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आलिया-रणबीर की शादी की Kissing फोटोज देख भड़के लोग, किया ट्रोल

बॉलीवुड के चर्चित कपल रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छायेहुए हैं. दोनों की शादी की कई फोटोज और वीडियोज सामने आई है. फैंस इन फोटोज और वीडियोज को काफी पसंद कर रहे हैं. तो कुछ लोगो ने ट्रोल भी किया है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

रणबीर और आलिया 14 अप्रैल को वास्तु बिल्डिंग में सात फेरे लिए. रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी की कई ऑफिशियल फोटोज सामने आई हैं, जिन्हें फैंस पसंद भी कर रहे हैं. तो वहीं रणबीर-आलिया की किसिंग फोटो भी सामने आई, जिसे देखने के बाद यूजर्स ने ट्रोल करना शुरू कर दिया.

 

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यह फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस फोटो पर कई लोगों ने कमेंट किया है. एक यूजर ने कमेंट में लिखा, ‘कितनी किस लोगे भाई सुहागरात के लिए रखो भाई’ तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा ‘वेस्ट की नकल करने के लिए कड़ी मेहनत करने की कोशिश कर रहे हैं. कम से कम हम उनकी सराहना कर सकते हैं.’

 

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इस कपल ने शादी के बाद मीडिया के सामने आकर कई फोटोज क्लिक कराई थीं.

 

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रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की वेडिंग फोटोशूट सामने आई है, जिसमें रणबीर कपूर और आलिया भट्ट के साथ सोनी राजदान, महेश भट्ट, शाहीन भट्ट, नीतू कपूर, रिद्धिमा कपूर फोटोशूट करवा रहे है. तो वहीं एक फैन ने फोटो एडिट कर ऋषि कपूर को भी सबके साथ खड़ा कर दिया है.

 

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बता दें कि रणबीर कपूर और आलिया भट्ट एक-दूसरे को बीते 4 साल से डेट कर रहे थे. वर्क फ्रंट की बात करें तो आलिया भट्ट और रणबीर कपूर पहली बार डायरेक्टर अयान मुखर्जी की फिल्म’ ब्रह्मास्त्र’ में साथ नजर आएंगे.

IPS नवनीत सिकेरा: जानें ‘भौकाल’ वेब सीरीज के असली हीरो के बारे में

इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे.

मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे.

आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी.

शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे.

उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था.

हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे.

उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था.

रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी.

उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे.

तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था.

इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे.

सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है.

प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी.

सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया.

राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची.

उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था.

नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए.

उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे.

सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था.

कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए.

इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था.

उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है.

इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की.

इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी.

वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा.

शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी.

खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे.

बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया.

जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.

शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया.

उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली.

कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी.

सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली.

आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया.

उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया.

एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया.

ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे.

कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से कम समय में ज्यादा काम

यह एक बड़ा कृषि यंत्र है, जो किसानों के बड़े ही काम आता है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करने से मजदूरों की समस्या तो दूर होती ही है, साथ ही कम समय में ज्यादा काम किया जा सकता है. कम लागत और कम समय में जल्दी काम पूरे हो जाते हैं.

इस यंत्र की मदद से धान, गेहूं, सोयाबीन, सरसों वगैरह की कटाई और सफाई का काम एकसाथ कर सकते हैं. इस में समय और लागत  बहुत कम लगती है.

इस मशीन में लगे खास यंत्र कटर कम स्प्रेडर की मदद से फसल के अवशेष को कटाई के बाद खेत में ही बिखेर देता है. बाद में मिट्टी में सड़ कर यही जैविक खाद बन जाती है.

इस यंत्र की खूबी यह है कि यह तेज हवाओं और वर्षा के चलते गिरी हुई फसल को भी आसानी से काट सकते हैं.

इन कंबाइन हार्वेस्टर मशीनों में सब से आगे लंबे कटरबार यानी दांतेदार फसल काटने के पट्टे लगे होते हैं. यह यंत्र कटर से फसल काटता है. इस के बाद फसल कन्वेयर बैल्ट के जरीए रेसिंग यूनिट में पहुंच जाती है.

यहां पर फसल के दाने ड्रैसिंग ड्रम से रगड़ने पर अलगअलग हो जाते हैं. साथ ही, मशीन में लगे पंखे से अनाज छलनी से साफ हो कर एक टैंक में पहुंचता है.

कंबाइन हार्वेस्टर में एक स्टोन ट्रैप यूनिट लगी होती है, जो फसल के साथ आने वाले कंकड़ और मिट्टी को अलग कर देता है.

इस मशीन के इस्तेमाल से किसान

कुदरती आपदाओं से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं और समय रहते फसलों की कटाई कर सकते हैं.

बढि़या कंपनी का हार्वेस्टर एक घंटे में तकरीबन 4 से 5 एकड़ क्षेत्र में फसलों की कटाई कर सकता है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से किसान खेत में आड़ीतिरछी पड़ी फसल को भी काट सकते हैं.

सरकार द्वारा भी कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दी जाती है. सब्सिडी की दर राज्य सरकारों की अलगअलग होती है. आमतौर पर लघु, सीमांत व महिला किसानों को 50 फीसदी व बड़े किसानों को 40 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है.

किसान इस योजना का फायदा उठा सकते हैं. कई प्रदेशों में तो किसान संगठन भी इस का इस्तेमाल करते हैं.

स्वराज का कंबाइन हार्वेस्टर जेन 2-8100 ऐक्स सैल्फ प्रोपेल्ड कंबाइन हार्वेस्टर

महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड की ओर से स्वराज ने नया जेन 2-8100 ऐक्स सैल्फ-प्रोपेल्ड कंबाइन हार्वेस्टर अक्तूबर, 2021 में ही बाजार में उतारा है, जो धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बेहतर यंत्र है.

यह चलने में बहुत ही सुविधाजनक है. अच्छी उत्पादकता के साथ ही साथ काम करने वाला यह हार्वेस्टर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों की काफी हद पहुंच में है.

101 एचपी की ताकत वाले इस कंबाइन हार्वेस्टर में अनाज इकट्ठा करने के लिए इस में 2140 लिटर की क्षमता वाला बड़ा सा अनाज टैंक लगा हुआ है. इस के पार्ट्स को आसानी से बदला जा सकता है और साफसफाई भी आसान है.

इस हार्वेस्टर यंत्र को खासतौर से चावल, गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलों की कटाई के हिसाब से डिजाइन किया गया है. इस में नवीनतम जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम भी लगा हुआ है. रात के अंधरे में भी इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. इस में अच्छी लाइटिंग का भी इंतजाम है.

महिंद्रा हार्वेस्ट मास्टर एच-12 4डब्ल्यूडी ट्रैक्टर माउंटेड कंबाइन हार्वेस्टर

ट्रैक्टर माउंटेड का मतलब है कि ट्रैक्टर पर फिट किए जाने वाला हार्वेस्टर, खासकर ट्रैक्टर्स की महिंद्रा अर्जुन नोवो सीरीज के लिए परफैक्ट मैच के तौर पर महिंद्रा द्वारा डिजाइन किया गया एक बहुफसल हार्वेस्टर है.

यह मशीन मिट्टी में सूखी और नम दोनों ही हालात में बेहतरीन काम करती है. ऐसा कंपनी का कहना है. यह तेजी से ज्यादा क्षेत्रफल को कवर करने वाला, अनाज का कम से कम नुकसान और ईंधन की कम खपत वाला हार्वेस्टर है.

इस ट्रैक्टर माउंटेड कंबाइंड हार्वेस्टर को इस्तेमाल करने के लिए महिंद्र का अर्जुन नोवो डीआई-आई/655 डीआई ट्रैक्टर का साथ जरूरी है.

इस हार्वेस्टर में 49 नाइफ ब्लेड्स और 24 नाइफ गार्ड्स लगे हैं. अनाज को इकट्ठा करने के लिए इस में एक बड़ा सा टैंक लगा है, जिस में धान तकरीबन 750 किलोग्राम तक इकट्ठा किया जा सकता है.

इन के अलावा अनेक कंपनियों के ट्रैक्टर जैसे दशमेश, जॉन डियर, फील्डकिंग, करतार, प्रीत आदि के अनेक मौडल बाजार में मौजूद हैं.

मुट्ठीभर बेर: औलेगा क्यों तड़प रही थी

घने बादलों को भेद, सूरज की किरणें लुकाछिपी खेल रही थीं. नीचे धरती नम होने के इंतजार में आसमान को ताक रही थी. मौसम सर्द हो चला था. ठंडी हवाओं में सूखे पत्तों की सरसराहट के साथ मिली हुई कहीं दूर से आ रही हुआहुआ की आवाज ने माया को चौकन्ना कर दिया.

माया आग के करीब ठिठक कर खड़ी हो गई. घने, उलझे बालों ने उस की झुकी हुई पीठ को पूरी तरह से ढक रखा था. उस के मुंह से काले, सड़े दांत झांक रहे थे. वह पेड़ के चक्र से बाहर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन उस की आंखों को धुंधली छवियों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया. कदमों की कोई आहट न आई.

शिकारियों की टोली को लौटने में शायद वक्त था. उस ने अपने नग्न शरीर पर तेंदुए की सफेद खाल को कस कर लपेट लिया. इस बार ठंड कुछ अधिक ही परेशान कर रही थी. ऐसी ठंड उस ने पहले कभी नहीं महसूस की. गले में पड़ी डायनासोर की हड्डियों की माला, जनजाति में उस के ऊंचे दर्जे को दर्शा रही थी. कोई दूसरी औरत इस तरह की मोटी खाल में लिपटी न थी, सिवा औलेगा के.

औलेगा की बात अलग थी. उस का साथी एक सींग वाले प्राणी से लड़ते हुए मारा गया था. पूरे 2 पूर्णिमा तक उस प्राणी के गोश्त का भोज चला था. फिर औलेगा मां भी बनने वाली थी. उस भालू की खाल की वह पूरी हकदार थी जिस के नीचे वह उस वक्त लेट कर आग ताप रही थी. पर सिर्फ उस खाल की, माया ने दांत भींचते हुए सोचा.

आग बिना जीवन कैसा था, यह याद कर माया सिहर गई. आग ही थी जो जंगली जानवरों को दूर रखती थी वरना अपने तीखे नाखूनों से वे पलभर में इंसानों को चीर कर रख देते. झाडि़यों से उन की लाल, डरावनी आंखें अभी भी उन्हें घूरती रहतीं.

माया ने झट अपने 5 बच्चों की खोज की. उस से बेहतर कौन जानता था कि बच्चे कितने नाजुक होते हैं. सब से छोटी अभी चल भी नहीं पाती थी. वह भाइयों के साथ फल कुतर रही थी. सभी 3 दिनों से भूखे थे. आज शिकार मिलना बेहद जरूरी था. आसमान से बादल शायद सफेद फूल बरसाने की फिराक में थे. फिर तो जानवर भी छिप जाएंगे और फल भी नहीं मिलेंगे. ऊपर से जो थोड़ाबहुत मांस माया ने बचा कर रखा था, वह भी उस के साथी ने बांट दिया था.

माया परेशान हो उठी. तभी उस की नजर अपने बड़े बेटे पर पड़ी. वह एक पत्थर को घिस कर नुकीला कर रहा था, पर उस का ध्यान कहीं और था. माकौ-ऊघ टकटकी लगा कर औलेगा को देख रहा था सामक-या के धमकाने के बावजूद. क्या उसे अपने पिता का जरा भी खौफ नहीं? पिछले दिन ही इस बात पर सामक-या ने माकौ-ऊघ की खूब पिटाई की थी. माकौ-ऊघ ने बगावत में आज शिकार पर जाने से इनकार कर दिया और सामक-या ने जातेजाते मांस का एक टुकड़ा औलेगा को थमा दिया. वही टुकड़ा जो माया ने अपने और बच्चों के लिए छिपा कर रखा था. माया जलभुन कर रह गई थी.

एक सरदार के लिए सामक-या का कद खास ऊंचा नहीं था. पर उस से बलवान भी कोई नहीं था. एक शेर को अकेले मार डालना आसान नहीं. उसी के दांत को गले में डाल कर वह सरदार बन बैठा. और जब तक वह माया पर मेहरबान था, माया को कोई चिंता नहीं. ऐसा नहीं कि सामक-या ने किसी और औरत की ओर कभी नहीं देखा, पर आखिरकार वापस वह माया के पास ही आता. माया भी उसे भटकने देती, बस, ध्यान रखती कि सामक-या की जिम्मेदारियां न बढ़ें. नवजात बच्चे आखिर बहुत नाजुक होते हैं. कुछ भी चख लेते हैं, जैसे जहरीले बेर.

माया की इच्छा हुई एक जहरीला बेर औलेगा के मुंह में भी ठूंस दे, पर अभी उस के कई रखवाले थे, उस का अपना बेटा भी. पूरी जनजाति उस के पीछे पड़ जाएगी. खदेड़खदेड़ कर उसे मार डालेगी.

कुछ रातों बाद…

बर्फ एक सफेद चादर की भांति जमीन पर लेटी हुई थी. कटा हुआ चांद तारों के साथ सैर पर निकला था. मैमौथ का गोश्त खा कर मर्द और बच्चे गुफा के भीतर सो चुके थे. औरतें एकसाथ आग के पास बैठी थीं. कुछ ऊंघ रही थीं तो कुछ की नजर बारबार बाहर से आती कराहने की आवाज की ओर खिंच जाती. सुबह सूरज उगने से पहले ही औलेगा छोटी गुफा में चली गई थी और अभी तक लौटी नहीं थी. रात गहराती गई. चांद ने अपना आधा सफर खत्म कर लिया. पर औलेगा की तकलीफ का अंत न हुआ. अब औरतें भी सो चली थीं, सिवा माया के.

कदमों की आहट ने उस का ध्यान आकर्षित किया. औलेगा के साथ बैठी लड़की पैर घसीटते हुए भीतर घुसी. वह धम्म से आग के सामने बैठ गई और थकी हुई, घबराई हुई आंखों से माया को देखने लगी. तभी औलेगा की तेज चीख सुनाई दी. माया झट से उठी और मशाल ले कर चल पड़ी. दूसरी मुट्ठी में उस ने बेरों पर उंगलियां फेरीं.

औलेगा का नग्न शरीर गुफा के द्वार पर, आग के सामने लेटा, दर्द से तड़प रहा था. बच्चा कुछ ही पलों की दूरी पर था. और थोड़ी ही देर में एक नन्ही सी आवाज गूंज उठी. पर औलेगा का तड़पना बंद नहीं हुआ. शायद वह मरने वाली थी. माया मुसकरा बैठी और बच्चे को ओढ़ी हुई खाल के अंदर, खुद से सटा लिया. भूखे बच्चे ने भी क्या सोचा, वह माया का दूध चूसने लगा. अचंभित माया के हाथ से सारे बेर गिर गए. वह कुछ देर भौचक्की सी बैठी रही, औलेगा को कराहते हुए देखती रही. उस की नजर सामने की झाडि़यों से टिमटिमाती लाल आंखों पर पड़ी. बस, आग ने ही उन्हें रोक रखा था. और आग ही ठंड से राहत भी दे रही थी. औलेगा की आंखें बंद हो रही थीं. माया ने आव देखा न ताव, मुट्ठीभर मिट्टी आग पर फेंकी, बच्चे को कस कर थामा, मशाल उठाई और चलती बनी. न औलेगा की आखिरी चीखें और न ही एक और बच्चे की पहली सिसकी उसे रोक पाई.

Summer Special: गर्मी को बनाएं कूल-कूल

ग्लोबल वर्मिंग, पर्यावरण की जो दिशा-दशा है, उससे तो यही लगता है कि हर साल गर्मी का पारा नई ऊंचाइयों को छुएगा. कड़कड़ाती हुई गर्मी शुरू होने से पहले सेहत के मद्देनजर कुछ जरूरी कदम उठाना लाजिमी है. कुल मिला कर है, मौसम के मिजाज के अनुरूप लाइफ स्टाइल को बदलना जरूरी है. पर कैसे? आइए देखते हैं:

  1. हम सब जानते हैं कि गर्मी में हमारे शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. गर्मी के दिनों में पसीना निकलता है. कुछ जगहों पर चिपचिपाहट के साथ ज्यादा ही पसीना निकलता है. जहां चिपचिपाहट वाली गर्मी नहीं है, वहां हिट स्ट्रोक के कारण डिहाइड्रेशन होता है. इस कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इसीलिऋ पूरे दम पर गर्मी शुरू होने से पहले थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पानी पीने का मात्रा बढ़ाया जाए तो प्रचंड गर्मी थोड़ी राहत रहेगी. गर्मी में कम से कम आठ ग्लास या तीन लीटर पानी जरूरी है. ध्यान रहे ज्यादा पानी भी नुकसान पहुंचाता है. इससे ज्यादा प्यास लगे तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
  2. नियमित रूप से दिन भर में एक तय समय योगा-कसरत के लिए निकालें. अपनी सेहत के अनुरूप हर रोज हल्के-फुल्के कसरत से लेकर चलने-टहलने का नियम बना लें. इतना भी सेहतमंद रहने में सहायक होगा. और दिन भर स्फूर्ति देने और सक्रिय रखने का काम करेगा. सुबह के समय जब अपेक्षाकृत मौसम जरा कूल होता है, उस समय आउटडोर एक्सारसाइज कर सकते हैं. स्वीमिंग कर सकते हैं. स्वीमिंग से पूरे शरीर का एक्सरसाइज होता है. अगर जिम के लिए सुबह का समय नहीं मिल पाता है तो शाम को जिम जा सकते हैं. दोहपर के समय जिम से दूर रहना ही अच्छा होगा. शरीर को ठंडा रखने के लिए बहुत सारे योगा है. इनका भी सहारा लिया जा सकता है.
  3. गर्मी के दिनों में सन बर्न, हिट स्ट्रोक की आशंका रहती है. इसीलिए घर से बाहर निकलने पर अपने साथ छाता, सनग्लास साथ लेकर निकले. इसके अलावा बाहर निकलने से आधा घंटे पहले सनस्क्रीन क्रीम लगाएं. इसीके साथ अपने लिए पानी का बोतल रखें.
  4. आमतौर पर गर्म के दिनों में कोल्ड ड्रिंक पीने का चलन आम है. इसे पीने से बचें. इनसे फौरी राहत जरूर मिल जाती है. लेकिन अंतत: ये शरीर को नुकसान ही पहुंचाते हैं. इससे अच्छा है नारियल पानी, शिकंजी, दही का घोल, बटर मिल्क, लस्सी, आम पन्ना, बेल का शरबत. ये सभी शरीर को ठंडा रखती है. इनसे गर्मी का एहसास भी कम ही होता है.
  5. गर्मी के मौसम को देखते हुए बहुत ज्यादा चाय या कौफी से बचकर रहें.
  6. अगर अभी से खाने-पीने पर ध्यान देंगे तो गर्मी आराम से निकल जाएगी. सर्दी का मौसम गया तो समझ लीजिए तला, मसालेदार खाना खाने का समय भी बीत गया. अब हल्का-फुल्का खाने पर जोर दें. तली चीजों से दूर रहे. बेहतर होगा, बाहर का खाना खाने से बचें. खासतौर फास्ट फूड और बाजार में मिलनेवाले कटे हुए फल. ऐसे फल व सब्जी रोज के खाने में शामिल करें जिनकी तासीर ठंडी हो. मसलन; गर्मी के दिनों में तरबूत, पपीता, खरबूज, खीरा जैसे भरपूर पानीवाले फल कुदरत की देन हैं. इसी तरह सब्जी भी. घिया, तरोई, नेनुआ, परवल, कद्दू जैसे पानी से भरपूर सब्जी शरीर को भीतर से ठंड रखते हैं. अगर शरीर का तापमान कम हो जाए तो वातावरण की गर्मी का एहसास कम होता है.
  7. गर्मी के दिनों में पसीने के कारण कुछ लोगों को अक्सर फंगल इंफेक्शन की शिकायत हो जाती है. इससे निपटने के लिए जरूरी है कि अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों की साफ-सफाई की जाए. बेहतर हो, खुशबूदार साबुन के बजाए मेडिकेटेड साबुन का इस्तेमाल किया जाए.
  8. गर्मी से निपटने के लिए सूती कपड़ों के अलावा हल्के रंग के ड्रेस, साड़ी, सलवार-कुर्त्ता या शर्ट पहना जाए. अंदरुनी कपड़ों के लिए भी सूती मैटेरियल का चुनाव करें. कुछ भी पहने टाइट फिटिंग के बजाए ढीला-ढाला पहना चाए.

इन कुछ उपायों को अपना कर गर्मी के कठिन दिनों को आराम से निकाला जा सकता है.

पापाज बौय : 1

फरवरी का बसंती मौसम था. धरती पीले फूलों की चादर में लिपटी हुई थी. बसंती बयार में रोमांस का शोर घुल चुका था. बयार जहांतहां दो चाहने वालों को गुदगुदा रही थी. मेरे लिए यह बड़ा मीठा अनुभव था. मैं उस समय 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही शरीर में बदलाव होने लगे थे. सैक्स की समझ बढ़ गई थी. दिल चाहता था कि कोई जिंदगी में आई लव यू कहने वाला आए और मेरा हो कर रह जाए. मैं शुरू से ही यह मानती आई थी कि प्रेम पजैसिव होता है इसीलिए यही सोचती आई थी कि जो जिंदगी में आए वह सिर्फ मेरा और मेरा हो.

शतांश से मेरी मुलाकात क्लास में ही हुई थी. वह गजब का हैंडसम था साथ ही अमीर बाप की एकलौती संतान था. पता नहीं मुझ में ऐसा क्या था जो वह मुझ पर एकदम आकर्षित हो गया. वैसे क्लास और स्कूल में अनेक लड़कियां थीं, जो उस पर हर समय डोरे डालने का प्रयास करती थीं. मैं एक मध्यवर्गीय युवती थी और वह आर्थिक स्थिति में मुझ से कई गुना बेहतर था. पहली मुलाकात के बाद ही हमारी दोस्ती बढ़ने लगी थी. मुझे क्लासरूम में घुसते देख कर ही वह दरवाजा रोक कर खड़ा हो जाता और मुझे अपनी तरफ देखने को मजबूर करता. कभी वह मेरे बैग से लंच बौक्स निकाल कर पूरा खाना खा जाता तो कभी अपना टिफिन मेरे बैग में रख देता. वह मेरे से नितनई छेड़खानियां करता. अब उस की छोटीछोटी शरारतें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. शायद उस दौरान ही हमारे बीच प्रेम का पौधा पनपने लगा था.

मन की सुप्त इच्छाएं उस समय पूर्ण हुईं जब शतांश ने मुझे वैलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देते हुए कहा था, ‘आई लव यू.’ मेरे लिए वह पल सुरमई हो उठा था. हृदय में खुशी का सैलाब उमड़ने लगा था. मैं शतांश की हो जाने को बेताब हो उठी थी. कैसे उस के शब्दों के बदले अपने प्रेम का इजहार करूं, अचानक कुछ भी नहीं सूझा था. जिस हाथ से शतांश ने वह फूल दिया था, मैं ने उस हाथ को शरमाते हुए चूम लिया था, बस.

उस दिन के बाद से न ही उस ने कुछ किया और न ही मैं ने. जो कुछ किया रोमांस की हवा के झोंकों ने किया. हमारे बीच प्रेम निरंतर बढ़ता जा रहा था. हम एकदूसरे के और करीब आते गए थे. रेस्तरां में शतांश के इंतजार में बैठी शायनी अपना अतीत उधेड़े जा रही थी. तभी वेटर आ कर उस के सामने कौफी का एक कप रख गया. कौफी का एक घूंट गले में उतारते हुए शायनी फिर अतीत में खो गई. रेस्तरां के शोरशराबे ने भी उस की सोच में कोई खलल नहीं डाला.

स्कूली शिक्षा समाप्त करते ही मैं ने मैडिकल में ऐडमिशन ले लिया था और शतांश ने ग्रैजुएशन के बाद एमबीए करने की चाह में आर्ट्स कालेज जौइन कर लिया था. यह सत्य है कि प्रेम किसी सीमा का मुहताज नहीं होता. वह न जाति में बंधता है, न धर्म में. न ऊंचनीच उसे बांधती है और न ही रंगभेद. कालेज की दूरियां और समय का अभाव कभी भी हमारे प्रेम में कमी नहीं ला पाया. मेरे और शतांश के रिश्तों में रोमांस की खुशबू सदा बनी रही.

मधुर मिलन: भाग 1

Writer- रेणु गुप्त

“हैलो पापा, जल्दी घर आ जाइए. दादी को फिर से अस्थमा अटैक पड़ा है. वे बारबार आप को याद कर रही हैं,” तपन के बड़े बेटे रिदान ने अपने पिता तपन  से कहा, जो कंपनी के टूर पर पुणे गए हुए थे.

“बेटा, बहुत जरूरी मीटिंग है परसो, उसे अटेंड कर ही वापस आ पाऊंगा. तब तक ऐसा करो, डाक्टर सेन  को बुला लो. उन के इंजैक्शन से दादी को फौरन आराम हो जाएगा. घर मैनेज नहीं हो पा रहा हो, तो मेरे आने तक इनाया आंटी को बुला लो.”

“जी पापा, ठीक है. वैसे, दादू की तबीयत भी ठीक नहीं. उन के जोड़ों का दर्द उभर आया है. मेरा पूरा वक्त दादू  और दादी की देखभाल में ही बीत जाता है.  अगले हफ्ते मेरे टर्म एग्जाम हैं.”

“ठीक है बेटा, मैं संडे को आ रहा हूं.”

रिदान से बातें कर तपन कुछ परेशान सा हो गया. जब से उस की पत्नी मौनी की सालभर पहले कैंसर से मौत हुई है, घर घर न रहा था.  सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया था. तभी  उस के फोन पर औफिस का कोई मैसेज आया और वह अपने काम में व्यस्त हो गया.

उस के घर पर रिदान  और रूद्र उस के 2 बेटे दादी की देखभाल में व्यस्त थे, जिन्हें अस्थमा का गंभीर दौरा पड़ा था. उन के लिए फ़ैमिली डाक्टर बुलाया गया था. कुछ ही देर बाद दादी को देख कर वह  जा चुका था. डाक्टर के दिए  इंजैक्शन से दादी को आराम आ गया और वे शांत लेटी थीं.  लेकिन अब दादू  अपने जोड़ों के दर्द से कराहने लगे, रिदान  से बोले, “रिदान बेटा, जरा सेंक की बोतल में गरम पानी भर कर ले आ.”

रिदान सेंक  की बोतल लेने दूसरे कमरे में गया ही था कि तभी रुद्र वहां पहुंच गया और रिदान से बोला, “भैया, परसों मेरा फ़िजिक्स का टर्म एग्ज़ाम है, लेकिन बिलकुल पढ़ाई नहीं हो पा रही. दादी, दादू के साथ पढ़ाई करना बहुत मुश्किल हो रहा है. मम्मा कितनी अच्छी तरह से घर मैनेज कर लेती थी न. मम्मा  की बहुत याद आ रही है, भैया.  यह सबकुछ हमारे साथ ही क्यों हुआ?  हमारी मम्मा हमें छोड़ कर चली गई इतनी जल्दी. मेरे सब फ्रैंड्स की मम्मा हैं.  जब वे लोग अपनी अपनी मम्मा की बातें करते हैं, तब मुझे बहुत फील होता है.”

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“रुद्र, हम दोनों का समय ही खराब है.  चलो, जो चीज हमारे कंट्रोल में नहीं है, हमें उस के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए. बी थैंकफ़ुल, कि पापा और  दादू-दादी हमारे पास हैं. चिंता मत कर, अब सबकुछ मैनेज हो जाएगा. पापा ने इनाया आंटी को बुलाने के लिए कहा है.”

तभी रिदान ने इनाया को फोन कर के कहा, “हैलो इनाया आंटी, गुड आफ्टरनून. आंटी, पापा  टूर पर गए हुए हैं, और यहां दादी को अस्थमा का अटैक पड़ा है. अभी तो खैर डाक्टर ने इंजैक्शन लगा दिया है और उन को आराम आ गया है. दादू के जोड़ों का दर्द भी उभर आया है. इधर रामकली आंटी भी हम से मैनेज नहीं हो पा रहीं.  टाइमबे टाइम आती हैं और उन्हें कुछ कहो, तो जवाब देना शुरू कर देती हैं. दादीदादू भी कुछ कहते हैं, तो उन की भी नहीं सुनतीं. कुछ दिनों के लिए आप प्लीज़, अमायरा के साथ घर आ जाइए न.”

“पापा कहां गए हैं? कब लौटेंगे?”

“पापा संडे तक आएंगे. आंटी प्लीज, आ जाइए.  अमायरा  को साथ में जरूर लाइएगा.”

“ओके बेटा, चिंता मत करो. मैं आती हूं 5 बजे तक.”

5  बजते ही अपने वादे के मुताबिक इनाया तपन के घर अमायरा के साथ आ गई. आते ही उस ने बेहद कुशलता से घर संभाल लिया.

इनाया के सहज, मृदु व्यक्तित्व में अनोखी ऊष्मा थी, जिस से उस के संपर्क में आने वाला हर शख्स अनचाहे उस की ओर खिंचा चला आता और उस की सहृदयता का कायल हो उठता. लेकिन उस के ज़िंदादिल व्यक्तित्व के आवरण में दर्द का अथाह समंदर छिपा था, जो उसे उस के अपनों ने ही दिया था.

उस ने अपनी युवावस्था में अपने मातापिता की मरजी के विरुद्ध उन से विद्रोह कर के एक युवक से विवाह कर लिया था. लेकिन कैरियर में बेहतरी की अपेक्षा में वह उसे और नन्ही अमायरा को छोड़ कर दुबई चला गया. फिर वह कभी लौट कर नहीं आया. वहीं बस गया. सुनने में आया था कि उस ने वहीं किसी और युवती से निकाह  कर लिया था.

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इनाया रिदान और  रुद्र की मृत मां मौनी की कालेज के जमाने की बेस्ट फ्रैंड  थी. मौनी इनाया के जीवन के हर पल की साझेदार थी. मौनी से दांतकाटी दोस्ती के चलते दोनों का एकदूसरे के घर नियमित रूप से आनाजाना, उठनाबैठना था. सो, दोनों  एकदूसरे के पति से भी ख़ासी  करीब थीं  और खुली हुई थीं. इनाया के पति के दुबई चले जाने के बाद मौनी और तपन ने इनाया के  सच्चे दोस्तों की भूमिका निभाते हुए उसे बेइंतहा भावनात्मक सहारा दिया और उन दोनों की वजह से वह बहुत हद तक अपने पति के दिए हुए आघात  से उबर कर वापस सामान्य हो पाई थी.

शाम के 5  बज चुके थे. रिमझिम बारिश हो रही थी.

“इनाया आंटी,  इस सुहाने मौसम में कुछ बढ़िया चटपटा खाने का दिल कर रहा है. आंटी, आप  बहुत बढ़िया चाप बनाती हैं न. प्लीज,  रामकली आंटी से बनवा दीजिए न,” रुद्र ने इनाया से फ़रमाइश की.

“ओके बेटा, अभी बनवाती हूं.”

“इनाया, हम दोनों को तो तुम्हारा यह मरा  चाओ बिलकुल अच्छा न लगे है. कुछ बढ़िया जायकेदार देसी खाना हम दोनों के लिए बनवा दे.”

“अच्छा आंटी, नो प्रौब्लम.  आप दोनों के लिए पकौड़ी  बनवा देती हूं. साथ में, हलवा भी.”

“अरे वाह बेटा, नेकी और पूछपूछ?  तूने तो मेरे दिल की बात कह दी. प्रकृति तुझे सातों सुख दे.”

“अरे आंटी, प्रकृति आप की बात मान ले, तो बात ही क्या थी? सातों सुख तो दूर की बात है, एक सुख ही  दे दे, तो बात बन जाए.”

“इनाया बेटा, ऐसी मायूसी की बातें क्यों करती है. तुझ से तो मौनी कहतेकहते हार गई. उस ने अपने जीतेजी तेरे लिए गठबंधन डौट कौम से कितने रिश्ते ढूंढे, लेकिन तूने किसी रिश्ते के लिए हामी  ही नहीं भरी. और अब जब अकेले रहने का फैसला तेरा है, तो इस के लिए शिकायत कैसी?  हिम्मत से हंसीखुशी जिंदगी जी, बेटा.”

GHKKPM: सई करवाएगी अपनी बु्आ सास की शादी!

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में एक नया मोड़ आ चुका है. शो में विराट की शिवानी बुआ की जिंदगी में जल्द ही खुशियां आने वाली है. शो में अब तक आपने देखा कि शिवानी बुआ राजीव से मिलने जेल जाती है. राजीव शिवानी से माफी मांगता है. शिवानी राजीव की सारी गलतियों को माफ कर देता है.

तो दूसरी तरफ विराट राजीव को जेल से रिहा कर देता है. इसी बीच सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’  की कहानी में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. शो की कहानी में आगे आप देखेंगे कि सई और विराट शिवानी की शादी करवाने की प्लानिंग करेंगे.

 

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शो में रामनवमी का उत्सव भी दिखाया जाएगा. इस मौके पर शिवानी आग में घिर जाएगी. राजीव अपनी जान पर खेलकर शिवानी की जान बचाएगा तो वहीं सई और विराट भी आग में कूद पडे़ंगे. आग की वजह से राजीव बेहोश हो जाएगा.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि सई एक्जाम देने से इनकार कर देगी. विराट सई के आगे हाथ पैर जोड़ेगा. विराट कहेगा कि वो अपनी जिम्मेदारी पूरी करके रहेगा. तो दूसरी तरफ सई विराट का हाथ हथकड़ी से बांध देगी. हथकड़ी के दूसरे छोर में सई अपना हाथ डाल लेगी. हथकड़ी लगाते ही सई चाबी कमरे से बाहर फेंक देगी. सई की ये हरकत देखकर विराट हैरत में पड़ जाएगा.

 

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Yeh Rishta फेम मोहिना कुमारी सिंह बनी मां, दिया एक बेटे को जन्म

ये रिश्ता (Yeh Rishta) क्या कहलाता है फेम एक्ट्रेस मोहिना कुमारी सिंह (Mohena Kumari Singh) मां बन चुकी हैं. उनके घर आखिरकार किलकारियां गूंज उठी है. एक रिपोर्ट के अनुसार, एक्ट्रेस ने एक बेटे को जन्म दिया है. बता दें कि कुछ महीने पहले ही मोहिना कुमारी सिंह ने गुड न्यूज सोशल मीडिया पर शेयर की थी कि वह मां बनने वाली हैं.

एक्ट्रेस अपनी प्रेग्नेंसी से जुड़ी हर छोटी से बड़ी जानकारी सोशल मीडिया के जरिये फैंस के साथ शेयर की थी. आखिरकार ये इंतजार खत्म हुआ, और मोहिना कुमारी सिंह के आंगन में किलकारियां गूंज उठी है. ये खबर जानने के बाद फैंस काफी खुश है.

 

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हालांकि अभी तक मोहिना कुमारी सिंह ने सोशल मीडिया के जरिए ये जानकारी अपने फैंस को नहीं दी है. लेकिन खबरों के अनुसार एक्ट्रेस ने एक बेटे को जन्म दिया है. अब देखना ये होगा कि एक्ट्रेस के परिवार से ये न्यूज कब तक कंफर्म हो पाती है.

 

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हाल ही में मोहिना कुमारी सिंह ने वर्चुअल बेबी शावर का वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर था. उन्होंने फैंस को वर्चुअल बेबी शॉवर के लिए शुक्रिया अदा किया था. मोहिना कुमारी सिंह अपनी प्रेग्नेंसी के दौरान काफी एक्टिव रही और सोशल मीडिया पर अपनी दिनचर्या की जानकारी देती रही.

 

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बता दें कि एक्ट्रेस ने साल 2019 में सुयश रावत संग शादी रचाई थी. शादी के 3 साल बाद एक्ट्रेस मां बनी है.

 

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