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पाकिस्तान पर इतनी संकीर्णता ठीक नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा ?

डेढ़दो दशक पहले तक भारत में पाकिस्तानी कलाकारों का स्वागत दिल खोल कर होता था. लखनऊ महोत्सव और दिल्ली में आयोजित अनेक सांस्कृति कार्यक्रमों में प्रसिद्ध पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली, नुसरत फतेह अली खान को सुनने के लिए भीड़ उमड़ती थी. रातरात भर चलने वाले उन की गायकी को मंत्रमुग्ध होकर सुनती थी. भारत पाकिस्तान का मैच रोमांच पैदा करता था. पाकिस्तानी क्रिकेटर्स भारत आ कर खुश होते थे, भारतीय खिलाड़ियों के सतह हंसीमजाक करते, साथ घूमते और साथ खातेपीते थे. मगर बीते डेढ़ दशक में बहुसंख्यक धर्म के प्रचार-प्रसार का ऐसा नकारात्मक असर जनता पर पड़ा कि कला और खेल जो सरहदों के नियमों से बहुत ऊपर हैं, उन के प्रति भारतीयों के दिल छोटे और दिमाग कुंद हो गए.

आज भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी कोई मैच होता है, हम गुस्से और तनाव से भर जाते हैं. मैच को खेल की भावना से नहीं बल्कि नफरत और गुस्से की भावना से देखते हैं. मैदान में खेल रहे पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर हूटिंग करते हैं, उन्हें कोसते हैं, गालियां देते हैं. कहीं हम पाकिस्तानी फोबिया से ग्रस्त तो नहीं? अब कोई बड़ा पाकिस्तानी कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए भारत आने को तैयार नहीं है. पाकिस्तान को ले कर जो संकीर्णता आज देखी जा रही है, सुप्रीम कोर्ट में आने वाला एक मामला इस का ताज़ा उदाहरण है, जिस की शीर्ष अदालत ने काफी भर्त्सना की है.

उच्चतम न्यायालय ने भारत में प्रस्तुति देने या काम करने के लिए आने वाले पाकिस्तानी कलाकारों पर पूर्ण प्रतिबन्ध के अनुरोध वाली एक याचिका को 28 नवंबर को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता फैज अनवर कुरैशी से कहा कि पाकिस्तान को ले कर इतनी संकीर्ण मानसिकता ठीक नहीं है.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस.वी. एन.भट्टी की पीठ ने कहा कि वह बम्बई उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का इच्छुक नहीं है, जिस ने फैज अहमद कुरैशी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था. इस के साथ ही शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों को रिकौर्ड से बाहर करने की याचिका भी ख़ारिज कर दी.

याचिका में अदालत से केंद्र सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि अदालत भारतीय नागरिकों, कंपनियों, फर्म और एसोसिएशन पर पाकिस्तान के सिने कर्मियों, गायकों, गीतकारों और तकनीशियनों सहित किसी भी पाकिस्तानी कलाकार को रोजगार देने या किसी भी काम अथवा प्रस्तुति के लिए बुलाने, कोई सेवा लेने, या किसी भी संगठन में प्रवेश करने आदि पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाए.

बम्बई उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि याचिकाकर्ता अदालत से जो अनुमति चाहता है वह सांस्कृतिक सद्भाव, एकता और शान्ति को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रतिकूल कदम है और इस याचिका में कोई दम नहीं है.

अदालत ने कहा था कि किसी को भी यह समझना चाहिए कि देशभक्त होने के लिए किसी को विदेश, खासकर पड़ोसी देश के लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने की जरूरत नहीं है. एक सच्चा देशभक्त वह व्यक्ति है जो निस्वार्थ होता है, जो अपने देश के लिए समर्पित है. वह तब तक ऐसा नहीं हो सकता जब तक कि वह दिल से नेक व्यक्ति नहीं हो. जो व्यक्ति दिल का अच्छा है वह अपने देश में किसी भी सांस्कृतिक गतिविधि का स्वागत करेगा जो देश के भीतर और सीमा पार शान्ति, सद्भाव, मेलजोल, भाईचारे और कला को बढ़ावा देती हो.

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि कला, संगीत, खेल, संस्कृति, नृत्य ऐसी गतिविधियां हैं जो राष्ट्रवाद, संस्कृति और राष्ट्र से ऊपर हैं और ये वास्तव में राष्ट्र में और देशों के बीच शान्ति, सौहार्द, एकता और सद्भाव लाने वाली होती हैं.

लेकिन बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए इस प्रवचन का याचिकाकर्ता फैज अहमद कुरैशी पर कोई असर नहीं हुआ और वो उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी फैज की याचिका खारिज करते हुए यही सीख दी कि आप को इस अपील के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए. इतनी संकीर्ण मानसिकता ठीक नहीं है.

फैज अहमद कुरैश खुद को एक सिने कर्मी और कलाकार बताता है. लेकिन क्या ऐसा व्यक्ति कलाकार हो सकता है जिस का दिल इतना छोटा और दिमाग इतना कुंद हो? जो भी हो इस फैसले से अब पाकिस्तानी कलाकारों को बुलाने के रास्ते खुल जाएंगे और भगवा गैंग इस का विरोध नहीं कर पाएंगे.

Uttarkashi Tunnel से बाहर आए 41 मजदूर, रैट होल माइनिंग से जीती जंग

उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को आखिरकार 17 दिन के अथक प्रयासों के बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. 28 नवम्बर की शाम 7 बजे से ही यह आशा जाग गयी थी कि आज वो खुशखबरी मिल ही जाएगी जिसका इंतज़ार में 41 परिवारों सहित पूरा देश और विश्व कर रहा है. और कुछ ही देर बाद यह सन्देश सुरंग के भीतर से आया कि रैट माइनिंग कर रहे श्रमिक सुरंग में फंसे श्रमिकों तक पहुंच गए हैं. फिर क्या था, चंद मिनटों में ही एक एक कर सारे मजदूर 800 MM के पाइप में स्क्रोल करते हुए बाहर आ गए.

हालांकि इस से कुछ ही देर पहले जब अधिकारी मीडिया को बाइट दे रहे थे तो उनका कहना था कि श्रमिकों को स्ट्रेचर पर एक एक कर बाहर निकाला जाएगा और हर श्रमिक को निकालने में पांच से सात मिनट का वक्त लगेगा. लेकिन जब सुरंग की खुदाई करने वाले उन तक पहुंचे तो उन्होंने झपट कर उन्हें गले लगा लिया और खुशी के मारे अपने पास मौजूद बादाम उन के मुंह में भर दिए. उस के बाद वे एक के पीछे एक उस पाइप में रेंगते हुए करीब आधे घंटे के अंदर बाहर निकल आये. सुरंग के बाहर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने उन्हें गले लगा कर उनका स्वागत किया और माला पहना कर एम्बुलेंस से डॉक्टरी चेकअप के लिए रवाना किया.

400 घंटे बाद सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकलता देख बाहर खड़े लोग और मजदूरों के परिजन जो देश के विभिन्न हिस्सों से आकर अपनों के ज़िंदा बाहर आने की आस लगाए पिछले 17 दिनों से वहां जमे हुए थे, भावुकता के अतिरेक में रो पड़े. उनकी ख़ुशी के इस क्षण का साक्षी वह पर्वत भी था जिसने मजदूरों की हिम्मत और धैर्य तथा उनको बाहर निकालने में जी-जान एक कर देने वालों के आगे अपना मस्तक झुका दिया. इन मजदूरों के इंतजार में जो दीवाली सूनी रह गई थी वह सिलक्यांरा में मनाई गयी. खूब मिठाइयां बंटीं, जोरदार आतिशबाजी हुई और तालियों की गड़गड़ाहट से वादियां गूंजने लगीं.

इस रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन पर दो हफ्तों से ज्यादा समय से पूरा देश टकटकी लगाए बैठा था. 12 नवम्बर दिवाली के रोज सुबह अचानक यह सुरंग भारी मलबा गिरने की वजह से बंद हो गयी. अंदर 41 श्रमिक खुदाई कर रहे थे. ये मलबा इतना कठोर था कि तमाम देशी-विदेशी तकनीक और विदेशी मशीनें इसके आगे बार बार फेल हुई. विदेशी ऑगर मशीन कई बार टूटी और रुकी. आखिर में जब 10 मीटर खुदाई बची तो सारी तकनीकों ने हाथ खड़े कर दिए. मगर इस काम को संभव कर दिखाया उन रैट माइनिंग में माहिर श्रमिकों ने जो चूहे की तरह हाथ से खुदाई करने और सुरंगे बनाने में माहिर थे. 24 लोगों की इस टीम ने दो दिन लगातार खुदाई कर फंसे हुए मजदूरों के लिए बाहर निकलने का रास्ता तैयार कर दिया. गौरतलब है कि रैट माइनिंग देश में प्रतिबंधित है.

दरअसल रैट माइनिंग में पतली सुरंगों में भीतर घुस कर मजदूर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से चूहे की तरह खुदाई करते हैं और हाथ से मलबा बाहर निकालते हैं. इसमें पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है. पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. ये तरीका बहुत थकाने वाला और जान जोखिम में डालने वाला होता है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है. लेकिन रैट होल माइनिंग चूंकि काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे NGT ने 2014 में बैन कर दिया था. लेकिन यह एक ऐसी स्किल है, जिसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन साइट पर किया जाता है. ये प्रक्रिया हमेशा आसान नहीं होती है पर मुश्किल स्थितियों में इसका इस्तेमाल होता है. सिल्क्यारा में भी रैट माइनिंग के माहिर श्रमिकों ने अपने कौशल से अंततः 41 लोगों को नयी जिंदगी दी. इसलि इनकी जितनी तारीफ की जाए कम है.

रोजाना 1 सेब खाने से मिलते हैं ये 10 फायदे

अम्लीय फल सेब पोषक तत्त्वों से भरपूर है. इस के सेवन से केवल ऊर्जा ही नहीं मिलती, बल्कि विभिन्न मैटाबौलिक क्रियाओं के पूरे विकास में भी बहुत मदद मिलती है. वनस्पति शास्त्र में सेब को ‘मालुस पूमिला’ कहते हैं. सेब में शरीर व दिमाग का कायाकल्प करने के लगभग सभी औषधीय गुण हैं. अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए और अनेक रोगों से बचाव के लिए सेब बहुत ही काम आता है. एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘रोज एक सेब खाइए, डाक्टर को दूर भगाइए’.

इस एक कहावत से ही पता चलता है कि सेब में कितने पौष्टिक गुण मौजूद हैं. सेब में प्रमुख रूप से सक्रिय औषधि तत्त्व है ‘पैक्टिन’. यह प्राकृतिक औषधि तत्त्व है, जो छिलके के भीतरी हिस्से और गूदे में पाया जाता है. यह कुछ जहरीले पदार्थों को शरीर से निकाल बाहर करने के लिए एकदम सही रसायन है. इस के अलावा पैक्टिन भोजन नली में प्रोटीन पदार्थों को यह सड़ने से रोकता है.

इस में विशेष रूप से विटामिन ‘ए’, विटामिन ‘बी’ और विटामिन ‘बी कौंप्लैक्स’ की मात्रा भी पाई जाती है. सेब आज भी दुनिया के सर्वाधिक खपत वाले फलों में से एक है. भारत के जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश और कुमाऊं की पहाडि़यों में यह व्यावसायिक फसल के रूप में उगाया जाता है. सेब से मिलने वाले पोषक तत्त्वों में प्रमुख तत्त्व शर्करा है, जो सेब में 9 फीसदी से 51 फीसदी तक पाई जाती है.

इस शर्करा का 85 फीसदी भाग आसानी से हजम हो जाने वाली 2 शर्कराओं से मिल कर बनता है. इस में फ्रूट शुगर (फल शर्करा) 60 फीसदी और ग्लूकोज 25 फीसदी होता है. सेब में गन्ने वाली शर्करा केवल 15 फीसदी ही होती है. सेब को किसी भी रूप में खाया जाए, तो उस का दोहरा फायदा होता है. इस हिसाब से सेब सेहत के लिए अमृत समान फल है. एक दिन में एक सेब खाना लाभदायक होता है. अगर कोई सेब रोज खाता है, तो उसे डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ता.

सेब आंतों, लिवर और मस्तिष्क के लिए बहुत फायदेमंद होता है. सेब में विटामिन बहुत ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. सेब शरीर को सेहतमंद और ताकतवर बनाता है.

* भूखे पेट सेब खाना फायदेमंद माना जाता है. सेब गरमी और खुश्की दूर करता है. सेब का मुरब्बा दिल की गरमी और मस्तिष्क की कमजोरी भी दूर करता है.

* सुबह भूखे पेट सेब खाने के बाद ऊपर से दूध पीना फायदेमंद माना जाता है. इस से स्किन का कालापन भी दूर होता है.

* जुकाम होने पर खाना खाने से पहले सेब को छिलके सहित खाना फायदेमंद माना जाता है और इस से मस्तिष्क की गरमी भी दूर होती है.

* रोज सेब खाने से हाई ब्लडप्रैशर में बहुत फायदा होता है. * सेब खाने से स्मरणशक्ति बढ़ जाती?है और रात को बारबार पेशाब जाना कम हो जाता है.

* सेब पर नमक लगा कर कुछ दिनों तक खाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है.

* सेब का मुरब्बा खाने से नींद न आने की समस्या में फायदा होता है और लिवर की दिक्कत भी ठीक हो जाती है.

* सेब को जहां तक हो सके, खाली पेट ही खाना चाहिए. इस से कब्ज की शिकायत नहीं होती.

* जिन लोगों को कब्ज रहती है, उन लोगों को सेब छिलका सहित खाना चाहिए और जिन लोगों को दस्त की समस्या हो, उन्हें सेब बिना छिलके के खाना चाहिए.

* सूखी खांसी होने पर मीठे सेब का सेवन बहुत ही लाभकारी होता है.

मेरी पत्नी मायके से हमारे घर आना ही नहीं चाहती, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 30 साल का हूं. शादी को 10 साल हो चुके हैं और मेरे 3 बच्चे भी हैं. मेरी पत्नी मायके में ही रहती है और मेरे पास आने से मना करती है. अगर मैं उस से तलाक मांगता हूं तो वह मना कर देती है. इस समस्या का क्या हल हो सकता है ?

जवाब

यह सच है कि आप की पत्नी आप के साथ ज्यादती कर रही है. लेकिन सबसे पहले आप शांति से उनसे बात करिए और उनसे पूछिए कि वो क्यों ससुराल में रहना नहीं चाहती है. अगर उन्हें कोई परेशानी है तो उसका समाधान निकालिए. इसके अलावा आप उन के घरवालों से भी बात करें कि वह क्यों आप के साथ नहीं रहना चाहती है और वे क्यों अपनी बेटी की गृहस्थी बरबाद कर रहे हैं.

पर अगर फिर भी वो आप की बात नहीं समझती है तो तब आप तलाक के लिए अदालत का सहारा ल सकते हैं. शादी के 10 साल बाद भी पत्नी के मायके में रहने की जिद वाकई गले नहीं उतरती है. इसके अलावा आप उस की घर वापसी के लिए भी मुकदमा दायर कर सकते हैं, क्योंकि सवाल आपके बच्चों के भविष्य का भी है.

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ड्रग्स के जाल में छात्र

दिल्ली से सटे नोएडा में यूनिवर्सिटी और कालेजों में गांजा और ड्रग्स सप्लाई करनेवाला एक हाई प्रोफाइल रैकेट पकड़ा गया है. सैक्टर-126 थाने की पुलिस ने गिरोह के सरगना सहित 9 लोग पुलिस के हत्थे चढ़े हैं, जिन में नामी एमईटी यूनिवर्सिटी और एशियन ला कालेज के 4 छात्र और एक दिल्ली में रहने वाला अफ्रीकी मूल का निवासी है. पुलिस का कहना है कि ये लोग ताइवान, शिलौंग, उदयपुर जैसी जगहों से गांजा और ड्रग्स मंगा कर छात्रों को बेचते थे.

आरोपियों के कब्जे से अवैध 15 किलो के लगभग शिलौंग और देशी उदयपुर गांजा, 30 ग्राम कोकीन, लगभग 20 ग्राम एमडीएमए (पिल्स), 150 ग्राम चरस, 65 ग्राम विदेशी गांजा बरामद किया है. जिस की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 20-25 लाख रुपए है. पकड़े गए लोगों में अक्षय नाम का आरोपी गिरोह का सरगना है जिस की पत्नी थाईलैंड में रहती है. गैंग का सरगना अक्षय कुमार अपने नैटवर्क के जरिए ताइवान का ओजी गांजा मंगाता है और दिल्ली व उस से सटे शहरों के कालेज में सप्लाई करता है. ओजी एक विदेशी गांजा है, जिस की मादकता भारतीय गांजे से काफी अधिक होती है.इस कारण ये काफी डिमांड में रहता है. ओजी को प्रति ग्राम 10 हजार रुपए में बिकती है.

दूसरा आरोपी नरेंद्र राजस्थान से देसी गांजा ला कर यूनिवर्सिटी व एशियन ला कालेज में पढ़ने वाले छात्रों को सप्लाई करता था.छात्रों को जाल में फंसा कर गैंग के रूप में तैयार कर कालेज, पीजी में रहने वाले छात्रछात्राओं को सप्लाई किया जाता था. पकड़े गए आरोपियों में से सागर एमईटी में एमबीए द्वितीय वर्ष का छात्र है. दूसरा छात्र आदित्य यूनिवर्सिटी में बीए, एलएलबी चतुर्थ वर्ष में पढ़ रहा है.दर्शन यूनिवर्सिटी में बीए एलएलबी तृतीय वर्ष का छात्र है.अपूर्व सक्सेना यहां एमबीए द्वितीय वर्ष का छात्र है.

यह सभी छात्र इस यूनिवर्सिटी के साथ अन्य शैक्षिक संस्थानों में छात्र छात्राओं को मादक पदार्थ सप्लाई करते है. इस के लिए ये लोग स्नैपचैट, टैलीग्राम, वाट्सएप के माध्यम से अलगअलग लोगों को अलगअलग नशीला पदार्थ उपलब्ध कराते है. मादक पदार्थों की डिलीवरी के लिए इन के पास निजी राइडर हैं जो जोमैटो की तर्ज पर और्डर मिलते ही डिलीवरी पहुंचाते हैं.एक अभियुक्त राजन दिल्ली से नोएडा के लिए ओला कैब चलाता है. जिस के माध्यम से दिल्ली में रहने वाले नाइजीरियन से यह कोकीन खरीदता था और एमिटी यूनिवर्सिटी के छात्रों को सप्लाई करता था. इस नाइजीरियन की तलाश पुलिस को है.

नोएडा में पिछले कुछ समय से ड्रग्स का काला कारोबार तेजी से बढ़ा है. ग्रेटर नोएडा एनसीआर में ड्रग्स सप्लाई और नशीले पदार्थों की फैक्ट्री के रूप में तेजी से उभरकर सामने आया है. मई में यहां सैक्टर ओमेगा स्थित जज सोसायटी में विदेशी नागरिकों द्वारा चलाई जा रही ड्रग्स फैक्ट्री का भंडाफोड़ हुआ था. तब पुलिस ने करीब 200 करोड़ रूपए कीमत की 30 किलो ड्रग्स जब्त की थी. इस से 15 दिन पहले ही थाना बीटा-2 पुलिस ने सूरजपुर कोतवाली क्षेत्र में सेक्टर थीटा टू स्थित तीन मंजिला मकान में चल रही ड्रग्स फैक्ट्री पकड़ी थी.इस में 300 करोड़ रुपए की 46 किलोग्राम ड्रग्स बरामद हुई थी और नौ विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था. इन से पूछताछ से पता चला कि इनके कुछ साथी शहर की मित्रा एंक्लेव में भी फैक्ट्री चला रहे हैं. पुलिस ने मित्रा सोसायटी में दबिश दी तो मौके पर दो विदेशी नागरिकों सहित मेथाफेटामाइन (एमडीएमए) और कच्चा माल बरामद हुआ. आरोपियों के पास से करीब 200 करोड़ की 30 किलो ड्रग्स मिली.

हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी मात्रा में मादक पदार्थों और इन का धंधा करने वाले गिरोहों के पकड़े जाने के बावजूद पुलिस और नारकोटिक्स डिपार्टमेंट इन पर काबू पाने और शहर में इनकी सप्लाई पर रोक लगाने में अक्षम साबित हो रहा है. मादक पदार्थों का कारोबार करने वालों की नज़रें शहर के तमाम बड़े कॉलेजों के छात्रछात्राओं पर है जो इनके बीच नशे के आदि हो चुके बच्चों के जरिए आसानी से माल बेच लेते हैं. 14 से 20 साल के युवा इन नशे के सौदागरों के जाल में फंस कर अपना और देश का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काशी में दीपोत्सव मना कर अन्धेरा दूर करने का प्रयास कर रहे हैं.

वी पी सिंह की मौत के 15 साल और मंडल कमंडल पार्ट-2

‘हिंदी की अनिवार्यता’ के मुखर विरोधी रहे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने 27 नवंबर को चेन्नई के प्रेसीडेंसी कालेज में पूर्व प्रधानमंत्री राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया. इस समारोह में खास मेहमान थे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, जिन के पिता मुलायम सिंह यादव और विश्वनाथ प्रताप सिंह के बीच सियासी मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं, मगर वे स्टालिन के पिता करुणानिधि के खासे करीब थे.

मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कराने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को ‘सामजिक न्याय का मसीहा’ कहा जाता था. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर उन्होंने देश की सियासत में हलचल मचा दी थी. इस के बाद ही मंडल और कमंडल के बीच लड़ाई तेज हुई और राम मंदिर का मुद्दा गरमाना शुरू हुआ था. आज कमंडल सत्ता में है और मंडल वाले देश में अपनी जनगणना कराने के लिए बेचैन हैं.

लोकसभा चुनाव सामने है. ऐसे में ये मोहमोह के धागे स्टालिन और अखिलेश की उंगलियों से क्यों उलझे, इस के मायने समझना कठिन नहीं है. विश्वनाथ प्रताप सिंह को उन की मौत के 15 साल बाद अचानक याद किया जाना और उन के धुर राजनितिक विरोधी नेता के पुत्र अखिलेश के द्वारा उन का महिमामंडन करना दर्शाता है कि सत्ता का लालच कुछ भी करवा सकता है.

कांग्रेस की राह आसान

अब वी पी सिंह की प्रतिमा संग फोटो खिंचवाने से अखिलेश को लोकसभा चुनाव में कितना फायदा होगा ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन मंडल और कमंडल की खींचतान का फायदा कांग्रेस को अवश्य मिलेगा. भाजपा के सामने कांग्रेस जहांजहां भी खड़ी हुई है लोगों का साथ उस को मिला है. ऐसे में स्टालिन और अखिलेश ने वी पी के मंडल की सोच को उभार कर कांग्रेस की राह आसान कर दी है क्योंकि मंडल का मुद्दा गरम होते ही यादवों को छोड़ अन्य सभी जातियां कांग्रेस की तरफ ही भागेंगी.

मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई का सेकंड पार्ट अगले लोकसभा चुनाव में व्यापक रूप से दिखाई देगा. गौरतलब है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता खोला था. इस का फायदा उत्तर प्रदेश की यादव जाति ने खूब उठाया था. इस के बाद ही जातीय आधारित क्षेत्रीय पार्टियों का भी उदय हुआ.

बिहार में जातीय जनगणना

आज विपक्ष जातीय जनगणना का जो मुद्दा उठा रहा है. उस का आधार कहीं न कहीं वीपी सिंह के उस फैसले से ही जुड़ा हुआ है. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल सरकार से जातिवार जनसंख्या गणना की मांग कर रहे हैं. इन दलों का कहना है कि जाति के आधार पर लोगों को हिस्सेदारी दी जानी चाहिए.

बिहार ने हाल ही में जातीय गणना कराई है. भाजपा के खिलाफ पूरा विपक्ष जातीय जनगणना को 2024 का चुनावी मुद्दा बनाने के लिए कमर कस चुका है. वी पी सिंह की प्रतिमा के अनावरण के जरिए अखिलेश यादव भी इस मुद्दे को कैप्चर करने की कोशिश में हैं. वह जातीय जनगणना को ले कर इन दिनों काफी मुखर हैं.

आरक्षण का मुद्दा

आरक्षण के मुद्दे को सामाजिक न्याय के तौर पर प्रभावी ढंग से चलाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं. उधर दलितों और मुसलमानों को साधने की नाकाम कोशिश में जुटी भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के साथसाथ राम मंदिर के लोकार्पण के जरिए लोकसभा चुनाव से पहले आस्था का बम फोड़ने की तैयारी में है.

मंदिरों के निर्माण, पूजापाठ और धार्मिक यात्राओं का फायदा सवर्ण जातियों, खासकर ब्राह्मणों को ही होना है, यह बात अन्य सभी जातियां समझती हैं. ऐसे में मंडल बनाम कमंडल पार्ट – 2 फिल्म जिस का निर्माण स्टालिन के सहनिर्देशन में अखिलेश यादव ने शुरू कर दिया, कितनी हिट होगी और किस को इस का बड़ा फायदा मिलेगा, ये चुनाव नतीजे आने पर पता चलेगा.

बहू नवाज के साथ क्यों हैं विजयपत सिंघानिया

बिरले ही मामलों में बेटे की मनमानी के खिलाफ सासससुर और परिवार वाले बहू का साथ देते हैं. वहीं रेमंड्स के संस्थापक विजयपत सिंघानिया कर रहे हैं क्योंकि बेटे गौतम सिंघानिया के मिजाज को वे बेहतर समझते हैं कि दौलत और शोहरत के नशे में चूरमगरूर इस शख्स की डिक्शनरी में रिश्ते नातों और जज्बातों की कोई अहमियत ही नहीं है. रेमंड्स समूह के प्रबंध निदेशक गौतम सिंघानिया ने पहले पिता विजयपत सिंघानिया को घर से निकालते दरदर की ठोकरें खाने मजबूर कर दिया और अब पत्नी नवाज मोदी को प्रताड़ित कर रहा है.

यह विवाद पिछले कुछ दिनों से टीवी सीरियल्स जैसा चल रहा है जिस के हर नए एपिसोड में कोई नई सनसनी या खुलासा होता है. इस में ताजा विजयपत सिंघानिया का यह ऐलान है कि वे बहू नवाज मोदी सिंघानिया के साथ हैं. वे एक सम्मानित कानूनी परिवार से आती हैं उन के पिता सीनियर लायर थे वे. खुद भी वकील हैं हालांकि उन्होंने कभी प्रैक्टिस नहीं की. मैं बेटे बहू के मामले में दखल नहीं दूंगा लेकिन जहां भी बहू नवाज को सलाह की जरूरत होगी दूंगा.

और कुछ खासतौर से देने लायक बेटे ने उन्हें छोड़ा भी नहीं है. साल 2015 में विजयपत ने एक हजार करोड़ रूपए के शेयरों की शक्ल में एक तरह से अपना सब कुछ बेटे को सौंप दिया था जो कि उन की जिंदगी की सब से बड़ी गलती साबित हुई थी. तब खुद विजयपत ने न केवल स्वीकारा था बल्कि यह भी कहा था कि अपना सब कुछ संतान को न दें. रेमंड्स ग्रुप को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले विजयपत इन दिनों मुंबई में किराए के मकान में रहते मीडिया वालों को इंटरव्यू देते जिन्दगी के तजुर्बे बताते रहते हैं लेकिन उस के केंद्र में बेटा गौतम और उस की बेईमानियां ही ज्यादा रहती हैं.

अब उन्हें नया बहाना बेटे द्वारा बहू के साथ की जा रही ज्यादतियों का मिल गया है. गौरतलब है कि गौतम ने अपनी पत्नी नवाज से अलगाव और तलाक की घोषणा सोशल मीडिया पर बड़े अभिजात्य तरीके से की थी. तब लोगों को याद आया था कि यह वही गौतम है जिस ने अपने पिता विजयपत और मां आशा देवी को 6000 करोड़ की कीमत वाले आलीशान मकान जेके हाउस से निकलने मजबूर कर दिया था.
दीवाली की पार्टी में गौतम सिंघानिया ने पत्नी नवाज को बेइज्जत कर निकाला तो विवाद खुल कर सामने आ गया. नवाज इस पर खामोश नहीं रहीं और उन्होंने गौतम की 1158 करोड़ की सम्पत्ति में से 75 फीसदी हिस्से की मांग कर डाली. इस पर गौतम की अक्ल थोड़ी ठिकाने आई और उन्होंने रेमंड्स की परिसंपत्तियों का ट्रस्ट बनाने की बात कहते उस की जिम्मेदारी परिवार के ही किसी सदस्य को सौंपने की बात कही.

साफ दिख रहा है कि गौतम की मंशा मामले को लटकाए रखने की है जिस से पत्नी की हिम्मत टूटे लेकिन वह यह भूल रहे हैं कि नवाज कोई मिडिल क्लासी महिला नहीं है जो किसी भी स्तर पर उन का या खानदान की प्रतिष्ठा का लिहाज कर अपनी दावेदारी और हक छोड़ देंगी. अपनी दोनों बेटियों निहारिका और निसा के भविष्य की चिंता भी उन्हें है.

अपनी तरफ से कुछ दबाब बनाने की गरज से और कुछ दिल का दर्द बयां करने की मंशा से नवाज का नया बयांन यह है कि गौतम ने उन्हें तिरुपति मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ने मजबूर किया था वह भी भूखे प्यासे रहते इस से उन्हें चक्कर आने लगे थे. झुग्गी झोपड़ियों से ले कर मिडिल क्लास होते हुए कार्पोरेट घरानों में भी ऐसे विवाद और फसाद बेहद आम हैं कि संताने अपने बूढ़े मांबाप को घर से धकिया देती हैं. पतिपत्नी एकदूसरे पर अपनी धार्मिक आस्थाएं और मान्यताएं थोपते हैं और दीगर खटपटो के चलते एकदूसरे को छोड़ने और तलाक से भी परहेज नहीं करते. एक औरत के लिए इस से ज्यादा तकलीफदेह और कुछ हो भी नहीं सकता कि 32 साल का साथ इतने अपमानजनक ढंग से टूट और छूट जाए.

पटरी न बैठे तो पति पत्नी और संतानों का भी पेरैंट्स से अलग हो जाना हर्ज की बात नहीं लेकिन सिंघानिया घराने के मामले में साफ दिख रहा है कि गौतम एक कुंठित, खब्त और सनकी सा आदमी है जिसे बहुत कुछ विरासत में मिल गया था. उस ने नया कुछ खास नहीं किया है खासतौर से पिता के मुकाबले जिन्होंने पाईपाई जोड़ कर अपना आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया था और वक्त आने पर उसे बेटे को सौंप दिया लेकिन उन का यह सोचना खुशफहमी साबित हुई कि बुढ़ापा आराम से कटेगा.

बहू का साथ दे कर विजयपत कोई गलती नहीं कर रहे हैं लेकिन अब उन के पास वक्त है कि वे यह भी देख और महसूस पाएं कि एक दफा अरबोंखरबों का कारोबार चलाना आसान है लेकिन सफलतापूर्वक घर गृहस्थी चला पाना उस से बड़ी चुनौती होती है, जिस पर वे पूरी तरह पास नहीं हो पाए हैं. उन का अतीत सबक बन कर उन के सामने खड़ा है कि कैसे उन्होंने इसी गौतम के मोह में पड़ते कथित तौर पर अपने ही दूसरे बेटे मधुपति सिंघानिया और उस के बच्चों के साथ ज्यादती की थी. यह मुकदमा भी अदालत में चला था.

रही बात नवाज की तो वह भी आम पत्नियों की तरह पति की ज्यादतियों का शिकार हो रही हैं एक न्यूज चेनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने गौतम पर आरोप लगाया था कि वह उन के और बेटियों के साथ लात घूंसों तक से मारपीट करता है. कार्पोरेट घरानों में यह बेहद आम बात भी है जहां महिलाएं नुमाइश की चीज ज्यादा होती हैं और उन का शारीरिक आर्थिक और भावनात्मक शोषण भी आम बात होती है. श्याम बेनेगल निर्देशित 1981 में प्रदर्शित फिल्म कलयुग में इस को प्रभावी ढंग से दिखाया गया है कि महलनुमा घरों में भी औरत की हैसियत दोयम दर्जे और सछूत शूद्र जैसी ही होती है.

सोशल मीडिया से क्यों डरी हुई है भाजपा

2014 के लोकसभा चुनाव से सोशल मीडिया चुनावी तैयारियों का एक हिस्सा बन गई है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने सोशल मीडिया विभाग का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए प्रदेश स्तर की मीटिंग की, जिस में यह तय किया गया कि पार्टी सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करने के लिए इस को ब्लौक और बूथ स्तर तक विस्तार करेगी. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के साथ ही साथ उत्तर प्रदेश सोशल मीडिया विभाग की अध्यक्ष पंखुड़ी पाठक ने हिस्सा लिया.

मीटिंग में कार्यकर्ताओं को यह समझाया गया कि ’हर जिले में होने वाली छोटीबड़ी घटनाओं की तत्काल जानकारी प्रदेश स्तर के नेताओं को दी जाए. इस के बाद जिस तरह के दिशानिर्देश दिए जाएं उस के हिसाब से काम किया जाए.’ कार्यकर्ताओं को यह भी बताया गया कि अगर किसी विरोधी दल द्वारा इमेज खराब करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया पर कोई गतिविधि की जाती है तो उस का सही तथ्य सामने रखना है.

अतीत से सीखी कांग्रेस

दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. 2014 के लोकसभा चुनाव से सोशल मीडिया का प्रयोग करने में कांग्रेस भाजपा के मुकाबले पिछड़ गई थी. इस का खामियाजा उस को बाद के चुनाव में भुगतना पड़ा. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने सोशल मीडिया का पूरा उपयोग किया, जिस का लाभ भी उन को मिला. इस के बाद कांग्रेस ने अपनी सोशल मीडिया टीम को मजबूत करना शुरू किया जिस से वह तथ्यों को सही तरीके से रख सके.

‘आलू से सोना बनाने की मशीन’ वाला बयान कांटछाट कर जिस से राहुल का बयान बता कर प्रचारित किया गया वैसा दोबारा न हो इस के लिए कांग्रेस तैयार है. सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से भाजपा का विरोध चल रहा है. ऐसे में उसे पहले जैसा समर्थन नहीं मिल रहा है. जो भाजपा के लिए डर वाली बात है. भाजपा नेताओं के तरहतरह के मीम्स बन रहे हैं. उन के बयानो पर कटाक्ष हो रहे हैं. युवा वर्ग नौकरी मांग रहा है. यह सारे सवाल भाजपा को परेशान कर रहे हैं. कांग्रेस नेता नीलम वैश्य सिंह कहती हैं कि सोशल मीडिया पर इस तरह की मीटिंग से कार्यकर्ताओं को अच्छी जानकारियां मिली.

डीपफेक का डर

सोशल मीडिया पर डर का एक प्रमुख कारण ‘डीपफेक’ हो गया है. यह एआई सिस्टम से तैयार होता है. यह इतना सटीक होता है कि सहीगलत का भेद कर पाना मुश्किल होता है. अभी तक इस के दायरे में फिल्मों की हीरोइनें रही हैं. वीडियो में चेहरा हीरोइन का होता है और बाकी गतिविधियां किसी और की. डीपफेक वीडियो देखने वाले को यह लगता है कि यह वीडियो उसी हीरोइन का है. इस में सहीगलत का अंतर कर पाना साधारण लोगों के लिए संभव नहीं हो पाता है.

कैटरीना कैफ, रश्मिका मंदाना के बाद आलिया भट्ट के ऐसे वीडियो आ चुके हैं. राजनीतिक हस्तियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक वीडियो वायरल हो चुका है जिस में वह गरबा डांस करते नजर आ रहे हैं. इस को नरेंद्र मोदी के चाहने वाले भी समझ नहीं पाए कि यह फेक है. यह उन लोगों ने भी एकदूसरे को खूब भेजा. इस का खंडन पीएमओ की तरफ से आया और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस को बताया. इस के बाद केंद्र सरकार कानून भी बनाने जा रही है.

सोशल मीडिया के जानकार मानते हैं कि एआई टैक्नोलौजी से बनने वाले यह वीडियो समाज के लिए बेहद खतरनाक है. इन को ले कर जागरूकता जरूरी है. इन का प्रयोग कर के चुनावी माहौल को बिगाड़ा जा सकता है. ऐसे में राजनीतिक दल चिंता में हैं. चिंता का सब से बड़ा कारण यह भी है कि सोशल मीडिया कुत्तों के ऐसे झुंड की तरह है कि जिस पर झपट पड़े उस को नोंच ही डालती है.

सोशल मीडिया पर एक बात जो वायरल हो गई वह सच हो या झूठ इस की सफाई न कोई सुनता है न समझता है. तमाम ऐसे उदाहरण हैं जो गलत हैं पर लोग आज भी उन को सच मान रहे हैं इसलिए राजनीतिक दलों का डर और तैयारी जायज है. सोशल मीडिया इमेज को खराब करने में सब से आगे है.

डिजिटल ठगी का शिकार होते युवा, क्या कहना है TRAI का

एक नए नवेले अधिवक्ता के पास एक मैसेज आया, “क्या आप आज 50 लख रुपए कमाना चाहते हैं तो इसे ध्यान से संदेश पढ़ें….” और वह युवा अधिवक्ता इस मैसेज के जाल में फंसते चला गया और ठगी का शिकार हो गया. आश्चर्य की बात यह है कि आज के आधुनिक भारत में जब शिक्षा का इतना ज्यादा संचार हो चुका है युवा पढ़ेलिखे लगातार ठगी का शिकार हो रहे हैं.

आधुनिक समय में सोशल मीडिया संचार क्रांति के बाद ठगी की घटनाएं नित्य प्रतिदिन हो रही है. सब से अहम बात यह है कि पढ़ेलिखे युवा ठगी का शिकार हो रहे हैं. इस का सीधा सा मतलब यह है कि उस का युवा किसी भी तरह धन कमा लेना चाहता है. वह लक्ष्य बना कर मेहनत कर के ईमानदारी से पैसे कमाने की अपेक्षा, मन में यह चाहत रखता है कि रातोंरात वह करोड़पति बन जाए.

ठगी का शिकार जहां इंजीनियर, अधिवक्ता, नेता, व्यापारी बड़ी तादाद में हो रहे हैं, वही यह युवा लोगों में ज्यादा पाई जा रही है. दरअसल, युवा आज शिक्षित होने के बावजूद अपने लोभ को रोक नहीं पा रहा है. इस का सीधा सा तात्पर्य है कि जहां ईमानदारी और अन्य नैतिक धारणाओं में कमी आई है. वही मजेदार तथ्य यह भी है कि सीनियर सिटीजन तरीके कम शिकार होते हैं. माना यह जा रहा है कि इस का कारण उन का अनुभव और जीवन का संघर्ष है जिस में वे मेहनत को ईमानदारी को महत्व देते हैं.

दरअसल, अनचाही काल और सोशल मीडिया में चल रहे लोगों के हाथों में मौजूद मोबाइल के माध्यम से संदेशों से डिजिटल धोखाधड़ी का बड़ी उम्र से ज्यादा कम उम्र के लोग शिकार हो रहे हैं. धोखाधड़ी करने के लिए आवाज की क्लोनिंग या हेराफेरी के जरिए गड़बड़ियों को पहचानने में चुनौती बरकरार है. अंजान फोन नंबर की पहचान करने में मददगार एप ‘टू कालर’ के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एलेन मामेदी ने कहा, “भारत में 27 करोड़ लोग इस एप का इस्तेमाल कर रहे हैं.”

ठगी का मनोविज्ञान यह है कि यह प्राचीन काल से समाज में रही है और अब यह नए रूप बदल कर के मोबाइल कंप्यूटर के माध्यम से लोगों को अपना शिकार बना रही है जिस में कुछ ऐप भी शामिल है.

देश में रोजाना सिर्फ एक ऐप के जरिए 50 लाख स्पैम काल की सूचना मिलती है. परिणामस्वरूप ठगी की बात जो सामने आ रही है वह बताती है कि अब बुजुर्गों से अधिक युवा इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं.

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) के सचिव वी रघुनंदन ने कहा, “ट्रू कौलर के उपभोक्ताओं को पेश आ रही तकनीकी समस्याओं को दूर करने की कोशिशें जारी है. ट्राइ अपने डू-नौट-डिस्टर्ब (डीएनडी) ऐप की मौजूदा खामियों को दूर कर ग्राहकों को अवांछित काल व संदेश से उपभोक्ताओं को पेश आ रही तकनीकी समस्याओं को दूर करने की कोशिशें जारी है.

ट्राइ अपने डू-नौट-डिस्टर्ब (डीएनडी) ऐप की मौजूदा खामियों को दूर कर ग्राहकों को अवांछित काल व संदेश से राहत दिलाने की कोशिश है. अगले साल मार्च तक सभी एंड्रायड फोन के लिए इस ऐप को कारगर बनाने की कोशिश है.”

कुल मिला कर कहा जा रहा है कि समस्या को काफी हद तक दूर कर लिया गया है और मार्च तक ऐप को सभी एंड्रायड में इस्तेमाल के अनुकूल बनाने की कोशिशें जारी हैं. जब मोबाइल ग्राहक अपने फोन पर आने वाली स्पैम काल और संदेश को पहचानने की कोशिश करते हैं उस ट्राइ के डीएनडी ऐप में खामियां नजर आ रही हैं.”

जानकार बताते हैं कि इस ऐप में सुधार से स्पैम काल और एसएमएस की संख्या में काफी कमी आई है. आइफोन बनाने वाली कंपनी एपल ने डीएनडी ऐप को काल विवरण तक पहुंच देने से इंकार कर दिया था. ट्राई के सचिव ने कहा, “ऐप को एपल के आइओएस उपकरणों के मुताबिक बनाने के प्रयास चल रहे हैं. सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की कोई एक एजेंसी देश में सुरक्षा के सभी पहलुओं का ध्यान नहीं रख सकती है. ऐसे में सभी की भागीदारी और सहयोगात्मक नजरिया अपनाने की जरूरत है.”

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