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माइनिंग मजदूरों के रेस्क्यू पर आधारित मिशन रानीगंज

अक्षय कुमार को उस की खिलाड़ी फिल्मों की वजह से जाना जाता है. उस ने 1992 में ‘खिलाड़ी’ सीरीज की पहली फिल्म की, जो सस्पैंस थ्रिलर फिल्म थी. उस फिल्म में अक्षय ने खुद को खिलाड़ी हीरो के नाम से स्थापित कर लिया.

कई सफल फिल्मों के बाद जब उस की फिल्मों का ग्राफ नीचे गिरने लगा तो उस ने रोहित शेट्टी के साथ ‘सूर्यवंशी’ फिल्म की. उस के बाद भी उस की कई सारी फिल्में फ्लौप होने लगीं जिन में ‘सैल्फी’ प्रमुख है.

अक्षय कुमार अब बूढ़ा होने लगा है. अपने बुढ़ापे को देखते हुए उस ने भगवा गैंग का दामन थाम लिया और ऐसे किरदार करने शुरू कर दिए जो सरकार और मोदी को सुहाते हैं. उस के किरदारों में किसी खूंखार आतंकवादी को विदेश से पकड़ लेने का रोल था तो कहीं उस ने टौयलेट स्कीम को आगे बढ़ाया.

वह हर किरदार ऐसा करने लगा है जिस से प्रधानमंत्री मोदी की कृपादृष्टि उस पर बनी रहे. कभी वह लोगों को बचाने का किरदार निभाता तो कभी ऐसे किरदार करता जिस से उसे दर्शकों की तालियां मिलें, वह प्रधानमंत्री का चहेता बन पाए.

हाल ही में उस की नई फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ आई है. यह फिल्म विकट परिस्थितियों में विपदा को टालने के लिए एकजुट हुए लोगों की कहानी कहती है. यह फिल्म जीने का हौसला रखने और सामने खड़ी हार को जीत में बदल देने के लिए दर्शकों के साथसाथ भगवा गैंग में लोगों को भी अपने साथ जोड़े रखने का अच्छा प्रयास है.

अक्षय कुमार ने हाल ही में आई ‘ओएमजी-2’ में शिव का किरदार निभाया. यह किरदार एकदम फ्लौप गया. इस फिल्म के साथसाथ हाल ही में आई अक्षय कुमार की आधा दर्जन फिल्में फ्लौप हो चुकी हैं. इन दिनों वह सोलो फिल्में करने से बच रहा है.

फिल्म की कहानी पश्चिम बंगाल के जांबाज माइनिंग इंजीनियर जसवंत गिल की है, जिस ने 1989 में अपनी जान की बाजी लगा कर कोयले की खदान में फंसे माइनिंग मजूदरों की जानें बचाई थीं.

कहानी की शुरुआत होती है नवंबर 1989 से जब सुबहसुबह पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महावीर कोयला खदान में 65 मजदूरों के फंसने की खबर आती है. अपने नियमित कामकाज के तहत लगभग 250 मजदूर खदान में गए थे. खदान में होने वाले विस्फोट के कारण वहां बाढ़ आ जाती है. 179 मजदूर किसी तरह अपनी जान बचा कर खदान से निकलने में कामयाब हो जाते हैं. जबकि, 65 मजदूर वहीं धंसे रह जाते हैं. खदान में तेजी से भरते पानी के कारण 6 मजदूर अपनी जानें गवां बैठते हैं. पूरे इलाके में मजदूरों के परिवारों में हाहाकार मच जाता है.

अब कहानी में माइनिंग इंजीनियर जसवंत गिल (अक्षय कुमार) की एंट्री होती है. जसवंत गिल की शादी परिणीति चोपड़ा से हो चुकी है. वह पिता बनने वाला है. यहां जसवंत गिल अपने धर्म को निभाने आया है. खदान में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने की सारी तरकीबें नाकामयाब होती नजर आती हैं. तब जसवंत सिंह अफसरों को एक तरकीब बताता है जो मजदूरों के लिए पहली बार इस्तेमाल की जाती है.

वह जमीन में गहरा गड्ढा खोद कर विशेष रूप से तैयार किए कैप्सूल के जरिए रेस्क्यू प्लान बनाता है. 3 दिनों तक चलने वाले इस मिशन में उसे लोकल पौलिटिक्स का शिकार होना पड़ता है. उस के इस रेस्क्यू को नाकाम करने की कोशिश की जाती है. खदान में पानी का स्तर बढ़ने लगता है. मगर गिल अपनी जान को जोखिम में डाल कर इस मिशन को अंजाम देता है.

यह देश के सब से मुश्किल रेस्क्यू को अंजाम देने वाला और सच्चा नायक साबित होता है. मजदूरों की जान बचाने के एवज में 1991 में जसवंत गिल को उस की बहादुरी के लिए राष्ट्रपति की ओर से सर्वोत्तम जीवन रक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आज भी हर साल 16 नवंबर के दिन को रेस्क्यू डे उत्साह के रूप में मनाया जाता है.

फिल्म शुरुआत से कोयला खदानों का हलका सा परिचय देने के बाद प्रमुख पात्रों से मिलवाती है. कुछ ही मिनटों में यह हादसा होता है जब खदान में पानी भरने लगता है और यहां से शुरू हो कर फिल्म कहीं थमती नहीं है. निर्देशक टीनू सुरेश देसाई लंबे समय बाद यह फिल्म ले कर आया है. हालांकि फिल्म काफी हलके किस्म की है, फिर भी यह दर्शकों के दिमाग पर छा जाती है.

अक्षय कुमार इस बार जसवंत गिल की भूमिका में है. परिणीति चोपड़ा के हिस्से में कुछ ही सीन आए हैं. सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म की कहानी बनावटी लगती है. निर्माता वासु भगनानी के बिट्रेन में बने स्टूडियो में यह फिल्म शूट की गई है. फिल्म के किसी असली कोयला खदान में शूट न किए जाने के चलते इस का असर हलका पड़ा है.

फिल्म के संवाद कमजोर हैं. कुमार विश्वास के लिखे और गाए गाने के अलावा इस का कोई गाना असरदार नहीं है. परिणीति चोपड़ा के हिस्से 2 गाने और 4-5 दृश्य ही आए हैं. फिल्म की लंबाई ज्यादा है और मनोरंजन की कमी इस में खटकती है. पहले हिस्से में थ्रिल है. इंटरवल के बाद कहानी मानवीय संवेदनाओं के ईदगिर्द घूमने लगती है.

बाढ़ वाले दृश्यों में वीएफएक्स हालत की भयावहता को दर्शाने में कम असर डाल पाता है. कोयले की खदान का सैट भी प्रभावशाली नहीं है. अक्षय कुमार सरदार के गेटअप में है.

फिल्मों में Kamal Haasan को कब और कैसे मिला ब्रेक ? जानें एक्टर के फिल्मी सफर के बारे में

kamal Haasan Filmy Career : अभिनेता से राजनेता बने ”कमल हासन” को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है. उन्होंने बहुत ही कम समय में फिल्मों से लेकर राजनीति में अपनी पकड़ बनाई हैं. एक्टर ने दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम करने के साथ-साथ हिंदी और बंगाली फिल्मों में भी काम किया है. इस हिसाब से अब तक ”कमल” 220 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके हैं. इसके अलावा एक अभिनेता के तौर पर उन्हें चार बार ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’, निर्माता के रूप में एक ‘नेशनल अवॉर्ड’ और 10 स्टेट अवॉर्ड मिल चुके हैं. इसी के साथ उन्हें ‘पद्मश्री’ और ‘पद्म भूषण’ जैसे नागरिक सम्मान से भी नवाजा गया हैं. तो आइए जानते हैं एक्टर ”कमल हासन” (kamal Haasan filmy Career) के फिल्मी सफर के बारे में.

बचपन से ही एक्टिंग के शौकीन थे अभिनेता

आपको बता दें कि एक्टर ”कमल हासन” (kamal Haasan filmy Career) का जन्म तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के परमाक्कुडी में हुआ था जबकि चेन्नई में वे पले बढ़े हैं. वो अपने घर में सबसे छोटे थे. हालांकि मात्र छह साल की उम्र में ही उन्होंने अभिनय करना शुरू कर दिया था. ”कमल” की बचपन से ही फिल्मों में बहुत दिलचस्पी थी. इसलिए एक दिन वो अपने बड़े भाई के साथ ‘एवीएम स्टूडियो’ गए. जहां स्टूडियो के संस्थापक ‘एवी मेयप्पा चेट्टियार’ से उनकी मुलाकात हुई. मुलाकात के बाद ‘चेट्टियार’ ने उन्हें फिल्म ‘कालाथुर कानम्मा’ में एक छोटा सा रोल करने का मौका दिया और ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई. वहीं ”कमल” ने फिल्म में वो रोल इतने अच्छे से निभाया था कि इस रोल के लिए उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ बाल अभिनेता’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.

दसवीं के बाद कमल ने क्यों छोड़ दी थी पढ़ाई ?

फिल्म ‘कालाथुर कानम्मा’ की अपार सफलता के बाद ”कमल हासन” को कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला. लेकिन कुछ सालों बाद ही एक बाल कलाकार के रूप में उनका करियर समाप्त हो गया. हालांकि इस बीच वो पढ़ाई भी कर रहे थे. फिल्मों में काम नहीं मिलने के चलते उन्होंने अब अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था. लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने डांस सीखना शुरू कर दिया.

इसके लिए एक्टर ने एक ड्रामा ग्रुप ज्वाइन किया. फिर इसी बाच उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और दसवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया. पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर ‘शिवालय’ नाम का एक डांस ग्रुप बनाया पर काम न मिलने की वजह से कुछ महीनों में ही ये समूह टूट गया. इसके बाद ”कमल हासन” (kamal Haasan filmy Career) थंगप्पम मास्टर के डांस ट्रूप में जुड़ गए. जहां उन्होंने एक सहायक के रूप में काम किया. इसी बीच उन्हें फिल्म ‘मानवम’ में काम करने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने एक गीत पर नृत्य किया. उनके नृत्य को लोगों ने खूब सराहा और फिर उन्हें फिल्मों में छोटे-छोटे रोल मिलने शुरू हो गए.

1974 में कैसे बदली एक्टर की किस्मत ?

इसी बीच उन्हें निर्देशक ‘बालचंदर’ ने अपनी अगली फिल्म ‘अरंगेतरम’ में कास्ट किया, जिससे उन्हें फिल्मों में एक बड़ा ब्रेक मिला. साल 1974 में उन्होंने फिल्म ‘अवल ओरू थोडरकथाई’ और 1975 में ‘अबूर्वा रागंगल’ में काम किया. इन दोनों ही फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई तो की ही. साथ ही ”कमल हासन” की किस्मत भी बदल गई. इन दोनों फिल्मों की अपार सफलता के बाद एक्टर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनके करियर ने इतनी तेजी से रफ्तार पकड़ी कि इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दी.

मलयाली से लेकर हिंदी फिल्मों में भी किया है काम

आपको बता दें कि अपने अब तक के करियर में अभिनेता ”कमल हासन” (kamal Haasan) ने 35 से ज्यादा मलयाली और 15 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया है. इसी के साथ एक्टर ने अब तक कई फिल्मों की कहानियां, संवाद, पटकथा, गीत और स्क्रिप्ट भी लिखी हैं. इसके अलावा आठ से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने डांस मास्टर की भी भूमिका निभाई है. वहीं फिल्मों के निर्देशन में भी वो पीछे नहीं रहे. उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया है. इसी के साथ साल 2017 से एक्टर ”कमल हासन” बिग बॉस तमिल को भी होस्ट कर रहे हैं.

दो शादी और कई अफेयर के बाद भी सिंगल हैं अभिनेता

हालांकि अपनी फिल्मों से ज्यादा एक्टर ”कमल हासन” (kamal Haasan) अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में रहे हैं. दरअसल अभिनेता ने दो बार शादी की थी और उनकी दोनों ही शादी टूट चुकी है. साल 1978 में उन्होंने भारतीय नर्तक ‘वाणी गणपति’ संग सात फेरे लिए थे लेकिन शादी के कुछ साल बाद ही दोनों अलग हो गए थे. इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड एक्ट्रेस ‘सारिका’ से शादी की पर उन दोनों का रिश्ता भी कुछ सालों बाद टूट गया. हालांकि ‘सारिका’ और ‘कमल’ की दो बेटियां श्रुति और अक्षरा हैं. अभिनेत्री ‘सारिका’ से अलग होने के बाद एक्टर का नाम अभिनेत्री ‘गौतमी’ के साथ जोड़ा जाने लगा. लेकिन अब ये दोनों भी अलग हो गए हैं और अब एक्टर अपनी सिंगल लाइफ इंजॉय कर रहे हैं.

एक्टर ने 2018 में शुरू की थी अपनी राजनीति पार्टी

आपको बताते चलें कि अभिनेता ”कमल हासन” (kamal Haasan) ने अपनी किस्मत राजनीति में भी आजमाई है. उन्होंने साल 2018 में अपनी राजनीतिक पार्टी ‘मक्कल नीधि माईम’ शुरू की थी और इस पार्टी से उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वो जीत नहीं सके. गौरतलब है कि एक्टक ”कमल हासन” का सफर राजनीति में बेशक बहुत ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है लेकिन फिल्मी दुनिया में उन्होंने बहुत नाम कमाया है. इसी वजह से आज भी देश-भर में उनके चाहने वालों की कमी नहीं हैं.

तर्जनी पर टिके नोट : एक नाचने वाली का दर्द

कामिनी नाम था उस का. उस के मृत शरीर और फटे कपड़ों को देख कर यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि उस के साथ वहशियाना बरताव किया गया है.

मैं ने कांस्टेबल नरेश को कहा कि घटनास्थल से जो भी संदिग्ध वस्तु मिले, उसे एक पौलीथिन में जमा कर के सीलिंगवैक्स से सिल कर दे. जैसा कि होता रहा है, पुलिस वालों को आम लोगों का सहयोग नहीं मिलता है. वैसा ही हुआ. कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था.

घटनास्थल से थाने की दूरी कम से कम 3 किलोमीटर थी. पास में होने पर थाने को ही दोषी ठहराया जाता. पर सच तो यह है कि किसी के लिए यह संभव नहीं कि पगपग पर नजर रखी जा सके.

मैं ने अनुमान लगाया कि घटना पिछले रात की है. मुझे थोड़ी निश्चिंतता हुई कि रात में मेरी ड्यूटी नहीं थी और दुख भी हुआ कि जो भी नपेगा वह मेरा साथी और सहकर्मी ही होगा.

पुलिस के काम में इस तरह के पल तो आते ही रहते हैं.

ओवरब्रिज के नीचे से गुजर रही सड़क के किनारे झाड़ियां थीं और आसपास कोई घर अभी नहीं बने थे. ऐसा लगता था कि बदमाशों के द्वारा उसे कहीं से अगवा कर के वहां लाया गया होगा और घटना को वहीं पर अंजाम दिया गया. ऐसा इसलिए कि झाड़ियों के पीछे की घासपतवार और पौधे रौंदे हुए थे. एक चप्पल थी और जूतों के निशान भी थे.

खैर छोड़िए भी इन बातों को. मुझे ड्यूटी पर आए अभी एक ही घंटा हुआ था कि ट्रैफिक पुलिस के एक जवान ने मुझे सूचित किया था कि अमुक जगह किसी की लाश पड़ी है. वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा था. मैं ने आसपास खड़े लोगों से जानना चाहा कि वे उसे पहचानते हैं या नहीं? उन्हें कुछ पता था या कुछ पता हो तो जानकारी दें, परंतु सब ने मुंह लटका कर एक ही बात कही कि उन्हें कुछ पता नहीं.

कांस्टेबलों ने मृतका के शरीर को सीधा किया तो उस का चेहरा दिखाई पड़ा. चेहरा देखते ही मैं उसे पहचान गया. विवाह के पिछले सीजन में वह मुझे मिली थी, परंतु मुझे उस का नाम नहीं याद आ रहा था…

मैं ने दिमाग पर जोर डाला कि उस का नाम क्या है? उसी समय नरेश ने जीप स्टार्ट कर दी और मुझे चलने कहा. डैड बौडी को मैं ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. सब थानों को सूचित कर दिया कि यदि इस मामले में उन के पास किसी ने लड़की के गुमशुदा होने की एफआईआर की हो या करने आए तो मुझे जानकारी दी जाए.

कुछ फाइलें थीं उन्हें निबटाने के बाद मेरा ध्यान एक बार फिर से उस पर गया ही था कि फोन आ गया और एक बार मैं फिर से कुछ देर के लिए व्यस्त हो गया.

मुझे याद आया कि उस का नाम कामिनी था. डीजे वाली गाड़ी के पीछे पिंजड़े का आकार दे कर उस में एक नर्तकी को बंद कर उस के नाच देखने का प्रचलन पिछले कुछ वर्षों से चल पड़ा है. गीत बजाए जाते हैं और बाहर चल रहे बराती भी उस धुन पर नाचते हैं. जाली और ग्रिल में जगहजगह हाथ डालने लायक जगह रहती है और लोग उस से हो कर उस नर्तकी पर रुपए फेंकते हैं. स्पष्टतः इन सब की आड़ में छेड़छाड़ और अन्य अशोभनीय बातें भी होती हैं. कामिनी उस में नाचती थी.

यह याद आते ही मैं ने उस एरिया के थाने को सूचित किया, जहां इस तरह के डीजे वाले अपनी गाड़ियां खड़ी किया करते थे.

कुछ ही देर में एक थाने से फोन आया कि कामिनी के लापता होने की रिपोर्ट वहां किसी ने लिखाई थी.

मेरा मस्तिष्क एक वर्ष पहले घटी घटना पर स्थिर था. गरमियों के दिन थे और शादीब्याह का मौसम चल रहा था. उस दिन मेरी रात की ड्यूटी थी. पैट्रोलिंग वाले मेरे साथी और कांस्टेबल अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे. रात के लगभग साढ़े 12 बजे थे. उसी समय कामिनी बदहवास हालत में थाने आई थी. वह चाह रही थी कि उस की एफआईआर लिखी जाए. उस के चेहरे पर किसी ने काट खाया था. उस के साथ उस के ग्रुप के और अन्य लोग भी थे. वे उसे समझा रहे थे कि इस तरह की घटनाएं होती ही रहती हैं और उसे व्यर्थ में बवाल खड़ा करने की आवश्यकता नहीं है.

वह बहुत ज्यादा डरी हुई थी और गुस्से में भी थी. गुस्से में उस ने अपने ग्रुप के लोगों को चिल्ला कर कहा था कि सब उसे अकेला छोड़ दें. मैं ने उन्हें समझाया था कि वे बाहर बैठें और उसे थोड़ी देर संभलने और शांत होने का मौका दें. वह कुछ देर तक रोती रही और मैं उसे समझाने का प्रयास करता रहा.

“पहले शांत हो जाओ. उन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा हो, यही मेरी कोशिश रहेगी. तुम्हारा नाम क्या है?”

“कामिनी,’’ उस ने अपना सिर अपने घुटने पर टिका रखा था.

“कितनी उम्र है तुम्हारी? इस छोटी उम्र में इस पेशे में आने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? कैसे आ गई, बताओ?”

वह धीरेधीरे खुलती गई और मैं उसे समझाता रहा. उस का घर वर्दवान से कुछ दूर दिउरी गांव में था. मातापिता दोनों मजदूरी करते थे. एक छोटा भाई और एक छोटी बहन भी थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. उस का रंग साफ था और देखने में वह अच्छी थी. गांव के एकमात्र सरकारी स्कूल में उस समय वह 5वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

दुर्गा पूजा के अवसर पर चंदा जमा करने के लिए स्कूल के पीछे वाले मैदान में टैलीविजन पर फिल्में दिखाई जा रही थीं. आगे बैठने वाले से 10 और उस के पीछे वालों से 5 रुपए लिए गए. आसपास के घरों के लोग छत पर बैठ कर इस का आनंद लिया करते.

एक फिल्म में हीरोइन ने जो नाच किया, कुसुम ने उस की नकल अपने साथियों के बीच की. स्कूल में तो सभी उस की कला से प्रसन्न हुए थे, परंतु मां ने तमाचे लगा दिए थे और बापू ने डांटा था. वह बहुत क्रोधित हुई थी, फिर भी यदाकदा उस का नाचना नहीं रुका था. किसी भी पूजापाठ में नृत्यसंगीत का प्रचलन था और उस अवसर पर सभी उसे नाचने को कहते. मां भी मना नहीं करती. वह नाचती. नृत्य और संगीत से इसी तरह वह जुड़ती गई.

नई पीढ़ी के किशोरों में गर्लफ्रैंड और ब्वायफ्रैंड रखने का चलन शहरों से शुरू हो कर गांव तक पहुंच चुका है. एक बार वह किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में वर्दवान गई थी, तो पहली बार उस ने ऐसा ही कुछ देखा था.

शाम के धुंधलके में कई जोड़े पोखर के किनारे बैठे थे. कुछ मर्यादित थे और कुछ… उस ने अपने गांव में भी शाम के समय डीह पर ऐसे कुछ जोड़ों को प्रायः बैठे हुए देखा था.

स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक लड़के से उस की दोस्ती हो गई. उस उम्र में उस लड़के में कुछ बुरा भी नहीं था और वह देखने में भी सुदर्शन था. एकदो बार वह किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में शहर गया था. उस ने वहां जोकुछ देखा था, उसी के आधार पर उस ने कामिनी को बताया कि वह चाहे तो उस की कला को पंख लग सकते हैं. पहले लोग संतोष को परमसुख मानते थे, परंतु आज तो कहा जाता है, सपने देखोगे तभी तो उसे पूरा कर सकते हो.

सारांश यह कि चादर से बाहर पैर निकालना होगा, तभी तो नए चादर खरीदने की बात सोची जा सकती है. एक वर्ष तक वह मां से छिपछिप कर उस के साथ रही और किशोरवय का रसपान किया. 10वीं कक्षा के बाद वह पढ़ने के लिए शहर चला गया और जबजब आता उस से भेंट करता.

3-4 वर्षों का समय गुजर गया. आंखों में सपने तो तैर ही रहे थे. उस ने योजना बनाई कि कामिनी शहर चलने की सोचे तो रुपए कमाना आसान होगा. पहले तो कामिनी डर गई, कहां रहेगी, क्या खाएगी? तारक नाम था उस का, वह सबकुछ पता कर के आया था. उस ने एक आरकेस्ट्रा पार्टी में उस के लिए बात की थी. एक दिन वह उसी के साथ अनजान डगर पर चल पड़ी. सप्ताहभर वह किसी तरह उस के साथ रही.

तारक ने वहां झूठ कहा था कि वह उस की बहन है. इन चंद दिनों में उस ने समझ लिया कि अब वह कभी घर नहीं लौट सकेगी. बहुत रोई, लेकिन अब हो भी क्या सकता था? गनीमत यह थी कि तारक ने उसे और कहीं नहीं जोड़ कर शहर के जानमाने ‘सुंदरी’ आरकेस्ट्रा पार्टी से जोड़ दिया. आरकेस्ट्रा पार्टी का संचालन सुंदरी नाम की महिला करती थी. उस आरकेस्ट्रा में 10 की संख्या में लड़कियां थीं.

तारक की इच्छा थी कि वह उस के साथ रहे, परंतु उसे पता था कि अविवाहित जोड़े को कहीं रहने के लिए जगह नहीं मिलेगी. कामिनी आरकेस्ट्रा की सहेलियों के साथ रहने लगी. उस ने अपने तारक को कहा था कि वह उस से विवाह कर ले तब साथ रहेगी.

इस पर तारक ने समझाया था कि वह कुछ कमाने लग जाए, तब ही तो विवाह कर सकता है. इन कुछ दिनों ने कामिनी को बहुत समझदार बना दिया था. वह जानती थी कि घर से कोई उस की खोजखबर नहीं लेगा और नाबालिग लड़की का किसी लड़के के साथ इस तरह रहना समाज कभी भी नहीं स्वीकार करेगा. उस के ब्वायफ्रैंड को भी उस की बात सही लगी थी.

उस की नई सहेलियों ने अपने विषय में जो कुछ उसे बताया, उसे सुन कर उस ने अपने भाग्य को सराहा था कि अब तक उस के ब्वायफ्रैंड ने उसे सिर्फ अपने तक सीमित रखा था. समय निकाल कर वे मिलते रहते और भविष्य के सपने देखने से नहीं चूकते.

तारक से उस को अपने गांव और मांबाप की जानकारी मिलती रहती. उस के माध्यम से उस ने घर पर कहला भेजा था कि वह शहर में काम कर रही है. उस के मांबाप उस के लिए ज्यादा चिंतित भी नहीं थे.

तारक ने बताया था कि वे लोग उस की तरफ़ से निश्चिंत हो गए हैं. उन का यह भी सोचना था कि कम से कम उस के विवाह के लिए अब उन्हें नहीं सोचना है.

तारक ने ही बताया कि उस की मां ने उस से पूछा था कि क्या उन्होंने विवाह कर लिया है? कामिनी ने उस की आंखों में फिर से देखा था, जिन में भविष्य के सपने थे. तारक ने उस की मां को कहा कि अभी तो नहीं, परंतु कोई काम पर लग जाए तो कर लेगा.

एक बार कामिनी ने कुछ रुपए और एक सस्ता सा मोबाइल फोन भी घर पर भिजवाया था. मां से उस ने फोन पर बात की थी. मां ने सबकुछ बताया था कि रुपए उसे मिलते रहे थे.

कामिनी का अपने तारक पर विश्वास और बढ़ गया था. उस ने स्वयं से कहा था कि दूसरा होता तो अब तक उस के भेजे पैसे बीच में ही हड़प जाता.

मैं ने उसे सांत्वना दी थी कि मैं उन बदमाशों की खबर लूंगा. मेरे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ने उसे शांत कर दिया था. मैं रिपोर्ट लिखने जा रहा था कि उस ने मना कर दिया था.

मैं ने उस से कहा था कि उसे रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए और उस ने मुझे कहा था कि अभी इस सीजन में उस के ग्रुप ने और बहुत से काम ले रखे हैं. अभी तो वैवाहिक मौसम शुरू ही हुआ था और वह इसलिए इन उलझनों में फंसना नहीं चाहती है. इधर समस्याओं में उलझ गई तो फिर दौड़धूप करना पड़ेगा और फिर रुपए कैसे कमा सकेगी? वह उठ खड़ी हुई मुझ से विदा लेने के लिए.

“तुम्हें कभी आवश्यकता पड़े तो यहां आ सकती हो या फिर फोन कर सकती हो.’’

“नमस्ते सर. आप पुलिस वालों में सब आप जैसे नहीं होते.’’

“हर पेशे में अच्छेबुरे लोग होते ही हैं. तुम जो काम कर रही हो, उस में भी सब तुम्हारे जैसे नहीं होते. तुम्हें जो ब्वायफ्रैंड मिला उस जैसा भी तो सबों का ब्वायफ्रैंड नहीं होता. फिर भी तुम्हें इतना अवश्य कहूंगा कि यह सब छोड़ दो. अच्छा रहेगा तुम्हारे लिए. इतनी तो तुम्हें भी समझ है कि जिस राह पर तुम चल रही हो, वह अच्छी नहीं है. दुनिया में और भी कई रास्ते हैं कमाने के लिए. क्या पता कि आगे चल कर तुम्हें और दलदल मिले?”

“कुदरत ने आदमी को बनाया है और सारे पेशे तो आदमी ने बनाए. अब इस से निकल पाना संभव नहीं है मेरे लिए.’’

“प्रयास करो… कुछ भी असंभव नहीं होता.’’

“कौन सी नौकरी मिलेगी मुझे?”

“बहुत से काम हैं…’’

“इस समाज में बदचलन पुरुष को काम मिल सकता है, पर बदचलन लड़की के लिए बदचलनी के सिवा कोई काम नहीं है.’’

“ऐसा क्यों सोचती हो? घर लौट जाओ.’’

“ताकि मांबाप पर फिर से बोझ बन जाऊं…? उन्हें पता है कि मैं कमा रही हूं. पैसे भेज रही हूं. घर छोड़े दूसरा साल है. कभी किसी ने कहा कि कम्मो इस पूजा में घर आ जा? गरीबी सबकुछ निगल जाती है.’’

“फिर भी वह तुम्हारा घर है.’’

“हमारे घर नहीं होते, सर. मैं अभी एडल्ट नहीं हुई. मैं जहां हूं, जैसी हूं सही हूं. शहर और संसर्ग ने बहुतकुछ सिखा दिया है. मैं जानती हूं, आप से मदद ली तो आप रिमांड होम भेज देंगे यानी कड़ाही से निकल कर आग में. कौन सा रिमांड होम और कौन सी सुरक्षित जगह बची है? मां के पेट में ही बेटियां मार दी जाती हैं. आप भी सलाह दे रहे हैं. आप की सलाह अच्छी भी है. सब हमें ही सलाह देते हैं. कोई पुरुषों को सलाह क्यों नहीं देता?

“प्रशासन को तो सब पता ही होगा, तब यह डीजे वाली गाड़ी का प्रचलन ही कैसे हुआ? मुझ सी लड़कियां नाचती हैं. नोट देने के बहाने क्याक्या होता है ऐसे नाच में, आप लोगों को नहीं पता है क्या… कैसे गंदे इशारे करते हैं लोग, आप क्या जानें? सरेआम भवें टेढ़ी कर साथ चलने का इशारा करते हैं, वह भी तर्जनी पर नोट टिका कर, इस का मतलब समझते हैं न आप…?’’

मैं पथराई आंखों से उसे बाहर जाते हुए देखता रहा.

नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल : क्यों याद आ रहा है पाकिस्तान ?

आने वाले समय में संभवतया पीढ़ियां यह पढ़ेंगी- “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वाया पाकिस्तान.”

सार संक्षेप यह कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को एकएक कर के जेल भेज दिया गया और तानाशाही का आगाज हुआ.

दरअसल, किसी पर भी आरोप लगाना बहुत ही आसान है. मनीष सिसोदिया हों या संजय सिंह या फिर सत्येंद्र जैन लंबे समय से जेल में हैं और कम से कम इन्हें जमानत का तो अधिकार है मगर आज यह भी मुश्किल है.

हमारे देश का कानून यह कहता है कि 100 आरोपी बच जाएं मगर एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए. मंत्री और मुख्यमंत्री को परेशानहलकान किया जा रहा और जेल के रास्ते दिखाए जा रहे हैं, यह लोकतांत्रिक शासन पद्धति के लक्षण नहीं हैं. ठीक है, कानून सब से ऊपर है, मगर इस का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. इसे आखिर कौन देखेगा और कौन देख रहा है? कोई तो ऐसा होगा जो सब से ऊपर होता है और हमारे लोकतांत्रिक पद्धति में केंद्र और राज्य शासन की अलगअलग व्यवस्थाएं हैं जिस के तहत दिल्ली में अरविंद केजरीवाल अगर मुख्यमंत्री के पद पर हैं तो हो सकता है उन से गलतियां हों.

यह भी संभव है कि जानबूझ कर गलतियां हों मगर जिस तरह लंबे समय तक आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, मनीष सिसोदिया जैसे चेहरों को जेल में ठूंस दिया जाता है और फिर जमानत नहीं होती है तो ऐसा लगता है कि ये लोग कोई बड़े अपराधी हैं, जो रुपए ले कर देश छोड़ कर भाग जाएंगे. यह सब घटनाक्रम आने वाले समय में लोकतंत्र के हमारी झोंपड़ी को क्षतिग्रस्त करेगा, हो सकता है जला कर भस्म कर दे.

लोकतंत्र तानाशाही की ओर

भारत जब आजाद हुआ और संविधान बना तो कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका को अपनाअपना दायित्व दिया गया ताकि हमारा लोकतंत्र आमजन को विकास के रास्ते पर स्वतंत्रता के साथ जीने का हक दे. जिस तरह आज नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में राज्यों की सरकारों के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ व्यवहार हो रहा है वह ज्यादती कहा जा सकता है और तानाशाही भी.

अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है. यह सच है कि इस मामले में दाखिल आरोपपत्र में एकाधिक जगह अरविंद केजरीवाल का नाम है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने धनशोधन रोकथाम अधिनियम के तहत समन जारी किया है.

सनद रहे कि पिछले साल जनवरी में दिल्ली की एक अदालत में दायर अपने प्रारंभिक आरोपपत्र में ऐजेंसी ने कहा था कि केजरीवाल ने मुख्य आरोपियों में से एक समीर महेंद्र के साथ वीडियो कौल में कथित तौर पर बात की थी और उसे सह आरोपी विजय नायर के साथ काम करना जारी रखने के लिए कहा था.

तो क्या केजरीवाल भी जेल जाएंगे ?

इस से पहले शराब घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछताछ की थी. सीबीआई ने केजरीवाल से 9 घंटे तक पूछताछ की थी. यही नहीं, उन से 56 सवाल पूछे गए. यहां यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि नागरिक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 135 के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, मुख्यमंत्री, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को गिरफ्तारी से रियायत मिली है.

मगर यह रियायत सिर्फ दीवानी मामलों में है, फौजदारी के मामलों में नहीं. ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा यह देखने लायक बात होगी. इधर ईडी ने आरोपपत्र में दावा किया है कि ऐजेंसी ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता के करीबी बुचीबाबू का बयान दर्ज किया था, जिस में उन्होंने बताया था कि के. कविता, केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के बीच तालमेल था. इस दौरान कविता ने मार्च 2021 में विजय नायर से भी मुलाकात की थी. इस मामले में एक और आरोपी दिनेश अरोड़ा ने भी ईडी को बताया है कि उस ने केजरीवाल से उन के आवास पर मुलाकात की थी.

ईडी का कहना है कि वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मंगुटा श्रीनिवासुलु रेड्डी और केजरीवाल के बीच कई बैठकें हुई थीं. केजरीवाल ने दिल्ली के शराब कारोबार में रेड्डी के प्रवेश का स्वागत किया था.

पूछताछ में बुचीबाबू और आरोपी अरुण पिल्लई ने खुलासा किया है कि वे शराब नीति को ले कर केजरीवाल और सिसोदिया के साथ मिल कर काम कर रहे थे. साथ ही आरोपी विजय नायर ने वीडियो कौल के जरिए केजरीवाल और गिरफ्तार आरोपी समीर महेंद्र में बात भी करवाई थी.

जनमानस में चर्चा

इस दौरान केजरीवाल ने समीर से कहा था कि विजय उन का आदमी है और उसे उस पर भरोसा करना चाहिए. इन सब तथ्यों के आधार पर अब गेंद प्रवर्तन निदेशालय के हाथ में है और जिस तरह भारत की राजनीति अंगड़ाई ले रही है उस के सही माने कोई भी निकाल सकता है.

यह भी आज जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है कि अगर ये चेहरे भारतीय जनता पार्टी के सरपरस्ती में होते तो क्या ऐसे ही केंद्रीय जांच का सामना करते, जेल जाते?

तलाक के बाद शादी : भाग 3

साधना जिस तरह देव के साथ सिमटी थी, उसे देख कर पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘आप पतिपत्नी को साथसाथ चलना चाहिए.’’

तभी 3 में से 1 मवाली ने कहा, ‘‘वही तो साब, अकेली औरत, सुनसान सड़क. हम ने सोचा कि…’’

इस से पहले कि उस की बात पूरी हो पाती, थानेदार ने एक थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘कहां लिखा है कानून में कि अकेली औरत, सुनसान सड़क और रात में नहीं घूम सकती है. और घूमती दिखाई दे तो क्या तुम्हें जोरजबरदस्ती का अधिकार मिल जाता है.’’

थानेदार ने कहा, ‘‘आप लोग जाइए. ये हवालात की हवा खाएंगे.’’‘‘तुम यहां कैसे?’’ साधना ने पूछा.

‘‘प्रमोशन पर,’’ देव ने कहा.

‘‘और परिवार,’’ साधना ने पूछा.

‘‘अकेला हूं. तुम्हारा परिवार?’’

‘‘अकेली हूं. भाईभाभी के साथ रहती हूं.’’

‘‘शादी नहीं की?’’

‘‘हुई नहीं.’’

‘‘और तुम ने?’’

‘‘ऐसा ही मेरे साथ समझ लो.’’

‘‘औफिस में तो दिखे नहीं?’’

‘‘कल से जौइन करना है.’’

फिर थोड़ी चुप्पी छाई रही. देव ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘खुश हो तलाक ले कर?’’ वह चुप रही और फिर उस ने पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘दूर रहने पर ही अपनों की जरूरत का एहसास होता है. उन की कमी खलती है. याद आती है.’’

‘‘लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है.’’

‘‘क्यों, क्या हम दोनों में से कोई मर गया है जो देर होचुकी है?’’

साधना ने देव के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

न दोनों ने पास के एक शानदार  रैस्टोरैंट में खाना खाया. ‘‘घर चलोगी मेरे साथ? कंपनी का क्वार्टर है.’’

‘‘अब हम पतिपत्नी नहीं रहे कानून की दृष्टि में.’’

‘‘और दिल की नजर में? क्या कहता है तुम्हारा दिल.’’

‘‘शादी करोगे?’’

‘‘फिर से?’’

‘‘कानून, समाज के लिए.’’

‘‘शादी ही करनी थी तो छोड़ कर क्यों गई थी,’’ देव ने कहा.

‘‘औरत की यही कमजोरी है जहां स्नेह, प्यार मिलता है, खिंची चली जाती है. तुम्हारी बेरुखी और मां की प्रेमभरी बातों में चली गई थी.’’

‘‘कुछ मेरी भी गलती थी, मुझे तुम्हारा ध्यान रखना चाहिए था, लेकिन अब फिर कभी झगड़ा हुआ तो छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी?’’ देव ने पूछा.

‘‘तोबातोबा, एक गलती एक बार. काफी सह लिया. बाहर वालों की सुनने से अच्छा है पतिपत्नी आपस में लड़ लें, सुन लें. एकदूसरे की.’’

अगले दिन औफिस के बाद वे दोनों एक वकील के पास बैठे थे. वकील दोस्त था देव का. वह अचरज में था,

‘‘यार, मैं ने कई शादियां करवाईं है और तलाक भी. लेकिन यह पहली शादी होगी जिस से तलाक हुआ उसी से फिर शादी. जल्दी हो तो आर्य समाज में शादी करवा देते हैं?’’

‘‘वैसे भी बहुत देर हो चुकी है, अब और देर क्या करनी. आर्य समाज से ही करवा दो.’’

‘‘कल ही करवा देता हूं,’’ वकील ने कहा.

शादी संपन्न हुई. इस बात की साधना ने अपनी मां को पहले खबर दी.

मां ने कहा, ‘‘हम लोग ध्यान नहीं रख रहे थे क्या?’’

साधना ने कहा, ‘‘मां, लड़की प्रेमविवाह करे या परिवार की मरजी से, पति का घर ही असली घर है स्त्री के लिए.’’

देव ने अपने पिता को सूचना दी. उन्होंने कहा, ‘‘शादी दिल तय करता है अन्यथा तलाक के बाद उसी लड़की से शादी कहां हो पाती है. सदा खुश रहो.’’ और इस तरह शादी, फिर तलाक और फिर शादी.

वक्त बदल रहा है : भाग 3

चपरासी के साथ शिवचरण को बाहर आता देख कर रामसेवक आश्चर्य- चकित हो उठा और तुरंत अपना मोबाइल निकाला और दोएक नंबरों पर बात की.

इस बीच, अंदर से घंटी बजी तो रामसेवक मोबाइल जेब में रख कर तुरंत उठ कर केबिन में आने के लिए तत्पर हुआ.

‘‘एस.पी. साहब से कहिए कि वह हम से जितनी जल्द हो सके संपर्क करें,’’ हरिनाक्षी ने कहा.

‘‘जी, मैडम,’’ रामसेवक ने तुरंत उत्तर दिया और बाहर आ कर एस.पी. शैलेश कुमार को फोन घुमाने लगा.

‘‘साहब, रामसेवक बोल रहा हूं. मैडम ने फौरन याद किया है.’’

‘‘ठीक है,’’ उधर से आवाज आई.

आधे घंटे बाद एस.पी. शैलेश कुमार हरिनाक्षी के सामने आ कर बैठे नजर आए.

‘‘शैलेशजी, क्या हम जिले के सभी पुलिस अधिकारियों की एक संयुक्त बैठक कल बुला सकते हैं?’’ हरिनाक्षी ने पूछा.

‘‘हां…हां…क्यों नहीं?’’ एस.पी. साहब ने तुरंत उत्तर दिया.

‘‘तो फिर कल ही सर्किट हाउस में यह बैठक रखें,’’ हरिनाक्षी ने आदेशात्मक स्वर में कहा.

‘‘जी, मैडम,’’ एस.पी. साहब ने हामी भरी.

कलक्टर हरिनाक्षी के आदेश के अनुसार संयुक्त बैठक का आयोजन हुआ. जिले के सभी पुलिस थानों के थानेदारों समेत सभी छोटेबडे़ पुलिस अधिकारी बैठक में शामिल हुए.

सभी उत्सुक थे कि प्रशासनिक सेवा में बडे़ ओहदे पर कार्यरत यह सुंदर दलित बाला कितनी कड़कदार बातें कह पाएगी.

हरिनाक्षी ने बोलना शुरू किया :

‘‘साथियो, जिले की कानून व्यवस्था को संतुलित बनाए रखना और आम जनता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना 2 अलगअलग चीजें नहीं हैं. आप को यह वरदी आतंक फैलाने या दबंगता बढ़ाने के लिए नहीं दी गई बल्कि आम लोगों के इस विश्वास को जीतने के लिए दी गई है कि हम उन की हिफाजत के लिए हर वक्त तैयार रहें.

‘‘बड़े अफसोस की बात है कि हमारे पुलिस थानों में आम जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है. इसलिए आम जन पुलिस थाने में जाने से डरते हैं जबकि पैसे वाले और प्रभावशाली लोगों को तरजीह दी जाती है. मेरे पास कई ऐसी शिकायतें लिखित रूप में आई हैं जिन्हें पुलिस स्टेशन में दर्ज होना चाहिए था, लेकिन वहां उन की बात नहीं सुनी गई.

‘‘मेरा सभी पुलिस अधिकारियों से यह आग्रह है कि मेरे पास आए ऐसे सभी आवेदनपत्रों के आधार पर केस संख्या दर्ज की जाए और संबंधित व्यक्तियों को बताया जाए और उन्हें आश्वस्त किया जाए कि उन की शिकायतों पर उचित काररवाई की जाएगी.’’

मैं अहम हूं : भाग 3

सासससुर ने भी कहा, ‘बहू, बबलू को तो हम संभाल लेंगे. हमारा और है ही कौन. पर तुम्हारा शरीर भी तो दोनों भार को सहन कर सके तब न. जो भी करो, सोचसमझ कर करो.’’ पर उस के सिर पर तो जैसे जनून सवार था. 6-7 दिन तक तो स्कूल में बबलू की खूब याद आती थी, फिर ठीक लगने लगा. पर रोज स्कूल से लौट कर जब घर में कदम रखती तो घर की कुछ अव्यवस्थता मन को खटकती. एक दिन जब वह स्कूल से लौटी तो घर में कोई मेहमान आए हुए थे. कामवाली घर पर नहीं थी तो नीलू उन को पानी दे रही थी. नीलू को देखते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर आ पहुंचा. बाल बिखरे हुए, फ्रौक की तुरपन उधड़ी हुई, हाथ में पेंटिंग कलर लगे हुए थे, अजीब हाल बना रखा था. नीलू को बगल से पकड़ कर खींचते हुए वह अंदर ले गई. उस का तमतमाता चेहरा देख कर वहां का वातावरण एकदम बोझिल हो गया. नीलू सुबकती हुई एक कोने में खड़ी हो गई. उस समय शशि को अपनी गलती का खयाल नहीं आया, बल्कि उसे सब पर गुस्सा आया कि सब उस से खार खाए बैठे हैं और जानबूझ कर उस का अपमान करना चाहते हैं. पर आज लगता है, वास्तव में उस ने अपनी नौकरी के आगे बाकी हर बात को गौण समझ लिया. पहले वह अजय के मोजे, रूमाल देख कर रख दिया करती थी, उस के कपड़ों पर प्रैस, बटन आदि का भी ध्यान रखती थी. दोपहर के समय बच्चों के पुराने कपड़ों को बड़ा करना, मरम्मत करना आदि काफी कुछ काम कर लेती थी. अब तो अजय अपने हाथ से बटन लगाना आदि छोटीमोटी मरम्मत कर लेता है, पर मुंह से कुछ नहीं बोलता. बबलू भी इन 2 ही महीनों में कुछ दुबला हो गया है. दादी दूध दे सकती हैं, खिला सकती हैं, प्यार भी बहुत करती हैं, पर मां की ममता व आरंभिक शिक्षा और कोई थोड़े ही दे सकता है.

फिर उस के कमाने से क्या फायदा हुआ, सिवा इस के कि घर का खर्चा पहले से बढ़ गया. सब कपड़े धोबी को जाने लगे और कपड़ों का नुकसान भी ज्यादा होने लगा. अब महरी को भी काम बढ़ जाने से ज्यादा पैसे देने पड़ते थे. आटो का खर्च अलग, इस प्रकार मासिक खर्च बढ़ ही गया. इस के अलावा घर और बच्चे अव्यवस्थित हो गए सो अलग. सास बेचारी दिनभर काम में पिसती रहती. और जब  नहीं कर पाती तो बड़बड़ाती रहती. इन्हीं 2 महीनों में घर की शांति भंग हो गई. जिस पर उस ने जो कल्पना की थी कि अपनी तनख्वाह से घर की सजावट के लिए कुछ खरीदेगी, उसे कार्यरूप से परिणत करना कितना मुश्किल है, यह उसे तुरंत पता लग गया. उसे कुछ कहने में ही झिझक हो रही थी. कहीं अजय यह न समझ ले कि उस ने सिर्फ इन दिखावे की चीजों के लिए ही नौकरी की है. अजय के मन में हीनभावना भी आ सकती है. पर यह सब उसे पहले क्यों नहीं सूझा? खैर, अब तो सुध आई. ‘बाज आई ऐसी नौकरी से,’ उस ने मन ही मन सोचा, ‘बच्चे जरा बड़े हो जाएं तो देखा जाएगा.’

अगले दिन उस ने अजय के चपरासी के हाथों एक महीने का नोटिस देते हुए अपना त्यागपत्र तथा एक दिन के आकस्मिक अवकाश की अरजी भेज दी. अजय ने यही समझा कि शायद तबीयत खराब होने से 1-2 दिन की छुट्टी ले रखी है. बादल उमड़घुमड़ रहे थे और बारिश की हलकीहलकी बूंदें भी पड़नी शुरू हो चुकी थीं. बहुत दिनों बाद उस रात को दोनों चहलकदमी को निकले. अजय ने पूछा, ‘‘क्यों, अचानक तुम्हारी तबीयत को क्या हो गया, तुम ने कितने दिन की छुट्टी ले ली है?’’

शशि बोली, ‘‘हमेशा के लिए.’’ अजय परेशान सा उस की ओर देखने लगा, ‘‘सच, शशि, सच, अब तुम नहीं जाओगी स्कूल? चलो, अब कमीजपैंट में बटन नहीं टांकने पड़ेंगे. धोबी को डांटने का काम भी अब तुम संभाल लोगी. हां, अब रात को थके होने का बहाना भी नहीं कर सकतीं. पर यह तो बताओ, नौकरी छोड़ क्यों दी?’’

शशि उस के उतावलेपन को देख कर हंसते हुए मजा ले रही थी. उसे पति पर दया भी आई, बोली, ‘‘हां, मुझे नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी, जनाब दरजी तो बन ही जाते. अजीब आदमी हो, कम से कम एक बार तो मुंह से कहा होता कि शशि, तुम्हारे स्कूल जाने से मुझे कितनी परेशानी होती है.’’ डियर, हम तो शुरू से कहना चाहते थे, पर हमारी बात आप को तब जंचती थोडे़ ही. हम ने भी सोचा कर लेने दो थोड़े मन की, अपनेआप सब हाल सामने आएगा तो जान जाएगी. पर यह उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी नौकरी छोड़ने को तैयार हो जाओगी. खैर, तुम ने अपनी परिस्थिति पहचान ली तो सब ठीक है,’’ फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘हां, शशि सद्गृहिणी बनना कितना कठिन है. तुम जब अपने इस दायित्व को अच्छे से निभाती हो तो मुझे कितना गर्व होता है, मालूम है? यह मत सोचो कि मैं तुम्हें घर से बांधने की कोशिश कर रहा हूं. मेरी ओर से पूरी छूट है, तुम पढ़ोलिखो, कुछ नया सीखो, पर अपने दायित्व को समझ कर.’’

फिर कुछ दूर दोनों मौन चलते रहे. अजय को लग रहा था कि शशि कुछ पूछना चाह रही है, पर हिचक रही है. 2-3 बार उस ने शशि की ओर देखा, मानोे हिम्मत बंधा रहा हो. ‘‘इंदु को देख कर आप को यह नहीं लगता कि वह कितनी लायक औरत है, उस ने अपना घर कैसे सजा लिया है. तब आप को मुझ में कमी नहीं लगती?’’ आखिर शशि ने पूछ ही लिया. अजय इतना खुल कर हंसे कि राह के इक्कादुक्का लोग भी मुड़ कर उन की ओर देखने लगे. आखिर हंसने का यह कैसा और कौन सा मौका है, शशि समझ न पाई. जब उन की हंसी रुकी तो बोले, ‘‘तुम को क्या लगता है कि मनोज बहुत खुश है. वह क्या कह रहा था मालूम है? ‘यार, जबान का स्वाद ही चला गया. मनपसंद चीजें खाए अरसा हो गया. श्रीमतीजी दफ्तर से आ कर परांठे सेंक देती हैं, बस. इतवार के दिन वे छुट्टी के मूड में रहती हैं. देर से उठना, आराम से नहानाधोना, फिर होटल में खाना, पिक्चर, बस. यार, तू बड़ा सुखी है. यहां तो हर महीने मांबाप को रुपए भेजने पर टोका जाता है. आखिर मांबाप के प्रति कुछ फर्ज भी तो है कि नहीं?

‘‘और सुनोगी? उस दिन हमारे बच्चों को देख कर बोला, ‘यार, तुम्हारे बच्चे कितने सलीके से रहते हैं. इच्छा तो होती है कि इंदु को बताऊं कि देखो, इन बच्चों को शिष्टचार की कोई सीख कौन्वैंट या पब्लिक स्कूल से नहीं, बल्कि मां के सिखाने से मिली है.’

‘‘मैं ने यह सुन कर कैसा अनुभव किया होगा, तुम अनुमान लगा सकती हो, यही तुम्हारी जीत थी, और तुम्हारी जीत यानी मेरी जीत. इंदु की आधी तनख्वाह तो अपनी साडि़यों, मेकअप, होटल और सैरसपाटे में खर्च हो जाती है. बेटे को छात्रावास में रखने का खर्च अलग. उस में अहं की भावना है, और ‘मेरे’ की भावना से ग्रस्त वह यही समझती है कि उस के नौकरी करने से ही घर में इतनी चीजें आई हैं. जहां यह ‘मेरे’ की भावना आई, घर की सुखशांति नष्ट समझो.’’ कुछ रुक कर अजय बोले, ‘‘चलो, शशि, अब घर चलें, काफी दूर निकल आए हैं,’’ फिर धीरे से बोले, ‘‘आज के बाद रात को थकान का बहाना न चलेगा.’’

शशि को गुदगुदी सी हुई और बहुत दिनों बाद उस के मन में बसी बेचैनी दूर जाती लगी.

गुड्डन : भाग 3

निशा ने उस की ओर आंखें तरेर कर देखा और फोन पर अपनी आदत के अनुसार रानी के घर की चटपटी खबर को इधर से उधर कर के अपने मनपसंद काम में जुट गईं.

लगभग महीने पहले उन की सासूमां का इंतकाल उन के देवर के घर में हो गया था. निशा चालाक थी, उन्होंने सासूमां के जेवर दबा कर रख लिए थे और अब वे उसे किसी के साथ बांटना नहीं चाह रही थीं…

पूरा का पूरा वे अकेले ही हजम करना चाह रही थीं. उन के देवर सतीश और ननद संध्या उन पर बंटवारा करने का दबाव बनाए हुए थे. लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया था कि उन के पास कोई जेवर नहीं हैक्योंकि उन की नियत खराब थी.

पर पति रवि बंटवारा करने के लिए उन पर दबाव डाल रहे थे. उसी सिलसिले में वे लोग कई बार आ चुके थे और हर बार गरमगरम बहस के बाद कोई न कोई बहाना बना कर वे उन्हें अपने घर से जाने पर मजबूर कर देती थीं.

भाभीआप मेरे हिस्से का जेवर मुझे दे दीजिएमुझे ईशा की शादी करनी है. सोना इस समय इतना मंहगा है… आप को तो मेरी हैसियत के बारे में अच्छी तरह से पता है…’’

संध्या भी हिम्मत कर के बोली,”भैयाआप ने अम्मां का सारा जेवर दाब लिया… यह गलत बात है कि नहींघरमकान में तो हिस्सा नहीं मांग रहे हैं. जेवर का तो बंटवारा कर ही दो.”

गुड्डन काम करती सारी बातें ध्यानपूर्वक सुन रही थी तभी जैसे ही निशा को याद आया कि गुड्डन सारी बातें सुन रही होगी तो उन्होंने तेजी से आ कर उस से बरतन हाथ से छुड़वा कर कहा कि इस समय जाओशाम को आना.

पर होशियार गुड्डन को तो मसाला मिल गया था कि निशा आंटी कितनी शातिर हैं. उन्होंने सब का हिस्सा दबा कर रख लिया है.

सतीश और संध्या अकसर आतेआपस में बातचीतकहासुनी और बहसबाजी होती पर अंतिम निर्णय कुछ भी नहीं हो पाता क्योंकि निशा की नियत खराब थीवह किसी को कुछ देना ही नहीं चाहती थीं. वे गुड्डन के सामने रोरो कर नाटक करतीं कि ये लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं…

एक दिन गुड्डन उन से बोली,”आंटीअम्मां कथा सुन कर आईं तो बता रही थीं कि हमारे धरम में बताया गया है कि भाईबहन का हिस्सा हजम करना बहुत बड़ा पाप होता है.”

निशा को तत्काल कोई जवाब नहीं सूझा था. वे खिसिया कर बोलीं,”चल बड़ी धरमकरम वाली बनी है.”

एक दिन गुड्डन सुबहसुबह बड़ी घबराई हुई सी आई थी,”आंटीजीआंटीजी…”

क्या हुआक्यों चिल्ला रही हो?”

आप को किसी ने खबर नहीं दीगेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी है. कई सारे पुलिस वाले श्याम अंकल को अपने साथ ले कर जा रहे थे. उन्हें कुछ पूछताछ करनी है. गार्ड लोग आपस में बात कर रहे थे कि श्याम अंकल ने ₹10 करोड़ का घोटाला किया है. उसी की जांच चल रही थी. घर में छापा पड़ा है. बहुत सारे अफसर उन के घर में घुस कर छानबीन कर रहे हैं.

आंटीजी 10 करोड़ में बहुत सारा रुपया होता होगा न?’’

निशा नीर से हमेशा से चिढ़ती थीउस की तरफ देख कर बोली,”हां…हां… बहुत सारा होता है…”

वे बड़बड़ाने के अंदाज में बोलीं,”बड़ी अकड़ कर रहती थीं मिसेज श्याम. आज स्विट्जरलैंड तो कल पैरिस… यह हार तो श्यामजी ने मेरे बर्थडे पर गिफ्ट किया था…अब आज क्या इज्जत रह गई…?”

आंटीजी आप लोग हम लोगन को बेकार में भलाबुरा कह के बदनाम करती रहती हैं… कम से कम हम लोग भाईबहन का हिस्सा तो नहीं मार कर रख लेते… हम लोग बैंक की रकम तो नाहीं मार लेते. हम लोग खोली में चाहे कितना लड़झगड़ लें लेकिन यदि कोई पर मुसीबत आ जाए तो तुरंत सब उस के दरवाजे पर मदद करने के लिए इकट्ठा होय जात हैं…

आज श्याम अंकल का मुंह उतरा हुआ था. उन के आसपास दूरदूर तक कोई नहीं खड़ा हुआ था… नीरा दीदी फूटफूट कर रो रही थीं… उन का फोन भी उन से ले लिया… सब लोग बताय रहे थे. हम तो सुबह से गार्ड के पास ही खड़े होय कर सब तमाशा देख रहे थे… बेचारी नीरा दीदी…”

गुड्डन को आंसू बहाते देख निशा उस की भावुकता देखसमझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें और इस से क्या कहें… वे उस के लिए गिलास में पानी ले कर आईं,“लो पानी पी लो और चुप हो जाओ. उन के वकील उन्हें छुड़ा कर बाहर लाने के लिए कोशिश कर रहे होंगे और वह जल्दी ही छूट कर आ जाएंगे.”

लेकिन मन ही मन में निशा सोच रही थीं कि गुड्डन भला इस केस की पेचीदगी को क्या समझेगी? पर आज गुड्डन की भावुकता को देख कर पता नहीं क्यों नीरा की बेबसी के बारे में सोच कर वह भी उदास हो उठी थीं.

एक स्त्री की बेचारगी के बारे में सोच कर उन की आंखें भी भीग उठीं.

गुड्डन के हाथ काम कर रहे थे लेकिन वह निरंतर बड़बड़ा रही थी,”सब देखने के बड़े आदमी बनते हैं… कोई किसी के दुख में नाहीं खड़ा होता… बड़े आदमी खालीपीली दिखावा करना जानत हैं…”

गुड्डन लगातार रोए जा रही थी और उस के निश्छल आंसुओं के कारण उन का भी दिल भर आया था और वे भी उदास हो उठी थीं.

छठी इंद्रिय : भाग 3

एक दिन उस ने थिरकतेथिरकते मदहोश हो कर उन्हें अपनी बांहों में भर कर किस कर लिया. यद्यपि वे संकोचवश शरमा कर उस से अलग हो गईं, पर सच तो यह था कि शायद इन पलों का वे कब से इंतजार कर रही थी.

काश, वह हमेशा के लिए उन की नजरों के सामने रहता. वे हर क्षण षोडशी की भांति उस की कल्पना में खोई रहतीं. इन क्षणों को अपनी मुट्ठी में, स्मृति में कैद कर लेना चाहती थीं.

एक दिन उन के लंबे बालों से खेलते हुए उस ने छोटे बालों के लिए अपनी पसंद जाहिर की.

वे पार्लर गईं और अपने लंबे बालों पर कैंची चलवा दी. नए हेयर कट में स्वयं को आईने में देख शरमा उठीं. जाने क्यों प्रत्यूष के प्रति उन के मन में दीवानापन बढ़ता ही जा रहा था.

गीत सहमी सी रहतीं कि कहीं प्रत्यूष उन्हें छोड़ कर दूसरी हमउम्र लड़की के साथ अपने प्यार की पींगें न बढ़ाने लगे.

उस दिन नीचे खड़ी लिफ्ट का इंतजार कर रही थीं, तभी वहां प्रत्यूष भी आफिस से लौट कर आ गया. उन के चेहरे पर उस की निगाह पड़ी तो मुंह खुला का खुला रह गया.

खुशी के मारे आज सब के सामने उस ने उन्हें अपनी बांहों के घेरे में जकड़ लिया.

गीत ने अपेन को छुड़ाते हुए प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘सब देख रहे हैं.’’

‘‘नाइस हेयर स्टाइल… लुकिंग सो स्वीट ऐंड यंग.’’

उस की आंखों में प्यारभरी खुशी का भाव दिखाई दे रहा था. उस की आंखों में उन के प्रति दीवानगी साफ दिखाई दे रही थी. शायद यही तो वे कब से चाह रही थीं.

‘‘आज शाम को क्या कर रही हो? फ्री हो तो शौपिंग पर चलते हैं.’’

गीत प्रत्यूष के साथ मौल गईं. अभी तक वे इंडियन ड्रैसेज ही पहनती थीं, लेकिन आज उस के आग्रह को नहीं टाल पाईं. ढेरों वैस्टर्न ड्रैसेज पसंद कर लीं. जब उन ड्रैसेज को ट्रायलरूम में पहन कर उसे दिखातीं तो उस की आंखें खुशी से चमक उठतीं.

वहीं कैफेटेरिया में दोनों कौफी का और्डर दे कर एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले बैठे थे.

‘‘गीत, तुम ने तो मुझे अपना दीवाना बना लिया है,’’ वह बोला.

गीत उस के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रही थीं. मुसकरा पड़ी थीं. लेकिन मन ही मन सोच रही थीं कि वह 38 साल की प्रौढ़ा और यह 28 साल का खूबसूरत स्मार्ट युवक जाने कब उन्हें छोड़ कर अकेला कर दे, इसलिए उन्हें अपने पर कंट्रोल करना होगा. गलत रास्ते पर कदम बढ़ाती चली जा रही हैं. उन्हें उस से दूरी बना कर अपनी पुरानी दुनिया में लौटना होगा.

मगर उसे देखते ही उन के इरादे रेत के महल की तरह ढह जाते और वे उस के प्यार में डूब जातीं. उस के साथ कभी पिक्चर, थिएटर, कभी ड्रामा, कभी डिनर तो कभी मौल… समय को पंख लग गए थे. इन मधुर पलों को वे अपनी स्मृतियों में संजो लेना चाहती थीं.

जब भी वह उन का हाथ पकड़ता, वे सिहर उठतीं, एक दिन फ्रिज से बीयर की बोतल निकाल कर बोला, ‘‘आज सैलिब्रेशन हो जाए.’’

‘‘किस बात की?’’

‘‘मेरीतुम्हारी दोस्ती के लिए.’’

मंदमंद संगीत, हलका सुरूर… वे मुसकरा उठी थीं. थिरकतेथिरकते वे उस की बांहों में खो गईं.

आज दोनों के बीच के सारे बंधन टूट गए. दोनों एकदूसरे में समा गए. वे गहरी निद्रा के आगोश में चली गईं.

जब आंख खुली, तो अपनी अस्तव्यस्त दशा देख एक क्षण को उन्हें झटका सा लगा कि उफ, उन्होंने यह क्या कर डाला. प्रत्यूष उन के बारे में क्या सोचेगा? शायद शरीर की चाहत के कारण वे बहक गई थीं.

वे तेजी से दूसरे कमरे में गई तो देखा प्रत्यूष आराम से सो रहा है. उन के अंदर उस से नजरें मिलाने का भी साहस नहीं हो रहा था.

रात्रि का खुमार नहीं उतरा था, चेहरे पर तृप्ति और संतुष्टि की मुसकान थी तो मन ही मन प्रत्यूष के रिएक्शन के प्रति डर और घबराहट भी थी. उन की निगाहें आकाश में उगते सूर्य के गोले को देख रही थीं. उगता सूर्य कितनों के जीवन में खुशियों का उजाला लाता है, तो कितनों को गम देता है. आज चिडि़यों का चहचहाना उन के कानों में मधुर संगीत का आभास दे रहा था. रोज की तरह उन्होंने उन के लिए दाना डाला.

प्रत्यूष की आहट से वे संकुचित हो उठी. वे उस का सामना करने से हिचक रही थीं. उस के हाथों में ग्रीन टी का कप था.

‘‘हैलो…’’ उस ने कप को मेज पर रखा और फिर घुटनों के बल उन का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मैं भी अकेला, तुम भी अकेलीं विल यू मैरी मी?’’

ये वे लफ्ज थे, जिन का गीत को बरसों से इंतजार था. आज पहली बार उन्होंने स्वयं उसे अपनी बांहों में भर लिया.

गीत खुशियों के झूले में झूल रही थीं. शादी कर के अपने रिश्ते को एक नाम देना चाहती थीं, वे अपने भाईबहन और करीबियों को बुला कर अपनी खुशी में शामिल करना चाहती थीं.

सब से पहले प्रत्यूष की मां से मिलने चलने का आग्रह उन्होंने उस से किया तो वह नाराज हो उठा. वह आर्यसमाज मंदिर में गुपचुप तरीके से शादी करने के पक्ष में था और वे कोर्ट के द्वारा रजिस्टर्ड मैरिज करना चाहती थीं. इसी विषय में दोनों के बीच थोड़ा तनाव भी हो गया. वह उन के लिए एक डायमंड की अंगूठी ले आया था, लेकिन उन की पारखी निगाहें पलभर में पहचान गईं कि यह नकली है.

कुछ दिन बाद ही उस ने बताया कि शांतनु उसे धोखा दे कर उस के पैसेकपड़े सबकुछ ले कर न जाने कहां चला गया. कमरे को भी छोड़ दिया है. उस के प्यार में पागल वे उस की बातों में आ गईं और दोनो लिवइन में रहने लगे. गीत ने उस पर विश्वास कर के हमदर्दी दिखाते हुए अपना एटीएम कार्ड दे दिया.

प्रत्यूष उन के पैसों पर ऐश करने लगा. कभी शौपिंग तो कभी पार्टी के बिल के मैसेज उन के फोन पर उन्हें मिलते रहते. जब एक दिन उन्होंने पूछा कि किस के संग पार्टी थी तो वह अकड़ कर बोला, ‘‘मेरी सैलरी आने वाली है… सारे पैसे चुका दूंगा.’’

उस के कहने का लहजा उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन्होंने गौर किया कि जब भी कोई फोन आता तो वह उन के सामने बात नहीं करता. दूसरे रूम में भी नहीं वरन घर से बाहर जा कर घंटों लंबी बातें करता. उन्होंने उस का फोन या लैपटौप चैक करने की कोशिश की पर वह हरदम लौक लगा कर रखता और अपना पासवर्ड भी नहीं बताता.

उस की यह सब बातें उन्हें खटकने लगीं. उन्हें महसूस हुआ कि जरूर कहीं दाल में काला है. अचानक उन की छठी इंद्रिय जाग्रत हो उठी. उन्होंने चुपचाप से कई जगह स्पाई कैमरे लगवा दिए. फिर वे उस की असलियत पता लगाने में जुट गईं.

सोसायटी के वाचमैन और प्राइवेट डिटैक्टिव की सहायता से चंद दिनों में ही उन की आंखों के समक्ष उस के कुकर्मों की कुंडली खुल गई. वह स्वयं अपनी मृगमरीचिका में छले जाने से बच गईं  थीं.

प्रत्यूष इंजीनियर नहीं था वरन, एक गैंग का सदस्य था, जो अलगअलग शहरों में प्यार का जाल बिछा कर लड़कियों को फंसा कर उन की अस्मत से खेलता था और लौकर में रखी रकम लूटता था. इस में उस का भोलाभाला सुंदर चेहरा और धारा प्रवाह इंग्लिश बोलना बहुत काम आता था.

इस बार गीत को लूटने का जाल रचा था. उन के लौकर को मास्टर चाभी से खोलने की कोशिश करने की संदिग्ध हरकतें कैमरे में कैद थीं. वह उन का डायमंड सैट और कैश ले कर नौ दो ग्यारह होने की कोशिश में था.

पुलिस ने कैमरे के सुबूत के आधार पर उस के हाथों में हथकड़ी लगा दी.

गीत का प्यार का खुमार उतर चुका था. उसे इस हालत में देख उन की आंखें डबडबा उठीं थीं. जीवनसाथी की तलाश में वे अपने ही बुने जाल से मुक्त हो कर बहुत खुश थीं. वे अपने अनुभव को शब्दों के माध्यम से सब के सामने ला कर अपनी छठी इंद्रिय को बारबार धन्यवाद दे रही थीं.

गुलजा़र बालकनियां : भाग 3

चलिएमैं आप को मूलचंद ले चलती हूं.’‘क्यों?’‘क्या आप ने वहां के परांठे खाए हैं?’‘नहीं तो.’‘तो आज मैं आप को खिलाती हूं.जल्दी घर आ जाने वाले नाथू जी उस दिन मंत्रमुग्ध घूमते रहे. ढाबे के परांठे खाएपंडारा रोड पर चाय पी. रात 9 बजे साची ने उन्हें घर छोड़ दिया. साची हवा के झोंके की तरह उन के मन में घुसती जा रही थी.

एक दिन उन के फोन पर लगातार घंटी बज रही थी. देखातो किसी अजनबी का नंबर था. इसलिए उठाना उचित नहीं समझा. कई बार फोन आया तो झुंझला कर उठा लिया. उधर से आवाज़ आई, ‘क्या नाथू जी से मेरी बात हो रही है?’

जी हांमैं नाथू ही बोल रहा हूं.’‘साची जी की तबीयत खराब है. वे अस्पताल में हैं. मैं प्रकाश हौस्पिटल से बोल रहा हूं.’‘क्या हुआ उन्हें?’‘कुछ ज्यादा नहीं.’ ‘अच्छाकोई बात नहींमैं आता हूं. बसदो मिनट में पहुंचा.हौस्पिटल जा कर पता चला कि गैस की बीमारी के कारण रात में उन की हालत खराब हो गई थी. नाथू को देखते ही मुसकराने की कोशिश करते हुए सची ने कहा, ‘परेशान कर दिया न आप को. इसीलिएसिर्फ इसीलिए मैं बेटियों के पास जाना चाहती थी वरना कौन अपना देश छोड़ता है.

अब कैसा महसूस हो रहा है?’‘काफी बेहतर.तभी दरवाज़ा खुला और एक युवती कमरे में दाखिल हुई जिस की शक्ल हूबहू साची जैसी थीइसलिए यह अंदाजा़ लगा पाना मुश्किल न था कि वह उन की बेटी ही होगी. आते ही मां से उन का हालचाल पूछने के बाद उस ने अजनबी की तरफ देखा ही था कि साची ने कहा, ‘ये नाथू जी हैं. मेरे बहुत अच्छे दोस्त. इंश्योरैंस का सारा काम यही देख रहे हैं.

कब तक ममा का काम हो जाएगाअंकल,’‘बसजल्दी ही पूरा हो जाएगा. मैं कोशिश करता हूं.’‘ममामेरे पास बस 2 दिनों का समय है. मैं किसी काम से जरमनी आई थीइसलिए ख़बर मिलते ही 8-10 घंटे में पहुंच गई. इस बार मैं आप को यहां अकेला नहीं छोड़ने वाली. बस.’‘कहां मैं अकेली हूं. देखोसतीश अंकल ने मदद की और अस्पताल पहुंचा दिया और नाथू जी भी सूचना मिलते ही भागे चले आए.

सारा ने नाथू जी की तरफ देखा तो नाथू जी को लगा जैसे उन की चोरी पकड़ी गई हो. उन्होंने निगाह नीची कर ली. सारा ने कहा, ‘पर एक न एक दिन चलना ही हैतो अभी क्यों नहींमैं ने दीदी को प्रौमिस कर दिया हैइसलिए इस बार मैं आप की एक न सुनूंगी.

मांबेटी को बातों में मसरूफ देख नाथू जी ने कहा, ‘अच्छामुझे अब इजाज़त दीजिए. सारा बेटी तो आ ही गई है. कोई परेशानी हो तो बेटामुझे फोन कर देना.

जीअंकल,’दूसरे दिन सारा का फोन आया, ‘अंकलमैं ममा को ले कर कल अमेरिका जा रही हूं. आप प्लीज ममा का जितना काम हो सकेकरवा दीजिए. हांममा को ले कर मैं औफिस आ रही हूं जहां भी साइन करवाना होकरवा लीजिएगा.’‘पर उन की तबीयत?’

अब ठीक हैं.इस बार जब साची औफिस आई तब चेहरे पर न वह चपलता थी न मुसकराहट.नाथू जी ने पूछा, ‘क्या आप अमेरिका अपनी मरजी से जा रही हैं?’‘इस के सिवा और कोई चारा भी तो नहीं है. बच्चे मान नहीं रहे. कल शाम की फ्लाइट है. यदि आप व्यस्त न हों तो चलिए हमारे साथ एयरपोर्ट.

सोच कर बताता हूं.नाथू जी को न खाना अच्छा लग रहा था न सोना. उन्हें कारण पता था पर परिस्थितियों पर उन का वश नहीं था. आखिरकार वह घड़ी भी आ गई जिस से वे डर रहे थे. दूसरे दिन शाम 5 बजते ही फोन आया, ‘नाथू जीतैयार हो जाइएहम लोग पहुंच रहे हैं.’‘इतनी जल्दी!

अरे जल्दी कहांऔर फिर थोड़ा समय साथ बिताएंगे. जल्दी तैयार हो जाइए.पूरे रास्ते कार में चुप्पी छाई रही. एयरपोर्ट पहुंच कर उतरतेउतरते साची ने सारा से कहा, ‘क्या चलना जरूरी है?’‘मतलबआप का टिकट हो गया हैममा. और अब?’

हांदिल छोटा हो रहा है. न जाने क्यों रोने को मन कर रहा है.’‘पर अकेली कैसे रहेंगी आप?’‘मैं हूं न,’ अचानक नाथू जी बोल पड़ेफिर खुद ही झेंप गए.सारा ने झटके से अपना सामान उतारा और गुस्सा दिखाती हुई अंदर जाने लगी. साची ने कहा, ‘रुक बेटागले तो मिल ले.’‘क्या जरूरत है आप को हमारी! अब तो आप का खयाल करने वाले दोस्त मिलने लगे हैं.

सारा चली गई. साची अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को रोकने का भरपूर प्रयास करने के लिए इधरउधर देखने की कोशिश कर रही थी. नाथू जी का मन किया कि हाथ पकड़ कर कह दें कि रो लेजितना रोना चाहती है  पर दोनों के बीच खामोशी छाई रही. नाथू जी ने टैक्सी बुक की और दोनों वापस चल पड़े. रास्ते में नाथू जी ने कहा, ‘सारा से बात कर लीजिए.

जवाब में साची ने पूछा, ‘क्या आप मुझ से शादी करेंगे?’‘क्या…’ जो नाथू जी कहना चाहते थेवही बात साची से सुन कर उन का पूरा शरीर कांप गया. थोड़ा हकलाते हुए कहा, ‘जीजी आप अभी दुखी हैंकल बात करते हैं.’‘दुखी तो हूं पर पूरे होशोहवास में हूं और आप की मरजी जानना चाहती हूं.’‘आप के बच्चेमेरे बच्चे और यह समाज क्या कहेगा?’‘जब मेरे पति नहीं रहे तब मैं ने बच्चों को कैसे पालाक्या समाज ने जानने की कोशिश की?’

शायद मेरे और आप के बच्चों को ठीक नहीं लगेगा.’‘वह बाद का मसला है. हमारे संबंध के बारे में मैं आप की राय जानना चाहती हूं.नाथू जी कुछ नहीं बोल पाए. पूरे रास्ते खामोशी छाई रही. घर पहुंच कर साची उतर गई तो नाथू जी को लगावे कुछ कहेगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.

पूरी रात यह सोचते रहे कि बेटों से कैसे बात की जाएबहुए हैंआगे नातीपोते हैं. सारी दुनिया हंसेगी. नहींयह ठीक नहीं हो रहा है… कब आंख लग गई. पता ही नहीं चला. फोन की घंटी से नींद खुली. सूरज का फोन था. उस ने कहा, ‘पापाआरती के चाचाजी की शादी में मैं परिवार समेत 2 दिनों बाद भारत आ रहा हूं.

चाचाजी की शादीइस उम्र में?’‘क्योंक्या शादी सिर्फ जवान लोग ही करते हैंबुढ़ापे में तो साथ की सब से ज्यादा जरूरत होती हैपापा. किसी को आप के आने का इंतजार हैयही सोच जीने की ललक पैदा कर देती है. आप कैसे इतने बड़े घर में अकेले रह लेते हैंआरती हमेशा कहती हैपापा को शादी कर लेनी चाहिए. आप सुन रहे हैं नपापा.

हांहांसब सुन रहा हूं. अच्छाकितने बजे की फ्लाइट है.’‘सुबह 7 बजे की. 9 बजतेबजते हम घर पहुंच जाएंगे.बच्चों के साथ वे सबकुछ भूल गए. एक पल के लिए साची याद नहीं आई. एक शाम आरती ने आ कर कहा, ‘पापाकिसी साची का फोन है आप के लिए.’ वे घबरा गए जैसे किसी ने उन की चोरी पकड़ ली हो. फोन ले कर कहा, ‘हैलो.’‘लगता हैघर में बच्चे आए हैं.’‘जीबड़ी रौनक आ गई है इन के आने से.

क्या सोचा आप ने हमारे संबंध के बारे में?’‘मुझे ठीक नहीं लगता. हम दोस्त हैं नसारी जिंदगी दोस्त रह कर भी तो साथ दे सकते हैं.’‘दुनिया बड़ी जालिम है. यह हमारी दोस्ती पर भी उंगली उठाएगीअच्छा खैर छोड़िएमैं कुछ दिनों के लिए अमेरिका जा कर देखना चाहती हूं कि वहां कैसा लगता हैअच्छा लगा तो ठीक हैवरना वापस आ जाऊंगी.’ वे कुछ कह नहीं पाए.किस का फोन थापापा?’ पापा को परेशान देख कर आरती ने पूछा.

मेरी एक दोस्त का.’‘मिलवाइए उन से.’‘वे अमेरिका जा रही हैं अपनी बेटियों के पास.’‘क्यों?’‘अकेली हैंपति को गुज़रे 8 वर्ष हो गए.’‘बेचारी बेटियां.’‘क्या मतलबबेटियां बेचारी क्यों?’‘ये तो जिम्मदारी बन गईं उन की.’‘बुढ़ापे में बच्चे ही मांबाप का सहारा बनते हैंबोझ नहीं समझते.

तभी सहर्ष खेलता हुआ आया और दादाजी से बोला, ‘दादूआप भी शादी कर लीजिए ताकि जब हम घर पर आएं तो दादी भी मिल जाएं. सही समय देख नाथू जी ने हकलाते हुए कहा, ‘मैं भी सोच रहा हूं.’ आरती का हाथ काम करतेकरते रुक गया. सूरज घंटों से लैपटौप में घुसा थाअचानक लैपटौप को थोड़ा झुका कर पापा की तरफ देखने लगा. आरती ने ही पहल की, ‘कौन है पापाजिस से आप शादी करना चाहते हैं?’ नाथू जी को चुप देख कर उस ने फिर पूछा, ‘कहीं उन्हीं का फोन तो नहीं आया था?’ नाथू जी ने हां में सिर तो हिला दिया पर आंख उठा कर बच्चों से नज़रें नहीं मिला पाए.

यह तो बहुत अच्छी बात हैपापा. मैं सुगंध से बात करता हूं. वह भी खुश हो जाएगा. हम दोनों को हमेशा यही चिंता रहती है कि आप को बहुत अकेलापन लगता होगा. दादी भी नहीं रहीं. जब तक दादी थीं तब तक बड़ी निश्चिंतता थी पर अब चिंता रहती थी.’‘तो तुम लोगों को कोई फर्क तो नहीं पड़ेगा?’

यह तो अच्छी बात हैपापा. आप को इस समय सब से ज़्यादा एक सच्चे और अच्छे दोस्त की जरूरत है और पत्नी से अच्छा कोई दोस्त हो ही नहीं सकता.नाथू जी की बांछें खिल उठीं. मन उत्साह से भरा जा रहा था. सोचातुरंत फोन कर के साची को बता दें पर उतावलापन अच्छा नहींबाद में फोन करेंगेयह सोच कर सोने चले गए.

दूसरे दिन साची को फोन किया पर कोई उत्तर न पा कर सोचाकहीं व्यस्त होगी. फोन के इंतजा़र में एक पल भी काटना भारी लग रहा था. कहीं नाराज़ तो नहीं हो गईयह सोच कर फिर फोन किया. उधर से आवाज़ आई, ‘अरे सौरीसौरीउस समय मैं एजेंट के पास बैठी थीइसलिए फोन नहीं उठा पाई.

एजेंट के पास?’‘हांआप को बताया तो थाअमेरिका जाना है न.थोड़ी देर तक खामोशी छाई रहीफिर साची ने ही पहल की, ‘क्या हो गयाचुप क्यों हैंक्यों फोन किया था?’‘वह…वह…’‘वह क्याजल्दी बताइएबहुत काम करना है.’‘मेरे बच्चे हमारी शादी के लिए तैयार हैं’‘क्याक्या कहादोबारा कहिए.

मेरे बच्चे चाहते हैं हम विवाह कर लें.’‘पर अचानककैसे हुआ?’‘मिलूंगा तब बताऊंगा. अभी आप अपना टिकट मत करवाइए. कल खाने पर मिलते हैं.’‘कल नहीं3 दिनों बाद क्योंकि तब तक मेरी बेटियां भी आ सकती हैं.दोनों परिवार मिले. नाथू के बेटे इस बात से खुश थे कि सालों बाद पापा का अकेलापन दूर हो जाएगा तो साची की बेटियां इस बात से खुश थीं कि ममा को जीने की वज़ह मिल गई. नाथू जी ने कहा कि कल हम सादगी के साथ कोर्ट में शादी करेंगे.

बिलकुल नहींबिलकुल नहीं,’ दोनों बहुओं के साथसाथ साची की बेटियों ने भी एकसाथ कहा. अरे भईहमारे पापामम्मी लोगों के लिए मिसाल हैंइसलिए कुछ कमाल और धमाल तो होना ही चाहिए. शादी पूरे धूमधाम से होगी. शायद इसी शोरशराबे और जश्न ने उन दोनों को लोगों का दुश्मन बना दिया. हर गलीहर चौराहे पर नए दंपती की चर्चा हो रही थी. इसी चर्चा ने सुनसान बालकनियों को गुलजा़र कर दिया.

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