टीएमसी यानी तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा पर पैसे ले कर सवाल पूछने और अपना ईमेल का पासवर्ड कारोबारी हीरानंदानी को देने का आरोप लगा था. लोकसभा की संसदीय समिति ने महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द कर दी.

महुआ मोइत्रा ने कहा कि ‘सरकार संसदीय समिति को हथियार बना कर विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर कर रही है. उपहार और नकदी से ले कर किसी तरह की सुविधा लेने के सबूत के बिना केवल शिकायती शपथ पत्र के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया. यह कानून और संविधान का मखौल उड़ाना है. समिति ने उन्हें झुकाने के लिए अपने ही तमाम नियम तोड़े हैं और उन को बिना सुबूत के सजा दी है.

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा ‘भाजपा लोकतांत्रिक रूप से नहीं लड़ पा रही है इसलिए राजनीति प्रतिशोध लेती है. एक महिला विशेष कर युवा पीढ़ी की अगुवाई करने वाली नेता का जिस तरह से उत्पीड़न किया गया है वह लोकतंत्र की हत्या की गई है.

‘मैं उस की निंदा करती हूं और तृणमूल कांग्रेस पूरी तरह से महुआ मोइत्रा के साथ थी, है और रहेगी.’

असल में जिस समय महुआ मोइत्रा अपनी लड़ाई लड़ रही थी बारबार यह बात कहने का प्रयास किया जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस और उस की प्रमुख ममता बनर्जी महुआ के साथ नहीं है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चैधरी ने 2 घंटे में 400 से अधिक पन्नो की रिपोर्ट पर चर्चा पर सवाल उठाते हुए कहा कि नई संसद में एक महिला सांसद के खिलाफ ऐसा फैसला नहीं होना चाहिए. मामले की सुनवाई के लिए दोचार दिन की मोहलत देनी चाहिए.

संसद में यह सवाल भी उठा कि आचार समिति को किसी सांसद की सदस्यता खत्म करने जैसी सजा देने का अधिकार ही नहीं है.

पौराणिक कानून के सामने सब फेल

संसद में औरत और कानून की बात कही गई लेकिन जो सरकार पौराणिक कानून से चलती है वहां ऐसे तर्क कोई नहीं सुनता. विरोध की आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती है. महाभारत जैसे तमाम पौराणिक ग्रंथों में इस तरह की तमाम घटनाएं मिल जाती है.

महाभारत में भरी सभा में द्रौपदी का अपमान हो या रामायण में सीता का निष्कासन औरत की बात को कभी सुना नहीं गया. सुपर्णखा के साथ जो हुआ इस तरह की घटनाओं से साफ था कि औरतों को अलगथलग कर दिया जाता था. समाज उन के साथ अछूतों का व्यवहार करने लगता था. उन की सफाई को कभी सुना ही नहीं जाता था. इस डर से औरतें सच का समाज के सामने कहने से डरती थी.

महाभारत में कुंती यह जानती थी कि कर्ण उन का बेटा है लेकिन उन्होंने कभी समाज के सामने इस बात को स्वीकार नहीं किया. जिस का पाप जीवन भी कर्ण को झेलना पड़ा. उसे हमेशा ही सूत पुत्र कह कर संबोधित किया गया. अछूत बना कर लोगों को समाज से काट दिया जाता था.

महाभारत में विधुर का महात्मा जरूर कहा जाता था लेकिन उन की बातों को कभी सम्मान नहीं दिया गया. एकलव्य का अगूंठा इसलिए कटवा लिया क्योंकि वह अछूत था. औरतों को एक तरह से समाज से अलगथलग कर उन का हुक्का पानी बंद कर दिया जाता था.

अंग्रेजी सेना के ब्राहमण राजपूत सिपाहियों का हाल

हुक्का बंद करने की शुरूआत पौराणिक काल में अलग तरह से थी. उन को समाज की मुख्यधारा से काट दिया जाता था. बाद में इस ने दूसरा रूप लिया. तब इस को हुक्का पानी बंद करने की सजा के रूप में दिया जाने लगा. इस का देश और समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता रहा है.

अंग्रेज जब भारत आए तो यहां जो मुगलों की सेना थी वह तोप, हाथी और घोड़ों से लड़ाई लड़ती थी. तोपों को इधर से उधर ले जाना कठिन काम होता था. उस में समय भी लगता था. उस समय तक अंग्रेजों ने बंदूक बनाने का काम शुरू कर दिया था.

बंदूक से छिप कर वार करना सरल था. पैदल लड़ने वाले सिपाहियों के हाथ में तलवार और भाला के मुकाबले यह बहुत कारगर हथियार बन गया था. सन 1800 के आसपास अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में राजपूतों और ब्राह्मणों को भर्ती करना शुरू किया. अंग्रेजों को लगा था कि यह लड़ाकू लोग हो सकते हैं. सेना में ब्राह्मणों को खास महत्व दिया गया. यहां भी पौराणिक कानून का हुक्का पानी बंद काम करने लगा.

बन्दूंक को चलाने के लिए सब से पहले उस में एक कारतूस भरा जाता था. इस में जो बारूद प्रयोग किया जाता था वह चर्बी के खोल में होता था. बंदूक में डालने से पहले मुुंह से नोच कर चर्बी को बाहर करना होता था तब कारतूस को बंदूक में डाल कर फायर करना होता था. यह बात पहले तो ब्राह्मणों को पता नहीं थी धीरेधीरे ब्राह्मण समाज में यह बात फैलने लगी.

इस प्रभाव यह हुआ कि जो ब्राह्मण सेना में नहीं थे उन लोगों ने सेना में काम करने वाले ब्राह्मणों का सामाजिक बहिष्कार करना शुरू कर दिया. उन का हुक्का पानी बंद कर दिया. इस के बाद ही अंग्रेजी सेना में ब्राह्मण सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूसों को चलाने से मना करना शुरू कर दिया.

यह हुक्का पानी बंद करने का प्रभाव आजादी के बाद भी समाज के अलगअलग वर्गों में प्रभावी रहा. देश की आजादी के बाद जब देश में संविधान लागू हुआ तो ऐसे कानून दरकिनार होने लगे. नए ऐसे कानून भी बने जिस में महिलाओं को अधिकार दिए जाने लगे.

यूपीए की सरकार के दौरान महिला हिंसा के नाम कानून बनेे. लड़कियों को जायदाद में हिस्सा देने के कानून बने.

‘सेंगोल’ बना राजशाही की निशानी

2014 में जब मोदी सरकार आई तो देश को पौराणिक कानून से चलाने का काम किया जाने लगा. नई संसद में जब ‘सेंगोल‘ को स्थापित किया गया उसी समय यह तय हो गया था कि न्याय अब पौराणिक कानून अब सनातन और संस्कार के हिसाब से चलेगा.

यही नहीं संविधान के साथ ही साथ जिस भारतीय दंड संहिता को अपनाया गया था अब उन कानूनों को भी नई तरह से अपनाए जाने की पहल की जा रही है.

नई संसद ने जिस तरह से महुआ मोइत्रा के खिलाफ फैसला आया वह इस बात पर मोहर लगा रहा है कि अब पौराणिक कानून के हिसाब से राज चलेगा. वाचाल महिलाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. खासकर तब जब वह राजा या राजा के तोते पर सवाल उठाने का काम करेगी.

संसद की समिति ने जिस तरह से महुआ से पूछताछ में व्यक्तिगत सवाल किए वह भी आपत्तिजनक रहे हैं. महुआ ने इस को ले कर समिति का बायकौट भी किया था. उस घटना से ही अंदाजा लग गया था कि सजा देने के पीछे की मंशा क्या है ?

यह सजा कोई बड़ा महत्व नहीं रखती क्योंकि अब 2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. इस तरह महिला विरोधी फैसले भाजपा के सामने जनता के बीच सवाल बन कर खड़े होंगे.

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