Download App

Mother’s Day 2022: भावनाओं के साथी- भाग 1

जानकी को आज सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. सिरदर्द और बदनदर्द के साथ ही कुछ हरारत सी महसूस हो रही थी. उन्होंने सोचा कि शायद काम की थकान की वजह से ऐसा होगा. सारे काम निबटातेनिबटाते दोपहर हो गई. उन्हें कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था, फिर भी उन्होंने थोड़ा सा दलिया बना लिया. खा कर वे कुछ देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गईं. सिरदर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उन्होंने माथे पर थोड़ा सा बाम मला और आंखें मूंद कर बिस्तर पर लेटी रहीं.

आज उन्हें अपने पति शरद की बेहद याद आ रही थी. सचमुच शरद उन का कितना खयाल रखते थे. थोड़ा सा भी सिरदर्द होने पर वे जानकी का सिर दबाने लगते. अपने हाथों से इलायची वाली चाय बना कर पिलाते. उन के पति कितने अधिक संवेदनशील थे. सोचतेसोचते जानकी की आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू जब गालों पर लुढ़के तो उन्हें आभास हुआ कि तन का ताप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. उन्होंने थर्मामीटर लगा कर देखा तो पारा 103 डिगरी तक पहुंच गया था. जैसेतैसे वे हिम्मत जुटा कर उठीं और स्वयं ही ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखने लगीं. उन्होंने सोचा कि अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं रहेगा. रात हो गई है. अच्छा यही होगा कि वे कल सुबह अस्पताल चली जाएं.

कुछ सोचतेसोचते उन्होंने अपने बेटे नकुल को फोन लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो मम्मी, आप ने कैसे याद किया? सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटे, मुझे काफी तेज बुखार है. यदि तुम आ सको तो किसी अच्छे अस्पताल में भरती करा दो. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही,’’ जानकी ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मम्मी, मेरी तो कल बहुत जरूरी मीटिंग है. कुछ बड़े अफसर आने वाले हैं. मैं लतिका को ही भेज देता पर नवल की भी तबीयत ठीक नहीं है,’’ नकुल ने अपनी लाचारी प्रकट की, ‘‘आप नीला को फोन कर के क्यों नहीं बुला लेतीं. उस के यहां तो उस की सास भी है. वह 1-2 दिन घर संभाल लेगी. प्लीज मम्मी, बुरा मत मानिएगा, मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिएगा.’’

जानकी ने बेटी नीला को फोन लगाया तो प्रत्युत्तर में नीला ने जवाब दिया, ‘‘मम्मी, मेरा वश चलता तो मैं तुरंत आप के पास आ जाती पर इस दीवाली पर मेरी ननद अमेरिका से आने वाली है, वह भी 3 सालों बाद. मुझे काफी तैयारी व खरीदारी करनी है. यदि कुछ कमी रह गई तो मेरी सास को बुरा लगेगा. आप नकुल भैया को बुला लीजिए. मेरी कल ही उन से बात हुई थी. कल शनिवार है, वे वीकएंड में पिकनिक मनाने जा रहे हैं. पिकनिक का प्रोग्राम तो फिर कभी भी बन सकता है.’’

जानकी बेटी की बात सुन कर अवाक् रह गईं. कितनी मायाचारी की थी उन के पुत्र ने अपनी जन्मदात्री से पर उन्होंने जाहिर में कुछ भी नहीं कहा. उन्होंने अब कल सुबह होते ही ऐंबुलैंस बुला कर अकेले ही अस्पताल जाने का निर्णय लिया. उन की महरी रधिया सुबह जल्दी ही आ जाती थी. उस की मदद से जानकी ने कुछ आवश्यक वस्तुएं रख कर बैग तैयार किया और अस्पताल चली गईं.

वे बुखार से कांप रही थीं. उन्हें कुछ जरूरी फौर्म भरवाने के बाद तुरंत भरती कर लिया गया. बुखार 104 डिगरी तक पहुंच गया था. डाक्टर ने बुखार कम करने के लिए इंजैक्शन लगाया व कुछ गोलियां भी खाने को दीं. पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था. उन के खून की जांच करने के लिए नमूना लिया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि उन्हें डेंगू है. उन की प्लेटलेट्स काउंट कम हो रही थीं. अब डेंगू का इलाज शुरू किया गया.

डाक्टर ने जानकी से कहा, ‘‘आप अकेली हैं. अच्छा यही होगा कि जब तक आप बिलकुल ठीक नहीं हो जातीं, अस्पताल में ही रहिए.’’

2 दिन बाद एक बुजुर्ग सज्जन ने नर्स के साथ उन के कमरे में प्रवेश किया. उन के हाथ में फूलों का बुके व कुछ फल थे. जानकी ने उन्हें पहचानने की कोशिश की. दिमाग पर जोर डालने पर उन्हें याद आया कि उक्त सज्जन को उन्होंने सवेरे घूमते समय पार्क में देखा था. वे अकसर रोज ही मिल जाया करते थे पर उन दोनों में कभी कोई बात नहीं हुई थी.

तभी उन सज्जन ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं हूं नवीन गुप्ता. आप की कालोनी में ही रहता हूं. रधिया मेरे यहां भी काम करती है. उसी से आप की तबीयत के बारे में पता चला और यह भी कि आप बिलकुल अकेली हैं. इसलिए आप को देखने चला आया.’’

जानकी ने फलों की तरफ देख कर कमजोर आवाज में कहा, ‘‘इन की क्या जरूरत थी?’’

‘‘अरे भाई, आप को ही तो इस की जरूरत है, तभी तो आप जल्दी स्वस्थ हो कर घर लौट पाएंगी,’’ कहने के साथ ही नवीनजी मुसकराते हुए फल काटने लगे.

जानकी को बहुत संकोच हो रहा था पर वे चुप रहीं.

अब तो रोज ही नवीनजी उन्हें देखने अस्पताल आ जाते. साथ में फल लाना न भूलते. उन का खुशमिजाज स्वभाव जानकी को अंदर ही अंदर छू रहा था.

करीब 8 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. शाम तक वे घर वापस आ गईं. वे अभी रात के खाने के बारे में सोच ही रही थीं कि तभी नवीनजी डब्बा ले कर आ गए.

जानकी सकुचाते हुए बोलीं, ‘‘आप ने नाहक तकलीफ की. मैं थोड़ी खिचड़ी खुद ही बना लेती.’’

नवीनजी ने खाने का डब्बा खोलते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जानकीजी, वही तो मैं लाया हूं, लौकी की खिचड़ी. आप खा कर बताइएगा कि कैसी बनी? वैसे एक राज की बात बताऊं, खिचड़ी बनाना मेरी पत्नी ने मुझे सिखाया था. वह रसोई के काम में बड़ी पारंगत थी. वह खिचड़ी जैसी साधारण चीज को भी एक नायाब व्यंजन में बदल देती थी,’’ कहने के साथ ही वे कुछ उदास से हो गए. इस दुनिया से जा चुकी पत्नी की याद उन्हें ताजा हो आई.

जीवनसाथी के बिछोह का दुख वे जानती थीं. उन्होंने नवीनजी के दर्द को महसूस किया व तुरंत प्रसंग बदलते हुए पूछा, ‘‘नवीनजी, आप के कितने बच्चे हैं और कहां पर हैं?’’

‘‘मेरे 2 बेटे हैं व दोनों अमेरिका में ही सैटल हैं,’’ उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया फिर उठते हुए बोले, ‘‘अब आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं.’’

जानकी को लगा कि उन्होंने नवीनजी की कोई दुखती रग को छू लिया है. वे अपने बेटों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहते.

अब तो अकसर नवीनजी जानकी के यहां आने लगे. वे लोग कभी देश के वर्तमान हालत पर, कभी समाज की समस्याओं पर और कभी टीवी सीरियलों के बारे में चर्चा करते पर अपनेअपने परिवार के बारे में दोनों ने कभी कोई बात नहीं की.

एक दिन नवीनजी और जानकी एक पारिवारिक धारावाहिक के विषय में बात कर रहे थे जिस में एक स्त्री के पत्नी व मां के उज्ज्वल चरित्र को प्रस्तुत किया गया था. नवीनजी अचानक भावुक हो उठे. वे आर्द्र स्वर में बोले, ‘‘मेरी पत्नी केसर भी एक आदर्श पत्नी और मां थी. अपने पति व बच्चों का सुख ही उस के जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता थी. अपने बच्चों की एक खुशी के लिए अपनी हजारों खुशियां न्योछावर कर देती थी. उस के प्रेम को व्यवहार की तुला का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था. दोनों बेटे पढ़ाई में बहुत ही मेधावी थे.

‘‘दोनों ने ही कंप्यूटर में बीई किया और एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब करने लगे. केसर के मन में बहू लाने के बड़े अरमान थे. वह अपने बेटों के लिए अपने ही जैसी, गुणों से युक्त बहू लाना चाहती थी. पर बड़े बेटे ने अपने ही साथ काम करने वाली एक ऐसी विजातीय लड़की से प्रेमविवाह कर लिया जो मेरी पत्नी के मापदंडों के अनुरूप नहीं थी. उसे बहुत दुख हुआ. रोई भी. फिर धीरेधीरे समय के मलहम ने उस के घाव भरने शुरू कर दिए.

Mother’s Day Tips in Hindi: मदर्स डे के लिए 10 टिप्स हिंदी में

हमारे जीवन का सबसे जरूरी हिस्सा मां होती है, जो हमसे बिना स्वार्थ का रिश्ता निभाती है. वह हमारे खुशी में खुश होती है और दुख में हमसे ज्यादा दुखी… तो इस मदर्स डे हम लेकर आए हैं, मां अपना और अपने बच्चों का कैसे ख्याल रखें… पढ़ें सरिता की Mother’s Day Tips in Hindi.

1.Mother’s Day 2022: बच्चा जब लेना हो गोद

mother tips

वे जमाने लद गए जब बच्चों को सिर्फ बांझपन की वजह से ही गोद लिया जाता था. जो बच्चे गोद लिए जाते थे वे भी परिवार के ही किसी सदस्य के होते थे. धीरेधीरे इन नियमों में बदलाव हुआ है. अब दंपती बच्चों को अनाथाश्रम से भी गोद लेने लगे हैं. हां, इस दिशा में एक नया चलन शुरू हुआ है, वह है ‘सिंगल पेरैंटिंग’ का. अब कोई भी अविवाहित पुरुष या स्त्री भी बच्चा गोद ले सकता है.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

2. Mother’s Day 2022: बदल रहा मां का लाडला, आखिर क्या है वजह?

mother tips in hindi

पहले अधिकतर और अब भी कहींकहीं हमारे समाज में मांएं बेटों से घर में कोई काम नहीं करवातीं हैं. यह एक अतिरिक्त स्नेह होता है, जिसे वे बेटियों से चुरा कर बेटों पर लुटाती हैं. पर सच पूछा जाए तो ऐसी मानसिकता उन्हें अपने बेटों का सब से बड़ा दुश्मन ही बनाती है. एक ओर तो वे बेटियों को आत्मनिर्भरता का पाठ सिखा एक ऐसी शख्शीयत के रूप में तैयार करती हैं, जो हर परिस्थिति में सैट हो जाती हैं, अपने छोटेमोटे काम निबटा लेती हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन के  लाड़ले के हाथपांव फूलने लगते हैं जब उस की बीवी मायके जाती है, क्योंकि उसे खाना बनाना तो दूर खुद निकाल कर खाना भी शायद ही आता हो. ऐसी मांएं अपने बेटों की दुश्मन ही हुईं न?

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

3. Mother’s Day 2022: मां की डांट, बेटी का गुस्सा

mother tips in hindi

बेटी को ले कर मां उस के बचपन से ही ओवर प्रोटैक्टिव होती है. मां नहीं चाहती जो परेशानी उस ने झेली, वह उस की बेटी भी झेले. यही कारण है कभी प्यार तो कभी डांट के जरिए वह बेटी को अपनी बात समझाती है. इस अनमोल रिश्ते की अहमियत मांबेटी दोनों को समझनी चाहिए.

अकसर बच्चे अपनी मां के सब से करीब होते हैं. उन के लिए मां सब से ऊपर होती हैं. लेकिन फिर भी मां की जरा सी डांट उन्हें गुस्से से आगबबूला कर देती है. मां और बेटी का रिश्ता घर में सब से अनूठा होता है. वे एकदूसरे के बाल बनाती हैं, साथ शौपिंग करती हैं, एकदूसरे को सौंदर्य टिप्स देती हैं और बीमार होने पर एकदूसरे का खयाल भी रखती हैं.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

4. Mother’s Day 2022: बेटी की विदाई, मां की नई पारी

mother tips in hindi

मिसेज कौशिक इस बात से काफी खुश थीं कि उन की बेटी की शादी शहर के सब से बड़े इंजीनियर से हो रही है. वे जोरशोर से शादी की तैयारियां कर रही थीं ताकि शादी के दिन किसी चीज की कमी न हो, खुशियों की रोशनी से घर जगमगा उठे. पर मिसेज कौशिक को कहां पता था कि जिस घर को वे इतने प्यार से सजा रही हैं वह घर बेटी की विदाई के बाद इस कदर सूना हो जाएगा कि अकेलापन उन्हें काटने को दौड़ेगा.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

5. Mother’s Day 2022: 40+ महिलाओं के लिए बेस्ट हेल्थ टिप्स

mother tips in hindiउम्र का एक ऐसा पड़ाव आता है जब महिलाएं प्रजनन की उम्र को पार कर रजोनिवृत्ति की ओर कदम बढ़ाती हैं. यह उम्र का नाजुक दौर होता है जब शरीर कई बदलावों से गुजरता है. इस में ऐस्ट्रोजन हारमोन का लैवल कम होने से हड्डियों की कमजोरी, टेस्टोस्टेरौन हारमोन के कम होने के कारण मांसपेशियों की कमजोरी तथा वजन बढ़ने से मधुमेह व उच्च रक्तचाप होने की संभावना बढ़ जाती है.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

6. Mother’s Day 2022: लेबर पेन को कहें अलविदा

health

हर औरत के लिए मातृत्व सुख सब से बड़ा सपना होता है. इस के लिए वह किसी भी तकलीफ, सर्जरी या अन्य चिकित्सीय विकल्पों को आजमाने के लिए सहर्ष तैयार हो जाती है. अगर डिलिवरी आसानी से बिना किसी चीरफाड़ के हो जाए तो वह उस औरत के लिए एक खुशनुमा मौका होता है. हालांकि ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को प्रसव के समय होने वाले दर्द व अन्य तकलीफों को ले कर थोड़ी चिंता रहती है, लेकिन चिकित्सा ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब न तो डिलिवरी के लिए दाई के भरोसे रहना पड़ता है और न ही तकलीफें भरी रातें गुजारनी पड़ती हैं. वह समय गया जब प्रसव के दिनों में गांव की दाई गरम पानी के सहारे डिलिवरी करवाती थी और कौंप्लिकेशन की स्थिति में कई बार महिला की जान पर भी बन आती थी.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

7. Mother’s Day 2022: सही खानपान और पोषण से रोकें PCOS का खतरा

mother tips in hindi

आमतौर पर संक्षेप में पीसीओएस यानी पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम कही जाने वाली समस्या हार्मोन की गड़बड़ी है, जो मुख्य रूप से प्रजनन आयु की महिलाओं को प्रभावित करती है. यह एक मुश्किल स्थिति है जिस के चलते एक या दोनों अंडाशय बड़े हो जाते हैं और इन के बाहरी किनारों पर छोटी गांठें होती हैं.

पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को अकसर या लंबे समय तक मासिक हो सकता है या उन में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) का स्तर ज्यादा हो सकता है. इस के अलावा, अंडाशय में ढेरों तरल पदार्थ छोटी मात्रा में इकट्ठे हो सकते हैं और संभव है इस कारण नियमित रूप से अंडे जारी न हों.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

8. Mother’s Day 2022: महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

mother tips in hindi

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन या यूटीआई (यह ट्रैक्ट शरीर से मुख्यरूप से किडनी, यूरेटर ब्लैडर और यूरेथरा से मूत्र निकालता है) एक प्रकार का विषाणुजनित संक्रमण है. यह ब्लैडर में होने वाला सब से सामान्य प्रकार का संक्रमण है लेकिन कई बार मरीजों को किडनी में गंभीर प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है जिसे पाइलोनफ्रिटिस कहते हैं.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

9. Mother’s Day 2022: बच्चों में डालें बचत की आदत

mother tips in hindi

पटना की रहने वाली शालिनी इस बात को ले कर अकसर टैंशन में रहती हैं कि नोएडा में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा उन का बेटा दिलीप हर महीने जरूरत से ज्यादा रुपए खर्च कर देता है. उस के कालेज, होस्टल और मैस की पूरे सालभर की फीस तो एक बार ही जमा कर दी जाती है. इस के बाद भी मोबाइल रिचार्ज कराने, इंटरनैट पैक डलवाने, होटलों में खाने, पिक्चर देखने और डिजाइनर कपड़े आदि खरीदने में वह 8-10 हजार रुपए अलग से खर्चकर देता है. वे बेटे के बैंक अकाउंट में इतने रुपए रख देती हैं कि वक्तबेवक्त उस के काम आ सके, लेकिन वह सारे रुपए निकाल कर अंटशंट कामों में खर्च कर डालता है. उन्होंने कई बार अपने बेटे को फुजूलखर्च बंद करने के बारे में समझाया. कई दफे शालिनी के पति ने भी बेटे को डांटफटकार लगाई, पर वह अपनी फुजूलखर्ची की आदत से बाज नहीं आ रहा है.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

10. Mother’s Day 2022: नई मांओं के लिए टिप्स

mother tips in hindi

बच्चा अगर छोटा है और रो रहा है तो मां के लिए यह समझ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि उसे क्या चाहिए. ऐसे में परेशान होने के बजाय मां को खुद ही यह समझना होता है कि उसे किस समय किस चीज की जरूरत होती है. आप को ही इन सब बातों के लिए पहले से ही कौन्फिडैंट होना चाहिए ताकि बच्चे की परवरिश अच्छी तरह से हो सके.

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

Mother’s Day 2022: गर्मी का मौसम और दिल की बीमारी  

गर्मी क्यों लगती है

जैसा कि हम जानते हैं पानी ऊंचे से नीचे की तरफ बहता  है उसी तरह ताप यानि हीट का बहाव भी ज्यादा तापमान से कम तापमान की तरफ होता है .अगर बाहर का तापमान बॉडी टेम्परेचर से अधिक है तो हीट हमारे शरीर के अंदर जायेगा और हमें गर्मी महसूस होगी  . शरीर को ठंढा रखने के लिए ह्रदय की गति बाढ़ जाती है जिस के  चलते हार्ट को ज्यादा काम करना पड़ता है  .

गर्मी का दिल  पर असर

शरीर को ठंढा रखने के लिए शरीर से पसीना आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है  .पसीने के साथ नमक और कुछ मिनरल्स और प्रोटीन भी शरीर से बाहर निकलते हैं   . ये मांसपेशियों के संकुचन और एलेक्ट्रॉलीट के संतुलन के लिए जरूरी होते हैं  . इन्हें  रोकने के लिए कुछ  हार्मोन्स बनते हैं ताकि मिनरल और वाटर बैलेंस बना रहे  . पसीना के इवैपोरेट करने से कुछ ठंढक मिलती है पर आद्रता या  ह्यूमिडिटी बढ़ने से भाप बनना भी मुश्किल हो जाता है  . इस दौरान रक्त का बहाव त्वचा की ओर ज्यादा होता है और  हृदय की गति तेज हो जाती है  .  उसे ज्यादा ब्लड पंप करना पड़ता है   .

इसके अतिरिक्त ऐसे रोगी को अक्सर डाइयुरेटिक दवा लेनी होती है जिससे शरीर से द्रव बाहर निकलता है  . कुछ सामान्य दिल की दवाएं , ACE इन्हिबिटर , कैल्शियम चैनल ब्लॉकर , बेटा ब्लॉकर आदि के चलते हार्ट  बीट कम हो जाती है  . गर्मी से लड़ने के लिए दिल को ज्यादा खून नहीं मिल पाता है और शरीर को तापमान के अनुकूल एडजस्ट करने में कठिनाई होती है   . कुछ दवाओं के असर से सूर्य के प्रकाश में संवेदनशीलता बढ़ जाती है या त्वचा पर प्रतिकूल असर पड़ता है . कुल मिला कर गर्मी के मौसम में दिल पर अतिरिक्त दबाव रहता है  .पर दिल के रोगी आसानी से इसके अनुकूल बनने में सक्षम नहीं होते हैं और उन में  हीट स्ट्रोक या लू लगने या गर्मी संबंधी अन्य कठिनाईयों की संभावना ज्यादा होती है   .

स्ट्रोक , पार्किंसन , अल्ज़ाइमर , डायबिटीज जैसे रोग हालात को और बदतर बना देते हैं  .ऐसे में डिहाइड्रेशन रोकने के लिए ब्रेन का रेस्पोंस बहुत कम हो जाता है  . डिहाइड्रेशन और त्वचा के लिए अतिरिक्त खून की सप्लाई के बोझ से ब्लड प्रेशर कम हो सकता है और चक्कर आने से गिरने का खतरा बना रहता है  .

गर्मी में होनेवाली तकलीफ

सरदर्द , बुखार , उल्टी  या मिचली , डिहाइड्रेशन , चक्कर आना , थकावट या कमजोरी , कंफ्यूजन और मांसपेशियों में ऐंठन  .

 गर्मी से बचने के लिए  क्या करें

सबसे पहली बात यह है कि अपनी दवाएं यथावत लेते रहें और जब तक आवश्यक न हो घर से बाहर न निकलें  . बाहर निकलना जरूरी हो तो सामान्यतः 10 से 3 बजे तक , जब तापमान अधिकतम रहता है , के समय न ही निकलें  . अगर  बाहर निकलना ही पड़े तो सावधानी बरतें  . थोड़ी दूर चल  कर किसी शेड में आराम कर फिर आगे चलें  .

गर्मी के अनुकूल सूती हल्के रंग के  हल्के कपड़े पहनें  . कुछ सिंथेटिक कपड़े भी पसीने का प्रतिरोध ( रिपेल ) करते हैं , उन्हें भी पहन सकते हैं  .सन स्क्रीन ,  सनग्लासेज  और  हैट या छाते का इस्तेमाल करें  . पैरों से अक्सर ज्यादा पसीना निकलता है  . उसी के अनुकूल जूते और मोज़े पहनें  . फुट पाउडर या एंटीएस्पिरेंट्स का प्रयोग करें  .

बिना डॉक्टर की सलाह के कोई नया व्यायाम या स्पोर्ट्स  शुरू न करें  . 

डिहाइड्रेशन से बचें  .इससे बचने के लिए बढ़े तापमान और आद्रता में घर के अंदर भी ( अगर वातानुकूल नहीं है ) काफी पानी पियें  . डॉक्टर्स का कहना है कि प्यास न महसूस होने पर भी कम से कम 8 गिलास पानी पीना चाहिए . अगर कोई स्पोर्ट्स या व्यायाम में भाग ले रहे हों तब और ज्यादा पानी पीना चाहिए  .

हत्यारे प्रेमी बने गुनाहगार

स्नेहलता और अमित पारले का प्यार कालेज के समय का था, जो उन दोनों की अलगअलग शादी हो जाने के बाद भी जारी रहा.  अपर सत्र न्यायालय (चतुर्थ) देहरादून के में उस दिन काफी गहमागहमी का माहौल था. अनेक अधिवक्ता न्यायालय में तेजी से आ रहे थे तथा वे पेशकार से अपनेअपने मुकदमों की तारीखों की बाबत जानकारी ले कर वापस लौट रहे थे. वह दिन कुछ इसलिए भी खास था कि उस दिन देहरादून में हुई एक शिक्षक किशोर चौहान की हत्या के बहुचर्चित मामले में न्यायालय में फैसला सुनाया जाना था.

3 साल पहले हुई शिक्षक की हत्या के आरोप में पुलिस ने शिक्षक की पत्नी शिक्षिका स्नेहलता व उस के प्रेमी सिपाही अमित पारले पर आरोप लगाते हुए न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की थी. इस हत्याकांड की विवेचना एक थानेदार सहित 2 पुलिस इंसपेक्टर कर चुके थे. पुलिस के आला अधिकारियों ने भी इस हत्याकांड की विवेचना में मानीटरिंग की थी.

पुलिस के आला अधिकारी यह चाहते थे कि शिक्षक किशोर चौहान की हत्या की विवेचना निष्पक्ष हो, हत्या के इस मामले में किसी निर्दोष को सजा न मिले. इस हत्याकांड की जांच एक इंसपेक्टर चंद्रभान अधिकारी ने भी की थी. श्री अधिकारी पूर्व में सीबीआई देहरादून में कुछ वर्ष कार्य कर चुके थे.

तभी कोर्ट में सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) जयकृष्ण जोशी भी आ गए थे. जोशी ने आ कर पहले कोर्ट की काररवाई की तैयारी की बाबत पेशकार से बात की. इस के बाद अदालत में किशोर चौहान की हत्या के मामले के आरोपियों स्नेहलता व सिपाही अमित पारले को भी जेल से लाया गया था. कटघरे में उन दोनों के चेहरों पर हवाइयां उड़ी हुई थीं.

कुछ समय बाद अदालत में बचाव पक्ष के अधिवक्तागण यशपाल सिंह पुंडीर व विवेक गुप्ता भी पहुंच गए थे. इस के बाद इन दोनों अधिवक्ताओं ने वहां मौजूद आरोपियों स्नेहलता व अमित पारले से उन के कानों में कुछ बातें की तथा उन्हें कुछ आश्वासन भी दिया.

इस के बाद कोर्ट में थाना रायपुर की पुलिस तथा कुछ पत्रकार भी पहुंच गए थे. वे सभी कोर्ट की काररवाई शुरू होने का इंतजार करने लगे.

उस समय 10 बज रहे थे. तभी न्यायालय में अपर सत्र न्यायिक मजिस्ट्रैट चंद्रमणि राय आ गए थे. उन के आने पर वहां मौजूद अधिवक्ताओं व पुलिस वालों ने उन्हें अभिवादन किया था.

इस के बाद वहां पर मजिस्ट्रैट ने कोर्ट की काररवाई शुरू करने के आदेश दिए. तभी कोर्ट में तैनात दोनों कोर्ट मोहर्रिर सावधान हो कर खड़े हो गए थे.

इस दौरान पेशकार का संकेत पा कर अर्दली ने कोर्ट के गेट पर आवाज लगाई कि राज्य बनाम स्नेहलता व अमित हाजिर हो. किशोर चौहान की हत्या के मुकदमे में वादी किशोर चौहान के भाई आनंद चौहान तथा प्रतिवादियों स्नेहलता व अमित पारले के बयान पूर्व में ही दर्ज हो चुके थे तथा इस प्रकरण में अभियोजन पक्ष व बचाव पक्ष के अधिवक्तागण पूर्व में बहस भी कर चुके थे.

सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपियों स्नेहलता व उस के प्रेमी सिपाही अमित पारले ने अपने बयानों में कोर्ट में खुद को निर्दोष बताया था. अभियोजन पक्ष ने इस मुकदमे की जोरदार पैरवी करते हुए आरोपियों के खिलाफ 36 गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज कराए थे.

देहरादून के थाना रायपुर में किशोर चौहान हत्याकांड का मुकदमा 17 जून, 2018 को आईपीसी की धाराओं 302, 201 व 120 के तहत दर्ज हुआ था.

इस मामले के वादी किशोर चौहान के भाई आनंद चौहान ने रायपुर पुलिस को सूचना दी थी कि गत 15 जून, 2018 की रात 8 बजे मेरा भाई किशोर चौहान अपनी पत्नी स्नेहलता के साथ अपनी वैगनआर कार द्वारा घूमने के लिए घर से निकला था.

उस वक्त कार स्नेहलता चला रही थी. आराघर चौकी से 20 मीटर आगे किशोर चौहान ने कार को रुकवाया था और स्नेहलता को कोल्ड ड्रिंक लाने के लिए भेजा था. जब स्नेहलता कोल्ड ड्रिंक ले कर पैदल आई थी तो तब तक किशोर चौहान वहां से जा चुका था. इस के बाद स्नेहलता ने इस की सूचना अपने परिजनों को फोन कर के दी थी व किशोर को आसपास तलाश किया था.

रात 9 बज कर 10 मिनट पर स्नेहलता का फोन किशोर ने रिसीव किया और कहा कि तुम परेशान मत हो, मैं आ जाऊंगा. इस के बाद स्नेहलता ने यह सूचना अपनी जेठानी को देनी चाही तो जेठानी का मोबाइल बंद मिला.

इस के बाद 16 जून, 2018 की सुबह को थाना रायपुर पुलिस ने किशोर के भाई आनंद को सूचना दी कि तुम्हारे भाई किशोर चौहान रिंग रोड किसान भवन के पास अपनी कार में मृत मिले हैं. इस सूचना पर किशोर के घर वाले मौके पर पहुंचे थे.

रायपुर पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के शव पोस्टमार्टम के लिए दून अस्पताल भेज दिया था और आनंद चौहान की ओर से किशोर की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

मुकदमा दर्ज होने के बाद इस प्रकरण की जांच थानेदार मनोज रावत को सौंप दी गई थी. किशोर की मौत का मामला बेहद पेचीदा था.

अत: श्री रावत ने कोतवाल हेमेंद्र नेगी के निर्देश पर मृतक किशोर व उस की पत्नी स्नेहलता के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. अगले दिन दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स उन्हें मिल गई.

शिक्षक किशोर चौहान की मौत के मामले को किशोर के भाई आनंद सहित उन के परिजन साजिश के तहत हत्या बता रहे थे तथा इस हत्या का आरोप वे स्नेहलता व उस के प्रेमी सिपाही अमित पारले पर लगा रहे थे. पुलिस भी इस मामले में सबूत एकत्र कर रही थी.

सबूत एकत्र करने के बाद ही पुलिस ने इस मामले में स्नेहलता व अमित पारले के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेजी थी. पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद स्नेहलता को शिक्षा विभाग ने भी निलंबित कर दिया था.

तभी अदालत में सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) जयकृष्ण जोशी ने न्यायिक मजिस्ट्रैट महोदय से किशोर चौहान की हत्या के मामले में आरोपियों स्नेहलता व सिपाही अमित पारले को कठोर दंड देने का अनुरोध किया.

जोशी ने कहा कि दोनों आरोपियों पर दोष सिद्ध हो चुका है तथा उन्होंने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया है इसलिए वे दोनों कठोर दंड पाने के अधिकारी हैं.

इस के बाद जैसे ही मजिस्ट्रैट महोदय ने किशोर हत्याकांड में फैसला सुनाना शुरू किया तो अदालत में सन्नाटा छा गया.

मजिस्ट्रैट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत किए सबूतों व गवाहों की गवाही से यह सिद्ध होता है कि शिक्षक किशोर चौहान की साजिश के तहत हत्या स्नेहलता व सिपाही अमित पारले द्वारा ही की गई थी. दोनों के द्वारा यह गंभीर प्रकृति का अपराध किया गया है.

दोनों ही आरोपी पढ़ेलिखे हैं. वे अपराध की गंभीरता व परिणाम से पूर्णतया वाकिफ हैं. अत: दोषसिद्ध अभियुक्तगण स्नेहलता चौहान व अमित पारले प्रत्येक को धारा 302, 120बी भादंसं 1860 के आरोप में आजीवन कारावास एवं 25 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने पर अभियुक्तगण 4-4 माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भोगेंगे.

दोषसिद्ध अभियुक्तगण स्नेहलता चौहान व अमित पारले को धारा 201 भादंसं 1860 के आरोप में 5 साल के कठोर कारावास एवं 10 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने पर अभियुक्तगण 3-3 माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भोगेंगे.

सभी सजाएं साथसाथ चलेंगीं. अभियुक्तगण के द्वारा जांच के दौरान जेल में बिताई गई अवधि सजा में समायोजित की जाएगी. न्यायिक अभिरक्षा में न्यायालय में उपस्थित अभियुक्तगणों का वारंट बना कर उन्हें सजा भुगतने के लिए जिला कारागार देहरादून भेजा जाए.

अदालत के इस फैसले की एक एक प्रति अभियुक्तगणों को अविलंब नि:शुल्क दी जाए. यदि अपील होती है तो माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन हो.

अदालत के इस फैसले को सुन कर स्नेहलता व अमित पारले की आंखों में आंसू छलक आए. ऐसा लग रहा था कि उन दोनों को अपने किए पर पछतावा हो रहा था.

कुछ ऐसा भी था कि वे दोनों अभी तक विचाराधीन कैदी थे, मगर अदालत के इस फैसले के बाद वे सजायाफ्ता कैदी बन गए थे. 2 सितंबर, 2021 को सजा सुनने के बाद उन दोनों को देहरादून जेल ले जाया गया.

अपने प्रेमी सिपाही के साथ मिल कर अपने शिक्षक पति की हत्या करने वाली शिक्षिका स्नेहलता की कहानी इस प्रकार है.

वर्ष 1999 में स्नेहलता की पहली मुलाकात अमित पारले निवासी कावली रोड देहरादून से हुई थी. उस वक्त अमित डीएवी कालेज से बीए कर रहा था, जबकि स्नेहलता डीबीएस पीजी कालेज से बीएससी कर रही थी. पढ़ाई के दौरान दोनों में काफी घनिष्ठता बढ़ गई थी.

वर्ष 2000 में अमित भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) में भरती हो गया था, जबकि स्नेहलता आगे की पढ़ाई करती रही. कुछ समय बाद अमित पारले ने आईटीबीपी से इस्तीफा दे दिया था और उत्तराखंड पुलिस में भरती हो कर हरिद्वार आ गया.

पढ़ाई के बाद स्नेहलता की बतौर शिक्षक नौकरी लग गई थी तथा उस की शादी शिक्षक किशोर चौहान के साथ हो गई थी. उस वक्त स्नेहलता राजकीय

इंटर कालेज शिवाली घाट ऊखीमठ रुद्रप्रयाग में तैनात थी तथा किशोर चौहान जीआईसी सजवाण कांडा देवप्रयाग में तैनात थे.

इस के बाद स्नेहलता 2 बच्चों की मां बन गई थी. अमित पारले से स्नेहलता की अकसर बातें होती रहती थीं. वर्ष 2004 में अमित पारले की भी शादी हो गई थी तथा वर्तमान में वह 2 बेटियों व एक बेटे का बाप है.

इस के बाद स्नेहलता व अमित पारले का प्यार परवान चढ़ने लगा था. अकसर अमित पारले जब स्नेहलता से मिलने आता था तो वह किशोर चौहान से भी श्चमिलता था.

जब किशोर चौहान को स्नेहलता व अमित पारले के प्रेम संबंधों की जानकारी हुई थी, तो उन्होंने इस का विरोध किया था. जब स्नेहलता किशोर चौहान के समझाने पर भी नहीं मानी तो परेशान हो कर किशोर चौहान डिप्रेशन में रहने लगे थे और शराब को ही उन्होंने अपना सहारा बना लिया था. 15 जून, 2018 को घटना वाले दिन स्नेहलता खुद कार चला कर अपने पति को रिंग रोड पर ले कर पहुंची थी. बाद में अगले दिन सुबह किशोर चौहान कार में मृत मिले थे.

किशोर चौहान के भाई आनंद चौहान ने किशोर की मौत का मुकदमा थाना रायपुर में दर्ज कराया था और उन की मौत का शक उन की पत्नी स्नेहलता व उस के प्रेमी सिपाही अमित पारले पर जताया था.

मामले की जांच थानेदार मनोज रावत तथा कोतवाल हेमेंद्र नेगी द्वारा की गई थी. इस दौरान पुलिस ने स्नेहलता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई थी.

किशोर चौहान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण दम घुटना तथा शरीर पर लगी चोटें बताया गया था. इस के बाद किशोर चौहान की मौत के मामले में एसओजी टीम के प्रभारी पी.डी. भट्ट को लगाया गया था.

पी.डी. भट्ट ने जब स्नेहलता के फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो उन्हें किशोर चौहान की मौत से 2 दिन पहले आई एक काल पर संदेह हुआ था.

जब उन्होंने काल करने वाले की लोकेशन निकाली तो उन्हें जानकारी हुई कि यह काल हरिद्वार के कुशल कुमार ड्राइवर द्वारा की गई थी.

इस के बाद जब पी.डी. भट्ट हरिद्वार जा कर कुशल कुमार ड्राइवर से मिले, तो उस ने भट्ट को यह जानकारी दी कि यह मोबाइल मेरे नाम से अवश्य है, मगर इस मोबाइल को सिपाही अमित पारले द्वारा चलाया जाता है.

इस के बाद भट्ट ने सिपाही अमित पारले को रोशनाबाद हरिद्वार से गिरफ्तार कर लिया था और उसे ले कर देहरादून एसओजी कार्यालय आ गए थे. यहां पर भट्ट व एसओजी सिपाही आशीष शर्मा ने किशोर चौहान की मौत के मामले में अमित पारले से पूछताछ की थी.

पहले तो अमित पारले ने पूछताछ के दौरान श्री भट्ट को गच्चा देने का प्रयास किया था, मगर जब भट्ट ने अमित से तारीखों के अनुसार तथा उस की लोकेशन के अनुसार पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने पुलिस के सामने किशोर चौहान की मौत का सच उगल दिया.

अमित पारले ने पुलिस को बताया कि वह 8 जून, 2018 को देहरादून की त्यागी रोड स्थित एक होटल में स्नेहलता के साथ आ कर ठहरा था. होटल में हम दोनों ने किशोर चौहान की हत्या की साजिश रची थी.

घटना वाले दिन यानी 15 जून, 2018 को वह अपने दोनों मोबाइल फोन हरिद्वार स्थित घर पर छोड़ कर गया था, जिस से उस की लोकेशन देहरादून की न मिल सके. घटना वाले दिन जब स्नेहलता

रात को कोल्ड ड्रिंक लेने गई थी तो अपने पति को कार सहित उस के हवाले कर गई थी.

इस के बाद उस ने किशोर पर हमला कर के तथा उस का गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. किशोर का मोबाइल भी उस ने पास की झाडि़यों में फेंक दिया था.

स्नेहलता व खुद के बचाव के लिए वह अपने फोन से स्नेहलता के फोन पर कम बात करता था तथा कुशल कुमार ड्राइवर के नाम से खरीदे गए सिम से ही बात करता था, जिस से पुलिस उस की लोकेशन न जान सके. अमित ने हरिद्वार के मोबाइल दुकान संचालक मनीष से कुशल कुमार ड्राइवर की आईडी पर सिम खरीदा था.

दुकान संचालक को अमित ने यह बताया था कि वह अपनी पत्नी के लिए सिम खरीद रहा है. उस सिम का प्रयोग उस ने स्नेहलता से बातचीत के लिए ही किया था.

इस के बाद पुलिस ने अमित पारले के बयान दर्ज कर लिए थे तथा उसी दिन शाम को रायपुर पुलिस ने स्नेहलता को भी किशोर चौहान की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.

स्नेहलता ने अपने बयानों में भी अमित पारले के बयानों का ही समर्थन किया था. 25 जून, 2018 को एसटीएफ की प्रभारी एसएसपी रिद्धिम अग्रवाल ने देहरादून में एक प्रैसवार्ता के दौरान स्नेहलता व अमित पारले को मीडिया के सामने पेश किया और किशोर चौहान हत्याकांड का खुलासा किया था.

रिद्धिम अग्रवाल ने बताया कि जब अमित पारले व स्नेहलता का प्यार परवान चढ़ रहा था तो स्नेहलता ने शिक्षा विभाग से 2 साल की छुट्टी बिना वेतन ले ली थी, जिस से वह अमित पारले के साथ रह सके.

न्यायालय द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद से अमित पारले व स्नेहलता देहरादून जेल में बंद थे. इस के अलावा दोनों की ओर से न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील कर दी गई है.

स्नेहलता को सजा सुनाए जाने के बाद अपर निदेशक, शिक्षा विभाग महाबीर सिंह बिष्ट ने 21 जनवरी, 2022 को शिक्षिका स्नेहलता को बर्खास्त करते हुए उस की सेवा समाप्त कर दी हैं.

(कथा पुलिस सूत्रों व अदालत के फैसले पर आधारित)

पांच साल बाद- भाग 2: क्या स्निग्धा एकतरफा प्यार की चोट से उबर पाई?

सामाजिक और पारिवारिक वर्जनाओं को तोड़ने में उसे मजा आता. समाज के स्थापित मूल्यों की खिल्ली उड़ाना और उन के विपरीत काम करना उस के स्वभाव में शामिल था और प्यार, प्यार से बच कर आज तक इस दुनिया में शायद ही कोई रह पाया हो. प्रेम एक भाव है, एक अनुभूति है, जो मन की सोच और हृदय के स्पंदन से जुड़ा हुआ होता है. प्रेम एक प्राकृतिक अवस्था है, इसलिए इस से बचना बिलकुल असंभव है. परंतु वह किसी से प्यार भी करती थी या नहीं, यह किसी को पता नहीं चला था, क्योंकि वह बहुत चंचल थी और हर बात को चुटकियों में उड़ाना उस का शगल था.

कालेज के दिनों में वह हर तरह की गतिविधियों में भाग लेती थी. खेलकूद, नाटक, साहित्य और कला से ले कर विश्वविद्यालय संगठन के चुनाव तक में उस की सक्रिय भागीदारी होती थी. वह कई सारे लड़कों के साथ घूमती थी और पता नहीं चलता था कि वह पढ़ाई कब करती थी. बहुत कम लड़कियों के साथ उस का उठनाबैठना और घूमनाफिरना होता था, जबकि वह गर्ल्स होस्टल में रहती थी.

एक दिन पता चला कि वह यूनियन अध्यक्ष राघवेंद्र के साथ एक ही कमरे में रहने लगी थी. दोनों ने विश्वविद्यालय के होस्टलों के अपनेअपने कमरे छोड़ दिए थे और ममफोर्डगंज में एक कमरा ले कर रहने लगे थे. उस कालेज के लिए ही नहीं, पूरे शहर के लिए बिना ब्याह किए एक लड़की का एक लड़के के साथ रहने की शायद यह पहली घटना थी. वह छोटा शहर था, परंतु इस बात को ले कर कहीं कोई हंगामा नहीं मचा. राघवेंद्र यूनियन का लीडर था और स्निग्धा के विद्रोही व उग्र स्वभाव के कारण किसी ने खुले रूप में इस की चर्चा नहीं की. स्निग्धा के घर वालों को पता चला या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम, क्योंकि उस के परिवार के लोग फतेहपुर जिले के किसी गांव में रहते थे. उस के पिता उस गांव के एक संपन्न किसान थे.

अगर कहीं कोई हलचल हुई थी तो केवल निशांत के हृदय में जो मन ही मन स्निग्धा को प्यार करने लगा था. वे दोनों सहपाठी थे और एक ही क्लास में पढ़तेपढ़ते पता नहीं कब स्निग्धा का मोहक रूप और चंचल स्वभाव निशांत के मन में घर कर गया था और उस के हृदय ने स्निग्धा के लिए धड़कना शुरू कर दिया था. स्निग्धा के दिल में निशांत के लिए ऐसी कोई बात थी, यह नितांत असंभव था. अगर ऐसा होता तो स्निग्धा राघवेंद्र के साथ बिना शादी किए क्यों रहने लगती?

यह उन दोनों का यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष था. निशांत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. एमए करने के तुरंत बाद उसे नौकरी मिल गई और वह स्निग्धा की छवि को अपने दिल में बसाए दिल्ली चला आया.

निशांत के सिवा किसी को पता नहीं था कि वह स्निग्धा को प्यार भी करता था. 5 साल तक उसे यह भी पता नहीं चला कि स्निग्धा कहां और किस अवस्था में है. उस ने पता करने की कोशिश भी नहीं की, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि स्निग्धा अब न तो किसी रूप में उस की हो सकती थी न उसे कभी मिल सकती थी. दोनों के रास्ते कब के जुदा हो चुके थे.

फिर एक दिन कश्मीरी गेट जाने वाली मैट्रो ट्रेन में वे दोनों आमनेसामने बैठे थे. भीड़ नहीं थी, इसलिए वे एकदूसरे को अच्छी तरह देख सकते थे. पहले तो दोनों सामान्य यात्रियों की तरह बैठे अपनेआप में मग्न थे. लेकिन थोड़ी देर बाद सहज रूप से उन की निगाहें एकदूसरे से टकराईं. पहले तो समझ में नहीं आया, फिर अचानक पहचान के भाव उन की आंखों में तैर गए. लगातार कुछ पलों तक टकटकी बांध कर एकदूसरे को देखते रहे. फिर उन की आंखों में पूर्ण पहचान के साथसाथ आश्चर्य और कुतूहल के भाव जागृत हुए.

निशांत का दिल धड़क उठा, बिलकुल किशोर की तरह, जिसे किसी लड़की से पहली नजर में प्यार हो जाता है. अपनी अस्तव्यस्त सांसों के बीच उस ने अपनी उंगली उस की तरफ उठाई और फिर एकसाथ ही दोनों के मुंह से निकला, ‘आप…’

उन के बीच में कभी अपनत्व नहीं रहा था. एकसाथ एक ही कक्षा में पढ़ते हुए भी कभीकभार ही उन के बीच बातचीत हुई होगी, परंतु उन बातों में न तो आत्मीय मित्रता थी, न प्रगाढ़ता. इसलिए औपचारिकतावश उन के मुंह से एकसाथ ‘आप’ निकला था.

वह अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और उस के नजदीक आ कर बोला, ‘स्निग्धा.’

‘हां,’ वह भी अपनी सीट से उठ कर खड़ी हो गई और उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘मैं तो देखते ही पहचान गई थी.’

‘मैं भी. परंतु विश्वास नहीं होता. आप यहां…?’ उस के मुंह में शब्द अटक गए. गौर से स्निग्धा को देखने लगा. वह कितनी बदल गई थी. पहले और आज की स्निग्धा में जमीनआसमान का अंतर था. उस का प्राकृतिक सौंदर्य विलुप्त हो चुका था. चेहरे का लावण्य, आंखों की चंचलता, माथे की आभा, चेहरे की लाली और होंठों का गुलाबीपन कहीं खो सा गया था. उस के होंठ सूख कर डंठल की तरह हो गए थे. आंखों के नीचे कालीकाली झाइयां थीं, जैसे वह कई रातों से ढंग से सोई न हो. वह पहले से काफी दुबली भी हो गई थी. छरहरी तो पहले से थी, लेकिन तब शरीर में कसाव और मादकता थी.

परंतु अब उस की त्वचा में रूखापन आ गया था, जैसे रेगिस्तान में कई सालों से वर्षा न हुई हो. निशांत को उस का यह रूप देख कर काफी दुख हुआ, परंतु वह उस के बारे में पूछने का साहस नहीं कर सकता था. उन के बीच बस पहचान के अलावा कोई बात नहीं थी. वह भले ही उसे प्यार करता था परंतु उस के भाव उस के मन में थे और मन में ही रह गए थे. क्या स्निग्धा को पता होगा कि वह कभी उसे प्यार करता था? शायद नहीं, वरना क्या वह दूसरे की हो जाती और वह भटकने के लिए अकेला रह जाता.

यह तो वही जानता था कि उस का प्यार अभी मरा नहीं था, वरना अच्छीभली नौकरी मिलने और घर वालों के दबाव के बावजूद वह शादी क्यों न करता? उसे स्निग्धा का इंतजार नहीं था, परंतु एकतरफा प्यार करने की जो चोट उस के दिल पर पड़ी थी उस से अभी तक वह उबर नहीं पाया था और आज स्निग्धा फिर उस के सामने बैठी थी. क्या सचमुच जीवन में…कह नहीं सकता. वह तो आज दोबारा मिली ही है. क्या पता यह मुलाकात क्षणिक हो. कल फिर वह वापस चली जाए. उस के जीवन में तो पहले से ही राघवेंद्र बैठा है. उस ने अपने दिल में एक कसक सी महसूस की.

‘हां, मैं यहां,’ वह बोली. स्निग्धा स्वयं भी निशांत के साथ अकेले में समय बिताने को व्याकुल थी, ‘पर क्या सारी बातें हम ट्रेन में ही करेंगे?’ वह बोली, ‘कहीं बैठ नहीं सकते?’

‘क्या इतनी फुरसत है आप के पास? मैं तो औफिस से छुट्टी कर लेता हूं.’

‘हां, अब मेरे पास फुरसत ही फुरसत है. बस, कुछ देर के लिए बाराखंबा रोड के एक औफिस में काम है. उस के बाद मैं तुम्हारी हूं,’ स्निग्धा के मुरझाए चेहरे पर एक चमक आ गई थी. उस की आंखों की चंचलता लौट आई थी. निशांत ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. उस की अंतिम बात का क्या अर्थ हो सकता था? क्या वह सचमुच उस की हो सकती थी?

दोनों ने आपस में सलाह की. निशांत ने अपने औफिस फोन कर के बता दिया कि तबीयत खराब होने के कारण वह आज औफिस नहीं आ सकता था. वह लोधी रोड स्थित सीजीओ कौंप्लैक्स के एक सरकारी दफ्तर में जूनियर औफिसर था.

स्निग्धा ने बताया कि उसे बाराखंभा रोड स्थित एक प्राइवेट औफिस में इंटरव्यू के लिए जाना था. दिल्ली आने के बाद वह एक सहेली के साथ पेइंगगेस्ट के रूप में पीतमपुरा में रहती थी. निशांत भी उसी तरफ रोहिणी में रहता था. कनाट प्लेस या सैंट्रल दिल्ली जाने के लिए उन दोनों का मैट्रो से एक ही रास्ता था, परंतु उन दोनों की मुलाकात आज पहली बार हुई थी.

Manohar Kahaniya: खूनी हुई जज की बेटी की मोहब्बत- भाग 3

आखिर में एक ही पैंतरा बचा था सीबीआई के पास. सब से पुराना तरीका शिनाख्त परेड का. परेड के दौरान महिला ने कल्याणी को पहचान लिया. महिला के साथ 2 और भी ऐसे गवाह थे, जिन्होंने उस के कदमों की चाल से पहचान लिया था.

3 गवाहों ने कल्याणी की पहचान की थी. इस के बाद सीबीआई ने पूरे मामले में उस के सामने सबूत पेश किया तो वह सच बताने को मजबूर हो गई.

सीबीआई को जांच में पता चला कि सिप्पी और कल्याणी बचपन से एकदूसरे से प्यार करते आ रहे थे. वे जल्द ही शादी करना चाहते थे. सिप्पी के मोबाइल में उस की कुछ अश्लील तसवीरें थीं. किसी बात को ले कर दोनों के बीच कहासुनी हुई तो गुस्साए सिप्पी ने उस के अश्लील फोटो दोस्तों के पास वायरल कर दिया, जिस से कल्याणी की बड़ी बदनामी हुई.

इस के साथ ही उस ने शादी करने से भी इंकार कर दिया. यह सुन कर कल्याणी गुस्से से पागल हो उठी. उसी वक्त उस ने सिप्पी को ठिकाने लगाने की कसम खाई.

कल्याणी ने पुलिस को जो बयान दिया, वह आधा सच था. मृतक के छोटे भाई जिप्पी और पुलिस जांच में पता चला कि सिप्पी के फोन में जो अश्लील फोटो थे, वह उन के रिलेशनशिप के नहीं बल्कि कल्याणी के और भी लड़कों के साथ अफेयर के थे.

उस फोटो को सिप्पी ने वायरल किया था. इसी वजह से उस ने कल्याणी से शादी करने से भी इंकार किया था. यही बात उस की हत्या का कारण बनी थी.

कल्याणी तेज दिमाग और शातिर किस्म की युवती थी. प्यार में दुश्मन बनी कल्याणी अपने अपमान के अग्निकुंड में जल रही थी. अपने रिलेशन के एक युवक को सिप्पी की हत्या के लिए कहा तो वह तैयार हो गया.

उन दिनों सिप्पी कनाडा गया हुआ था. कल्याणी इस बात को जानती थी. वह उस के यहां आने की प्रतीक्षा कर रही थी. 18 सितंबर, 2015 को कनाडा से वह अपने घर लौटा था, यह बात कल्याणी को पता चल चुकी थी.

20 सितंबर, 2015 की शाम कल्याणी सेक्टर-27 के नेबरहुड पार्क के पास अपनी कार से उतरी. उस के साथ उस का वह

दोस्त भी था जो अपनी कार से आया था. दोनों ने अपनी कारें अलगअलग दिशा में खड़ी की थीं.

पार्क में बुला कर मारी थीं कई गोलियां

पार्क के पास पहुंच कर कल्याणी ने वहां मेहंदी लगाने वाले एक व्यक्ति से उस का फोन लिया और उसी से सिप्पी को फोन किया. उस ने अपनी तबीयत खराब होने और डिप्रेशन में होने की बात सिप्पी को बता कर आखिरी बार मिलने के लिए चंडीगढ़ के सेक्टर-27 के नेबरहुड पार्क के पास बुलाया.

घर से निकलते समय सिप्पी ने मां को बता दिया था कि कल्याणी का फोन है. आखिरी बार मिलने के लिए बुलाया है, अभी आता हूं.

रात 9 से 10 बजे के बीच सिप्पी पार्क पहुंचा तो कल्याणी बेचैनी से टहलती हुई नजर आई. जैसे ही उस ने कल्याणी के पास पहुंच कर बात शुरू करनी चाही, उस के साथ आए युवक ने पिस्टल से 3 गोलियां उस के सीने में उतार दीं. फिर उस के हाथ से पिस्टल छीन कर एक गोली कल्याणी ने भी उतार दी और दोनों अलग दिशाओं की ओर तेजी से भाग गए.ऐसे एक खूबसूरत प्यार का दर्दनाक अंत हुआ. कल्याणी ने अपने अपमान का बदला ले लिया था.

सीबीआई के पास कल्याणी के खिलाफ कई ठोस सबूत जमा हो चुके थे. उन सबूतों में सब से बड़ा साक्ष्य आईफोन था, जिसे सिप्पी ने घटना से 2 महीने पहले कल्याणी को गिफ्ट किया था. इन्हीं सबूतों के आधार पर सीबीआई ने कल्याणी को 15 जून, 2022 को गिरफ्तार किया था.

अपनी गिरफ्तारी के तुरंत बाद कल्याणी ने अपने वकील नरुल के माध्यम से 5 जुलाई, 2022 को एक जमानत याचिका अदालत में दायर करवा दी. जमानत याचिका पर बहस करते हुए कल्याणी ने पुलिस द्वारा उसे फंसाए जाने की बात कही.

उस ने यह भी कहा कि सिप्पी के पास कई प्रौपर्टी हैं, उस का बड़ेबड़े लोगों के साथ उठनाबैठना था. वह अचानक से बड़ा अमीर आदमी बना था. हो सकता है उन्हीं में से किसी ने उस की हत्या कराई हो.

लेकिन उस के इस तर्क को सीबीआई के वकील नरेंद्र सिंह ने सिरे से खारिज कर दिया. जमानत की अगली सुनवाई 13 जुलाई को होनी थी. पुलिस ने कल्याणी के साथ हत्या में शामिल युवक की पहचान कर ली है लेकिन उस की गिरफ्तारी कथा लिखे जाने तक नहीं हुई थी.

सीबीआई ने अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर 10 लाख रुपए का ईनाम घोषित कर दिया है. सीबीआई हत्या के अन्य सबूत जुटाने की कोशिश कर रही है ताकि अभियुक्तों को सख्त सजा दिलाई जा सके.

कथा लिखे जाने तक कल्याणी सिंह चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल में कैद थी. आखिर, केस खुल जाने पर 7 साल बाद सिद्धू परिवार को इंसाफ मिल ही गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

विद्या का मंदिर- भाग 3: क्या थी सतीश की सोच

“राहुल के पापा,” रमा तो किसी और ही दुनिया में विचरण कर रही थी. आराधना स्थलों की चकाचौंध से अभिभूत थी. सतीश का कहा तो वह ग्रहण ही न कर पाई. भावातिरेक में बोलती चली जा रही थी, “देवी मां का मंदिर इतना आलीशान हो गया, आप पहचान भी न पाओगे. सुना है मैं ने कि आसपास के लोगों ने मंदिर के लिए जमीन दान की है.”

“अच्छा, पर मैं ने तो लोगों को सरकारी स्कूलों की जमीन का अतिक्रमण करते देखा है. वहां इन की दान प्रवृत्ति कहां चली जाती है.”

“आप भी…मूड खराब कर देते हो, बात को पता नहीं कहां से कहां ले जाते हो,” तमक कर रमा बोली.

“नहीं रमा, समझ में नहीं आता कि हम सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की जर्जर स्थिति पर शर्म करें या फिर आराधना स्थलों की भव्यता पर गर्व? बात को समझने की कोशिश करो.”

“पूजास्थल भी तो हमारी शान है. तमाम स्कूल और नर्सिंग होम हैं तो शहर में.”

“हां हैं, लेकिन क्या वे सब की पहुंच में हैं?

“मंदिर में लोग दुआएं मांगने आते हैं, मन्नतें करते हैं. कितना चढ़ावा चढ़ता है… है न राहुल?” रमा ने उत्कंठा से राहुल की ओर समर्थन की अपेक्षा से देखा.

“उं…मैं तो परेशान हो गया था,” मम्मी की देवी मां की पूजा से मुक्त, चायपकौड़ों से तृप्त, सोफे पर अलसाए सा लेटे हुए, फोन पर उंगलियां घुमाते राहुल ने अनमने मन से कहा.

“दुआ तो मन के कोने में भी हो जाती है, लेकिन इलाज के लिए अस्पताल चाहिए होते हैं,” अपने विचारों में खोए सतीश चंद्र के मुंह से बरबस ही निकल गया.

“आप से तो बात करना ही बेकार है,” झुंझलाती हुई कपप्लेटों को समटते हुए रमा बोली.

“पापा, पहले मैं ने कभी नोटिस नहीं किया था यह, बस. आज जब मम्मी ने इतने सारे मंदिरों में रुकवाया, तो ध्यान गया कि जराजरा सी दूरी पर इतने धार्मिकस्थल क्यों हैं.”

“तुम्हें, इस से क्या समस्या है? ” तुनकती हुई रमा बोली.

“समस्या मुझे नहीं है, देश को है. एक बैड के न मिलने से तड़पतड़प कर प्राण गंवाने वाले समाज की प्राथमिकता कम से कम मंदिरमसजिद या चर्चमठ तो नहीं होने चाहिए,” थोड़ा चिंतित स्वर में राहुल बोला.

“दिमाग खराब हो गया इस का,” कह रमा वहां से उठ किचन में खाना बनाने चली गई.

“पापा, अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व अन्य विकसित राष्ट्रों में चर्च की संख्या बढ़ने के स्थान पर कम हो रही है, और हमारे देश में…” अब तो राहुल मोरचे पर आ गया, “यूरोप में तो कुछ चर्चों को तो अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल  करना शुरू कर दिया.”

“हमारे देश में लोग आज भी लोकपरलोक में ही उलझे हुए हैं,”  बेहद अफसोस से सतीश चंद्र के मुंह से निकल पड़ा.

“हमारे देश में आज भी लोग रोजगार, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. विकास सिर्फ शहरों तक ही सीमित है. गांवों से लगातार हो रहा पलायन हमारे गांवों की स्थिति को दर्शाता है. सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं. गरीबी, अशिक्षा, विस्फोटक रूप से बढ़ती जनसंख्या आज भी मुंहबाए खड़ी हैं. अंधविश्वास की जड़ें और गहराई से फैलती जा रही हैं. जिस देश में इतनी समस्याएं हों  और जहां पहले से ही इतने धार्मिकस्थल हो, वहां पर आएदिन नित नए धार्मिकस्थल का निर्माण क्या सही है?” राहुल ने पापा की ओर देखते हुए कहा.

पापाबेटे धार्मिक स्थलों के मुद्दे पर इतना मशगूल हो गए कि उन्हें समय का पता ही नहीं  चला. रमा ने जब खाने के लिए बुलाया, तब उन्हें समय का एहसास हुआ.

“पापा, मैं कह रहा था कि मंदिर…”

“उफ्फ, क्या मंदिरमंदिर लगा रखा है. ऐसा तो नहीं हैं कि हमारे देश ने कोई तरक्की नहीं की. आज घरों में गाड़ी आम बात हो गई है. क्या जमघट था गाड़ियों का देवी मां के मंदिर में,” रमा के संस्कार उसे इस महिमा जगत से निकलने की इजाजत ही नहीं दे रहे थे.

“हां, आंकड़ों में खूब तरक्की की है,” सतीश चंद्र ने खिन्नता से कहा.

“क्या मतलब?” रमा ने उत्तेजित होते हुए कहा.

“रमा, सरकारी संस्थाओं की एक आत्मा होती है, जो सामाजिक सरोकारों के प्रति हमारी संवेदनशीलता से अस्तित्व में रहती है.”

“अभी भी तो हैं सरकारी स्कूल,” रमा बेफिक्री से बोली.

“हां हैं, टिमटिमाते दीये की तरह. याद है तुम्हें ‘इंगलिश मीडियम’ मूवी का वह डायलौग जो इरफान के मुख से बेसाख्ता निकल गया था- ‘सरकारी स्कूलों की इतनी बुरी दशा तो हमारे समय में भी नहीं थी.’ हम ने बहुतकुछ खो दिया है,” एक अफसोस स्वर में उभर आया.

“आप भी क्या बात करते हो, कहां मंदिर और कहां स्कूल.”

“रमा, स्कूल ही असली मंदिर है- विद्या का मंदिर. हम ने अपनी सामाजिक संस्थाओं को कमजोर किया है. किसी चीज का न होना या मामूली सा होना अलग बात है, लेकिन किसी अच्छी चीज का खराब होना एक खतरनाक संकेत है. हमारे समय में कितनी प्रतिष्ठा हुआ करती थी सरकारी स्कूलों की. हम सब भी तो सरकारी स्कूलों में पढ़े हैं. आज थोड़ी सी आय वाला भी अपने बच्चों को इन सरकारी स्कूलों में भेजने से कतरा रहा है. ऐसे में तो हम उन को रौंदते जा रहे हैं जो इस भगदड़ में चल ही नहीं पा रहे है. बहुतकुछ करना चाहता था इन बच्चों के लिए, इन स्कूलों के लिए, किया भी है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं था,” ढहता सरकारी स्कूलों का ढांचा, समर्पित शिक्षकों का अभाव, प्रधानाचार्य की स्कूल के प्रति उदासीनता अनायास ही सतीश चंद्र की आंखों के आगे घूमने लगे. वे खामोश हो खाना खाने लगे.

कुछ पलों तक तो डाइनिंग टेबल पर बस चम्मचों, खाने और डोंगों के खुलने व बंद होने की आवाजें ही आती रहीं.

“एक से बढ़ कर एक स्कूल खुले हुए हैं,” रमा अभी भी हथियार डालने को तैयार न थी.

“क्या वे सब की पहुंच में हैं? नहीं…हम ने ऐसे पेड़ लगा दिए हैं, जिन के फल तोड़ना हरेक के बस की बात नहीं. हम अंतिम छोर में रहने वालों के स्कूलों और अस्पतालों को लील गए.”

“ऐसा नहीं कि दुआएं कुबूल नहीं होतीं. आराधना भी सफल होती है. इन के लिए पूजास्थल तो चाहिए ही.  काश, आप कभी तो मेरे साथ, मेरी आस्था में शामिल हो जाया करो,” बोलतेबोलते रमा का स्वर भीगने लगा.

“जिस दिन तुम नहीं, राहुल गाड़ी रोक कर कहेगा, ‘जरा रुक कर चलते हैं, यहां पर एक सरकारी स्कूल देखने लायक है और यहां के बच्चे देश के विभिन्न उच्च पदों पर आसीन हैं,’ उस दिन मैं समझूंगा कि हमारी आराधना सफल हो गई और उस दिन इन धार्मिक स्थानों की भव्यता देखने को मैं अवश्य जाऊंगा,” खाने की मेज से उठते हुए सतीश चंद्र के उद्गार शब्द बन बह निकले.

GHKKPM: सई से शादी के बाद विराट बदलेगा अपना नाम, भवानी का फूटेगा गुस्सा

टीवी सीरियल  ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि सई-विराट, राजीव-शिवानी की शादी हो चुकी है. शादी के बाद सई-विराट और चौहान परिवार कुल देवी की मंदिर जाते हैं. वहां भवानी सई को घर की जिम्मेदारी सौंपती है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जाएगा कि परिवार वाले शादी के बाद सई का नाम बदलने के लिए पंडित जी को बुलाते है. सई अपना नाम बदलते हुए सई विराट चौहान रखती है. विराट सबको ये कहकर चौंका देता है कि वो भी अपना नाम बदलना चाहता है.

 

विराट अपना नाम बदलकर विराट सईं चौहान कर लेता है. ये देखकर सई इमोशनल हो जाती है. अश्विनी पूछती है कि वह अपने नाम से अपने पिता का नाम कैसे हटा सकता है. विराट कहता है कि वह अपने पिता का नाम नहीं छोड़ रहा है बल्कि सिर्फ सई का नाम जोड़ रहा है.

 

दूसरी तरफ भवानी विराट के फैसले से काफी गुस्सा होती है. मानसी भवानी को समझाते हुए कहती है कि वो विराट को गलत समझ रही है, वो सिर्फ सई के लिए अपना प्यार दिखा रहा है. विराट कहता है कि वो अपने हर सर्टिफिकेट और पुलिस नेमप्लेट पर अपना नाम बदलकर विराट सई चौहान करेगा.

 

काव्या-अनुपमा की होगी दोस्ती, तो बा मारेगी ताना

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुपमा की मेहंदी और संगीत की शानदार तैयारी चल रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जाएगा कि अनुज और अनुपमा की मेहंदी और संगीत का पर्पल थीम रखा जाएगा. सभी शानदार आउटफिट में नजर आएंगे. शो में दिखाया जाएगा कि जीके, हसमुख की हेल्थ रिपोर्ट छुपा कर रख देगा. जीके इसे अलमारी में छिपा देंगे. लेकिन गिफ्टस पैक करते समय ये रिपोर्ट किसी और पैकेट में रखा जाएगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ANUPAMAA (@gaurav_k_anuj)

 

दूसरी तरफ काव्या भी अनुपमा की मेहंदी को लेकर काफी एक्साइटेड होगी.  अनुपमा, काव्या को शुक्रिया कहेगी. काव्या कहेगी कि उसने उसकी शादी में हाथ बंटाया था और अब उसकी बारी है. उन दोनों की बातें सुनकर बा को मिर्ची लगेगी. वह दोनों को उनकी दोस्ती को लेकर ताना मारेगी. काव्या बा को  कहेगी कि वह भी अनुपमा की खुशी में शामिल हो जाये.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ??????? (@anupama_starplushow)

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुपमा ये जानकार इमोशनल होगी कि पाखी, समर और पारितोष ने अपने हाथों से दोनों के लिए मेहंदी तैयार की है. अनुज-अनुपमा की संगीत में सिंगर मीका सिंह की एंट्री होगी और वो धमाकेदार परफॉर्मेंस देंगे.

 

सौतेली- भाग 2: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

जानकी बूआ ने अपनी सहेली की बेटी को वंदना कह कर बुलाया था इसलिए उस के नाम को जानने के लिए किसी को कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी थी.

मेहमान को घर के लोगों से मिलवाने की औपचारिकता पूरी करते हुए जानकी बूआ ने अपनी भतीजी के रूप में शेफाली का परिचय वंदना से करवाया था तो उस ने एक मधुर मुसकान लिए बड़ी गहरी नजरों से उस को देखा था. वह नजरें बडे़ गहरे तक शेफाली के अंदर उतर गई थीं.

शेफाली समझ नहीं सकी थी कि उस के अंदर गहरे में उतर जाने वाली नजरों में कुछ अलग क्या था.

‘‘तुम सचमुच एक बहुत ही प्यारी लड़की हो,’’ हाथ से शेफाली के गाल को हलके से थपथपाते हुए वंदना ने कहा था.

उस के व्यवहार के अपनत्व और स्पर्श की कोमलता ने शेफाली को रोमांच से भर दिया था.

शेफाली तब कुछ बोल नहीं सकी थी.

जानकी बूआ वंदना की जिस प्रकार से आवभगत कर रही थीं वह भी कोई कम हैरानी की बात नहीं थी.

एक ही घर में रहते हुए कोई कितना भी अलगअलग और अकेला रहने की कोशिश करे मगर ऐसा मुमकिन नहीं क्योंकि कहीं न कहीं एकदूसरे का सामना हो ही जाता है.

शेफाली और वंदना के मामले में भी ऐसा ही हुआ. दोनों अकेले में कई बार आमनेसामने पड़ जाती थीं. वंदना शायद उस से बात करना चाहती थी लेकिन शेफाली ही उस को इस का मौका नहीं देती थी और केवल एक हलकी सी मुसकान अधरों पर बिखेरती हुई वह तेजी से कतरा कर निकल जाती थी.

एक दिन शेफाली को चौंकाते हुए वंदना रात को अचानक उस के कमरे में आ गई.

शेफाली को रात देर तक पढ़ने की आदत थी.

वंदना को अपने कमरे में देख चौंकी थी शेफाली, ‘‘आप,’’ उस के मुख से निकला था.

‘‘बाथरूम जाने के लिए उठी थी. तुम्हारे कमरे की बत्ती को जलते देखा तो इधर आ गई. मेरे इस तरह आने से तुम डिस्टर्ब तो नहीं हुईं?’’

‘‘जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘रात की शांति में पढ़ना काफी अच्छा होता है. मैं भी अपने कालिज के दिनों में अकसर रात को ही पढ़ती थी. मगर बहुत देर रात जागना भी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता. अब 1 बजने को है. मेरे खयाल में तुम को सो जाना चाहिए.’’

वंदना ने अपनी बात इतने अधिकार और अपनत्व से कही थी कि शेफाली ने हाथ में पकड़ी हुई किताब बंद कर दी.

‘‘मेरा यह सब कहना तुम को बुरा तो नहीं लग रहा?’’ उस को किताब बंद करते हुए देख वंदना ने पूछा.

‘‘नहीं, बल्कि अच्छा लग रहा है. बहुत दिनों बाद किसी ने इस अधिकार के साथ मुझ से कुछ कहा है. आज मम्मी की याद आ रही है. वह भी मुझ को बहुत देर रात तक जागने से मना किया करती थीं,’’ शेफाली ने कहा. उस की आंखें अनायास आंसुओं से झिलमिला उठी थीं.

शेफाली की आंखों में झिलमिलाते आंसू वंदना की नजरों से छिपे न रह सके थे. इस से वह थोड़ी व्याकुल सी दिखने लगी. उस ने प्यार से शेफाली के गाल को सहलाया और बोली, ‘‘जो बीत गया हो उस को याद कर के बारबार खुद को दुखी नहीं करते. अब सो जाओ, सुबह बहुत सारी बातें करेंगे,’’ इतना कहने के बाद वंदना मुड़ कर कमरे से बाहर निकल गई.

इस के बाद तो शेफाली और वंदना के बीच की दूरी जैसे सिमट गई और दोनों के बीच की झिझक भी खत्म हो गई.

एकाएक ही शेफाली को वंदना बहुत अपनी सी लगने लगी थी. जाहिर है अपने व्यवहार से शेफाली के विश्वास को जीतने में वंदना सफल हुई थी. अब दोनों में काफी खुल कर बातें होने लगी थीं.

शेफाली के शब्दों में सौतेली मां के प्रति आक्रोश को महसूस करते हुए एक दिन वंदना ने कहा, ‘‘आखिर तुम दूसरों के साथसाथ अपने से भी इतनी नाराज क्यों हो?’’

‘‘क्या जानकी बूआ ने मेरे बारे में आप को कुछ नहीं बतलाया?’’

‘‘बतलाया है,’’ गंभीर और शांत नजरों से शेफाली को देखती हुई वंदना बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि तुम्हारे पापा ने किसी और औरत से दूसरी शादी कर ली है. वह भी तुम्हारी गैरमौजूदगी में…और तुम को बतलाए बगैर,’’ शेफाली की आंखों में झांकती हुई वंदना ने शांत स्वर में कहा.

‘‘इतना सब जानने के बाद भी आप मुझ से पूछ रही हैं कि मैं नाराज क्यों हूं,’’ शेफाली के स्वर में कड़वाहट थी.

‘‘अधिक नाराजगी किस से है? अपने पापा से या सौतेली मां से?’’

‘‘नाराजगी सिर्फ पापा से है.’’

‘‘सौतेली मां से नहीं?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘नहीं, उन से मैं नफरत करती हूं.’’

‘‘नफरत? क्या तुम ने अपनी सौतेली मां को देखा है या उन से कभी मिली हो?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर सौतेली मां से नफरत क्यों? नफरत तो हमेशा बुरे इनसानों से की जाती है न,’’ वंदना ने कहा.

‘‘सौतेली मांएं बुरी ही होती हैं, अच्छी नहीं.’’

‘‘ओह हां, मैं तो इस बात को जानती ही नहीं थी. तुम कह रही हो तो यह ठीक ही होगा. बुरी ही नहीं, हो सकता है सौतेली मां देखने में डरावनी भी हो,’’ हलका सा मुसकराते हुए वंदना ने कहा.

शेफाली को इस बात से भी हैरानी थी कि जानकी बूआ ने अपने घर की बातें अपनी सहेली की बेटी से कैसे कर दीं?

वंदना अपने मधुर और आत्मीय व्यवहार से शेफाली के बहुत करीब तो आ गई मगर वह उस के बारे में ज्यादा जानती न थी, सिवा इस के कि वह जानकी बूआ की किसी सहेली की लड़की थी.

फिर एक दिन शेफाली ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘आप की शादी हो चुकी है?’’

‘‘हां,’’ वंदना ने कहा.

‘‘फिर आप अकेली यहां क्यों आई हैं? अपने पति को भी साथ में लाना चाहिए था.’’

‘‘वह साथ नहीं आ सकते थे.’’

‘‘क्यों?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘क्योंकि कोई ऐसा काम था जो उन के साथ रहने से मैं नहीं कर सकती थी,’’ बड़ी गहरी और भेदपूर्ण मुसकान के साथ वंदना ने कहा.

‘‘ऐसा कौन सा काम है?’’ शेफाली ने पूछा भी लेकिन वंदना जवाब में केवल मुसकराती रही. बोली कुछ नहीं.

अब पढ़ाई के लिए शेफाली जब भी ज्यादा रात तक जागती तो वंदना उस के कमरे में आ जाती और अधिकारपूर्वक उस के हाथ से किताब पकड़ कर एक तरफ रख देती व उस को सोने के लिए कहती.

शेफाली भी छोटे बच्चे की तरह चुपचाप बिस्तर पर लेट जाती.

‘‘गुड गर्ल,’’ कहते हुए वंदना अपना कोमल हाथ उस के ललाट पर फेरती और बत्ती बुझा कर कमरे से बाहर निकल जाती.

वंदना शेफाली की कुछ नहीं लगती थी फिर भी कुछ दिनों में वह शेफाली को इतनी अपनी लगने लगी कि उस को बारबार ‘मम्मी’ की याद आने लगी थी. ऐसा क्यों हो रहा था वह स्वयं नहीं जानती थी.

एक दिन रंजना ने शेफाली को यह बतलाया कि वंदना अगले दिन सुबह की ट्रेन से वापस अपने घर जा रही हैं तो उस को एक धक्का सा लगा था.

‘‘आप ने मुझ को बतलाया नहीं कि आप कल जा रही हैं?’’ मिलने पर शेफाली ने वंदना से पूछा.

‘‘मेहमान कहीं हमेशा नहीं रह सकते, उन को एक न एक दिन अपने घर जाना ही पड़ता है.’’

शेफाली का मुखड़ा उदासी की बदलियों में घिर गया.

‘‘आप जिस काम से आई थीं क्या वह पूरा हो गया?’’ शेफाली ने पूछा तो उस की आवाज में उदासी थी.

‘‘ठीक से बता नहीं सकती. वैसे मैं ने कोशिश की है. नतीजा क्या निकलेगा मुझ को मालूम नहीं,’’ वंदना ने कहा.

‘‘आप कितनी अच्छी हैं. मैं आप को भूल नहीं सकूंगी,’’ वंदना के हाथों को अपने हाथ में लेते शेफाली ने उदास स्वर में कहा.

‘‘शायद मैं भी नहीं,’’ वंदना ने जवाब में कहा.

‘‘क्या हम दोबारा कभी मिलेंगे?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘भविष्य के बारे में कुछ बतलाना मुश्किल है और दुनिया में संयोगों की कमी भी नहीं है,’’ शेफाली के हाथों को दबाते हुए वंदना ने कहा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें