Download App

कैसा हो माता पिता के जन्मदिन पर तोहफा

आमतौर पर मातापिता अपने बच्चों के जन्मदिन पर अपनी तरफ से तोहफा देते हैं, जिसे पा कर वे बहुत खुश होते हैं, लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो उन्हें भी चाह होती है अपने बच्चों से तोहफा पाने की. इसलिए हर बच्चे का फर्ज है कि अपने मातापिता के जन्मदिन पर उन्हें कोई न कोई तोहफा अवश्य भेंट करे. मातापिता की उम्र चाहे जो हो, उन्हें कुछ ऐसा क्रिएटिव उपहार दें जो उन्हें अच्छा लगे, उन के लिए उपयोगी हो और आप को मन की भी शांति मिले. मां और पिता दोनों के जन्मदिन पर भिन्नभिन्न तोहफे होने चाहिए, क्योंकि दोनों की जरूरतें अलगअलग होती हैं. अब परंपरागत स्वरूप वाले तोहफों का जमाना गया और इस के स्थान पर आ गए हैं आधुनिक गैजेट्स. इसलिए आप उन की जरूरत के मुताबिक गैजेट्स खरीद कर भेंट कर उन के जन्मदिन को खास बना सकते हैं.

मां के लिए तोहफा

आप की मां कामकाजी महिला हैं या गृहिणी? यदि वे कामकाजी हैं तो उन को तोहफा देने के लिए अनेक विकल्प हैं. उन्हें हैंडबैग दिया जा सकता है, जिस में वे कौस्मैटिक से ले कर गैजेट तक सुरक्षित रख सकती हैं. यदि आप की आर्थिक स्थिति मजबूत है तो आप विशेष सुविधायुक्त हैंडबैग औनलाइन खरीद सकते हैं, जो आप को 10 से 15 हजार रुपए तक में मिल सकता है. इस में लैपटौप, टैबलेट रखने की सुविधा होने के साथसाथ चार्जिंग के लिए तार भी लगा होता है. ब्रिटेन की एक कंपनी ने नैकलेस जैसा दिखने वाला हैडफोन बनाया है जो खासतौर पर महिलाओं के लिए डिजाइन किया गया है. इस का इस्तेमाल वे स्मार्टफोन में हैडफोन्स के साथसाथ नैकलेस की तरह भी कर सकती हैं. इस की शुरुआत ढाई हजार रुपए से होती है.

आजकल किचन गैजेट्स की भरमार है जो आप की मां के लिए मददगार होते हैं और उन का काम आसान कर देते हैं. इन्हें आप औनलाइन भी खरीद सकते हैं. यदि आप चाहें तो उन्हें निजी उपयोग के लिए पर्स भी दे सकते हैं. आजकल आधुनिक किस्म के पर्स आने लगे हैं, जिन में औटोमैटिक सैंसर भी लगे होते हैं. जैसे ही वे अपने पर्स में कोई चीज ढूंढ़ने लगेंगी, अपनेआप लाइट जल जाएगी. आप वायरलैस हैडफोन्स भी तोहफे में दे सकते हैं. इस में बायोमीट्रिक सैंसर लगे होते हैं. आप चाहें तो अपनी मां को हेयर ड्रायर भी भेंट कर सकते हैं. आजकल आम हेयर ड्रायर से भिन्न हेयर ड्रायर आने लगे हैं, जो महंगे अवश्य हैं, लेकिन बिजली कम खर्च करते हैं.

पिता के लिए तोहफा

पिता को जन्मदिन पर देने के लिए तोहफों की सूची काफी लंबी हो सकती है. स्मार्टफोन या टैबलेट्स के अलावा ऐसे गैजेट्स आ गए हैं जिन्हें आप अपने पिता को जन्मदिन पर उपहार में दे सकते हैं. अब तो इन गैजेट्स को औनलाइन खरीदने की सुविधा भी है. पिता को जन्मदिन पर उन के निजी उपयोग की चीज देनी चाहिए. कुछ गैजेट्स पहनने वाले हो सकते हैं, जैसे स्मार्ट बैल्ट बकल. इस में वे अपने क्रैडिट या डैबिट कार्ड रख सकते हैं. चीन की एक कंपनी ने बाजार में यूएसबी कफलिंक्स प्रस्तुत किए हैं, जो आप के पिता की शर्ट पर हमेशा एक पैनड्राइव या मैमोरीकार्ड की तरह मौजूद रहेंगे. इस में वे अपने औफिस के प्रैजैंटेशन से ले कर सभी जरूरी डाटा स्टोर कर सकते हैं. आप जो भी गिफ्ट दें वह सब से अलग और शानदार होना चाहिए. इस के लिए बजट से थोड़ा बाहर भी जाना पड़े तो जाएं, हर साल एक जैसा गिफ्ट देने के बजाय उस में विविधता लाएं. हां, लिफाफे में नकद राशि रख कर उन्हें कभी भेंट न करें.

Father’s Day 2023: नवजीवन- विनय के पिता की क्या इच्छा थी?

विनय बहुत होनहार छात्र था. उस के घर में कुल 3 सदस्य थे. उस के मातापिता और वह स्वयं. उस के पिता मुकुटजी बड़े ही सभ्य पुरुष थे. घर में सुखसुविधा के विशेष साधन नहीं थे फिर भी परिवार के सभी लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए बड़ी प्रसन्नतापूर्वक जीवनयापन कर रहे थे.

विनय अपने पिता की भांति धीरगंभीर और हंसमुख स्वभाव का तेजस्वी किशोर था. उस में कोई भी अवगुण नहीं था. इसी कारण घर से स्कूल तक सभी उस पर गर्व करते थे. वह मातापिता तथा गुरु का सम्मान करता था. उन की प्रत्येक आज्ञा का पालन बड़ी निष्ठा के साथ करता था. इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे.

विनय के पिता ने जहां घर लिया था, वहां बहुत सी मिलें, फैक्टरियां आदि आसपास ही थीं. वे स्वयं भी एक मिल में कार्यरत थे. दिन भर काम करते तथा शाम को थकेहारे घर आते. विनय उस समय पढ़ाई करता रहता. पिताजी को देख कर वह सोचता, ‘पिताजी मेरी पढ़ाई के लिए कितना परिश्रम करते हैं और इस कारण अपनी सेहत की भी चिंता नहीं करते. आखिर मैं तो छात्रवृत्ति पा ही रहा हूं. क्या आवश्यकता है पापा को इतना परेशान होने की?’ विनय सोचता कि वह थोड़ा और पढ़ ले तो आत्मनिर्भर बन कर पिता की सेवा करे.

एक दिन वह स्कूल से घर पहुंचा तो देखा कि पिताजी लेटे हुए हैं और मां उन के पास उदास बैठी हुई हैं. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां, पिताजी ऐसे क्यों लेटे हुए हैं?’’

पिताजी ने कहा, ‘‘ठीक हूं बेटा, तू परेशान मत हो और अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा.’’

किंतु विनय का मन पढ़ाई में न लगा. दूसरे ही दिन वह पिताजी को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने विनय के पिता का निरीक्षण किया और बोले, ‘‘इन को दवाएं तो दीजिए ही, साथ में शुद्ध वातावरण में रखिए. वातावरण में जो कार्बन और धूल के कण होते हैं, वे सांस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं. इस से स्वास्थ्य खराब हो जाता है. इन को आराम की तथा शुद्ध व ताजी हवा की आवश्यकता है.’’

डाक्टर की यह चेतावनी सुन कर विनय पिता के साथ घर पहुंचा. उस का मन बहुत उदास था. उस के धनी मित्रों ने पिताजी को किसी पहाड़ी प्रदेश में ले जाने के लिए कहा. विनय का हृदय बैठा जा रहा था, ‘कहीं पिताजी को कुछ हो गया तो…’

उस की खुशी अब गंभीरता में बदल गई. वह शोकग्रस्त रहने लगा. वह चिकित्सक की लिखी दवाएं पिताजी को समय से दे रहा था लेकिन पिताजी को किस जगह ले जाए जो पिताजी के अनुकूल हो? दिनरात वह यही सोचता. ‘पहाड़ी जगहों पर ले जाने के लिए इतने पैसे कहां से आएंगे?’

उस की चुप्पी उस के गुरुजी से छिपी न रह सकी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या कारण है कि आजकल तुम बहुत गंभीर रहते हो? क्या मैं तुम्हारी इस परेशानी का कारण जान सकता हूं. विनय भी गुरुजी को अपने पिताजी से कम न समझता था, अत: उस ने उन से कहा कि पिताजी अस्वस्थ हैं तथा डाक्टर ने उन्हें ऐसी जगह रहने के लिए कहा है जहां शुद्ध प्राकृतिक वातावरण हो. धूल और धुएं का नामोनिशान न हो तथा स्वच्छ ताजी हवा मिले. लेकिन मैं आर्थिक परेशानी के कारण उन्हें कहीं बाहर नहीं ले जा सकता. क्या करूं, क्या न करूं? गुरुजी, आप ही कुछ बताइए?’’

गुरुजी बोले, ‘‘बस, जरा सी बात के लिए इतना परेशान हो. तुम्हारे घर से थोड़ी दूरी पर जो पार्क है न, वहां बहुत सारे पेड़ हैं. अपने पिताजी को सुबहशाम वहां ले जाया करो. वायुमंडल को साफ रखने के लिए तुम अपने घर के चारों ओर पौधे ला कर लगा दो इस से न सिर्फ तुम्हारे पिता को बल्कि तुम्हें भी स्वच्छ वातावरण मिलेगा. पेड़ कार्बन डाईऔक्साइड खींच लेते हैं और बदले में हमें औक्सीजन देते हैं. साथ ही हमें ताजा फल भी देते हैं. इतने अच्छे साथी बदले में तुम से क्या लेते हैं, केवल जल. विनय, पौधे लगाओ और उन को जल से सींचना न भूलो.’’

विनय बोला, ‘‘ठीक है गुरुजी. अब मैं पेड़ लगाऊंगा और अपने सभी मित्रों से भी लगवाऊंगा, साथ ही उन की देखभाल भी करूंगा.’’

गुरुजी विनय की बात सुन कर बड़े प्रसन्न हुए.

अब विनय की उदासी गायब हो गई थी. सायंकाल से ही विनय ने पिताजी को पार्क ले जाना आरंभ कर दिया. वहां घंटों बैठ कर पिताजी से बातें करता, फिर दोनों वापस घर आ जाते. विनय की मां भी बड़ी प्रसन्न थीं. विनय की बुद्धिमानी से पिताजी की हालत में सुधार हो रहा था.

एक दिन विनय के पिताजी ने प्रसन्न मन से कहा, ‘‘बेटा विनय, अब मैं बिलकुल स्वस्थ हो गया हूं. अब मुझे अपने काम पर जाना चाहिए.’’

विनय बोला, ‘‘नहीं पिताजी, पहले डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है.’’

पिताजी ने कहा, ‘‘चलो, तुम्हारी यह भी बात मान लेते हैं.’’

अगले दिन दोनों डाक्टर के पास पहुंचे. डाक्टर ने देखते ही कहा, ‘‘मुकुट बाबू, विश्वास कीजिए आप के स्वस्थ होने में मुझ से अधिक विनय का हाथ है, क्योंकि दवा से ज्यादा आप को स्वच्छ और ताजी हवा की आवश्यकता थी, जिस के बिना आप का ठीक हो पाना असंभव था. अब आप पूर्ण स्वस्थ हैं.’’

विनय यह जान कर कि पेड़पौधे हमारे जीवन का आधार हैं, दोगुने उत्साह से पेड़ों की देखभाल करने लगा ताकि घर में औक्सीजन प्रविष्ट हो. वातावरण प्रदूषण रहित हो और सभी स्वस्थ जीवन जी सकें.

फादर्स डे स्पेशल: त्याग की गाथा- भाग 1

साधना ने निगाहें अपनी और पति की तसवीर, जो ड्राइंगरूम में लगी थी, पर टिका टीं और कहा, ‘‘रज्जू.’’

‘‘हां, मां.’’

‘‘उन को,’’ संभल कर बोली साधना, ‘‘मेरा मतलब, अपने पापा को फोन तो किया. इस बार तो वह इधर दशहरा, दीवाली की छुट्टियों में भी नहीं आए. गरमी की छुट्टियों में भी नहीं आए. गरमी की छुट्टियां भी अब होने वाली हैं और तेरे पापा ने कई दिनों से फोन नहीं किया है. रज्जू, कहीं उन की तबीयत खराब न हो. मेरा दिल आजकल बहुत घबराने लगा है, बहुत… तुम मैसेज ही कर दो अपने पापा को…’’

रज्जू के देखने की मुद्रा से साधना एकाएक सकपका गई. लगा भी, बोलने से कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई, मैसेज भेजने भर की बात कहनी थी, फालतू बकवास की जरूरत क्या थी? मन की यह कमजोरी कब जाएगी? जाएगी कहां और जाएगी तो संभवत: मृत्यु के साथ. नारी के पास प्यार, स्नेह, ममता, त्यागनुमा कमजोरी के सिवा है भी क्या? इसी कमजोरी के बूते पर तो वह कठोर मानस के इनसान को मोम बनाती है और उस को भावनाओं के सांचे में ढालढाल कर संसार का निर्माण करती है.

मां के मन की व्यथा 20-21 वर्ष के रज्जू ने भांप ली थी. वह उस की सौतेली मां है तो क्या, प्यार, स्नेह, ममता तो सगी से भी बढ़ कर दिया है. उस के सारे दोस्त उस की मां से बहुत प्यार करते हैं, अपनी मांओं से भी ज्यादा. उस का हृदय पसीज उठा. बहुत ही व्यस्त था वह. उस का एमएससी फाइनल था, प्रोफैसर के यहां भी जाना था और…

रज्जू हंस कर बोला, ‘‘मां, आप पापा की चिंता में दिनरात घुलती रहती हैं. पापा कोई बच्चे हैं? मुझे तो लगता है मां, पापा हमें याद तक नहीं करते होंगे. कभी तो फोन कर सकते हैं. और आप क्यों नहीं मोबाइल लेती अपना. हमेशा मेरा या पापा का ही इस्तेमाल क्यों करती हैं.’’

साधना जबरन मुसकराते हुए बोली, ‘‘ऐसा नहीं है रज्जू, तेरे पापा किसी को नहीं भूलते. देखते नहीं, हर माह 5-6 तारीख को नियमित बैंक में पैसा ट्रांसफर हो जाता है. और हर मैसेज में नहीं लिखा होता कि ‘रज्जू, अपना, भाईबहन का खयाल रखना?’’

‘‘यह मन को समझाने के लिए ठीक है, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है, मां,’’ रज्जू ने इस बार भावुकता से कहा, ‘‘और मैं आप का क्या खयाल रखूंगा, मां. आप ही तो हमें मरखप कर संभालती रहती हैं. सौतेली मां को गालियां देने वालों से, कभीकभार कहने का मन होता है, कि देखें यहां आ कर मेरी मां को, जो अपना सर्वस्व होम कर, मुझे यह अहसास तक नहीं होने दे रही हैं कि मेरी जन्म देने वाली मां बचपन में ही मर गई थी.’’

रज्जू का मार्मिक कथन साधना के अंतस्थल को छू गया. बेटे को श्रद्धा और उस के इतने ऊंचे विचार सुन कर उस की आंखें भीग गईं. संसार में उस सा सुखी कौन होगा, जिस का बेटा इतना समझदार है, श्रद्धालु है और युवा है.

साधना कब श्रीकृष्ण शर्मा की जिंदगी में आई थी, यह पूरी बात उस ने रज्जू को 2 साल पहले ही बताई थी. उस के बाद तो रज्जू का प्रेम और बढ़ गया था. पर पिता पर भी जान छिड़कने लगा था. रज्जू और उस के छोटे भाईबहन को छोड़ कर उस की मां वर्ष 2005 में चली गई थीं. रज्जू 4 साल का था, छाया 3 साल की और सुरेंद्र मात्र 6 माह का. गनीमत है कि साधना मौसी साथ रहती थीं, जिन्होंने मां की तरह पाला. उस के पिता कभी मौसी के साथ एक कमरे में नहीं सोए और बड़े होने के बाद उस ने पूछा भी था, पर उसे यही बताया गया कि उन की असली मां की बीमारी के दौरान मौसी बच्चों को संभालने आई थीं और तब से बच्चों के कमरे में ही सोती रहीं. मां के चले जाने के बाद एक दिन भी तीनों को मां के प्यार की कमी नहीं हुई. 2 साल पहले मौसी, जिसे वह वर्षों से मां ही कहता था, पूरी बात बताई थी.

साधना का असली नाम सादिया था. वे अहमदाबाद की गुलबर्गा सोसायटी में रहते थे. वर्ष 2002 में दंगों के दौरान श्रीकृष्ण शर्मा एक नौकरी के इंटरव्यू के सिलसिले में अहमदाबाद गए थे. जब वे गुलबर्गा सोसायटी के सामने से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक हिंदू भीड़ ने गुलबर्गा सोसायटी पर हमला कर दिया. घरों से आढ़तियों, औरतों को घसीट कर निकाला जा रहा था. घरों को आग लगा दी गई. पुलिस फोर्स खड़ी थी, पर कुछ करने का नाटक कर रही थी, कर नहीं रही थी, तभी छिपतेछिपाते एक लड़की उस मकान के पास आ खड़ी हुई, जहां श्रीकृष्ण शर्मा खड़े थे. वह कंपकंपा रही थी.

हिंदू भीड़ ने ललकार कर कहा था कि ‘किसी को बच कर जाने न देना.’ श्रीकृष्ण शर्मा को समझ आ गया कि क्या मामला है. उन्होंने उस लड़की का हाथ पकड़ लिया और कान में फुसफुसा दिया कि उस से सट कर खड़ी रहो. 4 घंटे तक वह लड़की उन के साथ खड़ी सामने जलते मकानों को देखती रही. लाशें अब निकाली जा रही थीं.

श्रीकृष्ण ने पूछा कि उस का मकान कौन सा है. वह खुद ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते उस मकान तक पहुंचा और उस का हाथ पकड़े वह लड़की. वहां उस ने देखा कि 4-5 लाशें जली हुई थीं. वह लड़की रोने लगी, तो कुछ हिंदू दंगाइयों ने डांट कर श्रीकृष्ण को कहा, ‘अबे, अपनी माशूका को यहां क्या तमाशा दिखाने लाया है, भाग जा. बेकार में कमजोर लड़की लाशें देख कर रोने लगी है. ज्यादा देखेगी, ज्यादा रोएगी.’

श्रीकृष्ण उसे ले कर होटल तक चले आए. उन्होंने उसे बाहर खड़ा किया और सामान ले कर स्टेशन जाने के लिए आटो पकड़ लिया. वह लड़की अब भी उन का हाथ पकड़े हुए थी. स्टेशन पर उन्होंने इंदौर का टिकट लिया, जबकि उन का घर भोपाल में था. प्लेटफार्म सूना था, शहर में कर्फ्यू लग चुका था.

अहमदाबाद से इंदौर के रास्ते में उस लड़की ने बताया कि उस का नाम सादिया है और वह अब्बा, अम्मी और 3 बड़े भाइयों और 1 छोटी बहन के साथ रहती है. दंगाइयों ने उसे ही सब से पहले घसीटा था.

श्रीकृष्ण ने उस का मुंह बंद करते हुए कहा, ‘आगे की बात कभी किसी को न बताना. तुम मेरे साथ चलो और जो भी पूछे साधना नाम बताना. मैं कभी सद्दू कह दिया तो नाराज न होना,’ सादिया समझ गई थी कि अब इस के अलावा उस के पास चारा नहीं है. वह पढ़ीलिखी थी, पर अब बेसहारा थी.

इंदौर में 2 रोज होटल में दोनों रहे, ताकि सादिया साधना नाम से पहचान बना सके. श्रीकृष्ण शर्मा ने अपने एक दोस्त से उसी उम्र की एक लड़की का बर्थ सर्टिफिकेट कंप्यूटर पर बनवाया और उस में फर्जी हिंदू पिता और माता के नाम डलवाए और फिर आईकार्ड भी बनवाया. मां ने बताया कि पिता के अलावा केवल प्रभात अंकल इस बारे में जानते हैं, तो उस दिन के बाद से कभी घर नहीं आए कि कहीं कोई पोल न खुल जाए.

भोपाल वाले घर ला कर श्रीकृष्ण ने साधना को प्रभात की चचेरी बहन बताया, जो भोपाल में बीए में दाखिला लेने आई है. सुषमा उन दिनों बेहद बीमार थी, कैंसर की शिकार थी और अंतिम दिन थे. उस में ज्यादा पूछताछ की हिम्मत भी नहीं थी. उसे लगा कि चलो कुछ दिन तो बच्चों को सहारा मिल जाएगा. साधना के आने के 2 माह बाद ही सुषमा चल बसी और बच्चे साधना की गोदी में पलने लगे. जब राजेंद्र यानी रज्जू को यह बात पता चली तो वह पिता के प्रति भी नतमस्तक हो चला था और साधना के प्रति भी. दोनों ने कैसे एकदूसरे के लिए त्याग किया था और उन तीनों बच्चों को बोनस में असली मां से बढ़ कर मां मिली.

‘‘मैं सब समझता हूं, मां,’’ रज्जू ही बोला, ‘‘पापा चाहें तो हमें अपने साथ दिल्ली आराम से रख सकते हैं. क्या वहां परिवार सहित और लोग नहीं रहते, लेकिन मैं उन को बचपन से जानता हूं कि…’’

मैं 32 वर्षीय कामकाजी स्त्री हूं, पिछले कुछ दिनों से मुझे पीले रंग का पेशाब आता है और दर्द रहता है, क्या करूं?

सवाल
मैं 32 वर्षीय कामकाजी भारतीय स्त्री हूं और विदेश में रह रही हूं. पिछले महीने से पीठ में दर्द होता है. हर बार पेशाब का रंग अलगअलग होता है. कभी गहरा पीला, कभी हलका पीला, ज्यादातर गहरे लाल रंग का पेशाब निकलता है. डाक्टर ने गौल ब्लैडर में स्टोन होने की आशंका जाहिर की है. मैं ने ऐक्स रे करवाया और बाद में मुझे बताया गया कि स्टोन निकल गया है. अब पिछले कुछ दिनों से मुझे हलका दर्द रह रहा है और पीले रंग का पेशाब आता है. मैं दुविधा में हूं कि पता नहीं स्टोन अभी है या निकल गया है. बताएं क्या करूं?

जवाब
स्टोन का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी और सीटी केयूबी बेहतर विकल्प हैं. अगर स्टोन पाया गया तो स्थिति के अनुसार इलाज कराना ठीक रहेगा. ऐक्स रे से किडनी में मौजूद सभी स्टोन का पता नहीं चल पाता है.

ये भी पढ़ें-

राधा की योनि से लगातार 6 महीनों से स्राव होने के साथसाथ उस में खुजली होती रही. पति के साथ संबंध बनाते वक्त उसे दर्द होता. पेशाब करने के वक्त उसे परेशानी होती. उस ने डाक्टर से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि उसे ट्राइकोमोनियासिस बीमारी हो गई है. पढ़ेलिखे होने के बावजूद अधिकांश महिलाएं अपने प्रजनन अंगों की देखभाल के प्रति गंभीर नहीं होतीं.

स्त्रीपुरुषों में स्पष्ट शारीरिक भिन्नता होती है. स्त्रियों में प्रजनन अंगों का योनि, गर्भाशय व गर्भनली के माध्यम से सीधा संबंध होता है. पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध दोनों के जीवन का सुखकारी समय होता है. किंतु कई बार महिलाओं में प्रसव, मासिक धर्म व गर्भपात के समय भी संक्रमण होने का डर होता है.

ट्राइकोमोनियासिस का इलाज मैट्रोनीडाजोल नामक दवा से होता है जो खाई जाती है और जैल के रूप में लगाई भी जाती है लेकिन डाक्टर की सलाह पर ही दवा लें.

अशिक्षा, गरीबी, शर्म के कारणों से अकसर महिलाएं प्रजनन अंगों के रोगों का उपचार कराने में आनाकानी करती हैं. प्रजनन अंगों के संक्रमण से एड्स जैसा खतरनाक रोग भी हो सकता है.

कौपर टी लगवाने से भी प्रजनन अंगों में रोग के पनपने की आशंका रहती है.  ‘क्लामाइडिया’ रोग ट्राइकोमेटिस नामक जीवाणु से हो जाता है. यह रोग ‘मुख मैथुन’ और ‘गुदामैथुन’ से जल्दी फैलता है. कई बार इस बीमारी से संक्रमण गर्भाशय से होते हुए फेलोपियन ट्यूब तक फैल जाता है. इस में जलन होती है. समय पर उपचार नहीं होने पर एचआईवी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

गोनोरिया : यह रोग महिलाओं में सूजाक, नीसेरिया नामक जीवाणु से होता है. यह स्त्री के प्रजनन मार्ग के गीले क्षेत्र में आसानी से बढ़ी तेजी से बढ़ता है. इस के जीवाणु मुंह, गले, आंख में भी फैल जाते हैं. इस बीमारी में यौनस्राव में बदलाव होता है. पीले रंग का बदबूदार स्राव निकलता है. कई बार योनि से खून भी निकलता है.

गर्भवती महिला के लिए यह बहुत घातक रोग होता है. प्रसव के दौरान बच्चा जन्मनली से गुजरता है, ऐसे में मां के इस बीमारी से ग्रस्त होने पर बच्चा अंधा भी हो सकता है.

हर्पीज : यह रोग ‘हर्पीज सिंपलैक्स’ से ग्रसित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से होता है. इस में 2 प्रकार के वायरस होते हैं. कई बार इस रोग से ग्रसित स्त्रीपुरुष को मालूम ही नहीं पड़ता  कि उन्हें यह रोग है भी. यौन अंगों व गुदाक्षेत्र में खुजली, पानी भरे छोटेछोटे दाने, सिरदर्द, पीठदर्द, बारबार फ्लू होना आदि इस के लक्षण होते हैं.

सैप्सिस : यह रोग ‘टे्रपोनेमा पल्लिडम’ नामक जीवाणु से पैदा होता है. योनिमुख, योनि, गुदाद्वार में बिना खुजली के खरोंचें हो जाती हैं. महिलाओं को तो पता ही नहीं चलता है. पुरुषों में भी पेशाब करते वक्त जलन, खुजली, लिंग पर घाव, आदि समस्याएं हो जाती हैं.

हनीमून सिस्टाइटिस

नवविवाहिताओं में यूटीआई अति सामान्य है, इस को हनीमून सिस्टाइटिस भी कहते हैं. महिलाओं में मूत्र छिद्र योनिद्वार और मलद्वार के पास स्थित होता है. यहां से जीवाणु आसानी से मूत्र मार्ग में पहुंच कर संक्रमण कर सकते हैं. करीब 75 प्रतिशत महिलाओं में यूटीआई आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है. इस के अतिरिक्त अनेक अन्य प्रजाति के जीवाणु भी यूटीआई उत्पन्न कर सकते हैं.

मूत्रमार्ग का संक्रमण जिस को यूरीनरी ट्रैक्क इन्फैक्शन या यूटीआई कहते हैं, महिलाओं में मूत्र मार्ग की विशिष्ट संरचना के कारण अति सामान्य समस्या है. करीब 40 प्रतिशत महिलाएं इस से जीवन में कभी न कभी ग्रसित हो जाती हैं.

मूत्रद्वार में होने वाली जलन, खुजली अनेक कारणों से हो सकती है लेकिन लगभग 80 प्रतिशत में यह यौन संसर्ग के कारण होती है. अकसर संक्रमण होने पर यौन संबंध बनाने के करीब 24 घंटे बाद लक्षण शुरू हो जाते हैं. विवाह के तुरंत बाद अज्ञानता, हड़बड़ी इत्यादि कारणों से यूटीआई होने की संभावना ज्यादा रहती है.

अगर बात लक्षणों की करें तो यूटीआई होने पर बारबार पेशाब आता है, पर पेशाब कुछ बूंद ही होता है. मूत्र त्याग के समय जलन और कभीकभी दर्द होता है, मूत्र से दुर्गंध आती है, मूत्र का रंग धुंधला हो सकता है. कभीकभी खून मिलने के कारण पेशाब का रंग गुलाबी, लाल, भूरा हो सकता है.

यदि संक्रमण होने पर यौन संबंध बनाए जाते हैं तो जलन बढ़ सकती है. यदि उपचार नहीं किया जाता तो पीठ के निचले हिस्से में पीठदर्द हो सकता है, ज्वर हो सकता है. कुछ स्थितियों में संक्रमण मूत्राशय से ऊपर गुर्दों में पहुंच कर इन में संक्रमण कर सकता है.

बहरहाल, आप पूरी तरह से स्वस्थ तभी हैं जब अपने पार्टनर के संग सुरक्षित सैक्स करें और आप के प्रजनन अंग साफ व सुरक्षित रहें. इस के लिए जरूरी है कि आप अपने प्रजनन अंगों के बारे में जागरूक हों. उन में कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

Father’s Day 2023: नया साथी- पिता के अकेलेपन से क्यों परेशान हो गया आलोक?

कानपुर की चौड़ी सड़क पर आलोक की टैक्सी भाग रही थी. शायद आधे घंटे में वह अपने घर पहुंच जाएगा. आधा जागा शहर रात के 12 बजे भी. उसे लगता था जैसे यह जगार उस के स्वागत हेतु ही थी. आलोक 8 साल पहले इस शहर को छोड़ कर कनाडा जा बसा था. 1 साल पहले वह मां की मृत्यु के बाद जब यहां आया था तब भी यह शहर उसे ऐसा ही लगा था. आज भी सबकुछ उसी तरह है…सोचतेसोचते उस की टैक्सी घर के दरवाजे पर रुक गई.

पापा इमरजैंसी लाइट ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. पापा को आधी रात में यों खड़े देख आलोक की आंखें उमड़ आईं. सामान ले कर अंदर आ गया. पैर छुए तो पापा ने झुक कर उठाया और छाती से लगा लिया. अंधेरे में ही उसे आभास हुआ कि कोई स्त्री पापा के समीप खड़ी है. उस के हाथ में भी इमरजैंसी लाइट थी. शायद कोई रिश्तेदार होगी, वह यह सोच ही रहा था कि लाइट आ गई. पूरे उजाले में स्त्री को वह साफ देख पा रहा था. अभिवादन के लिए आलोक के हाथ उठ गए.

‘‘अरे, ये तो प्रीतो आंटी हैं,’’ चौंक पड़ा था.

अचानक पत्रों का वह सिलसिला याद आ गया, ताऊजी का वह पत्र- ‘आलोक, तेरा बाप न जाने किस आवारा विधवा को घर ले आया है. तेरी मां की मृत्यु को अभी साल ही हुआ है. क्या औरत के बिना वह रह नहीं सकता? थू है बुढ़ापे की ऐसी जवानी को. तू आ कर अपनी आंखों से बाप की करतूतों को देख ले.’

दूसरा पत्र – शिबू मामा का- ‘अरे, उस दो टके की आवारा सरदारनी को घर ले आया है तेरा बाप. उस की नजरें सिर्फ तेरे पिता की प्रौपर्टी पर हैं. आ कर संभाल अपने बाप और अपनी प्रौपर्टी, दोनों को.’ और भी कई रिश्तेदारों के पत्रों ने उस की रातों की नींदें उड़ा दी थीं. तभी तो वह भागाभागा इंडिया आया. ‘ओह, तो यही वह सरदारनी है जिस को ले कर पापा पर तोहमतों के टोकरे पलटे जा रहे हैं. यही स्त्री पापा के हितैषियों की आंख की किरकिरी बनी हुई है. ठीक है, सबकुछ समझना होगा,’ वह सोचता रहा.

‘‘बेटा, इधर आओ. वहीं पर खड़ेखड़े क्या सोच रहे हो?’’ पापा ने कहा तो वह अंदर के कमरे में गया.

पापा के आग्रह पर थोड़ा खापी कर वह मां के कमरे में पलंग पर पसर गया. ऐसा लगा जैसे वह मां के बिस्तर पर नहीं, उन के अंक में पसरा हुआ है. मां के तन की सुवास से लिपटा वह न जाने कब सो गया, उसे पता ही न लगा. बड़ी सुबह नींद खुली. वस्तुस्थिति को पहचानते हुए आलोक ने पास के कमरे से आती आवाजों पर कान लगा दिए. पापा व प्रीतो आंटी सिटिंगरूम में बातचीत कर रहे थे. ‘‘आलोक यहां बेवजह नहीं आया. जरूर कोई कारण है जो वह यहां आया है,’’ ये पापा थे, ‘‘जरूर वह मेरी परेशानियों को भांप गया है. आखिर है तो मेरा बेटा.’’

‘‘यह हो सकता है प्रोफैसर साहब कि आप के किसी रिश्तेदार ने उसे बुलाया हो?’’

‘‘हां प्रीतो जी, यह भी संभव है,’’ पापा को लगा प्रीतो आंटी का अंदाजा सही है.

‘‘देखा जाए तो मेरे यहां आ जाने से सब से ज्यादा परेशानी आप के रिश्तेदारों को हो रही है,  प्रोफैसर साहब,’’ प्रीतो आंटी ने कहा. उम्र और अनुभव के आधार पर यह सोच कितनी सही थी. प्रीतो आंटी और पापा दोनों की इस सोच पर आलोक मुसकरा पड़ा था. प्रीतो आंटी ने कहा, ‘‘यह जानना जरूरी है कि हम दोनों की इस नई सोच को ले कर बेटा क्या विचार रखता है.’’ पापा ने कहा, ‘‘देखो, बेटा मेरा बहुत समझदार है. फिर भी बिना बेटे की सम्मति के मैं आप के साथ संबंध न बना पाऊंगा. मेरे जीवन में वही मेरा एकमात्र मित्र, हितैषी व सलाहकार है. वैसे तो अपने किसी भी निर्णय में मैं किसी की टोकाटाकी पसंद नहीं करता किंतु इस निर्णय पर बेटे की मुहर जरूरी है.’’ पापा के इस निर्णय ने आलोक को गर्व से भर दिया था. उस के पिता के लिए पुत्र की क्या कीमत है, यह जान कर वह अति प्रसन्न था. वैसे आलोक, पूर्वानुमान के अनुसार इस संबंध में काफी होमवर्क कर के चला था.

वह बिस्तर पर लेटालेटा सोच रहा था, ‘कनाडा में मिस्टर सेन, जो उस के मकानमालिक थे, ने 8 महीने पहले पत्नी को खोया था. घर में निपट अकेले मिस्टर सेन, सारा दिन चुपचाप बरामदे में कुरसी डाल कर बैठे सामने के पार्क में खेलने वाले बच्चों को देख कर दिन बिताते थे. उन के दोनों बेटे शहर में थे किंतु उन से मिलने कोई न आता. मिस्टर सेन को यों बैठे देख आलोक को इंडिया में रह रहे अपने पिता का खयाल आता- ‘पापा भी शायद ऐसे ही बेहद उदास व अकेले दिन काटते होंगे. उन से कौन मिलने आता होगा?’ इस सर्द दर्द को वह अंदर ही अंदर पीता था. सोचता, ‘पापा के दर्द को, अकेलेपन को दूर करने का रास्ता कैसे खोजूं?’ प्रीतो आंटी और पापा अभी भी बातें कर रहे थे- ‘‘आप सच कहते हैं, प्रोफैसर साहब. आलोक 10 वर्ष से कनाडा में रह रहा है, वहां भी बूढ़ों को ले कर समस्याएं जरूर होंगी. सुना है वहां तो ओल्डएज होम हैं. जवान बच्चे अपने बूढ़े मांबाप को वहां भेज देते हैं. वे अपनी फैमिली में कोई खलल नहीं चाहते.’’

‘‘उफ, बड़ी दयनीय स्थिति होती है वहां बूढ़ों की,’’ पापा ने लंबी सांस खींची थी.

यह सुन कर आलोक को लगा कि पापा ठीक कहते हैं. यही सच है. किंतु प्रीतो आंटी पापा के संपर्क में कैसे आईं? और क्यों? यह जानना जरूरी है. काफी तो जान लिया लेकिन अब प्रीतो आंटी के बारे में जानना है. वैसे, जितना वह जानता है उस दृष्टि से प्रीतो आंटी एक बेहद सुलझी, समझदार स्त्री हैं. उन के पति पापा के साथ कालेज में प्रोफैसर थे. शादी के 10 वर्ष तक बच्चे नहीं हुए. अपने भतीजों को ही अपने बच्चों की तरह पाला. इस महल्ले के सारे बच्चे उन से ट्यूशंस पढ़ते थे. आलोक ने भी उन से मैथ्स पढ़ी थी. महल्ले के सारे लोग उन की इज्जत करते थे. सुना था, 2 वर्ष पूर्व उन के पति की अचानक मृत्यु हो गई थी. इस के बाद क्या हुआ, नहीं पता. वैसे उन का संयुक्त परिवार था. वह जानता था कि पापा के प्रीतो आंटी को ले कर ऐसा कुछ भी न किया होगा जिस से समाज के सामने लज्जित होना पड़े. वह अपने पापा को बचपन से जानता है. हां, समाज विरोधी व स्त्री विरोधी व्यक्तियों से वे हमेशा दूर रहते हैं. फ्रैश हो कर आलोक अपने पिता के पास आ बैठा. वैसे भी उसे भूख लगी थी, बिना झिझक आंटी से बोला, ‘‘आंटी, मुझे आलू के परांठे और लस्सी चाहिए,’’  आंटी के किचन की तरफ जाते ही उस ने पापा से पूछा, ‘‘ये आंटी से आप की मुलाकात कैसे हुई?’’

‘‘हुआ यह था कि 22 दिसंबर को रात 10 बजे मैं कालेज के किसी जलसे से लौट रहा था. रोड पर अंधेरा था. मुझे लगा कि कुछ लोग किसी महिला को पीट कर सड़क पर छोड़ गए हैं. गाड़ी की हैडलाइट में दिखा कि महिला या तो बेहोश थी या फिर खत्म हो गई थी. मैं ने देर न की, उसे गाड़ी में डाल कर हौस्पिटल ले गया. मैं प्रीतो जी को पहचानता था. इसीलिए मैं ने उन के घर पर फोन किया तो जवाब आया, ‘प्रीतो तो मर गई.’ फिर भला कौन बताता कि उन के साथ क्या गुजरी है.  प्रीतो तो बताने को तैयार ही न थी. ‘‘मैं संकट में पड़ गया. हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के समय उन्होंने हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा, ‘मैं तो दुनिया के लिए मर चुकी हूं. आप मुझे किसी विधवा आश्रम या वृद्धाश्रम में छोड़ दें,’’’ यह बात सुनातेसुनाते पापा की आंखें भर आईं. वे आगे बोले, ‘‘बाद में, मैं ने निश्चय किया कि किसी मजबूर स्त्री को नरक में ढकेलने से अच्छा है कि उसे अपनी शरण में ले लूं.

‘‘धीरेधीरे प्रीतो जी ने बताया, ‘हमारा संयुक्त परिवार था. बड़ेबूढ़ों की मृत्यु हो गई और जवान लड़के जिन को मैं ने बचपन में पालापोसा था, पैसेप्रौपर्टी के पीछे एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उस दिन मुझे मारपीट कर सड़क पर फेंक गए. उन्होंने सोचा, शायद मैं मर गई हूं. आप न होते तो शायद गाड़ी के नीचे आ कर क्या होता, पता नहीं…’ यह है प्रीतो के जीवन का सच. बोलो बेटा, तुम क्या कहते हो?’’ आलोक शांत था. कुछ सोच कर बोलना शुरू किया, ‘‘पापा, आप ने जो किया वह एकदम सही किया. ठीक किया जो आप ने शरणागत को सहारा दिया. मुझे याद है, बचपन में आप कहानियों के द्वारा बताते थे कि अमर्यादित लोग भ्रष्ट होते हैं. वे छलकपट कर के कुछ समय का सुख पा लेते हैं. किंतु वही भ्रष्टता एक दिन उन को नष्ट कर देती है. दूसरी ओर मर्यादित लोग समाज में हर अत्याचार का विरोध करते हैं. स्त्री अत्याचार के विरोध में  हमारा समाज सदा ही साथ खड़ा रहा है.

‘‘आप ने प्रीतो आंटी को सहारा दे कर एक नेक काम किया है. आप ने कोई दुराचार नहीं किया. बदलते सामाजिक परिवेश के अनुसार जरूरत पड़ने पर परिवर्तन लाना जरूरी है. ‘टूटते संयुक्त परिवार के कारण आज बूढ़ों की दुर्दशा देखी नहीं जाती. यदि आप दोनों साथ रह कर एकदूसरे के दुखसुख में साथ देना चाहते हैं तो इस में समाज को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह तो इस उम्र की एक ज्वलंत समस्या का बड़ा सरल व मधुर तरीका है.’’

आलोक खुश था, ‘‘पापा, मैं आप को ले कर कनाडा में बहुत दुखी रहता हूं पर अब प्रीतो आंटी का साथ होगा तो मुझे भी चिंता न होगी.’’ उस ने आहट पा कर पीछे देखा, प्रीतो आंटी मुसकरा कर आलू के परांठे और लस्सी की ट्रे लिए खड़ी थीं.

पापा ने भी खुशी में कहा, ‘‘अरे, मेरे परांठे…आज तो नई भोर हुई है, पार्टी तो बनती है,’’ और तीनों हंस पड़े.

अदरक-नींबू से यूं बढ़ाएं इम्यूनिटी

भयानक महामारी कोरोना वायरस के चलते उचित पोषण और जल महत्त्वपूर्ण हैं. ऐसे समय में मनुष्य के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है. संतुलित आहार प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और पुरानी बीमारियों और संक्रामक रोगों के जोखिम को कम करता है, इसलिए अपने भोजन में आवश्यक विटामिन, खनिज आहार, फाइबर, प्रोटीन और एंटीऔक्सिडैंट की भरपूर मात्रा सुनिश्चित करें. इस के लिए प्रतिदिन कई तरह के ताजे और असंसाधित खाद्य पदार्थों का सेवन करें. पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं. अधिक वजन, मोटापा, हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और कुछ प्रकार के कैंसर के खतरे को कम करने के लिए चीनी, वसा और नमक से बचें. अदरक का उपयोग ताजा सूखे पाउडर या तेल या रस के रूप में किया जा सकता है. कभीकभी इसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और सौंदर्य प्रसाधन में जोड़ा जाता है. यह व्यंजनों में एक बहुत ही सामान्य घटक है. अदरक की अनोखी खुशबू और स्वाद इस के प्राकृतिक तेलों से आता है.

अदरक में मुख्य जैव सक्रिय यौगिक है जो इस के औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार है. यह शक्तिशाली विरोधी एंटीऔक्सिडैंट है. अदरक में बायोऐक्टिव पदार्थ संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है. वास्तव में अदरक का अर्क कई अलगअलग प्रकार के बैक्टीरिया के विकास को रोक सकता है. ताजा अदरक भी वायरस के खिलाफ प्रभावी हो सकता है. यह श्वसन संक्रमण को रोक सकता है. नीबू विटामिन सी से भरपूर नीबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है. इस के रस में साइट्रिक एसिड सब से प्रमुख स्रोत था. आमतौर पर नीबू में विटामिन ए, बी और सी की भरपूर मात्रा है. विटामिन ए अगर एक भाग है, तो विटामिन बी 2 भाग और विटामिन सी 3 भाग. इस में पोटैशियम, लोहा, सोडियम मैगनीशियम, तांबा, फास्फोरस और क्लोरीन तत्त्व तो हैं ही, प्रोटीन, वसा और कार्बोज भी पर्याप्त मात्रा में हैं. विटामिन सी से भरपूर नीबू शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही एंटीऔक्सीडैंट का काम भी करता है.

नीबू में मौजूद विटामिन सी और पोटैशियम घुलनशील होते हैं, जिस के कारण ज्यादा मात्रा में इस का सेवन भी नुकसानदायक नहीं होता. नीबू का सेवन करने से जुकाम भी दूर सकता है. एक नीबू दिनभर की विटामिन सी की जरूरत पूरी कर देता है. नीबू का रस ठंड से बचाता है नीबू का रस बुखार को कम करने और सर्दी और फ्लू को नियंत्रित करने के लिए राहत देता है. बुखार के रोगियों के मामले में नीबू पसीने को बढ़ा कर शरीर के तापमान को कम करता है. बुखार को बढ़ावा देने के लिए नीबू बहुत मददगार है. प्रत्येक 2 घंटे के बाद कुनकुना नीबू पानी (एक गिलास पानी में 1 चम्मच नीबू) पीने का सुझाव दिया गया है. जब नीबू को गरम पानी के साथ शहद के साथ मिलाया जाता है, तो खांसी और सर्दी को ठीक करने में एक उपयोगी घरेलू उपाय है. खराश के लिए नीबू पानी गले में खराश की समस्या के लिए नीबू के पानी से गरारा करना चाहिए. नीबू पानी से गरारा करने के लिए आधे नीबू को एक गिलास पानी में लेने का सुझाव दिया जाता है. हालांकि नियमित रूप से गरारे करने से बचना चाहिए नीबू इम्यून सिस्टम को बूस्ट करता है नीबू विटामिन सी से भरपूर होता है और सर्दी और खांसी से लड़ने में बेहद मददगार होता है.

नीबू में कई फाइटोकैमिकल्स होते हैं, जैसे हेस्पेरेटिन और नारिंगिनिन. ये एंटीऔक्सीडैंट होते हैं और शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्र को बेहतर बनाने में मदद करते हैं. नीबू का रस इम्यून सिस्टम को मजबूत कर के कैंसर से भी लड़ता है. नीबू एंटीबैक्टीरियल एंटीवायरल की तरह काम करता है. नीबू के तत्त्व जैसे साइट्रिक एसिड, मैगनीशियम, कैल्शियम, लिमोनेन, पैक्टिन, विटामिन सी, बायोफ्लेवोनाइड्स और फाइटोकैमिकल्स प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं. नीबूअदरक शरबत आवश्यक सामग्री : ताजा नींबू का रस 500 मिलीलिटर, अदरक का रस 100 मिलीलिटर, चीनी स्वादानुसार, पानी 500 मिलीलिटर. विधि : ताजा नीबू को धो कर साफ कर लें. स्टील के बरतन में नीबू का रस निकाल कर छान लें. एक भगोने में पानी डाल कर थोड़ाथोड़ा कर के चीनी डालते जाएं. चीनी को एक तार की चाशनी बनाने पर ठंडा करें. ठंडा होने पर मलमल के कपड़े से छान कर रख दें. वहीं दूसरी ओर चाशनी में नीबू का रस और अदरक का रस डालें और अच्छी तरह से मिलाएं. अब साफसुथरी बोतल में भर कर ढक्कन ढंग से बंद कर के रखें. इस ड्रिंक को रोजाना पीने से प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है.

लेखक- रूपेंद्र कौर, सुनील कुमार, सुशील कुमार शर्मा और पीके राय

हार्ट अटैक के बाद सुष्मिता सेन ने खुद बुलाया था डॉक्टर, भाभी ने किया खुलासा

सुष्मिता सेन इन दिनों लगातार सोशल मीडिया पर चर्चा में बनी हुई हैं, हाल ही में सुष्मिता सेन अपने इंस्टा पोस्ट को लेकर सुर्खियों में थीं, इसके बाद से सुष्मिता सेन के फैंस को बहुत बड़ा झटका लगा था.

बता दें कि सुष्मिता सेन हार्ट अटैक के बाद से अपने डॉक्टर को खुद ही फोन करके बुलाया था, इस बात की जानकारी चारु ओसापा ने सोशल मीडिया पर दिया है. बता दें कि चारु ने बताया कि सुष्मिता एक स्टॉंग लेडी है. उन्होंने ये साबित कर दिया है कि वह हर कंडिशन को अच्छे से फेस कर सकती हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sushmita Sen (@sushmitasen47)

बता दें कि हार्ट अटैक के दौरान सुष्मिता सेन आर्या 3 की शूटिंग में व्यस्त थीं, चारू ने बोला कि दीदी ने इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया , जब बाद में मुझे पता चला तो मैंने अपनी सास को कॉल करके बताया उन्हें.

खैर अगर बात करें चारु असोपा की तो वह इन दिनों अपने पति राजीव सेन से अलग रह रही हैं, चारू और राजीव का इस महीने तलाक होने वाला है. इन दोनों की एक छोटी सी बेटी है.

कृति सेनन ने किस कंट्रोवर्सी के बाद शेयर किया पोस्ट,बताई सच्चाई

कृति सेनन इन दिनों अपनी फिल्म को लेकर सुर्खियों में छाई हुई हैं, कृति ने हाल ही में अपने डॉयरेक्टर के साथ तिरुपति बाला जी दर्शन के लिए पहुंची थीं, जहां पर उन्होंने अपने फिल्म के डॉयरेक्टर के साथ जाकर दर्शन किया. इस दौरान फिल्म के डॉयरेक्टर ने विदाई करते हुए उनके गालों पर किस किया जिसके बाद से लगातार विवाद बढ़ गया है.

कृति सेनन ने विवाद के बाद से इंस्टा पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है ग्रेटिट्यूड, जिस पोस्ट को देखते हुए फैंस उनकी लगातार तारीफ कर रहे हैं. बता दें कि यह फिल्म सिनेमा घर में आने से पहले चर्चा में बना हुआ है, इस फिल्म को देखने के लिए फैंस काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रहे हैं. फैंस का कहना है कि यह फिल्म जल्द से जल्द सिनेमा घर में आए.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Kriti (@kritisanon)

इस फिल्म में प्रभास और कृति की जोड़ी को खूब पसंद किया जा रहा है, प्रभास और कृति को लेकर यह भी बात हो रहा है कि जल्द दोनों शादी करने वाले हैं. हालांकि इन दोनों ने इस विषय पर कुछ नहीं बोला है. प्रभास और कृति की जोड़ी लोगों को खूब पसंद आ रही हैं.

खैर कुछ वक्त में पता चल जाएगा कि दोनों शादी करने वाले है या नहीं.

जीत की गारंटी नहीं नया संसद भवन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारों करोड़ से बने नए संसद भवन का धार्मिक तामझामों से उद्घाटन तो कर दिया पर उन्होंने जो भवन तैयार किया है वह वैसा ही है जैसा पुराना संसद भवन, जो पूरे देश की एक आवाज था, एक चाहत था, एक लगाव था. नया भवन एक आशा का, एक विश्वास का प्रतिनिधित्व नहीं करता, फिलहाल अभी ऐसा प्रतीत होता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिद कर खुद इस भवन का उद्घाटन कर के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपमानित करने के साथ इस नए भवन का दिल निकाल लिया और इसे एक पार्टी का, एक सोच का, एक कट्टरपंथी का प्रतीक बना डाला है.

पुराना संसद भवन पुराना हो गया है, इसलिए नए की जरूरत थी, यह सच नहीं है. जिस देश में सैकड़ों साल पुराने बने भवन ठाठ से सिर उठाए खड़े हैं, वहां आधुनिक तकनीक से बना गोल संसद भवन खंडहर हो रहा था, यह कोई मानने को तैयार नहीं है. जब वह संसद भवन बन रहा था तब कनाट प्लेस भी बन रहा था और उस के भवन आज भी वैसे ही हैं जबकि वे निजी पैसों से बने थे.

नरेंद्र मोदी ने जिद कर के नया संसद भवन बनवा लिया. पर उन की इस जिद कि उस का उद्घाटन वही करेगा जो संवैधानिक पदों की वरिष्ठता में नंबर 3 पर है यानी वे खुद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद,  से नारज हो कर 20 विरोधी दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर सही किया है. यह एक पार्टी का चुनावी जीत का प्रतीक है. वहीं, जैसे पुराने संसद भवन ने अंगरेजी राज के चलने की गारंटी नहीं दी थी, नया संसद भवन कैसा भी हो, उद्घाटन करने वालों को कोई गारंटी नहीं देता. यह कोई मुगलकालीन भवन नहीं जिसे बनाने वालों की कई पीढिय़ों ने इस्तेमाल किया था.

काम करने के लिए नए भवन बनें, इस पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती है पर उन्हें पौराणिक स्वरूप दिया जाए, हवनों से उन का आरंभ किया जाए, पंडितों को बुलाया जाए, यह गलत है. पौराणिक काल में इंद्रप्रस्थ में पांडवों का बनाया महल उन के पास ज्यादा दिन नहीं रहा था जहां द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उड़ाया था. पांडवों को उस के बाद जंगलों में भटकना पड़ा था और फिर जब वे जीते तो अपने चचेरे भाइयों, भतीजों को मरवा कर तो जीते ही, अपने परिवार के भी हरेक जने को मरवा डाला था. और उन्हें हिमालय में जा कर आत्महत्या सी करनी पड़ी थी.

रावण को भी स्वर्ण लंका ज्यादा बड़ा स्थायित्व स्वामित्व नहीं दे पाया था. पहले उस पर हनुमान ने उत्पाद मचाया था, फिर वह विरोधी भाई विभीषण के हाथों में चला गया. पौराणिक काल की कहानियों में भी भवन बनाने वालों की निंरतर सफलता की गारंटी नहीं रही, हालांकि, उन भवनों के कोई सुतून आज तक नहीं मिले हैं.

नया संसद भवन पूरे देश का भवन होना चाहिए था. मोदी के अहं व उन की जिद के कारण 50 फीसदी वोट पाने वाली पार्टियां व उम्मीदवार इस में साझीदार न हों, यह खेद की बात है. यह पूरा भवन अभी तो सिर्फ भाजपा और उस के मित्रों का भावनात्मक बन कर रह गया है. संवैधानिक आत्मा इस के गलियारों में फिलहाल तो खो गई है. जो टीस उस का उद्घाटन समारोह छोड़ कर जा रही है, वह लंबे समय तक देश की राजनीति को ही नहीं, समाज को भी प्रभावित करेगी.

सोवियत रूस के जमाने में रूस व जबरन कब्जा किए आसपास के देशों में बहुत से विशाल भवन सोवियत स्टाइल में बने थे. आज वे खंडहर हो गए हैं. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर उसे पुनर्जीवित करने की कोशिश की पर उन का 3 दिन के युद्ध का वादा 300 दिन कब का पार कर चुका है. सोवियत भवनों से चल रहे रूसी कार्यालय दुनिया तो छोडि़ए, रूसियों पर भी कोई छाप नहीं छोड़ पाए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें