Writer- डा. विनय कुमार सिंह, डा. डीके सिंह

हमारे यहां केला एक प्रमुख लोकप्रिय पौष्टिक खाद्य फल है. पके केलों का प्रयोग फसलों के रूप में और कच्चे केले का प्रयोग सब्जी व आटा बनाने में होता है. भारत लगभग 16.8 मिलियन टन के वार्षिक उत्पाद के साथ केले के उत्पादन में दुनिया का नेतृत्व करता है.

यह पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम का भी एक अच्छा स्रोत है. फल वसा और कोलैस्ट्रौल से मुक्त, पचाने में आसान है.

केले के पाउडर का उपयोग पहले बच्चे के भोजन के रूप में किया जाता है. केले के इन सभी गुणों के कारण व सस्ता होने के चलते इस की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है.

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जलवायु

केले की फसल के लिए अनिवार्य रूप से आर्द्र और गरम जलवायु की जरूरत होती है. इस के उत्पादन के लिए आमतौर पर 10 डिगरी सैल्सियस न्यूनतम और 40 डिगरी सैल्सियस उच्च आर्द्रता के तापमान को सही माना गया है. एक विशेष अवधि के लिए जब तापमान 24 डिगरी सैल्सियस के ऊपर हो जाता है, तो पैदावार ज्यादा होती है.

भूमि

केले की फसल के लिए मिट्टी का चयन करने में मृदा की गहराई और जल निकासी

2 सब से महत्त्वपूर्ण घटक हैं. इस के अच्छे उत्पादन के लिए खेत में मिट्टी 0.5 से 1 मीटर गहरी होनी चाहिए. मृदा में नमी बनाए रखने, उपजाऊ और्गैनिक पदार्थ की प्रचुरता सहित इस का पीएच मान 6.5 तक होना चाहिए.

प्रजातियां

जी-9 (टिशू कल्चर)

इस प्रजाति की सब से बड़ी खासीयत है कि इस पर पनामा बीमारी का प्रकोप कम होता है. इस के पौधे छोटे और मजबूत होते हैं, जिस से आंधीतूफान में टूट कर नष्ट होने की संभावना बहुत कम होती है. इस के अलावा केले की दूसरी प्रजाति 14 से 15 महीने में तैयार होती है, वहीं जी-9 प्रजाति 9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है.

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