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संपत्ति के मामले में बरतें सावधानी, किसी पर न करें भरोसा

कृष्ण को मारने की कोशिश करने वाले कंस मामा के नाम से कुविख्यात कंस को कौन नहीं जानता. कंस ने अपने पिता उग्रसेन को राज पद से हटा कर जेल में डाल दिया था और स्वयं शूरसेन जनपद का राजा बन बैठा था. शूरसेन जनपद के अंतर्गत ही मथुरा आता है. कंस के काका शूरसेन का मथुरा पर राज था. जल्द ही कंस ने मथुरा को भी अपने शासन के अधीन कर लिया था और अथाह दौलत और राजपाठ का अकेला स्वामी बन गया था.

इसी तरह कैकई का राजपाठ, वैभव और धन दौलत के प्रति प्यार भी छिपा नहीं है. उस ने अपने ही सौतेले बेटे राम को जंगल भेज कर अयोध्या के सारे ऐश्वर्य और दौलत पर अपने बेटे भरत के जरिए एकाधिकार का सपना देखा था.

मतलब यह कि प्राचीन काल से दौलत और वैभव की चकाचौंध में लोगों ने अपनों को धोखे दिए और सब कुछ हड़पने का प्रयास किया है. आज भले ही राजपाठ नहीं मगर दौलत का लालच रिश्तों की हत्या करने का सबब बना हुआ है.

इस 19 दिसंबर को रुपयों को ले कर हुए विवाद में मुजफ्फरनगर में एक इकलौते बेटे ने अपने पिता की गोली मार कर हत्या कर दी. इतना ही नहीं उस ने बहन को तमंचे से डरा कर कमरे में बंद कर दिया और वारदात के बाद आरोपी फरार हो गया.

दरअसल मुजफ्फरनगर में गांव करौदा महाजन निवासी किसान शिवराज (52) की चार बीघा जमीन ग्रीन कौरिडोर में अधिग्रहित की गई थी. किसान को लगभग 70 से 80 लाख रुपए मुआवजा मिला. रुपयों को ले कर शिवराज और उसके इकलौते बेटे 25 वर्षीय सूरज में विवाद चल रहा था. शिवराज ने रुपए देने से इनकार कर दिया था. इस से गुस्साए सूरज ने घर में मौजूद अपनी बहन अंशु को कमरे में बंद कर दिया और तमंचे से पिता के सिर में गोली मार दी.

इसी तरह 18 Dec 2023 को आगरा में बंटवारे के विवाद में छोटे भाइयों ने जमीन बंटवारे के विवाद में बड़े भाई को घर बुला कर कातिलाना हमला किया. वह जान बचा कर भागा तो सड़क पर गिरा कर लोहे की रौड से ताबड़तोड़ प्रहार कर उस के दोनों पैर तोड़ दिए.

घटना को अंजाम देने वाले इमरान, फारूक और अरशद तीन भाई हैं. जमीन के बंटवारे पर बात करने इन तीनों ने जोगीपाड़ा से बड़े भाई शाहरुख को घर पर बुलाया. परिवार के लोग घर पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे थे. इसी दौरान विवाद हुआ. छोटे भाइयों ने भतीजे के साथ मिल कर शाहरुख से मारपीट की. वह भागने लगे तो सब से छोटा भाई इमरान लोहे की रौड ले कर आ गया. शाहरुख को बीच सड़क पर गिरा कर सिर फोड़ दिया. इस के बाद भी लगातार दोनों घुटनों पर वार करता रहा. बाद में पुलिस ने घायल को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया. इस तरह की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं.

संपत्ति के मामले में कुछ बातों का ध्यान रखें

दरअसल संपत्ति के मामलों में थोड़ी सी भी लापरवाही उचित नहीं. एक सम्मान पूर्ण आत्मनिर्भर जिंदगी के लिए पैसों की आवश्यकता होती है. अक्सर बुजुर्ग अपनी सारी दौलत बेटों के नाम कर खुद ही उन की मेहरबानी के मोहताज बन कर रह जाते हैं. ऐसा कतई न करें. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें. वरना आप के अपने ही आप को बेवकूफ बना कर या आप को चोट पहुंचा कर सब कुछ हड़प लेंगे.

अपने आगे बच्चों के बीच संपत्ति का बंटवारा करने के बजाए अपने बच्चों को इस योग्य बनाएं कि वे खुद धन कमाना सीखें. अपने जीते जी अपनी पूरी संपत्ति संतानों के नाम न करें. न ही संपत्ति को हाथ का मैल समझ कर दूसरों पर या दान दक्षिणा में लुटाएं.

अपनी संपत्ति का उपयोग सही कामों में करें. याद रखें संपत्ति के आगे कोई रिश्ता काम नहीं आता. संपत्ति के लिए रिश्तेदार कुछ भी कर सकते हैं इसलिए इस मामले में बहुत सावधान रहें.

क्या मुझे अपने होने वाले पति को मेरी बीमारी के बारे में बता देना चाहिए ?

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. सगाई हो चुकी है. इसी साल के अंत तक मेरी शादी होने वाली है. मैं अपनी शादी को ले कर बिलकुल भी उत्साहित नहीं हूं, क्योंकि मेरे घर वालों ने मेरे मंगेतर और उस के घर वालों को यह नहीं बताया कि मेरी जांघ पर छोटा सा सफेद दाग है. मैं ने 2 साल तक इस की दवा ली थी, इसलिए यह फैला नहीं. इसलिए मेरे माता पिता का कहना है कि इस के बारे में लड़के वालों को बताने की कोई जरूरत नहीं है. मैं अब तक चुप रही हूं पर भयभीत हूं कि शादी के बाद यदि पति को यह बात पता चलेगी तो उन का व्यवहार कैसा होगा? मैं उन की नजरों में गिर जाऊंगी. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

रिश्ता तय होने से पूर्व दोनों पक्षों को वास्तव में एकदूसरे से कोई बात नहीं छिपानी चाहिए. पर चूंकि आप के माता पिता ने आप के भावी ससुराल वालों से यह बात छिपाई है और हो सकता है कि भविष्य में इस बात पर कोई विवाद भी न हो पर तब तक आप चिंतित रहेंगी. अगर डाक्टर ने कहा है कि चिंता की कोई बात नहीं तो आप को यह रहस्य खोलने की जरूरत नहीं. इस तरह की बीमारियां किसी को भी किसी भी आयु में हो सकती हैं.

फूल सी दोस्ती : विराट की गर्लफ्रैंड क्यों उस का मजाक बनाने लगी थी ?

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जिंदगी न मिलेगी दोबारा: भाग 1

अश्रुपूरित आंखों से हम दोनों चुपचाप बैठे थे. 2 घंटे से उपर हो गए थे. यों ही शांत सामने रखी तसवीर पर टकटकी लगाए बैठे हुए, हरदम एकदूसरे पर झींकने और बेहद हाजिरजबाव हम दोनों के मुंह से आज एक शब्द भी नहीं निकल रहा था. मानों हमारी जबान को ही सांप सूंघ गया हो.

तभी डोरबेल बजने से हमारी तंद्रा टूटी और अनुज ने दरवाजे की तरफ दौड़ लगा दी, मानों अनुज इसी पल का इंतजार कर रहे हों. दरअसल, आज के दिन हम दोनों ही एकदूसरे से कुछ भी कहने से कतराते हैं कि कहीं दूसरे की आवाज सुन कर सामने वाले की आखों में भरे आंसू बहने का रास्ता न बना लें. पिछले 5 साल से आज का दिन आने से 10-15 दिनों पहले से उदासी ले आता है जो बाद के कई दिनों तक हमारे दिलोदिमाग पर छाई रहती है.

मैं और मेरे पति बेहद सुंदर और छोटे से आशियाने में रहते हैं, जिसे हम दोनों ने बड़ी मेहनत और लगन से बनवाया था. हम दोनों ही शासकीय सेवा में थे मैं एक इंटर स्कूल में लैक्चरार और अनुज कालेज में प्रोफैसर थे. रूपएपैसे की कोई ख़ास कमी नहीं थी, घर में भी 1-1 चीज चुनचुन कर लगवाई थी, सोचा था कि जब इस घर में नन्हेमुन्नों की किलकारियां गूंजेगी तो आज की सारी मेहनत सफल हो जाएगी पर किसे पता था कि किलकारियां आने से पहले ही चीखों में बदल जाएंगी. शोभित हमारा बेटा उस समय इंजीनियरिंग कर के जौब कर रहा था. जौब करतेकरते 3 साल हो गए थे. शोभित अपनी ही सहकर्मी शीना से विवाह करना चाहता था.

मैं और अनुज दोनों ही उदारवादी विचारधारा के थे, इसलिए शीना के विजातीय होने के बावजूद भी हम ने बिना किसी नानुकुर के दोनों के विवाह पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी थी. हम पतिपत्नी भी बहुत खुश थे कि अब घर में बहू आएगी और हम 4 हो जाएंगे. पहले बहू चहकेगी फिर उस के बच्चों की किलकारियों से घर गुंजायमान हो उठेगा. पर यह सब हो पाता उस से पहले ही अपने वर्कप्लेस पर एक सडक दुर्घटना में शोभित अपनी जान गंवा बैठा. हम पतिपत्नी पर तो मानों पहाड़ सा टूट पड़ा था. उधर शीना का भी बुरा हाल था. शीना के मातापिता खुश थे कि उन की बेटी विधवा होने से बालबाल बच गई.

शोभित की तेरहवीं पर ही हम ने शीना को भी आजाद कर दिया था ताकि वह अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोच सके. पर हम पतिपत्नी क्या करते, शोभित के साथ ही हमारा तो सुखदुख सब चला गया था. जिंदगी बोझिल सी हो चली थी… जीवन जीने का उद्देश्य भी शोभित मानों अपने साथ ही ले गया था. पर जब तक सांसे हैं जिंदगी तो जीनी ही पड़ती है. शोभित के जाने को कुदरत की मरजी मान कर हम ने खुद को बड़ी मुश्किल से संभाला था.

जानेअनजाने हम दोनों ही एकदूसरे का सहारा बन गए थे. पूरा साल तो फिर भी नौकरी की व्यस्तता में किसी तरह निकल जाता था पर उस की पुण्यतिथि का दिन हम दोनों पर ही सालभर से भी अधिक भारी पड़ जाता. कुछ मेहमानों के जाने के बाद मैं भारी मन से बिस्तर पर आ कर लेट गई. जैसे ही आंखे बंद की तो बचपन का शोभित सामने आ गया.

गोलमटोल प्यारा सा शोभित जिसे पाने के लिए हम दोनों ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था क्योंकि विवाह के 8 साल बाद तक भी मेरी कोई औलाद नहीं हुई थी. घरपरिवार, नातेरिश्तेदारों के तानों, सवालों और सलाहों से मैं तंग आ चुकी थी. अनुज की मां यानी मेरी सास यों तो बहुत समझदार थीं पर इस मामले में वे दुनिया की सब से नासमझ महिला थीं. टोनेटोटके, बाबा, मंदिरमसजिद जिस ने भी जो बताया वे मुझे जबरदस्ती ले गईं पर न कुछ होना था और न ही कुछ हुआ. असल में डाक्टरी टेस्ट्स में अनुज के कुछ टेस्ट निगेटिव थे जिन के कारण ही मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही थी और आगे भी हमारे मातापिता बनने की कोई संभावना नहीं थी. आपसी सहमति से हम ने मम्मीजी को इस बारे में कुछ नहीं बताया था. आमतौर पर तो सासूमां शांत रहतीं पर जब भी वे अपनी सहेलियों या रिश्तेदारों से मिलतीं तो शुरू हो जातीं, “नीता मुझ से 5 साल छोटी है पर 2 पोतों की दादी बन गई, पङोस की रीमा के बेटे की तो अभी 1 साल पहले ही शादी हुई थी, परसों बिटिया हुई है. एक हमारे यहां 8 साल से सन्नाटा पसरा हुआ है. पता नहीं हम ने क्या गुनाह किए थे कि कुदरत हमें यह सजा दे रहा है. न जाने हमारे आंगन में कभी बच्चे की किलकारियां गूंजेगी भी या नहीं.”

रोजरोज होने वाली इस चिकचिक को झेलतेझेलते मैं तो मानों अवसाद की सी स्थिति में ही जाने लगी थी. हां, मां के ये सारे प्रवचन अनुज की अनुपस्थिति में ही होते थे और मांबेटे के संबंधों पर कोई आंच न आए इसलिए मैं ने भी कभी अनुज से इस बारे कुछ नहीं कहा. एक दिन जब मां जी अपने सदवचनों से मुझे नवाज रहीं थीं कि तभी अनुज आ गए.

मेरी आखों की नमी उन से छिप न सकी और वे बरस पड़े अपनी मां पर,”मां, जान लोगी क्या तुम शुभी की? नहीं हो पा रहा बच्चा तो वह क्या करे, कमी उस में नहीं मुझ में है. जो कहना है मुझ से कहो. और हां, आज तुम कान खोल कर सुन लो कि तुम दादी नहीं बन सकतीं. बस, आज के बाद इस विषय में जो भी बात आप को करना हो मुझ से कीजिएगा, शुभी से नहीं,” यह कहते हुए अनुज मुझे पकड़ कर बैडरूम ले गए.

अनुज की बात सुन कर मांजी को भरोसा तो नहीं हुआ क्योंकि भारतीय समाज में कमियां सिर्फ बहू में होती हैं बेटों में नहीं पर हां, उस दिन से उन के प्रवचन जरूर शांत हो गए थे.

माइक्रो मैनेजमैंट के सहारे आगे बढ़ रहा इंडिया गठबंधन

लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों को भाजपा के मीडिया मैनेजमैंट द्वारा कुछ इस तरह से दिखाया जा रहा है जैसे विपक्षी दलों ने भाजपा को वाकओवर दे दिया है. 3 विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी विपक्ष हताश नहीं है. इंडिया गठबंधन में भले ही आपस में ऊपरी लड़ाई दिख रही हो पर ये सभी दल अपनेअपने स्तर से चुनावी तैयारियां कर रहे हैं.

इंडिया गठबंधन इस बात में एकमत है कि उस को भाजपा को सत्ता से हटाना है. इस के लिए कांग्रेस ने 100 सीटों का फामूर्ला तैयार किया है. भाजपा जहां अयोध्या में राममंदिर के बहाने ‘दक्षिणा बैंक’ को जोड़ने में लगी है वहीं कांग्रेस इंडिया गठबंधन के सहारे पूरे समाज को एकजुट कर रही है. भाजपा केवल चलो अयोध्या की बात कर रही है जबकि इंडिया गठबंधन पूरे देश को जोड़ने के जनहित की बात कर रहा है.

यह सही है कि लोकतंत्र में जीत का अपना महत्त्व होता है. संख्या बल से ही सरकार बनती है. लेकिन इस से विपक्ष का महत्त्व कम नहीं हो जाता. इंडिया गठबंधन में जिस तरह से अलगअलग दल अपनी राय रख रहे हैं, वह सच्चे लोकतंत्र की निशानी है. स्वस्थ लोकतंत्र वही है जहां हर दल अपने मन की बात कह सके, अपने विचार रख सके.

जहां केवल फैसले के पक्ष में बोलने की आजादी हो, विपक्ष में नहीं वहां तानाशाही होती है. भाजपा में जो अनुशासन दिखाया जा रहा है वह तानाशाही वाला है. वहां सवाल पूछने का हक नहीं है. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सब से बड़ी पार्टनर है लेकिन सब उस के खिलाफ बोल सकते हैं. कांग्रेस बिना किसी प्रतिवाद के इंडिया गठबंधन में सब को साथ ले कर चल रही है. सब को साथ ले कर चलना ही सही लोकतंत्र की निशानी है.

छोटीछोटी यात्राओं में जुट रहे लोग

‘यूपी जोड़ो यात्रा’ सहारनपुर से चल कर लखनऊ पहुंच रही है. वहां इस का समापन होगा. लखनऊ में इस के स्वागत को ले कर कांग्रेस के लोगों और जनता के बीच उत्साह देखने को मिल रहा है. सहारनपुर से चल रही यूपी जोड़ो यात्रा ने 4 जनवरी को लखनऊ की सीमा में प्रवेश किया. इटौंजा टोल प्लाजा पर यूपी जोड़ो यात्रा का स्वागत किया गया. बख्शी तालाब संपर्क के बाद 6 जनवरी को शहीद स्मारक, लखनऊ पहुंच कर शहीदों को नमन करने के बाद राजनीतिक संकल्प के साथ यह यात्रा विराम लेगी.

कांग्रेस प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने बताया, ‘यूपी जोड़ो यात्रा में गांवमहल्लों तक पंहुचने का प्रयास किया गया. लखनऊ में बख्शी तालाब, आईआईएम रोड, मड़ियांव, ताड़ीखाना, हाथी मंदिर, त्रिवेणी नगर, सीतापुर रोड, खदरा, पक्का पुल, टीले वाली मस्जिद, बड़ा इमामबाड़ा, चौक, अकबरी गेट, नक्खास तिराहा, यहियागंज, रकाबगंज, रानीगंज, नाका चैराहा, गुरुद्वारा, बांसमंडी चैराहा, अंबेडकर तिराहा, चारबाग, केकेसी, छितवापुर, महाराणा प्रताप चैराहा, बर्लिंगटन चैराहा, शुभम टाकीज चैराहा, कैसरबाग, परिवर्तन चौक के रास्ते से शहीद स्मारक पहुंच कर शहीदों को नमन कर राजनीतिक संकल्प के साथ यात्रा का विराम होगा.’

लखनऊ में यात्रा का जगहजगह स्वागत किया गया. यात्रा में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे शामिल हुए. यात्रा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के साथ सभी वरिष्ठ नेता, सांसद, विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, एआईसीसी सदस्य, पीसीसी सदस्य, कांग्रेस पदाधिकारी एवं नेता और हजारों की संख्या में कार्यकर्ता शामिल रहे.

लखनऊ की ही तरह यह यात्रा अपने रूट पर पड़ने वाले जिला और शहर के लोगों को साथ लेते आगे चल रही थी. भाजपा के बड़े प्रचारप्रसार के दौर में भी कांग्रेस ने अपनी लड़ाई जारी रखी है. यूपी जोड़ो यात्रा की ही तरह अन्य प्रदेशों में भी इस तरह की यात्राएं निकल रही हैं जो जनता से कांग्रेस के जुड़ाव को ही दिखाती हैं.

100 सीटों पर स्पैशल तैयारी

पूरे देश में कांग्रेस 100 ऐसी सीटें तलाश रही है जहां उस के नेता पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ सकें. कांग्रेस ने दिल्ली में अपने प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारियों के साथ मीटिंग की थी. इस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तेलंगाना का उदाहरण देते कहा, ‘कांग्रेस वहां सत्ता में नहीं थी. इस के बाद भी वहां मुख्यमंत्री पद की रेस में 5-6 नेता थे. सब ने मेहनत की और कांग्रेस ने जीत हासिल की.’

राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के मसले पर निराशा जाहिर करते कहा, ‘यूपी में ऐसे नेता सामने नहीं आ रहे जो खुद को यूपी का सीएम समझ कर चुनावी लड़ाई लड़ें.’ इस के बाद यूपी कांग्रेस में ऊर्जा का नया संचार हुआ.

जो कांग्रेस यूपी में 5-6 सीटों तक खुद को सीमित रख रही थी उस ने अब 20-25सीटों पर लड़ने का फैसला कर लिया है. दलित वोटों के लिए अभी तक कांग्रेस इंडिया गठबंधन में मायावती को लाना चाहती थी, दूसरे दलों के विरोध के बाद कांग्रेस ने बसपा का मोह छोड़ दिया है. दलित वोटों को साधने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए सही सीट का चुनाव करने के लिए मंथन में जुट गई है.

माइक्रो मैनेजमैंट से चल रही तैयारी

तेलंगाना कांग्रेस ने सोनिया गांधी को अपने प्रदेश से चुनाव लड़ने के लिए कहा है. ऐसे में यूपी कांग्रेस के लोग चाहते हैं कि रायबरेली से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ें. राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ें. यूपी से कांग्रेस के 3 बड़े लोगों के चुनाव लड़ने का अलग संदेश जाएगा. कांग्रेस की इन योजनाओं ने साफ कर दिया है कि 3 राज्यों की हार के बाद भी वह हताश नहीं है. वह अपनी जगह तलाश कर चुनाव मैदान में न केवल उतरेगी बल्कि जीत के लिए उतरेगी.

केवल कांग्रेस ही नहीं, अखिलेश, ममता, केजरीवाल, लालू और नीतीश कुमार के अलावा दक्षिण के दल भी अपनी पूरी तैयारी से चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति तैयार कर रहे हैं. भाजपा राममंदिर का शोर मचा कर भले ही एक वर्ग को अपने साथ जोड़ कर चल रही हो. विपक्षी दल पूरे समाज को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. भाजपा राममंदिर का काम कर रही है और विपक्षी जनहित के काम में लगे हैं.

ऐसे में 2024 की चुनावी लड़ाई को कमजोर न समझा जाए. इन दलों के विचार भले ही अलगअलग हों पर मोदी को हटाने के मुद्दे पर ये सब एकजुट हैं. सभी दल अपने माइक्रो मैनेजमैंट क सहारे आगे बढ़ रहे हैं. मीडिया भले ही इन को आपस में झगड़ता ज्यादा दिखाता हो, असल में यह लड़ना नहीं, अपनेअपने विचारों को जनता के सामने रखना है.

हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अडानी को जांच के दायरे से किया बाहर, पर क्यों ?

सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग केस की जांच सीबीआई से कराने या उस के लिए स्पैशल इन्वैस्टिगेशन टीम बना कर सारा मामला उस को ट्रांसफर करने से साफ इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सेबी ही इस मामले की जांच करेगी. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बैंच ने सेबी की जांच को सही माना और कहा कि इस मामले की जांच के लिए सेबी सक्षम एजेंसी है.

सुप्रीम कोर्ट ने उस के अधिकार क्षेत्र में भी दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि अदालत सेबी की जांच रिपोर्ट में दखल देने नहीं जा रही है. सीजेआई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट को सेबी के अधिकार क्षेत्र में दखल देने के सीमित अधिकार हैं. जांच न तो एसआईटी को ट्रांसफर की जाएगी, न ही सीबीआई से मामले की जांच कराने की कोई जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने जौर्ज सोरोस से जुड़ी संस्था ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर भी संदेह जताया और कहा कि स्वतंत्र रूप से ऐसे आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकती और उन्हें सही जानकारी नहीं माना जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अख़बारों में छपी रिपोर्ट को एविडैन्स नहीं मान सकते. हां, कुछ हद तक इन पर जांच जरूर हो सकती है.

बता दें कि ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर शेयरों की कीमत के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था. अमेरिकी शौर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग की जनवरी 2023 में जारी की गई रिसर्च रिपोर्ट में अडानी ग्रुप की कंपनियों में गड़बड़ी के आरोप लगाए गए थे. इन में एक आरोप यह भी था कि गौतम अडानी और उन के समूह ने पैसे गलत तरीके से दुबई और मौरिशस भेजे. फिर उन्हीं पैसों को वापस अडानी के शेयर में इन्वैस्ट किया गया और इस के जरिए शेयरों की कीमतों में उतारचढ़ाव कराया गया व शेयरधारकों के हितों के साथ खिलवाड़ किया गया.

इस रिपोर्ट के आने के बाद अडानी ग्रुप के सभी शेयरों में बड़ी तेजी से गिरावट आई थी और इन की संपत्ति को भी तगड़ा नुकसान हुआ था. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने शेयर बाजार का रैग्युलेटर होने के नाते सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया) से यह पता लगाने को कहा था कि अडानी समूह की ओर से नियमों का उल्लंघन तो नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि सेबी ने अडानी-हिंडनबर्ग केस से जुड़े 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी कर ली है, सिर्फ 2 मामलों की जांच बाकी है. बाकी बचे दोनों मामलों की जांच पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को 3 महीने की मोहलत दी है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई भी ऐसा ठोस आधार नहीं रख पाए हैं जिस के चलते जांच का जिम्मा किसी और एजेंसी को सौंपने की जरूरत लगे.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बैंच ने कहा कि अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर सेबी जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर शक नहीं किया जा सकता. सेबी ने मामले से जुड़े 24 में से 22 बिंदुओं की जांच पूरी कर ली है. जिन 2 पहलुओं पर जांच लंबित है उन्हें भी सेबी 3 महीने में पूरा कर ले. इस के बाद वह अपनी रिपोर्ट के आधार पर ज़रूरी कार्रवाई करे.

एक बात गौर करने वाली है कि सब से पहले डायरैक्टोरेट औफ रैवेन्यू इंटैलिजैंस (डीआरआई) ने अडानी समूह की कंपनियों समेत 40 कंपनियों पर आरोप लगाया था कि वे इंडोनेशिया से आने वाले कोयले की कीमत को बढ़ाचढ़ा कर (ओवर इन्वौयसिंग) बताते हैं. डीआरआई वित्त मंत्रालय के अधीन एक जांच संस्था है. डीआरआई ने अपनी जांच में कहा कि अडानी समूह, दूसरी निजी कंपनियां और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने आयातित कोयले की कीमतों को बढ़ाचढ़ा कर बताया, इस के लिए इनवौइस और कीमत निर्धारण में छेड़खानी की गई और इन से जो गैरकानूनी मुनाफा हुआ, उसे विदेशी ‘टैक्स हैवन’ में भेजा जा रहा है.

गौर करने वाली बात है कि देश की सरकारी एजेंसी ने अडानी पर जो आरोप लगाए थे, बाद में बिलकुल वैसे ही आरोप हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में भी लगे. मगर कोर्ट और सेबी को किसी के भी आरोप में इतना दम नजर नहीं आया कि इस मामले को विस्तृत जांच के लिए किसी स्पैशल जांच एजेंसी को सौंपा जाए.

हो सकता है कोर्ट को लगा हो कि किसी भी जांच एजेंसी को मामला सौंपने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि सब सरकार के इशारे पर चलती हैं. और वर्तमान समय में सरकार मतलब अडानी, यह किसी से ढकीछिपी बात नहीं है. जब सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का. तो इस मामले में सीबीआई या एसआईटी भी अडानी के खिलाफ क्या ही जांच करेंगी और क्या ही फैसला देंगी? सुप्रीम कोर्ट तो सीबीआई को खुद ‘तोते’ की उपाधि से पहले नवाज चुका है. ऐसे में अब सेबी की अंतिम रिपोर्ट का उसे इंतजार है.

गौरतलब है कि गौतम अडानी और उन की कंपनियों के खिलाफ पहले भी कई गंभीर आरोप लगे हैं और दर्जनों मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं मगर तमाम मामलों में फैसले उन के पक्ष में ही होते रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जे पी सिंह की मानें तो सुप्रीम कोर्ट में अडानी का जलवा लंबे समय से बरकरार है. इस फैसले से पहले करीब 6 फैसले सुप्रीम कोर्ट ने अडानी के पक्ष में सुनाए हैं.

इन में पहला केस अडानी गैस लिमिटेड बनाम यूनियन गवर्नमैंट का था. यह केस नेचुरल गैस वितरण नैटवर्क प्रोजैक्ट से संबंधित था. अडानी गैस लि. कंपनी का प्रोजैक्ट उदयपुर और जयपुर में चल रहा था, लेकिन राज्य के साथ हुए कौन्ट्रैक्ट की शर्तें न मानने पर राजस्थान सरकार ने नो औब्जेक्शन सर्टिफिकेट वापस लेने के साथ उन का कौन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया.

सरकार ने कौन्ट्रैक्ट के वक्त जमा 2 करोड़ रुपए भी जब्त कर लिया. साथ ही, दोनों शहरों में गैस पाइपलाइन बिछाने की एप्लिकेशन भी रिजैक्ट कर दी. अडानी गैस लिमिटेड सुप्रीम कोर्ट चली गई. वहां जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सरन की बैंच ने राजस्थान सरकार का फैसला पलट दिया. गैस प्रोजैक्ट फिर से अडानी को मिल गया और 2 करोड़ रुपए की जब्ती भी रद्द कर दी गई.

दूसरा केस था टाटा पावर कंपनी लिमिटेड बनाम अडानी इलैक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड एंड अदर्स का. टाटा पावर मुंबई में इलैक्ट्रिसिटी सप्लाई का काम करती थी. रिलायंस एनर्जी लिमिटेड केवल उपनगरों या कहें कि शहर से बाहर के कुछ इलाकों में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का काम करती थी. टाटा पावर के 108 कस्टमर थे, ये वो कंपनियां थीं जो टाटा से बिजली ले कर शहर में बिजली आपूर्ति करती थीं. बीएसईएस/रिलायंस एनर्जी लिमिटेड को टीपीसी को पहले से बकाया राशि के साथ टैरिफ की रकम जोड़ कर देनी थी.

महाराष्ट्र इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड को टाटा पावर सारा बकाया दे चुका था. मतलब एक चेन थी. टाटा पावर अपने कस्टमर, जिस में रिलायंस की कंपनी भी थी, से टैरिफ और बकाया लेती थी, फिर कौन्ट्रैक्ट के मुताबिक महाराष्ट्र इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड को एक तरह से रैंट देती थी. पर कंपनी के आंतरिक बदलाव की वजह से बीएसईएस एनर्जी लिमिटेड 24 फरवरी, 2004 को रिलायंस एनर्जी लिमिटेड में तबदील हो गई. टीपीसी और रिलायंस एनर्जी लिमिटेड के लेनदेन को ले कर विवाद की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अब्दुल नजीर की बैंच ने फैसला अडानी इलैक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के पक्ष में दे दिया.

तीसरा केस परसा कांटा कोलरीज लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन का था जिस में भी फैसला अडानी के पक्ष में आया था. छत्तीसगढ़ के दक्षिण सरगुजा के हसदेव-अरण्य कोल फील्ड्स के परसा ईस्ट और केते बासन में आवंटित कोल ब्लौक प्रोजैक्ट को ले कर वहां के आदिवासियों में गुस्सा था. इस प्रोजैक्ट में अडानी और राजस्थान सरकार के बीच 74 फीसदी और 26 फीसदी की हिस्सेदारी थी. ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे रोक दिया था.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी आदिवासियों की आपत्ति पर नोटिस जारी किया था. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इस में भी जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बैंच ने अडानी के पक्ष में फैसला सुना दिया. उल्लेखनीय है कि इस मामले की सुनवाई पहले से जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बैंच कर रही थी. पर सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस ने इसे हड़बड़ी में जस्टिस मिश्रा की ग्रीष्मकालीन अवकाश पीठ में सूचीबद्ध कर दिया. बिना पुरानी बैंच को जानकारी दिए इस की सुनवाई भी हो गई और अडानी के पक्ष में फैसला भी आ गया.

चौथा मामला अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड और गुजरात इलैक्ट्रिसिटी रैगुलेटरी कमीशन के बीच का है. इसे भी ग्रीष्मकालीन अवकाश बैंच में लिस्ट किया गया. 23 मई, 2019 को जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बैंच ने सुनवाई की. एक ही सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया. फिर अडानी की कंपनी को गुजरात इलैक्ट्रिसिटी रैगुलेटरी कमीशन के साथ किए गए बिजली वितरण का कौन्ट्रैक्ट रद्द करने की मंजूरी दे दी गई.

फैसला इस आधार पर दिया गया कि सरकार की कोल खनन कंपनी अडानी पावर लिमिटेड को कोल आपूर्ति करने में असमर्थ रही जबकि अडानी ने बोली लगाने के बाद कौन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया था. दरअसल, अडानी की कंपनी को लगने लगा था कि सौदा कम मुनाफे का है. लिहाजा, अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड करार जारी रखना नहीं चाहती थी.

5वां केस पावर ग्रिड कार्पोरेशन औफ इंडिया बनाम कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड का है. 22 जुलाई, 2020 को जस्टिस अरुण मिश्रा की बैंच ने सरकारी कंपनी पावर कौर्पोरेशन औफ इंडिया लिमिटेड के खिलाफ अडानी की कंपनी कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया था. इस में पावर ग्रिड को कोरबा वेस्ट से बकाया लेना था. पावर ग्रिड का आरोप था कि अडानी की कंपनी ने कानूनी दांवपेच चलते हुए करोड़ों का बकाया हजम कर लिया.

6ठा केस जयपुर विद्युत वितरण लिमिटेड बनाम अडानी पावर राजस्थान लि. का था, जिस में सितंबर 2020 में अडानी राजस्थान पावर लिमिटेड (एआरपीएल) के पक्ष में एक और फैसला आया. जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एम आर शाह की बैंच ने राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों के समूह की वह याचिका खारिज कर दी जिस में एआरपीएल को कंपनसेटरी टैरिफ देने की बात कही गई है.

पीठ ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपीलीय पंचाट के उस फैसले को सही ठहराया जिस में एआरपीएल को राजस्थान वितरण कंपनियों के साथ हुए पावर परचेज एग्रीमैंट के तहत कंपनसेटरी टैरिफ पाने का हकदार बताया गया था. जानकारों के मुताबिक इस फैसले से अडानी ग्रुप को 5,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से अडानी की कंपनियों को करीब 20,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है. वे कहते हैं, ‘ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान 2 फैसले इतनी हड़बड़ी में लिए गए कि दूसरे पक्ष के काउंसलर्स को भी सूचना नहीं दी गई.’

वहीं 16 अगस्त, 2019 को सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने अडानी से जुड़े सभी फैसलों को ले कर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को खत भी लिखा. दुष्यंत दवे ने कहा था कि ग्रीष्मावकाश में 2 मामलों के निबटारे से अडानी को हजारों करोड़ का लाभ हुआ है.

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने आरोप लगाया कि अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े 2 मामलों को उच्चतम न्यायालय ने गरमी की छुट्टी के दौरान सूचीबद्ध किया और उच्चतम न्यायालय की स्थापित प्रैक्टिस और प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए निबटाया. इसी तरह से गुजरात के एक मामले में भी किया गया, जिस की सुनवाई 2017 के बाद से नहीं हुई थी.

इस बीच, किसी भी बैंच के सामने उसे लिस्ट नहीं किया गया था. लेकिन अचानक इसे भी उसी ग्रीष्मकालीन बैंच के सामने पेश कर दिया गया और उस ने सुनवाई कर उस पर अडानी के पक्ष में फैसला भी सुना दिया. यह मामला अडानी पावर लिमिटेड और गुजरात इलैक्ट्रिसिटी कमीशन एंड अदर्स के बीच था.

जे पी सिंह कहते हैं कि यह बड़े गौर करने वाली बात है कि अडानी को राहत देने वाले सभी पीठों की अध्यक्षता तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने की थी और उन के साथ अलगअलग पीठों में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस बी आर गवई शामिल थे. यह महज संयोग नहीं हो सकता.

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से अडानी ग्रुप में खुशी की लहर है. फैसला ऐसे वक्त में आया है जब पूरा देश राममय हो रहा है. स्वयं गौतम अडानी अयोध्या पहुंच कर प्रधानमंत्री मोदी के साथ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का हिस्सा बनने के लिए आतुर हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन के उत्साह को दूनाचौगुना कर दिया है. मगर विपक्ष इस फैसले से काफी आहत है. उस का मानना है कि यह जल्दबाजी वाला फैसला है. बिना आग के धुंआ नहीं होता. बात किसी बाहरी एजेंसी के लगाए आरोपों की नहीं है, आरोप तो सरकारी एजेंसी ने भी वही लगाए थे. सो, ऐसे में इस की विस्तृत पड़ताल होनी चाहिए थी.

Sleeping Facts : अधूरी नींद सेहत के लिए है खतरे का संकेत, जानें कैसे

Diseases Due To Sleeping Less : हैल्दी रहने के लिए जितना पौषटिक आहार लेना जरूरी है. उतना ही लाइफस्टाइल को स्वस्थ बनाना भी आवश्यक है. इस के लिए सही दिनचर्या के साथसाथ व्यायाम और भरपूर नींद लेनी चाहिए. हालांकि कई लोग अपने बिजी लाइफ शेड्यूल के चलते पूरी नींद नहीं ले पाते है, जिस की वजह से उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

दरअसल, कई अध्ययनों में पाया गया है कि जब व्यक्ति पर्याप्त नींद नहीं लेता है, तो इस से उस के शरीर में कई बीमारियां पैदा होने लगती हैं. इस के अलावा उसे घबराहट, चिड़चिड़ापन, गुस्सा और अग्रेसिव नेचर की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि हर व्यक्ति रोजाना 7 से 8 घंटे की नींद लें.

तो आइए अब जानते हैं भरपूर नींद (Diseases Due To Sleeping Less) न लेने से होने वाले बीमारियों के बारे में.

नींद की कमी से जन्म लेती है ये समस्याएं

  • आप को बता दें कि ये बात कई अध्ययनों में साबित हुई है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन 7 से 8 घंटे की नींद लेता है. उसे दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, कैंसर और डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है.
  • इस के अलावा भरपूर नींद (Diseases Due To Sleeping Less) न लेने से ब्रेन टिश्यू पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, जिस से दिमाग के साथसाथ सोचने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.
  • नींद की कमी से शरीर में एक्टिवनेस की कमी भी हो सकती है.
  • वहीं जो व्यक्ति भरपूर नींद नहीं लेता है उसे हर सुबह उठने पर थका हुआ महसूस होता है. इस के अलावा उसे कभीकभी कमजोरी भी महसूस होती है. इसी वजह से दिनभर वो चिड़चिड़ा रहता है और उस का मूड भी सही नहीं रहता. जिस का असर उस के काम पर भी पड़ता है.
  • इस के अलावा भरपूर नींद (Diseases Due To Sleeping Less) नहीं लेने से मानसिक स्थिति पर भी खासा असर पड़ता है.

इन उपायों का करें पालन

अगर आप को भी अच्छी नींद नहीं आती है या आप भरपूर नींद नहीं ले पाते है. तो उन उपायों को जरूर अपनाएं.

  • रूटीन बनाएं

अच्छी नींद लेने के लिए एक रूटीन बनाएं. इस के लिए हर रात एक ही समय पर सोएं और सुबह भी एक ही समय पर उठें. इस आदत को हफ्तेभर अपनाने से ही आप को अच्छा महसूस होगा.

  • इलेक्ट्रौनिक गैजेट से बनाएं दूरी

अच्छी नींद लेने के लिए सोने से करीब एक घंटे पहले टीवी, कंप्यूटर और स्मार्ट फोन जैसे इलेक्ट्रौनिक गैजेट से दूरी बना लें.

  • भारी भोजन करने से बचें

सोने से पहले हल्काफुल्का भोजन ही करें और तलाभुना खाना नहीं खाएं.

  • व्यायाम करें

इस के अलावा सोने से 10 मिनट पहले ब्रीदिंग एक्सरसाइज या व्यायाम जरूर करें. इस से आप को नींद तो अच्छी आएगी ही. साथी ही आप को मानसिक शांति भी मिलेगी.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

ठंड में शरीर में हो जाती है Vitamin D की कमी, तो इन फूड्स का करें सेवन

Vitamin D Deficiency: ठंड के मौसम में ज्यादातार लोगों के शरीर में विटामिन डी की कमी होने लगती है, जिस से उन की हड्डियां तो कमजोर होती ही हैं. साथ ही शरीर के अलगअलग हिस्सों में भी दर्द होने लगता है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करें, जो बौडी में विटामिन डी की कमी को पूरा कर सके.

सर्दियों के मौसम में कुछ लोगों की हड्डियां कमजोर होने लगती है. इस के अलावा उन के शरीर के अलगअलग हिस्सों में भी दर्द की समस्या होने लगती है. आमतौर पर इस की वजह बौडी में विटामिन डी की कमी को माना जाता है.

दरअसल, सूरज की किरणों को विटामिन डी का मुख्य स्त्रोत माना जाता है और सर्दियों में धूप न के बराबर निकलती है, जिस से शरीर में विटामिन डी की कमी होने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि शरीर में विटामिन डी की कमी पूरा करने के लिए लोग अपनी डाइट में उन फूड्स को शामिल करें. जो बौडी में विटामिन डी की कमी को पूरा कर सके. तो आइए जानते हैं उन फूड्स (Vitamin D rich foods in winter) के बारे में, जो शरीर को अच्छी मात्रा में विटामिन डी दे सकते हैं.

विटामिन डी से भरपूर है ये फूड्स

  • मशरूम

मशरूम को विटामिन डी का एक अच्छा स्रोत माना जाता है, क्योंकि इस में विटामिन डी2 और विटामिन डी3 की उच्च मात्रा होती है. इसलिए सर्दियों के मौसम में मशरूम जरूर खाना चाहिए.

  • अंडे

जिन लोगों के शरीर में विटामिन डी (Vitamin D rich foods in winter) की कमी है या जिन की हड्डियां कमजोर हो रही हैं उन्हें तो अपनी डाइट में अंडे को जरूर शामिल करना चाहिए. अंडे में विटामिन डी के साथसाथ फैट्स, प्रोटीन और अमीनो एसिड्स की भी भरपूर मात्रा होती है.

  • चीज

चीज में भी विटामिन डी की उच्च मात्रा होती है. इसलिए ठंड के मौसम में चीज को अपनी डाइट में जरूर शामिल करें. रोजाना कुछ मात्रा में चीज खाने से शरीर को विटामिन डी मिलता रहेगा और हड्डियों में भी मजबूती आ जाएगी.

  • फोर्टिफाइड फूड्स

इस के अलावा विटामिन डी (Vitamin D rich foods in winter) की कमी को दूर करने के लिए आप आपने भोजन में विटामिन डी फोर्टिफाइड दूध, जूस, सीरियल्स और ओटमील आदि को भी शामिर कर सकते हैं. इन से शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाता है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

Mamata Banerjee Birthday : दक्षिणपंथी राजनीति को चैलेंज करती ममता बनर्जी

Mamata Banerjee Birthday : राजनीतिक हलकों में काफी समय तक ममता बनर्जी को बखेड़ा खड़ा करने वाली अपरिपक्व नेता के तौर पर देखा जाता रहा. उन के बारे में ऐसी राय बनी रही कि उन्हें बड़े परिपक्व नेताओं के बीच नहीं बुलाया जाना चाहिए. पता नहीं कब, कहां, क्या बवाल मचा दें. मगर आज दीदी की चर्चा राष्ट्रस्तर पर है. उन के बगैर विपक्षी एकता या विपक्षी गठबंधन की बात करना ही बेमानी है.

2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 18 जुलाई को जब बेंगलुरु में विपक्षी जमावड़े में ममता बनर्जी और सोनिया गांधी की उपस्थिति ने ‘विपक्षी एकता मंच’ में जान फूंकी, तो भाजपा रक्षात्मक मोड़ में आ गई. इस पर दीदी ने चुटकी ली कि, ‘भाजपा एक गिलास नहीं पलट सकती, मेरी सरकार क्या पलटेगी?’

बेंगलुरु में विपक्षी एकता मंच पर ममता बनर्जी और सोनिया गांधी को इतना एक्टिव देख कर ही एनडीए ने छोटेछोटे क्षेत्रीय दलों को जोड़ने की कोशिश में शीर्षासन शुरू किया था. भाजपा जानती है कि दीदी की दादागीरी शुरू हुई तो मुकाबला कठिन होगा. दीदी की ताकत का अंदाजा इंडिया गठबंधन को भी खूब है.

ममता ने 2011 में बंगाल के लोगों का दिल एक नारे से जीत लिया था- मां, माटी और मानुष. इस नारे के 3 शब्दों- ‘मां’ यानी मातृशक्ति, माटी यानी बंगाल की भूमि और मानुष यानी बंगाल के लोग, इन 3 को ममता ने अपने दिल के करीब बता कर बंगाल का दिल जीत लिया था.

ममता बनर्जी हमेशा बंगाल के लोगों के हितों पर बात करती हैं. इसी का परिणाम है कि लोग उन्हें हर चुनाव में विजयी बनाते हैं. ममता हमेशा जमीन से जुड़ी नेता रही हैं. अपने लोगों के लिए वे खुली किताब की तरह हैं. सफेद सूती साड़ी, पैर में रबड़ की चप्पल, कंधे पर पर्स की जगह सूती कपड़े का झोला टांगे ममता को अपनी मां के घर से पैदल निकलते जिस ने भी देखा वह उसी पल उन के व्यक्तित्व का कायल हो गया.

ममता हमेशा बंगाल के लोगों के बीच रहीं. राजनीति में आने के बाद भी वे बेहद साधारण से उस घर में रहती रहीं जिस की छत टिन की है और जिस के बगल से एक खुली नहर बहती है, जहां मच्छरों का बसेरा है. उन का सब से ज्यादा जुड़ाव अपनी मां गायत्री देवी से था, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.

ममता जब भी अपने कालीघाट स्थित उस घर से काम के लिए निकलती थीं तो उन की मां उन्हें बाहर तक छोड़ने के लिए आया करतीं थीं. ममता अपनी गरदन घुमातीं और तब तक अपनी मां को देखा करतीं जब तक कि वे उन की आंखों से ओझल न हो जातीं. मां के घर के भीतर चले जाने के बाद ही वे कार में बैठती थीं. बंगाल के लोगों के लिए यह नजारा आम था. मां के प्रति ममता का वह प्रेम जनता के दिलों में उन के लिए एक स्थाई जगह बना चुका है.

ममता ने बंगाल की जनता के लिए अपने शासनकाल में अनगिनत कल्याणकारी योजनाएं चलाईं. इस का फायदा आम लोगों तक पहुंचा, जिस के चलते बंगाल के लोगों का भरोसा ममता बनर्जी पर कायम हुआ. ममता ने अपने राज्य में कभी हिंदूमुसलिम में भेद नहीं किया. बंगाल का मुसलमान ममता पर आंख मूंद कर भरोसा करता है. उसे पता है कि ममता हैं तो वे सुरक्षित हैं. कोई भी चुनाव हो, ममता के लिए मुसलमानों का एकतरफा वोट पड़ता है. ममता ने समयसमय पर मुसलमानों के हित में कई फैसले लिए हैं.

ममता का जुझारू तेवर

बंगाल के लोगों को ममता बनर्जी का जुझारू तेवर पंसद आता है. ममता आम लोगों के हितों के लिए जुझारू तरीके से लड़ती हैं. इस के चलते ही लोग ममता को चाहते हैं और उन्हें ही चुनते हैं.

भाजपा को घेरने और टोकने का कोई मौका ममता छोड़ती नहीं हैं. हाल ही में कोलकाता की एक जनसभा में उन्होंने केंद्र सरकार के रवैए को उजागर करते हुए कहा, ‘सुनने में आ रहा है कि अब हमें साल 2024 तक फंड नहीं मिलेगा. ऐसा हुआ तो जरूरत पड़ने पर मैं आंचल फैला कर बंगाल की माताओं के सामने भीख मांग लूंगी, लेकिन भीख मांगने दिल्ली (केंद्र सरकार के पास) कभी नहीं जाऊंगी.

उन के सियासी कैरियर में चिंता और गिरावट का दौर पिछले लोकसभा चुनाव में उस वक्त आया था जब भाजपा पश्चिम बंगाल में 42 में से 18 सीटें ले गई थी. हालांकि इस के बाद हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी की जोरदार वापसी हुई थी लेकिन दक्षिणपंथ के पसरते पांव देख उन्हें चिंता हुई थी कि कैसे भगवा रथ रोका जाए. चुनावी विश्लेषणों से एक बात आईने की तरह साफ़ हुई थी कि टीएमसी का वोट तो ज्यों का त्यों है पर वामदलों और कांग्रेस का वोट भाजपा में शिफ्ट हो रहा है.

इस शिफ्टिंग को रोकने को ममता ने वामदलों और कांग्रेस से हाथ मिला लेना बेहतर समझा और इंडिया गठबंधन में सभी के साथ हो लीं. जाहिर है उन्हें वामदलों के मुकाबले भाजपा बड़ा खतरा लगी जो पश्चिम बंगाल का माहौल बिगाड़ने में भी कामयाब हो रही थी. यह खतरा कितना टला, यह तो इस साल के लोकसभा चुनाव नतीजे बताएंगे लेकिन ममता के लिए सुकून देने वाली बात यह है कि पंचायत चुनावों में वोटरों ने भाजपा को नकारते उन्हें स्वीकारा है.

यह ममता की जीवटता ही कही जाएगी कि उन्होंने वामदलों को एक झटके में पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका जो अपने उसूल छोड़ने लगे थे लेकिन वोटर को उन का विकल्प नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ममता पश्चिम बंगाल के लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रही थीं कि एक विचार ऐसा भी है जो कांग्रेस और वामदल दोनों का प्रतिनिधित्व करता है और किसी एक विचारधारा के पीछे अंधा हो कर नहीं चलता. अब उन्हें यह साबित करना है कि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से पश्चिम बंगाल को कैसे दूर रखें.

इस के लिए जरूरत पड़ी तो वे लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में उदारता दिखाएंगी और कम से कम पर राजी हो जाएंगी हालांकि इस में टीएमसी का थोड़ा नुकसान है लेकिन ज्यादा नुकसान और बड़े खतरे से बचने को इस के अलावा कोई और रास्ता भी उन के पास नहीं.

सवाल: भाग 1- सुरैया की खुशी बनी अनवर के लिए परेशानी का सबब

लेखक- शेख विकार अहमद

सुबह से ही सुरैया का जी मिचलारहा था, इसीलिए सुबह 6 बजे

उठ कर दोनों बड़े लड़कों का टिफिन तैयार कर उन्हें कालेज भेजने के बाद वह हमेशा की तरह अपने रोजाना के कामों में नहीं लग पाई थी. कुछ अनमनी सी वह बिस्तर पर आ कर लेट गई. काफी देर इंतजार करने के बाद अनवर ने उसे आवाज दी थी. वे सम?ा गए थे कि उस की तबीयत कुछ नासाज है.

अनवर एक सम?ादार पति और जिम्मेदार पिता थे. वे जानते थे कि सुरैया फजर की नमाज पढ़ने के बाद से जो रसोई में घुसती है तो उसे समय का ध्यान ही नहीं रहता. एक के बाद एक अपना बिस्तर छोड़ उस पर हुक्म पर हुक्म फरमाता जाता है. बेचारी, सब का खयाल रखतेरखते ही निढाल हो जाती है.

अनवर का भरापूरा परिवार था.

2 जवान लड़के थे जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. 10वीं में पढ़ने वाली एक लड़की भी थी. यद्यपि सुरैया बच्चों की सगी मां नहीं थी मगर उस के व्यवहार को देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि वह सौतेली मां है. 6 साल पहले जब अनवर की पहली बीवी का इंतकाल हुआ था तब उन के मन में बच्चों के लिए सौतेली मां लाने का इरादा बिलकुल नहीं था.

3 साल पहले की बात है. उन की अम्मा इस कदर बीमार पड़ीं कि खाट पकड़ ली. उस समय अम्मा ने अनवर को पास बुला कर कहा था, ‘मु?ो नहीं लगता कि अब मैं इस बीमारी से उबर पाऊंगी. तुम्हारी लड़की अब जवान हो रही है. उसे ऐसी उम्र में मां की सख्त जरूरत होगी. मेरे मरने से पहले तुम्हें शादी करनी होगी.’

मां की बातों का अनवर के दिल व दिमाग पर गहरा असर हुआ और उन्होंने उन का दिल रखने के लिए शादी करना कुबूल कर लिया. वैसे, दिल से वे कतई राजी न थे. उस समय उन का बड़ा लड़का 12वीं कक्षा में पढ़ रहा था. अब जब बेटे शादी करने लायक हो रहे हैं तो खुद का विवाह करना अनवर को उचित नहीं लग रहा था मगर जब अम्मा ने बेटी सुमैया का वास्ता दिया तो उन्हें भी एहसास हुआ कि अम्मा जो कह रही हैं वह सच है. आखिर, लड़की के सब से करीब उस की मां ही तो होती है. अब तक तो अम्मा मां की कमी को किसी हद तक पूरा करने की कोशिश करती आई थीं. अगर अम्मा को सचमुच कुछ हो गया तो उस का क्या होगा.

बेटी की खातिर शादी के लिए उन्होंने हां कर दी और फिर उन की इस रजामंदी का अम्मा पर ऐसा असर हुआ कि उन की बीमारी ही भाग गई. वे खाट से ऐसे उठीं जैसे उन में नई जान फूंक दी गई हो. अनवर की शादी सुरैया से हो गई. सुरैया का पहला तलाक हो चुका था. कुछ दिनों तक वे अपने बच्चों और उन की सौतेली मां के नए रिश्ते को काफी गौर से परखने की कोशिश करते रहे. उन का सौतेली मां को ले कर मन में जो डर बना हुआ था वह गलत साबित हुआ. सुरैया एक अच्छी मां साबित हुई. इतनी अच्छी कि बच्चे अपनी सगी मां की मौत का गम भी जल्दी ही भूल गए.

सुरैया की बच्चों के लिए मुहब्बत देख कर अनवर मन ही मन बहुत खुश थे. वे अकसर सुरैया को खुश करने के लिए बच्चों का जिक्र ‘तुम्हारे बच्चे’ कह कर ही करते ताकि उसे भी यह याद न रहे कि वह बच्चों की सगी मां नहीं है.

आज जब अनवर को लगा कि सुरैया की तबीयत ठीक नहीं है तो उन्होंने उसे जगाना उचित नहीं सम?ा और औफिस जाने से पहले यह जानने के लिए कि अगर वह जाग रही हो तो तबीयत के बारे में पूछ लिया जाए, उन्होंने उसे आवाज दी थी. सुरैया जैसे हड़बड़ा कर उठी. उठते ही उस ने घड़ी की तरफ देख कर कहा, ‘‘हाय, साढ़े 7 बज गए. आप ने जगाया क्यों नहीं मु?ो.’’

‘‘कोई बात नहीं. लगता है आज

आप की तबीयत ठीक नहीं है,’’ अनवर ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. बस, जरा जी मिचला रहा था. मैं अभी लंच तैयार किए देती हूं.’’

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