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Mother’s Day 2023: मां का प्यार- भाग 1

निधि को पागलों के अस्पताल में भरती कराने की सलाह जब भी कोई संगीता को देता, उस की आंखों से आंसुओं की जलधारा झरने लगती. वह हर किसी से एक ही बात कहती, ‘‘जब मां हो कर मैं अपनी बेटी की देखभाल और सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वालों को उस की क्या चिंता होगी. निधि को अस्पताल में भरती कराने का मतलब किसी बूढ़े जानवर को कांजीहाउस में डाल देने जैसी बात होगी.’’ जन्म से पागल और गूंगी बेटी की देखभाल संगीता स्वयं ही कर  रही थी. निधि के अलावा संगीता की 3 संतानें और थीं-दो बेटे और एक बेटी. बेटे पढ़लिख कर शहर में कामध्ांधे में लग गए थे. बेटी ब्याह कर ससुराल चली गई थी. घर में संगीता और निधि ही बची थीं. संगीता निधि में इस तरह खो गई थी कि अपनी उन तीनों संतानों को भूल सी गई थी. अब वह अपना समग्र मातृत्व निधि पर ही लुटा रही थी. छुट्टियों में जब बेटे और बेटी परिवार के साथ घर आते तो उस का घर बच्चों की किलकारी से गूंज उठता. लेकिन संगीता एक दादीनानी की तरह अपने उन पौत्रपौत्रियों को प्यार नहीं दे पाती थी.

मां के इस व्यवहार पर बेटों को तो जरा भी बुरा नहीं लगता, लेकिन बहुएं ताना मार ही देती थीं. दोनों बहुएं अकसर अपनेअपने पतियों से शिकायत करतीं,  ‘मांजी को हमारे बच्चे जरा भी नहीं सुहाते. जब देखो तब अपनी उस पागल बेटी को छाती से लगाए रहती हैं. इस पागल की वजह से ही हमारे बच्चों की उपेक्षा होती है.’ मातृत्व की डोर में बंधी संगीता के साथ कभीकभी बहुएं अन्याय भी कर बैठतीं. संगीता का व्यवहार बेटों के बच्चों के प्रति ही नहीं, बेटी के बच्चों के प्रति भी वैसा ही था. बहुएं तो पति के सामने अपना क्षोभ प्रकट कर शांत हो जातीं लेकिन बेटी तो मुंह पर ही कह देती थी,  ‘निधि को इतना प्यार कर के आप ने उसे और पागल बना दिया है. यदि आप ने उसे आदत डाली होती तो कम से कम उसे शौच आदि का तो भान हो गया होता. 18 साल की लड़की कितनी भी पागल हो, उसे कुछ न कुछ तो भान होना ही चाहिए. निधि गूंगी है, बहरी तो नहीं. कुछ कह नहीं सकती, पर सुन तो सकती है. एक बार गलती करने पर थप्पड़ लगा दिया होता तो दोबारा वह गलती न करती.’

बेटी और आगे कुछ कहती, संगीता की आंखें बरसने लगतीं. मां की हालत देख कर बेटी का भी दिल भर आता. फिर भी वह कलेजा कड़ा  कर के कहती,  ‘मां, तुम सोचती हो कि बेटी को इतना प्यार कर के उसे खुशी और आराम दे रही हो जबकि सचाई यह है कि तुम्हीं उस की असली दुश्मन हो. तुम हमेशा तो बैठी नहीं रहने वाली. जब वह भाभियों के जिम्मे पडे़गी तब इस की क्या हालत होगी, तुम ने कभी सोचा है.’ संगीता अन्य लोगों को तो चुप करा देती थी, लेकिन बेटी पलट कर जवाब दे देती थी, ‘अस्पताल तुम्हें कांजीहाउस लगता है, ज्यादा से ज्यादा वह वहां मर जाएगी. उस के लिए तो मर जाना ही ठीक है. कम से कम चौबीसों घंटों की परेशानी से तो वह छुटकारा पाएगी. वही क्यों, परिवार भी उस से छुटकारा पा जाएगा.’

निधि की मौत को संगीता भी छुटकारा मानती थी. लेकिन वह कुदरती हो जाए तो…बेदरकारी के साथ जानबूझ कर मौत के मुंह में निधि को धकेलना संगीता के लिए असह्य था. इसीलिए बेटों एवं बेटी के लाख कहने पर भी संगीता निधि को अस्पताल भेज कर मौत के मुंह में झोंकने को तैयार नहीं थी. बेटे मां की सोच को समझ कर चुप हो गए थे. उन्होंने इस विषय पर बात करना भी छोड़ दिया था. निधि का कोई उपचार भी नहीं था क्योंकि लगभग सभी डाक्टरों ने स्पष्ट कह दिया था कि वह किसी भी तरह ठीक नहीं हो सकती. संगीता से जो हो सकता था, वह निधि के लिए करती रहती थी. अचानक एक घटना यह घटी कि कन्या विद्यालय में पढ़ने वाली एक लड़की कुसुम पागल हो गई. निधि की तरह उसे भी न शौच आदि का भान रह गया था, न कपड़ों का. यह जान कर संगीता को दुख तो बहुत हुआ लेकिन इस के साथ ही उसे इस बात का संतोष भी हुआ कि जब एक अच्छीभली लड़की पागल हो कर होश गंवा सकती है तो जन्म से पागल निधि को इन बातों का होश नहीं रहता तो इस में आश्चर्य की कौनसी बात है.

कुसुम के घर वालों ने सलाहमशवरा कर के उसे पागलों के अस्पताल में ले जाने का निर्णय लिया. जब यह जानकारी संगीता को हुई तो उसे लगा कि आज कुसुम की मां होती, तो ऐसा कतई न होता. ‘मां बिन सून,’ गलत नहीं कहा गया है. यह सोचते हुए उस ने आंखें बंद कीं, तो उसे दिखाई दिया कि उस के मरने के बाद बेटे भी निधि को पागलों के अस्पताल में छोड़ आए हैं. उस का कलेजा कांप उठा और उस की आंखें खुल गईं. कुसुम के अस्पताल जाने के बाद अस्पताल से खबर आई कि उसे वहां फायदा हुआ है. उसे पहले रस्सी से बांध कर रखना पड़ता था, अब वह खुली घूम रही है. अब वह कोई उपद्रव भी नहीं करती. शौच और कपड़ों का भी उसे होश रहने लगा है. अब उस में एक यही कमी है कि वह दिनभर गाती रहती है. पागलपन का बस यही एक लक्षण उस में बचा है. डाक्टरों ने कहा था कि एकाध महीने में वह एकदम ठीक हो जाएगी. और अगले महीने सचमुच वह ठीक हो गई थी. लेकिन डाक्टरों ने सलाह दी थी कि अभी उसे एकाध महीने यहां और रहने दें, जिस से उन्हें पूर्ण संतोष हो जाए.

विद्या का मंदिर- भाग 2: क्या थी सतीश की सोच

जब भी कोई नई गाड़ी मंदिर के आगे रुकती, मांगने वालों की टोली उस को घेर लेती. दुआओं का सिलसिला चालू हो जाता- ‘साहब…आप की गाड़ी सलामत रहे…ईश्वर खूब तरक्की दे.’ कुछ नई गाड़ी का नशा… कुछ दुआओं का असर… लोग दरियादिली से इन भिखारियों को खुल कर रुपए दे रहे थे. अभी राहुल और रमा ठीक से उतरे भी नहीं थे कि भिखारियों ने उन को भी घेर लिया और शुरू हो गया उन का राग…आप की गाड़ी सलामत…ईश्वर…

“यह क्या 10 रुपए…” रमा ने जब 10 रुपए दिए तो भिखारिन ने हिकारत से कहा.

“तो कितना दे?” व्यंग्य से राहुल बोला.

“सौ रुपए.” गाड़ियों की बढ़ती कीमतों के साथसाथ भिखारियों के भाव भी बढ़ गए थे.

“सौ रुपये? पकड़ना है तो पकड़…” जैसे ही रमा ने यह कहा, दूसरी भिखारिन ने आ कर लपक लिया.  उस के बाद तो दोनों भिखारिनों में तकरार शुरू हुई, तो दोनों ने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी और देवी मां को चढ़ावा चढ़ाने के लिए मंदिर परिसर में बनी दुकान की ओर बढ़ गए.

प्रसाद खरीद कर मांबेटे ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया. मंदिर घंटेघड़ियालों के साथ देवी मां के जयकारों से गुंजायमान था. पूरा माहौल भक्तिमय था. पूजा की थाली ले कर दोनों श्रद्धालुओं के लिए बनी लंबी कतार में खड़े हो गए. मई महीने की गरमी में लाइन में खड़ेखड़े दोनों का बुरा हाल हो गया.

“मम्मी, देखो न, कितनी गरमी है,” पसीना पोंछते हुए राहुल ने कहा.

“तभी तो मैं सुबह जल्दी उठने के लिए कह रही थी,” गरमी से बेहाल रमा बोली.

लंबी लाइन धीरेधीरे आगे खिसक रही थी. पूजा के लिए लगी कतार से मंदिर का दाईं ओर का हौल दिखाई दे रहा था, जहां पर भंड़ारा चल रहा था. लोग पंक्तियों में बैठे भोजन का आनंद ले रहे थे. छोले, पूरी, तरकारी, हलवे की खुशबू  हवा में तैर रही थी. सुबह से खाली पेट राहुल को खाने को देख कर जी ललचाने लगा. उस का मन कर रहा था कि पूजा की पंक्ति से हट कर वह खाने की पंगत में बैठ जाए. लेकिन वह मन मसोस कर रह गया और बेताबी से अपने नबर आने का इंतजार करने लगा. जैसेतैसे कर के दोनों की बारी आई. श्रद्धा से पूजा की थाली रमा ने पंडितजी को पकड़ा दी, जिस में पुष्प, फल, मिष्ठान, श्रीफल, देवी मां की लाल चुनरी और एक काली चोटी थी. पंडितजी ने पूजामंत्रोच्चार के बाद सब से पहले उन से दक्षिणा रखवाई, प्रसाद दिया, फिर कार के पास आ कर नारियल फोड़ कर उस का पानी बोनट के ऊपर छिड़क दिया. नारियल वास्तव में तगड़ा था. पानी से लबालब भरा हुआ था. नारियल के फोड़ने से जो अमृतस्राव बहा, वह राहुल के सूखे गले को तो नहीं, पर, कार के बोनट को तरबतर कर गया. नारियल जल कई दिशाओं से होता हुआ बोनट से जमीन पर गिरने लगा, जो पहले से ही कई श्रीफलों के उत्सर्ग से पसीजी हुई थी. उस के पश्चात पंडितजी ने लाल चुनरी कार के साइड मिरर में बांध दी, काली चोटी को गाड़ी के सामने नीचे लटका दिया और पूजा संपन्न हो गई.

राहुल ने राहत की सांस ली और कार में सीट बेल्ट लगाते हुए कहा, “मम्मी, आप भी… अगर पूजा करवाने से सबकुछ सुरक्षित रहता, तो इतने ऐक्सिडैंट न होते सड़कों पर.”

“देखा नहीं कितनी सारी गाड़ियां थीं. बड़ी मान्यता है इस देवी मंदिर की, दूरदूर से लोग आते हैं.  कितना आलीशान हो गया है. शादी के बाद जब तेरे पापा ने अपना स्कूटर खरीदा  था, उस समय तो यह मंदिर छोटा सा था. गाड़ियां तो इक्कीदुक्की हुआ करती थीं. अब देखो,” गर्व से रमा बोली.

अभी गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि सामने एक भगवान शनिदेव मंदिर के आगे गाड़ी रुकवा दी रमा ने. यहीं पर ही यह सिलसिला नहीं थमा, एक बार फिर भगवान गणेशजी के मंदिर में राहुल से कार रुकवा दी. फिर वही पूजा शुरू हो गई. और अब यह हनुमानजी का मंदिर. सुबह से निकले हुए, भूख से राहुल का पेट बुरी तरह कुलबुला रहा था.

“आगे शिवजी का मंदिर है, मैं वहां बिलकुल कार नहीं रोकूंगा,” राहुल चेतावनी देते हुए बोला.

“नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते. बस, शिवजी का मंदिर और आगे बिलकुल सड़क पर एक पीर की मजार,” बेटे को मनाने की कोशिश करती हुई रमा बोली.

सतीश चंद्र का फोन बारबार आ रहा था, कभी राहुल को तो कभी रमा को. एक बार फिर फोन की घंटी बज उठी.

“कहां हो तुम लोग?” चिंतित स्वर में सतीश चंद्र बोले.

“बस, पहुंचने ही वाले हैं,” कह रमा ने फोन बंद कर दिया.

“क्या बात है? बड़ी देर कर दी,” 3 बजे घर पहुंचने पर सतीश चंद्र ने व्यग्रता से पूछा.

“पापा, यह आप मम्मी से पूछें.” डाइनिंग टेबल पर खाना लगा देख राहुल तेजी से बाथरूम में हाथ धोने चला गया.

डाइनिंग टेबल पर बैठ वह खाने पर एक तरह से टूट पड़ा.

मुंह में खाना ठूंसे हुए राहुल पापा से बोला, “पापा, मम्मी का बस चलता, तो पता नहीं कितने मंदिरों में और ले जाती मुझे.”

“मुझे तो पता है, तभी तो मैं जाता नहीं,” मुसकरा कर चटकारे लेते हुए पत्नी की ओर देख कर सतीश चंद्र बोले.

जैसे ही रमा ने घूर कर पति की ओर देखा, वे चुपचाप नजरें नीचे कर खाना खाने लगे.

“जब इतनी कम दूरी में 5 मंदिर, तो पता नहीं शहर में कितने होंगे और पूरे देश में. और पापा, मैं ने गौर किया कि मसजिदें भी कम नहीं हैं. एक से बढ़ कर एक. ओ माय गौड!”

“निकल गया न तुम्हारे मुंह से भगवान का नाम,” रमा ने राहुल के शब्दों को पकड़ते हुए कहा.

“मम्मी, आप भी…”

“छोड़ो यह सब, खाना खाओ,” अपनी मुसकराहट को दबाने का असफल प्रयास करते हुए वे बोले.

शाम को रमा चाय और पकौड़े बना कर लाई. आज वह प्रसन्नमना है. बातचीत के साथ तीनों चाय के साथ पकौड़ों का आनंद लेने लगे.

“सुनो जी, मां का मंदिर इतना सुंदर बन गया है कि आप भी देखते, तो दंग रह जाते.”

“और तुम ने उसी रास्ते में सरकारी स्कूल के उखड़ते प्लास्टर और उधड़ते फर्श को नहीं देखा?” जिला शिक्षा अधिकारी के पद से रिटायर हुए सतीश चंद्र का दर्द छलका.

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार गुलाबी मीनाकारी

गुलाबी मीनाकारी अपनी खूबसूरत कारीगरी से जहां पूरी दुनिया में धूम मचा रही है. वही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी मददगार साबित हो रही है. सरकार की “समर्थ “योजना के अंतर्गत महिलाओं को गुलाबी मीनाकारी का हुनर सिखाया जा रहे है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा के दौरान अपने ख़ास मेहमानों को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बनी ग़ुलाबी मीनाकारी के उत्पादों को उपहार स्वरुप देते है. जिससे इस जीआई उत्पाद की मांग देश और विदेश में बढ़ती जा रही है. ग़ुलाबी मीनाकारी से दूर हो रहे शिल्पी अब प्रशिक्षण लेकर एक बार फिर इस प्राचीन कला से जुड़ रहे है.

जी.आई.उत्पाद और वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल गुलाबी मीनाकारी की ख़ूबसूरती कायल पूरी दुनिया होती जा रही. सहायक निदेशक हस्तशिल्प अब्दुल्ला ने बताया कि  सरकार गुलाबी मीनाकारी का हुनर  सिखाने के लिए “समर्थ”नाम से  प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है. जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है. समर्थ नाम से चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम 65 दिनों का होता है. जिसमें सरकार प्रशिक्षुओं को 300 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से प्रोत्साहन राशि भी देती है. ये प्रशिक्षण कार्यक्रम वस्त्र मंत्रालय द्वारा कराया जा रहा है.

सहायक निदेशक ने बताया कि 2 अक्टूबर 2021 से प्रशिक्षण का कार्यक्रम चल रहा है. प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाएं शामिल हो रही है. अभी तक 60 महिलाएं  प्रशिक्षण ले चुकी है. जिसमें सीधे तौर पर करीब 70 प्रतिशत महिला काम करके आत्मनिर्भर बन रही है. जबकि बाकी पार्ट टाइम काम करके कमाई कर रही है. प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता इसी बात से लगाई जा सकती है की इसमें वेटिंग लिस्ट चल रही है. प्रशिक्षण कार्यक्रम को पुख्ता बनाने के लिए के बायोमेट्रिक अटेंडेंस ,वीडियो ग्राफ़ी कराइ जाती है. जिसमे 80 प्रतिशत अटेंडेंस अनिवार्य है.  टीम प्रशिक्षुओं का असेसमेंट करने के बाद पास करती है तभी  प्रोत्साहन राशि और सर्टिफिकेट  दिया जाता है.

प्रशिक्षण दे रहे नेशनल अवार्डी कुंज बिहारी ने बताया  कि प्रधानमंत्री अपने विदेशी मेहमानों को ग़ुलाबी मीनाकारी का  नायब तोहफ़ा जरूर देते और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लोगों  को उपहार देने और लोगों से जी आई और ओडीओपी को उपहार स्वरूप देने की अपील करने से हस्त शिल्पियों के हुनर की मांग बढ़ी है. और गुलाबी मीनाकारी को  संजीवनी मिली है.

शिवानी- भाग 4: फार्महाउस पर शिवानी के साथ क्या हुआ

अजय फोन करने के बाद शिवानी को उठा कर बैडरूम तक ले गया. सब परेशान चुपचाप खड़े थे. संजय भी चुपचाप खड़ा था. उस रात के बाद वह शिवानी से आज ही मिला था. उसे यह नहीं पता था कि शिवानी के गर्भ में उस की संतान है. वह अपनी हरकत के लिए जरा भी शर्मिंदा नहीं था.

डाक्टर मनाली ने आ कर शिवानी का चैकअप किया, फिर कहा, ‘‘उमा, शिवानी का ब्लडप्रैशर हाई है. क्या यह किसी टैंशन में है?’’

अजय ने कहा, ‘‘नहीं तो. सब हंसबोल रहे थे पर अचानक पता नहीं क्या हुआ. कैसे आजकल बहुत सुस्त रहती है.’’

दवाइयां और कुछ निर्देश दे कर डाक्टर चली गईं. सब दोस्तों ने भी फिर मिलते हैं, कहते हुए विदा ली.

घर के सदस्य शिवानी की हालत पर दुखी थे. उमा कह रही थीं, ‘‘क्या हो गया इसे. किस चिंता में रहती है… पता नहीं क्या सोचती रहती है.’’

लता ने कहा, ‘‘आप परेशान न हों, आराम करेगी तो ठीक हो जाएगी.’’

शिवानी ने आंखें खोलीं, पर बोली कुछ नहीं. एक उदास सी नजर सब के चेहरे पर डाली. मन ही मन और दुखी हुई. सब से सच छिपाने का अपराधबोध और हावी हो गया. आंखों की कोरों से आंसू बह चले तो उमा जैसे तड़प उठीं, ‘‘न बेटा, दुखी मत हो. ऐसी हालत में तबीयत कभी ठीक, कभी खराब चलती रहती है. कोई चिंता न करो. बस, खुश रहो.’’

शिवानी खुद को संभाल कर मुसकराई तो सब के चेहरे पर भी मुसकान उभरी.

रात को सोने के समय अजय शिवानी के सिर को सहलाते हुए उस का मन बहलाने के लिए उस के दोस्तों की बातें करने लगा तो वह कहने लगी, ‘‘अजय, मुझ से बस अपनी बात करो, बस अपनी. किसी और की नहीं.’’

‘‘अच्छा ठीक है, पर शिवानी मुझे सचसच बताओ कि तुम्हें कुछ टैंशन है क्या?’’

‘‘नहीं अजय, बस बहुत सुस्त रहती है तबीयत आजकल, पर तुम चिंता न करो. मैं अपना ध्यान रखूंगी,’’ कहते हुए शिवानी ने अपना सिर अजय के कंधे से सटा लिया.

अजय शिवानी की उदासी का कारण खराब तबीयत समझ कर शांत हो गया.

जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में तैयारियों की बात होती रहती थी. रमेश और सुधा भी अकसर उस से मिलने आते रहते थे. शिवानी अकेले में सोचती, ‘यह कैसी गर्भावस्था है, कैसे इस बच्चे को पालूंगी, मुझे तो जरा भी ममता का एहसास नहीं हो रहा.’

उस की कितनी ही रातें रोते बीत रही थीं, कोई कितना रो सकता है, इस का अनुभव उसे स्वयं न था.

देखतेहीदेखते उस के हौस्पिटल जाने का दिन आ गया. गौतम ने रमेश और सुधा को भी सूचना दे दी. गर्भावस्था का पूरा समय शिवानी ने जिस तनाव में बिताया था और पूरे परिवार का जो स्नेह उसे मिलता आया था, वह सब शिवानी को याद आ रहा था. शारीरिक और मानसिक, तीव्र पीड़ा के पलों को झेलते हुए उस ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. लता तो खुशी के मारे रो ही पड़ी. सब ने एकदूसरे को गले लगा कर बधाई दी. सुधा ने फौरन कुछ पैसे अजय को देते हुए कहा, ‘‘हमारी तरफ से मिठाई लानी है, बेटा.’’

अजय, ‘‘अच्छा, लाता हूं,’’ कह कर मुसकराते हुए चला गया. नवजात शिशु सब के आकर्षण का केंद्र बन गया था.’’

उमा ने बच्चे को देखते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो बिलकुल अजय पर गया है.’’

लता ने कहा, ‘‘नहीं, शिवानी की झलक दिखाई देती है.’’

गौतम हंसे, ‘‘मुझे तो यह दादी पर लग रहा है.’’

सब हंस रहे थे. शिवानी के मन में अब तक बच्चे को देखने का जरा भी उत्साह नहीं था. वह चुपचाप निढाल पड़ी थी. अजय मिठाई ले आया था. सब एकदूसरे का मुंह मीठा करवा रहे थे. उमा ने डाक्टर, नर्स और आसपास के लोगों को भी मिठाई खिलाई. शिवानी के दिल पर पत्थर सी चोट लग रही थी.

शिवानी के चेहरे पर नजर डालते हुए अजय ने कहा, ‘‘ठीक हो न?’’

‘‘हां.’’

‘‘अब सारी तबीयत ठीक हो जानी चाहिए. अब कोई उदासी नहीं चलेगी, समझीं,’’ हंसते हुए अजय ने कहा तो लता भी बोलीं, ‘‘हां, अब सारी तबीयत ठीक हो जानी चाहिए, पहले की तरह खुश रहना, बेटा.’’

शिवानी फीकी सी हंसी हंस दी. वह यही सोच रही थी कि ये सब इस बच्चे की इतनी खुशियां मना रहे हैं जिस के पिता का भी मुझे नहीं पता, कौन है. यह बच्चा तो मुझे हमेशा उस धोखे की याद दिलाता रहेगा जो मैं ने अपने परिवार को दिया है. कैसे पालूंगी इसे…

तभी बाहर अजीब सा शोर सुनाई दिया, तो सभी बाहर चल दिए.

शिवानी को अभी बहुत कमजोरी थी. वह चुपचाप आंखें बंद कर लेटी थी. बराबर ही पालने में बच्चा लेटा था. थोड़ी देर बाद एक नर्स अंदर आई तो शिवानी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘कल से एक लड़की दाखिल थी. रात ही उस ने बेटे को जन्म दिया था. अब वह लड़की बच्चे को छोड़ कर गायब है. उस के दिए पते पर, फोन पर सब देख लिया, सब फर्जी जानकारी थी. पता नहीं कौन थी. बच्चा पैदा कर छोड़ कर गायब हो गई. अभी एक बेऔलाद पतिपत्नी यहां किसी को देखने आए थे. सारी बात सुन कर उस बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘एक सगी मां बच्चे को पैदा करते ही छोड़ कर चली गई, अब 2 पराए लोग उस

बच्चे के लिए इतने उतावले हैं कि पूछो मत. दोनों इतने खुश हैं, मैडम कि शादी के 10 साल बाद उन के जीवन में एक नन्हीं खुशी आ ही गई. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वह किस का होगा, दोनों बस उस बच्चे को गोद लेने के लिए छटपटा रहे हैं. पता नहीं कौन थी क्या मजबूरी थी.’’

शिवानी सांस रोके नर्स की बात सुन रही थी. नर्स चली गई तो जैसे शिवानी की आंखें खुलीं. वह जैसे होश में आई. एक दंपती किसी गैर के बच्चे के लिए तरस रहे हैं और वह अपने बच्चे से पीठ फेरे लेटी है.

इस का पिता जो भी हो, मां तो वही है न. उस का भी तो अंश है बच्चा. मां के हिस्से की ममता पर तो इस का हक है ही न. और मां का ही क्यों, हर रिश्ते के स्नेह का पात्र बनने वाला है यह. दादादादी, नानानानी, अजय, सब की खुशियों का कारण बना है यह. फिर वह मां की ममता से ही क्यों दूर रहे और इस बच्चे का कुसूर भी तो नहीं है कोई… उस अजनबी दंपती के बारे में, अपने बच्चे के बारे में सोचतेसोचते पिछले कई महीनों का उस का मानसिक संताप दूर होता चला गया.

वह धीरे से उठी. बच्चे का चेहरा देखते हुए झुक कर उसे गोद में उठाया. नर्ममुलायम सा स्पर्श कई महीनों से जलतेतपते तनमन को सहलाता चला गया.

बेटे का विद्रोह- भाग 3: क्या शिव ने मां को अपनी शादी के बारे में बताया?

“जब मेला देखने के लिए पैसा मांगे, तो पापा ने डांट कर भगा दिया. फिर मैं ने चुपके से तुम्हारे डब्बे से 50 रुपए ले लिए थे, तो आप ने चिमटे से हाथ जला दिया था. यह देखो, आज तक निशान पड़ा है…”

“जब सुमित्रा की अम्मां ने आ कर झूठमूठ कह दिया था कि तुम्हारे बेटे ने हमारी बिटिया को छेड़ा है, तो आप लोगों ने मुझ से एक बार भी नहीं पूछा और पापा सब के सामने ही चप्पल ही चप्पल पीटने लगे थे… गाली तो हर समय उन की जबान पर रहती थी…”

मांबेटे दोनों की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे…

“पापा ने जिज्जी की शादी  अपनी बिरादरी, कुल, गोत्र और जमीनजायदाद देख कर नकारा लड़के के साथ कर दी तो अब झेलो… जल्दीजल्दी 4 बच्चे भी हो  गए. उन्हें न पढ़ाना और न लिखाना… बस, अपनी जातिबिरादरी देखती रहना…”

“सारी जिंदगी पापा से गाली खाती रहीं और पिटती रहीं. आज हम अपनी जिंदगी में कमा खा रहे हैं… चैन से जी रहे हैं, तो कभी किरिस्तानी, तो कभी कुछ कह रही हो… न मुझे आप के जेवर का लालच है और न ही जमीनजायदाद का. मुझे कुछ नहीं चाहिए… मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश  हूं… आप सबकुछ जिज्जी को दे दीजिए. मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता…”

शिव उठने को  हुआ, तो उन्होंने उस की बांह पकड़ कर रोने का उपक्रम करने लगीं, ’हाय राम, बेटा तुम्हारे पापा को वहां के डाक्टर ने जवाब दे दिया है… तुम्हें उन की जरा भी चिंता नहीं है. उन का लिवर और किडनी दोनों ही खराब हो गए हैं. बचने की उम्मीद ना के  बराबर है…”

“तो मैं क्या करूं…? जो करे वह भरे. मैं कुछ  नहीं कर सकता.”

“अपने बाप के पैसे पर ऐश करने वाले अनपढ,  बेरोजगार, गंजेडी, शराबी लड़का ढूंढ़ा, जो उन की जातबिरादरी का था. कुंडली में 36 गुण मिलाए गए, फिर  जिज्जी का ब्याह कर दिया… न पढ़ाया, न लिखाया…

“अपनी जिंदगी खराब कर रखी है और जिज्जी की बरबाद कर रखी है… 4-4 बच्चे हैं. वह भी ऐसे ही रह जाएंगे… ‘

ऐसा सुन कर वे सिसकने लगी थीं. बोलीं, “बेटा, असल में तुम्हारे जीजा किसी दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गए हैं. पहले तो हम सब तुम से छिपाते रहे, लेकिन अब तो सारी रकम धीरेधीरे दूसरी औरत का घर भर रही है और बाकी नशे की भेंट चढ़ रही है…”

“फिर भी तो जब से आई हो, कौन जाति की है…? किरिस्तानी है… कहे जा रही हो… यदि आप के दिमाग से किरिस्तानी का भूत उतर जाए, तो मैं  कासगंज कुछ दिन की मैडिकल लगा कर वर्क फ्रोम होम ले सकता हूं…

“आप अच्छी तरह ठंडे दिमाग से खूब सोचविचार कर लो…” कह कर उस ने घड़ी देखी. रात के 3 बज चुके थे. वह तेजी से उठ कर अपने बेडरूम में चला गया था.

सुशीलाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. सही तो कह रहा है. किरिस्तानी है तो क्या हुआ… रूप, गुण, संस्कार, इतनी पढ़ीलिखी है, औफिस जाती है और मेरे पैर छूती है… उन के मन की बंदिशें उन्हें समझा रही थीं. जातबिरादरी, कुंडली  का क्या फायदा मिला… उन का अपना जीवन गाली खाते और पिटते बीता और अब बिटिया की जिंदगी भी वैसी ही बीत रही है…

पंडितजी की तो किडनी 70 साल में खराब हुई और कुंवरपाल तो यदि 40 साल भी चल जाए तो समझो… उन के मन की बेड़ियां उन्हें धिक्कार रही थीं… दोनों कितने प्यार के साथ खुशीखुशी रह रहे हैं और वहां तो दिनभर लड़ाईझगड़ा और आपस में गालीगलौज के सिवा कोई कुछ जानता ही नहीं…

उन्हें अपने घर की भलाई  देखनी चाहिए कि कौन क्या कह रहा है… यह सोचना चाहिए… रातभर की ऊहापोह, तर्कवितर्क के बाद संशय का कुहासा छंट गया था और सदियों से चली आ रही मन की जंजीरें टूट चुकी थीं…

उन्होंने सुबह उठते ही शिव और रोजी को प्यार से लिपटा कर कहा, ”आज तुम दोनों ने अपनी बात और व्यवहार से मेरी आंख पर से जातपांत की बेड़ियों   के बंधन को काट कर रख दिया है… काश, मुझे पहले किसी ने इस तरह समझाया होता तो घर की बरबादी न होती… कोई बात नहीं, देर आयद दुरुस्त आयद… तुम लोगों को मेरे साथ कासगंज चलना है… अपने औफिस से चाहे छुट्टी लो, चाहे घर से   काम करो… यह सोच कर चलो कि वहां तुम लोगों को  लंबे समय तक रहना पड़ेगा…

हमें यहां आए 3 दिन हो गए. तुम्हारे पापा का न जाने क्या हाल होगा? बेटा जल्दी करो… कह कर वह रोआंसी हो उठी थीं.

रोजी बोली, “मेरे पास तो साड़ियां 2-4 ही होंगी…”

“बेटी, तुम जो चाहे पहनना. कपड़ों की चिंता मत करो. दुकान से आ जाएंगे. कासगंज छोटी जगह तो है, लेकिन सबकुछ मिल जाता है.

“कुंवरपाल और सुनैना को तो हम समझ लेंगें…”

अम्मां का यह बदला हुआ नया रूप शिव को अनजाना सा लग रहा था, परंतु उस के मन में साहस भी जगा रहा था कि यदि अम्मां का साथ मिलेगा, तो रोजी को  वहां रहने में परेशानी नहीं होने वाली.

अम्मां को तो उस ने दब्बू स्वभाव और पापा की हां में हां मिलाते हमेशा देखा था.

शिव को महसूस हो रहा था कि अम्मां अपने बचपन की अधूरी ख्वाहिशों को रोजी के माध्यम से पूरा कर के खुश होना चाहती हैं…

यह सत्य भी है कि हर लड़की को शादी के बाद अपनी इच्छाओं, सपनों, अपनी सारी ख्वाहिशों को पति और परिवार के लिए बक्से में बंद कर स्टोररूम के कोने में रख देना पड़ता  है और आज भी देखा जाता है कि पति परमेश्वर का पुरुषोचित अहंकार पत्नी की ख्वाहिशों के रास्ते में आड़े आ जाता है. परिवार और बच्चों के लिए हमेशा पत्नी को ही समझौता करना पड़ता है. ऐसा क्यों है…?

स्प्रेयर फसल सुरक्षा उपकरण

समयसमय पर देखने में आया है कि फसलों में अनेक तरह के खरपतवार उग जाते हैं, जो फसल को पनपने नहीं देते. इस के अलावा अनेक तरह के कीट व रोगों का प्रकोप भी खेतों में होता है, जिन से उपज पर खासा असर होता है.

इन सब पर काबू पाने के लिए किसानों को कृषि रसायनों का इस्तेमाल करना पड़ता है या जैविक घोलों का छिड़काव करना होता है. वह भी एक सीमित मात्रा में करना होता है. यह काम हाथ से या अन्य किसी तरीके से संभव नहीं है. इस के लिए किसान को खेत में छिड़काव करने वाले यंत्र स्प्रेयर का इस्तेमाल करना पड़ता है.

आज अनेक प्रकार के स्प्रेयर बाजार में मौजूद?हैं. जैसे नैपसैक स्प्रेयर, रौकिंग स्प्रेयर, फुट स्प्रेयर, पावर स्प्रेयर, बैटरी स्प्रेयर, सोलर से चलने वाला स्प्रेयर, अल्ट्रा लो वौल्यूम स्प्रेयर और शक्तिचालित पावर स्प्रेयर, मिस्ट ब्लोअर स्प्रेयर जैसे नामों से मिलते हैं.

आमतौर पर यह उपकरण हाथ से, पैर से या ट्रैक्टर आदि से चलने वाले होते हैं. छोटे व मध्यम दर्जे के किसान ज्यादातर हाथ से चलने वाले स्प्रेयर को ही तवज्जुह देते हैं. क्योंकि उन की कीमत कम और रखरखाव भी बेहतर तरीके से किया जा सकता है.

शक्तिचालित स्प्रेयर यंत्र बड़े रकबे व बागबगीचों के लिए ठीक रहते हैं. दूसरी बात यह कि वह महंगे भी पड़ते हैं.

इसी तरह से कई बार सूखे पाउडर के रूप में दवाओं का खेत में भुरकाव किया जाता है. शुष्क पाउडर के भुरकाव के लिए डस्टर जैसे यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है.

मौजूदा समय में छोटे स्प्रे पंप से ले कर बड़े टंकीनुमा स्प्रेयर भी बाजार में मौजूद?हैं. पौधों में कीड़ेमकोड़ों और रोगों की रोकथाम के लिए छोटे?स्प्रेयर यंत्र की जरूरत होती है, जबकि खरपतवारों की रोकथाम के लिए बड़े स्प्रे यंत्र की जरूरत होती?है. कुछ छोटे?स्प्रेयर हैं, जिन का इस्तेमाल करना आज किसानों के लिए बहुत ही आसान है.

पीठ पर लटकाए जाने वाले स्प्रे यंत्र

कृषि कार्यों में लाए जाने वाले छोटे यंत्रों में से एक हैं. इस प्रकार के स्प्रेयर में लगे पंप द्रवचालित प्रकार के होते हैं, जिन में जलीय घोल पर पंप की सीधी क्रिया द्वारा छिड़काव दाब बनता है.

इस तरह से उत्पन्न हुआ दाब इस घोल को नोजल के सूक्ष्म छिद्रों से बाहर की ओर फेंकता है. इस से यह उचित आकार की छोटीछोटी बूंदों में बंट जाता है और समान रूप से फसल के ऊपर छिड़काव कर देता है.

बैटरीचालित स्प्रेयर

इस स्पे्रयर को बैटरी द्वारा चलाया जाता है. बैटरीचालित स्प्रेयर के प्रयोग से समय और ऊर्जा की बचत होती है और रसायनों के छिड़काव में कम खर्च आता है. इस का प्रयोग दक्षिणी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा अधिक किया जा रहा है.

इस टू इन वन स्प्रेयर में 12 वोल्ट की बैटरी लगी होती?है. एक बार बैटरी चार्ज होने के बाद 4 से 5 घंटे तक इस स्प्रेयर से छिड़काव किया जा सकता है. पूरी बैटरी चार्ज करने में तकरीबन 8 घंटे का समय लगता?है. जिस तरह से मोबाइल फोन घर में चार्ज करते हैं, उसी तरीके से इस की बैटरी भी चार्ज की जाती?है.

इस स्प्रेयर के साथ नोजल का सैट भी मौजूद रहता?है, जिन्हें अपनी सुविधानुसार बदला जा सकता?है. इस स्प्रेयर का वजन तकरीबन 4.50 किलोग्राम?होता?है और यह कृषि रसायनों का फसलों पर अच्छी तरह बराबर छिड़काव करता है. इस तरह के स्प्रेयर 18 से ले कर 22 लिटर तक की टंकी के साथ उपलब्ध हैं.

पैरचालित स्प्रेयर

इस स्प्रेयर का प्रयोग पैर के द्वारा किया जाता है. इस की सक्शन नली में राकिंग स्प्रेयर की तरह छलनी लगी होती है, जिस से घोल को टंकी में डाला जाता है. इस का यंत्र लोहे के बने स्टैंड में लगा होता है और पंप सिलैंडर को पैडल से चला कर दाब उत्पन्न किया जाता है.

लगातार स्प्रे करने के लिए एक आदमी के द्वारा पैडल को चलाया जाता है और दूसरा आदमी छिड़काव करता जाता है.  इस के द्वारा 0.8 से 1 हेक्टेयर फसल पर प्रतिदिन छिड़काव किया जा सकता है.

इंजन स्प्रेयर?

ये 2 स्ट्रोक और 4 स्ट्रोक में बने होते?हैं. यह 25 लिटर टैंक में भी मौजूद हैं. इस स्प्रेयर में टैंक के नीचे एक छोटा इंजन लगा होता?है. इस यंत्र को चलाने के लिए पैट्रोल का इस्तेमाल किया जाता?है. एक लिटर पैट्रोल में डेढ़ घंटे तक इस यंत्र से काम लिया जा सकता है. यह यंत्र समतल जमीनी खेती के अलावा बागबानी के लिए भी इस्तेमाल किया जाता?है.

पावरचालित स्प्रेयर

इस स्प्रेयर का प्रयोग अधिक क्षेत्र में स्प्रे करने के लिए किया जाता है. इस के प्रयोग से समय की बचत होती है और छिड़काव में कम खर्च आता है. इस में सब से अधिक टै्रक्टरचालित स्प्रेयर का ही उपयोग होता है. इस में दाब उत्पन्न करने के लिए रोलर वेन पंप लगा होता है, जिसे ट्रैक्टर के पीटीओ शाफ्ट द्वारा चलाया जाता है.

इस प्रकार के स्प्रेयर के फ्रेम पर एक पंप प्रेशर गेज, टंकी, प्रेशर रिलीफ वौल्व, सक्शन और निकास नली, बूम और एडजेस्टेबल नोजल एकसाथ लगे होते हैं.

इस के अलावा फ्रेम को ट्रैक्टर के 3 पौइंट लिंकेज (लिफ्टिंग आर्म) से जोड़ा जाता है. इस स्प्रेयर के बूम को अपनी जरूरत के मुताबिक ऊपर या नीचे किया जा सकता है.

इस तरह के स्प्रेयर 200 से ले कर 500 लिटर तक की टंकी के साथ होते हैं. इस में 12-14 एडजेस्टेबल नोजल लगे होते हैं. बूम और नोजल की दूरी को अपनी आवश्यकतानुसार घटाया और बढ़ाया जा सकता है.

अधूरी रह गई फैशन ब्लॉगर की मोहब्बत- भाग 1

उस दिन 24 जून, 2022 की तारीख थी. दिन के करीब पौने 11 बजे थे. सब कुछ सामान्य चल रहा था. आगरा के थाना ताजगंज क्षेत्र स्थित ओमश्री प्लेटिनम अपार्टमेंट में अचानक एक तेज धमाके की आवाज आई. वहां रहने वाले लोग यह आवाज सुन कर सकते में आ गए.

लोग अपनेअपने फ्लैट से निकल कर बाहर आ गए और अपार्टमेंट में पीछे की तरफ पार्किंग के पास जहां से आवाज आई थी, दौड़ कर पहुंचे. वहां का दृश्य देख कर सभी की आंखें फटी रह गईं. वहां एक महिला का शव पड़ा था, जिस के सिर से खून भी बह रहा था. जमीन पर गिरते ही वह मर चुकी थी. उस के हाथ रस्सी से बंधे थे और गले में कपड़े का फंदा कसा था.

एक भारीभरकम शरीर का घनी दाढ़ी वाला शख्स उस महिला के हाथ की रस्सी को खोल रहा था. लोगों को अपनी ओर आते देख वह भागने लगा.

शव देखते ही वहां हड़कंप मच गया, लोग शोर मचाने लगे. भगदड़ व शोर सुन कर गेटमैन गार्ड मुन्ना माजरा समझ गया और

उस ने अपार्टमेंट का गेट तुरंत बंद कर ताला लगा दिया.

घटना के बाद भाग रहे उस दाढ़ी वाले युवक व 2 महिलाओं को भीड़ ने वहां काम कर रहे मजदूरों की मदद से दबोच लिया. जबकि उन के 2 साथी भागने में सफल हो गए. इसी बीच गार्ड व अन्य ने पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पर ताजगंज थानाप्रभारी भूपेंद्र बालियान पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और पकड़े गए लोगों को हिरासत में ले लिया. जानकारी होते ही एसएसपी सुधीर कुमार सिंह, सीओ (सदर) अर्चना सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. इस बीच फोरैंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया गया.

मृत महिला 30 वर्षीय रितिका सिंह अपार्टमेंट की चौथी मंजिल पर रहती थी. पुलिस जब चौथी मंजिल पर उस के फ्लैट नंबर 404 पर पहुंची तो अंदर से किसी के चीखने की आवाज आ रही थी. पुलिस ने फ्लैट में जा कर देखा तो आवाज बाथरूम से आ रही थी. बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद था.

पुलिस ने जैसे ही दरवाजा खोला अंदर एक युवक बदहवास हालत में मिला. उस के हाथ बंधे थे शरीर पर चोट के निशान भी थे, वह बेहद घबराया हुआ था.

पुलिस पूछताछ में युवक ने बताया कि वह विपुल अग्रवाल है और रितिका का दोस्त है तथा उस के साथ लिवइन में वह पिछले ढाई साल से रह रहा था. उस ने बताया कि रितिका का अपने पति आकाश गौतम से तलाक का मुकदमा चल रहा है. वह फ्लैट पर आया था. उस के साथ 2 महिलाएं व 2 युवक भी थे.

घंटी बजने पर जैसे ही दरवाजा खोला आकाश और साथ आई दोनों महिलाएं रितिका पर टूट पड़ीं और उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. जब उस ने रितिका को बचाने का प्रयास किया तो उस के साथ भी मारपीट की.

आकाश और उस के साथियों ने हाथ बांध कर उसे बाथरूम में बंद कर दिया. वह चीखने लगा, बाथरूम की खिड़की का शीशा भी उस ने तोड़ दिया और शोर मचाया.

प्रेमी युगल की चीखें फ्लैट में गूंजती रहीं, लेकिन बचाने कोई नहीं आया. तब तक उन लोगों ने रितिका के हाथ रस्सी से बांध दिए. वह चीखते हुए फ्लैट से बाहर निकलने का प्रयास करने लगी. अपार्टमेंट के अन्य लोगों को जब तक इस बारे में पता चलता, आकाश ने रितिका को चौथी मंजिल से नीचे फेंक दिया.

गार्ड व अन्य से पूछताछ व सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को पता चला कि शातिर आकाश गौतम पूरी तैयारी से आया था. उस के सिर पर खून सवार था. सुबह लगभग साढ़े 10 बजे अपार्टमेंट के गेट पर पहले उस ने अपने साथ की दोनों महिलाओं से एंट्री कराई, जिस से किसी को शक न हो.

गार्ड मुन्ना ने टोका तो 2 और लोगों के साथ आकाश आ गया. उस ने महिला से ही रजिस्टर में एंट्री कराई. सुनीता नाम लिखते हुए फ्लैट नंबर 601 में जाने की बात लिखी. मोबाइल नंबर के आगे आकाश गौतम का नाम भी लिखा. पांचों लोग लिफ्ट से चले गए. सभी के जाने के करीब 15-20 मिनट बाद ही अपार्टमेंट के पिछले हिस्से से किसी के गिरने की आवाज आई थी.

बेनकाब हुआ कातिल का चेहरा

वहां लगे सीसीटीवी कैमरे को चैक करने पर पुलिस को पता चला कि मृत महिला के पति आकाश गौतम ने ही चौथी मंजिल से उसे नीचे फेंका था. रितिका को नीचे फेंकने के बाद वह लिफ्ट से उतर कर शव के पास पहुंचा था.

फुटेज में वह रितिका के बंधे हाथों की रस्सी खोलने के साथ ही मुंह पर बंधे कपड़े को भी हटाता हुआ दिखाई दे रहा था. शातिर आकाश यह सब सबूत मिटाने तथा हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए कर रहा था.

इतना ही नहीं, जब वह अपार्टमेंट में आया था तब चौखाने की शर्ट पहने था, रितिका को बालकनी से नीचे फेंकने के बाद उस ने शर्ट उतार कर बैग में रख ली और अब उस के बदन पर काले रंग की टीशर्ट दिखाई दे रही थी.

जबकि भागते समय थैले से निकाल कर फिर से चौखाने वाली शर्ट पहन ली. ताकि कोई उसे पहचान न सके. उस के पास जो नीले रंग का बैग था, उस में कपड़े व कई रस्सी भी साथ लाया था. यानी हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

पुलिस को आकाश गौतम ने बताया कि साथ की दोनों महिलाएं उस की बहन हैं. पुलिस ने तीनों को हिरासत में ले लिया. इस के साथ ही रितिका के साथ फ्लैट में रह रहे विपुल अग्रवाल को भी पुलिस अपने साथ थाने ले गई.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के साथ ही फ्लैट से जरूरी साक्ष्य जुटाए. फ्लैट में सामान बिखरा हुआ था. टूटे हुए गमले, सैंडल पड़े थे. कमरे के फर्श पर टूटे हुए बालों का गुच्छा भी पड़ा था. फोरैंसिक टीम ने बालों को अपने कब्जे में ले लिया.

टूटे बाल मिलने से यही लग रहा था कि मौत को सामने देख रितिका ने हत्यारों से अपने आप को बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. सीसीटीवी फुटेज भी पुलिस ने कब्जे में ले ली.

पुलिस ने घटना के बाद वहां रहने वाले लोगों से पूछताछ की. अपार्टमेंट के लोगों ने घटना के कई वीडियो बनाए थे. पुलिस ने उन्हें भी अपने कब्जे में ले लिया. मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया.

पुलिस ने गाजियाबाद के प्रताप नगर में रहने वाले मृतका के मातापिता को सूचना दे कर आगरा बुला लिया. पुलिस ने रितिका की हत्या के आरोप में पति आकाश गौतम तथा 2 महिलाओं कुसुमा निवासी अमृतपुर, फिरोजाबाद व काजल निवासी टूंडला चौक, फिरोजाबाद को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने आकाश के कब्जे से एक मोबाइल व एक हजार रुपए की नकदी भी बरामद की. लेकिन पुलिस को रितिका का मोबाइल फोन नहीं मिला. जबकि आकाश के बैग से एक रस्सी भी मिली. आकाश के साथ आए उस के 2 फरार साथियों की पहचान चेतन और अनवर के रूप में हुई.

पुलिस को दिखाया ठेंगा

चौथी मंजिल से नीचे फेंक कर पत्नी की हत्या करने वाले आकाश को जब पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी तब उसे अपनी पत्नी की हत्या करने का कोई अफसोस नहीं था. वह अपनी पत्नी की हत्या कर खुद को विजेता समझने के साथ ही अपनी योजना की सफलता पर मन ही मन मुसकराते हुए पुलिसप्रशासन को ठेंगा दिखा रहा था.

आकाश ने पूछताछ में बताया कि चेतन उस का दोस्त है जबकि अनवर चेतन का परिचित है. उस ने चेतन के घर का पता भी पुलिस को बता दिया. इस के बाद पुलिस ने दोनों की गिरफ्तारी के लिए टूंडला व फिरोजाबाद में दबिश भी दी. लेकिन पुलिस के हाथ खाली ही रहे.

थाना ताजगंज में मृतका के पिता सुरेंद्र सिंह ने आकाश सहित 5 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराया.

अपने फेसबुक फ्रैंड विपुल अग्रवाल के साथ रह रही रितिका फूड, ट्रैवल और फैशन ब्लागर थी. वह तमाम लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स के फोटो और वीडियो सोशल प्लेटफार्म पर शेयर करती थी.

उस ने साल 2014 में टूंडला के नगला झम्मन निवासी आकाश गौतम से प्रेम विवाह किया था. प्रेम विवाह के पीछे भी एक कहानी है. हुआ यह था कि रितिका की मां मंजू का मायका टूंडला के नगला झम्मन में है.

आकाश गौतम भी यहीं का निवासी है और रितिका की नानी के पड़ोस में ही रहता है. नानी के घर आनेजाने के दौरान जब आकाश ने रितिका को देखा तो वह उस की सुंदरता पर रीझ गया. वह उस का दीवाना हो गया. बातचीत की शुरुआत होने के बाद उन दोनों की आपस में अच्छी दोस्ती हो गई.

रितिका के पिता सुरेंद्र सिंह मूलरूप से आगरा के मोती कटरा के रहने वाले हैं. नौकरी के चलते 15 साल पहले वह गाजियाबाद में शिफ्ट हो गए थे. वह वहां एक जूता फैक्ट्री में नौकरी करते हैं. उन की बेटी रितिका के अलावा एक बेटा है, जो 11वीं कक्षा में पढ़ता है. रितिका ने इंगलिश मीडियम स्कूल से 12वीं की पढ़ाई की थी. नोएडा स्थित ओपन यूनिवर्सिटी से उस ने बीएससी की थी.

शादी से पहले रितिका को किया था अगवा

रितिका को अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए आकाश उस का अकसर पीछा करने लगा. रितिका के चक्कर में वह गाजियाबाद तक पहुंच गया. गाजियाबाद में आकाश की बहन रहती है. मां मंजू के अनुसार वहां रह कर उस ने रितिका को अपने प्रेम जाल में आखिर फंसा ही लिया.

साल 2013 में आकाश गौतम ने रितिका को कालेज से अगवा कर लिया और उसे कहीं ले गया. इस पर गाजियाबाद के थाना विजय नगर में मुकदमा भी दर्ज कराया गया. आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन रितिका को जब पुलिस ने 7 दिन बाद बरामद किया तो उस ने कोर्ट में प्रेमी आकाश के पक्ष में बयान दे दिया.

इस का परिणाम यह हुआ कि आकाश पुलिस काररवाई से बच गया. कल तक आकाश को खरीखोटी सुनाने वाली रितिका पूरी तरह बदल गई थी. कल तक उस के प्यार को ठुकराने वाली रितिका अब आकाश की दीवानगी को प्यार समझ बैठी. परिवार से कह दिया कि अब वह आकाश से ही शादी करेगी.

वह कहता उस की नौकरी रेलवे में लग गई है. इस पर परिवार के लोग शादी के लिए राजी हो गए. दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली. इस के बाद कोर्ट मैरिज की. शादी के 2 साल तक आकाश ने रितिका को गाजियाबाद में रखा. लेकिन कुछ समय बाद ही यह बात साफ हो गई कि आकाश की रेलवे में नौकरी नहीं लगी है. वह लगातार झूठ बोलता रहा.

फेसबुक फ्रैंड विपुल के साथ रहने लगी रितिका

इन 2 सालों में आकाश की असलियत सामने आने लगी. रितिका जब भी उस से कोई नौकरी करने को कहती, वह उसे प्रताडि़त करता. रितिका चाह कर भी अपनी परेशानी घरवालों को नहीं बता पा रही थी. क्योंकि उस ने आकाश से अपनी मरजी से प्रेम विवाह किया था.

वर्ष 2016 में आकाश ने अपने भाई को कमरे पर बुलाया. उन्होंने रितिका से छुटकारा पाने के लिए उसे जलाने का प्रयास किया, इसी बीच अचानक रितिका की मां मंजू वहां आ गईं. इस के चलते वे लोग अपने मंसूबे में सफल नहीं हो सके और बेटी की जान बच गई.

बहुरुपिया- भाग 3: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

फ्लैट पर आतेआते काफी रात हो चुकी थी. हर्ष बाहर से गुडबाय कह कर चला गया. मेरे मन में अजीब सी ऊहापोह मची थी. जानेअनजाने एक ऐसे रास्ते पर चल रही थी जिस पर चल कर मुझे कुछ भी हासिल नहीं होना था. इस रास्ते पर चलते हुए दूरदूर तक कोई मंजिल नजर नहीं आ रही थी. यह सफर तो शायद एक भूलभुलैया ही सिद्ध होना था, तो फिर क्या हो रहा था मेरे साथ? क्या यह रास्ता मेरी नियति था या फिर मेरी कमजोरी?

ढेरों बातें मनमस्तिष्क में प्रश्नचिह्न अंकित कर रही थीं. हर्ष और मेरी पहचान को अब करीबकरीब 2 साल हो चुके थे. क्या वह वाकई मेरी इबादत करता है? अगर हां तो यह किस तरह की इबादत है? क्या वह सचमुच ऐसा सोचता है कि मैं एक दिन कलाजगत के शिखर पर पहुंचूंगी और मुझे आगे बढ़ाने में सच्चे मित्र की तरह मेरी मदद करना चाहता है? यदि हां तो इन 2 सालों में उस ने मेरी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए कौन सा प्रयत्न किया है?

सवालों के बोझ से दबी हुई आखिर मैं नींद के आगोश में खो गई. दूसरे दिन भी मन उन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ़ने में लगा रहा. मगर ये सारे सवाल बारबार बिना जवाब के ही रह जाते. पिछले 2 सालों में मैं हर्ष में इतनी मशगूल थी कि मेरे अन्य मित्र भी मुझ से दूर हो चुके थे. आज अकेले बैठेबैठे मुझे उन सब की बड़ी याद आ रही थी. अंत में मैं ने श्रेया के यहां जाने का फैसला किया.

‘‘बहुत दिनों के बाद आई हो बेटी? कहां गुम हो गई थीं इतने दिनों से? कोई खोजखबर ही नहीं थी तुम्हारी,’’ श्रेया के घर में घुसते ही उस की मां ने मुझे अपने गले से लगा कर पूछा. उन का प्यार भरा स्वर मेरी आंखों को नम कर गया.

‘‘बस यों ही आंटी कुछ बड़े पेंटिंग्स प्रोजैक्ट्स पर काम कर रही थी, इसलिए जरा वक्त नहीं मिल पाया, पर विश्वास करिए ऐसा कोई दिन नहीं जब मैं ने आप को याद न किया हो,’’ मैं ने आंखों के कोरों को रूमाल से पोंछते हुए कहा.

‘‘चलो, यह सब छोड़ो और बताओ चाय लोगी या कौफी?’’आंटी ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर मुझे सोफे पर बैठाते हुए पूछा.

‘‘चायकौफी छोडि़ए आंटी, यह बताइए श्रेया कहां है… कहीं दिखाई नहीं दे रही.’’

‘‘इतने दिन बाद आई हो कुछ खाओपीओ तो सही तब तक श्रेया भी आ जाएगी. आज उस का सितारवादन का बहुत बड़ा मंच प्रदर्शन है. बड़ी उम्मीदें हैं उसे अपने प्रदर्शन से. कई महीनों से तैयारी में जुटी थी,’’ अपनी बेटी के बारे में बतातेबताते आंटी भावुक हो गई थीं.

‘मेरी सब से प्रिय मित्र का इतना बड़ा मौका है और मुझे इस बात की कोई खबर ही नहीं,’ सोचते हुए मन ही मन ग्लानि महसूस हो रही थी.

आंटी से गपशप करने में 1 घंटा पास हो चुका था. तभी घंटी बजी, आंटी के दरवाजा खोलते ही श्रेया आंधीतूफान की तरह घर में घुसती हुई अपनी मां से लिपट गई. उस का चेहरा उत्साह से दमक रहा था.

‘‘मम्मीमम्मी पता है आज मेरे मंच प्रदर्शन के दौरान क्या हुआ?’’ श्रेया खुशी से चहक रही थी. मां के कुछ कहने के पहले ही वह फिर से चहकने लगी, ‘‘अपने शहर के एमएलए साहब अपने परिवार के साथ आए थे, वहां प्रमुख अतिथि बन कर. पता है उन का बेटा तो प्रदर्शन खत्म होने के बाद अलग से मुझ से मिलने आया था. हर्ष नाम है उस का. उस ने कहा मेरे सितारवादन में बहुत दम है, योर म्यूजिक इज द फूड औफ द सोल. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कहा कि मैं एक दिन पंडित रविशंकर की तरह हिंदुस्तान की सब से मशहूर सितारवादक होऊंगी. वह अपने डैडी से भी बात करेगा मुझे कोई अच्छी स्कौलरशिप दिलवाने के लिए.’’

अचानक श्रेया की नजर मुझ पर पड़ी और वह खुशी से मेरी तरफ लपकी. मैं दूर बैठी अपने मन के भावों को छिपाने का प्रयास कर रही थी. श्रेया कुछ कह पाती. उस के पहले ही मैं खड़ी हो चुकी थी. मैं किसी से कुछ नहीं कहना चाहती थी, बस जल्दी से जल्दी अपने फ्लैट पर वापस जाना चाहती थी. अब मैं सिर्फ और सिर्फ, 2 साल से चल रही हर्ष और अपनी कहानी का सही अंत ढूंढ़ना चाहती थी.

‘‘श्रेया, प्लीज मुझे अभी अपने घर जाने दो. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है. घर जा कर पूरी तरह से आराम करना चाहती हूं. जल्दी ही फिर किसी और दिन तुम से मिलने आऊंगी. तब जम कर गपशप करेंगी हम दोनों. मैं ने श्रेया के चेहरे को दोनों हाथों में लेते हुए कहा.’’

‘‘हां तुम्हारा चेहरा कुछ पीला सा लग रहा है. बेहतर होगा तुम अपने घर जा कर आराम करो. मैं तुम्हें जबरदस्ती नहीं रोकूंगी. अब श्रेया की आंखों में मेरे लिए चिंता साफ झलक रही थी.’’

सुरमुई शाम अब तक अंधेरे की चादर ओढ़ चुकी थी. मगर मेरे मन पर 2 बरसों से छाया अंधेरा खत्म हो चुका था. मैं अब हर्ष के व्यक्तित्व में छिपे बहुरुपिए को साफसाफ देख पा रही थी, जो व्यक्ति अपने घर में बैठी कालेज प्रवक्ता ब्याहता को बेवकूफ समझता हो, तो उस से किसी और स्त्री के सम्मान की उम्मीद कैसे की जा सकती है. कैसे कद्र कर सकता है वह किसी दूसरे की कला की? मैं ने अब तक जो भी थोड़ाबहुत नाम कमाया था वह अपनी खुद की मेहनत और प्रतिभा के बूते कमाया था. किसी अनपढ़ एमएलए के बिगड़ैल बेटे की सिफारिश से नहीं.

मेरी और हर्ष की कहानी की शुरुआत ही गलत थी. वक्त के साथसाथ इस में जितने ज्यादा अध्याय जुड़ते जा रहे थे वह उतनी ही घटिया होती जा रही?थी. मेरे मन के दर्पण पर छाई धुंध साफ हो चुकी थी और इस में बसे हुए हर्ष के चेहरे की हकीकत खुल कर नजर आने लगी थी. वह मेरी जिंदगी में आया था मुझे पतन की फिसलन पर ले जाने के लिए, शोहरत की बुलंदियों पर ले जाने नहीं. इस से पहले कि यह कहानी घटिया से घिनौनी हो जाए इसे तुरंत खत्म कर देना जरूरी है. अत: मैं ने उसी समय उस से कभी न मिलने का पक्का फैसला कर लिया और फिर इसी निश्चय के साथ मैं ने हैंडबैग से अपना मोबाइल निकाला और हर्ष का फोन नंबर हमेशा के लिए ब्लौक कर दिया.

ग्रीष्मकालीन में मूंग की वैज्ञानिक खेती

सहायक कृषि अधिकारी, सरमथुरा, धौलपुर

दलहन की एक प्रमुख फसल मूंग है. इस का वानस्पतिक नाम विगना रेडिएटा है. यह लेग्यूमिनेसी कुल का पौधा है. इस का जन्मस्थान भारत है. मूंग के दानों में 25 फीसदी प्रोटीन, 60 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 13 फीसदी वसा और अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है.

रोगियों के लिए मूंग बहुत पौष्टिक बताई जाती है. मूंग की दाल से पापड़, बडि़यां और लड्डू भी बनाए जाते हैं. मूंग की दाल खाने में शीतल व पचने में हलकी होती है.

यदि हम इस की फसल उगाते हैं, तो ये नाइट्रोजीकरण का काम करती है और भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है, जिस की बदौलत अन्य फसलें भी अधिक उत्पादन देती हैं.

ऐसी हो जलवायु

मूंग की खेती जायद यानी गरमी के मौसम में की जा सकती है. इस की फसल के लिए अधिक वर्षा हानिकारक होती है.

ऐसे क्षेत्रों में जहां 60-75 सैंटीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती हो, मूंग की खेती के लिए उपयुक्त है, पर मूंग की फसल के लिए गरम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है.

भूमि का चुनाव

मूंग की खेती सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जाती है. मध्यम दोमट, मटियार भूमि समुचित जल निकास वाली, जिस का पीएच मान 7-8 हो, इस के लिए उत्तम है.

खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले रिजर हल से करनी चाहिए. उस के बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से कर के खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बना लेना चाहिए. आखिरी जुताई में लेवलर लगाना जरूरी है. इस से खेत में नमी लंबे समय तक बनी रहती है.

दीमक से ग्रसित भूमि को फसल की सुरक्षा के लिए क्विनालफास 1.5 फीसदी चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से अंतिम जुताई से पहले खेत में बिखेर दें और उस के बाद जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें.

प्रमुख किस्में

पूसा वैसाखी : फसल की अवधि

60-70 दिन, पौधे अर्ध फैले वाले, फलियां लंबी, उपज 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

मोहिनी : फसल की अवधि 70-75 दिन, उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पीला मोजैक वायरस व सर्कोस्पोरा लीफ स्पोट रोग के प्रति सहनशील.

पंत मूंग 1 : फसल अवधि 75 दिन

(खरीफ) व 65 दिन (जायद). उपज क्षमता 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

एमएल 1 : फसल की अवधि 90 दिन, बीज छोटा व हरे रंग का, उपज क्षमता 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

वर्षा : यह अगेती किस्म है. उपज क्षमता 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

सुनैना : फसल की अवधि 60 दिन, उपज क्षमता 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर. ग्रीष्म मौसम के लिए उपयुक्त.

जवाहर 45 : इस किस्म को हाईब्रिड

45 भी कहा जाता है. फसल की अवधि 75-85 दिन, उपज क्षमता 10-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त.

कृष्णा 11 : अगेती किस्म, फसल की अवधि 65-70 दिन, उपज क्षमता 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

पंत मूंग 3 : फसल की अवधि 60-70 दिन, ग्रीष्म ऋतु में खेती के लिए उपयुक्त, पीला मोजैक वायरस और पाउडरी मिल्ड्यू रोधक.

अमृत : फसल की अवधि 90 दिन. यह खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त है. पीला मोजैक वायरस रोग के प्रति सहनशील, उपज क्षमता 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर.

बीज की मात्रा व बीजोपचार

खरीफ मौसम में मूंग का बीज 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगता है, जबकि जायद में बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ लें. 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज व भूमिजन्य बीमारियों से फसल सुरक्षित रहती है.

600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को एक लिटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गरम कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए और बो देना चाहिए. ऐसा करने से नाइट्रोजन स्थरीकरण अच्छा होता है.

बोने का उचित समय

बोआई खरीफ और जायद दोनों फसलों में अलगअलग समय पर की जाती है.

खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बोआई करनी चाहिए, जबकि जायद में मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक बोआई कर दें. कतारों के बीच की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 सैंटीमीटर उचित है.

खाद और उर्वरक

खाद और उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए.  फिर भी कम से कम  5 से 10 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद देनी चाहिए.

मूंग के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश, 25 किलोग्राम गंधक व 5 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है.

ऐसे करें सिंचाई

खरीफ की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. परंतु फूल आने की  अवस्था पर सूखे की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है.

खरीफ की फसल में वर्षा कम होने पर फलियां बनते समय एक सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है और जायद की फसल में पहली सिंचाई बोआई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें, जिस से अच्छी पैदावार मिल सकती है.

खरपतवार नियंत्रण

पहली निराई बोआई के 20-25 दिन के भीतर व दूसरी 40-45 दिन में करनी चाहिए  फसल की बोआई के 1 या 2 दिन बाद पेंडीमेथलिन (स्टंप) की बाजार में उपलब्ध 3.30 लिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फसल जब 25 -30 दिन की हो जाए, तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चाहिए या इमेंजीथाइपर (परसूट) की 750 मिलीलिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर का दर से पानी में घोल बना कर छिड़काव कर देना चाहिए.

रोग और कीट नियंत्रण

दीमक : बोआई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्विनालफास 1.5 फीसदी या क्लोरोपायरीफास पाउडर की 20-25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

कातरा : इस कीट की लट पौधों को आरंभिक अवस्था में काट कर बहुत नुकसान पहुंचाती है. कतरे की लटों पर क्विनालफास 1.5 फीसदी पाउडर की 20-25 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिए.

मोयला, सफेद मक्खी एवं हरा तेला : इन कीटों

की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यूएसी या  मिथाइल डिमेटान 25 ईसी 1.25 लिटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

फली छेदक : इस कीट को नियंत्रित करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लिटर या मैलाथियान या क्विनालफास 1.5 फीसदी पाउडर की 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की

दर से छिड़काव या भुरकाव करनी चाहिए.

रसचूसक कीट : इन कीड़ों की रोकथाम के लिए एमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल का 500 मिलीलिटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव 15  दिन के अंतराल पर करें.

चीती जीवाणु रोग : इस रोग की रोकथाम के लिए एग्रीमाइसीन 200 ग्राम या स्ट्रेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

पीत शिरा मोजैक : यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता है. इस के नियंत्रण के लिए मिथाइल डेमेटान 0.25 फीसदी व मैलाथियान 0.1 फीसदी मात्रा को मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बना कर छिड़काव करना काफी प्रभावी होता है.

तना झुलसा रोग : इस रोग की रोकथाम के लिए 2 ग्राम मैंकोजेब प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए. बोआई के 30-35 दिन बाद

2 किलोग्राम मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

पीलिया रोग : इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है. इस रोग के नियंत्रण के लिए गंधक का तेजाब या 0.5 फीसदी फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चाहिए.

जीवाणु पत्ती धब्बा, फफूंदी पत्ती धब्बा  और विषाणु रोग : इन रोगों की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम 2 ग्राम, स्ट्रेप्टोसाईक्लीन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान 25 ईसी की एक मिलीलिटर मात्रा को प्रति लिटर पानी में एकसाथ मिला कर पर्णीय छिड़काव करना चाहिए.

फसल की कटाई और गहाई का उचित समय : मूंग की फलियां जब काली पड़ने लगें और सूख जाएं, तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए. अधिक सूखने पर फलियां चिटकने का डर रहता है. फलियों से बीज को थ्रेशर द्वारा या डंडे से पीट कर अलग कर लिया जाता है.

उपज : वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर मूंग की 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है, वहीं सिंचित फसल की औसत उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है.

भंडारण : बीज के भंडारण से पहले अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए. बीज में 8-10 फीसदी से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए.

मूंग के भंडारण में स्टोरेज बिन का प्रयोग करना चाहिए.

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