Download App

कान का संक्रमण बन न जाए मुसीबत

बारिश के मौसम में इन्फेक्शन का होना आम बात है, क्योंकि इस मौसम में उमस और मौइस्चर के कारण संक्रमण जल्दी फैलता है. इस के चलते छोटी समस्या भी बड़ी बन जाती है.

इस मौसम में कान में इन्फेक्शन बहुत जल्दी होता है. इस में हमें असहनीय दर्द होता है. ऐसा नहीं हैं कि यह परेशानी सिर्फ बच्चों को ही होती है, बल्कि बड़ों को भी हो सकती है.

कुछ लोग कान के दर्द को या तो नजरअंदाज कर देते हैं या फिर घरेलू उपचार करने लग जाते हैं, जो आगे चल कर एक बड़ी परेशानी को जन्म देता है, इसलिए दर्द को नजरअंदाज करने के बजाय जरूरी है कि आप को उस का कारण पता हो, जिस से आप समय पर सही उपचार कर सकें.

कान में दर्द के कारण

  • औटोमीकोसिस : बारिश के मौसम में फंगल इन्फेक्शन हो जाता है. यह उमस के कारण होता है. इस के मरीज को सीधे कूलर के सामने नहीं सोना चाहिए.

यूस्टेचियन ट्यूब का बंद होना : कान, नाक व गला एक नली द्वारा एकदूसरे से जुड़े होते हैं. इसी कारण गले व नाक में होने वाली बीमारी साइनस और टौंसिल जैसी समस्या मध्य कान को प्रभावित करती है, जिस से कान में सूजन आ जाती है और यूस्टेचियन ट्यूब बंद हो जाती है. इस वजह से कान में तरल पदार्थ यानी मवाद बन जाता है और धीरेधीरे यह कान के परदे को नुकसान पहुंचाता है.

  • वैक्स जमा होना : जिन लोगों की तैलीय त्वचा होती है, उन को वैक्स यानी मैल जमा होने की परेशानी ज्यादा होती है. वैक्स नाखून की तरह बढ़ता है. जो साफ करने के कुछ दिनों बाद ही दोबारा बनने लगता है.

ज्यादा समय तक वैक्स के जमा हो जाने से वह सख्त हो जाता है और कैनाल को ब्लौक कर देता है. इस वजह से कान में दर्द व कम सुनाई देने लगता है.

  • ओटाइटिस मीडिया : ओटाइटिस मीडिया कान के मध्य में होने वाला संक्रमण है. इस के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं. पहला, एक्यूट जिस में अचानक से संक्रमण होता है.

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, यह अवधि दो हफ्ते की होती है. इस से ज्यादा समय होने पर दूसरी अवस्था क्रानिक कहलाती है, जो बहरेपन का कारण बन सकती है.,

  • गलत तरीके से दूध पिलाना : महिलाएं छोटे बच्चों को करवट से लिटा कर दूध पिलाती हैं, जिस से कई बार दूध मध्य कान में पहुंच जाता है और संक्रमण पैदा कर देता है. धीरेधीरे कान में मवाद बनने लगता है.कान के परदे का फटना : कान की नलिका पतली, संवदेनशील त्वचा से बनी हड्डियों की एक ट्यूब की तरह होती है. यदि इस हिस्से को चोट पहुंचती है, तो यह ट्यूब फट सकती है. इस वजह से कान में दर्द और पस निकलने लगता है. लंबे समय तक ऐसा होने पर आसपास की हड्डियां गल तक जाती हैं. पेन, सेफ्टीपिन और अन्य वस्तुओं के कान में डालने से यह समस्या हो सकती है.
  • साइनस संक्रमण : साइनस और कान सिर के अंदर से जुड़े होते हैं. जब साइनस बंद होता है, तो कान के अंदर हवा का दबाव प्रभावित होता है. हवा के दबाव में परिवर्तन कान में दर्द का कारण बनता है.
  • इयर बैरोट्रामा : यह एक ऐसी अवस्था है, जो एयर प्रेशर में बदलाव के कारण कान में दर्द का कारण बनती है. आमतौर पर स्काई ड्राइविंग, स्कूबा ड्राइविंग या हवाईजहाज के उड़ान के दौरान यह दर्द होता है.

बचाव है जरूरी

  1. मोबाइल फोन, हेड फोन का अधिक उपयोग कान में अंदरूनी व बाहरी संक्रमण का कारण बन सकता है.
  2. महिलाएं बच्चे को गोद में लिटा कर दूध पिलाएं. ध्यान रहे कि बच्चे का सिर ऊपर की तरफ रहे, जिस से कि दूध उस के कान में न जा पाए.
  3. तैराकी करते समय कान में पानी न जाने दें और नहाने के बाद कान को अच्छे से साफ करें.
  4. प्लेन में सफर करते वक्त, प्लेन के उड़ान भरते समय या लैंडिंग के समय च्युइंगम चबाएं.
  5. अपने कानों को बारबार न धोएं, क्योंकि कान की नलिका में बहुत कम जगह होती है. यदि पानी बाहर नहीं निकलता है, तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
  6. बाहरी कान में संक्रमण की रोकथाम के लिए बाहरी चीज कान में न डालें जैसे पिन, तिल्ली, चाबी इत्यादि.
  7. जिन लोगों के कान के परदे का आपरेशन हो रखा हो, वे लोग तैराकी न करें.
  8. अगर कान में वैक्स की परेशानी रहती है, तो 2 माह में वैक्स डिसाल्वेंट डाल कर सफाई करें या डाक्टर से कान की सफाई कराएं.

इलाज

  1. ठंडे पानी के कपड़े से कान के बाहरी हिस्से की सिंकाई करें.
  2. च्युइंगम चबाने से कान में होने वाला दबाव कम होता है.
  3. पैन किलर दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे पेरासिटामोल, इब्रोफेन या ईयर ड्राप डालें, लेकिन दर्द 2-3 दिन से ज्यादा रहें, तो तुरंत माहिर डाक्टर की सलाह लें.

आसमां सिमट गया

तेज सीटी के साथ ट्रेन धीरेधीरे सरकने लगी, तो धीरेधीरे हिलते हाथों ने गति पकड़ ली और फिर पीछे छूटते जा रहे प्लेटफार्म को निहारते हाथ स्वतः ही थम गए. लेकिन यादों का बवंडर था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. अभी कुछ महीनों पूर्व की ही तो बात है, जब वह दिल में कुछ उत्सुकता, कुछ बेचैनी, कुछ उमंग लिए इसी स्टेशन पर उतरी थी. पहलीपहली नौकरी जैसे ससुराल में पहला पहला कदम रख रही हो. दिल में उठ रहे मिलेजुले भावों ने उसे उलझन में डाल दिया था. वह तो भला हो उस की सहेली निकिता का, जिस ने फोन पर ही उसे सीधे घर आने की हिदायत दे डाली थी.

निकिता श्वेता के कालेज की सहेली थी. किसी कारणवश श्वेता उस की शादी में सम्मिलित नहीं हो पाई थी. अब सब शिकायतें दूर कर दूंगी, सोच कर श्वेता ने कमरा मिलने तक निकिता के यहां रहने का निश्चय किया था.

निकिता उसे देख कर खुशी से लिपट गई थी. उस का उभरता पेट, भराभरा बदन देख कर श्वेता हैरान रह गई थी. “व्हाट ए प्लेंजेंट सरप्राइज… मैं तो तुम्हें एक से दो हुआ देखने आई थी. तुम तो दो से तीन होने जा रही हो.”

“अभी एक सरप्राइज तुम्हें और मिलने वाला है. पर पहले तुम फ्रैश हो लो. मैं चाय बनाती हूं. ये भी आने वाले हैं.”

नहा कर श्वेता बिलकुल तरोताजा महसूस कर रही थी. निकिता ने टेबल पर चायनाश्ता लगा दिया था. कार की आवाज सुनते ही वह दरवाजा खोलने लपकी.

“इन से मिलो, महीप मेरे पति.”

“महीप, तुम… मेरा मतलब, आप…?” अपने क्लासमेट महीप को सामने इस रूप में पा कर श्वेता हैरान थी.

“है न सरप्राइज?”

“तुम ने बताया क्यों नहीं कि तुम्हारी शादी इस महीप से हो रही है?”

“मैं क्यों बताती? तुम शादी में आती तो पता चल जाता.”

“अब झगड़ा बंद. चाय ठंडी हो रही है,” महीप के मुसकरा कर टोकने पर वे शांत हुईं. औपचारिक वार्तालाप चलता रहा. लेकिन जल्दी ही निकिता ने दोनों को झिड़क दिया, “यह क्या महीपजी, श्वेताजी और आपआप लगा रखा है. ऐसे तो मैं एक दिन में बोर हो जाऊंगी. अरे, हम कालेज के दोस्त हैं. वैसे ही खुल कर बातें करो ना?”

सचमुच थोड़ी ही देर में तीनों आपस में खुल गए. कालेज का जमाना लौट आया. घर हंसीठहाकों से गूंजने लगा. इतने बरसों बाद इस तरह मिल कर तीनों बहुत खुश थे.

एकांत मिलते ही श्वेता ने निकिता को पकड़ लिया, “तुम तो दोनों बड़े छुपे रुस्तम निकले. मुझे कभी भनक ही नहीं लगने दी कि तुम दोनों के बीच कुछ चल रहा है.”

श्वेता ने निकिता को छेड़ा, तो वह गंभीर हो गई, “ऐसा कुछ नहीं था. हमारी अरेंज्ड मैरिज है, बल्कि शादी से पूर्व महीप ने मुझे बता दिया था कि वह किसी और लड़की को प्यार करता है. लेकिन उन के घर वाले जाति के कारण इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं.”

“फिर भी तू ने शादी कर ली?” श्वेता हैरान थी.

“क्या करती…? मेरे जैसी साधारण शक्लसूरत वाली लड़की को ले कर पिताजी वैसे ही परेशान थे. मां होती तो शायद उन्हें कुछ बता पाती. मैं पिताजी पर बोझ नहीं बने रहना चाहती थी.”

निकिता भावुक होने लगी, तो श्वेता ने स्नेह से उस के कंधे थपथपा दिए, “पर, अब तो लगता है, महीप तुम्हें खूब प्यार करता है?”

“हां शायद,” कह कर निकिता मुसकरा दी. श्वेता को उस की मुसकराहट खोखली प्रतीत हुई. वह समझ गई कि महीप अभी तक उस लड़की को नहीं भुला पाया है. निकिता के प्रति उस के दिल में हमदर्दी का सागर उमड़ पड़ा. अगले दिन से ही श्वेता ने अपने लिए कमरे की तलाश का फरमान जारी कर दिया, “मैं अपने औफिस में भी कह दूंगी और तुम दोनों भी ध्यान रखना.”

महीप चला गया तो निकिता ने अपने दिल की बात श्वेता के सामने रख दी, “मैं तो चाहती हूं कि तुम यहीं हमारे संग रहो. यह फ्लैट पिताजी मेरे नाम कर गए थे. यह दूसरा बैडरूम फिलहाल खाली ही है. तुम रहोेगी तो मुझे भी तसल्ली रहेगी. आजकल मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती. तुम देख ही रही हो. महीप कितना व्यस्त रहता है. अगर एकदम तबीयत खराब हो जाए तो कोई संभालने वाला नहीं है. चार दिन औफिस जाती हूं, फिर छुट्टी ले लेती हूं.”

“पर… मैं कब तक देख सकती हूं?”

“कुछ महीने तो रह लो. फिर मैं मैटरनिटी लीव ले लूंगी. सास भी आ जाएंगी.”

“नहीं… मुझे सोच कर ही बड़ा अजीब लग रहा है. मैं तो 2-3 दिन का सोच कर आई थी.”

“प्लीज, मेरी मजबूरी समझ.”

“अच्छा तो फिर मैं पेइंगगैस्ट बन कर रहूंगी. अब यह बात तुम्हें माननी होगी, वरना मैं चली.”

“अच्छा बाबा ठीक है… जो ठीक समझे, दे देना. पर जाने का नाम मत लेना.”

सहेली का स्नेह देख श्वेता का मन भीग गया. अब जब वह यहां रह ही रही है तो प्रयास करेगी कि महीप उस लड़की को भूल कर पूरी तरह निकिता के सम्मोहन में बंध जाए. दोनों औफिस से लौट कर मिलजुल कर नए व्यंजन बनातीं, घर का इंटीरियर बदल देतीं, श्वेता निकिता को नए लुक में सजातीसंवारती. महीप देखता तो तारीफ किए बिना नहीं रह पाता. फिर श्वेता निकिता को छेड़ने लगती. उस के शरमाने, मुसकराने से वातावरण खुशनुमा हो जाता.

निकिता को श्वेता को रखने के अपने निर्णय पर संतोष होता. श्वेता को गर्व होता कि वह यहां रहते हुए पतिपत्नी को मिलाने का एक नेक काम कर रही है. महीप दोनों को खुश देख प्रसन्न होता. निकिता की देखभाल को ले कर वह बेफिक्र हो गया था.

जिंदगी यदि एक ही ढर्रे पर चलती रहे तो फिर वह जिंदगी कैसी? फिर तो वह एक गाड़ी मात्र रह जाएगी. निकिता की तबीयत खराब रहने लगी थी. चक्कर आना, जी मिचलाना वगैरह डाक्टर के लिए गर्भावस्था के सामान्य लक्षण थे. लेकिन निकिता उलटियां करतेकरते पस्त हो जाती. उस की पीठ सहलाते महीप और श्वेता के हाथ टकरा जाते. नजरें मिलती तो महीप की घूरती आंखों से सकपका कर श्वेता अपनी बेतरतीब नाइटी ठीक करने लगती. गीले बाल सुखाने श्वेता टैरेस पर जाती तो वहां महीप को टौवेल बांधे कपड़े सुखाते देख झेंप जाती.

महीप की नजरों में कुछ ऐसा सम्मोहन होता कि श्वेता समझ नहीं पाती कि वह उस की मदद करे या उलटे पैर लौट जाए. खाना बाई बनाती थी. श्वेता वैसे तो पेइंगगैस्ट थी, लेकिन महीप को अकेले चायनाश्ता या निकिता के लिए कुछ बनाते देखती तो स्वयं को रोक नहीं पाती और उस की मदद करने लगती. इस प्रयास में कभी दोनों के जिस्म छू जाते, तो गरम सांसों की टकराहट से श्वेता के कपोल रक्तिम हो उठते, नजरें स्वतः ही झुक जातीं. दोनों के बीच की पहले वाली बेतकल्लुफी जाने कहां गुम हो गई थी. दिल का चोर नजरें चुराने पर विवश करने लगा था.

यादों में खोई श्वेता की स्मृति का कांटा नरेन की शादी पर जा कर अटक गया. नरेन उन का क्लासमेट था. अपनी शादी में उस ने तीनों को बुलाया था. निकिता ने खराब तबीयत के कारण जाने में आनाकानी की, लेकिन श्वेता की जिद पर उसे उठना पड़ा. फिर तो उस ने भी जिद कर के श्वेता को अपनी कुंदन के काम वाली संतरी साड़ी पहनाई. मैचिंग सैट पहनाया. श्वेता का गोरा रंग आग की तरह दहक उठा था.

शादी में बहुत सारे पुराने दोस्त मिल जाने से सब चहक उठे थे. निकिता को भी सब से मिल कर भला लग रहा था. तभी दुलहन के आने का शोर मच गया. श्वेता का चुलबुलापन जाग उठा. वह उचकउचक कर दुलहन को देखने लगी. सब की नजरें उधर ही टिकी थीं. दुलहन सचमुच ही अप्सरा लग रही थी.

दुलहन को निहारती श्वेता को अचानक आभास हुआ कि एक जोड़ी नजरें उसी पर टिकी हुई हैं. उस ने सिहर कर नजरें घुमाईं. उस का अनुमान सही था. महीप एकटक उसे ही देखे जा रहा था. उस की आंखों में एक ऐसी कशिश थी कि श्वेता अपनी नजरें नहीं हटा पा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने अपनी उखड़ती सांसों को संयत किया. उस के बाद पूरी शादी में और घर आने तक भी वह महीप से नजरें चुराती रही.

निकिता को भी दोनों के बीच चल रही इस लुकाछिपी का अब कुछकुछ अहसास होने लगा था. दोनों सहेलियां बातें कर रही होतीं और महीप आ जाता तो श्वेता कुछ बहाना बना कर वहां से खिसक लेती. यदि महीप और निकिता बतिया रहे होते और श्वेता आ जाती तो दोनों यकायक चुप हो जाते. एक अव्यक्त मौन सन्नाटा पसर जाता. और इस से पूर्व कि वातावरण दमघोंटू हो जाए, श्वेता ही किसी बहाने वहां से खिसक जाती. अपने कमरे में आ कर उस का मन करता कि वह सिर पटकपटक कर रोए.

निकिता की आंखें उसे सवाल करती प्रतीत होती, ‘तुम ने तो मेरी मदद करने का आश्वासन दिया था न? फिर कुएं से निकाल कर खाई में क्यों धकेल रही हो?’ वह समझ नहीं पा रही थी कि किस से कहां चूक हुई?

इरादे नेक होने के बावजूद कभीकभी इनसान परिस्थितियों के हाथों खिलौना मात्र बन कर रह जाता है. अपनी भावनाओं पर वह चाह कर भी नियंत्रण नहीं रख पाता.

इस मोड़ पर आ कर वह अब यहां से लौट भी तो नहीं सकती. क्या कह कर लौटे? प्रत्यक्ष में किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा था. अपने बुद्धिजीवी होने पर उसे आज गर्व नहीं आक्रोश उमड़ आया था. सभ्यता के तकाजे में बुद्धिजीवी बेचारा दिल की भड़ास तक नहीं निकाल पाता. अभी गंवार, मेहनतकश मजदूर होते तो खरीखोटी सुना कर, लातघूंसे चला कर मामला निबटा लेते. और वापस दोस्त भी बन जाते, पर यहां… हुंह… चौड़ी होती खाइयों को चौड़ीचौड़ी मुसकराहटों से नापते होंठ और दिमाग दोनों थकने लगे थे. उलझनों का असीमित आसमां उस के सामने पसरा पड़ा था. वह समझ नहीं पा रही थी अपनी बांहों के छोटे से दायरे में इस आसमां को कैसे समेटे?

मम्मीपापा का फोन आया था. उन्होंने उस के लिए एक लड़का पसंद किया था. वे चाहते थे कि श्वेता आ जाए, लड़कालड़की आपस में मिल लें और शादी की बात पक्की कर लें.

नईनई नौकरी है. अभी औफिस में भी “काफी जिम्मेदारियां हैं. छुट्टी नहीं मिल पाएगी. थोड़ा सेट होने दीजिए. अभी मैं इस बारे में सोचना भी नहीं चाहती,” कह कर श्वेता ने उन्हें टाल दिया. अभी वह कुछ भी सोचनेसमझने और निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थी. उसी के कारण निकिता और महीप के संबंधों में दरार आई है. दरार पाटने के प्रयास में अनजाने ही उस ने दरार को और चौड़ा कर दिया है. यहां से जाना तो उसे है ही. पर उन के संबंधों को सामान्य बनाए बिना वह यहां से नहीं जा सकती. उसे तीनों के बीच वही दोस्ताना और बेतकल्लुफी जगानी होगी.

अनौपचारिक संबंधों की बुनियाद औपचारिक वातावरण में नहीं रखी जा सकती, इसलिए एक खुशनुमा छुट्टी के दिन श्वेता ने पिकनिक पर चलने का प्रस्ताव रख दिया.

थोड़ी आनाकानी के बाद निकिता ने हां कर दी. दोनों का मूड देख महीप भी खुशीखुशी तैयारी में हाथ बंटाने लगा. कालेकाले बादलों ने आसमां ढक रखा था. ठंडी हवा के झोंके फिजा में मस्ती घोल रहे थे. रास्ते में श्वेता ने कालेज के दोस्तों की मिमिक्री उतारने का सिलसिला शुरू किया, तो हंसतेहंसते सब के पेट में बल पड़ गए. उस ने महीप और निकिता को भी नहीं छोड़ा. फिर तो महीप और निकिता ने भी उस की जम कर नकल उतारी. कालेज के खुशनुमा मस्ती भरे पल फिर से लौट आए थे.

श्वेता सोच रही थी कि ये पल कितने अमूल्य और सहेजने योग्य हैं. इन पलों की मीठी याद में पूरी जिंदगी गुजारी जा सकती है, मजबूत संबंधों की बुनियाद रखी जा सकती है. और वह नादानी में क्षणिक आकर्षण में बंध कर इन सब से हाथ धो बैठने वाली थी. आकर्षण के ऐसे कुछ पलों का क्या लाभ, जिन्हें याद कर इनसान जिंदगीभर पछताता रहे.

गंतव्य तक पहुंच कर वे खूब घूमे, खायापीया और फिर थक कर बैठ गए. निकिता तो लेट ही गई. श्वेता को कुछ दूरी पर झरना बहने का स्वर सुनाई दिया. वह फिर मचल उठी, “चलो, वहां चलते हैं. पानी में भीगेंगे, मस्ती करेंगे.”

महीप भी तैयार हो गया. लेकिन निकिता ने हाथ झटक दिए. वह बहुत थक चुकी थी, “प्लीज, तुम लोग जाओ. मैं यहीं रैस्ट कर रही हूं.”

श्वेता का मन तो हुआ महीप का हाथ थाम कर उधर हो आए. लेकिन फिर कुछ सोच कर वह बैठ गई.

“अगली बार चलेंगे. आज हम भी बहुत थक गए हैं. है न महीप?” स्थिति की नजाकत भांपते हुए महीप चुप बैठा रहा. वातावरण स्तब्ध और बोझिल हो उठा था. इस से पूर्व कि वह दमघोंटू हो जाए, श्वेता ने निकिता से गाना सुनाने का आग्रह किया, पर वह टालने लगी.

“सुनाओ न निकिता, मैं तो भूल ही गया था कि तुम कालेज में इतना अच्छा गाती थी,” महीप ने आग्रह किया तो निकिता और इनकार न कर सकी. फिजा में ‘मेरे नैना सावनभादों, फिर भी मेरा मन प्यासा…’ की स्वरलहरी गूंज उठी.

निकिता के दिल का सारा दर्द गीत में मुखर हो उठा था. न चाहते हुए भी श्वेता की आंखें डबडबा उठीं. महीप किसी सम्मोहन में बंधा निकिता को निहारे जा रहा था. उस के चेहरे के उतारचढ़ाव बता रहे थे कि निकिता के दर्द को आज उस ने शिद्दत से महसूस किया है. स्वयं निकिता का चेहरा आंसुओं से तर हो चुका था. गीत के समाप्त होने के साथ ही आसमां से ठंडे पानी की दोचार बूंदें टपक पड़ीं.

“देखो तुम्हारी आवाज के दर्द से आसमां भी रोने लगा,” बोझिल वातावरण को हलका बनाने का प्रयास करते हुए श्वेता ने सामान समेटना शुरू किया.

महीप ने आहिस्ता से निकिता को सहारा दे कर उठाया और फिर अपनी बांहों के घेरे में ले कर उसे आहिस्ताआहिस्ता कार की ओर ले जाने लगा, मानो किसी बहुत कीमती चीज के हाथ से फिसल या छिटक जाने का भय हो. श्वेता मंत्रमुग्ध सी उन्हें पीछे से निहार रही थी. उस के चेहरे पर अपूर्व आत्मसंतुष्टि के भाव थे.

“मौछी, मैं यहां बैठ जाऊं?” एक तुतलाती आवाज से श्वेता की तंद्रा भंग हुई. और वह वर्तमान में लौट आई.
“अं… आप इस की मौसी जैसी दिखती हैं न, इसलिए ऐसे बोल रहा है,” बच्चे की मां ने सफाई दी.

“नहींनहीं, मुझे तो बहुत अच्छा लगा. इस संबोधन में कहीं ज्यादा मिठास है.”

‘निकिता और महीप का बच्चा भी मुझे मौसी ही कह कर बुलाएगा,’ सोचते हुए श्वेता मुसकरा दी. वह पर्स से विवेक का फोटो निकालने लगी, जो पापा ने भेजा था. निकिता और महीप को वह यही तो कह कर आई थी कि यदि लड़का उसे पसंद आ गया, तो वह नहीं लौटेगी. वहीं दूसरी नौकरी तलाश लेगी.

‘कहना तो नहीं चाहिए, पर हम कह रहे हेैं कि काश, तुम वापस न लौटो,’ स्टेशन पर दोनों ने हंसते हुए उसे विदा किया था.

‘मैं न लौटने के लिए ही निकली हूं… आकर्षण की लपट को विवेक के छींटे ही शांत कर सकते हैं,’ सोचते हुए श्वेता प्यार से फोटो को निहारने लगी. आसमां उस की मुट्ठी में सिमट आया था.

मंदबुद्धि बच्चों को सहारे की दरकार

हरियाणा के गुड़गांव में मानसिक रूप से कमजोर बच्चियों के लिए बने होम ‘सुपर्णा का आंगन’ के मामले ने हिला कर रख दिया. इस जानेमाने होम में एक बच्ची के गर्भवती होने की खबर ने होम के अंदर होने वाली घिनौनी कहानी को बयां कर दिया. फिर एक सिलसिला चल पड़ा. देश के कई हिस्सों में स्थित ऐसे दूसरे होम में भी रह रहे बच्चों के यौन शोषण की घटनाएं सामने आने लगीं. किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि चिराग तले इतना अंधेरा हो सकता है. समाज में से बहुत से लोग गुस्से और आवेश में सामने आए. प्रदर्शन किए गए, ऐसे होम के अधिकारियों पर प्रश्न उठाए गए और फिर शांति हो गई. सवाल है कि क्या बच्चे होम से ज्यादा घर में सुरक्षित हैं?

भारतीय समाज में मातापिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की देखभाल करें. अगर बच्चे में किसी तरह की विकलांगता है तब उन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. बच्चा अगर शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है तब उस की विकलांगता उस के लिए तो दिक्कतें खड़ी करती ही है, मातापिता के लिए भी चिंतनीय होती है. ऐसे बच्चों के मातापिता को उन्हें पालने और संभालने में काफी सब्र से काम लेना पड़ता है. समाज से अकसर मिली उपेक्षा के कारण ऐसे परिवार समाज से कट जाते हैं.

सरिता की शादी होने के काफी समय बाद तक उस के कोई औलाद नहीं हुई. शादी के 10 साल के बाद संतान के रूप में माही मिली. वह बहुत खुश थी लेकिन उस की यह खुशी काफी दिन तक न रही. माही बड़ी हुई तो सरिता को पता चला कि वह मंदबुद्धि है. वह बहुत परेशान रहने लगी. तभी किसी ने ऐसे बच्चों के विशेष शिक्षा केंद्र के बारे में बताया. उस ने एक आटो से माही को वहां भेजना शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद उसे ऐसा लगने लगा जैसे माही कुछ डरीडरी रहने लगी है. एक दिन उस के कपड़े बदलते हुए उस ने देखा कि उस के बदन पर काटने के निशान हैं. उस से बारबार पूछने पर पता चला कि ये सब आटो ड्राइवर ने किया है.

सरिता ने जब आटो ड्राइवर से पूछा तो उस ने साफ इनकार कर दिया और माही को पागल कह कर किनारे हो लिया. ऐसे कितने ही मातापिता अपनी बच्ची की अक्षमता को सुन कर लाचार हो ऐसे लोगों के खिलाफ कदम नहीं उठा पाते. ज्यादातर लोग मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की क्षमता को समझ नहीं पाते. इसलिए मातापिता के लिए ऐसे बच्चों को संभालना कठिन हो जाता है.

हाल पर न छोड़े

एक सर्वे के अनुसार, हर 10 बच्चों पर 1 बच्चा किसी न किसी तरह की अक्षमता का शिकार है. भारत में लगभग 10 लाख बच्चे किसी न किसी तरह की विकलांगता से पीडि़त हैं.

उच्चवर्ग और मध्यवर्ग अपने ज्ञान व संपन्नता से अपने बच्चों को विशेष धारा से जोड़ने में मुस्तैदी दिखा भी लेते हैं लेकिन निम्नवर्गीय परिवार वालों, जिन में अज्ञानता और पैसा दोनों की कमी होती है, को बच्चों की शारीरिक अक्षमता को समझना बहुत ही मुश्किल होता है.

पेट भरने के लिए रोज की भागदौड़ के बीच उन के पास समय ही नहीं बचता कि वे इस बाबत सोचें. ज्यादातर लोग इसे पिछले जन्मों के कर्मों के फल से जोड़ते हैं और उन्हें उन्हीं के हाल पर छोड़ देते हैं.

ज्योति मानसिक रूप से कमजोर, सुनने और बोलने में अक्षम है. वह 14 वर्ष की अवस्था में है. उसे नएनए लोगों से इशारों में बातें करना अच्छा लगता है, इसलिए वह आसपड़ोस में जानेअनजाने लोगों के संपर्क में रहती है. जहां उस के दिमागी विकास की गति धीमी है वहीं शारीरिक विकास उम्र के अनुसार हो रहा है. इसलिए कई गलत लोगों की नजरें उस पर गड़ी रहती हैं.

उस की मां मजदूरी करती है. ज्योति सारा दिन घर पर अकेली रहती है. एक दिन पड़ोस के एक अधेड़ उम्र के आदमी ने नई चूडि़यां देने के लालच में उसे अपने घर पर बुलाया और उस का बलात्कार कर दिया. उस की मां ने जब इस पर विरोध जताया तो बस्ती के कुछ दबंग लोगों ने बच्ची को पागल कह कर हाथ झटक लिया.

गरीब मजदूर मां पेट भरने के लिए काम करे या लड़े, आखिर वह चुप हो कर रह गई.

मौके की दरकार

चाइल्ड काउंसलर निरंजना कहती हैं, ‘‘मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को अगर मौका दिया जाए तो उन की प्रतिभा का विकास हो सकता है. हमारे देश में उन्हें समाज से उपेक्षा मिलती है और यदि वह सहानुभूति दिखाता है तो इस तरह के मौके नहीं देता कि जिस से वह और बच्चों की तरह जिंदगी जी सके.’’

राइट टू एजुकेशन कानून में इस का प्रावधान किया गया है परंतु उसे पूर्ण रूप से लागू होने में कितना वक्त लगेगा, यह तय नहीं किया जा सकता. वर्ल्ड बैंक के अनुसार, भारत में 20 फीसदी लोग अक्षम हैं और वे गरीबों से भी गरीब हैं.

किसी भी प्रकार की अक्षमता में गरीबी अपने में एक महत्त्वपूर्ण कारण है. स्लम बस्तियों में रह रही कितनी ही बच्चियां यौन शोषण का शिकार होती हैं और गरीबी के कारण उन पर हुए शोषण की आवाज उठाई भी नहीं जाती.

एक गैरसरकारी संस्था के सर्वे के मुताबिक, जिन बच्चों में 80 फीसदी तक अक्षमता होती है उन पर ज्यादातर मातापिता खर्च नहीं करना चाहते. उन्हें उन के हाल पर छोड़ दिया जाता है. इन में बच्चियों की संख्या अधिक है.

ध्यान न देना समस्या

भारत सरकार ने यूएन कन्वैंशन औन चाइल्ड राइट्स पर 11 दिसंबर, 1992 को काफी सोचविचार कर हस्ताक्षर किए थे. सीआरसी के आर्टिकल 23, 2, 3(1), 6 और 12 में ऐसे बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करते हुए सरकार की मुख्य भूमिका पर जोर दिया गया है. लेकिन भारत में वास्तविक स्थिति बहुत ही खराब है. सरकार के नैशनल आईसीडीएस कार्यक्रम में भी इन बच्चों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है.

ऐसे ज्यादातर बच्चे घर पर ही रह रहे हैं उन के मातापिता भी उन को संभालने में सक्षम नहीं हैं. एक मानसिक रूप से कमजोर बच्ची को अगर मातापिता संभाल नहीं पाते तो किसी होम में उस को छोड़ देते हैं और होम का हाल बयान करना ही व्यर्थ है. आखिर कहां सुरक्षित हैं ये बच्चियां? किस की जिम्मेदारी है इन की?

रजिया आज भी अपनी बच्ची को याद कर रो पड़ती है. उस की बेटी शबनम भरेपूरे परिवार में इधरउधर घूमती रहती थी. एक दिन घर से ऐसे गई कि पता ही नहीं चला. रूढि़वादी परिवार ने उस को ढूंढ़ा भी नहीं. अगर परिवार को अपने कर्तव्यों का ज्ञान होता या वह उस बच्ची को संभालना जानते तब…

अंजलि 5 वर्ष की थी. वह अकसर बिस्तर गीला कर देती थी. परिवार के सदस्यों ने एक स्पैशल एजुकेटर की मदद ली और उसे दैनिक कार्यों में निपुण बनाया. यही नहीं, वह आज बहुत सुंदर चित्र बनाती है.

बच्चों को, विशेषकर बच्चियों को, आगे बढ़ाने के लिए मातापिता को सहारा देना चाहिए और सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह काउंसलिंग के द्वारा मातापिता की समझ बढ़ाए ताकि वे ऐसे बच्चों को अभिशाप न समझें बल्कि और बच्चों की तरह उन के अधिकारों की भी सुरक्षा करना अपना कर्तव्य समझें.

समझौता : आगे बढ़ने के लिए वैशाली ने कैसे समझौता किया

story in hindi

मेरे पति को मेरे नाजायज संबंध के बारे में पता चल गया है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 38 वर्ष की हूं. मेरे पति काफी समझदार और बहुत अच्छी जौब में सैटल हैं. हमारे 2 बच्चे हैं जो शहर के नामी स्कूल में पढ़ रहे हैं. मेरे पति मेरी बहुत केयर करते हैं लेकिन 6 महीने से मेरा अफेयर उन के मित्र से चल रहा है. यहां तक कि हम दोनों कई बार सैक्स भी कर चुके हैं. इस बारे में मेरे पति को भी पता चल गया है. इस को ले कर हमारे घर में तनाव का माहौल है. आप ही बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
शादीशुदा हो कर किसी दूसरे पुरुष से संबंध रखना खतरे को बुलाना है. खासकर तब जब आप के पति काफी केयरिंग हैं. हंसतेखेलते परिवार को आप किसी और की चाहत में खोने जा रही हैं. आप की इस हरकत का आप के बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा, और हो सकता है वे भी आप से दूर हो जाएं.

आप ऐसे इंसान के लिए अपने परिवार तक के बारे में नहीं सोच रहीं जिस ने अपने दोस्त की जिंदगी में अंधेरा लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अभी देर नहीं हुई है और संभलने से समस्या हल हो जाएगी वरना सिर्फ तनहाई और पछतावे के, कुछ हाथ नहीं लगेगा. आमतौर पर पुरुष इस बात को जिंदगीभर नहीं भूल पाते.

दिल और शरीर की आवश्यकताएं बहुत कुछ करने को मजबूर करती हैं पर आप घर को स्वाह  न करें. हां, आप अगर अपने पैरों पर खड़ी हैं, अकेले, बच्चों व घर को चला सकती हैं तो अलग रहना शुरू करें.

ये भी पढ़ें…

सैक्स क्या वाकई में मुहब्बत है, आप भी जानिए

सच्चे प्रेम से खिलवाड़ करना किसी बड़े अपराध से कम नहीं है. प्रेम मनुष्य को अपने अस्तित्व का वास्तविक बोध करवाता है. प्रेम की शक्ति इंसान में उत्साह पैदा करती है. प्रेमरस में डूबी प्रार्थना ही मनुष्य को मानवता के निकट लाती है.

मुहब्बत के अस्तित्व पर सैक्स का कब्जा

आज प्रेम के मानदंड तेजी से बदल रहे हैं. त्याग, बलिदान, निश्छलता और आदर्श में खुलेआम सैक्स शामिल हो गया है.

प्रेम की आड़ में धोखा दिए जाने वाले उदाहरणों की शृंखला छोटी नहीं है और शायद इसी की जिम्मेदारी बदलते सामाजिक मूल्यों और देरी से विवाह, सच को स्वीकारने पर डाली जा सकती है. प्रेम को यथार्थ पर आंका जा रहा है. शायद इसी कारण प्रेम का कोरा भावपक्ष अस्त हो रहा है यानी प्रेम की नदी सूख रही है और सैक्स की चाहत से जलराशि बढ़ रही है.

विकृत मानसिकता व संस्कृति

आज के मल्टी चैनल युग में टीवी और फिल्मों ने जानकारी नहीं मनोरंजन ही परोसा है. समाज द्वारा किसी भी रूप में भावनाओं का आदर नहीं किया जाता. प्रेम का मधुर एहसास तो कुछ सप्ताह तक चलता है. अब तन के उपभोग की अपेक्षा है.

क्षणिक होता मुहब्बत का जज्बा

प्रेम अब सड़क, टाकीज, रेस्तरां और बागबगीचों का चटपटा मसाला बन गया है. वर्तमान प्रेम क्षणिक हो चला है, वह क्षणभर दिल में तूफान ला देता है और अगले ही पल बिलकुल खामोश हो जाता है. युवा आज इसी क्षणभर के प्रेम की प्रथा में जी रहे हैं.

एक शोध के अनुसार, 86% युवाओं की महिला मित्र हैं, 92% युवक ब्लू फिल्म देखते हैं, तो 62% युवक और 38% युवतियों ने विवाहपूर्व शारीरिक संबंध स्थापित किए हैं.

यही है मुहब्बत की हकीकत

एक नई तहजीब भी इन युवाओं में गहराई से पैठ कर रही है, वह है डेटिंग यानी युवकयुवतियों का एकांत मिलन.

शोध के अनुसार, 93% युवकयुवतियों ने डेटिंग करना स्वीकार किया. इन में से एक बड़ा वर्ग डेटिंग के समय स्पर्श, चुंबन या सहवास करता है. इस शोध का गौरतलब तथ्य यह है कि अधिकांश युवक विवाहपूर्व यौन संबंधों के लिए अपनी मंगेतर को नहीं बल्कि किसी अन्य युवती को चुनते हैं. पहले इस आयु के युवाओं को विवाह बंधन में बांध दिया जाता था और समय आने तक जोड़ा दोचार बच्चों का पिता बन चुका होता था.

अमीरी की चकाचौंध में मदहोश प्रेमी

मृदुला और मनमोहन का प्रेम कालेज में चर्चा का विषय था. दोनों हर जगह हमेशा साथसाथ ही दिखाई देते थे. मनमोहन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. वह मध्यवर्गीय परिवार से था, लेकिन मृदुला के सामने खुद को थोड़ा बढ़ाचढ़ा कर दिखाने की कोशिश में रहता था. वह मृदुला को अपने दोस्त की अमीरी और वैभव द्वारा प्रभावित करना चाहता था. दूसरी ओर आदेश पर भी अपना रोब गांठना चाहता था कि धनदौलत न होने पर भी वह अपने व्यक्तित्व की बदौलत किसी खूबसूरत युवती से दोस्ती कर सकता है.

लेकिन घटनाचक्र ने ऐसा पलटा खाया कि जिस की मनमोहन ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी. उस की तुलना में अत्यंत साधारण चेहरेमुहरे वाला आदेश अपनी अमीरी की चकाचौंध से मृदुला के प्यार को लूट कर चला गया.

मनमोहन ने जब कुछ दिन बाद अपनी आंखों से मृदुला को आदेश के साथ उस की गाड़ी से जाते देखा तो वह सोच में पड़ गया कि क्या यह वही मृदुला है, जो कभी उस की परछाईं बन उस के साथ चलती थी. उसे अपनी बचकानी हरकत पर भी गुस्सा आ रहा था कि उस ने मृदुला और आदेश को क्यों मिलवाया.

कालेज में मनमोहन की मित्रमंडली के फिकरों ने उस की कुंठा और भी बढ़ा दी.

प्रेम संबंधों में पैसे का महत्त्व

प्रेम संबंधों के बीच पैसे की महत्ता होती है. दोस्ती का हाथ बढ़ाने से पहले युवक की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रख कर निर्णय लेना चाहिए. प्रेमी का यह भय सही है कि यदि वह अपनी प्रेमिका को महंगे उपहार नहीं देगा तो वह उसे छोड़ कर चली जाएगी. कोई भी युवती अपने प्रेमी को ठुकरा कर एक ऐसा नया रिश्ता स्थापित कर सकती है, जिस का आधार स्वाभाविक प्यार न हो कर केवल घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने की चाह हो. युवकों को पैसे के अनुभव के बावजूद अपनी प्रेमिकाओं और महिला मित्रों को प्रभावित करने के लिए हैसियत से ज्यादा खर्च करना होगा.

प्रेम में पैसे का प्रदर्शन, बचकानी हरकत

छात्रा अरुणा का विचार है कि अधिकतर युवक इस गलतफहमी का शिकार होते हैं कि पैसे से युवती को आकर्षित किया जा सकता है. यही कारण है कि ये लोग कमीज के बटन खोल कर अपनी सोने की चेन का प्रदर्शन करते हैं. सड़कों, पान की दुकानों या गलियों में खड़े हो कर मोबाइल पर ऊंची आवाज में बात करते हैं या गाड़ी में स्टीरियो इतना तेज बजाते हैं कि राह चलते लोग उन्हें देखें.

हैसियत की झूठी तसवीर पेश करना घातक

अरुणा कहती है कि कुछ लोग प्रेमिका से आर्थिक स्थिति छिपाते हैं तथा अपनी आमदनी, वास्तविक आय से अधिक दिखाने के लिए अनेक हथकंडे अपनाते हैं. इसी संबंध में उन्होंने अपने एक रिश्तेदार का जिक्र किया जो एक निजी कंपनी में नौकरी करते थे. विवाह के तुरंत बाद उन्होंने पत्नी को टैक्सी में घुमाने, उस के लिए ज्वैलरी खरीदने तथा उसे खुश रखने के लिए इस कदर पैसा उड़ाया कि वे कर्ज में डूब गए. कर्ज चुकाने के लिए जब उन्होंने कंपनी से पैसे का गबन किया तो फिर पकड़े गए.

परिणामस्वरूप अच्छीखासी नौकरी चली गई. इतना ही नहीं, पत्नी भी उन की ऐसी स्थिति देख कर अपने मायके लौट गई. अगर शुरू से ही वह चादर देख कर पैर फैलाते, तो यह नौबत न आती.

समय के साथ बदलती मान्यताएं

मीनाक्षी भल्ला जो एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं, का कहना है कि प्यार में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही जहां एकदूसरे के लिए कुछ भी कर गुजरने की भावना रखते हैं, वहीं अपने साथी से कुछ अपेक्षाएं भी रखते हैं.

व्यापार बनता आज का प्रेम

इस प्रकार के रवैए ने प्यार को एक प्रकार का व्यापार बना दिया है. जितना पैसा लगाओ, उतना लाभ कमाओ. कुछ मित्रों का अनुभव तो यह है कि जो काम प्यार का अभिनय कर के तथा झूठी भावुकता दिखा कर साल भर में भी नहीं होता, वही काम पैसे के दम पर हफ्ते भर में हो सकता है. अगर पैसे वाला न हो तो युवती अपना तन देने को तैयार ही नहीं होती.

नोटों की ऐसी कोई बौछार कब उन के लिए मछली का कांटा बन जाए, पता नहीं चलेगा. ऐसी आजाद खयाल या बिंदास युवतियों का यह दृष्टिकोण कि सच्चे आशिक आज कहां मिलते हैं, इसलिए जो भी युवक मौजमस्ती और घूमनेफिरने का खर्च उठा सके, आराम से बांहों में समय बिताने के लिए जगह का इंतजाम कर सके, उसे अपना प्रेमी बना लो.

Akshay Kumar सहित इन सेलेब्स ने मणिपुर की घटना पर उठाए सवाल

Bollywood Celebs On Manipur Incident : 4 मई 2023, ये वो ही तारीख है जिस दिन मणिपुर में भीड़ द्वारा दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर उनकी परेड निकाली गई. इस खौफनाक घटना का वीडियो 19 जुलाई को सामने आया. वीडियो (Manipur Violence Incident) के सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट रहा है. लोग अपराधियों के खिलाफ जल्द से जल्द कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

वहीं इस बीच बॉलीवुड सेलेब्स ने भी इस घटना की निंदा की है. एक्टर अक्षय कुमार से लेकर रिचा चड्ढा, रेणुका शहाणे और कई अन्य सेलेब्स ने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.

अक्षय कुमार ने पीड़ितों के लिए की न्याय की मांग

बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार (Akshay Kumar) ने मणिपुर में हुई घटना पर अपना दुख जाहिर करते हुए ट्वीट किया, “मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का वीडियो देखकर हिल गया, निराश हूं. मैं आशा करता हूं कि दोषियों को इतनी कड़ी सजा मिलें कि कोई भी दोबारा ऐसी भयावह हरकत करने के बारे में न सोचे.’

उर्मिला ने ‘चुप्पी’ पर उठाए सवाल

एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर (Urmila matondkar) ने भी मणिपुर की इस घटना का विरोध किया है. उन्होंने लिखा, “मणिपुर वीडियो (Manipur Violence Incident) और इस फैक्ट से शॉक्ड, शेकन और डरी हुई हूं कि यह मई में हुआ और इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो सत्ता के नशे में चूर ऊंचे घोड़ों पर बैठे हैं, मीडिया में जोकर उन्हें चाट रहे हैं, मशहूर हस्तियां जो चुप हैं. डियर भारतीय/इंडियनंस हम यहां कब पहुंचे?”

एक्ट्रेस रिचा चड्ढा ने इस घटना को बताया शर्मनाक

बॉलीवुड अभिनेत्री रिचा चड्ढा (richa chadha) ने भी दो महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी पर अपना गुस्सा जाहिर किया है. उन्होंने घटना की फोटो शेयर कर लिखा, “शर्मनाक! भयानक! अधर्म!”.

अभिनेत्री रेणुका ने सरकार पर उठाए सवाल

बॉलीवुड एक्ट्रेस रेणुका (Renuka Shahane) शहाणे ने भी इस घटना (Manipur Violence Incident) की निंदा की है. उन्होंने सरकार की विफलता की ओर इशारा करते हुए लिखा, “क्या मणिपुर में अत्याचार रोकने वाला कोई नहीं है? यदि आप दो महिलाओं के उस परेशान करने वाले वीडियो से अंदर तक नहीं हिले हैं, तो फिर क्या खुद को इंसान कहना भी सही है, भारतीय या इंडियन तो छोड़ ही दें!”

Uorfi Javed अपने ग्रामीण भारत वाले बयान पर देंगी सफाई! ट्रोलर्स ने लगाई क्लास

Uorfi Javed Tweet : टीवी एक्ट्रेस उर्फी जावेद (Uorfi Javed) आए दिन लाइमलाइट में बनी ही रहती हैं. उन्हें ज्यादातार अपने अतरंगी फैशन और ड्रेसिंग सेंस के लिए जाना जाता हैं. इसके अलावा वो हर एक मुद्दे पर भी अपनी बात बेबाकी से रखती है, जिसके चलते उन्हें निंदा का सामना करना पड़ता है. हालांकि अब एक फिर वो लोगों के निशाने पर आई गई हैं.

दरअसल, हाल ही में उर्फी जावेद (Uorfi Javed Tweet) ने एक ट्वीट किया था, जिसके बाद उन्हें ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है.

उर्फी जावेद ने क्या कहा था?

आपको बता दें कि बिग बॉस ओटीटी फेम उर्फी जावेद (Uorfi Javed Tweet) ने अपने ट्विटर हैंडल से वुमेन सेंट्रिक फिल्म ‘पंचकृतिः फाइव एलिमेंट’ को लेकर एक ट्वीट किया था. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था, ‘देश की पहचान अर्बन इंडिया से है, ग्रामीण भारत से नहीं. ग्रामीण भारत पर फिल्म बनाकर और ऑडियंस में टीवी, स्मार्टफोन, साइकिल, स्मार्टवॉच देने का क्या फायदा? कोई नहीं देखेगा पंचकृति. मैं लिखकर देती हूं.’ उनके इस ट्वीट के बाद से ही सोशल मीडिया पर #UrfiAgainstRuralBharat हैशटैग चलाया जा रहा है.

इस दिन रिलीज होगी फिल्म

‘पंचकृतिः फाइव एलिमेंट’ फिल्म 4 अगस्त को सिनेमाघरों में दस्तक देगी. हालांकि इसका ट्रेलर रिलीज किया जा चुका है, जिसे देखने के बाद ये पता चलता है कि ये मूवी ग्रामीण भारत के विश्य पर बनाई गई है.

बायोपिक में मेहनत अधिक करनी पड़ती है- हुमा कुरैशी

मौडलिंग से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री हुमा कुरैशी दिल्ली की हैं. स्पष्टभाषी और खूबसूरत हुमा को अभिनय पसंद होने की वजह से उन्होंने दिल्ली में पढ़ाई पूरी कर थिएटर जौइन किया और कई डाक्युमैंट्री में काम किया. एक विज्ञापन की शूटिंग के लिए वे मुंबई आईं. उस दौरान निर्देशक अनुराग कश्यप ने उन के अभिनय की बारीकियों को देख कर फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ के लिए साइन किया.

फिल्म हिट हुई और हुमा को पीछे मुड़ कर देखना नहीं पड़ा. इस के बाद फिल्म ‘एक थी डायन’, ‘डी-डे’, ‘बदलापुर’, ‘डेढ़ इश्कियां’, ‘हाई वे’, ‘जौली एलएलबी’ आदि के अलावा उन्होंने वैब सीरीज भी की हैं. हुमा ने हौलीवुड फिल्म ‘आर्मी औफ द डेड’ भी किया है. हुमा जितनी साहसी और स्पष्टभाषी दिखती है, रियल लाइफ में उतनी ही इमोशनल और सादगीभरी हैं. उन की फिल्म ‘तरला’ रिलीज पर है. उन से हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं.

अपनी नई फिल्म ‘तरला’ के बारे में खास बात बताते वे कहती हैं कि इस की कहानी प्रेरणादायक है, जो एक मास्टर शेफ की है. उस मास्टर शेफ ने रैसिपी बुक भी लिखी है और एक महिला हो कर इतनी बड़ी कामयाबी पाई है. उन की कहानी सब को पता होनी चाहिए, इसलिए वे यह फिल्म कर रही हैं.

फिल्म को ले कर की गई तैयारी पर वे कहती हैं, ““खाने की मैं ने अधिक प्रैक्टिस नहीं की है, क्योंकि मैं खाना बना सकती हूं. फूड स्टाइलिस्ट ने ही सबकुछ किया है, लेकिन इस में खाने को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है. इस में घर के खाने, जो मां के हाथ का बना होता है, जिस में फैंसी तरीके से सजावट नहीं होती पर उस का स्वाद बहुत अलग होता है, को दिखाने की कोशिश की गई है.””

बायोपिक में किसी व्यक्ति को दर्शाते हुए उस व्यक्ति की बारीकियों को पर्दे पर उतारने की जरूरत होती है, नहीं तो कंट्रोवर्सी होती है. इस के लिए हुमा ने किन चीजों का ध्यान रखा, इस सवाल पर वे कहती हैं, ““बायोपिक में मेहनत अधिक करनी पड़ती है. इस में मैं ने तरला दलाल की बहुत सारे इंटरव्यू देखे. वे जिस तरीके से बात करती थीं, उसे एडौप्ट किया. मसलन, वे गुजराती थीं, पर मराठी लहजे में बात करती थीं, बहुत सारे शब्द इंग्लिश में बोलती थीं. उन का बात करने का तरीका ‘लेडी नेक्स्ट डोर’ की तरह था, जो बहुत सुंदर था.””

तरला दलाल की कहानी को आज की महिलाओं के बीच लाने के मकसद के बारे में हुमा कहती हैं, ““आज भी तरला की कहानी प्रासंगिक है क्योंकि आज भी किसी लड़की को पहले शादी करने की सलाह दी जाती है, बाद में जो करना है, उसे करने को कह दिया जाता है, जिसे शादी के बाद करना आसान नहीं होता. तरला ने इसे भी कर दिखाया.”

“परिवार का सहयोग किसी महिला की कामयाबी में बहुत माने रखता है. तरला दलाल का जीने का तरीका संजीदगी से भरा हुआ करता था. वे एक सौफ्ट स्पोकेन महिला थीं. उस जमाने में घर से निकल कर काम करना, पति और परिवार का ध्यान रखना आदि सब करना आसान नहीं था.

“उस समय की मार्गदर्शन करने वाली वे पहली महिला हैं और उन्होंने बता दिया कि परिवार के साथ रह कर भी बहुतकुछ किया जा सकता है, जो आज की महिलाएं भी कर सकती हैं. इसे बहुत ही प्यारभरे तरीके से उन्होंने किया है, जिसे सब को जानना आवश्यक है.” हम आगे कहती हैं, ““मेरे यहां तक पहुंचने में भी मेरे परिवार का बहुत बड़ा सहयोग है. मेरे पेरैंट्स, मेरा भाई सब का सहयोग रहा है, अकेले इंसान कुछ भी नहीं कर पाता.””

हुमा फिल्म इंडस्ट्री में बाहर से हैं. उन्होंने अपने दम पर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और अपनी दमदार कला के चलते जानी जाती हैं. दिल्ली से मुंबई आना और ऐक्टिंग के कैरियर को स्टैब्लिश करने में आई मुश्किलों के बारे में वे कहती है, ““दिल्ली से मुंबई आने के बाद मैं ने विज्ञापनों में काम करना शुरू कर दिया था. एक एड में मेरे साथ अभिनेता आमिर खान थे, जिसे अनुराग कश्यप डायरैक्ट कर रहे थे.

““इस के बाद अनुराग कश्यप ने मुझे ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में काम करने का औफर दिया, जो 2012 में रिलीज हुई. यह एक छोटी सी मेरी शुरुआती जर्नी रही, जिस के बाद लोगों ने मुझे फिल्मों में काम करते हुए देखा और आगे काम मिलता गया.””

हुमा फिल्म इंडस्ट्री में करीब 10 साल बिता चुकी हैं और बौलीवुड, हौलीवुड व साउथ की फिल्मों में काम कर चुकी हैं. इस जर्नी पर वे कहती हैं, “यह सही है कि मैं ने एक सपना देखा है और अब वह धीरेधीरे पूरा हो रहा है. मैं हमेशा से अभिनेत्री बनना चाहती थी. लेकिन यह कैसे होगा, पता नहीं था. समय के साथसाथ मैं आगे बढ़ती गई. मैं चंचल दिल की लड़की हूं और अपने काम से अधिक संतुष्ट नहीं रहती. मैं कलाकार के रूप में नएनए किरदार को एक्स्प्लोर करना पसंद करती हूं.””

जब हुमा से पूछा कि वे फिल्म चुनते समय किन बातों का ध्यान रखती हैं तो वे बताती हैं कि कहानी अच्छी होनी चाहिए. अच्छी तरह से लिखी हुई हो. अच्छे लोगों के साथ फिल्म बन रही हो और जो फिल्म बना रहे हैं, वे ईमानदारी से फिल्म को पूरा करें तो उन्हें काम करने में मजा आता है. वहीं, कहानी और स्क्रिप्ट अच्छी हो जो मुझे एक्साइट करती हो, फिर जोनर चाहे कोई भी हो, उसे करने में मजा आता है.”

उन से पूछा गया कि इंडस्ट्री में उन की ऐसी कौन सी फ्रैंड है जिस से वे मिलनाजुलना पसंद करती हैं, इस के जवाब में हुमा कहती हैं, ““मेरा इंडस्ट्री में कोई फ्रैंड नहीं है. मैं अकेले रहती हूं. सुबह शूटिंग पर जाती हूं, इस के खत्म होने के बाद सीधे घर आती हूं. खाना खाती हूं और सो जाती हूं.””

मानसून में खुद को फिट रखने के लिए हुमा समय पर खाना और समय से सोना ये दो चीज नियमित रूप से करती हैं. इस के अलावा वर्कआउट भी करती हैं. मानसून में पकौड़े खाना उन्हें पसंद है, जो किसी दूसरे मौसम में अच्छा नहीं लगता.

वे बताती हैं कि ‘चाट’ उन का ऐसा पसंदीदा फूट आइटम है जिसे खाने से वे वह खुद को नहीं रोक सकतीं. इस के अलावा वे कीमा अच्छा बना लेती हैं, जिसे सभी पसंद करते हैं.

मणिपुर दंगा : हिंसा के पीछे का क्या है असल खेल

मणिपुर में कुकी व मैतेई समुदायों के बीच जो आग भगवा गैंगों ने बरसों पहले बड़ी मेहनत से जरा सी शुरू की थी, वह अब दावानल बन गई है. पूर्वोत्तर राज्यों में बसे आदिवासियों को हिंदुओं ने सैकड़ों सालों से अछूत और जाति से बाहर माना था. पर जब यूरोपीय भारत आए तो उन्हें उन में इंसानियत का प्रचार करने का अवसर दिखा.

पहले तो हिंदू विचारक खुश हुए कि चलो बला टली पर जब वे आदिवासी ईसाई प्रचारकों की शिक्षा पा कर शहरी और मैदानी लोगों से बेहतर साबित होने लगे व पैसा कमाने लगे तो पांडित्यपन उभरने लगा. पैसे वाले बिना दानदक्षिणा के भारतभूमि में रह सकें, यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है.

जो उन्होंने पुद्दुचेरी और गोवा में किया वही मणिपुर में किया कि बाहर से ला कर लोगों को बासाना शुरू किया और आदिवासियों के मुकाबले में मंदिरनिर्माण शुरू हो गए. महाबलि मंदिर, गोविंदजी मंदिर, कृष्णा मंदिर, सनमाही मंदिर, नित्यानंद नरसिम्हा मंदिर और राधाकृष्ण चंद्रमोहन जैसे विशाल मंदिर बनने लगे. इन में मैतेई लोग ही ज्यादा जाते हैं. इन मंदिरों में जो पुजारी हैं उन में से अधिकांश के पुरखे देश के पश्चिमी हिस्सों से आ कर पिछली 3-4 सदियों में बसे थे.

शिक्षा पाने के बाद जब कुकी आदिवासी अपने अधिकारों को जानने लगे और जंगलों का सदुपयोग करने लगे तो हिंदू परिवार कम होने लगे. यह हिंदूवादियों को खला और पिछले 4-5 दशकों से लगातार हिंदू बनाम ईसाई द्वंद्व को मैतेई बनाम कुकी नाम दिया जा रहा है.

लगता है कि अब सरकार इस मूड में है कि आधुनिक हथियारों से लैस देश के मैदानी इलाकों से भेजी गईं फौजें ईसाई समर्थक कुकी समुदाय को उसी तरह दबा दें जैसे मैदानी इलाकों में पिछड़ों और दलितों को काबू में किया जाता है. यह विवाद जमीन या सत्ता का नहीं, दानदक्षिणा का है. हिंदू पुरोहित, जो ईसाई पुरोहितों के आने से पहले एकक्षत्र राज करते थे, अब पैसा पाने में पिछड़ रहे हैं.

इस की कमी मणिपुर को जला कर पूरी की जा रही है ताकि मैतेई हिंदू मंदिरों में शरण लें और कुकी सरकार के आगे समर्पण कर दें व चर्चों को बंद कर दें. जब तक ऐसा न होगा, मणिपुर की आग जलती रहेगी, कभी ज्यादा, कभी कम.

बीमारू राज्यों में शादी : लड़कियों की न क्यों

धर्म के एजेंडे में कभी महिलाएं नहीं रहतीं. धर्म हमेशा से ही महिलाओं का शोषण करता रहा है, उन पर पबदियां लगाता है. लिहाजा, बीमारू राज्यों ने अपने शहरों का विकास महिलाओं की नजर से न कर के पंडेपुजारियों की नजर से किया है. यहां महिलाओं की लाइफस्टाइल को बदलने का दबाव पड़ता है. अब हालत यह है कि लड़कियां इन राज्यों में शादी करने से बच रही हैं.

करीब 37 साल पहले 1986 में देश में बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की पहचान बीमारू राज्यों के रूप में की गई थी. ‘बीमारू’ शब्द इन राज्यों के इंग्लिश नाम के पहले अक्षर से ही लिया गया है. जैसे बिहार ‘बी’, मध्य प्रदेश ‘मा’, राजस्थान ‘र’ और उत्तर प्रदेश ‘ऊ’ लिया गया है. बीते सालों में गंगा-यमुना नदियों में बहुत सारा पानी बह गया. साल 2000 में विकास के नाम पर इन राज्यों का विभाजन किया गया. बिहार से अलग हो कर झारखंड, मध्य प्रदेश से अलग हो कर छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से अलग हो कर उत्तराखंड अलग राज्य बने. इन राज्यों को बने भी 23 साल बीत गए लेकिन यहां केवल मुख्यमंत्री बदलते रहे, राज्य के हालात नहीं बदले.

बीमारू राज्यों की संख्या 4 से बढ़ कर 7 हो गई. इन प्रदेशों के विकास में जो पैसा लगना चाहिए था उस से नेताओं और अफसरों ने अपनी जेबें भरी, अपने और अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के लिए रिश्वतखोरी कर के पैसे जमा किए. बिजनैस और जमीन पर इन का कब्जा हो गया, जिससे शहरों में रहने वाले आम लोगों के जीवन में कोई सुधार नहीं आया. शहरों में जाति और धर्म के दबदबे ने लाइफस्टाइल पर अपना प्रभाव डाला. यहां के रहने वालों की सोच नहीं बदली है. ये अभी भी दकियानूसी और रूढ़िवादी सोच में जकड़े हुए हैं जिस की वजह से बड़े शहरों की लड़कियां इन राज्यों में शादी नहीं करना चाहतीं.

सरकारों ने राज्यों के विकास की जगह केवल मंदिरों का प्रचार किया. प्रशासन ने संविधान की जगह ‘मोरल पुलिसिंग’ को बढ़ावा दिया. धर्म की बेड़ियों में जकड़े ये राज्य खुल कर जीने की आजादी नहीं देते हैं. दिल्ली की रहने वाली लड़की प्रीति अपनी दोस्त नेहा के साथ अयोध्या घूमने गई थी. इस दौरान वह सरयू नदी में नहाने गई. प्रीति ने पूरा बदन ढका काले रंग का कुरता और सलवार पहना हुआ था. उस ने सरयू में कई डुबकियां लगाईं. सरयू में नहाते हुए उस ने पुल के पास अपना एक वीडियो मोबाइल पर शूट कराया.

उस ने बाद में यह वीडियो अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया. जिस के बाद अयोध्या के रहने वालों ने प्रशासन से मांग करनी शुरू की कि इस तरह के वीडियो से अयोध्या की छवि खराब हो रही है. कट्टरवादी लोगों ने लड़की को गालियां देनी शुरू कीं. घबरा कर प्रीति ने अपना इंस्टाग्राम बंद कर दिया. यह अकेली घटना नहीं है. सरकार उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा दे कर वहां का विकास करना चाहती है. लेकिन पर्यटकों के साथ क्या हो रहा यह नहीं देख रही?

केदारनाथ मंदिर के सामने एक लड़का और लड़की ने पहले एकदूसरे को प्रपोज किया, बाद में अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म अदा करते एक वीडियो बना लिया. पीले कपड़ों में दोनों किसी भी तरह से गलत नहीं लग रहे थे. यह वीडियो भी वायरल हो गई. इस के बाद मंदिर प्रशासन जाग गया, उसे लगा कि यह धार्मिक भावनाओें को भड़काने वाला काम है. उस ने एक आदेश जारी कर दिया कि अब इस तरह के वीडियो यहां नहीं बनाए जा सकते. बनाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे. हरिद्वार में गंगा नदी नहाने गए कुछ युवकों को यह कह कर वहां के पंडों ने मारपीट कर भगा दिया कि वे वहां नहाने वाली महिलाओें के वीडियो बनाते हैं.

इन राज्यों में ‘मोरल पुलिसिंग’ के तमाम उदाहरण मिल जाएंगे. लखनऊ में इमामबाड़ा यानी भूलभुलैया घूमने गए ‘कपल’ को बिना गाइड अंदर जाने की अनुमति नहीं है. साथ ही साथ, सिर ढके और सलीकेदार कपड़े पहने ही जा सकती हैं. तर्क यह दिया जाता है कि भूलभुलैया केवल पर्यटन स्थल नहीं, पूजा स्थल भी है. शादी के बाद ज्यादातर कपल्स शहर घूमने जाते हैं वहां इस तरह का प्रतिबंध उन को अच्छा नहीं लगता. लिहाजा, वे ऐसे शहरों में शादी करने से परहेज करने लगते हैं.

समय के साथ और गहरी होती गई कट्टरता

पढ़ाईलिखाई और शिक्षा के बाद जहां बड़े शहरों में उदारवादी सोच बढ़ी, वहीं बीमारू राज्यों में समय के साथ ही साथ जाति और धर्म की दीवारें और भी गहरी होती गईं. इस की वजह राजनीति है. यहां चुनाव जीतने के लिए धर्म और जाति का सहारा लिया जाता है. इस कारण लोगों के दिमाग में वही भरा हुआ है. कट्टर रीतिरिवाजों के कारण लड़कियां यहां शादी करने से कतराती हैं.

पटना की रहने वाली सुप्रिया की शादी हाजीपुर में हो रही थी. उस समय उस की उम्र 20 साल की थी. इसी बीच उस के लिए एक रिश्ता मुंबई से आ गया. हाजीपुर में रहने वाला लड़का अपना बिजनैस करता था. उस की आर्थिक हालत काफी मजबूत थी. गाड़ी, बंगला सबकुछ उस के पास था. इस के बाद भी सुप्रिया का मन उस से शादी करने का नहीं हो रहा था. उस के सामने जैसे ही मुंबई में रहने वाले लड़के के साथ शादी की बात चली, वह तैयार हो गई. असल में सुप्रिया बचपन से ही मुंबई में रहने वाले लड़के के साथ शादी के सपने देखती थी. बड़े शहरों में शादी को ले कर लड़कियों के जिस तरह के सपने होते हैं, सुप्रिया भी वैसे ही सपने देखती थी.

घर, परिवार और रिश्तेदारों ने समझाया कि मुंबई वाला लड़का छोटी नौकरी करता है. उस के बदले हाजीपुर वाला लड़का ज्यादा पैसे वाला है. सुप्रिया पढ़ीलिखी लड़की थी. वह अपने पैरों पर खड़ी हो कर खुद का नाम पैदा करना चाहती थी. उसे लग रहा था कि मुंबई रह कर वह अपने सपने पूरे कर सकती है. हाजीपुर में रह कर उसे अपने मनपंसद काम करने को नहीं मिलेगा. इतनी पढ़ाईलिखाई के बाद भी उस की जिंदगी चैकाचूल्हा तक सिमट कर रह जाएगी. उस ने अपने परिवार वालों से मुंबई वाले लड़के के साथ शादी की रजामंदी दी. सुप्रिया के परिवार वाले अच्छे थे. उन्होंने अपनी बेटी की बात मानी, उस की भावनाओं का खयाल रखा.

शादी के बाद मुंबई जा कर सुप्रिया ने खुद भी नौकरी शुरू की. घर चलाने में पति की मदद की. इस के अलावा वह ऐक्टिंग करती थी. उस ने कई टीवी सीरियल किए. शादी के 5 साल बाद उस की पहचान बन गई. वह अपने पति और परिवार के साथ जब पटना आती है तो लोग उस से मिलने व देखने आते हैं. सुप्रिया कहती है, ‘पैसे से बड़ी बात अपनी आजादी होती है. जीवन में अपने मनमुताबिक करने को मिल जाए, तो सब से बड़ी मुराद मिल जाती है. खुले विचारों के साथी, घर, परिवार और माहौल का मिलना मुश्किल होता है. जीवन केवल चैकाचूल्हा के लिए नहीं होता है.’

सुरक्षित माहौल देने में नाकाम रही सरकारें

पटना और मुंबई की आपस में तुलना करना बेमानी बात है. जिस समय लालू प्रसाद यादव वहां के मुख्यमंत्री बने तो वहां पर जातिवाद चरम पर था. दलित, पिछड़ी जाति को खुल कर रहने और अपनी बात कहने का हक नहीं था. 5 दिसंबर, 1994 को मुजफ्फरपुर में तत्कालीन डीएम जी कष्णैया की हत्या भीड़ ने पीटपीट कर कर दी. जातिवाद खत्म करतेकरते लालू प्रसाद यादव ने जंगल राज स्थापित कर दिया. लालू के बाद सुशासन की बात करने वाले नीतीश कुमार केवल अपनी कुरसी बचाने में लगे रहे. उन को देश ‘पलटू कुमार’ के नाम जानता है.

पटना बिहार की राजधानी है. इस के बाद भी यहां के हालात बदतर हैं. यहां अभी तक एक भी फाइवस्टार होटल नहीं है. होटल मौर्या फोरस्टार होटल है. इस के अलावा होटल पलाश है जो मौर्या के बाद बना. पटना में छोटेबड़े 10-12 मौल और मल्टीप्लैक्स सिनेमाहौल हैं. यहां पर 5-6 सिंगल स्क्रीन सिनेमाहौल हैं. ट्रासपोर्ट के रूप में यहां ओला और उबर की सुविधाएं शुरू हो गई हैं लेकिन अभी भी अकेली महिला के लिए रात के सफर में खतरे हैं. नई शादीशुदा लड़की तो सजधज कर किसी हालत में जाने का साहस नहीं कर सकती. जबकि, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में ये दिक्कतें नहीं हैं.

दिल्ली में रहने वाली शिवानी सौफ्टवेयर इंजीनियर है. परिवार वालों ने उस की शादी रांची के रहने वाले लड़के से तय कर दी. लड़के के परिवार वाले उसे देखने दिल्ली आए. शादी की सारी बातों के बीच लड़की वालों ने शर्त रख दी कि शादी के बाद शिवानी को अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योंकि घरवाले यह नहीं चाहते हैं कि लड़का शिवानी के साथ दिल्ली आ कर रहे. लड़के वालों की नजर में प्राइवेट नौकरी का कोई महत्त्व नहीं था. शिवानी को लगा कि अगर उस की शादी इस लड़के से हो गई तो उस की पूरी पढ़ाई बेकार चली जाएगी. रांची और आसपास के शहरों में उस के लायक कोई नौकरी भी नहीं थी. दूसरे, उस की ससुराल वाले यह पंसद भी नहीं करते हैं कि शादी के बाद शिवानी नौकरी करे. ऐसे में यह शादी नहीं हो सकी.

रांची झारखंड की राजधानी है. यह एक हिल स्टेशन भी है. यहां एक एयरपोर्ट है. आनेजाने का सब से अच्छा साधन सड़कमार्ग को ही माना जाता है. पटना की ही तरह रांची में भी फाइवस्टार होटल नहीं है. यहां कैपिटल हिल, सरोवर पोर्टिको, चाणक्या बीएनआर जैसे फोरस्टार होटल हैं. रांची का सब से बड़ा मौल बिग बाजार है. ऐसे में दिल्ली की रहने वाली लड़की कैसे रांची जैसे शहर में शादी करने के लिए राजी हो सकती है. हिल स्टेशन घूमने के लिए अच्छे होते हैं, वहां बसना कोई पंसद नहीं करता है.

धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा

बीमारू राज्यों में धर्म की राजनीति को चमकाने के लिए पूरा फोकस धार्मिक पर्यटन पर रहता है. धर्मस्थलों पर किसी तरह की आजादी नहीं रहती है. नए कपल्स जब घूमने जाते हैं तो वे अपनी आजादी चाहते हैं जिस से वे मनपंसद के कपड़े पहन सकें. एकदूसरे के साथ खुल कर बात प्यारमोहब्बत कर सकें. इस की यहां आजादी नहीं होती. उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों जैसे प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ, आगरा और बरेली में फाइवस्टार होटल और रिसोर्ट हैं.

प्रयागराज में एक फाइवस्टार होटल कान्हा श्याम है. यहां केवल कुंभ मेले और संगम स्नान के लिए लोग आते हैं. वाराणसी में ताज गैगेज, रेडीसन जैसे कई सेवन और फाइवस्टार होटल हैं. यहां पर्यटक काशी विश्वनाथ और गंगा दर्शन के लिए आते हैं. लखनऊ में ताज होटल, क्लार्क अवध होटल, रमाडा जैसे कई सेवन और फाइवस्टार होटल हैं. यहां घूमने लायक कोई ऐसी जगह नहीं है जिसे देखने कपल्स आएं. आगरा में भी ताज, रेडीसन और मैरिएट जैसे फाइवस्टार होटल हैं. यहां लोग ताजमहल देखने आते हैं लेकिन कुछ समय से चलरही ताजविरोधी मुहिम ने आगरा की छवि को धूमिल किया है.

असल में प्रदेश में सरकारों का ध्यान केवल मंदिरों के विकास पर रहा है. वे सरकारी गेस्ट हाउस और होटलों का रखरखाव भी सही तरह से नहीं कर पाईं. जिस के कारण गोमती होटल जैसे सरकारी होटल अव्यवस्था का शिकार हैं. इन शहरों में केवल मंदिर दर्शन के लिए ही लोग आते हैं. नए शादीशुदा कपल्स के लिए इन शहरों में घूमने लायक जगह नहीं है. एक आगरा ही ऐसा है जहां ताजमहल देखने लोग जाना चाहते हैं. कुछ समय से ताजमहल पर भी सवाल उठने लगे हैं. उसे मकबरा बता कर वहां कपल्स को जाने से मना किया जाता है.

मायावती ने अपने समय में जो मंदिर जैसे मूर्तियों वाले पार्क बनवाए उन पार्कों में मायावती ने अपनी मूर्ति के साथ ही साथ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम और कई दलित महापुरुषों की मूर्तियां लगवाईं. इस से न लखनऊ, नोएडा जैसे शहरों का कोई भला हुआ और न यहां रहने वालों का. इन पार्कों में भी घूमने वालों को ध्यान रखना पड़ता है कि ये दलित स्वाभिमान से जुड़े पार्क हैं.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद तो प्रदेश में धर्म का बोलबाला हो गया है. सरकार का सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि नमाज ठीक से पढ़ लें, कांवड़ यात्रा निकल जाए, मूर्तियों को नुकसान न पहुंचे. कहने के लिए लखनऊ बदल रहा है लेकिन मुंबई, दिल्ली की तरह ‘हौट पैंट’ पहने कोई लड़की अकेले ’ओला’ ‘ऊबर’ टैक्सी बुक कर के रात को अकेले सफर नहीं कर सकती. नई शादीशुदा लड़की जेवर पहन कर रात में सफर नहीं कर सकती. जब वह कोई शिकायत करती है तो पुलिस उस को ही सिखाती है कि रात को अकेले जाने की क्या जरूरत थी.

5 साल पहले एप्पल कंपनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी अपनी एक सहयोगी को छोड़ने रात को उस के घर जा रहे थे. जनेश्वर पार्क के पास पुलिस ने उन से रुकने को कहा. उन लोगों ने गाड़ी रोकने में देर कर दी. इस के बाद पुलिस के एक सिपाही ने विवेक तिवारी को गोली मार दी. मामला सुर्ख़ियों में रहा. ऐसे शहर में रात में कपल्स कैसे निकल सकते हैं, यह सोचने वाली बात है.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ‘बुलडोजर’ की वाहवाही की जा रही है. उस को कानून के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. इस के बाद भी लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. कालोनियों में सड़क चलती महिलाओं के गले से चेन लूट ली जाती है. यही नहीं, यहां पर धार्मिक नफरत फैलाने वाले मैसेज भी खूब चलते हैं. एक मैसेज में कहा गया कि वाराणसी में गंगा आरती करने वाले विभू उपाध्याय ने नीट की परीक्षा पास की. मीडिया में इस का जिक्र नहीं हुआ. यही अगर बुरका पहने कोई लड़की पास करती तो उस की बड़ी ‘तारीफ’ होती.

जातिधर्म के खाचें में जनता को बांट कर लोगों का ध्यान जरूरी मुददों से हटाने के लिए किया जाता है. इस के पीछे सरकार और उस के सहयोगी संगठनों का हाथ होता है. उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में सिद्धांत तिवारी नामक युवक ने वीडियो जारी करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की कि वह जब हनुमान चालीसा का पाठ करता है तो उस के घर के सामने मांस के टुकडे फेंकने की धमकी दी जाती है. इस के लिए तौफीक और सानू को जिम्मेदार बताया. पुलिस ने तौफीक और सानू सहित 12 अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के छानबीन शुरू कर दी. जबकि, राजधानी लखनऊ में जब चेन छीनने की घटना होती है तो पुलिस मुकदमा भी दर्ज करने में आनाकानी करती.

बदल रही लड़कियों की सोच

आज के दौर में सोच बदल रही है. लड़का और लड़की के साथ मातापिता पढ़ाई और कैरियर में भेदभाव नहीं करते हैं. वे लड़की की शिक्षा पर उतना ही खर्च करते हैं जितना खर्च लड़के की शिक्षा पर करते हैं. अब पढ़ाई सस्ती नहीं रह गई है. ज्यादातर लड़कियां इजीनियरिंग और एमबीए करती हैं. कुछ सरकारी नौकरी में कंपीटिशन की तैयारी करती हैं. इसी दौर में उन की शादी का समय भी होता है. कुछ पढ़ाई कर के प्राइवेट नौकरी भी कर लेती हैं. ऐसे में अगर ससुराल के लोग खुले विचारों और सहयोगी स्वभाव के नहीं होते तो दिक्कत होने लगती है. छोटे शहरों के रहने वालों के मन में यह रहता है कि पढ़ीलिखी लड़की उन के दकियानूसी विचारों के हिसाब से नहीं चलेगी, लिहाजा वे उस से बचने का प्रयास करते हैं.

लड़कियां कोचिंग करने दिल्ली या कोटा जाना चाहती हैं. अगर इन को पढ़ाई के लिए कालेज चुनने की आजादी दी जाती है तो ये बेंगलुरु और दिल्ली के कालेज चुनती हैं. अपने शहर के कालेजों में जाना पंसद नहीं करतीं. उस की वजह यह है कि यहां के कालेजों में वह माहौल पढ़ाई का नहीं है जो बड़े शहरों के कालेजों में होता है. यह बात उन के मन में रहती है जिस से शादी के मसले पर भी वे यही फैसला लेती हैं. एक समय पर लखनऊ, इलाहाबाद और बनारस यूनिवसिटी के छात्र दीवाने होते थे, अब वहां वही जाते हैं जो बड़े शहरों में जा कर पढ़ नहीं सकते. सरकार यूनिवर्सिटी के माहौल को सही करने की जगह पर शहरों के नाम बदलने में लगी रही.

छोटे और बड़े शहरों में रहने वालों के बीच विचारों का बड़ा अंतर होता है. जिस तरह से पतिपत्नी बड़े शहरों में मिलजुल कर काम करते हैं, छोटे शहरों में सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता. दिल्ली, मुंबई में पतिपत्नी मिल कर अपनी छोटी सी दुकान चला सकते हैं, उस तरह से छोटे शहरों में मिलजुल कर काम नहीं कर सकते. पति अगर पत्नी को मानसम्मान और प्यार देने लगे तो उसे ‘जोरू का गुलाम’ कहा जाने लगता है. इस तरह की तमाम बंदिशें हैं जो बड़े शहरों की लड़कियों को छोटे शहरों में जाने से रोकती हैं.

मनचाही शादी के अधिकार कम

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड में लड़कियों को मनचाही शादी के सब से कम अधिकार दिए जाते हैं. कम उम्र में शादी का रिवाज इन्हीं प्रदेशों में सब से अधिक है. कन्याभ्रूण हत्या से ले कर औनर किलिंग तक की सब से अधिक घटनाएं यहीं घटती हैं. दहेज जैसी कुप्रथा यहां सदियों से चल रही है. लड़कियों की भ्रूणहत्या तो बाद की बात है, राजस्थान में तो पहले लड़कियों को पैदा होने के बाद मार दिया जाता था. बालिका वधू सब से अधिक राजस्थान में पाई जाती हैं. विधवा महिलाओं के साथ बेहद खराब सुलूक यहां पर किया जाता है. इन के चलते लड़कियां यहां शादी करने से बचती हैं.

अंतरधार्मिक शादियों को रोकने के लिए कई तरह के प्रतिबंध हैं. कुछ दिनों पहले जबलपुर की रहने वाली लड़की प्रतिभा ने गैरधर्म के लड़के के साथ शादी कर ली. लड़की के घर वाले इतने नाराज हुए कि उन्होंने लड़की को मरा हुआ मान कर उस का क्रियाकर्म, तेरहवीं कर दी. कार्ड छपवा कर इस की सूचना पूरे समाज को दे दी. इस तरह की घटना राजस्थान में भी प्रकाश में आई थी. इस तरह की शादियों को रोकने के लिए सरकार ने लव जिहाद कानून बनाया है. जबकि अदालतें लगातार अपने फैसलों में कह रही हैं कि किसी बालिग लड़की को अपने मनपसंद लड़के से शादी करने की आजादी है.

उत्तराखंड में रहने वाले भाजपा नेता यशपाल बेनाम की बेटी मोनिका की शादी मुसलिम धर्म के मोनिस के साथ तय हो गई. दोनों ही परिवार राजी थे. शादी के कार्ड भी छप गए. इस के बाद यह बात सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. लोगों ने फिल्म ‘केरल फाइल्स’ के मुददे को ले कर यशपाल बेनाम की आलोचना शुरू कर दी. लिहाजा, परेशान हो कर यशपाल बेनाम को घोषणा करनी पड़ी कि यह शादी कैंसिल की जाती है. सरकारों ने वोट के लिए जाति और धर्म के नाम पर लोगों के मन में इतना जहर भर दिया है कि अब घर, परिवार इस से प्रभावित होने लगे हैं.

कटटरता के चलते विकास की दौड में पिछड़े

जहां देशभर के दूसरे राज्य अपने ढांचे को सुधारने का काम कर रहे हैं, वहीं बीमारू राज्यों के शहर अपने को धार्मिक कटटरता में उलझा रहे हैं. इस के पीछे भाजपाई सरकारों की रणनीति है. वे चाहती हैं कि इन मुददों में उलझ कर जनता विकास की बात न करे. वह शिक्षा और रोजगार की बातें न करे. इस का असर यह हो रहा है कि अब लड़कियां इन शहरों में शादी के लिए तैयार नहीं हो रहीं.

नेपाल जैसे छोटे राज्य ने अपने यहां विश्व स्तर के काठमांडू और पोखरा जैसे पर्यटन स्थल विकसित कर लिए है. बीमारू राज्यों का आधारभूत ढांचा बड़ा होने के बाद भी वे इस तरह का विकास नहीं कर पाए हैं. नेपाल भी धार्मिक राज्य है. वहां भी मंदिर हैं लेकिन वहां की लाइफस्टाइल अलग है. वहां कोई यह नहीं कहता कि पर्यटक किस तरह के कपड़े पहनें और किस तरह के नहीं. कोई भगवा गैंग वहां पर लोगों को रोकनेटोकने का काम नहीं करता है.

बीमारू राज्यों के पिछड़े शहर

मुंबई, दिल्ली, बेंगलूरु और चेन्नई जैसे शहरों में रहने वाली लड़कियों की शादी के लिए लड़का अगर पटना, भोपाल, रायपुर, रांची, लखनऊ, देहरादून और जयपुर जैसे शहरों का रहने वाला हो तो शादी के लिए हां करने से पहले लड़कियां कई बार सोचती हैं. वहीं अगर पटना, भोपाल, रायपुर, रांची, लखनऊ, देहरादून और जयपुर जैसे शहरों की लड़कियों से मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई में शादी करने की बात होती है तो वे तुरंत हां कर देती हैं. इस की वजह यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड अभी भी लाइफस्टाइल के हिसाब से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु से बहुत पीछे हैं.

इस की वजह यही है कि यहां कटटरता है. रीतिरिवाज ऐसे हैं जो जीने की आजादी नहीं देते. सासससुर पुरानी सोच के हैं. लड़कियां अपने घर के अंदर परिवार के बीच अभी भी घूघंट निकालने को मजबूर होती हैं. पति के साथ घूमने जाना हो तो सौ बार सोचना पड़ता है कि क्या पहनें, कैसे जाएं.

भारत के 10 सबसे अमीर शहरों में मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद, सूरत और विशाखपतनम का नाम आता है. यह गणना इन शहरों की जीडीपी, प्रति व्यक्ति आय, रोजगार के अवसर, आधारभूत सुविधाएं, लाइफस्टाइल और बिजनैस के माहौल के आधार पर की गई है. देश के टौप 10 शहरों में बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का कोई भी शहर नहीं है. इस से पता चलता है कि लड़कियां क्यों इन प्रदेशों में शादियां नहीं करना चाहती हैं. इन प्रदेशों के कुछ शहरों को छोड़ दें तो बाकी की हालत बहुत ही खराब है. इन को रहने के हिसाब से अच्छा नहीं माना जाता है.

महिला अपराध में सब से आगे

राष्ट्रीय महिला आयोग ने महिला अत्याचार पर वर्ष 2021 में मिली शिकायतों की एक सूची जारी की. सूची में राज्य उत्तर प्रदेश सब से पहले नंबर पर निकला. आगे के नंबरों पर राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश के नाम भी दर्ज थे. राष्ट्रीय महिला आयोग की जारी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में 764 और 2020 में 907 मामले दर्ज हुए थे. ये 2021 खत्म होतेहोते बढ़ कर 1,130 तक पहुंच गए. राजस्थान में साल 2021 में महिला अत्याचार की कुल 1,130 शिकायतें मिलीं. 3 साल के भीतर ही आयोग को मिलने वाली शिकायतों में 47.90 फीसदी और एक साल में ही 24 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.

राष्ट्रीय महिला आयोग को वर्षभर में मिलने वाली शिकायतों के आधार पर जारी इस रिपोर्ट में राज्यवार घरेलू हिंसा, गरिमा हनन समेत कई तरह के मामले शामिल हैं. रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश 15,828 शिकायतों के साथ पहले नंबर पर था. राजस्थान से आयोग को मिली 1,130 शिकायतों में से सब से ज्यादा 338 गरिमा हनन की हैं. इस के बाद घरेलू हिंसा की कुल 217 शिकायतें हैं. इस के अलावा साइबर क्राइम, यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना समेत कई अन्य मामलों को ले कर भी शिकायतें दर्ज कराई गई हैं.

टौप 8 राज्यों में बीमारू राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के नाम शामिल हैं. अपराध के ये आंकड़े भी लड़कियों को डराते हैं जिस की वजह से वे यहां अपना घर बसाना पंसद नहीं करती हैं. रोजीरोजगार के बाद अपराध के मामलों में भी ये राज्य सब से खराब माने जाते हैं. अपराध के बाद यहां की पुलिस का व्यवहार बहुत खराब होता है. उत्तर प्रदेश का ‘हाथरस कांड’ इस का एक बड़ा उदाहरण है.

उत्पादन कम और जनसंख्या ज्यादा

नेताओं ने बीमारू राज्यों की प्रगति पर ध्यान नहीं दिया जिस की वजह से ये पिछड़ते चले गए. इन राज्यों में जनसंख्या का भार अधिक है. उत्तर प्रदेश से अलग हो कर अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की जो प्रगति दिख रही है वह धार्मिक पर्यटन की वजह से है. जिस से राज्य में खतरे भी बढ़े हैं. जोशीमठ जैसे शहर धंसने लगे हैं जिस से वहां के रहने वाले अपने घर छोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं.

छत्तीसगढ़ मानव विकास सूचकांक की मध्य श्रेणी में आता है. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड पिछड़ रहे हैं. इन राज्यों की सब से बड़ी दिक्कत यहां की जनसंख्या है. जिस की वजह से ये राज्य जितना उत्पादन करते हैं उस से अधिक भोजन का उपभोग करते हैं. हरियाणा और पंजाब जैसे बहुत छोटे राज्य समृद्ध हैं क्योंकि वे उत्पादन अधिक करते हैं. वहां खेत हों या कारोबार, महिलापुरुष मिलजुल कर काम करते देखे जाते हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसे हालात नहीं हैं.

भारत के बीमारू राज्यों में प्रजनन दर सब से अधिक है. 2010 में बिहार में कुल प्रजनन दर 3.9, उत्तर प्रदेश में 3.5, मध्य प्रदेश में 3.2 और राजस्थान में 3.1 थी, जबकि पूरे भारत के लिए यह 2.5 थी. इस के कारण इन राज्यों में शेष भारत की तुलना में अधिक जनसंख्या वृद्धि हुई है. इस का असर यहां की शिक्षा पर भी पड़ता है. 2011 की जनगणना के अनुसार बीमारू राज्यों में साक्षरता दर बिहार 63.8 प्रतिशत, राजस्थान 67.1 प्रतिशत, झारखंड 67.6 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 70.6 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश 71.7 प्रतिशत हैं. जबकि, राष्ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत है. ये राज्य वर्तमान साक्षरता दर में राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं.

भारत के 10 सब से गरीब राज्यों की सूची में छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के नाम शामिल हैं. छत्तीसगढ़ की जीडीपी 3.25 लाख करोड़ यानी 50 बिलियन डौलर है. यह राज्य साल 2000 से पहले मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. बाद में इसे अलग राज्य बना दिया गया. अब यह देश के सब से गरीब स्टेट की सूची में आता है. छत्तीसगढ़ की 37 प्रतिशत जनता गरीब है. हालांकि, यहां भारत का 15 प्रतिशत स्टील उत्पादन होता है. झारखंड की जीडीपी 2.82 लाख करोड़ रुपए यानी 43 बिलियन डौलर है. यह राज्य पहले बिहार का हिस्सा हुआ करता था. साल 2000 में इसे भी अलग राज्य बना दिया गया था. इस राज्य में गरीबी का स्तर करीब 36.96 प्रतिशत है.

बिहार की जीडीपी 5.15 लाख करोड़ यानी 80 बिलियन डौलर है. बिहार में काफी बेरोजगारी है, इस वजह से इस राज्य के लोग दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं. बिहार की आधी से अधिक आबादी गरीबीरेखा से नीचे जी रही है. यह राज्य भी कृषिप्रधान राज्य है और इस राज्य के ज्यादातर लोग कृषि से अपना जीवनयापन कर रहे हैं. इस राज्य का गरीबी स्तर 33.74 प्रतिशत के आसपास है.

मध्य प्रदेश की जीडीपी 8.26 लाख करोड़ रुपए यानी 126 बिलियन डौलर है. भारत के मध्य में बसा मध्य प्रदेश का गरीबी स्तर 31.65 प्रतिशत है. इस राज्य में सब से ज्यादा अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के लोग रहते हैं. यह राज्य आदिवासी लोगों के लिए भी जाना जाता है. यहां के ज्यादातर लोग रोजीरोजगार के लिए वन संपदा पर आश्रित हैं.

उत्तर प्रदेश की जीडीपी 14.89 लाख करोड़ रुपए यानी 230 बिलियन डौलर है. यह देश का सब से बड़ा प्रदेश होने के साथ एक गरीब राज्य भी है. उत्तर प्रदेश के लोग भी बिहार के लोगों की तरह रोजगार के लिए भारत के दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं. इस का नाम भारत के सब से गरीब राज्य में आता है. इस राज्य का गरीबी स्तर 29.43 प्रतिशत है.

सब से बड़ी राजनीतिक ताकत

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार इन राज्यों में देश की करीब 37 प्रतिशत आबादी रहती है. भूगोल की नजर से देखें तो ये राज्य देश के 30 प्रतिशत जमीन पर कब्जा रखते हैं. प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से देखें ये राज्य बहुत ही कमजोर हैं. आंकड़ों की बात करें तो अब ये राज्य खुद को बीमारू राज्य नहीं मानते हैं. राजस्थान अपने को पहले ही इस से बाहर मानता है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार भी इस को मानने को तैयार नहीं हैं. लेकिन प्रति व्यक्ति आय इन प्रदेशों की पोल खोल देती है.

भारत में प्रति व्यक्ति आय के पैमाने से देखें तो 2019-20 की गणना के हिसाब से उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय 2 लाख 26 हजार 144 रुपए, राजस्थान की प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 28 हजार 319 रुपए, मध्य प्रदेश 1 लाख 13 हजार 79 रुपए, छत्तीसगढ़ 1 लाख 5 हजार 281 रुपए, झारखंड 87 हजार 127 रुपए, उत्तर प्रदेश 74 हजार 141 रुपए और बिहार 50 हजार 735 रुपए है. प्रति व्यक्ति आय की गणना में सब से निचले पायदान पर झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य आते हैं. सब से शिखर पर गोवा है जहां की प्रति व्यक्ति आय 5 लाख 20 हजार 31 रुपए है. भारत में औसत प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 72 हजार रुपए है. उत्तराखंड को छोड़ कर बाकी बीमारू राज्य राष्ट्रीय औसत से भी कम हैं.

बीमारू राज्य राजनीतिक रूप से पावरफुल राज्य हैं. राजस्थान में लोकसभा की 25 और विधानसभा की 200 सीटें, छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 और विधानसभा की 90 सीटें, मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 और विधानसभा की 230 सीटें, बिहार में लोकसभा की 40 और विधानसभा की 243 सीटें, झारखंड में लोकसभा की 14 और विधानसभा की 81 सीटें, उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 और विधानसभा की 402 सीटें और उत्तराखंड में लोकसभा की 5 और विधानसभा 70 सीटें हैं.

इस तरह से देखें तो लोकसभा की कुल 205 सीटें इन 6 राज्यों में हैं, जिन को बीमारू राज्यों की श्रेणी में रखा गया था. जो यहां जीत हासिल करेगा उसे केंद्र में सरकार बनाने से कोई रोक नहीं सकता. उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि ‘दिल्ली की कुरसी का रास्ता यूपी से हो कर जाता है.’ इस की वजह यह है कि यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. 2014 और 2019 में भाजपा केंद्र में तब सरकार बना पाई जब उस ने उत्तर प्रदेश से क्रमशः 72 और 66 लोकसभा की सीटें जीती थीं.

मेहनत नहीं करना चाहते लोग

प्राकृतिक संसाधनों और राजनीतिक ताकत से भरपूर होने के बाद भी ये राज्य बीमारू क्यों हैं? जब इस प्रश्न का जवाब देखते हैं तो पता चलता है कि बीमारू राज्यों के लोग ‘अजगर करे न चाकरी पंक्षी करे न काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम’ की कहावत पर यकीन करते हैं. वे मेहनत की जगह पर भाग्य की लकीरों पर अधिक भरोसा करते हैं. इसी वजह से प्रकृति ने जो उपहार दिया वे उस का लाभ नहीं उठा पा रहे. किसी भी राज्य की प्रगति में वहां की जनता के साथ ही साथ सरकार का भी बड़ा हाथ होता है. राज्य की प्रगति का ढांचा और सुरक्षा का काम सरकार ही करती है.

पिछले 36 सालों से ये राज्य विकास पर ध्यान देने की जगह जाति और धर्म की राजनीति का शिकार हो गए. इन के मुकाबले दूसरे राज्यों, जैसे महाराष्ट्र ने फिल्म उद्योग को बढ़ावा दिया. कपास की खेती में कमाल का काम किया. गुजरात ने औद्योगिक प्रगति के साथ ही साथ दूध उत्पादन में सब से अहम भूमिका निभाई. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों ने हरित क्रांति के मौडल को अपनाया और अपने को खुशहाल बनाया.

इन के मुकाबले उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड जैसे राज्य राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते रहे. धरनाप्रदर्शन, तोड़फोड़, रेल की पटरियों को उखाड़ने जैसे कामों में यहां के युवाओं की भूमिका सब से अधिक रहती है. इस के बाद उन की पंसद का काम धार्मिक आयोजन होता है. यहां के रहने वालों को रोजीरोजगार के मसले में बिजनैस करने की जगह पर नौकरी करना ज्यादा पंसद है. इस में भी सरकारी नौकरी के लिए सब से ज्यादा प्रयास होता है. इस की खास वजह यह होती है कि सरकारी नौकरी में कामचोरी करने का मौका मिलता है. साथ में, रिश्वतखोरी करने का मौका भी मिलता है. जो सरकारी नौकरी पाने में सफल नहीं होते वे राजनीति में अपना कैरियर बनाते हैं.

इन प्रदेशों का गरीब वर्ग नौकरी तो नहीं कर पाता पर वह मजदूरी करने के लिए विदेश ही नहीं, देश के कई प्रदेशों में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करता है. अपने खेतों से अधिक इन को दूसरे के खेतों में काम करना अच्छा लगता है. पंजाब, हरियाणा के खेतों और मुंबई, सूरत की फैक्ट्रियों में सब से अधिक इन्हीं प्रदेशों के लोग काम करते हैं. मुंबई, दिल्ली की टैक्सी चलाने वाले इन्हीं प्रदेशों के लोग हैं. कोरोना के समय जब लौकडाउन लगा तो पता चला कि सब से अधिक प्रवासी मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश के ही हैं.

ऐसा नहीं कि इन प्रदेशों की जमीन उपजाऊ नहीं है. यह गंगा यमुना का मैदान है. हर तरह की खेती यहां हो सकती है. लेकिन यहां के रहने वाले जमीन बेच कर राजनीति करते हैं. सरकारी नौकरी हासिल करने की कोशिश करते हैं. ये खेत पर मेहनत नहीं करना चाहते. अपने खेतों को बंटाई पर दे देते है. उत्तर प्रदेश में खेती करने वालों में बाहरी लोग ही अधिक हैं. प्रदेश की तराई बेल्ट में बड़ी संख्या पंजाब से आए किसानों ने खेती की हालत बदल दी. इन किसानों ने जंगलों को काट कर खेत बना दिया. जहां कभी जलभराव होता था, फसल नहीं पैदा होती थी वहां पंजाब से आए किसानों ने गन्ना, गेहूं और धान की फसल लहलहा दी.

बीमारू राज्यों में 1990 के पहले यादव और कुर्मी 2 ऐसी जातियां थीं जो खेती के काम करती थीं. मंडल कमीशन लागू होने के बाद इन जातियों ने अपनी राजनीतिक ताकत तो पहचानी पर किसानी के गुण को खो दिया. चौधरी चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव पहले किसान नेता के रूप में जाने जाते थे, बाद में इन की पहचान पिछड़े नेताओं में होने लगी. बिहार में भी इस तरह से बदलाव हुआ. राजनीतिक चेतना ने किसानी को खत्म करने का काम किया. जिस से इन राज्यों की माली हालत खराब हुई. राजनीतिक ताकत ने यहां के लोगों को भ्रष्टाचारी बना दिया. राजनीतिक अवसरवाद के लिए सब से अधिक दलबदल इन्हीं प्रदेशों के नेता करते हैं.

धर्म और जाति ने बिगाड़ा माहौल

एक दौर था कि राजनीति में उत्तर प्रदेश और बिहार का सब से बड़ा योगदान होता था. उत्तर प्रदेश सब से अधिक प्रधानमंत्री देने वाला प्रदेश है. 1990 तक केवल मोरारजी देसाई को छोड़ कर सारे प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से थे. इन में जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश से ही रहे हैं. 1990 के बाद अटल बिहारी वाजपेई एक मात्र ऐसे नेता रहे जो उत्तर प्रदेश के थे. बाकी प्रधानमंत्रियों में नरसिम्हा राव, इंद्रकुमार गुजराल, देवगौडा, डाक्टर मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी बाहरी प्रदेशों के रहने वाले थे. नरेंद्र मोदी गुजरात के रहने वाले हैं. वहां वे मुख्यमंत्री रहे. उत्तर प्रदेश के राजनीतिक महत्त्व को समझने के बाद नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश से ही लोकसभा का चुनाव लड़े.

उत्तर प्रदेश में 1990 के बाद से जाति और धर्म की ऐसी हवा चली कि विकास की बातें बेमानी हो गईं. 1989 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद से जाति की राजनीति ने उत्तर प्रदेश के साथ ही साथ बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के सामाजिक परिवेश को बदल कर रख दिया. इस के जवाब के लिए अयोध्या में राममंदिर बनाने के लिए आंदोलन तेज हुआ. जिस की वजह से जाति और धर्म ने पूरे प्रदेश को जकड़ लिया. जिस से विकास के काम पर पूजापाठ हावी हो गई. इन का प्रभाव भी महिलाओं की निजी जिंदगी पर पड़ा. महिलाओं से यह आपेक्षा की जाने लगी की वे पूजापाठ करें, धार्मिक यात्राओं में सिर पर कलश ले कर पीली साड़ी पहन कर जूलूस में शामिल हों आदि.

कुरसी पर कायम लेकिन विकास नहीं

धर्म को चुनाव जीतने का जरिया बना दिया गया. इसी को आगे बढ़ाते हुए 2017 में मुख्यमंत्री की कुरसी पर योगी आदित्यनाथ को बैठा दिया गया, जिन की कोई प्रशासनिक योग्यता नहीं थी. धार्मिक पहचान होने के कारण उन को देश के सब से बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया. चुनाव जीतने के लिए हिंदूमुसलिम का धार्मिक धुव्रीकरण किया गया. जिस की वजह से प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल खराब हुआ.

2017 से ले कर 2022 तक कई इंवैस्टर समिट के जरिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए पर प्रदेश में उस हिसाब से उद्योगधंधों का माहौल नहीं बना. केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार ने अपनी विकास योजनाओं की जगह पर धर्म को महत्त्व देना शुरू किया. वे अपने प्रदेश में विकास के लिए धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहे हैं. इस में सभी प्रदेशों में होड़ लगी है.

बिहार में नीतीश कुमार लंबे समय से मुख्यमंत्री की कुरसी संभाले हुए हैं. वे अपना सारा प्रयास अपनी कुरसी बचाने के लिए ही इस्तेमाल करते हैं. कभी भाजपा के साथ जाते हैं, कभी लालू यादव की पार्टी राजद के साथ. ऐसे में उन को बिहार के लिए सोचने का समय ही नहीं मिलता. शुरुआती दौर में नीतीश कुमार को अपने अच्छे राजकाज के लिए ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाना जाता था. धीरेधीरे उन का नाम ‘सुशासन बाबू’ से ‘पलटू कुमार’ पड़ गया.

बीमारू राज्यों में शामिल मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान 4 बार सत्ता संभाल चुके हैं. इस राजनीतिक स्थिरता के बाद भी वे प्रदेश को कोई पहचान नहीं दिला पाए. जनता में पहले उन की पहचान ‘मामा’ के रूप में थी. जनता उन को मामा के नाम से पुकारती थी. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उन को ‘बुलडोजर बाबा’ कहा जाने लगा तो शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी पहचान बदलने का काम शुरू किया. इस के बाद उन को ‘बुलडोजर मामा’ कहा जाने लगा.

बड़े प्रदेशों की राह पर चलतेचलते उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड भी केवल सत्ता पाने का जरिया बने रहे. उत्तराखंड में 22 साल में 11 मुख्यमंत्री आए और गए. यहां की धार्मिक पहचान को बनाने के लिए नेचर को खराब करने का काम किया गया. जिस की वजह से जोशी मठ जैसे शहरों पर संकट आ गया. वहां के रहने वालों को सब से अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा. यहां भी महिलाएं ही मुसीबत में फंसीं. घूमने के लिए भले ही उत्तराखंड अच्छा माना जाता हो पर यहां रहने के लिए लोग तैयार नहीं होते हैं. आज भी यहां के लोग नौकरी करने के लिए बाहरी शहरों में जाते हैं.

पहले उत्तराखंड को महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाता था. अब यहां नौकरी करने वाली लड़कियों के लिए खतरे बढ़ गए हैं. हरिद्वार के पास रिसोर्ट में काम करने वाली अंकिता की हत्या रसूखदार परिवार के लोगों ने कर दी. बहुत सारे प्रयासों के बाद भी अंकिता की हत्या का राज सामने नहीं आ सका. इस से अब बाहरी लड़कियां यहां नौकरी करने के लिए तैयार नहीं होती हैं. लड़कियों के लिए यह असुरक्षित माना जाता है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड में धार्मिक माहौल खराब हो रहा है. हिंदूमुसलिम आमनेसामने आ गए हैं.

राजस्थान में हर 5 साल पर सरकार बदलने का रिवाज है. जिस से एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस सत्ता में आती है. अशोक गहलोत इस समय वहा के मुख्यमंत्री हैं. अशोक गहलोत और सचिन पायलेट के बीच अलग झगड़े हैं. राजस्थान के तमाम शहर ऐसे हैं जहां गरीबी बहुत है. लड़कियों के लिए पढ़ाई के अवसर नहीं हैं. गांवों में पीने के पानी का अभाव है. पानी लाने के लिए महिलाओें को कईकई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. इन खबरों को पढ़ कर बड़े शहरों की लड़कियों को छोड़िए, गांव की लड़कियां भी यहां शादी नहीं करना चाहती हैं.

बिहार से हो कर अलग राज्य बना झारखंड भी अपनी हालत सुधार नहीं पा रहा है. झारखंड जब नया राज्य बना था तो यह सोचा जा रहा था कि वहां के हालत सुधरेंगे. आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में राजनीतिक भ्रष्टाचार और परिवारवाद चरम पर रहा है. अपने साथ बने राज्यों में सब से खराब हालत झारखंड की है. यहां के मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन हैं. राज्य में महिलाओं की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. महिलाओं को कभी डायन बता कर मार दिया जाता है तो कभी किसी और वजह से. यहां की राजधानी रांची है.

छत्तीगढ़ मध्य प्रदेश से अलग हो कर बना था. यह भी आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है. नक्सली हिंसा बहुत होती है. यहां कांग्रेस के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल हैं.

स्मार्ट सिटी योजना से कितने स्मार्ट होंगे शहर

2015 में केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना बड़े जोरशोर से शुरू की थी. लोगों ने पहली बार यह नाम सुना था, सो, उत्सुकता भी बढ़ गई. इस का मुख्य उद्देश्य देश के 100 शहरों को स्मार्ट शहरों में बदलना था. अब इस योजना को इस साल 9 साल हो गए हैं. केंद्रीय शहरी एवं आवास मंत्रालय ने बता दिया है कि इस साल मार्च तक पहले 22 शहर अपनी सभी परियोजनाओं का काम पूरा कर लेंगे. बाकी 78 शहरों का काम भी 3 से 4 महीने में पूरा हो जाएगा. इस योजना पर खर्च के लिए 72,0 0,000 करोड़ रुपए दिए गए.

बीमारू राज्यों के जिन शहरों को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल किया गया उन में मुजफ्फरपुर, भागलपुर, बिहारशरीफ, पटना, रायपुर, बिलासपुर, नया रायपुर, रांची, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, सतना, उज्जैन, जयपुर, उदयपुर, कोटा, अजमेर, मुरादाबाद, अलीगढ़, सहारनपुर, बरेली, झांसी, कानपुर, प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, आगरा, रामपुर, देहरादून शामिल हैं.

स्मार्ट सिटी योजना 50-50 के मौडल पर बनी है. जिस का मतलब यह है कि केंद्र और राज्य सरकार मिल कर इस काम को करेंगे. केंद्र सरकार द्वारा हर शहर को औसतन 100 करोड़ वित्तीय सहायता देने की योजना है. इस में 50 करोड़ केंद्र तो वहीं बाकी 50 करोड़ राज्य सरकार या केंद्रशासित प्रदेश योगदान के रूप में देगा. नवंबर 2021 तक केंद्र ने 27,282 करोड़ रुपए जारी किए तो वहीं राज्यों ने केवल 20,124 करोड़ ही जारी किए.

इस योजना से शहरों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति, निश्चित विद्युत आपूर्ति, ठोस वेस्ट मैनेजमैंट सहित स्वच्छता, कुशल शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन, किफायती आवास विशेष रूप से गरीबों के लिए, आईटी कनैक्टिविटी और डिजटिलीकरण, सुशासन विशेष रूप से ईगवर्नेंस और नागरिक भागीदारी, टिकाऊ पर्यावरण, नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों की, स्वास्थ्य और शिक्षा पर जोर देना है.

अगर भारत के टौप 10 स्मार्ट सिटी की बात की जाए तो बीमारू राज्यों में से केवल एक जयपुर का नाम आता है. बाकी के शहर अभी बहुत पीछे हैं. केंद्र की स्मार्ट सिटी योजना नौ दिन चले अढाई कोस की कहावत को पूरा कर रही है. इस से इन शहरों को कोई लाभ होता नहीं दिखा है. बीमारू राज्यों और वहां की हालत को सुधारना है तो यहां रोजगार के अवसर बनाने होंगे जिस से यहां से पलायन रुक सके. लोग नौकरी के लिए बड़े शहरों की तरफ न देखें. शहर इस काबिल हो जाएं कि बड़े शहरों की लड़कियों को इन छोटे शहरों में शादी करने से कोई दिक्कत न हो.

केवल कागजों पर आंकड़े दिखा कर हर प्रदेश खुद को बीमारू राज्य मनाने से इनकार कर रहा है. क्या सही मानो में ये प्रदेश बदले हैं? इस का उत्तर न है क्योंकि यहां के रहने वालों के जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है. प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े इस की गवाही देते हैं. और आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते. विकास की हर कसौटी पर ये प्रदेश विकसित प्रदेशों से बहुत पीछे हैं. केवल धार्मिक पर्यटन बढ़ाने से राज्य की हालत में सुधार नहीं होगा. सुधार के लिए बिजनैस और उद्योगधंधों को बढ़ावा देना होगा. जब तक इन राज्यों की दशा में सुधार नहीं होगा, लड़कियां बीमारू राज्यों में शादी करने के लिए तैयार नहीं होंगी.

बीमारू राज्यों में प्रति व्यक्ति आय (2019-20 की गणना)

उत्तराखंड: 2 लाख 26 हजार 144 रुपए

राजस्थान: 1 लाख 28 हजार 319 रुपए

मध्य प्रदेश: 1 लाख 13 हजार 79 रुपए

छत्तीसगढ़: 1 लाख 5 हजार 281 रुपए

झारखंड: 87 हजार 127 रुपए

उत्तर प्रदेश: 74 हजार 141 रुपए

बिहार: 50 हजार 735 रुपए

राजनीतिक रूप से पावरफुल बीमारू राज्य

प्रदेश –    लोकसभा सीट – विधानसभा सीट

राजस्थान      25              200

छत्तीसगढ़      11              90

मध्य प्रदेश      29              230

बिहार          40              243

झारखंड        14                81

उत्तर प्रदेश    80              402

उत्तराखंड      5                70

बाक्स: 3

बीमारू राज्यों की जीडीपी

प्रदेश –      जीडीपी –              गरीबी का अनुपात

छत्तीसगढ़    3.25 लाख करोड़ रुपए      36.96 प्रतिशत

बिहार      5.15 लाख करोड़ रुपए      33.74 प्रतिशत

झारखंड    2.36 लाख करोड़ रुपए            34.80 प्रतिशत

मध्य प्रदेश    8.26 लाख करोड़ रुपए      31.65 प्रतिशत

उत्तर प्रदेश  14.89 लाख करोड़ रुपए      29.43 प्रतिशत

उत्तराखंड  2.61 लाख करोड़ रुपए      30.60 प्रतिशत

राजस्थान  11.81 लाख करोड़ रुपए      32.40 प्रतिशत

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें