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लेखिका- रितु वर्मा

सब मेहमानों को विदा करने के बाद वंश के शरीर का पोरपोर दुख रहा था. शादी में खूब रौनक थी पर अब सब मेहमानों के जाने के बाद पूरा घर भायभाय कर रहा था. सोचा क्यों न एक कप चाय पी कर थोड़ी थकान कम कर ली जाए और फिर वंश ने अपनी मम्मी शालिनी को आवाज दी, ‘‘मम्मी, 1 कप चाय बना दीजिए.’’फिर वंश मन ही मन सोचने लगा कि आरवी से भी पूछ लेता हूं.

बेचारी नए घर में पता नहीं कैसा महसूस कर रही होगी.वंश ने धीमे से दरवाजा खटखटाया तो आरवी की महीन सी आवाज सुनाई दी,‘‘कौन हैं?’’वंश बोला, ‘‘आरवी मैं हूं.’’अंदर जा कर देखा, आरवी एक हलके बादामी रंग का सूट पहने खड़ी थी. न होंठों पर लिपस्टिक, न आंखों में काजल, न ही कोई और साजशृंगार. ऐसा नहीं था कि वंश कोई पुरानी सोच रखता था, पर आरवी के चेहरे पर वह लुनाई नहीं थी जो नई दुलहन के चेहरे पर रहती है.वंश ने चिंतित स्वर में कहा ‘‘ठीक तो हो आरवी, चाय पीओगी?’’‘‘नहीं मैं चाय नहीं पीऊंगी,’’ और यह कहते हुए आरवी का स्वर इतना सपाट था कि वंश उलटे पैर लौट गया.

मन ही मन वंश सोच रहा था कि न जाने कैसी लड़की है. उस ने तो सुना था कि पत्नी के आने से पूरे जीवन में खुशी की रुनझन हो जाती है पर आरवी तो न जाने क्यों इतनी सिमटीसिमटी रहती है.रात को वंश कितने अरमान के साथ आरवी के पास गया था. कितनी सारी बातें करनी थी पर उस ने देखा आरवी गहरी नींद में सोई हुई है. वंश को थोड़ी निराशा हुई पर फिर लगा हो सकता है बेचारी थक गई होगी.

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