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Donald Trump : अमेरिका में गुरूर वाले गोरे की ताजपोशी

Donald Trump : अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वही कर रहे हैं जो भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी कर रही है- अलगाव की राजनीति. भारत में यह अलगाव हिंदूमुसलिम का है तो अमेरिका में यह गोरों और बाहरियों, इमीग्रैंट्स का है. ट्रंप के कट्टरवादी, चर्च पिट्ठू, गोरे, आधे पढ़े, लड़ाकू, झगड़ालू, मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) समर्थक अमेरिका को गोरों का देश बनाने के लिए हर कदम उठा रहे हैं. मजेदार बात यह है कि बहुत से भारतीय मूल के सफल अमेरिकी उन का साथ दे रहे हैं.

अब भारत से अमेरिका का एस-1 वीजा ले कर अमेरिका में नौकरी करने वाले असमंजस में हैं कि वे कब तक वहां काम कर पाएंगे. अमेरिकी वेतनों के आदी हो गए ये भारतीय युवा अब भारत के काम के नहीं रह गए हैं और अमेरिका में हर रोज इन पर तलवार लटकी महसूस होगी.

अमेरिका की महानता के पीछे उस का दुनियाभर से टैलेंट जमा करना रहा है. कालों की गुलामी के बंधन में 200 वर्ष रखने वाले देश ने एक गृहयुद्ध कर के वह गलती खत्म कर दी और कालों को गुलामी से मुक्ति दिला दी तो लगा कि अगर किसी देश में जीने की आजादी मिल सकती है तो वह अमेरिका है. अमेरिका को यूरोप से आए गोरों का लाभ तो मिला ही, एशिया और अफ्रीका से आए मजदूरों का लाभ भी मिला.

इन मजदूरों की संतानें आज अमेरिकी समाज में ऊंची जगहों पर हैं और अमेरिका इन की मेहनत का लाभ उठा रहा है. अब ट्रंप के आने के बाद यह लाभ मिलेगा या नहीं, पता नहीं. जैसे भारत में सारी शक्ति, पूंजी, प्रचार, सरकार का ध्यान धर्म, मंदिर, पूजापाठ पर लग गया है, वैसे ही ट्रंप सरकार का ध्यान इमीग्रैंट्स को सीमाओं से बाहर खदेडऩे पर लगने वाला है. इस की जमीन बनाने के लिए ट्रंप सरकार गोरों की कंपनियों को हर तरह का संरक्षण देगी, उन का टैक्स कम करेगी, क्लाइमेट चेंज की मांग को कूड़े में फेंक देगी ताकि अमेरिकी गोरे अमीर बने रहें.
यह एकदो पीढ़ी को बड़ा लाभ दे सकता है पर पक्का इस दौरान न केवल यूरोप बल्कि चीन, जापान, कोरिया, वियतनाम जैसे देश भी, जहां धर्म और बाहरी लोगों के विवाद आज न के बराबर है, सब से ज्यादा लाभ उठाएंगे. भारतीय मूल के कुछ लोग, जो फिलहाल ट्रंप के तलवे चाट रहे हैं, कब निकाल बाहर किए जाएंगे, पता नहीं.

विभाजन की नीति कभी किसी देश को पनपा नहीं पाई. हिटलर ने जरमनी के यहूदियों को निशाना बनाया था, कम्युनिस्ट रूस ने व्यवसाइयों को, आज के भारत ने मुसलमानों और शूद्रों व दलितों को बनाया है और सब को इस की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी या पड़ रही है.जमीन के हर टुकड़े पर हर तरह के पेड़पौधे, पशुपक्षी पलते हैं तो ही वह उपजाऊ रहती है. कोई जमीन सिर्फ गोरों या सिर्फ हिंदुओं या सिर्फ मुसलमानों की है जहां देश का सिद्धांत चलेगा, वहां कभी उन्नति नहीं होगी.

Hindi kahani : सुवीरा को समर्पण के बदले मिला सिर्फ अपमान

Hindi kahani : मायके के सुखदुख में सहभागी बनी सुवीरा ने अपना पूरा जीवन उन को समर्पित कर दिया. लेकिन उन्होंने कदमकदम पर सुवीरा और उस के पति को न केवल अपमानित किया बल्कि उस से नाता भी तोड़ दिया. पदचाप और दरवाजे के हर खटके पर सुवीरा की तेजहीन आंखों में चमक लौट आती थी. दूर तक भटकती निगाहें किसी को देखतीं और फिर पलकें बंद हो जातीं. सिरहाने बैठे गिरीशजी से उन की बहू सीमा ने एक बार फिर जिद करते हुए कहा था, ‘‘पापा, आप समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे? जब तक नानीजी और सोहन मामा यहां नहीं आएंगे, मां के प्राण यों ही अधर में लटके रहेंगे. इन की यह पीड़ा अब मुझ से देखी नहीं जाती,’’ कहतेकहते सीमा सिसक उठी थी.बरसों पहले का वह दृश्य गिरीशजी की आंखों के सामने सजीव हो उठा जब मां और भाई के प्रति आत्मीयता दर्शाती पत्नी को हर बार बदले में अपमान और तिरस्कार के दंश सहते उन्होंने ऐसी कसम दिलवा दी थी जिस की सुवीरा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.‘आज के बाद अगर इन लोगों से कोई रिश्ता रखोगी तो तुम मेरा मरा मुंह देखोगी.’बरसों पुराना बीता हुआ वह लम्हा धुलपुंछ कर उन के सामने आ गया था. अतीत के गर्भ में बसी उन यादों को भुला पाना इतना सहज नहीं था. वैसे भी उन रिश्तों को कैसे ? झुठलाया जा सकता था जो उन के जीवन से गहरे जुड़े थे.आंखें बंद कीं तो मन न जाने कब आमेर क्लार्क होटल की लौबी में जा पहुंचा और सामने आ कर खड़ी हो गई सुंदर, सुशील सुवीरा. एकदम अनजान जगह में किसी आत्मीय जन का होना मरुस्थल में झील के समान लगा था उन्हें. मंदमंद हास्य से युक्त, उस प्रभावशाली व्यक्तित्व को बहुत देर तक निहारते रहे थे. फिर धीरे से बोले, ‘आप का प्रस्तुतिकरण सर्वश्रेष्ठ था.’‘धन्यवाद,’ प्रत्युत्तर में सुवीरा बोली तो गिरीश अपलक उसे देखते ही रह गए थे. इस पहली भेंट में ही सुवीरा उन के हृदय की साम्राज्ञी बन गई थी.

फिर तो उसी के दायरे में बंधे, उस के इर्दगिर्द घूमते हुए हर पल उस की छोटीछोटी गतिविधियों का अवलोकन करते हुए इतना तो वह समझ ही गए थे कि उन का यह आकर्षण एकतरफा नहीं था. सुवीरा भी उन्हें दिल की अतल गहराइयों से चाहने लगी थी पर कह नहीं पा रही थी. अपने चारों तरफ सुवीरा ने कर्तव्यनिष्ठा की ऐसी सीमा बांध रखी थी जिसे तोड़ना तो दूर लांघना भी उस के लिए मुश्किल था.लगभग एक माह बाद दफ्तर के काम से गिरीश दिल्ली पहुंचे तो सीधे सुवीरा से मिलने उस के घर चले गए थे. बातोंबातों में उन्होंने अपने प्रेम प्रसंग की चर्चा सुवीरा की मां से
की तो अलाव सी सुलग उठी थीं वह.‘बड़ी सतीसावित्री बनी फिरती थी. यही गुल खिलाने थे?’ मां के शब्दों से सहमीसकुची सुवीरा कभी उन का चेहरा देखती तो कभी गिरीश के चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयास करती पर अम्मा शांत नहीं हुई थीं.अगले दिन कोर्टमैरिज के बाद सुवीरा हठ कर के अम्माबाबूजी के पास आशीर्वाद लेने पहुंची तो अपनी कुटिल दृष्टि बिखेरती अम्मा ने ऐसा गर्जन किया कि रोने को हो उठी थी सुवीरा.

‘अपनी बिरादरी में लड़कों की कोई कमी थी जो दूसरी जाति के लड़के से ब्याह कर के आ गई?’‘फोन तो किया था तुम्हें, अम्मा… अभी भी तुम्हारा आशीर्वाद ही तो लेने आए हैं हम,’ सुवीरा के सधे हुए आग्रह को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मा ने हुंकार लगाई, ‘तू क्या समझती है, तू चली जाएगी तो हम जी नहीं पाएंगे. भूखे मरेंगे? डंके की चोट पर जिएंगे. लेकिन याद रखना, जिस तरह तू ने इस कुल का अपमान किया है, हम आशीर्वाद तो क्या कोई रिश्ता भी नहीं रखना चाहते तुझसे.’ से.’व्यावहारिकता के धरातल पर खड़े गिरीश, सास के इस अनर्गल प्रलाप का अर्थ भली प्रकार समझ गए थे. नौकरीपेशा लड़की देहरी लांघ गई तो रोटीपानी भी नसीब नहीं होगा इन्हें. झूठे दंभ की आड़ में जातीयता का रोना तो बेवजह अम्मा रोए जा रही थीं.बिना कुछ कहेसुने, कांपते कदमों से सुवीरा सीधे बाबूजी के कमरे में चली गई थी. वह बरसों से पक्षाघात से पीडि़त थे. ब्याहता बेटी देख कर उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ी थी. सुवीरा भी उन के सीने से लग कर बड़ी देर तक सिसकती रही थी. रुंधे स्वर से वह इतना ही कह पाई थी, ‘बाबूजी, अम्मा चाहे मुझ से कोई रिश्ता रखें या न रखें पर मैं जब तक जिंदा रहूंगी, मायके के हर सुखदुख में सहभागिता ही दिखाऊंगी, यह मेरा वादा है आप से.’बेटी की संवेदनाओं का मतलब समझ रहे थे दीनदयालजी. आशीर्वाद स्वरूप सिर पर हाथ फेरा तो अम्मा बिफर उठी थीं, ‘हम किसी का एहसान नहीं लेंगे. जरूरत पड़ी तो किसी आश्रम में चाहे रह लें लेकिन तेरे आगे हाथ नहीं फैलाएंगे.’अम्मा चाहे कितना चीखतीचिल्लाती रहीं, सुवीरा महीने की हर पहली तारीख को नोटों से भरा लिफाफा अम्मा के पास जरूर पहुंचा आती थी और बदले में बटोर लाती थी अपमान, तिरस्कार के कठोर, कड़वे अपदंश. गिरीश ने कभी अम्मा के व्यवहार का विश्लेषण करना भी चाहा तो बड़ी सहजता से टाल जाती सुवीरा पर मन ही मन दुखी बहुत होती थी.‘जो कुछ कहना था, मुझे कहतीं. दामाद के सामने अनापशनाप कहने की क्या जरूरत थी?’ ऐसे में अपंग पिता का प्यार और पति का सौहार्द ठंडे फाहे सा काम करता.दौड़भाग करते कब सुबह होती, कब शाम, पता ही नहीं चलता था. गिरीश ने कई बार रोकना चाहा तो सुवीरा हंस कर कहती, ‘समझने की कोशिश करो, गिरीश. मेरे ऊपर अम्मा, बीमार पिता और सोहन का दायित्व है. जब तक सोहन अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, मुझे नौकरी करनी ही पड़ेगी.’‘सुवीरा, मैं ने अपने मातापिता को कभी नहीं देखा. अनाथालय में पलाबढ़ा लेकिन इतना जानता हूं कि सात फेरे लेने के बाद पतिपत्नी का हर सुखदुख साझा होता है. उसी अधिकार से पूछ रहा हूं, क्या तुम्हारे कुछ दायित्व मैं नहीं बांट सकता?’गिरीश के प्रेम से सराबोर कोमल शब्द जब सुवीरा के ऊपर भीनी फुहार बन कर बरसते तो उस का मन करता कि पति के मादक प्रणयालिंगन से निकल कर, भाग कर सारे खिड़कीदरवाजे खोल दे और कहे, देखो, गिरीश मुझे कितना प्यार करते हैं.2 बरस बाद सुवीरा ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया. गिरीश खुद ससुराल सूचना देने गए पर कोई नहीं आया था.

बाबूजी तो वैसे ही बिस्तर पर थे पर मां और सोहन इतने समय बाद संतान के सुख से तृप्त बेटी के सुखद संसार को देखने इस बार भी नहीं आए थे. मन ही मन कलपती रही थी सुवीरा. गिरीश ने जरा सी आत्मीयता दर्शाई तो पानी से भरे पात्र की तरह छलक उठी थी सुवीरा, ‘क्या कुसूर किया था मैं ने उस घर को सजाया, संवारा अपने स्नेह से सींचा पर मेरे अस्तित्व को ही नकार दिया. कम से कम इतना तो देखते कि बेटी कहां है, किस हाल में है. मात्र यही कुसूर है न मेरा कि मैं ने प्रेम विवाह किया है.’ इतना सुनते ही गिरीश के चेहरे पर दर्द का दरिया लरज उठा था. बोले, ‘इस समय तुम्हारा ज्यादा बोलना ठीक नहीं है. आराम करो.’सुवीरा चुप नहीं हुई. प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत बरसों से सहेजी संवेदनाएं सारी सीमाएं तोड़ कर बाहर निकलने लगीं.‘मैं उस समय 5 साल की बच्ची ही तो थी जब अम्मा दुधमुंहे सोहन को मेरे हवाले छोड़ पड़ोस की औरतों के बीच गप्पें मारने में मशगूल हो जाती थीं. लौट कर आतीं तो किसी थानेदार की तरह ढेरों प्रश्न कर डालतीं.‘बेटे के लिए तो रचरच कर नाश्ता तैयार करतीं, लेकिन मैं अपनी पसंद का कुछ भी खाना चाहती तो बुरा सा मुंह बना लेतीं. उन की इस उपेक्षा और डांटफटकार से बचपन से ही मेरे मन में एक भावना घर कर गई कि अगर इतनी ही अकर्मण्य हूं मैं तो इन सब को अपनी काहिली दिखा कर रहूंगी.‘सच मानो गिरीश, मां की तल्ख तेजाबी बहस के बीच भी मैं सफलता के सोपान चढ़ती चली गई. बाबूजी ने कई बार लड़खड़ाती जबान के इशारे से अम्मा को समझाया था कि थोड़ी जिम्मेदारी का एहसास सोहन को भी करवाएं पर अम्मा बाबूजी की कही सुनते ही त्राहित्राहि मचा देतीं. घर का हर काम उन की ही मरजी से होता था, वरना वे घर की ईंट से ईंट बजा कर रख देती थीं.‘एक रात बाबूजी फैक्टरी से लौटते समय सड़क दुर्घटना में बुरी तरह जख्मी हो गए थे. शरीर के आधे हिस्से को लकवा मार गया था. अच्छेभले तंदुरुस्त बाबूजी एक ही झटके में बिस्तर के हो कर रह गए. धीरेधीरे व्यापार ठप पड़ने लगा. सोहन की परवरिश सही तरीके से की गई होती तो वह व्यापार संभाल भी लेता. खानापीना, मौजमस्ती, यही उस की दिनचर्या थी. सीधा खड़ा होने के लिए भी उसे बैसाखी की जरूरत पड़ती थी तो वह कारोबार क्या संभालता?‘व्यापार के सिलसिले में मेरा अनुभव शून्य से बढ़ कर कुछ भी नहीं था. जमीन पर मजबूती से खड़े रहने के लिए मुझे भी बाबूजी के पार्टनरों, भागीदारों का सहयोग चाहिए था पर अम्मा को न जाने क्या सूझा कि वह फोन पर ही सब को बरगलाने लगीं. शायद उन्हें यह गलतफहमी हो गई थी कि उन की बेटी उन के पति का कारोबार चला कर पूरी धनसंपदा हथिया लेगी और उन्हें और उन के बेटे को दरदर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर देंगी.‘धीरेधीरे बाबूजी के सभी पार्टनर हाथ खींचते गए. मेरी दिनरात की मेहनत भी व्यापार को आगे बढ़ाने में सफल नहीं हो सकी.

हार कर व्यापार बंद करना पड़ा. बहुत रोए थे बाबूजी उस दिन. उन की आंखों के सामने ही उन की खूनपसीने से सजाई बगिया उजड़ गई थी. लेकिन अम्मा की आंखों में न विस्मय था न पश्चात्ताप बल्कि मन ही मन उन्होंने दूसरी योजना बना डाली थी और एक दिन बेहोशी की हालत में पति से अंगूठा लगवा कर पूरा मकान और बैंक बैलेंस सोहन के नाम करवा कर ही उन्होंने चैन की सांस ली थी.‘कालेज की पढ़ाई, ट्यूशन, बाबूजी की तीमारदारी में कंटीली बाढ़ की तरह जीवन उलझता चला गया. जितनी आमद होती, अम्मा और सोहन उस रकम पर यों टूटते जैसे कबूतरों के झुंड दानों पर टूटते हैं.’कहतेकहते सिसक उठी थी सुवीरा. होंठों पर हाथ रख कर गिरीश ने उस के मुंह पर चुप्पी की मोहर लगा दी थी. 2 दिन तक प्रसव पीड़ा से छटपटाने के बाद औपरेशन से जुड़वां बेटों को जन्म देने में कितनी पीड़ा सुवीरा की शिथिल काया ने बरदाश्त की थी, यह तो गिरीश ही जानते थे.दिन बीतते गए. सोहन की आवारागर्दी देख सुवीरा का मन दुखी होता था. सोचती इस के साथ पूरा जीवन पड़ा है, कमाएगा नहीं तो अपनी गृहस्थी कैसे चलाएगा? कई धंधे खुलवा दिए थे सुवीरा और गिरीश ने पर सोहन महीने दो महीने में सबकुछ उड़ा कर घर बैठ जाता. उस पर अम्मा उस की तारीफ करते नहीं अघातीं.एक दिन अचानक खबर मिली कि सोहन का ब्याह तय हो गया. जिस धीरेंद्र की लड़की के साथ शादी तय हुई है वह गिरीश के अच्छे दोस्त थे. सुवीरा यह नहीं समझ पा रही है कि अम्मा ने कैसे उन्हें विश्वास में लिया कि वह अपनी बेटी सोहन के साथ ब्याहने को तैयार हो गए.सगाई से एक दिन पहले ही सुवीरा अम्मा के पास चली गई थी. दोनों पक्षों से उस का रिश्ता था. गिरीश ने भी पूरा सहयोग दिया था. सुवीरा ने घर सजाने से ले कर सब के नाश्ते आदि का इंतजाम किया पर अम्मा ने बड़ी खूबसूरती से सारा श्रेय खुद ओढ़ लिया. उस का मन किया, ठहाका लगा कर हंसे. आत्मप्रशंसा में तो अम्मा का जवाब नहीं.ब्याह के कार्ड बंटने शुरू हो गए. आस और उम्मीद की डोर से बंधी सुवीरा सोच रही थी कि शायद इस बार अम्मा खुद आ कर बेटी को न्योता देंगी लेकिन अम्मा को न आना था न वह आईं. हां, निमंत्रण डाक से जरूर आ गया था.

गिरीश ने पत्नी के सामने भूमिका बांध कर रिश्तों के महत्त्व को समझाया था, ‘सोहन का ब्याह है, सुवीरा, चलना है.’गुस्से से सुवीरा का चेहरा तमतमा गया था, ‘सगाई पर बिना निमंत्रण के चली गई तो क्या अब भी चली जाऊंगी?’‘यह आया तो है निमंत्रण,’ गिरीश ने टेबल पर रखा गुलाबी लिफाफा पत्नी को पकड़ाया तो स्वर प्रकंपित हो उठा था सुवीरा का, ‘डाक से…’‘छोटीछोटी बातों को क्यों दिल से लगाती हो? रिश्ते कच्चे धागों से बंधे होते हैं. टूट जाएं तो जोड़ने मुश्किल हो जाते हैं.’जोर से खिलखिला दी सुवीरा उस समय. भाई के विवाह में शामिल होने की इच्छा अब भी दिल के किसी कोने में दबी हुई थी. मन में ढेर सारी उमंगें लिए दोनों बेटों और पति के साथ जनवासे पहुंची तो मेहमानों की आवभगत में उलझ अम्मा को यह भी ध्यान नहीं रहा कि बेटीदामाद आए हैं.मित्रों, परिजनों की भीड़ में अपना मनोरंजन खुद ही करने लगे थे गिरीश और सुवीरा. पार्टी जोरशोर से चल रही थी. हंसीठट्ठे का माहौल था. अचानक तारिणी की चिल्लाहट सुन कर दोनों का ध्यान उस ओर चला गया.विक्रम को पकड़े अम्मा कह रही थीं, ‘भीम की तरह 40 पूरियां खा गया, ऊपर से कीमती गिलास भी तोड़ दिया.’दौड़तीभागती सुवीरा जब तक मूल कारण तक पहुंचती, अम्मा जोर से चीखने लगी थीं. सहमीसकुची सुवीरा इतना ही कह पाई थी, ‘गलती से गिर गया होगा अम्मा. जानबूझ कर नहीं किया होगा.’अचानक गिरीश की आंखों से चिंगारियां बरसने लगीं. बिना कुछ खाए ही जनवासे से लौट आए थे और सास को सुना भी दिया था, ‘सोहन की ससुराल से आए सामान की तो आप को चिंता है लेकिन बेटीदामाद और उन के बच्चों की आवभगत की जरा भी चिंता नहीं है.’घर लौटने के बाद भी फोन घुमा कर चोट खाए घायल सिंह की तरह ऐसी पटखनी दी थी सास तारिणी को कि तिलमिला कर रह गई थीं, ‘अम्मा, मेरे बेटे ने आप की 40 पूरियां खाई हैं या 50, आप चिंता मत करना. मुझ में इतना दम है कि आप के उस खर्च की भरपाई कर सकूं.’वह रात सुवीरा ने जाग कर काटी. पीहर के हर सुखदुख में सहभागिता दिखाते उन के पति का इस तरह अपमान क्यों किया अम्मा ने आत्मविश्लेषण किया. उसे ही नहीं जाना चाहिए था भाई के ब्याह में. हो सकता है अम्मा बेटीदामाद को बुलाना ही न चाहती हों. डाक के जरिए न्योता भेज कर महज औपचारिकता निभाई हो.विक्रम और विनय अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. मानअपमान की भाषा भी खूब समझने लगे थे.

मां को धूर्तता का उपहार देने वाले लोगों से बच्चों को कतई हमदर्दी नहीं थी. कितनी बार मनोबल और संयम टूटे. गिरीश की बांहों का सहारा न मिला होता तो सुवीरा कब की टूट चुकी होती.एक दिन अचानक दीनदयाल के मरने का समाचार मिला. कांप कर रह गई सुवीरा उस दिन. अब तक दीनदयाल ही ऐसे थे जो संवेदनात्मक रूप से बेटी से जुड़े थे. मां की मांग का सिंदूर यों धुलपुंछ जाएगा, सुवीरा ने कभी इस की कल्पना भी नहीं की थी. पति चाहे बूढ़ा, लाचार या बेसहारा ही क्यों न हो, उस की छत्रछाया में पत्नी खुद को सुरक्षित महसूस करती है.अब क्या होगा, कैसे होगा, सोचतेविचारते सुवीरा मायके जाने की तैयारी करने लगी तो पहली बार अंगरक्षक के समान पति और दोनों बेटे भी साथ चलने के लिए तैयार हो उठे. एकमत से सभी ने यही कहा कि वहां जा कर फिर से अपमान की भागी बनोगी पर सुवीरा खुद को रोक नहीं पाई थी. मोह, ममता, निष्ठा, अपनत्व के सामने सारे बंधन कमजोर पड़ते चले गए थे. ऐसे में सीमा ने ही साथ दिया था.‘जाने दीजिए आप लोग मां को. ऐसे समय में तो लोग पुरानी दुश्मनी भूल कर भी एक हो जाते हैं. यह भी तो सोचिए, नानाजी मां को कितना चाहते थे. कोई बेटी खुद को रोक कैसे सकती है.’मातमी माहौल में दुग्धधवल साड़ी में लिपटी अम्मा के बगल में बैठ गई थी सुवीरा. दिल से पुरजोर स्वर उभरा था. सोहन के पास तो इतना पैसा भी नहीं होगा कि बाबूजी की उठावनी का खर्चा भी संभाल सके. भाई से सलाह करने के लिए उठी तो लोगों की भीड़ की परवाह न करते हुए सोहन जोरजोर से चीखने लगा, ‘चलो, जीतेजी न सही, बाप के मरने के बाद तो तुम्हें याद आया कि तुम्हारे रिश्तेदार इस धरती पर मौजूद हैं.’चाहती तो सुवीरा भी पलट कर इसी तरह उसे अपमानित कर सकती थी. जी में आया भी था कि इन लोगों से पूछे कि चलो मैं न सही पर तुम लोगों ने ही मुझ से कितना रिश्ता निभाया है पर कहा कुछ नहीं था. बस, खून का घूंट पी कर रह गई थी.लोगों की भीड़ छंटी तो सोहन की पत्नी से पूछ लिया था सुवीरा ने, ‘बैंक में हड़ताल है और मुझ से इस घर की आर्थिक स्थिति छिपी नहीं है.

ऐसे मौकों पर अच्छीखासी रकम की जरूरत होती है. इसीलिए कुछ पैसे लाई थी, रख लो.’‘क्यों लाई है पैसे?’ मां के मन में पहली बार परिस्थितिजन्य करुणा उभरी थी पर सोहन का स्वर अब भी बुलंद था.‘तुम मदद करने नहीं जायदाद बांटने आई हो. जाओ बहना, जाओ. अब तुम्हारा यहां कोई भी नहीं है.’सोहन की पत्नी ने कई बार पति को शांत करने का असफल प्रयास किया था लेकिन गिरीश अच्छी तरह समझ गए थे कि सोहन ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है. दंभी इंसान हमेशा दूसरे को गलत खुद को सही मानता है.‘इस बदजबान को हम सुधारेंगे,’ जवानी का खून कहीं अनर्थ न कर डाले, इसीलिए सुवीरा ने रोका था अपने बेटों को.‘हम कौन होते हैं किसी को सुधारने वाले? स्वभाव तो संस्कारों की देन है.’लेकिन गिरीश उद्विग्न हो उठे थे.‘सुवीरा, कब तक आदर्शों की सलीब पर टंगी रहोगी? खुद भी झुकोगी मुझे भी झुकाओगी जिन लोगों में इनसानियत नहीं उन से रिश्ता निभाना बेवकूफी है. यदि आज के बाद तुम ने इन लोगों से संबंध रखा तो मेरा मरा मुंह देखोगी.’घर लौट कर गिरीश ने कई बार अपनी दी हुई शपथ का विश्लेषण किया था पर हर बार खुद को सही पाया था. जिन रिश्तों के निभाने से तर्कवितर्क के पैने कंटीले झाड़ की सी चुभन महसूस हो, गहन पीड़ा की अनुभूति हो, उसे तोड़ देना क्या गलत था? कहते समय कब सोचा था उन्होंने कि सुवीरा का पड़ाव इतना निकट था?बेहोशी की दशा में सन्नाटे को चीरते हुए सुवीरा के होंठों से जब सोहन और अम्मा का नाम छलक कर उन के कानों से टकराया तो उन्हें महसूस हुआ कि इतना सरल नहीं था सब. सिरहाने बैठे विक्रम की हथेलियों को हौले से थाम कर सुवीरा ने अपने शुष्क होंठों से सटाया, फिर चारों ओर देखा. उस की नजरें मुख्यद्वार पर अटक कर रह गईं.‘‘सुवीरा, विगत को भूल जाओ. मांगो, जो चाहे मांगो. मैं अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखूंगा.’’‘‘अंतिम समय में इस धरती से विदा लेते समय कांटों की गहरी चुभन झेलते हुए प्राण त्याग कर मुझे कौन सी शांति मिलेगी?’’‘‘क्यों इतना दुख करती हो? संबंधजन्य दुख ही तो दुख का कारण होते हैं,’’ दीर्घ निश्वास भर कर गिरीश ने पत्नी को सांत्वना दी थी.‘‘देखना, मेरे मरने के बाद ये लोग समझेंगे कि मेरा निश्छल प्रेम किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखता था. मुझे तो सिर्फ प्यार के दो मीठे बोल और वैसी ही आत्मीयता चाहिए थी जैसी अम्मा सोहन को देती थीं.’’घनघोर अंधेरे में सुवीरा की आवाज डूबती चली गई. शरीर शिथिल पड़ने लगा, आंखों की रंगत फीकी पड़ने लगी. धीरेधीरे उन के चेहरे की तड़प शांत हो गई. स्थिर चिरनिद्रा में सो गई सुवीरा.पत्नी की शांत निर्जीव देह को सफेद चादर से ढक उन की निर्जीव पलकों को हाथों के दोनों अंगूठों से हौले से बंद करते हुए गिरीश आत्मग्लानि से घिर गए. पश्चात्ताप से टपटप उन की आंखों से बहते आंसू सुवीरा की पेशानी को न जाने कब तक भिगोते रहे.‘‘अपनी अम्मा और भाई को एक नजर देखने की तुम्हारी अभिलाषा मेरे ही कारण अधूरी रह गई. दोषी हूं तुम्हारा. गुनहगार हूं.

मुझे क्षमा कर दो.’’जैसे ही सुवीरा के मरने का समाचार लोगों तक पहुंचा, भीड़ का रेला उमड़ पड़ा. गिरीश और दोनों बेटों की जानपहचान, मित्रों और परिजनों का दायरा काफी बड़ा था.तभी लोगों की भीड़ को चीरते हुए सोहन और तारिणी आते दिखाई दिए. बहन की शांत देह को देख सोहन जोरजोर से छाती पीटने लगा. उसे देख तारिणी भी रोने लगीं.‘‘अपने लिए तो कभी जी ही नहीं. हमेशा दूसरों के लिए ही जीती रही.’’‘‘हमें अकेला छोड़ गई. कैसे जीएंगे सुवीरा के बिना हम लोग?’’नानी का रुदन सुन दोनों जवान बेटों का खून भड़क उठा. मरने के बाद मां एकाएक उन के लिए इतनी महान कैसे हो गईं? दंभ और आडंबर की पराकाष्ठा थी यह. यह सब मां के सामने क्यों नहीं कहा? इन्हीं की चिंता में मां ने आयु के सुख के उन क्षणों को भी अखबारी कागज की तरह जला कर राख कर दिया जो उन्हें जीवन के नए मोड़ पर ला कर खड़ा कर सकते थे.उधर शांत, निर्लिप्त गिरीश कुछ और सोच रहे थे. कमल और बरगद की जिंदगी एक ही तराजू में तौली जाती है. कमल 12 घंटे जीने के बावजूद अपने सौंदर्य का अनश्वर और अक्षय आभास छोड़ जाता है जबकि 300 वर्ष जीने के बाद जब बरगद उखड़ता है तब जड़ भी शेष नहीं रहती.कई बार सुवीरा के मुंह से गिरीश ने यह कहते सुना था कि प्यार के बिना जीवन व्यर्थ है. लंबी जिंदगी कैदी के पैर में बंधी हुई वह बेड़ी है जिस का वजन शरीर से ज्यादा होता है. बंधनों के भार से शरीर की मुक्ति ज्यादा बड़ा वरदान है.सुवीरा की देह को मुखाग्नि दी जा रही थी लेकिन गिरीश के सामने एक जीवंत प्रश्न विकराल रूप से आ कर खड़ा हो गया था. कई परिवार बेटे को बेटी से अधिक मान देते हैं. बेटा चाहे निकम्मा, नाकारा, आवारागर्द और ऐयाश क्यों न हो, उसे कुल का दीपक माना जाता है, जबकि बेटी मनप्राण से जुड़ी रहती है अपने जन्मदाताओं के साथ फिर भी उतने मानसम्मान, प्यार और अपनत्व की अधिकारिणी क्यों नहीं बन पाती वह जितना बेटों को बनाया जाता है. यदि इन अवधारणाओं और भ्रांतियों का विश्लेषण किया जाए तो रिश्तों की मधुरता शायद कभी समाप्त नहीं होगी.

Car Safety : ऐसे रखें कार की सेहत का ख्याल

Car Safety : जीवन का एक और पहलू जिस में लोगों की बुरी आदतें होती हैं, चाहे उन्हें पता हो या न, वह है गाड़ी चलाते समय का. कोई भी व्यक्ति परफैक्ट ड्राइवर नहीं होता, लेकिन कुछ ऐसी ड्राइविंग आदतें होती हैं जो आने वाले समय में कार में गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती हैं.

कार खरीदने के लिए बड़ी रकम की आवश्यकता होती है. कोई लोन ले कर खरीदे या अपनी जमापूंजी का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर के. बहुत लोगों के लिए यह सपना है जो लाइफटाइम में एक बार ही पूरा हो पाता है. तब क्यों न हम अच्छे से इस की देखभाल करें. हमारी कुछ बुरी आदतें होती हैं जो कार हैल्थ के लिए दुश्मन हैं-

पार्किंग ब्रेक न लगाना

ढलान पर पार्किंग ब्रेक नहीं लगाना कभी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है. समतल पर भी पार्किंग ब्रेक लगाना चाहिए. आजकल नई गाडि़यों में इन्हें न लगाना कार के लिए बुरा है. इसे नहीं लगाने से कार का पूरा लोड ट्रांसमिशन सिस्टम के एक छोटे से पुर्जे, जिसे पार्किंग पौल कहते हैं, पर आ जाता है. इस के चलते इस का वियर टियर (घिसना, टूटना) जल्दी होता है और कभी टूट भी सकता है.

तेल की टंकी खाली या बहुत कम तेल रखना

अकसर तेल की टंकी में कुछ लोग बहुत कम पैट्रोल या डीजल रखते हैं. फ्यूलपंप तेल में डूबे रहने से पंप ठंडा रहता है और बेहतर काम करता है. कहीं ऐसा न हो पैट्रोलपंप पर थोड़ाथोड़ा तेल भरवाने की आदत के चलते फ्यूलपंप ही न बदलना पड़ जाए.

रिवर्स गियर के बाद तत्काल फौरवर्ड गियर लगाना

जब कार रिवर्स गियर में हो तो उसे पूरी तरह रुकने के बाद ही फौरवर्ड गियर लगाएं. अकसर कुछ लोग बिना पूरा रुके रिवर्स से फौरवर्ड गियर में आने की भूल कर बैठते हैं. इस के चलते गियर ट्रेन पर बुरा असर होता है.

स्टार्ट के तुरंत बाद रेस देना

कार स्टार्ट करने के बाद ही कुछ लोग जल्दबाजी में इसे एक्सिलरेटर दबा कर रेस देते हैं. स्टार्ट करने के बाद एक से दो मिनट तक इसे औयलिंग करने दें. ऐसा करने से इंजन के सभी पुर्जों तक लुब्रिकेटिंग औयल पहुंचने से इंजन ब्लौक और इंजन औयल का टैंपरेचर धीरेधीरे सामान्य हो जाता है तुरंत रेस देने से अचानक तापमान बढ़ जाता है जिस से इंजन के पुर्जों पर स्ट्रैस पड़ता है.

गियर लीवर पर हाथ रखना

हमारे यहां अभी भी ज्यादातर कार में मैन्युअल ट्रांसमिशन है यानी गियर चेंज हाथ से गियर लीवर की मदद से करते हैं. कुछ लोगों में इस लीवर पर अकसर एक हाथ रखे रहने की आदत होती है, इस से ट्रांसमिशन सिस्टम के बुश पर स्ट्रैस पड़ता है और यह जल्दी खराब हो सकता है, इसलिए गियर शिफ्टर को गियर बदलते समय ही हाथ लगाएं. बेहतर है, दोनों हाथ स्टीयरिंग व्हील पर रहें ताकि इमरजैंसी में गाड़ी को आसानी से कंट्रोल कर सकें.

क्लच पर पैर रखना

मैन्युअल ट्रांसमिशन में अकसर हम बाएं पैर को क्लच पैडल पर रखने की भूल करते हैं, खासकर सिग्नल पर. सिग्नल ग्रीन होने पर जल्द से जल्द गियर में डाल कर हम आगे निकलना चाहते हैं. क्लच का इस्तेमाल गियर चेंज करने में ही करें, इस पर अनावश्यक रूप से पैर का दबाव पड़ने से इस का डिस्क घिसता है और रिलीज बियरिंग को भी नुकसान होता है. इस आदत से क्लच जल्दी खराब होता है.

अनावश्यक लोडिंग या ओवरलोडिंग

कार में अनावश्यक सामान रखना या ज्यादा पैसेंजर लोड करना ठीक नहीं. लोड जितना ज्यादा होगा उतना ही ज्यादा स्ट्रैस सस्पैंशन, ब्रेक और ड्राइवर ट्रेन पर तो पड़ेगा ही, तेल की खपत भी ज्यादा होगी. अकसर कार के ट्रंक में अनावश्यक चीजें पड़ी रहती हैं.ढलान पर ब्रेक पैडल दबाए रखना: ढलान पर उतरते समय कुछ लोग स्पीड ज्यादा रखते हैं और उसे कंट्रोल करने के लिए ब्रेक का बारबार इस्तेमाल करते हैं. इस के चलते ब्रेक पैड्स और पहिए के ड्रम गरम होते हैं. ऐसे में ब्रेक के जल्दी खराब होने का खतरा होता है और साथ में कुछ ईंधन भी बरबाद होता है. ढलान पर स्पीड को लो गियर में रख कर कंट्रोल करें, इस स्थिति में ब्रेक भी बेहतर काम करते हैं.

वार्निंग साइन अनदेखा करना

कार में कभी असामान्य गतिविधि को अनदेखा न करें, जैसे वाइब्रेशन यानी कंपन, चरचराहट या चींचीं जैसी आवाज या नौकिंग. शुरू में ही चैक कर इस का निदान कर लेना चाहिए वरना यह बढ़ कर किसी मुसीबत या बड़े खर्चे को निमंत्रण देना हो सकता है.

फ्लोरिंग करना

कुछ लोग आदत से या कभी सिर्फ फन के लिए कार के एक्सिलरेटर पैडल को बहुत ज्यादा दबा कर अचानक कार की स्पीड बहुत बढ़ा देते हैं, फिर ब्रेक पैडल को पूरा दबा कर कार रोक देते हैं. अचानक एक्सिलरेट करने से ट्रांसमिशन सिस्टम और ड्राइव ट्रेन पर काफी जोर पड़ता है और साथ ही, ईंधन बरबाद होता है. अचानक ब्रेक लगाने से ब्रेक पैड्स बहुत गरम हो जाता है और ब्रेक पैड्स व पहिए (ड्रम) का वियर टियर ज्यादा होता है.

Emotional Story : मां और मैं

Emotional Story : मैं जो था, वह मैं अच्छी तरह समझता और महसूस करता था. बाबा यह सब स्वीकार करते हुए शायद शर्मिंदगी महसूस करते थे लेकिन मां ने मुझे जगजाहिर कर मुझे मेरी नजरों में ‘अनमोल’ बना दिया था. ‘‘संतोष, कितना आसान है न, सारी गलतियों का बो झ महिलाओं पर डालना. क्या कभी तुम ने मेरे नजरिए से कुछ देखनेसम झने की कोशिश की है?’’ आई कहने लगीं.इस पर खी झ कर बाबा ने कहा, ‘‘रेणु, तुम औरतों का तो काम ही है कि अपनी गलती कभी मानो ही न और दूसरों को सम झाती रहो कि वह तुम्हें सम झे. खैर, मु झे तुम से बहस ही नहीं करनी. तुम हो ही ऐसी. एक तो औलाद भी ऐसी दी है जिस ने कही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. उलटा, मु झे ही शर्म आ जाए और ऊपर से तुम्हारी बकबक. कितना प्रैशर होता है दिमाग पर तुम्हें पता भी नहीं होगा. तुम तो घर में रहती हो, कभी बाहर जा कर खुद कमाओ तो पता चले. आई कान्ट बियर बोथ औफ यू एनीमोर. आई रियली कान्ट बियर दिस. मैं जा रहा हूं और सीधे कल सुबह ही आऊंगा एक नया बम फोड़ने.’’ और गुस्से से दरवाजे को जोर से बंद करते हुए चले गए. एक तरफ जहां मुंबई जैसे बड़े शहर के एक छोटे से इलाके में हर रोज किसी को ट्रैफिक के शोर की आवाज, किसी को रेडियो, तो किसी को अपने देर होने की घंटी सुनाई देती, तो कोई अपने में मग्न रहता है. यहां देश के सब से अमीर लोग रहते हैं जिन के करोड़ों के बंगले हैं तो गरीबों की सब से बड़ी बस्ती भी
यहीं ही है लेकिन मजाल इन अमीरों की कि इस शहर को आदर्श कहा जाए. वही किचकिच, मगजमारी, तूतूमैंमैं. आर्थिक राजधानी तो यह शहर बन गया है लेकिन लगता है अमीरों के लिए, बाकी गरीबों के लिए तो लोकल ट्रेन के थर्ड क्लास के डब्बे भर रह गए हैं जिन में खचाखच भीड़, उमस और सड़न है. सड़न हर तरह की है, कभी ऊंचनीच की, कभी अमीरगरीब की तो कभी लिंगभेद की. इन सब के बीच एक मैं हूं, जिसे लोग ‘बीच’ का कह देते हैं, जानते हो बीच का क्या होता है? हिजड़ा, किन्नर, छक्का. मेरे जीवन में रोजरोज की ये सारी चीजें ऐसे घुस गई हैं जैसे मेरी बुक का मोस्ट इंपौर्टैंट क्वैश्चन हो जो इस साल के 12वीं बोर्ड एग्जाम में जरूर पूछा जाएगा. मु झे लगता है कि बाबा आई से नहीं बल्कि मु झ से नाराज हैं. शायद आई और बाबा को लगता है कि मु झे इस बात से फर्क नहीं पड़ता पर मु झे भी बाबा की बातें बुरी लगती हैं. आई एम नौट ए किड एनीमोर पर आई को रोता देख मैं कभी अपनी फीलिंग्स नहीं बता पाता. मु झे याद है बचपन में जब मैं ने पहली बार आई से पूछा था कि औलाद क्या होती है और जवाब में मु झे आई ने बताया था कि जो बच्चा सम झदार हो और मातापिता को तंग न करे वह अच्छी औलाद है और मैं मन ही मन उस समय खुश हुआ करता था कि मैं एक अच्छी औलाद हूं. लेकिन बाबा की तरफ से तो मु झे सिर्फ नफरत का एहसास होता रहा है.

मैं बचपन में अपने बाबा को किसी हीरो से कम नहीं सम झता था. दिखने में मु झे एकदम फिल्मी हीरो अक्षय कुमार जैसे दिखते थे और आज भी उन की शक्ल काफी हद तक वैसी ही दिखती है. बस, फर्क सिर्फ भयानक मूंछ का है. बाबा की मूंछ देख कर सब यही सम झते थे कि वे जरूर कोई आर्मी अफसर होंगे जबकि असल में उन की चौपाटी के पास वाली रोड पर कपड़ों की छोटी सी दुकान है.और आई, मेरी आई, मेरे लिए आज के टाइम की वे मौडर्न लेडी जैसी हैं जो दिखने में बहुत सुंदर लगती हैं, वे सुशील भी हैं, उन के बाल अभी तक वैसे ही काले और बड़े हैं जैसा कि मैं ने बचपन में देखा था और जब वे उन बालों का जूड़ा बना कर उस में गजरा लगाती थीं तब तो मानो कोई अप्सरा हो. सिर्फ यही नहीं, मेरी आई, बाबा से ज्यादा पढ़ीलिखी भी हैं. मैं कई बार सोचता हूं कि अगर आई को मिसवर्ल्ड के लिए चुना जाए तो इस में कोई नई बात न होगी. बस, आई की एक ही दिक्कत है और वह है उन का समाज के चार लोगों का मेरे लिए डर. मु झे आज भी याद है, जब मैं ने 10वीं बोर्ड क्लास में अपना स्कूल बदला था तब मैं ने अपने एडमिशन फौर्म में आई से पूछा था, ‘जैंडर वाले कौलम में क्या लिखूं?’ और आई ने हर बार की तरह डरते हुए कहा था, ‘मेल लिख दो.’ मैं कभी आई को दुखी नहीं करना चाहता, इसलिए मैं ने बिना कुछ सोचे आई की बात मान ली थी पर यह सचमुच मेरे लिए सोचने वाली बात है कि सिर्फ मेरी आई ही नहीं, क्या सभी लोग मु झ जैसे लोगों से डरते हैं? क्यों आखिर ‘मेल और फीमेल’ के अलावा हमारे पास विकल्प नहीं होते?पर मैं आई को खुल कर बताना चाहता हूं कि मेरा मन भी कभीकभी उन की तरह कपड़े पहन कर, तैयार हो कर घूमने का होता है, मैं भी चाहता हूं कि लड़कों के जैसे नहीं बल्कि लड़कियों के जैसे तरहतरह के फैशन वाले कपड़े पहनूं. बिलकुल उन्हीं की तरह मेकअप करूं और वह सब करूं जो मैं करना चाहता हूं. काश, आई ने मु झे इस के लिए रोकटोक न लगाई होती. पर मैं जरूर एक दिन आई को, बाबा को, दोस्तों को और सभी को पूरी दुनिया को चीखचीख कर सारी बात बताना चाहता हूं कि मैं अपनी लाइफ को अपनी तरह से जीना चाहता हूं. समाज के डर से लड़का बन कर नहीं, खुले मन से लाइफ एंजौय करना चाहता हूं. अपनी मरजी के कपड़े पहनना चाहता हूं. अपने दोस्तों को अपने बारे में खुल कर बताना चाहता हूं और सिर्फ स्कूल ही नहीं सभी जगह खुशीखुशी मेल या फीमेल नहीं, ‘ट्रांसजैंडर’ लिखना चाहता हूं. खुले आसमान में अपनी मरजी से अपनी तरह जीना चाहता हूं. ये सारी दिल की इच्छाएं न जाने कब पूरी होंगी. मु झे अभी तक यह बात याद है जब पड़ोस वाली दादी पिछले महीने हमारे घर आई थीं तब वे मेरी आई से कह रही थीं, ‘तुम्हारा बेटा कितना सुंदर दिखता है, एकदम गोरा, चटक रंग जैसे कोई सफेद फूल हो और बाल तो ऐसे भूरे हैं जिन्हें देख कर कोई भी कह दे कि यह जरूर कोई विदेशी होगा. कदकाठी भी ठीक है पर शरीर में लचीलापन एकदम लड़कियों सा है और बात करने का ढंग, बैठने का ढंग और यहां तक बातें भी एकदम ऐसे करता है जैसे मेरी नटखट पोती हो. काश, यह लड़का नहीं लड़की होता पर जो भी हो, इस के रहते तुम्हें बेटी की कमी नहीं खलती होगी.’’ और दोनों हंसने लगी थीं.

आई का तो पता नहीं पर मु झे यह सुन कर बहुत अच्छा लगा था. काश, यह सच हो जाए. उस के बाद तो मैं खुल कर जितनी चाहे उतनी लड़कियों से दोस्ती कर पाऊंगा पर ऐसा सोचते ही दूसरे पल मु झे बाबा की नफरतभरी निगाहें आंखों के सामने आने लगीं.मैं ने एक बार आई और बाबा की लड़ाई में सुना था कि आई ने सिर्फ मेरे कारण अपनी स्कूल टीचर वाली सरकारी नौकरी छोड़ दी थी जिस के लिए आई ने दिनरात एक कर के एग्जाम क्लीयर किया था. नौकरी छोड़ने पर बाबा ने उन्हें बहुत डांटा था. मु झे  लगता है आई को पता चल गया था कि बाबा मु झे मेरे ही जैसे लोगों के साथ मौका मिलते ही छोड़ आएंगे. शायद इसलिए आई कभी मु झे अकेले नहीं छोड़तीं. और इसलिए मु झे बाबा बिलकुल उस बिल्ली की तरह लगते हैं जो चूहे पर घात लगाए बैठी रहती है जिस में बलि चढ़ने वाला चूहा मैं ही हूं और आई को मेरे लिए समाज के 4 लोग वाली चिंता करते देख कर समाज बिलकुल उस भूखे शेर की तरह लगता है जो चूहाबिल्ली जैसे सभी छोटेमोटे जानवरों को खा जाएगा. मेरे लिए तो बिल्ली का शिकार होना और शेर का शिकार होना दोनों एक ही बात हैं क्योंकि शिकार आखिर मैं ही हूं. पर मैं हर बार यह सोचता हूं कि अगर मैं अपनेआप को शिकार न मानूं तो अच्छा रहेगा. आखिर मु झ जैसे कितने ही लोग इस दुनिया मे होंगे जो किसी न किसी बात से परेशान हैं पर मैं अपनेआप को इतना कमजोर भी नहीं मानता क्योंकि मेरे पास मेरी आई है और आई के पास मैं. पर क्या मेरे जैसे सब लोगों के पास आई होगी? इस की उम्मीद कम है पर कोर्ट तो है न, जो सहीगलत का फैसला करता है, तभी तो मेरे जैसे कितने लोग कोर्ट तक चले गए हैं और आज भी अपनी मनमरजी से अपनी इच्छा के लाइफ पार्टनर के साथ शादी करने के लिए लड़ रहे हैं. मु झे बस कल का इंतजार है. मु झे लगता है मैं आई से जा कर कह दूं कि बाबा जैसे इंसान को वे छोड़ दें, अब मैं सबकुछ अकेले कर सकता हूं. लेकिन आई को उन की मरजी के बगैर कुछ ऐसी बात कहने में हिचक होती है जो उन्हें नाराज कर दे. खैर, जो भी हो, मैं तो हमेशा आई के साथ ही हूं.पर आज आई सचमुच इतनी मायूस बैठी हैं जितनी वे मेरे भाई को खोने के बाद बैठी थीं. मु झे वह पल बिलकुल अभी के जैसा लग रहा है, ऐसा ही घुप्प अंधेरा और उस में आई की सिसकियोंभरी आवाज और मैं डर के मारे एक कोने से आई को देखे जा रहा था. वैसा ठीक अभी भी हो रहा है. काश, कोई आ कर उजाला कर दे. और न जाने कैसे और कब मेरी आंख लग गई, नींद तब टूटी जब बाबा आ चुके थे और आई से तलाक जैसी कुछ बातें बोल रहे थे और आई, आई तो जैसे यह सुन कर जिंदा लाश सी बनी हुई थीं जिन के सिर्फ आंसू ऐसे निकल रहे हों मानो किसी ने पानी का नल खोल दिया हो और बंद करना भूल गया हो.और मैं? आखिर मैं भी तो यही चाहता हूं कि बाबा हमारी जिंदगी से चले जाएं और सारे आंसू, दुख और परेशानी ले कर जाएं. फिर आई और मैं बहुत खुश रहेंगे पर आई तो जैसे पत्थर बनी हुई हैं. आज बाबा के कहने पर उन्हें मु झ में और बाबा में से किसी एक को चुनना होगा.

अब भला पत्थर कभी कुछ बोल सकता है क्या? बहुत देर बाद आई ने रोंआसीभरी आवाज में कहा, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें तलाक देने के लिए तैयार हूं पर उस के पहले तुम्हें कल की पार्टी तक साथ रहना होगा और उस में हमारे रिश्तेदार, पड़ोसी, समाज के लोग जैसे सभी लोग होने चाहिए.’’बिना कुछ सोचे गुस्से में बाबा ने हामी भर दी.लेकिन मेरी आंखें अब भी आई से सवाल लिए बैठी हैं कि आखिर वे ऐसा क्यों करना चाहती हैं? क्या सभी के सामने वे बाबा का तमाशा बनाएंगी? नहींनहीं, इतना तो मैं जानता हूं आई को. पर बाबा? उन्होंने भी आई से इस का कारण क्यों नहीं पूछा? और कल इतनी जल्दी सब कैसे हो पाएगा. पर करना ही क्यों है? दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद मु झे ध्यान आया कि कल ही के दिन मेरा भाई इस दुनिया को विदा कर के चला गया था और शायद हर बार की तरह इस बार भी उस की पुण्यतिथि में सब को बुलाया जाता है जिस के लिए सालभर बाबा अपनी छोटी सी कमाई का बहुत छोटा सा हिस्सा हर महीने जमा करते हैं. काश, इतना सब मेरे लिए किया होता तो मु झे 10वीं बोर्ड में अपना स्कूल छोड़ कर सरकारी स्कूल में एडमिशन न लेना पड़ता पर अभी तो बात तलाक की थी, इस में यह सब कहां से आ गया?अगले दिन मेरी आंखें फटी ही रह गईं जब आई ने मु झे तैयार करने के लिए मु झे वह महंगी ड्रैस पहनाई जो मैं ने एक बार फोन में दिखाई थी. आज पहली बार आई ने मेरे दिल की ख्वाहिश पूरी की है. इस ड्रैस में मैं बिलकुल उन लड़कियों जैसा लगूंगा जो बहुत सुंदर दिखती हैं. ऐसा नहीं है कि आई ने मु झे कभी लड़कियों वाले कपड़े नहीं पहनाए पर ऐसे किसी पार्टी के लिए इस तरह से तैयार करवाना, यह पहली बार हुआ है. लेकिन इस से ज्यादा खुशी मु झे आज आई को देख कर हो रही है. आज वे इतनी खुश लग रही हैं जितनी खुश वे मेरे बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट में मैरिट लाने पर हुई थीं पर ऐसा क्या हुआ है जिस से एक ही रात में आई के चेहरे पर असीम शांति वाली मुसकान है? मैं आई से कहना चाहता हूं कि आज अगर पार्टी में लोगों ने मु झे लड़कियों वाले कपड़ों में देख लिया तो फिर बाबा का सिर शर्म से झुक जाएगा, लेकिन उन्हें यह सब पता होने के बाद भी ऐसा क्यों कर रही हैं? आज सम झ आया ‘दिमाग का दही’ किसे कहते हैं. पार्टी हर बार की तरह इस बार भी हमारे घर के बगल वाले घरनुमा हौल में है. जिन का वह घर है वे विदेश में रहते हैं. कभीकभार छुट्टियों में आते हैं. ऐसे में बाबा को मुफ्त में एक बड़ा सा हौल मिल जाता है और टैंट का पैसा भी बच जाता है और घर असल में काफी अमीर लोगों का है तो उस में ज्यादा सजावट जैसे ताम झाम की जरूरत कभी पड़ी ही नहीं.

देखते ही कोई भी बोल दे कि अभीअभी इस को रेनोवेट करवाया हो. ऊपर से दिन के समय टैंट में गरमी भी तो बहुत लगती है.खैर, मु झे पता है, हर बार की तरह इस बार भी एक टेबल पर मेरे भाई की जन्म वाला एक फोटो फ्रेम और उस के सामने एक बड़ा सा दीया और उस के सामने अलग से टेबल पर एक थाली में परोसा हुआ आज का खाना जो मेरी पसंद का है आदि सब रखा है और आसपास कैटरिंग लगी हुई हैं जिन के खाने की मजेदार खुशबू नाक में दौड़ रही है.सभी लोगों के आने पर बाबा ने हर बार की तरह इस बार भी मेरे मर चुके भाई की याद में दीप जलाया और वही घिसीपिटी लाइन बोली जो वे हर बार बोलते हैं, ‘जैसा कि आप सभी को पता है, आज ही के दिन हमारे घर बेटा आया था और कुछ पल साथ रह कर जन्म लेने के कुछ पल बाद ही हम से दूर चला गया. उस की याद हमेशा मेरे दिल में रहेगी, इसलिए इस दिन को उस की याद में सैलिब्रेट करते हैं.’ और हर बार की तरह इस बार भी मैं कमरे में रह कर उन की बातों को अनसुना कर ही रहा था कि इतने में आई मु झे अपने साथ वहां ले जाने आईं जहां बाबा अभी ‘प्रवचन’ दे ही रहे थे.मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा है, ऐसा लग रहा था कि अब दिल फट कर बाहर आ ही जाएगा. पता नहीं क्या होगा जब किसी को पता चलेगा कि मैं लड़का नहीं हूं तो सब कैसे देखेंगे, क्या सोचेंगे सभी? सब आई और बाबा का मजाक तो नहीं बनाएंगे? कहीं सभी लोग मिल कर उन लोगों के पास तो नहीं भेज देंगे मु झे? नहींनहीं, यह नहीं होगा कभी भी.पर मैं जो सोच रहा था, वही, वही हो रहा है. आई जैसे ही मु झे लोगों के बीच ले जा रही हैं, लोगों के देखने का नजरिया अलग हो रहा है. जैसे ही मैं बाबा के पास पहुंचा, आई ने सब के सामने बोलना शुरू किया, ‘‘आज के दिन आप सभी को एक जरूरी बात भी बताना चाहती हूं, हमारा बेटा अनमोल असल में लड़का या लड़की नहीं बल्कि ट्रांसजैंडर है और मु झे यह बताते हुए बिलकुल भी शर्म नहीं आ रही है. अब तक यह बात सिर्फ संतोष, मु झे और अनमोल को ही पता है.‘‘पर मु झे यह बात इतने सालों तक छिपाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मु झे डर था कि समाज के 4 लोग कहीं न कहीं कुछ ऐसा जरूर बोलते जो मैं अपने बच्चे के लिए नहीं सुन सकती. माना मेरा बेटा बोल नहीं सकता पर बुरा तो उसे लग ही सकता है न. लेकिन अब मेरा बेटा बड़ा हो गया है और सब सम झने भी लगा है.

यह अभी 12वीं क्लास में है और साथ ही, एक छोटामोटा राइटर भी. मु झे लगता है कि समाज के डर से मैं ने यह सब किया है पर अब मैं आप सभी से यह पूछना चाहती हूं कि क्या मेरे बेटे को आप लोगों की तरह जीने का हक नहीं है?’’ और न जाने क्याक्या आई ने कह डाला होगा जो बातें मेरी सम झ के बाहर हो रही थीं. इस बात से मैं इतना डर गया कि मैं उस जगह से भाग कर सीधे अपने कमरे में जा कर छिप गया जहां कोई मु झे ढूंढ़ न पाए. मु झे सम झ नहीं आ रहा था कि आई ने एक सांस में ये सारी बातें इतनी आसानी से कह दीं, क्या आई को डर नहीं लगा?मु झे इस समय बाहर पार्टी में सभी लोग भूखे खूंखार शेर की तरह लग रहे हैं जो देखते ही मु झे खा जाएंगे. बस, आई मु झे हर बार की तरह इस बार भी बचा लेंगी ऐसा मुझे लगता है और शायद अभी जो कुछ भी आई कर रही हैं, वह भी मेरे लिए अच्छा ही साबित हो.बहुत लंबे समय तक अपने कमरे में बैठने के बाद मु झे लग रहा था आई मेरे पास जल्दी आ जाएंगी पर वे अभी तक नहीं आईं तो मैं ने अपने कमरे में नजरें घुमाना शुरू कर दिया. मैं ने आज से पहले कभी इस कमरे को इतना गौर से नहीं देखा था. सचमुच इस कमरे में मैं ने और आई ने मिल कर कितनाकुछ सजाया है और इस दीवार पर लगी मेरी और आई की बड़ी सी तसवीर बहुत खूबसूरत लग रही है और दीवार पर टंगी झालर भी आई के पायल की तरह आवाज कर रही है और यह पिक्चर वाल, इस में तो मेरे बनाए हुए वे सारे पिक्चर्स और स्कैच रखे हैं जो मैं ने बचपन से ले कर अभी तक बनाए हैं. सचमुच कितना सुंदर लगता है यह कमरा, मु झे आज पता चला. 2 कमरे और एक किचन वाले एक छोटे से घर में भी आई ने मेरी सारी जरूरतों को पूरा किया है. मेरे और दूसरे कमरे को देख कर कोई यह नहीं कह सकता कि ये दोनों ही कमरे एक ही घर के हैं. मेरा रूम किसी शानदार हवेली से कम नहीं होगा. शायद ज्यादा जरूरत तो घर की बाकी चीजों को सुधारने की है, जैसे आई का टूटा हुआ फोन जो अभी तक हैंग होता है पर मेरे पास उस से अच्छा फोन है. दूसरे, कमरे की छत जो किसी पुरानी घिसी जूती की तरह है जिस में से हर बार बारिश में पानी टपकता है, ऊपर से बढ़ती महंगाई और बाबा की कम कमाई. बाबा भी करे तो अब क्या ही करे. कुछ दिनों से लगातार कारोबार में घाटा ही तो हो रहा है. लेकिन इन सब में कभी भी आई ने मु झे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि हम मिडिल क्लास फैमिली से हैं. सचमुच मु झे इस बात की भी सम झ अब जा कर आई कि इस कमरे में ऐसा कोई भी समान नहीं है जिस में मेरे साथ मेरी आई का अस्तित्व न हो और जो नफरत मु झे बाबा से थी वह तो अब हवा में उड़ सी गई. और यह सब देखने के बाद मैं एकाएक कमरे से बाहर निकल आया. न जाने इतनी हिम्मत मु झ में कहां से आई पर मैं सीधा पार्टी की तरफ तेज कदमों के साथ चल दिया और सीधे जा कर आज बाबा के पास खड़ा हो गया.मुझे लग रहा था कि बाबा मु झ से दूर चले जाएंगे लेकिन यह क्या, बाबा खुद मुझे, मेरा हाथ पकड़ कर मेहमानों के बीच ले गए.

मेहमानों से जितना बन सका उतना इशारों में बात करने की कोशिश मैं ने की. बाकी काम बाबा ने संभाल लिया. आई मु झे यह सब करते देख मुसकराने लगीं तो मैं सम झ गया कि आई ने हर बार की तरह आखिर सब ठीक कर ही दिया. और सच में जब मैं ‘सो कौल्ड’ समाज के 4 लोगों से बातें करने लगा तब मु झे यह सम झ आया कि शायद यह सब एक अनसुल झे रहस्य की तरह है जो हम अपने समाज के प्रति अपने मन में छिपाए रहते हैं और जब हम इन रहस्यों को अपने मन में सुल झा लेते हैं तब हमें यह समाज भी हम से जुड़ा हुआ दिखाई देता है. उस समयसमाज के उन लोगों से बात करते समय मु झे उन्होंने किसी अलग तरीके से महसूस भी नहीं होने दिया. मैं यह सोचता हूं कि जब हम उन लोगों को अपनी उलझनें बताएंगे और उन से जू झने का रास्ता भी, तब शायद सभी एकता के साथ हम से सहमत हो कर हमारे साथ, हमारी हिम्मत बन सकते हैं.खैर, जो भी होता है, अच्छा होता है. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आज का दिन इतना अच्छा जाएगा. रात में मैं ने आज पहली बार आई और बाबा को प्यार से बात करते देखा और तलाक जैसे शब्द तो मानो हवा में ठीक उसी तरह गायब हो चुके थे जैसे पानी भाप बन कर उड़ कर गायब हो जाता है.और आई समाज के जिन लोगों से डरा करती थीं उन लोगों ने भी आज बहुत प्यार से बात की और यह साबित कर दिया कि हमें समाज से नहीं, खुद के विचारों से लड़ना होता है. मु झे ये पल बहुत अच्छे लग रहे हैं. सच कहूं तो समाज हमेशा हमारे साथ ही होता है, बस, फर्क इतना है कि उस का निर्णय हमें लेना होता है कि हमें समाज का साथ अच्छे या बुरे तरीके से चाहिए. मु झे लगता था कि मेरे ट्रांसजैंडर होने पर समाज मु झे मार डालेगा पर ऐसा नहीं है. समाज में एकता हमेशा से ही रही है और लोगों का नजरिया तो हम से और हमारे व्यवहार से बनता है. सचमुच, मैं शायद सही सोच रहा हूं.

 

लेखिका : आयुषी खवादे 

Best Hindi Story : बड़ी मिन्नतों के बाद हुआ बेटा

Best Hindi Story : बड़े जतन से आलोक और वाणी ने बेटे शिखर को पाया था. धीरेधीरे वाणी महसूस करने लगी थी कि पति आलोक धृतराष्ट्र की तरह पुत्रमोह में बंधे जा रहे हैं लेकिन वाणी ने गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी नहीं बांधी थी. ‘‘मु बारक हो, बेटा हुआ है.’’ नर्स ने आलोक की गोद में बच्चे को देते हुए कहा. आलोक ने अपने नवजात बेटे को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो आंखों से आंसू बह निकले. पिता बनने की खुशी हर आदमी के लिए खास होती है लेकिन आलोक के लिए ‘बहुत खास’ थी. गोद में ले बेटे को एकटक देखता रहा. चेहरे पर संतुष्टिभरी मुसकराहट खिल गई और उस ने बेटे को सीने से लगा लिया. मन ही मन खुद से वादा किया कि मैं सारी दुनिया की खुशी अपने बच्चे को दूंगा, वह भी बिना मांगे.आलोक और वाणी की शादी को 8 साल बीत चुके थे लेकिन वे संतान सुख से वंचित थे. इन 8 सालों में उन दोनों ने न जाने कितने डाक्टर बदले और कितने ही मंदिरों की चौखटों पर माथे रगडे़, अनगिनत मन्नतें, हवनयज्ञ, जिस ने जो उपाय बता दिया, वह किया. जब इंसान चारों तरफ से निराश होने लगता है तो इन सब अंधविश्वासों के घेरे में आ जाता है. लेकिन इन सब से कोई फायदा नहीं होता. इसलिए इन दंपती, यानी आलोक और वाणी का भी कोई फायदा न हुआ. रिश्तेदार तरहतरह के उपायउपचार बताने के साथ ही कभी सामने तो कभी पीछे ताने मारने से भी नहीं चूकते थे. कोई सहानुभूति के नाम पर हेय दृष्टि से देखता तो कोई अपने बच्चों को वाणी से दूर रखने की कोशिश करता.

आलोक और वाणी सब समझने के बाद भी कुछ न बोलते, बस, खून का घूंट पी कर रह जाते. वाणी ने दबी आवाज में बच्चा गोद लेने के लिए कहा तो परिवार में बवाल मच गया.‘पता नहीं किस का बच्चा होगा?’‘कौन सी बिरादरी का होगा?’‘अगर बच्चा लेना ही है तो रिश्तेदारी में से ही लो. ’एकदो धनलोलुप रिश्तेदारों ने तो अचानक उन से मेलजोल बढ़ाना भी शुरू कर दिया. आलोक और वाणी सब समझते थे, इसलिए उन्होंने रिश्तेदारों का बच्चा गोद लेने से साफ मना कर दिया. इस के बाद जो ताने दबी जबान में दिए जाते थे वे मुंह पर मिलने लगे.‘बांझ है, हम तो तरस खा कर अपना बच्चा दे रहे थे लेकिन एटिट्यूड तो देखो जरा, हूंह, हमें क्या, रहो ऐसे ही बेऔलाद.’वाणी आलोक के सीने से लग रो लेती लेकिन किसी को पलट कर जवाब न देती. उस वक्त दोनों ने संतान की उम्मीद छोड़ दी. लेकिन किस के लिए क्या होने वाला है, यह कोई जानता तो जिंदगी कितनी आसान लगती.इतने बरस के इंतजार के बाद वाणी की प्रैग्नैंसी की खबर ने रेगिस्तान से तपते मन को शीतल कर दिया था. पूरे 9 महीने आलोक ने वाणी का हद से ज्यादा ध्यान रखा. रैगुलर चैकअप, खानपान, मूड स्विंग आदि सब को संभालता आलोक एकएक दिन गिन रहा था. वहीं रिश्तेदारों के मुंह पर ताले लग गए थे.आलोक और वाणी की सारी दुनिया अब उन के बच्चे तक सिमट गई थी. जिस बच्चे के लिए उन्होंने सालों तपस्या की थी वह अब उन के सामने था. बड़े चाव से नाम रखा ‘शिखर.’ आलोक ने सारा घर खिलौनों से भर दिया. सोतेजागते, बस, शिखर ही उस के दिमाग में रहता. जितने समय घर में रहता, बेटे को गोद में रखता, इस बात पर अकसर वाणी से उस की बहस भी हो जाती. ‘‘आलोक, शिखर को हर वक्त गोद में रखोगे तो यह चलना कैसे सीखेगा?’’‘‘चलने लगेगा. मैं अभी इसे नीचे नहीं छोड़ूंगा, कहीं चोट लग गई तो?’’वाणी, आलोक के इस रवैए से खीझ जाती लेकिन आलोक का प्यार करने का यही तरीका था. नतीजा यह हुआ कि शिखर ने चलना देर से शुरू किया और अपने हाथ से खाना तो उसे 9 साल की उम्र में आया.‘‘मम्मा, आज मैम ने मुझे डांटा.’’‘‘क्यों?’’‘‘मैं ने सान्या को धक्का दिया था,’’ कह कर वह शरारत से मुसकरा दिया.उस की बात से वाणी को बहुत तेज गुस्सा आया तो आलोक ने हंस कर बात टाल दी, ‘‘मैं कल तुम्हारी टीचर से मिल कर आता हूं. ऐसे कैसे डांट सकती हैं मेरे क्यूट से बच्चे को.’’‘‘आलोक, यह गलत है. शिखर ने गलती की है और तुम उसे शह दे रहे हो.’’आलोक ने वाणी की बात अनसुनी कर शिखर को गोद में उठा लिया.वक्त अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था और शिखर भी बड़ा होने लगा.

आलोक बेटे के मुंह से निकली हर बात पूरी करता, फिर वह जायज हो या नाजायज. ऐसा नहीं था कि वाणी अपने बेटे को कम प्यार करती थी लेकिन वह समझती थी कि अच्छी परवरिश के लिए सख्ती भी जरूरी है और आलोक को भी सम?ाती लेकिन आलोक न तो खुद शिखर को कुछ कहता और न ही वाणी को कहने देता. आलोक के इसी रवैए के कारण 14 साल का शिखर एक जिद्दी और बिगड़ैल किशोर बन गया.अपनी जिद मनवाने के लिए उसे बहुत ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती थी. जिस दोस्त के पास जो चीज देख लेता वही उस को भी चाहिए होती थी. अगर कभी वाणी मना कर देती तो शिखर जोरजोर से चिल्लाता और हंगामा खड़ा कर देता क्योंकि उसे तो बचपन से ही मन की करने की आदत थी. वाणी के लिए यह सब बरदाश्त से बाहर था लेकिन आलोक उसे कुछ कहने नहीं देता. सच तो यह था कि आलोक अब खुद भी शिखर के जिद्दी स्वभाव के चलते अंदर ही अंदर परेशान था लेकिन धृतराष्ट्र की तरह पुत्रमोह में बंधा था, ऐसा मोह संतान का सर्वनाश करता है, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी. आज शिखर ने स्कूल से वापस आते ही स्कूल बैग एक तरफ फेंक, जूते उतारते हुए फरमान जारी किया, ‘‘मम्मा, मुझे मोबाइल चाहिए.’’ उस के स्वर में रिक्वैस्ट नहीं और्डर था.वाणी ने शिखर को पलट कर देखा और खाना लगाते हुए ही बोली, ‘‘तुम्हें फोन की क्या जरूरत है?’’‘‘मेरे सब दोस्तों के पास फोन है, एक मेरे ही पास नहीं है.’’‘‘ठीक है, मेरा पुराना फोन रखा है, उसे ले लेना.’’‘‘पुराना? क्या बोल रही हो, मैं पुराना फोन यूज करूंगा? मुझे नया फोन चाहिए,’’ रोब के साथ चिल्लाते हुए वह बोला.‘‘शिखर.’’‘‘रहने दो मम्मा, मैं पापा से बात कर लूंगा. आप तो मुझे प्यार ही नहीं करतीं,’’ वाणी की बात बीच में ही काट शिखर पैर पटकता हुआ अपने कमरे में चला गया.

वाणी ने उस से बहस करना ठीक नहीं समझा.पिछले कुछ समय से खर्चे बढ़ गए थे. नया मकान लिया था और कार की इंस्टौलमैंट भी जाती थी, ऐसे में किसी और खर्च की गुंजाइश नहीं थी. शाम को आलोक के घर में घुसते ही शिखर ने फिर वही बात छेड़ दी. आलोक ने भी उसे पुराना फोन लेने को कहा. लेकिन शिखर कहां मानने वाला था.‘‘पापा, बता रहा हूं, नया फोन चाहिए, वह भी आईफोन.’’आलोक पहली बार किसी बात के लिए शिखर को मना करते हुए बोला, ‘‘नहीं बेटा, अभी मैं इतना खर्चा नहीं कर सकता. नया फोन कुछ महीने बाद दिलवा दूंगा, तब तक पुराने फोन से काम चला लो.’’शिखर के लिए यह अविश्वसनीय था कि पापा किसी बात के लिए उसे मना कर दें. वह आंखें फाड़ कर आलोक को देख रहा था. गुस्से से शरीर कांप रहा था, चेहरा लाल हो गया था.‘‘मतलब, आप मुझे फोन नहीं दिलवा रहे हो?’’‘‘बेटा, मेरी बात तो समझ, मैं मजबूर हूं.’’वाणी वहीं खड़ी सब देख रही थी और उसे आलोक का बेटे के सामने इस तरह मजबूरी जताना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. इस से पहले वह कुछ कहती, शिखर चिल्लाया, ‘‘पापा, अगर कल मेरा फोन नहीं आया तो…’’ ‘‘तो?’’ आलोक ने कहा.‘‘मैं सुसाइड कर लूंगा, पापा.’’आलोक सुन्न हो गया. उस का 14 साल का वह बेटा जु उस की जिंदगी का केंद्र था, उसे मरने की धमकी दे रहा था. सहसा आंखों के सामने आएदिन अखबारों में आने वाली आत्महत्या की खबरें घूम गईं. आलोक से खड़ा नहीं रहा गया, वहीं फर्श पर बैठ गया. अगर शिखर ने कुछ कर लिया तो? मैं कैसे जी पाऊंगा, चक्कर आ गया. दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया. तभी, एक आवाज से चौंक कर ऊपर देखा, ‘चटाक,’ वाणी ने शिखर को खींच कर चांटा लगाया और एक पर नहीं रुकी, लगातार मारती रही.‘‘तुझे मरना है न, ठीक है, इस घर में आज तक तेरी हर बात मानी जाती रही है, यह भी मानी जाएगी, बोल कैसे मरना है?’’ और शिखर को खींचते हुए बालकनी की ओर ले जाने लगी.‘‘चल, तुझे यहीं 10वें फ्लोर से धक्का दे कर किस्सा खत्म करती हूं.’’शिखर को ऐसी उम्मीद बिलकुल भी न थी, वह तो सिर्फ डरा रहा था लेकिन मां का यह रूप देख बुरी तरह घबरा गया. वाणी का गुस्सा देख उसे लगा वह सच में शिखर को बालकनी से फेंक देगी.‘‘नहीं मम्मा, मुझे नहीं मरना. सौरी मम्मा, सौरी.’’वाणी ने शिखर का गिरेबान पकड़ लिया, ‘‘कान खोल कर सुन ले, आज कह रही हूं दोबारा नहीं कहूंगी, बेशक तुझे हम ने बड़ी मन्नतों से पाया है और तू हमें बेहद प्यारा है लेकिन हमारे प्यार का गलत फायदा उठाने की कोशिश कभी मत करना. तेरी कोई भी जिद, और बदतमीजी आज के बाद इस घर में बरदाश्त नहीं होगी. और हां, जब मरने की इच्छा हो, मुझ से कहना. मैं अपने हाथों से तेरी जान लूंगी लेकिन इस तरह की सुसाइड की धमकी से डर कर नहीं रहेंगे हम.’’‘‘तेरे पापा ने हमेशा तुझे हद से ज्यादा प्यार दिया, बहुत बार समझाया भी मैं ने लेकिन उन्हें तेरे प्यार के सामने और कुछ दिखता ही नहीं था. वे भूल गए थे कि ‘भय बिनु होय न प्रीति.’ आलोक ने वाणी की तरफ देख सहमति में सिर हिला दिया.

 

लेखिका : संयुक्ता त्यागी 

Narendra Modi : क्या प्रधानमंत्री को इतिहास से कोई भय नहीं है?

Narendra Modi : सूचना के दायरे में प्रधानमंत्री को ले कर किस तरह की जानकारियां हासिल की जा सकती हैं, यह विवाद का विषय बना हुआ है. डिग्री मामला और पीएम केयर फंड को ले कर सवाल उठते रहे हैं पर संतुष्टि भरे जवाब मिल नहीं पाए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिक्षा संदर्भित जानकारी सूचना अधिकार के तहत नहीं ली जा सकती. यह विवाद आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शायद अमिताभ बच्चन के इस डायलोग को याद कर लिया है, “हम जहां से खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है.”

यानी की हम जो कहेंगे वही सही है, चाहे वह कानून की किताब में लिखी हो या न, समाज की किताब में लिखी हो या न, दुनियादारी में उचित हो या न. अरे भाई…! अमिताभ बच्चन का यह डायलोग एक फिल्मी मात्र है. अमिताभ के पास जब कभी यह बात आती है तो हंस कर टाल जाते हैं और सारी दुनिया जानती है की फिल्म और हकीकत की दुनिया में बेहद अंतर होता है.

आज जब नरेंद्र मोदी की शिक्षा संबंधी जानकारी को कोई लेना चाहता है तो उसे यह कह कर टाल दिया जा रहा है कि यह उन की व्यक्तिगत जानकारियां हैं जबकि सारी दुनिया जानती है कि प्रधानमंत्री या जो भी सार्वजनिक शख्स हैं उन की हर वह जानकारी सार्वजनिक है जिस से उन का कोई अहित न होता हो. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास से अपनेआप को ऊपर समझते हैं. वे भूल जाते हैं कि इतिहास नीर क्षीर विवेचन के साथ दुनिया के बड़े से बड़े शहंशाह को भी जमीन पर ला कर खड़ा कर देता है.

ऐसे में देश में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसी डिग्री को न दिया जाए उस के लिए पूरी सत्ता की ताकत अगर लग गई है तो उस का क्या अर्थ है. यह तो बच्चाबच्चा समझ सकता है.

दरअसल, हाल ही में, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक मुद्दा उठाया है. डीयू ने कहा है, “सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का उद्देश्य किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करना नहीं है, बल्कि सार्वजनिक प्राधिकारों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है.”

इस मामले में, केंद्रीय सूचना आयोग ने 21 दिसंबर, 2016 को उन सभी छात्रों के अभिलेख के निरीक्षण की अनुमति दी थी, जिन्होंने 1978 में बीए परीक्षा उत्तीर्ण की थी. लेकिन डीयू ने कहा है कि यह आदेश ‘मनमाना’ और ‘कानून की दृष्टि से अस्थिर’ है क्योंकि जिस जानकारी का खुलासा करने की मांग की गई वह ‘तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी’ है.

यह मुद्दा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आरटीआई कानून कैसे रोका जा रहा है. यह कानून हमारे देश में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था. इस मामले में, डीयू ने कहा है कि आयोग के आदेश का याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए ‘दूरगामी प्रतिकूल परिणाम’ होंगे, जिन के पास करोड़ों छात्रों की डिग्री है. यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर हमें ध्यान देना होगा.

इसलिए, हमें आरटीआई कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह कानून हमारे देश में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जाता है, न कि किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए.

यहां यह समझने वाली बात है कि प्रधानमंत्री एक सार्वजनिक व्यक्ति होने के नाते, उन की कई जानकारियां सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होती हैं. लेकिन, यह भी महत्वपूर्ण है कि कुछ जानकारियां, व्यक्तिगत और संवेदनशील हो सकती हैं, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए.

प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर उन के बारे में कई जानकारियां उपलब्ध हैं, जैसे कि उन के कार्यकाल, उन की उपलब्धियां, और उन के सार्वजनिक भाषण. लेकिन, उन की व्यक्तिगत जानकारियां जैसे उन के स्वास्थ्य स्थिति के बारे में, या उन के व्यक्तिगत वित्तीय मामलों के बारे में, सार्वजनिक नहीं की जाती हैं. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में कई जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जाती हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, या अन्य संवेदनशील मामलों से संबंधित हो सकती हैं. इसलिए, कुछ जानकारियां व्यक्तिगत और संवेदनशील हो सकती हैं.

अगर शिक्षा संदर्भित जानकारी को व्यक्तिगत माना जाएगा, तो यह फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी को बढ़ावा दे सकता है. लोग अपनी योग्यता और डिग्री के बारे में झूठ बोल सकते हैं और इस का फायदा उठा सकते हैं.

यह एक बड़ा खतरा है क्योंकि इस से न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि समाज और देश के लिए भी नुकसान हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति फर्जी डिग्री के साथ डाक्टर या इंजीनियर बन जाता है, तो इस से लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती है.

इसलिए, यह जरूरी है कि शिक्षा संदर्भित जानकारी को सार्वजनिक किया जाए ताकि लोगों को अपनी योग्यता और डिग्री के बारे में सही जानकारी मिल सके. इस से फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिलेगी और समाज में विश्वास और पारदर्शिता बढ़ेगी.

अगर कोई व्यक्ति वकील होने का दावा करता है और उस की वकालत की डिग्री कोई नहीं देख सकता, तो इस से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कम कर सकता है. अगर कोई व्यक्ति वकील होने का दावा करता है और उस की योग्यता की जांच नहीं की जा सकती, तो इस से न्यायपालिका की विश्वसनीयता कम हो सकती है. यह समाज में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है.

इसलिए, यह जरूरी है कि वकालत की डिग्री और अन्य योग्यताओं की जांच की जा सके. इस से न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ेगी, लोगों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा और समाज में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी.

अगर प्रधानमंत्री की डिग्री को नहीं बताया जाएगा, तो इस से कई परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं. लोगों को अपने नेताओं की योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में जानने का अधिकार है, और अगर यह जानकारी छिपाई जाती है तो इस से लोगों का विश्वास टूट सकता है. लोग अपनी योग्यता और डिग्री के बारे में झूठ बोल सकते हैं और इस का फायदा उठा सकते हैं.

दरअसल, विपक्षी दलों और कुछ मीडिया संगठनों ने आरोप लगाया था कि मोदी ने अपनी शैक्षिक योग्यता के बारे में झूठ बोला है. विवाद का केंद्र बिंदु यह था कि मोदी ने अपने चुनावी हलफनामे में दावा किया था कि उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है. हालांकि, जब विपक्षी दलों और मीडिया संगठनों ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मोदी की डिग्री की प्रति मांगी तो विश्वविद्यालय ने कहा कि वह इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकता है.

इस के बाद, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करे. हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई की और कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय को मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए. हालांकि, यह मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है.

इस विवाद के बारे में बात करते हुए, यह कहा जा सकता है कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है जिसे विपक्षी दलों और मीडिया संगठनों ने उठाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं सामने आ कर के अपनी सारी जानकारी सार्वजनिक कर देनी चाहिए और यह उदाहरण पेश करना चाहिए कि प्रधानमंत्री देश का होता है उस का एकएक पैसा और सभी जानकारियां कोई भी देख और समझ सकता है.

Best Hindi Story : तेरी सास तो बहुत मौडर्न है

Best Hindi Story : शादी के समय ही रिश्तेदारों व जानपहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि तेरी सास तो बड़ी मौडर्न है. पर नियति ही जानती है कि उस की सास उस के लिए कितनी केयरिंग है. सास के कहने पर जब नियति मायके आई तो क्या वह अपनी उन के प्रति मां की सोच बदल पाई…?

आज सुबहसुबह जैसे ही नियति का फोन श्रीकांतजी के मोबाइल पर आया, उन की पत्नी लीला ने उन्हें फोन स्पीकर पर डालने का इशारा किया और उन्होंने स्पीकर औन कर दिया.

नियति हंसती हुई बोली, “हैलो पापा, आप ने स्पीकर औन कर लिया हो और मम्मी आ गई हों तो मैं अपनी बात शुरू करूं.”

पिछले 2 महीनों से यही चल रहा है. नियति का फोन जब भी आता है, श्रीकांतजी स्पीकर औन कर देते हैं क्योंकि नियति और उस की मां लीला की बातचीत तब से बंद है, जब से नियति ने अपना निर्णय सुनाया है कि वह शादी अपने कलिग और स्कूल फ्रैंड विकल्प से ही करना चाहती है. यह बात जानते ही दोनों मांबेटी के बीच अबोलेपन ने अपना स्थान ले लिया. लेकिन जब भी नियति का फोन आता है, लीला अपने सारे काम छोड़ कर फोन के करीब आ जाती है, यह जानने के लिए कि नियति क्या कह रही है.

नियति की बातों को सुन कर लीला के चेहरे के हावभाव बनतेबिगड़ते रहते हैं, क्योंकि लीला किसी हाल में नहीं चाहती कि उन की बेटी किसी विजातीय लड़के से ब्याह करे.

वैसे, लीला क‌ई दफा विकल्प की मां मिसेज चंद्रा से नियति के स्कूल फंक्शन और पैरेंट्स टीचर मीटिंग में मिल चुकी है. मिसेज चंद्रा मौडर्न और स्वतंत्र विचारधारा की महिला है.

लीला को लगता है कि मिसेज चंद्रा जरूरत से ज्यादा ही मौडर्न है. मिस्टर चंद्रा इंडियन नेवी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थे. उन का घर ग्वालियर के पौश एरिया में है और काफी आलीशान भी है. नौकरचाकर सब हैं. किसी चीज की कोई कमी नहीं है. उन के घर का वातावरण, रहनसहन थोड़ा भिन्न है, जो लीला को शुरू से ही अटपटा लगता आया है. क्योंकि लीला जहां रहती है, वहां की औरतें ना तो मिसेज चंद्रा की भांति बिना आस्तीन का ब्लाउज पहनती हैं और ना ही बिना सिर पर पल्लू लिए घर से बाहर निकली हैं. ऊपर से इन का पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी और उन के घर पर बिना अंडा, मांस, मछली के काम ही नहीं चलता.

श्रीकांतजी एक सुलझे हुए और सरल व्यक्तिव के धनी हैं. उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं, क्योंकि उन के लिए तो नियति की खुशी ही सब से बड़ी है. उन का मानना है कि जातिपांति, धर्म कुछ नहीं होता, मनुष्य की बस एक ही जाति है और एक ही धर्म होता है और वह है मानवता का धर्म. श्रीकांतजी को मिसेज चंद्रा के मौडर्न होने से भी कोई तकलीफ नहीं है.

श्रीकांतजी ने भी हंसते हुए कहा, “हां बोलो, तुम्हारी मम्मी आ गई हैं.”

“पापा, कल मैं और विकल्प ग्वालियर आ रहे हैं, फिर शाम को विकल्प के मौमडैड आप और मम्मी से हमारी शादी की बात करने आएंगे.”

श्रीकांतजी नियति को आश्वस्त करते हुए बोले, “तुम चिंता मत करो. सब ठीक होगा.”

यह सुनने के बाद नियति ने कहा, “थैंक्यू पापा, मुझे आप से एक बात और शेयर करनी है. मैं ने और विकल्प ने कंपनी चेंज कर ली है. हमारी न‌ई कंपनी का सबडिविजनल औफिस ग्वालियर में भी है तो शादी के बाद हम दोनों ग्वालियर आ जाएंगे.”

“यह तो और भी अच्छी बात है. हमारी बेटी शादी के बाद भी इसी शहर में रहेगी, हमें और क्या चाहिए. यह खबर सुनते ही तुम्हारी भाभी बहुत खुश हो जाएगी.”

भाभी का नाम सुनते ही नियति चहकती हुई बोली, “पापा, भाभी कहां है. बात तो कराइए.”

“इस वक्त तो वह किचन में व्यस्त है.”

नियति थोड़ा नाराज होती हुई बोली, “पापा, मैं ने मम्मी से कितनी बार कहा है कि एक फुल टाइम मैड रख लो, सुबह से ले कर रात तक भाभी बेचारी घर के कामों में ही उलझी रहती है. यहां तक कि उन के पास अपने खुद के लिए भी समय नहीं होता. और मम्मी हैं कि कुछ समझती ही नहीं. उन्हें लगता है कि घर का सारा काम बहू का ही है. ऊपर से भाभी को सारे काम साड़ी पहन कर करने पड़ते हैं. उन्हें काम करने में कितनी असुविधा होती है.

“पापा आप मम्मी को समझाइए, वक्त तेजी से बदल रहा है. अब मम्मी को भी थोड़ा बदलना होगा. अच्छा पापा, अब मैं फोन रखती हूं.”

ऐसा कह कर नियति ने फोन रख दिया.

नियति के फोन रखते ही लीला के चेहरे का रंग गुस्से से लाल हो गया और वह बड़बड़ाती हुई कहने लगी, “लो… अब ये छोरी सिखाएगी मुझे बहू से क्या काम करवाना है और क्या नही. खुद को तो ढेलेभर की अक्ल नहीं. एक ऐसी औरत की बहू बनने को उतावली हुए जा रही है, जिसे हमारी संस्कृति का जरा सा भी ज्ञान नहीं. ना तो वह अपने सिर पर पल्लू लेती है और ना ही उसे छोटेबड़े का लिहाज है. शादी हो जाने दो, फिर पता चलेगा मौडर्न सास कैसी होती है.”

लीला को अपनी स्वयं की बेटी के लिए इस प्रकार मुंह से आग उगलता देख श्रीकांतजी बोले, “अब बस भी करो लीला, मिसेज चंद्रा मौडर्न हैं, इस का मतलब यह नहीं कि वे बुरी हैं या फिर बुरी सास ही साबित होगी, कम से कम अपनी बेटी के लिए तो अच्छा सोचो और अच्छा बोलो. विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ हम से मिलने आ रहा है. कल न‌ए रिश्तों की नींव पड़ने वाली है. मैं नहीं चाहता कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत खटास से हो.”

श्रीकांतजी के ऐसा कहते ही लीला कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बगैर वहां से चली गई.

दूसरे दिन नियति आ गई. शाम की पूरी तैयारियां जोरों पर थीं. वह वक्त भी आ गया, जब विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ नियति के घर पहुंचा.

मिसेज चंद्रा की खूबसूरती आज भी बरकरार थी. उसे देखते ही लीला मन ही मन कुड़कुड़ाने लगी. जवान बेटे की मां और ये साजोसिंगार, अपनी उम्र तक का लिहाज नहीं. आग लगे ऐसे मौडर्ननेस को, लेकिन मिसेज चंद्रा इन सब से बेखबर, घर के सभी सदस्यों के साथ बड़ी आत्मीयता से मिल रही थी. बातों ही बातों में मिसेज चंद्रा ने कहा, “मैं बड़ी खुश किस्मत हूं, जो मुझे नियति जैसी खूबसूरत और समझदार बहू मिल रही है. मैं ढूंढ़ने भी निकलती तो नियति जैसी बहू मुझे नहीं मिलती.”

मिसेज चंद्रा के ऐसा कहने पर लीला व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, “खूबसूरत, समझदार के साथसाथ कमाऊ बहू भी मिल रही है मिसेज चंद्रा, ये कहना भूल ग‌ईं आप.”

लीला का ऐसा कहना श्रीकांतजी, नियति और उस के भैयाभाभी को बड़ा अटपटा और बुरा लगा, लेकिन मिसेज चंद्रा बड़े सहज भाव से लीला की बातों को हंसी में उड़ा गई. उस के कुछ सप्ताह बाद नियति और विकल्प की शादी बड़े धूमधाम से हो गई.

शादी में आए सभी मेहमानों द्वारा शादी में किए गए शानदार इंतजाम को ले कर खूब तारीफ हुई, साथ ही साथ नियति व विकल्प की भी काफी प्रशंसा हुई. इन सब के अलावा सभी की जबान पर एक और बात की चर्चा जोरों पर थी और वह थी मिसेज चंद्रा की लेटेस्ट ज्वेलरी, स्टाइलिस साड़ी और हेयर स्टाइल.

लीला के सभी सगेसंबंधी और सहेलियां उस से यह कहने से नहीं चूकीं कि लीला बहन तुम ने तो दामाद के संग समधन भी बड़ी जोरदार पाई है. नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है. इस उम्र में इतना स्टाइल, कमाल है… तुम्हारी समधन तो काफी स्टाइलिश है.

सभी के मुंह से बस एक ही बात सुन कर कि नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है, लीला के कान पक गए और जब नियति शादी के बाद पहली बार घर आई तो लीला नियति की खैरखबर लेने के बजाय उस से कहने लगी, “कैसी है तेरी मौडर्न सास..? सजनेसंवरने के अलावा भी कुछ करती है या बस सारा दिन केवल आईने के सामने ही बैठी रहती है.”

अपनी मां का इस तरह बातबेबात नियति को उस की सास के मौडर्न होने का ताना देना उसे अच्छा नहीं लगता, इसलिए धीरेधीरे अब नियति अपने मायके आने से कतराने लगी. बस फोन पर ही अपने पापा और भाभी से बात कर लेती.

औफिस का भी यही हाल था. नियति के हर फैंड्स और कलीग्स को बस यही जानना होता है कि उस की सास का उस के साथ व्यवहार कैसा है..? उसे परेशान तो नहीं करती है…? नियति अपनी सास के होते हुए इतना फ्री कैसे रहती है…? क्योंकि सभी को लगता है कि नियति की सास बड़ी तेजतर्रार, स्टाइलिश और मौडर्न है.

नियति को यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि लोग सभी को एक ही तराजू पर क्यों तौलते हैं. ऐसा जरूरी तो नहीं कि जो महिला स्टाइलिश हो, मौडर्न हो, वह तेजतर्रार और बुरी सास ही होगी और जो देखने में सिंपल हो, सीधीसादी लगती हो, वह अच्छी सास ही होगी.

एक शनिवार नियति अपने मायके में फोन कर अपनी मम्मी से बोली, “मम्मी, इस वीकेंड पर हम पिकनिक पर जा रहे हैं. मौम कह रही थीं कि आप सब भी हमारे साथ चलते तो एक अच्छा फैमिली पिकनिक हो जाएगा. आप भैयाभाभी से भी चलने को कह देना.”

नियति का इतना कहना था कि लीला भड़क उठी और कहने लगी, “हमें कहीं नहीं जाना तेरी मौडर्न सास के साथ और ना ही हमारी बहू जाएगी तुम लोगों के साथ. तुम सासबहू दोनों घूमो जींसपेंट घटका कर पूरे शहर में. तुम्हें ना सही, पर हमें तो है लोकलाज का खयाल.

“वैसे भी तुम्हारी भाभी अपने मायके इंदौर गई है और तुम्हारा पत्नीभक्त भाई उस के साथ ही गया है. दोनों यहां होते भी तो हम में से कोई ना जाता तुम्हारे मौडर्न परिवार के साथ कहीं, क्योंकि उस दिन मेरे गुरुजी का जन्मदिन है, इसलिए हमारी समिति की ओर से इस अवसर पर भव्य सत्संग रखा है. उस दिन गुरुजी सभी को दर्शन और आशीर्वाद देंगे, जो जीवन की सद्गति के लिए बहुत जरूरी है. यह सब तेरी मौडर्न सास क्या समझेगी.”

लीला का इतना कहना था कि नियति ने गुस्से में फोन काट दिया.

निर्धारित दिन पर नियति अपने पूरे परिवार के साथ इधर पिकनिक के लिए निकल पड़ी, उधर लीला और श्रीकांतजी भी गुरुजी से आशीष लेने सत्संग के लिए निकल पड़े.

आज पूरा दिन परिवार के संग इतना अच्छा समय बिता कर नियति काफी खुश थी. उसे बस इस बात का अफसोस था कि आज की इस खुशी का हिस्सा उस के अपने मम्मीपापा केवल उस की मौम की संकुचित मानसिकता की वजह से नहीं बन पाए थे.

पिकनिक से लौटते वक्त नियति इन्हीं सब बातों में गुम थी कि अचानक उस का मोबाइल बजा. फोन किसी अनजान नंबर से था. फोन रिसीव करते ही नियति की आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी.

यह देख नियति की सास ने उस से कारण जानना चाहा, तो नियति रोती हुई बोली, “मम्मी का फोन था. सत्संग से लौटते हुए मम्मीपापा का एक्सीडेंट हो गया है. पापा गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. मम्मी को ज्यादा चोटें नहीं आई हैं. मोबाइल भी टूट गया है, इसलिए उन्होंने किसी दूसरे के मोबाइल से फोन किया था. भैयाभाभी भी शहर से बाहर हैं और वहां सिटी अस्पताल में पुलिस प्रक्रिया में देर होने की वजह से पापा का इलाज शुरू नहीं हो पा रहा है. मम्मी बहुत घबराई हुई हैं और परेशान हैं.”

इतना सुनते ही मिसेज चंद्रा बोलीं, “तुम्हें रोने या परेशान होने की जरूरत नहीं बेटा, शहर के डीएसपी से मेरा बहुत अच्छा परिचय है. मैं अभी उन्हें फोन कर देती हूं और अस्पताल में भी फोन कर देती हूं. वहां भी मेरी पहचान के काफी सीनियर डाक्टर हैं, वे सब संभाल लेगें. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं और कुछ घंटों में तो हम भी शहर पहुंच ही जाएंगे.”

ऐसा कहती हुई मिसेज चंद्रा ने अपने क‌ई मित्रों और पहचान के नामीगिरामी हस्तियों को फोन कर नियति के मम्मीपापा को हर संभव मदद करने को कह दिया.

जब नियति अपने पूरे परिवार के साथ अस्पताल पहुंची, तो उस के मम्मीपापा का इलाज शुरू हो गया था. पुलिस और अस्पताल के डाक्टर व स्टाफ अपना पूरा सहयोग दे रहे थे.

यह देख एक बार फिर नियति की आंखें नम हो गईं और उस के चेहरे पर अपनी सास के प्रति आदर और कृतज्ञता के भाव उभर आए.

नियति की मम्मी 3 दिनों तक अस्पताल में एडमिट रहीं और उस के पापा 15 दिनों तक, मिसेज चंद्रा पूरी आत्मीयता से हर रोज अस्पताल में मिलने जाती. उन की वजह से नियति के मम्मीपापा को अस्पताल में कभी कोई परेशानी नहीं हुई. वहां उन का विशेष ध्यान रखा गया और अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ के द्वारा भरपूर सहयोग मिला. उस के बावजूद मिसेज चंद्रा के प्रति लीला के विचार और बरताव में कोई फर्क नहीं आया.

लीला अब भी अपने स्वस्थ होने और सही समय पर इलाज मिलने का श्रेय अपने गुरुजी की कृपा और आशीर्वाद को ही दे रही थी.

मिसेज चंद्रा को लीला अपने गुरुजी के द्वारा भेजा गया केवल एक माध्यम समझ रही थी, जबकि गुरुजी का इस बात से कोई वास्ता ही नहीं था.

लीला की इस प्रकार अंधभक्ति देख और बारबार अपनी ही मां से अपनी सास के लिए अपमान भरे शब्द सुनसुन कर नियति ने यह तय कर लिया कि वह अब ना तो अपने मायके जाएगी और ना ही अपनी मम्मी को फोन करेगी.

काफी दिनों तक जब नियति अपने मायके नहीं गई, तो एक दिन नियति की सास ने उस से कहा, “नियति बेटा, तुम बहुत दिनों से अपने मायके नहीं गई हो, इस संडे समय निकाल कर उन से मिल आओ. उन्हें तुम्हारी चिंता होती होगी.”

नियति अपनी सास की बात टालना नहीं चाहती थी और ना ही उन्हें सच बता कर उन का दिल दुखाना चाहती थी, इसलिए वह बोली, “जी. इस संडे चली जाऊंगी.”

संडे को जब नियति अपने मायके पहुंची, तो पापा उसे वरांडे में आरामकुरसी पर बैठे किताब पढ़ते मिल गए. काफी देर पापा के पास बैठने के बाद जब नियति अंदर गई तो उस ने देखा कि उस की मम्मी अपनी सहेलियों के साथ बैठी हंसीठिठोली कर रही है और उस की भाभी भागभाग कर सब के लिए चायनाश्ता और पानी की व्यवस्था कर रही है.

यह देख नियति अपनी भाभी का हाथ बंटाने किचन की ओर बढ़ी ही थी कि वहां बैठी उस की मम्मी की सहेलियों में से एक ने कहा, “अरे नियति, तुम कब आई? इधर आ… हमारे पास बैठ. मैं ने तो सुना है कि तेरी सास बड़ी मौडर्न है, तुम अपनी सास के साथ ससुराल में कैसे निभा रही हो?”

नियति चुप रही, फिर क्या था एक के बाद एक सभी ने नियति की सास का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. कोई उन की लिपिस्टिक पर फिकरे कसने लगा, तो कोई हेयर स्टाइल पर, किसी को उन का इस उम्र में जींस पहनना गलत लग रहा था, तो किसी को उन के लहराते हुए आंचल से आपत्ति थी.

सभी की अनर्गल बातें सुन कर नियति से रहा नहीं गया और वह सब पर बरस पड़ी और कहने लगी, “हां, मेरी सास बड़ी मौडर्न है. वह केवल मौडर्न ड्रेस ही नहीं पहनती, उन की सोच भी मौडर्न है. वे अपनी बहू को चारदीवारी में घूंघट के पीछे घुटनभरी जिंदगी नहीं, खुली हवा में आजादी की सांस लेने देती है.

“यहां आप में से कितनी सास अपनी बहू को उन की मरजी से जीने देती है…?अपनी बहू का बेटी की तरह मां बन कर ध्यान रखती है..? लेकिन मेरी मौडर्न सास मेरा खयाल अपनी बेटी की तरह रखती है और मुझे उन के मौडर्न होने पर गर्व है. क्योंकि वह मुझे केवल बेटी बुलाती ही नहीं, अपनी बेटी समझती भी हैं. और सब से बड़ी बात यह कि बुरे वक्त में साथ खड़ी रहती हैं. ऊपर वाले की इच्छा कह कर अपना पल्ला नहीं झाड़ लेती हैं.”

नियति की बातें सुन कर सब की आंखें शर्म से झुक गईं और नियति के पापा वरांडे में बैठे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

Social Hindi Story : किटी पार्टी

Social Hindi Story :  पौश कालोनी का एक इलाका. उस में मिसेज खुशबू की एक दोमंजिला आलीशान कोठी. उस में नीचे वह स्वयं रहती हैं और ऊपर के पोर्शन को अपनी सामाजिक गतिविधियों और मेहमानों के लिए खाली रखती हैं. उन की एक ‘महिला सत्संग’ नाम की संस्था है. उसी के तहत वह महिलाओं की किटी पार्टी करती हैं. अगर यह कहा जाए कि ‘महिला सत्संग’ का मतलब किटी पार्टी ही है, तो गलत न होगा.

किटी पार्टी में शामिल होने वाली महिलाएं हालांकि आती तो संभ्रांत परिवारों से हैं, पर असल में वे बैठीठाली महिलाएं हैं, जिन के पति या तो हैं नहीं या फिर वे बाहर रहते हैं और अकसर वे महिलाएं अकेली रहती हैं.

मिसेज खुशबू भी अकेली रहती हैं. लेकिन उन के बारे में चर्चा यह है कि उन के पति का देहांत हो चुका है, और वह इस शहर में एक प्रतिष्ठित मिशन स्कूल में टीचर रह चुकी हैं. नौकरी से मुक्त होने के बाद वह अपने मूल शहर वापस नहीं गईं, और इसी शहर में अपनी कोठी बना कर बस गईं.

शाम के 6 बजे थे. मिसेज खुशबू ने चाय के लिए अपनी मेड को आवाज दी. उसी समय दरवाजे की बेल बजी. मिसेज खुशबू ने बाहर का गेट खोला, देखा, एक खूबसूरत स्त्री हाथ में बेग लिए खड़ी है. उन्होंने नीचे से ऊपर तक इस स्त्री पर नजर डाली, टौप और नीली जींस में, आंखों पर काला चश्मा लगाए एक गौर वर्ण की खूबसूरत युवती खड़ी है. मिसेज खुशबू ने मुसकरा कर हेलो किया, फिर पूछा, ‘जी, बताइए?’

‘मैं राधिका हूं. क्या मैं आप से मिल सकती हूं?’

‘ओ… यस, कम… कम,’ और मिसेज खुशबू राधिका को अंदर ड्राइंगरूम में ले गईं.

मेड को आवाज दे कर पानी लाने और एक कप चाय और बना कर लाने के लिए कहा.

चाय पर बातचीत शुरू हुई. मिसेज खुशबू ने पूछा, ‘हां तो बताइए, आप क्या बात करना चाहती थीं?’

‘दरअसल मैम, मैं आप के क्लब की मेंबर बनना चाहती हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘ओह, नाइस. क्या करती हैं आप?’

‘जी मेम, मैं भी टीचर हूं.’

‘मैं भी का क्या मतलब…? कोई और भी है?’

‘जी, आप भी टीचर थीं ना?’

‘ओह,’ मिसेज खुशबू मुसकराईं.

‘कहां पढ़ाती हैं आप?’

‘जी, गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज में.’

‘क्यों मेंबर बनना चाहती हैं?’

राधिका ने विनम्रता से कहा, ‘क्या है कि मैम, कुछ मेलजोल बढ़ेगा, विचारों के आदानप्रदान से लाभ होगा, और समय भी कटेगा.’

मिसेज खुशबू ने कागजी कार्यवाही पूरी कर के राधिका को ‘महिला सत्संग’ का सदस्य बना लिया. फिर कहा, ‘वैसे तो हर महीने के दूसरे और आखिरी वीकेंड पर हमारी सभा होती है. लेकिन कभीकभी खास सभाएं होती हैं, तो फोन से सब को सूचित कर दिया जाता है.’

कोई एक हफ्ते बाद राधिका के फोन पर मिसेज खुशबू का मैसेज आया, ‘इसी संडे को कुछ नए सदस्यों का परिचय कराने के लिए पार्टी रखी गई है. आप शाम 6 बजे आइएगा.’

राधिका ने मैसेज पढ़ा और ओके लिख कर रिप्लाई सेंड कर दिया.

उस दिन राधिका ने सारे जरूरी काम शाम 5 बजे से पहले ही निबटा लिए. वह ठीक शाम के 6 बजे मिसेज खुशबू की कोठी पर पहुंच गई.

पार्टी ऊपर के कमरे में थी. राधिका ने प्रवेश किया तो देखा कि कई महिलाएं सोफे पर विराजमान थीं. वह उन में से किसी को नहीं जानती थी. उस ने सभी उपस्थित महिलाओं को सिर झुका कर हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा और एक खाली सोफे पर बैठ गई. कुछ देर में संस्था की बाकी सदस्य भी आ गईं. सब से अंत में आईं, मिसेज खुशबू. उन्होंने पार्टी की कुछ औपचारिक कार्यवाही के बाद नए सदस्यों का परिचय कराना शुरू किया, ‘ये मिस कल्पना हैं. आकाशवाणी में ये अनाउंसर थीं. अब सोशल वर्कर हैं. ये मिसेज नीलम सिंह हैं, फ्रीलांसर हैं. ये मिसेज मधु हैं, इन का खुद का गारमेंट बिजनेस है और सिलाईकढ़ाई का केंद्र भी चलाती हैं. ये हैं हमारी संस्था की सब से महत्वपूर्ण मेंबर सविता भटनागर, स्त्री मामलों की विशेषज्ञ और मशहूर वकील. फिर वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोलीं, ‘और ये हैं ब्यूटीफुल लेडी राधिका, जो गवर्नमेंट कालेज में अंगरेजी पढ़ाती हैं और खुले विचारों की हैं.’

‘खुले विचारों से मतलब…?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

राधिका ही बोल पड़ी, ‘प्रगतिशील और वैज्ञानिक भी.’

‘तो क्या हम प्रगतिशील नहीं हैं?’ स्वाति मिश्रा ने सवाल किया.

‘जरूर हो सकती हो. क्यों नहीं हो सकती?’ राधिका ने जवाब दिया.

इस के बाद मनीषा त्रिपाठी ने सभी सदस्यों को रामनवमी की अग्रिम बधाई दी. राधिका ने पूछा, ‘अगर कोई रामनवमी न मनाता हो तो…?’

‘क्या आप रामनवमी नहीं मनाती हैं?’ स्वाति ने पूछा.

‘नहीं, मैं क्यों रामनवमी मनाऊं?’ राधिका ने जवाब दिया.

‘क्या आप हिंदू नहीं हैं?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

‘जरूर हिंदू हूं, पर मैं अंधविश्वासी नहीं हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘इस में अंधविश्वास कहां से आ गया? राम कल के दिन पैदा हुए थे,’ मनीषा ने बताया.

राधिका ने शांत हो कर कहा, ‘देखिए, बुरा न मानिए. पहले तो राम ऐतिहासिक नहीं हैं, जैसे बुद्ध हैं, महावीर हैं. दूसरी बात यह कि जो जन्म लेता है, वह भगवान कैसे हुआ? वह तो मनुष्य ही हुआ.’

‘हां, वह मनुष्य रूप में अवतार थे विष्णु के,’ मनीषा ने बताया.

‘उन्हें मनुष्य रूप में अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ी?’

‘रावण और राक्षसों का वध करने के लिए उन्हें अवतार लेना पड़ा था.’

‘रावण और राक्षस लोग विष्णु का क्या नुकसान कर रहे थे, जो उन को मारने के लिए उन्हें धरती पर आना पड़ा?’

‘आप को इतना भी नहीं पता,’ स्वाति ने कहा, ‘रावण और राक्षस लोग ब्राह्मणों के शत्रु थे, उन्हें सताते थे और मार कर खा जाते थे.’

‘ओह, तो इस का मतलब यह हुआ कि राम का अवतार ब्राह्मणों की रक्षा के लिए हुआ था, मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए नहीं. जैसे बुद्ध ने संपूर्ण मानवता को करुणा, मैत्री और अहिंसा का संदेश दिया था.’

फिर राधिका ने आगे कहा, ‘ये राम ब्राह्मणों के भगवान थे, फिर तो आप ने ठीक ही उन की पूजा की.’

मिसेज खुशबू ने देखा, मनीषा और स्वाति के चेहरों पर विषाद की रेखाएं उभर आई थीं. वातावरण में तनाव पैदा हो गया था. उन्होंने तनाव को हलका करने के लिए मधु को गजल सुनाने को कहा, पर तनाव के बीच ही मनीषा और स्वाति पार्टी से उठ कर चली गईं.

‘वादविवाद तो किटी पार्टी का हिस्सा है. इस से गुस्सा हो कर जाना तो ठीक नहीं,’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘किटी पार्टी का मतलब सिर्फ पीनाखाना ही नहीं है, वरन इस का उद्देश्य हर तरह के विषयों पर तार्किक बहस चलाना भी है. यहां आज तक ऐसे विषयों पर कभी बहस ही नहीं हुई. सिर्फ खानापीना और घरगृहस्थी की निजी बातें ही ज्यादा हुई हैं.

‘आज पहली बार राधिका के आने से किटी पार्टी में विमर्श की शुरुआत हुई है. और पहली बार मुझे पता चला कि यह कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया.’

‘लेकिन मैम, मैं ने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जिस से वे नाराज हो कर चली गईं?’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘इट्स ओके.’

इस के बाद पार्टी समाप्त हो गई.

दूसरे दिन मिसेज खुशबू के घर की घंटी फिर बजी. मिसेज खुशबू ने दरवाजा खोला, तो सामने स्वाति मिश्रा को देख कर चौंकी.

‘ओह स्वाति आप? कैसे आना हुआ?’ मिसेज खुशबू ने पूछा.

‘मेम, मुझे कुछ बात करनी है आप से,’ स्वाति ने कहा.

‘ओह, कम… कम,’ मिसेज खुशबू उन्हें घर में ले गईं. ड्राइंगरूम में बैठा कर पूछा, ‘हां बताओ, क्या बात करनी है?’

‘मेम, आप जानती हैं, ये राधिका कौन है?’ स्वाति ने पूछा.

‘ओह, राधिका. वह हमारे ‘महिला सत्संग’ की नई सदस्य बनी हैं. लेकिन तुम इतना परेशान क्यों लग रही हो?’

‘मेम, वह कोटे वाली है,’ स्वाति ने कहा.

‘वाट…? कोठेवाली…? क्या कह रही हो? तुम होश में तो हो? वह टीचर है गवर्नमेंट स्कूल में. कोठेवाली कैसे हो सकती है?’ मिसेज खुशबू ने आश्चर्य के साथ पूछा.

‘सौरी मेम, कोठेवाली नहीं, कोटे वाली.’

‘मतलब…?’

‘मतलब, वह दलित जाति से है. डा. अंबेडकर को मानने वाली है. इसीलिए तो वह राम को नहीं मानती.’

‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था यह सब नहीं मानती. हम न तो किसी की जाति पूछते हैं और न ही लिखवाते हैं. आप ने हमारी संस्था के फार्म में जाति का कालम देखा है क्या?’ मिसेज खुशबू ने कठोरता से कहा.

स्वाति ने परेशान हो कर कहा, ‘लेकिन मेम, हम उस के साथ सहज नहीं रह पाएंगे.’

‘क्यों…?’

‘इसलिए कि हम ब्राह्मण हैं… और वह अछूत.’

‘यह क्या ब्राह्मणअछूत लगा रखी है? कौन सी दुनिया में जी रही हो तुम स्वाति ?’ मिसेज खुशबू ने थोड़ा कठोर हो कर कहा.

‘लेकिन, तुम कैसे कह सकती हो, तुम ब्राह्मण हो?’ खुशबू ने पूछा.

स्वाति एकदम चौंक गई. फिर बोली, ‘आप ऐसा कैसे कह रही हैं?’

‘क्यों नहीं कहूं? आप एक सुंदर और सुशिक्षित महिला को अपनी नफरत के काबिल समझती हैं कि वह दलित है? और आप अपने को सम्मान के काबिल समझती हैं कि आप ब्राह्मण हैं? किधर से आप ब्राह्मण हैं और किधर से राधिका दलित है?’ खुशबू ने थोड़ा नाराज हो कर कहा.

स्वाति को इस तरह के सवाल की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. वह यही समझती थी कि समाज में ब्राह्मण ही सब से ऊंचा वर्ग है और दलित सब से नीचा. उसे अपने घरपरिवार में इसी तरह के भेदभाव वाले संस्कार मिले थे. एक नीच स्त्री की इतनी हैसियत नहीं कि वह किटी पार्टी में धर्म पर बहस करे और मिसेज खुशबू हैं कि ब्राह्मण और दलित में कोई भेद ही नहीं कर रही हैं. कहीं मिसेज खुशबू भी तो दलित नहीं हैं? उस के मन में संदेह पैदा हुआ. उस ने सोचा कि क्यों न संदेह मिटा लिया जाए. अत: स्वाति ने पूछा, ‘मैम, आप किस जाति की हैं?’

मिसेज खुशबू जरा भी विचलित नहीं हुईं. शुरू में वह ऐसे सवालों से जरूर परेशान होती थीं, लेकिन अब नहीं होतीं. उन्हें समझ में आ गया था कि अगर समाज को बदलना है, तो जाति के बंधन से मुक्त होना जरूरी है. इसलिए उन्होंने स्वाति से ही पूछ लिया, ‘आप ही बताओ, मेरी जाति क्या हो सकती है? मैं पेड़ हूं? पक्षी हूं? पशु हूं या मनुष्य हूं?’

‘औफ कोर्स मैम, आप मनुष्य हैं,’ स्वाति ने जवाब दिया.

‘फिर आप जाति क्यों पूछ रही हैं? जातियां तो पशुपक्षियों में होती हैं.’

‘मैम, जातियां मनुष्यों में भी होती हैं.’

खुशबू ने कहा, ‘मुझे तो मनुष्यों में जातियां नहीं दिखाई देतीं. अगर आप को लगता है कि जातियां होती हैं, तो अलगअलग जातियों की कुछ फिजिकली पहचान भी जरूर होनी चाहिए. यह क्या पहचान है, जरा हमें भी बताइए कि किस चीज से कोई ब्राह्मण होता है, और कोई दलित?’

स्वाति इस सवाल से परेशान सी हो गई थी, पर उस ने अपनी परेशानी को छिपाते हुए पूछा, ‘क्या पहचान…? मैं समझी नहीं.’

खुशबू ने दोहराया, ‘मेरे कहने का मतलब यह है कि आप के पास ब्राह्मण होने की क्या पहचान है, जो राधिका के पास नहीं है. और राधिका के पास दलित होने की क्या पहचान है, जो आप के पास नहीं है?’

स्वाति मौन हो गई. खुशबू ने समझाने के लहजे में फिर कहा, ‘क्या स्वाति, आप का और राधिका का रंग अलगअलग है?’

स्वाति ने कहा, ‘नहीं.’

खुशबू ने फिर कहा, ‘तब क्या शरीर की बनावट अलगअलग है? आप की नाक कहीं और जगह लगी है, और राधिका की कहीं और जगह?’

स्वाति ने जवाब दिया, ‘नहीं.’

खुशबू पूछने लगी, ‘तब क्या आप के और राधिका के हाथपैरों की बनावट में कोई अंतर है यानी आप के हाथपैर बड़े हों और राधिका के छोटे?’

स्वाति सहमते हुए बोली, ‘नहीं मैम, ऐसा कुछ नहीं है. सब बराबर हैं.’

खुशबू ने अपनी बात फिर दोहराई, ‘फिर क्या पहचान है…? आप अपने ब्राह्मण होने की कुछ तो पहचान बताइए.’

स्वाति मौन.

खुशबू ने कहा, ‘अच्छा अपनी पहचान नहीं बताना चाहती, तो मत बताओ. पर, कम से कम आप राधिका के ही दलित होने की पहचान बता दीजिए कि आप ने कैसे पहचाना कि वह दलित है?’

स्वाति के पास कोई जवाब नहीं था, पर वह मिसेज खुशबू की कोई भी दलील मानने को तैयार नहीं थी. अगर मानती तो उसे अपनी उच्चता की भावना छोड़नी पड़ती, जिस का मिथ्या दंभ उस की नसनस में भरा हुआ था. उसे वह छोड़ना नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने मिसेज खुशबू से कहा, ‘मैम, मैं अब आप के महिला मंडल में नहीं रहना चाहूंगी. मुझे इजाजत दीजिए, मैं चलती हूं, अपना इस्तीफा भिजवा दूंगी.’

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘आप ने सही फैसला किया है. आप जैसी जातिवादी और मनुष्य विरोधी अशिक्षित महिला की मेरे ‘महिला सत्संग’ में जरूरत भी नहीं है. और केवल मेरे ‘महिला सत्संग’ को ही नहीं, आप किसी भी संस्था, समाज के लिए अवांछित तत्व हैं.’

Online Hindi Story : बिंदास लड़की

Online Hindi Story : बुजुर्गों की तरफ से तो रिश्ता तय हो चुका था. कुंडली मिलान, लेनदेन सब कुछ. बस, अब सब लड़कालड़की की आपसी बातचीत पर निर्भर था. बुजुर्गों ने तय किया कि लड़कालड़की आपस में बात कर एकदूसरे को समझ लें. कुछ पूछना हो तो आपस में पूछ लें. उन्हें एकांत दिया गया.

लड़के को शांत देख लड़की ने कहा, ‘‘आप कुछ पूछना चाहते हैं?’’ लड़का शरमीला था. मध्यमवर्गीय परिवार से था. उस ने कहा, ‘‘नहीं, बुजुर्गों ने तो सब

देखपरख लिया है. उन्होंने तय किया है तो सब ठीक ही होगा. आप दिखने में अच्छी हैं. मुझे पसंद हैं, बस इतना पूछना था कि…’’ लड़का पूछने में लड़खड़ाने लगा तो उस पढ़ीलिखी सभ्य लड़की ने कहा, ‘‘पूछिए, निस्संकोच पूछिए, आखिर हमारीआप की जिंदगी का सवाल है.’’

लड़के ने पूछा, ‘‘यह शादी आप की मरजी से… मेरे कहने का अर्थ यह है कि आप राजी हैं, आप खुश हैं न.’’

‘‘हां, लड़की ने बड़ी सरलता और सहजता से कहा. नहीं होती तो पहले ही मना कर देती.’’ लड़का चुप रहा. अब लड़की ने कहा, ‘‘मैं भी कुछ पूछना चाहती हूं आखिर मेरी भी जिंदगी का सवाल है. उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, निस्संकोच पूछिए,’’ लड़के ने कहा. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘लड़की पढ़ीलिखी है तो तेज तो होगी ही लेकिन इतनी बिंदास और बेबाक.’

‘‘आप का शादी के पहले कोई चक्कर, मेरा मतलब कोई अफेयर था क्या?’’

‘‘क्या,’’ लड़के ने लड़की की तरफ देखा.

‘‘अरे, आप घबरा क्यों गए? कालेज में पढ़े हो. इश्क वगैरा हो जाता है. इस में आश्चर्य की क्या बात है? सच बताना. एकदूसरे से क्या छिपाना?’’

‘‘जी, वह एक लड़की से. बस, यों ही कुछ दिन तक. अब सब खत्म है,’’ लड़के ने झेंपते हुए कहा.

‘‘मेरा भी था,’’ लड़की ने बेझिझक कहा.

‘‘अब नहीं है.’’

लड़का लड़की का मुंह ताकने लगा.

‘‘क्यों, क्या हुआ? जब आप ने कहा तब मैं ने तो ऐसा रिएक्ट नहीं किया जैसा आप कर रहे हैं. आप ने तो पूछने पर बताया, मैं ने तो ईमानदारी से बिना पूछे ही बता दिया.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि महीने में कितना कमा लेते हो?’’ लड़की ने आगे पूछा.

‘‘जी, 10 हजार रुपए.’’

‘‘मैं ने वेतन नहीं पूछा, टोटल कमाई पूछी है.’’

‘‘जी, मैं घूस नहीं लेता,’’ लड़के ने ताव से कहा.

‘‘अच्छा, पैदाइशी हरिश्चंद्र हो या अन्ना आंदोलन का असर है या फिर, डरते हो’’ लड़की हंस कर बोली.

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’

‘‘तो आप ईमानदार हैं.’’

‘‘जी, बिलकुल.’’

‘‘फिर घर कैसे चलाएंगे 10 हजार रुपए में, खासकर शादी के बाद. कम से कम 5 हजार रुपए तो मेरे ऊपर ही खर्च होंगे. क्या शादी के बाद अपनी पत्नी को घुमाने नहीं ले जाएंगे. बाजार, सिनेमा, कपड़े, जेवर वगैरावगैरा.’’

लड़के बेचारे के तो होश गुम थे. अच्छाखासा इंटरव्यू हो रहा था उस का. अब उसे लड़की बड़ी बेशर्म और उजड्ड मालूम हुई.

लड़की ने कहा, ‘‘देखो, शादी के बाद मुझे कोई झंझट नहीं चाहिए. अपनी मांबहन को पहले ही समझा कर रखना. मुझे सुबह आराम से उठने की आदत है और हां, शादी के बाद अकसर लड़झगड़ कर लड़के अलग हो जाते हैं. और सारी गलती बहुओं की गिना दी जाती है. सो अच्छा है कि हम पहले ही तय कर लें कि किसी भी बहाने से बिना लड़ाईझगड़े के अलग हो जाएं. तुम्हारा तो सरकारी जौब है, ट्रांसफर करा लेना. दूसरी बात रही पहनावे की तो मुझे साड़ी पहनने की आदत नहीं है. कभी शौक से, कभी मजबूरी में पहन ली तो और बात है. मैं सलवारसूट, जींस पहनती हूं और घर में बरमूड़ा, रात में नाइटी. बाद की टैंशन नहीं चाहिए, यह मत पहनो, वह मत करो, पहले ही बता देती हूं कि पूजापाठ मैं करती नहीं.’’

लड़की कहे जा रही थी और लड़का सुने जा रहा था. लड़के को लगा कि वह भी क्या समय था कि जब लड़की लजाते, शरमाते उत्तर देती थी, हां या न में. लड़का पूछता था, खाना बनाना आता है, गाना गाना जानती हो, कोई वाद्ययंत्र गिटार, सितार वगैरा बजा लेती हो, सिलाईबुनाई आती है, मेरे मातापिता का ध्यान रखना होगा और लड़की जीजी, हांहां करती रहती थी और अब जमाना इतना बदल गया.

उसे तो यह लगा मानो वह साक्षात्कार दे रहा हो. यह भी सही है कि अधिकतर जोड़े शादी के बाद अलग हो जाते हैं. दुल्हनें अपनी मांगों पर अड़ कर परिवार के 2 टुकड़े कर देती हैं. फिर अपनी मनमरजी का ओढ़नेपहनने से ले कर खाने में नमक, मिर्च कम ज्यादा होने पर सासबहू की खिचखिच शुरू हो जाती है. यह कह तो ठीक ही रही है, लेकिन शादी से पहले ही इतनी बेखौफ और निडर हो कर बात कर रही है तो बाद में न जाने क्या करेगी? यह तो नीति और मर्यादा के विरुद्ध हो गया. अभी पत्नी बनी नहीं और पहले से ही ये रंगढंग. लड़का तो फिर लड़का था. उस ने भी कहा, ‘‘शादी से पहले का भी बता दिया और शादी के बाद का भी. तुम से शादी करने का मतलब मांबाप, भाईबहन सब छोड़ दूं, तुम्हारे शौक पूरे करता रहूं. कर्तव्य एक भी नहीं और अधिकार गिना दिए. यह क्या बात हुई?’’

लड़की ने कहा, ‘‘जो होता ही है वह बता दिया तो क्या गुनाह किया. सच ही तो कहा है, इस में क्या जुर्म हो गया.’’

‘‘यह कोई तरीका है कहने का. यह कहती कि तुम्हारा घर संभालूंगी, बड़ेबूढ़ों का आदर करूंगी, सब का ध्यान रखूंगी तो अच्छा लगता.’’

‘‘ये सब तो आया के काम हैं. बाई है घर पर काम वाली या हमेशा मुझ से ही सब करवाने के चक्कर में हो. धोबिन भी मैं, बरतन, झाड़ूपोंछा वाली भी मैं. पत्नी चाहिए या नौकरानी,’’ लड़का भी उत्तर देने लगा, ‘‘क्या जो पत्नियां अपने घर का काम करती हैं वे नौकरानी होती हैं?’’

‘‘अरे, आप तो नाराज हो गए,’’ लड़की ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा. सरकारी नौकरी में हो, ऊपरी कमाई तो होगी ही. फिर मेरे पिता दहेज में वाशिंग मशीन तो देंगे ही, कपड़े धुलाई का काम आसान हो जाएगा. मैं तो कुछ बातें पहले से ही स्पष्ट कर रही हूं जैसे मुझे 3-4 सीरियल देखने का शौक है और उन्हें मैं कभी मिस नहीं करती. अब ऐसे में कोई काम बताए तो मैं तो टस से मस नहीं होने वाली, अपने दहेज के टीवी पर देखूंगी. चिंता मत करना. किसी और के मनपसंद सीरियल के बीच में नहीं घुसूंगी.

लड़के के चेहरे के बदलते रंग को देख कर लड़की ने कहा, ‘‘आप को बुरा तो लग रहा होगा, लेकिन ये सब नौर्मल बातें हैं जो हर घर में होती हैं. मेरी ईमानदारी और साफगोई पर आप को खुश होना चाहिए और आप हैं कि नाराज दिख रहे हैं.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं हूं मुझे कुछ कहना है,’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, मुझे गोलगप्पे, चाट, पकोड़ी खाने का बड़ा शौक है, कम से कम हफ्ते में एक बार तो ले ही जाना होगा.’’

लड़की बोले जा रही थी, बोले जा रही थी. बेवकूफ थी, कमअक्ल थी. समझ नहीं आ रहा था लड़के को.

लड़की ने फिर पूछा, ‘‘सुनो, तुम शराब, सिगरेट तो नहीं पीते. तंबाकू तो नहीं खाते.’’

‘‘जी…जी…’’ लड़के की जबान फिर लड़खड़ाई.

‘‘जी…जी, क्या हां या नहीं,’’ लड़की ने थोड़े तेज स्वर में पूछा.

अब आप ने इतना सच बोला है तो मैं भी क्यों झूठ बोलूं. कभीकभी दोस्तों के साथ पार्टी वगैरा में.

‘‘देखो, मुझे शराब और सिगरेट से सख्त नफरत है. इस की बदबू से जी मिचलाने लगता है. तंबाकू खा कर बारबार थूकने वालों से तो मुझे घिन आती है. सब छोड़ना होगा. पहले सोच लो. तुम्हारे मातापिता को ये सब पहले बताना चाहिए था, वे तो कह रहे थे कि लड़का बड़ा शरीफ और सज्जन है. झूठ बोलने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘आप मेरे मातापिता को अभी से झूठा कह रही हैं,’’ लड़के ने गुस्से में कहा. आप में शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं है. लड़की भी गुस्से में बोली, ‘‘शराबीकबाबी, तुम झूठे और तुम्हारे मांबाप भी. शर्म तुम्हें आनी चाहिए कि मुझे. तगड़ा दहेज भी चाहिए. लड़की भी ऐसी चाहिए कि तुम कुछ भी करो. लड़की मुंह बंद कर के रहे. कल शराब पी कर हाथ भी उठाओगे. फिर सुबह माफी मांगोगे कि नशे में हो गया. ये सब मैं सहने वाली नहीं. सीधा रिपोर्ट करूंगी. सब के सब अंदर हो जाओगे. नए जमाने की पढ़ीलिखी लड़की हूं. अपने राइट्स जानती हूं.’’

इस से ज्यादा सुनना लड़के के बस में नहीं था. वह गुस्से से बाहर निकल आया. मांबाप कुछ समझतेपूछते कि उस ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. फौरन वापस चलिए,’’ लड़का गाड़ी में बैठ गया.

‘‘क्या हुआ? क्या हुआ?’’ कहते हुए लड़की के परिवार वाले दौड़े.

लड़के ने कहा, ‘‘अपनी लड़की से पूछ लेना.’’

लड़का अपने परिवार के साथ गाड़ी में बैठ कर उड़नछू हो गया.

‘‘अरे, अभागिन, क्या कह दिया तूने,’’ लड़की की मां ने गुस्से से लड़की से कहा. इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकल गया. जन्मपत्री भी मिल रही थी. सरकारी नौकरी वाला लड़का मिलता कहां है आजकल.

लड़की ने अपने बचाव में कह दिया लागलपेट कर, ‘‘अरे मां, अच्छा हुआ, बात करवा दी आप ने. लड़का एक नंबर का शराबीकबाबी है. किसी लड़की से अफेयर की बात भी कह रहा था और भी न जाने क्याक्या बताया मां उस ने.’’

लड़की के मांबाप ने मान भी लिया. जब अपनी ही लड़की बताए तो मांबाप विश्वास क्यों नहीं करेंगे. फिर कौन सी लड़की होगी जो अपनी शादी अपने हाथ से तोड़ कर अपना भविष्य बरबाद करेगी.

रात को लड़की ने अपने कमरे में जा कर मोबाइल लगाया.

‘‘हाय, जानेमन कैसे हो?’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘होना क्या था. उलटे पांव भगा दिया साले को.’’

‘‘वैरी गुड डार्लिंग, लेकिन अब आगे?’’

‘‘आगे क्या? प्यार करते हो तो आ कर बात करो मेरे मांबाप से.’’

‘‘नहीं माने तो.’’

‘‘नहीं माने तो हमें कौन सा लैलामजनूं बन कर भटकना है. कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन उस में 1 महीना लगता है. उस के पहले कोई और आ गया तो.’’

‘‘तो ठीक है यार, मंदिर में कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन यह बताओ, आखिर तुम ने कहा क्या उस लड़के से जो वह भाग गया.’’

‘‘सच कहा, केवल सच.’’

‘‘सच सुन कर भाग गया.’’

‘‘अरे, आजकल सच बरदाश्त कौन करता है.’’

‘‘और तुम्हारा सच बरदाश्त कर लेता तो.’’

‘‘तो कर लेती.’’

‘‘क्या…क्या…कहा?’’

‘‘हां, कर लेती यार, आजकल सच्चा आदमी मिलता कहां है?’’

‘‘और मेरा क्या होता?’’

‘‘तुम कौन से देवदास बने घूमते. ढूंढ़ लेते कोई और.’’

‘‘बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करतेकरते हम सचमुच कितने प्रैक्टिकल हो गए हैं. दिल तो जैसे है ही नहीं. न आत्मा, न मन, न जमीन, बस मुनाफा मोटी तनख्वाह, कितनी बेशर्म और बेहया हो गई है हमारी सोच. बिलकुल मशीन हो गए हैं हम लोग,’’ उधर से पे्रमी का दार्शनिक स्वर सुनाई दिया.

लड़की ने कहा, ‘‘ओए, ज्यादा जज्बातजमीर की बातें मत कर. जल्दी से कंपनी का टारगेट पूरा कर. 4 भोलेभाले, भविष्य की चिंता करने वालों को सपने दिखा, कमा, लूट और अपनी जगह पक्की कर.’’

‘‘मान लो, मैं किसी वजह से तुम से शादी न कर सकूं, मना कर दूं किसी मजबूरी के कारण या कोई और पसंद आ जाए, तब क्या होगा तुम्हारा,’’ पे्रमी का स्वर गंभीर था.

‘‘तो क्या होगा कुछ नहीं, मुझे पुरानी फिल्मों की मीनाकुमारी समझ रखा है क्या? तुम नहीं तो और सही, नहीं तो…’’

‘‘अच्छा, ठीक है. अब यह बकवास बंद कर. रात बहुत हो गई है. आई लव यू बोल और फोन रख,’’ लड़का हंसते हुए बोला.

‘‘ओ के कल मिलते हैं.’’

‘‘ओ के, बाय गुडनाइट.’’

‘‘बाय, स्वीट ड्रीम्स’’

‘‘और दोनों तरफ से मोबाइल बंद हो गया.’’

Hindi Kahani : कैसे बदली आयशा की जिंदगी?

Hindi Kahani : आएशा का सपना था कि वह बड़ी हो कर कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना नाम कमाए. इसी सपने को ले कर वह अपने गांव से इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध कालेज पहुंची थी, पर वहां सीनियर्स को देख कर अचकचा गई. उसे कुछ ऐसा महसूस होने लगा जैसे वे सब उस से अलग हैं. उन के व्यक्तित्व के आगे वह खुद को बौना महसूस करती. उस के पास गिनेचुने 3-4 सलवारसूट थे. अन्य लड़कियां जींस और टौप पहन कर घूमतीं.

आएशा को अंगरेजी उतनी ही आती थी जितनी कंप्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिए जरूरी होती है जबकि उस के अन्य सहपाठी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते. लड़कियों के बाल भी मौडर्न स्टाइल में कटे होते. आएशा के बाल लंबे थे. वह 2 चोटियों के अलावा कोई और स्टाइल बनाना जानती ही नहीं थी.

अपने इन खयालों की वजह से वह किसी से बातचीत करने में भी अचकचाती थी. वैसे भी हौस्टल में उस की रूममेट आलिया को किसी कारणवश कालेज जौइन करते ही घर जाना पड़ गया था. पहले से वह किसी को जानती नहीं थी, इसलिए ज्यादातर वह अकेली ही रहती. कक्षा में अन्य छात्र उसे अकसर चिढ़ाते. कभीकभी सीधे कटाक्ष भी करते थे. वह काफी उदास रहने लगी. हालांकि वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी, पर उस का ध्यान इन चीजों की वजह से पढ़ाई में लगना कुछ कम हो गया था.

एक दिन आएशा अपने कमरे में इसी तरह उदास बैठी थी कि अचानक दस्तक हुई. ‘उस के कमरे में कौन आ गया’, यह सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उस ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, आई

एम आलिया, योर रूममेट. तुम जरूर आएशा होगी?’’

डर के मारे एक क्षण के लिए आएशा के मुंह से कुछ नहीं निकला. उस ने यह तो सोचा ही नहीं था कि उस की रूममेट को भी उसे झेलना पड़ेगा. उस के मन में यही विचार चलने लगे थे कि यह आलिया भी उस का मजाक बनाएगी. उस ने सहमते हुए अपना हाथ आलिया से मिलाया पर आलिया के चेहरे पर फैली मुसकान देख कर वह अपना डर कुछ भूल गई.

आलिया ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम बहुत होशियार हो और 12वीं में तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए थे. भई, मैं तो पढ़ाई में बहुत पीछे हूं. मुझ से अंगरेजी कितनी ही बुलवा लो, पिक्चरों की कहानियां कितनी ही पूछ लो और लेटैस्ट फैशन स्टाइल के बारे में कुछ भी जान लो, पर पढ़ाई में तो मेरा हाल बड़ा ही बुरा है. मैं तो यह जान कर खुश हो गई कि तुम मेरी रूममेट हो. खूब जमेगी अपनी,’’ कह कर आलिया ने आएशा को गले लगा लिया. उस का चुलबुलापन देख कर आएशा भी मुसकराए बिना रह न सकी. दोनों ने मिल कर कुछ देर तक बातें की और फिर दोनों सो गईं.

आलिया में न जाने क्या बात थी कि वह जल्दी ही आएशा की दोस्त बन गई पर आलिया के अन्य दोस्तों से वह कभी दोस्ती नहीं कर सकी. वह ऐसी जगहों पर आलिया के पास जाती ही नहीं थी, जहां पर उस के अन्य दोस्त होते.

आलिया की खास सहेलियां तारा और शिवानी तो उसे खासकर अच्छी नहीं लगती थीं. वह अकसर उस का और उस के कपड़ों का खूब मजाक बनाती थीं. उस के बोलने के तरीके पर तो वे कई बार उस के सामने ही उस का मजाक उड़ा दिया करती थीं.

एक दिन आएशा पढ़ने में व्यस्त थी. आलिया अपना मोबाइल छोड़ कर कहीं गई हुई थी. मोबाइल बारबार बज रहा था. उस ने देखा कि उस पर डैडी लिखा आ रहा है. आएशा को लगा कि हो सकता है, कोई जरूरी फोन हो. वह आलिया को ढूंढ़ने लगी. ढूंढ़तेढूंढ़ते वह तारा और शिवानी के कमरे के पास पहुंची. अंदर से आवाजें आ रही थीं, ‘‘यार, आलिया तेरी कोई बात समझ में नहीं आती. तू खुद तो इतनी मस्त है पर उस आएशा को अपने साथ क्यों टांगे रखती है?’’ शायद यह तारा और शिवानी की मिलीजुली आवाजें थीं.

आलिया ने जवाब दिया, ‘‘यार, तुम लोग हर किसी को एक ही नजरिए से देखते हो, जबकि हर किसी में कुछ न कुछ खासीयत होती है. वह हमारी तरह मौडर्न भले ही न हो, पर पढ़नेलिखने में हम से बहुत आगे है. उस की देखादेखी मैं भी थोड़ाबहुत पढ़ने लगी हूं.’’

ये सब बातें सुन कर आएशा की आंखें भर आईं. तभी आलिया का फोन एक बार फिर बज उठा. आलिया और उस की सहेलियों का ध्यान एकदम से फोन लाने वाले की ओर गया. आएशा ने आलिया से कहा, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारा मोबाइल देने आई थी.’’

आलिया ने उस की आंखों के आंसू देख लिए थे. वह अपना मोबाइल ले कर और सहेलियों को बाय कह कर अपने कमरे में आ गई.

आलिया की मम्मी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. पिछली बार भी उस को इसी वजह से घर जाना पड़ा था. उस की मम्मी उस से बात करना चाह रही थीं. बात खत्म होने के बाद उस ने आएशा को देखा. वह बिस्तर पर लेट कर किताब पढ़ने की कोशिश करने कर रही थी आलिया समझ गई कि उस का ध्यान पढ़ाई की तरफ नहीं है. वह सोचने लगी कि यदि इस तरह उस का ध्यान भटकता रहा तो उस की पढ़ाई ठीक तरह से नहीं हो पाएगी. वह अब तक उसे अच्छे से जाननेसमझने लगी थी.

आलिया उस के पास जा कर बैठी. उस ने सब से पहले उस की किताब उठा कर साइड में रख दी, फिर उस का काले फ्रेम वाला चश्मा निकाल दिया. उस की दोनों चोटियों को खोल दिया. आएशा उसे ध्यान से देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आलिया करना क्या चाह रही है.

आलिया उसे उठा कर शीशे के आगे ले गई और कहा, ‘‘देखो आएशा, तुम कितनी सुंदर हो. तुम कैसी दिखती हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर मैं यह देख रही हूं कि हमारी अन्य क्लासमेट्स को इस से फर्क पड़ता है और तुम को भी पड़ने लगा है. तो क्यों न इस बार  कुछ ऐसा कर दें कि उन का भी मुंह बंद हो जाए और तुम को भी अपने पर कुछ एतबार हो जाए. बोलो, हो तैयार?’’

आएशा के यह कहने पर कि उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता आलिया उसे चुपचाप देखती और सुनती रही. लेकिन अचानक आएशा फट पड़ी और जोर से चिल्लाई, ‘‘हां, पड़ता है मुझे फर्क. तुम्हारे अलावा हर कोई मुझ से बात करने से कतराता है. आज मैं ने सुना कि तुम्हारी सहेलियां भी किस तरह मेरा मजाक उड़ा रही थीं. मुझे सब फूहड़गंवार समझते हैं,’’ वह रोती हुई बिस्तर पर औंधे मुंह लेट कर सुबकने लगी.

आलिया उस के पास आ कर बैठी और धीरे से बोली, ‘‘अगर कोई और तुम्हें कुछ नहीं समझता है तो यह उस की दिक्कत है. पर मेरे पास एक आइडिया है. तुम्हें मेरे अनुसार ही चलना होगा. 2 महीने बाद हमारे कालेज में ब्यूटी क्वीन का चुनाव होना है. तुम उस में भाग लोगी और तुम्हारी पूरी टे्रनिंग मेरे जिम्मे है. वैसे मैं फ्री में कोई काम नहीं करती हूं. इस के बदले तुम्हें मुझे पढ़ाना होगा.’’

आएशा उस की ओर देखती हुई बोली, ‘‘ब्यूटी क्वीन और मैं? दिमाग तो नहीं फिर गया है तुम्हारा?’’

आलिया ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, ‘‘मैडम… तुम को कुछ बोलना नहीं है, सिर्फ करना है. यह बात अभी हम किसी को नहीं बताएंगे.’’

अब आलिया रोज शाम को पहले आएशा से कंप्यूटर सीखती और फिर उस को अंगरेजी बोलना सिखाती, उस को चलने व बात करने का तरीका और न जाने किनकिन चीजों पर लैक्चर देती. 2 महीने में आएशा काफी फर्राटेदार अंगरेजी बोलना सीख गई थी.

प्रतियोगिता के एक दिन पहले उसे ले जा कर आलिया ने उस के बाल स्टाइलिश तरीके से कटवा दिए. खुद के अच्छे कपड़े आएशा को पहना कर उसे ट्राई करवाती रहती थी. उस ने अपनी सब से अच्छी डै्रस प्रतियोगिता के दिन आएशा को पहनने को दी.

जब प्रतियोगिता के दिन आएशा को ले कर आलिया पहुंची तो कुछ क्षण के लिए किसी ने आएशा को पहचाना ही नहीं. प्रतियोगिता में तारा और शिवानी भी भाग ले रही थीं, पर सभी आएशा को देख कर आश्चर्यचकित थे. मन ही मन दोनों सोच रही थीं, ‘रूप अच्छा बना लिया, पर भाषा का क्या करेगी?’

थोड़ी ही देर में जब जजेस ने प्रश्न पूछे तो उस के उत्तर सुन कर वे काफी प्रभावित हुए.

आएशा जब ब्यूटी क्वीन चुन ली गई तो आएशा के साथसाथ आलिया की खुशी का भी ठिकाना न था. वह खुशी से झूम उठी. तारा और शिवानी ने उसे आ कर बधाई दी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी.

कार्यक्रम खत्म होने के बाद आएशा जब वापस अपने कमरे में पहुंची तो  आलिया को धन्यवाद देने लगी. आलिया ने कहा, ‘‘मैडम, इस के बदले आप को अभी मुझे बहुत पढ़ाना है. मुझे भी तुम्हारी ही तरह जीत हासिल करनी है.’’

फिर आलिया धीरे से मुसकराती हुई बोली, ‘‘जिस क्षेत्र को हम ने चुना है, उसे  मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं कि आगे बढ़ने के लिए रूप से ज्यादा दिमाग की जरूरत पड़ेगी. पर चूंकि लोग तुम पर कमैंट मारते थे और तुम भी थोड़ी सी उदास रहने लगी थी, इसलिए मैं ने बस, तुम्हारी थोड़ी सी मदद की, पर मेहनत और गुण तो तुम्हारे ही थे. अब इन बातों में तुम भी कभी ध्यान नहीं दोगी, यह मैं जानती हूं. मैं अपने उन दोस्तों को भी अच्छी तरह जानती हूं जो तुम्हारा मजाक बनाते थे. देख लेना कल ही तुम से दोस्ती करने आ जाएंगे.’’

सुबह उठते ही उन के दरवाजे पर दस्तक हुई. आलिया सो रही थी. आएशा ने दरवाजा खोला तो सामने तारा और शिवानी बुके लिए हुए खड़ी थीं. वे उस के गले लग कर उस से एक बार फिर माफी मांगती हुई बोलीं, ‘‘आएशा, क्या तुम हमें भी अपना दोस्त बना सकती हो?’’

आएशा वापस 2 चोटियों में आ गई थी, पर उस के चेहरे पर एक नए आत्मविश्वास का तेज था. उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, आखिर तुम दोनों मेरी सब से अच्छी सहेली की दोस्त जो हो.’’

आलिया भी तब तक जग गई थी और उन की बातें सुन मुसकरा उठी.

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