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साइकिल से स्कूल आते और जाते समय हर रोज 16-17 साल की एक लड़की गुमटी पर आती. गेहुंआ रंग, दुबलीपतली, छरहरी बदन, कजरारी आंखें, चंचल स्वभाव. गुमटी पर जब भी वह आती, 2 ही चींजें खरीदती - लेज का चिप्स और चैकलेट.

गुमटी चलाने वाले दुकानदार रवि की उम्र भी लगभग 20 साल की होगी.वह भी गोरा, लंबा और सुंदर था. उस की सब से बड़ी खूबी थी कि हंसमुख मिजाज का लड़का था. किसी भी ग्राहक से वह मुसकराते हुए बातें करता. उस की दुकान अच्छी चलती. हर उम्र के लोग उस की गुमटी पर दिखते. बच्चे चैकलेट और कुरकुरे के लिए, बुजुर्ग खैनी व चूना के लिए, तो नौजवान पानगुटका के लिए. महिलाएं साबुन और शेंपू के लिए आते.

रवि की गुमटी एक बड़ी बस्ती में थी, जहां 10 गांव के लोग बाजार करने के लिए आते. इस बस्ती में एक उच्च विद्यालय था, जहां कई गांवों के लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते. इस उच्च विद्यालय में इंटर क्लास तक की पढ़ाई होती. इस बस्ती में जरूरत की लगभग हर चीजें मिल जातीं.

रवि के पिता दमा की बीमारी से परेशान रहते. घर का सारा काम रवि की मां करती. रवि के परिवार का सहारा यही गुमटी था. सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक रवि इसी गुमटी में बैठ कर सामान बेचा करता. इसे खाने और नाश्ता करने तक की फुरसत नहीं मिलती.

रवि खुशमिजाज के साथ साथ दिलदार भी था. किसी के पास अगर पैसे नहीं हैं तो उसे उधार सामान दे दिया करता. 20,000 रुपए दिए गए उधार मिलने की संभावना नहीं के बराबर थी. फिर भी कोई उधार के लिए आता, तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देता. वह ग्राहकों को चाचा, भैया, दीदी, चाची से ही संबोधित करता.

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