ‘‘मु?ो इस चोट की जरा भी चिंता नहीं है मैडमजी. यदि रमन बेटे को जरा भी चोट लग जाती तो मैं कभी स्वयं को माफ न करता.

उस का मु?ो बहुत दुख होता. आप लोग अपने बच्चों को हमारे साथ कितने विश्वास के साथ स्कूल भेजते हैं. हमारा भी तो यह कर्तव्य है कि हम उस विश्वास को बनाए रखें. हम लोगों की जरा सी लापरवाही से यह विश्वास टूट जाएगा. मैं तो उन लोगों में हूं जो अपनी जान पर खेल कर सदा यह विश्वास बनाए रखना चाहते हैं.’’ गिरीश ने कहा, ‘‘बैठो सोहन, मीनाक्षी तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती है.’’ ‘‘धन्यवाद बाबूजी, चाय फिर कभी. अभी तो मु?ो भैया के खून की टैस्ट रिपोर्ट लानी है. काफी देर हो चुकी है,’’ सोहन लाल ने कहा और औटो स्टार्ट कर चल दिया. द्य

वो कौन है: किस महिला से मिलने जाता था अमन

बिस्तर पर लेटी अंजलि की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह बिस्तर पर लेटीलेटी सोच रही थी कि उस की जिंदगी में यह उथलपुथल कैसे मच गई? पूरी रात आंखों में ही कट गई. उसे सुबह 10 बजे तक औफिस पहुंचना था पर उस का मन ही नहीं हुआ. वह सोचने लगी…पिछले साल ही तो उस की शादी अमन से धूमधाम से हुई थी. अमन को वह काफी समय पहले से जानती थी. दोनों कालेज में साथ ही पढ़ते थे. अकसर दोनों के घर के लोग भी मिलतेजुलते रहते थे. किसी को भी इस शादी से कोई परेशानी नहीं थी. अत: लव मैरिज बनाम अरेंज्ड मैरिज होने में कोई परेशानी नहीं हुई. शादी के बाद अमन ने अंजलि को बहुत प्यार और सम्मान से रखा. इसीलिए अमन से शादी कर के अंजलि स्वयं को बहुत खुशहाल समझ रही थी.

समस्या तब उत्पन्न हुई जब उस रात वह फोन आया. फोन अमन के लिए था. कोई महिला थी. उस ने अंजलि से कहा, ‘‘प्लीज अंजलि फोन अमन को दो.’’

फोन सुनते ही अमन बहुत बेचैन हो गए. अंजलि ने पूछा तो बोले, ‘‘मेरी चाची का फोन है,’’ और फिर बिना कुछ कहेसुने तुरंत चल गए.

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सुबह के 4 बजे लौटे तो बेहद उदास और परेशान थे. अंजलि ने उन्हें परेशान देखा तो उस समय कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा. सोचा कल आराम से सब पूछ लेगी. पर सुबह घर के कामों से उसे समय नहीं मिला और रात में वह कुछ पूछती उस से पहले ही फिर उस का फोन आ गया.

अंजलि के फोन उठाते ही उस महिला ने कहा, ‘‘अंजलि फोन जल्दी से अमन को दो.’’

अंजलि के बुलाने से पहले ही अमन ने उस के हाथ से फोन ले लिया. अंजलि रसोई से कान लगा कर सुनने लगी.

थोड़ी ही देर में अमन की आवाज आई, ‘‘चिंता मत करो. मैं अभी आता हूं,’’ और अमन बिना किसी से कुछ कहे चला गया.

अमन अंजलि के बारबार पूछने पर भी ठीक से कुछ नहीं बता पाया. अगली बार जब फोन आने पर अमन बाहर निकला तो अंजलि भी सतर्कता से उस के पीछेपीछे निकल गई. उस ने ठान लिया आज सचाई जान कर रहेगी. कौन है यह महिला? मुझे भी जानती है. अमन उस के बारे में कुछ बताना क्यों नहीं चाहते? क्या कुछ गलत हो रहा है?

अमन की गाड़ी एक मशहूर होटल के सामने रुकी. वह अगभग दौड़ता हुआ सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया. अंजलि भी उस के पीछेपीछे हो ली. अमन ने एक कमरे में घुस अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद दोनों कहीं बाहर चले गए. अंजलि जानना तो चाहती थी कि ये सब क्या चल रहा है, पर औफिस के लिए देर हो जाती, इसलिए मन मार कर औफिस के लिए निकल गई. वह औफिस आ तो गई पर उस का मन काम में नहीं लग रहा था उस का ध्यान तो होटल के कमरे ही हलचल में ही अटका था.

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वह सोच रही थी कि क्या अभी भी अमन होटल में ही होगा या अपने औफिस चला गया होगा. उस ने अमन के औफिस में फोन किया तो पता चला वह तो 2 दिनों से औफिस नहीं आ रहा. अंजलि चकरा गईर् कि अगर औफिस नहीं जा रहे तो कहां जा रहे? घर से तो सही समय पर औफिस जा रहा हूं, कह कर निकल जाते हैं. उस ने सोचा कुछ तो गड़बड़ है.

अंजलि का समय काटे नहीं कट रहा था. उस ने पक्का मन बना लिया कि जो भी हो आज घर जा कर अमन से साफसाफ बात करेगी.

रात तो अंजलि जब घर पहुंची तो अमन की जगह अमन के हाथ का लिखा नोट मिला. उस में लिखा था कि औफिस के काम से बाहर जा रहा हूं. चिंता मत करना. 2 दिनों में लौट आऊंगा. कहां गए हैं यह भी नहीं लिखा था.

अंजलि को बहुत गुस्सा आ रहा था. औफिस से पता चला अमन ने औफिस से यह कह कर छुट्टी ली थी कि घर में काम है. पर घर में तो कोई काम था ही नहीं. एक फोन भी नहीं किया. फोन कर के बता सकते थे न कि कहां गए? फिर उस ने सोचा फोन तो मैं भी सकती हूं न. अत: अमन को फोन लगाया तो फोन स्विचऔफ था. अब तो अंजलि चिंता और गुस्से से भर गई कि जरूर उसी होटल में होंगे अपनी चाची के पास… हुंह चाची… चाची तो वह हरगिज नहीं हो सकती. अगर चाची हैं तो होटल में क्यों रुकीं. घर में भी रुक सकती थीं? मुझे जानती हैं तो मुझ से मिलने क्यों नहीं आईं? जरूर अमन की कोई प्रेमिका ही होगी. ये सब सोचते ही अंजलि को चक्कर आने लगा कि अब उस का क्या होगा? बारबार अंजलि के दिमाग में यही बातें घूमने लगीं. उसे पहले पता लगाना चाहिए, फिर क्या करना है, सोचा जाएगा, यह तय किया अंजलि ने.

पर कहां से शुरू करें? फिर याद आया कि अरे अमन के भाईभाभी तो जानते ही होंगे अपनी चाची को. अगर चाची ही आई हैं तो भाई साहब से भी मिली होंगी. चलो, सब से पहले भाभी से बात करती हूं, सोच अंजलि अगली सुबह ही इसी शहर में रहने वाली अपनी जेठानी मीता के घर पहुंच गई.

अंजलि को देखते ही उस की जेठानी मीता खुश हो कर बोलीं, ‘‘अरे अंजलि आओआओ. तुम तो ईद का चांद हो गई हो. अकेली ही आई हो क्या? अमन कहां है? आए नहीं क्या?’’

‘‘भाभी, भाभी रुकिए तो सब बताती हूं…अमन शहर से बाहर गए हैं. मैं घर में अकेली थी. आप की बहुत याद आ रही थी. आज शुक्रवार है. आज की मैं ने छुट्टी ले ली. कलपरसों की छुट्टी है ही तो मैं आप के पास आ गई. भैया कहां हैं?’’

‘‘तुम्हारे भैया भी बाहर गए हैं. अब हम दोनों मिल कर खूब मस्ती करेंगे,’’ मीता ने अंजलि को बताया.

दोनों बातें करते हुए काम भी करती जा रही थीं. अंजलि चाची के बारे में पूछने का मौका ढूंढ़ रही थी.

मीता ने बातोंबातों में अंजलि से जब पूछा कि कोई खुशखबरी है क्या तो अंजलि ने शरमा कर अपना मुंह हाथों में छिपा कर हां में सिर हिलाया. मीता ने खुशी से अंजलि को गले लगा लिया. फिर मीता ने पूछा, ‘‘डिलिवरी के लिए कहां जाओगी मायके? अगर नहीं तो मेरे पास आ जाना.’’

‘‘नहींनहीं मायके तो नहीं जाऊंगी. आप को तो पता ही है मां अब अधिकतर बिस्तर पर ही रहती हैं. उन के बस का नहीं है कुछ. आप को भी परेशानी होगी. कितना अच्छा होता अगर अपने सासससुर जिंदा होते तो मुझे कुछ सोचना भी नहीं पड़ता,’’ अंजलि ने बातों का सूत्र अपने मकसद की ओर मोड़ते हुए कहा.

‘‘उन की कमी तो मुझे भी बहुत खलती है पर क्या करें. दोनों भाई बहुत छोटे थे जब एक दुर्घटना में मम्मीपापा दोनों चल बसे. कैसेकैसे दुख उठाए दोनों भाइयों ने पर हिम्मत नहीं हारी और आज देखो दोनों परिवार कितने खुशहाल है.’’

‘‘क्या कोई दूरपास के रिश्तेदार चाचाचाची वगैरह भी नहीं हैं, जिन्हें डिलीवरी के समय बुला सकें?’’ अंजलि ने धड़कते दिल से पूछ ही लिया.

‘‘नहीं, चाची तो नहीं हैं, पर हां एक नानी थीं जो पिछले साल चल बसी थीं.’’

अंजलि का मकसद पूरा हो गया. उसे जो जानकारी चाहिए थी वह उसे मिल गई. फिर भी कुछ और कुरेदने की गरज से उस ने फिर पूछा, ‘‘कोई दूरपास की बहन भी नहीं है? अगर कोई बहन ही होती तो कितना अच्छा होता. है न?’’

‘‘हां, दोनों भाइयों को एक बहन की कमी भी बहुत खलती है. बहन के नाम से ही दोनों की आंखें भीग जाती हैं. रक्षाबंधन के दिन दोनों कहीं चले जाते हैं. कहते हैं सब के हाथों में राखी देख कर मन कैसाकैसा होने लगता है.’’

अंजलि को पता लग गया कि अमन की कोई चाची नहीं है. सीधा सा मतलब है कि अमन झूठ बोल कर उस महिला से मिलने जाता है. जरूर उस की कोई प्रेमिका ही होगी. दोनों में नाजायज संबंध होंगे. अब तो मैं अमन के साथ नहीं रह सकती. अंतत: अंजलि ने दूसरे ही दिन वापस जाने की तैयारी कर ली.

मीता ने उसे जाने को तैयार देखा तो कहा कि रुक जाओ अमन आ जाएं तो चली जाना. खाली घर में क्या करोगी? पर अंजली ने आज जरूरी काम है मैं फिर आ जाऊंगी, कह कर मीता को चुप करवा दिया और निकल पड़ी अपने पापा के घर के लिए. उस ने अमन को कुछ बताना जरूरी नहीं समझा. बस औफिस के पते पर एक पत्र डाल कर उसे जता दिया कि अब वह कभी वापस नहीं आएगी.

पापा ने अचानक अंजलि को देखा तो पूछा, ‘‘अमन नहीं आए? तुम अकेली ही आई हो?’’

अंजलि चुपचाप खड़ीखड़ी रोने लगी तो पापा ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ, अमन से झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘पापा मैं उस घर और अमन को छोड़ आई हूं. अब वापस नहीं जाऊंगी,’’ कहते हुए अंजलि अपनी मम्मी से मिलने उन के कमरे में चली गई.

इधर अमन जब 2 दिनों बाद रात को 12 बजे वापस घर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला देख कर सोच में पड़ गया कि इस समय अंजलि कहां जा सकती है. कहीं उसे सब पता तो नहीं चल गया? नहींनहीं यह संभव नहीं है. जरूर अपने पापा के घर गई होगी. पर बता तो सकती थी. फिर उस ने सोचा हो सकता है उस ने फोन किया हो. फोन चार्ज ही नहीं था तो मुझ से बात कैसे होगी? अभी फोन करना भी ठीक नहीं है. चलो सुबह औफिस जाते समय पहले उस के पापा के घर चला जाऊंगा. 2 दिनों का थका अमन ऐसा सोया कि सुबह 10 बजे नींद खुली. घड़ी देखते ही अमन सब भूल कर औफिस भागा. औफिस में उसे मिला अंजलि का पत्र. पत्र पढ़ते ही उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह उलटे पैरों अंजलि के पापा के घर पहुंचा. उस ने अंजलि को समझाने की कोशिश की पर वह कुछ नहीं सुनना चाहती थी. लाचार अमन घर लौट गया. ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.

एक दिन दोपहर में घर की घंटी बजी तो अंजलि ने दरवाजा खोला. बाहर एक सुंदर सी महिला खड़ी थी. दरवाजा खुलते ही उस ने अपना परिचय दिया, ‘‘मैं अमन की…’’

अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अंजलि भड़क उठी, ‘‘अच्छा तो तुम हो वह लड़की जिस के लिए अमन ने मुझे धोखा दिया. तुम्हारी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी… यहां तक चली आई. बोलो क्या कहना है? तलाक के कागज लाई हो क्या?’’

महिला अंदर आ कर थोड़ी देर तक चुपचाप बैठी सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बात थोड़ी लंबी है. आराम से सुनो. मैं दावे से कहती हूं कि पूरी बात सुन कर तुम्हारा गुस्सा गायब हो जाएगा और तुम अमन से मिलने दौड़ पड़ोगी.’’

‘‘अच्छा तो कहिए क्या कहानी बना कर लाई हैं आप?’’

अंजलि की बात का बुरा न मान कर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं अमन और रमन की बड़ी बहन हूं…’’

उस की बात काट कर अंजलि चिल्लाई, ‘‘झूठ बोल रही हो तुम. अमन और रमन की कोई बहन नहीं है. होती तो मुझे बताते नहीं? छिपाते क्यों?’’

‘‘न बताने की कोई मजबूरी रही होगी.’’

‘‘ऐसी भी क्या मजबूरी कि बहन को बहन न कह सके. होटल में रखा अपनी पत्नी तक से उस के बारे में छिपाया?’’ अंजलि गुस्से से कांपते हुए बोली.

लगता है आज बरसों पुराना राज खोलना ही पड़ेगा, सोच वह बोली ‘‘मैं, अमन व रमन तीनों सगे भाईबहन हैं. एक दुर्घटना में मम्मीपापा की मृत्यु के बाद हमारा कोई सहारा न था. मैं 15 वर्ष की थी, रमन 5 और अमन 3 साल का. घर तो अपना था पर बाकी खर्चों के लिए मुझे नौकरी करनी ही थी. नौकरी तो क्या मिलती, पेट की भूख ने मुझे कौल गर्ल बना दिया. फिर एक सेठजी की निगाहें मेरी सुंदरता पर पड़ीं और उन्होंने मुझे एक अलग घर में रख दिया. बदले में उन्होंने मेरा और परिवार का पूरा खर्च भी उठाया पर इस शर्त पर कि मैं अपने भाइयों से कभी नहीं मिलूंगी. बस उन की बन कर रहूंगी. मैं ने उन की शर्त मान ली और उन्होंने मेरे भाइयों को पढ़ालिखा कर नौकरी भी दिलवाई. आज उन का समाज में एक नाम है तो उन्हीं के कारण.’’

‘‘ठीक है पर मैं कैसे मान लूं कि आप सही बोल रही हैं?’’ अंजलि ने पूछा, तब उस महिला ने अपने पर्स से एक फोटो निकाल कर दिखाया. उस में अमन व रमन के अलावा अंजलि के सासससुर और वह महिला भी साफ दिखाई दे रही थी. शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

फिर भी अंजलि ने पूछा, ‘‘जब अब तक सामने नहीं आईं, अपने भाइयों से दूर रहीं तो अब क्यों हमारी जिंदगी में आग लगाने आ गईं?’’

‘‘ठीक कहती हो तुम. आग ही तो लगा दी है मैं ने तुम सब की जिंदगी में…विश्वास करो मैं तो यों ही गुमनाम मर जाना चाहती थी पर सेठजी नहीं माने. जब डाक्टर ने उन से साफसाफ बता दिया कि अब वे महीना 2 महीने के ही मेहमान हैं तो उन्हें मेरी चिंता हुई. अपने घर तो वे ले नहीं जा सकते थे, इसलिए अमन व रमन को बुला कर सारी बात बताई और मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कहा, क्योंकि मरने से पहले वे मेरी सारी जिम्मेदारी भाइयों को सौंप कर निश्चिंत होना चाहते थे. मैं ने तो मना किया था, पर वे नहीं माने, क्योंकि मैं कैंसर की लास्ट स्टेज पर हूं. मुझे देखभाल की जरूरत है. वैसे वे एक बड़ी धनराशि मेरे नाम छोड़ गए हैं. तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ेगा. तुम्हें परेशानी नहीं हो इसीलिए तो मैं घर भी नहीं आई. मैं वादा करती हूं कि अपनी परछाईं तक तुम लोगों पर नहीं पड़ने दूंगी. बस तुम अपने घर चली जाओ.’’

पूरी बात सुन कर अंजलि ने उठ कर अपनी ननद सीमा के पैर छुए और कहा, ‘‘अगर अमन पहले ही सब सचसच बता देते तो बात इतनी बढ़ती ही नहीं. खैर, अब आप वहीं करेंगी जो मैं कहूंगी,’’ और फिर अपनी जेठानी को फोन कर अपने पापा के घर बुला लिया.

दोनों मिल कर कुछ कार्यक्रम बना अपनेअपने घर चली गईं. अंजलि को वापस आया देख कर अमन बहुत खुश हुआ. उस ने अपनी भाभी को अंजलि को वापस घर लाने के लिए धन्यवाद भी दिया मगर उसे क्या मालूम कि अंजलि अपनी मरजी से घर आई है.

2 दिनों बाद ही राखी थी. अंजलि ने अमन को आधे दिन की छुट्टी ले कर लंच में घर आने को कहा. अपने जेठ और जेठानी को भी खाने पर घर बुलाया. बाजार से सुंदर राखियां खरीदीं और थाली सजा कर सब का इंतजार करने लगी.

अमन और रमन एकसाथ ही घर पहुंचे जबकि मीता सुबह ही घर आ गई थी. अमन और रमन अंदर घुसते ही हैरान हो गए. घर अच्छी तरह से सजा हुआ था. टेबल पर एक थाली में राखियां देख कर दोनों ने एकदूसरे को देखा, फिर अंजलि से पूछा, ‘‘क्या है ये सब?’’

‘‘आप लोग राखी के दिन हमेशा उदास हो जाते थे तो हम ने आप की उदासी दूर करने के लिए एक ननद बना ली है. आइए दीदी, अपने भाइयों को राखी बांधिए.’’

अंदर से अपनी बहन को आता देख कर दोनों भाई एकदम से घबरा गए. जब अंजलि और मीता ने उन से कहा, ‘‘आप क्या समझते थे हमें पता नहीं लगेगा? हम आप से बहुत नाराज हैं. हमें बताया क्यों नहीं? हमें पराया ही समझते रहे आप दोनों. अपना घर होते हुए भी अपनी बहन को होटल में रखा.’’

इतना सुनते ही दोनों भाइयों की जान में जान आई. दोनों ने अंजलि और मीता से माफी मांगी. सीमा ने खुश हो कर अमन व रमन को राखी बांधी.

अंजलि और सीमा ने कहा, ‘‘बहनों को राखी बांधने पर कुछ देना भी पड़ता है याद है कि नहीं? अमन व रमन दोनों अपनी जेबें टटोलने लगे तो सीमा दीदी ने दोनों के हाथ पकड़ कर अपने माथे से लगा कर रुंधे गले से कहा, ‘‘आज तो मुझे इस जीवन का अमूल्य उपहार मिला है. आज मुझे मेरा मायका मिल गया. अब मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है. तुम सब के साथ बाकी बचा जीवन चैन से बिताऊंगी और चैन से मरूंगी,’’ और फिर अंजलि का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा यह एहसान मैं जीवन भर नहीं भूलूंगी. तुम ने मुझे खुले दिल से स्वीकार कर मुझे सारी खुशियां दे दीं.’’

आज सब के चेहरे पर सच्ची खुशी फैली थी. इस वर्ष का रक्षाबंधन जीवन का यादगार दिन बन गया. वर्षों बाद अमन व रमन की सूनी कलाइयां फिर से सज गई थीं.

आयरन की कमी को न करें अनदेखा, इस तरह रखें अपना ख्याल

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कामकाजी महिलाएं हों या गृहिणियां हमेशा अपने स्वास्थ्य को इग्नोर  रती हैं. वे दिन भर इतनी व्यस्त रहती है कि उन्हें खुद पर ध्यान देने का मौका ही नहीं मिलता.

कई बार उन्हें थकान महसूस होती है, मगर ज्यादा काम का बहाना बना कर वे उसे नजरअंदाज कर देती हैं. जबकि अकसर थकान का आभास होना शरीर में आयरन की कमी होने का संकेत होता है. यदि ज्यादा समय तक इस स्थिति को नजरअंदाज किया जाए तो धीरेधीरे शरीर में खून की कमी होने लगती है और महिलाएं ऐनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं. उन के हीमोग्लोबिन का स्तर नीचे चला जाता है. ऐसे में छोटी से छोटी बीमारी से भी उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है.

आयरन की कमी पड़ सकती है भारी

दरअसल ऐनीमिया एक बड़ी समस्या है. इस से भारत ही नहीं, पूरा विश्व जूझ रहा है. आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 3 महिलाओं में 1 महिला ऐनीमिक है. यह कमी 15 से 49 साल की महिलाओं में अधिक है. खून की कमी के दौरान अगर कोई महिला मां बनती है तो उस का बच्चा भी ऐनीमिक हो जाता है.

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इस से यह पता चलता है कि हमारे देश में आयरन और फौलिक ऐसिड सप्लिमैंट की कितनी आवश्यकता है. व्यस्त महिलाएं न तो समय पर भोजन करती हैं और न ही सही डाइट लेती हैं. उन्हें लगता है कि समय के साथसाथ जब उन्हें आराम मिलेगा वे स्वस्थ हो जाएंगी. पर क्या वह ऐसा कर पाती हैं? नहीं, उन का आत्मविश्वास जवाब देने लगता है. कई बार तो वे थकान भरे चेहरे को छिपाने के लिए मेकअप का भी सहारा लेती हैं. अगर कोई उन के थकान भरे चेहरे का जिक्र करता भी है तो वे कुछ कह कर टाल देती है, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता है कि आखिर उन में कमी क्या है और वे अपने स्वस्थ्य को इग्नोर करती जाती हैं.

वैज्ञानिक मानते हैं कि महिलाओं में थकान पुरुषों की अपेक्षा 3 गुना अधिक होती है और उन की यह थकान उन के लिए एक अलार्म है कि उन के शरीर में आयरन की कमी हो रही है.

इस बारे में मुंबई की क्रेनियो थेरैपिस्ट

डा. मीता बाली बताती हैं कि अधिकतर महिलाएं बच्चे होने के बाद अपनी जिम्मेदारी केवल बच्चों की परवरिश और पति की देखभाल को ही समझती हैं. जब वे गर्भवती होती हैं तब डाक्टर के अनुसार दवा लेती हैं, लेकिन ज्यों ही बच्चा जन्म लेता है, वे अपना ध्यान बच्चे पर कंद्रित कर देती हैं और अपने की अनदेखी करती हैं.

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उन्हें अपना खयाल तब आता है जब वे थकान महसूस करती हैं. कुछ महिलाएं तो मानसिक रूप से इतनी डिप्रैस्ड होती हैं कि वे अपनी थकान के लिए अपने पति और परिवार वालों को दोषी मानती हैं और उन्हें अपनी परेशानियां नहीं बताती.

मीता बताती हैं कि महिलाएं परिवार की केंद्र बिंदु हैं, उन्हें अपनी समस्या पति और परिवार वालों से कह देनी चाहिए ताकि वे भी उन के काम में हाथ बंटाएं, क्योंकि उन के बीमार होने पर पूरा परिवार परेशान होता है. अगर महिलाएं अपनेआप को थोड़ा समय दें. साल में

1 बार अपनी जांच करवाएं तो अपने अंदर  विटामिन और मिनरल की कमी को जान कर वे आसानी से सप्लिमैंट ले सकती हैं. अगर वे ऐसा कम उम्र से शुरू कर देती हैं तो 50 के बाद भी वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ महसूस कर सकती हैं.

आयरन की कमी के मुख्य लक्ष

महिलाओं में आयरन की कमी के कई कारण होते हैं जिन से उन्हें थकान महसूस होती है. वैसे थकान सामान्य समस्या है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं इस के प्रारंभिक लक्षण निम्न है:

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  • किसी काम में मन न लगना.
  • दिन के अंत में उदासी छा जाना या थक जाना.
  • बारबार लेटने की इच्छा होना.
  • खाना खाने की इच्छा न होना.
  • अधिक थकान होने पर जी मचलना.
  • त्वचा का बेजान होना, चेहरे पर पीलापन आना, जिसे महिलाएं काम के बोझ की वजह से स्पा न जा सकने की वजह समझती हैं.
  • बिना वजह चिडचिडापन होना.
  • पीरियड्स में रक्तस्राव का बढ़ जाना.
  • नाखूनों का टूटना.
  • बालों का झड़ना.

थकान की कई वजहें हो सकती हैं जिन्हें समय रहते डाक्टर के पास जा कर जांच करवा  लेना आवश्यक है, कुछ वजहें निम्न हैं:

अधिक थकान से सिरदर्द और कमजोरी के चलते चेहरे की ताजगी का लुप्त हो जाना.

थकान की वजह कई बार शारीरिक न हो कर मानसिक भी होती है, इसलिए जीवनशैली पर ध्यान देने की जरुरत होती है.

ऐसे करें आयरन की कमी पूरी

-अपने खानपान में आयरन युक्त आहार लेने के साथसाथ महिलाएं बाजार में उपलब्ध आयरन सप्लिमैंट्स का भी प्रयोग कर सकती हैं. इस के अलावा निम्न बातों का भी ध्यान रखें:

-पुरुषों से अधिक महिलाओं में आयरन की कमी देखी जाती है. शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से ऐनीमिया होता है. लाल रक्त कोशिकाएं मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती हैं. इस में आयरन युक्त भोजन लेने की जरूरत होती है. भोजन में खासकर हरी पत्तेदार सब्जियां, चुकंदर, कद्दू, शकरकंदी, नारियल, सोयाबीन आदि जरूर शामिल हों. अगर यह संभव नहीं हैं, तो सप्लिमैंट की जरूरत पड़ती है.

-फौलिक ऐसिड की कमी से भी महिलाएं थकान महसूस करती हैं. फौलिक ऐसिड नई कोशिकाओं को विकसित करता है. यह हर महिला के लिए जरूरी होता है. खासकर गर्भावस्था में आयरन और फौलिक ऐसिड बच्चे के विकास में काफी सहायक होता है. इस से शिशु का मस्तिष्क और स्पाइनल कौड का विकास अच्छा होता है, फौलिक ऐसिड हर महिला के भोजन में होनी चाहिए, हर उम्र में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और ऐनीमिया से बचाव के लिए यह जरूरी होता है.

फौलिक ऐसिड महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर और कोलोन कैंसर की आशंका को कम करता है.

-आयरन और फौलिक ऐसिड प्राकृतिक रूप से पाने के लिए सही मात्रा में हरी पत्तेदार सब्जियां, साबूत दालें और फल खाने की जरूरत होती है.

आयरन और फौलिक ऐसिड की कमी से शरीर का मैटाबोलिज्म सही तरीके से काम नहीं करता, जिस के कारण पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने की वजह से शरीर की ऊर्जा तेजी से खत्म हो जाती है और महिलाएं थकान महसूस करती हैं. लेकिन महिलाएं यह नहीं समझतीं. उन्हें लगता है कि बच्चे के पीछे भागतेभागते उन की यह हालत हो रही है. जब तक वे यह बात समझती हैं तब तक बहुत देर हो गई होती है.

कई कंपनियों में रात की शिफ्ट में भी महिलाएं काम करती हैं और सुबह घर की देखभाल. ऐसे में उन्हें सही समय पर पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता और वे थकान महसूस करती हैं.

पीरियड्स के दौरान रक्तस्राव की वजह से आयरन की कमी महिलाओं में अधिक होती है. यह एक बड़ी वजह है, पर वे इस पर ध्यान नहीं देतीं, जबकि उन्हें आयरन सप्लिमैंट लेने की जरूरत होती है.

थकान को केवल उम्रदराज महिलाएं ही नहीं, बल्कि 20 से 30 साल की उम्र वाली भी फेस करती हैं. थोड़ा सा काम करने पर थक जाती हैं, व्यायाम नहीं कर सकतीं, कहीं आनेजाने से बचती हैं. ये सारी वजहें उन की जीवनशैली और खानपान पर आधारित होती हैं, जिन्हें ठीक करना आवश्यक होता है.

शाकाहारी महिलाओं में यह कमी अधिक होती है. इस से बचने और शरीर में आयरन की सही मात्रा बनाए रखने के लिए डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट लेने से महिलाएं रोजरोज की थकान से मुक्ति पा सकती हैं.

परछाई- भाग 1: मायका या ससुराल, क्या था माही का फैसला?

माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था.

माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब? भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने

भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.

उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.

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भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.

भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.

भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’

‘और लोग कुछ नहीं होते?’

‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.

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ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.

धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.

‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’

‘खाने में क्या बनाऊं…’

‘भाभी से पूछ लो.’

सास भी बड़ी बहू से पूछे बिना कुछ न करतीं. उसे सब प्यार करते पर महत्त्व बड़ी को ही देते. जेठानी के साथ समझौता करना उसे अच्छा नहीं लगता था. जेठानी उस का रुख समझ कर बहुत संभल कर चलतीं पर कुछ न कुछ हो ही जाता. जेठजेठानी कहीं जाते तो बच्चे घर छोड़ जाते. बच्चों की चाचा के साथ घूमने की आदत तो पहले से ही थी. अब चाची भी आ गईं. तो क्या… वे दोनों कहीं भी जाना चाहते तो दोनों बच्चे भी उन के साथ लग लेते. वह विभव पर भुनभुनाती, ‘नई शादी हमारी हुई है या जेठजेठानी की? वे दोनों तो अकेले जाते हैं और हमारे साथ ये दोनों लग लेते हैं.’

‘तो क्या हुआ माही… उन्हें इस बात की समझ थोड़े ही है… बच्चे ही तो हैं.’

‘ये ऐसे ही हमारे साथ जाते रहे तो जब तक ये बड़े होंगे तब तक हम बूढ़े हो जाएंगे…’

‘अरे, जब हमारे चुनमुन होंगे तो उन्हें भाभी संभालेगी तब हम खूब अकेले घूमेंगे.’

‘जरूर संभालेंगी… अपने तो संभलते नहीं…’

जेठानी उस का मूड समझ कर बच्चों को जबरन रोकतीं. न मानने पर 1-2 थप्पड़ तक जड़ देतीं. बच्चे रोते तो उन्हें रोता देख कर विभव का मूड खराब हो जाता. और विभव का खराब मूड देख कर उस का मूड खराब हो जाता और जाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता. उसे जेठानी पर तब और भी गुस्सा आता. लेकिन जिन बातों में वह जेठानी के साथ समझौता नहीं करना चाहती थी, उन्हीं बातों में भाभी के साथ समझौता करने की कोशिश करती. उन्हें खुश रखने का प्रयास करती ताकि उन के साथ संबंध अच्छे बने रहें.

एक मुलाकात: अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसी सपना के साथ क्या

सपना से मेरी मुलाकात दिल्ली में कमानी औडिटोरियम में हुई थी. वह मेरे बगल वाली सीट पर बैठी नाटक देख रही थी. बातोंबातों में उस ने बताया कि उस के मामा थिएटर करते हैं और वह उन्हीं के आग्रह पर आई है. वह एमएससी कर रही थी. मैं ने भी अपना परिचय दिया. 3 घंटे के शो के दौरान हम दोनों कहीं से नहीं लगे कि पहली बार एकदूसरे से मिल रहे हैं. सपना तो इतनी बिंदास लगी कि बेहिचक उस ने मुझे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया.

एक सप्ताह गुजर गया. पढ़ाई में व्यस्तता के चलते मुझे सपना का खयाल ही नहीं आया. एक दिन अनायास मोबाइल से खेलते सपना का नंबर नाम के साथ आया, तो वह मेरे जेहन में तैर गई. मैं ने उत्सुकतावश सपना का नंबर मिलाया.

‘हैलो, सपना.’

‘हां, कौन?’

‘मैं सुमित.’

सपना ने अपनी याद्दाश्त पर जोर दिया तो उसे सहसा याद आया, ‘सुमित नाटक वाले.’

‘ऐसा मत कहो भई, मैं नाटक में अपना कैरियर बनाने वाला नहीं,’ मैं हंस कर बोला.

‘माफ करना, मेरे मुंह से ऐसे ही निकल गया,’ उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.

‘ओकेओके,’ मैं ने टाला.

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‘फोन करती, पर क्या करूं 15 दिन बाद फर्स्ट ईयर के पेपर हैं.’ उस के स्वर से लाचारी स्पष्ट झलक रही थी.

‘किस का फोन था?’ मां ने पूछा.

‘मेरे एक फ्रैंड सुमित का. पिछले हफ्ते मैं उस से मिली थी.’ सपना ने मां को याद दिलाया.

‘क्या करता है वह?’ मां ने पूछा.

‘यूपीपीसीएस की तैयारी कर रहा है दिल्ली में रह कर.’

‘दिल्ली क्या आईएएस के लिए आया था? इस का मतलब वह भी यूपी का होगा.’

‘हां,’ मैं ने जान छुड़ानी चाही.

एक महीने बाद सपना मुझे करोल बाग में खरीदारी करते दिखी. उस के साथ एक अधेड़ उम्र की महिला भी थीं. मां के अलावा और कौन हो सकता है? मैं कोई निर्णय लेता, सपना ने मुझे देख लिया.

‘सुमित,’ उस ने मुझे आवाज दी. मैं क्षणांश लज्जासंकोच से झिझक गया, लेकिन सपना की पहल से मुझे बल मिला. मैं उस के करीब आया.

‘मम्मी, यही है सुमित,’ सपना मुसकरा कर बोली.

मैं ने उन्हें नमस्कार किया.

‘कहां के रहने वाले हो,’ सपना की मां ने पूछा.

‘जौनपुर.’

‘ब्राह्मण हो?’

मैं ब्राह्मण था तो बुरा भी नहीं लगा, लेकिन अगर दूसरी जाति का होता तो? सोच कर अटपटा सा लगा. खैर, पुराने खयालातों की थीं, इसलिए मैं ने ज्यादा दिमाग नहीं खपाया. लोग दिल्ली रहें या अमेरिका, जातिगत बदलाव भले ही नई पीढ़ी अपना ले, मगर पुराने लोग अब भी उन्हीं संस्कारों से चिपके हैं. नई पीढ़ी को भी उसी सोच में ढालना चाहते हैं.

मैं ने उन के बारे में कुछ जानना नहीं चाहा. उलटे वही बताने लगीं, ‘हम गाजीपुर के ब्राह्मण हैं. सपना के पिता बैंक में चीफ मैनेजर हैं,’ सुन कर अच्छा भी लगा, बुरा भी. जाति की चर्चा किए बगैर भी अपना परिचय दिया जा सकता था.

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हम 2 साल तक एकदूसरे से मिलते रहे. मैं ने मन बना लिया था कि व्यवस्थित होने के बाद शादी सपना से ही करूंगा. सपना ने भले ही खुल कर जाहिर न किया हो, लेकिन उस के मन को पढ़ना कोई मुश्किल काम न था.

मैं यूपीपीसीएस में चुन लिया गया. सपना ने एमएससी कर ली. यही अवसर था, जब सपना का हाथ मांगना मुझे मुनासिब लगा, क्योंकि एक हफ्ते बाद मुझे दिल्ली छोड़ देनी थी. सहारनपुर जौइनिंग के पहले किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था, ताकि अपने मातापिता को इस फैसले से अवगत करा सकूं. देर हुई तो पता चला कि उन्होंने कहीं और मेरी शादी तय कर दी, तो उन के दिल को ठेस पहुंचेगी. सपना को जब मैं ने अपनी सफलता की सूचना दी थी, तब उस ने अपने पिता से मिलने के लिए मुझे कहा था. मुझे तब समय नहीं मिला था, लेकिन आज मिला है.

मैं अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी.

‘कौन?’ मैं शर्ट पहनते हुए बोला.

‘सपना,’ मेरी खुशियों को मानो पर लग गए.

‘अंदर चली आओ,’ कमीज के बटन बंद करते हुए मैं बोला, ‘आज मैं तुम्हारे ही घर जा रहा हूं.’

सपना ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं ने महसूस किया कि वह उदास थी. उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस के हाथ में कुछ कार्ड्स थे. उस ने एक मेरी तरफ बढ़ाया.

‘यह क्या है?’ मैं उलटपुलट कर देखने लगा.

‘खोल कर पढ़ लो,’ सपना बुझे मन से बोली.

मुझे समझते देर न लगी कि यह सपना की शादी का कार्ड है. आज से 20 दिन बाद गाजीपुर में उस की शादी होने वाली है. मेरा दिल बैठ गया. किसी तरह साहस बटोर कर मैं ने पूछा, ‘एक बार मुझ से  पूछ तो लिया होता.’

‘क्या पूछती,’ वह फट पड़ी, ‘तुम मेरे कौन हो जो पूछूं.’ उस की आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे. मुझे सपना का अपने प्रति बेइंतहा मुहब्बत का प्रमाण मिल चुका था. फिर ऐसी कौन सी मजबूरी आ पड़ी, जिस के चलते सपना ने अपनी मुहब्बत का गला घोंटा.

‘मम्मीपापा तुम से शादी के लिए तैयार थे, परंतु…’ वह चुप हो गई. मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. मैं सबकुछ जानना चाहता था.

‘बोलो, बोलो सपना, चुप क्यों हो गई. क्या कमी थी मुझ में, जो तुम्हारे मातापिता ने मुझे नापसंद कर दिया.’ मैं जज्बाती हो गया.

भरे कंठ से वह बोली, ‘जौनपुर में पापा की रिश्तेदारी है. उन्होंने ही तुम्हारे परिवार व खानदान का पता लगवाया.’

‘क्या पता चला?’

‘तुम अनाथालय से गोद लिए पुत्र हो, तुम्हारी जाति व खानदान का कुछ पता नहीं.’

‘हां, यह सत्य है कि मैं अपने मातापिता का दत्तक पुत्र हूं, मगर हूं तो एक इंसान.’

‘मेरे मातापिता मानने को तैयार नहीं.’

‘तुम क्या चाहती हो,’ मैं ने ‘तुम’ पर जोर दिया. सपना ने नजरें झुका लीं. मैं समझ गया कि सपना को जैसा मैं समझ रहा था, वह वैसी नहीं थी.

वह चली गई. पहली बार मुझे अपनेआप व उन मातापिता से नफरत हुई, जो मुझे पैदा कर के गटर में सड़ने के लिए छोड़ गए. गटर इसलिए कहूंगा कि मैं उस समाज का हिस्सा हूं जो अतीत में जीता है. भावावेश के चलते मेरा गला रुंध गया. चाह कर भी मैं रो न सका.

आहिस्ताआहिस्ता मैं सपना के दिए घाव से उबरने लगा. मेरी शादी हो गई. मेरी बीवी भले ही सुंदर नहीं थी तथापि उस ने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि मेरे खून को ले कर उसे कोई मलाल है. उलटे मैं ने ही इस प्रसंग को छेड़ कर उस का मन टटोलना चाहा तो वह हंस कर कहती, ‘मैं सात जन्मों तक आप को ही चाहूंगी.’ मैं भावविभोर हो उसे अपने सीने से लगा लेता. सपना ने जहां मेरे आत्मबल को तोड़ा, वहीं मेरी बीवी मेरी संबल थी.

आज 18 नवंबर था. मन कुछ सोच कर सुबह से ही खिन्न था. इसी दिन सपना ने अपनी शादी का कार्ड मुझे दिया था. कितनी बेरहमी के साथ उस ने मेरे अरमानों का कत्ल किया था. मैं उस की बेवफाई आज भी नहीं भूला था, जबकि उस बात को लगभग 10 साल हो गए थे. औरत अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलती और पुरुष अपनी पहली बेवफाई.

कोर्ट का समय शुरू हुआ. पुराने केसों की एक फाइल मेरे सामने पड़ी थी. गाजीपुर आए मुझे एक महीने से ऊपर हो गया. इस केस की यह पहली तारीख थी. मैं उसे पढ़ने लगा. सपना बनाम सुधीर पांडेय. तलाक का मुकदमा था, जिस में वादी सपना ने अपने पति पर शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगा कर तलाक व भरणपोषण की मांग की थी.

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सपना का नाम पढ़ कर मुझे शंका हुई. फिर सोचा, ‘होगी कोई सपना.’ तारीख पर दोनों मौजूद थे. मैं ने दोनों को अदालत में हाजिर होने का हुक्म दिया. मेरी शंका गलत साबित नहीं हुई. वह सपना ही थी. कैसी थी, कैसी हो गई. मेरा मन उदास हो गया. गुलाब की तरह खिले चेहरे को मानो बेरहमी से मसल दिया गया हो. उस ने मुझे पहचान लिया. इसलिए निगाहें नीची कर लीं. भावनाओं के उमड़ते ज्वार को मैं ने किसी तरह शांत किया.

‘‘सर, पिछले 4 साल से यह केस चल रहा है. मेरी मुवक्किल तलाक के साथ भरणपोषण की मांग कर रही है.’’

दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद लंच के दौरान मैं ने सपना को अपने केबिन में बुलाया. वह आना नहीं चाह रही थी, फिर भी आई.

‘‘सपना, क्या तुम सचमुच तलाक चाहती हो?’’ उस की निगाहें झुकी हुई थीं. मैं ने पुन: अपना वाक्य दोहराया. कायदेकानून से हट कर मेरी हमेशा कोशिश रही कि ऐसे मामलों में दोनों पक्षों को समझाबुझा कर एक किया जाए, क्योंकि तलाक का सब से बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है. वकीलों का क्या? वे आपस में मिल जाते हैं तथा बिलावजह मुकदमों को लंबित कर के अपनी रोजीरोटी कमाते हैं.

मुवक्किल समझता है कि ये हमारी तरफ से लड़ रहे हैं, जबकि वे सिर्फ अपने पेट के लिए लड़ रहे होते हैं. सपना ने जब अपनी निगाहें ऊपर कीं, तो मैं ने देखा कि उस की आंखें आंसुओं से लबरेज थीं.

‘‘वह मेरे चरित्र पर शक करता था. किसी से बात नहीं करने देता था. मेरे पैरों में बेडि़यां बांध कर औफिस जाता, तभी खोलता जब उस की शारीरिक डिमांड होती. इनकार करने पर मारतापीटता,’’ सपना एक सांस में बोली.

यह सुन कर मेरा खून खौल गया. आदमी था कि हैवान, ‘‘तुम ने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई?’’

‘‘लिखवाती तब न जब उस के चंगुल से छूटती.’’

‘‘फिर कैसे छूटीं?’’

‘‘भाई आया था. उसी ने देखा, जोरजबरदस्ती की. पुलिस की धमकी दी, तब कहीं जा कर छूटी.’’

‘‘कितने साल उस के साथ रहीं?’’

‘‘सिर्फ 6 महीने. 3 साल मायके में रही, सोचा सुधर जाएगा. सुधरना तो दूर उस ने मेरी खोजखबर तक नहीं ली. उस की हैवानियत को ले कर पहले भी मैं भयभीत थी. मम्मीपापा को डर था कि वह मुझे मार डालेगा, इसलिए सुसराल नहीं भेजा.’’

‘‘उसे किसी मनोचिकित्सक को नहीं दिखाया?’’

‘‘मेरे चाहने से क्या होता? वैसे भी जन्मजात दोष को कोई भी दूर नहीं कर सकता.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘वह शुरू से ही शक्की प्रवृत्ति का था. उस पर मेरी खूबसूरती ने कोढ़ में खाज का काम किया. एकाध बार मैं ने उस के दोस्तों से हंस कर बात क्या कर ली, मानो उस पर बज्रपात हो गया. तभी से किसी न किसी बहाने मुझे टौर्चर करने लगा.’’

मैं कुछ सोच कर बोला, ‘‘तो अब तलाक ले कर रहोगी.’’ वह कुछ बोली नहीं. सिर नीचा कर लिया उस ने. मैं ने उसे सोचने व जवाब देने का मौका दिया.

‘‘अब इस के अलावा कोई चारा नहीं,’’ उस का स्वर अपेक्षाकृत धीमा था.

मैं ने उस की आंखों में वेदना के उमड़ते बादलों को देखा. उस दर्द, पीड़ा का एहसास किया जो प्राय: हर उस स्त्री को होती है. जो न चाहते हुए भी तलाक के लिए मजबूर होती है. जिंदगी जुआ है. यहां चाहने से कुछ नहीं मिलता. कभी मैं सपना की जगह था, आज सपना मेरी जगह है. मैं ने तो अपने को संभाल लिया. क्या सपना खुद को संभाल पाएगी? एक उसांस के साथ सपना को मैं ने बाहर जाने के लिए कहा.

मैं ने सपना के पति को भी बुलाया. देखने में वह सामान्य पुरुष लगा, परंतु जिस तरीके से उस ने सपना के चरित्र पर अनर्गल आरोप लगाए उस से मेरा मन खिन्न हो गया. अंतत: जब वह सपना के साथ सामंजस्य बिठा कर  रहने के लिए राजी नहीं हुआ तो मुझे यही लगा कि दोनों अलग हो जाएं. सिर्फ बच्चे के भरणपोषण को ले कर मामला अटका हुआ था.

मैं ने सपना से पूछा, ‘‘तुम्हें हर माह रुपए चाहिए या एकमुश्त रकम ले कर अलग होना चाहती हो,’’ सपना ने हर माह की हामी भरी.

मैं ने कहा, ‘‘हर माह रुपए आएंगे भी, नहीं भी आएंगे. नहीं  आएंगे तो तुम्हें अदालत की शरण लेनी पड़ेगी. यह हमेशा का लफड़ा है. बेहतर यही होगा कि एकमुश्त रकम ले कर अलग हो जाओ और अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ. तुम्हारी पारिवारिक पृष्ठभूमि संपन्न है. बेहतर है ऐसे आदमी से छुट्टी पाओ.’’ यह मेरी निजी राय थी.

5 लाख रुपए पर मामला निबट गया. अब दोनों के रास्ते अलग थे. सपना के मांबाप मेरी केबिन में आए. आभार व्यक्त करने के लिए उन के पास शब्द नहीं थे. उन के चेहरे से पश्चात्ताप की लकीरें स्पष्ट झलक रही थीं. मैं भी गमगीन था. सपना से अब पता नहीं कब भेंट होगी. उस के भविष्य को ले कर भी मैं उदिग्न था. न चाह कर भी कुछ कहने से खुद को रोक नहीं पाया, ‘‘सपना, तुम ने शादी करने से इसलिए इनकार कर दिया था कि मेरी जाति, खानदान का अतापता नहीं था. मैं अपने तथाकथित मातापिता का गोद लिया पुत्र था, पर जिस के मातापिता व खानदान का पता था उसे क्यों छोड़ दिया,’’ सब निरुत्तर थे.

सपना के पिता मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर भरे गले से बोले, ‘‘बेटा, मैं ने इंसान को पहचानने में गलती की, इसी का दंड भुगत रहा हूं. मुझे माफ कर दो,’’ उन की आंखों से अविरल अश्रुधार फूट पड़ी.

एक बेटी की पीड़ा का सहज अनुमान लगाया जा सकता था उस बाप के आंसुओं से, जिस ने बड़े लाड़प्यार से पालपोस कर उसे बड़ा किया था, पर अंधविश्वास को क्या कहें, इंसान यहीं हार जाता है. पंडेपुजारियों का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. सपना मेरी आंखों से ओझल हो गई और छोड़ गई एक सवाल, क्या उस के जीवन में भी सुबह होगी?

Manohar Kahaniya: इत्र की खुश्बू से नहीं छिपा 300 करोड़ का काला धन

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कानपुर के इत्र और पान मसाला कारोबारी पीयूष जैन के यहां टैक्स चोरी को ले कर हुई रेड में जितनी बड़ी तादाद में पैसा मिला, उसे देख कर यही लग रहा था कि यह किसी बौलीवुड फिल्म का दृश्य है. पीयूष जैन के पास यह पैसा कहां से आया, जांच में यह तो पता चल ही जाएगा लेकिन देश में पीयूष जैन सरीखे अनेक मगरमच्छ बैठे हैं. अगर विभाग के अधिकारी नजरें टेढ़ी करेंगे तो उन का भेद खुलने में समय नहीं लगेगा क्योंकि…

गुटखा खाने वाले किसी भी व्यक्ति को शायद ही पता हो कि उस के 5 रुपए वाले एक पाउच पर 3 रुपए के करीब सरकार को जीएसटी के रूप में टैक्स जाता है. पान मसाला बनाने वाले कारोबारी उसे ही चुराने की कोशिश में लगे रहते हैं, जो काफी सुनियोजित तरीके से होता है.

सरकार ने जीएसटी यानी गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स, जिसे हिंदी में वस्तु एवं सेवा कर कहा जाता है, की चोरी को रोकने के कई इंतजाम किए हैं. सरकार का एक डिपार्टमेंट ‘डायरेक्टोरेट जनरल औफ जीएसटी इंटेलीजेंस (डीजीजीआई)’ बनाया गया है. फिर भी कारोबारी इस टैक्स को चुराने का कोई न कोई तरीका निकाल ही लेते हैं.

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शुरुआत पाउच छापने वाली कंपनी से

अगस्त 2021 की बात है. कोविड-19 मामले कम होने पर अनलौक से मिली छूट के बाद छोटीबड़ी फैक्ट्रियों में काम शुरू हो चुका था. माल के प्रोडक्शन और सप्लाई के काम में भी तेजी आने लगी थी, फिर भी सरकार के पास जीएसटी की राशि में वृद्धि नहीं हो पा रही थी.

इसे देखते हुए सरकारें सख्त हुईं और जीएसटी विभाग से सवाल किया गया. फिर डीजीजीआई सक्रिय हुई और उस ने कंपनियों की जांच करने की योजना बनाई.

इसी सिलसिले में राजधानी दिल्ली में पान मसाला कंपनियों के लिए पैकेजिंग मटेरियल बनाने वाली यूफ्लेक्स कंपनी के यहां 10 अगस्त को डीजीजीआई के अधिकारी पहुंचे. वहां बड़ी मात्रा में गुटखे के पाउच (सैशे) बनते देख कर उन्हें काफी हैरानी हुई. वे काफी अचंभित हो गए, क्योंकि जिस अनुपात में गुटखे के पाउच और पैकिंग के दूसरे सामान प्रिंट हो रहे थे, उस की तुलना में सरकार को तैयार गुटखे से जीएसटी बहुत ही कम मिल रहा था.

दूसरी बात यह भी थी कि कोरोना से बचाव को ले कर कई जगहों पर गुटखा खाने और थूकने पर प्रतिबंध भी लगा हुआ था. उस के बाद डीजीजीआई की नजर गुटखा और उस से संबंधित मटेरियल सप्लाई करने वाली कंपनियों पर टिक गई.

उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि ये कंपनियां निश्चित तौर पर अधिक माल बना रही हैं और जीएसटी का पैसा धड़ल्ले से चुराने में लगी हुई हैं. उस के लिए उन्हें धर दबोचने और उन के ठिकानों पर रेड मारने के लिए बाकायदा टीम बनाई गई.

इस सिलसिले में शुरुआत मेरठ की उस कंपनी से हुई, जिस का पाउच प्रिंट हो रहा था. डीजीजीआई मेरठ की टीम ने बड़े कारोबारी और एसएनके पान मसाला के मालिक नवीन कुरेले और निदेशक अविनाश मोदी को गिरफ्तार कर लिया. उन की गिरफ्तारी जीएसटी एक्ट की धारा 132(1)ए के तहत की गई.

उस के 24 घंटे चली जांच के बाद की गई काररवाई में करीब 50 करोड़ रुपए की जीएसटी चोरी से जुड़ा मामला सामने आया. हालांकि इस मामले में कई और लोगों की गिरफ्तारी हुई. जीएसटी लागू होने के

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बाद किसी बड़े कारोबारी की शहर में पहली गिरफ्तारी थी, जो बेहद सनसनीखेत बन गई थी.

जीएसटी की धारा 132 से बड़ेबड़े कारोबारी घबराते हैं. कारण केवल इसी ऐक्ट के तहत जीएसटी अफसरों को गिरफ्तारी का अधिकार मिला हुआ है. बड़े पान मसाला कारोबारी नवीन कुरेले और अविनाश मोदी की गिरफ्तारी इसी ऐक्ट के उल्लंघन के कारण हुई थी. उन पर करीब 75 करोड़ रुपए के मैटेरियल की बिक्री बगैर इनवायस के बेचने के आरोप लगाए गए थे.

गुटखा लदा ट्रक बना जरिया

फिर क्या था, डीजीजीआई टीम ने पान मसाला और गुटखा के गढ़ कानपुर का रुख कर लिया था, लेकिन उन्होंने देशभर में ट्रांसपोर्ट के ट्रकों की चैकिंग में भी सख्ती बढ़ा दी थी. व्यापार के केंद्र गुजरात में हर नाके और चैकिंग पोस्ट पर सक्रियता बनी हुई थी.

अहमदाबाद में चैकपोस्ट पर रुके ट्रक पर जरूरत से अधिक लदे माल को देख कर एक सिपाही ने ड्राइवर को टोका, ‘‘तुम्हारा ट्रक इतना ओवरलोड क्यों है? गाड़ी के वजन की रसीद दिखाओ. माल के बाकी पेपर भी लाओ.’’

‘‘जी, अभी दिखाता हूं,’’ यह कहते हुए ट्रक ड्राइवर ने अपनी सीट के बगल में रखे थैले में से कागजातों से भरी एक फाइल निकाली और सिपाही को पकड़ा दी.

‘‘लीजिए देखिए, सारे पेपर इसी में हैं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. तुम नीचे आओ.’’ सिपाही फाइल ले कर बोला और चैकपोस्ट के पास कुरसियों पर बैठे 3 पुलिसकर्मियों के पास जा कर फाइल पकड़ा कर बोला, ‘‘सर, यह फाइल उस ड्राइवर के ट्रक की है. उस ने काफी ओवरलोड कर रखा है. पूरे ट्रक में कार्टन भरे हैं. कुछ पर लगे लेबल से लगता है उन में पान मसाला का माल है.’’

‘‘अच्छा,’’ कुरसी पर बैठे पुलिस वाले ने ट्रक की ओर नजर घुमाई. तब तक उस का ड्राइवर भी वहां आ चुका था.

‘‘तुम उस ट्रक के ड्राइवर हो? क्या माल है उस में?’’

‘‘मुझे क्या मालूम? सब कुछ फाइल के कागज में लिखा है.’’

पुलिसकर्मी फाइल से कागज निकाल कर एकएक कर पलटने लगे. एक पेपर पर नजर टिक गई. कुछ सेकेंड बाद बोले, ‘‘इस में तो केवल 30 बंडल ही लिखा है, लेकिन तुम्हारा ट्रक तो काफी भरा हुआ है. माल का बिल्टी भी नहीं है. चलो, अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाओ.’’ पुलिस अधिकारी ने कहा.

‘‘वह भी इसी फाइल में होगा. ठीक से देखिए न साहब,’’ ड्राइवर बोला.

अधिकारी ने उस की फाइल के भीतर बने एक पौकेट से ड्राइविंग लाइसैंस निकाल कर अपने पास रख लिया और कुरसी से उठ गए. उसे साथ चलने का इशारा कर ट्रक की ओर बढ़ गए. उन के पीछेपीछे 2 सिपाही भी चल पड़े.

ट्रक के पास पहुंच कर अपने सिपाहियों को उस पर लदा माल चैक करने को कहा. दोनों सिपाही ट्रक के पीछे से चढ़ गए. वहां जा कर उस ने कहा, ‘‘साहबजी, इस पर कुछ पेटियों में शिखर गुटखा का लेबल चिपका है, लेकिन कई कार्टन में कोई लेबल नहीं है. क्या करूं, दोनों तरह के कार्टन उतारूं क्या?’’

‘‘नहींनहीं, नीचे उतारने की जरूरत नहीं है. ट्रक को सीज कर लो.’’ अधिकारी ने कहा.

इतना कहना था कि ट्रक ड्राइवर हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘साहबजी, मुझे जाने दीजिए न. माल जल्दी मुंबई पहुंचाना है. वहां से वापस भी लौटना है.’’

‘‘तुम मालिक को फोन करो. इस में कइयों का जीएसटी कटा हुआ बिल भी नहीं है.’’ जांच अधिकारी बोले.

उस के बाद ट्रक पर लदे माल से ले कर उस से संबंधित तमाम आवश्यक सरकारी दस्तावेजों की जांच होने लगी.

गुजरात की जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी गणपति रोड कैरियर की संदिग्ध इनवाइस अधिकारियों के हाथ लगी थी, उस के संचालक प्रवीण जैन से बात हुई. उन का कहना था कि यह माल उन का नहीं है.

उसी रोज सितंबर 2021 के महीने में प्रवीण के घर पर छापेमारी हुई, जिस में उन के घर से 45 लाख रुपए और औफिस से 56 लाख रुपए की नकदी मिली. हालांकि प्रवीण जैन ने माल के जीएसटी की पूरी रकम फाइन के साथ चुका कर माल को बचा लिया.

उसी दौरान जीएसटी विभाग के सामने कई गलतफहमियां हो गईं. जिसे बोलचाल की भाषा में ‘डिजिटल एरर’ या ‘टाइपो मिस्टेक’ कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है.

‘पी’ अक्षर से शुरू होने वाले 3 नाम सामने आ गए थे, जिन में प्रवीण जैन, पीयूष जैन और समाजवादी पार्टी के पूर्व एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ पंपी जैन के थे. जैसा कि डिजिटल टेक्नोलौजी में होता है कि एक से मिलतेजुलते कई नाम अकसर सामने आ जाते है. जीएसटी विभाग के जांच करने वाले अधिकारियों के साथ भी ऐसा ही हुआ. तीनों जैन के नाम एक साथ मिलतेजुलते पते के साथ सामने आ गए.

जीएसटी विभाग आया ऐक्शन में

जीएसटी विभाग के अधिकारियों के सामने गलतफहमियां भले ही गहरा गई थीं, लेकिन ड्राइवर की वजह से देश में बड़े पैमाने पर होने वाली जीएसटी चोरी का राज खुलने की उम्मीद बन गई थी.

इसे देखते हुए विभाग ने पान मसाला से मिलने वाले टैक्स की चोरी के मामलों को उजागर करने के लिए छापेमारी और उन की जांच रीजनल इकोनौमिक इंटेलिजेंस कमेटी (आरईआईसी) को सौंपने की योजना बनाई.

वाणिज्य कर कमिश्नर द्वारा एडिशनल कमिश्नर ग्रेड-1 और एडिशनल कमिश्नर (एसआईबी) को निर्देश दिए गए. साथ ही आरईआईसी को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक फार्मेट भी बनाया गया.

तब तक पान मसाला की 5 कंपनियों पर छापेमारी हो चुकी थी, जो अधिकतर कानपुर के थे. यह पहला मौका था जब शीर्ष पान मसाला के कारोबार में टैक्स चोरी की जांच करने के लिए राज्य स्तरीय खुफिया एजेंसी से करवाने का फैसला लिया गया.

इस संबंध में बड़े अधिकारियों की ताबड़तोड़ बैठकें हुईं. पान मसाला फर्म में छापा मारने का समय, माल सीज करने की अनुमति, कंपनी के नाम का रजिस्ट्रैशन, उस के मालिक और डायरेक्टरों के नामपते आदि के साथसाथ पैन, टैन, डिन, आरओसी आदि के रजिस्ट्रैशन की तारीखें आदि की जानकारी जुटाने के काम सौंपे गए.

इस के अतिरिक्त टैक्स चोरी के तरीके क्याक्या हैं, नए रास्ते अपना कर टैक्स चोरी कैसे की जा रही है, इन पर खुफिया जांच समिति को रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए.

गुजरात में जीएसटी विभाग द्वारा पकड़े गए ट्रक में शिखर पान मसाला माल के साथ करीब 200 फरजी इनवाइस मिले थे. उस के बाद से ही डीजीजीआई की टीम ने कानपुर में डेरा डाल दिया था. इस में कई बड़े कारोबारी और समाजवादी पार्टी के पूर्व एमएलसी तक से तार जुड़ते नजर आ रहे थे. इस की वजह थी, उस कारोबारी ने ‘समाजवादी इत्र’ नाम का ब्रांड बाजार में उतारा था.

हालांकि फरजी इनवाइस और माल के साथ पकड़ा गया ट्रक गणपति ट्रांसपोर्ट प्रवीण जैन का था. प्रवीण का संबंध कानपुर के पीयूष जैन के भाई अमरीश जैन से है. वह उस के बहनोई हैं. उन के नाम करीब 40 से ज्यादा फर्म हैं. फरजी फर्म के नाम से इनवाइस शिखर गुटखा प्राइवेट लि. पता 51/47 नयागंज, कानपुर की ओर से काटी गई थी.

उस कंपनी के डायरेक्टर प्रदीप कुमार अग्रवाल और उन के भाई दीपक अग्रवाल हैं. वे भी जीएसटी विभाग के निशाने पर आ गए. फिर क्या था, 22 दिसंबर 2021 को डीजीजीआई अहमदाबाद की टीम ने नयागंज स्थित शिखर गुटखा और ट्रांसपोर्टर प्रवीण जैन के आनंदपुरी घर के साथसाथ औफिस में एक साथ छापेमारी की. वहीं उन्हें पीयूष जैन के पास भारी मात्रा में पैसा होने की जानकारी मिली.

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पीयूष जैन के घर छापेमारी

अगले रोज ही 23 दिसंबर, 2021 को पीयूष जैन को सूचना मिली कि डीजीजीआई की टीम कानपुर स्थित उन के घर छापा मारने पहुंच रही है. इस सूचना के बाद पीयूष जैन पहले ही फरार हो गए. पीयूष की पहचान और परिचय कारोबार जगत में इत्र कारोबारी के रूप में है.

वह सरल जीवन जीने वाले व्यक्ति हैं. उन के पास पुराने मौडल की फोरव्हीलर है, लेकिन कहीं भी आनाजाना स्कूटर के जरिए ही करते हैं. वे इत्र कारोबार के अलावा पान मसाला के सप्लायर भी हैं.

टीम ने जब छापेमारी शुरू की, तब अलमारियों में रखे नोटों के बंडल देख कर उन के होश उड़ गए और बंडलों के नोटों की गिनती करना मुश्किल हो गया. टीम के सामने नोटों का ढेर लग गया था. टीम के लोग जहां भी हाथ डालते, अलमारी खोलने से ले कर बैड और तहखाने तक की तलाशी लेने के लिए जाते, वहीं नोटों के बंडल मिलते.

इस की खबर जैसे ही मीडिया में आई तो लोगों के सामने कुछ साल पहले आई अजय देवगन अभिनीत फिल्म ‘रेड’ घूम गई. जिस घर में यह सब हो रहा था, उसे बेहद ही सुरक्षित बनाया गया था, बाउंड्री के ऊपर करंट दौड़ने के लिए नंगे तार लगाए गए थे. घर में गिनती के लोग ही रहते थे. महिला सदस्य कोई नहीं रहती थी.

टीम को जांच के दौरान जब पता चला कि पीयूष पान मसाला कंपनी को अपना एसेंस सप्लाई करते हैं. इस बिंदु को आधार मानते हुए पीयूष के आनंदपुरी और कन्नौज के छिपट्टी मोहल्ला स्थित पैतृक आवास पर भी छापेमारी की गई.

कानपुर से कागज में लिपटी ब्राउन टेप बंधी नोटों की गड्डियां निकलने लगीं, तो इस की जानकारी आयकर विभाग को भी दे दी गई. साथ ही स्टेट बैंक औफ इंडिया से अतिरिक्त नोट गिनने की मशीनें मंगाई गईं. वहीं, कन्नौज से अधिकारियों ने कानपुर सूचना भिजवाई कि कारोबारी के घर से किसी को भेजें, ताकि जांच शुरू की जा सके.

इस पर कारोबारी ने आपत्ति जताई और उस दिन शाम को अधिकारी लौट गए, लेकिन अगले ही दिन टीम ने पीयूष के दोनों बेटों प्रत्यूष जैन और प्रियांश जैन के साथ भाई अमरीश के बेटे मोलू को हिरासत में ले लिया. जांच टीम उन्हें ले कर कन्नौज रवाना हो गई.

प्रियांश, प्रत्यूष और मोलू को हिरासत में लिए जाने के बाद पीयूष जैन 24 दिसंबर की देर रात करीब 11 बजे घर पहुंचा. डीजीजीआई की टीम रात करीब ढाई बजे उसे भी हिरासत में ले कर अपने साथ ले गई. उसे काकादेव थाने लाया गया था. उसे देर रात 3 बजे के थाने में पुलिस हिरासत में रखने के लिए महिला हेल्पलाइन कक्ष में रखा गया था.

सर्दी को देखते हुए उस के लिए गद्दे और कंबल का इंतजाम भी किया गया था. हालांकि इस के बाद भी उसे फर्श पर लेट कर ही रात गुजारनी पड़ी. अगली सुबह

कड़ी सुरक्षा के बीच पीयूष को थाने से कोर्ट में पेश किया गया. इस से पहले एलएलआर अस्पताल में उस का मैडिकल भी करवा लिया गया था.

पीयूष ने कोर्ट में ऐसी अविश्वसनीय बात बताई, जिसे लोगों ने हास्यास्पद माना. उसे जीएसटी इंटेलीजेंस अहमदाबाद की टीम ने रिमांड मजिस्ट्रैट योगिता कुमार के न्यायालय में पेश किया था, जहां रिमांड मांगे जाने पर बचाव पक्ष ने कहा था कि जीएसटी इंटेलीजेंस ने गलत तरीके से गिरफ्तारी की है.

इस पर कोर्ट ने पीयूष जैन को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. कोर्ट में पीयूष ने स्वीकार कर लिया कि बरामद राशि उसी की है और उस ने टैक्स चोरी की हैं. साथ ही यह भी मांग की कि टैक्स का 52 करोड़  काट कर बाकी रुपया वापस कर दिया जाए.

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नोटों के बंडल देख कर टीम के उड़े होश

एक तरफ पीयूष की अदालत में पेशी हो रही थी, दूसरी तरफ घर से नोटों की बरामदगी का सिलसिला जारी था. नोट गिनने के लिए स्टेट बैंक औफ इंडिया के आधा दरजन से अधिक कर्मचारियों और नोट गिनने की मशीनें मंगवा ली गई थीं. साथ ही छापेमारी में मिले दस्तावेजों की गहन जांचपड़ताल भी चल रही थी. इस कड़ी में इत्र कारोबारी के 7 ठिकानों पर छापे मारे गए.

पीयूष जैन के कन्नौज स्थित एक घर को पूरी तरह से सीज कर लिया गया. उस घर में देर रात तक छापेमारी चलती रही, जो आगे भी लगातार दिनों तक चली. कन्नौज में ही पीयूष जैन के 3 परिसरों कानपुर में आवास, औफिस, पैट्रोल पंप और कोल्ड स्टोरेज पर जांच टीम ने छापे मारे. कानपुर के टीपी नगर और आनंदपुरी में बड़ी संख्या में दस्तावेज सीज किए गए.

टीम को हैरानी तब हुई, जब घर की दीवारों से नोट निकलने शुरू हो गए. टीम ने देर रात तक फर्श और दीवारें तोड़ने का काम किया. मानो किसी फिल्मी सीन को दोहराया जा रहा हो. और फिर जब दीवारें टूटीं तो सचमुच दृश्य हैरान कर देने वाला था.

पहली बार जब आनंदपुरी स्थित घर में कंटेनर ले जाया गया तो उस में नोटों से भरे 42 बक्से रखे गए. उस दिन रात 11 बजे तक कुल 42 बक्सों में 150 करोड़ रुपए से ज्यादा नकदी भर कर रिजर्व बैंक भेजी जा चुकी थी.

जांच चलती रही और नकदी निकलती रही, इस के साथ ही देखतेदेखते घर से करीब 280 करोड़ रुपए नकद बरामद हुए. टीम को कारोबारी के कन्नौज स्थित पैतृक घर से कुल 19 करोड़ रुपए नकद मिले. यह नकदी कन्नौज स्थित घर में 9 बोरों में रखी गई थी.

इस के अलावा जांच के अलगअलग दिनों में टीम को 21 करोड़ की कीमत वाले विदेशी मार्किंग वाले सोने के बिस्किट, ढाई क्विंटल चांदी और 25 किलोग्राम सोना और 6 करोड़ रुपए की कीमत का चंदन का तेल भी मिला.

इस बारे में लगातार हफ्ते भर तक तक मीडिया में तरहतरह की खबरें आती रहीं. उन में कुछ खबरें पीयूष जैन से संबंधित थीं, तो कुछ खबरें राजनीति गलियारे की थीं. यहां तक कि राजनीतिक जनसभाओं में भी यह मुद्दा काफी उछाला गया.

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस छापेमारी को डिजिटल एरर करार दिया, जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी तक इस पर टिप्पणी करने से नहीं चूके.

पीयूष जैन को जानने वाले अधिकतर लोगों को हैरानी हुई कि स्कूटर से चलने वाले एक आदमी के पास इतना बड़ा कुबेर जैसा खजाना कहां से आया. इतना सारा पैसा किस का है? नकदी के काले धन को छिपाने के लिए गजब का हथकंडा अपना रखा था, लेकिन उस का इस्तेमाल क्या था?

जीएसटी के जानकारों के अनुसार पान मसाला कारोबारी अपने माल को उन राज्यों में चोरीछिपे भेजते थे, जहां पान मसाला पूरी तरह से बैन किया गया था. आपूर्ति का भुगतान कैश में ले कर ट्रक से लाते थे.

इस पूरी प्रक्रिया में पीयूष जैन के घर का इस्तेमाल वैसे रकम रखने के लिए होता था. कानपुर से बरामद नोटों की गड्डियां छापेमारी से पहले 20 से 25 दिन के अंतराल में ही वहां लाई गई थीं.

इस जांच के साथसाथ टीम ने कन्नौज में 2 अन्य इत्र कारोबारियों रानू मिश्रा और विनीत गुप्ता के घर के साथसाथ फैक्ट्री में भी छापेमारी की. कचहरी टोला में रानू मिश्रा के जिस मुनीम के यहां टीम ने छापा मारा, वह भी पान मसाला कंपाउंड कारोबारी विनीत गुप्ता है, जो पहले कारोबारी रानू मिश्रा के यहां मुनीम हुआ करता था. लेकिन इन दिनों गुटखा कंपनी को कंपाउंड बेचने का कारोबार करता है.

पीयूष जैन के घर और प्रतिष्ठानों पर छापा मारे जाने के बाद इंटेलीजेंस टीम को करीब 280 करोड़ रुपए नकद बरामद हुए थे. उस के बाद कन्नौज में मारे गए छापे में वहां से भी 19 करोड़ कैश बरामद हुआ था. साथ पीयूष जैन के पास से 23 किलोग्राम सोना और 6 करोड़ की कीमत का चंदन का तेल मिला.

कुल संपत्ति का अनुमान 300 करोड़ रुपए से अधिक का लगाया गया है. सोना, नकदी, पान मसाला और इत्र की बातों के साथसाथ नोटों से भरा कमरा. गिनती करने वाली मशीनें, आतेजाते ट्रक और नोट भरने के लिए मंगवाए गए नएनए बडे़बड़े बक्से देख कर ऐसा लग रहा था मानो अजय देवगन की रेड मूवी का सीक्वल बन रहा हो.

पीयूष के ठिकानों पर 28 दिसंबर, 2021 की देर रात तक छापेमारी की काररवाई होती रही. उसी दिन की देर रात को पीयूष का बड़ा बेटा प्रत्यूष मीडिया से मुखातिब हुआ और न्याय मिलने की उम्मीद जताई.

पीयूष ने स्वीकारी जीएसटी चोरी की बात

पीयूष को हिरासत में लिए जाने के बाद 25 दिसंबर, 2021 को डीजीजीआई की टीम कानपुर के सर्वोदय नगर स्थित जीएसटी भवन ले कर गई. वहां पीयूष का ड्राइवर पिंटू आनंदपुरी घर से दवा ले कर गया. उस ने पूछताछ अधिकारी को बताया कि पीयूष को ब्रेन से जुड़ी बीमारी है.

पीयूष के घर न केवल करोड़ों की नकदी, बल्कि सोने के बिस्किट और बहुमूल्य चंदन का तेल भी बरामद हुआ था. कानपुर में हुई छापेमारी केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के इतिहास में सब से बड़ी छापेमारी थी.

इस पूरे मामले में कई सवाल उठ रहे थे. जैसे कि पीयूष जैन  के पास आखिर इतनी ज्यादा तादाद में नोट कैसे लाए जाते थे? बरामद नोटों का क्या स्रोत है? छापे की शुरुआत कैसे हुई? किनकिन लोगों पर अब तक छापेमारी की काररवाई हुई और क्या वाकई पीयूष जैन का समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से कोई संबंध है? या फिर उस के किसी दूसरे राजनीतिक दल से संबंध हैं?

इन्हीं सवालों को आधार मानते हुए कथा लिखे जाने तक डीजीजीआई जांच कर रही थी. यहां तक कि इस मामले को पुरातत्व विभाग यानी आर्कियोलौजिकल सर्वे

औफ इंडिया तथा आयकर विभाग को भी मामले की जांच सौंपने की बातें भी सामने आ रही थीं.

पीयूष जैन ने अपने बयान में इस बात को स्वीकार किया है कि उन की 3 कंपनियां ओडोकेम इंडस्ट्रीज, ओडोसिंथ इंक और फ्लोरा नैचुरल हैं. वे इस के जरिए ही परिवार के साथ कारोबार करते हैं. उन्होंने यह भी माना कि उन का धंधा गैरकानूनी ढंग से परफ्यूम के कंपाउंड्स की सप्लाई का रहा है और तीनों कंपनियों के माध्यम से जीएसटी की चोरी की है.

कोर्ट में यह कुबूले जाने पर उस के खिलाफ दिए आदेश में यह भी लिखा कि पीयूष जैन ने यह स्वीकार कर लिया है कि कानपुर के घर से बरामद और जब्त की गई राशि गैरकानूनी सप्लाई के धंधे से जुड़ी हुई है, जिस से पीयूष जैन और उन के भाई अंबरीश जैन को गैरकानूनी फायदा पहुंचा है.

जांच में उजागर हुए तथ्यों में पाया गया कि पीयूष जैन ने जीएसटी की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन करते हुए जीएसटी की चोरी की है. सही तरीके से टैक्स इनवाइस नहीं जारी किए थे. सही तरीके से अपने कारोबार से जुड़े एकाउंट्स और रिकौर्ड नहीं रखे हैं.

कंपनी में आने वाली सप्लाई और कंपनी से होने वाली सप्लाई की जानकारी नहीं दी है. टैक्स का सेल्फ असेसमेंट नहीं किया है और जीएसटी लागू होने वाले दर से टैक्स का भुगतान नहीं किया है.

जीएसटी की टैक्स चोरी की रकम 5 करोड़ से भी अधिक है. ऐसा करना जीएसटी ऐक्ट के तहत अपराध है, जिस की 5 साल तक सजा हो सकती है. जीएसटी ऐक्ट की धारा 132(5) के तहत यह संज्ञेय और गैरजमानती अपराध है. इन्हीं तथ्यों और उन से जुड़े अपराधों के आधार पर पीयूष जैन की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए.

—कथा लिखने तक इन कारोबारियों के खिलाफ छापेमारी की काररवाई जारी थी.

समाजवादी इत्र भी आईटी रेड के लपेटे में

यूष जैन के ठिकानों पर जीएसटी विभाग की छापेमारी खत्म होते ही एमएलसी

पुष्पराज जैन उर्फ पम्मी जैन भी इनकम टैक्स रेड के लपेटे में आ गए. पीयूष जैन के यहां चल रही छापेमारी के दरम्यान पुष्पराज जैन पर राजनीतिक सांठगांठ की अंगुली उठी थी, लेकिन राजनीतिक संबंध रखने वाले 64 वर्षीय पम्मी जैन निकले. वह कन्नौज के नामी इत्र कारोबारी ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के करीबी भी रहे हैं.

उन्हें उन की समाजवादी पार्टी से विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) बनने का अवसर भी मिल चुका है. उन्होंने पार्टी के प्रचार के लिए विधानसभा चुनाव आने से पहले समाजवादी इत्र का एक ब्रांड लांच किया था.

यह भी गजब का संयोग रहा कि पुष्पराज के ठिकानों पर जिस रोज छापा मारा गया, उसी रोज सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कन्नौज में प्रैस कौन्फ्रैंस करने वाले थे.

इत्र कारोबारी पुष्पराज जैन के ठिकानों पर साल के अंतिम दिन 31 दिसंबर, 2021 की सुबह से आईटी रेड की काररवाई शुरू हो गई थी. आईटी विभाग के करीब 6 अधिकारी 2 गाडि़यों में सुबहसुबह हाथरस स्थित पुष्पराज जैन की कोठी और फैक्ट्री जा पहुंचे थे.

रेड एक साथ कन्नौज, कानपुर, हाथरस और नोएडा के अलावा मुंबई, गुजरात और तमिलनाडु में भी हुई. जांच टैक्स चोरी की खुफिया जानकारी पर की गई थी.

कन्नौज से शुरू हुई छापेमारी कानपुर,  हाथरस और दिल्ली तक पहुंच गई. कानपुर में एक्सप्रेस रोड पर पुष्पराज जैन के औफिस में और दिल्ली की न्यू फ्रैंड्स कालोनी स्थित आवास पर रेड मारी गई. इस रेड में इत्र कारोबारी मोहम्मद याकूब उर्फ मलिक मियां का नाम भी सामने आया. इतने बड़े स्तर पर हुई आईटी रेड से कन्नौज के इत्र कारोबारियों में खलबली मच गई.

पुष्पराज जैन की कोठी और फैक्ट्री हाथरस के हसायन कोतवाली क्षेत्र स्थित सिकतरा रोड पर स्थित है. उस के कुछ समय बाद ही कानपुर के एक्सप्रैस रोड स्थित प्रगति अरोमा कौंप्लेक्स में भी आयकर विभाग की टीम जा पहुंची थी. उसी समय पुष्पराज जैन को मुंबई से काल आई कि उन के मुंबई स्थित 2 ठिकानों पर भी आईटी की रेड की जा रही है. फिर देखते ही देखते मीडिया में पुष्पराज जैन का नाम अचानक सुर्खियों में आ गया.

पुष्पराज जैन दिवंगत सवाई लाल जैन के बेटे हैं. उन का कारोबार केवल इत्र का ही नहीं, बल्कि उन्होंने अपने लंबेचौड़े लंबेचौड़े कई कारोबार फैला रखे हैं, जिस में एक रियल एस्टेट फर्म का बिजनैस भी है. वह कोल्ड स्टोरेज और पैट्रोल पंप के भी मालिक हैं.

उन की रजिस्टर्ड कंपनियों के नाम हैं— प्रगति एरोमा, प्रशस्ति एग्रो फार्म प्राइवेट लिमिटेड, प्रशस्ति कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड, प्रशस्ति प्रौपर्टीज रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड और लवली फ्रैग्नेंसेस प्राइवेट लिमिटेड.

वह 2016 में इटावा-फर्रुखाबाद से सपा के एमएलसी चुने गए थे, जिस का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म हो जाएगा. पुष्पराज के पिता ने भारत में 1950 में बिजनैस की शुरुआत की थी, किंतु आज की तारीख में उन के इत्र का बड़ा कारोबार 12 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है.

साल 2016 में दर्ज चुनावी हलफनामे के अनुसार, पुष्पराज और उन के परिवार के पास 37.15 करोड़ रुपए की चल संपत्ति और 10.10 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है. उन की पढ़ाईलिखाई मात्र 12वीं तक हुई है, जिसे उन्होंने कन्नौज के स्वरूप नारायण इंटरमीडिएयट कालेज से 1978 में किया था.

पीयूष और पुष्पराज के ठिकानों से हुई रेड के राजनीतिक रंग निकलते नजर जरूर आए, लेकिन उन के पास मौजूद पैसे के अधिकार के बारे कोई भी एक शब्द नहीं बोला. सपा नेताओं की प्रतिक्रियाएं आईं कि चुनाव आने के ठीक पहले ही छापेमारी क्यों की जाती है?

सभी तरह की छापेमारी सत्ता से बाहर बैठे लोगों के यहां हुई हैं. ये एजेंसियां दबाव में भी काम कर रही हैं. सपा की मीडिया सेल ने इसे न केवल बीजेपी की बौखलाहट बताया, बल्कि आईटी सेल हैंडल से ट्वीट भी किया.

इस राजनीतिक तूतूमैंमैं में पीयूष जैन के यहां हो रही  छापेमारी के वक्त ही पुष्पराज जैन का नाम खूब उछला था. अखिलेश ने दावा किया था कि बीजेपी की प्लानिंग पुष्पराज जैन के यहां छापेमारी की थी, लेकिन डिजिटल इंडिया में गलती हो गई.

सीज पैसा आखिर है किस का?

यूष जैन के यहां जीएसटी रेड में छापेमारी में सीज हो चुका करोड़ों की नकदी,

सोना और चंदन के तेल के अलावा गुटखा बनाने में इस्तेमाल होने वाला बेहिसाब कच्चा माल आदि वापस मिल सकता है, या नहीं? इसी के साथ ही यह सवाल भी है कि वह पैसा किस का हो सकता है?

कथा लिखे जाने तक इस बात का निर्णय नहीं हो पाया था, केवल पीयूष जैन ने अदालत से मांग की थी कि टैक्स के साथ जुरमाने की रकम काट कर बाकी का पैसा उसे लौटा दिया जाए.

वह मामले को रफादफा करवाना चाहता है. जबकि नियमों के मुताबिक यह संभव नहीं हो सकता है. इसे एक तरह से  घूस ले कर माना जाएगा.

पीयूष जैन की तरफ से कहा गया कि उन पर 32 करोड़ की टैक्स चोरी और उस पर 20 करोड़ की पेनल्टी सहित कुल 52 करोड़ का टैक्स बनता है. यानी डायरेक्टरेट जनरल औफ जीएसटी इंटेलिजेंस वह रकम काट कर उन्हें उन का बाकी पैसा वापस कर दे.

इस पर डीजीजीआई के वकील अंबरीश टंडन ने कहा कि रिकवर किया गया पैसा टैक्स नियमों के अनुसार पीयूष जैन की कंपनी पर की गई काररवाई का हिस्सा है. जिस में से एक भी पैसा वापस नहीं किया जा सकता है. टंडन ने उसे अतिरिक्त में 52 करोड़ का टैक्स देने को कहा, जो उस की मरजी पर है.

हालांकि इस मामले में डीजीजीआई द्वारा केस को कमजोर कर ‘बिजनैस टर्नओवर’ नहीं बनाने का भी आरोप लगाया गया है, ताकि पीयूष जैन के यहां से जब्त की गई रकम को इनकम टैक्स डील से बचाया जा सके. यदि ऐसा हो जाता है तो उस के पास से सीज किया पैसा ब्लैक मनी का बन जाएगा.

इस पर डीजीजीआई ने 30 दिसंबर, 2021 को प्रैस रिलीज जारी कर सफाई दे दी थी. उस रिलीज पर बाकायदा एडिशनल डायरेक्टर जनरल विवेक प्रसाद के सिग्नेचर थे.

रिलीज में कहा गया कि मीडिया में चल रही खबरें झूठी और बेबुनियाद हैं. जब्त की गई रकम को डीजीजीआई ने पीयूष जैन का बिजनैस टर्नओवर नहीं माना है, सारा पैसा एसबीआई में जमा है. और न ही पीयूष जैन ने 52 करोड़ रुपए जमा किए हैं. अभी जांच चल रही है.

पीयूष जैन को सेंट्रल गुड्स एंड सर्विस टैक्स ऐक्ट की धारा 132 के तहत 27 दिसंबर, 2021 से 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इस धारा के अंतर्गत अधिकारी के पास इस ऐक्ट के किसी भी आरोपी को अरेस्ट करने और कार्रवाई करने का अधिकार मिला हुआ है.

अहमदाबाद डीजीजीआई टीम को मिली जानकारी के अनुसार, पीयूष जैन 50 हजार रुपए से कम की फरजी इनवाइस के जरिए सामान का ट्रांसपोर्टेशन कर रहे थे, जिस से कि वह टैक्स के चक्कर से बचा रहे.

मगर एक टर्म ‘ई वे बिल’ को भी समझना जरूरी है. इस के अनुसार जब 2 लोग किसी सामान और बदले में पैसे वाले किसी लेनदेन में पार्टी हैं और दोनों या कोई एक भी अगर जीएसटी ऐक्ट में रजिस्टर्ड हैं, तो 50 हजार रुपए से ऊपर के सामान के ट्रांसपोर्टेशन के लिए उन के पास ई-वे बिल होना जरूरी होता है. पीयूष का लेनदेन 50,000 रुपए से कम के फरजी बिल के तहत हो रहा था, जो टैक्स की चोरी का बन गया.

जीएसटी अधिकारियों का इस पर कहना है कि पीयूष के घर में एक बड़ा तहखाना मिला था, जिस में 16 प्रौपर्टीज के दस्तावेज और काफी मात्रा में नकद मिले थे. दरअसल, जब कोई व्यक्ति किसी जांच एजेंसी की नजर में आता है तो इस लिहाज से पीयूष की जांच में दूसरी एजेंसियां भी शामिल होंगी.

कहा जा सकता है कि मामला भले ही जीएसटी विभाग से शुरू हुआ हो, लेकिन आईटी विभाग भी इस की जांच कर छिपा कर रखी गई राशि पर लगने वाला इनकम टैक्स भी वसूलेगा.

इस स्थिति में इनकम टैक्स विभाग में इनकम टैक्स विभाग के डायरेक्टर जनरल, डायरेक्टर, चीफ कमिश्नर, कमिश्नर या बोर्ड द्वारा नियुक्तअधिकारी किसी व्यक्ति के घर या औफिस में रेड कर सकता है.

रेड के दौरान इनकम टैक्स औफिसर कैश, ज्वैलरी, जरूरी दस्तावेज, प्रौपर्टी के कागजात या कोई भी कीमती और जरूरी चीज को सीज कर सकते हैं. हालांकि कारोबार में इस्तेमाल होने वाले सामना या उस के स्टौक को सीज नहीं किया जा सकता है.

छिपा कर रखी गई संपत्ति पर इनकम टैक्स की धारा 271एएबी के तहत जुरमाना  लगाया जाता है. इनकम छिपाने की आमदनी को अनडिस्क्लोज्ड इनकम माना जाता है और

उस पर 60 फीसदी की पेनल्टी लगाई जा सकती है. इस के अलावा सरचार्ज और सेस के बतौर कुछ एक्स्ट्रा जुरमाना भी लगाया जाता है. सरकार को जब्त संपत्तियों से 2 तरह का फायदा मिलता है.

पहला, इनकम टैक्स, जीएसटी, म्युनिसिपैलिटी टैक्स आदि की टैक्स रेवेन्यू है, जबकि दूसरा नौन टैक्स रेवेन्यू होता है. जैसे कि फाइन और पेनल्टी आदि. इस के अलावा राज्य स्तर पर जब्त संपत्तियों को सरकार अपने खजाने में डाल लेती है.

पेट की चर्बी से हैं परेशान तो आज से ही खाना शुरू करें लहसुन

भारतीय घरों में लहसुन का इस्तेमाल आम है. स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन का प्रयोग होता है. पर इसका प्रयोग केवल स्वाद के लिए नहीं होता, बल्कि अच्छी सेहत के लिहाज से भी लहसुन जरूरी है. आपको बता दें कि पेट की चर्बी को कम करने में भी लहसुन काफी लाभकारी है.

इस बात की पुष्टी कई शोधों में भी हो चुकी है. जानकारों का कहना है कि अगर आप पेट की चर्बी कम करना चाहते हैं तो लहसुन को अपनी डाइट में शामिल करें. इसके अलावा वजन कंट्रोल करने में भी ये बेहद लाभकारी है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि रोजाना लहसुन खाना कैसे हमारी सेहत के लिए लाभकारी हो सकता है.

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हाल ही में प्रकाशित एक जर्नल के मुताबिक फैट बर्न करने में लहसुन काफी प्रभावशाली है. जानकारों की माने तो रोजाना लहसुन का सेवन जल्दी आपका वजन कम कर सकता है.

  • लहसुन खाने से शरीर में यूरिन ज्यादा प्रोड्यूस होता है, जिससे वजन और बेली फैट कम होने में मदद मिलती है.
  • लहसुन में प्रचूर मात्रा में विटामिन बी-6 और सी पाया जाता है.
  • इसके अलावा फाइबर, मैगनीज और कैल्शियम का भी ये प्रमुख स्रोत होता है.
  • अगर आप वजन कम करने के साथ ही पेट की चर्बी कम करना चाहते हैं तो रोज सुबह खाली पेट लहसुन की एक कली को पानी के साथ खाएं.
  • इसके अलावा इसका सेवन आप गुनगुने पानी में नींबू का रस डालकर भी कर सकते हैं. नींबू का रस और लहसुन का एक साथ सेवन करने से वजन दोगुना तेजी से कम होता है.

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  • लहसुन खाने से लंबे समय तक पेट भरा रहता है. जिसके कारण आप कम खाना खाते हैं.
  • लहसुन के लगातार सेवन से शरीर को काफी उर्जा मिलती है. इसके अलावा शरीर का मेटाबौलिज्म भी अच्छा रहता है और इम्यून भी मजबूत रहता है.
  • कई शोधों के नतीजों की माने तो लहसुन के सेवन से कोलेस्ट्रोल भी कंट्रोल में रहता है.
  • इसके साथ ही ये शरीर से सभी टौक्सिंस को बाहर निकालकर डाइजेस्टिव सिस्टम को बेहतर बनाता है.

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Anupamaa: अपने अंदाज में अनुपमा करेगी अनुज से प्यार का इजहार, किंजु-तोषु के बीच होगी लड़ाई

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में दिलचस्प मोड़ दिखाया जा रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा भी अनुज के फील कर रही है लेकिन अनुज से कह नहीं पाती है कि वह भी उससे प्यार करती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा वैलेंटाइन डे के मौके पर अनुज से अपने दिल का हाल बयां करती है.

शो में आप देखेंगे कि अनुज अनुपमा का रोमांटिक अंदाज देखकर हैरान हो जाएगा. अनुपमा अपने अंदाज में अपने दिल की बात कहेगी. वह अनुज को आई लव यू नहीं कहेगी. अनुपमा अलग अंदाज में अनुज को प्रपोज करेगी. अनुपमा कहेगी कि वह अनुज के साथ बूढ़ा होना चाहता है. अनुपमा की ये बात सुनते ही अनुज खुशी से झुम उठता है.

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अनुपमा का प्यार देखकर अनुज रो पड़ेगा. वह कहेगा कि 26 साल से इस पल का इंतजार कर रहा था. इसके बाद अनुज और अनुपमा मिलकर केक काटेंगे. शो में दिखाया जाएगा कि अनुज अगले दिन सुबह होते ही अनुपमा के घर पहुंच जाएगा.

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वह अनुपमा से पूछेगा कि क्या कल रात उसने कोई सपना देखा था. ये बात जानकर अनुपमा भड़क जाएगी. अनुपमा कहेगी कि बिती रात की घटना सच थी.  शो में आप ये भी देखेंगे कि किंजल-तोषु में जमकर लड़ाई होगी. किंजल कहेगी कि तोषु उसके बिना क्लब गया था. तोषु ऑफिस में मिटिंग होने का बहाना बनाएगा.

 

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि नंदिनी समर के साथ ब्रेकअप कर लेती है. वह इमोशनल होकर समर से दूर जाने का फैसला करती है. इस बार समर भी उसे नहीं रोक पाता है.

Karan Kundra और तेजस्वी प्रकाश की सीक्रेट डेट, फोटोग्राफर्स देख ऐसे भागी तेजू!

तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) और करण कुंद्रा (Karan Kundra) इन दिनों अपने लवलाइफ को लेकर सुर्खियों में छाये हुए हैं. दोनों को अक्सर साथ में देखा जाता है. फैंस को भी करण-तेजस्वी के फोटोज और वीडियोज का बेसब्री से इंतजार रहता है. तेजस्वी और करण का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें तेजस्वी को देखकर भाग रही हैं.

तेजस्वी प्रकाशऔर करण कुंद्रा का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस वीडियो को देखकर आप कह सकते हैं कि दोनों चोरी-छुपे डेट पर गए थे तो वहीं फोटोग्राफर्स भी उनका पीछा करते-करते वहां पहुंच गए.

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जब फोटोग्राफर्स को तेजस्वी प्रकाश ने देखा तो वह कार की तरफ भागने लगी. और उन्होंने कहा कि ‘कहां से आ जाते हो यार आप लोग’ कहां पर छुपे रहते हो. फिर वह करण कुंद्रा के साथ कार में बैठ जाती है. तेजस्वी प्रकाश का यह अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

 

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एक इंटरव्यू के अनुसार तेजस्वी प्रकाश से करण कुंद्रा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि वह बहुत प्यारे, स्मार्ट और  जानकार हैं. मैं उनसे रोजाना बहुत कुछ सीखती. तेजस्वी ने ये भी कहा कि मैं उनके साथ खुद को भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से बढ़ते हुए देखती हूं.

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तेजस्वी प्रकाश ने करण कुंद्रा के बारे में आगे कहा कि जब वह कहते हैं कि उन्होंने इसे कभी महसूस नहीं किया तो मैं समझ सकती हूं. क्योंकि कई बार जिस तरह से वह रिएक्ट करते हैं और जिस तरह के वह बन जाते हैं, उससे वो खुद भी हैरान रह जाते हैं.

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