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टूटे हुए रिश्तों को कैसे जोड़े, इसके लिए अपनाएं ये टिप्स

किसी भी रिश्ते में एक बार विश्वास टूट जाता है तो उस विश्वास को वापस लाना बहुत मुश्किल होता है. इसी तरह एक रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए उसमें सबसे ज्यादा जरूरत विश्वास की होती है. अगर किसी रिश्ते में विश्वास ही नहीं है तो रिश्ते का टूट जाना ही बेहतर होता है. लेकिन अगर आपने अपने पार्टनर का विश्वास तोड़ा है तो उसे वापस पाने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है. अपने रिश्ते को वापस जोड़ना चाहते हैं तो आप दोनों को बराबर कोशिश करने की जरूरत होती है.

  1. अपनी भावनाओं को बताएं:

सबसे पहले आपको अपने साथी के सामने इस बात को मान लेनी चाहिए कि आपने उसके विश्वास तोड़कर गलती की है ताकि उसे इस बात का एहसास हो कि आपको अपनी गलती का पछतावा है. इसके बाद अपनी भावनाओं को बताने की जरूरत है और अपने प्यार को दिखाने की. ये सारी बातें आपके पार्टनर को प्रभावित कर सकती है और आप वापस उनका विश्वास हासिल कर सकते हैं.

  1. माफी मांगें:

आपको अपने रिश्ते में विश्वास वापस लाने के लिए अपने पार्टनर से मांफी मांगने की जरूरत होती है. अपने साथी को इस बात का विश्वास दिलाने पड़ेगा कि जो भी गलती आपसे हुई वैसे आगे भविष्य में नहीं होगी. अगर आपका साथी आपकी बातों को नहीं समझे और आपके मांफी को ना स्वीकार करें तो आपको इस बात से दुखी होने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको उन्हें मनाने की और कोशिश करनी चाहिए.

  1. खुद को माफ करें:

अपने साथी से माफी मांगने से पहले आपको खुद को माफ करने की जरूरत है क्योंकि जब तक आप अपनी गलती को माफ नहीं करेंगे तब तक कोई भी उसे माफ नहीं कर पाएगा. किसी रिश्ते में विश्वास लाने से पहले आपको खुद पर विश्वास करने की ज्यादा जरूरत होती है. अपनी गलती को माने और कोशिश करें कि आगे भविष्य में इस गलती को ना दोहराएं और अपने साथी को भी दुख ना दें.

4. अपनी जिंदगी से जुड़ें बातों को शेयर करें:

अगर आप अपने पार्टनर का विश्वास दोबारा जितना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अपने जिंदगी से जुड़े हर बात के बारे में अपने साथी को बताना चाहिए ताकि उसे आपके ऊपर किसी प्रकार का संदेह ना रहें. अपने बीच कोई प्राइवेसी ना रखें. इससे आपका साथी शायद इस बात को समझ पाएगा की आप आगे भविष्य में उसके साथ कुछ गलत नहीं करेंगे और ना ही धोखा देंगे.

किशमिश-भाग 1: मंजरी और दिवाकर गंगटोक क्यों गए थे?

‘‘अरे, जरा धीरे चलो भई. कितना तेज चल रहे हो. मुझ में इतनी ताकत थोड़े ही है कि मैं तुम्हारे बराबर चल सकूं,’’ दिवाकर ने कहा और हांफते हुए सड़क के किनारे चट्टान पर निढाल हो कर बैठ गए. फिर पीछे पलट कर देखा तो मंजरी उन से थोड़ी दूर ऐसी ही एक चट्टान पर बैठी अपने दुपट्टे से पसीना पोंछती हलाकान हो रही थी. साथ चल रहे हम्माल ने भी बेमन से सामान सिर से उतारा, बैठ गया और बोला, ‘‘टैक्सी ही कर लेते साहब, ऐसा कर के कितना पैसा बचा लेंगे?’’

‘‘हम पैसा नहीं बचा रहे हैं. रहने दो, तुम नहीं समझोगे,’’ दिवाकर ने कहा. थोड़ी देर में मंजरी ने फिर चलना शुरू किया और उन से आधी दूर तक आतेआते थक कर फिर बैठ गई.

‘‘अरे, थोड़ा जल्दी चलो मैडम, चल कर होटल में आराम ही करना है,’’ दिवाकर ने जोर से कहा. जैसेतैसे वह उन तक पहुंची और थोड़ा प्यार से नाराज होती हुई बोली, ‘‘अरे, कहां ले आए हो, अब इतनी ताकत नहीं बची है इन बूढ़ी होती हड्डियों में.’’

‘‘तुम्हारी ही फरमाइश पर आए हैं यहां,’’ दिवाकर ने भी मंजरी से मजे लेते हुए कहा. आखिरकार वे होटल पहुंच ही गए. वास्तव में मंजरी और दिवाकर अपनी शादी की 40वीं सालगिरह मनाने गंगटोक-जो कि सिक्किम की जीवनरेखा तीस्ता नदी की सहायक नदी रानीखोला के किनारे बसा है और जिस ने साफसफाई के अपने अनुकरणीय प्रतिमान गढ़े हैं-आए हैं. इस से पहले वे अपने हनीमून पर यहां आए थे. और उस समय भी वे इसी होटल तक ऐसे पैदल चल कर ही आए थे. और तब से ही गंगटोक उन्हें रहरह कर याद आता था. यहां उसी होटल के उसी कमरे में रुके हैं, जहां हनीमून के समय रुके थे. यह सब वे काफी प्रयासों के बाद कर पाए थे.

40 साल के लंबे अंतराल के बाद भी उन्हें होटल का नाम याद था. इसी आधार पर गूगल के सहारे वे इस होटल तक पहुंच ही गए. होटल का मालिक भी इस सब से सुखद आश्चर्य से भर उठा था. उस ने भी उन की मेहमाननवाजी में कोई कसर नहीं उठा रखी थी. यहां तक कि उस ने उन के कमरे को वैसे ही संवारा था जैसा वह नवविवाहितों के लिए सजाता है. यह देख कर दिवाकर और मंजरी भी पुलकित हो उठे. उन के चेहरों से टपकती खुशी उन की अंदरूनी खुशी को प्रकट कर रही थी.

फ्रैश हो कर उन दोनों ने परस्पर आलिंगन किया, बधाइयां दीं. फिर डिनर के बाद रेशमी बिस्तरों से अठखेलियां करने लगे. सुबह जब वे उठे तो बारिश की बूंदों ने उन का तहेदिल से स्वागत किया. बड़ीबड़ी बूंदें ऐसे बरस रही थीं मानो इतने सालों से इन्हीं का इंतजार कर रही थीं. नहाधो कर वे बालकनी में बैठे और बारिश का पूरी तरह आनंद लेने लगे.

‘‘चलो, थोड़ा घूम आते हैं,’’ दिवाकर ने मंजरी की ओर कनखियों से देखते हुए कहा.

‘‘इतनी बारिश में, बीमार होना है क्या?’’ मंजरी बनावटी नाराजगी से बोली.

‘‘पिछली बार जब आए थे तब तो खूब घूमे थे ऐसी बारिश में.’’

‘‘तब की बात और थी. तब खून गरम था और पसीना गुलाब,’’ मंजरी भी दिवाकर की बातों में आनंद लेने लगी.

‘‘अच्छा, जब मैं कहता हूं कि बूढ़ी हो गई हो तो फिर चिढ़ती क्यों हो?’’ दिवाकर भी कहां पीछे रहने वाले थे.

‘‘बूढ़े हो चले हैं आप. इतना काफी है या आगे भी कुछ कहूं,’’ मंजरी ने रहस्यमयी चितवन से कहा तो दिवाकर रक्षात्मक मुद्रा में आ गए और अखबार में आंखें गड़ा कर बैठ गए. हालांकि अंदर ही अंदर वे बेचैन हो उठे थे. ‘आखिर इस ने इतना गलत भी तो नहीं कहा,’ उन्होंने मन ही मन सोचा. इतने में कौलबैल बजी. मंजरी ने रूमसर्विस को अटैंड किया. गरमागरम मनपसंद नाश्ता आ चुका था.

‘‘सौरी, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी. चलिए, नाश्ता कर लीजिए,’’ मंजरी ने पीछे से उन के गले में बांहें डाल कर और उन का चश्मा उतारते हुए कहा. फिर खिलखिला कर हंस दी. दिवाकर की यह सब से बड़ी कमजोरी है. वे शुरू से मंजरी की निश्छल और उन्मुक्त हंसी के कायल हैं. जब वह उन्मुक्त हो कर हंसती है तो उस का चेहरा और भी प्रफुल्लित, और भी गुलाबी हो उठता है. वे उस से कहते भी हैं, ‘तुम्हारी जैसी खिलखिलाहट सब को मिले.’

‘‘आज कहां घूमने चलना है नाथूला या खाचोट पलरी झील? बारिश बंद होने को है,’’ दिवाकर ने नाश्ता खत्म होतेहोते पूछा. मंजरी ने बाहर देखा तो बारिश लगभग रुक चुकी थी. बादलों और सूरज के बीच लुकाछिपी का खेल चल रहा था.

‘‘नाथूला ही चलते हैं. पिछली बार जब गए थे तो कितना मजा आया था. रियली, इट वाज एडवैंचरस वन,’’ कहतेकहते मंजरी एकदम रोमांचित हो गई.

‘‘जैसा तुम कहो,’’ दिवाकर ने कहा. हालांकि उन को मालूम था कि उन के ट्रैवल एजेंट ने उन के आज ही नाथूला जाने के लिए आवश्यक खानापूर्ति कर रखी है.

‘‘अब तक नाराज हो, लो अपनी नाराजगी पानी के साथ गटक जाओ,’’ मंजरी ने पानी का गिलास उन की ओर बढ़ाते हुए कहा और फिर हंस दी. उन दोनों के बीच यह अच्छी बात है कि कोई जब किसी से रूठता है तो दूसरा उस को अपनी नाराजगीपानी के साथ इसी तरह गटक जाने के लिए कहता है और वातावरण फिर सामान्य हो जाता है.

टैक्सी में बैठते ही दोनों हनीमून पर आए अपनी पिछली नाथूला यात्रा की स्मृतियों को ताजा करने लगे.

वास्तव में हुआ यह था कि नाथूला जा कर वापस लौटने में जोरदार बारिश शुरू हो गई थी और रास्ता बुरी तरह जाम. जो जहां था वहीं ठहर गया था. फिर जो हुआ वह रहस्य, रोमांच व खौफ की अवस्मरणीय कहानी है जो उन्हें आज भी न केवल डराती है बल्कि आनंद भी देती है.

क्या थी सलोनी की सच्चाई: भाग 3

सलोनी ने अनिल को फोन करके बुलाया , बताया कि वह प्रेग्नेंट है ” अनिल भी हड़बड़ा गया , बोला ,” सलोनी , तुम एबॉर्शन ही करवा लो  मैं तो तुम्हारी हेल्प नहीं कर पाउँगा ” इतने में ही मुकेश ने खबर दी , कि वह पंद्रह दिन बाद आ जायेगा , पूरे एक महीने की छुट्टी सलोनी का दिल और बुझ गया  कसबे के बाहर एक मशहूर मंदिर था , दोनी इस मंदिर के दर्शन करने खूब आते थे , आज जब सलोनी का दिल दुखी था , वह यूँ ही उस मंदिर में जाकर बैठ गयी , घंटों भूखी प्यासी बैठी रही , वहां के पंडित जयदेव ने देखा तो उसे पीछे बने अपने कमरे में ले गए , पूछा , ”क्या हुआ , सलोनी , क्यों ऐसे सुबह से बैठी हो ?”

सलोनी ने पंडित जी से सोची समझी रणनीति से अपना दुःख बाँट लिया,” पंडित जी , भूल हो गयी मुझसे , मैं  अपने प्राण  देना चाहती हूँ , मुकेश यहाँ नहीं है और मैं गर्भवती हूँ ”

जयदेव का मन खिल उठा , बाहर से गंभीर स्वर में बोला ,” पहले तुम कुछ दिन यहाँ आराम करो , मैं अकेला ही रहता हूँ  मन शांत हो जाए तो बात करेंगें  चिंता मत करो , अब तुम भगवान् के घर बैठी हो , सब ठीक ही होगा ” सलोनी ने जैसा सोचा था , वैसा ही हुआ , वह कुछ दिन लगातार उदास सी जयदेव के पास आती रही , आने वाले समय में उसे जयदेव की जरुरत पड़ सकती थी क्योकि वह यह बिलकुल नहीं चाहती थी कि मुकेश उससे नाराज होकर उससे रिश्ता तोड़ ले , जयदेव ढोंगी पंडित था , सलोनी को मीठी  मीठी बातें करके तसल्ली देता , वह यह नहीं जानता था कि सलोनी ऐसा होने दे रही है , सलोनी ने उसे सम्बन्ध भी बनाने दिए तो जयदेव ऐसे खुश हो गया कि जैसे उसकी लाटरी निकल आयी हो , सलोनी जैसी सुंदरी उससे रिश्ता जोड़ रही है , वह तो खिल उठा सलोनी घर जाती , थोड़ी देर आराम करती , खाना पीना तो जयदेव के भक्तों से ही इतना आ जाता कि जयदेव उसे घर भी खाना देकर ही भेजता सलोनी समय निकालकर पीर बाबा , शौकत मियां के पास भी पहुँच गयी , वहां भी उसने वैसे ही किया जैसे जयदेव के साथ किया था , शौकत मियां को तो उसने घर ही बुला लिया क्योकि शौकत जहाँ रहता था , वहां लोगों का आना जाना बहुत रहता । अब जयदेव और शौकत उसकी मुट्ठी में थे , अब उसकी चिंता कम  हो गयी थी  सलोनी ने जयदेव और शौकत को यह भरोसा दे दिया कि मुकेश के आने के बाद और बच्चा होने के बाद भी वह उन दोनों से हमेशा सम्बन्ध रखेगी , बस , मुकेश के सामने वे कुछ ऐसी बात करें कि सब ठीक रहे  दोनों को एक भरपूर जवान , सुंदर लड़की का साथ मिल रहा था , दोनों ने सलोनी को पूरी मदद करने का भरोसा दिलाया

मुकेश आ गया , सलोनी हमेशा की तरह उसकी बाहों में लिपट गयी , मुकेश सलोनी के पेट के उभार पर बहुत हैरान हुआ , चौंक कर पूछा, अरे , यह मुझे क्यों नहीं बताया ?”

सलोनी ने शर्माते हुए कहा , ” तुम्हे सरप्राइज देना था’

”कितने दिन हुए ?”

सलोनी ने कहा ,” चौथा महीना ”

” पर मैं तो इस बार ज्यादा समय बाद आया हूँ , ” मुकेश हिसाब लगाने लगा , तो सलोनी ने पूरे कॉन्फिडेंस  से कहा , क्या हिसाब लगा रहे हो ? बस , खुश होने की बात है , खुश हो जाओ ”

मुकेश के माथे पर बल पड़े , इतने में जयदेव  ने दरवाजा नॉक किया , माहौल की गंभीरता समझी , मुकेश उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेने लगा ,” अरे , पंडित जी , आप ? यहाँ ?”

”हाँ , यहाँ से निकल रहा था कि सोचा देख लूँ , सलोनी ठीक तो है , मुकेश , इतनी बड़ी भगवान् की पूजा करने वाली भक्त पत्नी मिली है , तुम बहुत किस्मत वाले हो , मुकेश  पर बात क्या है ?”

मुकेश ने अपने मन की दुविधा जयदेव को बता दी क्योकि उसके हिसाब से पंडित जी तो भगवान् का सबसे बड़ा रूप थे , और वे उसकी सब प्रॉब्लम दूर कर सकते थे , जयदेव का कहा तो मुकेश के लिए ईश्वर की आवाज़ थी , जयदेव ने शांत स्वर में कहा ,” बेटा , यह सब ईश्वर की लीला है , अपनी देवी सामान पत्नी पर भूल कर भी शक मत करना , रोज दर्शन के लिए मंदिर आती , सत्संग सुनती है , कौन अपना इतना समय आजकल ईश्वर की भक्ति में लगाता है ? आने वाला बच्चा ईश्वर का प्रसाद है , खुश होकर इसका स्वागत करो , बेटा ।” सलोनी जितना भोला चेहरा इस बीच बना सकती थी , बनाकर अपने झूठे आंसू पोंछती रही . जयदेव सलोनी की तरफ बदमाशी से देख कर मुस्कुराता हुआ चला गया. मुकेश सर पकड़कर बैठा था , सलोनी ने उसके लिए खाना तैयार किया , वह चुप ही रहा , इतने में शौकत मियां आ गए , बाहर से ही आवाज दी , ” मुकेश , कैसे हो ? ठीक तो हो ?”

मुकेश ने उनका स्वागत करते हुए पूछा ,” आपको   कैसे पता , बाबा ,कि मैं आ गया हूँ ”

”कल सलोनी आयी थी , तुम्हारे लिए दुआएं करवाने और यह ख़ुशी बताने कि तुम पिता बनने वाले हो ”

मुकेश के चेहरे पर तनाव छाया , शौकत ने कारण पूछा तो मुकेश ने  उसे भी अपनी शंका बता दी , शौकत ने कानो पर हाथ लगाकर ऊपर देख कर माफ़ी मांगी ,” अरे , बच्चा तो अल्लाह की देन है , सलोनी जैसी बीबी पर शक कर रहे हो ? कैसा गुनाह कर रहे हो ? तुम  अल्लाह के चमत्कार के बारे में जानते नहीं ? वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है.”

धर्मभीरु मुकेश के मुँह पर हवाइयां उड़ने लगी , कुछ समझ नहीं पाया कि क्या वही सलोनी पर शक करके गलती कर रहा है , पहले जयदेव और अब पीर बाबा , जिन पर वह आँख मूँद कर भरोसा कर सकता है , वे दोनों गलत तो नहीं हो सकते , वे दोनों तो भगवान् का रूप हैं , उसने सलोनी पर नजर डाली , नहीं , मासूम सा चेहरा ऐसे उसे धोखा तो नहीं दे सकता , पर इतने महीनो का गर्भ ? मुकेश की जुबान जयदेव और पीर बाबा तो बंद कर ही गए थे , वह कुछ बोल ही नहीं पाया , सर पकड़कर सलोनी के भोले चेहरे को देखता  रह गया.सलोनी सर नीचे किये बैठ गयी , उसके चेहरे पर छायी एक कुटिल हंसी मुकेश को दिख  ही नहीं पायी. मुकेश जयदेव और शौकत की बातों के जवाब में चुप रहने के अलावा कुछ कर ही नहीं सका.

 

डीपफेक मजेदार लेकिन खतरनाक

कुछ दिनों पहले ‘पुष्पा’ फेम साउथ की जानीमानी ऐक्ट्रैस रश्मिका मंदाना की एक वीडियो वायरल हुई, जिस में वह एक लिफ्ट में घुसती है. वीडियो में रश्मिका ने बोल्ड एंड रिवीलिंग ब्लैक टौप पहनी हुई थी. यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब घूमती रही, लोगों ने इसे असल समझ पर यह फेक वीडियो थी, जिस का क्लैरिफिकेशन खुद रश्मिका ने बाद में किया.

इस वीडियो को डीपफेक टैक्नोलौजी के माध्यम से बनाया गया था. इस से पहले भी बौलीवुड अभिनेत्री कैटरीना कैफ, काजोल देवगन और आलिया भट्ट की भद्दी तसवीरें डीपफेक का सहारा ले कर बनाई जा चुकी हैं.

डीपफेक जितना मजेदार दिखता है उतना ही खतरनाक भी है. अभी तो शख्सियतों को ही निशाना बनाया जा रहा है लेकिन वे दिन दूर नहीं जब लोग बदला लेने, खिंचाई करने के लिए एकदूसरे को निशाना बनाएंगे. डीपफेक साइबर बुलिंग को और बढ़ावा दे रहा है और आने वाले वक्त में यह निजी सिक्योरिटी के लिए बेशक थ्रेट साबित होने वाला है.

एआई का बढ़ता इस्तेमाल इस परेशानी को और बढ़ाता जा रहा है, जिस का इस्तेमाल सही और गलत दोनों ही तरह से किया जा रहा है. असामाजिक तत्त्व इस का भरपूर फायदा उठा रहे हैं और इस तरह के डीपफेक फोटोज बना कर वायरल कर रहे हैं. ये अधिकतर सैलेब्स से जुड़ी होती हैं, इसलिए बड़ी तेजी से वायरल भी हो जाती हैं.

वायरल हुई इन फोटोज और वीडियोज में रश्मिका के बाद काजोल, कैटरीना, सारा तेंदुलकर और टीवी कलाकार जन्नत जुबैर व अनुष्का सेन शामिल हैं. अधिकतर महिलाओं से जुड़े डीपफेक होते हैं.

आलिया की डीपफेक वीडियो में उसे वल्गर तरीके से बैठा दिखाया गया तो रश्मिका को सैक्सी बौडी फ्लौंट करते दिखाया गया. वहीं कैटरीना के ‘टाइगर’ मूवी के टौवेल सीन को ओवरएक्पोज कर दिया गया तो तेंदुलकर की बेटी सारा तेंदुलकर की एक तसवीर, जिस में वह अपने भाई के साथ थी, को एडिट कर के किसी और की तसवीर लगा दी गई, जोकि सारा के रूमर्ड बौयफ्रैंड शुभन गिल की बताई जा रही थी.

डीपफेक है क्या ?

डीपफेक तकनीक से आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का इस्तेमाल कर चेहरे पर चेहरे लगाए जा सकते हैं और आपस में इन्हें बदला जा सकता है. यह काम आसान नहीं है, इस में खासा वक्त लगता है, क्योंकि जिस शख्स का चेहरा लगाना होता है उस से मिलतेजुलते हजारों फोटोज, वीडियोज को एआई प्रोग्राम की मदद से खंगाला जाता है. फिर बेहद समान और मिलतेजुलते चेहरों को तलाशा जाता है. इस के बाद टैक्नोलौजी की सहायता से कंप्रेस्ड कर के इमेज तैयार की जाती है.

फिर इस के बाद एआई तकनीक ‘डीकोडर’ से चेहरा तलाशने को कहा जाता है. तब कहीं जा कर डीपफेक वीडियो तैयार होती हैं. यही वजह है कि इन्हें तैयार करने वाले ऐसे चेहरों को ढूंढ़ते हैं जो पहले से ही फेमस हों ताकि फोटोज और वीडियोज का वायरल होना आसान हो. यानी, इस काम में जो लगे हैं वो हाईली ट्रैंड स्किलफुल लोग हैं और ऐसा वे सिर्फ शौकिया तौर पर नहीं, बल्कि सोचसमझ कर कर रहे हैं.

क्या कहता है कानून

रश्मिका मंदाना के डीपफेक वीडियो के सामने आने के बाद अभिनेता अमिताभ बच्चन ने अपने ट्विटर अब ‘एक्स’ हैंडल पर पोस्ट डाल कर विरोध जताया और कानूनी कार्रवाई की मांग की. तब सैंटर इलैक्ट्रौनिक्स और टैक्नोलौजी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस वीडियो को ले कर कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इंटरनैट का इस्तेमाल कर रहे सभी डिजिटल नागरिकों की सुरक्षा और भरोसे को कभी टूटने न देगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डीपफेक पर फिक्र जताई थी. हालांकि, इस के बाद भी कई और मामले देखने को मिले.

इस के बाद आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव डीपफेक पर 10 दिनों में कानून बनाने की बात कहते दिखाई दिए. वहीं केंद्रीय इलैक्ट्रौनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने 24 नवंबर, 2023 को डीपफेक की निगरानी के लिए एक अधिकारी को नियुक्त करने की बात कही जो कि डीपफेक से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज कराने में आम लोगों की मदद करेगा.

डीपफेक में पकड़े जाने पर क्या कहते हैं नियम ?

आईटी एक्ट 2000 के सैक्शन 66 ई के तहत बिना इजाजत किसी की फोटो और वीडियो एडिट करने पर 3 साल की सजा और 2 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है. यह प्राइवेसी के उल्लंघन पर आधारित है. इस में किसी की पर्सनल फोटो बिना इजाजत कैप्चर करने, उसे शेयर करने के आरोप के तहत कार्रवाई हो सकती है.

आईटी एक्ट सैक्शन 67 के तहत सौफ्टवेयर या किसी अन्य इलैक्ट्रौनिक तरीके से किसी की अश्लील फोटो को बनाने और उसे शेयर करने पर 3 साल की जेल और 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. ऐसा बारबार करने पर 5 साल जेल और 10 लाख रुपए जुर्माना देना पड़ सकता है.

डीपफेक के मामले में आईपीसी के सैक्सन 66ष्ट, 66श्व और 67 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इस में आईपीसी की धारा 153 और 295 के तहत मुकदमा दर्ज कर के कार्रवाई की जा सकती है.

सबकुछ होते हुए भी कानून और पुलिस की देरी इस समस्या को किस हद तक रोकने में कामयाब होगी, यह तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल तो डीपफेक डिजिटल और सोशल मीडिया के यूजर्स के लिए भविष्य में एक थ्रेट साबित होगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.

क्या लीवर ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ जीवन जिया जा सकता हैं ?

शरीर के अनेक हड्डी रहित अतिमहत्त्वपूर्ण अंगों में से एक लीवर होता है. इसे यकृत और जिगर भी कहते हैं. स्पंज जैसा नाजुक यह अंग खराब हो जाए तो पूरे शरीर की सेहत पर असर पड़ता है. लीवर की समस्या किसी को किसी भी उम्र में हो सकती है. बच्चों में यह बीमारी जीन और एंजाइम डिफैक्ट की वजह से होती है. आमतौर पर लीवर की समस्या के पीछे हमारा रहनसहन और खानपान होता है. ज्यादा शराब पीने और लंबे समय तक शराब पीने से लिवर खराब हो जाता है. लीवर की बीमारी का समय पर इलाज न हो तो यह गंभीर समस्या बन सकती है. ऐसी स्थिति में लीवर के ट्रांसप्लांट यानी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है. यहां लिवर ट्रांसप्लांट के बारे में विस्तार से वर्णन किया जा रहा है.

लीवर प्रत्यारोपण ऐसी सर्जरी होती है जिस में रोगग्रस्त लिवर को निकाल कर स्वस्थ लिवर लगाया जाता है. यह सर्जरी 40 वर्षों से हो रही है. अत्याधुनिक तकनीक से अब यह अधिक सुरक्षित है. लिवर प्रत्यारोपण कराने वाले अधिकतर लोग स्वस्थ व सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

वयस्कों में लिवर प्रत्यारोपण की सब से आम वजह होती है सिरोसिस. सिरोसिस जैसी समस्या लिवर में कई तरह की खराबियों के चलते होती है, जो उस की स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट कर उन की जगह खराब कोशिकाओं को बढ़ाती है. सिरोसिस की वजह हेपेटाइटिस बी और सी जैसे वायरस, शराब, औटोइम्यून लीवर बीमारी, लिवर में वसा का जमा होना और लिवर की आनुवंशिकी बीमारियां होती हैं.

बच्चों में लीवर प्रत्यारोपण की सब से आम वजह होती है बायलियरी एट्रिसिया. इस बीमारी में लिवर से बाइल बाहर ले जाने वाली ट्यूब, जिसे बाइल डक्ट कहते हैं, या तो समाप्त हो जाती है या फिर खराब हो जाती है, और औब्सट्रक्टेड बाइल से सिरोसिस होता है. बाइल भोजन को पचाने में मदद करता है. इस की अन्य सामान्य वजहों में से ज्यादातर आनुवंशिकी, मेटाबौलिक लीवर बीमारियां और हेपेटाइटिस ए जैसे वायरल इन्फैक्शन की वजह से एक्यूट लिवर फेलियर हो सकता है.

प्रत्यारोपण के लिए अन्य वजह लिवर का कैंसर या बड़ा बेनिन लिवर ट्यूमर हो सकता है.

जरूरत है या नहीं

डाक्टर तय करेगा कि आप को लिवर प्रत्यारोपण करने वाले अस्पताल जाना चाहिए या नहीं. आप लिवर प्रत्यारोपण करने वाली टीम से मिलेंगे. हिपैटोलौजिस्ट या सर्जन ब्लड टैस्ट और रेडियोलौजिकल टैस्टों के आधार पर आप के लिवर को हुए नुकसान का आकलन करेगा.

प्रत्यारोपण टीम ब्लड टैस्ट, एक्सरे और अन्य टैस्ट कराएगी, जिस से डाक्टर यह फैसला कर सकेंगे कि आप को प्रत्यारोपण की जरूरत है या नहीं, या फिर, प्रत्यारोपण सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है या नहीं.

आप के स्वास्थ्य के अन्य पहलू, जैसे हृदय, फेफड़े, गुरदे, इम्यून सिस्टम और मानसिक स्वास्थ्य की भी जांच की जाएगी कि आप का शरीर सर्जरी के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम है भी या नहीं.

कहां से, किस से मिलेगा लीवर

पूरा लीवर उन लोगों से मिलता है जिन की कुछ ही समय पहले मृत्यु हुई हो. इस प्रकार के डोनर को कैडावेरिक डोनर कहते हैं. कभीकभार एक स्वस्थ व्यक्ति भी अपने लीवर का एक हिस्सा किसी खास व्यक्ति को दान कर सकता है. इस प्रकार के डोनर को लिविंग डोनर कहते हैं.

भारत में ज्यादातर मामले ऐसे होते हैं जिन में रोगी के संबंधी अपने लिवर का हिस्सा दान देते हैं. हमारे देश में कैडावेरिक अंगों के दान के मामले बहुत कम होते हैं.

सभी जीवित डोनर और दान में दिए गए लिवरों की प्रत्यारोपण सर्जरी से पहले जांच की जाती है. जांच से यह तय किया जाता है कि लिवर बिलकुल स्वस्थ है या नहीं, ब्लड टाइप मिलता है या नहीं और सही आकार का है या नहीं, ताकि शरीर में उस के काम करने की संभावना अधिक हो.

अस्पताल में क्या होता है ?

जब कोई लीवर उपलब्ध होगा, तो आप को सर्जरी के लिए तैयार किया जाएगा. अगर आप का नया लिवर जीवित डोनर का है, तो आप दोनों एक ही समय में सर्जरी में होंगे. अगर आप का लीवर किसी ऐसे व्यक्ति से लिया गया है जिस का मस्तिष्क मर चुका है (कैडावेरिक डोनर है), तो आप की सर्जरी तब शुरू होगी जब नया लिवर अस्पताल में पहुंच जाएगा.

सर्जरी में 9 से 14 घंटे तक लग सकते हैं. सर्जन आप के बीमार लीवर को बाहर निकालने से पहले उसे आप की बाइल डक्ट और ब्लड वैसल से अलग कर देगा. आप के लीवर में पहुंचने वाले रक्त को रोक दिया जाएगा या फिर मशीन के जरिए आप के शरीर के बाकी हिस्से में पहुंचाया जाएगा. इस के बाद सर्जन स्वस्थ लिवर को आप के शरीर में रखेगा और फिर उसे आप की बाइल डक्ट और ब्लड वैसल से जोड़ेगा. इस के बाद आप के शरीर का रक्त नए लिवर से हो कर गुजरेगा.

सर्जरी के बाद आप को औसतन 2 से 3 सप्ताह तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है. आप का शरीर नए लिवर को खारिज न करे और इस से कोई संक्रमण न हो, इस के लिए आप को दवाएं लेनी पड़ेंगी. डाक्टर ब्लीडिंग, संक्रमण, रिजैक्शन और बाइल डक्ट व ब्लड वैसल से जुड़ी अन्य जटिलताओं की जांच करेगा. छोटे शिशुओं में वैस्कुलर समस्याएं कुछ ज्यादा आम होती हैं.

अस्पताल में आप धीरेधीरे खाना शुरू कर देंगे. आप को पहले साफ पेय पदार्थों से शुरुआत करनी होगी. जब आप का नया लिवर काम करना शुरू कर देगा, तो आप ठोस भोजन का सेवन कर सकेंगे.

प्रत्यारोपण के बाद

लीवर प्रत्यारोपण के बाद मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है. लेकिन मरीज को अकसर अपने डाक्टर से मिलना होगा, जो यह तय करेगा कि आप का लिवर ठीक काम कर रहा है या नहीं. आप को नियमित तौर पर ब्लड टैस्ट और अल्ट्रासाउंड कराने होंगे, जिस से यह पता चल सके कि आप का नया लिवर सही काम कर रहा है और दवाओं का कोई साइड इफैक्ट नहीं हो रहा है.

अब आप को बीमार लोगों से दूरी बनानी होगी और खुद को कोई भी बीमारी होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना होगा. आप को स्वस्थ आहार खाना होगा, व्यायाम करने होंगे और शराब से परहेज करना होगा, विशेषतौर पर अगर आप का लिवर खराब होने की वजह शराब रही थी.

आप को दवाएं तभी लेनी चाहिए जब आप का डाक्टर कहे कि वे आप के लिए सुरक्षित हैं. इन में वे दवाएं भी शामिल हैं जिन्हें खरीदने के लिए आप को किसी डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की जरूरत नहीं होती है. यह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है कि आप अपने डाक्टर द्वारा सु झाई गई हर सलाह पर अमल करें.

लिवर के सफल प्रत्यारोपण के बाद ज्यादातर लोग अपनी सामान्य दैनिक दिनचर्या शुरू कर देते हैं. हालांकि, आप की पूरी शारीरिक ताकत लौटने में समय लगेगा लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप प्रत्यारोपण से पहले कितने बीमार थे.

आप को अपने डाक्टर से पूछना होगा कि आप को रिकवर होने में कितना समय लगेगा. सामाजिक कार्यकर्ता और सपोर्ट गु्रप आप को एक लिवर के साथ जीवन से तालमेल बैठाने में मदद करेंगे.

काम : रिकवरी के बाद ज्यादातर लोग अपने काम पर लौटने में सक्षम होते हैं. बच्चे भी प्रत्यारोपण के 3 महीने बाद स्कूल जाना शुरू कर देते हैं.

आहार : ज्यादातर लोग खानपान की अपनी पुरानी आदतें भी अपना लेते हैं. आप को कच्ची सब्जियां, सलाद और खुले में रखे कटे फल खाने से परहेज करना होेगा. कुछ दवाओं से आप का वजन बढ़ सकता है, जबकि कुछ से आप को डायबिटीज हो सकती है या फिर आप के कोलैस्ट्रौल का स्तर बढ़ सकता है. भोजन की योजना और संतुलित आहार से आप को स्वस्थ रहने में मदद मिलेगी.

व्यायाम : ज्यादातर लोग सफल लिवर प्रत्यारोपण के बाद शारीरिक गतिविधि कर सकते हैं, हालांकि सर्जरी के बाद के शुरुआती 3 महीने तक कठिन शारीरिक गतिविधि से परहेज करना चाहिए.

सैक्स : लिवर प्रत्यारोपण के बाद ज्यादातर लोग सामान्य सैक्स जीवन व्यतीत कर सकते हैं. महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे प्रत्यारोपण के एक साल तक गर्भधारण न करें. आप को अपनी प्रत्यारोपण टीम से प्रत्यारोपण के बाद सैक्स और गर्भधारण के बारे में जरूर बात करनी चाहिए.

डा. नीलम मोहन

(लेखक गुरुग्राम स्थित मेदांता- द मैडिसिटी हौस्पिटल के पैडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलौजी, हिपेटोलौजी व लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक हैं.)       

मेरी बेटी मुझसे नाराज है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 43 वर्ष है. मैं कामकाजी महिला हूं. मेरी 17 वर्षीया बेटी और मेरे बीच संबंध दिनबदिन बिगड़ते जा रहे हैं. बात उस के एक रात अपनी सहेली के साथ नाइटआउट पर जाने से शुरू हुई थी जिस के लिए मैं ने मना कर दिया था. उस के बाद से ही उस का व्यवहार मेरे प्रति बिगड़ता जा रहा है. मुझे पिछले महीने काम के सिलसिले में भोपाल जाना पड़ा. जिस दिन मुझे भोपाल के लिए निकलना था उसी दिन उस के स्कूल का फेयरवैल था. उसे मेरी जरुरत थी और उस वक्त मैं उस के साथ नहीं थी. यह मुझे भी खटकता है पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह मुझ से हमेशा ही गुस्सा रहे. मुझे कभीकभी समझ नहीं आता आखिर करूं तो करूं क्या. कुछ सुझाव दीजिए.

जवाब

आप की बेटी उम्र के जिस पड़ाव में है उस में अकसर बच्चे मातापिता के लिए ऐसी धारणाएं बना लेते हैं. आप अपनी जगह गलत नहीं हैं और यह बात आप को अपनी बेटी को भी समझानी चाहिए. हो सकता है उस के दिनबदिन बदलते व्यवहार का कारण उस पर पड़ने वाला फ्यूचर का प्रैशर हो या कोई अन्य परेशानी. इस उम्र में बच्चे अकसर रिलेशनशिप, फ्रैंडशिप और कैरियर के बीच उलझे हुए होते हैं. उन्हें इस वक्त किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है जो उन्हें समझ सके, और समझा सके. आप उस के लिए वह व्यक्ति बनिए और उसे समझिए. आप दोस्त बनें, बौस नहीं. हो यह भी सकता है कि वह असल में आप से गुस्सा न हो या कट न रही हो, बस अंदर ही अंदर किसी चीज को ले कर दुखी हो. उस से बात कीजिए. यकीनन ही आप दोनों का रिश्ता पहले जैसा ठीक हो जाएगा.

Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी – भाग 2

एग्जाम के बाद रिजल्ट आया तो उस के साथसाथ वह भी प्रथम आया था. मौका मिला तो उस ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो. किसी कारण अब तक मुंह से कुछ नहीं कह पाई हो. मगर अब तो स्वीकार कर लो.’ अब वह अपने दिल की बात उस से छिपा न सकी. मोहब्बत का इजहार कर दिया. साथ में यह भी कह दिया, ‘जब तुम्हें नौकरी मिल जाए तो शादी का रिश्ता ले कर मेरे घर आ जाना. तब तक मैं भी कोई न कोई जौब ढूंढ़ लूंगी.’’

अमरेश उस की बात से सहमत हो गया. एक वर्ष तक उन की मुलाकात न हो सकी. कई बार फोन पर बात हुई. हर बार उस ने यही कहा, ‘मिताली, अभी नौकरी नहीं मिली है. जल्दी मिल जाएगी. तब तक तुम्हें मेरा इंतजार करना ही होगा.’

एक दिन अचानक फोन पर उस ने बताया कि उसे कोलकाता में बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. उसे जौब मिल गई थी. मिताली को नहीं मिली थी. उस ने कहा, ‘जब तक मुझे जौब नहीं मिलेगी, शादी नहीं करूंगी.’ अमरेश ने उस की एक नहीं सुनी, कहा, ‘तुम्हें नौकरी की जरूरत क्या है? मुझ पर भरोसा रखो. तुम मेरे घर और दिल में रानी की तरह राज करोगी.’

वह अमरेश को अथाह प्यार करती थी. उस पर भरोसा करना ही पड़ा. जौब करने का इरादा छोड़ कर उस से शादी कर ली. अमरेश के परिवार में मातापिता के अलावा एक बहन और 2 भाई थे. विवाह के बाद अमरेश उसे कोलकाता ले आया. पार्कस्ट्रीट में उस ने किराए पर छोटा सा फ्लैट ले रखा था.

अमरेश उसे बहुत प्यार करता था. उस की छोटीछोटी जरूरत पर भी ध्यान देता था. छुट्टियों में किचन में उस का सहयोग भी करता था. प्यार करने वाला पति पा कर मिताली जिंदगी से नाज कर उठी थी. 3 वर्ष कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बन गई. दोनों ने उस का नाम सुमित रखा था.

मिताली एक बच्चे की मां थी. बावजूद इस के उस का प्यार पहले जैसा अटल और गहरा था. अमरेश उसे टूट कर चाहता था, ठीक उसी तरह जिस तरह वह उसे बेहिसाब प्यार करती थी. सपने में भी उस से अलग होने की कल्पना नहीं करती थी. वह सोया हो या जाग रहा हो, हमेशा उस के चेहरे को देखा करती थी. मोहब्बत से भरपूर एक सुंदर चेहरा. उसी चेहरे में उसे अपना भविष्य नजर आता था. यह दुनिया नजर आती थी. बच्चे नजर आते थे. हर तरफ खुशी नजर आती थी.

3 वर्षों बाद अमरेश से कुछ दिनों के लिए अलग होने की बात हुई तो उस का दिल बैठ सा गया. यह सोच कर वह चिंता में पड़ गई कि उस के बिना कैसे रहेगी? हुआ यों कि एक दिन अमरेश ने औफिस से आते ही कहा, ‘आज मेरा सपना पूरा हो गया.’

‘कौन सा सपना?’

‘दुबई जा कर ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. इस के लिए 2 साल से प्रयास कर रहा था. आज सफल हो गया. वहां एक बहुत बड़ी कंपनी में जौब मिल गई है. 10 दिनों बाद चला जाऊंगा. कुछ महीने के बाद तुम्हें तथा सुमित को भी वहां बुला लूंगा.’

जहां इस बात की खुशी हुई कि अमरेश का सपना पूरा होने जा रहा था, वहीं उस से अलग रहने की कल्पना से दुखी हो गई थी मिताली. शादी के बाद कभी भी वह उस से अलग नहीं हुई थी. दुबई जाने से रोक नहीं सकती थी, क्योंकि वहां जा कर ढेर सारा रुपया कमाना उस का सपना था. सो, उस ने अपने दिल को समझा लिया.

दुबई से अमरेश रोज फोन करता था. कहता था कि उस के और सुमित के बिना उस का मन नहीं लग रहा है. जल्दी ही उन दोनों को बुला लेगा. कोलकाता में उसे 20 हजार रुपए मिलते थे, दुबई से वह 50 हजार रुपए भेजने लगा.

अपने समय पर मिताली पहले से अधिक इतराने लगी थी. उसे अमरेश के हाथों में अपना और सुमित का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था. एक वर्ष बीत गया. इस बीच अमरेश ने उन्हें दुबई नहीं बुलाया. बराबर कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया करता था.

एक दिन अचानक कोलकाता आ कर सरप्राइज दिया. बताया कि 15 दिन की छुट्टी पर वह इंडिया आया है.

उस ने कहा, ‘अब तक दुबई इसलिए नहीं बुलाया कि वहां अकेले रहना पड़ता. बात यह है कि कंपनी के काम से मुझे बराबर एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता है. कभीकभी तो घर पर 2 महीने बाद लौटता हूं.

‘ऐसे में अकेली औरत देख कर मनचले तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते थे. मैं चाहता हूं कि सुमित के साथ तुम कोलकाता में ही रहो और अच्छी तरह उस की परवरिश करो.’ वह चुप रही. कुछ भी कहते नहीं बना.

15 दिनों बाद अमरेश दुबई लौट गया. इतने दिनों में ही उस ने पूरे सालभर का प्यार दे दिया था. मिताली उस का अथाह प्यार पा कर गदगद हो गई थी. पार्कस्ट्रीट में ही अमरेश ने उस के नाम फ्लैट खरीद दिया था. अगले 3 वर्षों तक सबकुछ आराम से चला. अमरेश वर्ष में एक बार 10 या 15 दिनों के लिए आता था. उसे अपने प्यार से नहला कर दुबई लौट जाता था.

कालांतर में वह यह चाहने लगी थी कि दुबई की नौकरी छोड़ कर अमरेश कोलकाता में उन के साथ रहे और बिजनैस करे. तीसरे वर्ष अमरेश दुबई से आया तो उस ने उस से अपने दिल की बात कह दी. वह नहीं माना. वह कम से कम 10-15 वर्षों तक वहीं रहना चाहता था.

फिर तो चाह कर भी वह अमरेश को कुछ समझाबुझा नहीं सकी. फायदा कुछ होने वाला नहीं था. उस पर दुबई में अकेले ही रहने का जनून सवार था. उस के दुबई लौट जाने के 2 महीने बाद ही स्वाति का फोन आया था और अब वह मुंबई में थी.

सरिता : मुन्ना को किस बात की चिंता हो रही थी ? – भाग 2

मैं और बाबूजी दीदी और प्रियांशु को ले कर वहां गए थे. एक बड़ा सा मठ था वह, पुराना सा मंदिर जिस के महंत ने जीजाजी को अपना शिष्य बनाया था. बाबूजी ने बहुत समझया था, उस महंत के पांव भी पकड़ लिए थे कि वह जीजाजी को आजाद कर दे पर जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो कोई क्या करे. उसे तो बैठेबिठाए चेले के रूप में एक मुफ्त का नौकर मिल रहा था.

जीजाजी तो बस एक ही रट लगाए थे कि वह बुद्ध की तरह सत्य की खोज में निकले हैं. अब माया के बंधन में नहीं फंस सकते. महंत भी पिताजी को समझने लगा कि जो माया के बंधनों को तोड़ कर निकल आया हो फिर उसे माया की तरफ खींचना पाप है. हां, अगर इस की पत्नी भी चाहे तो साध्वी बन कर यहीं रह सकती है.

उस की बातों से मुझे घृणा सी हो गई थी. मैं ने जीजाजी से पूछा था, ‘जीजाजी, एक बात बताएंगे, आप दुनिया से अलग तो हो रहे हैं लेकिन खाएंगे क्या… इसी दुनिया का अन्न न. आप के ये गुरु पानी किस का पीते हैं… इसी दुनिया का या किसी और संसार से आता है इन के पीने के लिए. अरे, क्या ईश्वर भी तलाशने की कोई चीज है? क्या ईश्वर कोई वस्तु है, जिसे आप खोजने जा रहे हैं? वह तो इनसान के कर्म में, उस की चेतना में, जनजन में समाया है, फिर उसे खोजना क्या… क्यों, इन ढोंगी परजीवियों के जाल में फंस कर आप अपनी गृहस्थी तबाह कर रहे हैं. इस छोटे से बच्चे, अपने व्यथित बूढे़ बाप को छोड़ कर आप को कहीं और ईश्वर नजर आ रहा है क्या? इतने पर भी समझ नहीं है आप को कि यह दीदी को भी यहीं रहने के लिए कह रहा है.’

पर उन्हें तो न समझना था, न समझे. उलटे वह महंत और उस के चेले हम से लड़ने के लिए तैयार हो गए. मैं तो शायद लड़ भी पड़ता, लेकिन दीदी ने मुझे रोक दिया. उन्होंने मुझे पकड़ते हुए बाबूजी से कहा, ‘चलिए, बाबूजी, इन्हें जो खोजना है खोजें. मैं इन्हें नहीं रोकूंगी. वैसे भी बांध कर तो गृहस्थी की गाड़ी नहीं चल सकती न.’

फिर हम लोग लौट आए. तब बाबूजी ने दीदी को अपनी बांहों में ले कर रोते हुए कहा था, ‘चल बेटा, घर चल… अब क्या है तुम्हारे लिए यहां, चल, मां के पास रहेगी तो शायद तेरा दुख भी कुछ कम हो जाएगा.’

‘बाबूजी, आप ने मुझे कभी कायरता का पाठ तो नहीं पढ़ाया था, फिर आज क्यों?’

उस परिस्थिति में भी दीदी के स्वर में छिपी दृढ़ता देख कर हम दोनों चौंक गए थे.

‘बाबूजी, उन्होंने तो अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया, पर क्या मैं भी उन्हीं की तरह हार कर, मुंह छिपा कर बैठ जाऊं. नहीं, बाबूजी, ऐसा नहीं कर सकती मैं. वहां आप के साथ तो मुन्ना है, मां है, पर यहां, यहां भी तोे मेरे पिता समान ससुर हैं, क्या उन्हें इस तरह अकेला छोड़ कर मैं वहां सुखी रह पाऊंगी, और फिर प्रियांशु तो है न मेरे पास, किसी के चले जाने से जिंदगी खत्म तो नहीं हो जाती.

‘आप जाइए और इस विश्वास के साथ जाइए कि मैं यहां अच्छी रहूंगी, यह तो मैं नहीं कह सकती कि मुझे कोई दुख नहीं है, पर 2-2 प्राणियों के जीवन को सहारा देने में यह दुख निश्चित रूप से कम हो जाएगा.’

बाबूजी ने लाख समझया पर दीदी तो हठी शुरू से ही थीं और इस बार उन का हठ इतना जायज था कि हम दोनों कुछ नहीं कर पाए और थक कर घर लौट आए.

फिर धीरेधीरे दीदी ने खुद को संभाला. ऐसे समय में उन की पढ़ाई उन के काम आई. पहले उन्होंने कुछ आसपास के बच्चों को यों ही मन बहलाने के लिए पढ़ाना शुरू कर दिया, धीरेधीरे गांव के लोगों ने ही जोर देना शुरू किया कि वे स्कूल खोल दें ताकि बच्चों को समुचित शिक्षा मिल सके. यह बात उन्हें भी पसंद आई और अपनी ही थोड़ी सी जमीन में उन्होंने एक प्राथमिक स्कूल खोल दिया, जो आज 12वीं तक के बच्चों के लिए शिक्षा का एक जानामाना कालिज है. दीदी ने वह सबकुछ कर के दिखा दिया जो शायद जीजाजी साथ रहते तो वह नहीं कर पातीं.

अपनी व्यस्तताओं में दीदी अपना दुख, सुख सभी कुछ भूलती चली गईं. जीजाजी के संन्यास लेने के बाद उन के पिताजी 8 साल जीवित रहे, दीदी उन की सेवा ऐसे करतीं कि अगर खुद उन की बेटी होती तो शायद नहीं कर पाती, फिर भी इकलौते पुत्र का घर छोड़ के जाना उन के लिए ऐसा रोग बन गया कि वह ज्यादा दिन नहीं चल सके.

दीदी अब हमारे यहां भी कम ही आ पाती थीं. मेरी शादी के अलावा वह कभीकभार ही यहां आई होंगी. बाबूजी ही अकसर उन के घर चले जाते और वहां से लौट कर कई दिनों मायूस रहते. अकसर बाबूजी मुझ से कहते, ‘क्या बताऊं मुन्ना, और सब तो ठीक है लेकिन जिस बेटी को इतने नाजों से पाला था उसे इतना काम करते देख मेरी छाती फटती है, लेकिन यह तो है कि है वह मेरी लायक बेटी. दूसरा कोई होता तो अब तक टूट कर बिखर गया होता पर उस का तो जैसा नाम है वैसा ही गुण, बिलकुल किसी नदी की तरह…न वह रूठना जानती है न मनाना.’

और यह सच भी था. इतने दिनों में मुझे याद नहीं कि कभी दीदी ने जीजा का जिक्र किया हो. अगर कोई दूसरा उन के सामने इस बारे में बात करता तो वह तुरंत या तो बात का विषय बदल देतीं या फिर वहां से उठ कर चली जातीं. अपने जीवन की हर जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई, प्रियांशु ने एमबीए करने के बाद पास के ही एक शहर में अपना एक अच्छा सा बिजनेस जमा लिया था. दीदी स्कूल देखती थीं, प्रियांशु को वह किसी भी कीमत पर अपने से दूर नहीं भेजना चाहती थीं.

 

बिखरते बिखरते : माया क्या सोचकर भावुक हो रही थी ? – भाग 2

अच्छी बात है. मैं अपने पापा को भेज दूंगा,’ सौरभ उठ कर नमस्ते कर के चल पड़ा.

रविवार को वृद्घ ज्योतिषी आ पहुंचे. कमरे में मौन छाया था. माया और सौरभ की कुंडली सामने बिछा कर लंबे समय तक गणना करने के बाद ज्योतिषी ने सिर उठाया, ‘रमाकांत, दोनों कुंडलियां तनिक मेल नहीं खातीं. कन्या पर गंभीर मंगलदोष है. लड़के की कुंडली तो गंगाजल की तरह दोषहीन है. मंगलदोष वाली कन्या का विवाह उसी दोष वाले वर के साथ होना ही श्रेष्ठ होता है. तुम्हारी कन्या का विवाह इस वर के साथ होने पर 4-5 बरसों में ही वर की मृत्यु हो जाएगी.’ पंडितजी के शब्द सब को दहला गए.

सौरभ के पापा सिर झुकाए चले गए. परदे की ओट में बैठी माया जड़ हो गई. पंडितजी के शब्द मानो कोई माने नहीं रखते. नहीं, वह कुछ नहीं सुन रही थी. यह तो कोई बुरा सपना है. माया खयालों में खो गई.

‘दीदी, बैठेबैठे सो रही हो क्या? पापा कब से बुला रहे हैं तुम्हें.’ छोटी बहन ने माया को झकझोर कर उठाया.

माया बोझिल कदमों से पापा के सामने जा खड़ी हुई थी. कमरे में उन की आवाज गूंज उठी, ‘माया, ज्योतिषी ने साफ कह दिया है. दोनों जन्मकुंडलियां तनिक भी मेल नहीं खातीं. यह विवाह हो ही नहीं सकता. अनिष्ट के लक्षण स्पष्ट हैं. भूल जाओ सबकुछ.’

मां का दबा गुस्सा फूट पड़ा था, ‘लड़की मांबाप का लिहाज न कर स्वयं वर ढूंढ़ने निकलेगी तो अनर्थ नहीं तो और क्या होगा? कान खोल कर सुन लो, उस से मेलजोल बिलकुल बंद कर दो. कोई गलत कदम उठा कर उस भले लड़के की जान मत ले लेना.’ कहनेसुनने को अब रह ही क्या गया था. माया चुपचाप अपने कमरे की ओर लौट आई थी. माया लौन में बैठी पत्रिका पढ़ रही थी. मन पढ़ने में लग ही नहीं रहा था. माया अपने अंदर ही घुटती जा रही थी. देखतेदेखते 3 माह गुजर गए. न सौरभ का कोई फोन आया, न मिलने की कोशिश ही की. क्या करे वह. सौरभ कोलकाता में नई नौकरी के लिए जा चुका था. वह कशमकश में थी. वह नहीं विश्वास करती थी ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर. ज्योतिषी की बात पत्थर की लकीर है क्या? वह सौरभ से विवाह जरूर करेगी. लेकिन अगर पंडितजी की वाणी सही निकल गई तो?

अशोक भैया ने पंडितजी का विरोध कर विवाह किया था. आज विधुर हुए बैठे हैं नन्हीं पुत्री को लिए. ज्योतिषी का लोहा पूरा परिवार मानता है. क्या उस के प्यार में स्वार्थ की ही प्रधानता है? सौरभ के जीवन से बढ़ कर क्या उस का निजी सुख है? नहीं, नहीं, सौरभ के अहित की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती. सौरभ से हमेशा के लिए बिछुड़ने की बात सोच कर उस का दिल बैठा जा रहा है.

खटाक…कोई गेट खोल कर आ रहा था. अरे, 3 महीने बाद आज रिंकू  आ रही है. रिंकू  उस के पास आ कर कुछ पल मौन खड़ी रही.

चुप्पी तोड़ते हुए रिंकू  ने कहा, ‘माया, कल मेरा जन्मदिन है. छोटी सी पार्टी रखी है. घर आओगी न?’

माया ने डबडबाती आंखों से रिंकू  को देखा, ‘पता नहीं मां तुम्हारे घर जाने की अनुमति देंगी कि नहीं?’ रिंकू वापस चली गई तो माया ने किसी तरह मां को मना कर रिंकू के घर जाने की अनुमति ले ली. माया की उदासी ने शायद मां का दिल पिघला दिया था. अगले दिन रिंकू के घर जा कर वह बेमन से ही पार्टी में भाग ले रही थी. तभी उसे लगा कोई उस के निकट आ बैठा है, पलट कर देखा तो हैरान रह गई थी.

‘सौरभ ़ ़ ़’ माया खुशी के मारे लगभग चीख पड़ी थी. फिर सोचने लगी कि कब आया सौरभ कोलकाता से? रिंकू ने कल कुछ भी नहीं बताया था. सौरभ और माया लौन में एक ओर जा कर बैठ गए. माया का जी बुरी तरह घबरा रहा था. सौरभ से इस तरह अचानक मुलाकात के लिए वह बिलकुल तैयार न थी. ‘माया, आखिर क्या निर्णय किया तुम ने? मैं ज्योतिषियों की बात में विश्वास नहीं करता. भविष्य के किसी अनिश्चित अनिष्ट की कल्पना मात्र से वर्तमान को नष्ट करना भला कहां की अक्लमंदी है? छोड़ो अपना डर. हम विवाह जरूर करेंगे,’ सौरभ का स्वर दृढ़ था. ‘ओह सौरभ, बात मेरे अनिष्ट की होती तो मैं जरा भी नहीं सोचती. लेकिन तुम्हारे अनिष्ट की बात सोच कर मेरा दिल कांप उठता है,’ बोलते हुए माया की सिसकियां नहीं रुक रही थीं.

‘माया, तुम सारा भार मुझ पर डाल कर हां कर दो. विवाह के लिए मन का मेल ग्रहों व कुंडलियों के बेतुके मेल से अधिक महत्त्वपूर्ण है,’ सौरभ के स्वर में उस का आत्मविश्वास झलक रहा था.

‘नहीं सौरभ, नहीं. मैं किसी भी तरह मन को समझा नहीं पा रही हूं. यह अपराधभाव लिए मैं तुम्हारे साथ जी ही नहीं सकती,’ माया ने आंसू पोंछ लिए.

‘तो मैं समझूं कि हमारे बीच जो कुछ था वह समाप्त हो गया. ठीक है, माया, सिर्फ यादों के सहारे हम जीवन की लंबी राह काट नहीं सकेंगे. जल्दी ही दूसरी जगह विवाह कर प्रसन्नता से रहना.’ सौरभ चला गया था. अकेली बैठी माया बुत बनी उसे देखती रही थी. माया अपने ही कालेज में पढ़ाने लगी थी. सौरभ वापस कोलकाता चला गया, अपनी नौकरी में रम गया था. रिंकू लखनऊ चली गई थी. सप्ताह, माह में बदल कर अतीत की कभी न खुलने वाली गुहा में फिसल कर बंद हुए जा रहे थे. माया दिनभर कालेज में व्यस्त रहती थी, शाम को घर लौटते ही उदासी के घेरे में घिर जाती थी. देखतेदेखते सौरभ से बिछुड़े पूरा 1 वर्ष बीत गया था.

एक दिन शाम को कालेज से लौट कर सामने रिंकू को बैठी देख माया को बड़ा आश्चर्य हुआ. रिंकू  अचानक लखनऊ से कैसे आ गई? चाय पीते हुए दोनों इधरउधर की बातें करती रहीं. फिर रिंकू ने अपना पर्स खोल कर एक सुंदर सा शादी का कार्ड माया की ओर बढ़ाया.

‘माया, अगले रविवार को सौरभ भैया की शादी है. भैया का अव्यवस्थित जीवन और अंदर ही अंदर घुलते जाना मुझ से देखा नहीं गया. मैं ने बड़ी मुश्किल से उन को शादी के लिए तैयार किया है. तुम तो अपनी जिद पर अड़ी हुई हो, दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है,’ रिंकू का चेहरा गंभीर हो गया था. मूर्तिवत बैठी माया को करुण नेत्रों से देखती हुई रिंकू चली गई थी.

माया कार्ड को भावहीन नेत्रों से देखती रही. दिल में कई बातें उठने लगीं, क्या उस का सौरभ पराया हो गया, मात्र 1 वर्ष में? सुमिता जैसी सुशील सुकन्या को पा कर सौरभ का जीवन खिल उठेगा. एक वह है जो सौरभ की याद में घुलती जा रही है. लेकिन उसे क्रोध क्यों आ रहा है? क्या सौरभ जीवनभर कुंआरा रह कर उस के गम में बैठा रहता? ठीक ही तो किया उस ने. पर उसे इतनी जल्दी क्या थी? जब तक मेरी शादी कहीं तय नहीं होती तब तक तो इंतजार कर ही सकता था? अभिमानी सौरभ, यह मत समझना कि सुमिता के साथ तुम ही मधुर जीवन जी सकोगे. मैं भी आऊंगी तुम्हारे घर अपने विवाह का न्योता देने. तुम से अधिक सुंदर, स्मार्ट लड़के की खोज कर के. माया ने हाथ में लिए हुए कार्ड के टुकड़ेटुकड़े कर डाले.

माया के लिए उस के पापा ने वर ढूंढ़ने शुरू कर दिए लेकिन माया की नजरों में वे खरे नहीं उतरते थे. उस की जोड़ का एक भी तो नहीं था. मां और पापा कितना ही समझाने की कोशिश करते, लेकिन माया नहीं झुकी. अंत में पापा ने माया के लिए वर ढूंढ़ना छोड़ दिया था.

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