प्राचीन समय से अब तक सोना खरीदने के पीछे आम धारणा यह है कि एक तो जेवर बन जाएगा, साथ ही, बुरे वक्त पर उसे बेच कर पैसा भी मिल जाएगा. इस तरह शुरू से ले कर अभी तक पैसों की बचत सोने के रूप में की जाती थी. यह गलत भी नहीं, क्योंकि गोल्ड पर निवेश कई तरह के लाभ पहुंचाने में मदद करता है.

जैसे, इस से महंगाई से बचाव होता है, क्योंकि सोना मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करता है. जब महंगाई बढ़ती है तो करैंसी की कीमत घटती है. कुछ सालों से सोने का वार्षिक लाभ मुद्रास्फीति की तुलना में ज्यादा रहा है. बहुत बार शेयरों में गिरावट के समय सोने की कीमत में इजाफा आता है.

वहीं यह परिवार के आर्थिक संकट में काम आता है. आर्थिक संकट में परिवार सोने को गिरवी रखते हैं या बेचते हैं. इसी तरह इस के डिजिटल खतरे कम होते हैं क्योंकि इसे हैक नहीं किया जा सकता. इसे कभी भी बेचाखरीदा जा सकता है. यही कारण है कि लोग सोने को अपने बुरे वक्त का साथी मानते हैं और सोने को आमतौर पर ज्वैलरी के रूप में सहेज कर रखते हैं.

जनमानस की इसी धारणा का लाभ उठा कर आज के दौर में बाजार कई तरह के विकल्प मुहैया कराने लगा है. इन्हीं में से आजकल ज्वैलर्स की गोल्ड स्कीम्स काफी चर्चा में है. इस में टुकड़ों निवेश कर आप जेवर खरीद सकते हैं. पहली नजर में ये स्कीम आकर्षक लगती हैं लेकिन इन की कुछ सीमाएं हैं जिन का ध्यान रखना जरूरी है.

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