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अब और नहीं: क्या दीपमाला मन में दबी चिंगारी बुझा सकी?

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मैं नौकरी के सिलसिले में अमेरिका जाना चाहता हूं पर मेरी पत्नी मना कर रही है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं और मेरी पत्नी नोएडा की बड़ी इंटरनैशनल कंपनियों में नौकरी करते हैं. पत्नी प्रोडक्ट मैनेजर  की पोस्ट पर है और मैं प्रोडक्शन इंजीनियर की. हम दोनों की अब तक कोई संतान नहीं है. पत्नी की उम्र 32 वर्ष और मेरी 36 वर्ष. असल में हम दोनों ने अपना फर्टिलिटी टैस्ट कराया था जिस से पता चला कि मेरी पत्नी इंफर्टाइल है.

आईवीएफ, सैरोगेसी या बच्चा गोद लेने के विषय में सोचसमझकर आपसी सहमति से हम ने फैसला कर लिया था कि हमें बच्चा नहीं चाहिए. हम दोनों ही अगले महीने मेरी नौकरी के सिलसिले में 3 वर्षों के लिए अमेरिका के लिए निकलने वाले थे. लेकिन, हुआ यह कि मेरी पत्नी को एक सहेली के बच्चे को देख एक बार फिर खुद के बच्चे की इच्छा होने लगी है.

मैंने उसे बस इतना भर कहा था कि अगर हम अमेरिका नहीं गए तो मेरी नौकरी भी जा सकती है. उस ने मेरी बात का जाने कौन सा मतलब निकाला पर अमेरिका जाने से साफ इंकार कर दिया. अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि किस पर फोकस करूं, हर महीने लाखों देने वाली नौकरी पर या अपनी बीवी पर.

जवाब

यह स्थिति सचमुच दुविधापूर्ण है. आप और आप की पत्नी इंफर्टिलिटी ट्रीटमैंट की सहायता ले सकते हैं लेकिन उस प्रोसैस में बहुत समय लगेगा. आप को अमेरिका के लिए इसी महीने निकलना है जोकि ट्रीटमैंट के चलते संभव नहीं हो पाएगा. आप यह कर सकते हैं कि अपनी पत्नी को उस के मातापिता या अपने मातापिता के पास छोड़ कर अमेरिका चले जाएं.

आप टैस्ट्स के लिए साथ जाएं, प्रोसैस शुरू कराएं. अपनी पत्नी को सम झाएं कि इंफर्टिलिटी ट्रीटमैंट में लाखों का खर्च आता है जिस के लिए आप दोनों में से किसी को तो अपनी नौकरी करते रहना ही होगा. हां, हो सके तो कोशिश करिए कि आप अपनी नौकरी भारत में रह कर ही जारी रख सकें. पैसे तो आप कहीं भी रह कर कमा सकते हैं. इस ट्रीटमैंट में आप की पत्नी को आप के साथ और सपोर्ट की बेहद जरूरत है. ठंडे दिमाग से सोच कर फैसला लीजिए.

ट्रायल पीरियड रिव्यू : मानव कौल व जेनेलिया देशमुख के बेहतरीन अभिनय के बावजूद कमजोर फिल्म

रेटिंग : पांच में से दो स्टार

निर्माता : ज्योति देशपांडे, हेमंत भंडारी, अमित रवींद्रनाथ शर्मा और अलेया सेन

कहानी : अलेया सेन

पटकथा : कुंवरशिव सिंह और अक्षत त्रिवेदी

निर्देशक : अलेया सेन

कलाकार : जेनेलिया देशमुख, मानव कौल, गजराज राव, शक्ति कपूर, शीबा चड्ढा, स्वरूपा घोष, बरुण चंदा और जिदान ब्राज

अवधि : 2 घंटे, 5 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म : जियो सिनेमा

कई एड फिल्मों, कुछ म्यूजिक वीडियो का निर्देशन करने के बाद आलिया सेन ने वर्ष 2018 में फीचर फिल्म ‘‘दिलजंगली’ का निर्देशन किया था. अब पूरे 5 वर्ष बाद वह बतौर निर्देशक फिल्म ‘ट्रायल पीरियड’ ले कर आई हैं, जिसे 21 जुलाई, 2023 से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जियो सिनेमा’’ पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

फिल्म ‘ट्रायल पीरियड’ की कहानी एक सिंगल मदर की तकलीफों के साथ ही ‘ट्रायल’ पर नए पापा को लाने की है. यह फिल्म इस बात को रेखांकित करती है कि खून के रिश्तों से भी ज्यादा अहमियत भावनात्मक रिश्तों की होती है.

कहानी

कहानी के केंद्र में सिंगल मदर अनामया राय चौधरी उर्फ ऐना (जेनेलिया देशमुख) और उन का 6 साल का बेटा रोमी (जिदान ब्राज) है. कामकाजी ऐना और उन बेटे का जीवन सामान्य रूप से चल रहा है. लेकिन चीजें तब बदलती हैं, जब रोमी की जिद के चलते ऐना को उस के लिए 30 दिन के ट्रायल पर ‘नए पापा’ लाना पड़ता है. लेकिन रोमी को अपने पिता की याद तब आती है, जब उस के सहपाठी उसे परेशान करते हैं.

मंच पर रोमी को अपने पिता के बारे में कुछ कहने के लिए कहा जाता है, क्योंकि वह कुछ भी कहने में असमर्थ होता है. रोमी टूट जाता है और बाद में पिता की मांग करता है.

रोमी अकसर अपने पड़ोस में मामाजी (शक्ति कपूर) और मामी (शीबा चड्ढा) के घर जाता है, जिन्हें ट्रायल के आधार पर सामान औनलाइन और्डर करते देखता है. लेकिन उस 6 साल के बच्चे के दिमाग में ट्रायल पीरियड पर औनलाइन और्डर और इनसानों के बीच अंतर समझना थोड़ा मुश्किल था. उधर प्रजापति द्विवेदी यानी पीडी (मानव कौल) उज्जैन में एक शिक्षक हैं. नौकरी छूट जाने के बाद वह अपना बोरियाबिस्तर बांध कर अपने फूफा श्रीवास्तव (गजराज राव) के पास दिल्ली आते हैं, जो कि लोगों को नौकरी दिलाने की एजेंसी चलाते हैं.

काफी जद्दोजेहद के बाद रोमी के मामा अपने मित्र श्रीवास्तव से मिल कर अपनी समस्या बताते हैं, तो श्रीवास्तव अपने भतीजे प्रजापति द्विवेदी उर्फ पीडी (मानव कौल) को समझा कर ऐना के घर 30 दिन के लिए रोमा के ‘नए पापा’ बना कर भेज देते हैं. यहीं से शुरू होती है चुनौती.

वास्तव में ऐना पीडी के सामने शर्त रखती है कि रोमी के साथ उसे ऐसे पेश आना है, ताकि उसे पिता शब्द से नफरत हो जाए.

न चाहते हुए भी अपने फूफा के दबाव में पीडी ऐना के बेटे रोमी के ‘ट्रायल पापा’ बन जाते हैं. मगर रोमी की मां ऐना और पीडी के बीच एक अलग तरह का युद्ध जारी रहता है. पीडी रोमी के अंदर के डर को खत्म कर उस के अंदर ताकत का संचार करते हैं.

लेखन व निर्देशन

फिल्मकार ने नेक इरादे से फिल्म बनाई है, मगर विषय की गंभीर समझ न होने के चलते वह मात खा गई. फिल्मकार ने पारिवारिक मूल्यों के साथ ही रिश्तों को सुचारु रूप से चित्रित किया है. कामकाजी मां और सिंगल मदर की अपनी तकलीफों पर वह ठीक से रोशनी नहीं डाल पाई. इतना ही नहीं, सिंगल मदर ऐना व उन के बेटे रोमी के बीच भावनात्मक रिश्तों को भी ठीक से चित्रित नहीं किया गया.

इस तरह के विषय पर काफी बेहतरीन व रोचक फिल्म बन सकती थी, पर अलेया सेन मात खा गईं. जब दो अजनबी विचित्र परिस्थितियों में मिलते हैं और एक बंधन बनाते हैं, तब कहानी सपाट कैसे चल सकती है?

उन्होनें एक ही दिशा में चलने वाली सपाट कहानी पेश की है. इस तरह के रिश्तों की जटिलता का भी वह चित्रण ठीक से नहीं कर पाईं. फिल्म में भावनात्मक उतारचढ़ाव की काफी कमी है. पीडी रोमी के पिता बन कर स्कूल में उस का जीवन बदलना शुरू कर देते हैं. वह छोटे लड़के को अपने डर पर काबू पाने में मदद करते हैं और एक दिन वह वही ताकत उस की मां के अंदर भी पैदा करते हैं. पर ऐना व पीडी के रिश्तों पर लेखक ने न के बराबर काम किया है.
जिस तरह से महज दो दृश्यों से दोनों के बीच प्यार के पनपने का चित्रण है, वह बड़ा अजीब सा लगता है.

रोमी के नानानानी के आने के बाद कहानी में जिस नाटकीयता की उम्मीद जगती है, वह उतनी ही जल्दी खत्म हो जाती है. फिल्म के एडीटर इस फिल्म की कमजोर कड़ी हैं. कई दृश्यों में दोहराव नजर आता है.

अभिनय

रितेश देशमुख के साथ विवाह रचाने के बाद जेनेलिया देशमुख कुछ मराठी फिल्मों में अभिनय करती नजर आईं. हिंदी फिल्मों में लंबे समय के बाद उन्होंने वापसी की है. सिंगल मदर के साथ ही दूसरे जीवनसाथी की तलाश न करने वाली मूलतः बंगाली ऐना के किरदार में वह अपनी छाप छोड़ने में सफल रही हैं.

वर्ष 2003 से अब तक कई सीरियलों और फिल्मों में अभिनय करते हुए मानव कौल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. अब इस फिल्म में छोटे शहर उज्जैन के रहने वाले और पारिवारिक मूल्यों पर गर्व करने वाले पीडी के किरदार में मानव कौल के अभिनय का कोई सानी नहीं है. उन के अभिनय की तारीफ करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं. मानव ने अपने किरदार में हर एक इमोशन को बखूबी ढाला है.

रोमी यानी जिदान ब्राज की मासूमियत दिल को छू जाती है. शक्ति कपूर, शीबा चड्ढा, गजराज राव और अन्य सभी कलाकारों ने ठीकठाक अभिनय किया है.

क्या ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद ‘मणिपुर फाइल्स’ बनाएंगे Vivek Agnihotri ?

Vivek Agnihotri Tweet : पिछले दो महीनों से मणिपुर में हिंसा चल रही है. यहां कुकी और मेतई समुदाय के बीच जन-जातीय दर्जा को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, तो वहीं 50 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. हालांकि इस बीच सोशल मीडिया पर दरिंदगी का एक भयानक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें दिख रहा है कि भीड़ में मौजूद वाहियात दरिंदे निर्वस्त्र अवस्था में दो रोती बिलखती, असहाय महिलाओं की परेड करवा रहे हैं और कथित रूप से उनका बलात्कार भी किया गया था. यहीं नहीं भीड़ (manipur incident) में शामिल पुरुष उनके साथ अमानवीय व्यवहार भी कर रहे हैं. इसको लेकर सोशल मीडिया पर लोग अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं.

वहीं जब इस जघन्य अपराध पर फिल्म बनाने को लेकर निर्माता विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) से सवाल किया गया तो उन्होंने क्या कहा? आइए जानते हैं.

यूजर ने की ‘मणिपुर फाइल्स’ बनाने की मांग

बीते दिन ट्विटर पर एक यूजर ने विवेक अग्निहोत्री की एक पोस्ट पर रिएक्ट करते हुए उनसे सवाल किया. यूजर ने लिखा, ‘समय बर्बाद मत करो, जाओ और एक फिल्म ‘मणिपुर फाइल्स’ बनाओ अगर तुम्हारे अंदर वाकई सच में कुछ करने की ताकत है.” इस ट्वीट का जवाब देते हुए विवेक (Vivek Agnihotri Tweet) ने लिखा, ‘शुक्रिया कि आपने मुझे पर यह विश्वास जताया, पर सारी फिल्में मुझसे ही बनवाओगे क्या यार. तुम्हारी ‘इंडिया टीम’ में कोई फिल्ममेकर नहीं है क्या.’

ओटीटी पर रिलीज होगी ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’

आपको बता दें कि निर्माता विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri Tweet) ने कश्मीर में हुए नरसंहार को लेकर फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाई थी, जिसे लोगों से खूब सरहाना मिली थी. हालांकि अब वो ‘द कश्मीर फाइल्स’ को नया रूप देकर वेब सीरीज की शक्ल में तैयार कर रहे हैं, जो ओटीटी पर रिलीज होगी. इसका नाम ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’ रखा गया है, जिसका ट्रेलर शुक्रवार को जारी किया जा चुका है.

गोल्ड सेविंग स्कीम : सोचसमझ कर

प्राचीन समय से अब तक सोना खरीदने के पीछे आम धारणा यह है कि एक तो जेवर बन जाएगा, साथ ही, बुरे वक्त पर उसे बेच कर पैसा भी मिल जाएगा. इस तरह शुरू से ले कर अभी तक पैसों की बचत सोने के रूप में की जाती थी. यह गलत भी नहीं, क्योंकि गोल्ड पर निवेश कई तरह के लाभ पहुंचाने में मदद करता है.

जैसे, इस से महंगाई से बचाव होता है, क्योंकि सोना मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करता है. जब महंगाई बढ़ती है तो करैंसी की कीमत घटती है. कुछ सालों से सोने का वार्षिक लाभ मुद्रास्फीति की तुलना में ज्यादा रहा है. बहुत बार शेयरों में गिरावट के समय सोने की कीमत में इजाफा आता है.

वहीं यह परिवार के आर्थिक संकट में काम आता है. आर्थिक संकट में परिवार सोने को गिरवी रखते हैं या बेचते हैं. इसी तरह इस के डिजिटल खतरे कम होते हैं क्योंकि इसे हैक नहीं किया जा सकता. इसे कभी भी बेचाखरीदा जा सकता है. यही कारण है कि लोग सोने को अपने बुरे वक्त का साथी मानते हैं और सोने को आमतौर पर ज्वैलरी के रूप में सहेज कर रखते हैं.

जनमानस की इसी धारणा का लाभ उठा कर आज के दौर में बाजार कई तरह के विकल्प मुहैया कराने लगा है. इन्हीं में से आजकल ज्वैलर्स की गोल्ड स्कीम्स काफी चर्चा में है. इस में टुकड़ों निवेश कर आप जेवर खरीद सकते हैं. पहली नजर में ये स्कीम आकर्षक लगती हैं लेकिन इन की कुछ सीमाएं हैं जिन का ध्यान रखना जरूरी है.

गोल्ड स्कीम

गोल्ड सेविंग स्कीम का समय 10-12 महीनों का होता है. कुछ स्कीमें 18 महीनों तक की भी होती हैं. इस में स्कीम की अवधि के अनुसार निवेशक हर माह ज्वैलर्स को एक निश्चित रकम अदा करता है. अवधि की समाप्ति में एक या दो किस्तें खुद ज्वैलर्स मिलाता है या पहली क़िस्त पर भारी डिस्काउंट देता है.

क्या लाभ मिलता है

गोल्ड सेविंग स्कीम एक तरह से बैंकों में रिकरिंग डिपौजिट की तरह ही है. रिकरिंग डिपौजिट फिक्स डिपौजिट की तरह सुरक्षित होती है. इस में निवेशक को हर महीने, एक निश्चित अवधि तक, कुछ पैसे जमा करवाने होते हैं. जब यह स्कीम में मैच्योर हो जाती है तो निवेशक को उस की जमापूंजी ब्याज समेत मिल जाती है. रिकरिंग डिपौजिट छोटे समय के लिए भी करवाई जा सकती है और इस पर इंटरैस्ट रेट सेविंग से ज्यादा मिलता है.

रिकरिंग डिपौजिट और गोल्ड सेविंग स्कीम में फर्क सिर्फ इतना ही है कि स्कीम की अवधि पूरी होने पर निवेशक को सोना ही खरीदना पड़ता है. इस स्कीम में निवेशक को रिटर्न 6 से 8 फीसदी के करीब मिलता है. यह कंपनी कानून के अंतर्गत बदलाव की वजह से अब डिस्काउंट की तरह दी जाती है.

इस की सीमाएं

गोल्ड सेविंग स्कीम अधिक लाभप्रद नहीं है क्योंकि इस तरह की योजनाओं के साथ कुछ सीमाएं निर्धारित रहती हैं जैसे निवेशक को सोना ही खरीदना पड़ता है. इस स्कीम में सोने के बिस्कुट या सिक्के नहीं खरीद सकते. केवल ज्वैलरी ही खरीदने की पाबंदी होती है. ज्वैलरी के साथ अन्य लागतें भी जुड़ी रहती हैं जिस में मेकिंग चार्ज का भी बड़ा हिस्सा होता है, जो काम के अनुसार 15 से 30 फीसदी तक हो सकता है.

यद्यपि ज्वैलर्स डिस्काउंट देते हैं लेकिन मेकिंग चार्ज इतना ज्यादा होता है कि यह रिटर्न को खत्म कर देता है. सब से बड़ी परेशानी सोने की कीमत से जुड़ी होती है. ऐसी स्कीम के तहत निवेशक सोना चाहे जितना भी खरीदे लेकिन भाव वही लगेगा जो ज्वैलरी खरीदने की तारीख में होगा. इस में निवेशक तभी फायदे में होगा जब सोने की कीमत कम हो.

गोल्ड सेविंग स्कीम में निवेश तभी करना चाहिए जब आप को एक साल के अंदर ही जेवर खरीदने हों और आप के पास एक मुश्त बड़ी रकम अदा करने की स्थिति न हो. कुछ ज्वैलर्स एसआईपी जैसे विकल्प भी रखते हैं जहां आप मैच्योरिटी के बजाय हर महीने मौजूदा भाव पर सोना खरीद सकते हैं लेकिन जब आप इस सोने के जेवर बनवाते हैं तो मेकिंग चार्ज भी लगेगा ही.

इस तरह गोल्ड सेविंग स्कीम में आंख बंद कर के जाना फायदेमंद नहीं है. अच्छा यही है कि आप अपनी पूंजी बैंक में जमा कर के एक बड़ी रकम इकट्ठी होने पर मनचाहे ढंग से सोना खरीदें और गोल्ड सेविंग स्कीम के झांसे से बचें.

क्या आप भी अपने बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाते हैं?

अक्सर पैरेंटस ये सोचते हैं कि उनका बच्चा जितना ज्यादा खाएगा, उतना ही हेल्दी रहेगा. आमतौर पर कई बच्चे खाने में आनाकानी करते हैं. ऐसे में पैरेंटस बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाते हैं. पर क्या आप जानते हैं, बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाना उनकी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है.

तो आइये जानते हैं कि जबरदस्ती खाना खिलाने से बच्चों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है.

सुस्ती और कमजोरी

जरूरत से ज्यादा खाना खिलाने से बौडी में एक तरह का न्यूरोबायलौजिकल इम्बैलेंस हो जाता है. एक बार इसका लेवल बौडी में गिरता है, तो बच्चे को कमजोरी महसूस होती है और वो पूरे दिन थका-थका महसूस करते हैं. ऐसे में जब बच्चे मोटापा का शिकार हो जाता है,  तब बौडी में एनर्जी बनाए रखने के लिए उसे हमेशा कुछ न कुछ खाना पड़ता है.

बच्चों को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता पोषण

पैरेंटस द्वारा जबरदस्ती खाना खिलाने की जिद बच्चों को मोटापे का शिकार बना सकती है. दरअसल खाना खाने का भी शरीर का अलग विज्ञान है. खाने को अच्छी तरह पचने के लिए और उससे ज्यादा से ज्यादा पोषण पाने के लिए जरूरी है कि खाया गया खाना पूरी इच्छा और खुशी से खाया गया हो. ऐसे में जब आप बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाते हैं, तो उनके शरीर को न तो उस खाने से पोषण मिलता है और न ही वो खाना पूरी तरह पच पाता है.

कोलेस्ट्रौल और दिल की बीमारी

जरूरत से ज्यादा खाना खिलाने से बच्चे के शरीर में कोलेस्ट्रौल लेवल बढ़ जाता है, जिससे दिल और दिमाग दोनों प्रभावितो होता है. कोलेस्ट्रौल की बढ़ी हुई मात्रा दिल की कई गंभीर बीमारियां जैसे- हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर और स्ट्रोक का खतरा पैदा कर सकता है. इसलिए बच्चों को जबरदस्ती खाना न खिलाएं.

फाइबरयुक्त हेल्दी चीजें खिलाएं

अगर बच्चा नहीं खाना चाहता हैं तो उसे कुछ ऐसे आहार खिलाएं जिससे उसके शरीर को पोषण मिले और वो आसानी से खा भी ले जैसे ड्राई फ्रूट्स, दूध, वेजिटेबल सूप, दलिया आदि. इन सभी फूड्स में फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए इनके सेवन से पेट देर तक भरा रहता है और शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व भी मिल जाते हैं.

खुशहाल जिंदगी के लिए करें भावनाओं को प्रशिक्षित

औफिस से घर आते ही प्रसून पत्नी पर झल्लाता रहता है. पत्नी कुछ पूछे, तो चिढ़ जाता है. 6 साल की बेटी को सवालों के एवज में थप्पड़ पड़ जाता है. पत्नी उस के इस व्यवहार से दुखी रहती है. पूछने पर प्रसून या तो बातचीत ही बंद कर देता है या फिर मांबेटी को अपने कड़वे वचनों से दुखी करता है.

दरअसल, प्रसून ने औफिस में बौस व दूसरे सहयोगियों से झगड़ा मोल ले लिया और जिद में आ कर वह कंपनी का नुकसान करवा चुका है. इस के पीछे कारण है प्रसून की नामसझी. बिना जानेसमझे अपनी ऊटपटांग राय देना, बिना पड़ताल किए अपने से ऊंचे ओहदों वालों से बेतरतीब सवाल करते रहना और अपनी जरूरत के लिए खुद जानकारी जुटाने की मेहनत न कर लोगों को परेशान करना आदि. नतीजतन, बौस और औफिस के लोग खफा हो गए. ऐसे में उस की प्रतिशोध की भावना उबल पड़ी.

रंजना के साथ अलग तरह की घटना घटी. रंजना अपने सहनशील स्वभाव को जानती थी. मगर उस की सहनशीलता जब उस की मुसीबत बनने लगी तो वह सोचने को मजबूर हो गई. भीड़भाड़ में कोई अश्लील हरकत करे, ससुराल में कोई सदस्य उसे बेवजह ताना मारे या फिर उस की मेहनत और काम पर औफिस का कोई कलीग बुरा व्यवहार करे, वह डिप्रैशन यानी अवसाद में चली जाती. मगर फिर भी उस की चुप रहने की आदत न छूट पाती.

रीना ने नीरज पर विश्वास इतना किया कि उस ने उस का अश्लील वीडियो बना डाला, फिर भी वह यही मानती रही कि नीरज की इस में कोई गलती नहीं, शायद वह किसी के बहकावे में आ गया.

रामकली की बात भी क्यों न की जाए. 12वीं बोर्ड के रिजल्ट निकलने से ऐनवक्त पर वह खूब मौजमस्ती कर रही थी. उसे खुद को किसी बंधन में रहना पसंद नहीं. आजादी का सुख उसे हर पल चाहिए और फिर 12वीं का रिजल्ट तमाचा बन कर उस के चेहरे पर पड़ा तो वह सन्न रह गई.

ऐसी सैकड़ों घटनाएं हमारे जीवन में घटती हैं और हम खुद को बेबस पाते हैं, यहां तक कि अवसाद में घिरा हुआ भी.

लोगों को अपनी हालत पर तरस आता है. उन के साथ होने वाली बुरी घटनाओं पर वे ताज्जुब करते हैं. उन्हें बारबार यह लगता है कि दुनिया की कोई एक अदृश्य शक्ति उन के साथ लगातार बुरा कर रही है. वे यह भी सोचते हैं कि ऐसा उन के साथ ही क्यों हो रहा है.

ऊर्जा जब हो नकारात्मक

सारी घटनाएं, सारी प्रतिक्रियाएं हमारी सोच व उस के अनुरूप व्यवहार की ही प्रतिबिंब होती हैं. ऊपर के उदाहरणों के चरित्रों का विश्लेषण इस बात को समझने में कारगर होगा :

  • प्रसून के केस को समझें : किसी भी विषय के बारे में पूछताछ करना और अपनी राय देना अच्छी बात है, लेकिन अपनी तरफ से सूचनासंग्रह की कोशिश किए बिना बौस से सीधे पूछताछ करना बौस के मन में नकारात्मक भावना पैदा कर सकता है. आप आलसी और दूसरे माध्यमों से सूचनाओं का संग्रह करने में फिसड्डी माने जा सकते हैं.

बात सिर्फ पूछ कर जानकारी जुटा लेने भर की ही नहीं होती, बल्कि कैरियर या नौकरी के मामले में प्रोफैशनल अप्रोच के साथ कौमन सैंस का होना बहुत जरूरी होता है. ज्यादा जानने की इच्छा जरूर रखें, लेकिन अपने स्तर पर पूरी जानकारी इकट्ठा कर के ही बौस से मुखातिब हों.

  • रंजना के केस को समझें : एक और सकारात्मक गुण का नकारात्मक बनना है. रंजना द्वारा सहनशीलता की हदें समझी जा सकती हैं. बातबात पर लड़नाझगड़ना कतई अच्छी बात नहीं, और सहनशील होना एक सकारात्मक गुण है, लेकिन यही सहनशीलता जब इंसान को मुसीबत में डाल दे तो वह नकारात्मक बन जाती है. सहन करने की हदें जानना और उन के अनुरूप अपनी चुप्पी तोड़ना जरूरी है, तभी इंसान इस दुनिया में जिंदगी को बेहतर जी सकता है.
  • रीना के केस को समझें : विश्वास बहुत ही कोमल और दिल को छूने वाली भावना है, लेकिन रीना के साथ जो घटा, उस के बाद भी विश्वास के डोर से खुद को जकड़े रखना निरर्थक और घातक है.

विश्वास की अति हमेशा नुकसानदेह है. विश्वास के भाव के साथ सावधानी महत्त्वपूर्ण है, तभी जीना आसान होता है.

रामकली को या तमाम लोगों को मनोरंजन पसंद है. मजबूरी चाहे मकसद को पाने की ही हो, आजादी की कमी सी लगती है. इन्हें रहता है कि खुश रहो यानी मनोरंजन की कमी न हो. कितने तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें संघर्ष और मेहनत ऊबा देते हैं. वे बोर होते हैं, ऊबते हैं और खुशियों की तलाश में वक्त जाया करते हैं. काम की बात उन में नीरसता भरती है और आखिर में क्या मिलता है, दुख, असफलता और तनाव.

जिंदगी खुशहाल और संतुलित होने के सपने सभी देखते हैं, लेकिन ऐसा हो पाने की संभावना पर भरोसा हर किसी को नहीं होता. लेकिन यहां हम भरोसा दिलाते हैं कि अगर इन तरीकों पर गौर कर आप अपनी भावनाओं को प्रशिक्षित कर पाए तो कोई कारण नहीं कि आप खुद की परेशानी का सबब बनें.

इमोशनल कोशंट का महत्त्व

आप का जीवन कितना शानदार और खुशहाल होगा, यह निर्भर करता है आप की भावनात्मक शक्ति यानी इमोशनल कोशंट पर. मेधा यानी इंटैलिजैंस जिस तरह आप को सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए जरूरी है उसी तरह भावनात्मक शक्ति यानी इमोशनल स्तर व्यक्ति की खुशी और सफलता को बनाए रख कर उसे तनाव से दूर रखने के लिए जरूरी है. अगर अपनी भावनात्मक शक्तियों पर हम ने गौर नहीं किया तो वे हमारे मन और बुद्धि दोनों पर बुरी तरह काबिज हो जाती हैं और हमें उस दिशा में दौड़ने को बाध्य कर देती हैं, जहां पहुंच कर हमारी ऊर्जा खत्म होने लगती है.

प्रभावशाली व्यक्तियों की 7 आदतें नामक किताब में स्टीफन कवे भावनात्मक शक्तियों पर संयम रखने के तौरतरीके बताते हुए 2 तरह के मनोवैज्ञानिक पहलुओं का जिक्र करते हैं. पहला है सैल्फ अवेयरनैस यानी स्वचेतना और दूसरा, सोशल अवेयरनैस यानी सामाजिक चेतना.

  • स्वचेतना को समझें : खुद को गहराई से समझें. अपनी मानसिक अवस्थाओं की जांचपरख करते रहें. अपनी जरूरत, अपनी भावना, अपनी आदत, अपनी इच्छाओं को जितनी गहराई से जानेंगे, उतनी ही अपनी कमियों और अतार्किकता पर भी नजर पड़ेगी. अपनी हर भावना के पीछे के ‘क्या और क्यों’ को जड़ से जानें. अपनी अनुभूतियों की अनदेखी न करें. बल्कि ये अनुभूतियां क्या हैं, कहां से और क्यों आईं, इन सारी बातों को जानने के लिए खुद के अंदर झांकें. ऐसे में आप अपने भावनात्मक प्रवाह को रोकने में समर्थ होंगे.
  • सामाजिक चेतना भी जरूरी : यह चेतना है बाहर की दुनिया को समझने की. अपने आसपास की दुनिया में सैकड़ों लोगों से हमारा संवाद और व्यवहार रहता है. जब तक उन्हें अच्छी तरह न समझें, उन  की भावनाओं, कारण और स्थितियों की तह तक न जाएं, तब तक हमारा व्यवहार उन के प्रति अच्छा नहीं हो सकता. लोगों के प्रति अच्छा व्यवहार ही उन्हें हम से सकारात्मक रूप से जोड़ता है.

प्रशिक्षित करें भावनाओं को

भावनाओं की अभिव्यक्ति मानव स्वभाव का सब से बड़ा वरदान है. मगर भावनाओं को संयत किए बिना, बेरोकटोक उन्हें लोगों  पर हमेशा उजागर करते रहना खुद को मुश्किल में डाल सकता है. ‘जहां जैसा, वहां वैसा,’ ‘जिस के साथ जैसा, उस के साथ वैसा,’ यह सिद्धांत है भावनाओं को उजागर करने का.

आइए, समझें कुछ बातें जिन पर काम कर के आसानी से अपनी भावनाओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है.

  • सैल्फ अवेयरनैस : चाहे वह आप की कमजोरी हो या आप की कोई विशेष शक्ति, आप का परिस्थितियों के प्रति व्यवहार हो या आप की खुद की गलतियों को सुधारने की कोशिश, खुद को जानेंगे, समझेंगे, तभी अपनी भावनाओं को प्रशिक्षित करने की ओर पहला कदम उठा पाएंगे.
  • सैल्फ मैनेजमैंट : उत्तेजित होती भावनाओं पर सब्र रखने की कोशिश को बढ़ावा देना और अपनी अनुभूतियों को सकारात्मक तरीके से विकसित करना वगैरह खुद को व्यवस्थित करने के मुख्य आयाम हैं.
  • सोशल अवेयरनैस : अपने आसपास के लोगों के व्यवहार और उन की मानसिकता को गहराई से समझना चाहिए. ऐसी प्रतिक्रियाएं दें जिन से दूसरों की फीलिंग्स और सोच को सही दिशा मिले, कोई आहत न हो, और लोग आप के साथ सकारात्मक बने रहें. एक खुशहाल जीवन जीने के लिए यह बेहद जरूरी है.
  • रिलेशन मैनेजमैंट : रिश्तों की साजसंभाल ही रिलेशन मैनेजमैंट है. शालीन तरीके से बातचीत और दूसरों को प्रेरित कर पाने की क्षमता रिश्तों को व्यवस्थित रखती है. अपना कैरियर हो या पारिवारिक जीवन, अपनी भावनाओं को कंट्रोल में रखते हुए दूसरों के व्यवहार के प्रति सकारात्मक होना सफल और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है.

कई बार हम समूह में साथ काम करते हैं, तब समूह के हर सदस्य की भावना को महत्त्व देते हुए आगे बढ़ना एक स्किल है. प्रोफैशनल जीवन में भी आजकल ब्रिलिऐंट होने के साथसाथ भावात्मक क्षमता के तकनीकी रूप से बेहतर होने को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है. जो जितना भावात्मक शक्ति में मजबूत और प्रशिक्षित होता है, उसे बेहतर कैरियर विकल्प मिलते हैं.

सच है कि तनावरहित, आनंदपूर्ण जीवन जीने के लिए अपने दिल को समझें और उसे तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करें.

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टीवी शो के सेट पर रात भर फंसी रही Charu Asopa, बयां किया दर्द

Charu Asopa Stuck at Set : बीते कई दिनों से देश के कई राज्यों में भारी बारिश का कहर देखने को मिल रहा है. मुंबई में भी लगातार कई दिनों से बारिश हो रही है, जिसकी वजह से यहां के कई शहर पानी-पानी हो गए हैं. हालांकि बारिश के कारण जहां आम जनता को आने-जाने में परेशानी हो रही है, तो वहीं टीवी से लेकर बॉलीवुड सितारों की शूटिंग पर भी असर पड़  रहा है. हाल ही में टीवी एक्ट्रेस चारू असोपा (Charu Asopa) भी बारिश के कारण अपने शो के सेट पर फंस गई.

भारी बारिश के कारण सभी को हुई परेशानी

आपको बता दें कि एक्ट्रेस चारू बुधवार को नायगांव में अपने शो के सेट पर फंस गई थी. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उनके साथ-साथ 200 क्रू मेंबर और सीरियल के एक्टर्स,  डायरेक्टर्स, टेक्नीशियन,  मेकअप, हेयर आर्टिस्ट और ड्राइवर आदि सभी को रात भर सेट पर रहना पड़ा.

एक्ट्रेस (Charu Asopa) ने बताया कि, “बुधवार को पूरे दिन लगातार भारी बारिश हो रही थी और पैकअप करने के बाद हमे ये पता चल गया था कि आज हम सब अपने-अपने घर नहीं जा पाएंगे, क्योंकि ज्यादातार सभी स्टार्स की गाड़ियों में पानी भर गया था. इसलिए उन सभी कारों को हमने ऊंचे स्थान पर पार्क किया था. ऐसे में हमें सेट पर ही रुकना पड़ा.’

खाने-सोने की नहीं थी व्यवस्था

इसके अलावा उन्होंने (Charu Asopa) ये भी बताया कि सेट पर खाने की भी व्यस्था नहीं थी. उन्होंने कहा, “हमने शाम को डिनर ऑर्डर किया था लेकिन पानी भरने के कारण डिनर रात तक आया. वहीं हमने मेकअप रूम शेयर किया और कई लोगों को तो शूटिंग में इस्तेमाल होने वाले सोफे और बेडरूम में सोना पड़ा.”

इस सीरियम में काम कर रही हैं एक्ट्रेस

बता दें कि फिलहाल चारू असोपा (Charu Asopa) ‘कैसा ये रिश्ता अंजाना’ टीवी शो में काम कर रही हैं. हालांकि वह अपनी प्रोफेशनल लाइफ से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ के चलते सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में उनका एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन संग तलाक हुआ है, जिसको लेकर वह खूब चर्चा में रही थी.

Uorfi Javed ने किया मणिपुर की घटना का विरोध, हाथ में पोस्टर लिए पहुंची एयरपोर्ट

Uorfi Javed : टीवी की फैशन क्वीन और बिग बॉस ओटीटी 1 फेम उर्फी जावेद आए दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं. जहां एक तरफ वह अपने अतंरगी आउटफिट से लोगों का ध्यान खीचती है, तो वहीं अपने बेबाक बयान के चलते भी वह लोगों के निशाने पर आ जाती हैं. एक्ट्रेस लगभग हर समाजिक मुद्दों पर अपनी बात बेबाकी से रखती हैं.

हाल ही में मणिपुर में दो आदिवासी महिलाओं के साथ हुए जघन्य अपराध पर भी उर्फी ने अपना गुस्सा जाहिर किया है. एक तरफ उन्होंने (Uorfi Javed) अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज पर लिखा, “मणिपुर में जो कुछ भी हुआ, वो सिर्फ मणिपुर (Manipur incident) के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए शर्मसार करने वाला है.” वहीं अब दूसरी तरफ उर्फी जावेद ने मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचर भी विरोध किया.

उर्फी के सपोर्ट में आए लोग

आपको बता दें कि, बीते दिन उर्फी जावेद मुंबई एयरपोर्ट पहुंची. जहां उनके हाथ में एक वाइट कलर का पेंपलेट था. उस पर लिखा था #Kuki और #MANIPUR.

हालांकि अब उनकी (Uorfi Javed) ये तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है, जिस पर लोग कमेंट कर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. जहां एक यूजर ने उर्फी के जज्बे की सराहना करते हुए लिखा, “कम से कम उर्फी इस शर्मनाक घटना के बारे में बोल तो रही है.” तो वहीं एक अन्य यूजर ने उर्फी का सपोर्ट करते हुए लिखा, “उर्फी ने आज दिल जीत लिया, मेरे लोग बहुत स्ट्रगल कर रहे हैं.”

न्यू लुक से जीता लोगों का दिल

मुंबई एयरपोर्ट पर उर्फी जावेद (Uorfi Javed New Look) एक बार फिर नए लुक में नजर आई. यहां पर वह येलो कलर की फ्लोरल फ्रॉक पहनें नजर आई. इसके अलावा उर्फी ने अपने बालों का रंग पिंक कर रखा है, जिसमें वह बहुत खूबसूरत लग रही हैं.

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