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भारत भूमि युगे युगे: जैन कबाब

टीएमसी की तेजतर्रार व खूबसूरत सांसद महुआ मोइत्रा ने धर्म की पोल उस संसद में खोल कर रख दी जिसे कुछ लोग मंदिर और मठ बनाने पर तुले हुए हैं. सोचने वाली इकलौती दिलचस्प बात यह है कि महुआ ने जैन युवकों के बारे में ही क्यों कहा कि वे घर से छिप कर अहमदाबाद की सड़क पर ठेले से काठी कबाब खाते हैं.

हकीकत तो यह है कि जैन धर्म की कट्टरता ने उन्हें यह मिसाल देने को मजबूर किया. बातबात पर, खासतौर से खानेपीने के मसले पर, सभी युवा रोकटोक से परेशान रहते हैं और चूंकि खुलेआम बगावत नहीं कर सकते, इसलिए धार्मिक उसूल तोड़ कर अपनी इच्छा पूरी करते हैं.

महुआ की मंशा और धर्म का सच सलीके से समझे. उन के कहे शब्द तमाम कट्टरवादियों को मिर्च की तरह लगे: ‘…आप हमें बताना चाहते हैं कि क्या खाना चाहिए… क्या पहनना चाहिए… किस से प्यार करना चाहिए…’

इंदौर में यूपी का सट्टा बा

गरमी के साथसाथ देशभर का सट्टा बाजार भी गरमा रहा है, जिस की तपिश इंदौर में कुछ ज्यादा है. भाजपा से शुरुआती लगाव के बाद सपा को बराबर का भाव दे कर सटोरियों ने योगी और भाजपा का दिल तोड़ दिया है.

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इंदौर के एक खाईबाज की मानें तो सभी को मालूम है कि सट्टा टीवी के डब्बों की तरह प्रायोजित आंकड़े नहीं देता, बल्कि सच के बहुत नजदीक होता है. इस के अपने अलग पैमाने और सोर्स हैं. इस बार सीएम अखिलेश यादव भी बन सकते हैं और योगी आदित्यनाथ भी रिपीट हो सकते हैं.

यूपी की लड़ाई को नेक-टू-नेक फाइट बता रहे सटोरिए पश्चिम बंगाल चुनाव की तरह कोई रिस्क नहीं उठा रहे क्योंकि वहां भी भाजपा ने खूब हल्ला मचवाया था लेकिन फिर भी कुरसी हाथ नहीं लगी थी. आंकड़ों के इस मायावी बाजार में दिलचस्प दांव इस बात पर भी लग रहा है कि बसपा और कांग्रेस दहाई का आंकड़ा छू पाएंगी भी या नहीं.

अपनेअपने अहंकार

जब कोई बड़ा आदमी कहीं जाता है तो उस की स्वाभाविक इच्छा होती है कि तमाम छोटेमोटे लोग उस की अगवानी में विमान तल के तले हाथ बांधे खड़े मिलें. इस दृश्य, जिसे कोईकोई प्रोटोकौल कहता है, से बड़े आदमी को अपने बड़े होने की तसल्ली हो जाती है. तेलंगाना में इस का उलटा हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शमशाबाद पहुंचे तो मुख्यमंत्री  के चंद्रशेखर राव अगवानी के लिए मौजूद नहीं थे. उन्होंने प्रोटोकौल का पालन करते हुए अपने एक छोटे मंत्री तलसानी श्रीनिवास यादव को भेज दिया.

इस पर महज 2 विधायकों वाली भाजपा ने उम्मीद के मुताबिक हल्ला मचाया और इस हरकत को नरेंद मोदी व देश की बेइज्जती करार दिया. इस होहल्ले से केसीआर के कानों पर जूं तक न रेंगी क्योंकि उन्होंने कहीं ऐसा नहीं पढ़ा कि जब पीएम आएं तो सीएम का उन की अगवानी करने जाना संवैधानिक बाध्यता है. अब यह तो भाजपाइयों को चाहिए कि इस तरह की बेइज्जती हो जाने के बाद वे उस का ढिंढोरा पीट कर उसे रास्ता न बनाएं.

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सपा के सारथी

कहने को भले ही किसान आंदोलन खत्म हो गया हो लेकिन किसानों की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. किसान नेता राकेश टिकैत ने 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर फतवा जारी कर दिया है कि किसान भाजपा को वोट नहीं, बल्कि सजा दें. उत्तर प्रदेश में सपा के लिए यह फरमान उम्मीद जगाने वाला है क्योंकि मैदान में वह प्रमुखता से शुरू से ही है. 10 मार्च को सरकार किसी की भी बने, उस में किसानों का रोल अहम होगा और वाकई में उन का भविष्य तय करने वाला होगा.

क्या राकेश टिकैत सपा के लिए अन्ना हजारे साबित हो पाएंगे, यह बात कहीं ज्यादा दिलचस्प है क्योंकि सवाल किसानों के स्वाभिमान का है जिन्हें भगवा गैंग शूद्र सम?ाते उन के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती रही है और उन की मेहनत पर पूंजीपति फलफूल रहे हैं. देखना यह भी दिलचस्प होगा कि भाजपा धर्म और जाति के नाम पर किसानों को दोफाड़ कर पाई या नहीं.

वहम: क्या कोई राज छिपा रही थी शैलजा?

Writer- श्रीप्रकाश श्रीवास्तव 

सागर का शिप बैंकौक से मुंबई के लिए सेल करने को तैयार था. वह इंजनरूम में अपनी शिफ्ट में था. उस का शिप मुंबई से बैंकौक, सिंगापुर, हौंगकौंग होते हुए टोक्यो जाता था. वापसी में वह बैंकौक तक आ गया था. तभी शिप के ब्रिज (इसे कंट्रोलरूम कह सकते हैं) से आदेश आया रैडी टु सेल.  सागर ने शक्तिशाली एअर कंप्रैसर स्टार्ट कर दिया. जैसे ही ब्रिज से आदेश मिला ‘डैड स्लो अहेड’ उस ने इंजन में कंप्रैस्ड एअर और तेल छोड़ा और जहाज बैंकौक पोर्ट से निकल पड़ा. फिर ऊपर ब्रिज से जैसा आदेश मिलता, जहाज स्लो या फास्ट स्पीड से चलता गया. आधे घंटे के अंदर ही जहाज हाई सी में था. तब और्डर मिला ‘फुल अहेड.’

अब शिप अपनी पूरी गति से सागर की लहरों को चीरता हुआ मुंबई की ओर बढ़ रहा था. सागर निश्चिंत था, क्योंकि सिर्फ 3 हजार नौटिकल मील का सफर रह गया था. लगभग  1 सप्ताह के अंदर वह मुंबई पहुंचने वाला था. उसे मुंबई छोड़े 4 महीने हो चुके थे.

अपनी 4 घंटे की शिफ्ट खत्म कर सागर अपने कैबिन में सोफे पर आराम कर रहा था. मन बहलाने के लिए उस ने फिल्म ‘रुस्तम’ की सीडी अपने लैपटौप में लगा दी. इस फिल्म को वह पूरा देख भी नहीं सका था. उस का मन बहुत बेचैन था. ‘रुस्तम’ से पहले भी उस ने एक पुरानी फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ देखी थी. दोनों की स्टोरी लगभग एक ही थी, जिस में दिखाया गया था कि जब मर्चेंट नेवी का अफसर लंबी यात्रा पर जाता है, तो उस की पत्नी को मौजमस्ती करने का भरपूर मौका मिलता है.  उस के मन में भी शंका हुई कि कहीं उस की पत्नी शैलजा भी ऐसा ही कुछ करती हो. हालांकि तुरंत उस ने मन से यह डर भगाया, क्योंकि शैलजा उसे बहुत प्यार करती थी. पूरी यात्रा में जब भी तट पर होता वह फोन पर उस से कहा करती कि जल्दी लौट आओ, तुम्हें बहुत मिस कर रही हूं. मम्मी भी इलाहाबाद अपने मायके चली गई हैं.

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सागर को शादी के 3 महीने के अंदर ही टोक्यो जाना पड़ा था. उस की पत्नी मुंबई में ही एक अपार्टमैंट में रहती थी. बीचबीच में सागर की मां इलाहाबाद से आ कर रहती थीं. उस की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उस ने अपार्टमैंट के दरवाजे पर एक ‘रिंग डोरबैल’ लगा दी थी. इस में एक सैंसर और कैमरा लगा होता है, जो वाईफाई द्वारा अलगअलग चुनिंदा सैल फोन ऐप्स से जुड़ा होता है.

दरवाजे पर कोई भी हरकत होने से या कौलबैल बजने से दरवाजे के बाहर का दृश्य सैल फोन पर देख सकते हैं. इतना ही नहीं टौक बटन दबाने से बाहर खड़े व्यक्ति से बात भी कर सकते हैं. सागर ने पत्नी शैलजा और मां के फोन के अतिरिक्त मुंबई में एक रिश्तेदार के सैल फोन से इस डोरबैल को कनैक्ट कर रखा था.  सागर की पत्नी शैलजा कुछ पार्टटाइम काम करती थी. बाकी टाइम घर में ही रहती थी. कभीकभी बोर हो जाती थी. हालांकि उस की सास से काफी पटती थी पर सभी बातें तो उन से वह शेयर नहीं कर सकती थी और वैसे फिर आजकल वे भी नहीं थीं. सागर ने शैलजा को मुंबई पहुंचने का अनुमानित समय बता दिया था. फ्लैट की एक चाबी सागर के पास होती थी.  शिप अब आधी दूरी तय कर भारतीय समुद्र सीमा में था. सागर 3 दिन से कुछ कम  ही समय में मुंबई पहुंचने वाला था. इधर शिप बंगाल की खाड़ी की लहरों पर हिचकोले खा रहा था उधर उस का मन भी शैलजा से मिलने की आस में बेचैन था. वह कैबिन में आराम कर रहा था कि दरवाजा खटखटा कर उस का सहकर्मी अंदर आया. बोला, ‘‘यार तुम ने ‘रुस्तम’ देख ली हो तो सीडी मुझे देना.’’

दोस्त तो सीडी ले कर चला गया पर एक बार फिर सागर का मन शंकित हो उठा कि कहीं उस की पत्नी भी किसी गैर की बांहों में न पड़ी हो. बहरहाल, उस ने मन को समझाया कि यह मात्र वहम है. मेरी शैलजा वैसी नहीं हो सकती है जैसा मूवी में दिखाया गया है.  सागर का जहाज मुंबई पोर्ट के निकट था पर पोर्ट पर बर्थ खाली नहीं होने के कारण जहाज को थोड़ी दूरी पर लंगर डालना पड़ा. शाम होने वाली थी. उस का वाईफाई काम करने लगा था. उस के फोन पर मैसेज मिला ‘रिंग ऐट योर डोर’. हलकी बारिश हो रही थी.

उस ने अपने फोन में देखा कि फ्लैट के दरवाजे पर जींस पहने छाता लिए कोई खड़ा है. शैलजा ने हंस कर उसे गले लगाया और फिर दरवाजा बंद हो गया. छाते की वजह से वह उस का चेहरा नहीं देख सका. पहले तो उस ने पत्नी को कहा था कि वह जहाज से निकलने से पहले उसे फोन करेगा पर इस दृश्य को देख कर उस ने अपना इरादा बदल लिया.  जहाज के लंगर डालने के थोड़ी देर बाद कंपनी के लौंच से वह तट पर आया. उस ने टैक्सी ली और अपने फ्लैट पर जा पहुंचा. तब तक लगभग मध्य रात्रि हो चुकी थी. उस ने अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा जानबूझ कर धीरे से खोला ताकि कोई आहट न हो. अंदर फ्लोर लाइट का हलका प्रकाश था.

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सागर ने अंदर आ कर देखा कि बैडरूम का दरवाजा खुला है. शैलजा झीनी नाइटी में अस्तव्यस्त किसी व्यक्ति के बहुत करीब सोई थी. वह व्यक्ति जींस और टीशर्ट पहने था. उस की कमर पर शैलजा की बांह थी. सागर केवल उस व्यक्ति की पीठ देख सकता था. उस के मन में संदेह हुआ कि यह शैलजा का कोई आशिक ही होगा. वह दबे पांव फ्लैट लौक कर लौट पड़ा. उस ने 3 दिन की छुट्टी ले रखी थी.  वहां से सीधे होटल में जा कर ठहरा. रात काफी हो चुकी थी. फिर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. नींद खुली तो उस ने रूम में ही हलका ब्रेकफास्ट मंगवा लिया. थोड़ी देर बाद सागर ने शैलजा को फोन कर बताया कि वह मुंबई पहुंच गया है. फिर पूछा ‘‘कैसी हो शैलजा?’’

शैलजा बोली, ‘‘अच्छी हूं. पर कल रात बहुत थक गई थी और करीब 12 बजे सोई तो सुबह 7 बजे महरी आई तब नींद खुली. पर बड़ा मजा आया रात में वरना मैं तो बोर हो रही थी. तुम जल्दी आओ न? जहाज तो किनारे लग चुका होगा. कब आ रहे हो?’’

‘‘मैं जहाज से उतरने ही वाला हूं, 2-3 घंटे में आ रहा हूं.’’

सागर के पास सामान के नाम पर एक अटैची भर थी. उस ने टैक्सी ली. अपार्टमैंट पहुंच कर सिक्युरिटी वाले को अटैची रखने को दी और कहा, ‘‘जब मैं फोन करूं  तब इसे मेरे फ्लैट में भेज देना.’’  फ्लैट पहुंच कर उस ने बैल बजाई तो शैलजा ने अपने फोन पर उस का वीडियो देख लिया, दरवाजा खोल कर शैलजा उस के गले से लिपट गई. वह बैडरूम में गया और बोला, ‘‘शैलजा, टौवेल लाना, बाथरूम जाना है.’’

‘‘बाथरूम तो बिजी है. तुम गैस्टरूम वाले बाथ में चले जाओ.’’

‘‘क्यों? कोईर् है अंदर?’’

‘‘हां, कोई है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘देख लेना थोड़ी देर में. इतनी जल्दी  क्या है?’’

‘‘नहीं, मुझे बाथ टब में नहाना है और गैस्टरूम में बाथ टब नहीं है. पर तुम से जरूरी बात भी करनी है.’’

‘‘ठीक है, थोड़ी देर गैस्टरूम में ही आराम करो, मैं चाय ले कर आती हूं. वहां बात कर लूंगी.’’  सागर गैस्टरूम में बैड पर लेट गया. उस ने सिक्युरिटी को फोन कर नीचे से अपना अटैची मंगवा ली. थोड़ी देर में शैलजा चाय दे कर किचन में चली गई.

कुछ देर बाद शैलजा ने कहा ‘‘सागर, बाथरूम खाली हो गया है. अब तुम बैडरूम में जा कर बाथरूम यूज कर सकते हो.’’  सागर बाथरूम में गया. उस ने देखा कि वहां कल रात वाली जींस और टीशर्ट टंगी थी. जब तक वह नहा कर निकला शैलजा की आवाज आई, ‘‘डाइनिंग टेबल पर ही आ जाओ, नाश्ता रैडी है.’’

शैलजा ने जूस ला कर दिया, उस के बाद छोले की सब्जी का बाउल रख कर बोली, ‘‘एक मिनट में गरमगरम कचौरियां ले कर आ रही हूं.’’  ‘‘कचौरियां बाद में आ जाएंगी, पहले तुम यहां बैठो. तुम से जरूरी बात करनी है.’’

तभी किचन से आवाज आई, ‘‘तुम लोग वहीं बैठ कर बातें करो. मैं गरमगरम कचौरियां ले कर आ रही हूं.’’

थोड़ी देर में एक औरत ट्रे में कचौरियां ले कर आई और टेबल के पास बैठ गई.  सागर उसे आश्चर्य से देखने लगा तो वह बोली ‘‘मुझे ही देखते रहोगे तो कचौरियां ठंडी हो जाएंगी.’’  शैलजा बोली, ‘‘यह नीरू है. मेरी ममेरी भाभी. मेरे भैया उम्र में हम से सिर्फ 2 साल बड़े हैं. यह भाभी कम दोस्त ज्यादा है. हम लोग क्लासफैलो भी रहे हैं. आजकल यह नासिक में है. इस के पहले तो गुवाहाटी में थी. कौंटैक्ट तो न के बराबर रहा था. भैया टूअर पर गए हैं, तो यहां चली आई. भैया की शादी में हम लोग नहीं जा सके थे.’’  ‘‘बाथरूम में जींस और टीशर्ट किस की है?’’

‘‘नीरू भाभी की. कल शाम जब यह आई तो हम दोनों अपार्टमैंट के क्लब में चली गईं. वहां काफी देर तक बैडमिंटन खेलती रहीं. दोनों बहुत थक गई थीं. मैं ने इस से कहा था कि कपड़े चेंज कर ले पर यह इन्हीं कपड़ों में सो गई थी.’’

‘‘इतना ही नहीं, उस के बाद हम लोग, ‘रुस्तम’ मूवी देखने लगे. सीडी  पड़ी है, तुम भी देख लेना.’’  तुम लोगों ने भी ‘रुस्तम’ देखी? सागर  ने पूछा.

‘‘हां. इस में ताज्जुब की क्या बात है?’’ नीरू बोली.

‘‘ताज्जुब की बात नहीं है. मैं ने भी शिप में देखी है,’’ और फिर सागर मन ही मन सोचने लगा कि अच्छा हुआ उस ने शैलजा से इस बारे में कोई बात नहीं की. उस के दिल और दिमाग से ‘रुस्तम’ का वहम निकला गया था.

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तभी शैलजा बोली, ‘‘तुम कोई जरूरी बात करने वाले थे.’’

सागर ने असली बात को दिल में छिपाते हुए कहा, ‘‘मेरा शिप 10 दिन में फिर टोक्यो के लिए सेल करेगा.’’

‘‘मैं आज शाम को चली जाऊंगी. मेरे सामने थोड़े ही देवरजी जरूरी बात करेंगे,’’ नीरू  बोली.  सभी हंसने लगे, पर असल माजरा तो सिर्फ सागर ही समझ रहा था.

मीठी छुरी- भाग 3: कौन थी चंचला?

Writer- Reeta Kumari

नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने एक मार्केट कौंप्लैक्स बनवाया था, जिस से उन की अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. उन्होंने उस मार्केट कौंप्लैक्स को मयंक भैया के मना करने के बावजूद चंचला भाभी के नाम कर दिया. मयंक भैया चाहते थे कि वह मार्केट कौंप्लैक्स नवीन भैया के नाम हो. लेकिन बाबूजी के लिए तो नवीन भैया एक गैरजिम्मेदार और निकम्मे इंसान थे. उन की बहू ने उन के दिमाग में यह बात बिठा दी थी.

मयंक भैया के हटते ही चंचला भाभी ने मांबाबूजी की जिम्मेदारी के साथसाथ उन की सारी आमदनी भी अपनी मुट्ठी में कर ली थी. फिर भी हम सभी चंचला भाभी के इस तरह सबकुछ संभाल लेने से मांबाबूजी की तरफ से चिंतामुक्त हो गए थे. अकसर बाबूजी मयंक भैया को फोन कर नवीन भैया की गैरजिम्मेदाराना हरकतों से अवगत कराते रहते. इतने दिनों बाद भी बाबूजी यह नहीं समझ पा रहे थे कि नवीन भैया को फटकार के बदले अपनों के प्यार और सहानुभूति की कितनी जरूरत है.

वह जनवरी की ठिठुरती शाम थी. हम सभी शाम होते ही उस हाड़ कंपा देने वाली ठंड से बचने के लिए एक कमरे में आग जला कर बैठे गपशप कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. फोन उठाते ही मां ने रोतेरोते बताया, बाबूजी की तबीयत बहुत खराब है. उन्हें आईसीयू में भरती कराया गया है. मां को आश्वस्त कर हम फौरन पटना के लिए रवाना हो गए.

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नवीन भैया द्वारा बताए पते पर सीधे अस्पताल पहुंचे. वार्ड के बाहर ही नवीन भैया और मां बैठे मिले. चंचला भाभी कहीं नजर नहीं आ रही थीं. हम लोगों को देख मां को थोड़ी तसल्ली हुई. जब मयंक भैया ने चंचला भाभी के बारे में पूछा तो उस चिंता, दुख, अनिश्चितता और भय की स्थिति में भी जो कुछ मां ने सुनाया, सुनते ही जैसे हम सब के पैरों तले जमीन खिसक गई. किंकर्तव्यविमूढ़ बने हम सब मां की बातें सुनते रहे.

मां ने बताया, ‘जब बाबूजी को दिल का दौरा पड़ने से अस्पताल में भरती करवाया गया, आननफानन डाक्टरों ने लाखों के खर्चों की फेहरिस्त थमा दी. हमेशा की तरह जब मां ने चंचला भाभी से पैसा निकालने के लिए कहा तो उन्होंने थोड़े से पैसे निकाल कर देने के बाद, यह कह कर पैसे निकालने से मना कर दिया कि अकाउंट में पैसे हैं ही नहीं. जबकि चंचला भाभी के साथ जौइंट अकाउंट में बाबूजी ने अच्छीखासी रकम जमा करवा रखी थी. 1 मिनट में चंचला भाभी ने मांबाबूजी के अटूट विश्वास की धज्जियां उड़ा कर रख दी थीं.

मां ने धैर्य से काम लेते हुए मकान और उस के बगल वाले जमीन के कागजात बाबूजी से मांगे, ताकि उन्हें गिरवी रख पैसों का इंतजाम करें. तब उन्हें पता चला, दुकान की रजिस्ट्री के समय वे सब भी चंचला भाभी ने अपने नाम करवा लिए थे. परिस्थिति को देखते हुए हम सब ने अभी मां को चुप रहने की सलाह दी और खुद भी खामोश रहे. मयंक भैया ने सारे खर्च संभाल लिए थे, पर डाक्टरों की लाख कोशिश के बाद भी बाबूजी को बचाया नहीं जा सका.

बाबूजी की तेरहवीं तक इस बारे में सब चुप रहे. जब सारे रिश्तेदार चले गए, मयंक भैया ने चंचला भाभी को बुलवा कर मां द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता जाननी चाही तब बिना किसी संकोच के मां द्वारा लगाए गए सारे आरोपों को सही बताते हुए वे बोलीं, ‘‘हां, मैं ने ऐसा किया है, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मैं और मेरे दोनों बच्चे हमेशा आप लोगों के मुहताज रहें.’’

उन की आंखों में एक अजीब सी हिंसक ईर्ष्या धधक उठी, जिसे देख भैया ने समझाना चाहा कि तुम ऐसा क्यों सोचती हो कि हम सब तुम्हारे अपने नहीं हैं.

भैया की बातें सुनते ही वे और भी भड़क उठीं. हमेशा से सीधीसादी दिखने वाली चंचला भाभी ने एकाएक बहुत उग्र रूप धारण कर लिया. कहीं बहस में रिश्तों की मर्यादा न टूट जाए, यह सोच मयंक भैया खामोशी से मां के बचेखुचे सामान और गहने समेट हम सब को साथ रांची ले जाने के लिए कार में आ बैठे.

हम सभी घर से निकले ही थे कि नवीन भैया बीच रास्ते में आ खड़े हो गए. मयंक भैया के कार रोकते ही वे दौड़ कर आए और भैया का हाथ थामते हुए बोले, ‘‘भैया, मुझे अकेला छोड़ कर मत जाइए, मैं आप लोगों के बिना जी नहीं सकूंगा.’’

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भैया कुछ बोलते, उस के पहले ही भाभी गाड़ी से उतर नवीन भैया का हाथ थाम अपने बगल में बैठाते हुए बोलीं, ‘‘चलो, तुम मेरे साथ चलो. इतना प्रतिभाशाली हो कर भी किस कदर तुम ने अपनी जिंदगी को नरक बना लिया. बहुत हुआ यह सब. तुम्हें मैं ने हमेशा अपना छोटा भाई समझा है. देखना, मैं तुम्हें फिर से कैसे बुलंदियों पर पहुंचाती हूं. जितना तुम ने जिंदगी में चाहा होगा उस का चौगुना तुम पाओगे, यह तुम्हारी भाभी का तुम से वादा है. एक दिन तुम यह भी देखोगे कि कैसे तुम्हारे यही बीवीबच्चे सिर के बल दौड़े तुम्हारे पास आएंगे.’’

गाड़ी आगे बढ़ी, अब मेरे बोलने की बारी थी, ‘‘आप लोगों को चंचला भाभी पर अटूट विश्वास करते देख मैं हमेशा खामोश रही, वरना मैं तो शुरू से ही उन्हें अच्छी तरह समझ रही थी. जो जितना उन की मीठी वाणी का मुरीद हुआ उस के गले पर उन की मीठी छुरी उतनी ही तेज चली. आप लोगों के तो फिर भी धनसंपत्ति पर ही उन की मीठी छुरी चली, जरा नवीन भैया की सोचिए, जिन की पूरी जिंदगी ही बरबाद हो गई.’’

किसी के पास अब इस बात का भला क्या जवाब था? सब मीठी छुरी के मारे हुए थे. सब को राहत इस बात की थी कि चलो घाव भले हुआ, प्राण तो बचे. शायद इसीलिए उस विषम परिस्थिति में भी सब के चेहरों पर मुसकराहट छा गई.

मेरी बेटी किसी से भी बात नहीं करती, क्या करूं?

सवाल

मेरी बेटी 12वीं के बाद टीचिंग का कोर्स करना चाहती है. लेकिन मेरे पति खुद डाक्टर होने के कारण उस पर भी डाक्टर बनने का दबाव डाल रहे हैं. वह तनाव में है और किसी से भी बात नहीं कर रही. मैं अपनी बेटी को ऐसी स्थिति में नहीं देख सकती?

मेरे पति का नौकरी में मन नहीं लगता, क्या करूं?

जवाब

आजकल मातापिता बच्चों पर जरूरत से ज्यादा कैरियर बनाने का दबाव बना रहे हैं. इस कारण वे तनावग्रस्त हो कर आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने में भी देर नहीं लगाते. बच्चों को वही करने दें जिस में उन की रुचि हो, न कि पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे प्रोफैशन को उन पर थोपें. वैसे शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत प्रतियोगिता है और अच्छी नौकरी मिलनी मुश्किल है. अभी बेटी छोटी है और डाक्टरी की पढ़ाई से भयभीत है, उसे समझाना जरूरी है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Review: जानें कैसी है अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘झुंड’

रेटिंग: ढाई स्टार

निर्माताः भूषण कुमार, किषन कमार, सविताराज हीरामठ,राज हीरामठ, मीनू अरोड़ा, संदीप सिंह, नागराज पोपटराव मंजुले

लेखक व निर्देशक: नागराज पोपटराव मंजुले

कलाकार: अमिताभ बच्चन, छाया कदम, अंकुश गेदम, प्रियांषु क्षत्रिय, अलेन पैट्कि, रिषभ बोधले, निखिन गनवीर,रिंकू राजगुरू, आकाश थोसर व अन्य

अवधिः लगभग तीन घंटे

फिल्म ‘‘सैराट’’ फेम मशहूर मराठी भाषी फिल्मकार नागराज पोपटराव मंजुले यानी कि नागराज मंजुले अपने एक तयशुदा ढर्रे का सिनेमा बनाते आ रहे हैं. नागराज मंजुले को कैरियर की पहली लघु फिल्म ‘‘पिस्तुल्या’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.नागराज मंजुले को फिल्में बनाते हुए बारह वर्ष हो गए, मगर वह एक ही ढर्रे की फिल्में बना रहे हैं. मराठी भाषा में ‘फैंडी’, ‘बाजी’,‘हाइवे’,‘सैराट’लघु फिल्म ‘‘पावसाचा निबंध’ के बाद नागराज मंजुले अब हिंदी भाषा की फिल्म ‘‘झुंड’’ लेकर आए हैं. ‘‘झुंड’’ का मतलब होता है जमावड़ा.फिल्म में झोपरपट्टी में रहने वाले तथा ड्ग्स व अन्य आपराधिक गतिविधियों में लिप्त युवा पीढ़ी के इर्द गिर्द घूमती है.

फिल्म ‘‘झुंड’’ नागपुर के ही खेल शिक्षक और ‘स्लम सोसर’ नामक एनजीओ के संस्थापक विजय बारसे पर बायोपिक स्पोर्ट्स फिल्म है.नागपुर में ‘स्लम सोसर’ एनजीओ झोपरपट्टी में रहने वाले बच्चों के जीवन स्तर को उंचा उठाने व उन्हे आपराध्किा गतिविधियो की बजाय खेल की तरफ मुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करती है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी नागपुर शाहर के इर्द गिर्द घूमती है. शहर में एक अंग्रेजी माध्यम के बड़े कालजे में खेल शिक्षक के रूप में कार्यरत विजय बोराड़े अपने रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले अपने कालेज व घर के बीच पड़ने वाली दलित झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को शराब व ड्रग्स बेचते, बगल से गुजरती कोयले की ट्रेन पर कोयला चुराते ,आपस में मार पीट करते देखते हैं.एक दिन बारिश के वक्त उन्ही बच्चों को एक खाली टीन के डिब्बे को पैर से एक दूसरे के पास फेंकते देखकर प्रोफेसर विजय बोराड़े के दिमगा में ख्याल आता है और दूसरे दिन वह उसी -हजयुग्गी बस्ती में फुटबाल लेकर पहुंचते हैं और बच्चों को इस गेंद से आधा घंटा खेलने पर पांच सौ रूपए देने का लालच देते हैं.पांच सौ रूपए के लिए बच्चे राजी हो जाते हैं.फिर प्रोफेसर हर दिन शाम को गेंद लेकर वहां पहुंचने लगे और बच्चों को फुटबाल खेलने के बाद पांच सौ रूपए देने लगे.जब बच्चों की इसकी आदत पड़ गयी,तो पांच सौ रूपए देने से इंकार करते हुए फुटबाल खेलने के लिए गेंद भी नहीं देते.तब बच्चे बिना पैसा लिए फुटबाल खेलना चाहते हैं.अब प्रोफेसर विजय बोराड़े उन बच्चां को एक टीम की तरह फुटबाल खेलना सिखाते हैं.फिर उन बच्चों का कालेज में प-सजय़ रहे बच्चों की फुटबाल टीम के साथ मैच कराते हैं, जिसमें झुग्गी के बच्चो की टीम जीत हासिल करती है.फिर राष्ट्रीय स्तर पर झोपड़पट्टी में रहने वालों का फुटबाल मैच होता है.इसके बाद इस टीम को विदेश में मैच खेलने के लिए निमंत्रण मिलता है.मगर अहम सवाल यह है कि क्या समाज हाशिए पर पड़े इन बच्चों को अपने बीच जगह देता है? इसका जवाब तो फिल्म देखने पर ही मिलेगा.

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लेखन व निर्देशनः

04 मार्च को ओटीटी की बजाय सिनेमाघरो में प्रदर्शित तीन घंटे की अवधि वाली यह फिल्म बोझिल है.बौलीवुड के महानायक कहे जाने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन के कंधे पर इस फिल्म को बाक्स आफिस पर सफल बनाने का बहुत बड़ा बोझ है,जिसमें उन्हे कामयाबी मिलेगी,ऐसी उम्मीद कम है.वास्तव में तीन घंटे की लंबी फिल्म बनाते हुए फिल्म सर्जक नागराज मंजुले यह तय नहीं कर पाए कि वह अमिताभ बच्चन के किरदार विजय बोराड़े को नायक के तौर पर पेश करें अथवा  बच्चों के कठिन जीवन की त्रासदी पर अपना ध्यान केंद्रित करे.परिणामतः फिल्म में तमाम कमियां हैं और यह फिल्म उपेक्षित समाज को हाशिए से बाहर निकालने में असफल रहती है.

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नागराज मंजुले ने अपनी पिछली दो फिल्में ‘फैंडी’ और ‘सैराट’ में जाति विभाजन और अमानवीय सामाजिक रीतिरिवाजों पर कठोर बात की थी.फिल्म झुंड’ में वह काफी डरे व सहमें से नजर आते हैं.‘फैंडी’ और ‘सैराट’ में जिस तरह से प्रखरता व मुखरता से बातें की थी,उतनी मुखरता के साथ वह ‘झुंज’ में नजर नही आते.क्या हिंदी फिल्मकार के रूप में खुद को स्थापित करने के दबाव के चलते उन्होने अपने आपको दबाया? अथवा वह मुख्य किरदार में अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार को लेने के बाद उनके ‘औरा’ के तले दबकर रह गए..?? इसका सही जवाब तो वही जानते होंगे? मगर दोनो ही स्थिति में यह फिल्मकार की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. इस कमजोर कड़ी के ही चलते वह फिल्म के मूल मकसद से भटक गए. फिल्म में एक जगह जय भीम के नारे व बाबा साहेब आंबेडकर के पोस्टर व मूर्ति के बीच संगीत की धुन पर कुछ देर लोग थिरकते नजर आए हैं.इससे यह साफ हो जाता है कि इस झुगी बस्ती के पात्र दलित हैं.पर इससे अधिक इस फिल्म में  उपेक्षित समाज के बच्चों या उनके अपराधी बनने पर कुछ खास नही कहा गया है.

नागराज पोपटराव मंजुले की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने दलित समाज के भटके हुए व वंचित बच्चों को अपनी फिल्म में मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है. यूं तो इस फिल्म में भी फिल्मकार नागराज मंजुले ने अपनी शैली के अनुरूप इस बात को रेखांकित किया है कि दलित समाज व झुग्गी झोपड़पट्टी में रहने वालों के साथ दूसरे लोग व आर्थिक रूप से संपन्न लोग किस तरह का व्यवहार करते हैं.मगर सब कुछ बहुत सतही रहा. फिल्म के लिए मंजुले ने खुद ही कलाकारों का चयन करते हुए विजय बोराड़े से इतर किरदारों के लिए बौलीवुड कलाकारों से दूरी बनाकर सही कदम उठाया. इन मराठी भाषा कलाकारों की मौजूदगी ने जरुर नागराज मंजुले की मदद की. फिल्मकार ने कहानी में पॉश कालेज के बगल में ही दलित झुग्गी बस्ती को बसाकर काफी कुछ कह दिया है. ‘झुंड’ उत्थान की ऐसी कथा,जिसे कहा जाना अनिवार्य है. मगर नागराज पोपटराव मंजुले अपनी प्रखरता को बरकरार रखते हुए पटकथा पर ध्यान देते,तो यह फिल्म बेहतर बन सकती थी.

वैसे यह फिल्म यह गंदगी से परे देखने का आग्रह करने के साथ एकजुट रहने की अपील करती है.फिल्म इस बात की ओर भी इशारा करती है कि हर इंसान को चाहिए कि वह दूसरे इंसान को उसके काले रंग,जाति,पंथ आदि से परे जाकर स्वीकार करे.

फिल्म काफी लंबी है.इसे कम से कम चालिस मिनट काटकर बनाया जा सकता था. इंटरवल से पहले के मुकाबले इंटरवल के बाद का हिस्सा काफी कमजोर हैं. इंटरवल से पहले बच्चों को फुटबाल का प्रषिक्षण देने के दृष्य को जल्दबाजी में निपटाया गया है.इंटरवल के बाद बच्चों के पासपोर्ट बनाने के सारे दृश्य बेवजह खींचे गए हैं.कोर्ट दृश्य काफी कमजोर है.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो प्रोफेसर विजय बोराड़े के किरदार में अमिताभ बच्चन ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है.उनकी पत्नी के किरदार में छाया कदम के लिए करने को कुछ खास रहा ही नही. अंकुश मेश्राम के किरदार में अभिनेता अंकुष गेदम ने काफी बेहतरीन अभिनय किया है.वह अपनी अभिनय शैली व भाव भंगिमा से दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रहे हैं.रिंकू राजगुरू ने कैमियो में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है. अन्य कलाकार ठीक ठाक रहे.

यूक्रेन: आपरेशन गंगा- अपने मुंह मियां मिट्ठू सरकार

रशिया यूक्रेन युद्ध संकट मामले में भारतीय छात्र जो यूक्रेन में फंसे हुए हैं उन्हें सुरक्षित लाने के ऑपरेशन गंगा के संदर्भ में यही दिखाई देता है.

दरअसल, दामोदरदास मोदी सरकार की गलतियों की वजह से हजारों लोग यूक्रेन में फंसे हुए थे जिनमें छात्र बहुतायत संख्या में अब भारत लौट रहे हैं. जब यूक्रेन से छात्र छात्राओं ने वीडियो बनाकर के अपनी पीड़ा को जगजाहिर कर दिया तो नरेंद्र मोदी सरकार हरकत में आई और बचाव काम को तेज कर दिया गया.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि लगभग 2 माह से अमेरिका लगातार यह बात कहता आ रहा था कि रूस, यूक्रेन पर हमला करने  ही वाला है, ऐसी स्थिति में संकेत मिल जाने के बाद भी नरेंद्र मोदी सरकार कुंभकरण निद्रा में सोई रही और यूक्रेन में भारतीय जनमानस को भारत लौटने के लिए एडवाइजरी जारी नहीं की.

परिणाम स्वरूप जब युद्ध प्रारंभ हो गया भारत के  हजारों लोग वहां बुरी तरह फंस गए और तब जाकर के भारत सरकार के माथे पर शिकन आई.

भारत के अपने ही नौनिहालों को भारत में लाने के बीच जो गफलते हुई हैं वह दुखद भी है और हास्यास्पद भी. और यह बताता है कि हमारी सरकारें हमारा प्रशासन तंत्र किस तरह खामियों से भरा हुआ है.

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पोल,  वायरल विडियो से खुली

देश में रोमानिया गए मोदी कैबिनेट के नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खासा वायरल  है.

इस विडियो में रोमानिया के मेयर सिंधिया को टोकते हुए याद दिला रहे हैं कि हमने इन भारतीय छात्रों के खाने और रहने का इंतजाम किया था, आपने नहीं!

हालांकि बाद में झेंप मिटाने के लिए सिंधिया आखिर में कहते हैं कि वो मदद के लिए रोमानिया के अधिकारियों का शुक्रिया अदा करते हैं.

दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार के 4 मंत्री यूक्रेन के आसपास स्थित देशों में भेजे गए हैं. भारत के यह कैबिनेट मंत्री  “ऑपरेशन गंगा” के तहत भारतीय छात्रों को वापस भारत लाने के लिए इंतजाम कर रहे हैं और नागरिक उड्डयन मंत्री सिंधिया रोमानिया में मोर्चा संभाले हुए हैं. और इस वीडियो को देखकर ऐसा लगता है जैसे मोदी सरकार के मंत्री सिर्फ फूल लेकर के मानव स्वागत के लिए चले गए हैं उन्हें यह नहीं पता कि युद्ध के समय फंसे हुए अपने नागरिकों के लिए भोजन और रसद की भी व्यवस्था करनी चाहिए.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें आप भारतीय छात्रों से बात कर रहे हैं. जब सिंधिया अपनी सरकार की वाहवाही करते हैं तो तभी रोमानिया के मेयर उन्हें टोकते हुए याद दिलाते हैं कि इन छात्रों के रहने और खाने का इंतजाम हमने किया है, आपकी भारत सरकार ने नहीं!

रोमानिया के मेयर कहते हैं – आप सिर्फ अपनी बात कीजिए. वीडियो में दिखता है कि इस पर सिंधिया थोड़ा असहज होते हैं और एक तरह से चिढ़कर कहते हैं कि मैं क्या बोलूंगा यह मैं तय करूंगा. मेयर फिर से उन्हें करारा जवाब देते हुए कहते हैं कि आप अपनी बात कीजिए.वीडियो नें दिखता है कि मेयर की बात पर वहां बैठे छात्र ताली बजाकर उनका समर्थन करते हैं.

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अपनी पीठ ठोंकती सरकार

आज नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार दरअसल अपनी पीठ ठोकने में ज्यादा विश्वास रखती है. कोई भी बात हो चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो उसमें नरेंद्र मोदी और उसकी संपूर्ण कैबिनेट भारतीय जनता पार्टी अपनी पीठ स्वयं थपथपाने लगती है.और यह भी नहीं सोचती कि आपका काम सिर्फ अपना काम करना है, आपकी प्रशंसा आपकी पीठ देश की जनता ठोंकेगी , शाबाशी देगी या फिर भला बुरा कहेगी.

2014 के बाद एक नई परीपाटी शुरू हुई है अपना हर काम चाहे वह कितना ही गलत हो उसे सही साबित करने का प्रयास किया जाता है. और  अपनी तारीफ करने में जरा भी गुरेज नहीं है अर्थात अपने मुंह मियां मिट्ठू सरकार है मोदी सरकार.

यूक्रेन संकट के मामले में भी मोदी और उसका कैबिनेट जगह जगह असफलता लिए हुए ही दिखाई देता है.

कारपेंटर का काम करते हुए फिल्म निर्देशक बने शादाब सिद्दिकी

इंसान यदि कुछ बनना चाहे, तो पूरी कायनात उसकी मदद करने के लिए तैयार रहती है. यह महज एक कहावत या फिल्मी संवाद नही है. बल्कि एक कटु सत्य है. इसकी मिसाल हैं मदरसे की प-सजय़ाई और कारपेंटर का काम करते हुए फिल्म निर्देशक बन जाने वाले शादाब सिद्दिकी की. शादाब सिद्दिकी की बतौर लेखक एक फिल्म ‘‘है सलाम तुझे इंडिया’’, ‘‘ हंगामा प्ले ’’ पर स्ट्रीम हो रही है. वह अब तक ‘‘लव इन स्लम’ व ‘व्हेअर इज नजीब’जैसी लघु फिल्मों तथा ‘फखर से कहो हम मुसलमान हैं’, राह का तेरी मुसाफिर’,‘पल पल’ व ‘खुदा के बाद’ सहित पचीस से अधिक म्यूजिक वीडियो निर्देशित कर चुके हैं.

अब वह दिग्गज गायक राहत फतेह अली द्वारा संगीतबद्ध व स्वरबद्ध गीत ‘‘रोंदे नैन हमारे.. ’’ का म्यूजिक वीडियो फिल्माने जा रहे हैं,जिसमें राहत फतेह अली खान भी होंगें.

सवाल-  शादाब,आपको फिल्मों से जुड़ने का नशा कैसे सवार हुआं?अपनी अब तक की यात्रा के संदर्भ में क्या कहेंगें?

जवाब- मैं संतकबीर नगर, उत्तर प्रदेश में कुंदवा गांव का निवासी हूं. मेरी शिक्षा पहले गांव के मदरसे में हुई.फिर बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर स्कूल में हुई. मेरे गांव के एक तरफ गंगा बह रही हैं, दूसरी तरफ छोटी गंगा बह रही हैं और बीच में हमारा खूबसूरत गांव है.संत कबीर का अंतिम समय यही गुजरा. इसलिए यहां गंगा जमुनी तहजीब भी है. स्कूली शिक्षा आठवीं तक हुई. फिर मैं मुंबई आ गया था, क्योंकि पढ़ाई में मन नही लग रहा था. उस उम्र में मैं पढ़ाई के महत्व को समझ नहीं पा रहा था.वास्तव में जब मैं आठ साल का था, तभी से मेरे दिमाग में सिनेमा घुस गया था. मुंबई सपनों की नगरी है. यहां आकर मैं भी अपने पिता व चाचा के फर्नीचर के व्यापार से जुड़ गया. हमारे पास आरा मशीन भी थी.

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जी हां, मेरी अब तक की यात्रा अविश्वसनीय रूप से रोमांचक और भावनात्मक रही.सिनेमा के लिए मेरा जुनून 8 साल की छोटी उम्र में शुरू हुआ था.उसके बाद दुनिया विकसित हो गई. सिनेमा की तकनीक में भी काफी बदलाव आ गया.लेकिन जब मैं सिर्फ एक लड़का था, तो मैं अपने समय की तकनीक से प्रभावित था.सीडी के जरिए फिल्म देखने के मौके ने मेरे अंदर के जोश को सजाया. जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मैं वास्तव में अपने सपने को समझ पाया. अपने विचारों को अपनी वास्तविकता बनाने के लिए, मैंने तय किया कि यह मेरे आराम क्षेत्र से बाहर निकलने और सपनों के शहर मुंबई में अपने जुनून को आगे बढ़ाने का समय है. बहुत जल्द ‘हर कोई संघर्ष से गुजरता है‘ मुहावरा मेरी समझ में आ गया.

मुंबई पहुंचने के बाद कारपेंटर या यूं कहें कि समझ के रूप में काम करने से लेकर अपने चाचा का व्यवसाय चलाने तक, मैंने काफी कुछ किया. बहुत कुछ सीखा. फिर मैंने फिल्मों में बतौर सहायक प्रोडकशन मैनेजर काम किया.फिर मैंने कई फिल्मों का प्रोडक्शन डिजायनर रहा. फिर 2016 में लघु फिल्म ‘‘लव इन स्लम‘‘ का निर्देशन किया,जिसने मुझे काफी शोहरत दी. उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2017 में मेरी दूसरी लघु फिल्म ‘‘ह्वेयर इज नजीब‘‘ ने तो मुझे स्टार बना दिया. उसके बाद से लगातार काम करते हुए अब तक तकरीबन पचीस म्यूजिक वीडियो निर्देशित कर चुका हूं. इन म्यूजिक वीडियो में ‘फखर से कहो हम मुसलमान हैं’, ‘तिरंगा’,‘एक कदम’‘जाकिर के 40 दिन का निशान’,‘काला दिन’,‘दे गोली’,‘ ख्वाब’,‘शिकवा द अनटोल्ड लव स्टोरी’,‘नवाजिश’,‘राह का तेरी मुसाफिर’ व ‘खुदा के बाद’ का समावेश है. इतना ही नही मैंने फिल्म ‘‘है तुझे सलाम’ का लेखन किया, जो इन दिनों ‘हंगामा प्ले’पर स्ट्रीम हो रही है. अब हम राहत फतेह अली खान के गीत के म्यूजिक वीडियो का निर्देशन करने जा रहे हैं.

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सवाल- फिल्म ‘‘है तुझे सलाम इंडिया’’ के माध्यम से आपने क्या कहने का प्रयास किया है?

जवाब- इस फिल्म में जवान व किसान का मुद्दा है. जवान और किसान दोनों इस देश की रीढ़ की हड्डी है.हमारे देश का जवान सदैव सरहद पर मौजूद रहता है. वह देश सेवा में सदैव तत्पर रहता है. तो वहीं किसान खेतों में काम करता रहता है.वह हमारा अन्नदाता है.हमारी फिल्म में जवानों के परिवार की समस्याओं का चित्रण करने के साथ ही इस बात का संदेश है कि हमें जवानों के परिवार के साथ सदैव खड़े रहना चाहिए.वहीं किसानों की जो बदहाली है, उसे हम सभी अनदेखा करते रहते हैं. हमारी फिल्म का संदेश है कि देश के अन्नदाता यानी कि किसान से हमें बात करनी चाहिए.

सवाल- आपके अनुसार किसान व जवान के साथ क्या होना चाहिए?

जवाब- देखिए,मेरी राय में अन्नदाता को लेकर कोई समझौता वादी रूख नहीं अपनाया जाना चाहिए. भारत की जमीन तो सोना उगलती है.पर सोना सही तरीके से सही जगह पहुंचना चाहिए. उसकी सिस्टमैटिक वैल्यू होनी चाहिए.जो इस सोने को अपनी मेहनत व पसीने से निकाल रहा है, उसका पहला हक इस सोने पर होना चाहिए.ऐसे में सरकार को सबसे पहले किसान के बारे में सोचना चाहिए.किसानों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. सदियों पुराने कानून को भी बदलना चाहिए. सरकार को देश के लोगों,किसानों के बीच जाना चाहिए और बातें करना चाहिए.उनकी समस्या को समझकर उसका निदान ढूढना चाहिए.

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सवाल- आपने पहले कई सफल म्यूजिक वीडियो बनाए हैं.अब पहली बार आप राहत फतेह अली खान जी के गाने पर काम कर रहे हैं.इस पर कुछ रोशनी डालेंगें?

जवाब- लंबे समय से मैं नए और स्थापित कलाकारों के साथ म्यूजिक बनाता आया हूं. लेकिन राहत फतेह अली खान साहब लीजेंडरी गायक हैं.उनके पूरे खानदान के लोग रसूख वाले हैं.उन पर मां सरस्वती का भरपूर आशिर्वाद है. मैं हमेशा अच्छे कलाकारों के साथ काम करने का प्रयास करता हूं. इस अलबम का निर्माण मेरे दोस्त रजत शर्मा और हिमांषु अग्रवाल ने ‘स्टूडियो 7 रिकार्ड्स’ के अरविंद के साथ मिलकर कर रहे हैं. इन दोंनो ने मुझे राहत फतेह अली खान साहब के गाने ‘‘रोंदे नैन हमारे..’’ का ऑडियो सुनाया था. जिसे करामात जी ने लिखा है. इस गाने के बोल पंजाबी फोक से हैं. इसका ऑडियो पाकिस्तान के तकनीशियनों ने ही बनाया है. इसका रिकार्ड लेबल कनाडा का है.

रजत शर्मा और हिमांशु अग्रवाल इससे पहले रफ्तार सहित कई बड़े गायकों के साथ काम कर चुके हैं. रजत शर्मा ने जब मुझे राहत साहब द्वारा स्वरबद्ध यह गाना सुनाया, तो मैं मंत्रमुग्ध हो गया. इस गाने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस गाने को राहत साहब ने स्वयं संगीत से भी संवारा है. अब तक हम सभी ने राहत साहब को जो सुना है, उससे यह गाना बहुत ही ज्यादा अलग है. श्रोताओं को भी कुछ नया सुनने को मिलेगा. इतना ही नहीं इस गाने के वीडियो का भी राहत साहब हिस्सा बनेंगे.

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सवाल- इस गाने को संगीत से संवारने व स्वरबद्ध करने के लिए राहत साहब ने क्यों चुना. इस बारे में उनसे कोई बात हुई?

जवाब– राहत साहब के अनुसार यह गाना उनके दिल के काफी करीब है. राहत साहब उन गायको में से हैं जो कि खानदानी हैं और उन पर मां सरस्वती मेहरबान है. राहत साहब जज्बात गाते हैं. अगर आपके पास गीत की पंक्तियां नही है, तो यदि राहत साहब ने आलाप भी ले लिया, तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाएगा. यह गाना राहत साहब के इतना करीब था कि उन्होंने स्वयं इसे संगीतबद्ध करने के साथ गाया भी.

आपने मदरसे में पढ़ाई की है तो आप बताएं कि मदरसे या हिंदी माध्यम की पढ़ाई से आगे कैरियर बनाने में किस तरह की समस्याएं आती हैं?

जवाब– मदरसे से पढ़कर काफी लोग आगे बढ़े हैं. मगर मदरसे में जो पढ़ाया जाता है,वह तो पढ़ाया जाए.मगर मेरा मानना है कि दीन के साथ दुनिया की बातें भी पढ़ाई जानी चाहिए. दुनियावी किताबों को भी मदरसे में पढ़ाये जाने की बहुत जरुरत है. मैंने इस दिशा में अपने गांव में काफी काम किया है. मगर इस पर पूरे देश में काफी काम किए जाने की जरुरत है, जिससे मदरसों की हालत सुधर सके.

मदरसे में हिंदी व अंग्रेजी में भी तालीम दी जानी चाहिए.जिससे लोगों का भविष्य उज्ज्वल हो सके. हमने अपने गांव में एक लड़ाई लड़कर अपने गांव के मदरसे में हिंदी व अंग्रेजी की किताबें रखवाने के साथ ही इन भाषाओं में पढ़ाई शुरू करवाने में सफल रहा.

सवाल- किस तरह के विषयों पर काम करना पसंद हैं?

जवाब– मुझे हर तरह के विषय पर काम करना पसंद है. मैंने विविधतापूर्ण लघु फिल्में व म्यूजिक वीडियो निर्देशित किए हैं. वैसे मुझे सामाजिक व राजनीतिक विषय ज्यादा आकर्शित करती है.मगर मैं सब कुछ वास्तविकता के धरातल पर पेश करने में यकीन करता हूं.

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अब तक का आपका संघर्ष?

जवाब– पहले ही कहा कि हर इंसान को संघर्ष से गुजरना पड़ता है.मैं हर कठिन परिस्थिति में सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ता हूं. यह एक यात्रा है, इसलिए यदि मैं विनम्रतापूर्वक कहूं कि जीवन एक बाधा दौड़ है. और भगवान की कृपा से, मेरे सामने इतनी सारी चुनौतियाँ नहीं थीं जिनका मैंने सामना किया. फिल्म इंडस्ट्री में मेरा करियर अभी शुरू हुआ है. और इस शुरूआत में ही लीजेंडरी गायक व संगीतकार राहत फतेह अली साहब के साथ काम करने का अवसर मिलना किसी आशिर्वाद से कम नहीं है.

किंजल की सौतन की होगी एंट्री, शाह परिवार के उड़ जाएंगे होश

टीवी सीरियल अनुपमा में  इन कहानी में दिलचस्प मोड़ दिखाया जा रहा है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि शाह हाउस में ढोल- नगाड़ों के साथ राखी दवे की एंट्री हुई. वह नानी बनने की खबर से काफी खुश है लेकिन शाह हाउस में फिर से बड़ा धमाका करने वाली है. शो के नए एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि परितोष इतना खुश नहीं है कि वह पापा बनने वाला है. इस बात से अनुपमा और किंजल परेशान है. अनुपमा वनराज से कहती है कि पारितोष को इस नए शुरूआत के लिए समझाना पड़ेगा. वनराज भी अनुपमा के इस बात का सपोर्ट करता है.

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तो वहीं शाह परिवार में किंजल के मां बनने की खबर से सभी घरवाले खुश है लेकिन परितोष कहेगा कि मुझे अभी पापा नहीं बनना है. जबकि किंजल मां बनने के लिए तैयार है.

 

शो में आप देखेंगे कि राखी दवे को कुछ गड़बड़ लगेगा कि आखिर परितोष पापा बनने की खबर से इतना खुश क्यों नहीं है. वह परितोष की सच्चाई जानने के लिए पता करेगी. रिपोर्ट के अनुसार, कहानी में एक नया ट्रैक आएगा.जी हां बताया रहा है कि राखी दवे को पता चलेगा कि परितोष की गर्लफ्रेंड है.

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शो के आने वाले एपिसोड में राखी दवे बड़ा ड्रामा करेगी. खबरों के अनुसार,परितोष की गर्लफ्रेंड का कनेक्शन राखी से है. परितोष की गर्लफ्रेंड, राखी दवे की पिछली कंपनी की को-वर्कर है. इससे कहानी में दिलचस्प मोड़ आएगा. वह पारितोष का सच सबके सामने लाएगी. दरअसल यह सच्चाई किंजल के गोद भराई समारोह में सामने आएगा.

कोरा कागज: माता-पिता की सख्ती से घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

Writer- Sudha Jugran

राहुल औफिस से घर आया तो पत्नी माला की कमेंट्री शुरू हो गई, ‘‘पता है, हमारे पड़ोसी शर्माजी का टिंकू घर से भाग गया.’’

‘‘भाग गया? कहां?’’ राहुल चौंक कर बोला.

‘‘पता नहीं, स्कूल की तो आजकल छुट्टी है. सुबह दोस्त के घर जाने की बात कह कर गया था. तब से घर नहीं आया.’’

‘‘अरे, कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. पुलिस में रिपोर्ट की या नहीं?’’ राहुल डर से कांप उठा.

‘‘हां, पुलिस में रिपोर्ट तो कर दी पर 13-14 साल का नादान बच्चा न जाने कहां घूम रहा होगा. कहीं गलत हाथों में न पड़ जाए. नाराज हो कर गया है. कल रात उस को बहुत डांट पड़ी थी, पढ़ाई के कारण. उस की मां तो बहुत रो रही हैं. आप चाय पी लो. मैं जाती हूं, उन के पास बैठती हूं. पड़ोस की बात है, चाय पी कर आप भी आ जाना,’’ कह कर माला चली गई.

राहुल जड़वत अपनी जगह पर बैठा का बैठा ही रह गया. उस के बचपन की एक घटना भी कुछ ऐसी ही थी, जरा आप भी पढ़ लीजिए :

वर्षों पहले उस दिन बस से उतर कर राहुल नीचे खड़ा हो गया था. ‘अब कहां जाऊं?’ वह सोचने लगा, ‘पिता की डांट से दुखी हो कर मैं ने घर तो छोड़ दिया. आगरा से दिल्ली भी पहुंच गया, लेकिन अब कहां जाऊं? घर तो किसी हालत में नहीं जाऊंगा.’ उस ने अपना इरादा पक्का किया, ‘पता नहीं क्या समझते हैं मांबाप खुद को. हर समय डांट, हर समय टोकाटाकी, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, टीवी मत देखो, दोस्तों से फोन पर बात मत करो, हर समय बस पढ़ो.’

उस की जेब में 500 रुपए थे. उन्हें ही ले कर वह घर से चल दिया था. 13 साल के राहुल के लिए 500 रुपए बहुत थे.

दुनिया घर से बाहर कितनी भयानक और जिंदगी कितनी त्रासदीपूर्ण होती है इस का उसे अंदाजा भी नहीं था. नीली जींस और गुलाबी रंग का स्वैटर पहने स्वस्थ, सुंदर बच्चा अपने पहनावे और चालढाल से ही संपन्न घर का लग रहा था.

बस अड्डे पर बहुत भीड़ थी. राहुल एक तरफ खड़ा हो गया. बसों की रेलमपेल, टिकट खिड़की की लाइन, यात्रियों का रेला, चढ़नाउतरना. टैक्सी व आटो वालों का यात्रियों के पीछे पड़ना. यह सब वह खड़ेखड़े देख रहा था.

उस के मन में तूफान सा भरा था. घर तो जाना ही नहीं है. जब वह शाम तक घर नहीं पहुंचेगा तब सब उसे ढूंढ़ेंगे. मां रोएंगी. पिता चिंता करेंगे. बहन उस के दोस्तों के घर फोन मिलाएगी. खूब परेशान होंगे सब. अब हों परेशान. जब पापा हर समय डांटते रहते हैं, मां हर छोटीछोटी बात पर पापा से उस की शिकायत करती रहती हैं तब वह रोता है तो किसी को नहीं दिखता है.

पापा के घर आते ही जैसे घर में कर्फ्यू लग जाता है. न कोई जोर से बोलेगा, न जोर से हंसेगा, न फोन पर बात करेगा, न टीवी देखेगा. उन्हें तो बस बच्चे पढ़ते हुए नजर आने चाहिए. हर समय पढ़ने के नाम से तो उसे नफरत सी हो गई.

छोटीछोटी बातों पर दोनों झगड़ते भी रहते हैं. छोटेमोटे झगड़े से तो इतना फर्क नहीं पड़ता पर जब पापा के दहाड़ने की और मां के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है तो वह दीदी के पहलू में छिप जाता है. बदन में कंपकंपी होने लगती है. अब कहीं उस का भी नंबर न आ जाए पिटने का, वैसे भी उस के रिपोर्ट कार्ड से पापा हमेशा ही खफा रहते हैं.

अगले कुछ दिनों तक घर का वातावरण दमघोंटू हो जाता है. मां की आंखें हर वक्त आंसुओं से भरी रहती हैं और पापा तनेतने से रहते हैं. उसे संभल कर रहना पड़ता है. दीदी बड़ी हैं, ऊपर से पढ़ने में अच्छी, इसलिए उन को डांट कम पड़ती है.

वह घर के वातावरण के ठीक होने का इंतजार करता है. घर के वातावरण का ठीक होना पापा के मूड पर निर्भर करता है. बड़ी मुश्किल से पापा का मूड ठीक होता है. जब तक सब चैन की सांस लेते हैं तब तक किसी न किसी बात पर उन का मूड फिर खराब हो जाता है. तंग आ गया है वह घर के दमघोंटू वातावरण से.

इस बार तिमाही परीक्षा के रिजल्ट पर मैडम ने पापा को बुलाया. स्कूल से आ कर पापा ने उसे खूब डांटा, मारा. उस का हृदय दुखी हो गया. पापा के शब्द अभी तक उस के कानों में गूंज रहे थे, ‘तेरे जैसी औलाद से तो बेऔलाद होना अच्छा है.’

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उस का हृदय तारतार हो गया था. उसे कोई पसंद नहीं करता. उस की समस्या, उस के नजरिए से कोई देखना नहीं चाहता, समझना ही नहीं चाहता. दीदी कहती हैं कि पढ़ाई अच्छी कर ले, सब ठीक हो जाएगा लेकिन उस का मन पढ़ाई में लगता ही नहीं. पढ़ाई उसे पहाड़ जैसी लगती है. उस ने दीदी से कहा भी था कि मैथ्स, साइंस में उस का मन बिलकुल नहीं लगता, उसे समझ ही नहीं आते दोनों विषय, पर पापा कहते हैं साइंस ही पढ़ो. वैसे भी विषय तो वह 10वीं के बाद ही बदल सकता है. राहुल इसी सोच में डूबा था कि एक टैक्सी वाले ने उसे जोर से डांट दिया.

‘अबे ओ लड़के, मरना है क्या? बीचोंबीच खड़ा है, बेवकूफ की औलाद. एक तरफ हट कर खड़ा हो.’

राहुल अचकचा कर एक तरफ खड़ा हो गया. ऐसे गाली दे कर तो कभी किसी ने उस से बात नहीं की थी.

उस की आंखें अनायास ही छलछला आईं पर उस ने खुद को रोक लिया. उसे इस तरह सोचतेसोचते काफी लंबा समय बीत गया था. शाम ढलने को थी. भूख लग आई थी और ठंड भी बढ़ रही थी. उस के बदन पर सिर्फ एक स्वैटर था. उस ने गले का मफलर और कस कर लपेटा और सामने खड़े ठेलीवाले वाले की तरफ बढ़ गया. सोचा पहले कुछ खा ले फिर आगे की सोचेगा. ठेली पर जा कर उस ने कुछ खानेपीने का सामान लिया और एक तरफ बैठ कर खाने लगा.

तभी एक बदमाश किस्म का लड़का उस के चारों तरफ चक्कर काटने लगा. वह बारबार उस की बगल में आ कर खड़ा हो जाता. आखिर राहुल से न रहा गया. वह बोला, ‘क्या बात है, आप इस तरह मेरे चारों तरफ क्यों घूम रहे हैं?’

‘साला, अकड़ किसे दिखा रहा है? तेरे बाप की सड़क है क्या?’ लड़का अपने पीले दांतों को पीसते हुए बोला.

राहुल उस के बोलने के अंदाज से डर गया.

‘मैं तो सिर्फ पूछ रहा था,’ कह कर वह वहां से हट कर थोड़ा अलग जा कर खड़ा हो गया. लड़का थोड़ी देर बाद फिर उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘कहां से आया है बे? अकेला है क्या?’ वह आंखें नचाता हुआ राहुल से पूछने लगा. राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘अबे बोलता क्यों नहीं, कहां से आया है? अकेला है क्या?’

‘आगरा से,’ किसी तरह राहुल बोला.

‘अकेला है क्या?’

राहुल फिर चुप हो गया.

‘अबे लगाऊं एक, साला, बोलता क्यों नहीं?’

‘हां,’ राहुल ने धीरे से कहा.

‘अच्छा, घर से भाग कर आया है,’ उस लड़के के हौसले थोड़े और बुलंद हो गए. तभी वहां उसी की तरह के उस से कुछ बड़े 3 लड़के और आ गए.

‘राजेश, यह कौन है?’ उन लड़कों में से एक बोला.

‘घर से भाग कर आया है. अच्छे घर का लगता है. अपने मतलब का लगता है. उस्ताद खुश हो जाएगा,’ उस ने पूछने वाले के कान में फुसफुसाया.

‘क्यों भागा बे घर से, बाप की डांट खा कर?’ दूसरे लड़के ने राहुल से पूछा.

‘हां,’ राहुल उन चारों को देख कर डर के मारे कांप रहा था.

‘मांबाप साले ऐसे ही होते हैं. बिना बात डांटते रहते हैं. मैं भी घर से भाग गया था, मां के सिर पर थाली मार कर,’ वह उस के गाल सहला कर, उस को पुचकारता हुआ बोला, ‘ठीक किया तू ने, चल, हमारे साथ चल.’

‘मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊंगा,’ राहुल सहमते हुए बोला.

‘अबे चल न, यहां कहां रहेगा? थोड़ी देर में रात हो जाएगी, तब कहां जाएगा?’ वे उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाह रहे थे.

‘नहीं, मुझे अकेला छोड़ दो. मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊंगा,’ डर के मारे राहुल की आंखों से आंसू बहने लगे. वह उन से अनुनय करने लगा, ‘प्लीज, मुझे छोड़ दो.’

‘अरे, ऐसे कैसे छोड़ दें. चलता है हमारे साथ या नहीं? सीधेसीधे चल वरना जबरदस्ती ले जाएंगे.’

इस सारे नजारे को थोड़ी दूर पर बैठे एक सज्जन देख रहे थे. उन्हें लग रहा था शायद बच्चा अपनों से बिछड़ गया है.

उन लड़कों की जबरदस्ती से राहुल घबरा गया और रोने लगा. अंधेरा गहराने लगा था. डर के मारे राहुल को घर की याद भी आने लगी थी. घर वालों को मालूम भी नहीं होगा कि वह इस समय कहां है. वे तो उसे आगरा में ढूंढ़ रहे होंगे.

आखिर एक लड़के ने उस का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती अपने साथ घसीटने लगा. राहुल उस से हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रहा था. दूर बैठे उन सज्जन से अब न रहा गया. उन का नाम सोमेश्वर प्रसाद था, एकाएक वे अपनी जगह से उठ कर उन लड़कों की तरफ बढ़ गए और साधिकार राहुल का हाथ पकड़ कर बोले, ‘अरे, बंटी, तू कहां चला गया था? मैं तुझे कितनी देर से ढूंढ़ रहा हूं. ऐसे कोई जाता है क्या? चल, घर चल जल्दी. बस निकल जाएगी.’

फिर उन लड़कों की तरफ मुखातिब हो कर बोले, ‘क्या कर रहे हो तुम लोग मेरे बेटे के साथ? करूं अभी पुलिस में रिपोर्ट. अकेला बच्चा देखा नहीं कि उस के पीछे पड़ गए.’

सोमेश्वर प्रसाद को एकाएक देख कर लड़के घबरा कर भाग गए. राहुल सोमेश्वर प्रसाद को देख कर चौंक गया. लेकिन परिस्थितियां ऐसी थीं कि उस ने उन के साथ जाने में ही भलाई समझी. उम्रदराज शरीफ लग रहे सज्जन पर उसे भरोसा हो गया.

थोड़ी देर बाद राहुल सोमेश्वर प्रसाद के साथ जयपुर की बस में बैठ कर चल दिया.

सोमेश्वर प्रसाद का स्टील के बरतनों का व्यापार था और वे व्यापार के सिलसिले में ही दिल्ली आए थे. सोमेश्वर प्रसाद ने उस के बारे में जो कुछ पूछा, उस ने सभी बातों का जवाब चुप्पी से ही दिया. हार कर सोमेश्वरजी चुप हो गए और उन्होंने उसे अपने घर ले जाने का निर्णय ले लिया.

घर पहुंचे तो उन की पत्नी उन के साथ एक लड़के को देख कर चौंक गईं. उन्हें अंदर ले जा कर बोलीं, ‘कौन है यह? कहां से ले कर आए हो इसे?’

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‘यह लड़का घर से भागा हुआ लगता है. कुछ बदमाश इसे अपने साथ ले जा रहे थे. अच्छे घर का बच्चा लग रहा है. इसलिए इसे अपने साथ ले आया. अभी घबराहट और डर के मारे कुछ बता नहीं रहा है. 2-4 दिन बाद जब इस की घबराहट कुछ कम होगी, तब बातोंबातों में प्यार से सबकुछ पूछ कर इस के घर खबर कर देंगे,’ सोमेश्वर प्रसाद पत्नी से बोले, ‘अभी तो इसे खानावाना खिलाओ, भूखा है और थका भी. कल बात करेंगे.’

सोमेश्वरजी के घर में सब ने उसे प्यार से लिया. धीरेधीरे उस की घबराहट दूर होने लगी. वह उन के परिवार में घुलनेमिलने लगा. रहतेरहते उसे 15 दिन हो गए. राहुल को अब घर की याद सताने लगी. वह अनमना सा रहने लगा. मम्मीपापा की, स्कूल की, संगीसाथियों की याद सताने लगी. महसूस होने लगा कि जिंदगी घर से बाहर इतनी सरल नहीं, ये लोग भी उसे कब तक रखेंगे. किस हैसियत से यहां पर रहेगा? क्या नौकर की हैसियत से? 13-14 साल का लड़का इतना छोटा भी नहीं था कि अपनी स्थिति को नहीं समझता.

और एक दिन उस ने सोमेश्वर प्रसाद को अपने बारे में सबकुछ बता दिया. उस से फोन नंबर ले कर सोमेश्वरजी ने उस के घर फोन किया, जहां बेसब्री से सब उस को ढूंढ़ रहे थे. एकाएक मिली इस खबर पर घर वालों को विश्वास ही नहीं हुआ. जब सोमेश्वरजी ने फोन पर उन की बात राहुल से कराई तो वह फूटफूट कर रो पड़ा.

‘मुझे माफ कर दो पापा, मैं आज से ऐसा कभी नहीं करूंगा, मन लगा कर पढ़ूंगा. मुझे आ कर ले जाओ,’ कहतेकहते उस की हिचकियां बंध गईं. उस की आवाज सुन कर पापा का कंठ भी अवरुद्ध हो गया.

राहुल के घर से भागने के मामले में वे कहीं न कहीं खुद को जिम्मेदार समझ रहे थे. उन की अत्यधिक सख्ती ने उन के बेटे को अपने ही घर में पराया कर दिया था. उसे अपना ही घर बेगाना लगने लगा.

हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है. राहुल की बहन उसी माहौल में रह रही थी. लेकिन वह उस घुटन भरे माहौल में नहीं रह पा रहा था. फिर यों भी लड़कों का स्वभाव अधिक आक्रामक होता है.

जब बेटे को खोने का एहसास हुआ तो अपनी गलतियां महसूस होने लगीं. सभी बच्चों का दिमागी स्तर और सोचनेसमझने का तरीका अलग होता है. अपने बच्चों के स्वभाव को समझना चाहिए. किस के लिए कैसे व्यवहार की जरूरत है, यह मातापिता से अधिक कोई नहीं समझ सकता. किशोरावस्था में बच्चे मातापिता को नहीं समझ सकते, इसलिए मातापिता को ही बच्चों को समझने की कोशिश करनी चाहिए.

खैर, उन के बेटे के साथ कोई अनहोनी होने से बच गई. अब वे बच्चों पर ध्यान देंगे. अब थोड़े समय उन के बच्चों को उन के प्यार, मार्गदर्शन व सहयोग की जरूरत है. हिटलर पिता की जगह एक दोस्त पिता कहलाने की जरूरत है, जिन से वे अपनी परेशानियां शेयर कर सकें.

मन ही मन ऐसे कई प्रण कर के राहुल के मम्मीपापा राहुल को लेने पहुंच गए. राहुल मम्मीपापा से मिल कर फूटफूट कर रोया. उसे भी महसूस हो गया कि वास्तविक जिंदगी कोई फिल्मी कहानी नहीं है. अपने मातापिता से ज्यादा अपना और बड़ा हितैषी इस संसार में कोई नहीं. उन्हें ही अपना समझना चाहिए तो सारा संसार अपना लगता है और उन्हें बेगाना समझ कर सारा संसार पराया हो जाता है.

ये 15 दिन राहुल और राहुल के मातापिता के लिए एक पाठशाला की तरह साबित हुए. दोनों ने ही जिंदगी को एक नए नजरिए से देखना सीखा.

राहुल अभी सोच में ही डूबा था कि तभी दुखी सी सूरत लिए माला बदहवास सी आई. वह अतीत से वर्तमान में लौट आया.

‘‘सुनो, जल्दी चलो जरा. बड़ी अनहोनी घट गई, टिंकू की लाश हाईवे पर सड़क किनारे झाडि़यों में पड़ी मिली है, पता नहीं क्या हुआ उस के साथ.’’

‘‘क्या?’’ सुन कर राहुल बुरी तरह से सिहर गया, ‘‘अरे, यह क्या हो गया?’’

‘‘बहुत बुरा हुआ. मातापिता तो बुरी तरह बिलख रहे हैं. संभाले नहीं संभल रहे. इकलौता बेटा था. कैसे संभलेंगे इतने भयंकर दुख से,’’ बोलतेबोलते माला का गला भर आया.

‘‘चलो,’’ राहुल माला के साथ तुरंत चल दिया. चलते समय राहुल सोच रहा था कि टिंकू उस के जैसा भाग्यशाली नहीं निकला. उसे कोई सोमेश्वर प्रसाद नहीं मिला. हजारों टिंकुओं में से शायद ही किसी एक को कोई सोमेश्वर प्रसाद जैसा सज्जन व्यक्ति मिलता है.

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बच्चे सोचते हैं कि शायद घर से बाहर जिंदगी फिल्मी स्टाइल की होगी. घर से भाग कर वे जानेअनजाने मातापिता को दुख पहुंचाना चाहते हैं. उन पर अपना आक्रोश जाहिर करना चाहते हैं. पर मातापिता की छत्रछाया से बाहर जिंदगी 3 घंटे की फिल्म नहीं होती, बल्कि बहुत भयानक होती है. बच्चों को इस बात का अनुभव नहीं होता. उन्हें समझने और संभालने के लिए मातापिता को कुछ साल बहुत सहनशक्ति से काम लेना चाहिए. बच्चों का हृदय कोरे कागज जैसा होता है, जिस पर जिस तरह की इबारत लिख गई, जिंदगी की धारा उधर ही मुड़ गई, वही उन का जीवन व भविष्य बन जाता है.

उस दिन अगर उसे सोमेश्वर प्रसाद नहीं मिलते तो पता नहीं उस का भी क्या हश्र होता. सोचते सोचते राहुल माला के साथ तेजी से कदम बढ़ाने लगा.

इन बातों का रखें ध्यान, हमेशा रहेंगे हेल्दी

अच्छी सेहत सभी की चाहत होती है. अगर आपकी सेहत अच्छी है, आप हेल्दी हैं तो जीवन में कुछ भी हासिल कर सकती हैं. पर आज जिस तरह की लोगों की लाइफस्टाइल हो गई है उनके लिए सेहत का ख्याल रख पाना काफी मुश्किल हो  रहा है. ऐसे में हम आपको बताने वाले हैं कुछ जरूरी बातें जिनको ध्यान में रखते हुए जीवनतर्या में बदलाव कर आप अपने स्वास्थ्य का ख्याल बेहतर रख सकेंगी.

एक्सरसाइज जरूर करें

स्वस्थ रहने के लिए एक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है. जानकारों की माने तो एक्सरसाइज करने से बौडी से हैप्पी हार्मोन्स निकलते हैं. इससे आपका मूड बिल्कुल फ्रेश रहेगा. एक्सरसाइज करने से आप लंबे समय तक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं.

डाल लें फल और सब्जियों को खाने की आदत

अपनी डाइट में हरी साग सब्जियों, फलों को शामिल करें. ये हमारी सेहत के लिए बेहद जरूरी होते हैं. इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है. फलों और सब्जियों में काफी मात्रा में विटामिन और एंटी औक्सिडेंट होते हैं जो हमारे इम्यून को मजबूत करते हैं.

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मानसिक स्वास्थ पर दें ध्यान

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ पर ध्यान दें. आपका मन शांत रहेगा तब ही आप बेहतर कार्य कर सकेंगे. इस लिए जरूरी है कि आप अपनों से बात करें, ये मानसिक शांति के लिए काफी जरूरी है. इसके अलावा आप 7 से 8 घंटों की नींद लें. ऐसा करने से आप सकारात्मक ढंग से काम करेंगे.

खूब पिएं पानी

अच्छी सेहत के लिए प्रचूर मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है. इससे बहुत सी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है. पानी अधिक पीने से शरीर के विषैले पदार्थ बाहर होते हैं. जानकारों की माने तो वजन कम करने के लिए खूब पानी पीना जरूरी है.

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