अल्जाइमर एक प्रकार का बढ़ता हुआ मानसिक उन्माद, डिमेन्शिया है. यह मस्तिष्क की वह बीमारी है जो मनुष्य को रोजमर्रा के कार्यों को करने में भी अक्षम बनाती है. स्मृति, संवेग, मनोवेग, मूड, भाषा, व्यवहार सभी इस से प्रभावित होते हैं. वर्तमान में इस रोग के लिए कोई ज्ञात इलाज नहीं है. हालांकि कुछ ऐसे विकल्प हैं जो इस के लक्षणों को कम करने में सहायक हो सकते हैं.

प्रथम संकेत

यह रोग धीरेधीरे शुरू होता है. वास्तव में जब रोग मस्तिष्क को प्रभावित करना शुरू करता है, बाहर से कोई भी चिह्न या लक्षण दिखाई नहीं पड़ता. थोड़े समय के बाद व्यक्ति वे बातें जो वह जानता है, भूलने लगता है, जैसे : जानेपहचाने स्थानों या व्यक्तियों के नाम, जो वह कहना चाहता है, उस को व्यक्त करने वाले शब्द, रोजमर्रा की चीजों के स्थान आदि.

व्यक्ति जब बूढ़ा हो जाता है तो कुछ चीजें भूलना सामान्य बात है. छोटी मोटी भूलों का मतलब आवश्यक रूप से अल्जाइमर नहीं है. अल्जाइमर रोग वाले व्यक्ति सामान्यतया ज्यादा ध्यान आकर्षित करते हैं और उन की याददाश्त व दूसरी संज्ञानात्मक दक्षता में कमी आती है.

ये भी पढ़ें-पत्नी की सलाह मानना दब्बूपन की निशानी नहीं

बढ़ते रोग के लक्षण

जैसे जैसे रोग बढ़ता है, रोगी की याददाश्त तेजी से कम होने लगती है और दूसरे संकेत भी जाहिर होने लगते हैं, जैसे :

1. उदासीनता, चिड़चिड़ाहट, निराशा, डिप्रैशन, उत्तेजना.

2. भाषा, गणित, काल्पनिक विचारों और निर्णय संबंधी समस्याएं.

3. व्यक्तित्व में परिवर्तन और चिंताजनक असामान्य व्यवहार.

4. बेवजह घूमना, चीजें छिपाना, खाने व सोने संबंधी समस्या.

5. रोग की बाद की अवस्था में मानसिक उन्माद और झूठी धारणाएं भी हो सकती हैं.

6. रोग की आखिरी अवस्था में शारीरिक क्रियाओं के नियंत्रण में अक्षमता.

बरताव सही करें

वे व्यक्ति जिन्हें अल्जाइमर्स है, अपनी निपुणताओं को भलीभांति आंकने, परखने की क्षमता खोना शुरू कर सकते हैं. वे अधिकतर परीक्षणदृष्टि खो देते हैं और यह महसूस नहीं कर पाते कि वे अब वे काम नहीं कर सकते जो पहले करते थे. इसलिए इस समय यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हम अल्जाइमर्स वाले व्यक्ति के व्यवहार के पीछे छिपी मानसिकता, उस के लक्षणों को समझने की कोशिश करें, उसे समझने में समय लगाएं और उस से बरताव करते समय सहानुभूतिपूर्ण होने का प्रयत्न करें.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: रोमांटिक मौसम और हाय ये पिम्पल

रोगी से मिले संकेतों में ये बातें हो सकती हैं :

1. रोग को नकारना कि उन्हें यह रोग है, विशेषरूप से प्रारंभिक अवस्था में.

2. दूसरों पर दोषारोपण करना कि वे उन के कार्यकलापों को गलत समझ रहे हैं.

3. पूरी तरह से सचेत, जागरूक और अपनी इस स्थिति के लिए वे क्षमाप्रार्थी भी हो सकते हैं. मैं क्षमा चाहता/चाहती हूं, मुझे अल्जाइमर रोग है.

4. खीझ, उत्तेजना या क्रोध का अनुभव कर सकते हैं.

5. अपने स्वयं के व्यक्तित्व में परिवर्तन न पहचान रहे हों.

परिवार व दोस्तों के लिए किसी अपने की गिरती हुई अवस्था को देखना कष्टप्रद होता है.

सभी व्यक्ति सभी लक्षणों का अनुभव नहीं करते. इसलिए यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि किन लक्षणों की ओर दृष्टि रखी जाए जिस से कि आवश्यकतानुसार उस प्रकार की सहायता का प्रबंध किया जा सके.

रोग का निदान है महत्त्वपूर्ण

जब आप अल्जाइमर रोग के संकेतों और लक्षणों को पहचान लेते हैं तो जितनी जल्दी उस का निदान करें उतना ही अच्छा होगा. यह तथ्य कई कारणों से सच है :

1.  जल्द परीक्षण से आप यह पता कर सकते हैं कि ये लक्षण किसी और रोग से या स्थिति से तो उत्पन्न नहीं हुए हैं, जिस का इलाज हो सकता है. उदाहरणार्थ, यदि डिमेन्शिया बे्रन ट्यूमर या विटामिन की कमी की वजह से हुआ है तो आप या आप के प्रियजन शीघ्र ही उचित ट्रीटमैंट ले सकते हैं.

2. यदि जांच से पता चल जाए कि अल्जाइमर रोग है, तो आप अपने प्रियजनों से लंबी योजना या निर्णयों के बारे में बातें करना या निर्णय लेना शुरू कर सकते हैं.

3. जितनी जल्दी  अल्जाइमर की प्रगति को धीमा करने वाली दवाएं या जीवनचर्या में परिवर्तन शुरू होंगे उतना ही ज्यादा वे फायदेमंद साबित होंगे.

4. रोग के साथ आने वाले प्रबंधयोग्य लक्षणों का इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है.

5. सहायता करने वालों की व्यवस्था बिना अतिरिक्त प्रैशर, तनाव के कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें-मानसून स्पेशल: बारिश में खाइए सेहत बनाने वाले ये 4 स्नैक्स

रोग की अवस्थाएं

देखभाल की योजना बनाने में रोग की अवस्थाओं को ध्यान में रखना सहायक होता है क्योंकि अल्जाइमर्स रोग हर व्यक्ति को विभिन्न रूप से प्रभावित करता है. इस रोग की प्रगति व्यक्तियों पर विभिन्न रूप से होती है. यह भी सत्य है कि इस रोग से ग्रस्त होने पर व्यक्ति उन बहुत सी क्षमताओं को खो देगा जो उन के पास पहले थीं. इसलिए प्रियजन व देखभाल करने वालों के लिए यह बेहतर है कि वे इस रोग से ग्रसित व्यक्ति की उन क्षमताओं पर अपना ध्यान केंद्रित करें जो बची हुई हैं.

इस रोग की 3 अवस्थाएं हैं :

हलकी यानी शुरू की अवस्था : पीडि़त व्यक्ति आमतौर पर स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं और अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों व देखभाल संबंधी भविष्य की योजनाओं में भाग ले सकते हैं बावजूद इस के कि स्मृति हृस व संज्ञानात्मक कमियां दिखना शुरू हो गई हैं.

मध्य की अवस्था : मानसिक क्षमताओं का हृस, व्यक्तित्व परिवर्तन और शारीरिक समस्याओं का विकास, जिस से कि व्यक्ति देखभाल करने वालों पर अधिक निर्भर हो जाता है. उदाहरण के लिए व्यक्ति स्वयं नहाधो सकते हैं, शौच आदि क्रिया कर सकते हैं, कपड़े पहन सकते हैं, हालांकि उन्हें इन कामों के लिए कुछ सहायता लेनी पड़ सकती है.

गंभीर यानी बाद की अवस्था : व्यक्तित्व परिवर्तन और शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण खोना, रोजमर्रा के जीवन की आधारभूत क्रियाओं के लिए भी दूसरों पर पूरी तरह निर्भरता.

व्यक्तित्व और संज्ञानात्मक परिवर्तन: अल्जाइमर रोग में जो प्रमुख बात होती है वह है संज्ञानात्मक क्षीणता, जिस का मतलब है तर्कसंगत सोचने की क्षमता, कारणों को पहचानने और समझने की क्षमताओं पर प्रभाव. इस रोग से ग्रस्त रोगी पहले की तरह नहीं रहते. ऐसी स्थिति में उन से नए तरीकों से संबंध बनाए रखना, उन्हें प्रोत्साहित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. सामान्य उदासीनता, अनासक्ति और रुचि की कमी इस रोग की तीनों अवस्थाओं के विशिष्ट अभिलक्षण हैं.

अन्य अवस्थाएं

जब अल्जाइमर रोग प्रारंभिक अवस्था में होता है उस वक्त व्यक्तियों की निपुणताओं, क्षमताओं का हृस थोड़ाथोड़ा होता है. थोड़ी सी सहायता से वे पहले की तरह ही स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं. शुरू में रोग के लक्षणों के लिए दवाएं बहुत लाभकारी सिद्ध होती हैं.

जब रोग मध्य अवस्था में होता है तब कार्यकलापों की कमी, गंभीर स्मृति और संज्ञानात्मक समस्याएं व व्यक्तित्व गंभीर रूप से बदल जाता है या दूसरा ही हो जाता है. रोगी जैसेजैसे स्वयं की देखभाल करने में असमर्थ होते जाते हैं, देखभाल करने वालों की सहायता की आवश्यकता अधिक बढ़ती जाती है. इस रोग की यह अवस्था सब से लंबी है और इस पूरी अवस्था के दौरान दवाएं इस रोग के लक्षणों के इलाज के लिए उपयोगी सिद्ध हुई हैं.

अल्जाइमर की गंभीर या बाद की अवस्था में व्यक्तित्व पूरी तरह से बदल जाता है. संज्ञानात्मक लक्षण बहुत खराब हो जाते हैं और शारीरिक लक्षण ज्यादा गंभीर हो जाते हैं. यह मस्तिष्क के भागों में बे्रन सैल की क्षति के कारण होता है. पहले की अवस्थाओं का व्यवहार गुम हो जाता है और व्यक्ति ज्यादा ‘सबड्यूड’ व सहमा हुआ दिख सकता है. इस बाद की अवस्था में लक्षणों के इलाज की दवाएं उपयोगी हो सकती हैं. डाक्टर दवाओं को लेने की सलाह देता है तो उन्हें तब तक दिया जाना चाहिए जब तक कि उन से कोई भी क्लीनिकल लाभ दिखना बंद न हो जाए.

गरिमा व सम्मान की जरूरत

रोग की अंतिम अवस्था में व्यक्ति कई अन्य रोगों से भी पीडि़त होते हैं जिन का एल्जाइमर रोग से कोई संबंध नहीं होता, पर वे मृत्यु की ओर अग्रसर करते हैं. उदाहरण के लिए इस रोग के रोगियों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण निमोनिया है. आखिरी अवस्था की देखभाल का प्रमुख उद्देश्य दर्द व अन्य प्रकार के दुखी करने वाले लक्षणों को कम करना है. इस समय अल्जाइमर्स रोग से पीडि़त रोगी को, किसी भी अन्य समय की अपेक्षा, अधिक सुविधा, गरिमा व सम्मान प्रदान किया जाए.

कुल मिला कर किसी को अल्जाइमर का रोग लग गया है तो इस का इलाज व देखभाल तो करनी ही होगी. हालांकि अल्जाइमर के रोगी की देखभाल करना आसान काम नहीं है, यह काफी मुश्किल है और कभीकभी यह भावातिरेक करने वाला भी हो सकता है.

हर दिन चुनौतीपूर्ण होता है जब आप यह सीखते हैं कि किस प्रकार सहयोगी रूप से प्रियजन की बदलती क्षमताओं व व्यवहार से बरताव किया जाए. जैसेजैसे अंत समय करीब आता है, उन्हें लगातार देखभाल की जरूरत हो सकती है. उस अवस्था में आप को यह निर्णय लेना पड़ता है कि क्या आप पूरे समय उन की देखभाल करने में समर्थ हैं या पूरे समय के लिए किसी को देखभाल करने के लिए नौकरी पर रखा जाए या उन्हें नर्सिंगहोम आदि में रखा जाए. जो कुछ भी निर्णय लें, बहरहाल, यह समय हृदयविदारक तो होता ही है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...