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अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा: रूस-यूक्रेन धर्मयुद्ध में नरसंहार

रूस-यूक्रेन युद्ध का एक महीना पूरा हो चुका है. बीते एक महीने में यूक्रेन में हजारों नागरिक, सैनिक और मासूम बच्चे रूसी बम धमाकों में मारे जा चुके हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है. युद्ध में रूस के सैनिक भी बड़ी संख्या में हताहत हो रहे हैं मगर रूस दुनिया के तमाम देशों द्वारा बनाए जा रहे दबावों के बावजूद लड़ाई रोकने को तैयार नहीं दिख रहा, उलटे उस ने परमाणु हमले की धमकी भी 2 बार दे डाली है.

इस को ले कर दुनियाभर में हड़कंप की स्थिति है जिस के चलते नाटो को ब्रसेल्स में आपातकालीन बैठक बुलानी पड़ गई. उस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी उपस्थित रहे. बैठक के बाद रूस पर 65 नए प्रतिबंध और लगा दिए गए हैं. बावजूद इस के, यूक्रेन पर रूसी हमले बदस्तूर जारी हैं.

रूस किसी भी तरह यूक्रेन को नेस्तनाबूद करने के लिए उतावला है. वह नरसंहार पर उतारू है. उस के सैनिक हैवानियत की सारी हदें पार कर नन्हेनन्हे यूक्रेनी बच्चों पर भी गोलियां दाग रहे हैं रूस इस लड़ाई को अब धर्मयुद्ध का नाम दे रहा है. रूस के रूढि़वादी चर्च ने यूक्रेन पर रूसी हमले और नरसंहार की व्याख्या ‘पवित्र युद्ध’ के रूप में की है. यह समस्त मानव जाति के लिए खतरनाक बात है जहां चर्च एक आतंकवादी की भूमिका निभा रहा है.

सत्ता और धर्मगुरुओं का अपवित्र गठबंधन, जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर थोपे गए युद्ध और लाखों मासूमों की मौत को सही ठहराने में मदद कर रहा है, आने वाले वक्त में दुनिया के अन्य देशों, जहां सत्ता धर्म के ठेकेदारों द्वारा संचालित होती है, द्वारा उदाहरण के तौर पर लिया जाएगा और निर्दोष लोगों की हत्या को ‘पवित्र हत्या’ या ‘ईश्वर की मंशा’ के रूप में प्रचारित किया जाने लगेगा.

उल्लेखनीय है कि रूस में चर्च और सेना साथसाथ चलते हैं. अतीत से चिपके रहना और रूढि़वादिता से रूसी अभी मुक्त नहीं हुए हैं. उन्हें पश्चिम का कल्चर नहीं भाता है. बता दें कि दुनिया में 260 मिलियन (करीब 24 करोड़) और्थोडौक्स ईसाइयों में से लगभग 100 मिलियन रूस में ही हैं और कुछ विदेशों में भी मौस्को के साथ जुड़े हुए हैं. इन पर धार्मिक गुरुओं का बहुत प्रभाव है.

रूसी राष्ट्रपति भी इन धर्मगुरुओं के आगे नतमस्तक रहते हैं. बीते दिनों रूसी रूढि़वादी चर्च के प्रमुख पैट्रिआर्क किरिल ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण को स्पष्ट रूप से समर्थन दिया. रूढि़वादी चर्च के प्रमुख पैट्रिआर्क किरिल इस बात को प्रचारित कर रहे हैं कि रूस को युद्ध का जिम्मेदार ठहराया जाना गलत है, बल्कि डोनबास क्षेत्र में जो रूस समर्थक लोग हैं और जो रूसी वक्ता हैं, यूक्रेनियन द्वारा उन का नरसंहार किया जा रहा था, इसलिए व्लादिमीर पुतिन द्वारा उन्हें सबक सिखाने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाया गया, जो पूरी तरह धर्मसंगत है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी सहयोगी 75 वर्षीय पैट्रिआर्क किरिल यूक्रेन से जारी युद्ध को पश्चिम के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में भी देखते हैं. वे इसे एक धर्मयुद्ध मानते हैं. पुतिन की दृष्टि के समर्थक किरिल यूक्रेन को अपने रूसी चर्च के एक अभिन्न, ऐतिहासिक हिस्से के रूप में भी देखते हैं. इस के साथ ही, पैट्रिआर्क किरिल समलैंगिक संबंधों के घोर विरोधी हैं. वे इसे ईश्वर के नियमों में एक बाधा बताते हैं. उन के समक्ष यह एक घृणित कृत्य है. वे इसे ‘बुरी ताकतों’ के उदय के रूप में मानते हैं और उन का संहार करना ही धर्म सम?ाते हैं. जबकि आधुनिक यूक्रेन समलैंगिक संबंधों को उदार और मानवीय दृष्टि से देखता है और उसे गलत नहीं सम?ाता. वहां समलैंगिक गौरव परेड का आयोजन होता है जो रूढि़वादी चर्चों को नागवार गुजरता है.

समलैंगिक संबंधों पर किरिल का कहना है कि यह ईश्वर के कानून का उल्लंघन है. हम उन लोगों के साथ कभी नहीं रहेंगे जो इस कानून को नष्ट करते हैं, पवित्रता और पाप के बीच की रेखा को धुंधला करते हैं, पाप को बढ़ावा देते हैं.

किरिल रूसी लोगों के दिलदिमाग में पश्चिमी उदार मूल्यों की घुसपैठ की भी घोर निंदा करते हैं. किरिल ने यूक्रेन युद्ध को ‘आध्यात्मिक महत्त्व का संघर्ष’ कह कर इसे नैतिक वैधता प्रदान की है जो उन के अनुसार ईश्वर के कानून को स्थापित रखने के लिए जरूरी है.

गौरतलब है कि इस्ट यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में रहने वाले अधिकतर निवासी रूस के समर्थक हैं और उन्होंने लगभग 8 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद जीत हासिल की थी. पुतिन का कहना है कि यूक्रेन के खिलाफ स्पैशल औपरेशन चलाना आसान फैसला नहीं था. यूक्रेन के सैनिक डोनबास के बाशिंदों को प्रताडि़त करते हैं क्योंकि वे ईश्वर के नियमों पर चलने वाले लोग हैं.

पुतिन कहते हैं, ‘‘डोनबास के लोग केवल ‘आवारा कुत्ते’ नहीं हैं कि यूक्रेन की सरकार यहां के लोगों पर अत्याचार करती रहे. वहां 13-14 हजार लोग मार दिए गए. 500 से अधिक बच्चे मारे गए या अपंग हो गए. सब से ज्यादा असहनीय यह है कि तथाकथित ‘सभ्य’ पश्चिम ने उन 8 वर्षों के दौरान इसे नोटिस भी नहीं किया. पश्चिम इस नरसंहार पर चुप रहा. वहां एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएं हुईं जिन के चलते यूक्रेन को सबक सिखाना जरूरी हो गया.’’ पुतिन के इस तर्क को रूढि़वादी चर्च का समर्थन मिल रहा है और वह और ज्यादा उकसाने का काम भी कर रहा है. ऐसे में पुतिन कहां जा कर ठहरेंगे, यह कहना मुश्किल है.

गौरतलब है कि सामंतवादी युग में रूस के विभिन्न नगरों में अनेक दुर्ग बनाए गए थे, जिन्हें क्रेमलिन कहा जाता है. क्रेमलिन मध्यकाल में रूसी नागरिकों के धार्मिक और प्रशासनिक केंद्र थे. लिहाजा, उन के भीतर ही राजप्रासाद, गिरिजाघर, सरकारी भवन और बाजार बने थे. गिरिजाघरों का प्रभाव सब

पर था. उन में प्रमुख दुर्ग मास्को, नोवगोरोड, काजान और प्सकोव, अस्त्राखान और रोस्टोव में हैं. ये दुर्ग लकड़ी और पत्थर की दीवारों से निर्मित हैं और रक्षा के निमित्त इन के ऊपर बुर्जियां बनी हैं. आजकल क्रेमलिन का नाम प्रमुख रूप से मौस्को स्थित दुर्ग के लिए लिया जाता है. यहीं से तमाम सैन्य गतिविधियां नियंत्रित की जाती हैं और रूढि़वादी गिरिजाघरों का पूरा समर्थन और सलाहमशवरा उन्हें मिलता है.

राष्ट्रपति पुतिन जिस रूसी गणराज्य के लिए आज यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की से टकरा रहे हैं, जमीन के उस टुकड़े पर राजारानियों के राज का इतिहास लगभग 1,200 साल पुराना है. इस विशाल भूभाग को कभी कीवियन रूस कहा जाता था.

वर्तमान से ऐतिहासिक कीवियन रूस का एक और नाता है जो एक दिलचस्प दस्तावेज भी है. कीव पर भले ही रूरिक वंश के ओलेग का कब्जा 879 में हुआ, लेकिन शहर का स्वर्ण युग आया 10वीं और 11वीं सदी में, जब ओलेग का वंशज व्लादिमीर द ग्रेट (980-1015) और प्रिंस यारोस्लाव का राज वहां कायम हुआ.

इस के बाद आए द वाइज (1019-1054) के शासनकाल में कीव राजनीतिक और सांस्कृतिक समृद्धि के चरम पर जा पहुंचा. वहां से जानवरों के फर, मधु और दासों का व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर होने लगा. इतिहास की इस से बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि व्लादिमीर द ग्रेट के शासन में जो कीव अपनी समृद्धि पर इतराता था, लगभग 1,000 साल बाद उसी व्लादिमीर का हमनाम व्यक्ति इस नगर को खंडहर बनाने पर तुला हुआ है. इस की वजह कितनी जायज है, यह तो वर्तमान का प्रश्न है, मगर इतिहास अपनी जगह पर स्थिर है.

जो कीव आज रूसी बमों के प्रहार से हांफ रहा है वह कीव तब ‘कीवियन रूस’ की सत्ता का केंद्र था. राजा ओलेग तो कीव को ‘मदर औफ रूस सिटीज’ के नाम से बुलाता था. पुतिन और जेलेंस्की का इस शहर से नौस्टेलिया यों ही नहीं है. बेलारूस, रूस और यूक्रेन सभी कीवियन रूस को ही अपना सांस्कृतिक पूर्वज मानते हैं और इस सत्ता से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं. बेलारूस और रूस ने तो कीवियन रूस से ही अपना आधुनिक नाम हासिल किया है.

पिछले 1,000 सालों का इतिहास खंगालें तो रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की अनेक वजहें और राष्ट्रपति पुतिन और रूढि़वादी चर्चों सहित रूसियों की सोच, आस्था और लक्ष्य की ?ालक मिल जाती है.

कीव में सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था. वहां व्यापार अपनी उन्नत स्थिति में था. लोग समृद्ध थे. हर तरफ खुशहाली थी मगर 13वीं सदी के मध्य में कीव पर मंगोल आक्रमण हुए. वर्ष 1240 में बाकू खान के नेतृत्व में हुए हमले ने कीव को तहसनहस कर दिया. सैंट्रल एशिया से पूर्वी यूरोप आए मंगोलों के आक्रमण ने कीव की नींव को खोखला कर दिया. इस चोट से कीव भरभरा कर गिर पड़ा. कीवियन रूस के पतन के बाद इस क्षेत्र में जो सत्ता पनपी, उस का केंद्र मौस्को था. इसे ग्रैंड डची औफ मौस्को के नाम से जाना जाता है. रशियन और्थोडौक्स चर्च की मदद से इस राज्य ने मंगोलों को हराया.

यूएसएसआर का उदय

17वीं से 19वीं सदी के मध्य में रूसी साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ. यह प्रशांत महासागर से ले कर बाल्टिक सागर और मध्य एशिया तक फैल गया. 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई और इस क्रांति ने सर्वहारा के नायक व्लोदोमीर लेनिन को उभारा, जिस ने मजदूरों-किसानों की ताकत के दम पर एक राजा से सत्ता छीन कर सर्वहारा वर्ग का राज स्थापित किया. सर्वहारा यानी समाज का निचला वर्ग जो मेहनत और पसीना बहा कर शारीरिक श्रम के जरिए धन का अर्जन करता है और अपनी जिंदगी चलाता है. लेनिन ने रूस की जनता को समतामूलक समाज का सपना दिखाया और बहुत हद तक उसे स्थापित करने में कामयाब रहा.

30 दिसंबर, 1922 को यूएसएसआर (यूनियन औफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स) की स्थापना हुई. सोवियत संघ में 15 गणतांत्रिक राज्य थे. ये देश थे: रूस, जौर्जिया, यूक्रेन, माल्दोवा, बेलारूस, आर्मीनिया, अजरबैजान, कजाखिस्तान, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया. जब तक यूएसएसआर वजूद में रहा, वह दुनिया का सब से बड़ा देश था. उस की चौहद्दी बाल्टिक और काला सागर से ले कर प्रशांत महासागर तक फैली थी.

इस की सीमाओं में 100 से ज्यादा राष्ट्रीयता के लोग रहते थे. लेकिन इस के नागरिकों में पूर्व स्लाव यानी रशियन, बेलारूसियन और यूक्रेनियन की संख्या 80 फीसदी थी. यूएसएसआर भारत से 7 गुना ज्यादा बड़ा था. अगर पूर्व से पश्चिम यूएसएसआर की दूरी मापें तो यह दूरी 10,900 किलोमीटर थी. यूएसएसआर में भले ही 15 राज्य शामिल थे, लेकिन देश के प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर मौस्को के नेतृत्व में केंद्रीय सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा. लिहाजा, इन 15 गणराज्यों का व्यापक पैमाने पर रूसीकरण हुआ.

राज्य के नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग वस्तुओं के वृहद उत्पादन में शामिल हो गया. सोवियत रूस कार से ले कर पिन तक खुद बनाने लगा. राज्य ने सभी नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित कर दिया. इस तरह रूस गिरतासंभलता आगे बढ़ ही रहा था कि 21 जनवरी, 1924 को लेनिन दुनिया छोड़ गए.

लेनिन की मृत्यु के बाद रूस की सत्ता जोसेफ स्टालिन ने संभाली. स्टालिन तानाशाही प्रवृत्ति का था. उस की पैदाइश जौर्जिया में बेहद गरीब परिवार में हुई थी. बचपन में स्टालिन कमजोर था. उस के पिता मोची थे और मां कपड़े धोती थी. जब स्टालिन 7 साल का था तो उसे चेचक हुआ. इस से उस का चेहरा खराब हो गया. स्टालिन की मां उस से धार्मिक किताबें पढ़ने को कहती, पादरी बनने के लिए प्रेरित करती, लेकिन स्टालिन चुपकेचुपके मार्क्स की किताबें पढ़ता.

युवा होतेहोते स्टालिन ने रूस की कम्युनिस्ट पार्टी में अपनी जगह बना ली. लेनिन उस पर भरोसा करते थे. लेनिन की मृत्यु के बाद स्टालिन ने खुद को उन के वारिस के तौर पर पेश कर के सत्ता हथिया ली. स्टालिन ने एक संसद बनाई जिसे सुप्रीम सोवियत कहा जाता था. भले ही यह एक संसद थी लेकिन सारे फैसले कम्युनिस्ट पार्टी करती थी. इस पार्टी में भी केंद्रीयकरण होने लगा था. सारे फैसले पार्टी की एक छोटी सी समिति करती थी, जिसे पोलितब्यूरो कहा जाता था.

स्टालिन ने अपने तरीके से देश चलाना शुरू किया और फिर शुरू हुआ उस के द्वारा प्रायोजित नृशंस हत्याओं का दौर. इस तानाशाह ने राष्ट्रवादी मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार शुरू कर दिया. बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण हुआ. किसानों से उन की जमीनें छीन ली गईं. जमीनों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और सामूहिक कृषि की व्यवस्था शुरू हुई. जिस ने भी विरोध किया, सरकार के हाथों मारा गया. फैक्ट्रियों को टारगेट दिया गया जो पूरा नहीं करता उसे देश का दुश्मन कह कर जेल भेज दिया जाता. रूस ने तेल, स्टील, कोयले का उत्पादन कई गुना बढ़ाया लेकिन राज्य में घोर अशांति व्याप्त हो गई. स्टालिन ने 1928 में पंचवर्षीय योजनाओं का सिस्टम अपनाया और लंबी अवधि के विकास कार्य शुरू किए. उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद भारत ने भी इसी सिस्टम को अपनाया.

क्रूरता में हिटलर से आगे निकला स्टालिन

तानाशाह स्टालिन की क्रूरता की कहानियां दिल कंपा देने वाली हैं. उस ने लाखों लोगों को मरवा दिया. लाखों लोग अकाल से मर गए. लेकिन स्टालिन रूसी राष्ट्रवाद की दुहाई दे कर अपनी नीतियों पर अमल करता रहा. जिस बदलाव और क्रांति का सुनहरा स्वप्न लोगों ने देखा, वे स्टालिन के बनाए गुलग में दम तोड़ रहे थे. साम्यवादी नीतियों का विरोध करना महापाप था. ऐसे लोगों को गुलग में जिंदगी गुजारनी पड़ती थी.

गुलग स्टालिन के समकालीन हिटलर के यातना शिविरों जैसा ही था. यहां स्टालिन के विरोधियों से दिनरात काम कराया जाता और फिर वे एक दिन दम तोड़ देते थे. स्टालिन की नीतियों का विरोध करने वाले 30 लाख लोगों को प्रचंड ठंड वाले साइबेरिया के गुलग में रहने के लिए भेज दिया गया था. कई इतिहासकार कहते हैं कि इस तानाशाह ने विरोधियों से नफरत करने में हिटलर को भी मात दे दी थी. हालांकि स्टालिन ने अपने नेतृत्व में दूसरे विश्वयुद्ध में रूस को जीत दिला कर प्रशंसकों का एक बड़ा वर्ग भी तैयार कर लिया था.

1953 में स्टालिन की मौत हो गई. स्टालिन की मौत के बाद अनेक राष्ट्रपति हुए और यूएसएसआर कमोबेश स्टालिन की नीतियों पर ही चला. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1945 में कोल्ड वार शुरू हो गया. यूएसएसआर और अमेरिका के बीच इकोनौमी, साइंस, मिलिट्री पावर, स्पेस, स्पोर्ट्स में आगे निकलने की होड़ शुरू हो गई.

पूरी दुनिया 2 धुव्रों में बंट गई. 20वीं सदी दुनिया में बेतहाशा बरबादी लेकर आई. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साम्राज्यवादी ब्रिटेन का अंत हो गया और दुनिया के नक्शे पर कई छोटेबड़े व म?ाले नए देशों का उदय हुआ. इसी कालखंड में 1985 में मिखाइल गोर्बाचेव यूएसएसआर के राष्ट्रपति बने. गोर्बाचेव को पूर्ववर्ती राष्ट्रपति से एक चौपट अर्थव्यवस्था और लुंजपुंज राजनीतिक ढांचा विरासत में मिला था.

मिखाइल गोर्बाचेव ने देखा कि पश्चिमी दुनिया में सूचना और प्रौद्योगिकी क्रांति हो रही है. इस की बराबरी के लिए सोवियत रूस में भी आमूलचूल बदलाव जरूरी हो गया. गोर्बाचेव ने आर्थिक और राजनीतिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू की और वे देश को लोकतंत्र की राह पर ले जाने लगे. गोर्बाचेव ‘पेरेस्त्रोइका’ और ‘ग्लासनोस्त’ नाम की 2 नीतियां ले कर आए.

पेरेस्त्रोइका का अर्थ था कि लोगों को कामकाज करने की आजादी मिलने वाली थी, जबकि ग्लासनोस्त का अर्थ था कि राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में खुलापन आएगा और लोगों को सरकार की आलोचना करने की आजादी होगी.

स्टालिन का दमन देख चुके रूसियों के लिए यह हैरान करने वाला फैसला था. मगर धीरेधीरे लोग उस डर से निकल कर सरकार को अपनी राय देने लगे और सरकार की आलोचना भी करने लगे. उन्हें अब गुलग का भय नहीं सताता था. गोर्बाचेव के समय अनेक राजनीतिक कैदी रिहा हुए.

अखबारों में सरकार की आलोचना छपने लगी. धीरेधीरे लोग मुखर हुए. अपनी जरूरतों के मुताबिक खरीदारी करने लगे. लोग प्राइवेट बिजनैस भी करने लगे. संपत्ति की भावना जनता में आई. बाजार पर सरकार का नियंत्रण कम हुआ. चीजों की कीमतें बढ़ने लगीं. गोर्बाचेव ने व्यवस्था में ढील दे कर लोगों के बीच उम्मीदों व अपेक्षाओं का ऐसा उफान खड़ा कर दिया जिसे कंट्रोल कर पाना नामुमकिन होता चला गया.

शीतयुद्ध में शामिल हो कर यूएसएसआर ने बेतहाशा खर्चे किए. मूंछों की लड़ाई में उसे अंतरिक्ष में सब से पहले यान भेजना था, दुनिया का सब से पहला अंतरिक्ष यात्री भी रूसी ही था. उस के पास सब से ज्यादा परमाणु हथियार थे. अमेरिका से इस टक्कर में इस देश ने अरबोंखरबों रूबल खर्च कर दिए. अब सोवियत रूस का खजाना कोई कुबेर का भंडार तो था नहीं, लिहाजा धीरेधीरे उस की माली हालत खस्ता होती चली गई.

1980 के दशक में सोवियत संघ की जीडीपी अमेरिका से आधी रह गई. भ्रष्टाचार बढ़ने लगा और आम जनता त्रस्त होने लगी. बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं हो रहा था और जनता की सुनने वाला कोई नहीं था. अंदर ही अंदर एक आग सुलगने लगी थी. जल्दी ही गोर्बाचेव को ले कर जनमत बंटने लगा. बहुत कम लोग उन के साथ अब खड़े थे.

मौस्को और रूसी गणराज्य से

निकली असंतोष की यह चिनगारी सीमांत राज्यों की ओर फैलने लगी. बाल्टिक गणराज्यों (एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया) में राष्ट्रवादी भावनाओं का उभार हुआ. यहां युवाओं ने आजादी की मांग करनी शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले अलग देश की मांग की. ये राज्य खुद को यूरोपीय संस्कृति के नजदीक मानते थे.

इस के अलावा द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले ये देश स्वतंत्र थे. उन्होंने कहा कि यूएसएसआर का कब्जा गैरवाजिब है और हमें आजाद किया जाए. यही वह समय था जब यूक्रेन और जौर्जिया में भी नैशनलिस्ट आंदोलन शुरू हो गए. ये इलाके समृद्ध थे और इन्हें लगता था कि मध्य एशियाई गणराज्यों जैसे तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान जैसे गरीब राज्यों को यूएसएसआर में शामिल कर के उन का बो?ा इन राज्यों पर डाल दिया गया है. इस के अलावा मध्य एशियाई रिपब्लिक में इसलाम का बोलबाला था जबकि रूस के पूर्वी प्रदेश स्थित इन राज्यों में और्थोडौक्स क्रिश्चियन चर्च का प्रभाव था. इसलिए भी ये देश अपना स्वतंत्र वजूद चाहते थे.

दरअसल इस के पीछे बहुत बड़ा खेल अमेरिका का भी था, जो सीआईए (केंद्रीय खुफिया एजेंसी) के जरिए इन राज्यों में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को हवा दे रहा था. पूंजीवाद की ताकत के आगे साम्यवाद घुटने टेक रहा था. अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की अगुआई में अमेरिकी पूंजीवाद की हुंकार दुनियाभर में सुनाई पड़ रही थी. इस दौरान गोर्बाचेव चाहते तो इन देशों में अपनी आर्मी भेज सकते थे, जैसा कि हाल के दिनों में पुतिन करते आए हैं, लेकिन गोर्बाचेव ने ऐसा नहीं किया. धीरेधीरे प्रदर्शन अजरबैजान, जौर्जिया और आर्मेनिया, माल्डोवा, यूक्रेन में भी फैलने लगा. सब की एक ही इच्छा थी सोवियत रूस से अलग अस्तित्व.

विरासत पाने की मंशा

21 जनवरी, 1990 को 3 लाख यूक्रेनियनों ने राजधानी कीव से लीव तक एक मानव शृंखला बनाई और स्वाधीनता को ले कर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी.

24 अगस्त, 1991 को यूक्रेन ने आधिकारिक रूप से स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया. यूक्रेन में 1 दिसंबर, 1991 को जनमत संग्रह हुआ. लोगों को यूएसएसआर से अलग होने पर अपनी राय देनी थी. 90 फीसदी लोगों ने स्वतंत्र यूक्रेन के पक्ष में जनादेश दिया. यूक्रेन के नेता क्रावचुक को राष्ट्रपति चुन लिया गया.

25 अगस्त को बेलारूस ने अपनी आजादी घोषित कर दी. 27 अगस्त को माल्डोवा आजाद हो गया. माल्डोवा ने आजादी की घोषणा के बाद संघ से अलग होने की प्रक्रिया शुरू कर दी. अब जौर्जिया, आर्मेनिया, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान भी अपनी राहें चुनने के लिए स्वतंत्र थे. लगभग 70 साल तक अमेरिका से रेस लगाने वाला यूएसएसआर अब इतिहास बनने के कगार पर था. 8 दिसंबर, 1991 को रूस, यूक्रेन और बेलारूस के बीच एक सम?ाता हुआ. इन तीनों देशों ने इस सम?ाते पर हस्ताक्षर किए और तीनों अलग हो गए. इस पर रूस की ओर से राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने हस्ताक्षर किए थे. अब बारी मिखाइल गोर्बाचेव की थी. उन्होंने 21 दिसंबर को यूएसएसआर से आजाद हुए सभी देशों के राष्ट्रपतियों को बुलाया और अल्मा अता घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर सभी देशों को औपचारिक स्वतंत्रता दे दी.

25 दिसंबर, 1991 को क्रिसमस की रात मौस्को की फिजाओं से जश्न की धुन गायब थी. कुछ इस घड़ी को मनहूस बता रहे थे तो कुछेक नए अध्याय की शुरुआत. स्थानीय समयानुसार रात के 7.35 बजे गोर्बाचेव नैशनल टैलीविजन पर आए और क्रेमलिन से सोवियत संघ के ध्वज को उतारा गया. यही वह मौका था जब सोवियत संघ (यूएसएसआर) के राष्ट्रीय गान की धुनें आखिरी बार बजाई गईं. शाम 7.45 बजे क्रेमलिन पर रूसी ?ांडा फहराया गया.

जब यूएसएसआर का विघटन हुआ तब रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 39 साल के थे. वे तब केजीबी राज्य सुरक्षा समिति में एक जासूस थे. उन्हें क्रेमलिन से सोवियत ध्वज का उतरना अच्छा नहीं लगा था. यूएसएसआर के विभाजन के बाद पैदा हुई अराजकता में पुतिन की जिंदगी भी बुरी तरह से प्रभावित हुई थी. जिस पुतिन के हर फैसले पर आज दुनिया की नजरें टिकी हैं, उस व्यक्ति को 1991 में अपनी जिंदगी चलाने के लिए कैब ड्राइवर तक बनना पड़ा था. एक इंटरव्यू के दौरान रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि यह सोवियत संघ के नाम पर ‘ऐतिहासिक रूस’ का विघटन था. हम एक पूरी तरह से अलग देश में बदल गए थे और 1,000 वर्षों में हमारे पूर्वजों ने जो बनाया था वह सब बिखर गया था.

आज शायद उसी बिखराव को फिर से समेटने की मंशा ले कर व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर बमबारी कर रहे हैं और रूस के धार्मिक नेता पैट्रिआर्क किरिल उन के इस काम को ‘पवित्र धार्मिक कर्म’ का नाम दे कर उन का हौसला बढ़ा रहे हैं. दरअसल पुतिन का वर्तमान अतीत के बो?ा से

कभी मुक्त नहीं हो सका. अतीत का बो?ा पुतिन पर है और वे यूएसएसआर के सपनों की जकड़न से खुद को मुक्त नहीं कर पाते हैं.

राजनीति का DNA: भाग 1- चालबाज रूपमती की कहानी

रूपमती चीखनेचिल्लाने लगी. प्रेमी के ऊपर से हट कर वह अपने कपड़े ले कर अवध की तरफ ऐसे दौड़ी मानो अवध की गैरहाजिरी में उस की पत्नी के साथ जबरदस्ती हो रही थी.

प्रेमी जान बचाने के लिए भागा और अवध अपनी पत्नी के साथ रेप करने वाले को मारने के लिए दौड़ा. जैसा रूपमती साबित करना चाहती थी, अवध को वैसा ही लगा.

जब रूपमती ने देखा कि अवध कुल्हाड़ी उठा कर प्रेमी की तरफ दौड़ने को हुआ है, तो उस के अंदर की प्रेमिका ने प्रेमी को बचाने की सोची.

रूपमती ने अवध को रोकते हुए कहा, ‘‘मत जाओ उस के पीछे. आप की जान को खतरा हो सकता है. उस के पास तमंचा है. आप को कुछ हो गया, तो मेरा क्या होगा?’’

तमंचे का नाम सुन कर अवध रुक गया. वैसे भी वह गुस्से में दौड़ा था. कदकाठी में सामने वाला उस से दोगुना ताकतवर था और उस के पास तमंचा भी था.

रूपमती ने जल्दीजल्दी कपड़े पहने. खुद को उस ने संभाला, फिर अवध से लिपट कर कहने लगी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप आ गए. आज अगर आप न आते, तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहती.’’

अवध अभी भी गुस्से में था. रूपमती उस के सीने से चिपटी हुई यह जानना चाहती थी कि वह क्या सोच रहा है? कहीं उसे उस पर शक तो नहीं हुआ है?

अवध ने कहा, ‘‘लेकिन, तुम तो उस के ऊपर थीं.’’

रूपमती घबरा गई. उसे इसी बात का डर था. लेकिन औरतें तो फरिश्तों को भी बेवकूफ बना सकती हैं, फिर उसे तो एक मर्द को, वह भी अपने पति को बेवकूफ बनाना था.

सब से पहले रूपमती ने रोना शुरू किया. औरत वही जो बातबात पर आंसू बहा सके, सिसकसिसक कर रो सके. उस के रोने से जो पिघल सके, उसी को पति कहते हैं.

अवध पिघला भी. उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं ठीक समय पर आ गया और वह भाग गया. तुम्हारी इज्जत बच गई. अब रोने की क्या बात है?’’

‘‘आप मुझ पर शक तो नहीं कर रहे हैं?’’ रूपमती ने रोते हुए पूछा.

‘‘नहीं, मैं सिर्फ पूछ रहा हूं,’’ अवध ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

रूपमती समझ गई कि सिर पर हाथ फेरने का मतलब है अवध को उस पर यकीन है, लेकिन जो सीन अवध ने अपनी आंखों से देखा है, उसे झुठलाना है.

पहले रूपमती ने सोचा कि कहे, ‘उस आदमी ने मुझे दबोच कर अपनी ताकत से जबरदस्ती करते हुए ऊपर किया, फिर वह मुझे नीचे करने वाला ही था कि आप आ गए.’

लेकिन जल्दी ही रूपमती ने सोचा कि अगर अवध ने ज्यादा पूछताछ की, तो वह कब तक अपने झूठ में पैबंद लगाती रहेगी. कब तक झूठ को झूठ से सिलती रहेगी. लिहाजा, उस ने रोतेसिसकते एक लंबी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘आज से 6 महीने पहले जब आप शहर में फसल बेचने गए थे, तब मैं कुएं से पानी लेने गई थी. दिन ढल चुका था.

‘‘मैं ने सोचा कि अंधेरे में अकेले जाना ठीक नहीं होगा, लेकिन तभी दरवाजा खुला होने से न जाने कैसे एक सूअर अंदर आ गया. मैं ने उसे भगाया और घर साफ करने के लिए घड़े का पानी डाल दिया. अब घर में एक बूंद पानी नहीं था.

‘‘मैं ने सोचा कि रात में पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ सकती है. क्यों न एक घड़ा पानी ले आऊं.

‘‘मैं पानी लेने पनघट पहुंची. वहां पर उस समय कोई नहीं था. तभी वह आ धमका. उस ने बताया कि मेरा नाम ठाकुर सूरजभान है और मैं गांव के सरपंच का बेटा हूं.

‘‘वह मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे कपड़े उतार डाले. मैं दौड़ते हुए कुएं के पास पहुंच गई.

‘‘मैं ने रो कर कहा कि अगर मेरे साथ जबरदस्ती की, तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी. उस ने डर कर कहा कि अरे, तुम तो पतिव्रता औरत हो. आज के जमाने में तुम जैसी सती औरतें भी हैं, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘‘लेकिन तभी उस ने कैमरा निकाल कर मेरे फोटो खींच लिए और माफी मांग कर चला गया.

‘‘मैं डरी हुई थी. जान और इज्जत तो बच गई, पर फोटो के बारे में याद ही नहीं रहा.

‘‘दूसरे दिन मैं हिम्मत कर के उस के घर पहुंची और कहा कि तुम ने मेरे जो फोटो खींचे हैं, वे वापस कर दो, नहीं तो मैं बड़े ठाकुर और गांव वालों को बता दूंगी. थाने में रिपोर्ट लिखाऊंगी.

‘‘उस ने डरते हुए कहा कि मैं फोटो तुम्हें दे दूंगा, पर अभी तुम जाओ. वैसे भी चीखनेचिल्लाने से तुम्हारी ही बदनामी होगी और सब बिना कपड़ों की तुम्हारे फोटो देखेंगे, तो अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हारे पति की गैरहाजिरी में तुम्हें फोटो दे जाऊंगा.

‘‘आप 2 दिन की कह कर गए थे. मैं ने ही उसे खबर पहुंचाई कि मेरे पति घर पर नहीं हैं. फोटो ला कर दो.

‘‘सूरजभान फोटो ले कर आया, लेकिन मुझे अकेला देख उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस ने फिर मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की और मुझे नीचे पटका.

‘‘मैं ने पूरी ताकत लगाई. खुद को छुड़ाने के चक्कर में मैं ने उसे धक्का दिया. वह नीचे हुआ और मैं उस के ऊपर आ गई. अभी मैं उठ कर भागने ही वाली थी कि आप आ गए…’’

रूपमती ने अवध की तरफ रोते हुए देखा. उसे लगा कि उस के ऊपर उठने वाले सवाल का जवाब अवध को मिल गया था और उस का निशाना बिलकुल सही था, क्योंकि अवध उस के सिर पर प्यार से दिलासा भरा हाथ फिरा रहा था.

अवध ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि तुम ने पनघट पर अकेले बिना कपड़ों के हो कर भी जान पर खेल कर अपनी इज्जत बचाई और आज मैं आ गया. तुम्हारा दामन दागदार नहीं हुआ.’’

रूपमती ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘आप क्या सोचते हैं कि मैं उसे कामयाब होने देती? मैं ने नीचे तो गिरा ही दिया था बदमाश को. उस के बाद उठ कर कुल्हाड़ी से उस की गरदन काट देती. और अगर कहीं वह कामयाब हो जाता, तो तुम्हारी रूपमती खुदकुशी कर लेती.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. अकेले इतना सबकुछ सहती रही…’’ अवध ने रूपमती के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं बड़े ठाकुर, गांव वालों और पुलिस से बात करूंगा. तुम्हें डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. जब तुम इतना सब कर सकती हो, तो मैं भी पति होने के नाते सूरजभान को सजा दिला सकता हूं. वे फोटो लाना मेरा काम है,’’ अवध ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसा मत करना. मेरी बदनामी होगी. मैं जी नहीं पाऊंगी. आप के कुछ करने से पहले वह मेरे फोटो गांव वालों को दिखा कर मुझे बदनाम कर देगा.

‘‘पुलिस के पास जाने से क्या होगा? वह लेदे कर छूट जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जहर ला कर दे दें. मैं मर जाऊं, फिर आप जो चाहे करें,’’ रूपमती रोतेरोते अवध के पैरों पर गिर पड़ी.

‘‘तो क्या मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं? कुछ न करूं?’’ अवध ने कहा, ‘‘तुम्हारी इज्जत, तुम्हारे फोटो लेने वाले को मैं यों ही छोड़ दूं?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? लेकिन हमें चालाकी से काम लेना होगा. गुस्से में बात बिगड़ सकती है,’’ रूपमती ने अवध की आंखों में झांक कर कहा.

‘‘तो तुम्हीं कहो कि क्या किया जाए?’’ अवध ने हथियार डालने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘आप सिर्फ अपनी रूपमती पर भरोसा बनाए रखिए. मुझ से उतना ही प्यार कीजिए, जितना करते आए हैं,’’ कह कर रूपमती अवध से लिपट गई. अवध ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया.

अगले दिन गांव के बाहर सुनसान हरेभरे खेत में सूरजभान और रूपमती एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

सूरजभान ने कहा ‘‘तुम तो पूरी गिरगिट निकलीं.’’

‘‘ऐसी हालत में और क्या करती? वह 2 दिन की कह कर गया था. मुझे क्या पता था कि वह अचानक आ जाएगा. तुम ने अंदर से कुंडी बंद करने का मौका भी नहीं दिया था…’’ रूपमती ने सूरजभान के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे कहानी बनानी पड़ी. तुम भागते हुए मेरे कुछ फोटो खींचो. कहानी के हिसाब से मुझे तुम से अपने वे फोटो हासिल करने हैं. तुम से फोटो ले कर मैं उसे दिखा कर फोटो फाड़ दूंगी, तभी मेरी कहानी पूरी होगी.’’

सूरजभान ने कैमरे से उस के कुछ फोटो लेते हुए कहा, ‘‘लेकिन आज नहीं मिल पाएंगे. 1-2 दिन लगेंगे.’’

‘‘ठीक है, लेकिन सावधान रहना. फोटो मिलने के बाद वह मेरी इज्जत लूटने वाले के खिलाफ कुछ भी कर सकता है,’’ रूपमती ने हिदायत दी.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं निबट लूंगा,’’ सूरजभान ने कहा.

राजनीति का DNA: चालबाज रुपमती की कहानी

सिसकी- भाग 3: रानू और उसका क्या रिश्ता था

वे उस दिन औफिस नहीं गए. उन्होंने अपने साहब को फोन कर औफिस न आ पाने के बारे में बता दिया था. रीना ने बच्चों को उन के पास नहीं जाने दिया. चिंटू दूर से ही पापा से बातें करता रहा. पापा के बगैर उस का मन लगता कहां था. रानू तो दौड़ कर उन के बिस्तर पर चढ़ ही गई. बड़ी मुश्किल से रीना ने उसे उन से अलग किया. सहेंद्र दोतीन दिनों तक ऐसे ही पड़े रहे. इन दोतीन दिनों में रीना ने कई बार उन से डाक्टर से चैक करा लेने को बोला, पर वे टालते रहे.

रीना की घबराहट बढ़ती जा रही थी. रीना ने अपने देवर महेंद्र को फोन कर सहेंद्र की बीमारी के बारे में बता दिया था, पर महेंद्र देखने भी नहीं आया.

उस दिन रीना ने फिर महेंद्र को फोन लगाया, ‘भाईसाहब, इन की तबीयत ज्यादा खराब लग रही है. हमें लगता है कि इन्हें डाक्टर को दिखा देना चाहिए.’

‘अरे, आप चिंता मत करो, वे ठीक हो जाएंगे.’

‘नहीं, आज 5 दिन हो गए, उन का बुखार उतर ही नहीं रहा है. आप आ जाएं तो इन्हें अस्पताल ले जा कर दिखा दें,’ रीना के स्वर में अनुरोध था.

‘अरे, मैं कैसे आ सकता हूं, भाभी. यदि भाई को कोरोना निकल आया तो?’

‘पर मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी. आप आ जाएं भाईसाहब, प्लीज.’

‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता.’ और महेंद्र ने फोन काट दिया था.

रीना की बेचैनी अब बढ़ गई थी. उस ने खुद ही सहेंद्र को अस्पताल ले जाने का निर्णय कर लिया.

रीना ने सहेंद्र को सहारा दे कर औटो में बिठाया और खुद उसे पकड़ कर बाजू में ही बैठ गई. बड़ी मुश्किल से एक औटो वाला उन्हें अस्पताल ले जाने को तैयार हुआ था, ‘एक हजार रुपए लूंगा बहनजी.’

‘एक हजार, अस्पताल तो पास में ही है. 50 रुपए लगते हैं और आप एक हजार रुपए कह रहे हो?’

‘कोरोना चल रहा है बहनजी और आप मरीज को ले जा रही हैं. यदि मरीज को कोरोना हुआ तो… मैं तो मर ही जाऊंगा न फ्रीफोकट में.’ औटो वाले ने मजबूरी का पूरा फायदा उठाने की ठान ही ली थी.

‘पर भैया, ये तो बहुत ज्यादा होते हैं.’

‘तो ठीक है, आप दूसरा औटो देख लो,’ कह कर औटो स्टार्ट कर लिया. रीना एक तो वैसे ही घबराई हुई थी, बड़ी मुश्किल से औटो मिला था, इसलिए वह एक हजार रुपए देने को तैयार हो गई. उस ने सहेंद्र को सहारा दिया. सहेंद्र 5 दिनों के बुखार में इतने कमजोर हो गए थे कि स्वयं से चल भी नहीं पा रहे थे. रीना के कंधों का सहारा ले कर वे औटो में बैठ पाए. औटो में भी रीना उन्हें जोर से पकड़े रही. बच्चे दूर खड़े हो कर उन्हें अस्पताल जाते देख रहे थे.

सहेंद्र को कोरोना ही निकला. उस की रिपोर्ट पौजिटिव आई. डाक्टरों ने सीटी स्कैन करा लेने की सलाह दी. उस की रिपोर्ट दूसरे दिन मिल पाई. फेफड़ों में इन्फैक्शन पूरी तरह फैल चुका था. सहेंद्र को किसी बड़े अस्पताल में भरती कराना आवश्यक था. रीना बुरी तरह घबरा चुकी थी. वह अकेले दूसरे शहर कैसे ले कर जाएगी. उस ने एक बार फिर महेंद्र से बात की, ‘भाईसाहब, इन्हें कोरोना निकल आया है और सीटी स्कैन में बता रहे हैं कि फेफड़ों में इन्फैक्शन बहुत फैल चुका है, तत्काल बाहर ले जाना पड़ेगा.’

‘तो मैं क्या कर सकता हूं, भाभी?’

‘मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी, आप साथ चलते तो मु?ो मदद मिल जाती.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है, भाभी, कोरोना मरीज के साथ मैं कैसे चल सकता हूं?’

‘मैं बहुत मुसीबत में हूं, भाईसाहब. आप मेरी मदद कीजिए, प्लीज.’

‘देखो भाभी, इन परिस्थितियों में मैं आप की कोई मदद नहीं कर सकता.’

‘ये आप के भाई हैं भाईसाहब, यदि आप ही मुसीबत में मदद नहीं करेंगे तो मैं किस के सामने हाथ फैलाऊंगी.’  रीना रोने लगी थी, पर रीना के रोने का कोई असर महेंद्र पर नहीं हुआ.

‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता. आप ही ले कर जाएं,’ और महेंद्र ने फोन काट दिया.

हताश रीना बिलख पड़ी. उस की सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

दोतीन अस्पताल में भटकने के बाद आखिर एक अस्पताल में सहेंद्र को भरती कर ही लिया गया. उसे सीधे आईसीयू में ले जाया गया जहां किसी को आने की अनुमति न थी. रीना को एंबुलैंस बहुत मुश्किल से मिल पाई थी. उस ने सहेंद्र के औफिस में फोन लगा कर साहब को बोला था. साहब ने ही एंबुलैंस की व्यस्था कराई थी. हालांकि, एंबुलैंस वाले ने उस से 20 हजार रुपए ले लिए थे. उस ने कोई बहस नहीं की. इस समय उसे पैसों से ज्यादा फिक्र पति की थी. एंबुलैंस में बैठने के पहले उस ने एक बार फिर अपने देवर को फोन लगाया था, ‘इन के साथ मैं जा रही हूं. घर में बच्चे और पिताजी अकेले हैं. आप उन की देखभाल कर लें.’

महेंद्र ने साफ इनकार कर दिया. उस ने अपनी ननद को भी फोन लगाया था. ननद पास के ही शहर में रहती थी, पर ननद ने भी आने से मना कर दिया. रीना अपने साथ बच्चों को ले कर नहीं जा सकती थी और उन्हें ले भी जाती तो पिताजी… उन की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए. उस ने अपनी कामवाली बाई को फोन लगाया, ‘मुन्नीबाई, मु?ो इन्हें ले कर अस्पताल जाना पड़ रहा है, घर में बच्चे और पिताजी अकेले हैं. तुम उन की देखभाल कर सकती हो?’ रीना के स्वर में दयाभाव थे हालांकि, उसे उम्मीद नहीं थी कि मुन्नी उस का सहयोग करेगी. जब उस के सगे ही मदद नहीं कर रहे हैं तो फिर कामवाली बाई से क्या अपेक्षा की जा सकती है, पर उस के पास कोई और विकल्प था ही नहीं, इसलिए उस ने एक बार मुन्नी से भी अनुरोध कर लेना उचित सम?ा.

‘ज्यादा तबीयत खराब है साहब की?’

‘हां, दूसरे शहर ले कर जाना पड़ रहा है.’

‘अच्छा, आप बिलकुल चिंता मत करो, मैं आ जाती हूं आप के घर.’

मुन्नीबाई ने अपेक्षा से परे जवाब दिया था.

‘सच में तुम आ जाओगी मुन्नीबाई?’ रीना को विश्वास नहीं हो रहा था.

‘हां, मैं अभी आ जाती हूं. आप चिंता न करें,’ मुन्नीबाई के स्वर में दृढ़ता थी.

‘पर मुन्नीबाई, मालूम नहीं मु?ो कब तक अस्पताल में रहना पड़े.’

‘मैं रह जाऊंगी, आप साहब का इलाज करा लें.’

‘मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी, मुन्नीबाई,’ रीना की आवाज में कृतज्ञता थी.

‘इस में एहसान की क्या बात, बाईसाहिबा. हम लोग एकदूसरे की मदद नहीं करेंगे तो हम इंसान कहलाने लायक भी नहीं होंगे,’ मुन्नीबाई के स्वर में अपनत्व ?ालक रहा था.

रीना के निकलने के पहले ही मुन्नीबाई आ गई थी. मुन्नीबाई के आ जाने से उस की एक चिंता तो दूर हो

गई थी.

सहेंद्र को भरती हुए 2 दिन ही हुए थे कि रीना को भी भरती होना पड़ा था. सहेंद्र को भरती करा लेने के बाद उसे तो आईसीयू में जाने नहीं दिया जा रहा था तो वह अस्पताल के परिसर में बैठी रहती थी. उस दिन उसे वहां तेज बुखार से तड़पता देख कर नर्स ने अस्पताल में भरती करा दिया था. पहले तो उसे जनरल वार्ड में रखा गया, पर जब उस की तबीयत और बिगड़ी तो उसे भी आईसीयू में ही ले जाया गया. पतिपत्नी दोनों के पलंग आमनेसामने थे. सहेंद्र ने जैसे ही रीना को आईसीयू वार्ड में देखा तो उस का चेहरा पीला पड़ गया. उस की आंखों से आंसू

बह निकले.

रीना बेहोशी की हालत में थी, इसलिए वह अपने पति को नहीं देख पाई. सहेंद्र बहुत देर तक आंसू बहाते रहे. वे अपनी पत्नी की इस हालत का जिम्मेदार खुद को ही मान रहे थे. रीना की बेहोशी दूसरे दिन दूर हो पाई. उस ने अपने चेहरे पर मास्क लगा पाया जिस से औक्सीजन उस के अंदर जा रही थी. घड़ी की टिकटिक करने जैसी आवाज चारों ओर गूंज रही थी. उस के हाथ में बौटल लगी हुई थी. वह बहुत देर तक हक्काबक्का सी सब देखती रही. उसे सम?ा में आ गया था कि वह भी आईसीयू वार्ड में भरती है. ऐसा सम?ा में आते ही उस की निगाहें अपने पति को ढूंढ़ने लगीं. सामने के बैड पर पति को देखते ही वह बिलख पड़ी. सहेंद्र भी पत्नी को यों ही एकटक देख रहे थे. उन का मन हो रहा था कि वे पलंग से उठ खड़े हों और पत्नी के पास जा कर उसे ढाढ़स बंधाएं पर वे हिल भी नहीं पा रहे थे. पतिपत्नी दोनों आमनेसामने के बैड पर लेटे एकदूसरे को देख रहे थे. दोनों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.

बायोडर्मा का एंटी एक्ने सैबियम फेस वाश

प्रोब्लम फ्री स्किन की चाहा हर महिला को होती है. लेकिन इन सबके बावजूद भी कभी ऑयली स्किन की प्रोब्लम हो जाती है तो कभी स्किन पर एक्ने. जो चेहरे की सुंदरता व रौनक को तो गायब करने का काम करते ही हैं , साथ ही एक्ने की वजह से स्किन पर इतनी ज्यादा जलन व इचिंग होती है कि कई बार तो उसे सहन करना भी मुश्किल हो जाता है. ये प्रोब्लम वैसे तो किसी भी मौसम में हो सकती है, लेकिन गर्मियों में ऑयली स्किन व उस पर एक्ने की प्रोब्लम ज्यादा देखने को मिलती है. क्योंकि गर्मियों में सेबेसियस ग्लैंड्स स्किन को हाइड्रेट रखने के लिए ज्यादा सीबम का उत्पादन करना शुरू कर देते हैं , जो एक्ने का कारण बनते हैं. जिसके लिए जरूरी है ऑयली व कॉम्बिनेशन स्किन की खास तौर पर केयर करने की.

किन कारणों से होती है

ऑयली व कोम्बिनेशन स्किन

आज ऑयली स्किन की समस्या आम हो गई है. बता दें कि ऑयली स्किन में लिपिड का स्तर , पानी और वसा की मात्रा बहुत अधिक होती है. और जब सेबेसियस ग्लैंड्स जरूरत से ज्यादा सीबम का उत्पादन करना शुरू कर देते हैं तो एक्ने, ब्रेअकाउट्स, वाइटहेड्स  व ब्लैकहेड्स की समस्या होने लगती है. और ब्रेकआउट्स के कारण सीबम डेड स्किन सेल्स के साथ मिलकर पोर्स को ब्लौक करने का काम करते हैं , जो स्किन की हालत को और बिगाड़ने का काम करते हैं.  वहीं कोम्बिनेशन स्किन में टी जोन जैसे फोरहेड, नोज व चिन में आयल ग्लैंड्स ओवर एक्टिव हो जाते हैं. जबकि चेहरे का बाकी हिस्सा नार्मल व ड्राई होता है. इसलिए ऐसी स्किन के बीच बैलेंस ठीक नहीं होने की वजह से ऐसी स्किन के डैमेज होने का ज्यादा डर रहता है. इसलिए स्किन केयर की खास जरूरत होती है.

– ऑयली स्किन होने का एक कारण जेनेटिक भी होता है. जिसकी वजह से सेबेसियस ग्लैंड्स ओवर एक्टिव होकर हमेशा ज्यादा सीबम का उत्पादन करते हैं. जो एक्ने का कारण बनता है.

–  हाइपरकेराटिनआईजशन और बैक्टीरियल प्रोलिफ़ेरेशन , यह यौवन के दौरान ट्रिगर होने वाली हार्मोनल गतिविधि के परिणामस्वरूप सीबम का अतिरिक्त उत्पादन करता है. जिसके कारण स्किन ज्यादा ऑयली व शाइनी नजर आने लगती है. और साथ ही स्वस्थ सीबम से इसकी संरचना अलग भी होती है. जिसके कारण ये ज्यादा मोटा होने के कारण इसे फोलिकल से बाहर निकलने में दिक्कत होती है. जिससे कोमेडोम बनने का जोखिम बढ़ जाता है.

– हाइपरकेराटिनआईजशन , इसमें स्किन सेल्स में तेजी से बढ़ोतरी पोर्स को क्लोग करके सीबम को बाहर निकलने से रोकती है,  जो कोमेडोम का कारण बनता है. जिससे उसके आसपास की स्किन पिग्मेंट नजर आने लगती है.

– बता दें कि एक्ने के बैक्टीरिया के पनपने के लिए सीबम न्यूट्रिएंट का काम करता है. जिसके कारण कोमेडोम रेड पिंपल्स में बदल कर जलन व दर्द का कारण बनता है.

– कई बार बड़े पोर्स , जिसका कारण उम्र व पुराने ब्रेकआउट्स होते हैं. जिसकी वजह से इसमें ज्यादा आयल उत्पनन होने लगता है. ऐसे स्तिथि में पोर्स को श्रिंक करना संभव नहीं होता, लेकिन स्किन की खास केयर करके इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है.

– कई बार हम देखादेखी या फिर बिना सोचेसमझे अपनी स्किन पर गलत स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर लेते हैं , जिसकी वजह से स्किन और ज्यादा ऑयली हो जाती है. जो एक्ने व ढेरों स्किन प्रोब्लम्स का कारण बनती है. ऐसे में जरूरी है एक्ने व कोम्बिनेशन स्किन वालों के लिए कि वे जब भी स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें तो अपनी स्किन टाइप को जरूर ध्यान में रखें. ऐसी स्किन वालों के लिए लाइटवेट मॉइस्चराइजर व जैल बेस्ड क्लीनज़र्स का इस्तेमाल करना ज्यादा सही होता है.

क्या है जरूरी

– अवोइड द सन

असल में सूर्य की हानिकारक किरणें स्किन को ड्राई कर देती हैं. यहां तक की ऑयली स्किन को भी मोइस्चर की जरूरत पड़ सकती है. ऐसी स्तिथि में वसामय ग्रंथी ज्यादा एक्टिव हो जाती हैं , जो ज्यादा सीबम का निर्माण करने के साथ स्किन ब्लेमिशेज का कारण बनती है. यही नहीं बल्कि स्किन के ड्राई होने से ये नेचुरल रूप से डेड स्किन सेल्स को निकलने से रोकने  का काम करता है, जिससे पोर्स से सीबम बाहर निकलने में सक्षम नहीं हो पाता है. इसलिए जितना हो सके तेज धूप में बाहर निकलने से बचें. और अगर निकले भी तो कवर करके निकलें.

– रेगुलर फोलो ट्रीटमेंट

किसी भी ट्रीटमेंट का स्किन पर एकदम से असर नहीं आता है. बल्कि रेगुलर ट्रीटमेंट के साथ स्किन की एक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है. जैसे डे व नाईट क्लींजिंग के रूटीन को फोलो करने के साथ मेडिकेशन ट्रीटमेंट लेने की. ऐसा करके आपको  4 – 6 हफ्ते में रिजल्ट दिखने लगेगा.

– पिंपल्स को न छूए

आपको पिंपल्स होने के साथ उसमें दर्द भी है, तो यह स्तिथि काफी गंभीर है. इसलिए इर्रिटेशन होने पर उसे टच न करें. क्योंकि इससे इंफेक्शन फैलने के साथसाथ दाग होने का भी डर रहता है.

– क्लींजिंग इस मस्ट – बायोडर्मा का सैबियम फेस वाश

कोम्बिनेशन से ऑयली स्किन की बात हो, या फिर एक्ने स्किन की, क्लींजिंग बहुत ही अहम प्रोसेस है. ऐसे में सिर्फ क्लींजिंग से नहीं बल्कि सही क्लींज़र का भी इस्तेमाल करने की जरूरत होती है. ऐसे में बायोडर्मा का सैबियम फेस वाश  , जो जेंटल क्लींज़र का काम करने के साथ चेहरे से गंदगी को रिमूव करने के साथ ज्यादा सीबम का उत्पादन करने से तो रोकता ही है, साथ ही पोर्स को भी क्लोग नहीं होने देता. इससे स्किन धीरेधीरे प्रोब्लम फ्री होने लगती है. ये स्किन को ड्राई नहीं होने देता. इसमें जिंक सलफेट और कॉपर सलफेट , एपिडर्मिस को क्लीन करके , सीबम सेक्रेशन को कम करके दागधब्बों को कम करने में मदद करता है. साथ ही इसका सोप फ्री फार्मूला स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस में बनाए रखने का काम करता है. आपको इसके अप्लाई के कुछ ही दिनों में रिजल्ट दिखने लगेगा. तो फिर अब ऑयली व एक्ने स्किन को कहे बाय.

मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना से मिल रहा बच्‍चों को लाभ

मिशन शक्ति के तहत जहां एक ओर योगी सरकार महिला सुरक्षा, संरक्षण व उनके विकास पर जोर दे रही है वहीं मिशन वात्‍सल्‍य के तहत प्रदेश के बच्‍चों की देखरेख, संरक्षण और उनके पुनर्वासन पर तेजी से काम कर रही है. महिला कल्याण बाल विकास विभाग की ओर से आने वाले 100 दिनों की कार्ययोजना तैयार कर ली गई है. विभाग की ओर से मिशन वात्‍सल्‍य में बाल देखरेख संस्थाओं व किशोर न्याय बोर्डो एवं बाल कल्याण समितियों हेतू एमआईएस पोर्टल की शुरुआत जून में की जाएगी. एमआईएस पोर्टल योजना का पारदर्शी रूप में संचालन किया जाएगा.  योजना से जुड़े सभी भौतिक और वित्तिय सूचनाएं ऑनलाइन प्राप्त होने से योजना संचालन का प्रभावी पर्यवेक्षण व समीक्षा संभव हो सकेगी.

संस्‍थाओं में निवासित बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा व कौशल विकास से जुड़े  डेटा का डिजिटाइजेशन किया जाएगा. बालकों की देखरेख, संरक्षण व पुनर्वासन का प्रभावी पर्यवेक्षण होगा. इसके साथ ही बाल कल्याण समिति व किशोर न्याय बोर्ड के कार्यों की प्रभावी समीक्षा भी की जाएगी. विभाग की ओर से जनपद शांहजहांपुर में 07 करोड़ की लागत से तैयार होने वाले नवीन भवन में 50 की क्षमता के राजकीय सम्‍प्रेक्षण गृह का लोकार्पण किया जाएगा.  जिससे प्रदेश के राजकीय सम्‍प्रेक्षण गृहों में क्षमता से अधिक संवासियों के आवासित रहने की समस्‍या का समाधान इस संस्‍था के संचालन से होगा.

 मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना से मिल रहा बच्‍चों को लाभ

यूपी मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के तहत विभाग की ओर से कोविड योजना में कुल 11049 बच्‍चे लाभान्वित हुए. इस योजना के तहत सामान्‍य योजना से कुल 5284, कोविड योजना में 480 अनाथ बच्‍चे, एकल माता पिता वाले 10569 बच्‍चे, सामान्‍य योजना में कुल 295 अनाथ बच्‍चे, सामान्‍य योजना के तहत 4989 एकल माता पिता वाले बच्‍चे लाभान्वित हुए हैं.

अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट: 38 मुजरिमों को फांसी

सौजन्य- मनोहर कहानियां

2008 में अहमदाबाद में 70 मिनट में अलगअलग 20 स्थानों पर जो 21 बम विस्फोट हुए थे, उस में 56 लोगों की जान गई थी. काफी कोशिशों के बाद क्राइम ब्रांच ने मजबूत सबूतों के साथ इस केस के आरोपियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा कर ही चैन की सांस ली.

26 जुलाई, 2008 की शाम को अहमदाबाद में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के आरोपियों को कोर्ट ने आखिर सजा सुना ही दी. 14 सालों बाद 18 फरवरी, 2022 को अहमदाबाद की विशेष अदालत के विशेष जज श्री अंबालाल पटेल ने अपने 6,752 पेज के फैसले में 49 दोषियों में से 38 को फांसी और 11 को जीवन की अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई. इस मामले में कुल 78 आरोपी थे. जिन में से 49 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था. बाकी के 28 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया गया था.

इस के अलावा अदालत ने एक आरोपी को छोड़ कर बाकी आरोपियों पर 2.85 लाख रुपए का दंड भी लगाया है. जबकि आरोपी नंबर 7 पर 2.88 लाख रुपए का दंड लगाया है. आरोपियों द्वारा जमा कराई गई दंड की इस रकम में से मृतकों को एकएक लाख रुपए, गंभीर रूप से घायल को 50-50 हजार रुपए तथा सामान्य रूप से घायल को 25-25 हजार मुआवजा दिए जाने के आदेश दिए.

देश के इतिहास में पहली बार 38 लोगों को एक साथ सजा सुनाने का यह पहला मामला है. इस के पहले पूर्वप्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में 26 लोगों को एक साथ फांसी की सजा सुनाई गई थी.

अहमदाबाद की विशेष अदालत द्वारा जिन आरोपियों को सजा सुनाई गई  है, वे आरोपी अहमदाबाद, मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं. अब आइए थोड़ा उस मामले के बारे में जान लेते हैं, जिस में यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया है.

26 जुलाई, 2008 दिन शनिवार की शाम थी. गुजरात के औद्योगिक नगर अहमदाबाद के रहने वाले लोग रोज की तरह अपने कामों में व्यस्त थे. किसी को क्या पता था कि वह दिन उन्हें एक ऐसा जख्म दे जाएगा, जिस की टीस उन्हें हमेशा सालती रहेगी. शाम होते ही पूरा शहर सीरियल बम धमाकों से दहल उठा था.

शहर में एक के बाद एक 70 मिनट में 20 स्थानों पर 21 विस्फोट हुए थे. जिस में 56 लोगों की मौत और 2 सौ से अधिक लोग घायल हुए थे. ये सारे बम विस्फोट शाम साढ़े 6 बजे शुरू हुए थे, जो 8 बज कर 10 मिनट तक होते रहे थे.

ये विस्फोट अहमदाबाद के हाटकेश्वर, नरोडा, सिविल अस्पताल, एलजी अस्पताल, नारोल सर्कल, जवाहर चौक, गोविंद वाड़ी, इसनपुर, खाडि़या, रायपुर चकला, सरखेज, सारंगपुर, ठक्करबापा नगर और बापूनगर में हुए थे.

इन में सब से पहला विस्फोट नारोल सर्कल और गोविंदवाड़ी सब्जी मंडी में हुआ था. सवा 6 बजे से साढ़े 6 बजे के बीच अहमदाबाद में सीरियल बम विस्फोट होने की चेतावनी पुलिस को पहले ही मिल चुकी थी.

पुलिस कुछ सोच पाती, उस के पहले ही साढ़े 6 बजे के बाद अहमदाबाद के अलगअलग इलाकों में एक के बाद एक बम विस्फोट होने की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को मिलने लगी थी.

अंतिम सूचना सिविल अस्पताल के ट्रामा सेंटर में विस्फोट होने की आई थी, जिस विस्फोट में सब से अधिक लोग मारे भी गए थे और घायल भी हुए थे.

इन विस्फोटों के कुछ ही मिनट पहले इंडियन मुजाहिदीन ने मुंबई के एक टीवी चैनल के औफिस में ईमेल भेज कर सीरियल विस्फोट की चेतावनी दी थी. यह ईमेल मुंबई के 3 अलगअलग स्थानों से किया गया था.

इस बात की जानकारी मिलते ही अहमदाबाद क्राइम ब्रांच  के एएसपी वी.आर. टोणिया और ऊषा राडा ने मुंबई जा कर पता किया था. वहां से पता चला था कि पहला ईमेल नई मुंबई के सानापाड़ा, दूसरा खालसा कालेज माटुंगा और तीसरा चैंबूर की एक प्राइवेट कंपनी से किया गया था. ये तीनों ईमेल इंडियन मुजाहिदीन ने एकाउंट हैक कर के किए थे. चेतावनी देने के साथसाथ इंडियन मुजाहिदीन ने सीरियल बम विस्फोट की जिम्मेदारी भी ली थी.

यह ऐसा समय था, जब आज की तरह सर्विलांस की टैक्नोलाजी नहीं थी. वहां सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे थे. इसलिए गुजरात पुलिस के लिए यह मामला एक चुनौती था. फिर भी गुजरात पुलिस ने हार नहीं मानी और आरोपियों को पकड़ ही लिया था.

पुलिस ने सब से पहले एफएसएल की टीम बुला कर विस्फोटों में उपयोग में लाई गई सामग्री की जांच कराई थी. उसी के आधार पर अहमदाबाद की सभी जांच एजेसिंयों ने मामले की जांच शुरू की थी.

उस समय अहमदाबाद के क्राइम ब्रांच के प्रमुख आशीष भाटिया थे, जो इस समय गुजरात राज्य पुलिस के प्रमुख यानी डीजीपी हैं. आशीष भाटिया के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच के अभय चूड़ासमा, गिरीश सिंघल, हिमांशु शुक्ला, राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, ऊषा राडा और वी.आर. टोणिया जैसे होशियार अधिकारियों की एक टीम बनाई गई थी.

इन में 2 को टैक्निकल, 2 को औपरेशन और 2 को इंट्रोगेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. आशीष भाटिया के आदेश पर मेहसाना के कांस्टेबल दिलीप ठाकोर अहमदाबाद आ गए थे. मोबाइल ट्रैकिंग के लिए जो भी जरूरत थी, अभय चूड़ासमा ने उस की व्यवस्था कराई.

उन्हें जो भी लीड मिलती, उस पर नजर रखने और दिशानिर्देशों की जिम्मेदारी आईपीएस हिमांशु शुक्ला को सौंपी गई थी. लाखों फोन काल्स में संदेहास्पद नंबर दिलीप ठाकोर ने खोज ही निकाले थे.

राज्य सरकार ने रखा 50 लाख का ईनाम

इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच कर रही थी, इसलिए इस बात का डर था कि अगर सभी जांच एजेसियां एक साथ काम करेंगी तो आरोपी हाथ से निकल सकते हैं.

राज्य सरकार ने इस मामले का खुलासा करने वाली एजेंसी को 50 लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा कर रखी थी, जिस की वजह से जांच एजेंसियों में क्रेडिट लेने की होड़ लग गई थी. इसलिए पूरी बात उस समय के राज्य के गृहमंत्री अमित शाह के सामने रखी गई. उन्होंने क्राइम ब्रांच को छोड़ कर सभी जांच एजेसिंयों को रुकने के लिए कहा था.

अहमदाबाद में विस्फोट हुए, उस के पहले जयपुर, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली सहित अन्य कई शहरों में विस्फोट हुए थे. पता चला कि उन्हीं को ध्यान में रख कर अहमदाबाद में भी विस्फोट किए गए थे. भारत में सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिस से सिमी से जुड़े सदस्यों को रेगुलर अहमदाबाद के एटीएस कार्यालय में हाजिरी देने आना पड़ता था.

विस्फोट के 2-3 दिन बाद हाजिरी देने आए 2 सदस्यों को क्राइम ब्रांच ने हिरासत में ले कर पूछताछ की, पर उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी. लेकिन अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के पास विस्फोट के एकाध महीने पहले आईबी से मिली जो जानकारी थी, जब उस के आधार पर पूछताछ की गई तो उन दोनों ने बताया कि वे दोनों अन्य राज्य में ट्रेनिंग लेने गए थे, जहां 40 से 50 अन्य युवक भी ट्रेनिंग ले रहे थे.

3 स्थानीय युवक भी सिमी में शामिल हुए थे. वे भी वहां ट्रेनिंग ले रहे थे. वे इस सीरियल विस्फोट में शामिल हो सकते हैं.

उन दोनों से मिली इस जानकरी के आधार पर क्राइम ब्रांच ने अहमदाबाद के रहने वाले और ट्रेनिंग के लिए गए उन तीनों युवकों में से एक को उठा लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने बम रखने की बात स्वीकार कर ली. इसी के साथ उस ने आजमगढ़ के एक मौलवी का नाम बता कर कहा कि उसी ने सभी को ट्रेनिंग दी थी.

उस युवक द्वारा दी गई जानकारी से पता चला कि विस्फोट से कुछ दिनों पहले 15-20 लड़के अहमदाबाद में ठहरे थे. उन्होंने ब्रिज के नीचे किराए पर मकान लिया था, जिस की छत पर वे मीटिंग करते थे.

इसी के साथ पुलिस को वटवा में भी किराए का मकान लेने की जानकारी मिली. उसी युवक ने पुलिस को यह भी बताया था कि ये जो लोग किराए के मकानों में ठहरे थे, इन की मदद 4-5 स्थानीय लोगों ने भी की थी.

क्राइम ब्रांच जोड़ने लगी केस की कडि़यां

गैस सिलेंडर कालूपुर से लाया गया था. इसी जानकारी के आधार पर गैस सिलेंडर देने वाले को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद पुलिस ने कुछ चश्मदीदों और तकनीकी संसाधनों की मदद से 15 अगस्त, 2008 को 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था.

उसी दौरान विस्फोट में उपयोग में लाई गई 2 कारें भरूच में देखे जाने की जानकारी भरूच के कांस्टेबल याकूब अली ने अभय चूड़ासमा को दी थी. पुलिस ने जब इस बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि विस्फोटों से कुछ दिनों पहले 4 युवक भरूच में कपड़े का व्यवसाय करने के बहाने किराए का मकान ले कर ठहरे थे. वहां वे 2 कारें ले कर आए थे. वहां वे 2 महीने रहे थे. विस्फोट होने के एक सप्ताह पहले वहां से चले गए थे.

अखबारों में कारों के फोटो देखते ही जिस आदमी ने उन युवकों को मकान किराए पर दिलाया था, उस ने यह बात अपने पड़ोसी को बताई थी. पड़ोसी ने यह बात पुलिस के मुखबिर से बताई.

इस के बाद यह जानकारी पुलिस तक पहुंच गई थी. फिर पुलिस ने जांच की तो पता चला कि ये कारें महाराष्ट्र से चोरी कर के लाई गई थीं. मकान किराए पर लेने के लिए उन चारों युवकों में से एक ने मकान मालिक को फोन किया था. इस तरह पुलिस को एक फोन नंबर भी मिल गया था.

पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो पता चला कि उस नंबर से दिल्ली और मध्य प्रदेश के एसटीडी पीसीओ पर फोन किए गए थे. इस के आगे पुलिस को उस नंबर से कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी.

लेकिन पुलिस ने यह जरूर पता लगा ली थी कि वह सिमकार्ड कहां से खरीदा गया था. जब उस सिम को बेचने वाले वेंडर के पास पुलिस पहुंची तो उस ने बताया कि उस ने एक नहीं, 3 सिम उन लोगों को बेचे थे.

इस के बाद जब उन दोनों नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि उन नंबरों से भी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मुंबई फोन किए गए थे.

एक फोन नंबर से एक लैंडलाइन नंबर पर फोन किया गया था. पर अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच को उस की डिटेल्स नहीं मिली. लेकिन यह जरूर पता चल गया था कि वह नंबर दिल्ली का है. इसलिए उस नंबर के बारे में दिल्ली पुलिस को सूचना दी गई.

लेकिन इस के बाद दिल्ली में विस्फोट हुआ तो ये सारे के सारे नंबर बंद हो गए थे. पर सितंबर में हुए विस्फोट के बाद से दिल्ली पुलिस बहुत ऐक्टिव हो गई थी.

20 दिनों की जांच में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के हाथों कुछ खास नहीं लगा था. उसी दौरान पुलिस के हाथ एक ऐसा नंबर लगा, जो असली नाम और पते पर लिया गया था. जब उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर दिल्ली के जाकिरनगर के बाटला हाउस का निकला.

जांच के दौरान पुलिसकर्मी को मारी गोली

उस नंबर के बारे में पता करने के लिए एक पुलिसकर्मी प्राइवेट टेलिकौम कंपनी का एग्जीक्यूटिव बन कर इनक्वायरी के लिए उस पते पर गया.

दरवाजा खटखटाने पर किसी ने दरवाजा खोला तो पता चला कि अंदर 5-7 युवक थे. उन्हें शक हो गया कि यह आदमी टेलिकौम कंपनी का नहीं, पुलिस वाला है तो उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी थी, जिस में वह पुलिसकर्मी मारा गया.

इस के बाद पुलिस को चकमा दे कर 3 लोग भाग गए और 2 लोग बाथरूम में घुस गए. दिल्ली पुलिस ने उन दोनों को पकड़ लिया था. बाद में पूछताछ की गई तो पता चला कि वही लोग अहमदाबाद में विस्फोट करने आए थे. इस के बाद हिमांशु शुक्ला और मयूर चावड़ा को उत्तर प्रदेश भेजा गया.

याकूब अली दिलीप ठाकोर की लीड से जो नाम क्राइम ब्रांच के सामने आए थे, उन का संबंध विस्फोट से तो था, पर छोटी मछलियों को पकड़ने की घोषणा क्राइम ब्रांच करना नहीं चाहती थी, क्योंकि वह मुख्य सूत्रधार तक पहुंचना चाहती थी.

हिमांशु शुक्ला सुबह जब एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि उन्हें उत्तर प्रदेश के लखनऊ जाना है, जहां अबु बशर को पकड़ना है. 5-7 अधिकारियों के साथ वह लखनऊ पहुंचे और अबू बशर को उठा लिया. क्राइम ब्रांच की यह बड़ी सफलता थी.

पुलिस कस्टडी में आने के बाद अबू में इतनी ताकत नहीं थी कि वह मुंह बंद रखता. उस ने एक के बाद एक आतंक के पन्ने खोलने शुरू कर दिए.

दूसरी ओर महाराष्ट्र की पुलिस गाडि़यों के बारे में जांच कर रही थी. नंबरों के आधार पर जांच कर के मुंबई ने 2 वाहन चोर पकड़े थे. इन दोनों चोरों के माध्यम से 2 वाहन चोर और पकड़े गए. बाद में पकड़े गए दोनों चोरों ने अन्य 2 चोरों को गाड़ी देने का काम सौंपने की बात स्वीकार कर ली.

आगे की जांच में यह पूरा नेटवर्क पुणे से चलने का पता चला, जिस में 8-10 लोग शामिल थे. जो पुणे में हैडक्वार्टर बना कर वहां बम बनाते थे.

एकएक कर पकड़े गए 81 आरोपी

महाराष्ट्र पुलिस ने इस मामले में आगे बढ़ते हुए वहां पकड़े गए लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि इन के लीडर मेंगलुरु के भटकल गांव में भटकलबंधु हैं. लेकिन पुलिस जांच करते हुए जब भटकल पहुंची तो पता चला कि भटकलबंधु फरार हो चुके हैं.

पर अब तक जो लोग पकड़े जा चुके थे, उन से पता चला था कि विस्फोट के पहले करीब 40 युवकों ने हालोल के पास पावागढ़ के नजदीक एक कैंप में ट्रेनिंग ली थी. उसी के बाद इस सीरियल बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया गया था.

अबू का मुंह खुलते ही धीरेधीरे

81 आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया था. जिस में मुफ्ती अबू बशर, मोहम्मद कयामुद्दीन और आतंकियों के ग्रुप लीडर तौकीर भी शामिल था.

बम में टाइमर डिवाइस लगा कर विस्फोट के रूप में एल्युमीनियम नाइट्रेट का उपयोग कर के सिविल अस्पताल और एलजी अस्पताल में गैस सिलेंडर के साथ वाहन में बम रखे गए थे. जबकि अन्य जगहों पर साइकिल पर टिफिन बम रखे गए थे.

जयपुर की तरह यहां भी सभी भूरे रंग की पौलिथिन बैग में बम रखे गए थे. जैसेजैसे आरोपी गिरफ्तार होते गए, पुलिस चार्जशीट दाखिल करती गई. कुछ भाग गए थे, जिन्हें मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

इस मामले की जांच 9 महीने तक चली थी. इस दौरान क्राइम ब्रांच की टीम को आदेश था कि सभी लोग सुबह 10 बजे औफिस आ जाएं. जबकि तमाम अधिकारी रात 2 बजे के पहले कभी घर नहीं जाते थे.

अपराध की गंभीरता को ध्यान में रख कर क्राइम ब्रांच की टीम के 6 एसीपी को इस मामले की जांच में नियुक्त कर दिया गया था. इस मामले की जांच गुजरात पुलिस के लिए एक चुनौती थी. इस का मास्टरमाइंड उत्तर प्रदेश का अबू बशर था. उसे सफलतापूर्वक पिक करना जरूरी था.

आशीष भाटिया गुजरात सरकार को समझाने में सफल रहे थे. उन्हें आदेश मिला था कि जरूरत हो तो चार्टर प्लेन का उपयोग करना. अबू बशर को पकड़ने गई टीम उसे लखनऊ से उठा लाई, तब तक इस बात की भनक किसी को नहीं लगी थी. इस मामले की जांच में 15 लाख रुपए केवल हवाई जहाज की टिकटों पर खर्च हुए थे.

मुंबई से कार द्वारा लाया गया था विस्फोटक

अहमदाबाद में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन, हरकत उल जिहाद अल इस्लामी ने स्वीकारी थी. भटकलबंधु रियाज, इकबाल और यासीन इस पूरे मामले के मुख्य सूत्रधार थे. रियाज और इकबाल को गुजरात की क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार कर लिया था. यासीन भटकल एक अन्य मामले में दिल्ली की जेल में बंद है. उस के खिलाफ अब मुकदमा खुलेगा.

पूछताछ में पता चला था कि इस पूरे मामले की योजना केरल के जंगलों में बनी थी. गोधरा कांड के बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए बाघमोर के जंगल में विस्फोट की ट्रेनिंग दी गई थी. इस के बाद आतंकियों की एक टीम ट्रेन द्वारा अहमदाबाद आई थी.

विस्फोट मुंबई से कार द्वारा अहमदाबाद और सूरत लाया गया था. मुफ्ती अबू बशर ने स्लीपर सेल तैयार किया था. 13 साइकिलें खरीदी गईं और बम रखने के लिए स्लीपर सेल का उपयोग किया गया था.

पुलिस ने कुल 99 आतंकियों की पहचान की थी. विस्फोट के बाद अहमदाबाद में 20 और सूरत में 15 शिकायतें दर्ज कराई गई थीं. इन 35 शिकायतों को एक किया गया था.

पहचान किए गए आतंकवादियों में से 3 पाकिस्तान और एक सीरिया भाग गया था. 3 आतंकी अलगअलग राज्यों में सजा काट रहे हैं. एक एनकाउंटर में मारा गया था.

अहमदाबाद में हुए विस्फोटों से पहले ही आईबी के एक सिपाही ने गुजरात पुलिस को चेताया था. उस ने बताया था कि सिमी ने नया संगठन बनाया है, जो गुजरात में कुछ गलत करने की तैयारी कर रहा है. उस ने कुछ आतंकवादियों की गुप्त जानकारी देने के साथ नंबर भी दिए थे. पर इस सूचना पर उस समय किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

1163 लोगों ने दी थी गवाही

आतंकवादियों का मंसूबा कितना खतरनाक था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सूरत में भी 15 बम रखे थे. पर संयोग से उन में से एक भी बम नहीं फटा था.

इस बात की जानकारी मिलने के बाद सूरत के पुलिस कमिश्नर एम.एस. बरार भी अपनी टीम के साथ जांच में लग गए थे.

महत्त्वपूर्ण जानकारी के साथ उन्होंने डीसीपी वी. चंद्रशेखर को बेंगलुरु भेजा था. दूसरी ओर मामले की गंभीरता को देखते हुए बड़ौदा के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने शक के मद्देनजर कुछ लोगों को उठाना शुरू कर दिया था. उसी तरह भरूच के एसपी सुभाष त्रिवेदी भी काम में लग गए थे.

इस मामले में 1,163 लोगों की गवाही हुई थी, जबकि 1,237 गवाहों को छोड़ दिया गया था. कुल 51 लाख पेज की 521 चार्जशीटें दाखिल की गई थीं. 9,800 पेज की तो एक ही चार्जशीट थी. 6,000 दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए थे.

कुल 7 जजों ने 14 साल तक इस मामले की सुनवाई की थी. तब कहीं जा कर यह ऐतिहासिक फैसला आया.

निचली अदालत ने तो दोषियों को सजा दे दी, पर अभी तो ये सभी दोषी हाईकोर्ट  फिर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. उस के बाद राष्ट्रपति के यहां. फांसी के तख्ते तक कौन पहुंचेगा, इस का इंतजार तो अभी लंबे समय तक करना होगा.

पांच साल बाद- भाग 4: क्या स्निग्धा एकतरफा प्यार की चोट से उबर पाई?

‘सच कहते हो तुम,’ उस ने झटके से अपने आंसू पोंछ डाले और मुसकराने का प्रयास करती हुई बोली, ‘मैं अपना अतीत याद नहीं करना चाहती, परंतु उसे बताए बिना तुम मेरी बात नहीं समझ पाओगे. विगत की हर एक बात मैं तुम्हें नहीं बताऊंगी. बस, उतना ही जितने से तुम मेरे मन को समझ सको और यह समझ सको कि मैं ने अपने विद्रोही स्वभाव के कारण क्या पाया और क्या खोया.’

‘इतना भी आवश्यक नहीं है,’ वह गंभीरता से बोला, ‘तुम सामान्य बातें करोगी तो मुझे अच्छा लगेगा.’

‘मैं तुम्हारे मन की दशा समझ सकती हूं. तुम मेरे दुख से दुखी नहीं होना चाहते हो.’

‘मैं तुम्हारे सुख से सुखी होना चाहता हूं,’ उस ने स्पष्ट किया.

स्निग्धा को उस की बात से घोर आश्चर्य हुआ. वह हकबका कर बोली, ‘मैं कुछ समझी नहीं?’

‘जिस जगह तुम मुझे छोड़ कर गई थीं, उसी जगह पर मैं अभी तक खड़ा हो कर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं,’ उस ने निसंकोच कहा.

स्निग्धा के हृदय में मधुर वीणा के तारों सी झंकार हुई, ‘लेकिन तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं बिना शादी के राघवेंद्र के साथ रह रही थी. तुम्हें पता नहीं है कि पिछले 5 सालों में मेरे साथ क्याक्या गुजरा है?’

निशांत ने प्रश्नवाचक भाव से उस की तरफ देखा और अपने दोनों हाथों को मेज पर रख कर उस की तरफ झुकता हुआ बोला, ‘तुम चाहो तो बता सकती हो.’

स्निग्धा ने एक राहत भरी सांस ली और बोली, ‘मैं बहुत लंबा व्याख्यान नहीं दूंगी. मेरी बातों से ऊबने लगो तो बता देना.’

उस ने सहमति में सिर हिलाया और तब स्निग्धा ने धीरेधीरे उसे बताया, ‘मैं ने परंपराओं, सामाजिक मर्यादा और वर्जनाओं का विरोध किया. बिना शादी के एक युवक के साथ रहने लगी. परंतु जिसे मैं ने आजादी समझा था वह तो सब से बड़ा बंधन था. सामाजिक बंधन में तो फिर भी प्रतिबद्धता होती है, एकदूसरे के प्रति लगाव और कुछ करने की चाहत होती है परंतु बिना बंधन के संबंधों का आधार बहुत सतही होता है. वह केवल एक विशेष जरूरत के लिए पैदा होता है और जरूरत पूरी होते ही मर जाता है.

‘मैं राघवेंद्र के साथ रहते हुए बहुत खुश थी. हम दोनों साथसाथ घूमते, राजनीतिक पार्टियों में शामिल होते. मेरी अपनी महत्त्वाकांक्षा भी थी कि राघवेंद्र के सहारे मैं राजनीति की सीढि़यां चढ़ कर किसी मुकाम तक पहुंच जाऊंगी, परंतु यह मेरी भूल थी. 3 साल बाद ही मुझे महसूस होने लगा कि राघवेंद्र मुझे बोझ समझने लगा था. अब वह मुझे अपने साथ बाहर ले जाने से भी कतराने लगा था. बातबात पर खीझ कर मुझे डांट देता था.

मैं समझ गई, वह केवल अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए मुझे अपने साथ रखे हुए था. मेरा रस चूस लेने के बाद अब वह मुझे बासी समझने लगा था. वह मुरझाए फूल की तरह मुझे फेंक देना चाहता था. उस की बेरुखी से मैं ने महसूस किया कि हम जिस शादी के बंधन को बोझ समझते हैं, वह वाकई वैसा नहीं है. बिना शादी के भी तो 2 व्यक्ति वही सबकुछ करते हैं, परंतु बिना किसी जिम्मेदारी के और जब एकदूसरे से ऊब जाते हैं तो बड़ी आसानी से जूठी पत्तल की तरह फेंक देते हैं. लेकिन मान्यताप्राप्त बंधन में ऐसा नहीं होता.

‘मैं ने भी अगले 2 साल तक और बरदाश्त किया, परंतु एक दिन राघवेंद्र ने मुझ से साफसाफ कह दिया कि मुझे अपना राजनीतिक कैरियर बनाना है. तुम अपने लिए कोई दूसरा रास्ता चुन लो. तुम्हारे साथ रहने से मेरी बदनामी हो रही है. अगला आम चुनाव आने वाला है. अगर तुम मेरे साथ रहीं तो मेरी छवि धूमिल हो जाएगी और मुझे टिकट नहीं मिलेगा.’

‘मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई. मेरी सारी शक्ति, समाज से बगावत करने का जोश जैसे खत्म हो गया. मैं समझ गई, नारी चाहे जितना समाज से विद्रोह करे, पुरुष के हाथों की कठपुतली न बनने का मुगालता पाल ले, परंतु आखिरकार वह वही करती है जो पुरुष चाहते हैं. वह पुरुष की भोग्या है. जानेअनजाने वह उस के हाथों से खेलती रहती है और सदा भ्रम में जीती है कि उस ने पुरुष को ठोकर मार कर आजादी हासिल कर ली है.

‘जिस समाज से मैं विद्रोह करना चाहती थी, जिस की मान्यताएं, परंपराओं और वर्जनाओं को तोड़ कर मैं आगे बढ़ना चाहती थी, उसी समाज के एक कुलीन और सभ्य व्यक्ति ने मेरा सतीत्व लूट लिया था या यों कहिए कि मैं ने ही उस के ऊपर लुटा दिया था. बताओ, एक शादीशुदा औरत और मुझ में क्या फर्क रहा? शादीशुदा औरत को भी पुरुष भोगता है और बिना शादी किए मुझे भी एक पुरुष ने भोगा. उस ने अपनी भूख मिटा ली. परंतु नहीं, हमारी जैसी औरतों और शादीशुदा औरतों में एक बुनियादी फर्क है. जहां शादीशुदा औरत यह सब कुछ एक मर्यादा के अंतर्गत करती है, हम निरंकुश हो कर वही काम करती हैं. एक पत्नी को शादी कर के परिवार और समाज की सुरक्षा मिलती है, परंतु हमारी जैसी औरतों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती. पत्नी के प्रति पति जिम्मेदार होता है, उस के सुखदुख में भागीदार होता है, जीवनभर उस का भरणपोषण करता है, परंतु हमें भोगने वाला व्यक्ति हर प्रकार की जिम्मेदारी से मुक्त होता है. वह हमें रखैल बना कर जब तक मन होता है, भोगता है और जब मन भर जाता है, ठोकर मार कर गलियों में भटकने के लिए छोड़ देता है.’

वह बड़ी धीरता और गंभीरता से अपनी बात कह रही थी. निशांत पूर्ण खामोशी से उस की बातें सुन रहा था. बीच में उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की, न कुछ बोला. अपनी बात खत्म करतेकरते स्निग्धा भावों के अतिरेक से विह्वल हो कर रोने लगी. परंतु निशांत ने उसे चुप नहीं कराया.

कुछ देर बाद वह स्वयं शांत हो गई.

पता नहीं, निशांत क्या सोच रहा था. उस का सिर झुका हुआ था और लग रहा था जैसे वह स्निग्धा की सारी बातों को मन ही मन गुन रहा था, उन पर मनन कर रहा था. फिर और कई पल गुजर गए. इस बीच वेटर आ कर कई बार पूछ गया कि कुछ और चाहिए या बिल लाऊं. उस ने इशारे से उसे 2 और कोल्ड कौफी लाने को आदेश दे दिया था.

Summer Special: कम बजट में यहां मनाएं गर्मी की छुट्टियां

गर्मी की छुट्टियां होते ही आपको बजट की भी चिंता होती है. लेकिन अब चिंता करना छोड़े.  क्योंकि हम आपको बता रहे हैं उन खास पांच जगहों के बारे में जहां जाकर आप अपनी छुट्टियां मजे से बिता सकते हैं. वहीं इन जगहों पर जाने से आपका ज्यादा खर्चा भी नहीं होगा. इन जगहों में प्राकृतिक संपदाएं, स्मारक, इमारतें और प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थान शामिल हैं.

सोलांग (हिमाचल प्रदेश)

हिमालय की तलहटी पर बसा सोलांग बहुत ही खूबसूरत स्थान है. यहां पर पूरे साल एडवेंचर स्पोर्ट्स होते रहते हैं. जैसे स्काइंग, पैरा ग्लाइडिंग और हौर्स राइडिंग आदि. यहां आकर आपको ग्लैशियर्स का अनोखा नजारा भी देखने को मिलेगा. रंग-बिरंगी इमारतों ने इस शहर को खास बनाया है

गंगटोक (सिक्किम)

यह समुद्र तल से लगभग 5,410 फीट की ऊंचाई पर बना है. यहां माउंटेनियरिंग, रिवल राफटिंग और दूसरे प्राकृतिक खेलों के लिए लोग आते हैं. आप भी यहां जाकर इन खेलों का भरपूर मजा ले सकते हैं.

डल लेक (कश्मीर)

डल झील रोमांटिक हिल स्टेशन में से एक है. यहां का बोट-हाउसेस और शिकारा राइड्स काफी फेमस हैं. यहां आकर आपको गर्मियों में भी ठंडक का एहसास होगा.

हम्पी (कर्नाटक)

यहां आपको प्राचीन काल के मंदिर और कलाकृतियां देखने को मिलेंगी. यहां के मंदिर दुनिया भर में फेमस हैं. इन्हें देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. यूनेस्को ने हम्पी को वर्ल्ड हेरिटेज साईट का दर्जा दिया है. हम्पी में हमें बहुत से एतिहासिक स्मारक और धरोहर दिखायी देते है.

Summer Special: गर्मी से है परेशान तो खाएं ये फल

गर्मी का मौसम जानलेवा बनता जा रहा है. हर साल गर्मी अपने पिछले साल का रिकौर्ड तोड़ रही है. सर्दी के 3-4 महीने के अलावा पूरे साल गर्मी रहती है. लेकिन लाख चाहने के बाद भी घर पर बंद होकर तो रहा नहीं जा सकता. बाहर निकलना भी जरूरी है. कड़कड़ाती गर्मी और सड़क पर लगे जाम को झेलना भी. यह सब झेला जा सकता है, सेहत के प्रति थोड़ा सचेत रह कर. इसके लिए शरीर के साथ मन को भी तरोताजा और ठंडा होगा. गर्मी में शरीर को अधिक से अधिक पानी की जरूरत होती है. गर्मी के दिनों में शरीर का पानी सूखता है. इसलिए पानी के साथ अलग-अलग तरह के तरल की भी जरूरत पड़ती है. शरीर में पानी की कमी होना डिहाइड्रेशन कहलाता है. यह जानलेवा भी हो सकता है. इसलिए शरीर में पानी मात्रा को बनाए रखना जरूरी है.

पानी की मात्रा को बनाए रखने के लिए पानी काफी नहीं है. इसके साथ खाने के पैटर्न में भी बदलाव जरूरी है. डॉक्टर खाने के बजाए पेय पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर रहने की सलाह देते हैं. वैसे इस मौसम में बाजार में किस्म-किस्म के शीतल पेय और बोतल से लेकर फलों के जूस के ताजा होने बड़े दावे करनेवाले ट्रेटा पैक के जूस आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. ये सब बेशक प्यास बुझाने और गर्मी से राहत देकर ठंडक जरूर महसूस कराते हैं. पर यह फौरी तौर पर राहत देते हैं. इस गर्मी में इतना काफी नहीं. सेहतमंद और पौष्टिक पेय भी जरूरी है, जो अंदरूनी तौर पर राहत दे. जाहिर है बोतलबंद और ट्रेटापैक जूस व पेय से बात नहीं बनेगी.

कोलकाता की जानीमानी डायटिशियन रश्मि रायचौधरी कहती हैं कि उमस भरी गर्मी में शरीर को अंदरुनी तौर पर ठंडा रखने के लिए प्रकृति ने भरपूर फल-मूल दिया है. अब सवाल है कि किस तरह का खाना खाने से बगैर किसी तरह की शारीरिक समस्या के गर्मी आराम से कट सकती है. डायटिशियन द्वारा सुझाए गए कुछ फल इस प्रकार है:

खीरा: रोज खाने में एक मंझोले आकार का खीरा खाएं. इसे काट पर भी खाया जा सकता और सलाद में शामिल करके भी. खीरे और पुदीने का रिफ्रेशिंग स्मूदी, खीरे का रायता शरीर को भीतर से ठंडा और तरोताजा बनाता है. खीरे में पाया जाने वाला पोटाशियम शरीर में पानी का संतुलन बनाने में मददगार है. हालांकि इसमें अन्य फल व सब्जी की तरह ढेर सारे विटामिन नहीं होने के बावजूद शरीर के रोजमर्रा की विटामिन सी और के की जरूतर को पूरा करता है. इसके अलावा इसके छिलके में स्टेरल नाम का एक और उपादान पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रोल की मात्रा को संतुलित बनाने में सहायक होता है. इसीलिए खीरे के छिलके को फेंकना मुनासिब नहीं है. खीरा इम्युन सिस्टम को भी मजबूत करता है.

नारियल पानी: इसमें पाया जाता है एमिनो एसिड, इंजाइम्स, डाइटरी फाइबर, विटामिन सी और कई तरह के मिनरल मसलन पोटाशियम, मैग्निशियम और मैंगनीज पाया जाता है. पोषक तत्व से भरपूर यह एक प्राकृतिक एनर्जी ड्रिंक है. इस पर यह फैट और कोलेस्ट्रोल फ्री होता है. इसमें पाया जानेवाला पोटाशियम गर्मी के एहसास को कम करता है. इतना ही नहीं, डॉक्टरों का मानना है कि नारियल पानी अपने आपमें स्लाइन का विकल्प है. हमारे देश में हर जगह चिकित्सा की सुविधा नहीं होती. ऐसे जगहों में हाइड्रेशन के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए मरीजों को नारियल पानी पिलाया जाए तो यह शरीर में पानी की कभी को पूरा कर सकता है. यह डायबिटिज के मरीज के लिए लाभदायक है, क्योंकि यह शरीर में शक्कर के स्तर को नियंत्रित करता है.

तरबूज: रस से भरपूर तरबूत अपने आपमें एक ‘होल फूड’ भी है. शरीर में पानी की मात्रा को बनाए रखता है. स्वादिस्ट होने के साथ कई बीमारियों में यह रामवाण माना जाता है. दिल की बीमारी, डायबिटिज को नियंत्रित करता है. इसमें पाए जानेवाले विटामिन ए बी सी और आयरन इम्युन सिस्टम को मजबूती देता है. दिमाग को ठंडक देता है. जाहिर है गर्मी के मौसम में सिर को ठंडा रखेगा. रक्तचाप, कब्ज और खून की कमी को दूर करता है. सेहत के लिहाज में उपयोगी होने के साथ सौंदर्यवर्द्धक भी है यह तरबूज. इसमें पाया जानेवाला लाइकोपिन त्वचा को चमकदार बनाता है. इसके बीज को पीस कर चेहरे पर लगाने से निखार साफ नजर आता है. इसके पल्प को चेहरे पर रगड़ने से ब्लैक हेड निकल जाते हैं. इतनी खूबियों वाले तरबूज का बाजारू जूस पीने से बेहतर है इसे ताजा खाना व पीना.

बेल: पका हो या कच्चा – दोनों हर तरह से बेल फायदेमंद होता है. गर्मी के दिनों में पके बेल का शरबत शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. गर्मी केदिनों में अक्सर आंव-दस्त की समस्या होती है. तब पेट को ठंडा रखना जरूरी होता है. ऐसे में बेल फायदेमंद होता है. दरअसल यह फल पाचन व पेट संबंधी तमाम मर्ज की रामवाण दवा है. तेज गर्मी के दिनों में बेल का एक ग्लास शरबत लू से बचाता है. लू लग जाए तो इसके पल्प का लेप लू की जलन को भगा कर दवा का काम करता है. गर्मी में आंखे लाल हो जाती है, जलन महसूस होती है। ऐसी शिकायत होने पर बेल के पत्तों के रस का बूंद तुरंत लाभ पहुंचाता है. इसके रेशे कब्ज क शिकायत को दूर करते हैं. शक्कर, बेल का पल्प और नींबू मिला कर शरबत मन और शरीर को तरोताजा करता है. इसका मुरब्बा बल प्रदान करता है.

स्ट्रोबेरी: स्वाद में बढि़या होने के साथ गर्मी के दिनों के लिहाज से इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है, इसीलिए गर्मी के मौसम में उपयोगी है. इसमें विटामिन सी भूरपूर है, सर्दी-खांसी और संक्रमण से बचाव करता है. विटामिन सी त्वचा में कोलाजेन अधिक मात्रा में पैदा करता है, जो त्वचा को झुर्रियों से बचाता है. कुल मिला कर इम्युन सिस्टम के लिहाज से भी यह उपयोगी फल है. आंखों को इस विटामिन की जरूरत होती है, इसीके बल पर यह सूरज की कड़ी रोशनी और अल्ट्रावौएलेट रे से जूझता है. त्वचा को काला पड़ने से भी बचाता है. इसकी कमी से आंखों के लेंस की प्रोटीन नष्ट हो सकती है. चूंकि इसमें एंटीऔक्सीडेंट होता है यह तत्व आंखों के लिए तो अच्छा होता ही है; साथ में इसमें कैंसर से भी लड़ने वाले फ्लेवोनौएड, फोलेट और केंफेरौल भी होते है. फोलेट लाल रक्त कणिका में वृद्धि करता है. इसका पोटैशियम, मैग्निशियम हड्डियों के जोड़ के लिए जरूर पोषक खनिज है.

टमाटर: यह भी शरीर में पानी की जरूरत को पूरा करता है. इसके अलावा टमाटर कैंसररोधी भी है. इसके अलावा इसे खाने के साथ लगाने के भी कई फायदे हैं. इसमें भी पाया जानेवाला लाइकोपेन सूरज की अल्ट्रावायलेट रे से त्वचा की रक्षा करता है. इसे त्वचा पर लगाया जाए तो सन टैनिंग दूर होती है और एक खास तरह की चमक पैदा होती है. इसका एंटीऔक्सिडेंट और विटामिन सी प्राकृतिक रूप से एस्ट्रेजेंट का काम करता है.

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