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Anupamaa: शादी की पहली रस्म में टांग अड़ाएगी बा तो डॉली सुनाएगी खरी-खोटी

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में दिलचस्प मोड़ आ चुका है. शो में अब तक आपने देखा कि बा अनुपमा-अनुज की शादी को रोकने की हर तरह से कोशिश की लेकिन बा की कोशिश नाकामयाब होती दिखाई दे रही है. शो में जल्द ही अनुपमा की शादी का रस्म दिखाया जाएगा. आइए जानते हैं शो के अपकमिंग ट्विस्ट के बारे में.

‘अनुपमा’ में दिखाया जा रहा है कि अनुज लोगों के तोहफे और चिट्ठियां लेकर अनुपमा के पास पहुंच जाता है. लोगों के मिल रहे प्यार को वनराज कचरा बताता है तो वहीं बा भी अनुपमा को नीचा दिखाने की कोशिश करती है.

 

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‘अनुपमा’ के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा लोगों के लेटर पढ़ेंगे. लेटर पढ़कर अनुज और अनुपमा काफी खुश हो जाएंगे तो दूसरी तरफ काव्या भी कुछ लेटर पढ़ेगी. काव्या दावा करेगी कि समाज के लोग अनुज और अनुपमा की शादी से खुश नहीं है. ऐसे में अनुपमा काव्या को करारा जवाब देगी.

 

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शो में जल्द ही अनुज और अनुपमा की शादी की रस्म देखने को मिलेगा. वनराज की बहन डॉली भी अनुपमा की शादी में शामिल होने के लिए शाह हाउस पहुंच जाएगी. तो दूसरी तरफ अनुज और अनुपमा जमकर रोमांस करते नजर आएंगे.

 

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शो में आप देखेंगे कि अनुपमा की शादी की पहली रस्म के लिए चार औरतों की जरूरत होगी. बा कहेगी कि घर में केवल 4 औरतें ही हैं. बा ये भी कहेगी कि अनुपमा की शादी शुरू होने से पहले ही अपशगुन हो रहा है. बा की बातें सुनकर डॉली भड़क जाएगी. डॉली बा को परिवार के सामने जमकर खरीखोटी सुनाएगी.

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज ये शादी शाह हाउस में नहीं होने देगा. कपाड़िया हाउस में अनुज और अनुपमा की शादी की रस्में पूरी की जाएगी.

अनुपमा नमस्ते अमेरिका: वनराज की बोलती बंद करेगी मोटी बा, देखें Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) का प्रीक्वल ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) ओटीटी प्लेटफॉर्म हॉट स्टार पर 25 अप्रैल से ऑनएयर किया जाएगा. दर्शकों को ‘अनुपमा’ का प्रीक्वल का बेसब्री से इंतजार है. इसी बीच ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ का प्रोमो मेकर्स ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. आइए बताते है इस प्रोमो के बारे में.

इस प्रोमो में आप देख सकते हैं कि अनुपमा और वनराज का लुक रिविल कर दिया गया है. प्रोमो में महिलाएं ‘अनुपमा’ को अमेरिका जाने को लेकर तरह-तरह बात करती दिख रही है. एक महिला कहती नजर आ रही है कि अनुपमा अमेरिका चली जाएगी तो बच्चों को कौन संभालेगा.

 

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ऐसे में मोटी बा रिएक्ट करती है, कहती है कि मां के साथ-साथ बाप को भी बच्चों को देखने की जिम्मेदारी होती है. वह आगे कहती है कि अनुपमा के साथ साथ वनराज की भी कुछ जिम्मेदारियां है. अनुपमा के प्रीक्वल में सरिता जोशी का मोटी बा का किरदार निभा रही है.  ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ के प्रोमो ने आते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है.

 

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‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ में 17 साल पहले की कहानी दिखाई जाएगी. रूपाली गांगुली सुधांशु पांडे इन दिनों अनुपमा के साथ-साथ इस शो की शूटिंग में भी व्यस्त हैं. पिछले कुछ समय से दर्शक यह बात सुनते आ रहे हैं कि आखिर 17 साल पहले अनुपमा की जिंदगी में क्या हुआ था?

 

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इस प्रोमो के अनुसार, औरतें इस बात को लेकर परेशान हैं कि अगर अनुपमा अमेरिका चली जाएगी तो बच्चों को कौन संभालेगा? प्रोमो में अनुपमा और वनराज शाह का यंगर लुक देखते ही बन रहा है और फैन्स इस प्रोमो को खूब पसंद कर रहे हैं.

 

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इस प्रोमो पर एक यूजर ने कॉमेंट किया है, ‘बस अब और इंतजार नहीं हो रहा है’ तो वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा, ‘प्रोमो देखकर समझ आ चुका है कि बहुत मजा आने वाला है.’

टेररिस्ट से मुकाबले को तैयार होगी अब यूपी की महिला होमगार्ड्स

यूपी की महिला होमगार्ड्स अब अपनी हिम्मत और हौसले से दुश्मन को पस्त करेंगी. किसी भी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहेंगी. वीआईपी की आतंकियों से सुरक्षा की जिम्मेदारी और प्रमुख स्थलों की सुरक्षा भी संभालती नजर आएंगी.

प्रदेश सरकार बहुत जल्द महिला होमगार्ड्स को एंटी-टेरेरिस्ट (आंतकवाद रोधी) मॉड्यूल का प्रशिक्षण देने जा रही है. होमगार्ड विभाग को अन्य सुरक्षा बलों की तरह सशक्त बनाने की तैयारी कर रही है. सरकार ने प्रशिक्षण लेने वाले होमगार्ड्स को ड्यूटी भत्ता देने का भी बड़ा फैसला लिया है. इसके लिए विभाग के अधिकारियों को 100 दिन में प्रस्ताव बनाकर भेजने का लक्ष्य सौंपा है.

योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में होमगार्ड्स विभाग का कायाकल्प करने के लिए संकल्पित है. 20 प्रतिशत पदों पर महिलाओं की भर्ती के साथ ही उनके प्रशिक्षण में एंटी-टेरेरिस्ट मॉड्यूल के साथ-साथ अन आर्म्ड कम्बैट और पीएसओ ड्यूटी के मॉड्यूल को शामिल करने जा रही है. शहरी और ग्रामीण पुरुष और महिला होमगार्ड्स की प्रशिक्षण अवधि में भिन्नता को खत्म करके उसको 90 दिन किया जाएगा.

इन 90 दिनों में नए माड्यूलों को शामिल कर होमगार्ड्स की दक्षता एवं कार्यकुशलता को बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे शांति एवं कानून व्यवस्था तो सुदृढ़ होगी ही साथ में ड्यूटी पर नागरिकों को महिला होमगार्ड्स बेहतर सेवायें उपलब्ध करा पायेगी. सरकार ने विभागीय अधिकारियों से प्रशिक्षणरत होमगार्ड्स को ड्यूटी पर मानते हुए प्रशिक्षण भत्ते के स्थान पर ड्यूटी भत्ता देने की योजना भी बना ली है. बता दें कि यह पहला मौका है जब किसी सरकार ने होमगार्ड्स विभाग को आगे बढ़ाने के तेजी से प्रयास शुरू किये हैं. महिला और पुरुष होमगार्ड्स को भी आधुनिक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जा रही है.

‘सीवर पॉइंट’ को उत्तर प्रदेश सरकार ने बना दिया ‘सेल्फी पॉइंट’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा शुरू किए गए नमामि गंगे का अभियान आजादी के बाद भारत की नदी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की महत्वपूर्ण योजना बनी. ये बातें रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम में कहीं. गंगा यात्रा कार्यक्रम में पहुंचे सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 25 सौ किलोमीटर के अपने लंबे प्रवाह में पांच राज्य में से यूपी में यमुना और गंगा मां का सबसे ज्यादा आशीर्वाद है. मां गंगा से जुड़ी योजनाएं पहले भी बनती थी 1986 में गंगा एक्शन प्लान कार्य शुरू भी हुआ. केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर इस योजना से जुड़कर कार्य करना था इस एक्शन प्लान में बिहार, बंगाल उत्तर प्रदेश तीन राज्य थे. लेकिन नमामि गंगे योजना के पहले हमने जब गंगा नदी का मूल्यांकन किया तो पता चला की गंगा सर्वाधिक प्रदूषित है.

उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि नमामि गंगे का ये अभियान यूपी में सफल हुआ. उत्तर प्रदेश के कानपुर में गंगा की स्थिति पीड़ादायक थी. इसके जल में जीव नष्ट हो जाते थे. लगातार 100 साल से सीसामऊ से रोज 14 करोड़ लीटर सीवर इसमें गिरता था.  लेकिन हमारी सरकार ने इस सीवर पॉइंट को सेल्फी पॉइंट में बदला. आज एक बूंद भी सीवर गंगा में नहीं गिरता है और जल के साथ जीव भी यहां सुरक्षित हैं. प्रयागराज के 2019 में आयोजित हुए कुंभ की सफलता की कहानी भी स्वच्छता और अविरल निर्मल गंगा की गाथा को कहती है. हमारी सरकार ने न सिर्फ गंगा मां पर बल्कि उसकी सहायक 10 नदियों पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया. प्रयागराज के कुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और गंगा के निर्मल अविरल से आचमन भी किया. उन्होंने कहा कि कोई भी योजना तब सफल होती है जब सरकार के साथ समाज भी उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है. और इस योजना की सफलता भी हमें तभी मिली जब समाज ने हमारा साथ दिया.

गंगाजल आचमन और पूजा करने योग्य-सीएम

काशी में गंगा निर्मल दिखती है आज गंगाजल आचमन और पूजा करने योग्य हो गया है. यहां डॉल्फिन भी दिखाई देती है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की योजना को ध्यान में रखते हुए नदियों में कचरे के प्रवाह को रोकने का कार्य किया. जिसमें से अब तक 46 में से 25 का काम पूरा हो चुका है, 19 में काम चल रहा है और दो कार्य प्रगति पर है. आज हमारी सरकार इस योजना को आगे बढ़ा रही है. शवदाह गृह को आधुनिक किया जा रहा है. तकनीक को अपनाकर निर्मल गंगा को बनाने का काम किया जा रहा है. मुझे लगता है कोई भारतीय ऐसा नहीं होगा जो गांव का नाम लेकर आचमन न करता हो. आज सरकार के साथ समाज को भी एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ गंगा ही नहीं गंगा के साथ उसकी 10 सहयोगी नदियों को भी ध्यान में रखकर अपना योगदान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम सबको नदियों में कूड़ा कचरा डालने से बचना होगा आज नमामि गंगे की सफलता के पीछे लोगों का बहुत बड़ा सहयोग रहा है. हमारी सरकार लगातार इन नदियों के उत्थान पर कार्य कर रही है. जो ड्रेनेज व सीवर के लिए अलग से व्यवस्था की जा रही है. साल 2019 में गंगा परिषद बैठक में हमने गंगा यात्रा निकाली, जो बिजनौर से कानपुर और कानपुर से बिजनौर तक निकली.

जनपद और राज्य स्तर पर किया गंगा समिति का गठन-सीएम

गंगा के उत्थान के साथ हम प्राकृतिक खेती और किसानों की मदद कर रहे हैं. आज गंगा के दोनों तटों पर बागवानी, गंगा नर्सरी, गंगा घाट, गंगा पार्क स्थापित हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि सर्वाधिक प्रवाह यूपी में होने के कारण आज हमारी सरकार ने दोनों तटों पर वृक्षारोपण, किसानों को फ्री में पौधा और 3 साल की सब्सिडी देने के कार्यक्रम को तेजी से चल रहे हैं. जिसको हम निरंतर युद्ध स्तर पर बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. मेरी सभी से अपील है कि समाज गंगा की धारा को निर्मल और अविरल बनाने में आगे आए. हमारी सरकार ने गंगा समिति का गठन जनपद और राज्य स्तर पर किया है जिसके तहत लगातार कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है.

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भयानक हादसे की शिकार हुई शैली

एक भयानक हादसे ने शैली के जीवन में ऐसा जख्म दिया कि वह ताउम्र एक  झूठ ले कर चलती रही. लेकिन उस ने अपनी बेटी के नाम खत में न सिर्फ खुद के मां होने का दर्द बयान किया था बल्कि पुरुष की उन शेखियों पर चोट पहुंचाई थी जो वह नारी की स्वतंत्रता के नाम पर बघारता है.

बहुमत की जंजीर में जनहित

अगर किसी देश की जनता सुखी नहीं है, भयग्रस्त है, घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर है, उसे अपनी मरजी से पहननेओढ़ने, आनेजाने, बोलने और खाने की आजादी नहीं है तो ऐसे नागरिकों से भरा देश भले विश्व के अन्य देशों के मुकाबले मजबूत और विकसित दिखता हो परंतु वह भीतर से बिलकुल खोखला होगा. ऐसा देश एक दुखी देश ही कहलाएगा जहां जनता दबाव और प्रताड़ना की शिकार होगी, मगर उसे अपनी तकलीफ कहने तक की इजाजत नहीं होगी. सत्ता में बैठे लोग तानाशाह की तरह व्यवहार करेंगे, जनता से उन्हें कोई सरोकार नहीं होगा और दुनिया के सामने वे खुद को सब से ताकतवर दिखाने में मशगूल रहेंगे.

राष्ट्रहित के नाम पर ऐसे तानाशाह जो फैसले लेते हैं, उन से उन के देश की जनता का कोई हित नहीं जुड़ा होता है. अकसर बहुमत उन के साथ दिखता है या वे ऐसा दिखाते हैं और बहुमत की दुहाई दे कर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वे जो कर रहे हैं उस में जनता का हित समाहित है और जनता उस फैसले की समर्थक एवं सहयोगी है. जबकि बहुमत दबाव डाल कर, डर दिखा कर, लालच दिखा कर या ?ाठे वादे कर के हासिल किया जाता है.

दरअसल राष्ट्रहित, जनहित और बहुमत तीनों बिलकुल भिन्न बातें हैं. दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां बहुमत सत्ता के पक्ष में दिखने के बावजूद राष्ट्रहित और जनहित के मुद्दों पर सवाल उठ रहे हैं. जहां जनता सत्ता के फैसलों से आक्रोशित है, लेकिन फिर भी बहुमत सत्ता के साथ दिखता है और इस की बिना पर लिया गया फैसला राष्ट्रहित में लिया गया फैसला करार दे दिया जाता है. तीनों चीजों को गड्डमड्ड कर के एक तानाशाह बड़ी चालाकी से अपना लक्ष्य साध लेता था.

अहम सवाल यह है कि एक शासक के लिए राष्ट्रहित, जनहित और बहुमत तीनों में क्या सब से ज्यादा जरूरी है? राष्ट्रहित में उठाए गए कदमों से अगर जनता को तकलीफ हो रही है तो ऐसे राष्ट्रहित के क्या माने हैं? बहुमत सत्ता के साथ होने पर भी यदि जनता तकलीफ में है तो ऐसा बहुमत किस काम का है? जब तक शासक द्वारा जनता का कल्याण न हो तब तक राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता. कोई भी राष्ट्र जनहित के बगैर मजबूत नहीं हो सकता. जनता की खुशहाली और जनता की तकलीफों का निराकरण ही जन को देश से जोड़ता है. इसी से राष्ट्रहित सधता है और इसी से सच्चा बहुमत हासिल होता है.

कुछ देशों की बात करते हैं. हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर वहां अपना शासन शुरू किया. तालिबान के आने से पहले अफगानिस्तान भले एक कमजोर देश था मगर वहां जनता खुशहाल थी. वह धीमी गति से विकास के पथ पर अग्रसर था. औरतें बिना दबाव के बाहर निकल कर काम कर रही थीं. बच्चियां शिक्षा पा रही थीं. वहां उन के लिए अच्छे शिक्षा संस्थान थे. लोग मनचाहा रोजगार कर पा रहे थे. उन पर कोई ड्रैस कोड लागू नहीं था. औरतों पर हिजाब की पाबंदी नहीं थी.

वे आजाद थीं. खुल कर सांस ले रही थीं. खेलकूद में हिस्सा ले रही थीं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भाग लेती थीं. अपनी क्षमताओं का भरपूर प्रदर्शन कर गौरव प्राप्त करती थीं, सुख और सुकून महसूस करती थीं. अनेकानेक औरतें उच्च शिक्षा प्राप्त कर डाक्टरइंजीनियर बन रही थीं. अनेकानेक औरतें शासनप्रशासन में अच्छे पदों पर कार्यरत थीं. मगर तालिबानी हुकूमत ने उन से यह सारा सुख छीन लिया, धर्म के नाम पर उन की आजादी छीन ली और उन्हें घररूपी पिंजरे में कैद कर दिया. कई सख्त पाबंदियां अफगान मर्दों पर भी लागू हुईं.

अब वहां आदमी कामधंधा छोड़ कर 5 वक्त की नमाज के लिए मसजिद की दौड़ लगा रहा है. पैंटशर्ट या सूटटाई की जगह अजीब ढीले कुरते और उटंगे पायजामे पहन रहा है. बड़ेबड़े ओहदों पर रह चुके उच्च शिक्षा प्राप्त पुरुष इन लिबासों में अजीब नमूना लगने लगे हैं. बहुतेरे ऐसे हैं जो सत्ता के दबाव में कंधे पर हथियार टांगने को मजबूर हैं.

मर्दों को सख्त आदेश है कि अपनी औरतों को घर में रखें. बेटियों की पढ़ाई छुड़ा दें. न चाहते हुए भी वे मारे डर के ऐसा कर रहे हैं. औरतों पर काले बुर्के डाल दिए गए हैं. उन की शिक्षा में व्यवधान आ गया है. उन की नौकरियां खत्म कर दी गई हैं. उन के ओहदे छीन लिए गए हैं. आगे आने वाले सालों में वहां की औरतें डाक्टरइंजीनियर नहीं बनेंगी, सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन होंगी.

आज दुनिया को अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि शरीयत का पालन कर के उन के मुल्क में अमन शांति कायम हो चुकी है. बहुमत उन के साथ है और राष्ट्रहित में वे सख्त से सख्त कदम उठाने के लिए तैयार हैं. उन का राष्ट्र इतना मजबूत और ताकतवर है कि वे अपने धर्म की रक्षा के लिए दुनिया के किसी भी मुल्क से युद्ध को तैयार हैं. मगर क्या अफगानिस्तान में जनता खुश है? औरतें और बच्चे खुश हैं? क्या तरक्कीपसंद लोग, आधुनिकता और विज्ञान की तरफ बढ़ते लोग धर्म के फंदे में फंस कर खुश हैं? क्या जनता खुद को आजाद महसूस कर रही है? क्या अफगानिस्तान में अब जनहित के काम हो रहे हैं? ऐसे तमाम सवाल हैं जिन का जवाब न में ही मिलेगा.

तालिबान के सत्ता में आते ही लाखों की संख्या में अफगान नागरिक अपना घरबार, जमीनजायदाद छोड़ कर भाग खड़े हुए. आज लाखों अफगानी अन्य देशों में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं. जो अफगानिस्तान में रह गए उन में निराशा और हताशा बढ़ती जा रही है, खासतौर से महिलाओं में, क्योंकि वे अपनी मरजी से कुछ कर ही नहीं सकती हैं. उन के लिए वहां की सरकार कुछ सोच भी नहीं रही है. जनहित के सारे काज ठप हैं और राष्ट्रहित के नाम पर तालिबानी युद्ध के लिए तैयार दिखते हैं.

राष्ट्रहित को तमाम देश सर्वोपरि मानते हैं. इस के लिए वे युद्ध करने को भी तैयार रहते हैं. राजनीतिक पार्टियां बहुमत के बल पर सरकार बना लेती हैं, लेकिन क्या इस से जनहित भी सधता है? शायद नहीं.

राष्ट्रहित की दुहाई दे कर यूक्रेन पर बमबारी करने वाला रूस आज अपनी ही जनता के आक्रोश व विरोध का सामना कर रहा है. रूसी जनता में अपने शासक के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है. वे जानते हैं कि राष्ट्रहित के नाम पर पुतिन ने रूस और यूक्रेन दोनों देशों के सैनिकों और आम जनता को जबरन बारूद में ?ांक दिया है. दोनों ओर जनता के जानमाल का नुकसान हो रहा है. फिर युद्ध में होने वाले खर्च का पूरा भार आने वाले समय में जनता पर होगा, कर बढ़ेंगे, तरक्की बाधित होगी, जनहित के कार्य पिछड़ जाएंगे. मगर सत्ता द्वारा, बस, खोखले राष्ट्रहित का ढोल पीटा जाएगा.

चीन की तानाशाही तो सर्वविदित है. चीन एक शक्तिशाली देश है मगर अपनी जनता पर अत्याचार कर रहा है. कम्युनिस्टों द्वारा शासित चीन में लोगों का रहना मुहाल होता जा रहा है, खासतौर पर उइगर मुसलमानों का, जिन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आदेशों से जेलनुमा जगहों पर रख कर उन पर तमाम पाबंदियां लगा दी गई हैं. उन के धार्मिक रीतिरिवाजों पर सरकार का पहरा है. चीन की सरकार ने अपने हजारों मुसलिम नागरिकों को हिंसा के बलबूते जबरन उन के परिवार से दूर डिटैंशन कैंपों में भेज दिया है, जहां उन्हें इसलाम का त्याग करने के लिए मजबूर किया जाता है और चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है.

एक समुदाय विशेष को टारगेट करने के लिए बनाए गए सामूहिक हिरासत केंद्र, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों को रोकने और उन पर कड़ी निगरानी की रिपोर्ट्स को ले कर दुनियाभर में चिंता जताई जा रही है. मगर चीन इसे राष्ट्रहित में किए जाने वाले कार्य कहता है. आखिर अपनी ही जनता के हितों पर कुठाराघात कर के चीन किस तरह का राष्ट्रहित साध रहा है?

ऐसा ही कुछ भारत में भी देखने को मिलता है. आप यह जानकार चौंक जाएंगे कि पिछले लगभग एक दशक से भारत सरकार राष्ट्रहित के नाम पर अपने ही नागरिकों के हितों की कितनी अनदेखी कर रही है. एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अब उच्चतम बेरोजगारी दर से पीडि़त है. वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन के मुताबिक, दुनिया के सभी शीर्ष 10 सब से प्रदूषित शहर अब भारत में हैं.

भारत सरकार दावा करती है कि वह विश्वगुरु बनने की राह पर है मगर भारत की जनता भुखमरी से नहीं उबर पा रही है. भारत में आज 80 वर्षों में सब से अधिक आय असमानता है. भारत विश्व का दूसरा सब से असमान देश है. थौमस रौयटर्स का सर्वे कहता है कि भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सब से खराब देश बन चुका है. भारत सरकार द्वारा जनहित का नाम दे कर जबरन थोपे गए कानूनों के खिलाफ देशभर का किसान डेढ़ साल घरबार छोड़ कर सड़कों पर खुले आसमान के नीचे आंदोलनरत रहा, 700 से ज्यादा किसान मर गए, मगर मोदी सरकार कहती है हम राष्ट्र प्रथम की नीति का पालन करते हैं. आखिर वे किस राष्ट्र की बात कर रहे हैं?

इस बार भारतीय किसानों को पिछले 18 वर्षों में सब से खराब कीमत का सामना करना पड़ा है. मोदी सरकार में अब तक की सब से ज्यादा गाय से जुड़ी हिंसा और रिकौर्ड मौबलिंचिंग की घटनाएं हुई हैं. भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों को प्रैस कौन्फ्रैंस कर के कहना पड़ा कि लोकतंत्र खतरे में है और हमें काम नहीं करने दिया जा रहा है. असहिष्णुता और धार्मिक अतिवाद भारत में अपनी चरम पर हैं. सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही का लेबल लगा कर जेल भेज दिया जाता है. चुनाव के वक्त तमाम जांच एजेंसियों और पुलिस एजेंसियों को सत्ताधारियों द्वारा अपनी उंगलियों पर कठपुतली की तरह नचाया जाता है और विरोधी पार्टियों के नेताओं को जेल में ठूंस दिया जाता है. धार्मिक उन्माद और ध्रुवीकरण के जरिए मासूम जनता में डर कायम किया जाता है.

भारत जैसे महादेश में जहां की अधिकांश आबादी को दो जून रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत से फुरसत नहीं है, वह राजनेता और राजनीति की गूढ़ बातों से लगभग अनभिज्ञ होती है. उसे थोड़ा सा लालच दे कर, थोड़ा सा डर दिखा कर, थोड़े से सपने दिखा कर जिधर हांको वह उधर चल पड़ती है.

चुनाव में उतरने वाले ताकतवर नेता सब से पहले अपने चुनाव क्षेत्र में आने वाले सभी गांवों के प्रधानों को अपनी पावर और पैसे से साधते हैं. फिर प्रधान गांव वालों से जहां वोट डालने को कहता है, पूरा गांव उस नेता के पक्ष में वोट डाल आता है. बदले में 500 रुपए का एक नोट या एक साड़ी या एक शराब की बोतल पा कर वह निहाल हो जाता है. यानी भारत में आम आदमी शासक नहीं चुनता, उस से शासक के चुनाव पर मोहर लगवाई जाती है, कभी बंदूक से तो कभी बैलेट से.

सवाल यह है कि चुनाव के वक्त बहुसंख्यकों को धर्म की घुट्टी पिला कर और अल्पसंख्यकों को डरा कर अगर बहुमत हासिल कर भी लिया तो जनहित और राष्ट्रहित में क्या इजाफा हुआ? जनता तो त्राहित्राहि कर रही है. भूख, गरीबी, बेरोजगारी, कर्ज उस का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. उस के जीवन में असंतोष और दुख भरा पड़ा है. ऐसे टूटेफूटे, घायल और दर्द से कराहते लोगों से भरे देश में तानाशाही प्रवृत्ति के नेता जब राष्ट्रहित और राष्ट्र प्रथम की बातें बोलते हैं तो आलोचना के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं.

राष्ट्रहित या राष्ट्रीय हित जैसे शब्द को राजनेताओं और नीतिनिर्माताओं ने हमेशा अपने लिए उपयुक्त तरीकों से और अपने राज्यों के कार्यों को सही ठहराने के अपने उद्देश्य के लिए उपयोग किया है.

हिटलर ने ‘जरमन राष्ट्रीय हितों’ के नाम पर विस्तारवादी नीतियों को सही ठहराया. अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने हमेशा ‘अमेरिकी राष्ट्रीय हित’ के हित में अधिक से अधिक विनाशकारी हथियारों के विकास के लिए अपने निर्णयों को उचित ठहराया है. डिएगो गार्सिया में एक मजबूत परमाणु आधार बनाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने तत्कालीन यूएसएसआर द्वारा पेश की गई चुनौती को पूरा करने के साथसाथ हिंद महासागर में अमेरिकी हितों की रक्षा के नाम पर उचित ठहराया था.

1979-89 के दौरान तत्कालीन यूएसएसआर ने ‘सोवियत संघ राष्ट्रीय हितों’ के नाम पर अफगानिस्तान में अपने हस्तक्षेप को उचित ठहराया. वहीं, चीन के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के प्रयासों के नाम पर चीन ने भारत और सोवियत संघ के साथ अपने सीमा विवादों को सही ठहराया.

सच तो यह है कि जनहित के बगैर किसी भी राष्ट्र का हित हो ही नहीं सकता है. जन के मजबूत होने से ही राष्ट्र मजबूत होता है. जन के सुखी और संपन्न होने से ही राष्ट्र सुखी और संपन्न होता है.

जो सरकार अपनी जनता के हितों के लिए कार्य करती है, उसे बहुमत जुटाने के लिए ?ाठ का सहारा नहीं लेना पड़ता है. बहुमत स्वयं उस के साथ चलता है. जनहित के उस के कार्य राष्ट्रहित को स्वयं साध लेते हैं. जनता की ताकत

ही किसी राष्ट्र की सच्ची ताकत है. इसलिए जनहित सर्वोपरि है. नेताओं को सम?ाना चाहिए कि जब जन प्रथम होगा, तभी राष्ट्र प्रथम होगा.   द्य

अलग-थलग पड़ता रूस

पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में एक बार फिर जता दिया है कि वे चाहें तो अपने आर्थिक बल पर ही किसी भी शक्ति नहीं, महाशक्ति को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. रूस ने सोचा था कि यूक्रेन में उस की सैर कुछ टैंकों से पूरी हो जाएगी और वहां सत्ता परिवर्तन कर के वह अपना कम्युनिस्ट दिनों का रोबदाब फिर साबित कर सकेगा. यह सैर उस पर भारी पड़ रही है. चीन का अपरोक्ष साथ होने के बावजूद यूक्रेन की जनता का विद्रोह और पश्चिमी उन्नत देशों का एकजुटता से रूस का बहिष्कार कर देना राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा कांटोंभरा ‘उपहार’ रूसी जनता को मिला है जिस का असर दशकों तक रहेगा.

अमेरिका व कई पश्चिमी देश रूस के फैलते पंजों से परेशान थे पर वे अकेले कुछ नहीं कर पाते थे. यूक्रेन के मामले में पुतिन की धौंसबाजी और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की की हिम्मत ने एक बहुत बड़े देश के छक्के छुड़ा दिए. रूसी सेना को भारी नुकसान हो रहा है, उस की पोल हर रोज खुल रही है और अब सिवा अणुबम के उस के पास कुछ नहीं बचा है.

रूस की आबादी 14 करोड़ है और यूक्रेन की 4 करोड़. रूस के पास 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर की भूमि है और यूक्रेन के पास सिर्फ 6 लाख वर्ग किलोमीटर. रूस की अर्थव्यवस्था 1.5 ट्रिलियन डौलर की है और यूक्रेन की 350 बिलियन डौलर की. यूक्रेन की सेना 2 लाख सैनिकों की है और रूस की 9 लाख की. फिर भी हर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पीछे खड़ा हो, जरूरी नहीं. पर, हर यूक्रेनी अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के पीछे खड़ा है. यूक्रेन से युद्ध के कारण भागे 25 लाख लोगों में ज्यादातर बच्चे, औरतें और बूढ़े हैं. जवान पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए खड़ी हैं. रूस की भारी बमबारी  30 दिनों में यूक्रेन की राजधानी को हिला नहीं पाई और इसीलिए दुनिया की सारी राजधानियां अब यूक्रेन के साथ खड़ी हैं.

चीन जैसा कट्टर तानाशाही देश सिर्फ दबे शब्दों में रूस का समर्थन कर पा रहा है क्योंकि 15 ट्रिलियन डौलर की उस की भी अर्थव्यवस्था उस 75 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के सामने बौनी है जो आज रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है.

75 ट्रिलियन वाले देश कितनी आसानी से एक दंभी, तानाशाह, डेढ़ पसली की डेढ़ ट्रिलियन डौलर वाले देश को हाशिए पर खड़ा कर सकते हैं, यह दिखने लगा है. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पुतिन भक्त थे, अब अपना स्वर बदल रहे हैं और वहां की रिपब्लिकन पार्टी को भी राष्ट्रपति जो बाइडन का साथ देना पड़ रहा है. कुछ यूरोपीय देश अभी भी कुछ सामान रूस से खरीद रहे हैं पर धीरेधीरे सब दूरदर्शी सोच में रूस को कंगाल बनाने में जुट गए हैं. रूसी अमीरों का जो पैसा पश्चिमी देशों ने जब्त किया है वह शायद यूक्रेन के पुनर्निर्माण में लग जाए क्योंकि यह अब लगने लगा है कि रूस को तहसनहस हुए यूक्रेन से अभी या कुछ समय बाद लौटना ही होगा.

यूक्रेन ने साबित कर दिया है कि पश्चिमी देशों की वैयक्तिक स्वतंत्रताएं, लोकतंत्र, लगातार वैज्ञानिक उन्नति आदि रूसी और्थोडौक्स चर्च पर कहीं अधिक भारी हैं जिस के इशारे पर भक्त राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विधर्मी यहूदी व्लोदोमीर जेलेंस्की को हटाने की कोशिश की थी. यह बात, हालांकि, चर्चा में कम ही आई है लेकिन हकीकत यही है और इस युद्ध के बीज भी धर्म ने ही बोए हैं.

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 1

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘‘मां, मैं पापा के बारे में कभी न पूछूंगी. मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कभी न कुरेदूंगी,’’ अचानक मेरे मुंह से निकला था.

उस दिन मैं फूटफूट कर रोई थी.  मदन ने पूछा था, ‘पीहर की याद अब भी आ रही है क्या. शायद मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई है?’ अब मैं उसे कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं. ये आंसू मांबाबूजी से बिछुड़ने के नहीं, बल्कि खुशी के हैं जो मां को पा कर पूरे वेग से छलक पड़े हैं. हां, मां को, जिसे अब तक मैं मां सम झ रही थी वह मेरी मौसी थी. असली मां तो वह है जिसे मैं मौसी सम झ रही थी.

मेरी शादी हुए एक हफ्ता गुजर गया था. मदन ने मु झे इतना प्यार दिया कि मैं मायके की याद भूल गई. सासुमां ने मु झे मां जैसा स्नेह दिया. ननद और देवर ने मु झे कभी अकेले न छोड़ा. हर वक्त साया बन कर साथ लगे रहे. ननद हर वक्त मेरे नाश्ते, खाने का ध्यान रखती. देवरजी हमेशा कोई न कोई चुटकुला सुना कर हंसाते. ऐसी ससुराल पा कर मैं निहाल हो गई थी.

मैं ने कहा, ‘‘नहीं मदन, तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, यह नैचुरल है. जिन परिजनों के बीच 25 वर्ष गुजारे हों उन की याद तो आएगी ही.’’

फिर मदन अपने किसी दोस्त से मिलने चला गया था. मैं ने उसे कुछ बताया भी नहीं. मां ने मना किया था. पत्र के अंत में लिखा था, ‘बेटी, यह राज, राज ही रहने देना. राज जिस दिन खुलेगा, तुम्हारी मां का दांपत्य जीवन बरबाद हो जाएगा.’

शादी के बाद जब मैं विदा हो रही थी तो मौसी ने एक पैकेट थमाया था, याचनाभरी निगाहों से बोली थीं, ‘बेटी, इसे एक हफ्ते बाद खोलना.’ उस समय मैं इस याचना के पीछे छिपे राज को न सम झ पाई थी.

आज जब मैं ने एकांत पा कर पैकेट खोला तो रत्नजडि़त कंगन के साथ एक पत्र था. पत्र में लिखा था, ‘बेटी, एक राज है जिसे अपने सीने में दबाए मैं पिछले 25 वर्षों से ढो रही हूं. अब न बताऊं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा और मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊंगी.

‘दीदी अपने बड़े बेटे बिभू की जन्मतिथि की 5वीं वर्षगांठ धूमधाम से मना रही थीं. दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था. मैं भी आई थी.

‘उस समय मैं कालेज में पढ़ती थी. यौवन के मद में चारों ओर घूमती. शोख और निडर इतनी कि कालेज में कोई लड़का बदतमीजी करता तो उसे सबक सिखाने में तनिक भी देर न करती. जब बिभू के जन्मदिन के लिए केक काटने का समय आया तो पता चला कि बर्थडे वाला नाइफ नहीं है. बिभू जिद करने लगा कि उसे बर्थडे के म्यूजिक वाला ही नाइफ चाहिए. घर मेहमानों से भरा था. जीजाजी अपने मांबाप के इकलौते थे. घर में दीदी, जीजाजी और बच्चों के अलावा कोई न था.

‘मैं पहले भी दीदी के यहां आती थी. घर से एक दुकान नजदीक थी. वह देररात तक खुली रहती थी. मैं  झट से उठी और बोली कि मैं अभी ले कर आई. अभी लोग कुछ बोलते, मैं तेजी से बाहर निकल गई.

‘लेकिन बेटी, होनी को तो कुछ और ही होना था. घर और दुकान के बीच एक जगह सुनसान थी. वहां स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी. मैं तेजी से बढ़ी जा रही थी कि अचानक किसी ने पीछे से पकड़ कर मेरा मुंह बंद कर दिया. फिर मैं उस के मजबूत बाजुओं से मुक्त होने के लिए बहुत छटपटाई, किंतु छूट न सकी.

‘वह मु झे एक  झोंपड़ी में ले गया जहां पहले से ही एक मनचला मौजूद था. फिर वे 20-25 मिनट तक मु झे नोचतेखसोटते रहे. मैं न चिल्ला पा रही थी न उन के चंगुल से मुक्त हो पा रही थी, क्योंकि उन में से एक ने मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे ने मजबूती से मु झे पकड़ रखा था. जब उन के हवस का ज्वार शांत हुआ तो वे मु झे अकेला छोड़ कर भाग गए.

‘अब मैं दुकान कैसे जाती. रोते हुए घर पहुंची. जब मु झे आने में देर होने लगी तो दीदी ने पिछले बर्थडे वाला नाइफ कहीं से खोजा और रस्म पूरी कर दी.

‘उस समय हैप्पी बर्थडे का म्यूजिक तेज आवाज में बज रहा था. दोस्त और रिश्तेदार ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कह कर बिभु को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.

‘दीदी, रास्ते में पेट दर्द होने लगा तो दुकान न जा सकी. बीच रास्ते से ही लौट आई,’ मैं ने बहाना बनाया.

‘दीदी ने कहा, ‘कोई बात नहीं मेरे कमरे में जा कर लेट जा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा. गैस की शिकायत हो गई होगी. जब न ठीक होगा तो बताना, दवा दे दूंगी.’

‘फिर दीदी मेहमानों की आवभगत में लग गई थीं.

‘बिभू ने कमरे में आ कर उत्साह से केक का एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाला. अनिच्छा से केक के टुकड़े को निगलते हुए मैं ने उस से ‘हैप्पी बर्थ टू यू’ कहा.

‘क्या आप की तबीयत खराब है, मौसी?’ उस ने मु झे उदास देख कर पूछा.

‘हां बेटा,’ दर्द से कराहते हुए मैं ने कहा तो वह बोला, ‘मम्मी से दवा देने के लिए कह देता हूं.’ फिर चला गया. दरिंदों ने 20-25 मिनट में ही ऐसा दर्द दे दिया था जो आज तक टीस रहा है और अब इस जीवन में कम न होगा.

‘यह ऐसा घाव था बेटी, जो शरीर से ज्यादा दिल को जख्मी कर गया था.

‘बाहर सभी लोग फंक्शन में मशगूल थे और भीतर कमरे में शारीरिक व भावनात्मक व्यथा से पीडि़त मैं सोच रही थी, अब ऐसी जिंदगी जी कर क्या करूंगी.

‘फिर मेरे मन में विचार आया, रस्सी से फंदा लगा लूं. इधरउधर देखा, पंखा सिर पर लटक रहा था. बगल में दीदी की साड़ी पड़ी थी. कुरसी भी पास ही थी. सोचा, किसी को कुछ न बताऊंगी. एक सुसाइड नोट लिखूंगी ताकि मेरे मरने के बाद पुलिस वाले परिवार के किसी सदस्य को बिना वजह परेशान न करें. कागज के लिए भी कहीं जाना न था. जीजाजी की नोटबुक और पैन वहीं पड़ा था.

‘अभी मैं सुसाइड के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मन में विचार कौंधा, ‘अगर मैं आत्महत्या कर लूंगी तो घर में कुहराम मच जाएगा. दीदी के घर का जश्न मातम में बदल जाएगा. फिर आत्महत्या अपराध भी तो है. आखिर आत्महत्या से मु झे क्या मिलेगा. इस से तो हैवानों का मनोबल और बढ़ेगा. नहीं, मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. यह जीवन के प्रति कायर नजरिया होगा. मैं इन हैवानों को सलाखों के पीछे पहुंचवाऊंगी. उन्हें फांसी दिलवाऊंगी.’

‘मेरे अंदर  झं झावातों का तूफान था. फिर न जाने कब आंख लग गई.

‘पेटदर्द कम हुआ, शैली?’ दीदी मु झे  िझं झोड़ रही थीं.

‘अचानक मेरी आंखें खुलीं. मैं कुछ बोलने की जगह दीदी की गोद में सिर रख कर

रोने लगी.

‘क्या बात है, शैली, रो क्यों रही हो. बताती क्यों नहीं. किसी ने तुम से कुछ कहा है क्या?’

‘दीदी अब चिंतित लग रही थीं. मु झे इस तरह अपनी गोद में मुंह छिपाए रोते देख सम झ गई थीं कि मु झे पेटदर्द नहीं है, बल्कि कुछ और समस्या है. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ रोते जा रही थी. इतनी रोई कि उन का आंचल भीग गया.

‘दीदी ने मेरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए मेरे चेहरे को ऊपर उठाया, बोलीं, ‘नहीं बताओगी तो हम कैसे जान पाएंगे. किसी ने बदतमीजी की है क्या?’

‘रोतेरोते मैं ने दीदी को सबकुछ बता दिया.

‘सुन कर दीदी को जैसे सदमा लगा हो. कुछ क्षण चुप रह कर पूछा, ‘पहचान सकती हो उन्हें?’

‘नहीं, वहां अंधेरा था. दोनों ने अपनाअपना मुंह गमछे से ढका हुआ था.’

‘उधर कुछ बदमाश रहते हैं. किंतु अब इस की चर्चा न करना. लोग जान जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी. इस को एक हादसा सम झ कर भूल जाना ही ठीक होगा. पापा तुम्हारी शादी के लिए कुछ लोगों से बात कर रहे हैं. लड़के वाले जानेंगे तो शादी टूट जाएगी. ऐसी लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता जिस का कौमार्य भंग हो गया हो.’

‘किंतु दीदी उन हैवानों को हम ऐसे ही छोड़ दें? इस तरह तो उन की हैवानियत बढ़ती ही जाएगी. आज उन्होंने मेरी इज्जत लूटी है, कल किसी और की लूटेंगे. यह तो ठीक न होगा.

‘दीदी, अभी हम थाने में रिपोर्ट कर दें तो दोनों पकड़े जाएंगे. ये यहींकहीं होंगे. लोकल हैं. पुलिस वाले हो सकता है इस इलाके के गुंडोंबदमाशों को जानते भी हों.’

‘हो सकता है पकड़े जाएं, पर इस से तुम्हें क्या फायदा होगा. अभी तो कोई कुछ नहीं जानता, पर इस के बाद तो सारी दुनिया जान जाएगी. पढ़ाई छोड़ कर तुम्हें पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे. मीडिया वाले होहल्ला करेंगे. यह तय है कि तब तुम से कोई शादी न करना चाहेगा. जब तुम नहीं पहचानतीं तो उन की शिनाख्त कैसे करोगी? पुलिस वाले रिश्वत ले कर मामला दबा देंगे. हम नाहक परेशान होंगे सो अलग.’

‘दीदी लगातार तर्क पर तर्क देती चली गई थीं और मेरी आवाज दबती चली गई थी. दीदी ने मु झे कसम दिलाई कि इस राज को राज रहने देने में ही हमारी भलाई है. उन्होंने इस घटना के बारे में किसी को

न बताया. यहां तक कि जीजाजी को

भी नहीं.

‘अब इस जलालत के बाद मैं एक दिन भी दीदी के यहां नहीं रुकना चाहती थी. जीजाजी ने कई बार कुछ दिनों तक रुक जाने को कहा, लेकिन मैं दूसरे दिन ही अपने घर लौट गई.

‘दिन बीते तो धीरेधीरे मैं नौर्मल होने लगी. फिर कालेज जाने लगी, पर अब मेरे अंदर एक बड़ा बदलाव हो गया था. अंदर ही अंदर घुटने लगी.

‘इसी तरह 2 महीने गुजर गए. एकाध बार उलटी की शिकायत हुई, पर ध्यान न दिया.

व्यंग्य: दोस्ती के दांत दिखाने वाले, निभाने वाले

Wrietr- अशोक गौतम

विश्व स्तर पर दोस्ताना संघ की स्थापना जब हुई हो तब हुई हो, पर इस की नींव की बहुतकुछ आउटलाइन मेरे जवान होते दिनों में उस समय तैयार होने लगी थी जब हम सब महल्ले के सारे जवान होते बातबात पर एकदूसरे के हाथों में एकदूसरे का हाथ ले उसे पूरे जोर से दबा कसम खाते नहीं थकते थे कि हम सब अपनी अपनी दोस्ती की कसम खाते हैं कि जो हम में से किसी को दूसरे महल्ले के गधे ने भी हाथ लगाया तो हम सब मिल कर साले के हाथपांव तोड़ कर रख देंगे. उस के हाथपांव हों या न. उस की पूंछ, कान मरोड़ कर रख देंगे. उस के पूंछ, कान हों या न. हम में से किसी की ओर दूसरे महल्ले का सही होने पर भी जो कोई आंख उठा कर भी देखेगा तो उस की आंखों में देगीमिर्च डाल देंगे. बाद में घर में दाल में मिर्च न डले, तो न सही.

मुझे तब अपने दोस्तों पर यह कसम खाते हुए बहुत गर्व होता था. तब मैं अपने को कई बार महल्ले की ही नहीं, शहर की महाशक्ति समझने लग जाता था. तब मुझे लगता था कि मेरा अमेरिका भी कुछ नहीं कर सकता.  तब मैं सोचता था कि मेरा चीन भी कुछ नहीं कर सकता. पर एक दिन मेरा दोस्ती का सारा घमंड चूरचूर हो गया.

हुआ यों कि एक दिन बिन बात के दूसरे महल्ले के लड़के ने मेरी आती जवानी को बेकार में ललकार दिया जबकि मेरी आती जवानी ने उस के महल्ले का कुछ भी बुरा नहीं किया था. उस की बेकार की ललकार को सुन मैं भी तब गुस्से में आ गया था. हद है यार, बिन कुछ किए ही बंदा ललकार रहा है?

मैं गुस्से में इसलिए नहीं आया था कि मुझ में उस का विरोध करने का दम था. मैं ने सोचा था कि जिस के पीछे उस के दोस्त हों, उसे तो खुदा से भी डर नहीं लगता है. लगना भी नहीं चाहिए. दोस्तों के सिवा मेरे पास उस वक्त, बस, आतीआती जवानी थी, जबकि वह औलरैडी एडवांस लैवल का जवान था. मैं तो गुस्से में इसलिए आया था कि मेरे पास मेरे पीछे बीस दोस्त थे. मुझे अंधविश्वास था कि मेरे पीछे मेरे दोस्त हिमालय की तरह खड़े हैं. वे मेरी खाल तो क्या,  किसी भी कीमत पर मेरा बाल भी बांका नहीं होने देंगे.  मुझे यह  पता था कि मैं उस के सामने पिददी हूं. पर मैं ने दोस्तों के दम पर सहर्ष उस का चैलेंज स्वीकार कर लिया. क्योंकि किताबों में किस्सेकहानियों में पढ़ा था कि जिस के पीछे दोस्त होते हैं उस का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.

बस, फिर क्या था. मैं ने उस की ललकार को अपनी नईनई दहाड़ से दबाने की कोशिश की तो दूसरे महल्ले का लड़का और भी आक्रामक हो गया. मैं ने उस के आगे बेखौफ हो अपनी नएनए लड़ने के तरीकों से अनजान छाती तान दी कलाशनिकोव राइफल की तरह, यह सोच कर कि मेरे पीछे मेरे दोस्तों की मिजाइलें हैं.

दस मिनट… बीस मिनट… तब मैं अकेला ही जैसेतैसे उस का विरोध उस के लातघूंसे सहन करते करता रहा. पर मेरे दोस्त मेरी सहायता को नहीं आए, तो नहीं आए. वे, बस, दूर से हवा में हौकियां, डंडे लहराते, मेरे जोश को तालियां बजाते बढ़ाते, मेरी पीठ के बहाने अपनी पीठ थपथपाते,  तो दोतीन दूर से मेरे जख्मों पर मरहम लगाते. मैं ने तब उन्हें तब उस का सामना करने को अपने साथ आने को बहुत पुकारा. पर वे नहीं आए, तो नहीं आए. मुझे  लगा, जैसे वे उस के भी दोस्त हों.

अंत में मैं खुद ही जैसेतैसे हौसला बना कर उस का आधापौना सामना किया और जैसेकैसे अपने को बचा पाया. उस के बाद टांगों के नीचे से कान पकड़े थे कि बेटे, जिंदगी में जो हिम्मत हो, तो किसी की गलतसही ललकार का सामना हो सके तो अकेले ही करना. हर वह, जो मुसीबत में काम आने की कसम खाता है, दोस्त नहीं होता. कलियुग में दोस्त हाथी के दांतों की तरह होते हैं, मुसीबत आने से पहले कसमें खाने वाले और, तो मुसीबत के वक्त काम आने वाले और.

GHKKPM: विराट की जिंदगी में होगी इस हसीना की एंट्री! क्या करेगी सई

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि सई और विराटत के कारण शिवानी और राजीव एक हो गए हैं. इसी बीच सई-विराट की जिंदगी में एक और तूफान आने वाला है. आइए बताते है, शो के आगे की कहानी.

एक रिपोर्ट के अनुसार सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में जल्द ही सोनिया सिंह की एंट्री होने वाली सोनिया सिंह सुपरहिट शो ‘दिल मिल गए में’ काम कर चुकी हैं. ‘गुम है किसी के प्यार में’ सोनिया सिंह राजीव की बहन का किरदार निभाने वाली हैं.

 

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शो में राजीव की बहन की एंट्री कई ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आने वाली है. गौरतलब है कि विराट और सई ने मिलकर परिवार के लोगों को शिवानी और राजीव की शादी के लिए राजी कर लिया है.

 

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बताया जा रहा है कि शो में शिवानी और राजीव की शादी के दौरान सोनिया सिंह की धमाकेदार एंट्री होगी. हालांकि मेकर्स ने अब तक भी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि शो में सोनिया सिंह का किरदार कैसा होगा. लेकिन ये तय है कि शो में इस हसीना की एंट्री के बाद बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलेगा.

 

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