“यह लो, आ गए हम दूरदूर तक अपने अस्तित्व का विस्तार किए, तुम्हारे सपनों के समंदर के पास. देखो न, सुमित, संगमरमर सी सफेद फेन वाली कलकल बहती लहरें मानों आसमान की ऊंचाईयों को भी छू लेने को व्याकुल हैं,’’ मुंबई के जुहू बीच पर उल्लास से सराबोर बिलकुल छोटे बच्चों की तरह सुमी अपने दोनों हाथों को फैला कर जोरजोर से सागर की लहरों की असीमित ऊंचाइयों और सौंदर्य का बखान कर रही थी.
‘’आज मानों मेरा बरसों का सपना सच हो गया, सुमी. बचपन में जब भी समुद्र के बारे में पढ़ा करता था तो हमेशा सोचता था कि बड़े हो कर मैं भी एक दिन समुद्र देखूंगा, मगर…” कहतेकहते सुमित रुक से गए.
‘’सुमित, भविष्य में नहीं, वर्तमान में जिओ और इस पल को मेरे साथ ऐंजौय करो. चलो, हम किनारे पर चल कर समुद्र की लहरों से अठखेलियां करते हैं.”
“अठखेलियां और मैं…क्यों मजाक कर रही हो सुमी. इस उम्र में यहां तक आ गया हूं, यह क्या कम है. मैं यहीं बैठा हूं तुम जाओ,” सुमित ने सुमी को प्यार से थपथपाते हुए कहा.
“मैं हमेशा तुम्हें कहती हूं कि उम्र सिर्फ एक नंबर होता है. इंसान अपनी सोच से बूढ़ा होता है, शरीर और दिमाग से नहीं, इसलिए चुपचाप चलो हम भी लहरों के साथ मस्ती करते हैं. समुद्र को देखना, महसूस करना हमेशा से ही तुम्हारा सपना था, तुम मेरे साथ आगे चलो,” और फिर सुमी जबरदस्ती सुमित को अपने साथ लहरों के बीच में ले ही आई थी…लहरें कभी अपने तीव्र प्रवाह से उन्हें आगे धकेल देतीं और कभी पीछे पर वे दोनों एकदूसरे का हाथ थामे समुद्र का भरपूर आनंद ले रहे थे.
कुछ देर बाद दोनों किनारे आ कर गीली रेत पर बैठ गए. सुमी ने आहिस्ता से सुमित के कंधे पर सिर टिका दिया.
“कहां खो गईं सुमी, मुझे आज में रहने का ज्ञान दे कर,” सुमी को एकदम शांत देख कर सुमित ने कहा.
“कुछ नहीं सोच रही थी. अगर शमाजी ने उस दिन तुम से मिलवाया न होता तो मेरी जिंदगी का रूप ही कुछ और होता.”
“तुम्हारा तो ठीक है पर मेरा… मेरा क्या होता…शायद अब तक जिंदा ही न बचता और बचता भी तो न जाने किस हाल में, किस की दया पर…पर हां, तुम्हारे उस एक निर्णय ने मेरी जिंदगी तो बदल ही दी,” सुमित ने सुमी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा.
“ऐसा न कहो, सुमित. केवल तुम्हारी ही नहीं बल्कि मेरी भी जिंदगी कैसी होती मुझे भी नहीं पता. मुझे तो लगता है कि मुझे तुम्हारे लिए ही बनाया गया है. हां, मैं तो वैसे भी सारे जमाने से लड़ कर तुम्हें पाई हूं और अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूंगी, चाहे जो भी तकलीफ आए,” सुमी ने मजबूती से सुमित का हाथ अपनी दोनों हथेलियों में दबा लिया.
उम्र के दूसरे पड़ाव की दहलीज पर खड़े, कुछ दिनों पूर्व ही अपनी इकलौती बेटी के हाथ पीले कर चुके सुमी और सुमित की प्यार और समर्पण से भरी इन रोमांटिक बातों के साक्षी थे गोधूलि बेला. सागर की लहरें, जुहू बीच की बेशुमार भीड़ और सुमी सुमित की ही भांति उम्र की ढलान की ओर जाता सूरज. अस्त होते सूर्य के प्रतिबिंब को समुद्र की लहरों पर अपलक देखती सुमी का मन सालों पीछे पहुंच गया, जब वह अंगरेजी भाषा से स्नातकोत्तर कर रही थी और आगे चल कर एमफिल कर कालिज में प्रोफैसर बनना चाहती थी.
उस की मेहनत रंग लाई. पीएचडी कर शीघ्र ही एक कालेज में प्रोफैसर भी बन गई. जौब लगने के साथसाथ अब मातापिता को उस के विवाह की चिंता होने लगी. खूब कुंडलियां मिलाई गईं और अपनी ही जाति के रीतिरिवाजों के बाद एक दिन वह प्रशांत की दुलहन बन कर दिल्ली आ गई.
प्रशांत, उस के पापा की दूर की मौसी के रिश्तेदार थे इसलिए मातापिता आश्वस्त थे कि उन की बेटी पति के साथ पूरी तरह सुखी रहेगी. प्रशांत एक बैंक में प्रोबैशनरी औफिसर थे. चूंकि प्रशांत और उस की पोस्टिंग दिल्ली में ही थी इसलिए दोनों को एक ही जगह रहने में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं आई. शादी के शुरुआती दिन रोमांस से भरे और मौजमस्ती से कटे पर धीरेधीरे प्रशांत का स्वभाव उसे परेशान करने लगा.
शाम को जब वह कालेज से आती तो प्रशांत को उस के दिन के बारे में पूरी जानकारी चाहिए होती थी, मसलन आज क्या किया, किस से मिली और किस ने क्या कहा? शुरू में उस ने इन सब को बहुत ही हलका लिया पर एक दिन जब उस के कालेज में एक प्रोग्राम था और उसे आने में 8 बज गए, तो उस दिन जैसे ही वह घर में घुसी, प्रशांत व्यंग्य से बोला,” कौन सा कालेज है मैडम, जो रात के 8 बजे तक चलता है?”
“अरे प्रशांत, तुम भूल गए, मैं ने तुम्हें बताया तो था कि हमारे कालेज में ऐनुअल प्रोग्राम है,” उस ने बड़ी ही सहजता से उत्तर दिया.