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वह मेरे जैसी नहीं है : वक्त के साथ चलती बेटी की कहानी

स्नेहा मां की बात न मानती, करती अपने मन की. फिर भी मां अंदर ही अंदर खुश होतीं, उसे आशीर्वाद देतीं. आखिर ऐसा था क्या? पढि़ए, पूनम अहमद की कहानी.

मैं ने तो यही सुना था कि बेटियां मां की तरह होती हैं या ‘जैसी मां वैसी बेटी’ लेकिन जब स्नेहा को देखती हूं तो इस बात पर मेरे मन में कुछ संशय सा आ जाता है. इस बात पर मेरा ध्यान तब गया जब वह 3 साल की थी. उसी समय अनुराग का जन्म हुआ था. मैं ने एक दिन स्नेहा से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा बेड अलग तैयार कर दूं, तुम अलग बेड पर सो पाओगी?’’

स्नेहा तुरंत चहकी थी, ‘‘हां, मम्मी बड़ा मजा आएगा. मैं अपने बेड पर अकेली सोऊंगी.’’

मुझे थोड़ा अजीब लगा कि जरा भी नहीं डरी, न ही उसे हमारे साथ न सोने का कोई दुख हुआ.

विजय ने कहा भी, ‘‘अरे, वाह, हमारी बेटी तो बड़ी बहादुर है,’’ लेकिन मैं चुपचाप उस का मुंह ही देखती रही और स्नेहा तो फिर शाम से ही अपने बेड पर अपना तकिया और चादर रख कर सोने के लिए तैयार रहती.

स्नेहा का जब स्कूल में पहली बार एडमिशन हुआ तो मैं तो मानसिक रूप से तैयार थी कि वह पहले दिन तो बहुत रोएगी और सुबहसुबह नन्हे अनुराग के साथ उसे भी संभालना होगा लेकिन स्नेहा तो आराम से हम सब को किस कर के बायबाय कहती हुई रिकशे में बैठ गई. बनारस में स्कूल थोड़ी ही दूरी पर था. विजय के मित्र का बेटा राहुल भी उस के साथ रिकशे में था. राहुल का भी पहला दिन था. मैं ने विजय से कहा, ‘‘पीछेपीछे स्कूटर पर चले जाओ, रास्ते में रोएगी तो उसे स्कूटर पर बिठा लेना.’’

विजय ने ऐसा ही किया लेकिन घर आ कर जोरजोर से हंसते हुए बताया, ‘‘बहुत बढि़या सीन था, स्नेहा इधरउधर देखती हुई खुश थी और राहुल पूरे रास्ते जोरजोर से रोता हुआ गया है, स्नेहा तो आराम से रिकशा पकड़ कर बैठी थी.’’

मैं चुपचाप विजय की बात सुन रही थी, विजय थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘प्रीति, तुम्हारी मम्मी बताती हैं कि तुम कई दिन तक स्कूल रोरो कर जाया करती थीं. भई, तुम्हारी बेटी तो बिलकुल तुम पर नहीं गई.’’

मैं पहले थोड़ी शर्मिंदा सी हुई और फिर हंस दी.

स्नेहा थोड़ी बड़ी हुई तो उस की आदतें और स्वभाव देख कर मेरा कुढ़ना शुरू हो गया. स्नेहा किसी बात पर जवाब देती तो मैं बुरी तरह चिढ़ जाती और कहती, ‘‘मैं ने तो कभी बड़ों को जवाब नहीं दिया.’’

स्नेहा हंस कर कहती, ‘‘मम्मी, क्या अपने मन की बात कहना उलटा जवाब देना है?’’

अगर कोई मु?ा से पूछे कि हम दोनों में क्या समानताएं हैं तो मु?ो काफी सोचना पड़ेगा. मु?ो घर में हर चीज साफ- सुथरी चाहिए, मुझे हर काम समय से करने की आदत है. बहुत ही व्यवस्थित जीवन है मेरा और स्नेहा के ढंग देख कर मैं अब हैरान भी होने लगी थी और परेशान भी. अजीब लापरवाह और मस्तमौला सा स्वभाव हो रहा था उस का.

स्नेहा ने 10वीं कक्षा 95 प्रतिशत अंक ला कर पास की तो हमारी खुशियों का ठिकाना नहीं था. मैं ने परिचितों को पार्टी देने की सोची तो स्नेहा बोली, ‘‘नहीं मम्मी, यह दिखावा करने की जरूरत नहीं है.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह दिखावा नहीं, खुशी की बात है,’’ तो कहने लगी, ‘‘आजकल 95 प्रतिशत अंक कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, मैं ने कोई टौप नहीं किया है.’’ बस, उस ने कोई पार्टी नहीं करने दी, हां, मेरे जोर देने पर कुछ परिचितों के यहां मिठाई जरूर दे आई.

अब तक हम मुंबई में शिफ्ट हो चुके थे. स्नेहा जब 5वीं कक्षा में थी, तब विजय का मुंबई ट्रांसफर हो गया था और अब हम काफी सालों से मुंबई में हैं.

10वीं की परीक्षाओं के तुरंत बाद स्नेहा के साथ पढ़ने वाली एक लड़की की अचानक आई बीमारी में मृत्यु हो गई. मेरा भी दिल दहल गया. मैं ने सोचा, अकेले इस का वहां जाना ठीक नहीं होगा, कहीं रोरो कर हालत न खराब कर ले. मैं ने कहा, ‘‘बेटी, मैं भी तुम्हारे साथ उस के घर चलती हूं,’’ अनुराग को स्कूल भेज कर हम लोग वहां गए. पूरी क्लास वहां थी, टीचर्स और कुछ बच्चों के मातापिता भी थे. मेरी नजरें स्नेहा पर जमी थीं. स्नेहा वहां जा कर चुपचाप कोने में खड़ी अपने आंसू पोंछ रही थी, लेकिन मृत बच्ची का चेहरा देख कर मेरी रुलाई फूट पड़ी और मैं अपने पर नियंत्रण नहीं रख पाई. मु?ो स्वयं को संभालना मुश्किल हो गया. स्नेहा की दिवंगत सहेली कई बार घर आई थी, काफी समय उस ने हमारे घर पर भी बिताया था.

स्नेहा फौरन मेरा हाथ पकड़ कर मुझे धीरेधीरे वहां से बाहर ले आई. मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. हम दोनों आटो से घर आए. कहां तो मैं उसे संभालने गई थी और कहां वह घर आ कर कभी मु?ो ग्लूकोस पिला रही थी, कभी नीबूपानी. ऐसी ही है स्नेहा, मु?ो कुछ हो जाए तो देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ती और अगर मैं ठीक हूं तो कुछ करने को तैयार नहीं होगी.

मैं कई बार उसे अपने साथ मार्निंग वाक पर चलने के लिए कहती हूं तो कहती है, ‘‘मम्मी, टहलने से अच्छा है आराम से लेट कर टीवी देखना,’’ मैं कहती रह जाती हूं लेकिन उस के कानों पर जूं नहीं रेंगती. कहां मैं प्रकृतिप्रेमी, समय मिलते ही सुबहशाम सैर करने वाली और स्नेहा, टीवी और नेट की शौकीन.

5वीं से 10वीं कक्षा तक साथ पढ़ने वाली उस की सब से प्रिय सहेली आरती के पिता का ट्रांसफर जब दिल्ली हो गया तो मैं भी काफी उदास हुई क्योंकि आरती की मम्मी मेरी भी काफी अच्छी सहेली बन चुकी थीं. अब तक मु?ो यही तसल्ली रही थी कि स्नेहा की एक अच्छी लड़की से दोस्ती है. आरती के जाने पर स्नेहा अकेली हो जाएगी, यह सोच कर मु?ो काफी बुरा लग रहा था. आरती के जाने के समय स्नेहा ने उसे कई उपहार दिए और जब वह उसे छोड़ कर आई तो मैं उस का मुंह देखती रही. उस ने स्वीकार तो किया कि वह बहुत उदास हुई है, उसे रोना भी आया था, यह उस की आंखों का फैला काजल बता रहा था. लेकिन जिस तरह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख कर उस ने मु?ा से बात की उस की मैं ने दिल ही दिल में प्रशंसा की.

स्नेहा बोली, ‘‘अब तो फोन पर या औनलाइन बात होगी. चलो, कोई बात नहीं, चलता है.’’

ऐसा नहीं है कि वह कठोर दिल की है या उसे किसी से आंतरिक लगाव नहीं है. मैं जानती हूं कि वह बहुत प्यार करने वाली, दूसरों का बहुत ध्यान रखने वाली लड़की है. बस, उसे अपनी भावनाओं पर कमाल का नियंत्रण है और मैं बहुत ही भावुक हूं, दिन में कई बार कभी भी अपने दिवंगत पिता को या अपने किसी प्रियजन को याद कर के मेरी आंखें भरती रहती हैं.

जैसेजैसे मैं उसे सम?ा रही हूं, मुझे उस पर गुस्सा कम आने लगा है. अब मैं इस बात पर कलपती नहीं हूं कि स्नेहा मेरी तरह नहीं है. उस का एक स्वतंत्र, आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्तित्व है. डर नाम की चीज उस के शब्दकोश में नहीं है. अब वह बी.काम प्रथम वर्ष में है, साथ ही सी.पी.टी. पास कर के सी.ए. की तैयारी में जुट चुकी है. हमें मुंबई आए 9 साल हो चुके हैं. इन 9 सालों में 2-3 बार लोकल टे्रन में सफर किया है. लोकल टे्रन की भीड़ से मु?ो घबराहट होती है.

हाउसवाइफ हूं, जरूरत भी नहीं पड़ती और न टे्रन के धक्कों की हिम्मत है न शौक. मेरी एक सहेली तो अकसर लोकल टे्रन में शौकिया घूमने जाती है और मैं हमेशा यह सोचती रही हूं कि कैसे मेरे बच्चे इस भीड़ का हिस्सा बनेंगे, कैसे कालिज जाएंगे, आएंगे जबकि विजय हमेशा यही कहते हैं, ‘‘देखना, वे आज के बच्चे हैं, सब कर लेंगे.’’ और वही हुआ जब स्नेहा ने मुलुंड में बी.काम के लिए दाखिला लिया तो मैं बहुत परेशान थी कि वह कैसे जाएगी, लेकिन मैं हैरान रह गई. मुलुंड स्टेशन पर उतरते ही उस ने मु?ो फोन किया, ‘‘मम्मी, मैं बिलकुल ठीक हूं, आप चिंता मत करना. भीड़ तो थी, गरमी भी बहुत लगी, एकदम लगा उलटी हो जाएगी लेकिन अब सब ठीक है, चलता है, मम्मी.’’

मैं उस के इस ‘चलता है’ वाले एटीट्यूड से कभीकभी चिढ़ जाती थी लेकिन मु?ो उस पर उस दिन बहुत प्यार आया. मैं छुट्टियों में उसे घर के काम सिखा देती हूं. जबरदस्ती, कुकिंग में रुचि लेती है. अब सबकुछ बनाना आ गया है. एक दिन तेज बुखार के कारण मेरी तबीयत बहुत खराब थी. अनुराग खेलने गया हुआ था, विजय टूर पर थे. स्नेहा तुरंत अनुराग को घर बुला कर लाई, उसे मेरे पास बिठाया, मेरे डाक्टर के पास जा कर रात को 9 बजे दवा लाई और मुझे खिला- पिला कर सुला दिया. मुझे बुखार में कोई होश नहीं था.

अगले दिन कुछ ठीक होने पर मैं ने उसे सीने से लगा कर बहुत प्यार किया. मुझे याद आ गया जब मैं अविवाहित थी, घर पर अकेली थी और मां की तबीयत खराब थी. मेरे हाथपांव फूल गए थे और मैं इतना रोई थी कि सब इकट्ठे हो गए थे और मुझे संभाल रहे थे. पिताजी थे नहीं, बस हम मांबेटी ही थे. आज स्नेहा ने जिस तरह सब संभाला, अच्छा लगा, वह मेरी तरह घबराई नहीं.

अब वह ड्राइविंग सीख चुकी है. बनारस में मैं ने भी सीखी थी लेकिन मुंबई की सड़कों पर स्टेयरिंग संभालने की मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई और अब मैं भूल भी चुकी हूं, लेकिन जब स्नेहा मुझे बिठा कर गाड़ी चलाती है, मैं दिल ही दिल में उस की नजर उतारती हूं, उसे चोरीचोरी देख कर ढेरों आशीर्वाद देती रहती हूं और यह सोचसोच कर खुश रहने लगी हूं, अच्छा है वह मेरी तरह नहीं है. वह तो आज की लड़की है, बेहद आत्मविश्वास से भरी हुई. हर स्थिति का सामना करने को तैयार. कितनी सम?ादार है आज की लड़की अपने फैसले लेने में सक्षम, अपने हकों के बारे में सचेत, सोच कर अच्छा लगता है.

नजर वायरस : नजर अटैक से बच कर भैया

भैया जी को देखते ही मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने काले धागे की दुकान खोल ली हो. उन के गले, दोनों हाथों और दोनों पैरों में काले धागे बंधे हुए थे जैसे काली कमली वाले बाबा हों.

मैं ने पूछा, ‘’भैया जी, क्या बात है, इतने सारे काले धागे शरीर पर बांध लिए क्या चक्कर है?‘’

भैया जी बोले, ‘’बंधु, बात को समझा करो, आजकल जमाना बहुत खराब है. कब, किस को, किस की नजर लग जाए, कुछ पता नहीं. इसलिए, काला धागा बांधना फैशन भी है, पैशन और जरूरत भी है

“तुम्हारी भाभी का कहना है कि तुम लोगों की नजर में जल्दी चढ़ जाते हो, इसलिए तुम्हें लोगों की नजर भी बहुत जल्दी लग जाती है. प्राचीन काल में तो बंगले को नजर लगने पर गाते थे- ’नज़र लगी राजा तोरे बंगले पर…’ आधुनिक काल में कंप्यूटर में वायरस अटैक हो जाता है. उस से बचने के लिए एंटी वायरस का उपयोग करते हैं. उसी प्रकार सदियों से इंसानों पर नजर अटैक होता रहा है, उस की काट के लिए काला धागा बांधना बहुत जरूरी है.

“जब इंसान की बनाई मशीन को नज़र लग सकती है, बंगले को नज़र लग सकती है तो कुदरत के बनाए हुए इंसान, जोकि बहुते ही संवेदनशील होता है, को नजर कैसे नहीं लग सकती. वह उस से कैसे बच सकता है. और बंधु, तुम्हारी भाभी का तो यह कहना है कि आप जाने कहांकहां जाते हो, पता नहीं किसकिस से मिलते हो, आप को कभी भी किसी की भी नजर लग सकती है.‘’

भैया जी थोड़ा सकुचाते, थोड़ा शरमाते हुए दबी हुई मुसकान से एक आंख दबा कर आगे कहने लगे, ‘’बंधु, तुम्हारी भाभी का मानना है कि मैं बहुत स्मार्ट हूं, नजर का टीका उतना असर नहीं करेगा, इसलिए काला धागा आदि हथियार से लैस कर के ही वे मुझे घर से बाहर निकलने देती हैं. उन का बस चलता तो जैसे ट्रक के सामने पुराना जूता लटका देते है वैसे ही कुछ न कुछ धतकरम जरूर करतीं.‘’

मैं ने भाभीजी के विचारों से पूर्ण सहमति व्यक्त करते हुए कहा, ‘’भैया जी, इन कवच कुंडल के बाद भी भूलचूक से आप को नजर लग गई तो मेरी सलाह यह है कि आप को ’बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला’ मंत्र का जाप करना चाहिए.”

भैया जी कहने लगे, ‘’बंधू, आधुनिक युग में पुराने मंत्र आउट आफ डेट हो गए हैं. इसलिए, जैसा देव वैसी पूजा. वायरस अटैक को निष्फल करने के लिए किसी भी गैजेट को वायरस-फ्री करवाना पड़ता है, उसी प्रकार हमारे यहां भी नजर से बचने के लिए बहुत सारे साधन हैं, जैसे काला टीका है, काला धागा है, गुग्गल की धूनी है, निम्बूमिर्ची है, राई नमक है आदि. काला धागा तो पुरानी क्या, नई पीढ़ी में भी बहुत लोकप्रिय है. हर दूसरी टांग में आप कला धागा बंधा देख लो.

“गुग्गल की धूनी देने से पूरा घर नज़र अटैक से फ्री हो सकता है. आप को यकीं न हो, तो गूगल बाबा पर सर्च कर लो. इस से कुछ फायदा हो या न हो, ज्ञान में वृद्धि जरूर हो जाती है, बाकी इतने सारे चैनल हैं जिन पर भविष्य भाग्य बताने वाले व अंतर्राष्ट्रीय कथाकार अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं, जो नजर से ले कर वशीकरण मंत्र के बारे में जनजागरण अभियान चला ही रहे हैं.‘’

मैं ने प्रतिपक्ष की तरह प्रतिप्रश्न किया, ‘’भैया जी, आप के चेहरे में ऐसी क्या बात है जो आप को कभी भी नजर लग जाती है, मेरी नज़र तो आप को कभी नहीं लगी?‘’

‘’बंधू, आप तो घर के आदमी हो. मुझे घर का जोगी जोगड़ा इसलिए समझते हो क्योंकि आप मेरा रोज देखते हो थोबड़ा. सो, आप की नज़र मुझ पर असर नहीं करती है.‘’

यह सुन कर मेरा मन कौमेडी शो के जज की तरह ठहाके लगाने की इच्छा करने लगा क्योंकि भैया जी ठहरे पक्के कृष्ण रंग वाले. इन को नजर कैसे लग सकती है बल्कि ये तो स्वयं नजर को लग जाएं, ऊपर से चेहरे पर थोड़ा सा माता के नूर का असर भी दिखता है. खैर, ’रंग और नूर की बरात किसे पेश करूं…‘ इस असमंजस में होते हुए भी मैं ने उन के और भाभी जी के विचारों का पूर्ण समर्थन कर दिया.

भैया जी के मौलिक विचारों को सुन कर और उन की हरकतें देख कर मैं अकसर मूढ़मति बन जाता हूं जैसे अमेरिका का राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के किम जोंग उन को देख कर, उस के विचार सुन कर किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता है. उधर अमेरिका टेड़ी नजर डालता है, इधर किम जोंग उन मिसाइल का परीक्षण करने लगता है. मैं भी भैया जी को देखकर किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता हूं और अपने विचारों का परीक्षण उन पर करने लगता हूं.

भैया जी की एक विशेषता और है. जब वे खाना खाते हैं तब किसी से बात नहीं करते. उस समय वे उपहार में दिए गए लिफाफे को पूरापूरा वसूलने के मूड में रह कर सच्चे मेहमान होने का कर्तव्य निभाना अपना धर्म समझते हैं. और तो और, उस समय वे मुझ जैसे संकटमोचक को भी नहीं पहचानते हैं. मेरे पूछने पर भैया जी कहने लगे, ‘’बंधु, खाते समय अगर कोई गलत नजरों से देख ले तो देखने वाले की हाय लग जाती है, ऐसा मेरी मां और मेरी पत्नी दोनों कहती हैं.‘’

‘’भैया जी, ज्यादा खाने से आप की सेहत बिगड़ सकती है.‘’

‘’बंधु, स्वाद और सेहत में सदियों से संघर्ष चल रहा है, जिस में अधिकतर स्वाद की जीत होती है. और फिर, कौन नहीं खाता. हमें तो सिर्फ सुस्वादु भोजन का शौक है मगर कुछ लोग खानदान के नाम की रौयल्टी खा रहे हैं, कुछ लोग बाप के नाम की रौयल्टी खा रहे हैं. इस खाने के चक्कर में कुछ लोग बिना स्वाद वाली वस्तुएं भी खा चुके हैं. उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता जबकि वे काला धागा भी नहीं पहनते. बस, हमारे पीछे पड़े रहते हैं.‘’

मेरी शुभकामनाएं भैया जी के परिवार के साथ हैं कि प्रकृति उन्हें बुरी नज़रों और हाय लगने से हमेशा बचा कर रखे.

क्या आप भी अपने बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाते हैं?

अक्सर पैरेंटस ये सोचते हैं कि उनका बच्चा जितना ज्यादा खाएगा, उतना ही हेल्दी रहेगा. आमतौर पर कई बच्चे खाने में आनाकानी करते हैं. ऐसे में पैरेंटस बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाते हैं. पर क्या आप जानते हैं, बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाना उनकी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है.

तो आइये जानते हैं कि जबरदस्ती खाना खिलाने से बच्चों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है.

सुस्ती और कमजोरी

जरूरत से ज्यादा खाना खिलाने से बौडी में एक तरह का न्यूरोबायलौजिकल इम्बैलेंस हो जाता है. एक बार इसका लेवल बौडी में गिरता है, तो बच्चे को कमजोरी महसूस होती है और वो पूरे दिन थका-थका महसूस करते हैं. ऐसे में जब बच्चे मोटापा का शिकार हो जाता है,  तब बौडी में एनर्जी बनाए रखने के लिए उसे हमेशा कुछ न कुछ खाना पड़ता है.

बच्चों को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता पोषण

पैरेंटस द्वारा जबरदस्ती खाना खिलाने की जिद बच्चों को मोटापे का शिकार बना सकती है. दरअसल खाना खाने का भी शरीर का अलग विज्ञान है. खाने को अच्छी तरह पचने के लिए और उससे ज्यादा से ज्यादा पोषण पाने के लिए जरूरी है कि खाया गया खाना पूरी इच्छा और खुशी से खाया गया हो. ऐसे में जब आप बच्चों को जबरदस्ती खाना खिलाते हैं, तो उनके शरीर को न तो उस खाने से पोषण मिलता है और न ही वो खाना पूरी तरह पच पाता है.

कोलेस्ट्रौल और दिल की बीमारी

जरूरत से ज्यादा खाना खिलाने से बच्चे के शरीर में कोलेस्ट्रौल लेवल बढ़ जाता है, जिससे दिल और दिमाग दोनों प्रभावितो होता है. कोलेस्ट्रौल की बढ़ी हुई मात्रा दिल की कई गंभीर बीमारियां जैसे- हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर और स्ट्रोक का खतरा पैदा कर सकता है. इसलिए बच्चों को जबरदस्ती खाना न खिलाएं.

फाइबरयुक्त हेल्दी चीजें खिलाएं

अगर बच्चा नहीं खाना चाहता हैं तो उसे कुछ ऐसे आहार खिलाएं जिससे उसके शरीर को पोषण मिले और वो आसानी से खा भी ले जैसे ड्राई फ्रूट्स, दूध, वेजिटेबल सूप, दलिया आदि. इन सभी फूड्स में फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए इनके सेवन से पेट देर तक भरा रहता है और शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व भी मिल जाते हैं.

खुशहाल जिंदगी के लिए करें भावनाओं को प्रशिक्षित

औफिस से घर आते ही प्रसून पत्नी पर झल्लाता रहता है. पत्नी कुछ पूछे, तो चिढ़ जाता है. 6 साल की बेटी को सवालों के एवज में थप्पड़ पड़ जाता है. पत्नी उस के इस व्यवहार से दुखी रहती है. पूछने पर प्रसून या तो बातचीत ही बंद कर देता है या फिर मांबेटी को अपने कड़वे वचनों से दुखी करता है.

दरअसल, प्रसून ने औफिस में बौस व दूसरे सहयोगियों से झगड़ा मोल ले लिया और जिद में आ कर वह कंपनी का नुकसान करवा चुका है. इस के पीछे कारण है प्रसून की नामसझी. बिना जानेसमझे अपनी ऊटपटांग राय देना, बिना पड़ताल किए अपने से ऊंचे ओहदों वालों से बेतरतीब सवाल करते रहना और अपनी जरूरत के लिए खुद जानकारी जुटाने की मेहनत न कर लोगों को परेशान करना आदि. नतीजतन, बौस और औफिस के लोग खफा हो गए. ऐसे में उस की प्रतिशोध की भावना उबल पड़ी.

रंजना के साथ अलग तरह की घटना घटी. रंजना अपने सहनशील स्वभाव को जानती थी. मगर उस की सहनशीलता जब उस की मुसीबत बनने लगी तो वह सोचने को मजबूर हो गई. भीड़भाड़ में कोई अश्लील हरकत करे, ससुराल में कोई सदस्य उसे बेवजह ताना मारे या फिर उस की मेहनत और काम पर औफिस का कोई कलीग बुरा व्यवहार करे, वह डिप्रैशन यानी अवसाद में चली जाती. मगर फिर भी उस की चुप रहने की आदत न छूट पाती.

रीना ने नीरज पर विश्वास इतना किया कि उस ने उस का अश्लील वीडियो बना डाला, फिर भी वह यही मानती रही कि नीरज की इस में कोई गलती नहीं, शायद वह किसी के बहकावे में आ गया.

रामकली की बात भी क्यों न की जाए. 12वीं बोर्ड के रिजल्ट निकलने से ऐनवक्त पर वह खूब मौजमस्ती कर रही थी. उसे खुद को किसी बंधन में रहना पसंद नहीं. आजादी का सुख उसे हर पल चाहिए और फिर 12वीं का रिजल्ट तमाचा बन कर उस के चेहरे पर पड़ा तो वह सन्न रह गई.

ऐसी सैकड़ों घटनाएं हमारे जीवन में घटती हैं और हम खुद को बेबस पाते हैं, यहां तक कि अवसाद में घिरा हुआ भी.

लोगों को अपनी हालत पर तरस आता है. उन के साथ होने वाली बुरी घटनाओं पर वे ताज्जुब करते हैं. उन्हें बारबार यह लगता है कि दुनिया की कोई एक अदृश्य शक्ति उन के साथ लगातार बुरा कर रही है. वे यह भी सोचते हैं कि ऐसा उन के साथ ही क्यों हो रहा है.

ऊर्जा जब हो नकारात्मक

सारी घटनाएं, सारी प्रतिक्रियाएं हमारी सोच व उस के अनुरूप व्यवहार की ही प्रतिबिंब होती हैं. ऊपर के उदाहरणों के चरित्रों का विश्लेषण इस बात को समझने में कारगर होगा :

  • प्रसून के केस को समझें : किसी भी विषय के बारे में पूछताछ करना और अपनी राय देना अच्छी बात है, लेकिन अपनी तरफ से सूचनासंग्रह की कोशिश किए बिना बौस से सीधे पूछताछ करना बौस के मन में नकारात्मक भावना पैदा कर सकता है. आप आलसी और दूसरे माध्यमों से सूचनाओं का संग्रह करने में फिसड्डी माने जा सकते हैं.

बात सिर्फ पूछ कर जानकारी जुटा लेने भर की ही नहीं होती, बल्कि कैरियर या नौकरी के मामले में प्रोफैशनल अप्रोच के साथ कौमन सैंस का होना बहुत जरूरी होता है. ज्यादा जानने की इच्छा जरूर रखें, लेकिन अपने स्तर पर पूरी जानकारी इकट्ठा कर के ही बौस से मुखातिब हों.

  • रंजना के केस को समझें : एक और सकारात्मक गुण का नकारात्मक बनना है. रंजना द्वारा सहनशीलता की हदें समझी जा सकती हैं. बातबात पर लड़नाझगड़ना कतई अच्छी बात नहीं, और सहनशील होना एक सकारात्मक गुण है, लेकिन यही सहनशीलता जब इंसान को मुसीबत में डाल दे तो वह नकारात्मक बन जाती है. सहन करने की हदें जानना और उन के अनुरूप अपनी चुप्पी तोड़ना जरूरी है, तभी इंसान इस दुनिया में जिंदगी को बेहतर जी सकता है.
  • रीना के केस को समझें : विश्वास बहुत ही कोमल और दिल को छूने वाली भावना है, लेकिन रीना के साथ जो घटा, उस के बाद भी विश्वास के डोर से खुद को जकड़े रखना निरर्थक और घातक है.

विश्वास की अति हमेशा नुकसानदेह है. विश्वास के भाव के साथ सावधानी महत्त्वपूर्ण है, तभी जीना आसान होता है.

रामकली को या तमाम लोगों को मनोरंजन पसंद है. मजबूरी चाहे मकसद को पाने की ही हो, आजादी की कमी सी लगती है. इन्हें रहता है कि खुश रहो यानी मनोरंजन की कमी न हो. कितने तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें संघर्ष और मेहनत ऊबा देते हैं. वे बोर होते हैं, ऊबते हैं और खुशियों की तलाश में वक्त जाया करते हैं. काम की बात उन में नीरसता भरती है और आखिर में क्या मिलता है, दुख, असफलता और तनाव.

जिंदगी खुशहाल और संतुलित होने के सपने सभी देखते हैं, लेकिन ऐसा हो पाने की संभावना पर भरोसा हर किसी को नहीं होता. लेकिन यहां हम भरोसा दिलाते हैं कि अगर इन तरीकों पर गौर कर आप अपनी भावनाओं को प्रशिक्षित कर पाए तो कोई कारण नहीं कि आप खुद की परेशानी का सबब बनें.

इमोशनल कोशंट का महत्त्व

आप का जीवन कितना शानदार और खुशहाल होगा, यह निर्भर करता है आप की भावनात्मक शक्ति यानी इमोशनल कोशंट पर. मेधा यानी इंटैलिजैंस जिस तरह आप को सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए जरूरी है उसी तरह भावनात्मक शक्ति यानी इमोशनल स्तर व्यक्ति की खुशी और सफलता को बनाए रख कर उसे तनाव से दूर रखने के लिए जरूरी है. अगर अपनी भावनात्मक शक्तियों पर हम ने गौर नहीं किया तो वे हमारे मन और बुद्धि दोनों पर बुरी तरह काबिज हो जाती हैं और हमें उस दिशा में दौड़ने को बाध्य कर देती हैं, जहां पहुंच कर हमारी ऊर्जा खत्म होने लगती है.

प्रभावशाली व्यक्तियों की 7 आदतें नामक किताब में स्टीफन कवे भावनात्मक शक्तियों पर संयम रखने के तौरतरीके बताते हुए 2 तरह के मनोवैज्ञानिक पहलुओं का जिक्र करते हैं. पहला है सैल्फ अवेयरनैस यानी स्वचेतना और दूसरा, सोशल अवेयरनैस यानी सामाजिक चेतना.

  • स्वचेतना को समझें : खुद को गहराई से समझें. अपनी मानसिक अवस्थाओं की जांचपरख करते रहें. अपनी जरूरत, अपनी भावना, अपनी आदत, अपनी इच्छाओं को जितनी गहराई से जानेंगे, उतनी ही अपनी कमियों और अतार्किकता पर भी नजर पड़ेगी. अपनी हर भावना के पीछे के ‘क्या और क्यों’ को जड़ से जानें. अपनी अनुभूतियों की अनदेखी न करें. बल्कि ये अनुभूतियां क्या हैं, कहां से और क्यों आईं, इन सारी बातों को जानने के लिए खुद के अंदर झांकें. ऐसे में आप अपने भावनात्मक प्रवाह को रोकने में समर्थ होंगे.
  • सामाजिक चेतना भी जरूरी : यह चेतना है बाहर की दुनिया को समझने की. अपने आसपास की दुनिया में सैकड़ों लोगों से हमारा संवाद और व्यवहार रहता है. जब तक उन्हें अच्छी तरह न समझें, उन  की भावनाओं, कारण और स्थितियों की तह तक न जाएं, तब तक हमारा व्यवहार उन के प्रति अच्छा नहीं हो सकता. लोगों के प्रति अच्छा व्यवहार ही उन्हें हम से सकारात्मक रूप से जोड़ता है.

प्रशिक्षित करें भावनाओं को

भावनाओं की अभिव्यक्ति मानव स्वभाव का सब से बड़ा वरदान है. मगर भावनाओं को संयत किए बिना, बेरोकटोक उन्हें लोगों  पर हमेशा उजागर करते रहना खुद को मुश्किल में डाल सकता है. ‘जहां जैसा, वहां वैसा,’ ‘जिस के साथ जैसा, उस के साथ वैसा,’ यह सिद्धांत है भावनाओं को उजागर करने का.

आइए, समझें कुछ बातें जिन पर काम कर के आसानी से अपनी भावनाओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है.

  • सैल्फ अवेयरनैस : चाहे वह आप की कमजोरी हो या आप की कोई विशेष शक्ति, आप का परिस्थितियों के प्रति व्यवहार हो या आप की खुद की गलतियों को सुधारने की कोशिश, खुद को जानेंगे, समझेंगे, तभी अपनी भावनाओं को प्रशिक्षित करने की ओर पहला कदम उठा पाएंगे.
  • सैल्फ मैनेजमैंट : उत्तेजित होती भावनाओं पर सब्र रखने की कोशिश को बढ़ावा देना और अपनी अनुभूतियों को सकारात्मक तरीके से विकसित करना वगैरह खुद को व्यवस्थित करने के मुख्य आयाम हैं.
  • सोशल अवेयरनैस : अपने आसपास के लोगों के व्यवहार और उन की मानसिकता को गहराई से समझना चाहिए. ऐसी प्रतिक्रियाएं दें जिन से दूसरों की फीलिंग्स और सोच को सही दिशा मिले, कोई आहत न हो, और लोग आप के साथ सकारात्मक बने रहें. एक खुशहाल जीवन जीने के लिए यह बेहद जरूरी है.
  • रिलेशन मैनेजमैंट : रिश्तों की साजसंभाल ही रिलेशन मैनेजमैंट है. शालीन तरीके से बातचीत और दूसरों को प्रेरित कर पाने की क्षमता रिश्तों को व्यवस्थित रखती है. अपना कैरियर हो या पारिवारिक जीवन, अपनी भावनाओं को कंट्रोल में रखते हुए दूसरों के व्यवहार के प्रति सकारात्मक होना सफल और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है.

कई बार हम समूह में साथ काम करते हैं, तब समूह के हर सदस्य की भावना को महत्त्व देते हुए आगे बढ़ना एक स्किल है. प्रोफैशनल जीवन में भी आजकल ब्रिलिऐंट होने के साथसाथ भावात्मक क्षमता के तकनीकी रूप से बेहतर होने को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है. जो जितना भावात्मक शक्ति में मजबूत और प्रशिक्षित होता है, उसे बेहतर कैरियर विकल्प मिलते हैं.

सच है कि तनावरहित, आनंदपूर्ण जीवन जीने के लिए अपने दिल को समझें और उसे तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करें.

जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती

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टीवी शो के सेट पर रात भर फंसी रही Charu Asopa, बयां किया दर्द

Charu Asopa Stuck at Set : बीते कई दिनों से देश के कई राज्यों में भारी बारिश का कहर देखने को मिल रहा है. मुंबई में भी लगातार कई दिनों से बारिश हो रही है, जिसकी वजह से यहां के कई शहर पानी-पानी हो गए हैं. हालांकि बारिश के कारण जहां आम जनता को आने-जाने में परेशानी हो रही है, तो वहीं टीवी से लेकर बॉलीवुड सितारों की शूटिंग पर भी असर पड़  रहा है. हाल ही में टीवी एक्ट्रेस चारू असोपा (Charu Asopa) भी बारिश के कारण अपने शो के सेट पर फंस गई.

भारी बारिश के कारण सभी को हुई परेशानी

आपको बता दें कि एक्ट्रेस चारू बुधवार को नायगांव में अपने शो के सेट पर फंस गई थी. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उनके साथ-साथ 200 क्रू मेंबर और सीरियल के एक्टर्स,  डायरेक्टर्स, टेक्नीशियन,  मेकअप, हेयर आर्टिस्ट और ड्राइवर आदि सभी को रात भर सेट पर रहना पड़ा.

एक्ट्रेस (Charu Asopa) ने बताया कि, “बुधवार को पूरे दिन लगातार भारी बारिश हो रही थी और पैकअप करने के बाद हमे ये पता चल गया था कि आज हम सब अपने-अपने घर नहीं जा पाएंगे, क्योंकि ज्यादातार सभी स्टार्स की गाड़ियों में पानी भर गया था. इसलिए उन सभी कारों को हमने ऊंचे स्थान पर पार्क किया था. ऐसे में हमें सेट पर ही रुकना पड़ा.’

खाने-सोने की नहीं थी व्यवस्था

इसके अलावा उन्होंने (Charu Asopa) ये भी बताया कि सेट पर खाने की भी व्यस्था नहीं थी. उन्होंने कहा, “हमने शाम को डिनर ऑर्डर किया था लेकिन पानी भरने के कारण डिनर रात तक आया. वहीं हमने मेकअप रूम शेयर किया और कई लोगों को तो शूटिंग में इस्तेमाल होने वाले सोफे और बेडरूम में सोना पड़ा.”

इस सीरियम में काम कर रही हैं एक्ट्रेस

बता दें कि फिलहाल चारू असोपा (Charu Asopa) ‘कैसा ये रिश्ता अंजाना’ टीवी शो में काम कर रही हैं. हालांकि वह अपनी प्रोफेशनल लाइफ से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ के चलते सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में उनका एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन संग तलाक हुआ है, जिसको लेकर वह खूब चर्चा में रही थी.

Uorfi Javed ने किया मणिपुर की घटना का विरोध, हाथ में पोस्टर लिए पहुंची एयरपोर्ट

Uorfi Javed : टीवी की फैशन क्वीन और बिग बॉस ओटीटी 1 फेम उर्फी जावेद आए दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं. जहां एक तरफ वह अपने अतंरगी आउटफिट से लोगों का ध्यान खीचती है, तो वहीं अपने बेबाक बयान के चलते भी वह लोगों के निशाने पर आ जाती हैं. एक्ट्रेस लगभग हर समाजिक मुद्दों पर अपनी बात बेबाकी से रखती हैं.

हाल ही में मणिपुर में दो आदिवासी महिलाओं के साथ हुए जघन्य अपराध पर भी उर्फी ने अपना गुस्सा जाहिर किया है. एक तरफ उन्होंने (Uorfi Javed) अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज पर लिखा, “मणिपुर में जो कुछ भी हुआ, वो सिर्फ मणिपुर (Manipur incident) के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए शर्मसार करने वाला है.” वहीं अब दूसरी तरफ उर्फी जावेद ने मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचर भी विरोध किया.

उर्फी के सपोर्ट में आए लोग

आपको बता दें कि, बीते दिन उर्फी जावेद मुंबई एयरपोर्ट पहुंची. जहां उनके हाथ में एक वाइट कलर का पेंपलेट था. उस पर लिखा था #Kuki और #MANIPUR.

हालांकि अब उनकी (Uorfi Javed) ये तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है, जिस पर लोग कमेंट कर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. जहां एक यूजर ने उर्फी के जज्बे की सराहना करते हुए लिखा, “कम से कम उर्फी इस शर्मनाक घटना के बारे में बोल तो रही है.” तो वहीं एक अन्य यूजर ने उर्फी का सपोर्ट करते हुए लिखा, “उर्फी ने आज दिल जीत लिया, मेरे लोग बहुत स्ट्रगल कर रहे हैं.”

न्यू लुक से जीता लोगों का दिल

मुंबई एयरपोर्ट पर उर्फी जावेद (Uorfi Javed New Look) एक बार फिर नए लुक में नजर आई. यहां पर वह येलो कलर की फ्लोरल फ्रॉक पहनें नजर आई. इसके अलावा उर्फी ने अपने बालों का रंग पिंक कर रखा है, जिसमें वह बहुत खूबसूरत लग रही हैं.

ठगी का बड़ा खिलाड़ी

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या एक पर स्थित हरियाणा के जिला करनाल की पहचान विभिन्न औद्योगिक इकाइयों के रूप में तो है ही, इस के अलावा यह धान की खेती के रूप में भी प्रसिद्ध है. यहां पैदा होने वाले उच्च गुणवत्ता वाले धान के चावल को विदेशों तक भेजा जाता है. यहां की दुनार राइस मिल का बड़ा नाम है. जाटान रोड स्थित इस मिल के मालिक सुरेंद्र गुप्ता बहुत ही सधे हुए अदांज में अपनी यह राइस मिल चला रहे हैं.

उन की राइस मिल का चावल देशविदेश भेजा जाता है. सुरेंद्र एक बड़ी शख्सियत हैं, लिहाजा उन के संबंध भी वैसे ही लोगों से हैं. वह अपने कारोबार को और ऊंचाई तक ले जाना चाहते थे, जिस के लिए उन्हें करोड़ों रुपए की बड़ी रकम की जरूरत थी.

वैसे तो यह रकम उन्हें बैंकों से कर्ज के रूप में मिल सकती थी, लेकिन एक तो मोटी रकम, दूसरे बैंकों द्वारा लिया जाने वाला मोटा ब्याज, उन्हें परेशान करता था.

इंसान किसी बात की चाहत रखता है तो कई बार उस के रास्ते खुदबखुद खुल जाते हैं. सुरेंद्र गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उन की मुलाकात एक आदमी और उस के साथियों से हुई तो उन्होंने अपनी समस्या उन से कही, उस आदमी के साथियों में से एक ने कहा, “गुप्ताजी, सोच लीजिए, आप का काम हो गया.”

“मतलब?”

“आप को मोटा और सस्ती ब्याज दर पर एक आदमी लोन दिला सकता है, क्योंकि उस के लिए यह बाएं हाथ का खेल है.”

“कौन है वह?”

“आप ने अजय पंडित का नाम तो सुना ही होगा. वह ऐसे आदमी हैं कि उन के पास पहुंचते ही हर समस्या का हल निकल आता है.”

इस के बाद उस आदमी और उस के साथियों ने अजय पंडित के बारे में जो कुछ बताया, उसे सुन कर सुरेंद्र गुप्ता हैरान रह गए.

अजय पंडित वह नाम था, जिस के बड़ेबड़े राजनेताओं से सीधे संबंध थे. बड़ेबड़े लोग अपने काम कराने उस के यहां लाइन लगाए खड़े रहते थे. यह बात अलग थी कि अजय सिर्फ करोड़पतियों या अरबपतियों के ही काम कराता था.

अजय मूलरूप से रहने वाला तो हरियाणा के सिरसा जिले का था, लेकिन वह दिल्ली के छतरपुर स्थित एक फार्महाउस में रहता था. सुरेंद्र गुप्ता से मिलने वाला वह आदमी और उस के साथियों ने जो बताया था, उस के अनुसार अजय पंडित सोनिया गांधी एसोसिएशन का राष्ट्रीय अध्यक्ष था. इस के अलावा वह अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा का भी अध्यक्ष था.

राजनीतिज्ञों से चूंकि उस के गहरे रिश्ते थे, इसलिए वह लोगों के काम आसानी से करा देता था. वे लोग अजय को जानते ही नहीं थे, बल्कि उस से उन के अच्छे रिश्ते भी थे. इन लोगों से मिलने के बाद सुरेंद्र को लगा कि उन की इच्छा पूरी हो जाएगी. अजय पंडित के बारे में कुछ थोड़ा उन्होंने भी सुन रखा था. वह काफी ऊंची पहुंच वाला आदमी था.

उन लोगों ने सपने दिखाए तो सुरेंद्र अजय से मिलने के लिए ललायित हो उठे. उन्होंने कहा, “इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. आप लोग उन से मेरी मुलाकात करा दीजिए.”

“ठीक है, हम कोशिश करते हैं. समय ले कर आप को फोन पर बता देंगे.” रितेश और उस के साथियों ने कहा.

इस के बाद वे चले गए, लेकिन उन का संपर्क सुरेंद्र से बना रहा. एक दिन उन्होंने बताया कि सोमवार की दोपहर वह छतरपुर आ जाएं. इस के बाद तय दिन पर सुरेंद्र गुप्ता बताए गए पते पर पहुंच गए.

दिल्ली के छतरपुर इलाके में बड़ी हैसियत वाले नामीगिरामी लोगों के फार्महाउस हैं. उन्हीं में से राधामोहन लेन स्थित एक फार्महाउस पर वह पहुंचे तो वहां की कड़ी सुरक्षा के तामझाम देख कर एकबारगी वह ठिठक गए. मुख्य दरवाजा बंद था और वहां हथियारों से लैस प्राइवेट सुरक्षाकर्मी और पुलिसकर्मी खड़े थे. उन की गाड़ी रुकी तो एक सुरक्षाकर्मी ने उन के नजदीक आ कर पूछा, “किस से मिलना है?”

“अजयजी से. अपाइंटमेंट है मेरा.”

“एक मिनट ठहरिए.” कह कर सुरक्षाकर्मी पलटा और मुख्यद्वार पर बनी केबिन में जा कर वहां रखे टेलीफोन से बात की. उस ने फोन रख कर दरवाजा खुलवाने के साथ ही उन्हें अंदर जाने का इशारा कर दिया.

फार्महाउस के अंदर का नजारा बड़ा ही आकर्षक था. वहां हर तरफ हरियाली थी. पार्किंग में पहले से ही कई महंगी और लग्जरी कारें खड़ी थीं. उन्होंने भी अपनी कार वहां खड़ी कर दी और उतर कर कोठी की तरफ बढ़े. कोठी के बरामदे में बने औफिसनुमा कमरे में कई लोग बैठे थे. वहां मौजूद लोगों ने उन से आने का कारण पूछा तो उन्होंने बता दिया.

“ठीक है, आप को थोड़ा इंतजार करना होगा, साहब बाहर हैं. कुछ देर में आते ही होंगे.” कह कर एक आदमी उन्हें अंदर ड्राइंगरूम में ले गया. वहां पड़े बेशकीमती सोफों पर पहले से ही तमाम लोग बैठे थे. वह भी एक सोफे पर बैठ गए. वहां की भव्यता देख कर उन की आंखें खुली की खुली रह गईं. चमकदार मार्बल, कालीन, फर्नीचर, दीवारें, उन पर लगी पेंटिंग्स और छत में लटकते झूमर, सभी कुछ भव्यता प्रदॢशत कर रहे थे.

इस के अलावा दीवारों पर नामचीन राजनेताओं के साथ मुसकराते हुए एक ही शख्स के तमाम फोटो टंगे थे. वह समझ गए कि यही अजय पंडित हैं. ड्राइंगरूम की शान भी अलग ही थी. क्लोजसर्किट कैमरे भी वहां लगे थे. इस से भी ज्यादा खास बात यह थी कि वहां बैठे लोग चाय, कौफी, स्नैक्स, फू्रट्ïस आदि इस अंदाज में खापी रहे थे, जैसे वहां कोई पार्टी चल रही हो. 3-4 वेटर खातिरदारी में लगे थे. एक वेटर उन्हें भी पानी दे गया. उस के बाद उन से और्डर लिया, “आप के लिए क्या लाएं सर?”

“कौफी ले आओ.” सुरेंद्र ने कहा तो कुछ देर बाद एक वेटर गोल्डन कप में उन्हें कौफी दे गया. वह जिस ड्राइंगरूम में बैठे थे, वहां से बाहर का भी नजारा दिखाई दे रहा था. वहां अनगिनत देशीविदेशी पेड़पौधों ने वातावरण को सुंदर बनाया हुआ था. कुछ ही वक्त बीता था कि वह आदमी और उस के साथी भी आ गए. उन्होंने गर्मजोशी से सुरेंद्र गुप्ता का स्वागत किया. वे भी बातचीत में मशगूल हो गए.

कुछ और वक्त बीता होगा कि सायरन बजाती एक जिप्सी फार्महाउस में दाखिल हुई. उस के ठीक पीछे काले रंग की चमचमाती मॢसडीज कार थी और उस के पीछे एक और जिप्सी. दोनों जिप्सियों पर बीसियों कमांडों और सुरक्षाकर्मी सवार थे. सभी के पास हथियार और वौकीटौकी थे.

एक सुरक्षाकर्मी ने चमचमाती कार का पिछला दरवाजा खोला तो उस में से जो शख्स उतरा, वह निहायत ही आकर्षक था. उस ने नीले रंग का सूट पहना हुआ था. उस ने अपने नजदीक आए स्टाफ से कुछ गुफ्तगू की और ड्राइंगरूम की तरफ बढऩे लगा. उस की चालढाल में भी रुआब झलक रहा था. उस के चारों ओर सुरक्षाकर्मी इस तरह घेरा सा बनाए चल रहे थे कि कोई परिंदा भी नजदीक नहीं आ सकता था. अंदर पहुंच कर उस ने मुसकरा कर सभी से मुलाकात की.

सुरेंद्र के परिचित ने उन का परिचय कराया, “सर, आप ही हैं सुरेंद्र गुप्ताजी, जिन के बारे में आप से बात हुई थी.”

“ओके…ओके… आप के बारे में इन लोगों ने मुझे सब बता दिया है. आप अभी बैठिए, मैं बाकी लोगों से मिल कर आप से बात करता हूं.”

सभी अपनीअपनी जगह पर बैठ गए. सारा तामझाम देख कर सुरेंद्र समझ गए कि अजय पंडित बहुत पहुंची हुई हस्ती है.

करीब आधे घंटे बाद अजय पंडित से उन के मिलने की बारी आ गई. औपचारिक बातचीत के बाद उस ने पूछा, “इन लोगों ने बताया तो था आप के काम के बारे में, लेकिन आप खुद विस्तार से मुझे बताइए कि आप चाहते क्या हैं?”

“सर, मुझे करीब 2 सौ करोड़ का लोन चाहिए.”

सुरेंद्र की बात पर अजय इस तरह मुसकराया, जैसे यह बहुत छोटी बात हो. उस ने कहा, “2 सौ ही क्यों, आप 3 सौ करोड़ का लोन ले लीजिए. ऐसी कई विदेशी कंपनियां हैं, जो भारत में अपना पैसा निवेश करना चाहती है. बस, उन्हें गारंटी चाहिए, वह आप के लिए हम ले लेंगे. ब्याज भी केवल 7 प्रतिशत होगा. अभी पिछले महीने उन्होंने दिल्ली की एक पार्टी को 2 सौ करोड़ रुपए दिए भी हैं.”

यह सुन कर सुरेंद्र गुप्ता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

“बात करोड़ों की है, इसलिए एक बार कल मैं उन लोगों से बात कर लेता हूं. अगर उन्होंने कहीं इन्वैस्टमेंट नहीं किया होगा तो आप अपना काम पक्का समझिए.” कुछ पल रुक कर उस ने आगे कहा, “हां, एक जरूरी बात, कस्टम, पुलिस क्लियरैंस और सभी फाइल चार्ज आप को देने होंगे.”

“वह मैं दे दूंगा.” सुरेंद्र गुप्ता ने उत्साह से कहा. अच्छे माहौल में बातचीत के बाद सुरेंद्र खुशीखुशी वापस आ गए.

अजय के साथियों ने एक सप्ताह बाद ही सुरेंद्र गुप्ता को बता दिया कि उन का काम हो जाएगा. कागजी औपचारिकताओं और कमीशन के नाम पर पहली किश्त के रूप में उन्होंने एक करोड़ रुपए अजय तक पहुंचा दिए. इस के साथ अपने कुछ फोटो, प्रौपर्टी दस्तावेजों की फोटोकौपी भी दे दी थी.

अगले कुछ महीनों में कस्टम, पुलिस क्लीयरेंस, सिक्योरिटी और अन्य कमीशन के नाम पर उन्होंने 3 करोड़ रुपए और भी दे दिए. 3 सौ करोड़ के लोन के लिए यह रकम कुछ भी नहीं थी. इतना बड़ा लोन उन्हें मिलने जा रहा था, यही क्या कम था.

इस बीच कई तरह के फार्म जो कस्टम, बैंकों और विदेशी मनी ट्रांसफर की सरकारी परमीशन से संबंधित थे, सुरेंद्र गुप्ता से हस्ताक्षर करा लिए गए थे. कई बार इंसान जैसा सोचता है, वैसा होता नहीं. लोन मिलने की उम्मीद में समय और तारीखें बढ़ती चली गईं. सुरेंद्र बहुत खुश थे, लेकिन उन की खुशी को पहला झटका तब लगा, जब अजय के साथियों ने उन्हें नजरंदाज करना शुरू कर दिया.

आशंकित हो कर सुरेंद्र गुप्ता ने अपने स्तर से अजय पंडित के बारे में पता लगाना शुरू किया, लेकिन उस के रसूख में कहीं कोई शक नहीं हुआ. उन के एक परिचित ने यह जरूर कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें ठग लिया गया हो? यह ख्याल मन में आते ही उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अजय के साथियों से भी बात की. वे काम के लिए तो हामी भरते रहे, लेकिन टरकाते भी रहे. अजय से मिलने की उन्होंने कई कोशिशें कीं, लेकिन वीआईपी सुरक्षा के चक्रव्यूह में उन का उस से मिलना नहीं हो सका. वह हर बार नाकाम रहे. किसी से बात भी होती तो नेताओं का रौब दिखा दिया जाता.

सुरेंद्र ने जो रकम दी थी, वह कोई छोटी रकम नहीं थी. धीरेधीरे जब विश्वास हो गया कि उन्हें ठग लिया गया है तो वह बेचैन हो उठे.

अजय पंडित भले ही रसूख वाला था, लेकिन करोड़ों रुपए की ठगी का मामला था, इसलिए सुरेंद्र भी कैसे चुप बैठते. उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का फैसला कर लिया. इस के बाद वह करनाल के एसपी पंकज नैन से मिले और उन्हें आपबीती सुनाई. पुलिस ने उन्हें शीघ्र काररवाई का आश्वासन दिया.

शिकायत पर गहराई से विचार कर के पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श किया. पुलिस ने अजय के बारे में जानकारियां जुटाईं तो पता चला कि उस के बड़ेबड़े नेताओं से संबंध हैं. वह काफी उच्चस्तर पर संबंध रखने वाला आदमी है. उस की पैठ न केवल हर बड़ी पार्टी में हैं, बल्कि पुलिस प्रशासन, नौकरशाहों और उद्योगपतियों से भी उस के अच्छे रिश्तों की बात सामने आ रही थी.

निस्संदेह वह ऊंची पहुंच वाला आदमी था. ऐसे आदमी पर बिना पर्याप्त सबूत या एफआईआर के हाथ डालना संभव नहीं था. इस से पुलिस की काररवाई शुरू होने से पहले ही खत्म हो सकती थी. इसी छानबीन में पुलिस रिकौर्ड से पता चला कि कुछ साल पहले में पानीपत शहर में अजय के खिलाफ नौकरी के नाम पर 20 लाख रुपए की ठगी का एक मामला दर्ज हुआ था.

यह मामला अदालत में चल रहा था. इस से पुलिस का यह शक पुख्ता हो गया कि अजय राजनीतिक संबंधों की आड़ में लोगों के साथ ठगी कर रहा है.

इस के बाद थाना मधुबन में सुरेंद्र गुप्ता की तहरीर पर भादंवि की धारा 420 और 506 के तहत मामला दर्ज हो गया. इस के बाद अधिकारियों ने विचारविमर्श के बाद उस की गिरफ्तारी का फैसला कर लिया. प्रदेश पुलिस के मुखिया यशपाल सिंघल और आईजी हनीफ कुरैशी ने भी इस मामले में काररवाई के निर्देश दे दिए. इस के लिए एक स्पैशल इन्वैस्टीगेशन टीम भी बना दी गई. इस टीम में कई तेजतर्रार पुलिसकॢमयों को शामिल करते हुए इस की कमान डीएसपी जितेंद्र गहलावत को सौंप दी गई. अब पुलिस उसे घेरने की कोशिश में जुट गई.

पुलिस ने चंडीगढ़अंबाला रोड पर अजय को पूछताछ के बहाने बुलाया गया तो उस ने अपनी पहुंच का हवाला दे कर पुलिस को रौब में लेने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने उस के प्रभाव में आए बिना उसे गिरफ्तार कर लिया. जबकि पुलिस ने इस गिरफ्तारी की तत्काल किसी को भनक नहीं लगने दी और अदालत में पेशी के बाद उसे 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

प्राथमिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे साथ ले कर छतरपुर स्थित फार्महाउस पर छापा मारा तो वहां से सुरेंद्र गुप्ता द्वारा दिए गए 2 करोड़ रुपए बरामद हो गए. हरियाणा पुलिस के लिए किसी मामले में अब तक बरामद की गई सब से बड़ी रकम थी. इसी के साथ अजय की गिरफ्तारी की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई.

पुलिस तब चौंके बिना नहीं रह सकी, जब उस के सामने 2 और ऐसे शिकायतकर्ता आ गए, जो अजय पंडित की ठगी का शिकार हुए थे. उन में से करनाल के वीरेंद्र सिंह से गैस एजेंसी और पैट्रोल पंप दिलाने के नाम पर डेढ़ करोड़ रुपए ठगे गए थे, जबकि पुणे के आर.एस. यादव से केंद्र सरकार में नेशनल सिक्योरिटी कमीशन में मेबर बनवाने के नाम पर 50 लाख रुपए की रकम ऐंठी गई थी.

पुलिस ने इन दोनों मामलों में भी मुकदमा दर्ज कर लिया और अजय पंडित से विस्तृत पूछताछ की. इस बीच उसे पुन: अदालत में पेश किया गया. इस बार भी उसे 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

अजय पंडित से पूछताछ और उस के कारनामों की चर्चाओं एवं जांचपड़ताल में जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इसलिए चौंकाने वाली थी, क्योंकि एक नौवीं फेल शख्स ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और शातिर दिमाग के बल पर इतनी ऊंची पहुंच बना ली थी, जिस की जल्दी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. जानीमानी पाॢटयों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से ले कर वरिष्ठ अधिकारियों से उस के सीधे और मजबूत संबंध थे. उस का रसूख और राजशाही ठाठ देख कर बड़ेबड़े लोग प्रभाव में आ जाते थे.

अजय शर्मा उर्फ सरजू को जानने वाले बताते हैं कि वह नौवीं फेल था. उस के पिता का कभी छोटा सा क्लिनिक हुआ करता था. वह सिरसा में गोदाम रोड पर रहते थे. उस की प्रारंभिक शिक्षा यहीं हुई थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी था. पढ़ाई में मन नहीं लगा, इस के बावजूद वह ऊंचे सपने देखने लगा.

कुछ लोग अपने सपनों को पढ़ाई और काबलियत के बलबूते पूरा करते हैं, परंतु कुछ लोग शौर्टकट के जरिए. फर्क इतना होता है कि जो सपने काबलियत से पूरे होते हैं, वे स्थाई होते हैं, जबकि जिन्हें शौर्टकट के जरिए पूरा किया जाता है, उन की कोई बुनियाद नहीं होती, वे वक्ती होते हैं. यह फर्क कलांतर में आईने की तरह एकदम साफ दिखता है. इस बड़ी हकीकत से अंजान अजय का थकी सी जिंदगी में मन नहीं लगता था.

पढ़ा हुआ वह भले ही कम था, लेकिन दिमाग का तेज था. उस का व्यक्तित्व भी आकर्षक था. उस के आॢथक हालात कतई अच्छे नहीं थे. उसे लगता था कि हवाई चप्पलों में टहलते हुए उस की उम्र यूं ही कट जाएगी. यह बात उस की समझ में आ गई थी कि आज के जमाने में राजनीतिक ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं है. उस ने राजनीति से जुड़े लोगों से रिश्ते बनाने शुरू कर दिए, साथ ही गुजारे के लिए प्रौपर्टी का छोटामोटा काम करने लगा.

बातों से किसी को भी प्रभावित करने की कला उस में थी ही, उस की पैठ बढ़ी तो उस ने दिल्ली का रुख किया. इस के बाद उस ने कई सालों तक सिरसा की ओर पलट कर नहीं देखा. राजनीतिज्ञों की शागिर्दी के साथ उस ने लोगों के छोटेमोटे काम कराने शुरू किए तो उस के बदले वह पैसे लेने लगा. इसी के साथ प्रौपर्टी के काम में भी वह हाथ आजमाता रहा. कई शराब कारोबारियों से भी उस के रिश्ते बन गए थे.

विवादित प्रौपर्टी पर उस की खास नजर होती थी, क्योंकि वहां नेताओं और नौकरशाहों की पौवर का इस्तेमाल कर के वह अपने रिश्तों को भुना लेता था. हैसियत बढ़ी तो पंजाबी बाग जैसे पौश इलाके में किराए पर रहना शुरू कर दिया. इन्हीं कामों से उस ने इतनी दौलत कमाई कि 10 सालों में वह काफी दौलतमंद हो गया. इस बीच फिल्मों से प्रभावित हो कर उस ने अपना नाम अजय पंडित रख लिया.

अजय का काम करने का तरीका एकदम अलग था. उस ने तमाम चेलेचपाटे बना लिए थे, जो पहले शिकार को टारगेट करते थे. इस के बाद उसे शान दिखा कर संपर्क बढ़ा कर उसे राजनीतिक घरानों से ले कर बड़े नौकरशाहों से मिलवा कर अपना विश्वास जमाते. और जब विश्वास जम जाता था तो उसे कोई ख्वाब दिखा कर चाल चलना शुरू कर देते थे.

इस मामले में अजय करिश्माई व्यक्तित्व का स्वामी था. लोग न सिर्फ उस पर भरोसा कर लेते थे, बल्कि उसे काम के बदले मोटी रकम भी दे देते थे. जिन के काम नहीं होते थे, उन के रुपए फंस जाते थे. अजय रसूख की बदौलत तरहतरह के हथकंडे अपना कर ऐसे लोगों को किनारे कर देता था.

किसी को राजनीतिक पार्टी का टिकट दिलाने, किसी को नौकरी, किसी को पैट्रोल पंप व गैस एजेंसी का लाइसैंस दिलाने तो किसी को बड़े काम के ठेके दिलाने का झांसा दे कर वह ठगी करता था. ऐसा भी नहीं था कि वह लोगों के काम बिलकुल नहीं कराता था. लेकिन जिन का काम नहीं होता था, उन के पैसे फंस जाना तय था.

दौलत और ताकत में इजाफा हुआ तो अजय ने छतरपुर में एक फार्महाउस किराए पर ले लिया. उस ने सिरसा के सैक्टर-20 में एक आलीशान कोठी बनवाई. कई लग्जरी गाडिय़ां खरीद लीं. राजनीतिक लोगों और नौकरशाहों पर भी उस का दबदबा रहता था. सरकारी सुरक्षा के अलावा प्राइवेट सिक्योरिटी में पहलवान जैसे लडक़ों को वह साथ रखता था.

अजय खुद को राजशाही घराने का बताता था. उस ने तमाम नामीगिरामी लोगों से संपर्क बना लिए थे. उस के रहनसहन, राजसी ठाटबाट, सुरक्षा तामझाम, लग्जरी गाडिय़ों और बड़े संपर्कों को देख कर कोई भी प्रभाव में आ जाता था. वह लोगों से बड़ेबड़े कामों को कराने के बदले मोटी रकम लेता था. राजनीतिक संबंधों को भुनाने का हुनर उसे खूब आता था.

उस ने सोनिया गांधी एसोसिएशन बना ली, जिस का वह खुद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया. इसी के साथ उस ने ब्राह्मणसभा भी बनाई और उस का भी खुद ही अध्यक्ष बन गया. वह सफेदपोश बन कर ऐशोआराम की जिंदगी जीता था. अजय के जिंदगी जीने का अंदाज एकदम अलग था. वह रौबरुतबे से रहता था. उस का हुक्म बजाने के लिए नौकरों और सुरक्षाकॢमयों की फौज तैयार रहती थी.

राष्ट्रीय पहुंच के नेताओं से संबंध बनाए रखने की कला का वह बाजीगर था. लखपति लोगों के काम कराना वह अपनी तौहीन समझता था, इसलिए करोड़पति और अरबपति लोगों को ही अपना निशाना बनाता था. किसी का काम कराने के बदले वह करोड़ो रुपए एडवांस में ले लेता था. शातिर दिमाग अजय ने दिखावटी शान से ही बड़ोंबड़ों को झांसे में लिया था.

दौलत और रसूख हासिल करने के बाद अजय ने कुछ साल पहले सिरसा आना शुरू किया तो वह जब भी वहां आता, उसे देख कर लोगों की आंखें फटी रह जातीं. कारों और वीआईपी सिक्योरिटी ही नहीं, अजय हैलीकौप्टर से भी आता था. लोगों में जिज्ञासा बढ़ाने के लिए वह शहर के ऊपर हैलीकौप्टर का चक्कर लगवा कर एयरफोर्स स्टेशन पर उतरता था. तब लोगों को पता चल जाता था कि उन का अजय उर्फ सरजू आया है.

वह दान भी दोनों हाथों से करता था. यह दान वह धार्मिक आयोजनों, पूजास्थलों से ले कर गरीबों तक में करता था. उस ने दान भी इतना किया था कि उस की पहचान बड़े दानवीरों में होने लगी थी. उस के रसूख और दान देने की दिलदारी को देख कर लोग उसे कार्यक्रमों मे बुलाने लगे थे.

विशेष अवसरों पर जब उस के आने पर गरीबों की लाइन लगती थी तो उस के काङ्क्षरदे हजार व 5 सौ के नोटों की गड्डयां खोल कर उसे देते और वह बिना गिने बांटता चला जाता था.

गरीबों के प्रति उस की यह दरियादिली जितनी सुर्खयों में आती, वह उतना ही खुश होता और गर्व महसूस करता. उस ने किसी गरीब को कभी हजार या 5 सौ से कम का नोट नहीं दिया, क्योंकि उस से कम देना वह अपनी तौहीन समझता था. उसे ऐसा करते देख बड़ेबड़े रईस भी हैरान रह जाते थे.

अजय को जब भी सिरसा आना होता, उस के स्वागत में शहर में बड़ेबड़े होॄडग और बैनर कुछ इस अंदाज में लगाए जाते थे, जैसे किसी बड़ी राजनैतिक हस्ती का स्पैशल दौरा हो. जब सारी तैयारियां पूरी हो जातीं, उस के बाद ही भारी सुरक्षा तामझाम और काफिले के साथ अजय फिल्मी स्टाइल में एंट्री करता था. उस के आगेपीछे पुलिस और कमांडों दस्ते की जिप्सियां चलती थीं. उन के बीच वह महंगी लग्जरी कार में रहता था.

लोग उसे देख सकें, इस के लिए कार का शीशा उतार दिया जाता था. जिप्सियों पर 2-2 पुलिसकर्मी गले में कारबाइन डाल कर खड़े हो कर चलते थे. शायद ऐसा इसलिए किया जाता था कि लोग देख सकें कि पुलिस किस मुस्तैदी से उसे वीआईपी सुरक्षा दे रही है. इस सब के पीछे उस की मंशा लोगों को अपना रसूख दिखाने की होती थी. वह हमेशा वीआईपी सिक्योरिटी रखता था.

उस की सुरक्षा में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली पुलिस के जवान होते थे. जितनी सुरक्षा उस के पास होती थी, किसी कैबिनेट मंत्री के पास भी नहीं होती थी. विधानसभा चुनावों के समय सिरसा में चर्चा हो रही थी कि कांग्रेस अजय को अपना उम्मीदवार बनाएगी तो पूर्व मंत्री गोपाल कांडा से उस का कांटेदार मुकाबला होगा. हालांकि ऐसा हुआ नहीं.

अजय की रईसी का आलम यह था कि वह अपने नातेरिश्तेदारों को महंगी कारें तक गिफ्ट करता था. उस के पास जो लग्जरी गाडिय़ां थीं, वे उस के नाम नहीं थीं. उस की बीएमडब्ल्यू, मर्सडीज, औडी व हुंडई कारें उस के साथियों और पीए के नाम पर थीं.

अजय की शान से प्रभावित हो कर बड़ेबड़े लोग अपने काम कराने के लिए उस के पास आते और उस के जाल में फंस जाते थे. उन्हीं में पुणे के एक बड़े शिक्षण संस्थान के संचालक आर.एस. यादव भी थे. वह अकसर अपने कामों से दिल्ली आते रहते थे. इसी आनेजाने में उन की मुलाकात अजय से हुई तो उस ने उन्हें ऐसा झांसा दिया कि वह भी उस के जाल में फंस गए.

उस ने उन से कहा था कि सरकार एक सिक्योरिटी कमीशन बनाने जा रही है, अगर वह चाहें तो गृह मंत्रालय में सिफारिश कर के उन्हें वह उस में मेंबर बनवा सकता है. उन्हें तमाम सरकारी सुविधाओं के साथ लाल बत्ती लगी गाड़ी और सुरक्षा भी मिलेगी.

आर.एस. यादव इस के लिए सहज ही तैयार हो गए. अजय का रसूख चूंकि वह देख चुके थे, इसलिए शक जैसी कोई बात नहीं थी. उन्होंने 50 लाख रुपए अजय को आने वाले दिनों में दे भी दिए. ऐसा कोई कमीशन बनना ही नहीं था, इसलिए रुपए हाथ में आते ही अजय उन्हें टरकाने लगा.

उन्हें लगा कि वह फंस गए हैं तो पैसे वापस मांगे. इस के बाद वह आए दिन रुपए वापसी के लिए चक्कर लगाने लगे तो एक दिन फार्महाउस पर अजय से उन की कहासुनी हो गई. आर.एस. यादव अड़ गए. उन्होंने कहा, “अजयजी बहुत हो गया, आप मेरा हिसाब कर दीजिए. उस के बाद हमारा आप का रिश्ता खत्म.”

उन की बात पर अजय ने मुसकरा कर कहा, “ठीक है, तुम यही चाहते हो तो आज मैं मामला साफ किए देता हूं. आज के बाद तुम मुझ से कभी नहीं मिल सकोगे.”

इस के बाद अजय ने सुरक्षाकर्मियों को इशारा किया तो उन्होंने उसे धकिया कर फार्महाउस के बाहर कर दिया. उस ने ताकीद भी कर दी थी कि यह आदमी आइंदा कभी कोठी में नहीं दिखना चाहिए. बाहर से ही इसे भगा देना.

इस तरह आर.एस. यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो वह चाह कर भी कभी उस से नहीं मिल सके. अजय की पहुंच को देखते हुए उन्होंने उस के खिलाफ जान के डर से पुलिस में शिकायत करने की भी हिम्मत नहीं की. कोशिश कर के हरियाणा में शिकायत भी की तो वह दब कर रह गई.

कुछ साल पहले अजय ने पानीपत के एक आदमी से सरकारी नौकरी लगवाने के नाम पर 20 लाख रुपए ठग लिए थे. ठगी का शिकार हुए आदमी ने चुप बैठने के बजाय उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. पानीपत में उस के खिलाफ 20 लाख रुपए की ठगी का मुकदमा तो दर्ज हुआ, लेकिन अपनी पहुंच के बल पर वह कानून के शिकंजे में फंसने से बचता रहा.

मामला अदालत में पहुंचा. अजय को उम्मीद थी कि एक दिन यह सब रफादफा करा देगा. अजय की ठगी का सिलसिला यहीं नहीं थमा. उस ने करनाल के सेक्टर-1 निवासी वीरेंद्र सिंह से भी पैट्रोल पंप और गैस एजेंसी दिलाने के नाम पर डेढ़ करोड़ रुपए ठग लिए थे. वीरेंद्र को न एजेंसी मिली, न रुपए. अजय की पहुंच के आगे वह भी थक कर बैठ गए थे.

इस के बाद उस ने सुरेंद्र गुप्ता को ठगी का शिकार बनाया. उसे कहीं से पता चला था कि सुरेंद्र को लोन की जरूरत है. यह पता चलते ही उस ने अपने साथियों को उन के पीछे लगा दिया. गुप्ता उन के जाल में एक बार फंसे तो फिर फंसते ही चले गए.

अजय के कारनामों का खुलासा हुआ तो हर कोई हैरान था. पुलिस हिरासत में भी वह अपने परिचित नेताओं के नाम ले कर पुलिस को डराता रहा. उस की गिरफ्तारी की सूचना मिलने के बाद गैस एजेंसी के नाम पर डेढ़ करोड़ गंवाने वाले वीरेंद्र सिंह और पुणे के आर.एस. यादव ने भी मुकदमा लिखाया था.

दरअसल, आर.एस. यादव कुछ ऐसे लोगों के बराबर संपर्क में थे, जो अजय को जानते थे. उन्हें गिरफ्तारी की खबर पा कर वह करनाल से आ पहुंचे थे. पुलिस ने कई राज्यों में उस की गिरफ्तारी की सूचना भेज दी है, ताकि अन्य मामले भी पकड़ में आ सकें.

पुलिस ने अजय के एक साथी रिषी विश्नोई को भी गिरफ्तार किया है. उसी ने डेढ़ करोड़ की ठगी का शिकार हुए वीरेंद्र की मुलाकात अजय से कराई थी और ठगी के इस मामले में अहम भूमिका निभाई थी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने अजय को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उस के शेष कारनामों की जांच के साथ ही उस के बाकी साथियों की तलाश कर रही थी. पुलिस के पास अजय की ठगी का शिकार हुए लोग पहुंच रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

विपक्षी एकता से भयभीत भाजपा

वर्ष 2024 के लोकसभा समर को देखते हुए देश की समस्त विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल आदि जो भारतीय जनता पार्टी से इतर विचारधारा रखते हैं- बेंगलुरु में बैठक कर देश को एक संदेश देने का प्रयास किया. यह भी सच है कि विपक्ष की एकता का आगाज बहुत पहले हो गया था. मगर अब भारतीय जनता पार्टी की कुंभकर्णी निद्रा टूट गई और वह आननफानन उन राजनीतिक दलों को एक करने में जुट गई जिन्हें सत्ता के घमंड में आ कर उस ने तवज्जुह नहीं दी थी. इस का सब से बड़ा उदाहरण है रामविलास पासवान की पार्टी का जबकि चिराग पासवान आंख बंद कर के नरेंद्र मोदी की भक्ति करते देखे गए हैं.

यही नहीं, नीतीश कुमार के साथ भी भाजपा ने दोयम दर्जे का व्यवहार किया. इस तरह गठबंधन का धर्म नहीं निभा कर भारतीय जनता पार्टी ने एक तरह से अपने सहयोगियों के साथ विश्वासघात किया था. जिसे सत्ता की लालच में आज छोटीछोटी पार्टियां भूल गई हैं. सो, अब इस की क्या गारंटी है कि 2024 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इन के साथ समान व्यवहार किया जाएगा. दरअसल, देश के इतिहास में इस छलावे को कभी भुलाया नहीं जा सकता. कहा जाता है कि एक बार धोखा खाने के बाद समझदार आदमी सजग हो जाता है, मगर भारतीय जनता पार्टी के भुलावे में आ कर के 38 दल भारतीय जनता पार्टी के क्षत्र तले आ कर खड़े हो गए हैं. मगर, यह सच है कि यह सिर्फ एक छलावा और दिखावा मात्र है.

एक तरफ विपक्ष अभी 26 दलों का गठबंधन बना पाया है वहीं भारतीय जनता पार्टी स्वयं को हमेशा की तरह बड़ा दिखाने के फेर में छोटेछोटे दलों को भी आज नमस्ते कर रही है जो कोई राजनीतिक हैसियत भी नहीं रखते. भाजपा का देश को यह सिर्फ आंकड़ा दिखाने का खेल है वह यह बताना चाहती है कि उसके पास देश के सर्वाधिक राजनीतिक दलों का समर्थन है और विपक्ष जो आज एकता की बात कर रहा है वह हमारे सामने नहीं ठहर सकता.

असलियत यह है कि भाजपा यह सब भयभीत हो कर के कर रही है ताकि आने वाले समय में उस के हाथों से देश की केंद्रीय सत्ता निकल न जाए.

विपक्षी नेतृत्व

विपक्षियों की तरफ से कांग्रेस के नेतृत्व में 2024 के लोकसभा चुनाव होंगे. सो, कांग्रेस पार्टी 10 साल की यूपीए सरकार के तथाकथित भ्रष्टाचार और घोटालों का एक खाका खींचने के मद्देनजर विपक्षी गठबंधन के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम बना रही है.

विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ एकजुट हो कर लड़ने के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं. कांग्रेस के मुताबिक, अगले लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता भारत के राजनीतिक दृश्य के लिए परिवर्तनकारी साबित होगी. जो लोग अकेले दम पर विपक्षी पार्टियों को हरा देने का दंभ भरते थे, वे इन दिनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के ‘भूत’ में नई जान फूंकने की कोशिश में लगे हुए हैं. कुल जमा कहा जा सकता है कि विपक्ष की एकता से भारतीय जनता पार्टी के मस्तक पर पसीना उभर आया है. उसे यह समझते देर नहीं लगी कि अगर वह सोती रहेगी तो राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष भारी पड़ सकता है.

बड़ी लाइन खींचने की चेष्टा

भारतीय जनता पार्टी ने जब देखा कि केंद्र की सत्ता उस के हाथों से निकल सकती है, आननफानन राजनीतिक दलों को अपने साथ मिलाने मिल गई है जो कभी उस के व्यवहार व सत्ता के घमंड को देख छोड़ कर चले गए थे. 18 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में अपने साथी राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक आयोजित की. इस से वह यह संदेश देना चाहती है कि वह किसी से कम नहीं हैं.

दरअसल, बुलाई गई यह बैठक सत्तारूढ़ गठबंधन के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखी जा रही है. इस बैठक में भाजपा के कई मौजूदा और नए सहयोगी दल मौजूद रहे. सत्तारूढ़ पार्टी ने हाल के दिनों में नए दलों को साथ लेने और गठबंधन छोड़ कर जा चुके पुराने सहयोगियों को वापस लाने के लिए कड़ी मेहनत की है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मुताबिक, हम ने अपने सहयोगियों को न पहले जाने के लिए कहा था और न अब आने के लिए मना कर रहे हैं. उन्होंने कहा, जो हमारी विचारधारा और देशहित में साथ आना चाहता है, आ सकता है.

हालांकि जनता दल (एकीकृत), उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अकाली दल जैसे अपने कई पारंपरिक सहयोगियों को खोने के बाद भाजपा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट, उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाले हिंदुस्तानी अवाम मोरचा (सैक्युलर) और उपेंद्र कुशवाला के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक जनता दल (रालोजद) के साथ गठबंधन करने में सफल रही है. मगर यह देखना महत्त्वपूर्ण है कि ये सारे दल देश की राजनीति में कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं रखते हैं, वे भाजपा का सिर्फ कोरम पूरा करने का काम कर रहे हैं.

चंद्रयान अभियान पर अंधविश्वास फैलाना इस सफलता का मजाक उड़ाने जैसा

चंद्रयान अभियान के साथ एक बार फिर यह सच्चाई हमारे सामने आईने की तरह है की हमारे देश में चाहे जितनी भी तरक्की हो जाए हम पोंगा पंथ और अंधविश्वास से आज भी जकड़े हुए हैं. हमारे वैज्ञानिक और पढ़े लिखे लोग भी इससे बच नहीं पा रहे हैं .

पहली बात तो यह कि चंद्रयान अभियान कि देश को आवश्यकता ही नहीं थी. क्योंकि यह सिद्ध हो चुका है कि वहां ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे मानवता को या किसी राष्ट्र को किंचित भी लाभ मिल सके. ऐसे में भारत का यह अभियान और करोड़ों रुपए का खेल सिवाय होलिका दहन के सिवा कुछ भी नहीं है. हमारे वैज्ञानिकों को कुछ ऐसा करना चाहिए जो दुनिया में अभूतपूर्व हो मगर चंद्रयान अभियान को लकीर का फकीर या फिर कहा जाए जा चुके सांप की लकीर पर लाठी पीटने के अलावा कुछ भी नहीं है. यही नहीं चंद्रयान 3 के पूर्व जिस तरह पूजा पाठ का संव्यवहार दुनिया ने देखा है वह यह जग जाहिर करता है कि हमारे देश ने तरक्की चाहे जितनी भी कर ली हो मगर हमारी मानसिकता अभी भी बहुत ही पिछड़ी हुई है.

मजे की बात तो यह है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में होते और चंद्रयान 3 के प्रक्षेपण से पूर्व कुछ ऐसा आह्वान कर देते जो हास्यास्पद है जैसा कि करोना काल में थाली कटोरा बजाना . तो हर भारतवासी आंख बंद करके चंद्रयान की सफलता के लिए यह सब बिना सोचे समझे करने लगता कि यह उचित भी है की नहीं.

भारत ने 14 जुलाई 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से एलवीएम 3 – एम 4 राकेट के जरिए अपने तीसरे चंद्र मिशन- चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण किया. इस अभियान के तहत पिछली बार की असफलताओं के मद्देनजर चांद की सतह पर एक बार फिर ‘साफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास किया जाएगा. इसमें सफलता मिलते ही भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन जैसे देशों के कतार में खड़ा हो जाएगा और यह इस तरह का कीर्तिमान स्थापित करने वाला विश्व का चौथा देश बन जाएगा.

सिर्फ इस एक लाइन के भरोसे जिस तरह भारत को आज हमारा राजनीतिक नेतृत्व खड़ा करना चाह रहा है उसका मकसद हर एक भारतवासी को समझना चाहिए कि इससे हमें कुछ मिलने वाला नहीं है यह सिर्फ एक राजनीतिक मुंह जोरी बन कर रह जाएगा.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मुताबिक चंद्रयान-3 की ‘साफ्ट लैंडिंग’ 23 अगस्त को शाम पांच बजकर 47 मिनट पर किए जाने की योजना है. पंद्रह साल में इसरो का यह तीसरा चंद्र मिशन है. ‘साफ्ट लैंडिंग’ इस अभियान का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा होगी. ‘चंद्रयान-2’ मिशन के दौरान अंतिम क्षणों में लैंडर ‘विक्रम’ पथ विचलन के कारण ‘साफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल नहीं हुआ था. और दुनिया में हमारी किरकिरी हुई थी मुंह की खानी पड़ी थी.

आखिरकार 25.30 घंटे की उलटी गिनती के अंत में एलवीएम 3 – एम 4 राकेट अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र के दूसरे ‘लांच पैड’ से शुक्रवार दोपहर बाद 2:35 बजे निर्धारित समय पर धुएं का घना गुबार छोड़ते हुए आकाश की ओर रवाना हुआ. इसकी वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हैं जिसमें लोग किलकारियां मारते कैसे खुश हो रहे हैं जैसे मानो कोई कीला फतह हो गया हो.
इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद प्रणोदन माड्यूल राकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया.

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