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KBC 15 : करोड़पति बनने के बाद जसकरण से अमिताभ बच्चन ने कही ये बात, शेयर किए यादगार पल

Kaun Banega Crorepati 15 : सोनी टीवी के सबसे पसंदीदा क्विज शो ‘कौन बनेगा करोड़पति 15’ को अपना पहला करोड़पति मिल गया है. बीते दिनों पंजाब के जसकरण सिंह (Jaskaran Singh) ने करोड़पति बनकर इतिहास रच दिया है.

उन्होंने एक करोड़ रुपये के सवाल का सही जवाब दिया है, जिसके बाद जसकरण ने सात करोड़ रुपये के सवाल का भी सामना किया. लेकिन जब जसकरण ने एक करोड़ रुपये जीते तो शो के होस्ट यानी अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) भी अपनी एक्साइटमेंट रोक नहीं पाए और उन्होंने जसकरण को गले लगाया. साथ ही उन्हें शुभकामनाएं दी.

बिग बी ने जसकरण को गले लगाकर दी बधाई

मीडिया से बात करते हुए ”जसकरण सिंह” ने बताया कि जब उन्होंने एक करोड़ रुपये की धनराशि जीती तो उस समय अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का रिएक्शन कैसा था. जसकरण ने कहा, ‘जब अमिताभ सर ने ऐलान किया कि मैं एक करोड़ रुपये जीत चुका हूं तो उन्होंने सबसे पहले मुझे गले लगाया और मुझसे कहा, “कमाल कर दिया मुंडया, कमाल कर दिया”.’ इसी के साथ जसकरण सिंह ने बताया कि वह, ‘अमिताभ बच्चन की यह बात जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे.’

जसकरण ने शेयर किया अपना यादगार पल

इसके अलावा जसकरण सिंह ने शो (Kaun Banega Crorepati 15) से जुड़े अपना सबसे यादगार पल भी शेयर किया. उन्होंने कहा, ‘मेरा सबसे अच्छा और यादगार पल वो था जब जब फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के विजेता के तौर पर अमिताभ बच्चन ने उनका नाम ऐलान किया.’ इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा कि, ‘सर, कंटेस्टेंट को इस बात का अहसास नहीं होने देते कि आप हॉट सीट पर सदी के सबसे बड़े महानायक के सामने बैठे हुए हैं.’

शो में आने के लिए सालों से कर रहे थे कोशिश

इसके अलावा जसकरण सिंह (Jaskaran Singh) ने ये भी बताया कि वह पिछले चार सालों से ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में आने का प्रयास कर रहे थे. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, जब भी शो में कोई करोड़पति बनता था तो वह उस पल को बार-बार रिवाइंड करके देखा करते थे कि जैसे उनसे ही वो सवाल किया जा रहा है और अब उनकी वो कल्पना सच हो गई. वह हॉटसीट पर महानायक के सामने तो बैठे ही थे. साथ ही उन्होंने एक करोड़ रुपये भी जीते.

मेरी बेटी का मूड उखड़ाखड़ा रहता है, मैं क्या करूं?

सवाल

हमारी शादी हुए 26 साल हो गए हैं, एक बेटा है और एक बेटी. बेटा बचपन से समझदार रहा. कभी परेशान नहीं किया, पढ़ने में होशियार रहा और अब अपने बलबूते पर अच्छी कंपनी में नौकरी कर अच्छा कमा रहा है. लेकिन बेटी शुरू से नकचढ़ी रही है. भाई से भी बातबात पर लड़ पड़ती है. पढ़ाई में ठीकठाक रही है, अब कालेज में पढ़ रही है. कालेज में जब से गई है, उस के रंगढंग ही सम?ा में नहीं आते, न अपने जाने का कुछ बताती है न आने का. कुछ पूछो तो कहती है, ‘वह कोई बच्ची नहीं जो अपना भलाबुरा न समझ सके.’

हम उसे खुश करने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन उसे हमारी कोई भी चीज, कोई भी काम पसंद नहीं आता. कहती है, आप लोगों को आजकल का कुछ भी नहीं पता. समझ नहीं आता कि वह लाइफ में चाहती क्या है. ऐसा नहीं है कि हम पुरानी सोच के हैं. मैं खुद मौडर्न मदर हूं. पति भी फौरवर्ड हैं. बच्चों पर हम ने कभी कोई पाबंदी नहीं लगाई लेकिन इस का कुछ सम?ा नहीं आता कि इतनी उखड़ीउखड़ी सी क्यों रहती है.

जवाब

आप की बेटी उम्र के उस दौर से गुजर रही है, जहां बच्चे को सिर्फ अपना ही अपना दिखता है. उस की अपनी ही दुनिया होती है. घरवालों के बारे में वे नहीं सोचते. कालेज, फ्रैंड्स ये सब बहुत माने रखते हैं.

आप की बेटी महत्त्वाकांक्षी भी लगती है. वह लाइफ में बहुतकुछ चाहती है, जल्दीजल्दी सब हासिल करना चाहती है. उसे लगता है वह बहुत पीछे है और बाकी बहुत आगे निकल रहे हैं.

चिंता मत कीजिए, उम्र के साथसाथ सोच में परिवर्तन आने लगता है. कालेज में कई बार फ्रैंड्स ऐसे मिल जाते हैं जिन की संगत में बच्चा बदल जाता है. उस का कालेज खत्म होने दीजिए. उस में बदलाव जरूर आएगा. फिर भी उस के साथ ज्यादा से ज्यादा बातचीत करने की कोशिश कीजिए. परिवार में सब साथ बैठें तो उसे इम्पोर्टेंट फील करवाइए.

जी का जंजाल बनी प्रेमिका

प्रदेश की राजधानी होने के नाते रोजाना लाखों लोग लखनऊ आतेजाते रहते हैं. इसी वजह से लखनऊ के रेलवे स्टेशन चारबाग के आसपास तो हर तरह के होटलों की भरमार है ही, उस से सटे इलाकों का भी यही हाल है. ऐसा ही एक इलाका है नाका हिंडोला. यहां भी छोटेबड़े तमाम होटल हैं.

नाका हिंडोला के मोहल्ला विजयनगर में गुरुद्वारे के पीछे एक होटल है सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई. 16 सितंबर की सुबह 11 बजे के आसपास होटल का कर्मचारी मोहन बहादुर बेसमेंट में बने कमरों की ओर गया तो गैलरी में उसे एक बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया.

वह लपक कर बच्चे के पास पहुंचा. बच्चा 4 साल के आसपास रहा होगा. उस ने उसे गोद में उठा कर पुचकारते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा, मम्मी ने मारा क्या?’’

‘‘नहीं, मम्मी ने नहीं मारा. मम्मी को पापा मार कर भाग गए.’’ बच्चे ने कहा.

‘‘मार कर कहां भाग गए पापा?’’ मोहन ने पूछा तो बच्चा रोते हुए बोला, ‘‘पता नहीं?’’

मोहन बहादुर को पहले लगा कि पतिपत्नी में मारपीट हुई होगी या हो रही होगी, इसलिए बच्चा रोते हुए बाहर आ गया होगा. लेकिन अब उसे मामला कुछ और ही लगा, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी कहां हैं?’’

‘‘वह बाथरूम में पड़ी है.’’ बच्चे ने कहा.

‘‘तुम किस कमरे से बाहर आए हो?’’ मोहन ने जल्दी से पूछा तो बच्चे ने कमरा नंबर 102 की ओर इशारा कर दिया.

मोहन बच्चे को गोद में लिए कमरे के अंदर बने बाथरूम में पहुंचा तो वहां की हकीकत देख कर परेशान हो उठा. बाथरूम में एक महिला की अर्धनग्न लाश पड़ी थी. बच्चे ने उस लाश की ओर अंगुली से इशारा कर के कहा, ‘‘यही मेरी मम्मी है. पापा इन्हें मार कर भाग गए हैं.’’

लाश देख कर मोहन बच्चे को गोद में उठाए लगभग भागते हुए होटल के मैनेजर रामकुमार के पास पहुंचा. उस ने पूरी बात उन्हें बताई तो होटल में अफरातफरी मच गई. होटल के सारे कर्मचारी इकट्ठा हो गए.

मैनेजर रामकुमार ने स्वयं कमरे में जा कर देखा. लाश देख कर उन के भी हाथपांव फूल गए. उन्होंने तुरंत होटल मालिक राजकुमार और स्थानीय थाना नाका हिंडोला पुलिस को घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह ने पहले तो इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी, उस के बाद खुद पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सिंह होटल पहुंच गए.

होटल मालिक राजकुमार उन का इंतजार बाहर कर रहे थे. उन के पहुंचते ही वह उन्हें साथ ले कर बेसमेंट स्थित उस कमरे पर पहुंचे, जिस में लाश पड़ी थी. लाश कमरे के बाथरूम में अर्धनग्न अवस्था में थी. सरसरी तौर पर निरीक्षण के बाद उन्होंने मृतका के नग्न हिस्से पर कपड़ा डलवाया.

मृतका की उम्र 22-23 साल रही होगी. उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से निकला खून गरदन से ले कर पीठ के नीचे तक जमीन पर फैला था.

इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एएसपी (पश्चिम) अजय कुमार और सीओ कैसरबाग हृदेश कठेरिया भी फोरेंसिक टीम के साथ होटल पहुंच गए. फोरेंसिक टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई तो पुलिस अधिकारी होटल के मालिक और मैनेजर से पूछताछ करने लगे.

कमरे की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली, जिस से मृतका या उस के पति के बारे में कुछ पता चलता. पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को अपने पास बुला कर पुचकारते हुए प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘आयुष. यह मेरा स्कूल का नाम है. घर में मुझे सब शिवा कहते थे.’’ बच्चे ने जवाब में बताया.

‘‘तुम्हारी मम्मी को किस ने मारा?’’

‘‘पापा ने मारा है.’’

‘‘पापा ने मम्मी को कैसे मारा?’’ एएसपी अजय कुमार ने पूछा तो बच्चे ने कहा, ‘‘पहले तो पापा ने मम्मी को खूब मारा. मम्मी खूब रो रही थीं. फिर भी पापा उन को मारते रहे. पापा उन्हें मारते हुए बाथरूम में ले गए. वहीं मम्मी बेहोश हो गईं. मम्मी को मारते देख मैं जोरजोर से रो रहा था. पापा ने मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. कुछ देर में मैं सो गया. सुबह उठ कर देखा तो मम्मी मर चुकी थी. पापा नहीं दिखाई दिए तो मैं रोने लगा. रोते हुए कमरे से बाहर आया तो अंकल ने मुझे गोद में ले लिया.’’

पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को एक महिला सिपाही के हवाले कर के उसे बच्चे को कुछ खिलानेपिलाने को कहा. इस के बाद होटल के मैनेजर रामकुमार से मृतका के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘कल यानी 15 सितंबर की रात 11 बजे एक आदमी पत्नी और बेटे के साथ आया था. उस ने अपना नाम बबलू, पत्नी का सीमा और 4 वर्षीय बेटे का नाम आयुष उर्फ शिवा बताया. कमरा मांगने पर मैं ने उस से आईडी मांगी तो उस ने अपना आधार कार्ड दिया. तब काफी रात हो चुकी थी, इसलिए उस की फोटोकौपी नहीं हो सकती थी. इसलिए मैं ने उस का आधार कार्ड रख लिया और उसे कमरा नंबर 102 की चाबी दे दी. होटल का वेटर उस का सामान ले कर उसे कमरे तक पहुंचाने गया.

‘‘कमरे में जाने के कुछ देर बाद बबलू चारबाग गया और वहां से खाना ले आया. सुबह साढ़े 6 बजे बबलू ने मेरे पास आ कर कहा कि मुझे आधार कार्ड की जरूरत है इसलिए आप मुझे मेरा आधार कार्ड दे दीजिए. थोड़ी देर में दुकान खुल जाएगी तो मैं फोटोकौपी करा कर दे दूंगा. चिंता की कोई बात नहीं, मेरी पत्नी और बच्चा होटल में ही है.

‘‘मैं ने आधार कार्ड दे दिया तो वह कमरे में गया और अपना बैग ले कर चला गया. उस की पत्नी और बच्चा होटल में ही था, इसलिए मैं ने सोचा वह लौट कर आएगा ही. लेकिन वह लौट कर नहीं आया. जब आयुष रोता हुआ कमरे से बाहर आया तो पता चला कि वह पत्नी की हत्या कर के भाग गया है.’’

बबलू भले ही आधार कार्ड ले कर चला गया था, लेकिन उस का नंबर, उस पर लिखा पता और मोबाइल नंबर होटल के रजिस्टर में लिख लिया गया था. पुलिस ने उस का आधार नंबर, पता और मोबाइल नंबर नोट कर लिया. इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया.

थाना नाका हिंडोला के थानाप्रभारी विजय प्रकाश बच्चे को साथ ले कर थाने आ गए और होटल मालिक राजकुमार की ओर से मृतका सीमा के पति बबलू के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने होटल में दर्ज आधार कार्ड के पते और मोबाइल नंबर की जांच कराई तो दोनों फरजी निकले.

आधार कार्ड के अनुसार बबलू का पता आरजेड-30, स्मितापुरी, पार्क रोड, नई दिल्ली लिखा था जो फरजी पाया गया. आधार कार्ड के नंबर में 2 अंक गलत थे. कमरे में ऐसा कुछ भी नहीं मिला था, जिस से हत्यारे के बारे में या मृतका के बारे में कुछ पता चलता.

इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी उन की नजर आयुष पर पड़ी. वह स्कूल की ड्रेस पहने था. उन्होंने उस की स्कूली शर्ट के कालर पर लगे टैग को देखा. उस में जो लेबल लगा था, उस में स्टार यूनिफार्म लिखा था. इस का मतलब ड्रेस जिस कंपनी में तैयार की गई थी, उस का नाम स्टार यूनिफार्म था.

स्कूल ड्रेस तैयार करने वाली इस कंपनी के बारे में शायद इंटरनेट से कुछ पता चल जाए, यह सोच कर उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो कंपनी का पता और फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने उस नंबर पर फोन कर के संपर्क किया. जब कंपनी के बारे में पता चल गया तो पुलिस ने वाट्सएप द्वारा आयुष और उस की ड्रेस की फोटो कंपनी को भेजी तो कंपनी ने बताया कि यह ड्रेस एक प्ले स्कूल की है, जिस का पता है एम-24, चाणक्य प्लेस, डाबड़ी, नई दिल्ली.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम नई दिल्ली पहुंच गई. इस पुलिस टीम ने प्ले स्कूल के प्रबंधक को आयुष का फोटो दिखा कर पूरी बात बताई तो प्रबंधक ने स्कूल के रजिस्टर से आयुष के घर का पता लिखा दिया.

आयुष के मातापिता स्कूल से कुछ दूरी पर सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में किराए पर कमरा ले कर रहते थे.

पुलिस टीम ने अवधेश से पूछताछ की तो पता चला कि उस के किराएदार का नाम बबलू नहीं बल्कि मणिकांत मिश्रा है और वह गोरखपुर के थाना सहजनवां के मोहल्ला डुगडुइया का रहने वाला है. उस के पिता का नाम विश्वंभरनाथ मिश्रा है. सीमा उस की ब्याहता पत्नी नहीं थी बल्कि दोनों लिवइन रिलेशन में रहते थे.

पुलिस टीम ने दिल्ली से ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश को फोन कर के सीमा के असली हत्यारे का नाम पता बता दिया. इस के बाद विजय कुमार ने दूसरी पुलिस टीम गोरखपुर भेज दी.

19 सितंबर को गोरखपुर गई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से मणिकांत के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ में उस ने न केवल सीमा की हत्या का अपना अपराध कुबूल कर लिया बल्कि हत्या में प्रयुक्त सब्जी काटने वाला चाकू भी बरामद करा दिया. पुलिस टीम मणिकांत को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. थाने में की गई पूछताछ में मणिकांत ने सीमा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना पिपराइच के पुखरभिंडा गांव में रहता था कमल सिंह. उस के परिवार में पत्नी और एक ही बेटी थी सीमा. वह अपराधी प्रवृत्ति का था, इसलिए पत्नी और बच्चों पर खास ध्यान नहीं देता था. वैसे भी वह ज्यादातर जेल में ही रहता था, इसलिए पत्नी और बेटी अपने मन की मालिक थीं.

सीमा खूबसूरत भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. वह जवान हुई तो उस की खूबसूरती लोगों की आंखों में बैठ गई. उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. जिस का बाप अपराधी हो, उस के घर का माहौल तो वैसे भी अच्छा नहीं होता क्योंकि उस के साथ उठनेबैठने वाले कोई अच्छे लोग तो होते नहीं.

कमल के यहां भी उसी के जैसे लोग आते थे. जवान बेटी को ऐसे लोगों से दूर रखना चाहिए, लेकिन कमल को इस बात की कोई चिंता ही नहीं थी. वह सभी को घर के अंदर ही बैठाता था. बदमाश प्रवृत्ति का व्यक्ति किसी का नहीं होता, इसलिए उन सब की नजरें कमल की जवान बेटी पर जम गई थीं.

बगल के ही गांव भरहट का रहने वाला एक लड़का कमल के यहां आता रहता था. वह भी अपराधी प्रवृत्ति का था. वह कुंवारा था, इसलिए उस ने कमल सिंह के सामने सीमा से शादी करने का प्रस्ताव रखा तो कमल सिंह ने सोचा कि उसे बेटी की शादी तो करनी ही है. अगर वह अपने हिसाब से शादी करेगा तो दुनिया भर का इंतजाम और दानदहेज के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ेंगे.

और यदि वह सीमा की शादी इस लड़के से कर देता है तो उसे अपने पास से एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. इतना ही नहीं बल्कि वह चाहे तो इस लड़के से कुछ पैसे भी ले लेगा. लड़का उसे पसंद था इसलिए उस ने कहा, ‘‘सीमा की शादी तो मैं तुम से कर दूंगा लेकिन कुछ देने के बजाय मुझे तुम से कुछ चाहिए.’’

लड़का भी सीमा के लिए बेचैन था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘चाचाजी, मैं सीमा के लिए अपना सब कुछ आप को दे सकता हूं.’’

‘‘मुझे तुम्हारा सब कुछ नहीं चाहिए. सब कुछ दे दोगे तो मेरी बेटी को खिलाओगे पिलाओगे कहां से. मुझे कुछ रुपए चाहिए. क्योंकि मेरे ऊपर काफी कर्ज हो गया है.’’

वह लड़का कमल द्वारा मांगी गई रकम देने को तैयार हो गया तो उस ने सीमा का विवाह उस युवक से करा दिया. सीमा पिता के घर से ससुराल पहुंच गई. वहां कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन बाद में वह लड़का बातबात पर सीमा से मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर सीमा उस से तलाक ले कर मायके चली आई.

सीमा पहले से ही बिना अंकुश की थी. शादी के बाद वह और आजाद हो गई. उसे किसी से भी बात करने या मिलने में जरा भी हिचक नहीं होती थी. कोई रोकटोक भी नहीं थी इसलिए वह कहीं भी किसी के भी साथ घूमने चली जाती थी. इस की सब से बड़ी वजह थी उस की जरूरतें. इसलिए जो भी उस की जरूरतें पूरी करता, वह उसी की हो जाती.

ऐसे में ही उस की मुलाकात थाना पिपराइच के गांव पकडि़यार के रहने वाले केदार सिंह के बेटे मनोहर सिंह से हुई तो वह उस से जुड़ गई. केदार सिंह खेतीकिसानी करते थे. मनोहर सीमा को इस कदर चाहने लगा कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगा.

मनोहर ने अपने पिता केदार सिंह से शादी के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. लेकिन मनोहर ने जिद पकड़ ली कि वह शादी करेगा तो सीमा से ही करेगा अन्यथा कुंवारा ही रहेगा. तब मजबूर हो कर केदार सिंह को झुकना पड़ा. वह सीमा से उस की शादी कराने को राजी तो हो गए लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि सीमा को उन के हिसाब से घर में रहना होगा. जबकि वह जानते थे कि सीमा ज्यादा दिनों तक उन की इच्छानुरूप नहीं रह सकती. इसीलिए उन्होंने यह शर्त रखी थी.

मनोहर से शादी के बाद सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आयुष रखा गया. लेकिन घर में उसे सब प्यार से शिवा कहते थे. केदार सिंह ने सीमा पर काफी बंदिशें लगा रखी थीं. उसे परेशान करने के लिए वह बातबात पर उसे प्रताडि़त करते रहते थे.

सीमा को बंदिशें वैसे भी कभी रास नहीं आईं, वह तो खुले आकाश में विचरण करने वाली युवती थी. यही वजह थी कि जल्दी ही वह उस घर के माहौल से तंग आ गई. वह उस घर से भागने की कोशिश करने लगी. आखिर एक दिन मौका मिलते ही वह बेटे को ले कर उस घर से हमेशाहमेशा के लिए भाग निकली.

सीमा मायके आई तो उस का पिता कमल सिंह किसी मामले में गोरखपुर जेल में बंद था. सीमा अकसर अपने पिता से मिलने जेल जाती रहती थी. वहीं उस की मुलाकात मणिकांत मिश्रा से हुई. वह भी अपने पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा से मिलने जेल आता रहता था.

मणिकांत के पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा जिला महाराजगंज में कोऔपरेटिव बैंक की नौतनवां शाखा में सचिव थे. 2008 में उन्हें गबन और धोखाधड़ी के मामले में गोरखपुर जेल भेज दिया गया था. मणिकांत मिश्रा मांबाप का एकलौता बेटा था.

मणिकांत भी अपने पिता से मिलने जेल आता रहता था और सीमा भी. अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. कभी दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछ लिया तो उस के बाद उन में बातचीत होने लगी. बातचीत होतेहोते उन में दोस्ती हुई और फिर प्यार.

बाप जेल में था, मुकदमा चल रहा था. आमदनी का कोई और जरिया नहीं था इसलिए मणिकांत दिल्ली चला गया और वहां वह कढ़ाई का काम करने लगा. रहने के लिए उस ने डाबड़ी की सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया. मणिकांत दिल्ली में रहता था और सीमा गोरखपुर में. लेकिन दोनों में फोन पर बातें होती रहती थीं. सीमा ने उस से कहा कि उसे वहां अच्छा नहीं लगता. इस पर मणिकांत ने उसे दिल्ली बुला लिया. वह बेटे को ले कर दिल्ली पहुंच गई.

सीमा को दिल्ली आए 2-3 दिन ही हुए थे कि एक रात उस ने कहा, ‘‘मणि, हम दोनों एकदूसरे को पसंद ही नहीं करते, बल्कि एकदूसरे को जीजान से चाहते भी हैं. हमें एकदूसरे से दूर रहना भी अच्छा नहीं लगता. क्यों न हम दोनों शादी कर लें?’’

सीमा की इस बात पर मणिकांत गंभीर हो गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने कहा, ‘‘सीमा, प्यार करना अलग बात है और शादी करना अलग बात. मैं तुम से प्यार तो करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘क्यों, प्यार करते हो तो शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘तुम शादीशुदा ही नहीं, किसी दूसरे के एक बच्चे की मां भी हो. ऐसे में मैं तुम से कैसे शादी कर सकता हूं?’’

‘‘तो क्या तुम मुझे बेसहारा छोड़ दोगे? मैं तो बड़ी उम्मीद ले कर तुम्हारे पास आई थी कि तुम मुझ से प्यार करते हो, इसलिए मुझे अपना लोगे.’’

‘‘सीमा, मैं तुम्हें बेसहारा भी नहीं छोड़ सकता और शादी भी नहीं कर सकता. अगर तुम चाहो तो एक रास्ता है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘लिवइन रिलेशनशिप. यानी हम दोनों बिना शादी के एक साथ पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं.’’

सीमा मरती क्या न करती, वह राजी हो गई. इस के बाद दोनों बिना शादी के ही पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. मणिकांत ने पास के ही चाणक्य प्लेस स्थित एक प्ले स्कूल में आयुष का एडमिशन करा दिया. सीमा की भी उस ने एक कालसेंटर में नौकरी लगवा दी. वहां सीमा को 5 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था.

सीमा जल्दी ही अपने रंग दिखाने लगी. वह घूमने, फिल्में देखने और महंगा खाना खाने पर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च करने लगी. उस का पूरा वेतन इसी में खर्च हो जाता. पैसे खत्म हो जाते तो वह परेशान हो उठती. तब वह आसपड़ोस से उधार लेने लगी. उन पैसों को भी वह अपने शौक पूरा करने में उड़ा देती.

उधार देने वालों के पैसे सीमा वापस न करती तो वे मणिकांत से पैसे मांगते. सीमा की इन हरकतों से मणिकांत परेशान रहने लगा. उस ने सीमा को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

धीरेधीरे उसे सीमा के चरित्र पर भी शक होने लगा. क्योंकि सीमा हर किसी से इस तरह खुल कर बात करती थी जैसे वह उस का बहुत खास हो. इस के अलावा उसे लोगों से पैसा भी बड़े आराम से उधार मिल जाता था. इस से मणिकांत को लगने लगा कि सीमा ने ऐसे लोगों से संबंध बना रखे हैं. इन्हीं बातों को ले कर दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

हद तब हो गई, जब सीमा मणिकांत पर दबाव बनाने लगी कि वह गोरखपुर की अपनी सारी संपत्ति बेच कर दिल्ली में एक अच्छा सा मकान ले कर यहीं रहे. मणिकांत सीमा की हरकतों से वैसे भी परेशान था. जब वह उस पर संपत्ति बेचने के लिए ज्यादा दबाव बनाने लगी तो वह सीमा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. उसे पता था कि यह औरत सीधे उस का पीछा नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने उसे खत्म करने का विचार बना लिया.

पूरी योजना बना कर उस ने सीमा से गोरखपुर के अपने गांव चलने को कहा तो वह खुशीखुशी चलने को तैयार हो गई. 15 सितंबर की दोपहर मणिकांत ने सीमा और आयुष को साथ ले कर लखनऊ जाने के लिए गोमती एक्सप्रेस पकड़ी.

रात 10 बजे वह लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर उतरा. उस ने सीमा से कहा कि इस समय गोरखपुर जाने के लिए कोई बस या ट्रेन नहीं मिलेगी, इसलिए आज रात यहीं किसी होटल में रुक जाते हैं.

सीमा क्या कहती, वह होटल में रुकने को तैयार हो गई. रिक्शे पर बैठ कर उस ने रिक्शे वाले से किसी छोटे और सस्ते होटल में चलने को कहा. रिक्शे वाला तीनों को नाका हिंडोला थाने के विजयनगर स्थित सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई ले गया. वहां मणिकांत ने  होटल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर रामकुमार से एक कमरे की डिमांड की तो उस ने उस से आईडी मांगी.

मणिकांत ने सुबह को आईडी की फोटोकौपी देने को कहा. तब उस ने उस का आधार कार्ड ले कर उस का नंबर, मोबाइल नंबर और पता दर्ज कर लिया. कमरे का किराया 350 रुपए ले कर उस ने कमरा नंबर 102 की चाबी मणिकांत को दे दी. वह सीमा और आयुष को ले कर कमरे में चला गया.

सीमा और आयुष को कमरे में छोड़ कर मणिकांत चारबाग गया और वहां किसी ढाबे से खाना ले आया. खाना खा कर वह सीमा से बातें करने लगा. तभी किसी बात पर उस की  सीमा से बहस हो गई तो वह सीमा को पीटने लगा. सीमा जोरजोर से रोने लगी. मां की पिटाई और उसे रोता देख कर मासूम आयुष भी रोने लगा.

मणिकांत सीमा की पिटाई करते हुए उसे बाथरूम में ले गया. वहां उस ने उसे इस तरह पीटा की वह बेहोश हो गई. उसे उसी हालत में छोड़ कर वह आयुष के पास आया और उसे बिस्तर पर लिटा कर किसी तरह सुला दिया. इस के बाद उस ने घर से बैग में रख कर लाया सब्जी काटने वाला चाकू निकाला और बाथरूम में बेहोश पड़ी सीमा का बेरहमी से गला काट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. रात भर वह उसी कमरे में रहा. सवेरा होने पर उस ने मैनेजर से अपना आधार कार्ड लिया और बैग ले कर निकल गया. होटल से निकल कर वह गोरखपुर स्थित अपने घर चला गया.

उस ने अपनी ओर से होटल में कोई सुबूत नहीं छोड़ा था, लेकिन पुलिस आयुष की स्कूल ड्रेस के टैग के सहारे उस तक पहुंच ही गई. सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने मणिकांत को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने आयुष को चाइल्डलाइन भेज कर सीमा के पति मनोहर और उस के घर वालों से संपर्क किया तो उस के चाचाचाची आ कर उसे ले गए. कथा लिखे जाने तक पुलिस होटल के मालिक के खिलाफ भी काररवाई करने की तैयारी कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्मृति ईरानी : भाजपा का स्त्री चेहरा, दर्द नहीं कोरी राजनीति

संसद में हालिया फ्लाइंग किस वाला मामला बताता है कि सत्ता पक्ष के लिए महिला न्याय महज मजाक है. इसी कड़ी में कथित रूप से अपनी बेबाक छवि के लिए जाने जानी वाली भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी भाजपाई पुरुषवादी एजेंडे को थोपने वाली मुहर बन कर रह गई हैं. उन की यह छवि कहीं न कहीं अमेरिकी दक्षिणपंथी नेत्री फिलिस श्लेफ्ली जैसी बन गई है जो महिलाओं के ही पर कुतरने का काम कर रही थीं.

9 अगस्त को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी लोकसभा में इस बात को ले कर आगबबूला हो गईं कि राहुल गांधी ने सदन में फ्लाइंग किस दे कर वहां बैठी सारी महिलाओं का अपमान किया है. दरअसल उस दिन हुआ यह था कि जब राहुल गांधी भाषण दे कर सदन से बाहर निकल रहे थे तो उन के हाथ से कुछ कागज जमीन पर गिर पड़े और जब वे उन कागजों को उठाने के लिए ?ाके तो पास खड़े भाजपा के सांसद हंसने लगे. राहुल ने उन्हें हंसते हुए देखा और ट्रेजरी बैंच की तरफ हवा में एक फ्लाइंग किस उछाल कर मुसकराते हुए बाहर निकल गए.

लेकिन स्मृति ईरानी ने इसे ऐसे पेश करने की कोशिश की कि राहुल ने वहां बैठी भाजपा सांसद महिलाओं को ही फ्लाइंग किस दिया और इसी बात को ले कर वे नारीवाद के नाम पर चिल्लाने लगीं कि राहुल गांधी ने कितनी नीच हरकत की, उन्होंने अपने खराब आचरण का प्रमाण दिया वगैरहवगैरह. लेकिन सच तो यह था कि मुद्दा कुछ था ही नहीं.

उस दिन सदन में स्मृति ईरानी का वह रूप महिला का रूप नहीं था बल्कि ताकत और सत्ता में चूर केंद्रीय मंत्री का रूप था. इस का जैंडर से उतना ही वास्ता था जितना मछली का पेड़ पर चढ़ने से और चिडि़या का पानी में तैरने से.

जिस वक्त वे सदन में एक फ्लाइंग किस को ले कर देश और ब्रह्मांड की महिलाओं का अपमान बता रही थीं, ठीक उसी समय बृजभूषण शरण सिंह 2 सीट पीछे बैठा हंस रहा था. जब वे मिसोजिनी की बात कर रही थीं, तब असली मिसोजेनिस्ट वहीं बैठा था जिस ने नाबालिग बच्चियों की छाती पर हाथ फेरा, उन से सैक्सुअल फेवर मांगा. बात न मानने पर उन्हें खेल से निकाल देने की धमकी दी. तब इसी बृजभूषण पर इन्होंने क्यों कुछ नहीं कहा?

महिलाओं का अपमान करने वाले इस बृजभूषण सिंह की मिसोजिनी पर उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आया? आखिर यह कैसी संवेदना है उन की कि देश की महिलाओं के प्रति जो इतने महीनों में महिला पहलवानों के लिए एक शब्द भी नहीं निकला उन के मुंह से और आज एक फ्लाइंग किस को ले कर इतना बड़ा बवाल मचा रही हैं?

गुस्सा तो स्मृति ईरानी को तब भी नहीं आया जब सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में उन 2 महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र कर के मर्दों ने उन की परेड करवाई. उन के शरीर से छेड़छाड़ की गई, नोचा गया और वहां बाकी खड़े मर्द ठहाके लगाते रहे. तब इन्हीं स्मृति ईरानी की संवेदना कहां चली गई थी? क्या तब उन्हें महिलाओं का अपमान नहीं दिखा? क्यों मुंह पर ताले पड़ गए थे उन के?

महिला का अपमान तो उन्हें हाथरस रेप केस में भी नहीं दिखा था जब बलात्कार की शिकार हुई उस लड़की की लाश को उस के परिवार की मरजी के खिलाफ रातोंरात पुलिस वालों ने जला दिया था और भी बहुत सारी बातें हैं जिस पर सत्ता में बैठी स्मृति ईरानी को गुस्सा नहीं आता है. कभी इसी स्मृति ईरानी ने चीखचीख कर कहा था, ‘बुलाइए मीटिंग, हम एक सुर में बोलेंगे कि अगर बच्ची का बलात्कार होता है तो यह देश उसे सजाए मौत देगा,’ लेकिन आज वही स्मृति ईरानी मणिपुर की घटना पर दम साधे बैठी रहीं. क्यों? विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते हुए वे कहती हैं कि मणिपुर की घटना के लिए वही लोग जिम्मेदार हैं और विपक्ष इस मुद्दे पर संसद में चर्चा नहीं करना चाहता था, जबकि यह बात हर कोई जानता है कि वहां मणिपुर में बीजेपी की सरकार है.

एक तरफ तो स्मृति ईरानी महिला अधिकार की बात करती हैं और वहीं दूसरी तरफ मणिपुर की घटना को ले कर उन की चुप्पी हैरान करती है. स्मृति ईरानी कोई आम महिला नहीं हैं, बल्कि वे एक कलाकार हैं जिन्हें कब, कहां, कितना बोलना है, कितना हंसना है, कितना रोना है, कब चीखनाचिल्लाना है, कितने बड़ेछोटे डायलौग बोलने हैं, सब अच्छे से आता है. राजनीति में रहते हुए भी वे ऐसा ही कर रही हैं तो इस में आश्चर्य की क्या बात है.

स्मृति ईरानी का जीवन चरित्र

23 मार्च, 1977 में जन्मी स्मृति ईरानी का ताल्लुक एक पंजाबी परिवार से है. 3 बहनों में स्मृति सब से बड़ी हैं. दिल्ली में जन्मी स्मृति ईरानी ने नई दिल्ली में होली चाइल्ड औक्सिलियम स्कूल से 12वीं क्लास तक पढ़ाई की है. 2001 में उन्होंने अपनी सहेली के पति जुबिन ईरानी से शादी की और जिन से उन्हें 2 बच्चे हैं.

अभिनेत्री से राजनेता बनने का सफर

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर बैठी स्मृति ईरानी की पहचान ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ सीरियल से हुई थी. एकता कपूर के इस शो से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी. इस सीरियल की बदौलत वे घरघर की तुलसी बन गई थीं. इस सीरियल के बाद वे टीवी जगत का जानामाना चेहरा बन चुकी थीं. देशविदेश में उन की पहचान बन चुकी थी.

एक इंटरव्यू में स्मृति ने खुलासा किया था कि इस सीरियल में काम करने के उन्हें 1,800 रुपए फीस के तौर पर मिलते थे. इस के अलावा उन्होंने और भी कई सीरियलों में काम किया. स्मृति ईरानी का कैरियर तब शुरू हुआ था जब वे 1998 में मिस इंडिया पैजेंट में फाइनलिस्ट बनीं. इस के बाद उन्होंने कई मौडलिंग प्रोजैक्ट भी किए.

स्मृति ईरानी मैक्डोनल्स में वेटर का काम भी कर चुकी हैं. वे मीका सिंह के साथ एक म्यूजिक अल्बम में भी नजर आ चुकी हैं. लेकिन असली पहचान उन्हें ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ सीरियल से ही मिली. तुलसी के रूप में दर्शकों ने उन्हें खूब सराहा था. वे सिर्फ उस सीरियल की तुलसी नहीं, बल्कि घरघर की तुलसी बन चुकी थीं.

भारत की हर बेटे वाली मां की यही ख्वाहिश होती थी कि उन की भी आने वाली बहू तुलसी जैसी हो को पूरे परिवार जो एक माला में पिरो कर रखती है, सुखदुख में परिवार के साथ खड़ी रहती है. लोग अकसर नाटकड्रामा देखतेदेखते उसे सच मान बैठते हैं और उसे ही अपनी जिंदगी में उतारने की कोशिश करने लगते हैं.

राजनीति की शुरुआत

स्मृति ईरानी 2003 में भाजपा से जुड़ीं. इसी के साथ उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. स्मृति ईरानी ने यह फैसला तब लिया था जब वे एक बोल्ड अभिनेत्री होने के लिए सुर्खियों में आई थीं. स्मृति ने अपना पहला चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल के खिलाफ लड़ा जिस में वे हार गई थीं पर फिर भी भाजपा ने उन्हें महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया था.

2014 में स्मृति ईरानी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और राहुल गांधी को बड़ी टक्कर देते हुए बोली थीं कि जो लोग अपने निर्वाचन क्षेत्र का विकास नहीं कर सकते, उन्हें देश के विकास के बारे में नहीं बोलना चाहिए. उन का कहना था कि उन की ईमानदारी, कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें कैबिनेट में एक मजबूत स्थान दिलाया.

संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के भाषण का जवाब दिया. बल्कि, तमाम ऐसे मौके आते रहे जब मोदी सरकार ने इन पर भरोसा करते हुए संसद में विपक्ष पर जवाबी हमले की कमान स्मृति ईरानी को सौंपी और स्मृति ईरानी ने इसे बखूबी अंजाम भी दिया.

स्मृति ईरानी से जुड़े विवाद

स्मृति ईरानी से जुड़े विवादों की सूची काफी लंबी है. साल 2004 में स्मृति ने नरेंद्र मोदी पर ही हमला करते हुए कहा था कि उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए. स्मृति ने गुजरात में हुए दंगों को ले कर कहा था कि नरेंद्र मोदी को इस्तीफा दे देना चाहिए.

डिग्री को लेकर विवाद

इस विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब स्मृति ईरानी के 2004 एवं 2014 के शैक्षणिक योग्यता में अलगअलग बात बताई गई. 2004 में स्मृति ने एफिडेविट के जरिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक होने की बात लिखी. इस में कहा गया कि उन्होंने 1996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोरेस्पोंडैंस से स्नातक की डिग्री ली है. लेकिन जब 2014 में वे अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं तो उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कौमर्स पार्ट-1 में स्नातक होने की बात लिखी. साल 2019 में स्मृति ईरानी ने एक बार खुद को 12वीं पास बताया था.

रोहित वेमुला और जेएनयू मामला

स्मृति ईरानी के साथ दूसरा विवाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कौलर रोहित वेमुला की आत्मह्त्या एवं जेएनयू मामले को ले कर हुआ था. रोहित वेमुला मामले में स्मृति ईरानी विपक्ष के साथ छात्रों के निशाने पर भी आई थीं. इस मामले में उन्हें सही से हैंडल न कर पाने का आरोप लगा था और इस के बाद स्मृति को शिक्षा मंत्रालय से हटा कर कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. रोहित वेमुला मामले पर स्मृति पर तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा था. यही वक्त था जब स्मृति को ‘आंटी नैशनल’ तक कह कर संबोधित किया गया था.

सबरीमाला मंदिर विवाद

स्मृति ईरानी को ले कर तीसरा विवाद केरल के सबरीमाला मंदिर के वक्त हुआ था जब उन्होंने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बयान दिया था कि ‘पूजा करने का अधिकार है, लेकिन अपवित्र करने का नहीं.’ उन के इस बयान पर कई महिला संगठनों से ले कर दूसरे कई लोगों ने आपत्ति जताई थी. इस बात पर स्मृति का कहना था कि, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं लेकिन यह साधारण सी बात है कि क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन ले कर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे? आप ऐसा नहीं करेंगे. क्या आप को लगता है कि भगवान के घर में ऐसे जाना सम्मानजनक है?’

स्मृति ईरानी की बातों से लगता है कि यहां भी ‘सास बहू’ सीरियल चल रहा है जो वे स्क्रिप्ट पढ़पढ़ कर लोगों को ज्ञान दे रही हैं. खैर, चौथा विवाद उन पर साल 2012 में लगा था. एक टीवी डिबेट के दौरान कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने स्मृति को अपशब्द कहे थे. उन्होंने स्मृति पर व्यक्तिगत हमला करते हुए कहा था, ‘आप पहले टीवी पर ठुमका लगाती थीं और अब भाजपा में शामिल हो कर राजनीतिक विश्लेषक बन गई हैं.’ इस के बाद विवाद शुरू हुआ तो दोनों ने एकदूसरे पर मानहानि का दावा ठोंक दिया था.

बिहार के शिक्षा मंत्री के ‘डियर’ कहने पर भी स्मृति ईरानी भड़क गई थीं और अपने फेसबुक पेज पर एक लंबी पोस्ट लिख कर उन्हें जवाब दिया था और आखिर में खुद को ‘आंटी नैशनल’ लिखा था.

अब राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए वे चीखचिल्ला कर कह रही हैं कि राहुल गांधी ने संसद में बैठी महिला सांसदों की तरफ देख कर फ्लाइंग किस दिया और ऐसा कर के राहुल गांधी ने अभद्रता की सारी हदें पार कर दीं. केंद्रीय कृषि मंत्री शोभा करंदलाजे ने भी फ्लाइंग किस को ले कर कांग्रेस सांसद पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी के व्यवहार को अनुचित बताया और लोकसभा के अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज कराई.

कई अन्य महिला सांसदों ने भी शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस शिकायतपत्र पर उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की. हस्ताक्षर करने वाली सभी महिला बीजेपी सांसद हैं. लेकिन यहां एक बात सम?ा नहीं आती कि चिल्लाचिल्ला कर राहुल गांधी पर आरोप लगाने वाली स्मृति ईरानी ने शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए?

टीवी एंकर सुधीर चौधरी ने जब उन से यह सवाल पूछा कि आप ने भी तो शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं? तो वे भड़कती हुई बोलीं कि उन्होंने कोई हस्ताक्षर नहीं किए तो उन्होंने हस्ताक्षर क्यों नहीं किए, यह सोचने वाली बात है? क्या यह सब एक राजनीति के तहत हो रहा है?

वे तो सुधीर चौधरी के टमाटर के सवाल पर भी लाल हो गईं. दरअसल जब सुधीर चौधरी ने उन से पूछा कि ‘जब टमाटर 250-300 रुपए किलो था तो क्या आप के घर में भी टमाटर पर बात होती थी?’ इस सवाल को सुनते ही स्मृति ईरानी टीवी एंकर पर भड़कती हुई बोलीं, ‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि क्या हुआ जब आप जेल में थे?’ एक और एंकर को भी उन्होंने ऐसे ही जवाब दे दिया कि अगर कोई पुरुष उन्हें फ्लाइंग किस दे तो कैसा लगेगा?’ यह वही गोदी मीडिया है जो मोदी सरकार की सत्ता की दलाली में लगी हुई है लेकिन आज वही भाजपा नेता स्मृति ने उसे उस की असली औकात दिखा दी.

अब फ्लाइंग किस को ले कर स्मृति ईरानी कितना सच और कितना ?ाठ बोल रही हैं, यह तो वही जानें पर मथुरा सांसद हेमा मालिनी का कहना है कि उन्होंने राहुल को ऐसा करते नहीं देखा. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा कि, ‘हवा में फेंकी एक फ्लाइंग किस से इतनी आग लग गई. दो पंक्ति पीछे एक आदमी बृजभूषण बैठा हुआ था, जिस ने महिला पहलवानों को अपने कमरे में बुला कर उन का शोषण किया, उसे देख कर स्मृति ईरानी को गुस्सा क्यों नहीं आया?’

इस विवाद में कई महिला सांसदों सहित अन्य महिलाएं भी राहुल गांधी के समर्थन में उतर चुकी हैं. एक महिला ने तो यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी को लड़कियों की कोई कमी नहीं है जो वे 50 साल की महिला को फ्लाइंग किस देंगे.

वैसे, राहुल गांधी के फ्लाइंग किस पर कई सारे मीम्स बन चुके हैं तो कोई इसे हलके से ले रहा है तो कोई राहुल के समर्थन में उतर आया है और कई ने इस की कड़ी निंदा भी की है.

किस या फ्लाइंग किस कैसा

किस या चुंबन चाहे जिस तरीके से हो, वह प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है. गर्मजोशी और प्यार का इजहार करने के लिए लोग किस करते हैं और दूर से अपनी उंगलियों के पोरों को चूम कर लोग अपने प्यार को जताने के लिए फ्लाइंग किस करते हैं. अकसर जाते समय लोग अपने प्यार जताने के लिए फ्लाइंग ‘किस’ करते हैं.

सैलिब्रिटीज अकसर करते हैं फ्लाइंग किस

सैलिब्रिटीज अकसर अपने प्रशसकों को थैंक्यू करने के लिए फ्लाइंग किस करते हैं. किसी मशहूर हस्ती द्वारा स्टेज से फ्लाइंग किस देने का मतलब होता है कि वह दर्शकों, प्रशंसकों को प्यारभरा थैंक्यू कर रहा है.

किसे दे सकते हैं फ्लाइंग किस

फैंस, सहयोगी, दोस्त, दर्शक, मातापिता, बहनभाई किसी को भी फ्लाइंग किस दे सकते हैं. इस के अलावा स्टेज पर परफौर्म करते हुए कई बार ऐक्टरऐक्ट्रैस अपने प्रशंसकों को अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए फ्लाइंग किस देते हैं.

कब हुई इस की शुरुआत?

माना जाता है कि फ्लाइंग किस की शुरुआत प्राचीन मध्यपूर्व में हुई थी. इस के साथ ही, कुछ लोगों का मानना है कि मेसोपोटामिया में इस की शुरुआत हुई थी. वैसे, किस का किस्सा, काफी जोर पकड़े हुए है. कुछ लोग इस पर मीम्स बना कर स्मृति की खिंचाई कर रहे हैं तो कुछ इसे गलत बता रहे हैं.

भाजपा महिला डेमोक्रेट ने राष्ट्रपति से शिकायत की कि राहुल गांधी ने उन्हें उड़ा दिया. 2018 में एक आलिंगन और आंख ?ापकाना सुर्खियां बना था. अब यह एक उड़ती हुई किस है. एक समय संसद की बहसें सामग्री और प्रस्तुति के लिए जानी जाती थीं, अब नाटकीय चर्चा का विषय बन गई हैं.

पता नहीं स्मृति ईरानी को हो क्या गया है, जहां उन्हें बोलना चाहिए वहां तो बोलती नहीं हैं और जहां कोई बात ही नहीं है वहां बेकार की बातों को तूल देती हैं. अब किसी ने उन से यह पूछा कि आप की शादी आप की बचपन की सहेली मोना के पति जुबीन ईरानी से हुई क्या? उस पर वे तिलमिलाती हुई बोलीं कि मोना उस की बचपन की सहेली नहीं हो सकती क्योंकि वह उस से 13 साल बड़ी है.

कौन है स्मृति के पति जुबीन ईरानी?

स्मृति ईरानी के पति जुबीन ईरानी एक अमीर पारसी बिजनैसमैन हैं और वे पहले से ही शादीशुदा थे. स्मृति ईरानी जब स्ट्रगल के दिनों में रैस्टोरैंट में नौकरी करती थीं उसी दौरान मोना ईरानी से उन की मुलाकात हुई और दोनों दोस्त बन गईं. मोना एक अमीर पारसी लड़की थी और वह जुबीन ईरानी की पत्नी और एक अरबपति खानदान की बहू थी. मगर वहीं उस वक्त स्मृति के पास फ्लैट का किराया देने तक के लिए पैसे नहीं होते थे.

मोना ईरानी ने कई बार उस के फ्लैट का किराया चुकाने में मदद की थी. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की हो गई कि मोना ईरानी उसे अपने घर ले आई और उसी दौरान जुबीन ईरानी से स्मृति को प्यार हो गया. जुबीन ने अपनी पत्नी मोना को तलाक दे कर 2001 में स्मृति से शादी कर ली.

स्मृति ईरानी का कहना है कि उन की हर सफलता में उन के पति जुबीन ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया. एक इंटरव्यू में स्मृति ने कहा था, ‘मैं ने जुबीन से इसलिए शादी की क्योंकि मु?ो उन की जरूरत थी. मैं उन से सलाह लेती थी, उन से बात करती थी, हम रोज मिलते थे तो हम ने सोचा क्यों न हम एकदूसरे से शादी कर के हमेशा के लिए एक हो जाएं.’

किसी का घर तोड़ कर अपना घर बसा लेना उन्हें बुरा नहीं लगा. लेकिन एक हवा में उछाली गई फ्लाइंग किस पर उन्होंने इतना हंगामा मचा दिया. काश, ऐसा ही हंगामा वे मणिपुर की घटना पर मचाती कहतीं कि उन बलात्कारियों को स?रेआम गोली मार दी जाए तो सम?ा में आता कि महिलाओं के प्रति उन के दिल में संवेदना है.

आज हर रोज बेटियों के साथ, छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार जैसे घृणित अपराध हो रहे हैं लेकिन उस बात से स्मृति ईरानी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता. लेकिन राहुल गांधी के एक फ्लाइंग किस पर उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उन के खानदान तक को कठघरे में खड़ा कर दिया.

वैसे, सिर्फ स्मृति ईरानी ही क्यों, बल्कि, पूरी दुनिया का इतिहास ऐसी तमाम सत्ता पर बैठी महिलाओं का गवाह है जिन्होंने ऐसे किसी नाजुक मौके पर पीडि़त महिलाओं के पक्ष में खड़े होने के बजाय सत्ता का पक्ष चुना. पूरी दुनिया का सच यही है कि जब अपनी पार्टी और अपने लोगों की मिसोजिनी पर सवाल उठाने की बात आती है तो सत्ता के गलियारों में विचर रही महिलाएं भी चूक जाती हैं. फिर चाहे वे स्मृति ईरानी हों, हिलेरी क्ंिलटन हों, मारग्रेट थैचर हों, ममता बनर्जी हों, मायावती हों, वृंदा करात हों या फिर कोई और.

पितृसत्ता किस तरह औरतों का ब्रेनवाश करती है, फिलिस श्लाफली से बड़ा उदाहरण कौन हो सकता है. जब ग्लोरीय स्टाइनम, बेट्टी फ्राइडेन और तमाम महिलाएं अमेरिका में महिलाओं की समानता के अधिकार के लिए लड़ रही थीं उस वक्त देश की सत्तारूढ़ पार्टी की करीबी फिलिस श्लाफली देशभर की औरतों को यह सम?ाने की कोशिश कर रही थीं कि औरतों को समानता के अधिकार की जरूरत ही नहीं है क्योंकि समाज में और परिवार में औरतों का दर्जा पहले ही बहुत ऊंचा है. औरत मां है, पत्नी है, घर की स्वामिनी है, औरत महान है. बात इतनी सी है कि श्लेफ्ली महिलाओं के साथ नहीं, बल्कि सत्ता के साथ थीं.

देश में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया जाता है, उस के टुकड़े कर के फेंका जाता है, भट्टियों में जलाया जाता है लेकिन देश के नेता, अभिनेता और युवा तमाशबीन हो कर अपने ही देश की नारी के सम्मान को लुटता देख रहे हैं. न तो उन के चेहरों पर कोई मलाल है न संवेदना.

देश में जब से भाजपा सरकार ने सत्ता की बागडोर संभाली है, ऐसा लगता है महिलाओं के अच्छे दिन लद गए. इस सरकार का सब से लोकप्रिय नारा था- ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जो आज मानो सब का मुंह चिड़ा रहा है.

जंतरमंतर पर भारतीय खेल जगत की सब से होनहार बेटियों को जब अपने न्याय के लिए रोते देखा गया, मणिपुर में जब बेटियों को निर्वस्त्र घुमाया गया तो लगा इस सरकार का नारा कितना बड़ा धोखा है. कैसे कोई मांबाप यह विश्वास कर ले कि इस देश में उन की बेटियां सुरक्षित हैं?

महिलाओं पर ही जुल्म क्यों?

पुलिस ने जब महिला पहलवानों का समर्थन कर रही डीयू की छात्राओं पर लाठियां बरसा कर उन्हें जख्मी किया तो सम?ा में आया कि पुलिस किस की तरफ है. सच तो यह है कि लोगों की सेवा में लगी पुलिस भी सरकार की ही भाषा बोलती नजर आती है, इसलिए तो आज वह हो रहा है जो होना तो क्या, सोचा भी नहीं जा सकता.

एक कहावत है, ‘जब सैयां भए कोतवाल, तो अब डर काहे का’. बाहुबली सत्ताधीशों का साथ देते हैं अपराधों में, बलात्कारों में, भूमिअतिक्रमण में, ?ाठी गवाही आदि में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से. ऐसा लगता है सरकार बेटियों को नहीं, बाहुबलियों और बलात्कारियों को बचाने में एड़ीचोटी का दम लगा रही है.

सदियों से 2 गुटों की लड़ाई में महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है. एक पक्ष को हराने के लिए दूसरे पक्ष की महिलाओं का शोषण और बलात्कार किया जाता रहा है.

इस पितृसत्तात्मक समाज की सदियों से यही सोच रही है कि समुदाय, जाति और धर्म को जीतना है तो दूसरे पक्ष की स्त्रियों को जीतो. अगर इन्हें हराना है तो दूसरे पक्ष की औरतों पर हमला बोलो. आखिर, जंग या जातीय संघर्षों के दौरान महिलाओं पर ही ऐसे जुल्म क्यों ढाए जाते हैं? रेप ही ज्यादा देखने को मिलते हैं या उन्हें सैक्स स्लेव क्यों बनाया जाता है? मर्दाना सत्ता यही मानती है कि महज जीतना या हराना नहीं है, स्त्री शरीर पर हमलावर होना है.

हमला भी कहां करना है, यह भी वह बताती और सिखाती है. इसलिए हमले के नतीजे में महज किसी की हत्या नहीं होती. मर्दाना सत्ता बताती है कि यौन हिंसा करनी है और औरत के खास अंगों को निशाना बनाना है क्योंकि जाति, धर्म, समुदाय सब की इज्जत का भार स्त्री उठाए हुए है. मर्दाना खयाल ने महिलाओं की इज्जत उस के कुछ अंगों में समेट दी है जो अगर बिखर गया तो वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहती है. परिवार की इज्जत मटियामेट हो जाती है.

महिलाएं होती हैं आसान शिकार

औरतों के साथ ऐसी हिंसा कर हमलावर पक्ष अपने को विजेता और दूसरे समूह को पराजित मानता है. दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने के लिए औरत को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है. मणिपुर में उन निर्वस्त्र, बेबस लड़कियों के साथ उछलकूद करते विपक्षी युवा कितने उत्साह से भरे हुए थे, यह साफ वीडियो में दिखाई दे रहा था.

ऐसा क्यों होता है, इस बवाल के पीछे किस तरह की मानसिकता काम करती है जहां मुद्दा कुछ और होता है लेकिन आक्रोश का सामना महिलाएं करती हैं? जिस में भूखी, जाहिल और निर्लज्ज भीड़ अपनी मांगों को पूरा करने के लिए औरतों व लड़कियों को टारगेट बनाती है?

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (सार्क यूनिवर्सिटी) में इंटरनैशनल रिलेशन में एसोसिएट प्रोफैसर धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, जातीय संघर्षों, जंग या सांप्रदायिक दंगों में महिलाओं से रेप या उन के यौनशोषण के पीछे 4 सिद्धांत काम करते हैं जिन्हें प्रैशर कुकर सिद्धांत, कल्चर पैथोलौजी सिद्धांत, सिस्टेमैटिक या स्ट्रैटेजिक रेप सिद्धांत और फैमिनिस्ट सिद्धांत का नाम दिया जाता है.

धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसे समाज में लोगों का गुस्सा महिलाओं पर इसलिए निकलता है क्योंकि वे उन्हें सब से आसान शिकार मानते हैं और कहीं न कहीं स्त्रीविरोधी मानसिकता उन के दिमाग में बैठी ही रहती है. वे स्त्री को दबा कर, मार कर या रेप कर अपने पुरुष होने को जायज ठहराते हैं.

पूर्वी यूरोप में बोस्निया की महिलाओं के साथ, म्यांमार में रोहिंग्या महिलाओं के साथ, इसलामिक स्टेट औफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) का यजीदी महिलाओं को यौन दासी बना कर यौनहिंसा करना, बजरिए स्त्री शरीर जीतने और हारने के ऐसे अनेकों मर्दाना उदाहरण मिल जाएंगे.

1990 के दशक में बोस्नियाई युद्ध के दौरान सामूहिक रेप की घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने पहली बार 27 जून, 1996 को रेप और यौन हमले को युद्ध अपराध घोषित किया.

योगोस्लावियाई युद्ध हो, रवांडा में हुए सामूहिक रेप हों या मणिपुर की घटनाएं, सब जगह रेप को एक हथियार की तरह लिया गया. यह मान लिया जाता है कि जंग में सब जायज है. ‘अगेन्स्ट अवर विल’ में सुजैन ब्राउनमिलर कहती हैं कि जंग और जातीय संघर्ष के दौरान हावी होने और खुद को सही साबित करने की सोच इंसान को क्रूर और बेरहम बना देती है. वहीं, मैनुवर्स की लेखिका सिंथिया एनलोए कहती हैं कि रेप लड़ाइयों के दौरान का सब से जहरीला और खतरनाक हथियार है जिस के पीछे ज्यादातर राजनीतिक दिमाग होता है.

2000 साल पहले भी युद्ध में महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया रोमन इतिहासकर लिवी बताते हैं कि पहली सदी के आसपास जब लगातार जंग से आबादी कम हो रही थी, तब रोमन साम्राज्य के नेता रोमूलस ने एक धार्मिक त्योहार का आयोजन किया और पड़ोसी सैबाइन कबीलाई लोगों को न्योता दिया. रात में उन्हें शानदार दावत दी गई. जैसे ही दावत खत्म हुई, रोमूलस नेता का इशारा पा कर रोमनों ने सैबाइन लोगों पर हमला बोल दिया.

पुरुषों को मार डाला गया और औरतों को बंधक बना लिया गया. फिर इन महिलाओं से रेप किया जाता ताकि जंग के लिए ज्यादा से ज्यादा गुलाम मिल सकें. बाद में यही ट्रैंड अरब आक्रमणकारियों में भी देखने को मिला. भारत में भी ऐसे ही गुलामों से दिल्ली सल्तनत की नींव पड़ी थी.

हमारे देश में विकास की बातें तो हो रही हैं पर दिख नहीं रहा है. रोज महिलाओं के साथ हिंसा बढ़ती ही जा रही है. 2014 से 2021 तक दलित, आदिवासी महिलाओं से बलात्कार के 31,967 मामले सामने आ चुके हैं. 21 साल पहले गुजरात में गोधरा ट्रेन कांड किसे याद नहीं होगा. जहां गर्भवती बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया लेकिन बीजेपी के राज्य में एक साल पहले उन 11 लोगों की सजा वक्त से पहले खत्म कर दी गई. आज वे सभी जेल से बाहर हैं. जेल से बाहर आ कर वे हीरो बन गए और जिस के साथ हिंसा हुई वह ठगी सी रह गई.

मणिपुर की घटना तो महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों व हिंसा की पराकाष्ठा है. आखिर, उस युग की द्रौपदी और आज की द्रौपदी में अंतर ही क्या है, खींचे तो दोनों के वस्त्र गए. एक की भरी सभा में, एक की पूरे समाज के सामने. उस युग की द्रौपदी की इज्जत तो कृष्ण ने बचा ली थी पर आज की द्रौपदी को कोई बचाने वाला नहीं है, सब तमाशा देखने वाले हैं.

बचपन में हमें यही सिखाया गया था कि भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी इतनी लंबी कर दी थी कि कौरव उसे खींचतेखींचते थक गए थे. लेकिन द्रौपदी को अपमानित करने वाले कौरव और पांडव कितने मक्कार व नालायक थे, यह हमें नहीं बताया गया. जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब वहां महिलाएं भी मौजूद थीं पर किसी ने एक आवाज तक नहीं उठाई. सदियों से महिलाओं का उत्पीड़न करना, उन का बलात्कार करना, मारनापीटना, दुर्व्यवहार करना पुरुष अपना अधिकार मानता आया है. दुख की बात तो यह है कि कई महिलाएं भी ऐसी मान्यताओं में विश्वास करती हैं.

महिला मुद्दों पर राजनीति का चश्मा

महिला उत्पीड़न मामले को राजनीतिक चश्मे से इसलिए देखा जाता है क्योंकि कहीं न कहीं आरोपी उन के ही गुट के होते हैं. इन मामलों में तमाम महिला नेता कहां गुम हो जाती हैं, पता नहीं चलता. महिला नेता अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में इतनी व्यस्त होती हैं कि रेप जैसे छोटे मामलों को देखने और बोलने के लिए उन के पास फुरसत नहीं है.

देश के गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक, भाजपा दुनिया की सब से बड़ी पार्टी है. भाजपा अपने सदस्यों को राष्ट्रनिर्माण का वचन देती है. इन का वादा है कि इन से जुड़ते ही आप राष्ट्रनिर्माण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा देते हैं. एक कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने कहा था कि औरतों की इज्जत के लिए युद्ध करना पड़े तो करेंगे. लेकिन आज वही अमित शाह मणिपुर पर चुप हैं. कितने ही ऐसे रेप केस के मामले में वे चुप रहे क्योंकि गुनाह करने वाले भाजपा के ही नेता थे.

क्या भारत की महिलाओं की सुरक्षा, बस, एक मिस्डकौल के लिए रुकी है? क्या एक मिस्डकौल दें राष्ट्र निर्माण के लिए और रेप थ्रेट से मुक्ति पा जाएं?

एक के बाद एक बीजेपी नेताओं पर महिलाओं के साथ शोषणउत्पीड़न के मामले आते रहे हैं. लेकिन इस से ज्यादा दुखद बीजेपी महिला नेताओं की चुप्पी है जो महिला नेतृत्व के नाते भी कई गंभीर सवाल खड़े करती है, जिस पर लोग भरोसा कर के वोट देते हैं ताकि देश का बेहतर निर्माण हो सके लेकिन जब वही उसे खोखला करने में सब से आगे है तो दुख होता है.

एक तरफ जनता चौतरफा महंगाई की मार ?ोल रही है तो दूसरी तरफ युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. आज रसोई गैस की कीमत 1,000 से 1,200 सौ रुपए हो गई है. महिलाएं उज्ज्वला गैस के चूल्हे को एक तरफ कर के फिर मिट्टी के चूल्हों पर खाना पकाने को मजबूर हैं. पैट्रोल के दाम भी आसमान छू रहे हैं. ऐसे में स्मृति ईरानी कुछ बोलती क्यों नहीं हैं? चुप क्यों हैं?

सत्ता के मद में चूर स्मृति ईरानी और भाजपा नेताओं को जनता के दुखदर्द दिखाई ही कहां दे रहे हैं. अगर दिखाई देता तो मणिपुर की घटनाओं पर कुछ बोलते, लेकिन यहां तो विपक्षी पार्टी पर दोष मढ़ कर खुद को पाकसाफ करने में लगे हैं. जनता हर तरफ से मार ?ोल रही है और ये सारे नेता सिर्फ डींगें हांक रहे हैं. आज जिस तरह से मणिपुर, उत्तराखंड जैसे राज्यों में जो हो रहा है, वह बेशर्मी की हद हो गई. महिलाओं का शरीर जंग का अखाड़ा नहीं है जिस पर जीत और हार तय की जाए.

‘एक देश एक चुनाव’ : एक बार फिर कटघरे में मोदी सरकार

एक देश एक चुनाव को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी सरकार लालायित है वह अब केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है. आननफानन में केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ का राग अलापते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन कर दिया. मगर देश के विपक्ष से इस पर कोई चर्चा हो, यह आवश्यक नहीं समझा।

अगर मोदी सरकार यह मानती है कि देश में लोकतंत्र है तो विपक्ष के सभी नेताओं को, देश की सभी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों को बुला कर बैठक कर के इस पर चर्चा करनी चाहिए थी.

इतनी अकड़ क्यों?

दरअसल, नरेंद्र मोदी यह भूल गए कि लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष मिल कर ही देश को एक दिशा दे सकते हैं. अकेले सत्ता चलाना लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता और इस की आलोचना होगी और इसे देश स्वीकार नहीं कर सकता.

दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार हर चीज में जल्दी करना चाहती है। इस का महत्त्वपूर्ण कारण है मोदी सरकार में परिपक्वता की बड़ी कमी है, जिस कारण यह सरकार गलतियां करती चली जाती है और भुगतता है सारा देश.

चुनाव को लेकर एक बड़ी पहल

केंद्र सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एकसाथ कराने के मुद्दे पर गौर करने और जल्द से जल्द सिफारिशें देने के लिए 2 सितंबर को अचानक 8 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति अधिसूचित कर दी. मगर इन सदस्यों से परामर्श तक नहीं किया गया.

यही कारण है कि अधीर रंजन चौधरी ने अपनी सदस्यता से 24 घंटे में ही इस्तीफा दे दिया. सरकार ने समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी और कहा कि इस में गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह सदस्य होंगे.

बढ़चढ़ कर कहा गया कि समिति तुरंत ही काम शुरू कर देगी और जल्द से जल्द सिफारिशें करेगी. इस में पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी सदस्य हैं. बताया गया कि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में समिति की बैठकों में हिस्सा लेंगे जबकि कानूनी मामलों के सचिव नितेन चंद्रा समिति के सचिव होंगे.

समिति संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और किसी भी अन्य कानून और नियमों की पड़ताल करेगी और उन विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करेगी, जिस की एकसाथ चुनाव कराने के उद्देश्य से आवश्यकता होगी. समिति यह भी पड़ताल करेगी और सिफारिश करेगी कि क्या संविधान में संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी?

सब से बड़ा मसला

समिति एकसाथ चुनाव की स्थिति में खंडित जनादेश, अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने या दलबदल या ऐसी किसी अन्य घटना जैसे परिदृश्यों का विश्लेषण करेगी और संभावित समाधान भी सुझाएगी. समिति उन सभी व्यक्तियों, सुझावों और संवाद को सुनेगी और उन पर विचार करेगी जो उस की राय में उस के काम को सुविधाजनक बना सकते हैं और उसे अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में सक्षम बना सकते हैं.

मगर यह भी सच है कि देश के विपक्ष के बड़े नेताओं, जिन के पास लंबा अनुभव है, जैसे शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, मल्लिकार्जुन खङगे जैसे नेताओं से इस मसले पर कोई चर्चा सरकार नहीं करना चाहती और एक तरह से इकतरफा एक देश एक चुनाव का फारमूला लागू करना चाहती है.

सब से बड़ा मसला यह है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उन की सेवानिवृत्ति के बाद केंद्र सरकार ने यह दायित्व सौंपा है और एक तरह से एक नई परिपाटी शुरू कर के उन की गरिमा को क्षति पहुंचाने का काम किया है. अगर नरेंद्र मोदी इस संदर्भ में गंभीर हैं तो उन्हें अपने स्वयं यानि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक कमेटी बना कर के इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए था.

तुम्हारे हिस्से में: पत्नी के प्यार में क्या मां को भूल गया था हर्ष?

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ज्यादा सोने से हो सकती हैं ये 7 परेशानियां

हमारे शरीर के लिए सोना बेहद जरूरी है. सोने से दिमाग ताजा होता है और शरीर की उर्जा रिस्टोर होती है. नींद ना पूरी होने से कई तरह की बीमारियां भी पैदा होती हैं. एक स्वस्थ व्यक्ति को 8 घंटों से ज्यादा नहीं सोना चाहिए. इससे ज्यादा सोने से कई तरह की परेशानियां पैदा होने लगती हैं. इस खबर में हम आपको ज्यादा सोने से होने वाली परेशानियों के बारे में जानकारी देंगे.

बढ़ता है मोटापा

शरीर के बढ़ते मोटापे का सीधा असर आपके सोने के समय से होता है. जब आप सोते हैं तो आपके शरीर की कैलोरी बर्न नहीं होती. जिससे आपके शरीर का वजन बढ़ता है. कई शोध में ये बात सामने आई है कि ज्यादा सोने से कई तरह की मनोवैज्ञानिक बीमारियों का खतरा बना रहता है.

रहता है दिल की बीमारी का खतरा

ज्यादा सोने वाले लोगों में दिल की बीमारी का खतरा बना रहता है.

कमजोर होती है याद्दाश्त

ज्यादा देर तक सोना हमारे दिमाग को भी गलत ढंग से प्रभावित करता है. इससे हमारी याद्दाश्त भी कमजोर होती है.

सिरदर्द की शिकायत

आम तौर पर ज्यादा सोने वालों में सिरदर्द की शिकायत देखी जाती है. यह मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर में उतार-चढ़ाव के कारण हो सकता है, जिसमें नींद के दौरान सेरोटोनिन बढ़ सकता है, जिससे सिरदर्द हो सकता है.

कब्ज की परेशानी

ज्यादा देर तक सोने वालों में कब्ज की परेशानी देखी जाती है. पेट को हेल्दी रखने के लिए जरूरी है कि सही समय पर सही बौडी मुवमेंट होता रहे.

हो सकती है पीठ में दर्द की शिकायत

ज्यादा देर तक सोने से आपकी पीठ में दर्द हो सकता है. ऐसा इस लिए होती है क्योंकि ज्यादा देर तक सोने से शरीर में खून के बहाव पर बुरा असर पड़ता है और आपकी पीठ अकड़ जाती है.

डिप्रेशन का खतरा

जानकारों का मानना है कि ज्यादा देर तक सोने से दिमाग में डोपानाइन और सेरोटोनिन का लेवल कम होता है. यही कारण है कि आपका मुड पूरे दिन चिड़चिड़ा सा रहता है.

नाई बन लोगों के बाल काटते नजर आए Sunil Grover, फैन्स के साथ-साथ राजकुमार राव भी हुए फिदा

Sunil Grover New video : एक्टर सुनील ग्रोवर बीते कई दिनों से सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं. उनकी वीडियोज लोगों को खूब पसंद आ रही है. कभी वह गन्ने का जूस बेचते नजर आते हैं, तो कभी सड़क किनारे कपड़े धोते, मूंगफली बेचते या फिर बर्फ का गोला बनाते देखे जाते हैं. हालांकि इस बार उन्होंने एक ऐसी वीडियो पोस्ट की है, जिस पर उनके फैंस तो जमकर रिएक्ट कर ही रहे है. साथ ही बॉलीवुड के एक्टर भी अपने आप को कमेंट करने से रोक नहीं पा रहे हैं.

नाई बन एक शख्स के बाल काटते नजर आए सुनील

दरअसल, इस बार सुनील ग्रोवर (Sunil Grover New video) ने जो वीडियो पोस्ट की है. उसमें वह कुछ बेचते हुए नहीं बल्कि एक आदमी के बाल काटते नजर आ रहे हैं. वीडियो में देखा जा सकता है कि सुनील, गुरु कृपा हेयर कटिंग सलून में मौजूद है. जहां वह कुर्सी पर बैठे एक ग्राहक के बाल काटते है. उनके हाथ में उस्तरा है, जिससे वह उस शख्स के बाल काट रहे है. जैसे ही अभिनेता ने ये वीडियो पोस्ट की, वैसे ही ये वायरल हो गई.

इस वीडियो को देखने के बाद फैन्स अपनी हंसी नहीं रोक पा रहे हैं. साथ ही सुनील ग्रोवर के इस नए अंदाज की भी खूब तारीफ कर रहे हैं. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘नैचुरल एक्टर हैं सुनील साहब, ये हर जगह फिट हो जाते हैं.’ वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘भैया जी ये आप किस लाइन में आ गए हैं?’

राजकुमार राव से लेकर आरती छाबड़िया ने किया रिएक्ट

हालांकि फैन्स के अलावा बॉलीवुड के कई सितारों ने भी एक्टर के इस वीडियो पर रिएक्ट किया है. एक्ट्रेस आरती छाबड़िया ने सुनिल के नाई वाले इस वीडियो पर लाफिंग इमोजी बनाकर रिएक्ट किया है. वहीं एक्टर राजकुमार राव, जितेंद्र कुमार और जेमी लिवर भी अपने आप को इस वीडियो पर कमेंट करने से रोक नहीं पाए. उन्होंने इस वीडियो को लाइक किया है.

शाहरुख की ‘जवान’ में नजर आएंगे सुनील ग्रोवर

वहीं सुनील ग्रोवर (Sunil Grover New video) के वर्क फ्रंट की बात करें तो वह जल्द ही शाहरुख खान और नयनतारा स्टारर ‘जवान’ में नजर आएंगे. इस फिल्म में उनका अहम किरदार होगा. सुनील के अलावा इस फिल्म में विजय सेतुपति, दीपिका पादुकोण और सान्या मल्होत्रा भी दिखाए देंगे. जो बड़े पर्द पर 7 सितंबर को रिलीज होगी.

आत्महत्या करने के लिए पति ने उकसाया था Aparna Nair को! एक्ट्रेस की मां ने किए चौंकाने वाले खुलासे

Aparna Nair Death : बीते दिनों मलयालम टीवी एक्ट्रेस अपर्णा नायर (Aparna Nair Death) अपने करमना स्थित घर में मृत पाई गई थीं. उनका शव संदिग्ध हालत में लटका हुआ पाया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक्ट्रेस अपर्णा का लटका हुआ शव देखते ही उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर जाया गया, जहां जांच के बाद डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. वहीं पुलिस ने अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज कर लिया था. साथ ही मामले की जांच भी की जा रही थी.

वहीं अब इस केस में एक नया मोड़ आया है. दरअसल, अभिनेत्री की मां बीना ने दामाद संजीत पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका दावा है कि अपर्णा के पति संजीत ने एक्ट्रेस को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था. साथ ही वह उनकी बेटी को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया करता था, जिस कारण अपर्णा ने विवश होकर मौत को गले लगा लिया.

अपर्णा की मां ने दामाद पर लगाए ये आरोप

आपको बता दें कि, एक्ट्रेस (Aparna Nair Death) की मां ने दावा किया है कि आत्महत्या करने से ठीक पहले अपर्णा ने उनसे बात की थी.  मां बीना के मुताबिक, एक्ट्रेस ने अपनी मां को वीडियो कॉल पर बताया था कि, ‘वह पति संजीत की मानसिक प्रताड़ना को अब बिल्कुल भी सहन नहीं करेगी.’ इसके अलावा उनकी मां ने कहा, ”सिर्फ अपर्णा और संजीत ही जानते हैं कि उनके बीच क्या हुआ था? उसने तो मुझे शुक्रवार की सुबह कॉल किया था.”

साथ ही ये भी बताया था कि, ‘वो जा रही.’ इसके आगे उन्होंने कहा, ‘ये बात सुनने के बाद मैंने तुरंत संजीत को कॉल किया और उससे कहा कि वो इस बात का पता करें कि अपर्णा सुरक्षित है या नहीं? मैंने संजीत से कहा था कि वो घर का दरवाजा तोड़कर अंदर जाए और अपर्णा को कोई गलत कदम उठाने से रोके. लेकिन उसने मेरी एक बात नहीं सुनी.’

अपर्णा-संजीत के बीच नहीं था सब कुछ ठीक

इसके अलावा बीना ने आगे बताया कि, ‘मेरे कॉल करने के आधे घंटे बाद संजीत अपर्णा के रूम में गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. अगर संजीत मेरे कॉल करने के तुरंत बात अपर्णा को देखने जाता तो शायद वह अपर्णा को आत्महत्या करने से रोक सकता था.’ इसी के साथ एक्ट्रेस (Aparna Nair Death) की मां ने ये भी बताया कि अपर्णा और संजीत की शादीशुदा जिंदगी ठीक नहीं चल रही थी. दोनों के बीच काफी परेशानी थी.

संजीत ने खुद को बताया निर्दोष

वहीं दूसरी तरफ संजीत ने अपनी सासू मां के सभी आरोपों को खारिज कर दिया है. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘वह निर्दोष है और उन्हें नहीं पता कि पत्नी अपर्णा ने इतना बड़ कदम क्यों उठाया.’ बहरहाल, पुलिस पहले बीना का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करेगी. जिसके बाद जांच की जाएगी. अगर जांच में संजीत के खिलाफ सबूत मिलते है तो उनके खिलाफ केस भी दर्ज किया जाएगा.

आपको बता दें कि 31 साल की अपर्णा (Aparna Nair Death) मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा थीं. उन्होंने ‘अथमासखी’ और ‘चंदनमाझा’ जैसे कई पॉपुलर शो में काम किया हैं. वह अपने पति संजीत और दो बेटियां थ्रया और कृतिका के साथ करमना में रहती थी.

जब पत्नी की आंखों में प्रेमी बस जाए

छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार के थाना पलारी के गांव छेरकापुर के रहने वाले भकला आडिल का बेटा सुमेर आडिल आवारा दोस्तों के साथ रह कर काफी बिगड़ गया था. वह गांव की बहूबेटियों पर बुरी नजर रखने लगा तो भकला ने उस की शादी पड़ोस के गांव की रहने वाली तोपबाई से कर दी. भकला का सोचना था कि पत्नी की जिम्मेदारी आते ही बेटा अपने आप सुधर जाएगा. परिणाम उस के आशा के एकदम अनुकूल ही निकला.

सुमेर नईनवेली पत्नी तोपबाई के रूपयौवन में कुछ इस तरह उलझा कि शादी के बाद उस का ज्यादातर समय घर पर ही गुजरने लगा. शादी के डेढ़ साल बाद तोपबाई ने बेटी को जन्म दिया तो सुमेर की जिम्मेदारी और बढ़ गई. अब उस के पास समय ही नहीं रहा कि वह दोस्तों के साथ उठेबैठे. एकएक कर के सुमेर 4 बच्चों का बाप बन गया.

परिवार बढ़ा और उसी बीच बाप की भी मौत हो गई तो सुमेर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में इस कदर उलझ गया कि अब उसे अपना भी होश नहीं रहता था. इस के बावजूद जवानी की बिगड़ी अन्य आदतें भले ही सुधर गई थीं, लेकिन पीनेपिलाने की आदत जस की तस थी. जबकि अब उस के बच्चे भी जवान हो रहे थे. उस की बड़ी बेटी हेमलता 18 साल की हो चुकी थी.

सुमेर के घर से कुछ दूरी पर संतरू यादव का घर था. उस का दूध का कारोबार था. इसलिए उस के बेटे नरसिंह यादव उर्फ शेरा का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो उस की पढ़ाई छुड़ा कर संतरू ने उसे अपने साथ दूध के कारोबार में लगा लिया था. उस का एक बेटा और था, जो रायपुर चला गया था और वहां किसी कंपनी में नौकरी करने लगा था. उस के जाने के बाद उसे शेरा का ही सहारा रह गया था.

एक ही गांव का होने की वजह से सुमेर और शेरा में अच्छी पटती थी. इसी वजह से दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. वैसे तो दोनों की उम्र में 5-6 साल का अंतर था, लेकिन उन की आदतें काफी हद तक मिलतीजुलती थीं, इसीलिए दोनों में पटरी खाने लगी थी. सुमेर भी खानेपीने वाला आदमी था और शेरा भी. अकसर दोनों की शामें एक साथ गुजरती थीं.

दोस्त की पत्नी होने की वजह से शेरा तोपबाई को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की आड़ में दोनों के बीच हंसीमजाक भी खूब होता था. उन का यह मजाक कभीकभी मर्यादा भी लांघ जाता था.

4 साल पहले की बात है. गरमी के दिन थे. शेरा अपनी भैंसों को नहलाने के लिए रोजाना दोपहर को गांव के दक्षिण में जायसवाल आरा मिल से थोड़ी दूर स्थित ठाकुरबिया तालाब पर ले जाता था.

उस दिन शेरा ने अपनी भैंसों को पानी में उतारा ही था कि उस की नजर तालाब के दूसरे घाट पर नहा रही तोपबाई पर पड़ी. वह साड़ी उतार कर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में नहा रही थी. शेरा ने सोचा तोपबाई उसे देख कर या तो पानी में बैठ जाएगी या निकल कर साड़ी लपेट लेगी. लेकिन जब उस ने ऐसा कुछ नहीं किया तो शेरा की आंखों में चमक आ गई.

शेरा को अचानक शरारत सूझी और वह अपनी भैंसों को धीरेधीरे उसी ओर खदेड़ ले गया, जिधर तोपबाई नहा रही थी. तोपबाई को लगा, उस की भैंसे अपनेआप आ गई हैं, इसलिए वह खामोश रही. शेरा ने भैंस के ऊपर पानी डालने के बहाने एक अंजुली पानी तोपबाई के ऊपर भी उछाल दिया.

तोपबाई के भीगे खुले अंग धूप में कुंदन की तरह चमक रहे थे. उस स्थिति में वह कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी. पहली बार तो तोपबाई कुछ नहीं बोली, लेकिन जब उस ने दोबारा यही हरकत की तो वह उस की शरारत भांप गई. बिल्लौरी आंखों से शेरा को घूरते हुए बोली, ‘‘क्यों शेरा, तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है क्या कि मैं नहा रही हूं?’’

‘‘क्यों नहीं दिखाई दे रहा है भाभी. पानी में भीग कर इस धूप में तो आप कुंदन की तरह चमक रही हैं.’’

‘‘तुम मेरे ऊपर पानी क्यों उछाल रहे हो?’’ तोपबाई ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘भाभी, मैं पानी आप के ऊपर नहीं, भैसों के ऊपर उछाल रहा था, जिस से उन की गरमी थोड़ी शांत हो जाए. उसी में से थोड़ा पानी आप पर भी चला गया होगा.’’ शेरा ने सफाई दी.

‘‘भैंस ही नहलाना था तो उधर ही नहला लिया होता. तुम्हें पता नहीं यहां औरतें नहाती हैं.’’ तोपबाई ने बनावटी प्रतिरोध किया.

‘‘अरे ये भैंसे भी तो औरतें हैं. मैं तो इन्हें उसी ओर ले गया था. ये खुद ही अपने घाट पर आ गईं. अब इन्हें छोड़ कर मैं कहां जा सकता हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं ही जा रही हूं. तुम अपनी भैसों की गरमी शांत करो.’’

‘‘आप की गरमी बड़ी जल्दी शांत हो गई भाभी. मैं ने तो सोचा था कि अभी आप नहाएंगी. लेकिन आप की गरमी तो पानी का छींटा पड़ते ही शांत हो गई.’’ शेरा ने यह बात जिस अंदाज में कही थी, तोपबाई को उस का मतलब समझते देर नहीं लगी. उस ने कहा, ‘‘मेरी गरमी पानी से शांत नहीं होती, उस के लिए मर्द चाहिए. हिम्मत है मेरी गरमी शांत करने की.’’

‘‘मौका मिला तो जरूर कोशिश करूंगा भाभी,’’ शेरा ने कहा, ‘‘मौका तो दीजिए. उस के बाद देखिए, मेरी हिम्मत को.’’

इस के बाद बात खत्म हो गई. लेकिन शेरा का जब भी तोपबाई से सामना होता, शेरा अभिवादन कर के यह कहना नहीं भूलता, ‘भाभी गरमी शांत करने का कब मौका दे रही हो?’

उसी बीच गांव में छत्तीसगढ़ी नाचगाने का प्रोग्राम बना. जिस दिन नाचगाना होना था, सुबह शेरा तोपबाई के दरवाजे से गुजरा तो आंगन में बैठी तोपबाई उसे दिखाई दे गई. दरवाजे के पास से ही उस ने कहा, ‘‘रामराम भाभीजी, क्या हालचाल है, क्या कर रही हैं?’’

‘‘तुम भी अजीब सवाल करते हो, देख नहीं रहे हो बैठी हूं.’’

‘‘वह तो देख रहा हूं, मेरा मतलब कुछ और था. मैं तो गरमी…’’ शेरा की बात पूरी होती, उस के पहले ही तोपबाई ने कहा, ‘‘देवरजी, अभी तुम जाओ. रात में नाच देखने आऊंगी. वहीं मिलना.’’

शेरा का वह दिन बड़ी मुश्किल से बीता. रात 10 बजे के बाद नाचगाना शुरू हुआ तो तोपबाई ने सुमेर से कहा, ‘‘चलो, नाच देखने नहीं चलोगे क्या?’’

‘‘तुझे नाच देखने का बड़ा शौक है तो तू जा. अभी मेरा मन नहीं है. नाच पूरी रात चलेगी, मन होगा तो आ जाऊंगा.’’ सुमेर ने कहा.

तोपबाई तो यही चाहती थी. इसलिए वह तुरंत निकल गई. वह नाच देखने थोड़े ही गई थी. वह तो शेरा से मिलने गई थी. इसलिए वहां पहुंचते ही शेरा को खोजने लगी. शेरा भी उसी को खोज रहा था, इसलिए उन्हें मिलने में देर नहीं लगी. मिलते ही शेरा उसे गांव के बाहर बने स्कूल में ले गया.

प्रोग्राम पहले से ही तय था, इसलिए शेरा पहले ही वहां दरी बिछा आया था. दरी पर बैठते हुए तोपबाई ने कहा, ‘‘शेरा, मैं ज्यादा देर तक रुक नहीं सकती, इसलिए जो भी करना है, जल्दी करो. अगर सुमेर नाच देखने आ गया तो मुझे वहां न पा कर शक करेगा. वैसी भी वह बड़ा शक्की आदमी है.’’

‘‘भाभीजी, आप उस की चिंता ना करो, मैं हूं न. मैं सब संभाल लूंगा. आखिर मेरी उस से दोस्ती जो है…’’

शेरा भी कहां समय गंवाना चाहता था. इसलिए उस ने तोपबाई को बांहों में भर लिया. इस के बाद वासना का ज्वर उमड़ा तो जल्दी ही शेरा को अहसास हो गया कि तोपबाई सचमुच हुस्न के गोले छोड़ने वाली तोप है.

वासना का तूफान शांत हुआ तो अधखुली आंखों से शेरा की ओर देखते हुए तोपबाई ने कहा, ‘‘शेरा आज मैं तुम्हारी कायल हो गई. तुम ने सचमुच मेरी गरमी शांत कर दी.’’

‘‘भाभी, तुम भी कम नहीं हो. मेरे भी छक्के छुड़ा दिए.’’ शेरा ने कहा.

कपड़े ठीक करते हुए तोपबाई उठी, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए. लेकिन जाने से पहले एक बात का जवाब जरूर चाहूंगी. कहीं तुम मुझे मंझधार में तो नहीं छोड़ दोगे? मैं ने अपनी इज्जत तुम्हारे हवाले कर दी है.’’

‘‘भाभी जैसा तुम सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं होगा. हमारेतुम्हारे बीच आज जो संबंध बने हैं, वह ताउम्र बने रहेंगे. भले ही हम दोनों बूढ़े हो जाएं, पर हमारा प्यार जरा भी कम नहीं होगा. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. कभी भी तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो, मुझ से बेहिचक कहना. मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा.’’

इच्छा पूरी होने के बाद शेरा अपनी राह चला गया तो तोपबाई अपनी राह. इस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता, कहीं न कहीं जिस्मानी भूख शांत कर लेते. यह ऐसा संबंध है, जो किसी भी तरह छिपाए नहीं छिपता. शेरा और तोपबाई के भी संबंधों की जानकारी सभी को हो गई.

मजे की बात यह थी कि तोपबाई जहां 4 बच्चों की मां थी, वहीं उस का प्रेमी शेरा भी 2 बच्चों का बाप था. उस की पत्नी संतोषी को तीसरा बच्चा होने वाला था. जब इस बात की जानकारी संतोषी को हुई तो उस ने पूरा घर सिर पर उठा लिया. उस ने शेरा को समझाया भी, लेकिन उस पर पत्नी के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. जल्दी ही हालत यह हो गए कि संतोषी अगर तोपबाई का नाम ले लेती तो उसे गुस्सा आ जाता और वह उस की पिटाई कर देता.

दूसरी ओर सुमेर भी पत्नी की बदचलनी से शर्मिंदा था. लेकिन उसे शराब की ऐसी लत लगी थी कि वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा पैसा शराब में उड़ा देता था. तोपबाई जब भी समझाने का प्रयास करती, उसे चार बातें सुननी पड़तीं. घर में बच्चे बड़े हो चुके थे, इसलिए सुमेर तोपबाई पर सख्ती नहीं कर पा रहा था.

शायद इन्हीं वजहों से तोपबाई और शेरा के संबंधों में कोई रुकावट नहीं आई. जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो सुमेर ने तोपबाई के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी. वह खुद तो उस पर नजर रखता ही था, इस काम में बेटी भी उस की मदद करती थी.

सुमेर और बेटी की निगरानी से तोपबाई परेशान हो उठी. अब वह पहले की तरह शेरा से नहीं मिल पा रही थी. शेरा भी तोपबाई से मिलने के लिए बेचैन रहता था. शेरा को पता था कि सुमेर ने उस पर घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा रखी है.

दोनों की छटपटाहट बढ़ी तो एक दिन तोपबाई ने कहा, ‘‘शेरा, अगर तुम चाहते हो कि मैं पूरी तरह से तुम्हारी हो जाऊं तो तुम्हें सुमेर को रास्ते से हटाना होगा. शेरा भी तोपबाई के लिए बेचैन था, इसलिए वह इस के लिए भी तैयार हो गया.’’

25 जुलाई, 2014 को शेरा के एक रिश्तेदार के बेटे का जन्मदिन था. शेरा जन्मदिन की पार्टी में शामिल हो कर रात 9 बजे के आसपास घर लौट रहा था, तभी बजरंग चौक के पास उस की मुलाकात सुमेर से हो गई.

उसे देखते ही शेरा के दिमाग में उसे ठिकाने लगाने का विचार आ गया. उस ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘सुमेरभाई लगता है, आजकल आप मुझ से नाराज चल रहे हैं, इसीलिए मेरे साथ बैठ कर खातेपीते नहीं हैं. बहुत दिनों बाद मिले हो तो चलो आज साथ बैठ कर एकएक पैग पी लेते हैं.’’

सुमेर शराब पिए था, लेकिन शराब उस की कमजोरी बन चुकी थी, इसलिए वह मना नहीं कर सका. शेरा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल नंबर सीजी04जे एफ-5513 पर बैठाया और बलौदा बाजार की ओर चल पड़ा. उस समय रात के 10 बज रहे थे. बलौदा बाजार से उस ने शराब की एक बोतल खाने का सामान खरीदा और लौट पड़ा.

रास्ते में पड़ने वाले खोरसी नाला के पास उस ने मोटरसाइकिल रोक दी और ठीकठाक जगह तलाश कर बैठ गया. शेरा ने खुद तो कम पी, जबकि सुमेर को ज्यादा पिलाई. सुमेर पर शराब का नशा चढ़ा तो वह वहीं पर लेट गया. इस के बाद शेरा ने तोपबाई को फोन किया, ‘‘तोपबाई, सुमेर मेरे पास नशे में बेहोश पड़ा है. तुम कहो तो इसे ऊपर पहुंचा दूं या मोटरसाइकिल पर लाद कर तुम्हारे घर छोड़ दूं.’’

‘‘अब मैं बताऊंगी कि उस का क्या करना है. पहले तो कहते थे कि जीवन भर साथ निभाऊंगा, मंझधार में नहीं छोड़ूंगा. अब मुझ से पूछ रहे हो कि क्या करूं?’’ तोपबाई गुस्से में बोली, ‘‘अगर तुम चाहते हो कि मैं उस के हाथों पिटती रहूं, बेइज्जत होती रहूं तो ला कर उसे यहां छोड़ दो.’’

शेरा की समझ में आ गया कि तोपबाई क्या चाहती है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, आज मैं सारे फसाद का अंत किए देता हूं, आज के बाद तुझे मारनेपीटने वाला कोई नहीं रहेगा. रहेगा तो सिर्फ प्यार करने वाला.’’

इस के बाद शेरा ने सुमेर के पास जा कर दोनों हाथों से उस की गरदन दबोच ली और दबाने लगा. सुमेर पर नशा इस कदर हावी था कि वह विरोध नहीं कर सका. उस ने हाथपैर पटक कर दम तोड़ दिया.

सुमेर मर गया तो शेरा उस के दोनों पैर पकड़ कर उसे घसीटते हुए नाले के पास ले गया और उस की लाश को उठा कर नाले में फेंक दिया. इस के बाद निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

26 जुलाई, 2014 की सुबह खोरसी नाले से सटे गांव मगरचबा के रहने वालों ने नाले में लाश देखी तो इस की जानकारी कोतवाली बलौदा बाजार को दी. सूचना पाते ही कोतवाली प्रभारी प्रमोद सिंह दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

थाने से निकलते समय थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी अभिषेक शांडिल्य के अलावा एएसपी वी.पी. राजभानू को भी दे दी थी. लाश पानी में पेट के बल पड़ी थी. थानाप्रभारी ने गांव वालों की मदद से वह लाश बाहर निकलवाई.

लाश देख कर ही लग रहा था कि उसे रात में ही पानी में फेंका गया था. वहां मौजूद लोगों से पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही तो कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका.

थानाप्रभारी प्रमोद सिंह घटनास्थल और लाश की जांच कर रहे थे कि एसपी अभिषेक शांडिल्य एवं एएसपी वी.पी. राजभानू भी आ गए. इस के बाद घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

इस के बाद थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया और यह पता लगाने लगे कि 2-3 दिनों में कहीं कोई गुमशुदगी तो दर्ज नहीं हुई. उन्हें पता चला कि थाना पलारी में थोड़ी देर पहले ही एक महिला तोपबाई आई थी, जिस का पति सुमेर आडिल पिछले दिन से गायब है. तोपबाई ने अपने पति का जो हुलिया बताया था, वह लावारिस लाश के हुलिए से मेल खा रहा था.

इस के बाद थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने तोपबाई को पोस्टमार्टम हाउस बुलवा लिया. पोस्टमार्टम हाउस में तोपबाई को नाले में मिली लाश दिखाई तो वह जोरजोर से रोने लगे. इस से साफ हो गया कि मृतक उस का पति सुमेर आडिल था. पोस्टमार्टम के बाद लाश तोपबाई को सौंप दी गई. थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि तोपबाई का गांव के ही शेरा यादव से अवैध संबंध था. इस बात को ले कर सुमेर आए दिन उस की पिटाई करता रहता था.

थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने तोपबाई और शेरा यादव को थाने बुलवा लिया. दोनों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की गई तो सुमेर की हत्या का सारा राज सामने आ गया. शेरा यादव ने स्वीकार कर लिया कि सुमेर की पत्नी तोपबाई के साथ पिछले कुछ सालों से उस के अवैध संबंध थे. उसी के कहने पर उस ने उस के पति सुमेर की हत्या कर लाश नाले में फेंक दी थी.

सुमेर की हत्या का खुलासा होने के बाद थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने अज्ञात की जगह शेरा और तोपबाई को नामजद कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. तोपबाई को जहां रायपुर की जिला जेल में रखा गया है, वहीं शेरा को बलौदा बाजार जिला जेल भेजा गया है. बलौदा बाजार जेल में महिला सेल न होने की वजह से उसे रायपुर भेजा गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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