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युवा आंखों में होने वाली खास बीमारियां

70 वर्षीया सुनंदा हमेशा ऐक्टिव थी. एक दिन अचानक उस की एक आंख की रोशनी चली गई. वह एक आंख पर निर्भर हो गई. परिवार वालों ने आसपास के 4-5 केंद्रों पर उस की आंखों की जांच करवाई. पता चला मोतिया बिंद के साथसाथ ग्लूकोमा भी है. धीरेधीरे दूसरी आंख की रोशनी भी कम होने लगी. वह बिस्तर पर आ गई. डेढ़ साल तक वह बिस्तर पर रही.

सुनंदा अब डिप्रैशन की शिकार हो चुकी थी लेकिन जब उस का ट्रीटमैंट सही तरह से करवाया गया तो उसे 40 प्रतिशत आंखों की रोशनी मिली. वह खुद चलफिरने में समर्थ हो गई. सही इलाज किसी भी समय आंखों की थोड़ी रोशनी वापस ला सकता है.

बहुत से परिवारों में वृद्ध होते वयस्कों पर ध्यान कम दिया जाता है. सुनंदा के केस में परिवार वालों को लगा था कि अब उस की उम्र हो चुकी है और उस की रोशनी वापस नहीं आ सकती. पर सही इलाज से वह फिर से ऐक्टिव हो गई. असल में आंखों की ऐसी कई बीमारियां है जो उम्र के साथसाथ दिखाई पड़ती हैं. उन में से कई ऐसी हैं जिन की जानकारी समय रहते मिलने पर इलाज संभव है.

  • प्रेस्बायोपिया: प्रेसबायोपिया उम्र के साथ होने वाली निकट में फोकसिंग करने की क्षमता का सामान्य नुकसान है. ज्यादातर लोग 40 साल की उम्र के बाद कुछ समय में प्रेस्बायोपिया के प्रभावों को नोटिस करना शुरू कर देते हैं, जब उन्हें छोटे प्रिंट को स्पष्ट रूप से देखने में परेशानी होने लगती है. इस उम्र के बाद सभी को पढ़नेलिखने, सिलाई करने, सूई में धागा पिरोने या कंप्यूटर पर काम करते वक्त चश्में का प्रयोग करना चाहिए. मधुमेह और ब्लडप्रैशर के रोगी हर 6 महीने बाद अपनी आंखों की प्रैशर जांच करवाएं जबकि नौर्मल कंडीशन में साल में एक बार जांच करवाना ठीक रहता है. यह जांच चश्मों की दुकान पर नहीं बल्कि अच्छे आई सर्जन से करवाएं ताकि आप को आंखों की सही पावर का पता लगे. ये चश्में बाईफोकल, रीडिंग ग्लास या प्रोग्रैसिव पावर लैंस हो सकते हैं.
  • कैटेरैक्ट या मोतियाबिंद: जब आंखों की रोशनी साफ न हो, थोड़ी धुंधली या दोहरी इमेज दिखे तो आप मोतियाबिंद के शिकार हो सकते हैं. जैसेजैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, नजर में धुंधलापन बढ़ता है. कभी पढ़ने में तकलीफ होती है तो कभी खड़े व्यक्ति को देखने में तकलीफ होती है. कई बार व्यक्ति इसे नजरअंदाज करते हैं. अगर दूर से टीवी नजर नहीं आ रहा है तो कुरसी पास ले जा कर बैठ जाते हैं.

कैटेरेक्ट 30 या 40 की उम्र में भी हो सकता है. चश्मा बदलने के बाद भी अगर दृष्टि में कमी है, कैटेरेक्ट बिंद का औपरेशन करवाना सही होता है. आजकल कई नई तकनीकें उपलब्ध हैं जिन के द्वारा औपरेशन करने पर व्यक्ति 3 से 4 दिनों में ठीक हो जाता है.

नई तकनीक में एक छोटा सा छिद्र कर औपरेशन किया जाता है. इस में किसी प्रकार के इंजैक्शन या टांके की आवश्यकता नहीं पड़ती. इस में प्रयोग किया जाने वाला लैंस इतना पतला होता है कि आसानी से उसे मोड़ कर छोटे से कट में डाल सकते हैं. पहले मोनोफ़ोकल लैंस डाला जाता था, अब मल्टीफोकल लैंस डाले जाते हैं.

औपरेशन के बाद कई बार लैंस के पीछे जाली बन जाती है जिस से इमेज धुधली दिखती है. ऐसा करीब 20 प्रतिशत लोगों में होता है, जिसे लेजर पद्धति से साफ कर दिया जाता है. कई बार किसी को काला मोतियाबिंद भी होता है लेकिन इस औपरेशन से व्यक्ति को अपनी दृष्टि वापस मिल सकती है.

मधुमेह के रोगी की आंखों में कई बार मोतियाबिंद के औपरेशन करने से पहले उसे कंट्रोल कर दिया जाता है. मधुमेह के रोगी को आंखों की रेटिना की 6 महीनों में एक बार अवश्य जांच करवानी चाहिए. रेटिना खराब हो जाने पर आंखों के औपरेशन से कोई फायदा नहीं होता.

  • ग्लूकोमा: यह किसी व्यक्ति को भी 40 वर्ष के बाद हो सकता है. यह अंदरूनी तकलीफ है, इसलिए बाहर से इस का पता नहीं लगाया जा सकता. इसे साइलैंट किलर औफ औप्टिक नर्व कहा जाता है. इस में आंखों में पानी जाने का रास्ता बंद हो जाता है. आंखों में प्रैशर बढ़ जाता है. नया पानी आंखों में बनता रहता है लेकिन बाहर नहीं निकल पाता. इसलिए आंखों के अंदर का प्रैशर बढ़ जाता है. औष्टिक नर्व मस्तिष्क की तरफ चली जाती है. अगर आंखों का प्रैशर ठीक न रहा तो नस धीरेधीरे सूख जाती है. इस से दृष्टि चली जाती है. एक बार दृष्टि चली जाने पर उसे वापस नहीं लाया जा सकता. इस के लिए कई ड्रौप्स हैं जिस से प्रैशर कंट्रोल में रहता है.

ओसीटी स्कैन ग्लूकोमा के लिए प्रयोग किया जाता है. इस स्कैन द्वारा नसों की कमजोरी का पता लगा कर उस का इलाज संभव है. इस स्कैन के जरिए यह पता लगाया जाता है कि कब तक आप को रुकना है या फिर कौन सी आंख में अधिक और किस में कम ग्लूकोमा का प्रकोप है. पेरिमेटरी मशीन से भी विजन की जांच की जा सकती है.

  • डायबीटिक रेटिनोपैथी: अगर व्यक्ति को मधुमेह है तो रेटिना में ब्लीडिंग हो सकती है. इस की वजह से आंखों की रोशनी जा सकती है. इसे ओसीटी स्कैन और फ्लूरेसिन एंजियोग्राफी से पता लगा कर लेजर की सहायता से इलाज किया जाता है. ये सारे टैस्ट नौनइन्वेसिव टैस्ट हैं जो 5 मिनट में हो जाता है, जिस से सही इलाज संभव हो पाता है. साधारण मशीन से इस का पता लगाना संभव नहीं. नसों में खून का रिसाव होने से आंखों में सूजन आ जाती है. लेजर के साथ स्पैशल इंजैक्शन से सूजन कम कर ब्लीडिंग कम की जाती है.
  • एज रिलेटेड मेक्यूजर डिजेनरेशन: इस में रेटिना के सैंसिटिव भाग को मेक्यूणा कहा जाता है. उम्र बढ़ने के साथसाथ आंखों की रोशनी कम हो जाती है. ओसीटी स्कैन से ही परीक्षण कर इस का इलाज किया जाता है. आजकल मूविंग आई सर्जरी बहुत पौपुलर हो रही है. 10 मिनट में इस में औपरेशन संभव होता है. मरीज को लाइट की तरफ आंखों में देखना पड़ता है. बिना दर्द के यह औपरेशन होता है.

आजकल लेजर मशीनों से कैटेरेक्ट का औपरेशन होने लगा है जिस से वह सेफ भी हो गया है. इस में दर्द भी कम होता है.

वैसे, आजकल नैचुरल लैंस की पारदर्शिता बढ़ाने पर भी रिसर्च हो रही है और हो सकता है कि सर्जरी की जरूरत कम होने लगे.

पापा जल्दी आ जाना : पापा से मुलाकात को तरसती बेटी की कहानी

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एक शादीशुदा पुरुष मेरे लिए अपनी पत्नी को छोड़ने को तैयार है, क्या मेरे लिए वो सही व्यक्ति है?

सवाल

मेरी उम्र 23 वर्ष है, एक प्राइवेट कंपनी में काम करती हूं. मेरी हाइट व पर्सनैलिटी अच्छी है. पिछले दिनों एक फैमिली फंक्शन के दौरान मेरी मुलाकात एक 30 वर्षीय शादीशुदा पुरुष से हुई. वह मेरी सुंदरता का कायल हो गया और मैं भी उस के प्रति आकर्षित हो गई. अब वह मेरे लिए अपनी पत्नी तक को छोड़ने की बात कहता है. क्या मेरे लिए उस के साथ अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाना सही है?

जवाब
आप की जैसी उम्र हो और शादी न हुई हो तो विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण होना आम बात है. सचाई यह है कि जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, हमारी पसंदनापसंद भी बदलती रहती है. आज जो हमें अपने सपनों का राजकुमार लगता है वह बाद में हमें नापसंद होने लगता है. और यह भी जरूरी नहीं कि जो पुरुष आज आप के लिए अपनी पत्नी को छोड़ने को तैयार है, कल को किसी और के लिए आप को न छोड़ दे. इसलिए उस के प्रति अपनी बढ़ती भावनाओं पर कंट्रोल करें. आप उस में रुचि न दिखाएं, तो हो सकता है वह अपनी गृहस्थी के प्रति ही सीरियस रहे.

ये भी पढ़ें…क्या करें, जब आपकी बेटी को विवाहित से प्रेम हो जाए

युवाओं में प्रेम होना एक आम बात है. अब समाज धीरे-धीरे इसे स्वीकार भी कर रहा है. माता- पिता भी अब इतना होहल्ला नहीं मचाते, जब उनके बच्चे कहते हैं कि उन्हें अमुक लड़की/लड़के से ही शादी करनी है, लेकिन अगर कोई बेटी अपनी मां से आकर यह कहे कि वह जिस व्यक्ति को प्यार करती है, वह शादीशुदा है तो मां इसे स्वीकार नहीं कर पाती.

ऐसे में बेटी से बहस का जो सिलसिला चलता है, उसका कहीं अंत ही नहीं होता, लेकिन बेटी अपनी जिद पर अड़ी रहती है. मां समझ नहीं पाती कि वह ऐसा क्या करे, जिससे बेटी के दिमाग से इश्क का भूत उतर जाए. ऐसे संबंध प्राय: तबाही का कारण बनते हैं. इस से पहले कि बेटी का जीवन बरबाद हो, उसे उबारने का प्रयास करें.

कारण खोजें

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलिज में मनोचिकित्सा विभाग के निदेशक डॉक्टर आरसी जिलोहा का कहना है कि इस तरह के मामले में मां एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं. मां के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि बेटी का किसी अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षण का कारण घरेलू वातावरण तो नहीं है. कहीं यह तो नहीं कि जिस प्यार व अपनेपन की बेटी को जरूरत है, वह उसे घर में नहीं मिलता हो और ऐसे में वह बाहर प्यार ढूंढ़ती है और हालात उसे किसी विवाहित पुरुष से मिलवा देते हैं.

यह भी संभव है कि वह व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन से संतुष्ट न हो. चूंकि दोनों के हालात एक जैसे हैं, सो वे भावुक हो एकदूसरे के साथ न जुड़ गए हों. यह भी संभव है कि अपनी पत्नी की बुराइयां कर के और खुद को बेचारा बना कर लड़कियों की सहानुभूति हासिल करना उस व्यक्ति की सोचीसमझी साजिश का एक हिस्सा है.

सो, बेटी से एक दोस्त की तरह व्यवहार करें व बातोंबातों में कारण जानने का प्रयास करें, तभी आप अगला कदम उठा पाएंगी.

सही तरीका अपनाएं

डॉक्टर जिलोहा का कहना है कि बेटी ने किसी शादीशुदा से प्यार किया, तो अकसर माताएं उन को डांटती-फटकारती हैं और उसे उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए कहती हैं, पर ऐसा करने से बेटी मां को अपना दुश्मन मानने लगती है. बेहतर होगा कि प्यार से उसे इसके परिणाम बताएं. बेटी को बताएं कि ऐसे रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. व्यावहारिक तौर पर उसे समझाएं कि उसके संबंधों के कारण बहुत सी जिंदगियां तबाह हो सकती हैं. फिर जो व्यक्ति उस के लिए अपनी पत्नी व बच्चों को छोड़ सकता है, वह किसी और के लिए कभी उसे भी छोड़ सकता है, फिर वह क्या करेगी?

मदद लें

आप चाहें तो उस व्यक्ति की पत्नी से मिलकर समस्या का हल ढूंढ़ सकती हैं. अकसर पति के अफेयर की खबर सुनते ही कुछ पत्नियां भड़क जाती हैं और घर छोड़ कर मायके चली जाती हैं. उसे समझाएं कि वह ऐसा हरगिज न करे. बातोंबातों में उस से यह जानने का प्रयास करें कि कहीं उसके पति के आप की बेटी की ओर झुकाव का कारण वह स्वयं तो नहीं. ऐसा लगे तो एक दोस्त की तरह उसे समझाएं कि वह पति के प्रति अपने व्यवहार को बदल कर उसे वापस ला सकती है.

प्लान बनाएं

आप की सभी तरकीबें नाकामयाब हो जाएं तो उसकी पत्नी से मिल कर एक योजना तैयार करें, जिस के तहत पत्नी आप की बेटी को बिना अपनी पहचान बताए उसकी सहेली बन जाए. उसे जताएं कि वह अपने पति से बहुत प्यार करती है. उसके सामने पति की तारीफों के पुल बांधें. अगर वह व्यक्ति अपनी पत्नी की बुराई करता है तो एक दिन सच्चाई पता चलने पर आपकी बेटी जान जाएगी कि वह अब तक उसे धोखा देता रहा है. ऐसे में उसे उस व्यक्ति से घृणा हो जाएगी और वह उस का साथ छोड़ देगी.

यह भी हो सकता है कि उन का शादी का इरादा न हो और अपने संबंधों को यों ही बनाए रखना चाहते हों. ऐसे में बेटी को बारबार समझाने या टोकने से वह आप से और भी दूर हो जाएगी. उस को दोस्त बना कर उसे समझाएं और प्रैक्टिकली उसे कुछ उदाहरण दें तो शायद वह समझ जाए.

इशारों को समझो, क्या चाहती हैं स्त्रियां

कोई भी स्त्री तब और निखर उठती है, जब कोई उसकी खूबसूरती की तारीफ करने वाला हो. कोई उसकी छोटी-छोटी जरूरतों का खयाल रखने वाला हो. अगर वह अपने साथी के लिए कुछ करे तो वह उसे नोटिस करे. जब साथी इन बातों का खयाल रखता है तो दांपत्य जीवन खुशियों से महक उठता है. आज सुबह से ही मन कुछ उदास था, न जाने किस सोच में गुम थी. पिछले काफी समय से मैं सोच रही थी कि हमारी शादी में कुछ कमी सी है लेकिन तभी मोबाइल पर आए एक मेसेज ने जिंदगी में छाई सारी निराशाओं को पल भर में मानो दूर भगा दिया और मेरे मन में एकाएक नई उमंगें तैरने लगीं. इसमें लिखा था, ‘जानेमन कैसी हो? तुम्हारा दिन कैसा बीत रहा है?’ उदासी में डूबा दिन जरा से इक मेसेज से खुशनुमा हो उठा. मन में शाम की कई प्लैनिंग चलने लगीं. मैंने आईने में खुद को देखा. वाकई मैं खुश ही थी और इसकी चमक मेरे चेहरे पर दिख रही थी. मैंने पूरी गर्मजोशी से मेसेज का जवाब दिया.

क्या चाहती हैं स्त्रियां

अकसर पुरुष सोचते हैं कि स्त्रियों को खुश करना बडा मुश्किल है, लेकिन वे नहींजानते कि उनकी जीवनसंगिनी खुश होने के लिए बेशकीमती तोहफा नहीं चाहती, उसे तो प्यार से दी गई एक कैंडी भी खुश कर सकती है. लंबे से मेल के बजाय प्यार में डूबी छोटी सी पंक्ति भी जीवनसाथी को प्रसन्न कर सकती है. बस इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

समझो न मन की बात

हम जिस दौर में जी रहे हैं, वह स्त्री-पुरुष की बराबरी वाला दौर है. यहां स्त्रियां ऑफिस में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. पुरुष थोडा कंफ्यूज है. उसे समझ नहींआ रहा कि समानता की बात करने वाली, हर फील्ड में बराबर दखल रखने वाली स्त्री क्यों चाहती है कि पुरुष उनके लिए गाडी का दरवाजा खोले या फिर उनका भारी सामान उठाने में उनकी मदद करे. अगर स्त्रियां समानता की बात करती हैं तो उन्हें इस तरह की इच्छा करने का क्या हक है! कई बार स्त्रियों की छोटी-छोटी इच्छाओं को पुरुष समझ नहीं पाते और उनकी यही बात स्त्रियों को खलती है.

बस थोडी सी केयर

सच्चाई यह है कि करियर में कोई स्त्री कितनी भी कामयाब क्यों न हो जाए, उसे सबसे बडी खुशी तब मिलती है, जब उसका साथी उसकी छोटी-छोटी ख्वाहिशों को समझता हो, उनका खयाल रखता हो. दरअसल ऐसा करते हुए वह यह जता देता है कि वह उसके लिए कितनी खास है. स्त्रियां हमेशा चाहती हैं कि साथी उनकी तारीफ करे. जब साथी उसकी तारीफ करता है तो वह और निखर जाती है. वह चाहती है कि उसका साथी कार में पहले खुद बैठने की बजाय उनके लिए कार का दरवाजा खोले. ये चाहत इसलिए नहीं है कि वह यह काम खुद नहीं कर सकती या फिर शारीरिक रूप से कमजोर है, वह सिर्फ अपने पार्टनर से एक स्नेह भरे रिश्ते की अपेक्षा रखती है. प्रकृति ने पुरुष को फिजिकली मजबूत बनाया है. वह मेहनत करता है, परिवार चलाता है. स्त्री उसका खयाल रखती है. आदिकाल से ऐसा ही होता रहा है लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव भी आया है. अब स्त्रियां घर-ऑफिस साथ संभाल रही हैं. पुरुष उनकी मेहनत की कद्र करता है, लेकिन कहींन कहीं वह इसका इजहार करने से चूक जाता है. उसे यही समझना है कि अगर प्यार है तो इजहार भी जरूरी है.

स्वंयवर : मीता ने आखिर पति के रूप में किसे चुना?

टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

दीपिका के बारे में सुलभा की इस घोषणा ने अचानक ही मीता को अपनी बढ़ती उम्र के प्रति सचेत कर दिया. सब के साथ वह हंसीबोली तो जरूर परंतु वह स्वाभाविक हंसी और चहक अचानक ही गायब हो गई और उस के भीतर एक कशमकश सी जारी हो गई.

जब तक मीता इंस्टिट्यूट में पढ़ रही थी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिगरी ले रही थी, मातापिता उस की शादी को ले कर बहुत परेशान थे. लेकिन जब वह दिल्ली की इस फैशन डिजाइनिंग कंपनी में 4 हजार रुपए की नौकरी पा गई और अकेली मजे से यहां एक छोटा सा फ्लैट ले कर रहने लगी, तब से वे लोग भी कुछ निश्ंिचत से हो गए.

मीता जानती है, उस के मातापिता बहुत दकियानूसी नहीं हैं. अगर वह किसी उपयुक्त लड़के का स्वयं चुनाव कर लेगी तो वे उन के बीच बाधा बन कर नहीं खड़े होंगे. परंतु यही तो उस के सामने सब से बड़ा संकट था. नौकरी करते हुए उसे यह तीसरा साल था और उस के साथ की कितनी ही लड़कियां शादी कर चुकी थीं. वे अब अपने पतियों के साथ मजे कर रही थीं या शहर छोड़ कर उन के साथ चली गई थीं. एक मीता ही थी जो अब तक इस पसोपेश में थी कि क्या करे, किसे चुने, किसे न चुने.

ऐसा नहीं था कि कहीं गुड़ रखा हो और चींटों को उस की महक न लगे और वे उस की तरफ लपकें नहीं. अपने इस खयाल पर मीता बरबस ही मुसकरा भी दी, हालांकि आज उस का मुसकराने का कतई मन नहीं हो रहा था.

राखाल बाबू प्राय: रोज ही उसे कंपनी बस से रास्ते में लौटते हुए मिलते हैं. एकदम शालीन, सभ्य, शिष्ट, सतर्क, मीता की परवा करने वाले, उस की तकलीफों के प्रति एक प्रकार से जिम्मेदारी अनुभव करने वाले, बुद्धिजीवी किस्म के, कम बोलने वाले, ज्यादा सुननेगुनने वाले. समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर. आंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गंभीर सा चेहरा, ऊंचा ललाट, कुछ कम होते जा रहे बाल. सदैव सफेद कमीज और सफेद पैंट ही पहनने वाले. जेब में लगा कीमती कलम, हाथ में पोर्टफोलियो के साथ दबे कुछ अखबार, पत्रिकाएं, किताबें.

जब तक मीता आ कर उन की सीट के पास खड़ी न हो जाती, वे बेचैन से बाहर की ओर ताकते रहते हैं. जैसे ही वह आ खड़ी होती है, वे एक ओर को खिसक कर उस के बैठने लायक जगह हमेशा बना देते हैं. वह बैठती है और नरम सी मुसकराहट उस के अधरों पर उभर आती है.

ऐसा नहीं है कि वे हमेशा असामान्य सी बातें करते हैं, परंतु मीता ने पाया है, वे अकसर सामान्य लोगों की तरह लंपटतापूर्ण न व्यवहार करते हैं, न बातें. उन के हर व्यवहार में एक गरिमा रहती है. एक श्रेष्ठता और सलीका रहता है. एक प्रकार की बहुत बारीक सी नफासत.

‘‘कहो, आज का दिन कैसा बीता…?’’ वे बिना उस की ओर देखे पूछ लेते हैं और वह बिना उन की ओर देखे जवाब दे देती है, ‘‘रोज जैसा ही…कुछ खास नहीं.’’

‘‘मीता, कैसी अजीब होती है यह जिंदगी. इस में जब तक रोज कुछ नया न हो, जाने क्यों लगता ही नहीं कि आज हम जिए. क्यों?’’ वे उत्तर के लिए मीता के चेहरे की रगरग पर अपनी पैनी नजरों से टटोलने लगते हैं, ‘‘जानती हो, मैं ने अखबारों से जुड़ी जिंदगी क्यों चुनी…? महज इसी नएपन के लिए. हर जगह बासीपन है, सिवा अखबारों के. यहां रोज नई घटनाएं, नए हादसे, नई समस्याएं, नए लोग, नई बातें, नए विचार…हर वक्त एक हलचल, एक उठापटक, एक संशय, संदेह भरा वातावरण, हर वक्त षड्यंत्र, सत्ता का संघर्ष. अपनेआप को बनाए रखने और टिकाए रखने की जीतोड़ कोशिशें… मित्रों के घातप्रतिघात, आघात और आस्तीनों के सांपों का हर वक्त फुफकारना… तुम अंदाजा नहीं लगा सकतीं मीता, जिंदगी में यहां कितना रोमांच, कितनी नवीनता, कितनी अनिश्चितता होती है…’’

‘‘लेकिन आप के धीरगंभीर स्वभाव से आप का यह कैरियर कतई मेल नहीं खाता…कहां आप चीजों पर विभिन्न कोणों से गंभीरता से सोचने वाले और कहां अखबारों में सिर्फ घटनाएं और घटनाएं…इन के अलावा कुछ नहीं. आप को उन घटनाओं में एक प्रकार की विचारशून्यता महसूस नहीं होती…? आप को नहीं लगता कि जो कुछ तेजी से घट रहा है वह बिना किसी सोच के, बिना किसी प्रयोजन के, बेकार और बेमतलब घटता चला जा रहा है?’’

‘‘यहीं मैं तुम से भिन्न सोचता हूं, मीता…’’

‘‘आजकल की पत्रपत्रिकाओं में तुम क्या देख रही हो…? एक प्रकार की विचारशून्यता…मैं इन घटनाओं के पीछे व्याप्त कारणों को तलाशता हूं. इसीलिए मेरी मांग है और मैं अपनी जगह बनाने में सफल हुआ हूं. मेरे लिए कोई घटना महज घटना नहीं है, उस के पीछे कुछ उपयुक्त कारण हैं. उन कारणों की तलाश में ही मुझे बहुत देर तक सोचते रहना पड़ता है.

‘‘तुम आश्चर्य करोगी, कभीकभी चीजों के ऐसे अनछुए और नए पहलू उभर कर सामने आते हैं कि मैं भी और मेरे पाठक भी एवं मेरे संपादक भी, सब चकित रह जाते हैं. आखिर क्यों…? क्यों होता है ऐसा…?

‘‘इस का मतलब है, हम घटनाओं की भीड़ से इतने आतंकित रहते हैं, इतनी हड़बड़ी और जल्दबाजी में रहते हैं कि इन के पीछे के मूल कारणों को अनदेखा, अनसोचा कर जाते हैं जबकि जरूरत उन्हें भी देखने और उन पर भी सोचने की होती है…’

राखाल बाबू किसी भी घटना के पक्ष में सोच लेते हैं और विपक्ष में भी. वे आरक्षण के जितने पक्ष में विचार प्रस्तुत कर सकते थे, उस से ज्यादा उस के विपक्ष में भी सोच लेते थे. गजरौला के कानवैंट स्कूल की ननों के साथ घटी बलात्कार और लूट की घटना को उन्होंने महज घटना नहीं माना. उस के पीछे सभ्यता और संस्कृति से संपन्न वर्ग के खिलाफ, उजड्ड, वहशी और बर्बर लोगों का वह आदिम व्यवहार जिम्मेदार माना जो आज भी आदमी को जानवर बनाए हुए है.

मीता राखाल बाबू से नित्य मिलती और प्राय: नित्य ही उन के नए विचारों से प्रभावित होती. वह सोचती रह जाती, यह आदमी चलताफिरता विचारपुंज है. इस के साथ जिंदगी जीना कितना स्तरीय, कितना श्रेष्ठ और कितना अच्छा होगा. कितना अर्थपूर्ण जीवन होगा इस आदमी के साथ. वह महीनों से राखाल बाबू की कल्पनाओं में खोई हुई है. कितना अलग होगा उस का पति, सामान्य सहेलियों के साधारण पतियों की तुलना में. एक सोचनेसमझने वाला, चिंतक, श्रेष्ठ पुरुष, जिसे सिर्फ खानेपीने, मौज करने और बिस्तर पर औरत को पा लेने भर से ही मतलब नहीं होगा, जिस की जिंदगी का कुछ और भी अर्थ होगा.

लेकिन दूसरे क्षण ही मीता को अपनी कंपनी के निर्यात प्रबंधक विजय अच्छे लगने लगते. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, करीने से रखी गई दाढ़ी. चमकदार, तेज आंखें. हर वक्त आगे और आगे ही बढ़ते जाने का हौसला. व्यापार की प्रगति के लिए दिनरात चिंतित. कंपनी के मालिक के बेहद चहेते और विश्वासपात्र. खुला हुआ हाथ. खूब कमाना, खूब खर्चना. जेब में हर वक्त नोटों की गड्डियां और उन्हें हथियाने के लिए हर वक्त मंडराने वाली लड़कियां, जिन में एक वह खुद…

‘‘मीता, चलो आज 12 से 3 वाला शो देखते हैं.’’

‘‘क्यों साहब, फिल्म में कोई नई बात है?’’

मीता के चेहरे पर मुसकराहट उभरती है. जानती है, विजय जैसा व्यस्त व्यक्ति फिल्म देखने व्यर्थ नहीं जाएगा और लड़कियों के साथ वक्त काटना उस की आदत नहीं.

‘‘और क्या समझती हो, मैं बेकार में 3 घंटे खराब करूंगा…? उस में एक फ्रैंच लड़की है, क्या अनोखी पोशाक पहन रखी है, देखोगी तो उछल पड़ोगी. मैं चाहता हूं कि तुम उस में कुछ और नया प्रभाव पैदा कर उसे डिजाइन करो… देखना, यह एक बहुत बड़ी सफलता होगी.’’

कितना फर्क है राखाल बाबू में और विजय में. एक जिंदगी के हर पहलू पर सोचनेविचारने वाला बुद्धिजीवी और एक अलग किस्म का आदमी, जिस के साथ जीवन जीने का मतलब ही कुछ और होगा. नए से नए फैशन का दीवाना. नई से नई पोशाकों की कल्पना करने वाला, हर वक्त पैसे से खेलने वाला…एक बेहद आकर्षक और निरंतर आगे बढ़ते चले जाने वाला नौजवान, जिसे पीछे मुड़ कर देखना गवारा नहीं. जिसे एक पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं.

तीसरा राकेश है, राजनीति विज्ञान का विद्वान. पड़ोस की चंद्रा का भाई. अकसर जब यहां आता है तो होते हैं उस के साथ उस के ढेर सारे सपने, तमाम तमन्नाएं. अभी भी उस के चेहरे पर न राखाल बाबू वाली गंभीरता है, न विजय वाली व्यस्तता. बस आंखों में तैरते बादलों से सपने हैं. कल्पनाशील चेहरा एकदम मासूम सा.

‘‘अब क्या इरादा है, राकेश?’’ एक दिन उस ने यों ही हंसी में पूछ लिया था.

‘‘इजाजत दो तो कुछ प्रकट करूं…’’ वह सकुचाया.

‘‘इजाजत है,’’ वह कौफी बना लाई थी.

‘‘अपने इरादे हमेशा नेक और स्पष्ट रहे हैं, मीताजी,’’ राकेश ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘पहला इरादा तो आईएएस हो जाना है और वह हो कर रहूंगा, इस बार या अगली बार. दूसरा इरादा आप जैसी लड़की से शादी कर लेने का है…’’

राकेश एकदम ऐसे कह देगा इस की मीता को कतई उम्मीद नहीं थी. एक क्षण को वह अचकचा ही गई, पर दूसरे क्षण ही संभल गई, ‘‘पहले इरादे में तो पूरे उतर जाओगे राकेश, लेकिन दूसरे इरादे में तुम मुझे कच्चे लगते हो. जब आईएएस हो जाओगे और कोरा चैक लिए लड़की वाले जब तुम्हें तलाशते डोलेंगे तो देखने लगोगे कि किस चैक पर कितनी रकम भरी जा सकती है. तब यह 4 हजार रुपल्ली कमाने वाली मीता तुम्हें याद नहीं रहेगी.’’

‘‘आजमा लेना,’’ राकेश कह उठा, ‘‘पहले अपने प्रथम इरादे में पूरा हो लूं, तब बात करूंगा आप से. अभी से खयाली पुलाव पकाने से क्या फायदा?’’

एक दिन दिल्ली में आरक्षण विरोध को ले कर छात्रों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था और बसों का आनाजाना रुक गया था. बस स्टाप पर बेतहाशा भीड़ देख कर मीता सकुचाई, पर दूसरे ही क्षण उसे अपनी ओर आते हुए राखाल बाबू दिखाई दिए, ‘‘आ गईं आप…? चलिए, पैदल चलते हैं कुछ दूर…फिर कहीं बैठ कर कौफी पीएंगे तब चलेंगे…’’

एक अच्छे रेस्तरां में कोने की एक मेज पर जा बैठे थे दोनों.

‘‘जीवन में क्या महत्त्वपूर्ण है राखाल बाबू…?’’ उस ने अचानक कौफी का घूंट भर कर प्याले की तरफ देखते हुए उन पर सवाल दागा था, ‘‘एक खूब कमाने वाला आकर्षक पति या एक आला दर्जे का रुतबेदार अफसर अथवा जीवन पर विभिन्न कोणों से हर वक्त विचार करते रहने वाला एक चिंतक…एक औरत इन में से किस के साथ जीवन सुख से बिता सकती है, बताएंगे आप…?’’

एक बहुत ही अहम सवाल मीता ने

राखाल बाबू से पूछ लिया था जिस

सवाल का उत्तर वह स्वयं अपनेआप को कई दिनों से नहीं दे पा रही थी. वह पसोपेश में थी, क्या सही है, क्या गलत? किसे चुने? किसे न चुने?

राखाल बाबू को वह बहुत अच्छी तरह समझ गई थी. जानती थी, अगर वह उन की ओर बढ़ेगी तो वे इनकार नहीं करेंगे बल्कि खुश ही होेंगे. विजय ने तो उस दिन सिनेमा हौल में लगभग स्पष्ट ही कर दिया था कि मीता जैसी प्रतिभाशाली फैशन डिजाइनर उसे मिल जाए तो वह अपनी निजी फैक्टरी डाल सकता है और जो काम वह दूसरों के लिए करता है वह अपने लिए कर के लाखों कमा सकता है. और राकेश…? वह लिखित परीक्षा में आ गया है, साक्षात्कार में भी चुन लिया जाएगा, मीता जानती है. लेकिन इन तीनों को ले कर उस के भीतर एक सतत द्वंद्व जारी है. वह तय नहीं कर पा रही, किस के साथ वह सुखी रह सकती है, किस के साथ नहीं…?

बहुत देर तक चुपचाप सोचते रहे राखाल बाबू. अपनी आदत के अनुसार गरम कौफी से उठती भाप ताकते हुए अपने भीतर कहीं डूबे रहे देर तक. जैसे भीतर कहीं शब्द ढूंढ़ रहे हों…

‘‘मीता…महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि इन में से औरत किस के साथ सुखी रह सकती है…महत्त्वपूर्ण यह है कि इन में से कौन है जो औरत को सचमुच प्यार करता है और करता रहेगा. औरत सिर्फ एक उपभोग की वस्तु नहीं है मीता. वह कोई व्यापारिक उत्पादन नहीं है…न वह दफ्तर की महज एक फाइल है, जिसे सरसरी नजर से देख कर आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया जाए. जीवन में हर किसी को सबकुछ तो नहीं मिल सकता मीता…अभाव तो बने ही रहेंगे जीवन में…जरूरी नहीं है कि अभाव सिर्फ पैसे का ही हो. दूसरों की थाली में अपनी थाली से हमेशा ज्यादा घी किसी न किसी कोण से आदमी को लगता ही रहेगा…ऐसी मृगतृष्णा के पीछे भागना मेरी समझ से पागलपन है. सब को सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अगर मिल जाए तो हमें संतोष करना सीखना चाहिए.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आदमी के लिए सिर्फ बेतहाशा भागते जाना ही सब कुछ नहीं है…दिशाहीन दौड़ का कोई मतलब नहीं होता. अगर हमारी दौड़ की दिशा सही है तो हम देरसवेर मंजिल तक भी पहुंचेंगे और सहीसलामत व संतुष्ट होते हुए पहुंचेंगे. वरना एक अतृप्ति, एक प्यास, एक छटपटाहट, एक बेचैनी जीवन भर हमारे इर्दगिर्द मंडराती रहेगी और हम सतत तनाव में जीते हुए बेचैन मौत मर जाएंगे.

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम मेरी इन बातों से किस सीमा तक सहमत होगी, पर मैं जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही सोचता हूं…’’

और मीता को लगा कि वह जीवन के सब से आसन्न संकट से उबर गई है. उसे वह महत्त्वपूर्ण निर्णय मिल गया है जिस की उसे तलाश थी. एक सतत द्वंद्व के बाद उस का मन एक निश्छल झील की तरह शांत हो गया और जब वह रेस्तरां से बाहर निकली तो अनायास ही उस ने अपना हाथ राखाल बाबू के हाथ में पाया. उस ने देखा, वे उसे एक स्कूटर की तरफ खींच रहे हैं, ‘‘चलो, बस तो मिलेगी नहीं, तुम्हें घर छोड़ दूं.’’

Sushant Singh Rajput केस में रिया चक्रवर्ती को मिली बड़ी राहत

Sushant Singh Rajput Drug Case : 14 जून 2020, ये वो तारीख है जिस दिन बॉलीवुड ने एक उभरते सितारे को खो दिया था. इसी दिन एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत हुई थी. हालांकि अब तक उनकी मौत के पीछे की वजह सामने नहीं आई है, लेकिन पुलिस से लेकर एनसीबी इस मामले में छानबीन कर रही है.

इसी बीच अब इस केस में सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput Drug Case) की गर्लफ्रेंड रहीं एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती (rhea chakraborty) को बड़ी राहत मिली है. दरअसल, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एनसीबी ने कहा कि, ‘वह सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े मादक पदार्थ मामले की जांच के सिलसिले में रिया चक्रवर्ती को दी गयी जमानत को चुनौती नहीं दे रहे हैं’

एनसीबी ने जमानत को चुनौती देने से किया इंकार

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एस वी राजू ने न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ से कहा कि, ‘‘एनसीबी रिया (Sushant Singh Rajput Drug Case) की जमानत को चुनौती नहीं दे रही है, लेकिन एनडीपीएस कानून की धारा 27-ए के तहत कानून के प्रश्न को खुला रखा जाए.’’

जो अवैध मादक पदार्थों की तस्करी को वित्तपोषित करने और प्रश्रय देने से संबंधित है. हालांकि अगर इस धारा के तहत आरोप तय होता है तो आरोपी को 10 साल तक की जेल और जमानत दिये जाने पर रोक लगाने का प्रावधान है.

शीर्ष अदालत- इस फैसले को मिसाल के रूप में न लिया जाए

इसके अलावा रिया (Sushant Singh Rajput Drug Case) को जमानत देने की मुंबई हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ एनसीबी की याचिका पर सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत ने एनसीबी के रुख में बदलाव पर एएसजी की दलील पर संज्ञान भी लिया. साथ ही ये भी स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के इस फैसले को किसी भी अन्य केस में मिसाल के रूप में न लिया जाए. पीठ ने अपने बयान में कहा, ‘‘एएसजी की दलील सुनने के बाद लगता है कि अभी रिया (rhea chakraborty) को जमानत देने के संबंध में लागू आदेश को चुनौती देने की जरूरत नहीं है.’’

वहीं उच्च न्यायालय ने कहा कि, ”किसी ड्रग संबंधी लेनदेन के लिए भुगतान करने का अर्थ ये नहीं है कि मादक पदार्थ की तस्करी को वित्तपोषित (financed) किया जा रहा है. इसलिए आवेदक के खिलाफ सुशांत के लिए मादक पदार्थ खरीदने में पैसे खर्च करने के आरोप का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने अवैध तस्करी के लिए धन दिया था.”

Suniel Shetty ने टमाटर वाले बयान पर किसानों से मांगी माफी, जानें क्या कहा

Suniel Shetty On Tomato Statement : बॉलीवुड अभिनेता सुनीला शेट्टी (Suniel Shetty) फिल्मों में जितने अपने किरदार के लिए सुर्खियों में रहते हैं. उतने ही वह अपने बेबाक बयानों के लिए भी चर्चा में रहते हैं. एक्टर हर एक मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी से रखते हैं. हाहली ही में उन्होंने टमाटर के बढ़ रहे दामों पर भी अपनी बात रखी थी. हालांकि इस बार वह टमाटार के दाम पर दिए अपने बयान के चलते ट्रोल्स के निशाने पर आ गए और उन्हें खूब निंदा का सामना करना पड़ा. पर अब उन्होंने अपने दिए बयान पर माफी मांग ली है.

जानें क्या कहा था एक्टर ने?

बता दें कि, एक इंटरव्यू में सुनील शेट्टी ने कहा था कि, ‘इन दिनों टमाटर का दाम बढ़ रहा है, जिसका असर हम जैसे लोगों की किचन पर भी पड़ता है. इसलिए उन्होंने टमाटर खाने कम कर दिए हैं.’ हालांकि उन्हें अपने इस बयान के चलते ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा हैं. लोगों के अलावा किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी सोशल मीडिया पर उनके बयान की निंदा की है. वहीं अब ट्रोलिंग से परेशान होकर सुनील (Suniel Shetty) ने सफाई दी है.

सुनील शेट्टी- किसान मेरी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक्टर (Suniel Shetty) ने किसानों से माफी मांगी है. साथ ही ये भी कहा कि कुछ लोगों ने उनके बयान को गलत तरीके से दर्शाया है. उन्होंने कहा, ‘मैं तो दिल से देसी आदमी हूं और हमेशा ही मैंने किसानों का सपोर्ट किया है. उनके लिए गलत सोचना तो दूर की बात है.’ इसके आगे उन्होंने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि हम अपनी देसी चीजों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें और मैं तो चाहता हूं कि हमारे देश के किसानों को हमेशा ही इसका फायदा मिले. किसान मेरे जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि मैं खुद एक होटल बिजेनस चलाता हूं तो हमेशा मेरे ताल्लुक उनसे सीधे तौर पर रहे हैं.’

जानें सुनील ने मांगी मांगते हुए क्या कहा?

इसके अलावा एक्टर (Suniel Shetty On Tomato Statement) ने कहा, ‘मैं तो कभी अपने सपने में भी किसानों के खिलाफ बात करने की बात सोच नहीं सकता. अगर मेरे किसी भी बयान से, जिसे मैंने कहा भी नहीं. उससे अगर आपको बुरा लगा है तो मैं इसके लिए दिल से माफी मांगता हूं.’ इसके आगे सुनील ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि, ‘कृप्या उनके बयान को तरीके से पेश किया जाए और मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता.’

दौलत से जीता दिल

जगतार सिंह में भले ही लाख बुराईयां रही हों, लेकिन उस में एक सब से बड़ी अच्छाई यह थी कि उसे कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे तक घर जरूर लौट आता था. जिस किसी को उस से मिलना होता या कोई काम करवाना होता, वह शाम 7 बजे के बाद उस का इंतजार उस के घर पर करता था. 

जगतार सिंह पंजाब बिजली बोर्ड में नौकरी करता था. लेकिन न जाने क्यों आज से 5-6 साल पहले उस ने अपनी यह नौकरी छोड़ दी और घर पर रह कर स्वतंत्र रूप से बिजली मरम्मत का काम करने लगा था. उस के इलाके के ज्यादातर किसान बिजली बोर्ड के बजाय उस पर ज्यादा भरोसा करते थे. 

इसीलिए दूरदूर तक के गांवों में जब किसी की घर की बिजली या ट्यूबवेल की मोटर खराब होती, लोग बिजली बोर्ड में शिकायत करने के बजाय जगतार को ले जा कर अपना काम करवाना ज्याद बेहतर समझते थे. एक तो इस से उन का समय बच जाता था, दूसरे जगतार की भी रोजीरोटी अच्छी तरह से चल रही थी. 

एक शाम जब जगतार अपने निश्चित समय पर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को ङ्क्षचता हुई. इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. क्योंकि उस का फोन बंद बता रहा था. जब रात 10 बजे तक भी वह घर नहीं लौटा तो उस के घर वाले परेशान हो उठे. 

जगतार सिंह का मोबाइल बंद था, इसलिए बात नहीं हो पा रही थी. उस की पत्नी परमजीत  कौर, बड़ा भाई गुरबख्श सिंह तथा गांव के कुछ अन्य लोग उस की तलाश में निकल पड़े थे. रात करीब 11 बजे अचानक उस का फोन मिल गया. उस की पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी से उस की बात हो गई. 

इस के बाद उस ने सभी को बताया कि जगतार अपने दोस्तों के साथ कहीं बैठा खापी रहा है. ङ्क्षचता की कोई बात नहीं है, थोड़ी देर में वह घर आ जाएगा. जगतार अपने किन दोस्तों के साथ बैठा खापी रहा है, यह उस ने नहीं बताया था. 

बहरहाल, जगतार से बात हो जाने के बाद घर वालों की ङ्क्षचता कुछ कम हो गई. लेकिन फोन पर कहने के बावजूद जगतार रात को घर नहीं आया. उस के बाद से उस का फोन बंद हो गया तो सुबह तक बंद ही रहा.

अगले दिन किसी ने बताया कि गांव नरीकोकलां स्थित पंचायती अनाज मंडी स्टोर की ट्यूबवेल की हौदी में जगतार सिंह की लाश पड़ी है. 

पंचायती अनाज मंडी जगतार के गांव सहिके से करीब 4-5 किलोमीटर दूर थी. लाश पड़ी होने की सूचना मिलने पर गांव के सरपंच, उस की पत्नी, भाई और गांव के कुछ लोग नरीकोकलां जा पहुंचे. वहां एक ट्यूबवेल की पानी की हौदी में जगतार की लाश पड़ी थी. 

उस के सिर और पैर पर मामूली चोटों के निशान थे. लाश को ट्रैक्टर की ट्रौली पर लाद कर उस के गांव सहिके लाया गया. जगतार के पास अपना स्कूटर था, जिस से वह गांवगांव जा कर लोगों का बिजली का काम करता था. काफी तलाशने पर भी उस का स्कूटर वहां नहीं मिला. यही नहीं, उस के औजार और मोबाइल फोन भी नहीं मिला.

बहरहाल, गांव आ कर जब घर और गांव वालों ने कहा कि यह साफसाफ हत्या का मामला और इस की सूचना पुलिस को देनी चाहिए तो उस की पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी ने रोते हुए स्पष्ट कहा कि वह इस बात की सूचना पुलिस को कतई नहीं देना चाहती. 

क्योंकि पुलिस को सूचना दी गई तो वह लाश को कब्जे में ले कर उस का पोस्टमार्टम कराएगी. वह नहीं चाहती कि मरने के बाद उस के पति की लाश को काटपीट कर दुर्दशा की जाए. 

जगतार के बड़े भाई गुरबख्श सिंह और सरपंच ने परतजीत को काफी समझाया कि पोस्टमार्टम होने से पता चल जाएगा कि जगतार की मौत क्यों और कैसे हुई है? लेकिन परमजीत अपनी बात पर अड़ी रही. उस का कहना था कि जगतार की मौत बिजली का करंट लगने से हुई होगी, इसलिए पोस्टमार्टम की कोई जरूरत नहीं है. 

सरपंच ही नहीं, घर तथा गांव वाले कहते रह गए, लेकिन परमजीत ने किसी की नहीं सुनी. मजबूर हो कर गांव वालों ने पुलिस को सूचित किए बगैर ही जगतार सिंह का अंतिम संस्कार करा दिया.

पंजाब के जिला संगरूर का एक कस्बा है अमरगढ़. इसी कस्बे से लगभग 8 किलोमीटर दूर गांव है सहिके. गुरनाम सिंह इसी गांव के रहने वाले थे. उन की 7 संताने थीं, जिन में 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. बड़ा बेटा गुरबख्श सिंह सेना से रिटायर्ड हो कर गांव में ही रहता था. उस से छोटा था जगतार, जो बिजली मरम्मत का काम करता था और गांव में ही रहता था. उस से छोटा था अवतार सिंह, जिस की 20 साल पहले मौत हो गई थी. 

उस की मौत कैसे हुई, इस बात का पता आज तक नहीं चला. गुरनाम सिंह की भी मौत हो चुकी है. गांव में अब सिर्फ 2 भाई, फौजी गुरबख्श सिंह और जगतार सिंह ही रहते थे. दोनों के मकान भले ही अलगअलग थे, लेकिन आमनेसामने थे. 

जगतार का विवाह परमजीत कौर से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे, 19 साल की बेटी हरप्रीत कौर और 14 साल का बेटा.

परमजीत कौर ने जिद कर के पति का अंतिम संस्कार भले ही करा दिया था, लेकिन फौजी गुरबख्श सिंह के मन में हर समय यही बात घूमा करती थी कि आखिर परमजीत ने जगतार की लाश का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराने दिया. यह एक ऐसा संदेह था, जो उसे किसी भी तरह से चैन नहीं लेने दे रहा था. 

जगतार के अंतिम संस्कार की सारी रस्में पूरी हो गईं तो परमजीत अपने मायके मलेरकोटला चली गई. इस के बाद तो वह पूरी तरह से आजाद हो गई. कभी वह संगरूर चली जाती तो कभी अमरकोट. उसे न पति की मौत का दुख था और न अब बच्चों की कोई परवाह रह गई थी. यह सब देख कर फौजी गुरबख्श सिंह को और ज्यादा दुख होता.

जब नहीं रहा गया तो उन्होंने सरपंच के साथ मिल कर निजी तौर पर परमजीत कौर के बारे में छानबीन की तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. परमजीत की हरकतों से मन का संदेह बढ़ता गय, फिर वह सरपंच को साथ ले कर थाना अमरगढ़ जा पहुंचे. 

सारी बात उन्होंने थानाप्रभारी इंसपेक्टर संजीव गोयल को बताई तो उन्होंने भी संदेह व्यक्त किया कि उन के भाई की मौत बिजली का करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

संजीव गोयल ने गुरबख्श सिंह की पूरी बात सुन कर उन की शिकायत दर्ज करा कर उन्हें पूरा विश्वास दिलाया कि वह जल्दी ही जगतार की मौत के रहस्य से परदा उठा देंगें.

इस मामले में संजीव गोयल के सामने समस्या यह थी कि मर चुके जगतार सिंह का अंतिम संस्कार हो चुका था. कोई इस तरह का सबूत भी नहीं था कि उसी के आधार पर वह इस मामले की जांच करते. 

अब जो भी सबूत जुटाए जा सकते थे, वे सिर्फ पूछताछ कर के ही जुटाए जा सकते थे. इसलिए उन्हें लगा कि सब से पहले मृतक जगतार की पत्नी परमजीत कौर से ही पूछताछ करनी चाहिए.

उन्होंने सहिके जा कर परमजीत कौर से जगतार सिंह की मौत के बारे में पूछा तो उस ने उन से भी कहा कि उन की मौत बिजली का करंट लगने से हुई थी. उस दिन वह पंचायती मंडी के उस ट्यूबवेल की मोटर ठीक करने गए थे. मोटर ठीक करते हुए उन्हें करंट लगा और वह हौदी में गिर गए, जिस से उन की मौत हो गई. 

“वह सब तो ठीक है, लेकिन तुम ने इस बात की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी? तुम्हें ऐसी क्या जल्दी थी कि बिना पोस्टमार्टम कराए ही तुम ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया?” संजीव गोयल ने पूछा.  

“सर, मैं ने सोचा कि आज नहीं तो कल उन का अंतिम संस्कार कराना ही है, इसलिए मैं ने देर करना उचित नहीं समझा और उन का अंतिम संस्कार करा दिया.”

“अच्छा जगतार की अस्थियां कहां हैं?” संजीव गोयल ने पूछा.

“उन्हें तो मैं ने श्रीकीरतपुर साहिब में प्रवाह दी हैं.”

“मतलब, तुम ने सारे सबूत मिटा दिए, कुछ भी नहीं छोड़ा. खैर, फिर भी मैं सच्चाई का पता लगा ही लूंगा.” संजीव गोयल ने कहा.

इस के बाद उन्होंने अन्य लोगों से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें पता चला कि जगतार के मरने के बाद से परमजीत कौर को न बच्चों की कोई ङ्क्षचता है और न उस की मौत का जरा भी दुख है. उसे देख कर कहीं से भी नहीं लगता कि 10-15 दिन पहले ही उस के पति की मौत हुई है.

बहरहाल, उस दिन की पूछताछ में सरपंच ने ही नहीं, गांव के जिस किसी से उन्होंने पूछा, सभी ने यही आशंका व्यक्त की कि जगतार की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है और उस की हत्या में कहीं न कहीं से परमजीत का हाथ जरूर है. 

इसी पूछताछ में संजीव गोयल को गांव वालों से पता चला कि परमजीत कौर के घर रविंद्र उर्फ रवि तथा जुगराज का काफी आनाजाना था. हत्या वाले शाम जगतार को उन्हीं दोनों के साथ टोरिया गांव की ओर जाते देखा गया था. 

संजीव गोयल थोड़ा और गहराई में गए तो पता चला कि परमजीत कौर और रविंद्र के बीच जरूर कुछ चल रहा है. इस के तुरंत बाद उन के एक मुखबिर ने उन्हें बताया कि परमजीत कौर को उस ने रविंद्र के साथ मलेरकोटला की ओर जाते देखा था. उन के हाथ में बैग थे, जिस से यही लगता है कि वे गांव छोड़ कर कहीं जा रहे हैं.

यह सूचना मिलते ही संजीव गोयल ने समय गंवाना उचित नहीं समझा और तुरंत जीप से पीछा कर के रास्ते में ही रविंद्र और परमजीत कौर को गिरफ्तार कर के थाने ले आए.

फौजी गुरबख्श सिंह के बयान के आधार पर रविंद्र, जुगराज और परमजीत कौर को नामजद कर के जगतार की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर पूछताछ शुरु की गई. 

अगले महीने संजीव गोयल ने रविंद्र और परमजीत को सक्षम अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ के लिए 2 दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान रविंद्र की निशानदेही पर मृतक जगतार का स्कूटर और मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया. 

रिमांड खत्म होने पर दोनों को एक बार फिर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें संगरूर की जिला जेल भेज दिया गया.

मृतक जगतार के भाई फौजी गुरबख्श सिंह, सरपंच एवं गांव वालों तथा अभियुक्तों से की गई पूछताछ में जगतार की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह परमजीत कौर के पतन की कहानी थी.

जगतार सिंह और रविंद्र बचपन के दोस्त थे. उन का खेलनाकूदना, खानापीना बचपन से अब तक साथ रहा. जवान होने पर भी दोनों ज्यादातर साथ ही रहते थे. रविंद्र सिंह उर्फ रवि पड़ोसी गांव मुंडिया के रहने वाले काका सिंह का बेटा था. 

सवेरा होते ही रविंद्र जगतार के गांव सहिके आ जाता या फिर जगतार उस के गांव मुंडिया पहुंच जाता. जवान होने पर दोनों की शादियां ही नहीं हो गईं, बल्कि वे एकएक बेटी के बाप भी बन गए. 

जगतार बिजली मरम्मत का काम करता था, जबकि रविंद्र निठल्ला घूमते हुए आवारागर्दी किया करता था. बचपन से ही उस की काम करने की आदत नहीं थी. लगभग 8 साल पहले वह अपने एक रिश्तेदार के पास विदेश चला गया, जहां 3 साल रहा. वहां से लौटा तो उस के पास ढेर सारे रुपए थे. 

वह कार से जगतार से मिलने उस के घर गया तो उस के लिए भी ढेर सारे महंगे उपहार ले गया था. रविंद्र के ठाठबाट देख कर जगतार की पत्नी परमजीत खूब प्रभावित हुई. 

उस दिन के बाद जगतार का घर शराब का अड्डा बन गया. रोज महफिलें सजने लगीं. रविंद्र के साथ उस का दोस्त जुगराज भी आता था. वह गांव शेरखां वाला के रहने वाले राम सिंह का बेटा था. 

2 बच्चों की मां होने के बावजूद परमजीत अभी जवान और खूबसूरत लगती थी. उस की मांसल देह किसी को भी दीवाना बना सकती थी. रविंद्र पहले से ही उस का दीवाना था. इसीलिए विदेश से लौटने पर परमजीत को खुश करने के लिए वह उस के लिए भी तरहतरह के महंगे उपहार खरीद कर लाने लगा. 

एक दिन जब जगतार की गैरमौजूदगी में उस ने परमजीत कौर का हाथ पकड़ कर कहा कि वह उस से प्यार करने लगा है और उस के लिए पागल हो गया है तो परमजीत खुशीखुशी उस के आगोश में समा गई. इस की वजह यह थी कि वह भी तो रविंद्र और उस की कमाई की दीवानी थी. 

रविंद्र और परमजीत के बीच अवैधसंबंध तो बन गए, लेकिन जगतार के घर पर रहने की वजह से उन्हें मिलने का अवसर कम ही मिल पाता था. इस का उपाय रविंद्र ने यह निकाला कि जगतार की उस ने मलेरकोटला में बिजली बोर्ड में नौकरी लगवा दी. 

वह सुबह नौकरी पर जाता तो रात में ही लौटता. उस के नौकरी पर जाते ही रविंद्र उस के घर पहुंच जाता. यह लगभग रोज का नियम बन गया. रविंद्र परमजीत कौर पर दोनों हाथों से रुपए लुटा रहा था. वह उस के इस तरह खर्च करने से बहुत खुश थी. 

शायद इसी वजह से उस ने रविंद्र के कहने पर उस के दोस्त जुगराज से भी संबंध बना लिए थे. अब परमजीत एक ही समय में अपने 2 प्रेमियों, रविंद्र और जुगराज को खुश करने लगी थी.

सब कुछ बढिय़ा चल रहा था कि मोहल्ले में उड़तेउड़ते यह खबर किसी दिन जगतार के कानों तक पहुंच गई. इस के बाद उस ने मलेरकोटला छोड़ दिया और घर पर ही रहने लगा. उसी बीच किसी दिन उस ने परमजीत कौर, रविंद्र और जुगराज को रंगेहाथों पकड़ लिया.

उस समय परमजीत कौर और रविंद्र ने माफी मांग कर बात संभाल ली. जगतार ने भी उन्हें माफ कर दिया. लेकिन वे चोरीछिपे मिलते रहे. 

परमजीत कौर को इस तरह चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उस ने रुआंसी हो कर कहा, “देखो रविंद्र, इस तरह चोरीछिपे मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. अगर इस बार हम पकड़े गए तो जगतार माफ नहीं करेगा. तुम मुझ से संबंध बनाए रखना चाहते हो तो तो मुझे भगा ले चलो या फिर जगतार का कोई इंतजाम कर दो.”

रविंद्र परमजीत की देह का इतना दीवाना था कि उस से बिछुडऩे की कल्पना से ही डरता था. इसलिए उस ने परमजीत कौर के साथ मिल कर जगतार को ही रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. इस योजना में उस ने जुगराज को भी शामिल कर लिया. 

शाम को रविंद्र ने जगतार के साथ खानेपीने का कार्यक्रम बनाया. यह महफिल उन्होंने सहिके गांव से 4 किलोमीटर दूर खेतों में जमाई. शराब पीने के दौरान रविंद्र और जुगराज ने बातोंबातों में जगतार को कुछ ज्यादा ही शराब पिला दी. 

जब जगतार संतुलन खोने लगा तो दोनों उसे ले कर पंचायती मंडी के पास आ गए और वहां उस की जम कर पिटाई की. उस के बाद गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और लाश ट्यूबवेल की हौदी में फेंक कर परमजीत को फोन कर दिया कि उन्होंने जगतार की हत्या कर दी है.

इस के बाद परमजीत कौर ने घटनास्थल पर जा कर खुद देखा कि जगतार सचमुच मर चुका है या वे झूठ बोल रहे हैं. जगतार की लाश देख कर उसे विश्वास हो गया तो वह गांव लौट आई. जगतार की हत्या के समय वह इतना बेचैन थी कि मात्र एक घंटे में उस ने कई बार रविंद्र को फोन कर के पूछा था कि काम हो गया या नहीं

यह बात संजीव गोयल को तब पता चली, जब उन्होंने परमजीत कौर और रविंद्र के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

रविंद्र और परमजीत को जेल भेज कर संजीव गोयल ने इस हत्याकांड के तीसरे अभियुक्त जुगराज की तलाश शुरू की तो उन्होंने उसे भी संगरूर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी स्वीकार कर लिया कि जगतार की हत्या में रविंद्र के साथ वह भी शामिल था.

पूछताछ के बाद संजीव गोयल ने जुगराज को भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया. जगतार की मौत के बाद उस के बच्चे अकेले रह गए थे. अब वे अपने फौजी ताऊ गुरबख्श सिंह के साथ रह रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुछ दिनों से मेरी सैक्स में दिलचस्पी बिलकुल खत्म हो गई है, मेरी पत्नी को इस से काफी बुरा लगता है, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी शादी को 6 साल हो गए हैं. मेरी पत्नी नौकरी करती है और हर मामले में मेरा सहयोग भी करती है. लेकिन कुछ दिनों से मेरी सैक्स में दिलचस्पी बिलकुल कम हो गई है. जब भी वह मेरे पास आती है तो मैं उसे दूर भगा देता हूं जिस से उसे काफी बुरा लगता है. मैं उसे अपनी समस्या भी नहीं बता पा रहा हूं. मुझे डर है कि कही इस का असर हमारे रिश्ते पर न पड़े.

जवाब
पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है और उस में कुछ छिपाने के बारे में तो सोचना ही नहीं चाहिए. जब आप खुद मानते हैं कि आप की पत्नी काफी सहयोग करती है तो फिर मन में कैसा डर.

आप उसे एकांत में बताएं कि आजकल आप का सैक्स करने का बिलकुल मन नहीं करता है और जब वह आप के पास आती है तो आप चाह कर भी सैक्स की इच्छा नहीं जता पाते, मजबूरी में आप को खुद से दूर करना पड़ता है.

आप उस से ऐसा कहेंगे तो यकीन मानिए कि वह आप को गले लगा लेगी और आप को सैक्स विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह देगी ताकि आप का वैवाहिक जीवन सुखदपूर्ण बन सके. सो, आप को बोल्ड बन कर अपना पक्ष रखना पड़ेगा वरना रिश्ते में दूरियां बढ़ जाएंगी.

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सेक्स में आनंद और यौन तृप्ति का मतलब भी जानें

विभा ने 25-26 वर्ष की उम्र में जिस से विवाह करने का निर्णय लिया वह वाकई दूरदर्शी और समझदार निकला. विभा ने खूब सोचसमझ कर, देखपरख कर यानी भरपूर मुलाकातों के बाद निर्णय लिया कि इस गंभीर विचार वाले व्यक्ति से विवाह कर वह सुखी रहेगी.

विवाह होने में कुछ ही दिन बचे थे कि इसी बीच भावी पति ने एसएमएस भेजा जिसे पढ़ विभा सकुचा गई. लिखा था, ‘‘तुम अभी से गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन शुरू कर दो वरना बाद में कहोगी कि खानेखेलने भी नहीं दिया बच्चे की परवरिश में फंसा दिया. सैक्स पर कुछ पढ़ लो. कहोगी तो लिंक भेज दूंगा. नैट पर देख लेना.’’ यह पढ़ विभा अचरज में पड़ गई.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने होने वाले पति की, अटपटी सलाह पर कैसे अमल करे? कैसे व किस से गोलियां मंगवाए व खाए? साथ ही इस तरह की बातें नैट पर पढ़ना तो सब से कठिन काम है, क्योंकि वहां तो पोर्न ही पोर्न भरा है, जो जानकारी देने की जगह उत्तेजित कर देता है.

मगर विभा की यह दिक्कत शाम होतेहोते हल हो गई. दोपहर की कुरियर से अपने नाम का पैकेट व कुछ किताबें पाईं. गोली प्रयोग की विधि भी साथ में भेजे पत्र में थी और साथ एक निर्देश भी था कि किताबें यदि मौका न मिले तो गुसलखाने में ले जा कर पढ़ना, संकोच मत करना. विवाह वाले दिन दूल्हा बने अपने प्यार की आंखों की शरारती भाषा पढ़ विभा जैसे जमीन में गढ़ गई. सुहागरात को पति ने प्यार से समझाया कि सकुचाने की जरूरत नहीं है. इस आनंद को तनमन से भोग कर ही जीवन की पूर्णता हासिल होती है.

आधी अधूरी जानकारी

ज्यादातर युवतियों को तो कुछ पता ही नहीं होता. न उन्हें कोई बताता है और न ही वे सकुचाहट व शर्म के कारण खुद ही कुछ जानना चाहती हैं. पासपड़ोस, सखीसहेलियों से जो आधीअधूरी जानकारी मिलती है वह इतनी गलतफहमी भरी होती है कि यौन सुख का अर्थ भय में बदल उन्मुक्त आनंद व तृप्ति नहीं लेने देता. नैट पर केवल प्रोफैशनल दिखते हैं, आम लोग नहीं जो पोर्न बेचने के नाम पर उकसाते भर हैं. वास्तव में पिया के घर जाने की जितनी चाहत, ललक हर लड़की में होती है, उसी प्रियतम से मिलन किस तरह सुख भरा, संतोषप्रद व यादगार हो, यह ज्यादातर नहीं जानतीं.

कभीकभार सहेलियों की शादी के अनुभव सुन वे समझती हैं कि शादी के बाद पति का संग तो दुखदायी व तंग करने वाला होता है. जैसे कोई हमउम्र सहेली कहे कि बड़े तंग करते हैं तेरे बहनोई पूरीपूरी रात सोने नहीं देते. सारे बदन का कचूमर बना देते हैं. बिन ब्याही युवतियों के मन में यह सब सुन कर दहशत जगना स्वाभाविक है. ये बातें सुनते समय कहने वाली की मुखमुद्रा, उस के नेत्रों की चंचलता, गोपनीय हंसी, इतराहट तो वे पकड़ ही नहीं पातीं.

बस, शब्दों के जाल में उलझ पति का साथ परेशानी देगा सोच घबरा जाती हैं. ब्याह के संदर्भ में कपड़े, जेवर, घूमनाफिरना आदि तो उन्हें लुभाता है, पर पति से एकांत में पड़ने वाला वास्ता आशंकित करता रहता है. परिणामस्वरूप सैक्स की आधीअधूरी जानकारी भय के कारण उन्हें या तो इस खेल का भरपूर सुख नहीं लेने देती या फिर ब्याह के बाद तुरंत गर्भधारण कर लेने से तबीयत में गिरावट के कारण सैक्स को हौआ मानने लगती हैं.

सैक्स दांपत्य का आधार

सैक्स दांपत्य का आधार है. पर यह यदि मजबूरीवश निभाया जा रहा हो तो सिवा बलात्कार के और कुछ नहीं है और जबरन की यह क्रिया न तो पति को तृप्त कर पाती है और न ही पत्नी को. पत्नी पति को किसी हिंसक पशु सा मान निरीह बनी मन ही मन छटपटाती है. उधर पति भी पत्नी का मात्र तन भोग पाता है. मन नहीं जीत पाता. वास्तव में यह सुख तन के माध्यम से मन की तृप्ति का है. यदि तन की भूख के साथ मन की प्यासी चाहत का गठबंधन न हो तब सिर्फ शरीर भोगा जाता है जो मन पर तनाव, खीज और अपराधभाव लाद दांपत्य में असंतोष के बीज बोता है.

सिर्फ काम नहीं, बल्कि कामतृप्ति ही सुखी, सुदीर्घ दांपत्य का सेतु है. यह समझना बेहद जरूरी है कि पति के संग शारीरिक मिलन न तो शर्मनाक है न ही कोई गंदा काम. विवाह का अर्थ ही वह सामाजिक स्वीकृति है जिस में स्त्रीपुरुष एकसूत्र में बंध यह वादा करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन अपने तनमन को संतुष्ट रख कर वंशवृद्धि भी करेंगे व सफल दांपत्य भी निबाहेंगे. यह बात विशेषतौर पर जान लेने की है कि कामतृप्ति तभी मिलती है जब पतिपत्नी प्रेम की ऊर्जा से भरे हों.

यह वह अनुकूल स्थिति है जब मन पर कोई मजबूरी लदी नहीं होती और तन उन्मुक्त होता है. विवाह का मर्म है अपने साथी के प्रति लगाव, चाहत और विश्वास का प्रदर्शन करना. सैक्स यदि मन से स्वीकारा जाए, बोझ समझ निर्वाह न किया जाए तभी आनंद देता है. सैक्स पुरुष के लिए विशेष महत्त्व रखता है.

पौरुष का अपमान

पत्नियों को इस बात को गंभीरता से समझ लेना चाहिए कि पति यौन तिरस्कार नहीं सह पाते हैं, क्योंकि पत्नी का ऐसा व्यवहार उन्हें अपने पौरुष का अपमान प्रतीत होता है. पति खुद को शारीरिक व भावनात्मक माध्यम के रूप में प्रस्तुत करे तो वह स्पष्ट प्यार से एक ही बात कहना चाहता है कि उसे स्वीकार लो. यह पति की संवेदनशीलता है जिसे पहचान पाने वाली पत्नियां ही पतिप्रिया बन सुख व आनंद के सागर में गोते लगा तमाम भौतिक सुखसाधन तो भोगती ही हैं, पति के दिल पर भी राज करती हैं.

कितनी आश्चर्यजनक बात है कि सैक्स तो सभी दंपती करते हैं, लेकिन वे थोड़े से ही होते हैं जिन्हें हर बार चरमसुख की अनुभूति होती. आज की मशीनी जिंदगी में और यौन संबंधी भ्रामक धारणाओं ने समागम को एकतरफा कृत्य बना दिया है. पुरुष के लिए आमतौर पर यह तनाव से मुक्ति का साधन है, कुछ उत्तेजित क्षणों को जी लेने का तरीका है. उसे अपने स्खलन के सुख तक ही इस कार्य की सीमा नजर आती है पर सच तो यह है कि वह यौन समागम के उस वास्तविक सुख से स्वयं भी वंचित रह जाता है जिसे चरमआनंद कहा जा सकता है. अनिवार्य दैनिक कार्यों की तरह किया गया अथवा मशीनी तरीके से किया गया सैक्स चरमसुख तक नहीं ले जाता.

इस के लिए चाहिए आह्लादपूर्ण वातावरण, सुरक्षित व सुरुचिपूर्ण स्थान और दोनों पक्षों की एक हो जाने की इच्छा. यह अनूठा सुख संतोषप्रद समागम के बाद ही अनुभव किया जा सकता है. तब ऐसा लगता है कि कभी ये क्षण समाप्त न हों. तब कोई भी तेजी बर्बरता नहीं लगती, बल्कि मन करता है कि इन क्षणों को और जीएं, बारबार जीएं. जीवन का यह चरमआनंद कोई भी दंपती प्राप्त कर सकता है, लेकिन तभी जब दोनों की सुख के आदानप्रदान की तीव्र इच्छा हो.

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