“अरेअरेअरे, संभाल कर लाना, दरवाजा थोड़ा छोटा है,” चारु ने एक एंटीक भारीभरकम मेज-कुरसी उठा कर कमरे में लाते हुए 3 लेबरों से कहा. कमरा बहुत बड़ा नहीं था. एक साधारण सा नवदंपति का कमरा जैसा होता है ठीक वैसा ही था. एक तरफ पलंग पड़ा था, एक तरफ एक छोटी सी श्रृंगार मेज रखी थी. दूसरी ओर पुराने चलन की कपड़े रखने वाली लोहे की अलमारी खड़ी थी. एक किनारे खिड़की के पास ही थोड़ी जगह शेष थी. चारु ने उसी स्थान की ओर उंगली से इशारा करते हुए कहा, “बसबस, वहीं रख दो इसे, संभाल कर.” लेबरों ने मेजकुरसी चारु की बताई जगह पर रख दी. चारु ने उन्हें उन का मेहनताना दिया. फिर वे वहां से चले गए.
चारु कमरे में अकेले रह गई. उस ने एक ठंडी सांस ले कर उस कुरसीमेज पर दृष्टि डाली, फिर अपने कमरे को देखा. कैसे बेमेल लग रहे हैं दोनों. एक बिलकुल निम्न मध्यवर्गीय कमरे में एक राजसी कुरसीमेज का जोड़ा. दोनों में कोई साम्य ही नहीं था. कमरे का हर सामान जैसे उस के आगे अपने को हीन अनुभव करने लगा हो.
चारु उठ कर उस कुरसीमेज के पास पहुंची. उस ने कुरसी की नक्काशी पर बड़े प्रेम से हाथ फिराया. बहुत ही बारीक और कलात्मक नक्काशी की गई थी. उस के उभरे हुए एकएक बेलबूटे का उतारचढ़ाव उसे याद है. न मालूम कितनी बार अपनी कला की पुस्तिका में उस ने इसी की आकृति उकेरी थी और सदा अच्छे अंक पाए थे. मेज की लकड़ी की चमक उस की मज़बूती और स्वास्थ्य का पता दे रही थी.